Holi Special: अधूरी चाह- भाग 1

चलिए, आप को संजय चावला से मिलाते हैं… आज से 25 साल पहले का संजय चावला.

संजय के पापा नौकरी करते हैं. एक बड़ा भाई, जिस की अपने ही घर के बाहर किराने की दुकान है. घर के बाहर के हिस्से में 3 दुकानें हैं. पापा ने पहले से ही 3 दुकानें बनाईं, तीनों बेटों के लिए.

छोटा बेटा अभी पढ़ रहा है. बड़े बेटे की शादी हो गई है. अब संजय का नंबर आया है, हजारों लड़कियां उस पर मरती थीं, एक से एक हसीना उस के कदमों में दिल बिछा देती थीं, उस की एक ?ालक पर ही लड़कियां तड़प उठती थीं, उस के साथ न जाने कितने सपनों के तानेबाने बुनतीं, लेकिन उस की भाभी को उस के लिए कोई लड़की नहीं जंचती.

अरे भई, कैसे जंचेगी? कोई संजय जैसी ही मिले तब न. संजय का गोराचिट्टा रंग, तीखे नैननक्श, आंखें ऐसीं जैसे नशा हो इन में, जो देखे बस खो जाए इन नशीली आंखों में. लंबा कद, चौड़ा सीना, होंठों के ऊपर छोटीछोटी बारीक सी मूंछें, चाल में गजब का रोबीलापन और स्वभाव जैसे हंसी बस इन्हीं की गुलाम हो. जी हां साहब, एकदम हंसमुख स्वभाव… ऐसे हैं संजय चावला.

बड़ी मशक्कत के बाद एक कश्मीर की कली भा गई संजय साहब को. क्यों न भाए कश्मीर की जो ब्यूटी है. शालिनी नाम है. नाम से मेल खाता स्वभाव. शालीन सी, बला की खूबसूरती जिसे देखते ही संजय साहब अपना दिल हार बैठे थे. बस, ?ाट से हां बोल दी शादी के लिए.

अरेअरे, कोई शालिनी से तो पूछो कि वह क्या चाहती है, लेकिन नहीं, कोई पूछने की जरूरत नहीं. उस का तो एक ही फैसला है कि जो मम्मीपापा कहेंगे, वही ठीक है.

बस तो चट मंगनी और पट ब्याह वाली बात हो गई. शादी के बाद जिम्मेदारी बढ़ गई. पहले दोनों भाई इसी एक ही किराने की दुकान पर बैठते थे, लेकिन अब संजय को लगा कि खर्चे बढ़े हैं, मगर आमदनी नहीं. तो उस ने भी नौकरी करने के बारे में सोचा. नौकरी भी अच्छी मिल गई. घरपरिवार में सब मिलजुल कर रहते हैं. इस बात को 8 साल बीत गए.

बड़े भाई सुनील के भी 2 बच्चे हैं और संजय के भी 2 बच्चे हैं. छोटे भाई  संदीप की भी शादी हो गई. परिवार भी बढ़े और खर्चे भी. मम्मीपापा भी नहीं रहे. अब तक तो बहुत प्यार था परिवार में, लेकिन कहते हैं न कि प्यार भी पैसा मांगता है, पेट भी पैसा मांगता है, पैसे बिना प्यार बेकार लगता है और प्यार से पेट भी नहीं भरता.

संजय ने कश्मीर में नौकरी तलाश की, तो दिल्ली से अच्छी नौकरी उसे कश्मीर में मिल गई और वह अपनी फैमिली के साथ कश्मीर शिफ्ट हो गया.

एक तो पहले से इतना हैंडसम, उस पर कश्मीर की आबोहवा में संजय और भी कातिल हो गया. जहां से निकलता, न जाने कितने दिलों पर छुरियां चलती थीं, कितने दिल घायल होते थे.

संजय परिवार को ले कर कश्मीर चला तो गया, लेकिन भाइयों से दूर रह नहीं सकता था. अकसर 4-6 महीने बाद जरूर मिलने आता और 10-15 दिन यहीं रहता.

लेकिन जब भी आता, महल्ला तो क्या जिसे भी पता चलता कि संजय आया है, सब लड़कियां, जिन की शादी भी हो चुकी थी, फिर भी संजय की एक ?ालक पाने के लिए किसी न किसी बहाने कोई संजय के घर और कोई उस के भाई की दुकान पर आती, ताकि संजय की एक ?ालक मिल जाए.

यह बात संजय भी अच्छे से जानता था और मन ही मन इतराता था, लेकिन आज संजय को दिल्ली आए 8 महीने हो चुके हैं. शुरू में 2 दिन तो बहुत ही औरतें आईं संजय की ?ालक पाने के बहाने (जी हां औरतें, क्योंकि संजय को कश्मीर गए अब तक 17 साल बीत चुके हैं). इन 17 सालों में ऐसा नहीं कि संजय दिल्ली नहीं आया या कभी वे लड़कियां संजय को देखने के बहाने नहीं आईं, मगर अब तक वे सब औरतें बन चुकी हैं न. दोस्तो, तकरीबन संजय और उन सब की उम्र (जो संजय पर मरती थीं) 45 से 50 साल के बीच है, तो औरतें ही कहेंगे न.

हां, तो अब बस 2 ही दिन औरतें आईं उस की ?ालक पाने को, लेकिन अब नहीं आतीं वे, क्योंकि उन से संजय का उतरा हुआ चेहरा देखा नहीं जाता. वे संजय को इस तरह हारा हुआ बरदाश्त नहीं कर पा रहीं, लेकिन फोन पर संजय से बात कर के उसे ढांढ़स बंधा रही हैं, उसे अपनी परेशानी से बाहर निकलने का रास्ता बताती हैं, उसे नई राह पर चलने की सलाह देती हैं, उसे अपने हक के लिए लड़ना सिखाती हैं, क्योंकि संजय ने कभी परिवार में किसी भी चीज को ले कर मेरातेरा किया ही नहीं, वह सबकुछ छोड़ कर कश्मीर चला गया था. वहां उस की अच्छी नौकरी थी, उस ने यहां से पुश्तैनी जायदाद पर कोई हक कभी जताया ही नहीं था. लेकिन आज उसे हक जताने की जरूरत है. आज हक जताने की मजबूरी है, लेकिन फिर भी भाई के सामने उस की बोलने की हिम्मत नहीं होती, इसलिए सब उसे अपने हक के लिए बोलने को कहते हैं.

संजय का कश्मीर में सबकुछ खत्म हो गया है, इसलिए अब वह भाइयों से पुश्तैनी जायदाद में अपना हिस्सा ले कर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है.

लेकिन ऐसा क्यों? जानते हैं ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा क्या हुआ संजय के साथ कि उस का खिलता चेहरा मुर?ा गया? ऐसा क्या हुआ, जो उसे भाई से आज इतने सालों बाद अपना हक मांगना पड़ा?

सुनिए, संजय की दर्दभरी दास्तां…

जब संजय ने कश्मीर शिफ्ट किया था, उस की अच्छीभली गृहस्थी चल रही थी, लेकिन कुछ ही समय बाद तकरीबन 4 साल के बाद एक बुरी छाया मंडराई परिवार पर.

जी हां, जब कोई मुसीबत आएगी तो बुरी छाया का मंडराना ही कहेंगे. शालिनी को लगाव हो गया किसी से यानी प्यार हो गया.

अजीब लग रहा है न सुन कर, लेकिन यही सच है. तकरीबन 32-33 साल की शालिनी और इसी उम्र का ही अजय श्रीवास्तव, जो शालिनी के घर से तकरीबन 200-250 मीटर की दूरी पर ही रहता था.

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Holi Special: अधूरी चाह

Holi Special: ये कैसा सौदा- भाग 1

Reeta Kashyap

जैसे ही उस नवजात बच्चे ने दूध के लिए बिलखना शुरू किया वैसे ही सब सहम गए. हर बार उस बदनसीब का रोना सब के लिए तूफान के आने की सूचना देने लगता है, क्योंकि बच्चे के रोने की आवाज सुनते ही संगीता पर जैसे पागलपन का दौरा सा पड़ जाता है. वह चीखचीख कर अपने बाल नोचने लगती है. मासूम रिया और जिया अपनी मां की इस हालत को देख कर सहमी सी सिसकने लगती हैं. ऐसे में विक्रम की समझ में कुछ नहीं आता कि वह क्या करे? उस 10 दिन के नवजात के लिए दूध की बोतल तैयार करे, अपनी पत्नी संगीता को संभाले या डरीसहमी बेटियों पर प्यार से हाथ फेरे.

संगीता का पागलपन हर दिन बढ़ता ही जा रहा है. एक दिन तो उस ने अपने इस नवजात शिशु को उठा कर पटकने की कोशिश भी की थी. दिन पर दिन स्थिति संभलने के बजाय विक्रम के काबू से बाहर होती जा रही थी. वह नहीं जानता था कि कैसे और कब तक वह अपनी मजदूरी छोड़, घर पर रह कर इतने लोगों के भोजन का जुगाड़ कर पाएगा, संगीता का इलाज करवा पाएगा और दीक्षित दंपती से कानूनी लड़ाई लड़ पाएगा. आज उस के परिवार की इस हालत के लिए दीक्षित दंपती ही तो जिम्मेदार हैं.

विक्रम जानता था कि एक कपड़ा मिल में दिहाड़ी पर मजदूरी कर के वह कभी भी इतना पैसा नहीं जमा कर पाएगा जिस से संगीता का अच्छा इलाज हो सके और इस के साथ बच्चों की अच्छी परवरिश, शिक्षा और विवाह आदि की जिम्मेदारियां भी निभाई जा सकें. उस पर कोर्टकचहरी का खर्चा. इन सब के बारे में सोच कर ही वह सिहर उठता. इन सब प्रश्नों के ऊपर है इस नवजात शिशु के जीवन का प्रश्न, जो इस परिवार के लिए दुखों की बाढ़ ले कर आया है जबकि इसी नवजात से उन सब के जीवन में सुखों और खुशियों की बारिश होने वाली थी. पता नहीं कहां क्या चूक हो गई जो उन के सब सपने टूट कर ऐसे बिखर गए कि उन टूटे सपनों की किरचें इतनी जिंदगियों को पलपल लहूलुहान कर रही हैं.

कोई बहुत पुरानी बात नहीं है. अभी कुछ माह पहले तक विक्रम का छोटा सा हंसताखेलता सुखी परिवार था. पतिपत्नी दोनों मिल कर गृहस्थी की गाड़ी बखूबी चला रहे थे. मिल मजदूरों की बस्ती के सामने ही सड़क पार धनवानों की आलीशान कोठियां हैं. उन पैसे वालों के घरों में आएदिन जन्मदिन, किटी पार्टियां जैसे छोटेबड़े समारोह आयोजित होते रहते हैं. ऐसे में 40-50 लोगों का खाना बनाने के लिए कोठियों की मालकिनों को अकसर अपने घरेलू नौकरों की मदद के लिए खाना पकानेवालियों की जरूरत रहती है. संगीता इन्हीं घरेलू अवसरों पर कोठियों में खाना बनाने का काम करती थी. ऐसे में मिलने वाले खाने, पैसे और बख्शिश से संगीता अपनी गृहस्थी के लिए अतिरिक्त  सुविधाएं जुटा लेती थी.

पिछले साल लाल कोठी में रहने वाले दीक्षित दंपती ने एक छोटे से कार्यक्रम में खाना बनाने के लिए संगीता को बुलाया था. संगीता सुबहसुबह ही रिया और जिया को अच्छे से तैयार कर के अपने साथ लाल कोठी ले गई थी. उस दिन संगीता और उस की बेटियां ढेर सारी पूरियां, हलवा, चने, फल, मिठाई, पैसे आदि से लदी हुई लौटी थीं. तीनों की जबान श्रीमती दीक्षित का गुणगान करते नहीं थक रही थी. उन की बातें सुन कर विक्रम ने हंसते हुए कहा था, ‘‘सब पैसों का खेल है. पैसा हो तो दुनिया की हर खुशी खरीदी जा सकती है.’’

संगीता थोड़ी भावुक हो गई. बोली, ‘‘पैसे वालों के भी अपने दुख हैं. पैसा ही सबकुछ नहीं होता. पता है करोड़ों में खेलने वाले, बंगले और गाडि़यों के मालिक दीक्षित दंपती निसंतान हैं. शादी के 15 साल बाद भी उन का घरआंगन सूना है.’’

‘‘यही दुनिया है. अब छोड़ो इस किस्से को. तुम तीनों तो खूब तरमाल उड़ा कर आ रही हो. जरा इस गरीब का भी खयाल करो. तुम्हारे लाए पकवानों की खुशबू से पेट के चूहे भी बेचैन हो रहे हैं,’’ विक्रम ने बात बदलते हुए कहा.

संगीता तुरंत विक्रम के लिए खाने की थाली लगाने लगी और रिया और जिया अपनेअपने उपहारों को सहेजने में लग गईं.

अगले ही दिन श्रीमती दीक्षित ने अपने नौकर को भेज कर संगीता को बुलवाया था. संदेश पाते ही संगीता चल दी. वह खुश थी कि जरूर कोठी पर कोई आयोजन होने वाला है. ढेर सारा बढि़या खाना, पैसे, उपहारों की बात सोचसोच कर उस के चेहरे की चमक और चाल में तेजी आ रही थी.

संगीता जब लाल कोठी पहुंची तो उसे मामला कुछ गड़बड़ लगा. श्रीमती दीक्षित बहुत उदास और परेशान सी लगीं. संगीता ने जब बुलाने का कारण पूछा तो वे कुछ बोली नहीं, बस हाथ से उसे बैठने का इशारा भर किया. संगीता बैठ तो गई लेकिन वह कुछ भी समझ नहीं पा रही थी. थोड़ी देर तक कमरे में चुप्पी छाई रही. फिर धीरे से अपने आंसू पोंछते हुए श्रीमती दीक्षित ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारी शादी को 15 साल हो गए लेकिन हमें कोई संतान नहीं है. इस बीच 2 बार उम्मीद बंधी थी लेकिन टूट गई. विदेशी डाक्टरों ने बहुत इलाज किया लेकिन निराशा ही हाथ लगी. अब तो डाक्टरों ने भी साफ शब्दों में कह दिया कि कभी मां नहीं बन पाऊंगी. संतान की कमी हमें भीतर ही भीतर खाए जा रही है.’’

संगीता को लगा श्रीमती दीक्षित ने अपना मन हलका करने के लिए उसे बुलवाया है. संगीता तो उन का यह दर्द कल ही उन की आंखों में पढ़ चुकी थी. वह सबकुछ चुपचाप सुनती रही.

‘‘संगीता, तुम तो समझ सकती हो, मां बनना हर औरत का सपना होता है. इस अनुभव के बिना एक औरत स्वयं को अधूरा समझती है.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं बीबीजी, आप तो पढ़ीलिखी हैं, पैसे वाली हैं. कोई तो ऐसा रास्ता होगा जो आप के सूने जीवन में बहार ले आए?’’ श्रीमती दीक्षित के दुख में दुखी संगीता को स्वयं नहीं पता वह क्या कह रही थी.

‘‘इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है,’’ कह कर श्रीमती दीक्षित चुप हो गईं.

‘‘मैं…मैं…भला आप की क्या मदद कर सकती हूं?’’ संगीता असमंजस में पड़ गई.

‘‘तुम अपनी छोटी बेटी जिया को मेरी झोली में डाल दो. तुम्हें तो कुदरत ने 2-2 बेटियां दी हैं,’’ श्रीमती दीक्षित एक ही सांस में कह गईं.

यह सुनते ही जैसे संगीता के पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. उस का दिमाग जैसे सुन्न हो चला था. वह बड़ी मुश्किल से इतना ही कह पाई, ‘‘बीबीजी, आप मुझ गरीब से कैसा मजाक कर रही हैं?’’

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Holi Special: ये कैसा सौदा

दीवार: भाग 2

‘‘खानेवाने का कैसे चलता है फिर?’’

‘‘जानकी रात का खाना बना कर रख जाती है, सवेरे मैं देर से जाती हूं इसलिए आसानी से कुछ बना लेती हूं.’’

‘‘फिर भी कभी कुछ काम हो तो मुरली से कह देना, कर देगा.’’

‘‘थैंक्यू, अंकल. आप को भी जब फुरसत हो यहां आ जाइएगा. मैं तो 7 बजे तक आ जाता हूं,’’ राहुल ने कहा.  आनंद के जाने के कुछ देर बाद कपिल आया. बोला, ‘‘माफ करना भाई, फ्लैट बदलने के चक्कर में तुम्हारे आने की तारीख याद…’’

‘‘लेकिन बैठेबिठाए अच्छाभला फ्लैट बदलने की क्या जरूरत थी यार?’’ राहुल ने बात काटी.

‘‘जब उस बालकनी की वजह से जिसे इस्तेमाल करने की हमें फुरसत ही नहीं थी, आनंद साहब मुझे उस फ्लैट की मार्केट वैल्यू से कहीं ज्यादा दे रहे थे तो मैं फ्लैट क्यों न बदलता?’’  राहुल ने खुद को कहने से रोका कि हमें तो अभी तुम्हारी कमी महसूस नहीं हुई और शायद होगी भी नहीं. उसे न जाने क्यों आनंद अंकल अच्छे या यह कहो अपने से लगे थे. सब से अच्छी बात यह थी कि उन का व्यवहार बड़ा आत्मीय था.

अगली सुबह जया ने कहा, ‘‘आनंद अंकल के नाश्ते के बरतन मैं जानकी से भिजवाना भूल गई. तुम शाम को जानकी से कहना, दे आएगी.’’

लेकिन शाम को राहुल खुद ही बरतन लौटाने के बहाने आनंद के घर चला गया. आनंद बालकनी में बैठे थे, उन्होंने राहुल को भी वहीं बुला लिया.  ‘‘स्वच्छ तो खैर नहीं कह सकते लेकिन खुली हवा यहीं बैठ कर मिलती है और चलतीफिरती दुनिया भी नजर आ जाती है वरना तो वही औफिस के वातानुकूलित कमरे या घर के बैडरूम, ड्राइंगरूम और टैलीविजन की दुनिया, कुछ अलग सा महसूस होता है यहां बैठ कर,’’ आनंद ने कहा, ‘‘सुबह का तो खैर कोई मुकाबला ही नहीं है. यहां की ताजी हवा में कुछ देर बैठ जाओ तो दिनभर स्फूर्ति और चुस्ती बनी रहती है.’’  ‘‘तभी आप ने बहुत ऊंचे दामों में कपिल से यह फ्लैट बदला है,’’ राहुल बोला.  आनंद ने उसे गहरी नजरों से देखा और बोले, ‘‘कह सकते हो वैसे बालकनी के सुख देखते हुए यह कीमत कोई ज्यादा नहीं है. चाहो तो आजमा कर देख लो. सुबह अखबार तो पढ़ते ही होगे?’’

‘‘जी हां, चाय भी पीता हूं.’’

‘‘तो कल यह सब बालकनी में बैठ कर करो, सारा दिन ताजगी महसूस करोगे.’’

अगले दिन जया और राहुल सवेरे ही आनंद अंकल की बालकनी में आ कर बैठ गए. आनंद की बात ठीक थी, राहुल और जया अन्य दिनों की अपेक्षा दिन भर खुश रहे इसलिए रोज सुबह बालकनी में बैठने और आनंद के साथ खबरों पर टिप्पणियां करने का सिलसिला शुरू हो गया.  एक रविवार की सुबह आनंद ने जया  को आराम से अखबार पढ़ते देख कर पूछा, ‘‘आज संडे स्पैशल बे्रकफास्ट बनाने का मूड नहीं है क्या?’’

जया ने इनकार में सिर हिलाया, ‘‘संडे को हम ब्रेकफास्ट करते ही नहीं अंकल, चलतेफिरते फल, नट्स आदि खाते रहते हैं.’’

‘‘मैं तो भई संडे को हैवी ब्रेकफास्ट करता हूं, भरवां परांठे या पूरीभाजी का और फिर उसे पचाने के लिए जी भर कर गोल्फ खेलता हूं. तुम्हें गोल्फ का शौक नहीं है, राहुल?’’  राहुल ने उन की ओर हसरत से देखा और कहा, ‘‘है तो अंकल, लेकिन कभी खेलने का या यह कहिए देखने का मौका भी नहीं मिला.’’

‘‘समझो मौका मिल गया. चलो मेरे साथ.’’ और आनंद ने मुरली को आवाज दे कर राहुल और जया के लिए भी नाश्ता बनाने को कहा. नाश्ता कर आनंद और राहुल गोल्फ क्लब पहुंचे.  राहुल और आनंद के जाने के बाद मुरली गाड़ी में जया को ब्यूटी पार्लर ले गया. आज उस ने रिलैक्स हो कर पार्लर में आने का मजा लिया.  राहुल की तो बरसों पुरानी गोल्फ क्लब जाने की तमन्ना पूरी हो गई. खेलने के बाद अंकल के दोस्तों के साथ बैठ कर बीयर पीना और लंच लेना, फिर घर आ कर कुछ देर इतमीनान से सोना.  यह प्रत्येक रविवार का सिलसिला बन गया. जया भी इस सब से बहुत खुश थी, मुरली बगैर कहे सफाई के अलावा भी कई और काम कर देता था. मुरली के साथ जा कर वह अपने उन रिश्तेदारों या परिचितों से भी मिल लेती थी जिन से मिलने में राहुल को दिलचस्पी नहीं थी. शाम वह और राहुल इकट्ठे गुजारते थे. संक्षेप में आनंद अंकल के पड़ोस में आने से उन की जिंदगी में बहार आ गई थी. जया अकसर उन की पसंद का गाजर का हलवा या नाश्ता बना कर उन्हें भिजवाती रहती थी, कभी पिक्चर या सांस्कृतिक कार्यक्रम में जाने के लिए बगैर पूछे अंकल का टिकट भी ले आती थी.

कुछ अरसे तक तो सब ठीक चला फिर राहुल को लगने लगा कि जया का झुकाव अंकल की तरफ बढ़ता ही जा रहा है. औफिस से जल्दी लौटने पर वह अंकल को जबरदस्ती घर पर बुला लेती थी, कभी उन्हें अपनी शादी का वीडियो दिखाती थी, कभी साहिल की शादी का या राहुल के बचपन की तसवीरें.  अंकल भी उसे खुश करने के लिए दिलचस्पी से सब देखते रहते थे. तभी राहुल को प्रमोशन मिल गया. जाहिर है, जया ने सब से पहले यह खबर आनंद अंकल को सुनाई और उन्होंने उसी रात इस खुशी में क्लब में पार्टी दी जिस में कपिल, पूजा और अपार्टमैंट में रहने वाले कुछ और लोगों को भी बुलाया. जब राहुल के औफिस वालों ने दावत मांगी तो राहुल ने किसी रेस्तरां में दावत देने की सोची लेकिन खर्च बहुत आ रहा था. जया ने कहा कि दावत घर पर ही करेंगे. मुरली भी साथ रहेगा.  ‘‘लेकिन अंकल शाम को गाड़ी नहीं चलाते. अगर मुरली यहां रहेगा तो वे क्लब कैसे जाएंगे, शनिवार की शाम उन्हें घर में गुजारनी पड़ेगी,’’ राहुल ने कहा.

‘‘कमाल करते हो, राहुल. हमारी पार्टी छोड़ कर अंकल क्लब जाएंगे या अपने घर में शाम गुजारेंगे, यह तुम ने सोच भी कैसे लिया?’’

‘‘यानी अंकल पार्टी में आएंगे?’’ राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम ने यह भी सोचा है जया कि यह जवान लोगों की पार्टी है. उस में अंकल को बुलाने से हमारा मजा किरकिरा हो जाएगा.’’

जया चौंक गई. उस ने आहत स्वर में पूछा, ‘‘हर रविवार को अंकल के साथ गोल्फ क्लब जाने या कभी शाम को जिमखाना क्लब जाने में तुम्हारा मजा किरकिरा नहीं होता?’’  खैर, पार्टी बढि़या रही, अंकल ने पार्टी के मजे में खलल डालने के बजाय जान ही डाली और औफिस के लोग राहुल के उच्चकुलीन वर्ग के लोगों से संपर्क देख कर प्रभावित भी हुए. लेकिन राहुल को जया का अंकल से इतना लगाव चिढ़ की हद तक कचोटने लगा था.

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होली स्पेशल: बनारसी साड़ी

मनोहर कहानियां: 1 मोक्ष, 5 मौतें

  भारत भूषण श्रीवास्तव

बात 20 दिसंबर, 2021 की सुबह के समय की है. हरियाणा के हिसार जिले की बरवाला-अग्रोहा रोड पर गांव वालों ने एक अधेड़ व्यक्ति की लाश पड़ी देखी. पहली नजर में लग रहा था कि किसी गाड़ी ने कुचला है. यानी यह सड़क हादसे का मामला लग रहा था. कुछ ही देर में वहां आनेजाने वालों की भीड़ जमा हो गई.

आसपास के गांवों के लोग भी वहां जमा हो गए. भीड़ में से किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. वहां मौजूद लोगों में कुछ लोगों ने मृतक को पहचान लिया. वह पास के ही नंगथला गांव का रहने वाला 45 वर्षीय रमेश था.

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रमेश का समाज में मानसम्मान था. इसलिए आसपास के गांवों के लोग उसे अच्छी तरह जानते थे. तभी तो उस की इतनी जल्द शिनाख्त हो गई. सूचना पा कर पुलिस कुछ ही देर में वहां पहुंच गई और घटनास्थल की जांच करने लगी.

इधर कुछ लोग यह खबर देने के लिए रमेश के घर की तरफ दौड़े, लेकिन जब वह घर पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर और सन्न रह गए. क्योंकि घर पर 4 और लाशें पड़ी थीं. इस के बाद गांव में ही नहीं, बल्कि क्षेत्र में सनसनी फैल गई. क्योंकि एक ही परिवार के 5 सदस्यों की मौत बहुत बड़ी घटना थी.

रोड पर रमेश के एक्सीडेंट के मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों को जब पता चला कि रमेश के घर में 4 सदस्यों की लहूलुहान लाशें पड़ी हैं तो वे भी सन्न रह गए. उन्हें मामला जरूरत से ज्यादा संगीन लगा, लिहाजा इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद वहां से कुछ पुलिसकर्मी रमेश के घर की तरफ चल दिए. उन के पीछेपीछे भीड़ भी चल दी.

पुलिस जब रमेश के घर पहुंची तो घर के अंदर का दृश्य दख कर हक्कीबक्की रह गई. जितने मुंह थे, उतनी बातें भी हुईं लेकिन कोई किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका. एक हैरानी जरूर सभी को थी कि यह क्या हो गया. रमेश तो बहुत सीधासादा और धार्मिक प्रवृत्ति वाला था, जिस की किसी से दुश्मनी होने का सवाल ही नहीं उठता था और हर तरह के नशापत्ती से वह दूर रहता था.

बैडरूम में 2 पलंगों पर 4 लाशें पड़ी थीं, जिन्हें देखने पर साफ लग रहा था कि उन की बेरहमी से हत्या की गई है. साथ ही समझ यह भी आ रहा था कि मृतकों ने कोई विरोध नहीं किया था.

हाथापाई के निशान वहां कहीं नजर नहीं आ रहे थे. ये लाशें रमेश की 38 वर्षीय पत्नी सुनीता, 14 साल की बेटी अनुष्का, 12 साल की दीपिका और 11 साल के इकलौते बेटे केशव की थीं. जिस ने भी यह नजारा देखा, वह सिहर उठा क्योंकि एक अच्छाखासा घर उजड़ चुका था.

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मामला सनसनीखेज तो निकला पर वैसा नहीं जैसा कि आमतौर पर ऐसी वारदातों में होता है. पुलिस टीम को ज्यादा मशक्कत नहीं करना पड़ी, क्योंकि रमेश इस केस की खुद ही गुत्थी सुलझा कर गया था.

कागजों पर उतरी काली कथा

पुलिस जांच शुरू करती, इस के पहले ही उस के हाथ एक नोटबुक लग गई जोकि रमेश का सुसाइड नोट था. यह नोटबुक केशव के स्कूल की थी, जो रखी इस तरह गई थी कि आसानी से पुलिस को नजर आ जाए.

नोटबुक क्या थी रमेश की परेशानियों, मूर्खताओं और वहशीपन का पुलिंदा थी जिसे टुकड़ोंटुकड़ों में लिखा गया था. इस के बाद भी इस के 11 पेज भर गए थे.

अब हर कोई यह जानना चाह रहा था कि अगर अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या रमेश ने ही की है तो इस की वजह क्या है.

अधिकृत रूप से यह वजह दोपहर को लोगों को पता चली, जब डीआईजी (हिसार) बलवान सिंह राणा ने इस बारे में जानकारी दी. इस के पहले वह डीएसपी नारायण सिंह और अग्रोहा थानाप्रभारी के साथ घटनास्थलों पर पहुंचे थे.

शुरुआती जांच के बाद पांचों शव अग्रोहा मैडिकल कालेज पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए गए थे. अब तक इस वारदात की खबर जंगल की आग की तरह देश भर में फैल चुकी थी. रमेश ने अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या करने की जो वजह बताई, उसे जान कर हर कोई हैरान था कि एक पढ़ालिखा और सभ्य आदमी भला यह कैसे कर सकता है. पता चला कि उन्होंने यह सब मोक्ष पाने के लिए किया.

हरियाणा के हिसार जिले की अग्रोहा तहसील का छोटा सा गांव है नंगथला. कहने को और सरकारी कागजों में ही यह अब गांव रह गया है नहीं तो अग्रोहा से महज 4 किलोमीटर दूर होने से यह उसी का ही हिस्सा बन गया है. 700 साल पुराने इस गांव में दाखिल होते ही लोगों की नजरें एक घर पर जरूर ठहर जाती हैं जिस की दीवारों पर पक्षियों के लिए कोई एकदो नहीं बल्कि 50 इको फ्रैंडली घोंसले बने हुए हैं.

घर पर बना रखे थे पक्षियों के घोंसले

पक्षी संरक्षण के इस अनूठे तरीके से देश भर के लोग प्रभावित थे और आए दिन इस बाबत रमेश वर्मा को फोन किया करते थे.

45 वर्षीय रमेश वर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. पक्षियों के लिए बसाया उस का छोटा सा संसार भी अब उजड़ रहा है, जहां कुछ दिन पहले तक 100 से भी ज्यादा चिडि़या चहचहाया करती थीं. रमेश बच्चों की तरह उन का ध्यान रखता था और उन्हें वक्त पर दानापानी दिया करता था. इस मिशन में उस का परिवार भी उस का साथ देता था.

इन घोंसलों को देख कर कुछ लोग उसे सनकी भी कहते थे लेकिन रमेश किसी और धुन या सनक में ही पिछले कुछ दिनों से जी रहा था, जिस के बीज तो किशोरावस्था में ही उस के दिलोदिमाग में पड़ चुके थे.

उन में से एक बीज कैक्टस से भी ज्यादा कंटीला और विषैला पेड़ कब बन गया, यह न तो वह समझ पाया और न ही कोई उसे ढंग से समझा पाया. दिसंबर की हड्डी गला देने वाली ठंडी रातों में जब सारी दुनिया कंबलों, रजाइयों में दुबकी सो रही होती थी, तब रमेश एक कशमकश में डूबा कुछ सोच रहा होता था.

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एक निरर्थक सी बात पर कोई जितना खुद से लड़ सकता है रमेश उस से ज्यादा खुद से लड़ चुका था. आखिरकार 20 दिसंबर को उस की हिम्मत जबाब दे गई. ऐसा नहीं कि उस के पास किसी चीज की कमी थी, बल्कि वह तो दुनिया के उन खुशकिस्मत लोगों में से एक था, जिन के पास सब कुछ था.

परिवार में एक सीधीसादी आज्ञाकारी पत्नी, 2 हंसमुख सुंदर बेटियां और उन के बाद हुआ मासूम सा दिखने वाला बेटा, जिस का नाम उस ने कृष्ण के नाम पर प्यार से केशव रखा था.

नंगथला में प्रिंटिंग प्रैस चलाने वाले रमेश की कमाई इतनी थी कि घर खर्च आराम से चलने के बाद पैसा बच भी जाता था, जिस का बड़ा हिस्सा वह कारोबार बढ़ाने में लगा भी रहा था.

शादी के कार्ड छाप कर खासी कमाई कर लेने वाले इस तजुर्बेकार कारोबारी ने फ्लेक्स प्रिंटिंग का भी काम शुरू कर दिया था. इस के पहले वह पेंटिंग भी किया करता था.

फिर किस चीज की कमी थी रमेश के पास, जो उसे मुंहअंधेरे आत्महत्या कर लेनी पड़ी? इस बात को समझने से पहले और भी बहुत सी बातें समझ लेनी जरूरी हैं, जो आए दिन हर किसी के दिमाग में उमड़तीघुमड़ती रहती हैं.

मैं कौन हूं कहां से आया हूं मरने के बाद कहां जाऊंगा, क्या मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी या मुझे भी 84 लाख योनियों में भटकना पड़ेगा और नर्क की सजा भुगतनी पड़ेगी, जैसे दरजनों सवाल रमेश को आज से नहीं बल्कि सालों से परेशान कर रहे थे.

इन्हीं सवालों से आजिज आ कर वह संन्यास लेना चाहता था, यानी घर से पलायन करना चाहता था. लेकिन घर वालों ने शादी कर उसे घरगृहस्थी के बंधन में बांध दिया.

धर्म के दुकानदारों के पैदा किए इन सवालों के कोई माने नहीं हैं इसलिए समझदार लोग इन्हें दिमाग से झटक कर अपने काम में लग जाते हैं और थोड़ी सी दक्षिणा पंडे, पुजारियों, पुरोहितों को दे कर अपना परलोक सुधरने की झूठी तसल्ली और मौखिक गारंटी ले कर अपनी जिम्मेदारियां निभाने में जुट जाते हैं और जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाते हैं.

लोगों को धर्म के धंधेबाजों के हाथों ठगा कर एक अजीब सा सुख मिलता है, जिस की कीमत रमेश जैसे लोगों को मर कर चुकानी पड़ती है, जो पाखंडों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह फंस कर दम तोड़ देते हैं.

क्या कोई धार्मिक व्यक्ति ऐसे जघन्य हत्या कांड को अंजाम दे सकता है? इस सवाल का जवाब हर कोई न में देना चाहेगा लेकिन हकीकत में यह धार्मिक सनक थी.

हैवान बनने की है अनोखी कहानी

रमेश ने हैवान बनने की कहानी भी खुद अपने हाथों से इस भूमिका के साथ लिखी कि यह दुनिया रहने लायक नहीं है. मैं इस दुनिया में नहीं रहना चाहता, लेकिन सोचता हूं कि मेरी मौत के बाद मेरे घर वालों का क्या होगा. मैं उन से बहुत प्यार करता हूं मैं कोई मानसिक रोगी नहीं हूं.

सुसाइड नोट में आगे रमेश ने लिखा, ‘मैं ने जिंदगी के आखिरी दिनों में बहुत मन लगाने की कोशिश की थी. मशीनें खरीदीं, दुकान भी खरीद ली थी. 2 लाख रुपए दे भी दिए थे और भी बहुत पैसा आ रहा था. चुनाव में कई लाख रुपए आए थे लेकिन शरीर और दिमाग हार मान चुके हैं. मन अब आजाद होना चाहता था कोई सुख, कोई बात अब रोक नहीं सकती. रोज रात को सब सोचता हूं. 3 दिन से पूरी रात जागा हूं आखों में नींद नहीं है. मन को बहुत लालच दिए, लेकिन बहुत देर हो चुकी है. अब रुकना मुश्किल था. कोई अफसोस कोई दुख नहीं.’

अपनी बात जारी रखते रमेश जैसे इस हादसे का आंखों देखा हाल बता देना चाहता था. इस के बाद उस ने लिखा, ‘सुबह के 4 बज चुके हैं घर से निकल चुका हूं. इतनी सर्दी में सब को परेशान कर के जा रहा हूं, माफ करना. सब से माफी.’ जाहिर है कि रमेश ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से अपने प्यार करने वालों के मर्डर का प्लान किया था.

खीर में मिला दी थीं नींद की गोलियां

19 दिसंबर को उस ने अपनी दुकान दोपहर 3 बजे ही बंद कर दी थी जबकि आमतौर वह रात 10 बजे दुकान बढ़ाता था, इस दिन बेटा केशव भी उस के साथ था. दूसरे दुकानदारों से वह कम ही बातचीत करता था, इसलिए किसी ने यह नहीं पूछा कि आज इतनी जल्दी घर क्यों जा रहे हो.

कोई भी उसे देख कर अंदाजा नहीं लगा सकता था कि इस आदमी के दिमाग में क्या खुराफात चल रही है. घर पहुंच कर उस ने अपने हाथों से खीर बनाई और पत्नी सहित तीनों बच्चों को बड़े प्यार से खिला दी. फिर वह उन के सोने का इंतजार करने लगा, क्योंकि खीर में उस ने नींद की गोलियां मिला दी थीं.

इन चारों के नींद की गोलियों के असर में आ जाने के बाद उस ने उन सभी के सो जाने का इंतजार किया. सो जाने की तसल्ली हो जाने के बाद कुछ धार्मिक अनुष्ठान किए और फिर कुदाल उठा कर एकएक कर सभी की हत्या कर दी, जो वे बेचारे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि माली ही अपनी बगिया उजाड़ रहा है.

जन्ममरण के चक्र से मुक्त होने की इच्छा लिए इस धार्मिक आदमी को यह एहसास तक नहीं हुआ कि वह 4 बेकुसूर लोगों को महज मोक्ष की अपनी सनक पूरी करने के लिए बलि चढ़ा रहा है.

अपनी दिमागी परेशानी की चर्चा उस ने सुनीता से की भी थी, इस पर सुनीता ने हथियार डालते हुए आदर्श पत्नियों की तरह यह वादा किया था कि साथ जिए हैं तो मरेंगे भी साथसाथ ही. पति के पागलपन को बेहतर तरीके से समझने लगी.

सुनीता कितनी हताशनिराश हो चुकी थी, यह समझना बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं. जब चारों ने दम तोड़ दिया तो इस पगलाए जुनूनी रमेश ने खुद को भी मारने की गरज से बिजली का नंगा तार अपनी जीभ पर रख लिया लेकिन इस से वह मरा नहीं, क्योंकि बिजली का करंट उस पर असर नहीं करता था, इस बात का जिक्र भी उस ने अपने सुसाइड नोट में किया था.

अब तक रमेश की सोचनेसमझने की ताकत पूरी तरह खत्म हो चुकी थी और जैसे भी हो वह मर जाना चाहता था, क्योंकि सूरज उगने में कुछ वक्त बाकी था फिर खुदकुशी करना आसान नहीं रह जाता और 4 हत्याओं के अपराध में वह हवालात में होता.

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अब उस ने घर से निकल कर सड़क पर आ कर किसी वाहन के नीचे आ कर मरने का फैसला कर लिया और जातेजाते यह बात भी सुसाइड नोट में लिख दी. इस के बाद क्या हुआ, इस के बारे में पुलिस का अंदाजा है कि वह झाडि़यों में छिप कर बैठ गया होगा और तेज रफ्तार से आती किसी गाड़ी के सामने आ गया, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

काफी कोशिशों के बाद भी उस गाड़ी का अतापता नहीं चला, जिस के पहियों ने रमेश की मोक्ष की सनक को पूरा किया.

बुराड़ी कांड का दोहराव

एक और दुखद कहानी का अंत हुआ, जिस की तुलना दिल्ली के 21 जुलाई, 2018 को हुए बुराड़ी कांड से की गई. क्योंकि उस में भी मोक्ष के चक्कर में एक ही घर के 11 सदस्यों ने थोक में आत्महत्या कर ली थी.

मोक्ष नाम के पाखंड का स्याह और वीभत्स सच सामने आने के बाद भी अधिकतर लोगों ने इस बात से इत्तफाक नहीं रखा कि मोक्ष बकवास है बल्कि कहा यह कि रमेश को अगर मोक्ष चाहिए था तो खुद मर जाता, बीवीबच्चों की हत्या न करता. और जिन लोगों ने यह माना कि रमेश को मोक्ष के लिए आत्महत्या नहीं करना चाहिए थी, वे भी मोक्ष की औचित्यता पर सवाल नहीं कर पा रहे.

सवाल यह है कि मोक्ष का इतना फरजी गुणगान क्यों किया जाता है कि लोग अच्छीखासी हंसतीखेलती जिंदगी छोड़ आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं और इस के लिए अपने घर वालों की हत्या तक करने लगे हैं. पंडेपुजारियों और मोक्ष का महिमामंडित कर दक्षिणा बटोरने वालों पर गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज क्यों नहीं किया जाता.

रमेश ने गलत किया, यह कहने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन धार्मिक अंधविश्वास और दहशत फैलाने वाले कौन सा सही काम करते हैं. यह कहने वाले जब तक इनेगिने हैं, तब तक इस प्रवृत्ति पर रोक लगने की उम्मीद करना एक बेकार की बात है. रमेश मानसिक कम धार्मिक रोगी ज्यादा था.

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सौजन्य:  मनोहर कहानियां 

उस दिन जून 2019 की 10 तारीख थी. रात के 10 बज रहे थे. कानपुर के थाना अनवरगंज के थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी क्षेत्र में गश्त पर थे. गश्त करते हुए जब वह डिप्टी पड़ाव चौराहा पहुंचे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं गुरुवतउल्ला पार्क के पास से पप्पू बोल रहा हूं. हमारे घर के सामने पूर्व सभासद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन किराए के मकान में रहती है. उस के घर के बाहर तो ताला बंद है, लेकिन घर के अंदर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आ रही हैं. लगता है, उस घर के अंदर किसी की जान खतरे में है. आप जल्दी आ जाइए.’’

डिप्टी पड़ाव से गुरुवतउल्ला पार्क की दूरी ज्यादा नहीं थी. अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी चंद मिनटों बाद ही बताई गई जगह पहुंच गए. वहां एक मकान के सामने भीड़ जुटी थी. भीड़ में से एक व्यक्ति निकल कर बाहर आया और बोला, ‘‘सर, मेरा नाम पप्पू है और मैं ने ही आप को फोन किया था. अब घर के अंदर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी बंद हो चुकी हैं.’’

रमाकांत पचौरी ने सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से उस मकान का ताला तोड़ा फिर घर के अंदर गए. कमरे में पहुंचते ही पचौरी सहम गए. क्योंकि कमरे के फर्श पर एक महिला की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह तो शहला परवीन है. इस की हत्या किस ने कर दी.

शव के पास ही खून सनी ईंट तथा एक मोबाइल फोन पड़ा था. लग रहा था कि उसी ईंट से सिर व मुंह पर प्रहार कर बड़ी बेरहमी से उस की हत्या की गई थी. शहला की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. पुलिस ने लाश के पास पड़ा फोन सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

घनी आबादी वाले मुसलिम इलाके में पूर्व पार्षद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार, एसपी (पूर्वी) राजकुमार, सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह तथा सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसएसपी अनंतदेव ने फारैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. बढ़ती भीड़ तथा उपद्रव की आशंका को देखते हुए एसएसपी ने रायपुरवा, चमनगंज तथा बेकनगंज थाने की फोर्स भी बुलवा ली. पूरे क्षेत्र को उन्होंने छावनी में तब्दील कर दिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. शहला परवीन की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर लगी चोटों के निशानों से स्पष्ट था कि हत्या से पहले शहला ने हत्यारों से अपने बचाव के लिए संघर्ष किया था.

कमरे के अंदर रखी अलमारी और बक्सा खुला पड़ा था, साथ ही सामान भी बिखरा हुआ था. देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्या के बाद हत्यारों ने लूटपाट भी की थी. शहला का शव जिस कमरे में पड़ा था, उस का एक दरवाजा पीछे की ओर गली में भी खुलता था.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे पीछे वाले दरवाजे से ही फरार हुए होंगे और इसी रास्ते से अंदर आए होंगे. पुलिस अधिकारियों के मुआयने के बाद फोरैंसिक टीम ने भी जांच की और साक्ष्य जुटाए. टीम ने अलमारी, बक्सा, ईंट आदि से फिंगरप्रिंट भी उठाए.

भाई ने बताए हत्यारों के नाम

अब तक सूचना पा कर मृतका का भाई तारिक शादाब भी वहां आ गया था. बहन की लाश देख कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे धैर्य बंधाया फिर पूछताछ की. तारिक शादाब ने बताया कि उस की बहन की हत्या उस के पति मोहम्मद शाकिर और बेटों शाकिब व अर्सलान उर्फ कल्लू ने की है. उस ने कहा कि हत्या में शाकिर का बहनोई गुड्डू भी शामिल है, जो कुख्यात अपराधी है.पुलिस अधिकारियों ने पड़ोसी पप्पू से पूछताछ की. उस ने भी बताया कि शहला के पति व बेटों को उस ने शहला के घर के आसपास देखा था. उस ने उन्हें टोका भी था. तब उन्होंने उसे धमकी दी थी कि टोकाटाकी करोगे तो परिणाम भुगतोगे.

उन की धमकी से वह डर गया था. पप्पू ने भी शहला के पति व बेटों पर शक जाहिर किया. कुछ अन्य लोगों ने बताया कि शहला का पति उस के चरित्र पर शक करता था. शायद अवैध संबंधों में ही उस के पति ने उसे हलाल कर दिया है.

अब तक हत्या को ले कर वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित होने लगी थी. अत: पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में शहला परवीन के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. बवाल व तोड़फोड़ की आशंका को देखते हुए घटनास्थल के आसपास पुलिस तैनात कर दी.

चूंकि मृतका शहला परवीन के भाई तारिक शादाब ने अपने बहनोई व भांजे पर हत्या का शक जाहिर किया था, अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी ने तारिक शादाब की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद शाकिर, उस के दोनों बेटे शाकिब, अर्सलान तथा शाकिर के बहनोई गुड्डू हलवाई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए एसएसपी अनंतदेव ने एसपी (क्राइम) राजेश कुमार की अगुवाई में एक पुलिस टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी रमाकांत, सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन, एसआई राम सिंह, देवप्रकाश, कांस्टेबल अतुल कुमार, दयाशंकर सिंह, राममूर्ति यादव, मोहम्मद असलम तथा अब्दुल रहमान को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतका के भाई तारिक शादाब से विस्तृत जानकारी हासिल कर उस का बयान दर्ज किया. पुलिस ने मृतका के पड़ोसी पप्पू से भी कुछ अहम जानकारियां हासिल कीं. इस के बाद पुलिस टीम मृतका शहला परवीन की मां नफीसा बाजी (पूर्व पार्षद) के घर दलेलपुरवा पहुंची. नफीसा बाजी बीमार थीं. बेटी की हत्या की खबर सुन कर उन की तबीयत और बिगड़ गई. पुलिस ने जैसेतैसे कर के उन का बयान दर्ज किया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस ने आरोपियों की तलाश के लिए उन के घर दबिश दी तो वह सब घर से फरार मिले. पुलिस टीम ने उन्हें तलाशने के लिए उन के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दी. लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आए. तब इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी ने अपने कुछ खास मुखबिरों को आरोपियों की टोह में लगा दिया और खुद भी उन्हें तलाशने में लगे रहे.

12 जून, 2019 की दोपहर को मुखबिर ने थानाप्रभारी को आरोपियों के बारे में खास सूचना दी. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ तुरंत हमराज कौंप्लैक्स पहुंच गए.

जैसे ही उन की जीप रुकी तो वहां से 3 लोग चाचा नेहरू अस्पताल की ओर भागे, लेकिन पुलिस टीम ने उन को कुछ ही दूरी पर धर दबोचा. उन से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम मोहम्मद शाकिर, शाकिब तथा अर्सलान उर्फ कल्लू बताए. इन में शाकिब तथा अर्सलान शाकिर के बेटे थे. पुलिस उन तीनों को थाने ले आई.  उन की गिरफ्तारी की खबर सुन कर एसपी (क्राइम) राजेश कुमार और सीओ सैफुद्दीन भी थाने पहुंच गए.

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थाने में एसपी (क्राइम) राजेश कुमार तथा सीओ सैफुद्दीन ने उन तीनों से शहला परवीन की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वे टूट गए और उन्होंने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मोहम्मद शाकिर ने बताया कि उस की पत्नी शहला परवीन चरित्रहीन थी. उस की बदलचलनी की वजह से समाज में उस की इज्जत खाक में मिल गई थी. हम ने उसे बहुत समझाया, नहीं मानी तो अंत में उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हम तो उस के आशिक रेहान को भी मार डालते, लेकिन वह बच कर भाग गया.

चूंकि मोहम्मद शाकिर तथा उस के बेटों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने उन तीनों को हत्या के जुर्म में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच तथा अभियुक्तों के बयानों के आधार पर एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने बदचलन हो कर न सिर्फ अपने शौहर से बेवफाई की बल्कि बेटों को भी समाज में शर्मसार किया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के अनवरगंज थानांतर्गत एक मोहल्ला है दलेलपुरवा. इसी मोहल्ले में हरी मसजिद के पास मोहम्मद याकूब अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी नफीसा बाजी के अलावा 2 बेटे तारिक शादाब, असलम और एक बेटी शहला परवीन थी.  मोहम्मद याकूब का कपड़े का व्यापार था. व्यापार से होने वाली आमदनी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. व्यापार में उन के दोनों बेटे भी उन का सहयोग करते थे.

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मोहम्मद याकूब जहां व्यापारी थे, वहीं उन की पत्नी नफीसा बाजी की राजनीति में दिलचस्पी थी. वह समाजवादी पार्टी की सक्रिय सदस्य थीं. दलेलपुरवा क्षेत्र से उन्होंने 2 बार पार्षद का चुनाव लड़ा, पर हार गई थीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह पार्टी के साथसाथ समाजसेवा में जुटी रहीं. तीसरी बार जब उन्हें पार्टी से टिकट मिला तो वह पार्षद का चुनाव लड़ीं. इस बार वह जीत कर दलेलपुरवा क्षेत्र की पार्षद बन गईं. नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन भी उन्हीं की तरह तेजतर्रार थी. वैसे तो शहला बचपन से ही खूबसूरत थी, लेकिन जब वह जवान हुई तो वह पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. जब वह बनसंवर कर घर से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते. शहला पढ़ने में भी तेज थी. उस ने फातिमा स्कूल से हाईस्कूल तथा जुबली गर्ल्स इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी.

शहला शादी लायक हो चुकी थी, मोहम्मद याकूब उस का निकाह कर उसे मानमर्यादा के साथ ससुराल भेजना चाहते थे. एक दिन मोहम्मद याकूब ने अपने पड़ोसी जावेद खां से बेटी के रिश्ते के बारे में बात की तो वह उत्साह में भर कर बोला, ‘‘याकूब भाई, मेरी जानपहचान में एक अच्छा लड़का है मोहम्मद शाकिर. वह चमनगंज में रहता है और कपड़े का व्यवसाय करता है. जिस दिन फुरसत में हो, मेरे साथ चमनगंज चल कर उसे देख लेना. सब कुछ ठीक लगे तो बात आगे बढ़ाएंगे.’’

शाकिर से हो गया निकाह

एक सप्ताह बाद मोहम्मद याकूब जावेद के साथ चमनगंज गए. मोहम्मद शाकिर साधारण शक्ल वाला हंसमुख युवक था. उस में आकर्षण जैसी कोई बात नहीं थी. परंतु वह कमाऊ था, उस का परिवार भी संपन्न था. इस के विपरीत शहला परवीन चंचल व खूबसूरत थी.कहीं बेटी गलत रास्ते पर न चल पड़े, सोचते हुए मोहम्मद याकूब ने शाकिर को अपनी बेटी शहला परवीन के लिए पसंद कर लिया. इस बारे में उन्होंने बेटी की राय लेनी भी जरूरी नहीं समझी. इस के बाद आगे की बातचीत शुरू हो गई. बातचीत के बाद दोनों पक्षों की सहमति से रिश्ता पक्का हो गया. तय तारीख को मोहम्मद शाकिर की बारात आई, निकाह हुआ और शहला परवीन शाकिर के साथ विदा कर दी गई. यह सन 1998 की बात है.

सुहागरात को शहला परवीन ने अपने शौहर शाकिर को देखा तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. पति मोहमद शाकिर किसी भी तरह से उसे पसंद नहीं था. उस रात वह दिखावे के तौर पर खुश थी, पर मन ही मन कुढ़ रही थी.

सप्ताह भर बाद शहला का भाई तारिक उसे लेने आ पहुंचा. तभी मौका देख कर शाकिर ने शहला से कहा, ‘‘दुलहन का मायके जाना रिवाज है. रिवाज के मुताबिक तुम्हें मायके भेजना ही पड़ेगा. खैर तुम जाओ. तुम्हारे बिना किसी तरह हफ्ता 10 दिन रह लूंगा.’’

शहला परवीन ने शौहर को घूर कर देखा और कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अपनी यह मनहूस सूरत ले कर मेरे मायके मत आना. नहीं तो तुम्हें देख कर मेरी सहेलियां हंसेंगी. कहेंगी देखो शहला जैसी हूर का लंगूर शौहर आया है.’’

यह सुन कर शाकिर को लगा, जैसे किसी ने उस के कानों में गरम शीशा उड़ेल दिया हो. वह पत्नी को देखता रहा और वह भाई के साथ मायके चली गई. 8-10 दिन बाद जब शहला को विदा कर लाने की तैयारी शुरू हुई तो शाकिर ने घर वालों के साथ ससुराल जाने से इनकार कर दिया. तब घर वाले ही शहला को विदा करा लाए.

शाकिर को विश्वास था कि ससुराल आ कर शहला शिकायत करेगी कि सब आए पर तुम नहीं आए. लेकिन ऐसा कुछ कहने के बजाए शहला ने उलटा शौहर की छाती में शब्दों का भाला घोंप दिया, ‘‘अच्छा हुआ तुम नहीं आए, वरना तमाशा बन जाते और शर्मिंदा मुझे होना पड़ता.’’

छाती में शब्दों के शूल चुभने के बावजूद शाकिर चुप रहा. उस का विचार था कि वह अपने प्रेम से शहला का दिल जीत लेगा और खुदबखुद सब ठीक हो जाएगा. शहला को उस की जो शक्ल बुरी लगती है, वह अच्छी लगने लगेगी.

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शाकिर ने की दिल जीतने की कोशिश

शाकिर पत्नी को प्यार से जीतने की कोशिश करता रहा और शहला उसे दुत्कारती रही. इस तरह प्यार और नफरत के बीच उन की गृहस्थी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही.समय बीतता गया और शहला 2 बेटों शाकिब व अर्सलान की मां बन गई. शाकिर को विश्वास था कि बच्चों के जन्म के बाद शहला के व्यवहार में कुछ बदलाव जरूर आएगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस का बर्ताव पहले जैसा ही रहा.

वह बच्चों की परवरिश पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और अपनी ही दुनिया में खोई रहती थी. उसे घर में कैद रहना पसंद न था, इसलिए वह अकसर या तो मायके या फिर बाजार घूमने निकल जाती थी. शाकिर रोकटोक करता तो वह उस से उलझ जाती और अपने भाग्य को कोसती.शहला परवीन की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इसलिए दोनों के बीच दूरियां बनी रहती थीं. शहला का मन पुरुष सुख प्राप्त करने के लिए भटकता रहता था, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. उन्हीं दिनों शहला के जीवन में मुबीन ने प्रवेश किया. मुबीन अपराधी प्रवृत्ति का था. अनवरगंज क्षेत्र में उस की तूती बोलती थी. व्यापारी वर्ग तो उस के साए से भी डरता था.

वह व्यापारियों से हफ्ता वसूली करता था. शाकिर का कपड़े का व्यवसाय था. मुबीन शाकिर से भी रुपए वसूलता था. शहला परवीन मुबीन को अच्छी तरह जानती थी लेकिन शौहर के रहते वह उस के सामने नहीं आती थी.

एक रोज शहला घर में अकेली थी, तभी मुबीन उस के घर में बेधड़क दाखिल हुआ और दबे पांव जा कर शहला के पीछे खड़ा हो गया. शहला किसी काम में ऐसी व्यस्त थी कि उसे भनक तक नहीं लगी कि कोई उस के पीछे आ खड़ा हुआ है. शहला तब चौंकी जब मुबीन ने कहा, ‘‘शहला भाभी नमस्ते.’’

शहला फौरन पलटी. मुबीन को देख कर उस का चेहरा फूल की तरह खिल गया. वह अपने चेहरे पर मुसकान बिखरते हुए बोली, ‘‘नमस्ते मुबीन भाई, तुम कब आए, मुझे पता ही नहीं चला. बताओ, कैसे आना हुआ? तुम्हारे भैया तो घर पर हैं नहीं.’’

‘‘भैया नहीं हैं तो क्या हुआ. क्या भाभी से मिलने नहीं आ सकता?’’ मुबीन भी हंसते हुए बोला.

‘‘क्यों नहीं?’’ कहते हुए शहला उस के पास बैठ कर बतियाने लगी. बातों ही बातों में मुबीन बोला, ‘‘भाभी, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘एक नहीं चार कहो, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी.’’ शहला ने कहा.

‘‘भाभी, कसम से तुम इतनी खूबसूरत हो कि कितना भी देखूं, जी नहीं भरता.’’ वह॒बोला.

‘‘धत…’’ कहते हुए शहला के गालों पर लाली उतर आई.

कुछ देर बतियाने के बाद मुबीन वहां से चला गया.

इस के बाद मुबीन का शहला के घर आनेजाने लगा. दोनों एकदूसरे की बातों में रमने लगे. शहला और मुबीन हमउम्र थे, जबकि शहला का पति शाकिर उम्र में उस से 6-7 साल बड़ा था. मुबीन शरीर से हृष्टपुष्ट तथा स्मार्ट था. क्षेत्र में उस की हनक भी थी, सो शहला उस से प्यार करने लगी. वह सोचने लगी कि काश उसे मुबीन जैसा छबीला पति मिलता.

मुबीन भी शहला को चाहने लगा था. आतेजाते मुबीन ने शहला से हंसीमजाक के माध्यम से अपना मन खोलना शुरू किया तो शहला भी खुलने लगी. आखिर एक दिन दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए. इस के बाद जब भी मौका मिलता, दोनों शारीरिक भूख मिटा लेते. शहला को अब पति की कमी नहीं खलती थी.

शहला और मुबीन के नाजायज रिश्ते ने रफ्तार पकड़ी तो पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. एक आदमी ने शाकिर को टोका, ‘‘शाकिर भाई, तुम दिनरात कमाई में लगे रहते हो. घर की तरफ भी ध्यान दिया करो.’’

‘‘क्यों, मेरे घर को क्या हुआ? साफसाफ बताओ न.’’ शाकिर ने पूछा.

‘‘साफसाफ सुनना चाहते हो तो सुनो. तुम्हारे घर पर बदमाश मुबीन का आनाजाना है. तुम्हारी लुगाई से उस का चक्कर चल रहा है.’’ उस ने सब बता दिया.

उस की बात सुन कर शाकिर का माथा ठनका. जरूर कोई चक्कर है. अफवाहें यूं ही नहीं उड़तीं. उन में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर होती है.

शाम को शाकिर जब घर लौटा तो उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘शहला, मैं ने सुना है मुबीन तुम से मिलने घर आता है. वह भी मेरी गैरमौजूदगी में.’’

शहला न डरी न घबराई बल्कि बेधड़क बोली, ‘‘मुबीन आता है पर मुझ से नहीं तुम से मिलने आता है. तुम नहीं मिलते तो चला जाता है.’’

‘‘तुम उसे मना कर दो कि वह घर न आया करे. उस के आने से मोहल्ले में हमारी बदनामी होती है.’’

‘‘मुझ से क्यों कहते हो, तुम खुद ही उसे क्यों नहीं मना कर देते.’’

‘‘ठीक है, मना कर दूंगा.’’

इस के बाद शाकिर मुबीन से मिला और उस ने उस से कह दिया कि वह उस की गैरमौजूदगी में उस के घर न जाया करे.

शाकिर की बात सुनते ही मुबीन उखड़ गया. उस ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. शाकिर डर गया और अपनी जुबान बंद कर ली. मुबीन बिना रोकटोक उस के घर आता रहा और शहला के साथ मौजमस्ती करता रहा.

मुबीन ने जब शाकिर का सुखचैन छीन लिया तब उस ने अपने रिश्तेदारों को घर बुलाया और इस समस्या से निजात पाने के लिए विचारविमर्श किया. आखिर में तय हुआ कि इज्जत तभी बच सकती है, जब मुबीन को ठिकाने लगा दिया जाए.

इस के बाद शाकिर के भाई, शहला के भाई और मामा ने मिल कर दिनदहाड़े खलवा में मुबीन की हत्या कर दी. हत्या के आरोप में सभी को जेल जाना पड़ा. यह बात सन 2012 की है.

इस घटना के बाद करीब 4 साल तक घर में शांति रही. शहला का शौहर के प्रति व्यवहार भी सामान्य रहा. अब तक शहला के दोनों बेटे शाकिब और अर्सलान भी जवान हो गए थे. बापबेटे रोजाना सुबह 10 बजे घर से निकलते तो फिर देर शाम ही घर लौटते थे. कपड़ों की बिक्री का हिसाबकिताब लगा कर, खाना खा कर वे सो जाते थे.

शहला परवीन न शौहर के प्रति वफादार थी और न ही उसे बेटों से कोई लगाव था. वह तो खुद में ही मस्त रहती थी. बनसंवर कर रहना और घूमनाफिरना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस का बनावशृंगार देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

शहला को घर में सभी सुखसुविधाएं हासिल थीं पर शौहर की बांहों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता था. शाकिर अपने धंधे में लगा रहता था. काम की वजह से बीवी से भी दूरियां बनी रहती थीं. दूसरी ओर शहला उसे पसंद भी नहीं करती थी. वह तो किसी नए प्रेमी की तलाश में थी. हालांकि इस खेल में उसे शौहर तथा जवान बच्चों का डर लग रहा था.

उसी दौरान उस की नजर रेहान पर पड़ी. रेहान गम्मू खां के अहाते में रहता था और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह उस का दूर का रिश्तेदार भी था. उस का जबतब शहला के यहां आनाजाना लगा रहा था. वह हैंडसम था.

शहला परवीन का दिल रेहान पर आया तो वह उसे खुला आमंत्रण देने लगी, आंखों के तीरों से उसे घायल करने लगी. खुला आमंत्रण पा कर रेहान भी उस की ओर आकर्षित होने लगा. जब भी उसे मौका मिलता, शहला के साथ हंसीमजाक और छेड़छाड़ कर लेता. शहला उस की हंसीमजाक का जरा भी बुरा नहीं मानती थी. दोनों के पास एकदूसरे का मोबाइल नंबर था. जल्दी ही दोनों की मोबाइल पर प्यारभरी बातें होने लगीं.

आदमी हो या औरत, मोहब्बत होते ही उस का मन कल्पना की ऊंची उड़ान भरने लगता है. रेहान और शहला का भी यही हाल था. दोनों मोहब्बत की ऊंची उड़ान भरने लगे थे. आखिर एक रोज रेहान ने चाहत का इजहार किया तो शहला ने इकरार करने में जरा भी देर नहीं लगाई. इतना ही नहीं, शहला ने उसी समय अपनी बांहों का हार रेहान के गले में डाल दिया.

इस के बाद दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता बनते देर नहीं लगी. एक बार अवैध रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता गया. शहला अब पति की कमी प्रेमी से पूरी करने लगी. उसे जब भी मौका दिखता, फोन कर रेहान को अपने यहां बुला लेती और दोनों रंगरलियां मनाते.

कभीकभी रेहान शहला को होटल में भी ले जाता था, जहां वे मौजमस्ती करते. शहला परवीन रेहान के साथ घूमनेफिरने भी जाने लगी. रेहान उसे कभी बाहर पार्क में ले जाता तो कभी तुलसी उपवन. वहां दोनों खूब बतियाते.

पर एक दिन शाकिर ने शहला और रेहान को अपने ही घर में आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. वे दोनों एकदूसरे की बांहों में इस कदर मस्त थे कि उन्हें खबर ही नहीं हुई कि दरवाजे पर खड़ा शाकिर उन की कामलीला देख रहा है.

घर में अनाचार होते देख शाकिर का खून खौल उठा. उस ने दोनों को ललकारा तो रेहान सिर पर पैर रख कर भाग गया लेकिन शहला कहां जाती. शाकिर ने सारा गुस्सा उसी पर उतारा. उस ने पीटपीट कर पत्नी को अधमरा कर दिया.

शाकिर ने शहला को रंगेहाथों पकड़ने की जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो बेटों ने भी मां को खूब लताड़ा. शौहर और बेटों ने शहला को जलील किया. इस के बावजूद उस ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा.

कुछ दिनों बाद ही वह घर से बाहर रेहान से मिलने लगी. चोरीछिपे मिलने की जानकारी शाकिर को हुई तो उस ने फिर से शहला की पिटाई की. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा.

जब भी शाकिर को दोनों के मिलने की जानकारी होती, उस दिन शहला की शामत आ जाती. लेकिन पिटाई के बावजूद जब शहला ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा तो आजिज आ कर शाकिर ने शहला को तलाक दे दिया. तलाक के मामले में बेटों ने बाप का ही साथ दिया. यह बात जनवरी, 2018 की है.

शौहर से तलाक मिलने के बाद शहला कुछ महीने मायके दलेलपुरवा में रही. उस के बाद उस ने अनवरगंज थाना क्षेत्र के डिप्टी पड़ाव में गुरुवतउल्ला पार्क के पास किराए पर मकान ले लिया और उसी में रहने लगी. इस मकान में उस का प्रेमी रेहान भी आने लगा. शहला को अब कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था, सो वह प्रेमी के साथ खुल कर मौज लेने लगी.

रेहान के पास पैसों की कमी नहीं थी, सो वह शहला पर दिल खोल कर खर्च करता था. पे्रमी के आनेजाने की जानकारी पड़ोसियों को न हो, इस के लिए वह मकान के आगे वाले गेट पर ताला लगाए रखती थी और पीछे के दरवाजे से आतीजाती थी. इसी पीछे वाले दरवाजे से उस का प्रेमी रेहान भी आता था.

शहला और रेहान के अवैध संबंधों की जानकारी शाकिर के घर वालों व नातेरिश्तेदारों को भी थी. इस से पूरी बिरादरी में उस की बदनामी हो रही थी. उस के दोनों बेटे शादी योग्य थे. पर मां शहला की चरित्रहीनता के कारण बेटों का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. आखिर आजिज आ कर शाकिर ने शहला और रेहान को सबक सिखाने की योजना बनाई. अपनी इस योजना में शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई तथा दोनों बेटों को भी शामिल कर लिया.

बन गई हत्या की योजना

10 जून, 2019 की रात 8 बजे शाकिर को एक रिश्तेदार के माध्यम से पता चला कि शहला के घर में रेहान मौजूद है और वह आज रात को वहीं रुकेगा.

यह खबर मिलने के बाद शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई को बुला लिया. फिर बहनोई व बेटों के साथ शाकिर शहला के घर जा पहुंचा. घर के बाहर गेट पर ताला लगा था. वे लोग पीछे के दरवाजे से घर के अंदर दाखिल हुए.

घर के अंदर कमरे में रेहान और शहला आपत्तिजनक अवस्था में थे. शाकिर ने उन दोनों को ललकारा और सब मिल कर रेहान को पीटने लगे.प्रेमी को पिटता देख शहला बीच में आ गई. वह प्रेमी को बचाने के लिए पति और बेटों से भिड़ गई. दोनों बेटे मां को पीटने लगे. इसी बीच मौका पा कर रेहान वहां से भाग निकला.

रेहान को भगाने में शहला ने मदद की थी, सो वे सब मिल कर शहला को लातघूंसो से पीटने लगे. इसी समय शाकिर की निगाह वहीं पड़ी ईंट पर चली गई. उस ने लपक कर ईंट उठा ली और उस से शहला के सिर व मुंह पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. जिस से शहला का सिर फट गया और खून बहने लगा.

कुछ देर तड़पने के बाद शहला ने दम तोड़ दिया. हत्या के बाद उन सब ने मिल कर अलमारी व बक्से के ताले खोले और उस में रखी नकदी तथा जेवर निकाल लिए तथा सामान बिखेर दिया. फिर पीछे के रास्ते से ही फरार हो गए.

इधर पड़ोसी पप्पू ने शहला के घर चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी तो उस ने थाना अनवरगंज पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी घटनास्थल पर आए और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

13 जून, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त मोहम्मद शाकिर, उस के बेटों शाकिब और अर्सलान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. एक अन्य अभियुक्त गुड्डू हलवाई फरार था. पुलिस उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी. द्य

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Women’s Day- मेरा अभिमान: क्या पति को भूल गई निवेदिता?

‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है निवेदिता दुलहन के वेश में. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और तीखातिकोना चेहरा,’’ समता मौसी दुलहन की बलाएं लेते हुए बोलीं.

‘‘काश, दूल्हे के बारे में भी यही कहा जा सकता…’’ घर आए मेहमानों में से किसी ने कहा.

‘‘यह बात तो है… कहां हमारी निवेदिता एमए तक पढ़ी है… इतनी खूबसूरत और आश्रय सिर्फ 12वीं जमात तक पढ़ा है. पिता की मौत के बाद उन की जगह ही नौकरी लग गई है. रंग भी कुछ दबा हुआ है,’’ निवेदिता की बूआ ने कहा.

निवेदिता के घर में भी पैसा नहीं था. अगर उस के मातापिता को शादी की जल्दी थी. निवेदिता और पढ़ना भी चाहती थी, पर उस की शादी तय कर दी गई.

‘‘हां, कमाताखाता लड़का देख कर शादी कर रहे हैं,’’ किसी ने बात को आगे बढ़ाया.

शादी के बाद रात को निवेदिता सुहाग सेज पर बैठी हुई थी और उम्मीद के मुताबिक बिना किसी तामझाम व दिखावे के आश्रय कमरे में आ गया और गंभीर अंदाज में बोला, ‘‘निवेदिता, आज हमारे मिलन की पहली रात है और ऐसा दस्तूर है कि इस दिन गिफ्ट जरूर दिया जाना चाहिए.

‘‘तुम्हें मेरी माली हालत पता ही है. पहले पिताजी की बीमारी के चलते लिया हुआ कर्ज उतारना पड़ा. इसी वजह से कुछ भी बचत नहीं हुई. फिर भी मैं तुम्हारे लिए यह घड़ी लाया हूं.

‘‘यह घड़ी सस्ती जरूर है, पर समय महंगी घडि़यों के बराबर ही बताती है. यह भी बताती है कि समय कीमती है, इसे बरबाद मत करो. और भी कुछ उपहार चाहिए हों तो मांग सकती हो, बशर्ते वह खरीदना मेरी हद में हो.’’

‘‘क्या मैं ऐसा कुछ चाहूं, जो आप की हद में हो तो आप देंगे?’’ निवेदिता ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘जरूर,’’ आश्रय ने जवाब दिया.

‘‘मैं राज्य लोक सेवा आयोग की प्रशासनिक परीक्षा में बैठना चाहती हूं. क्या आप मुझे इजाजत देंगे? मुझे ओबीसी कोटे में जल्दी ही नौकरी भी मिल सकती है,’’ निवेदिता ने पूछा.

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‘‘तुम्हारी पढ़ाई के लैवल के बारे में मैं अच्छी तरह से जानता हूं. निवेदिता, तुम इस एग्जाम में बैठ सकती हो. एक बार पतिपत्नी के संबंध बन जाने के बाद काबू करना मुश्किल होता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि जब तक तुम अपने इम्तिहान में कामयाब न हो जाओ, तब तक हम दोनों एक नहीं होंगे’’

‘‘क्या…? आप ने मुझ से शादी किसी मजबूरी में की है? क्या आप मुझे प्यार नहीं करते हैं?’’ निवेदिता ने घबरा कर पूछा, क्योंकि उसे इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तुम्हें काफी दिन से देख रहा हूं. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हारे कामयाब होने के बाद ही हम दोनों इस प्यार के सच्चे हकदार होंगे,’’ आश्रय ने निवेदिता की गोरीगोरी कलाइयों को पकड़ते हुए कहा.

‘‘और, अगर मेरा चयन नहीं हो पाया तो…?’’ निवेदिता ने सवाल किया.

‘‘जब भी जोकुछ होगा, सिर्फ तुम्हारी रजामंदी से होगा,’’ आश्रय बोला.

‘‘बाहर सब को क्या जवाब देंगे?’’ निवेदिता ने पूछा.

‘‘किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं है. बस, इतना कहना है कि हमें अगले 3 साल तक बच्चे की जरूरत नहीं है,’’ आश्रय ने जवाब दिया.

‘‘वाह… आश्रय, मैं कल से ही पढ़ाई शुरू कर देती हूं.’’

दूसरे दिन से निवेदिता ने पढ़ाई शुरू कर दी. आश्रय ने अपनी मम्मी को भी निवेदिता की इच्छा के बारे में बता दिया. घर में 3 लोगों का काम बहुत ज्यादा नहीं था. रसोईघर का ज्यादातर काम आश्रय की मम्मी कर देती थीं.

निवेदिता देर रात तक पढ़ती, तो आश्रय बीच में चाय या कौफी बना कर उसे दे देता. कभीकभार सिर दुखने पर अपने हाथों से तब तक हलकीहलकी मसाज करता, जब तक कि निवेदिता की आंख न लग जाती.

आखिरकार वह ऐतिहासिक पल भी आ ही गया, जब निवेदिता सभी लिखित इम्तिहानों और इंटरव्यू में कामयाब हो कर डिप्टी कलक्टर बन गई.

‘‘अब सिर्फ प्यार,’’ निवेदिता  आश्रय के गले में बांहों का फंदा डाल कर बोली.

‘‘मेहनत तो तुम्हारी ही है निवेदिता. मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ था. तुम मेरी पत्नी हो गुलाम नहीं. आज तो सिर्फ और सिर्फ प्यार होगा,’’ आश्रय मुसकराता हुआ बोला.

अभी वे दोनों बात कर ही रहे थे कि अचानक आश्रय के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

‘‘क्या…? कब…? अच्छाअच्छा… हम अभी पहुंचते हैं,’’ आश्रय घबराई आवाज में बोला.

‘‘क्या हुआ…?’’ निवेदिता ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस तुम्हारे पापा की थोड़ी सी तबीयत खराब हो गई है,’’ आश्रय ने बताया.

निवेदिता और आश्रय जब तक पहुंचते, तब तक निवेदिता के पापा की मौत हो चुकी थी. अपनी मां को हिम्मत देने के लिए निवेदिता को वहीं पर रुकना पड़ा.

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निवेदिता को अपनी ट्रेनिंग की सूचना मिली, जो कि उस के मायके से तकरीबन 300 किलोमीटर दूर थी.

जौइन करने के साथ ही पता चला कि निवेदिता को अनुकूल शर्मा के अंडर ट्रेनिंग लेनी है.

अनुकूल शर्मा कुछ समय पहले तक निवेदिता के गृह जिले में ही थे और उन की अच्छे अफसरों में गिनती होती है.

अनुकूल शर्मा आ गए और अपने चैंबर में घुस गए. इजाजत ले कर निवेदिता भी चैंबर में आ गई.

‘‘तुम्हारे साथ वह बाहर कौन था?’’ लेटर देखते हुए अनुकूल शर्मा ने पूछा.

‘‘मेरे पति हैं,’’ निवेदिता ने कहा.

‘‘अब अगले 3 महीनों तक घरबार, पति, बच्चे सब भूल जाओ… समझी?’’ अनुकूल शर्मा ने कहा.

‘‘जी,’’ निवेदिता ने जवाब दिया.

‘‘मैं जा रहा हूं निवेदिता. अगले  3 महीनों तक खूब मेहनत करो. आगे की जिंदगी बहुत अच्छी होगी,’’ जातेजाते आश्रय ने निवेदिता से कहा.

अनुकूल शर्मा के अंडर में निवेदिता की टे्रनिंग खूब अच्छी चल रही थी. निवेदिता को अब तक सरकारी गाड़ी नहीं मिली थी. इसी वजह से वह अनुकूल शर्मा के साथ उन्हीं की सरकारी गाड़ी से टूर पर जाती थी.

ऐसे ही एक दिन जब वे दोनों टूर से लौट रहे थे, तो अनुकूल शर्मा बोले, ‘‘मुझे लगता है निवेदिता, तुम्हारे साथ ज्यादती हुई है.’’

‘‘आप को ऐसा क्यों लगता है सर…’’ निवेदिता ने अचरज भाव से पूछा.

‘‘तुम इतनी खूबसूरत और होशियार हो और तुम्हारा पति 12वीं जमात पास क्लर्क,’’ अनुकूल शर्मा ने कहा.

‘‘जिंदगी में हमें जो मिलता है, उसे हम बदल नहीं सकते,’’ निवेदिता बोली.

‘‘हम चाहें तो कुछ भी बदल सकते हैं. तुम ने भी यह नौकरी पा कर अपनी जिंदगी बदल दी है.’’

‘‘पर, अब किया क्या जा सकता है. आज मैं जोकुछ भी हूं, आश्रय के चलते ही हूं,’’ निवेदिता बोली.

‘‘कल उसी आश्रय के चलते तुम्हें शर्मिंदगी होगी. किसी पार्टी में तुम उसे ले जा नहीं पाओगी. तुम्हारे पीछे लोग उसे मखमल में टाट का पैबंद बताएंगे. रही कुछ करने की बात तो उस ने तुम पर कितने रुपए खर्च किए होंगे? लाख 2 लाख. तुम उसे 5 लाख दे कर हिसाब चुकता कर दो.

‘‘मैं ने भी अपनी देहाती पत्नी से तलाक के लिए अर्जी दी हुई है, क्योंकि वह मेरे स्टेटस के मुताबिक नहीं है. तुम भी ऐसा कर सकती हो. कल पछताने से आज सही फैसला लेना बेहतर है…’’ अनुकूल शर्मा बोले, ‘‘मुझे तो लगता है कि आश्रय मर्द ही नहीं है, वरना 3 साल तक कौन पति ऐसा होगा, जो अपनी पत्नी से दूर रहेगा?’’

निवेदिता ने कोई जवाब नहीं दिया.

दरअसल, पिछले 2 महीने से कुछ ज्यादा समय से साथ रहने के चलते अनुकूल शर्मा को ऐसा लगने लगा था कि निवेदिता उन की तरफ खिंच रही है.

एक दिन अचानक निवेदिता के पास कलक्टर का फोन पहुंचा और उसे तुरंत मिलने के लिए बुलाया गया.

‘‘बधाई हो निवेदिता, अनुकूल शर्मा जैसे काबिल अफसर ने आप की बहुत अच्छी रिपोर्ट दी है,’’ कलक्टर खुश हो कर बोले.

‘शुक्रिया सर’ कह कर निवेदिता कलक्टर औफिस से बाहर आ गई.

‘‘बधाई हो निवेदिता, एक पार्टी तो बनती ही है. ऐसा करते हैं कि आज  तुम औफिस का चार्ज ले लो. शनिवार और रविवार की छुट्टी है. हम पास  के शहर चलेंगे. वहां पार्टी करेंगे. सबकुछ मेरी तरफ से होगा,’’ अनुकूल शर्मा बोले.

‘‘जी सर,’’ कह कर निवेदिता अपने नए औफिस में चार्ज लेने चली गई.

जब आश्रय को निवेदिता के चार्ज लेने की बात पता चली, तो वह बहुत खुश हुआ. उस ने फोन पर अपने मन की बात कही.

‘‘तुम्हें देखने की बहुत इच्छा हो रही है. शनिवार और रविवार को छुट्टी है. मैं वहां आ जाता हूं.’’

‘‘अरे, नहींनहीं. शनिवार और रविवार को तो मुझे कलक्टर साहब के साथ राजधानी जाना है,’’ निवेदिता ने झूठ बोलते हुए उसे रोक दिया.

शुक्रवार की शाम जब आश्रय दफ्तर से घर लौटा, तो रसोईघर में से हलवा बनने की मस्त महक आ रही थी.

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‘‘मां, आज हलवा क्यों बन रहा है? कोई त्योहार है क्या?’’ दरवाजे से अंदर आते हुए आश्रय ने पूछा.

‘‘त्योहार से भी बढ़ कर है…’’ मां रसोईघर में से ही बोलीं.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ आश्रय ने पूछा.

‘‘तो रसोईघर के भीतर आ कर देख ले,’’ मां बोलीं.

‘‘अरे, निवेदिता तुम…’’ रसोईघर में घुसते ही आश्रय खुशी से चिल्लाया.

निवेदिता ने अपनी स्थायी नियुक्ति तक की पूरी बात आश्रय को बता दी.

‘‘चलो निवेदिता, शाम का खाना हम कहीं बाहर खाते हैं,’’ आश्रय बोला.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. इन 3 दिनों का एक पल भी मुझे किसी के साथ शेयर नहीं करना है. मुझे सिर्फ तुम और तुम चाहिए,’’ निवेदिता किसी जिद्दी बच्ची सी बोली.

शनिवार की सुबह तकरीबन 10 बजे अनुकूल शर्मा का फोन आया, ‘निवेदिता, कहां हो तुम? हमें पार्टी केलिए जाना था.’

‘‘सर, मैं स्वर्ग में हूं और यहां से नहीं आ सकती.’’

‘स्वर्ग… वह कहां है?’ अनुकूल शर्मा ने हैरानी से पूछा.

‘‘सर, यह हर उस जगह है, जहां पतिपत्नी अपने परिवार के साथ रहते हैं. मैं भी अपने पति के साथ हूं. आप ने ट्रेनिंग के दौरान मुझे एक बात सिखाई थी कि सोने का गहना कितना ही बड़ा क्यों न हो, अगर उस में छोटा सा हीरा लग जाए तो उस की कीमत दोगुनी हो जाती है.

‘‘आश्रय भी मेरी जिंदगी का एक ऐसा ही हीरा है, जिस के लगने से  मेरी जिंदगी अनमोल हो गई है. मुझे कभी भी आश्रय के चलते कोई शर्मिंदगी नहीं होगी.

‘‘धन्यवाद और नमस्कार सर. मैं आप से 2 दिन बाद मिलती हूं,’’ इतना कह कर निवेदिता ने फोन काट दिया.

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