मौत पर मौज : रघू के दर्द पर किसकी बांछें खिली

रघु का बापू मर गया. गांव के सब लोग आ कर रघु को धीरज बंधा रहे थे.  गांव का सेठ दीनदयाल भी आया. वह रघु से 20 हजार रुपए मांगने लगा.

रघु के बाप ने एक बार रघु के इलाज के लिए पैसे लिए थे. ब्याज दर ब्याज बढ़ कर अब वे 20 हजार रुपए हो गए थे.

बैठते ही सेठ दीनदयाल ने कहा, ‘‘रघु, यह दिन सभी को देखना पड़ता?है… इस में रोने की क्या बात है. जग की रीत तो सभी को निभानी पड़ती है.’’

‘‘सेठजी, मगर बापू की उम्र ज्यादा नहीं थी. अगर वे थोड़े दिन और जीते, तो आप का कर्ज उतार जाते.’’

‘‘होनी को कौन टाल सकता है. जो होना था, हो गया. अब तो उन का क्रियाकर्म करना बाकी है और फिर मेरा कर्ज भी उतर जाएगा.’’

‘‘मगर सेठजी, क्रियाकर्म और आप के कर्ज के लिए रुपया आएगा कहां से?’’ रघु ने अपनी चिंता जताई.

‘‘इस में चिंता की क्या बात?है… तेरे पास जमीन है.’’

‘‘3 बीघा जमीन से क्या होता है…’’ रघु ने कहा, ‘‘आप तो जानते?हैं, घर में 6 लोग हैं… उन का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से होता है… उस पर यह क्रियाकर्म…’’

‘‘रघु, चिंता करने से कुछ नहीं होगा. तेरे बापू ने कभी चिंता नहीं की, जबकि उस ने तेरे लिए बहुत दुख देखे हैं…’’ सेठजी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या तू उन का अच्छी तरह क्रियाकर्म भी नहीं कर सकता? ऐसे में उन की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? आत्मा बेचारी इधरउधर भटकती रहेगी.

‘‘इस से तू भी परेशान रहेगा और तेरे बालबच्चों समेत पूरे गांव वाले भी परेशान होंगे…’’ सेठजी ने रघु की नीयत भांपते हुए कहा, ‘‘रुपए की परवाह मत करना, मु?ो से बन पड़ा तो मैं ही दे दूंगा.’’

रघु सेठजी की बात सम?ा गया. वह उस की जमीन हड़पना चाहता था, ताकि वह जमीन ले कर उसी से उस जमीन में खेती करवा कर अच्छाखासा मुनाफा कमाए.

इसलिए रघु ने पूछा, ‘‘मगर आप मु?ो रुपए किस शर्त पर देंगे? मेरे पास तो कुछ भी देने को नहीं है?’’

‘‘अरे, रघु कैसी बात करता है, तेरे पास सबकुछ है. फिर तेरा बाप तेरे लिए 3 बीघा जमीन छोड़ गया है, उसे गिरवी रख कर रुपए ले जाना. जब रुपए आ जाएं, तो जमीन छुड़ा लेना,’’ सेठजी ने कहा, तो रघु सम?ा गया कि वह दिन कभी नहीं आएगा, जिस दिन वह अपनी जमीन सेठ दीनदयाल से छुड़ा पाएगा.

वह सोच में डूब गया कि क्रियाकर्म करना जरूरी है. अगर वह ऐसा नहीं करेगा, तो गांव में कोई उस की मदद नहीं करेगा. यहां तक कि उसे गांव या जाति से बाहर कर दिया जाएगा.

रघु को खेतीबारी के लिए सभी का सहयोग चाहिए था. बिना सहयोग के खेतीबारी नहीं होती?है. बीज, पानी, मजदूर और रुपएपैसे, ये सब गांव से ही मिल सकते हैं.

यदि वह क्रियाकर्म करता है, तो उस की एकमात्र पूंजी वह जमीन सेठ के पास चली जाती है. तब वह एक मजदूर बन कर रह जाएगा. तब वह अपनी माली हालत कैसे सुधार पाएगा, क्योंकि उस पर कर्ज चुकाना और खेती करना कैसे मुमकिन है, यह बात वह अच्छी तरह जानता था.

वह सोच रहा था कि किसी तरह क्रियाकर्म टल जाता, तो उसे फायदा था. वह चाहता था कि मौत पर मौज न मनाई जाए. इस से गरीब आदमी मर जाता है. यह बात उस ने अपने कई दोस्तों को सम?ाई कि एक तो मरने वाले का दुख, ऊपर से कर्ज की मार. एक गरीब कैसे यह सह सकता है. मगर किसी ने उस की बात न मानी.

इस बारे में वह देर तक सोचता रहा, तो उसे लगा कि क्रियाकर्म न करना ही अच्छा है. मगर वह गांव वालों को नाराज भी नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने कोई बीच का रास्ता निकालने की सोची.

आखिरकार रघु को एक उपाय सूझ गया. वह बहुत खुश हुआ. उस ने पंडित रामसुख से बात की. फिर उन से अस्थि विसर्जन का मुहूर्त निकलवाया और तब हरिद्वार जाने की तैयारी करने लगा.

यह बात सुन कर गांव वाले बड़े खुश हुए कि चलो, रघु अपने बापू की अस्थियां गंगा में बहाने ले जा रहा है, इसलिए सभी ने उसे धूमधाम से विदाई दी. जिस से जो बन पड़ा, वह दिया, क्योंकि वह पहला आदमी था, जो पिता की अस्थियां मरने के तुरंत बाद हरिद्वार ले जा रहा था.

रघु बस में बैठ कर हरिद्वार चला गया. इस बात को तकरीबन 8 दिन हो गए, मगर रघु लौट कर न आया, जबकि उस के बापू के क्रियाकर्म का एक दिन बाकी रह गया था. इस वजह से सेठ दीनदयाल और पंडित रामसुख बहुत चिंता में थे.

उन्होंने बहुत सोचसम?ा कर चौपाल पर गांव वालों की एक बैठक बुलाई, जहां पर यह फैसला होना था कि रघु के बाप के क्रियाकर्म का क्या होगा? अगर रघु नहीं आया, तो क्या किया जाएगा?

पंडितजी अपनी दानदक्षिणा की चिंता में थे. उन्हें क्रियाकर्म के दिन पलंग, बिस्तर वगैरह मिलना था, जबकि सेठ दीनदयाल की निगाह रघु की 3 बीघा जमीन पर थी.

गांव वाले इसलिए चिंता में डूबे थे कि अगर रघु ने बापू का क्रियाकर्म न किया, तो गांव में उस की आत्मा कहर ढा सकती है, इसलिए गांव में चौपाल पर बैठक जमा थी.

तभी सामने से डाकिया आता दिखाई दिया. उस ने सेठजी, पंडित रामसुख और सभी गांव वालों के लिए 3 निमंत्रणपत्र दिए.

निमंत्रणपत्र में लिखा था, ‘गांव दैपालपुर को बड़ी खुशी के साथ सूचित किया जाता है कि मेरे बापू किसनाजी की आत्मा की शांति के लिए हरिद्वार के सर्वसिद्ध परम योगेश्वरजी महाराज की इच्छानुसार हरिद्वार में 18 जून, 2013 को क्रियाकर्म संपन्न होना तय हुआ है.

आप सब महानुभावों से करबद्ध निवेदन है कि यहां पधार कर मेरे बापू की आत्मा को मोक्ष प्रदान करने में सहयोग करें.

एक शोकाकुल पुत्र का निवेदन.

रघु,

गांव दैपालपुर,

हाल मुकाम,

हर की पौड़ी,

हरिद्वार.’

निमंत्रणपत्र पढ़ कर सेठजी और पंडितजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. मगर गांव वाले खुश थे कि चलो, रघु अपने पिता का क्रियाकर्म भी हरिद्वार में कर रहा है.

इधर रघु खुश था कि मौत पर मौज मनाने वालों की इच्छा पूरी नहीं हो पाई, क्योंकि वे 8 सौ किलोमीटर दूर आने से तो रहे. साथ ही, उस की जिंदगीभर की कमाई देने वाली जमीन भी लुटने से बच गई.

मुहिम : जमींदार बाबू का घोड़ा

देश में बदलाव की नई बयार बह रही थी और जाहिर है कि हर नई हवा का असर पहलेपहल शहरों और उन के नजदीक के गांवों तक आता है. इसी तरह यह असर समोहा गांव तक भी आया और जहां पहले जमींदार और उन के चुनिंदा कारिंदे ही थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे थे, वहां अब आबादी का 60 फीसदी हिस्सा पढ़लिख गया था.

अब तो गांव की लड़कियां भी पढ़नेलिखने में काफी आगे निकल गई थीं. यहां तक कि बैजू मास्टर की बेटी कांती पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद में भी काफी आगे निकल गई. उसे लंबी दौड़ में कमिश्नरी लैवल पर इनाम मिला. जब वह सवेरे सड़क पर दौड़ लगाती, तो साथ में 3-4 और लड़कियां भी होतीं.

लड़कियों की देखादेखी एक महीने बाद लड़कों ने भी इसी उछलकूद में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी.

गांव के बाहर मैदान में 2 खंभे गाड़े गए, जिन में सांझ को वौलीबौल का नैट बांधा जाता और खेल चालू हो जाता. छोटेछोटे बच्चे जमा हो कर ताली पीटते. गांव की सारी रौनक ही जैसे वहां जमा हो जाती.

पुराने जमींदार शिवधर सिंह का पोता अनिल इस आयोजन की जान होता था. लंबा, छरहरा, गोरा, सलोने चेहरे वाला अनिल पढ़ाई के मामले में भी किसी से पीछे नहीं था.

पहले तो लड़कियों की दौड़ वगैरह पर गांव वालों ने नाकभौं चढ़ाई और कहा, ‘यह उलटा नाच किसी भले काम के लिए नहीं हो रहा है.’

मगर जब लड़कों का खेल क्लब तैयार हो गया और उस क्लब की अगुआई अनिल करने लगा, तब जमींदार साहब को भी मजबूरन कहना पड़ा, ‘खेलकूद से तंदुरुस्ती बनती है और नौकरी वगैरह में भी काफी सहूलियत हो जाती?है.

‘हमारा अनिल तो शुरू से ही पुलिस अफसर बनने लायक लगता है. अब खेलकूद की वजह से तो वह सीधे कप्तानी करेगा.’

हालांकि जब केवल लड़कियां ही खेलकूद में दिलचस्पी लेती थीं, तब उन का कहना था कि यह सब लड़कियां बिगड़ कर रहेंगी. सालभर में भागमभाग न लग जाए, तो देखना.

गांव के बहुतेरे लोगों की भी यही राय थी. वे लड़कियों को घर की दहलीज से बाहर नहीं देखना चाहते थे. मगर खुलेआम राय जाहिर करना उन के बस की बात नहीं थी और छिप कर चलने वाली चर्चा भला कहीं रुक पाती है? यहां भी कैसे रुकती? ऐसे लोगों का हालांकि खेलकूद से कोई वास्ता नहीं था, मगर कुढ़ने से तो था.

यह कुढ़न तब और बढ़ गई, जब एक ही मैदान में लड़कियों का भी खेल का अभ्यास शुरू हो गया.

अनिल ने घर आ कर बैजू मास्टर की बेटी कांती को उसी मैदान में खेल के अभ्यास का न्योता देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी देखादेखी लड़कों में भी खेल भावना जागी है. अगर तुम सभी वहां खेलो, तो खेल का लैवल उठ सकेगा. हर तरफ लड़केलड़कियों की बराबरी की बात होती है, इसलिए बराबरी के जमाने में भेदभाव की क्या जरूरत?’’

मास्टर हो जाने के बावजूद बैजू मास्टर पुराने समय के असर वाले और जमींदार का दबदबा देखे हुए इनसान थे. यह बात और थी कि उन्होंने नए जमाने की हवा को पहचाना था.

गांव में पहलेपहल बेटी को ऊंची तालीम दी थी और नई हवा को वे दकियानूसी निगाह से न देख कर समाज के लिए कल्याणकारी मानते थे.

उन्होंने अनिल की बात मान ली. कांती ने भी खुशीखुशी अनिल की पेशकश का स्वागत किया. उस के बाद कांती के हाथ की बनी चाय पी कर जब अनिल चला गया, तो दलित तबके के बैजू मास्टर का रोमरोम पुलक रहा था. उन्हें लग रहा था कि सचमुच नई हवा में दम है, वरना उन की छुअन से भी परहेज बरतने वाले जमींदार का पोता यहां चाय कैसे पीता?

बैजू मास्टर को कई लोग आगाह कर चुके थे कि लड़कों के साथ लड़की का इतना घुलनामिलना, मेलमुहब्बत ठीक नहीं है. लड़के का कुछ बिगड़ता नहीं, जबकि लड़की बरबाद हो जाती है. मगर मास्टर साहब को कांती पर भरोसा था. उन्हें अनिल की शराफत पर भी पूरा यकीन था.

अनिल और कांती दोनों ने एकसाथ फर्स्ट डिवीजन में एमए का इम्तिहान पास किया. दोनों एकदूसरे को गहराइयों से चाहने लगे. लेकिन उन की चाहत में छिछोरापन न था.

वे थके पंछी की तरह अब जैसे अलसा कर एक डाल पर ही बैठने को अधीर हो उठे. आंखों की भाषा कब अधरों तक आई, यह तो नहीं कहा जा सकता, मगर जब कांती का नाम पीसीएस में आ गया, तो उस ने अनिल से शादी करने का बाकायदा ऐलान कर दिया.

गांव में कांती के पीसीएस बनने की खबर फैलने से पहले जमींदार परिवार के साथ एक दलित लड़की के ब्याह की बात गांवभर में गूंज गई.

जिसे देखो, उस के मुंह से यही चर्चा, लेकिन इतने नए विचार अभी गांव वालों के गले नहीं उतर पा रहे थे.

यह खबर जमींदार बाबू शिवधर सिंह तक पहुंची. उन्हें लगा कि जन्मभर की ठकुरा शान एक ही बार में जिबह हुई जा रही है.

उन्होंने कहा, ‘‘अनिल की यह हैसियत नहीं कि वह मेरी इच्छा के खिलाफ चूं तक कर सके. जिस दिन ऐसी नौबत आएगी, उस दिन मेरी बंदूक में 2 गोलियां मौजूद होंगी.’’

इन गोलियों की चर्चा बैजू मास्टर तक पहुंची और उन्होंने अनिल से ब्याह की दिली इच्छा रखते हुए भी खूनखराबे के डर के चलते कांती से अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा. पर न तो कांती अपने फैसले से टस से मस हुई और न ही अनिल.

अनिल से उस के दादा शिवधर सिंह ने कहा, ‘‘अभी तू मेरी जायदाद की बदौलत अंगरेजी बोलता है. अगर तू ने यह जिद न छोड़ी, तो मैं तुझे दानेदाने को मुहताज कर दूंगा.

‘‘वह भुक्खड़ परिवार की बेटी, जो जायदाद के चलते ही तेरे पीछे पड़ी है, खुद तुझ से बात करना बंद कर देगी. कुछ समझ? लाठी भी नहीं टूटेगी, सांप भी मर जाएगा. 2 गोलियां बरबाद करने से क्या फायदा?’’

तब अनिल ने पक्के इरादे के साथ कहा, ‘‘दादाजी, अब तो आप समझदारी की बात करने लगे हैं. गोली से चल कर जतन पर उतर आए हैं.

‘‘मेरी एक बात सुन लीजिए… न तो मुझे और न कांती को आप की जायदाद से एक पैसा चाहिए. दुनिया में इतने सारे लोग क्या जायदाद ले कर ही पैदा होते हैं? अपने हाथपांव का भरोसा ही सब से बड़ा भरोसा होता है.

‘‘फिर भी आप की जानकारी के लिए बता दूं कि कांती डिप्टी कलक्टरी पास कर चुकी?है और मुझे भी कहीं न कहीं दो रोटियों का जुगाड़ हो ही जाएगा. मैं ऐसी जगह को दूर से ही सलाम करता हूं,’’ यह कह कर वह वहां से तीर की तरह से निकल आया.

अनिल जाने को तो चला गया, पर जमींदार बाबू के दिल को हिला गया.

जमींदार के साथसाथ वे ममता से भरे दादा भी थे, जिन्होंने बेटे के न रहने पर पोते की परवरिश की थी. उन का दिल पोते के प्रेम और मर्यादा दोनों की तुलना बन गया.

लेकिन थोड़ी ही देर में वे एक निश्चय पर पहुंच गए. उन्होंने अपनी राइफल कंधे पर टांगी. उन के सिर पर पगड़ी थी और पैर घोड़े की रकाब पर थे.

इधर बैजू मास्टर के घर में अनिल कह रहा था, ‘‘मुझे दादाजी ने जायदाद से बेदखल कर दिया है. मैं इस समय केवल अनिल हूं, जो कांती को प्यार और विश्वास की छांव जरूर दे सकता?हूं, लेकिन जायदाद नहीं.

‘‘आप लोग इस मुगालते में भी न रहिएगा कि मैं कांती के डिप्टी कलक्टरी में आ जाने की वजह से शादी के लिए तैयार हूं. दरअसल, यह बात महीनों पहले हम दोनों में तय थी. आज अफसरी पाने की खुशी में इस के मुंह से निकल गई.’’

बैजू मास्टर मुसकराते हुए बोले, ‘‘यह पीसीएस में आई है, तो तुम आईएएस में आओगे. जब तुम्हारे साथ जायदाद थी, तब जरूर मुझे हिचक हो रही थी कि लोग कहेंगे, मास्टर ने जायदाद के लोभ में लड़की का संबंध अनिल के साथ करना चाहा. मगर अब मुझे इस रिश्ते पर कोई एतराज नहीं है.

‘‘जमींदार बाबू बड़े आदमी हैं, उन के पास जायदाद है, पर मेरे पास भी तुम्हारे लिए नमक, रोटी की कमी नहीं है. उन्हें ठसक ज्यादा प्यारी है और मुझे औलाद की खुशी.’’

तभी जमींदार बाबू का घोड़ा सामने से आता दिखाई पड़ा. उन की फरफराती हुई सफेद मूंछें एक दहशत सी पैदा कर रही थीं.

राइफल देख कर एकबारगी तो बैजू मास्टर सिर से पैर तक कांप गए. मगर दूसरे ही पल उन्होंने सोचा कि मैं पत्नी समेत कांती और अनिल के आगे आकर उन की हिफाजत करूंगा. अपने जीतेजी औलाद की तमन्नाओं का खून नहीं होने दूंगा.

जमींदार बाबू ने पास आ कर घोड़े पर बैठेबैठे ही कहा, ‘‘मैं और मेरी जायदाद दोनों से ही तो सब को चिढ़ है. मेरे दिल में जैसे औलाद का दर्द ही नहीं है… और मेरी जायदाद जैसे तुम लोगों की है ही नहीं. मुझे कौन छाती पर लाद कर ले जानी है… आज मरा कल दूसरा दिन… 70 तो पार कर ही चुका हूं.’’

फिर कुछ पल रुक कर वे आगे बोले, ‘‘बैजू, वाकई मास्टर तो तुम्हीं

हो. हमारे पोते और बहू दोनों को अपनी ओर मिला कर मुझ बूढ़े को अकेला छोड़ दिया.

‘‘अरे, पहले कभी बात तो चलाई होती… इतनी जल्दी तो कोई अदालत भी फैसला नहीं सुना सकती. अब अपनी गलती की जिम्मेदारी मुझ पर डाल रहे हो.’’

उन्होंने जेब में हाथ डाल कर एक अशरफी निकाली और बोले, ‘‘ले बहू, अभी एक से ही सब्र कर… मेरी संदूकची की चाबी तो यही हजरत कहीं रख आए हैं. बहू की दिखाई भी ढंग की नहीं होने दी,’’ फिर वह अनिल से डपट कर बोले, ‘‘ले राइफल, और इस मुबारक मौके पर दनादन फायर कर… और घर चल कर मेरी चाबी भी दे. आज ही ब्याह होना है और सारा इंतजाम करना है.’’

अनिल ने उन के पैर छूने को हाथ बढ़ाए, तो वे रोब से बोले, ‘‘पहले फायर कर…’’

बैजू मास्टर और कांती के साथ उस की मां भी उन के पैरों पर झाकी थी. उन्हें जमींदार के दिल में उगे एक सच्चे इनसान ने बरबस झांका दिया था.

जमींदार बाबू के आंसू बह रहे थे और रुंधे गले से क्या आशीर्वाद दे रहे थे, इसे फायरों की ‘तड़तड़’ की आवाज के चलते किसी ने न सुना.

अगले पल कांती के मातापिता और जमींदार बाबू के चेहरे पर एक जंग जीतने जैसी खुशी नजर आ चुकी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे वे एक नई मुहिम पर जाने के लिए कदमताल कर रहे हों, कुछ ही पलों में उन के कदम आगे बढ़ने वाले हों.

Valentine’s Day 2024- घरौंदा: कल्पना की ये कैसी उड़ान

विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था.विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है.

छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी. फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.

तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.

कालेज में गृह विज्ञान उस का प्रिय विषय था. गृहसज्जा में तो उस की विशेष रुचि थी. तब कितनी कल्पनाएं थीं उस के मन में. जब अपना एक घर होगा, तब वह उसे हर कोने से निखारेगी. पर अब…

उस दिन उस ने सजावट के लिए 2 मूर्तियां लेनी चाही थीं, पर कीमत सुनते ही हैरान रह गई, 500 रुपए.

अशोक धीमे से मुसकरा कर बोला था, ‘‘चलो, आगे बढ़ते हैं, यह तो महानगर है. यहां पानी के गिलास पर भी पैसे खर्च होते हैं, समझीं?’’

तब वह कुछ लजा गई थी. हंसी खुद पर भी आई थी.

उसे याद है, शादी से पहले यह सुन कर कि पति एक बड़ी फर्म में है, हजार रुपए तनख्वाह है, बढि़या फ्लैट है. सबकुछ मन को कितना गुदगुदा गया था. महानगर की वैभवशाली जिंदगी के स्वप्न आंखों में झिलमिला गए थे.

‘तू बड़ी भाग्यवान है, अची,’ सखियों ने छेड़ा था और वह मधुर कल्पनाओं में डूबती चली गई थी.

शादी में जो कुछ भारी सामान मिला था, उसे अशोक ने जिद कर के घर पर ही रखवा दिया था. उस ने बड़े शालीन भाव से कहा था, ‘‘इतना सब कहां ढोते रहेंगे, यहीं रहने दो. अंजु के विवाह में काम आ जाएगा. मां कहां तक खरीदेंगी. यही मदद सही.’’

सास की कृतज्ञ दृष्टि तब कुछ सजल हो आई थी. अचला को भी यही ठीक लगा था. वहां उसे कमी ही क्या है? सब नए सिरे से खरीद लेगी.

पर पति के घर आने के बाद उस के कोमल स्वप्न यथार्थ के कठोर धरातल से टकरा कर बिखरने लगे थे.

अशोक की व्यस्त दिनचर्या थी. सुबह 8 बजे निकलता तो शाम को 7 बजे ही घर लौटता. 2 कमरों में इधरउधर चहलकदमी करते हुए अचला को पूरा दिन बिताना पड़ता था. उस पूरे दिन में वह अनेक नईनई कल्पनाओं में डूबी रहती. इच्छाएं उमड़ पड़तीं. इस मामूली चारपाई के बदले यहां आधुनिक डिजाइन का डबलबेड हो, डनलप का गद्दा, ड्राइंगरूम में एक छोटा सा दीवान, जिस पर मखमली कुशन हो. रसोईघर के लिए गैस का चूल्हा तो अति आवश्यक है, स्टोव कितना असुविधा- जनक है. फिर वह बजट भी जोड़ने लगती थी, ‘कम से कम 5 हजार तो चाहिए ही इन सब के लिए, कहां से आएंगे?’

अपनी इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उस ने मन ही मन बहुत कुछ सोचा. फिर एक दिन अशोक से बोली, ‘‘सुनो, दिन भर घर पर बैठीबैठी बोर होती रहती हूं. कहीं नौकरी कर लूं तो कैसा रहे? दोचार महीने में ही हम अपना फ्लैट सारी सुखसुविधाओं से सज्जित कर लेंगे.’’

पर अशोक उसी प्रकार अविचलित भाव से अखबार पर नजर गड़ाए रहा. बोला कुछ नहीं.

‘‘तुम ने सुना नहीं क्या? मैं क्या दीवार से बोल रही हूं?’’ अचला का स्वर तिक्त हो गया था.

‘‘सब सुन लिया. पर क्या नौकरी मिलनी इतनी आसान है? 300-400 रुपए की मिल भी गई तो 100-50 तो आनेजाने में ही खर्च हो जाएंगे. फिर जब पस्त हो कर शाम को घर लौटोगी तो यह ताजे फूल सा खिला चेहरा चार दिन में ही कुम्हलाया नजर आने लगेगा.’’

अशोक ने अखबार हटा कर एक भाषण झाड़ डाला.

सुन कर अचला का चेहरा बुझ गया. वह चुपचाप सब्जी काटती रही. अशोक ने ही उसे मनाने के खयाल से फिर कहा, ‘‘फिर ऐसी जरूरत भी क्या है तुम्हें नौकरी की? छोटी सी हमारी गृहस्थी, उस के लिए जीतोड़ मेहनत करने को मैं तो हूं ही. फिर कम से कम कुछ दिन तो सुखचैन से रहो. अभी इतना तो सुकून है मुझे कि 8-10 घंटे की मशक्कत के बाद घर लौटता हूं तो तुम सजीसंवरी इंतजार करती मिलती हो. तुम्हें देख कर सारी थकान मिट जाती है. क्या इतनी खुशी भी तुम अब छीन लेना चाहती हो?’’

अशोक ने धीरे से अचला का हाथ थाम कर आगे फिर कहा, ‘‘बोलो, क्या झूठ कहा है मैं ने?’’

तब अचला को लगा कि उस के मन में कुछ पिघलने लगा है. वह अपना सिर अशोक के कंधों पर रख कर मधुर स्वर में बोली, ‘‘पर तुम यह क्यों नहीं सोचते कि मैं दिन भर कितनी बोर हो जाती हूं? 6 दिन तुम अपने काम में व्यस्त रहते हो, रविवार को कह देते हो कि आज तो आराम का दिन है. मेरा क्या जी नहीं होता कहीं घूमनेफिरने का?’’

‘‘अच्छा, तो वादा रहा, इस बार तुम्हें इतना घुमाऊंगा कि तुम घूमघूम कर थक जाओ. बस, अब तो खुश?’’

अचला हंस पड़ी. उस के कदम तेजी से रसोईघर की तरफ मुड़ गए. बातचीत में वह भूल गई थी कि स्टोव पर दूध रखा है.

‘ठीक है, न सही नौकरी. जब अशोक को बोनस के रुपए मिलेंगे तब वह एक ही झोंक में सब खरीद लेगी,’ यह सोच कर उस ने अपने मन को समझा लिया था.

तभी अशोक ने उसे आश्चर्य में डालते हुए कहा, ‘‘जानती हो, इस बार हम शादी की पहली वर्षगांठ कहां मनाएंगे?’’

‘‘कहां?’’ उस ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘मसूरी में,’’ जवाब देते हुए अशोक ने कहा.

‘‘क्या सच कह रहे हो?’’ अचला ने कौतूहल भरे स्वर में पूछा.

‘‘और क्या झूठ कह रहा हूं? मुझे अब तक याद है कि हनीमून के लिए जब हम मसूरी नहीं जा पाए थे तो तुम्हारा मन उखड़ गया था. यद्यपि तुम ने मुंह से कुछ कहा नहीं था, तो भी मैं ने समझ लिया था. पर अब हम शादी के उन दिनों की याद फिर से ताजा करेंगे.’’

कह कर अशोक शरारत से मुसकरा दिया. अचला नईनवेली वधू की तरह लाज की लालिमा में डूब गई.

‘‘पर खर्चा?’’ वह कुछ क्षणों बाद बोली.

‘‘बस, शर्त यही है कि तुम खर्चे की बात नहीं करोगी. यह खर्चा, वह खर्चा… साल भर यही सब सुनतेसुनते मैं तंग आ गया हूं. अब कुछ क्षण तो ऐसे आएं जब हम रुपएपैसों की चिंता न कर बस एकदूसरे को देखें, जिंदगी के अन्य पहलुओं पर विचार करें.’’

‘‘ठीक है, पर तुम तनख्वाह के रुपए मत…’’

‘‘हां, बाबा, सारी तनख्वाह तुम्हें मिल जाएगी,’’ अशोक ने दोटूक निर्णय दिया.

अचला का मन एकदम हलका हो गया. अब इस बंधीबंधाई जिंदगी में बदलाव आएगा. बर्फ…पहाड़…एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले वे जिंदगी की सारी परेशानियों से दूर कहीं अनोखी दुनिया में खो जाएंगे. स्वप्न फिर सजने लगे थे.

रेलगाड़ी का आरक्षण अशोक ने पहले से ही करा लिया था. सफर सुखद रहा. अचला को लगा, जैसे शादी अभी हुई है. पहली बार वे लोग हनीमून के लिए जा रहे हैं. रास्ते के मनोरम दृश्य, ऊंचे पहाड़, झरने…सबकुछ कितना रोमांचक था.

उन्होंने देहरादून से टैक्सी ले ली थी. होटल में कमरा पहले से ही बुक था. इसलिए उन्हें मालूम ही नहीं हुआ कि वे इतना लंबा सफर कर के आए हैं. कमरे में पहुंचते ही अचला ने खिड़की के शीशों से झांका. घाटी में सिमटा शहर, नीलीश्वेत पहाडि़यां, घने वृक्ष बड़े सुहावने दिख रहे थे. तब तक बैरा चाय की ट्रे रख गया.

‘‘खाना खा लो, फिर घूमने चलेंगे,’’ अशोक ने कहा और चाय खत्म कर के वह भी उस पहाड़ी सौंदर्य को मुग्ध दृष्टि से देखने लगा.

खाना भी कितना स्वादिष्ठ था. अचला हर व्यंजन की जी खोल कर तारीफ करती रही. फिर वे दोनों ऊंचीनीची पहाडि़यां चढ़ते, हंसी और ठिठोली के बीच एकदूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते, कलकल करते झरने और सुखद रमणीय दृश्य देखते हुए काफी दूर चले गए. फिर थोड़ी देर दम लेने के लिए एक ऊंची चट्टान पर कुछ क्षणों के लिए बैठ गए.

‘‘सच, मैं बहुत खुश हूं, बहुत…’’

‘‘हूं,’’ अशोक उस की बिखरी लटों को संवारता रहा.

‘‘पर, एक बात तो तुम ने बताई ही नहीं,’’ अचला को कुछ याद आया.

‘‘क्या?’’ अशोक ने पूछा.

‘‘खर्चने को इतना पैसा कहां से आया? होटल भी काफी महंगा लगता है. किराया, खानापीना और घूमना, यह सब…’’

‘‘तुम्हें पसंद तो आया. खर्च की चिंता क्यों है?’’

‘‘बताओ न. क्यों छिपा रहे हो?’’

‘‘तुम्हें मैं ने बताया नहीं था. असल में बोनस के रुपए मिले थे.’’

‘‘क्या? बोनस के रुपए?’’ अचला बुरी तरह चौंक गई, ‘‘पर तुम तो कह रहे थे…’’ कहतेकहते उस का स्वर लड़खड़ा गया.

‘‘हां, 2 महीने पहले ही मिल गए थे. पर तुम इतना क्यों सोच रही हो? आराम से घूमोफिरो. बोनस के रुपए तो होते ही इसलिए हैं.’’

अचला चुप थी. उस के कदम तो अशोक के साथ चल रहे थे, पर मन कहीं दूर, बहुत दूर उड़ गया था. उस की आंखों में घूम रहा था वही 2 कमरों का फ्लैट. उस में पड़ी साधारण सी कुरसियां, मामूली फर्नीचर. ओफ, कितना सोचा था उस ने…बोनस के रुपए आएंगे तो वह घर की साजसज्जा का सब सामान खरीदेगी. दोढाई हजार में तो आसानी से पूरा घर सज्जित हो सकता था. पर अशोक ने सब यों ही उड़ा डाला. उसे खीज आने लगी अशोक पर.

अशोक ने कई बार टोका, ‘‘क्या सोच रही हो? यह देखो, बर्फ से ढकी पहाडि़यां. यही तो यहां की खासीयत है. जानती हो, इसीलिए मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है.’’

पर अचला कुछ भी नहीं सुन पा रही थी. वह विचारों में डूबी थी, ‘अशोक ने उस के साथ यह धोखा क्यों किया? यदि वहीं कह देता कि बोनस के रुपयों से घूमने जा रहे हैं तो वह वहीं मना कर देती.’ उस का मन उखड़ता जा रहा था.

रात को भी वही खाना था, दिन में जिस की उस ने जी खोल कर तारीफ की थी. पर अब सब एकदम बेस्वाद लग रहा था. वह सोचने लगी, ‘बेमतलब कितना खर्च कर दिया. 100 रुपए रोज का कमरा, 40 रुपए में एक समय का खाना. इस से अच्छा तो वह घर पर ही बना लेती है. इस में है क्या. ढंग के मसाले तक तो सब्जी में पड़े नहीं हैं.’ उसे अब हर चीज में नुक्स नजर आने लगा था.

‘‘देखो, अब खर्च तो हो ही गया, क्यों इतना सोचती हो? रुपए और कमा लेंगे. अब जब घूमने निकले हैं तो पूरा आनंद लो.’’

रात देर तक अशोक उसे मनाता रहा था. पर वह मुंह फेरे लेटी रही. मन उखड़ गया था. उस का बस चलता तो उसी क्षण उड़ कर वापस चली जाती.

गुदगुदे बिस्तर पर पासपास लेटे हुए भी वे एकदूसरे से कितनी दूर थे. क्षण भर में ही सारा माहौल बदल गया. सुबह भी अशोक ने उसे मनाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘चलो, घूम आएं. तुम्हारी तबीयत बहल जाएगी.’’

‘‘कह दिया न, मुझे अब यहां नहीं रहना है. तुम जो भी रुपए वापस मिल सकें ले लो और चलो.’’

‘‘क्या बेवकूफों की तरह बातें कर रही हो. कमरा पहले से ही बुक हो गया है. किराया अग्रिम दिया जा चुका है. अब बहुत किफायत होगी भी तो खानेपीने की होगी. क्यों सारा मूड चौपट करने पर तुली हो?’’ अशोक के सब्र का बांध टूटने लगा था.

पर अचला चाह कर भी अब सहज नहीं हो पा रही थी. वे पहाडि़यां, बर्फ, झरने, जिन्हें देखते ही वह उमंगों से भर उठी थी, अब सब निरर्थक लग रहे थे. क्यों हो गया ऐसा? शायद उस के सोचने- समझने की दृष्टि ही बदल गई थी.

‘‘ठीक है, तुम यही चाहती हो तो रात की बस से लौट चलेंगे. अब आइंदा कभी तुम्हें यह कहने की जरूरत नहीं है कि घूमने चलो. सारा मूड बिगाड़ कर रख दिया.’’

दिन भर में अशोक भी चिड़चिड़ा गया. अचला उसी तरह अनमनी सी सामान समेटती रही.

‘‘अरे, इतनी जल्दी चल दिए आप लोग?’’ पास वाले कमरे के दंपती विस्मित हो कर बोले.

पर बिना कोई जवाब दिए, अपना हैंडबैग कंधे पर लटकाए अचला आगे बढ़ती चली गई. अटैची थामे अशोक उस के पीछे था. बस तैयार खड़ी मिली. अटैची सीट पर रख अशोक धम से बैठ गया.

देहरादून पहुंच कर वे दूसरी बस में बैठ गए. अशोक को काफी देर से खयाल आया कि गुस्से में उस ने शाम का खाना भी नहीं खाया था. उस ने घड़ी देखी, 1 बज रहा था. नींद में आंखें जल रही थीं. पर सोने की इच्छा नहीं थी, वह खिड़की पर बांह रख सिर हथेलियों पर टिकाए या तो सो गया था या सोने का बहाना कर रहा था.

आते समय कितना चाव था. पर अब पूरी रात क्षण भर के लिए भी वे सो नहीं पाए थे. दोनों ही सबकुछ भूल कर अपनेअपने खयालों में गमगीन थे. इस तरह वे परस्पर कटेकटे से घर पहुंचे.

सुबह अशोक का उतरा हुआ पीला चेहरा देख कर अचला सहम गई थी. शायद वह बहुत गुस्से में था. उसे अब अपने किए पर कुछ ग्लानि अनुभव हुई. उस समय तो गुस्से में उस की सोचनेसमझने की शक्ति ही लुप्त हो गई थी. पर अब लग रहा था कि जो कुछ हुआ, ठीक नहीं हुआ. कम से कम अशोक का ही खयाल रख कर उसे सहज हो जाना चाहिए था. कितने उत्साह से उस ने घूमने का प्रोग्राम बनाया था.

कमरे में घुसते ही थकान ने शरीर को तोड़ डाला था, कुरसी पर धम से गिर कर वह कुछ भूल गई थी. कुछ देर बाद ही खयाल आया कि अशोक ने रात भर से बात नहीं की है. कहीं बिना कुछ खाए आफिस न चला गया हो, फिर उठी ही थी कि देखा अशोक चाय बना लाया है.

‘‘उठो, चाय पियोगी तो थकान दूर हो जाएगी,’’ कहते हुए अशोक ने धीरे से उस की ठुड्डी उठाई.

अपने प्रति अशोक के इस विनम्र प्यार को देख वह सबकुछ भूल कर उस के कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी, ‘‘मुझे माफ कर दो. पता नहीं क्या हो जाता है.’’

‘‘अरे, यह क्या, गलती तो मेरी ही थी. यदि मुझे पता होता कि तुम्हें घर की चीजों का इतना अधिक शौक है तो घूमने का प्रोग्राम ही नहीं बनाते. अब ध्यान रखूंगा.’’

अशोक का स्नेह भरा स्वर उसे नहलाता चला गया. अपने 2 कमरों का घर आज उसे सारे सुखसाधनों से भरापूरा प्रतीत हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘सबकुछ तो है उस के पास. इतना अधिक प्यार करने वाला, उस के सारे गुनाहों को भुला कर इतने स्नेह से मनाने वाला विशाल हृदय का पति पा कर भी वह अब तक बेकार दुखी होती रही है.’

‘‘नहीं, अब कुछ नहीं चाहिए मुझे. कुछ भी नहीं…’’ उस के होंठ बुदबुदा उठे. फिर अशोक के कंधे पर सिर रखे वह सुखद अनुभीति में खो गई.

सड़क पर भीख मांगता नजर आया बिग बौस का ये विनर, बदल गया है लुक

बिग बौस का विनर बनने के बाद हर कोई उस कंटेस्टेंट के बारे में जानने के लिए बेताब रहता है ऐसे ही बिग बौस 16 के विनर रह चुके शिव ठाकरे (Shiv Thakare) के बारे में सभी जानना चाहते होंगे. लोग उन्हे काफी पसंद भी करते है. शिव आज के समय में पॉपुलर टीवी पर्सनैलिटी बन गए हैं, जो लोगों के बीच अपने देसी अंदाज के लिए काफी पसंद किए जाते हैं, शिव की एक झलक पाने के लिए फैंस सड़कों पर उतर जाते हैं, लेकिन इस बार शिव ठाकरे खुद सड़क पर आ गए हैं. हाल ही में एक वीडियो सामने आया है, जिसमें शिव ठाकरे सड़क पर भीख मांगते हुए नजर आ रहे हैं और उनका लुक भी काफी ज्यादा बदला हुआ है. ये वीडियो देख लोगों के होश उड़ गए हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shiv Thakare (@shivthakare9)


दरअसल, शिव ठाकरे  ने अपने ऑफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह लोगों के साथ एक प्रैंक करते हुए दिख रहे हैं. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि शिव ठाकरे अपनी टीम की मदद से पहले तो अपना लुक पूरी तरह बदल लेते हैं. उनके शरीर को थोड़ा अजीब कर दिया जाता है. शिव को फिल्म ‘आई’ के एक्टर का लुक दिया जाता है. इसके बाद शिव मुंबई की सड़कों पर लोगों से भीख मांगते हैं. वह एक कार से दूसरी कार की तरफ जाते हैं. इस मौके पर कई लोग उन्हें देखकर डर जाते हैं. इतना ही नहीं, लड़कियां तो शिव को देखकर डर जाती हैं और एक महिला ऑटो में ही चिल्लाने लगती है. इन सबके बीच एक ऑटोवाला शिव को पैसे देता है, जिसने लेगों का ध्यान खींच लिया. इस व्यक्ति की तारीफ सोशल मीडिया पर खूब हो रही है. वहीं, शिव के इस वीडियो पर लोग अपना रिएक्शन दिए बिना रह नहीं पा रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shiv Thakare (@shivthakare9)


बता दें, कि शिव ठाकरे का ये वीडियो फैंस को खूब पसंद आ रहा है. लोग शिव की तारीफ कर रहे हैं और डरने वाले लोगों के मजे ले रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘रिक्शा वाला काका ना दिल जीत लिया.’ दूसरे ने लिखा, ‘आंटी रिएक्शन.’ इसी तरह एक और यूजर ने लिखा, ‘प्रेक करो तो ऐसा करो कि सब डर जाए.’ इस वीडियो पर कई सारे सेबेल्स ने भी अपना रिएक्शन दिया है.

श्वेता शर्मा का किलर डांस देख सोशल मीडिया पर मचा तहलका, वीडियो पर लोग कर रहे हैं ये कमेंट

भोजपुरी एक्ट्रेस श्वेता शर्मा अपने डांस और वीडियो को लेकर अक्सर चर्चा में बनीं रहती है. श्वेता शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है और अपने फैंस के साथ तस्वीरें और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. श्वेता के हर एक पोस्ट पर लोग दिल खोलकर प्यार बरसाते हैं.इस बीच एक बार फिर से श्वेता शर्मा ने अपने फैंस को विजुअल ट्रीट दिया है. जो कि काफी तेजी से वायरल हो रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shweta Sharma (@sshwetasharma411)


आपको बता दें, कि भोजपुरी एक्ट्रेस श्वेता शर्मा का डांस वीडियो वायरल हुआ है. जो कि इंटरनेट की दुनिया में धड़ल्ले से वायरल हो रहा है. इस क्लिप में श्वेता ने गजब का डांस किया है. एक्ट्रेस ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक रील वीडियो शेयर किया है, जिसमें वो किलर डांस करती नजर आ रही हैं. श्वेता शर्मा ने शाहिद कपूर और कृति सेनॉन की फिल्म तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया के टाइटल ड्राम पर अपना जलवा बिखेरा हैं. श्वेता शर्मा ने बोल्ड आउटफिट में ऐसा डांस किया है कि फैंस के पसीने छूट गए हैं. श्वेता का ये अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा है. श्वेता के इस क्लिप पर लोग जमकर रिएक्ट कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘दिन बन गया.’

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shweta Sharma (@sshwetasharma411)


बताते चलें कि शाहिद कपूर और कृति सेनॉन की फिल्म तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया का अच्छा खासा बज बना हुआ है. इस फिल्म का लोग बेसब्री से इंताजर कर रहे हैं. यह फिल्म 9 फरवरी को रिलीज होने वाली है. इस मूवी में शाहिद कपूर और कृति सेनॉन की लव स्टोरी दिखाई जाएगी. मालूम हो कि पहली बार शाहिद और कृति बड़े पर्दे पर साथ नजर आएंगे.

Valentine Day 2024: वैलेंटाइन डे पर ऐसे पूरी होगी सैक्स की चाहत, आजमाएं ये क्रेजी ट्रिक्स

14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर इश्क में डूबे जोड़ों की सब से बड़ी समस्या यह होती है कि वे अपनी सैक्स डिजायर को कैसे पूरा करें. इस के लिए उन्हें पार्टनर की रजामंदी से ले कर जगह, माहौल और कैसे उस मूमैंट को यादगार बनाना है, यह फिक्र ज्यादा सताती है. पर अगर मैच्योर नजरिए से सोचा जाए, तो यह सब करना बहुत आसान है.

14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के दिन सैक्स का मजा लेने के लिए आप को पहले से ही खास तरह से प्लानिंग कर लेनी चाहिए, ताकि पार्टनर के साथ सैक्स करने के दौरान ज्यादा आप दोनों की क्रेजीनैस बरकरार रहे. इस के लिए आप ये टिप्स अपना सकते हैं :

रात करें रंगीन

आप दोनों पहले ही यह डिसाइड कर लें कि यह खूबसूरत रात आप को कहां बितानी है. अगर पूरी रात एक जगह बिताने का इंतजाम हो जाए, तो सोने पे सुहागा. फिर आप दोनों को किसी तरह की हड़बड़ी नहीं होगी और आप दोगुने जोश के साथ सैक्स कर सकेंगे और अपनी सैक्स पोजीशन को भी ऐंजौय कर पाएंगे.

फोरप्ले का लें मजा

सैक्स में कभी भी उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए. वैलेंटाइन डे की पूरी रात आप के पास है, इसलिए सैक्स का मजा लेना हो, तो फोरप्ले पर जरूर फोकस करें. आप हैं, आप का पार्टनर है और आप का बिस्तर है, तो सब से पहले आप दोनों सहज हो जाएं. एकदूसरे में जोश जगाने के लिए कोई पोर्न फिल्म देख लें, इस से आप का मूड बन जाएगा. फिर एकदूसरे को किस करें, हग करें और उस के बाद वही सैक्स पोजीशन ट्राई करें हैं, जिस में आप दोनों को प्लेजर मिले.

कमरे के अलावा और भी औप्शन

अगर आप कमरे के भीतर सैक्स करने से बोर हो चुके हैं, तो आउटडोर सैक्स का मजा लेने से न चूकें. फिर वह घर की छत, बालकनी या फिर आंगन ही क्यों न हो, क्या फर्क पड़ता है. इस से माहौल तो बदलता ही है, साथ ही मजा भी दोगुना हो जाता है.

ये चीजें भी रखें साथ

वैलेंटाइन डे को खास बनाने के लिए अपने साथ कुछ ऐसा फूड भी जरूर रखें कि आप की सैक्स करने की इच्छा और ज्यादा बढ़ जाए. इस के लिए हनी, चौकलेट, केक, पेस्ट्री, स्ट्राबेरी आदि आप के पास जरूर हो. और हां, कंडोम ले जाना मत भूलें. वे भी ढेर सारे और अपने वैलेंटाइन डे पर सैक्स का दिल खोल कर लुत्फ उठाएं.

मैं एक विधवा से बहुत प्यार करता हूं, पर वह औरों से भी संबंध रखती है, क्या करूं?

सवाल

मैं एक औरत से पिछले 2 साल से प्यार कर रहा हूं. उस का पति नहीं है. एक दिन मैं ने उसे उस के देवर के साथ रंगरलियां मनाते हुए देख लिया, तब से मुझे उस से नफरत हो गई है. पर वह कहती है कि मैं उसे न छोड़ूं. आप बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप को शादीशुदा औरत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. आप को उस से प्यार नहीं है, आप बस उस का फायदा उठा रहे थे. उस का देवर भी मौके का फायदा उठा रहा है. बेहतर होगा कि आप उस से दूर रहें. उसे आदमियों की लत लग गई है, इसलिए वह आप को भी नहीं छोड़ना चाहती.

ये भी पढ़े ….

सवाल

मैं 19 साल की हूं. मुझे बीऐड कर के टीचर बनना है. इस के लिए मुझे क्या करना होगा? क्या टीचर बन कर मेरा भविष्य बेहतर हो जाएगा?

जवाब

बीऐड करने के लिए आप का ग्रेजुएट होना जरूरी है. इस के लिए किसी नजदीकी कालेज से संपर्क करें. सरकारी स्कूल में नौकरी मिले तो ही भविष्य बेहतर बन पाएगा, नहीं तो प्राइवेट स्कूलों में काम ज्यादा होता है, पर पैसा कम मिलता है. लेकिन टाइम अच्छा पास होता है और गुजरबसर के लायक तनख्वाह भी मिल जाती है. आप सरकारी नौकरियों पर निगाह रखें और फार्म भरती रहें, लेकिन पहले बीऐड कर लें.

सच्ची सलाह के लिए कैसी भी परेशानी टैक्स्ट या वौइस मैसेज से भेजें.

मोबाइल नंबर : 08826099608

लालच और गुस्से में मां की हत्या, कत्ल का खुलासा हैरान करने वाला

दिसंबर, 2012 को महाराष्ट्र के सांगली शहर में लालच के चलते एक बेटे ने अपनी मां का ही कत्ल कर दिया. खुद का कारोबार, घर और गाड़ी पाने के लालच में रूपेश पाटिल ने अपनी मां के साथसाथ अपने दूसरे रिश्तेदारों से भी रिश्ते खराब कर लिए थे. उस के रिश्ते इतने बिगड़ गए थे कि सासबहू के झगड़े में उसे अपनी मां विजयालक्ष्मी कांटा लगने लगी और गुस्से में उस ने अपनी मां का गला दबा कर हत्या कर दी.

बचपन में ही रूपेश के पिताजी की मौत हो गई थी. उस की मां ने उसे बड़े जतन से पालपोस कर बड़ा किया, पर मां के इसी प्यार की वजह से उस ने 10वीं से आगे पढ़ाई नहीं की. फिर वह अपने चाचा के मैडिकल स्टोर में काम करने लगा.

कुछ सालों बाद फार्मेसी से जुड़े किसी जानने वाले की बेटी शुभांगी के साथ रूपेश की शादी हुई.

शादी के बाद रूपेश बड़ा बनने के सपने देखने लगा. उसे लगने लगा कि उस की अपनी भी खुद की कोई दुकान हो. इस बीच उस की अपने चाचा के साथ किसी बात पर अनबन हो गई और उस ने उन का काम छोड़ दिया.

कारोबार के लिए रूपेश ने बैंक से 18 लाख रुपए का कर्ज लिया. उन्हीं पैसों में से उस ने घर बनवाने का काम भी शुरू कर दिया, पर बैंक की किस्तें समय पर न चुकाने के चलते बैंक ने उसे नोटिस भेज दिया.

चाचा से अलग होने की वजह से रूपेश की मां विजयालक्ष्मी भी उस से नाराज हो गईं. बहू के साथ भी उन की छोटीछोटी बातों को ले कर अनबन होने लगी.

अपना कर्जा कम करने के लिए रूपेश ने अपनी मां से उस के 15 तोले गहने और उस के नाम की कोथड़ी की एक एकड़ जमीन भी ले ली.

इस जमीन को बेचने के लिए वह ग्राहक ढूंढ़ने लगा. इस बीच मांबेटे के बीच की झगड़े की खबर सभी रिश्तेदारों में फैल गई और सभी रिश्तेदार रूपेश से नाराज हो गए.

ऐसे में रूपेश ने अपनी ससुराल का रुख किया और मां के सभी गहने उन के पास रखने को दे दिए. कर्ज ले कर पहला कर्जा कम करने की उस की मंसा थी. इसी बीच एक दिन घर में सासबहू के बीच झगड़ा हो गया. हमेशा के इस झगड़े से रूपेश तंग आ गया था, जिस की वजह से गुस्से में बौखला कर उस ने अपनी मां का तब तक गला दबाया, जब तक कि उस की जान नहीं चली गई.

अपना जुर्म छिपाने के लिए रूपेश ने घर में चोरी की मनगढ़ंत कहानी बनाई. उस की इस साजिश में उस की पत्नी शुभांगी भी शामिल थी.

साजिश की बू

रूपेश का पिछला रिकौर्ड देखते हुए पुलिस को इस हत्या के पीछे किसी साजिश की बू आने लगी. उन्होंने शक के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. सख्ती से पूछताछ करने पर आखिरकार उस ने अपनी जबान खोल दी.

रूपेश ने कबूल किया कि लालच और गुस्से में आ कर उस ने अपनी मां की गला दबा कर हत्या कर दी. रूपेश के साथ हत्या और पुलिस को चोरी की मनगढ़ंत कहानी सुना कर गुमराह करने के जुर्म में शुभांगी पर भी कार्यवाही की गई. पतिपत्नी की इस करतूत की वजह से उन की एक साल की बच्ची अनाथ हो गई.

पाखंड की गिरफ्त में समाज, वजह जानकर हो जाएंगे शर्मसार

अंधविश्वास

रामप्यारे महतो गया जिले के एक गांव अमौना के रहने वाले हैं. वे अपनी पतोहू कलावती देवी को मगध मैडिकल अस्पताल, गया में ले कर आए थे, जहां उसे बेटा पैदा हुआ. नर्स ने ज्यों ही बताया कि लड़का पैदा हुआ है, बगल में अपनी पत्नी की जचगी कराने आए एक पंडे ने बताया कि भूल कर भी अपने बेटे को नहीं देखना, क्योंकि इस का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है.

यह बात रामप्यारे महतो के परिवार में चिंता की वजह बन गई. इस के बाद रामप्यारे महतो ने अपने पुरोहित किशोर पंडित के घर जा कर जब सारी बातें बताईं तो उन्होंने बताया कि अगर लड़का मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है तो ग्रह को शांत करने के लिए कुछ विधिविधान करना पड़ेगा.

यह है मूल नक्षत्र

किशोर पंडित के मुताबिक, उग्र और तीक्ष्ण नक्षत्र वाले को मूल नक्षत्र, सतईसा या गंडात कहा जाता है. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो इस का असर बालक और उस के मातापिता पर पड़ता है. मूल नक्षत्र के भी कई चरण हैं. पहले चरण में अगर बालक पैदा होता है तो उस का बुरा असर पिता के ऊपर होता है. अगर दूसरे चरण में बेटा पैदा होता है तो माता के ऊपर. अगर तीसरे चरण में पैदा होता है तो इस का बुरा असर लड़के पर पड़ता है.

किशोर पंडित अपने शास्त्र, जो खासकर नक्षत्र से ही संबंधित स्पैशल किताब है, में देख कर बताते हैं कि बालक मूल नक्षत्र के पहले चरण में पैदा हुआ है, इसलिए इस का बुरा असर बालक के पिता के ऊपर पड़ेगा. पिता को बिना मूल नक्षत्र की शांति का उपाय किए बालक का मुंह 27 दिनों तक नहीं देखना है. इस के लिए पूजापाठ कराना पड़ेगा, ब्राह्मणों, गांव वालों और रिश्तेदारों को खाना खिलाना पड़ेगा और दानदक्षिणा देनी पड़ेगी.

पंडितजी ने कहा कि आप दिल खोल कर परिवार को खिलाएं और ब्राह्मणों को बढ़चढ़ कर दान दें. इस से मूल की शांति जरूर होगी और बालक के साथसाथ उस के मातापिता को भी कोई परेशानी नहीं होगी.

रामप्यारे महतो के परिवार वालों ने इस का पूरा इंतजाम किया और पूजापाठ, हवन के साथ 11 ब्राह्मणों को खाना खिलाया और दानदक्षिणा दी.

रामप्यारे महतो ने सूद पर 50,000 रुपए ले कर खर्च किए, पर समाज के किसी भी शख्स ने सम झाने की कोशिश नहीं की कि इस से कुछ नहीं होता. उन्होंने पंडे की बातों में ही हां में हां मिलाने का काम किया.

पापपुण्य और विज्ञान

पापपुण्य और विज्ञान में फर्क यह है कि विज्ञान सभी लोगों के लिए एकसमान काम करता है. जहर खाने से हर धर्म को मानने वाला मरेगा ही. आग का काम जलाना है. कोई भी धर्म मानने वाला उसे छुएगा तो उस का हाथ जलेगा. ऐसा कभी नहीं हो सकता कि हिंदू को आग गरम लगे और ईसाई व मुसलिम को ठंडी.

चाल को समझें

इन पंडों के मूल ढकोसले को समझने की कोशिश करें. इतना सभी को जान लेना चाहिए कि मूल नक्षत्र केवल हिंदुओं के यहां होते हैं.

अगर मूल नक्षत्र में जन्म लेने से इस तरह की अनहोनी होती है तो मुसलिम और ईसाई धर्म वालों के यहां भी बच्चा पैदा होने पर इस तरह की घटनाएं घट सकती हैं, लेकिन मुसलिम और ईसाई धर्म समेत दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग जानते भी नहीं हैं कि मूल नक्षत्र क्या होता है?

पाखंड का जाल

पंडों ने समाज में अपने फायदे के लिए इस तरह से शास्त्रों को बनाया है कि कमेरा तबका डर से उन की बातों को मानता रहे. ये परजीवी लोगों को बेवकूफ और अंधविश्वासी बना कर लूटते आ रहे हैं. कमेरे तबके में भी पढ़ेलिखे और नौकरी कर रहे लोग इन धार्मिक पाखंडों को हवापानी देने का काम कर रहे हैं.

सवर्णों के साथसाथ अन्य पिछड़ा वर्ग और कारोबारी तबके के लोग भी इन बातों का पालन करते हैं. इन दकियानूसी बातों को मानते हैं, लेकिन इस का चलन दलित समुदाय में नहीं के बराबर है. इस की अहम वजह यह भी हो सकती है कि दलित समुदाय को लोग अछूत मानते आ रहे हैं.

गौहत्या का मसला

इसी तरह पदार्थ यादव जहानाबाद जिले के गांव ओरा का रहने वाला है. उस की गाय रात में अचानक मर गई. सुबह जब परिवार और गांवभर के लोगों ने देखा तो वे आपस में बातें करने लगे कि पगहा यानी रस्सी बंधी हुई गाय की मौत हो जाती है तो गौहत्या का पाप लग जाता है.

बिहार के गांवों में रहने वाले लोग इस बात को जानते हैं, इसलिए जब भी किसी किसान या मजदूर के यहां जानवर गंभीर रूप से बीमार होता है तो लोग रस्सी को सब से पहले खोल देते हैं.

पदार्थ यादव के पुरोहित यानी उन के गांव के ही पंडित रामाशंकर ने बताया कि इस गौहत्या से बचने के लिए जिस ने गाय को बांधा था, उसे पंचगव्य (दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर से मिला कर बनाया जाता है) थोड़ा सा खा कर और पूरे शरीर पर लगा कर गंगा स्नान करना पड़ेगा और गंगाजल ला कर पूरे घर में छिड़क कर पहले घर को शुद्ध करना होगा.

इतना ही नहीं, उस के बाद सत्यनारायण की कथा के साथसाथ 5 ब्राह्मण परिवारों को खाना खिलाना पड़ेगा, पूजापाठ, हवन वगैरह तो होगा ही.

एक तो गाय मरने का दुख, ऊपर से इन कामों में 50,000 रुपए अलग से खर्च. पदार्थ यादव के मैट्रिक पास लड़के अजय ने कहा कि हमें यह सब नहीं करना है तो गांव वाले इस का विरोध करने लगे और बोलने लगे कि यह तो करना ही पड़ेगा. अगर नहीं करोगे तो तुम्हारे यहां कोई परिवार कभी नहीं खाएगा. अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो भीख भी मांग कर तुम्हें यह करना पड़ेगा.

पदार्थ यादव का परिवार मजबूर हो गया और अपनी भैंस 40,000 रुपए में बेच कर ब्राह्मण भोज खिलाया, पूजापाठ किया और दानदक्षिणा दी.

लूट है जारी

इस तरह हमारे समाज में जन्म से ले कर मरने तक पंडों द्वारा कमेरा तबके को बेवकूफ और अंधविश्वासी बना कर लूटने की परंपरा 21वीं सदी में भी जारी है. झूठ की संस्कृति को हवापानी देने का काम कमेरे तबके के लोगों में पढ़ेलिखे ही कर रहे हैं. अपनी मेहनत से जो लोग पढ़लिख गए हैं, नौकरी या कारोबर कर रहे हैं, उन्हें पंडों की इस साजिश को समझना चाहिए, लेकिन वे और ही ज्यादा धर्म से डरने वाले और अंधविश्वासी हैं.

एक आम आदमी, जिस की मासिक आय 10,000 रुपए है, वह भी इन धार्मिक संस्कारों, पूजापाठ पर औसतन साल में 10-20 हजार रुपए खर्च कर देता है. जन्म से ले कर मरने तक सभी संस्कारों में पूजापाठ और पंडों को दानदक्षिणा देने की परंपरा आज भी है. बच्चा के जन्म लेने पर जन्मोत्सव, जनेऊ संस्कार, बच्चे के नामकरण और जन्म होने पर उस की शादी में तरहतरह के कर्मकांड कराए जाते हैं, जिन में इन पंडों का ही अहम रोल होता है.

मरने पर ब्रह्मभोज किया जाता है जिंदा रहने पर अपने पुरखों को कभी अच्छा खाना दिया हो या नहीं, पर मरने पर उन के मुंह में पंचमेवा ठूंसा जाता है. मृत शरीर को घी लगाया जाता है. जिंदा रहते जिन्हें खाने के लिए कभी घी दिया नहीं, उन्हें जलाने के लिए घी, चंदन और धूपअगरबत्ती का इस्तेमाल किया जाता है.

आज भी लोगों के मरने पर बाल मुंड़ाए जाते हैं. जमीन बेच कर, गिरवी रख कर, सूद पर पैसा ले कर भी ब्रह्मभोज कराना पड़ता है. जो लोग अगर इसका बहिष्कार करने की हिम्मत जुटाते हैं, उन्हें समाज से ही बाहर होना पड़ता है.

पंडों ने एक साजिश के तहत ऐसे धर्मग्रंथों की रचना की, जिस से मेहनत करने वाला कमेरा तबका अपनी मेहनत का एक हिस्सा इन काहिलों के ऊपर खर्च करता रहे और इन का परिवार बिना मेहनत किए लोगों को बेवकूफ बना कर लूटता रहे.

उस रात: कहां गायब हो गए राकेश और सलोनी

राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं. 2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे 2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे. बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें