पतिहंत्री: क्या प्रेमी के लिए पति को मार सकी अनामिका?

काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

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अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

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एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

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पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था.

एक तरफा प्यार में जिंदा जल गई अंकिता: भाग 3

पुलिस ने अंकिता और उस के भाई के बयान दर्ज किए और उन का वीडियो भी बनाया गया. उस आधार पर पुलिस ने काररवाई करते हुए इंदिरा नगर जरुआडीह निवासी मोहम्मद शाहरुख हुसैन (22) को गिरफ्तार कर पूछताछ की और न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

उधर रिम्स में डाक्टरों की टीम अंकिता के इलाज में जुटी हुई थी, लेकिन इलाज के दौरान 28 अगस्त को उस की मौत हो गई.

बाद में इस कांड के एक अन्य अभियुक्त छोटू खान उर्फ नईम खान को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पेशे से बढ़ई नईम खान ने स्वीकार किया कि उस ने ही अपने दोस्त शाहरुख को पैट्रोल ला कर दिया था ताकि वह अंकिता को जला सके. नईम से भी पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कोर्ट में पेश कर उसे भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि अंकिता को अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ से जलाया गया था. इस वजह से उस के शरीर के ऊपर की हर परत में मवाद (पस) भर गया था. यही वजह रही कि लगभग 40 फीसदी जलने के बाद भी उस के अंगों ने धीरेधीरे काम करना बंद कर दिया था.

अंकिता के आग से झुलसने से ले कर उस की रांची के अस्पताल में मौते होने और शाहरुख की गिरफ्तारी को लेकर काफी हंगामा खड़ा हो गया. झारखंड सहित पूरे देश में दुमका की बेटी अंकिता की मौत पर बवाल मच गया.

देश भर से लोग अंकिता की मौत से गुस्से में आ गए. सभी एक स्वर में हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग करने लगे. यहां तक कि अंकिता ने भी अपने बयान में कहा कि मैं जैसे मर रही हूं, वैसी उसे भी मौत की सजा मिले.

मौत से ठीक पहले 12वीं में पढ़ने वाली अंकिता का वीडियो सामने आने पर हंगामा और भी बढ़ा हो गया. उस के शव को दादा अनिल सिंह ने मुखाग्नि दी. अंकिता की अंतिम यात्रा में दुमका से बीजेपी सांसद सुनील सोरेन, उप विकास आयुक्त कर्ण सत्यार्थी, डीएसपी विजय कुमार सहित कई प्रशासनिक अधिकारी और हिंदू समर्थित विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता समेत आम लोग शामिल हुए.

उस के पिता संजीव सिंह ने आंसू पोंछते हुए पुलिस को कहा था, ‘‘3 भाईबहनों में मंझली अंकिता पढ़ने में काफी अच्छी थी. वह दुमका के राजकीय बालिका उच्च विद्यालय में 12वीं में पढ़ती थी. अंकिता पिछले महीनों से एक ऐसा दर्द झेल रही थी, जिसे वह सब के साथ शेयर नहीं कर सकती थी.’’

उन्होंने यह भी बताया कि जब हम ने इस मामले में पुलिस का सहारा लेना चाहा, तब शाहरुख के बड़े भाई ने आ कर हम से माफी मांग ली थी. यह विश्वास भी दिलाया कि अब उस का भाई कभी परेशान नहीं करेगा. थोड़े दिनों तक सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर शाहरुख अपनी आदत से बाज नहीं आया.

मौत से पहले अंकिता ने एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रैट चंद्रजीत सिंह और एसडीपीओ नूर मुस्तफा के सामने दिए अपने बयान में अपनी आपबीती सुनाई थी. इस पूरे मामले में जहां पुलिस की भूमिका काफी संदिग्ध रही, वहीं पुलिस कस्टडी में शाहरुख ऐसे हंसता हुआ दिखा, मानो उस ने जो किया वह सही था. उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है.

पुलिस जब आरोपी को गिरफ्तार कर ले जा रही थी, तब उस की बौडी लैंग्वेज से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे किसी तरह का अफसोस है.

अंकिता के पिता और दादी की भी मांग है कि उस की बेटी के हत्यारे को फांसी की सजा मिलनी ही चाहिए. उन्होंने कहा कि जिस तरह उन की बेटी तड़पतड़प कर मरी है, उस के एवज में हत्यारे को फांसी होनी चाहिए.

जैसे ही अंकिता की मौत की खबर आई, झारखंड की उपराजधानी दुमका में तनाव का माहौल बन गया. भाजपा के नगर अध्यक्ष और वहां की महिला मोर्चा के अलावा बजरंग दल के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए. बाजार को बंद करवा दिया.

प्रदर्शनकारियों ने जिला प्रशासन विरोधी नारे लगाए. उन की मांग थी कि आरोपी शाहरुख को फास्टट्रैक कोर्ट के माध्यम से फांसी की सजा दी जाए. साथ ही साथ अंकिता के परिजनों को सरकार की तरफ से आर्थिक मदद दी जाए.

इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर बताया कि मामले को फास्टट्रैक कोर्ट में चलाया जाएगा. इस मामले की जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट एडीजी स्तर के अफसर से तत्काल मांगी गई. इस के लिए डीजीपी को भी निर्देश दे दिया गया. साथ ही अंकिता के परिवार को 10 लाख रुपए की मदद दी गई. राज्यपाल ने भी तत्काल 2 लाख रुपए देने की भी घोषणा की.

राज्यपाल रमेश बैस ने भी अंकिता के साथ हुई घटना और उस की मौत पर दुख जताया और कहा कि एक लड़की जिस ने अभी पूरी दुनिया भी नहीं देखी थी, उस का इस प्रकार से अंत बहुत ही पीड़ादायक है. इस प्रकार की जघन्य और पीड़ादायी घटना राज्य के लिए शर्मनाक है. राज्यपाल ने भी इस घटना की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में करने की बात का समर्थन किया.

इस पर दुमका के आरक्षी अधीक्षक अंबर लाकड़ा ने बताया कि मामले की फास्टट्रैक कोर्ट में तेजी से काररवाई की जाएगी. ताकि आरोपी को जल्द से जल्द सजा मिल सके.

इसी के साथ झारखंड के भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने दुमका में पदस्थापित उपआरक्षी अधीक्षक नूर मुस्तफा को आड़े हाथों लेते हुए उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने अंकिता हत्याकांड में अभियुक्त शाहरुख को बचाने के लिए भरपूर सहयोग किया.

इस का उन्होंने एक पूर्व घटित मामले को उजागर करते हुए नूर मुस्तफा पर आदिवासी विरोधी एवं घोर सांप्रदायिक होने का भी आरोप लगाया.

बहरहाल, डीआईजी को अपनी निगरानी में कांड की तहकीकात वैज्ञानिक तरीके से जल्द पूरा कराते हुए न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कराने को कहा गया. इस के बाद फास्टट्रैक कोर्ट से स्पीडी ट्रायल कराने के लिए पुलिस न्यायालय से अनुरोध करेगी, ताकि दोषियों को सजा हो सके.

पुलिस मुख्यालय के अनुसार यह अतिसंवेदनशील एवं अत्यंत गंभीर अपराध है. इस घटना में दोषियों को प्राथमिकता के आधार पर स्पीडी ट्रायल करा कर कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए झारखंड पुलिस प्रयास करेगी.

पुलिस मुख्यालय के आदेश पर एडीजी मुख्यालय मुरारी लाल मीणा व आईजी (सीआईडी) असीम विक्रांत मिंज दुमका गए.

इस कांड की वैज्ञानिक तरीके से जांच में आवश्यक सहयोग के लिए अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के सहयोग से राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला की टीम को भी घटनास्थल पर भेजा गया है.

जांच की यह पहल झारखंड हाईकोर्ट द्वारा डीजीपी को तलब करने के बाद हुई. कोर्ट ने अंकिता के परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने के भी आदेश दिए.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अवर सचिव शिवानी डे और लीगल काउंसलर शालिनी सिंह ने दुमका पहुंच कर मृतका अंकिता के घर वालों से घटना की विस्तृत जानकारी ली. जिस कमरे में अंकिता को जलाया गया, उन्होंने उस कमरे की एकएक चीज को देखा. इस के बाद उन्होंने रांची पहुंच कर डीजीपी नीरज सिन्हा से मुलाकात की.

उधर क्रूरतम तरीके से अंकिता की हत्या किए जाने पर वकीलों में भी नाराजगी व्याप्त है.

दुमका डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार यादव ने बताया कि एसोसिएशन की बैठक में फैसला लिया गया है कि कोई भी वकील दोनों आरोपियों शाहरुख और नईम खान का केस नहीं लड़ेंगे और न ही उन की कोई पैरवी करेंगे. क्योंकि उन का यह जघन्य अपराध है. समाज में इस की पुनरावृत्ति न हो, इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया है.

सत्यकथा: ऐसे पकड़ा गया गे सेक्स रैकेट

—संवाददाता

अकसर ब्लैकमेलिंग के पोर्न वीडियो में लड़कालड़की होते हैं, किंतु मुंबई में पहली बार गे सैक्स का रैकेट चलाने वाले एक गिरोह द्वारा समलैंगिक पोर्न वीडियो बना कर नवयुवकों से ठगी का परदाफाश हुआ..

मुंबई के मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाला 23 वर्षीय वशिष्ठ प्रताप (बदला हुआ नाम) अपने एकाकीपन और अकाउंट के उबाऊ काम के बोझ को कम करने के लिए डेटिंग ऐप का सहारा लिया करता था.

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कुछ समय के लिए औनलाइन डेटिंग की दुनिया में तफरीह कर वह तरोताजा महसूस करता था. दरअसल, उसे एक गर्लफ्रैंड की तलाश थी, क्योंकि उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं थी. इस के चलते उस ने कई डेटिंग ऐप पर अपने अकाउंट खोल रखे थे. उन पर उस की प्रोफाइल के मुताबिक किसी वैसी लड़की से दोस्ती नहीं हो पाई थी, जिस की उस ने कल्पना कर रखी थी.

एक दिन उसे एक नए डेटिंग ऐप ‘ग्राइंडर’ पर नजर पड़ी. उस ने तुरंत उस पर रजिस्टर कर अपना सेपरेट अकाउंट बना लिया. उस ऐप की खासियत यह थी कि वहां देसी लुक वाली लड़कियों की कई प्रोफाइल थी, जैसा वह चाहता था.

उस ने फटाफट कई लड़कियों को अपने अकाउंट से जुड़ने के लिए रिक्वेस्ट भेज दी. कुछ घंटे में ही कुछ का एक्सेप्टेंस भी आ गया. उन में उस ने एक को सेलेक्ट कर ओके कर दिया. फिर उस की चैटिंग के साथ डेटिंग शुरू हो गई.

2-4 दिनों की लुभावनी और मजेदार चैटिंग के बाद एक वीडियो आ गया. वीडियो खुदबखुद चल भी पड़ा. उसे देख कर उस के होश उड़ गए. दरअसल, वह एक गे सैक्स का वीडियो था. उस के 2 मिनट में खत्म होते ही एक मैसेज आया ‘न्यू ईयर पार्टी में आप का स्वागत है.’

कुछ सेकेंड में उस के पास एक काल आई, जिस में उसे बताया कि वह अगर थोड़े समय में पैसे कमाना चाहता है तो पार्टी में शामिल हो सकता है. पार्टी वर्चुअल भी होगी, लेकिन जूम ऐप पर सेलिब्रिटीज भी शामिल होंगे.

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उन के द्वारा ईनामी सवाल पूछे जाएंगे, जो कोरोना और लाइफस्टाइल से संबंधित होंगे. सही जवाब देने पर ईनाम की राशि पार्टी खत्म होते ही मिल जाएगी.

वशिष्ठ बगैर कुछ सोचविचार किए पार्टी में शामिल होने के लिए बताए गए उस पते पर चला गया, जहां एक फिक्स टाइम पर शाम के 8 बजे पार्टी का इंतजाम किया गया था.

बेसमेंट में बने छोटे से हाल में गिनती के 4-5 लोग थे. उन की वेशभूषा अजीबोगरीब थी. शोख अदाओं वाले फैशन में सजेसंवरे सभी उसी की उम्र के थे. उन के पहनावे न तो लड़कों जैसे थे और न ही लड़कियों जैसे. खैर, वशिष्ठ ने उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

कुछ मिनटों में ही वह समझ गया कि वह किसी गलत जगह आ गया है. दीवार पर टंगे टीवी के अलवा वहां स्टैंड पर कैमरे लगे थे. धीमी आवाज में म्यूजिक भी बज रहा था. 2 लड़के कैमरे के सामने टेबल पर चढ़ गए. म्यूजिक तेज हो गया.

टेबल से कुछ दूरी पर रखी कुरसियों पर बाकी लड़के बैठ गए. उन्होंने वशिष्ठ को बीच में बैठा लिया. उस के कंधे पर हाथ रख कर पकड़ बना ली. तब तक टेबल पर दोनों लड़के म्यूजिक की धुन पर डांस करने लगे थे.

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उन का डांस बेहद ही फूहड़ और अश्लील किस्म का था. वे कूल्हे मटकाने लगे थे और एकदूसरे के गले लगते हुए आपस में किस करना शुरू कर दिया था.

यह सब देख वशिष्ठ ने कुरसी से उठना चाहा, लेकिन दोनों लड़कों ने उस के कंधे को दबा कर बैठा दिया. इसी बीच डांस करते लड़कों ने अपनी शर्ट उतार कर वशिष्ठ की ओर फेंक दी, जिस से उस का चेहरा ढंक गया.

थोड़ी देर में वशिष्ठ दोनों लड़कों के बीच टेबल पर था और उस के कपड़े जबरन उतारे जाने लगे थे. उस ने चीखना चाहा. लड़कों को रोकना चाहा. लेकिन तेज म्यूजिक में उस की आवाज दब गई और अर्धनग्न लड़कों ने उस के अंगों को बेतरतीब ढंग से छूनासहलाना शुरू कर दिया था.

उस के बाद जो कुछ हुआ वह वशिष्ठ के शरीर और दिलोदिमाग दोनों पर चोट करने जैसा था. पीड़ा भी हुई. वह गे सैक्स के गिरोह का एक हिस्सा बन चुका था.

उस समय लड़कों ने उस का न केवल शारीरिक शोषण किया, बल्कि मानसिक तौर पर गे सैक्स के लिए प्रेरित भी किया. उस पर अप्राकृतिक सैक्स के लिए दबाव बनाया. इस के बदले में उस से पैसे मांगे. नहीं देने पर धमकियां दीं.

वास्तव में वशिष्ठ डेटिंग ऐप के जरिए गे सैक्स के गिरोह में फंस चुका था. उस से हर घंटे के हिसाब से एक हजार रुपए की मांग की गई थी. गिरोह की योजना के अनुसार उसे गे सैक्स के शौकीनों के पास भेजे जाने की थी. बदले में उसे भी पैसे मिलने के सब्जबाग दिखाए गए.

हालांकि उस रोज पैसा नहीं देने पर चारों युवकों ने उसे बुरी तरह पीटा. उस का फोन, पर्स और सोने की अंगूठी व सोने की चेन छीन ली. साथ ही आरोपी उसे धमका कर उस का एटीएम कार्ड ले कर उस का पिन भी ले लिया.

लड़कों ने जातेजाते उसे के साथ किए गए सैक्स की क्लिपिंग भी दिखा दी. धमकी दी कि उस के बुलावे पर नहीं आने की स्थिति में उस की क्लिपिंग को इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिया जाएगा.

बोरीवली का रहने वाला लुटापिटा वशिष्ठ किसी तरह से उन लड़कों के चंगुल से निकल पाया. घर पहुंच कर घर वालों को आपबीती बताई. घर वालों की पहल से वशिष्ठ के साथ हुए दुराचार की शिकायत थाना मालवानी पहुंची.

पुलिस ने इस मामले में तत्परता दिखाई. डीसीपी विशाल ठाकुर के निर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर शेखर भालेराव और हसन मुलानी ने अपनी जांच टीम के साथ 16 जनवरी, 2022 को तड़के मास्टरमाइंड समेत 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. इन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने इलेक्ट्रौनिक सर्विलांस का सहारा लिया.

आरोपियों को उसी दिन शाम को बोरीवली कोर्ट में पेश किया गया. यहां से कोर्ट ने उन्हें 3 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया.

उन से पूछताछ में पता चला कि यह गिरोह पिछले कई महीने से औनलाइन डेटिंग गे ऐप ‘ग्राइंडर’ के जरिए यह सैक्स रैकेट चला रहा था और ब्लैकमेलिंग भी करता था. पुलिस जांच में सामने आया है कि इन के क्लाइंट्स में कई हाईप्रोफाइल लोग भी शामिल हैं.

गिरफ्तार आरोपियों की पहचान इरफान फुरकान खान (26), अहमद फारुकी शेख (24) और इमरान शफीक शेख (24) के रूप में हुई. मामले के 2 अन्य आरोपी कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन्हें तलाश रही थी.

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आरोपी ऐप के माध्यम से ‘गे’ लोगों से संपर्क करते थे या फिर भोलेभाले लोगों को पैसे का लालच दे कर फंसाते थे. उन से पैसे ले कर सैक्स मुहैया कराने का वादा करते थे.

मुंबई में इस तरह का पहला मामला सामने आया था, जिस में गे सैक्स रैकेट के धंधे के साथसाथ लूटमार और वीडियो बना कर लोगों को ब्लैकमेल कर पैसे भी ऐंठने का काम किया जाता था.

पुलिस ने बताया कि ऐप डाउनलोड करने के बाद उस में पूरी डिटेल्स भरी जाती थी. उस के बाद एरिया के हिसाब से सभी समलैंगिक लड़के एकदूसरे के साथ जुड़ जाते थे. पहले बातचीत करते थे फिर मिल कर अनैतिक संबंध बनाते थे.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें फिर से कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

न्यायदंश – क्या दिनदहाड़े हुई सुनंदा की हत्या का कातिल पकड़ा गया?

लेखक-श्रीप्रकाश श्रीवास्तव

जेठ का महीना था. गरम लू के थपेड़ों ने आम लोगों का जीना मुहाल कर दिया था. ऐन दोपहर के वक्त लोग तभी घर से निकलते जब उन्हें जरूरत होती वरना अपने घर में बंद रहते. यही वक्त था जब 4 लोग सुनंदा के घर में घुसे. सुनंदा पीछे के कमरे में लेटी थीं. जब तक किसी की आहट पर उठतीं तब तक वे चारों कमरे में घुस आए. एक ने उन के पैर दबाए तो दूसरे ने हाथ. बाकी दोनों ने मुंह तकिए से दबा कर बेरहमी के साथ सुनंदा का गला रेत दिया. वे छटपटा भी न सकीं.

जब चारों आश्वस्त हो गए कि सुनंदा जिंदा नहीं रहीं तो इत्मीनान से अपने हाथ धोए. कपड़ों पर लगे खून के छींटे साफ किए. फ्रिज खोल कर मिठाइयां खाईं. पानी पीया और निकल गए. महल्ले में दोपहर का सन्नाटा पसरा हुआ था. इसलिए किसी को कुछ पता भी न चला.

हमेशा की तरह शाम को पारस यादव दूध ले कर आया. फाटक खोल कर अंदर घुसा, आवाज दी. कोई जवाब न पा कर बैठक में घुस गया. सुनंदा अमूमन बैठक में रहती थीं. जब वे वहां न मिलीं तो ‘दीदी, दीदी’ कहते इधरउधर देखते हुए बैडरूम में घुस गया. सामने का दृश्य देख कर वह बुरी तरह से घबरा गया. भाग कर बाहर आया. एक बार सोचा कि चिल्ला कर सब को बता दे, परंतु ऐसा न कर सका. शहर में रहते उसे इतनी समझ आ गई थी कि बिना वजह लफड़े में नहीं फंसना चाहिए. वह उलटेपांव घर लौट आया.

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इस हादसे की खबर उस ने अपनी बीवी तक को न दी. रहरह कर सुनंदा का विकृत चेहरा उस के सामने तैर जाता तो वह डर से सिहर जाता. रात भर वह सो न सका. उस के दिमाग में बारबार यही सवाल उठता कि आखिर 62 वर्ष की सुनंदा को इतनी बेरहमी से किस ने मारा? किस से उन की दुश्मनी हो सकती है? पिछले 40 साल से वह उन के घर में दूध दे रहा है. हिसाबकिताब की पक्की सुनंदा बेहद पाकसाफ महिला थीं. हां, थोड़ी तेज अवश्य थीं.

पिं्रसिपल होने के नाते सुनंदा के स्वर में सख्ती व कड़की दोनों थी. वे बिना लागलपेट के अपनी बात कहतीं. उन्हें इस बात की परवा नहीं रहती कि उन के कहे का दूसरों पर क्या असर पड़ेगा. उन के तल्ख स्वभाव ने उन्हें अपने सहकर्मियों के बीच भी अप्रिय बना दिया था. अध्यापिका थीं तब भी वे अपना लंच अकेले करतीं.

वे अविवाहित थीं. बालबच्चे वाले प्रेमशंकर के साथ रहने का फैसला उन का अपना था. अपने इस निर्णय पर वे अंत तक कायम रहीं.

प्रेमशंकर ने भी आखिरी दम तक उन का साथ निभाया. उन के बीवीबच्चे जानते थे कि सुनंदा के साथ उन का क्या संबंध है, परंतु प्रतिरोध नहीं किया. इस की सब से बड़ी वजह थी, प्रेमशंकर सुनंदा पर निर्भर थे. सुनंदा अपनी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा प्रेमशंकर के बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च कर देतीं. विरोध की जगह उलटे कभीकभार आ कर अपने आत्मीय होने का परिचय प्रेमशंकर की पत्नीबच्चे दे जाते. प्रेमशंकर अकसर रात सुनंदा के पास गुजारते. जहां भी जाना होता, सुनंदा के साथ जाते. रुसवाइयों से बेखबर प्रेमशंकर सुनंदा के पास समय गुजारते.

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सारा महल्ला जानता था कि प्रेमशंकर सुनंदा के लिए क्या हैं? शायद एक वजह यह भी थी सुनंदा के पासपड़ोसियों से कटने की.

सुनंदा जिस मकान में किराएदार थीं वह मकान उन के पिता के जमाने से चला आ रहा था. लगभग 75 सालों से वे मकान पर काबिज थीं. मांबाप के मरने व भाइयों के शादी कर दूसरे शहरों में बस जाने के बावजूद उन्होंने यह मकान खाली नहीं किया. चाहतीं तो अपना घर बनवा कर जा सकती थीं. लेकिन इस घर में उन के मांबाप रहे, यहीं वे पलीबढ़ीं, इसलिए इस घर से उन का भावनात्मक रिश्ता था. मकानमालिक विपिन नहीं चाहता था कि अब वे रहें. इस को ले कर अकसर दोनों में तकरार होती. आज की तारीख में वह मकान शहर के प्राइम लोकेशन पर था. खरीदार उस की मनमानी कीमत दे रहे थे, जो सुनंदा के लिए संभव न था. सुनंदा न वह मकान खरीद सकती थीं न छोड़ सकती थीं. किराया भी नाममात्र का था. सुनंदा ने मकान पर कब्जा कर लिया था और नियमानुसार मकान का किराया कचहरी में जमा करतीं. विपिन तभी से खार खाए बैठा था. इस के बावजूद उस ने हिम्मत न हारी. एक रोज आया, विनीत स्वर में बोला, ‘‘मैडम, आप अध्यापिका रह चुकी हैं. लोगों को नेकी के रास्ते पर चलने की शिक्षा देती हैं. क्या आप की शिक्षा में यही लिखा है कि किसी का हक मार लो?’’

‘‘हक तो आप ने मेरा मारा है?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘पिछले 75 सालों से रह रही हूं. इतना किराया दे चुकी हूं कि इस मकान पर मालिकाना हक हमारा बनता है.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे हक बनता है?’’ विपिन बोला, ‘‘आप किराएदार थीं न कि मकानमालिक बनने आई थीं. इतने साल मेरे घर का उपभोग किया. उपभोग की कीमत आप ने दी, न कि इस जमीन व ईंट सीमेंट के बने मकान की?’’

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‘‘आप जो समझिए, मैं जीतेजी इस मकान को खाली नहीं करूंगी.’’

‘‘किसी की जमीन हड़पना आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने हड़पा कहां है, मरने के बाद आप की ही है.’’

‘‘तब तक मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं?’’

‘‘यह आप जानें,’’ सुनंदा किचन में चली गईं. विपिन को नागवार लगा.

एक दिन सुनंदा ने पुलिस को बुला लिया. उन का आरोप था कि मकानमालिक ने बिजली काट दी है. सुनंदा के साथ प्रेमशंकर भी बैठे थे.

‘‘कनैक्शन क्यों काटा?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘एक साल से ये बिजली का बिल नहीं दे रहीं,’’ मकानमालिक बोला.

‘‘क्या यह सही है, मैडम?’’ इंस्पैक्टर सुनंदा की तरफ मुखातिब हुआ.

‘‘यह सरासर झूठ बोल रहा है,’’ सुनंदा उत्तेजित हो गईं.

‘‘अभी पिछले महीने मैं ने इसे 200 रुपए बिजली के बिल के लिए दिए थे,’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘आप कौन हैं?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

प्रेमशंकर बगलें झांकने लगे. तब मकानमालिक बोला, ‘‘ये पिछले 30 साल से यहां आ रहे हैं.’’

‘‘क्या रिश्ता है आप का इन से?’’ इंस्पैक्टर ने प्रेमशंकर से पूछा.

‘‘आप से मतलब?’’ सुनंदा झुंझलाईं.

‘‘मतलब तो नहीं है, फिर भी पुलिस होने के नाते यह जानना मेरा पेशा है,’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘बेमतलब की बात छोडि़ए. इन से कहिए कि कनैक्शन जोड़ दें,’’ प्रेमशंकर सिगरेट की राख झटकते हुए बोले.

‘‘मैं नहीं जोड़ूंगा. पिछले साल भर का बकाया चुकता करें.’’

‘‘झूठा, बेईमान,’’ सुनंदा चिल्लाईं.

‘‘चिल्लाइए मत,’’ इंस्पैक्टर ने डंडा हिलाया.

‘‘डंडा नीचे रख कर बात कीजिए. मैं कोई चोरउचक्की नहीं,’’ सुनंदा ने आंखें तरेरीं, ‘‘एक सम्मानित स्कूल की प्रिसिंपल हूं.’’

‘‘बेहतर होगा कि आप अपनी जबान को लगाम दें.’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘मैं लगाम दूं और यह झूठ पर झूठ बोलता जाए.’’

‘‘क्या सुबूत है कि आप सच बोल रही हैं?’’ इंस्पैक्टर का स्वर तल्ख था.

‘‘सच बोलने के लिए किसी सुबूत की जरूरत नहीं होती. किसी से पूछ लीजिए, मेरे ऊपर किसी की फूटी कौड़ी भी बकाया है?’’

‘‘मकानमालिक का तो है?’’ इंस्पैक्टर बोला.

‘‘तमीज से बात कीजिए. आप कैसे कह सकते हैं?’’ सुनंदा बोलीं.

‘‘मैं नहीं, मकानमालिक कह रहा है.’’

‘‘आप मकानमालिक की पैरवी करने आए हैं या हल निकालने?’’

‘‘हम जो कुछ करेंगे कानून के दायरे में करेंगे. जबरदस्ती बिजली कनैक्शन दिलाना हमारे दायरे में नहीं आता. बेहतर होगा, आप दूसरा मकान ढूंढ़ लें,’’ इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप एक समझदार महिला हैं. किसी के घर पर कब्जा करना क्या आप को शोभा देता है?’’

‘‘मैं ने कब्जा किया है? मैं किराया बराबर देती हूं.’’

‘‘न के बराबर. फिर मकानमालिक नहीं चाहता तो छोड़ दीजिए मकान.’’

‘‘अपने जीतेजी यह मकान नहीं छोड़ूंगी,’’ सुनंदा भावुक हो उठीं. प्रेमशंकर ने बात संभाली. उस ने इंस्पैक्टर को बताया कि वे मकान क्यों नहीं छोड़ना चाहतीं, जबकि शहर में उन की खुद की जमीन है. वस्तुस्थिति जानने के बाद इंस्पैक्टर को सुनंदा से सहानुभूति तो हुई फिर भी इतने भर के लिए वह किसी के मकान पर इतने सालों से काबिज हैं, यह उस की समझ से परे था.

लाखों लोग बंटवारे के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ कर भारत चले आए. अगर सब ऐसा ही सोचते तो हो चुकती सुलह. इंस्पैक्टर को सुनंदा की भावुकता बचकानी लगी. इस उम्र में भी परिपक्वता का अभाव दिखा. सुनंदा उसे घमंडी, नकचढ़ी, बदमिजाज और एक अव्यावहारिक महिला लगीं.

उस रोज कुछ नहीं हुआ. आपसी सहमति से कुछ बन पड़ता तो ठीक था, जबरदस्ती तो वह बिजली जोड़ नहीं सकता था. दूसरे जिस तरीके से सुनंदा पेश आईं, इंस्पैक्टर को वह नागवार लगा.

इंस्पैक्टर थाने लौट आया. मकानमालिक खुश था. उसे विश्वास था कि बगैर बिजली सुनंदा ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएंगी. उन लोगों के बीच प्रेमशंकर ने भले ही सुनंदा की हां में हां मिलाई, पर अंदर ही अंदर वे चाहते थे कि सुनंदा यह घर कुछ लेदे कर छोड़ दें. वैसे भी महल्ले में लोग उन्हें भेद भरी नजरों से देखते हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगता. लड़ाईझगड़े की स्थिति में उन की स्थिति और भी खराब हो जाती. उन से सफाई देते नहीं बन पाता कि आखिर अपने व सुनंदा के बीच के संबंधों को वे किस रूप में दर्शाएं. एक दिन क्रोध में आ कर मकानमालिक की बीवी ने कह दिया था कि आप से इन का रिश्ता क्या है जो इन की तरफ से बोलते हैं? तब प्रेमशंकर से जवाब देते न बना था. सुनंदा ने तूतूमैंमैं कर के उस का मुंह बंद कर दिया था.

प्रेमशंकर पर सुनंदा के बड़े एहसान थे. उस के घर का सारा खर्चा वही चलातीं. जमीन भी प्रेमशंकर के नाम खरीदी. बीमा की सारी पौलिसियों में नौमिनी प्रेमशंकर को बनाया था. एक दिन मौका पा कर प्रेमशंकर ने अपने मन की बात कही. सुनंदा ने दोटूक शब्दों में प्रेमशंकर की बोलती बंद कर दी, ‘‘तुम्हें दिक्कत होती है तो मत रहो मेरे साथ. मैं बाकी जिंदगी किसी तरह काट लूंगी. पर यह मकान नहीं छोड़ूंगी.’’

प्रेमशंकर एहसानफरामोश नहीं थे. जिस के साथ जवानी गुजारी उस का बुढ़ापे में साथ छोड़ना उन्हें गवारा न था.

‘‘हमारी उम्र हो चली है. तुम हर महीने कोर्ट में किराया जमा करने जाती हो. क्या कोर्टकचहरी अब संभव है?’’ प्रेमशंकर बोले.

‘‘मेरे लिए संभव है. उस ने मेरे साथ ज्यादती की है. मैं इसे नहीं भूल सकती,’’ सुनंदा जिद्दी थीं. प्रेमशंकर की उन के आगे एक न चली.

इधर, मकानमालिक इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘सर, आप सोच सकते हैं कि वह कैसी मगरूर महिला है. जिस मकान का किराया 5 हजार रुपए होना चाहिए उस का सिर्फ 500 रुपए देती है.’’

‘‘वह तो ठीक है. औरत का मामला है, इसलिए मैं ज्यादा जोरजबरदस्ती नहीं कर सकता,’’ इंस्पैक्टर बोला. कुछ देर सोचने के बाद फिर बोला, ‘‘मकान बेच क्यों नहीं देते?’’

‘‘बापदादाओं का मकान बेचने का दिल नहीं है.’’

‘‘और कोई चारा नहीं?’’

‘‘खरीदेगा कौन? किराएदार के रहते कोई जल्दी हाथ नहीं लगाएगा.’’

‘‘किसी दबंग को बेच दो. थोड़ा कम दाम देगा मगर मुक्ति तो मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर की राय उसे माकूल लगी. मकानमालिक ने घर आ कर अपनी पत्नी से रायमशविरा किया. पत्नी भी बेमन से तैयार हो गई.

2 करोड़ रुपए के मकान का आधे दाम में सौदा हुआ. गुड्डू सिंह ठेकेदार ने वह मकान खरीद लिया. गुड्डू सिंह ने पहले तो मिन्नतें कीं. सुनंदा जब नहीं मानीं तो थाने जा कर 5 लाख रुपए इंस्पैक्टर को दे दिए. 2 दिन बाद खबर आई कि कुछ गुंडों ने सुनंदा का गला रेत कर उन की हत्या कर दी. होहल्ला मचा. कुछ संगठनों ने विरोध में जुलूस निकाला. भाषणबाजी हुई.

संपादकों ने एक अकेली महिला की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा संपादकीय लिखा. दोचार दिन खबरें छपीं. असली हत्यारा लापता रहा. पुलिस ने प्रेमशंकर को गिरफ्तार किया क्योंकि इस हत्या से सीधेसीधे लाभ उन्हीं को मिला. बीमा की राशि मिली. जमीन तो उन के नाम थी ही. बैंक एफडी के भी वारिस प्रेमशंकर थे. अंत में न कुछ निकलना था, सो न ही निकला. इंस्पैक्टर ने नाटे यादव नामक हिस्ट्रीशीटर को इस हत्या का जिम्मेदार मान कर झूठी रिपोर्ट दर्ज कर ली, ताकि जनता व मीडिया चुप हो जाए.

नाटे यादव की खोज की खबरें रोज अखबार में आने लगीं. 1 महीना बीत जाने के बाद भी जब नाटे यादव गिरफ्तार नहीं हुआ व अखबार पुलिसिया कार्यशैली पर सवाल उठाने लगे तो एक रोज खबर छपी कि पुलिस मुठभेड़ में नाटे यादव मारा गया. उस के एनकाउंटर से भले ही जनता को संतोष हुआ हो कि सुनंदा के साथ न्याय हुआ, फिर भी यह सवाल हमेशा के लिए सवाल ही रह गया कि क्या नाटे यादव ने ही सुनंदा का कत्ल किया था? कोयला माफिया गुड्डू सिंह उस मकान को गिरवा कर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनवाने लगा.

सत्यकथा: कुश्ती अकेडमी बनी मौत का अखाड़ा

—शाहनवाज 

हरियाणा के सोनीपत से 10 नवंबर, 2021 की दोपहर करीब साढ़े 3 बजे एक खबर वायरल हुई, जिस ने लोगों को सकते में डाल दिया. खबर ऐसी थी जिस पर भरोसा करना आसान नहीं था.

दरअसल, सोनीपत से रेसलर निशा दहिया की हत्या की खबर सुन कर लोग हैरान हो गए थे. खबर सिर्फ निशा दहिया की हत्या के बारे में नहीं थी, बल्कि निशा के साथसाथ उस के भाई और उस की मां को गोली लगने की भी बात वायरल हुई थी. यही नहीं, इस खबर के जिस हिस्से ने लोगों के बीच दहशत मचा दी थी वह यह थी कि हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि निशा की अकेडमी का कोच था.

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निशा दहिया की हत्या की खबर इतनी तेजी से वायरल हुई कि देखते ही देखते ये खबर टीवी चैनलों पर दिखाई जाने लगी. लोगों के लिए यह खबर इसलिए भी हैरान करने वाली थी क्योंकि हत्या के महज 2 दिन पहले ही निशा ने सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड शहर में हुई अंडर23 रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत कर देश का नाम ऊंचा किया था.

निशा ने इस प्रतियोगिता में 65 किलोग्राम वर्ग में भाग लिया था और तीसरा स्थान प्राप्त किया था. जिस के बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें और बाकी विजेता खिलाडि़यों को ट्वीट कर मुबारकबाद दी थी.

लोग यह सोच कर हैरानपरेशान थे कि जिस खिलाड़ी ने अनेक बार विदेश में देश के तिरंगे का सम्मान ऊंचा किया, उसी के कोच ने ही उस की हत्या क्यों कर दी.

लेकिन उसी दिन शाम के करीब 7 बजे इंस्टाग्राम पर निशा की आईडी से एक विडियो अपलोड हुआ, जिसे देख कर लोग फिर से हैरत में पड़ गए थे. दरअसल, उस विडियो में इंटरनैशनल रेसलर निशा दहिया ही दिखाई दी. निशा के साथ नामचीन रेसलर साक्षी मलिक भी थी.

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निशा ने अपने इस विडियो में कहा, ‘मेरा नाम निशा है और मैं सीनियर नैशनल खेलने गोंडा आई हूं. मेरी हत्या की न्यूज झूठी है. मैं बिलकुल ठीक हूं.’

निशा के द्वारा पोस्ट किए गए इस विडियो से यह तो साफ हो गया था कि लोग हत्या की खबर सुन कर जिस निशा के बारे में सोच रहे थे, वह वो नहीं थी. लेकिन रेसलर निशा दहिया की हत्या की खबर झूठी भी नहीं थी.

निशा के विडियो पोस्ट करने के बाद सोनीपत के एसपी राहुल शर्मा ने भी आधिकारिक रूप से बयान दिया, ‘‘यह निशा दहिया (जिन की गोली मार कर हत्या की गई) और पदक विजेता पहलवान निशा दहिया 2 अलगअलग लड़कियां हैं. पदक विजेता पहलवान पानीपत की हैं और अभी एक कार्यक्रम में गोंडा गई हुई हैं.’’

अब लोगों के बीच सवाल यह था कि अगर इंटरनैशनल रेसलर निशा दहिया ने विडियो पोस्ट कर अपनी सलामती की जानकारी दी थी तो वो कौन निशा थी जिस की हत्या हुई?

बाद में पता चला कि निशा दहिया नाम की जिस पहलवान की हत्या हुई है, वह सोनीपत की रहने वाली है और वह विश्वविद्यालय स्तर की पहलवान है.

10 नवंबर, 2021 के दिन हरियाणा के सोनीपत में एक छोटे से गांव खरखौदा में 21 वर्षीय निशा दहिया सुबह 10 बजे अपने गांव से 14 किलोमीटर दूर हलालपुर में पहलवानी की ट्रेनिंग के लिए घर से निकली थी.

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घर से निकलने से पहले उस ने नाश्ता किया. क्योंकि उस की दिलचस्पी रेसलिंग में बहुत पहले से थी तो वह घर से ट्रेनिंग के लिए निकलने से पहले भारीभरकम नाश्ता कर के निकलती थी.

हालांकि वह अकसर अपने घर से ट्रेनिंग के लिए सुबहसुबह ही निकल जाया करती थी, लेकिन 10 नवंबर, 2021 के दिन अकेडमी के कोच पवन कुमार ने उसे थोड़ा लेट बुलाया था.

पवन अकसर निशा को एक्स्ट्रा ट्रेनिंग के लिए अलग से बुला लिया करता था.  उस दिन जब निशा घर से देर से निकली तो निशा की मां धनपति की चिंता उस के लिए बढ़ने लगी थी. लेकिन वह बेटी के प्रति ज्यादा चिंता न करते हुए अपने दैनिक कामों में व्यस्त हो गईं.

निशा का जन्म हरियाणा के एक छोटे से गांव में बेहद आम परिवार में हुआ. निशा के पिता दयानंद दहिया सीआरपीएफ के जवान हैं और इस समय जम्मू में तैनात हैं. पत्नी धनपति देवी के अलावा इन के 2 ही बच्चे थे. बेटा सूरज दहिया और बेटी निशा. निशा की दिलचस्पी पहलवानी में बचपन से ही थी.

बचपन में स्कूल में दोस्तों के साथ उस के खेल भी उसी तरह के पहलवानी वाले ही हुआ करते थे. लेकिन उस की दिलचस्पी को उड़ान 2 साल पहले उस समय मिली, जब खरखौदा गांव के नजदीक हलालपुर गांव में पहलवानी के लिए कोच पवन ने अकेडमी खोली. उस ने इस का नाम ‘सुशील कुमार अकेडमी’ रखा.

इस अकेडमी के उद्घाटन के लिए खुद रेसलर सुशील कुमार पहुंचे थे और यह बात आसपास के इलाकों में आग की तरह फैल गई थी.

यह अकेडमी उस के घर से करीब 10 किलोमीटर दूर थी. निशा ने इस अकेडमी में प्रवेश ले लिया था. वह गांव से बस द्वारा करीब 25 मिनट में अकेडमी पहुंच जाती थी. हलालपुर में ‘सुशील कुमार अकेडमी’ के नाम से पवन कुमार की इस अकेडमी की जगह काफी बड़ी थी.

अकेडमी में प्रवेश करने के बाद देसी अखाड़े के लिए एक खुला ग्राउंड था, जिस के बाद प्रोफेशनल ट्रेनिंग के लिए अंदर छत के नीचे एक बड़ा सा रिंग भी बनाया गया था.

रोजाना की तरह निशा 10 नवंबर, 2021 को भी अकेडमी पहुंची. अकेडमी पहुंच कर निशा ने देखा कि वहां बेहद कम ही लोग मौजूद थे, जिस में कोच पवन, उस के कुछ दोस्त, जिस में सचिन दहिया और विक्रम थे.

उन के साथ पवन की पत्नी सुजाता, पवन का साला अमित मौजूद था. वे सभी अकेडमी में खुले आसमान के नीचे आपस में बातचीत कर रहे थे.

निशा को यह देख कर अजीब लगा कि उस दिन सुजाता भी अकेडमी में मौजूद थी. क्योंकि जब से अकेडमी खुली थी, लगभग तभी से पवन की पत्नी सुजाता ने कभी भी अकेडमी में कदम नहीं रखा था. यही नहीं पवन के वे दोस्त जो मुश्किल से कभीकभार ही अकेडमी में दिखाई देते थे, वो भी उस दिन वहां थे.

यह सब देख कर निशा को दाल में कुछ काला होने की आशंका हुई. लेकिन फिर भी उन्हें अनदेखा करते हुए वह कोच के पास गई और बोली, ‘‘जी सरजी, आज कौन सी प्रैक्टिस करनी है?’’

पवन जो अपने दोस्तों के साथ बात कर रहा था, उस ने निशा के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘पहले वार्मअप करना है. अपनी डेली एक्सरसाइज कर के मुझे अंदर रिंग में मिलो.’’

निशा ने बिना रेसलिंग सूट पहने अपने ट्रैक सूट में ही वार्मअप करना शुरू कर दिया. करीब आधे घंटे तक वार्मअप करने के बाद जब निशा अंदर रेसलिंग रिंग में पहुंची तो उस ने देखा कि वहां पर उस के कोच के साथ उस के दोस्त सचिन और अमित भी मौजूद थे. और उसी रूम के किनारे पत्नी सुजाता और उस का साला भी था.

उन्हें देख कर निशा कुछ पलों के लिए घबरा गई, क्योंकि जब से उस ने अकेडमी जौइन की थी तब से उसे इस तरह से किसी ने नहीं घूरा था, जिस तरह से उस दिन उसे बाकी लोग घूर कर देख रहे थे.

निशा कमरे में अंदर आई तो पवन ने तेज आवाज में उस पर चीखना शुरू कर दिया. वह बोला, ‘‘मैं ने तुझे मना किया था न किसी को भी बताने के लिए. फिर भी तेरा मुंह कैसे खुल गया, बता.’’

कोच की इस तीखी जोरदार आवाज सुन कर निशा कुछ पलों के लिए डर सी गई. वह एक ही जगह पर मानो पुतले सी हो गई थी. लेकिन कुछ पलों के बाद ही उस के दिमाग ने कोच से डरना छोड़ दिया था.

निशा ने साहस दिखाते हुए इतने लोगों के बीच में अपने कोच का विरोध करते हुए कहा, ‘‘के कर लेगा? एक तो ट्रेनिंग के बहाने मुझ से छेड़छाड़ करे है, ऊपर से सोचे है कि तेरी शिकायत भी ना करूं.’’

ये सुन कर पवन ने अपने कान झटके, जैसे मानो उसे अपने कानों पर यकीन न हो रहा हो. उस ने बिना निशा को जवाब दिए अपनी जेब से फोन निकाला, नंबर ढूंढा और अपने कान पर लगाया.

दूसरी तरफ से फोन उठा तो पवन बोला, ‘‘तुम्हारी बेटी की तबियत खराब हो गई है. उसे अकेडमी से आ कर ले जाओ.’’

यह सुन कर निशा के दिलदिमाग में एक तरफ गुस्सा उफान मार रहा था तो दूसरी तरफ वह डर भी रही थी कि अब आगे उस के साथ क्या होगा?

दरअसल, पवन ने निशा के घर पर फोन किया था जोकि उस की मां धनपति ने उठाया था. धनपति पवन की बात सुन कर अपनी बेटी की फिक्र में रोने लगीं. धनपति को रोता देख बेटे सूरज ने मां को सहारा दिया और उन से पूछा कि क्या बात हो गई?

जब धनपति ने अपने बेटे को निशा और पवन की बात बताई तो सूरज को भी अपनी बहन की फिक्र होने लगी. सूरज ने बिना देर किए अपनी मां को बाइक पर बिठाया और तुरंत हलालपुर में अकेडमी के लिए निकल गया. सूरज ने इतनी तेज गति से बाइक चलाई कि 25 मिनट के सफर को महज 10 मिनट में पूरा कर लिया.

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इधर अकेडमी में निशा का झगड़ा पवन और उस के साथ बाकी लोगों से लगातार हो ही रहा था. जब सूरज और धनपति अकेडमी पहुंचे और वे मेनगेट से अंदर घुसे तो उन्होंने कुछ ऐसा देखा, जो कभी सपने में भी नहीं सोचा था. उन्होंने देखा कि निशा पवन और उस के बाकी साथियों से अपनी जान बचाने के लिए ग्राउंड में इधर से उधर भाग रही है.

लेकिन तभी पवन ने जब धनपति और सूरज को अकेडमी में अंदर आते हुए देखा तो उस ने निशा के पीछे भागना बंद कर दिया. उस ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और निशा पर लगातार गोलियां दागनी शुरू कर दीं.

पवन का निशाना अचूक था. उस की पिस्तौल से निकली एक भी गोली बेकार नहीं गई. निशा पर 4 राउंड की फायरिंग करने के बाद पवन ने अपना रुख धनपति और सूरज की ओर किया. धनपति ने अपनी आंखों से अपनी बेटी को गोली लगते हुए देखा, लेकिन अफसोस वह अपनी बेटी को बचा नहीं पाईं.

खतरे की परवाह किए बगैर धनपति अपनी जख्मी बेटी की ओर भाग कर पहुंचना चाहती थीं कि इस से पहले ही पवन उन दोनों के बीच आ खड़ा हुआ और उस ने धनपति पर पिस्तौल का निशाना लगा दिया.

यह देख कर धनपति अपनी जान बचाने के लिए उल्टा भागने लगी लेकिन पवन की पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो जा कर सीधे धनपति को लग गई.

गोली लगने से धनपति जमीन पर गिर पड़ीं. पवन को लगा कि वह भी मर जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पवन की गोली से धनपति सिर्फ घायल हुई थीं.

इसी दौरान जब सूरज ने अपनी मां पर पवन के द्वारा फायर किए जाने की घटना देखी तो वह सकते में आ गया था. जवान हट्टाकट्टा होने की वजह से वह तेजी से भाग कर अकेडमी से बाहर निकल गया.

उसे भागता हुआ देख पवन और सचिन उस के पीछे भागे और उसे जान से मारने के लिए उस का पीछा करने लगे. अफसोस सूरज ज्यादा तेज भागने के बावजूद पवन की गोली से तेज नहीं भाग पाया. अकेडमी के किनारे नहर की ओर करीब 500 मीटर भागने के बाद पवन ने सूरज पर गोली चला दी. सूरज पर 3 राउंड फायरिंग करने के बाद बाइक पर सवार पवन और सचिन वहीं से फरार हो गए. गोली लगने से सूरज की मौत हो गई.

एक ही परिवार में 2 लोगों को जान से मारने और एक को जख्मी करने के बाद अकेडमी में सुजाता समेत बाकी लोग भी वहां से फरार हो गए.

यह पूरी घटना मात्र 5 मिनट के अंदर घटी. गोलियों की आवाजें सुन कर जब तक आसपास के गांव वाले अकेडमी तक पहुंचे, तब तक सभी आरोपी वहां से फरार हो गए थे.

गांव वालों ने इस की सूचना पुलिस को दी और स्थानीय पुलिस तुरंत मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने घायल पड़ी धनपति को अस्पताल पहुंचाया. फिर सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी. पुलिस ने काररवाई करते हुए पवन और उस के बाकी साथियों के खिलाफ हत्या की धाराओं में केस दर्ज कर लिया.

इस घटना के बाद 10 नवंबर, 2021 की रात को गुस्साए गांव वालों ने पवन की अकेडमी पर हमला कर दिया. हलालपुर गांव के निवासियों ने पीडि़ता को न्याय दिलवाने की मांग करते हुए पवन की अकेडमी जला कर राख कर दी.

गांव वालों का इस कदर पवन की अकेडमी पर गुस्सा फूटना लाजिमी था, क्योंकि पवन हलालपुर गांव में एक गुंडे के अलावा और कुछ नहीं था.

यहां तक कि जिस जमीन पर उस ने अपनी अकेडमी खोली थी, वह उस की खुद की नहीं थी. बल्कि उस के रिश्तेदार धर्मवीर की थी. लेकिन पवन ने जबरदस्ती हथियार के दम पर उन की इस जमीन पर कब्जा कर लिया था. जिस का वह अपने रिश्तेदार को किराया भी नहीं देता था. गांव वाले पवन और उस की हरकतों से बेहद परेशान हो गए थे.

वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो गए थे. इस की सूचना हरियाणा पुलिस ने दिल्ली पुलिस को भी दे दी थी. इसलिए दिल्ली पुलिस भी अलर्ट गई थी. इस के लिए दिल्ली पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था.

मुखबिरों की सूचना के आधार पर दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने पहलवान निशा दहिया और उस के भाई की हत्या के मामले में 12 नवंबर, 2021 को 2 आरोपियों को दिल्ली के द्वारका इलाके से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों की पहचान हरियाणा के रोहतक निवासी पवन कुमार उर्फ कोच और उस के दोस्त सोनीपत निवासी सचिन दहिया के रूप में की.

पवन के पास से पुलिस ने एक लाइसैंसी पिस्तौल बरामद की, जिस से उस ने निशा और उस के भाई सूरज की हत्या की थी. दिल्ली पुलिस ने दोनों आरोपियों को हरियाणा पुलिस के हवाले कर दिया.

वहीं हरियाणा पुलिस घटना के एक दिन बाद 11 नवंबर को ही पवन की पत्नी सुजाता और उस के भाई अमित को हिरासत में ले चुकी थी. पुलिस ने अगले दिन इन दोनों को कोर्ट में भी पेश किया, जिस के बाद सुजाता को पुलिस ने एक दिन की रिमांड पर लिया तो उस के साले अमित को 3 दिनों की रिमांड पर लिया गया.

पुलिस ने कोर्ट से सुजाता की 3 दिन की रिमांड मांगी थी और अमित की 5 दिन की, लेकिन कोर्ट ने सुजाता की एक दिन की और अमित की 3 दिनों की रिमांड मंजूर की थी.

सोनीपत में सुशील कुमार अकेडमी में हमलावरों ने गोलीबारी कर विश्वविद्यालय स्तर की पहलवान निशा दहिया और उस के भाई की हत्या की जबकि उस की मां घायल हो गई थीं.

मामले में अब तक पुलिस ने निशा दहिया के कोच पवन और उस की पत्नी समेत 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था. इस मामले में पांचवीं गिरफ्तारी विक्रम के रूप में हुई.

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मूलरूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के रहने वाले विक्रम ने पूछताछ में बताया कि हत्याओं के बाद सबूत मिटाने के मकसद से अकेडमी में लगे सीसीटीवी कैमरे की डीवीआर यानी डिजिटल वीडियो रिकौर्डर को वह पास के एक नाले में फेंक आया था. पुलिस ने उस रिकौर्डर को तलाश करने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई.

अब तक की पुलिस जांच में सामने आया है कि आरोपी कोच पवन मृतक निशा के घर वालों से कोचिंग के नाम पर 8 लाख रुपए वसूल चुका था. मृतका के पिता का आरोप है कि पवन ने निशा का ब्रेनवाश कर के पैसे हड़प लिए थे. वहीं निशा की मां ने पुलिस को दिए बयान में कहा कि आरोपी उस की बेटी के साथ छेड़छाड़ करता था.

11 नवंबर को सोनीपत के सिविल अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद निशा और सूरज के शवों को उन के घर लाया गया. शवों के पहुंचते ही पूरे गांव में गमगीन माहौल हो गया था. पूरे गांव के लोग निशा के घर इकट्ठे हो चुके थे. चूंकि निशा दहिया एक उभरती हुई खिलाड़ी थी, इसलिए गांव वालों की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

आक्रोश में आ कर गांव वाले कोई ऐसा कदम न उठा लें, जिस से क्षेत्र में अशांति पैदा हो जाए, इसलिए एसपी ने स्थानीय पुलिस के साथ गांव में सीआरपीएफ भी तैनात कर दी थी.

सत्यकथा: दोस्त को दी पति की सुपारी

राईटर  —वेणीशंकर पटेल ‘ब्रज’ 

मध्य प्रदेश के जबलपुर के पास पनागर थाना क्षेत्र में एक छोटा सा गांव है मछला. जिस की आबादी बमुश्किल एकडेढ़ हजार होगी. इसी गांव में 40 साल का नरेश मिश्रा अपनी पत्नी ऊषा और 13 साल के बेटे के साथ रहता है.

10 जनवरी, 2021 की शाम करीब सवा 7 बजे नरेश अपनी बोलेरो ले कर घर पहुंचा. घर के सामने खाली जगह में गाड़ी खड़ी कर वह घर के अंदर जाने के बजाय बाहर जाने को हुआ तो पत्नी ऊषा ने टोक दिया, ‘‘कहां जा रहे हो, पहले हाथमुंह धो कर खाना खा लो, फिर बाहर जाना.’’

‘‘मुझे अभी भूख नहीं है, मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’ नरेश इतना कह कर घर से बाहर निकल गया.

ऊषा नरेश की रोजाना की आदत को जानती थी, उसे पता था कि नरेश गांव के नशेड़ी युवकों के साथ बैठ कर शराब पिएगा और आधी रात को लड़खड़ाते हुए घर वापस आएगा. लिहाजा वह नरेश की बात को अनसुना कर अपने कामों में लग गई.

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10 जनवरी की शाम घर से निकला नरेश उस रात घर वापस नहीं आया तो दूसरे दिन अलसुबह ऊषा ने इस की जानकारी अपने पड़ोसियों को दी. पड़ोसी भी नरेश की हरकतों से वाकिफ थे. उन्होंने ऊषा से कहा, ‘‘रात में ज्यादा टिका ली होगी तो कहीं सो गया होगा. जब होश आएगा तो खुदबखुद आ जाएगा.’’

जब दोपहर होने तक भी नरेश घर नहीं लौटा और न ही उस का कोई पता चला तो 11 जनवरी की शाम को ऊषा ने पनागर पुलिस थाने में जा कर उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराई.

ऊषा ने पुलिस को बताया कि उस का पति नरेश मिश्रा खेतीकिसानी के साथ खुद की बोलेरो चलाता है. उस ने हाल ही में आधा एकड़ खेत बेच कर बोलेरो खरीदी थी. गांव में उस की सोहबत ठीक नहीं है. अकसर गांव के लड़कों से उस का झगड़ा होता रहता है.

ऊषा ने बताया कि 10 जनवरी को भी नरेश का गांव के बाहर बनी पुलिया पर गांव के युवकों से विवाद हो गया था, उस झगड़े के बाद से उस का पता नहीं चल रहा है. उसे अंदेशा है कि कोई उसे शराब पिला कर कोई अनहोनी न कर दे. पनागर पुलिस थाना के टीआई ने ऊषा की सूचना दर्ज करते हुए जल्द ही उसे खोजने का भरोसा दिया.

12 जनवरी की सुबह पनागर पुलिस थाने के टीआई आर.के. सोनी नरेश मिश्रा की गुमशुदगी की जांच कर ही रहे थे कि उन के मोबाइल पर घंटी बज उठी. जैसे ही काल रिसीव की दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘साब, मैं मछला गांव से सुखचैन गोंटिया बोल रहा हूं, गांव के नरेश मिश्रा का कटा हुआ सिर मछला गांव से 50 मीटर दूर बेलखाड़ू रोड पर उस के ही भतीजे अशोक के खेत में पड़ा हुआ है.’’

टीआई जानते थे कि नरेश मिश्रा का भतीजा अधारताल सीएसपी के यहां रीडर है. इस बजह से उन्होंने इस सूचना पर तत्काल एक्शन लेते हुए पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दे दी. इस के बाद पनागर पुलिस टीम, एफएसएल, डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच गई.

पुलिस टीम ने देखा कि सिर को किसी चीज से बेरहमी से कुचला गया था. पुलिस टीम ने धड़ की तलाश शुरू कर दी. आसपास के इलाकों की सघन चैकिंग के दौरान खून के दागधब्बों के निशान देख कर आखिरकार पुलिस धड़ को खोजने में भी कामयाब हो गई.

दोपहर में 100 मीटर दूर रोड के दूसरी ओर धड़ मिल गया. धड़ के पास काफी खून फैला हुआ था. खून छिपाने के लिए उस पर मिट्टी डाल दी गई थी. पनागर पुलिस ने अनुमान लगाया कि जहां धड़ मिला है, वहां पर ही घटना को अंजाम दिया गया होगा. उस के जांघ व सिर पर भी वार करने के निशान मिले.

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गांव के खेत में कटा सिर मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई और लोगों की भीड़ उसे देखने जमा हो गई थी. गांव के लोगों ने कपड़ों के आधार पर पहचान कर इस बात की पुष्टि कर दी कि धड़ भी नरेश मिश्रा का ही है.

इसी बीच नरेश की पत्नी ऊषा भी खबर लगते ही खेत पर पहुंच गई और नरेश मिश्रा के सिर और धड़ के पास जा कर जोरजोर से रोने लगी. किसी तरह गांव के लोगों ने उसे समझाबुझा कर वहां से दूर किया. सिर को ले कर 2 तरह की बातें सामने आ रही थीं. सिर या तो वहां आरोपी ने जानबूझ कर पुलिस को भ्रमित करने के लिए फेंका होगा या फिर किसी जानवर ने वहां खींच कर पहुंचा दिया होगा. सिर व धड़ को बेरहमी से कुल्हाड़ी से काट कर अलग करने की बात कही जा रही है. घटनास्थल पर शराब की खाली बोतल भी मिली थी.

जबलपुर जिले में इस से पहले तिलवारा में इसी तरह सिर काट कर हत्या करने का सनसनीखेज मामला सामने आ चुका था. तिलवारा में प्रेम विवाह से नाराज धीरज शुक्ला ने 11 मार्च, 2021 को जीजा विजेत कश्यप की कुल्हाड़ी से गरदन उड़ा दी थी और बोरी में सिर ले कर वह खुद ही तिलवारा थाने पहुंच गया था.

इसी तरह 28 नवंबर, 2021 को परासिया झिरी गांव में 60 साल के गया प्रसाद कुसराम की गरदन काट कर हत्या कर दी गई. उस की गरदन 30 नवंबर को एक किलोमीटर दूर पुराने शमशान घाट में जमीन में गड़ी मिली थी.

इस तरह की तीसरी वारदात होने से जबलपुर जिले के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा, एडीशनल एसपी संजय अग्रवाल, एसपी (सिटी) प्रियंका करचाम भी उसी दिन शाम को मछला गांव पहुंचे. गांव में दहशत का माहौल था और लोगों में आक्रोश भी.

 

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी (जबलपुर)  सिद्धार्थ बहुगुणा द्वारा मौके पर उपस्थित अधिकारियों को आवश्यक दिशानिर्देश देते हुए शीघ्र पतासाजी कर आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए.

एडीशनल एसपी संजय कुमार अग्रवाल एवं गोपाल खांडेल तथा एसपी (सिटी)  प्रियंका करचाम के मार्गदर्शन में उन्होंने एक टीम का गठन किया.

टीम में थानाप्रभारी आर.के. सोनी, एसआई अंबुज पांडे, आकाशदीप साहू, एएसआई ब्रह्मदत्त दूबे, संतोष पांडेय, कांस्टेबल राममिलन, विनय जायसवाल, देशपाल, कुलदीप, मोनू करारे, विवेक, नरेंद्र, लेडी कांस्टेबल मोनिका, अभिलाषा एवं क्राइम ब्रांच जबलपुर के एएसआई रामसनेही शर्मा, हैडकांस्टेबल अजीत पटेल, हरिशंकर गुप्ता, अरविंद, कांस्टेबल राजेश केवट आदि को शामिल किया गया.

एफएसएल टीम की डा. सुनीता तिवारी द्वारा मौके की पूरी कर लेने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर पुलिस टीम जांच में जुट गई.

पुलिस ने सब से पहले गांव के उन 5 लड़कों को बुला कर पूछताछ की, जिन से नरेश का उसी दिन विवाद हुआ था. पूछताछ में यह बात सामने आई कि नरेश को उसी रात 8 बजे नरेश के जिगरी दोस्त अखिलेश विश्वकर्मा के साथ देखा गया था.

पुलिस ने जब नरेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि घटना वाले दिन उस की अखिलेश से बातचीत हुई थी. इस के बाद पुलिस ने अखिलेश के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. उस से यह पता चला कि अखिलेश की बातचीत नरेश की पत्नी ऊषा से कई बार हुई थी.

घटना वाली रात को भी 11 बजे दोनों की बातचीत हुई थी. इसी काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने अखिलेश विश्वकर्मा से पूछताछ की तो पहले वह पुलिस को गुमराह करता रहा, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे वह जल्द ही टूट गया. पुलिस पूछताछ में अखिलेश ने नरेश मिश्रा की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए जो कहानी बताई, उसे जान कर लोग हैरान रह गए.

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कहानी की शुरुआत आज से 7 साल पहले 2015 में हुई थी. अपने मातापिता की इकलौती संतान नरेश मिश्रा पनागर में ट्रक चलाता था. एक दिन ट्रक ले कर वह घर लौट रहा था. रात का वक्त था, उस ने सोचा कि किसी ढाबे पर खाना खा कर ही वह घर की तरफ रवाना होगा.

कटनी के एक ढाबे पर ट्रक खड़ा कर वह खाना खाने के लिए रुका. वह ढाबे पर बिछी खाट पर बैठा कुछ सोच रहा था कि पानी ले कर आई एक युवती की आवाज से उस का ध्यान टूटा गया, ‘‘लो उस्ताद पानी पी लो.’’

नरेश ने उस युवती को देखा तो बस देखता ही रह गया. बाद में पता चला कि तीखे नाकनक्श वाली उस युवती का नाम ऊषा कुशवाहा है. ऊषा की शादी कटनी के पास के एक गांव में हुई थी और उस का 6 साल का एक बेटा भी था. उस का पति कोई कामधंधा करने के बजाय आवारागर्दी कर शराब पीता था.

घर में खाने के लाले थे. ऊषा अपने बच्चे को पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहती थी. इसी वजह से उस ने ढाबे में खाना बनाने के साथ ग्राहकों को चायपानी देने का काम करना शुरू कर दिया था. 25 साल की ऊषा भरे हुए बदन की थी. उसे देख कर नरेश कुछ ऐसा मोहित हुआ कि वह रोज ही ढाबे पर आनेजाने लगा.

बातों ही बातों में नरेश उसे अपना दिल दे बैठा. पति से प्रताडि़त ऊषा को किसी पुरुष की सहानुभूति की जरूरत थी, लिहाजा वह भी अपनी भरी जवानी पर काबू न रख सकी. जब नरेश ने उस के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा तो ऊषा ने नरेश को बता दिया था कि वह शादीशुदा और 6 साल के बेटे की मां है.

नरेश इस की परवाह न करते हुए उस से शादी करने को राजी हो गया. ऊषा कटनी से पति को छोड़ कर बेटे संग नरेश के साथ मचला आ गई. नरेश की इस शादी को ले कर गांव में विरोध हुआ था. नरेश पहले ऊषा को ले कर अपने घर आया तो उस के मातापिता ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. गांव में भी जातिबिरादरी के लोगों ने नरेश के इस तरह एक महिला को रखने पर ऐतराज जताया.

धुन के पक्के नरेश ने किसी की नहीं मानी और उस ने ऊषा से विधिवत शादी रचा ली और बाद में ऊषा अपने बेटे के साथ आ कर नरेश के घर में पत्नी बन कर रहने लगी.

इस बीच नरेश के मातापिता का निधन हो गया और सारी प्रौपर्टी उस के नाम हो गई. ऊषा का बेटा अब 13 साल का हो गया था. ऊषा नरेश पर अपने बेटे के नाम कुछ प्रौपर्टी करने का दबाव बना रही थी, पर नरेश इस के लिए तैयार नहीं था. क्योंकि उस की खुद की कोई औलाद नहीं हुई थी.

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नरेश शराब के नशे में ऊषा से झगड़ा और मारपीट भी करने लगा, जिस के कारण ऊषा का झुकाव अखिलेश नाम के युवक की तरफ हुआ.

 

अखिलेश और नरेश अच्छे दोस्त थे. नरेश रंगीनमिजाज था. उस के गांव की एक महिला से अवैध संबंध थे, जिस की जानकारी उस की पत्नी ऊषा को हो गई थी. इस बात को ले कर अकसर ही उन के बीच झगड़ा होता रहता था.

ऊषा सोचती कि जिस प्यार के लिए उस ने अपने पति को छोड़ दिया उसे वह प्यार भी नसीब नहीं हो रहा.

अखिलेश गांव के ही गिरिजाप्रसाद विश्वकर्मा का बेटा था. नशाखोरी की वजह से 32 साल की उम्र होने के बाद भी उस की शादी नहीं हुई थी. नरेश के साथ रहने से उसे मुफ्त की शराब पीने को मिलती थी.

दोनों ही अकसर गांव में साथसाथ घूमतेफिरते और साथ शराब पीते थे. सन 2019 में नरेश ने अपनी फितरत के अनुसार मौका पा कर अखिलेश की भाभी के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की थी, जिस की रिपोर्ट पनागर थाने में दर्ज की गई थी. मगर पैसों का लालच दे कर उस समय मामला रफादफा हो गया था.

उसी समय से अखिलेश मन ही मन नरेश से रंजिश रखने लगा था. उस के साथ बैठ कर वह शराब तो पीता था, मगर हरदम नरेश से बदला लेने की फिराक में रहता था.

अखिलेश मौका पा कर नरेश की पत्नी से भी मेलजोल बढ़ाने लगा था. अखिलेश नरेश से मिलने अकसर उस के घर आता रहता था. नरेश की पत्नी ऊषा भी उस की खूब आवभगत करती थी.

 

एक दिन जब अखिलेश नरेश से मिलने आया तो नरेश और उस का बेटा घर पर मौजूद नहीं थे. ऊषा ने अखिलेश से बातचीत के दौरान अपनी परेशानी बताई. उस ने कहा, ‘‘लगता है मेरे पति का मुझ से मन भर गया है और वह किसी दूसरी औरत में दिलचस्पी लेने लगा है.’’

इस पर अखिलेश बोला, ‘‘घर में जिस की इतनी खूबसूरत बीवी हो वह भला और कहीं और मुंह क्यों मारेगा.’’

ऊषा अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनते ही शरमा कर बोली, ‘‘हमारी खूबसूरती किसे दिखती है.’’

‘‘भाभी, हमें तो तुम अप्सरा लगती हो. हमारी शादी तुम से हुई होती तो हम तो तुम्हारे कदमों में चांदतारे बिछा देते,’’ अखिलेश ने अपने मन की बात कह डाली.

‘‘तुम ठिठोली तो खूब कर लेते हो, पर तुम्हें मेरी कोई फिक्र ही नहीं है,’’ ऊषा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘ऐसा नहीं है भाभी, मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. मुझे मालूम है कि नरेश तो शराब पी कर तुम्हें मारतापीटता भी है. उसे तुम्हारे बेटे से भी कोई मतलब नहीं है. अगर उस के दिल में तुम्हारे और बेटे के प्रति जरा सी चाहत होती तो अपनी प्रौपर्टी उस के नाम नहीं कर देता.’’ अखिलेश सहानुभूति जताते हुए बोला.

‘‘मैं तंग आ गई हूं कब ऐसे मर्द से छुटकारा मिले,’’ ऊषा बोली.

‘‘भाभी, इस ने मेरी भाभी के साथ संबंध बनाने का प्रयास किया था, तब से मेरे अंदर भी इंतकाम की आग जल रही है. तुम कहो तो इसे रास्ते से हटा दूं.’’ अखिलेश ने ऊषा का मन जानने के लिए कहा.

‘‘सचमुच यदि तुम ऐसा कर दो तो मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दूंगी,’’ ऊषा बोली.

‘‘तो भाभी, समझो काम हो गया. तुम बस रुपयों का इंतजाम कर लो,’’ पैसे के लालच और बदले की भावना से ग्रस्त अखिलेश ने ऊषा का प्रस्ताव मानते हुए कहा.

ऊषा अब नरेश से छुटकारा पाने का मन बना चुकी थी. जैसे ही उसे अखिलेश की शह मिली, वह पति को जान से मरवाने की योजना बनाने लगी. नरेश ने कुछ समय पहले अपनी आधा एकड़ जमीन बेच कर एक बोलेरो गाड़ी खरीदी थी, जिसे वह खुद किराए पर चलाता था. बाकी पैसे उस ने घर पर ही रखे थे. ऊषा ने सोचा कि घर में रखे हुए नरेश के पैसों से 2 लाख रुपए अखिलेश को दे कर नरेश का कत्ल करा कर वह उस की प्रौपर्टी की मालिक हो जाएगी. अखिलेश को पैसों के लालच के साथ नरेश से बदला लेना था.

अखिलेश तैयार हो गया तो ऊषा ने ही नरेश की हत्या के लिए उसे एक फरसा भी दिया. जिसे पहले ही खेत में एक पेड़ के नीचे छिपा कर अखिलेश ने रख दिया था.

तय साजिश के मुताबिक 10 जनवरी, 2022 की शाम अखिलेश ने नरेश को फोन किया और गांव के बाहर श्याम मिश्रा के खेत में शराब पीने के लिए बुलाया. दोनों ने साथ में बैठ कर शराब पी. नरेश को अखिलेश ने ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह नशे में धुत्त हो कर बेसुध हो गया.

इस के बाद अखिलेश ने पहले से खेत में छिपा कर रखा फरसा निकाला और 4-5 वार कर नरेश की गरदन पर कर धड़ से अलग कर दी. अखिलेश शातिर दिमाग का था. कुछ देर इंतजार करने के बाद जब नरेश के सिर से खून निकलना बंद हो गया तो उस ने नरेश का सिर उठा कर रोड के दूसरी तरफ सुखचैन गोटियां के पीछे अशोक पटेल के खेत में ले जा कर फेंक दिया.

अखिलेश ने सोचा कि सुखचैन एवं अशोक पर नरेश की हत्या का शक पुलिस करेगी. क्योंकि अखिलेश को पता था कि सुखचैन गोटियां और नरेश के बीच मनमुटाव रहने से हमेशा विवाद होता रहता था.

इतना ही नहीं, नरेश की हत्या करने के बाद अखिलेश ने ऊषा को काम पूरा होने की खबर मोबाइल से दी और खून से सना फरसा घर के आंगन में फेंक वह घर चला गया, जिसे ऊषा ने धो कर घर में ही छिपा दिया था. नरेश की हत्या के बाद ऊषा ने पहले थाने जा कर उस की गुमशुदगी की सूचना लिखवाई. लाश मिलने पर अखिलेश और ऊषा दोनों दुखी होने का नाटक करते रहे. पुलिस ने जब पूछताछ की तो सारी कहानी सामने आ गई.

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पुलिस ने नरेश की पत्नी ऊषा मिश्रा को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने भी स्वीकार कर लिया कि पति से परेशान हो कर उसे उस की हत्या कराने के लिए मजबूर होना पड़ा. पुलिस ने अखिलेश और ऊषा की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त फरसा एवं घटना के वक्त उपयोग में लाए गए 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए. दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने जबलपुर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने 24 घंटे के अंदर केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की सराहना की.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

 

सत्यकथा: प्यार में हुए फना

   —शाहनवाज 

3सितंबर, 2021 का दिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में नौगवां नरोत्तम गांव के रहने वाले 25 वर्षीय आशीष सिंह के लिए बेहद खुशी का दिन था. इस की वजह यह थी कि आशीष अपने दूसरे बच्चे का पिता जो बना था. उस की पत्नी दीपा ने बेटी को जन्म दिया था, इस खुशी में वह फूला नहीं समा रहा था.

आशीष और दीपा का एक साल का बेटा रौनक भी था. लेकिन वह इस खुशी के पलों में अपने परिवार के साथ नहीं, बल्कि घर से दूर नोएडा में था. वह नोएडा में एक एलईडी बल्ब की फैक्ट्री में काम करता था.

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उस ने जब अपने मालिक से इस मौके पर घर जाने के लिए कुछ दिनों की छुट्टी मांगी तो फैक्ट्री मालिक ने साफ मना कर दिया. फैक्ट्री नियमों के अनुसार किसी को भी छुट्टी लेने के लिए कम से कम 10 दिन पहले बताना पड़ता है. तो ऐसे में आशीष के पास 10 दिनों के इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.

10 दिनों के बाद 14 सितंबर को आशीष नोएडा से अपने परिवार और बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने ले कर अपने गांव लौटा. अपनी बेटी को देख कर आशीष की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. गांव लौटने के बाद आशीष ने अपने पिता बनने की खुशी में पूरे गांव में मिठाई बांटी और अपने करीबियों को दावत दी.

मिठाई बांटते हुए वह अपने घर के पास उस घर में गया, जहां उस की जवानी की यादें जुड़ी हुई थीं. यह घर किशनपाल का था.

दरअसल, किशनपाल की 22 वर्षीय बेटी बंटी से आशीष का प्रेम संबंध करीब 7 साल पुराना था. आशीष और बंटी के बीच संबंध को गांव में रहने वाला हर कोई जानता था.

किशनपाल और बंटी की मां को मिठाई दे कर वहां से निकल आया और सोचते हुए अपने घर की ओर चला गया. दरअसल, आशीष पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए प्रधानी के चुनावों में प्रत्याशी के तौर पर खड़ा हुआ था. लेकिन उसे बेहद बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. जिस के बाद उसे गांव में अन्य प्रधान प्रत्याशियों से जान से मारने की धमकी मिली थी.

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मामला शांत और ठंडा करने के लिए आशीष के घर वालों ने उसे कुछ दिनों के लिए गांव से बाहर चले जाने की नसीहत दी. उसी दौरान वह नोएडा में एलईडी बल्ब की फैक्ट्री में काम करने लगा था.

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए, लेकिन आशीष के दिलोदिमाग से बंटी हर समय छाई रही. अपनी शादी के 2 साल और 2 बच्चे हो जाने के बाद भी वह 7 साल के अपने प्यार को भुला नहीं पा रहा था. हालांकि आशीष और बंटी दोनों साथ में अपनी जिंदगी गुजारना चाहते थे. लेकिन उन के मांबाप और घर के बाकी सदस्यों को उन का ये संबंध मंजूर नहीं था.

मामला धर्म का नहीं था और न ही जाति का था. बल्कि दोनों एक ही गौत्र से थे, जिस की वजह से दोनों के घर वालों को उन का रिश्ता मंजूर नहीं था.

बंटी से मिल कर बात करने की ख्वाहिश आशीष के दिमाग में इतनी सवार हुई कि उस ने ऐसा करने के लिए सारी हदें पार करने का फैसला कर लिया.

16 सितंबर, 2021 की रात को बिस्तर पर लेटे हुए आशीष ने अपने दिमाग में बंटी से मिलने का प्लान बनाया. उस ने यह तय कर लिया कि वह अपनी बीवी दीपा और अपने बच्चों के साथ नहीं, बल्कि अपनी प्रेमिका बंटी के साथ बाकी की जिंदगी गुजारेगा.

रात के करीब एक बजे आशीष अपने बिस्तर से उठा और दबेपांव अपने घर से बिना किसी को बताए निकल गया. उस के घर से बंटी का घर मात्र 200 मीटर यानी सिर्फ 4-5 मिनट की दूरी पर था. आशीष गली से होते हुए बंटी के घर के नजदीक पहुंचा तो देखा कि उन के घर पर रोशनी फैली हुई थी.

उस ने रास्ता बदला और बंटी के घर के पीछे वाले रास्ते पर जा कर छलांग लगा कर घर के आंगन में जा घुसा. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई कि घर में कोई घुस आया है.

छिपतेछिपाते सीढि़यों के सहारे दूसरी मंजिल में बंटी के कमरे में जा पहुंचा और दरवाजे के पीछे छिप कर बंटी का इंतजार करने लगा.

इधर बंटी नीचे अपनी मां के साथ रोटियां सेंक रही थी. उस के पिता किशनपाल जल्दी ही खाना खा कर सो गए थे. रात के करीब सवा बज रहे थे. बंटी खाने की प्लेट ले कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी.

सीढि़यों से चढ़ते हुए बंटी दूसरी मंजिल पर अपने कमरे का दरवाजा खोल अंदर घुसी और लाइट जलाई तो अपनी आंखों पर उसे भरोसा नहीं हुआ. उस ने देखा कि बिस्तर पर आशीष बैठा हुआ था. लेकिन बंटी ने आशीष को देख कर शोर नहीं मचाया. वह चुप रही और अंदर से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया.

आशीष को अपने कमरे में देख आश्चर्यचकित हो कर बंटी धीमी आवाज में फुसफुसाई, ‘‘यहां क्या कर रहे हो तुम? जल्दी यहां से भागो. मेरी मां किसी भी समय यहां आती ही होगी. जल्दी निकलो.’’

बंटी की बात सुन आशीष अपने पंजों के सहारे उस की ओर बढ़ा और उस का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘नहीं, मैं यहां से नहीं जाऊंगा. मैं तुम्हें लेने आया हूं. मैं ने फैसला कर लिया है, मुझे तुम्हारे ही साथ अपनी आगे की पूरी जिंदगी काटनी है.’’

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कहते हुए आशीष ने बंटी के हाथों को कस कर पकड़ लिया. बंटी आशीष के हाथों से अपने हाथों को झटके से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या मजाक है. तुम्हारी बीवी है. 2 बच्चे हैं. तुम इस बारे में अब सोच भी कैसे सकते हो.’’

बंटी की बात सुन कर आशीष कुछ पलों के लिए मौन हो गया. लेकिन अपनी चुप्पी तोड़ते हुए और अपने दोनों हाथों को बंटी के गाल पर लगाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें उन के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम खुद सोचो, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं. यह बात पूरे गांव वालों को मालूम है. लेकिन हम घर वालों की वजह से कभी एक नहीं हो पाए. सिर्फ  कमबख्त एक गौत्र की वजह से हम दोनों का कभी मिलन नहीं हो पाया. इस बार मैं ने तय कर लिया है कि मैं तुम्हें यहां से अपने साथ ले कर ही जाऊंगा.’’

सुन कर बंटी ने खुद को आशीष से दूर किया और बोली, ‘‘बहुत देर हो चुकी है अब. यह खयाल अपने मन से निकाल दो. और तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए राजी हो जाऊंगी. वो भी तब जब तुम्हारी शादी हो गई, 2 बच्चे भी हो गए. अगर मुझ से प्यार था और ये हिम्मत पहले दिखाई होती तो मैं मान भी जाती.

‘‘हम साथ मिल कर दुनिया से लड़ लेते. अब मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए दीपा और तुम्हारे बच्चों की जिंदगी खराब नहीं कर सकती. मुझे माफ कर देना. वैसे भी तुम्हारी शादी के बाद मैं ने खुद को संभाल लिया है. अब मैं भी खुद की एक नई जिंदगी शुरू करना चाहती हूं. बेहतर होगा तुम मुझे भुला दो.’’

लेकिन बंटी के साफ इनकार करने के बाद वह अपने होशोहवास खो बैठा. किसी तरह खुद को संभालते हुए आशीष ने बंटी को समझाने की एक और कोशिश की. लेकिन वह नाकामयाब रहा.

सुबह के करीब 6 बजे नौगवां नरोत्तम गांव के लोग अपने बिस्तर से उठे ही थे और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो ही रहे थे कि अचानक गांव वालों ने गांव के सब से बड़े पीपल के पेड़ के नीचे कुछ ऐसा देखा, जिस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

लोग उस पेड़ के नीचे सुबहसुबह पूजा करने के लिए जब पहुंचे तो उन्होंने वहां आशीष के शव को पड़ा देखा. आशीष के करीबी लोगों में से सुरेश ने भी आशीष के शव को जब देखा तो वह भाग कर उस के पिता सुखपाल सिंह को बुलाने पहुंचा.

सुबह के सवा 6 बजे सुखपाल सिंह खेतों की तरफ से घर की ओर आ ही रहे थे तो सुरेश हांफते हुए उन से बोला, ‘‘काका, पीपल के पेड़ पर. जल्दी चलो.’’

सुखपाल भीड़ को हुए आशीष के शव के सामने जा कर खड़े हो गए. आशीष की लाश जमीन पर चित्त पड़ी थी. उस के सीने में दिल की ओर गोली लगी थी. अपने जवान बेटे का शव जमीन पर पड़ा देख सुखपाल के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई थी. वह चीखचीख कर आशीष का नाम ले कर रोनेपीटने लगे. इतने में पेड़ के पास किशनपाल के घर से भी रोने और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. गांव वालों को समझ नहीं आया कि आखिर हुआ तो हुआ क्या.

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जब गांव के लोग किशनपाल के घर पता करने पहुंचे तो पता चला कि दूसरी मंजिल पर उस की बेटी बंटी की लाश उस के कमरे में पड़ी थी. बंटी के शरीर पर भी ठीक उसी जगह पर गोली लगी थी, जहां आशीष को लगी थी. सीने पर, दिल के पास.

दोनों मौतों की यह खबर पूरे गांव में तो क्या आसपास लगभग सभी गांवों में आग की तरह फैल गई कि फलां गांव में एक ही दिन में 2 लोगों को गोली लगी, वह भी एक ही जगह पर.

सुबह के साढ़े 7 बजे गडि़यारंगीन पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. क्योंकि मामला बेहद संगीन था और इलाके में तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी, गडि़यारंगीन थानाप्रभारी सुंदरलाल ने आसपास के इलाकों की पुलिस टीम को सूचित कर जल्द से जल्द घटनास्थल पर बुला लिया.

सूचना मिलते ही जैतीपुर, कटरा और तिलहर पुलिस थाने से फोर्स जल्द से जल्द घटनास्थल पर पहुंच गई. देखते ही देखते घटनास्थल छावनी में बदल गया.

थानाप्रभारी सुंदरलाल, सीओ परमानंद पांडेय और एएसपी (ग्रामीण) संजीव कुमार वाजपेयी ने दोनों परिवारों से अलगअलग पूछताछ की.

एक तरफ आशीष के पिता सुखपाल ने अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार किशनपाल और उस के घर वालों को बताया तो दूसरी तरफ किशनपाल ने अपनी बेटी की मौत का जिम्मेदार सुखपाल और उस के घर वालों को बताया.

एक तरफ आशीष और बंटी दोनों के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया तो वहीं फोरैंसिक टीम बारीकी से साक्ष्य जुटाने में व्यस्त हो गई.आशीष के शव के पास से टीम ने गोली का एक खोखा और एक जीवित गोली भी बरामद की. लेकिन उन्हें कहीं भी पिस्तौल नहीं मिली.

टैक्निकल टीम ने आशीष के फोन की अंतिम लोकेशन का पता लगाया तो पुलिस को यह जान कर हैरानी हुई कि आशीष की अंतिम लोकेशन बंटी के घर की ही मिली थी. ऐसे में पुलिस के शक की सुई किशनपाल और उस के परिवार की ओर घूम गई.

जब दोनों के बारे में आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ हुई तो पता चला दोनों आशीष और बंटी एकदूसरे से प्यार करते थे और एक गौत्र से होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई थी.

ऐसे में पुलिस को यह मामला औनर किलिंग का लगा. लेकिन पुलिस सभी साक्ष्य जुटाने के बाद और सभी एंगल से मामले की छानबीन कर किसी नतीजे पर पहुंचना चाहती थी. ऐसी स्थिति में पुलिस ने किशनपाल और सुखपाल दोनों ही परिवारों से सख्ती से पूछताछ की.

करीब एक हफ्ते की कमरतोड़ मेहनत के बाद पुलिस ने किशनपाल को हिरासत में लेते हुए सख्ती से पूछताछ की. उस ने पुलिस के सामने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि जिस रात आशीष उस की बेटी बंटी से मिलने के लिए उस के घर आया था, उस रात को बंटी की मां नीचे खाना खा रही थी. तभी करीब रात के 2 बजे बंटी की मां को ऊपर जोर से कुछ गिरने की आवाज आई. उसे ऐसा लगा जैसे बंटी ने ऊपर अपने कमरे में कुछ गिरा दिया हो.

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अपना खाना खत्म कर के बंटी की मां दूसरी मंजिल पर बंटी के कमरे में पहुंची और दरवाजा खोला तो कमरे का नजारा देख उस के होश उड़ गए थे. कमरे में बंटी और आशीष की लाशें पड़ी थीं.

यह देख कर बंटी की मां दौड़ कर नीचे किशनपाल के पास भाग कर आई और रोतेकुलबुलाते हुए उस ने दूसरी मंजिल पर जाने के लिए कहा. किशनपाल बिस्तर से उठ कर दूसरी मंजिल पर बंटी के कमरे में घुसा तो उस का भी वही हाल हुआ जो उस की पत्नी का हुआ था. किशनपाल अपनी बेटी का शव देख कर बुरी तरह से घबरा गया.

काफी देर तक अपने बेटी के शव के पास बैठे रह कर रोनेबिलखने के बाद उस ने अपना होश संभाला और इस मामले में वह और उस का परिवार न फंस जाए, इस डर से उस ने आशीष के शव को अपने कंधों पर उठा कर अपने घर से बाहर पीपल के पेड़ के नीचे डाल आया. और उसी दौरान किशनपाल ने आशीष के शव के पास पड़ी पिस्तौल भी उठा ली.

उस ने आशीष के शव को पेड़ के नीचे रखने के बाद अपना खून से पूरी तरह सना अपना कुरता और पिस्तौल अपने ही घर में दबा दिया ताकि कोई उसे ढूंढ न सके. वह गोली का एक खोखा और एक जीवित गोली लाश के पास ही डाल आया.

दरअसल, आशीष पूरी प्लानिंग के तहत उस रात बंटी को भगाने के उद्देश्य से उस के घर चुपके से पहुंचा था. अपने घर से निकलते समय वह अपने दोस्त से मिला और उस ने अपनी सुरक्षा के नाम पर उस की लोडेड पिस्तौल ले ली.

वह किसी और को इस काम में शामिल नहीं करना चाहता था, इसलिए वह अकेले ही बंटी के घर पर पहुंचा था. प्यार से समझानेबुझाने के बाद जब आशीष को यह यकीन हो गया कि उस की प्रेमिका उस के साथ नहीं रहना चाहती तो उस ने उसे एक और आखिरी मौका दिया.

वह बंटी से बोला, ‘‘बंटी, तुम्हें हमारे प्यार की कसम. तुम एक बार हां तो करो, फिर देखना हम पूरी दुनिया से लड़ जाएंगे. आखिरी बार सोच लो एक और बार.’’

इस पर बंटी ने उसे तुरंत जवाब दिया, ‘‘मैं ने सोच लिया है. मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाने वाली. तुम ने तो अपनी जिंदगी जी ली है. अपने बीवीबच्चों के साथ हंसीखुशी जी रहे हो. तुम्हारे साथ भाग कर मुझे किसी की बददुआ नहीं चाहिए. घर वालों से जब लड़ने का मौका था, तब तुम से कुछ हुआ नहीं. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है. यही मेरा आखिरी फैसला है.’’

बंटी के ये सब कहने के बाद आशीष के मन को गहरा सदमा लगा. उस ने आव देखा न ताव, अपनी जेब में रखी पिस्तौल निकाली और बंटी के सीने पर गोली चला दी. इस से पहले कि बंटी को कुछ एहसास होता, गोली उस की छाती चीरते हुए उस के दिल को भेदते हुए अंदर दाखिल हो चुकी थी.

बंटी को गोली मारने के बाद आशीष को अचानक होश आया. उसे खुद पर बिलकुल यकीन ही नहीं हुआ, आखिर उस ने ये क्या कर दिया. उस के बाद उस ने बिना कुछ सोचेसमझे ठीक जिस तरह से उस ने बंटी को मारी थी, खुद की छाती पर भी गोली चला दी.

ये हत्या तो थी ही साथ ही आत्महत्या भी थी. यदि दोनों के घर वाले उन के रिश्ते को मंजूरी दे देते तो शायद दोनों आज भी जिंदा होते और एक अच्छी जिंदगी गुजारते.

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बंटी के पिता किशनपाल ने बेशक दोनों में से किसी की भी जान न ली हो लेकिन पुलिस ने किशनपाल को वास्तविकता छिपाने, मनगढ़ंत साक्ष्य पैदा करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने इत्यादि का आरोप लगाते हुए हिरासत में ले लिया.

किशनपाल को हिरासत में ले कर उस की निशानदेही पर पुलिस ने उसी के घर से रक्तरंजित कुरता और पिस्तौल भी बरामद कर ली. पुलिस ने किशनपाल को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

सत्यकथा: छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी साइबर ठगी

Writer  —सुरेशचंद्र रोहरा 

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का एक छोटा सा नगर है अभनपुर. यहां अशोक कुमार साहू वार्ड

नंबर 15, बड़े उरला में अपने छोटे से परिवार के साथ  रहते थे. वह 31 जुलाई, 2021 सुबह घर के निकट स्थित एटीएम में जा कर कुछ पैसे निकालने लगे. और जब उन के हाथ में परची आई तो वह दंग रह गए. उन्होंने देखा कि उन के अकाउंट में लगभग 65 लाख रुपए की रकम की जगह सिर्फ एक लाख रुपए ही शेष बचे हुए हैं.

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उन्होंने परची को फिर गौर से देखा और घबरा कर इधरउधर देखने लगे. उन के हिसाब से उन के भारतीय स्टेट बैंक अभनपुर के अकाउंट में लगभग 65 लाख रुपए की रकम होनी चाहिए थी मगर परची में तो एक लाख बैलेंस दिखा रहा था. वह पसीनापसीना हो गए. जल्दीजल्दी घर पहुंचे और छोटे बेटे राजेश को आवाज दी, ‘‘बेटा आओ, देखो तो यह क्या है?’’

उन का बड़ा बेटा किशोर साहू का हाल ही में कोरोना से संक्रमित हो कर निधन हो गया था. अब पतिपत्नी और बेटे राजेश व उस की पत्नी और एक बच्चा ही उन का परिवार था. राजेश ने पिता की आवाज सुनी तो पास आ गया और पूछा, ‘‘क्या हो गया है पापा?’’

घबराए पसीने से लथपथ अशोक कुमार साहू ने परची बेटे राजेश को देते हुए कहा, ‘‘बेटा, देखो. बैंक में कुछ गड़बड़ हो गई है, देखो, इस में तो एक लाख रुपए के आसपास ही बैलेंस बता रहा है, लगता है हम बरबाद हो गए.’’

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राजेश ने परची को गौर से देखा तो वह भी आश्चर्यचकित रह गया. मगर उस ने पिता को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘कभीकभी बैंक में कोई गलती हो जाती है, मैं बैंक जा कर के पता कर आता हूं कि मामला क्या है.’’

‘‘हांहां बेटा, तुम चले जाओ. बल्कि रुको, मैं भी साथ चलता हूं. मुझे जब तक इस का सच पता नहीं चलेगा, मुझे चैन ही नहीं आएगा, चलो मैं चलता हूं.’’

राजेश साहू अपने पिता अशोक कुमार साहू जोकि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में पर्यवेक्षक औडिटर के रूप में लगभग 40 साल की नौकरी के बाद हाल ही में रिटायर हुए थे को ले कर के स्टेट बैंक औफ इंडिया की शाखा मेन रोड अभनपुर की ओर बढ़ चला. राजेश ने देखा पिता अभी भी बहुत घबराए हुए हैं. उस ने पिता को आश्वस्त किया, मगर अशोक कुमार साहू का पूरा ध्यान अपने बैंक अकाउंट को ले कर के चिंता में था.

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वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि इतने सारे रुपए होने के बाद जोकि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने इसी अकाउंट में जमा करवा रखे थे, कहां गायब हो गए.

राजेश पिता के साथ जब बैंक पहुंचा और वहां बैंक मैनेजर से मिल कर एटीएम से निकली परची दिखा कर के बैंक बैलेंस की जानकारी ली, जवाब सुन कर तो मानो अशोक कुमार साहू और राजेश साहू को काठ मार गया.

मैनेजर एस.के. शर्मा ने उन्हें बताया कि आप के अकाउंट में अब लगभग एक लाख रुपए की राशि शेष है और लगभग 2 माह पहले 64 लाख रुपए से अधिक की राशि आप के एकाउंट में थी. इस बीच लगातार 2 लाख रुपए से ले कर के 50 हजार रुपए की राशि तक 25 दफा अलगअलग तारीखों को औनलाइन निकाली गई है.

उन्होंने राजेश साहू को स्टेटमेंट निकाल कर के हाथ में थमा दिया, जिस के अनुसार 63,33,439 रुपए उन के एकाउंट से छूमंतर हो चुके थे.

यह सब देखसमझ कर राजेश साहू हतप्रभ रह गया, वहीं अशोक कुमार साहू सिर पकड़ कर बैठ गए और रोआंसा हो कर के बैंक मैनेजर से बोले, ‘‘सर, हम ने कोई भी रुपया का लेनदेन नहीं किया है, मेरे अकाउंट से लाखों रुपए पता नहीं किस ने निकाल लिया है, मैं तो बरबाद हो गया. आप इस पर कुछ काररवाई करिए.’’

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इस पर स्टेट बैंक मैनेजर ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘अगर आप को लगता है कि आप के साथ किसी ने गलत तरीके से बैंक से पैसे निकलवा लिए हैं तो अब आप के सामने एक ही विकल्प बचता है, आप हमें एक पत्र लिख कर दे दीजिए. और आज ही पुलिस में जा कर के अपनी कंप्लेंट करिए.’’

इस पर अशोक कुमार साहू भड़क गए और चिल्ला कर के कहने लगे, ‘‘यह कैसा बैंक है और कैसी व्यवस्था है. हम ने भी 40 साल विद्युत मंडल में नौकरी की है, मैं औडिटर था, मगर एक रुपए भी इधरउधर कभी नहीं होता था. और आज बैंक में मेरे लाखों रुपए किसी ने निकाल लिए और मुझे खबर भी नहीं हुई.’’

भारतीय स्टेट बैंक मैनेजर  शर्मा ने उन्हें शांत करते हुए बैठाया पानी पिलाया और विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘साहूजी, अब जो हो गया, उस का रोना छोड़ कर आगे की सुध लीजिए.

आप चिंता बिल्कुल मत करिए अगर आप ने पैसे नहीं निकाले हैं तो आप के सारे पैसे यह समझिए कि सुरक्षित बैंक में रखे हुए हैं और जो भी कहीं चूक या गलती हुई है अथवा फ्रौड हुआ है तो पुलिस उन को पकड़ कर जेल में डाल देगी. आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए.’’

सुन कर के अशोक कुमार साहू को ढांढस बंधाया और वे बेटे राजेश के साथ थाना अभनपुर पहुंचे, जहां अपने कक्ष में इंसपेक्टर बोधन साहू प्रतिदिन का कार्य संपादित कर रहे थे.

अशोक कुमार साहू और राजेश ने उन के कक्ष में अनुमति ले कर प्रवेश किया और सामने की कुरसियों पर बैठ गए. बोधन साहू ने बुजुर्गवार अशोक कुमार साहू की ओर देखा और कहा, ‘‘बताइए, आप लोगों का कैसे आना हुआ है?’’

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इस पर राजेश साहू ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम राजेश कुमार साहू है और यह मेरे पिता अशोक कुमार साहू हैं जोकि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में औडिटर के पद पर कार्यरत थे. मार्च 2021 में आप रिटायर हुए हैं. सेवानिवृत्ति के बाद लगभग 65 लाख रुपए स्टेट बैंक की स्थानीय शाखा में इन्होंने जमा किए थे, जो अचानक गायब हो गए हैं. हम लोग अभी बैंक मैनेजर से भी मिले हैं और वहां अपनी कंप्लेंट लिखवाई है, हम आप के पास भी कंप्लेंट के लिए आए हुए हैं.’’

63 लाख रुपए के बड़ी रकम की ठगी की बात सुन कर के बोधन साहू के कान खड़े हो गए. उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए अशोक कुमार साहू से कहा, ‘‘आप लोग सारी घटना एक कागज पर लिख कर के दीजिए. मैं एफआईआर दर्ज करवाता हूं. आप लोग निश्चिंत रहें. जल्द से जल्द आप अपराधियों को जेल की हवा खाते देखेंगे.’’

राजेश ने नगर निरीक्षक बोधन साहू के कक्ष में बैठेबैठे ही एक तहरीर लिखी और अपनी सारी स्थिति को अवगत कराते हुए पुलिस अधिकारियों से यह आग्रह किया कि इस मामले पर संज्ञान लिया जाए और अपराधियों को पकड़ लिया जाए.

अभनपुर थाने में  एफआईआर दर्ज होने के बाद बोधन साहू ने अपने उच्च अधिकारी एडिशनल एसपी लखन पटले से बातचीत कर के उन्हें साइबर क्राइम की इस संपूर्ण घटना से अवगत कराया.

63 लाख रुपए गायब होने की खबर सुन कर लखन पटले ने उन्हें निर्देश दिया कि मामला अभनपुर पुलिस और साइबर क्राइम शाखा के साथ मिल कर के डिटेक्ट करें और बीचबीच में मेरे समक्ष प्रोग्रेस रिपोर्ट प्रस्तुत करें.

रायपुर पुलिस के एसएसपी अजय यादव ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अभनपुर थाने के जांच अधिकारी बोधन साहू और साइबर क्राइम शाखा के वीरेंद्र चंद्रा को इस मामले की जांच का प्रभार देते हुए 12 सदस्यीय टीम बनाई, जिसे इस मामले को जल्द से जल्द हल करने का आदेश दिया गया.

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अशोक कुमार साहू ने पुलिस को बताया कि 31 मार्च, 2021 को छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के परीक्षण पर्यवेक्षक पद से रिटायर हुआ हूं. इसी दरमियान अप्रैल में बड़े बेटे किशोर कुमार साहू की अचानक मृत्यु हो गई. इसी अवसाद के समय में उन के पास एक काल आई थी, जिस के बाद से उन के साथ यह ठगी का कारनामा अंजाम दिया गया है.

अशोक कुमार साहू ने बताया कि 17 जून को एक अज्ञात व्यक्ति का काल आया. उस ने कहा, ‘‘हैलो, क्या आप अशोक साहू बोल रहे हैं?’’

अशोक कुमार साहू ने कहा, ‘‘जी हां, मैं अशोक कुमार ही बोल रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से कहा गया, ‘‘मैं भारतीय स्टेट बैंक अभनपुर से फूल दास बोल रहा हूं. सर, आप के बेटे किशोर साहू की मृत्यु हो गई है. आप के बेटे की कोरोना से हुई मृत्यु के कारण भारत सरकार की योजना अंतर्गत 5 लाख रुपए मिलेंगे.’’

यह सुन कर अशोक कुमार साहू खुश हो गए. बोले, ‘‘ऐसा है तो बताइए, मैं यह रकम कैसे पा सकता हूं? बैंक आ जाऊं?’’

‘‘नहींनहीं, आप को बैंक आने की अभी जरूरत नहीं है, यहां तो बहुत भीड़ रहती है जब समय आएगा हम आप को स्वयं बुला लेंगे. अब तो मोबाइल में बड़ी सुविधा है, बात भी हो सकती है. और ओटीपी भी हम पूछ सकते हैं. इसलिए आप घर में आराम से रहें, वैसे भी कोरोना वायरस चल रहा है.’’

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यह सुनकर के अशोक कुमार साहू को महसूस हुआ कि फूल दास सही कह रहा है अभी करोना काल में कहीं भी बाहर जाना उचित नहीं है. और जब घर बैठे काम हो रहा है तो भला घर से क्यों निकलूं.

फूल दास ने बड़े ही मधुर आवाज में कहा, ‘‘साहूजी आप बहुत सज्जन आदमी लगते  हैं क्या करते हैं आप?’’

‘‘मैं अब तो रिटायर हो गया हूं. वैसे विद्युत मंडल में मैं औडिटर हुआ करता था.’’ उन्होंने बड़े गर्व के साथ बताया.

‘‘अरे वाह! आप तो बहुत ही पढ़ेलिखे सम्मानित व्यक्ति नजर आते हैं, औडिटर का पद तो बहुत ही सम्मान का है. यह सुन कर के हमारी निगाह में आप का सम्मान और भी बढ़ गया है हमारे लिए आप रेस्पेक्टेड परसन हैं.’’

इस तरह की मीठी बातें कर के फूल दास ने अशोक कुमार साहू को अपने शीशे में उतार लिया. और बातोंबातों में ओटीपी नंबर भी ले लिया.

फूल दास ने अशोक कुमार साहू से कहा कि बहुत जल्द आप को अपने अकाउंट में 5 लाख रुपए घर बैठे ही अकाउंट में मिल जाएंगे, यह मेरी जिम्मेदारी है. बस आप, मैं जैसे ही काल करूं, आप फोन रिसीव कर लिया करें.’’

अशोक कुमार साहू ने उस की बात से सहमति व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘हां, आप हमें सहयोग करते रहें.’’

अशोक कुमार साहू के बेटे किशोर साहू की कोरोना वायरस के कारण मौत हो गई थी, स्वयं भी बुजुर्ग हो गए थे और कुछ दिनों बाद कोरोना पौजिटिव हो गए थे. इस बीच लगातार काल आता, वह बात करते और ओटीपी बता दिया करते. फूल दास आश्वस्त करता, शीघ्र ही आप के खाते में 5 लाख रुपए आ जाएंगे.

इस बीच अशोक कुमार साहू कोरोना कोविड-19 से लंबे समय तक परेशान रहे और उन का सब कुछ अस्तव्यस्त हो गया. इधर देखते ही देखते उन के खाते से छोटीछोटी रकम कर के लाखों रुपए ट्रांसफर कर दिए गए. जिस की उन को भनक तक नहीं लगी.

साइबर ठगी के इस मामले में बी.एम. साहू और वीरेंद्र चंद्रा की टीम ने जब जांच को आगे बढ़ाई तो उन्हें यह जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि जो पैसे अशोक कुमार साहू के अकाउंट से निकाले गए थे, वे दूसरे अकाउंट से तीसरे फिर चौथे फिर पांचवें से छठवें अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए गए थे.

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उन्हें यह समझते देर नहीं लगी थी कि उन का ट्रांजैक्शन साइबर क्राइम के शातिर ठगों ने किया है. जांच में यह तथ्य भी सामने आता चला गया कि सारी ठगी का खेल जामताड़ा, झारखंड से चलता रहा है.

पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर 12 साइबर क्राइम एक्सपर्ट और पुलिस अधिकारियों की एक टीम आरोपियों को पकड़ने के लिए जामताड़ा के लिए 8 अगस्त, 2021 को रायपुर से रवाना हुई.

जामताड़ा के एसपी कार्यालय में आमद देने के बाद बी.एम. साहू ने जिले के उच्च अधिकारियों को लाखों रुपए के साइबर क्राइम की जानकारी दी और आरोपियों तक पहुंचने के लिए सहयोग की गुजारिश की तो पुलिस अधिकारियों ने अपनी एक टीम बना कर के उन के साथ लगा दी.

पुलिस टीम ने जब जांच आगे बढ़ाई तो यह तथ्य सामने आया कि जामताड़ा के नारायणपुर मौलीडीह गांव के फूल दास, अशोक दास, दुलाल दास इन 3 लोगों का हाथ है.

पुलिस ने इन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछाया, मगर वे लोग गायब हो जाते थे. उन के रहनसहन को देख कर के जांच अधिकारी बी.एम. साहू, वीरेंद्र चंद्रा और टीम के सदस्य आश्चर्यचकित थे.

इन में फूल दास और दुलाल दास दोनों सगे भाई हैं जिन्हें उन के भव्य आवास से  आखिरकार 10 अगस्त की रात हिरासत में ले लिया गया. उसी रात अशोक दास को भी झारखंड पुलिस की मदद से हिरासत में ले लिया गया.

इस तरह अंतत: बड़ी मशक्कत के बाद तीनों कथित आरोपियों को ले कर के छत्तीसगढ़ पुलिस जिला जामताड़ा से रायपुर, छत्तीसगढ़ के लिए रवाना हुई.

छत्तीसगढ़ प्रदेश की सब से बड़ी साइबर ठगी के इस मामले में सब से महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस ठगी में 221 सिम कार्ड आरोपियों ने इस्तेमाल किए, जोकि पश्चिम बंगाल से लाए गए थे.

वहीं एक सब से बड़ी कमी भारतीय स्टेट बैंक की भी उजागर हो गई. जबजब पैसे अशोक कुमार साहू के अकाउंट से ट्रांसफर हुए तो उन के अकाउंट में आखिरकार पैसे ट्रांसफर की सूचना का मैसेज क्यों नहीं आया.

कहां गड़बड़ हुई. पुलिस के लिए यह भी जांच का विषय हो गया कि क्या बैंक का कोई कर्मचारी इस मामले में संलिप्त तो नहीं है.

अभनपुर जिला रायपुर की पुलिस ने 11 अगस्त को रायपुर में एक प्रैस कौन्फ्रैंस करते हुए मीडिया के समक्ष केस का खुलासा किया. एडिशनल एसपी लखन पटले ने मीडिया से रूबरू हो कर बताया कि 63,33,439 रुपए के बड़े ठगी के चैलेंजिंग मामले में पुलिस को किस तरह सफलता हासिल की है और आरोपियों को शीघ्र ही न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा.

पुलिस ने आरोपियों का इकबालिया बयान दर्ज किया है, जिस में उन्होंने बताया है कि किस तरह वे लोगों को भरमा कर के मीठी बातें करते थे. अपना संबंध बनाने के बाद उन्हें लालच देते हुए लाखों रुपए अकाउंट में  भिजवाने की बात कहते थे और ओटीपी ले लिया करते थे. और दूसरी तरफ अपने  अकाउंट से पैसे ट्रांसफर कर लिया करते थे.

पुलिस ने धारा 420,120बी भादंवि के तहत 11 अगस्त 2021 को तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर के रिमांड पर लिया.

महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ठगी के शिकार अशोक कुमार साहू को इस कथा के लिखे जाने तक एक रुपए भी वापस नहीं मिला था, क्योंकि यह एक लंबी प्रक्रिया है. आरोपियों के पास से सिर्फ लगभग 30 हजार रुपए ही बरामद हुए हैं.

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अब सवाल यह है कि 63 लाख रुपए की बड़ी रकम आखिर अशोक कुमार साहू को किस तरह मिल पाएगी और मिल भी पाएगी या फिर कानून की लंबी लड़ाई और इंतजार में वे परेशान हलकान रहेंगे.

मगर, अशोक कुमार साहू और उन के बेटे राजेश साहू को यह संतोष है कि उन के साथ ठगी करने वाले आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आ गए और एक न एक दिन, उन्हें उन का पैसा मिलेगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में बैंक मैनेजर का नाम काल्पनिक है.

सत्यकथा: प्रेमी का जोश, उड़ गया होश

—दिनेश बैजल ‘राज’  

सुबह करीब साढ़े 5 बजे मोबाइल की घंटी बजने पर सोनू की नींद खुल गई. उस ने फोन उठाया. दूसरी ओर से आगरा के नगला कली में रहने वाले बड़े भाई नरेश की पत्नी प्रमिता की आवाज सुनाई दी. उन की आवाज भर्राई हुई थी. रात को तुम्हारे घर भैया आए थे?

इस पर सोनू ने कहा, ‘‘भाभी मेरे यहां तो नहीं आए, पापा के पास आए हों तो पूछ कर बताता हूं.’’

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तभी सोनू ने अपने पिता सुरेशचंद्र को फोन कर भाई नरेश के रात को आने के बारे में पूछा. सुरेशचंद्र ने मना करते हुए कहा, ‘‘नरेश रात में यहां क्यों आएगा? वह यहां नहीं आया.’’

यह बात सोनू ने भाभी प्रमिता को बता दी कि भैया रात को पापा के यहां नहीं गए. इस पर प्रमिता ने सोनू को बताया, ‘‘तुम्हारे भैया ने रात को 2 रोटी खाईं, उन्होंने कहा कि सब्जी अच्छी बनाई है 2 रोटी और सेंक लो, तब तक मैं टहल कर आता हूं. यह कह कर वह रात साढ़े 10 बजे चले गए. सारी रात उन का इंतजार करती रही, लौट कर नहीं आए हैं. रात से उन का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है. मुझे बहुत डर लग रहा है.’’

संजय ने भाभी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘भाभी परेशान मत हो हम लोग आ रहे हैं.’’

सोनू ने यह बात पिता सुरेशचंद्र को बताई. इस के साथ ही भाई नरेश का मोबाइल नंबर मिलाया, लेकिन वह स्विच्ड औफ मिला. यह बात 8 जून, 2021 की है.

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रात से नरेश के घर नहीं लौटने की जानकारी होने पर घर के सभी लोग चिंतित हो गए. गोबर चौक निवासी सुरेशचंद्र अपनी पत्नी, बेटे सोनू व 2 पड़ोसियों को साथ ले कर वहां से 7 किलोमीटर दूर आगरा के नगला कली स्थित पुष्पांजलि होम्स, नरेश के घर जहां वह किराए पर रहता है, पहुंच गए.

सभी ने मिल कर आसपास नरेश की तलाश शुरू कर दी. वे उसे काफी देर तक इधरउधर खोजते रहे. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

 

8 जून की सुबह साढ़े 7 बजे एनआरआई सिटी के खाली प्लौट से हो कर निकल रहे लोगों ने वहां एक बोरी पड़ी देखी. बोरी पर खून लगा था और उस के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही थीं.  बोरी में लाश की आशंका होने पर किसी ने थाना ताजगंज पुलिस को सूचना दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.  उन्होंने बोरी को खुलवाया. बोरी खुलते ही उस में से एक युवक की लहूलुहान लाश निकली. लाश देखते ही सभी के होश उड़ गए.

युवक की उम्र लगभग 30-35 साल के बीच थी. लाश से लगभग 200 मीटर की दूरी पर दूसरी बोरी पड़ी थी, उस में खून से सनी चादर, तकिया व अन्य कपड़े मिले. लाश मिलने की खबर फैलते ही वहां भीड़ जुट गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला कि सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था. इस के अलावा शरीर पर भी कई जख्म थे. वहां मौजूद कई लोगों ने मृतक की पहचान जूता कारखाना मालिक नरेश कुमार, निवासी नगला कली स्थित पुष्पांजलि होम्स के रूप में की.

पुलिस ने सूचना नरेश के घर भिजवाई तो रोतेबिलखते उस के घर वाले प्लौट पर पहुंच गए. मृतक के पिता सुरेशचंद्र ने उस की शिनाख्त अपने 35 वर्षीय बेटे नरेश कुमार के रूप में की. मृतक के बच्चों को बुला कर पुलिस ने कपड़े दिखाए तो उन्होंने बताया कि चादर और तकिए उन्हीं के घर के हैं.

थानाप्रभारी ने घटना की गंभीरता को देखते हुए अपने अधिकारियों को सूचना दी. सूचना मिलने पर एसएसपी मुनिराज, एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे और सीओ (सदर) राजीव कुमार भी वहां आ गए. उन्होंने गहनता से घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस बीच फोरैंसिक टीम को बुला लिया गया.

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टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने घटनास्थल से चादर व अन्य कपड़े बरामद किए. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतक के पिता व भाइयों से इस संबंध में पूछताछ की. नरेश की हत्या किन कारणों से की गई? पिता ने बताया कि नरेश की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, नरेश का गोबर चौक में पार्टनरशिप में जूता कारखाना है. उस का काम भी अच्छा चल रहा था.

उस के परिवार में पत्नी प्रमिता, 12 वर्षीय बेटा सौम्या, 8 वर्षीय बेटी लाडो और 6 वर्षीय बेटा नन्हे है. नरेश परिवार के साथ किराए पर रहता है. पिता सुरेशचंद्र नरेश गोबर चौक में पुराने घर में रहते हैं. इस संबंध में पिता सुरेशचंद्र ने अज्ञात के खिलाफ बेटे की हत्या की रिपोर्ट थाना ताजगंज में भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत दर्ज कराई.

एसएसपी मुनिराज जी. ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम को लगाया. पुलिस टीम में थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी, इंसपेक्टर नरेंद्र सिंह (प्रभारी सर्विलांस), एसआई मोहित सिंह, शैलेंद्र सिंह, महिला एसआई पूजा शर्मा, हैडकांस्टेबल विनीत व आदेश त्रिपाठी शामिल थे.

एनआरआई सिटी के खाली प्लौट जहां बोरी में नरेश का शव मिला था, वह स्थान मृतक के मकान के ठीक पीछे ही है. इस पर पुलिस व फोरैंसिक टीम जांच में जुट गई. मृतक के पुष्पांजलि होम्स स्थित घर जा कर जांच की. जांच के दौरान घर की छत पर खून मिला, वहां से भी साक्ष्य जुटाए गए.

पति की हत्या पर पत्नी प्रमिता का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने किसी तरह समझाबुझा कर उसे शांत कराया. पुलिस नरेश की हत्या में किसी करीबी व्यक्ति का हाथ होने की आशंका जता रही थी. पुलिस ने प्रमिता से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली.

प्रमिता ने पुलिस को बताया, 7 जून की रात लगभग 10 बजे उस ने पति नरेश को फोन कर घर आने को कहा था, उस ने बताया कि वह रोज ही उन्हें फोन करती थी. क्योंकि वह देर से घर आते थे. वह कारखाने से रात साढ़े 10 बजे घर आए थे. वह हमेशा की तरह खाना खा कर घर के बाहर टहलने चले गए थे.

वह शराब पीते थे. देर लगने पर सोचा सड़क तक टहलने निकल गए होंगे. घर में तीनों बच्चे व स्वयं थी. हम लोग कमरे में एसी चला कर टीवी देखते रहे. जब वह देर रात तक नहीं लौटे तो वाचमैन व बड़े बेटे सौम्या को साथ ले कर उन्हें इधरउधर तलाश किया. उन के न मिलने पर बाद में गोबर चौक स्थित ससुराल व सदर भट्टी स्थित मायके वालों को फोन कर बुलाया.

जांच के दौरान प्रमिता ने थानाप्रभारी उमेश चंद्र त्रिपाठी को बताया, ‘‘सर उन पर बहुत केस चल रहे हैं और उन के बहुत दुश्मन हैं.’’

खून घर की छत पर मिलने की बात पर उस ने कहा, ‘‘सर, इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्योंकि कमरे में एसी चल रहा था और दरवाजा बंद था.’’

पुलिस को प्रमिता की बातें गले नहीं उतर रही थीं. शव भी घर के पीछे दीवार के सहारे पड़ा मिला था. ऐसे में मृतक के घर वालों से पुलिस ने पूछताछ की. घटना के जल्द खुलासे के लिए नरेश की काल डिटेल्स भी निकालने की बात पुलिस ने कही. घर में सोमवार को कौनकौन आया, इस बारे में पत्नी और बच्चों से भी जानकारी ली गई.

घर की छत पर खून मिलने व लाश वाली बोरी घर के ठीक पीछे मिलने से साफ हो गया था कि नरेश की हत्या करने के बाद उस के शव को बोरी में भर कर छत से ही पीछे प्लौट में फेंका गया था. पुलिस को घटना के बाद से प्रमिता पर ही शक था.

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पोस्टमार्टम के बाद शव मृतक के पिता को सौंप दिया गया. शाम को ही नरेश की अंत्येष्टि कर दी गई.  इस सब से बेफिक्र पत्नी प्रमिता को अंत्येष्टि के बाद पुलिस ने आखिर मंगलवार की शाम को ही हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई. वह रटीरटाई कहानी दोहराने लगी.

पुलिस ने जब प्रमिता को बताया, ‘‘हमें एक सीसीटीवी फुटेज मिली है, जिस में एक व्यक्ति दिखाई दे रहा है, जो रात में तुम्हारे घर पर आया था. वह कौन था? फिर छत पर खून कैसे आया और किस का है? चादर, तकिया तो तुम्हारे घर के ही हैं. जिन्हें तुम्हारे बच्चे ने पहचान लिया है.’’

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यह सुनते ही प्रमिता के होश उड़ गए. आवाज कंपकपाने लगी. पुलिस के आगे हथियार डालते हुए उस ने पति की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि उसी ने अपने पति की हत्या की थी.

इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

सुरेशचंद्र के 6 बेटेबेटियों में नरेश दूसरे नंबर का था. नरेश से छोटे संजय व सोनू हैं. उत्तर प्रदेश की प्रेमनगरी के नाम से मशहूर शहर आगरा के गोबर चौक में नरेश के पिता व 2 भाई व एक अविवाहित बहन रहते हैं. 2008 में नरेश की शादी आगरा के मंटोला थाना के सदर भट्टी की रहने वाली प्रमिता के साथ हुई थी.

शादी से पहले नरेश भी गोबर चौक में रहता था. शादी के 6 माह बाद ही प्रमिता अपने पति के साथ अलग रहने लगी. घटना के समय नरेश का परिवार पुष्पांजलि होम्स में किराए पर रह रहा था.

2 साल पहले नरेश कुमार का विवाद मोहल्ले के ही एक व्यक्ति से हो गया था. उस दौरान थाना शिकोहाबाद के नगला केवल निवासी रविकांत राजपूत, जो आरएसएस का महानगर प्रचारक था, के एक परिचित ने इस मामले में नरेश की मदद कराई थी. रविकांत ने नरेश कुमार की मदद की. इसी के चलते रविकांत की नरेश से जानपहचान हो गई.

घर आनेजाने के दौरान नरेश की पत्नी प्रमिता और रविकांत का मिलनाजुलना शुरू हो गया, दोनों के बीच बातचीत भी होने लगी. हमउम्र होने से दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए.

30 वर्षीय रविकांत अविवाहित था. घनिष्ठता बढ़ने पर दोनों के बीच दोस्ती हो गई और प्रेम संबंध हो गए. धीरेधीरे प्रमिता भी रविकांत के घर नगला केवल जाने लगी.

रविकांत ने अपने घर पर प्रमिता को मुंहबोली बहन बताया था. इस के चलते घर वाले भी प्रमिता के आनेजाने पर गौर नहीं करते थे. दोनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस का पता रविकांत के घर वालों को नहीं चला. इस बीच दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.

नरेश को घटना से कुछ दिन पहले जब दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी हुई तो वह विरोध करने लगा. इसी बात को ले कर नरेश और प्रमिता के बीच झगड़ा होने लगा. वह बच्चों के सामने प्रमिता की बेइज्जती करने लगा.

इस पर प्रमिता ने ठान लिया कि वह प्रेमी रविकांत के साथ ही रहेगी. दोनों के प्यार के बीच पति रोड़ा बन रहा था. इसलिए उसे रास्ते से हटाने का तानाबाना प्रमिता ने बुना. उस ने प्रेमी रविकांत के साथ पति के कत्ल की खूनी साजिश रची.

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7 जून को रविकांत अपने गांव में था. योजना के अनुसार वह बाइक से आगरा के लिए शाम को अपने छोटे भाई शशिकांत के साथ निकला. अपने घर वालों को बताया कि दोस्त की बर्थडे पार्टी में जा रहे हैं, रात में वापस आ जाएंगे.

दोनों भाई योजना के अनुसार आगरा पहुंचे. नरेश के मकान के पास ही एक मकान अधबना खाली पड़ा था. दोनों भाइयों ने अपनी बाइक उस में खड़ी कर दी. इस के बाद दोनों भाई उस मकान से नरेश के मकान की छत पर आ गए. रविकांत ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया. उस समय रात के साढ़े 10 बजे का समय था. नरेश खाना खा कर दूसरे कमरे में सोने चला गया था.

इस बीच प्रमिता ने तीनों बच्चों को कोल्ड डिं्रक दी और मोबाइल दिया. कमरे का टीवी चला दिया, बच्चे खुश हो गए. कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी. पति ने शराब पी रखी थी, वह गहरी नींद में सो चुका था.

 

जब प्रमिता ने अच्छी तरह परख लिया कि पति गहरी नींद में हैं, तब उस ने शशिकांत के मोबाइल पर ओके का मैसेज भेजा. दोनों भाई मकान में नीचे आ गए. सो रहे नरेश के सिर पर ईंटों से तीनों ने ताबड़तोड़ प्रहार किए.

बिस्तर पर खून बिखर गया. सिर से बह रहे खून को देख कर प्रमिता ने सिर पर पौलीथिन की थैली लगा दी, जिस से खून न गिरे.

सिर पर किए गए प्रहार से नरेश ने पल भर में दम तोड़ दिया. इस के बाद तीनों ने मिल कर शव को बोरे में बंद किया. कमरे के फर्श पर बिखरे खून को चादर से प्रमिता ने पोंछने के बाद धो दिया.

शशिकांत की पैंट पर हत्या के दौरान मृतक का खून लग गया था. उस ने अपनी पैंट उतारने के बाद कमरे में टंगी नरेश की पैंट पहन ली. इस के बाद बोरे को उठा कर छत पर ले गए और पीछे प्लौट में फेंक दिया. खून से सने सभी कपड़े दूसरी बोरी में भर कर लाश से लगभग 200 मीटर दूर उसी प्लौट में फेंक दिए.

हत्या करने के बाद रविकांत और शशिकांत रात साढ़े 12 बजे ही चले गए. अंधेरा होने की वजह से छत पर पड़ा खून दिखाई नहीं दिया.

 

पति की हत्या से प्रमिता घबरा गई थी, जिस के कारण वह छत पर पड़े खून को साफ नहीं कर सकी थी. प्रमिता के मोबाइल में चैटिंग थी, हत्या के बाद उस ने सारी चैट डिलीट कर दी, जिस से पुलिस मोबाइल देखे तो पता नहीं चल सके.

रविकांत ने भी ऐसा ही किया. पुलिस ने हत्या में पुख्ता सबूत के लिए चैट को फोरैंसिक एक्सपर्ट की मदद से रिकवर कराने के लिए भेज दिया है.

प्रमिता से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने शेष हत्यारोपियों की गिरफ्तारी के लिए कई स्थानों पर दबिश डाली. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी ने आरोपी प्रेमी रविकांत को आगरा में टीडीआई माल के पास से घटना में प्रयुक्त मोटरसाइकिल के साथ उसी दिन गिरफ्तार कर लिया. आरोपी की निशानदेही पर पुलिस ने आला कत्ल खून से सनी ईंटें भी बरामद कर लीं.

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9 जून को एसएसपी मुनिराज ने प्रैस कौन्फ्रैंस में घटना में शामिल 2 अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानकारी देते हुए सनसनीखेज घटना का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने 9 जून, 2021 को दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने हत्याकांड में शामिल तीसरे हत्यारोपी शशिकांत को भी 10 जून की रात को गिरफ्तार कर दूसरे दिन जेल भेज दिया.

प्रमिता ने 12 साल पहले जिस नरेश कुमार के साथ सात फेरे लिए, उसे ही अपने प्रेमी व उस के भाई के साथ मिल कर खूनी साजिश के तहत मौत की नींद सुला दिया. एक सीधासादा पति अपनी बेवफा पत्नी के अवैध संबंधों की भेंट चढ़ गया.

प्रमिता ने अपना बसाबसाया घर भी उजाड़ लिया. अब बच्चों को मांबाप का प्यार नहीं मिल सकेगा. फिलहाल तीनों बच्चों को दादादादी अपने साथ ले गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक की सुई और हत्या

जिस तरह अपराध की जड़ -“जर जोरू और जमीन” को माना गया है उसी तरह पति पत्नी के बीच हत्या का एक महत्वपूर्ण कारक शक भी है जिसके कारण जाने कितने लोगों की जान चली जाती है.

आमतौर पर महिलाएं ही पति के शक्की स्वभाव के कारण मार डाली जाती है, और शायद इसीलिए कहा भी गया है कि शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है. मगर यह भी सच है कि सत्य कारण अपने खून रंगे हाथों के साथ पति जेल की चक्की पिसता है और जिंदगी भर पछताना पड़ता  है.

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ऐसा ही एक घटनाक्रम छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले में घटित हुआ जहां एक पति ने पत्नी को से इसलिए मौत के घाट उतरवा दिया क्योंकि उसे शक था कि पत्नी के किसी से अवैध संबंध है.  बलौदा थाना क्षेत्र के छाता जंगल में विगत 15 जून की रात नाटकीय घटनाक्रम घटित हुआ था, कथित रूप से लुटेरों ने कार में सवार एक जोड़े को लूट कर महिला की हत्या कर दी. जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी तो सच्चाई सामने आती चली गई अब‌ पुलिस का खुलासा है कि इस मामले में मृतका का पति मुख्य आरोपी है. मृतक दीप्ति सोनी के पति देवेंद्र सोनी ने दो अन्य साथियों के साथ मिलकर  अपनी पत्नी को लूटकर मारने की घटना को अंजाम दिया था.

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चरित्र संशय से जिंदगी तबाह

पति देवेंद्र को जब पत्नी  दीप्ति यह  शक हुआ कि उसके किसी गैर मर्द से संबंध है तो नित्य प्रतिदिन घर में वाद विवाद होने लगा परिस्थिति इस मोड़ पर आ पहुंची की एक दिन दीप्ति की हत्या अपने घरेलू नौकर के साथ मिलकर करवा दी.

घटना कारित करने के पश्चात पति ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी थी कि उसकी पत्नी को लुटेरों ने लूट कर मार डाला है.

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दरअसल, बिलासपुर की रहने वाली दीप्ति सोनी का विवाह  बिलासपुर के देवेंद्र सोनी से हुआ था. जिले  की महिला पुलिस अधीक्षक पारुल माथुर ने हमारे संवाददाता को बताया कि विवाह के कुछ साल बाद चरित्र संशय को लेकर दोनों के बीच पारिवारिक झगड़ा शुरू हो गया था. इसके बाद दीप्ति सोनी के पति देवेंद्र सोनी ने  दीप्ति की मां को आने-जाने से रोक दिया था और पत्नी पर शक के चलते देवेंद्र सोनी ने उनकी पत्नी की हत्या की साजिश रचकर उनकी हत्या करा दी. उसने दो लोगों को पैसा का लालच देकर  सहयोगी  बनाया.

कुल जमा आरोपी पति ने अपनी पत्नी के चरित्र पर शक की आग में जलकर अपनी पत्नी की हत्या कर खुद को और अपने दो साथियों को हत्यारा बना लिया . बलौदा पुलिस टीम ने इस पूर्व नियोजित लूट व हत्या के मास्टरमाइंड आरोपी पति देवेंद्र सोनी, उसके साथी प्रदीप सोनी व उसकी पत्नी शालू सोनी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.

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