Short Story: कोरोना का खौफ

मैं पिछले 2 वर्षों से दिल्ली में अपनी चाची के यहां रह कर पढ़ाई कर रही हूं. चाची का घर इसलिए कहा क्योंकि घर में चाचू की नहीं, बल्कि चाची की चलती है. मेरे अलावा घर में 7 साल का गोलू, 14 साल का मोनू और 47 साल के चाचू हैं. गोलू और मोनू चाचू के बेटे यानी मेरे चचेरे भाई हैं.

मार्च 2020 की शुरुआत में जब कोरोना का खौफ समाचारों की हैडलाइन बनने लगा तो हमारी चाचीजी के भी कान खड़े हो गए. वे ध्यान से समाचार पढ़तीं और सुनती थीं. कोरोना नाम का वायरस जल्दी ही उन का जानी दुश्मन बन गया जो कभी भी चुपके से उन के हंसतेखेलते घर की चारदीवारी पार कर हमला बोल सकता था. इस अदृश्य मगर खौफनाक दुश्मन से जंग के लिए चाची धीरेधीरे तैयार होने लगी थीं.

‘‘दुश्मन को कभी भी कमजोर मत समझो. पूरी तैयारी से उस का सामना करो,’’ अखबार पढ़ती चाची ने अपना ज्ञान बघारना शुरू किया तो चाचू ने टोका, ‘‘कौन दुश्मन? कैसा दुश्मन?’’

‘‘अजी, अदृश्य दुश्मन जो पूरी फौज ले कर भारत में प्रवेश कर चुका है. हमले की तैयारी में है. चौकन्ने हो जाओ. हमें डट कर सामना करना है. उसे एक भी मौका नहीं देना है. कुछ समझे?’’

‘‘नहीं श्रीमतीजी. मैं कुछ नहीं समझा. स्पष्ट शब्दों में समझाओगी?’’

‘‘चाचू, कोरोना. कोरोना हमारा दुश्मन है. चाची उसी के साथ युद्ध की बात कर रही हैं.’’ मुसकराते हुए मैं ने कहा तो चाची ने हामी भरी, ‘‘देखो जी, सब से पहला काम, रसद की आपूर्ति करनी जरूरी है. मैं लिस्ट बना कर दे रही हूं. सारी चीजें ले आओ.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब राशन है?’’

‘‘हां, राशन भी है और उस के अलावा भी कुछ जरूरी चीजें ताकि हम खुद को लंबे समय तक मजबूत और सुरक्षित रख सकें.’’

इस के कुछ दिनों बाद ही अचानक लौकडाउन हो गया. अब तक कोरोना वायरस का खौफ चाची के दिमाग तक चढ़ चुका था. अखबार, पत्रिकाएं, न्यूज चैनल और दूसरे स्रोतों से जानकारियां इकट्ठी कर चाची एक बड़े युद्ध की तैयारी में लग गई थीं.

ये भी पढ़ें- Short Story: सासुजी हों तो हमारी जैसी…

वे दुश्मन को घुसपैठ का एक भी मौका देना नहीं चाहती थीं. इस के लिए उन्होंने बहुत से रास्ते अपनाए थे. आइए आप को भी बताते हैं कि कितनी तैयारी के साथ. वे किसी सदस्य को घर से बाहर भेजती और कितनी आफतों के बाद किसी सदस्य को या बाहरी सामान को घर में प्रवेश करने की इजाजत देती थीं.

सुबहसुबह चाचू को टहलने की आदत थी जिस पर चाची ने बहुत पहले ही कर्फ्यू लगा दिया था. मगर चाचू को सुबह मदर डेयरी से गोलू के लिए गाय का खुला दूध लेने जरूर जाना पड़ता है.

चाचू दूध लाने के के लिए सुबह ही निकलते तो चाची उन्हें कुछ ऐसे तैयार होने की ताकीद करतीं, ‘‘पाजामे के ऊपर एक और पाजामा पहनो. टीशर्ट के ऊपर कुरता डालो. पैरों में मोजा और चेहरे पर चश्मा लगाना मत भूलना. नाक पर मास्क और बालों को सफेद दुपट्टे से ढको. इस दुपट्टे के दूसरे छोर को मास्क के ऊपर कवर करते हुए ले जाओ.’’

चाची को डर था कि कहीं मास्क के बाद भी चेहरे का जो हिस्सा खुला रह गया है वहां से कोरोना नाम का दुश्मन न घुस जाए. इसलिए डाकू की तरह पूरा चेहरा ढक कर उन्हें बाहर भेजतीं.

जब चाचू लौटते तो उन्हें सीधा घर में घुसने की अनुमति नहीं थी. पहले चाचू का चीरहरण चाची के हाथों होता. ऊपर पहनाए गए कुरतेपाजामे और दुपट्टे को उतार कर बरामदे की धरती पर एक कोने में फेंक दिया जाता. फिर मोजे भी उतरवा कर कोने में रखवाए जाते. अब सर्फ का झाग वाला पानी ले कर उन के पैरों को 20 सैकंड तक धोया जाता. फिर चप्पल उतरवा कर अंदर बुलाया जाता.

इस बीच अगर उन्होंने गलती से परदा टच भी कर दिया तो चाची तुरंत परदा उतार कर उसी कोने में पटक देतीं.

अब चाचू के हाथ धुलाए जाते. पहले 20 सैकंड डिटौल हैंडवाश से ताकि कहीं किसी भी कोने में वायरस के छिपे रह जाने की गुंजाइश भी न रह जाए. इस के बाद उन्हें सीधे गुसलखाने में नहाने के लिए भेज दिया जाता.

अगर चाचू बिना पूछे कुछ ला कर कमरे या फ्रिज में रख देते, तो वे हल्ला करकर के पूरा घर सिर पर उठा लेतीं.

चाचू जब दुकान से दूध और दही के पैकेट खरीद कर लाते तो चाची उन्हें भी कम से कम दोदो बार 19-20 सैकंड तक साबन से रगड़रगड़ कर धोतीं.

एक बात और बता दूं, घर के सभी सदस्यों के लिए बाहर जाने के चप्पल अलग और घर के अंदर घूमने के लिए अलग चप्पल रखवा दी गई थीं. मजाल है कि कोई इस बात को नजरअंदाज कर दे.

सब्जी वाले भैया हमारी गली के छोर पर आ कर सब्जियां दे जाते थे. सब्जी खरीदने का काम चाची ने खुद संभाला था. इस के लिए पूरी तैयारी कर के वे खुद को दुपट्टे से ढक कर निकलतीं.

कुछ समय पहले ही उन्होंने प्लास्टिक के थैलों के 2-3 पैकेट खरीद लिए थे. एक पैकेट में 40-50 तक प्लास्टिक के थैले होते थे. आजकल यही थैले चाची सब्जियां लाने के काम में ला रही थीं.

सब्जी खरीदने जाते वक्त वे प्लास्टिक का एक बड़ा थैला लेतीं और एक छोटा थैला रखतीं. छोटे थैले में रुपएपैसे होते थे जिन्हें वे टच भी नहीं करती थीं. सब्जी वाले के आगे थैला बढ़ा कर कहतीं कि रुपए निकाल लो और चेंज रख दो.

अब बात करते हैं बड़े थैले की. दरअसल चाची सब्जियों को खुद टच नहीं करती थीं. पहले जहां वे एकएक टमाटर देख कर खरीदा करती थीं, अब कोरोना के डर से सब्जी वाले को ही चुन कर देने को कहतीं और खुद दूर खड़ी रहतीं. सब्जीवाला अपनी प्लास्टिक की पन्नी में भर कर सब्जी पकड़ाता तो वे उस के आगे अपना बड़ा थैला कर देती थीं जिस में सब्जी वाले को बिना छुए सब्जी डालनी होती थी.

सब्जी घर ला कर चाची उसे बरामदे में एक कोेने में अछूतों की तरह पटक देतीं. 12 घंटे बाद उसे अंदर लातीं और वाशबेसिन में एक छलनी में डाल कर बारबार धोतीं. यहां तक कि सर्फ का झाग वाला पानी 20 सैकंड से ज्यादा समय तक उन पर उड़ेलती रहतीं. काफी मशक्कत के बाद जब उन्हें लगता कि अब कोरोना इन में सटा नहीं रह गया और ये सब्जियां फ्रिज में रखी जा सकती हैं, तो धोना बंद करतीं. सब्जी बनाने से पहले भी हलके गरम पानी में नमक डाल कर उन्हें भिगोतीं.

ये भी  पढ़ें- Short Story: मिसेज चोपड़ा, मीडिया और न्यूज

दिन में कम से कम 50 बार वे अपना हाथ धोतीं. अखबार छुआ तो हाथ धोतीं, सब्जी छू ली तो हाथ धोतीं. दरवाजे का कुंडा या फ्रिज का हैंडल छुआ तो भी हाथ धोतीं. हाथ धोने के बाद भी कोई वायरस रह न जाए, इस के लिए सैनिटाइजर भी लगातीं.

नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन के हाथों की त्वचा ड्राई और सफेद जैसी हो गई. उन्हें चर्म रोग हो गया था. इधर पूरे दिन कपड़ों और बरतनों की बारात धोतेधोते उन्हें सर्दी लग गई. नाक बहने लगी, छींकें भी आ गईं.

अब तो चाची ने घर सिर पर उठा लिया. कोरोना के खौफ से वे एक कमरे में बंद हो गईं और खुद को ही क्वारंटाइन कर लिया. डर इतना बढ़ गया कि बैठीबैठी रोने लगतीं. 2 दिन वे इसी तरह कमरे में बंद रहीं.

तब मैं ने समझाया कि हर सर्दीजुकाम कोरोना नहीं होता. मैं ने उन्हें कुछ दवाइयां दीं और चौथे दिन वे बिल्कुल स्वस्थ हो गईं. मगर कोरोना के खौफ की बीमारी से अभी भी वे आजाद नहीं हो पाई हैं.

ये भी पढ़ें- Short Story: 3 किरदारों का अनूठा नाटक

Serial Story: काले घोड़े की नाल- भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

उस दिन रानी वापस तो आई, पर उस का मन जैसे कहीं छूट सा गया था. बारबार उस के मन में आ रहा था कि वह जा कर चंद्रिका से खूब बातें करे, उस के साथ में जीने का एहसास पहली बार हुआ था उसे.

इस बीच रानी कभीकभी अकेले ही अस्तबल चली जाती. एक दिन उस ने चंद्रिका का एक अलग ही रूप देखा.

‘‘बस, कुछ दिन और बादल… मु?ो बस इस बार के मेले में होने वाली दौड़ का इंतजार है, जिस में मुखिया से मेरा हिसाब बराबर हो जाएगा… मु?ो इस मुखिया ने बहुत सताया है.’’

‘‘यह चंद्रिका आज कैसी बातें कर रहा है? कैसा हिसाब…? और मुखियाजी ने क्या सताया है तुम्हें?’’ एकसाथ कई सवाल सुन कर घबरा गया था चंद्रिका.

‘‘जाने दीजिए… हमें इस बारे में कुछ नहीं कहना है.’’

‘‘नहीं, तुम्हें बताना पड़ेगा… तुम्हें हमारी कसम,’’ चंद्रिका का हाथ पकड़ कर रानी ने अपने सिर पर रखते हुए कहा था. न चाहते हुए भी चंद्रिका को बताना पड़ा कि वह अनाथ था. मुखियाजी ने उसे रहने की जगह और खाने के लिए भोजन दिया. उन्होंने ही चंद्रिका की शादी भी कराई और फिर चंद्रिका को बहाने से शहर भेज दिया और उस के पीछे उस की बीवी की इज्जत लूटने की कोशिश की, पर उस की बीवी स्वाभिमानी थी. उस ने फांसी लगा ली…

बस, तब से चंद्रिका हर 8 साल बाद होने वाले इस मेले का इंतजार कर रहा है, जब वह बग्घी दौड़ में मुखियाजी को बग्घी से गिरा कर मार देगा और इस तरह से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेगा.

रानी को सम?ाते देर न लगी कि ऊपर से चुप रहने वाला चंद्रिका अंदर से कितना भरा हुआ है. वह कुछ न बोल सकी और लौट आई.

रानी के मन में चंद्रिका की मरी हुई पत्नी के लिए श्रद्धा उमड़ रही थी. अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने अपनी जिंदगी ही खत्म कर दी.

इस के जिम्मेदार तो सिर्फ मुखियाजी हैं… तब तो उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए… पर कैसी सजा…? किस तरह की सजा…? मुखियाजी को कुछ ऐसी चोट दी जाए, जिस का दंश उन्हें जिंदगीभर ?ोलना पड़े… और वे चाह कर भी कुछ न कर सकें… आखिरकार रानी को उस के पति से अलग करने का जुर्म भी तो मुखियाजी ने ही किया है.

ये भी पढ़ें- हार: आखिर कौन हारा और कौन जीता

अगली सुबह रानी सीधा अस्तबल पहुंची और चंद्रिका से कुछ बातें कीं, जिन्हें सुन कर चंद्रिका परेशान सा दिखाई दिया था.

वापस आते समय रानी चंद्रिका से काले घोड़े की नाल भी ले आई थी… यह कहते हुए कि देखते हैं कि  तुम्हारे इस अंधविश्वास में कितनी सचाई है और वह काले घोड़े की नाल उस ने मुखियाजी के कमरे के बाहर टांग दी थी.

रात में रानी ने घर का सारा कीमती सामान और नकदी एक बैग में रखी और अस्तबल पहुंच गई. रानी और चंद्रिका दोनों बादल की पीठ पर बैठ कर शहर की ओर जाने वाले थे, तभी चंद्रिका ने पूछा, ‘‘पर, इस तरह तुम को भगा ले जाने से मेरे बदले का क्या संबंध…?’’

‘‘मैं ने अपने पति को एक चिट्ठी लिखी है, जिस में उसे अपनी पत्नी का ध्यान न रख पाने का जिम्मेदार ठहराया है… वह तिलमिलाता हुआ आएगा और मुखियाजी से सवाल करेगा…

‘‘दोनों भाइयों में कलह तो होगी ही, साथ ही साथ पूरे गांव में मुखियाजी की बहू के उन के घोड़ों के नौकर के साथ भाग जाने से उन की आसपास के सात गांव में जो नाक कटेगी, उस का घाव जिंदगीभर रिसता रहेगा… यह होगा हमारा असली बदला,’’ रानी की आंखें चमक रही थीं.

रानी ने उसे यह भी बताया, ‘‘माना कि मुखियाजी को वह मार सकता है, पर भला उस से क्या होगा? एक ?ाटके में वह मुक्त हो जाएगा और फिर उस पर हत्या का इलजाम भी लग सकता है और फिर मुखिया भले ही बहुत बुरा आदमी है, पर मुखियाइन का भला क्या दोष? उस के जिंदा रहने से उस की जिंदगी जुड़ी हुई है और फिर उसे मार कर बेकार पुलिस के पचड़े में पड़ने से अच्छा है कि उसे ऐसी चोट दी जाए, जो जिंदगीभर सालती रहे.

ये भी पढ़ें- Serial Story: शब्दचित्र- भाग 1

‘‘और हां… अब तो मानते हो न कि तुम्हारी वह बुरे वक्त से बचाने वाली काले घोड़े की नाल वाली बात एक कोरा अंधविश्वास के अलावा कुछ भी नहीं है… क्योंकि मुखियाजी का बुरा वक्त तो अब शुरू हुआ है, जिसे कोई नालवाल बचा नहीं सकती.’’

रानी की बात सुन कर चंद्रिका के चेहरे पर एक मुसकराहट फैल गई.  उस ने बड़ी जोर से ‘हां’ में सिर को हिलाया और बादल को शहर की ओर दौड़ा दिया.

Serial Story: पति की संतान- भाग 2

सरिता घबरा गई. उस ने प्यार से हरीतिमा के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘तुम ने आखिर बेवकूफी कर ही दी. जब यह सब कर रही थी तो सावधानी क्यों नहीं बरती? कितना समय हो गया? अभी जा कर अपने चाहने वाले के साथ मिल कर डाक्टर से अबौर्शन करा लो. बाद में मुसीबत में पड़ जाओगी और तुम्हारे आशिक को बलात्कार के जुर्म में जेल हो जाएगी. इतना तो समझती होगी कि 18 साल से कम उम्र की लड़की से संबंध बनाना बलात्कार कहलाता है?’’

हरीतिमा ने कुछ नहीं कहा.

‘‘चुप रहने से काम नहीं चलेगा…’’ सरिता ने गुस्से में कहा, ‘‘मैं इस हालत में तुम्हें काम पर नहीं रख सकती. अभी इसी वक्त निकल जाओ मेरे घर से.’’

हरीतिमा रोने लगी. उस ने सरिता के पैर पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैडम, गलती हो गई. मुझे माफ कर दीजिए. आप ही कोई रास्ता निकालिए. मैं इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

सरिता को गुस्सा तो था लेकिन हरीतिमा की जरूरत भी थी. उस ने अपने परिचित डाक्टर को दिखाया. एक महीने का पेट था. 5,000 रुपए ले कर डाक्टर ने आसानी से पेट गिरा दिया.

सरिता ने फिर डांटा, समझाया और दोबारा ऐसी गलती न करने को कहा.

रात में उसे अपने पास बिठा कर प्यार से पूछा, ‘‘कौन है वह, जिस के साथ तुम्हारे संबंध बने? चाटपकौड़े की दुकान में मिला वह लड़का?’’

हरीतिमा चुप रही. सरिता समझ गई कि वह बताना नहीं चाहती.

रतनलाल की ठीक होती तबीयत अचानक बिगड़ने लगी. उन्हें फिर अस्पताल ले जाया गया. डाक्टरों ने हालत गंभीर बताई. जिस कैंसर से वे उबर चुके थे, वही कैंसर उन्हें पूरी तरह अंदर ही अंदर खोखला कर चुका था.

अस्पताल में ही रतनलाल की मौत हो गई. उस दिन सरिता फूटफूट कर रोई और हरीतिमा अकेले में अपनी रुलाई रोकने की कोशिश करती रही.

पति के अंतिम संस्कार की सारी रस्में निबट चुकी थीं. सरिता की जिंदगी अपने ढर्रे पर आ चुकी थी. बच्चे अपनी पढ़ाई में लग चुके थे. दुख की परतें अब छंटने लगी थीं.

तभी फिर सरिता को हरीतिमा में वे सारे लक्षण दिखे जो एक गर्भवती औरत में दिखाई देते हैं. इस बार हरीतिमा अपने पेट को छिपाने की कोशिश करती नजर आ रही थी.

ये भी पढ़ें- गणपति का जन्म: विकृत बच्चे को देख क्या हुआ

सरिता ने उसे गुस्से में थप्पड़ जड़ कर कहा, ‘‘फिर वही पाप…’’ इस बार हरीतिमा ने जवाब दिया, ‘‘पाप नहीं, मेरे प्यार की निशानी है.’’

हरीतिमा का जवाब सुन कर सरिता सन्न रह गई, ‘‘प्यार समझती भी हो? यह प्यार नहीं हवस है, बलात्कार है. चलो, अभी डाक्टर के पास,’’ सरिता ने गुस्से में कहा.

‘‘मैं नहीं गिराऊंगी.’’

‘‘यह कानूनन अपराध है. जेल जाएगा तुम्हारा आशिक.’’

‘‘कुछ भी हो, मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? समझती क्यों नहीं हो?’’

‘‘हां, मेरा दिमाग खराब है. प्यार ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है.’’

‘‘बुलाओ इस बच्चे के बाप को.’’

‘‘वे अब इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘क्या… कौन है वह?’’

‘‘मैं उन्हें बदनाम नहीं करना चाहती.’’

‘‘चली जाओ यहां से.’’

हरीतिमा चली गई. सरिता ने एजेंसी वाले को फोन कर दिया.

एजेंसी वाले ने कहा, ‘‘आप निश्चिंत रहिए. मैं सब संभाल लूंगा.’’

सरिता निश्चिंत हो गई. कुछ दिन बीत गए. एक दिन वह घर की साफसफाई करने लगी. पति के कमरे का नंबर आया तो सरिता ने पति के सारे कपड़े, पलंग, बिस्तर सबकुछ दान कर दिया. वह एक अरसे बाद पति के कमरे में गई थी.

कमरा पूरी तरह खाली था. बस, एक पैन और डायरी रखी थी. सरिता ने डायरी के पन्ने पलटे. कुछ जगह हिसाब लिखा हुआ था. कुछ कागजों पर दवा लेने की नियमावली. एक पन्ने पर हरी स्याही से लिखा था हरीतिमा. यह नाम पढ़ कर वह चौंक गई. उस ने अपने कमरे में जा कर हरीतिमा के बाद पढ़ना शुरू किया…

ये भी पढ़ें- कालेजिया इश्क: इश्कबाजी की अनोखी कहानी

Serial Story: पति की संतान- भाग 3

‘सरिता, माना कि 15 साल की लड़की से प्यार करना गलत है. उस से संबंध बनाना अपराध है. लेकिन इस अपराध की हिस्सेदार तुम भी हो. मैं बीमार क्या हुआ, तुम ने मुझे मरा ही समझ लिया. अपना कमरा बदल लिया. मेरे कमरे में आना, मुझ से मिलना तक बंद कर दिया.

‘‘मेरे दिल पर क्या गुजरती होगी, तुम ने सोचा कभी? लेकिन तुम तो जिम्मेदारियां निभाने में लगी थीं. मैं तो जैसे अछूत हो चुका था तुम्हारे लिए.

‘सच कहूं तो मैं तुम्हारी बेरुखी देख कर ठीक होना ही नहीं चाहता था. लेकिन मैं ठीक हुआ हरीतिमा की देखभाल से. उस के प्यार से.

‘हां, मैं ने हरीतिमा से तुम्हारी शिकायतें कीं. उस से प्यार के वादे किए. उस के पैर पड़ा कि मेरी जिंदगी में तुम्हीं बहार ला सकती हो. मुझे तुम्हारी जरूरत है हरीतिमा. मैं तुम से प्यार करता हूं.

‘कम उम्र की नाजुक कोमल भावों से भरी लड़की मेरे प्यार में बह गई. उस ने मेरी जिस्मानी और दिमागी जरूरतें पूरी कीं.

‘हां, वह मेरे ही बच्चे की मां बनने वाली है. मैं उस के बच्चे को अपना नाम दूंगा. दुनिया इसे पाप कहे या अपराध, लेकिन वह मेरा प्यार है. मेरी पतझड़ भरी जिंदगी में वह हरियाली बन कर आई थी.

‘इस घर पर जितना तुम्हारा हक है, उतना ही हरीतिमा का भी है. लेकिन अब मुझे लगने लगा है कि मैं बचूंगा नहीं. अचानक से सारे शरीर में पहले की तरह भयंकर दर्द उठने लगा है.

‘मैं तुम से किसी बात के लिए माफी नहीं मांगूंगा. चिंता है तो बस हरीतिमा की. अपने होने वाले बच्चे की. उसे तुम्हारी दौलत नहीं चाहिए. तुम्हारा बंगला, तुम्हारा बैंक बैलैंस नहीं चाहिए. उसे बस सहारा चाहिए, प्यार चाहिए.’

डायरी खत्म हो चुकी थी. सरिता अवाक थी. उसे अपने पति पर गुस्सा आ रहा था और खुद पर शर्मिंदगी भी. किस तरह झटक दिया था उस ने अपने पति को. बीमारी, लाचारी की हालत में. हां, वही जिम्मेदार है अपने पति की बेवफाई के लिए. इसे बेवफाई कहें या अकेले टूटे हुए इनसान की जरूरत.

सरिता को उसी एजेंसी से दूसरी लड़की मिल चुकी थी. उस ने पूछा, ‘‘तुम हरीतिमा को जानती हो?’’

‘‘नहीं मैडम, एजेंसी वाले जानते होंगे.’’

सरिता ने एजेंसी में फोन लगा कर बात की.

एजेंसी वाले ने कहा, ‘क्या बताएं मैडम, किस के प्यार में थी? बच्चा गिराने को भी तैयार नहीं थी. न ही मरते दम तक बच्चे के बाप का नाम बताया.’

‘‘मरते दम तक… मतलब?’’ सरिता ने पूछा.

‘हरीतिमा बच्चे को जन्म देते समय ही मर गई थी.’

‘‘क्या…’’ सरिता चौंक गई ‘‘और बच्चा…’’

‘‘वह अनाथाश्रम में है.’’

सरिता सोचने लगी, ‘एक मैं हूं जिस ने पति के बंगले, कारोबार, बैंक बैलैंस को अपना कर पति को छोड़ दिया बंद कमरे में. बीमार, लाचार पति. बच्चों तक को दूर कर दिया. और एक गरीब हरीतिमा, जिस ने न केवल बीमारी की हालत में पति की देखभाल की, अपना सबकुछ सौंप दिया. यह जानते हुए भी कि उसे कुछ नहीं मिलेगा सिवा बदनामी के.

‘उस ने अपने प्यार की निशानी को जन्म दिया. वह चाहती तो क्या नहीं कर सकती थी? इस धनदौलत पर उस का भी हक बनता था. वह ले सकती थी लेकिन उस ने सबकुछ छोड़ दिया अपने प्यार की खातिर. उस ने एक बीमार मरते आदमी से प्यार किया और उसे निभाया भी और एक मैं हूं…

ये भी पढ़ें- Short Story: बदलाव की आंधी

‘चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हरीतिमा के प्यार की निशानी, अपने पति के बच्चे को इस घर में ला कर रहूंगी. मैं पत्नी का धर्म तो नहीं निभा सकी, पर उन की संतान के प्रति मां होने की जिम्मेदारी तो निभा ही सकती हूं.’

सारी कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद सरिता बच्चे को घर ले आई.

Serial Story: पति की संतान- भाग 1

हरीतिमा के आने से सरिता की परेशानी बहुत कम हो गई थी, क्योंकि वह घर का सारा काम संभाल लेती थी.

पहले सरिता घर के बहुत से काम निबटा लेती थी. लेकिन जब से पति बीमार हुए थे और बिस्तर पकड़ चुके थे तब से पार्ट टाइम कामवाली बाई से उस का काम नहीं चलता था. उसे परमानैंट नौकरानी की जरूरत थी जो पूरा घर संभाल सके.

सरिता को पति का मैडिकल स्टोर सुबह से रात तक चलाना होता था. दुकान में 3 नौकर थे. सरिता बीच में थोड़ी देर के लिए खाना खाने और फ्रैश होने घर आती थी. सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक उसे मैडिकल स्टोर पर बैठना पड़ता था. काम सारा नौकर ही करते थे लेकिन हिसाब उसे ही देखना पड़ता था.

काफी समय तक सरिता को बहुत समस्या हुई. घर में एक बेटा, एक बेटी थे जो 8वीं और 9वीं क्लास में पढ़ते थे. उन के लिए चाय, नाश्ता, सुबह का टिफिन तैयार कर के स्कूल भेजना और शाम की चाय के बाद भोजन तैयार करना और खिलाना सब हरीतिमा की जिम्मेदारी थी.

बीमार पति को समय पर दवाएं और डाक्टर के बताए मुताबिक भोजन देना… यह सब हरीतिमा के बिना मुमकिन नहीं था.

सरिता जब बहुत परेशान हो गई तब उस ने एजेंसी में जा कर कई बार परमानैंट नौकरानी का इंतजाम करने के लिए कहा.

एक दिन एजेंसी के मालिक ने कहा, ‘‘अभी तो कोई लड़की नहीं है. जल्द ही असम और बिहार से लड़कियां आने वाली हैं. मैं आप को बता दूंगा.’’

सरिता ने एजेंसी वाले से कहा, ‘‘आप ज्यादा कमीशन ले लेना. लड़की को अच्छी तनख्वाह के साथ रहनेखाने की सारी सुविधाएं भी दूंगी लेकिन मुझे उस की सख्त जरूरत है.’’

और जल्द ही एजेंसी वाले का फोन आ गया. एजेंसी से 13 साल की हरीतिमा को लाने के बाद सरिता की सारी मुसीबतों का हल हो गया.

हरीतिमा सुबह से रात तक चकरघिन्नी बनी रहती. पूरे घर का काम करती. घर के हर सदस्य का ध्यान रखती.

हर समय पूरा घर साफसुथरा रहता. हरीतिमा हमेशा काम करती नजर आती. न कोई नखरा, न कोई शिकायत और न कोई छुट्टी.

ये भी पढ़ें- Short Story: भूत नहीं भरम

13 साल की खूबसूरत, गोरी, नाजुक, मेहनती हरीतिमा बिहार के एक छोटे से गांव की थी. घर की माली हालत खराब थी. मां बीमार थीं. घर में 2 छोटे भाई थे. उस के पिता बचपन में ही गुजर गए थे.

शुक्रवार को जब मैडिकल स्टोर बंद रहता तब सरिता उस से बात करती. उस से पूछती, ‘‘किसी चीज की कोई जरूरत हो तो बेझिझक कहना. खाने में जो पसंद हो, बना कर खा लिया करो.’’

हरीतिमा को पढ़ने का शौक था. सरिता उस के लिए किताबें भी ला देती.

पति रतनलाल के एक के बाद एक 2-3 बड़े आपरेशन हुए थे. उन्हें आराम की सख्त जरूरत थी.

सरिता पति के कमरे में कम ही जाती थी. कमरे से आती दवाओं और गंदगी की बदबू से उसे उबकाई आती थी. पति की ऐसी बुरी दशा देखने का भी उस का मन नहीं करता था.

पति बिस्तर पर लेटे रहते. काफी समय तक तो उन के मलमूत्र का मार्ग बंद कर प्लास्टिक की थैलियां लटका दी गई थीं. उन्हें साफ करने का काम पहले तो एक नर्स करती थी, बाद में रतनलाल खुद करने लगे थे. लेकिन अब हरीतिमा ने इस जिम्मेदारी को संभाल लिया था.

सरिता को लगता था कि उस के पति की जिंदगी एक तरह से खत्म ही हो चुकी है. उन्हें बाकी जिंदगी बिस्तर पर ही गुजारनी है. ठीक हो भी गए तो पहले जैसे नहीं रहेंगे.

सरिता ने अपना कमरा अलग तैयार कर लिया था. अपनी जरूरतों के हिसाब से सबकुछ अपने कमरे में रख लिया था. बच्चे बड़े हो रहे थे. वह गलती से ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती थी कि बच्चों की जिंदगी पर उस का बुरा असर पड़े.

सरिता की उम्र 40 साल थी और पति की उम्र 45 साल के आसपास. पिछले एक साल से वह पति की दुकान और घर सब देख रही थी.

आज रतनलाल को प्लास्टिक की थैली निकलवाने जाना था, लेकिन यह बहुत आसान काम नहीं था.

सरिता को साथ जाना था लेकिन उस ने कह दिया, ‘‘मैं जा कर क्या करूंगी? मुझ से यह सब देखा नहीं जाता. तुम हरीतिमा को साथ ले जाओ. फिर मुझे दुकान भी देखनी है. काम करूंगी तो पैसा आएगा. आप के इलाज में लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं.’’

ये भी पढ़ें- उसके साहबजी: श्रीकांत की जिंदगी में आई शांति

तय हुआ कि हरीतिमा ही साथ जाएगी.

रतनलाल अस्पताल से 3 दिन बाद घर वापस आए. उन्हें परहेज के साथ दवाएं समय पर लेनी थीं.

हरीतिमा बोर न हो, इस वजह से सरिता शुक्रवार को उसे बच्चों के साथ बाहर घुमाने ले जाती. बच्चे जो खाते, हरीतिमा को भी खिलाया जाता. चाट, पकौड़े, गोलगप्पे. बच्चे पार्क में खेलते तो हरीतिमा भी साथ में खेलती. बच्चों के लिए कपड़े खरीदने जाते तो हरीतिमा के लिए भी खरीदे जाते.

चाट खाते समय एक लड़के ने हरीतिमा से बात की. सरिता को अच्छा नहीं लगा. लौटते समय सरिता ने उस से पूछा, ‘‘तुम इसे कैसे जानती हो?’’

‘‘मेरे मुल्क का है मैडम.’’

‘‘मुल्क के नहीं राज्य के. मुल्क तो हम सब का एक ही है,’’ सरिता ने हंसते हुए कहा, फिर उसे समझाया, ‘‘देखो हरीतिमा, तुम मेरी बेटी जैसी हो. इस उम्र में लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं है. अभी तुम्हारी उम्र महज 15 साल है.’’

अब हरीतिमा को अकसर ऐसी हिदायतें मिलने लगी थीं.

रतनलाल लाठी के सहारे घर में ही टहलने लगे थे. एक बार वे लड़खड़ा कर गिर गए. तब से सरिता ने हरीतिमा को हिदायत दी, ‘‘तुम अंकल को थोड़ा बाहर तक घुमा दिया करो. कहीं और कोई परेशानी न हो जाए.’’

तब से हरीतिमा घर से थोड़ी दूर बने पार्क में उन के साथ जाने लगी. वह पहले जैसी शांत और सहमी हुई नहीं थी. अब वह हंसने, बोलने लगी थी. खुश रहने लगी थी.

लेकिन हरीतिमा के खिलते शरीर और उस में आए बदलावों को देख कर सरिता जरूर चिंता में रहने लगी थी. उसे उस लड़के का चेहरा याद आया तो क्या बाहर जा कर इतनी उम्र में वह सब करने लगी थी हरीतिमा, जो उस की उम्र की लिहाज से गलत था? कहीं पेट में कुछ ठहर गया तो? सरिता ने एजेंसी वाले को सारी बात फोन पर बताई.

एजेंसी वाले ने कहा, ‘‘मैडम, यह उस का निजी मामला है. हम और आप इस में क्या कर सकते हैं? वह अपनी नौकरी से बेईमानी नहीं करती. आप के घर की देखभाल ईमानदारी से कर रही है. और आप को क्या चाहिए?’’

ये भी पढ़ें- निकम्मा बाप: उस दिन महेश ने जसदेव के साथ क्या किया

सरिता को लगा कि एजेंसी वाला ठीक ही कह रहा है. फिर हरीतिमा उस की जरूरत बन गई थी. जरूरी नहीं कि दूसरी लड़की इतनी ईमानदार हो, मेहनती हो.

सरिता इस बात को भूलने की कोशिश कर ही रही थी. 2-4 दिन ही गुजरे थे कि सरिता ने हरीतिमा को उलटी करते हुए देख लिया.

Serial Story: जड़ों से जुड़ा जीवन- भाग 4

लेखक-  वीना टहिल्यानी

मौम बिन बताए उस के लिए कितना कुछ कर गई थीं. उसे घर, धनसंपत्ति और सब से ऊपर जौन जैसा प्यारा भाई दे गई थीं.

मौम की अंतिम इच्छा को कार्यरूप देने में जौन ने भी कोई कोरकसर न छोड़ी.

स्कूल का सत्र समाप्त होते ही रोमांच से छलकती मिली हवाई यात्रा कर रही थी. जहाज में बैठी मिली को लग रहा था कि बचपन जैसे बांहें पसारे खड़ा हो. गुजरा, भूला समय किसी चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने चल रहा था.

पिछवाड़े का वह बूढ़ा बरगद जिस की लंबी जटाओं से लटक कर वह हमउम्र बच्चों के साथ झूले झूलती थी, और वेणु मौसी देख लेती तो बस, छड़ी ले कर पीछे ही पड़ जाती. बच्चों में भगदड़ मच जाती. गिरतेपड़ते बच्चे इधरउधर तितरबितर हो जाते पर मौसी का कोसना देर तक जारी रहता.

विमान ने कोलकाता शहर की धरती को छुआ तो मिली का मन आकाश की अनंत ऊंचाइयों में उड़ चला.

बाहर चटकचमकीली धूप पसरी पड़ी थी. विदेशी आंखों को चौंध सी लगी. बाहर निकलने से पहले काले चश्मे चढ़ गए. चौडे़ हैट लग गए. पर मान से भरी मिली यों ही बाहर निकल गई मानो कह रही हो कि अरे, धूप का क्या डर? यह तो मेरी अपनी है.

मिली के मन से एक आह सी निकली, ‘तो आखिर, मैं आ ही गई अपने नगर, अपने शहर.’ जौन ने भारत के बारे में लाख पढ़ रखा था पर जो आंखों से देखा तो चकित रह गया. ज्योंज्यों गंतव्य नजदीक आ रहा था, मिली के दिल की धुकधुकी बढ़ती जा रही थी. कई सवाल मन में उठ रहे थे.

कैसी होंगी फरीदा अम्मां? पहचानेंगी तो जरूर. एकाएक ही सामने पड़ कर चौंका दूं तो? तुरंत न भी पहचाना तो क्या…नाम सुन कर तो सब समझ जाएंगी…मृणाल…मृणालिनी कितना प्यारा लग रहा था आज उसे अपना वह पुराना नाम.

ये भी पढ़ें- Short Story: मेरे हिस्से की कोशिश

लोअर सर्कुलर रोड के मोड़ पर, जिस बड़े से फाटक के पास टैक्सी रुकी वह तो मिली के लिए बिलकुल अजनबी था पर ऊपर लगा नामपट ‘भारती बाल आश्रम’ बिलकुल सही.

टैक्सी के रुकते ही वर्दीधारी वाचमैन ने दरवाजा खोला और सामान उठवाया.

अंदर की दुनिया तो मिली के लिए और भी अनजानी थी. कहां वह लाल पत्थर का एकमंजिला भवन, कहां यह आधुनिक चलन की बहुमंजिला इमारत.

सामने ही सफेद बोर्ड पर इमारत का इतिहास लिखा था. साथ ही साथ उस का नक्शा भी बना था. मिली ठहर कर उसे पढ़ने लगी.

सिर्फ 5 वर्ष पहले ही, केवलरामानी नाम के सिंधी उद्योगपति के दान से यह बिल्ंिडग बन कर तैयार हुई थी. मिली भौंचक्क सी रह गई. लाल गलियारे और हरे गवाक्ष, ऊंची छतों वाला शीतल आवास काल के गाल में समा चुका था. मिली अनमनी हो उठी.

ये भी पढ़ें- Short Story: आखिर कितना घूरोगे

रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने रजिस्टर में उन का नाम पता मिलाया. गेस्ट हाउस में उन की बुकिंग थी. कमरे की चाबी निकाल कर जब लड़की उन का लगेज लिफ्ट में लगवाने लगी तो मिली ने डरतेडरते पूछा, ‘‘क्या मैं पहली मंजिल पर बनी नर्सरी को देखने जा सकती हूं?’’

लड़की ने बहुत शिष्टता से कहा, ‘‘मैम, उस के लिए आप को आफिस से अनुमति लेनी होगी. और आफिस शाम को 5 बजे के बाद ही खुलेगा.’’

‘‘तो आप ऊपर से फरीदा अम्मां को बुलवा दीजिए, प्लीज,’’ मिली ने हिचक के साथ अनुरोध किया.

लड़की ने जब यह कहा कि वह यहां की किसी फरीदा अम्मां को नहीं जानती तो मिली निराश सी हो गई. उस का लटका चेहरा देख कर जौन ने लिफ्ट में उसे टोकते हुए कहा, ‘‘चीयर अप सिस्टर, वी आर इन इंडिया…’’

मिली बेमन से हंस दी.

मिली ने विशेष आग्रह कर के अपने लिए मछली का झोल और भात मंगवाया. पहले उसे यह बंगाली खाना पसंद था पर आज 2 चम्मच से अधिक नहीं खा पाई, जीभ जलने लगी. आंखों में जल भर आया.

मिली की हताशा पर जौन हंस कर बोला, ‘‘चलो, चलो, पानी पियो…मुंह पोंछो… यह लो, मेरे सैंडविच खाओ.’’

जौन की लाख कोशिशों के बाद भी मिली अधीर और उदास ही बनी रही. इतने बदलावों ने उस के मन में इस शंका को भी जन्म दिया कि कहीं अगर फरीदा अम्मां भी…और इस के आगे वह और कुछ नहीं सोच सकी.

मिली के लिए 2 घंटे 2 युगों के बराबर गुजरे. 5 बजे कार्यालय खुला और जैसे ही संचालक महोदय आए मिली सब को पीछे छोड़ती हुई जौन को साथ ले कर उन के पास पहुंच गई.

संचालक, मिलन मुखर्जी आश्रम की बाला को बरसों बाद वापस आया जान खूब खुश हुए और आदरसत्कार कर मिली से इंगलैंड के बारे में, उस के परिवार के बारे में बात करते रहे. मिली ने अधीरता से जब नर्सरी देखने के लिए आज्ञापत्र मांगा तो मुखर्जी महोदय होहो कर हंस दिए और बोले, ‘‘अरे, तुम्हारे लिए कैसा आज्ञापत्र? तुम तो हमारी अपनी हो…यह तो तुम्हारा अपना घर है…चलो…मैं दिखाता हूं तुम्हें नर्सरी.’’

ये भी पढ़ें- Serial Story: जुर्म सामने आ ही गया

बड़ा सा हौल. छोटेछोटे पालने. नन्हेमुन्ने बच्चे. कितने सलोने, कितने सुंदर. वह भी तो ऐसे ही पलीबढ़ी है, यह सोचते ही मिली का मन फिर उमड़ने- घुमड़ने लगा.

हौल में बच्चों को पालनेपोसने वाली मौसियां उत्सुकता से मिलीं. वे सब जौन को देखे जा रही थीं. मुखर्जी बाबू ने बड़े अभिमान से मिली का परिचय दिया कि यहीं की बच्ची है मृणालिनी, अब लंदन से अपने भाई के साथ आई है.

हौल में हलचल सी मच गई. खूब मान मिला. मिली के साथसाथ लंबे जौन ने भी सब को बड़ा प्रभावित किया.

मिली बच्चों से मिली. बड़ों से मिली लेकिन उस फरीदा अम्मां से नहीं मिल पाई जिस के लिए समंदर पार कर वह भारत आई थी.

‘‘बाबा, फरीदा अम्मां कहां हैं?’’ उसे याद है बचपन में संचालक को सभी बच्चे बाबा ही कह कर बुलाते थे. आज मुखर्जी बाबू के लिए भी मिली के पास वही संबोधन था.

हैवान- भाग 1: प्यार जब जुनून में बदल जाए

जेल की जिस अंधेरी कोठरी में विक्रम सजा काट रहा था, उस की दीवारों पर बस एक ही नाम लिखा था, राधा. सिर्फ जेल की दीवारों पर ही नहीं, बल्कि राधा का नाम तो विक्रम के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. राधा ही वह नाम था, जिसे मौत भी विक्रम की जिंदगी से नहीं मिटा सकती थी.

विक्रम राधा से प्यार ही नहीं करता था, बल्कि उसे जुनून की हद तक चाहता भी था.

जिस कालकोठरी में लोग रोरो कर अपना समय काटते थे, वहां विक्रम के दिनरात राधा की यादों, खयालों और ख्वाबों में गुजरते थे. हर पल राधा से मिलने की तड़प और इंतजार ने उसे अब तक सलाखों के पीछे जिंदा रखा था, वरना वह कब का दुनिया को अलविदा कह चुका होता.

विक्रम लावारिसों की तरह एक अनाथालय में पलाबढ़ा था. उस के मांबाप का पता नहीं था. उस ने बचपन से ही हर ख्वाहिश के लिए मन मारना सीखा था.

जब अनाथालय की चारदीवारी में उस का दम घुटने लगा, तो एक दिन विक्रम भाग निकला.

पेट भरने के लिए पहले उस ने मजदूरी की, लेकिन जब पेट नहीं भरा, तो लोगों से पैसे छीनने लगा. 2-4 साथी मिल गए, तो एक गिरोह बना लिया.

इस के बाद विक्रम अपराध के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि बड़े गिरोह का सरदार बन गया. आलीशान कोठी ले ली और पुलिस से छिपने के लिए वह शहर से दूर उसी कोठी का सहारा लेता था.

एक दिन बाजार में घूमतेघूमते विक्रम की नजर एक खूबसूरत चेहरे पर पड़ी. यह चेहरा राधा का था. राधा ने जैसे उस के चेहरे पर एक जादू सा कर दिया था.

राधा को देखते ही विक्रम को पहली नजर का प्यार हो गया था. राधा की शक्ल में मानो उसे जिंदगी का नया मकसद मिल गया था. अब तो वह बस राधा का ही पीछा करता. राधा बाजार जाती, तो विक्रम भी उस की एक झलक पाने के लिए उस के पीछे हो लेता.

ये भी पढ़ें- वजूद- भाग 2: क्या था शहला की खुशी का राज

रात को जब राधा घर में सोती, तो वह भी राधा के घर के बाहर दरवाजे पर ही सो जाता. विक्रम सोचता, ‘मैं उस से मिल कर अपने दिल की बात कह दूंगा. पूछेगी तो बता दूंगा कि मैं एक चोर हूं. कुछ कहेगी तो कह दूंगा कि चोर हूं, तो क्या हुआ. क्या चोरों के पास दिल नहीं होता? क्या उन्हें प्यार करने का हक नहीं? तुम एक बार मेरी बन जाओ, मैं ये सारे उलटेसीधे काम छोड़ दूंगा…’

विक्रम रोज यही सोचता, पर राधा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.

एक दिन विक्रम ने पक्का कर लिया कि वह आज राधा को अपने दिल की बात बता कर ही दम लेगा.

सुबह राधा कालेज के लिए घर से निकली. विक्रम भी उस के पीछे हो लिया. किसी अकेली या सुनसान जगह देख कर वह राधा से अपनी बात कहने वाला था.

राधा की उम्र तकरीबन 22 साल, रंग गोरा. कद 5 फुट, 5 इंच. खूबसूरत नैननक्श और मोरनी सी चाल. जो भी देखे, मरमिटे उस की खूबसूरती पर.

राधा नदी के पुल से गुजरने लगी. विक्रम तेज कदमों से राधा की तरफ चल पड़ा. राधा इस बात से बिलकुल अनजान थी कि कोई उस पर इस कदर फिदा है. पुल से इक्कादुक्का आदमी ही गुजर रहे थे.

इस से पहले कि विक्रम राधा के पास पहुंचता, 4 दिलफेंक मोटरसाइकिल सवार राधा को अकेले देख कर उस के चारों ओर मंडराने लगे.

‘हाय बेबी’, ‘हाय डार्लिंग’ और ‘हाय स्वीटी’ कह कर वे चारों राधा के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगे.

तभी एक ने राधा का दुपट्टा खींच लिया. अपना आंचल छिपाते हुए राधा रोनी सूरत बनाए कह रही थी, ‘‘प्लीज, मेरा रास्ता छोडि़ए… मुझे जल्दी कालेज पहुंचना है.’’

राधा की इस बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरे ने राधा के हाथों से किताबें छीन लीं. वह बोला, ‘‘हाय बेबी डौल, आओ मैं तुम्हें पढ़ाता हूं.’’

राधा की आंखों में आंसू आ गए. कुछ ही दूरी पर खड़ा विक्रम राधा की बेइज्जती को देख कर आगबबूला हो उठा. उसे ऐसा लगा, मानो कोई उस के बदन पर जहरबुझा खंजर घोंप रहा है.

विक्रम तेजी से आगे बढ़ा और मोटरसाइकिल सवार एक लड़के पर जोर से एक लात दे मारी. इस से पहले कि वह संभलता, विक्रम की दूसरी किक ने उस का बैलेंस बिगाड़ दिया और वह पुल के नीचे गिर गया.

ये भी पढ़ें- यादगार: आखिर क्या हुआ कन्हैयालाल के मकान का?

बाकी तीनों का ध्यान विक्रम की ओर गया. एक ने उसे मोटरसाइकिल से कुचलना चाहा, पर विक्रम ने फुरती से उस के जबड़े पर एक ऐसा घूंसा जड़ा कि वह मोटरसाइकिल समेत काफी दूर तक घिसटता चला गया. बाकी दोनों पर विक्रम ने लातघूंसों की बरसात कर दी. जख्मी हालत में सभी लड़के भाग खड़े हुए.

विक्रम ने दुपट्टा उठाया और राधा को अपने हाथ से ओढ़ा दिया.

‘‘अगर आज आप वक्त पर नहीं आते, तो न जाने मेरा क्या होता,’’ राधा बोली.

विक्रम ने पास पड़ी किताबें उठा कर राधा को दीं और बोला, ‘‘मैं… मैं…’’

राधा बोली, ‘‘मेरा नाम राधा है. समझ नहीं आ रहा कि मैं आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं?’’

‘‘नहीं, यह तो मेरा फर्ज था,’’ विक्रम के मुंह से ज्यादा शब्द नहीं निकल रहे थे.

‘‘आप ने अपना नाम नहीं बताया?’’

‘‘विक्रम…’’ अपना नाम किसी तरह जबान पर ला कर विक्रम तो बस राधा को ही देख रहा था.

राधा ने फिर से एक प्यारी सी मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो आप मेरे घर पर खाने के लिए आइए… इस बहाने मैं आप का शुक्रिया भी अदा कर सकूंगी और मेरे मांबाप भी आप से मिल कर खुश होंगे.’’

राधा की इस बात से विक्रम का हौसला बढ़ा और उस ने अचानक राधा के दोनों हाथ अपने हाथ में ले कर बोल दिया, ‘‘राधा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. प्लीज राधा, तुम गलत मत समझना.’’

विक्रम की इस हरकत से राधा चौंक पड़ी. अभी भी राधा के हाथ विक्रम के हाथों में थे. शायद विक्रम का छूना राधा को भी अच्छा लगा था.

राधा ने धीरे से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आप कल खाने पर मेरे घर जरूर आइएगा.’’

अगले दिन के इंतजार में विक्रम ने सारी रात करवटों में बिताई. विक्रम ठीक समय पर राधा के घर पहुंच गया. राधा के पिता ने बड़े आदर से विक्रम का स्वागत किया और उस का शुक्रिया अदा किया.

विक्रम ने भी समय देख कर उस के पिता से राधा की शादी की बात कह दी.

वैसे तो विक्रम उस के पिता को पसंद था, लेकिन शादीब्याह के मामले में वे थोड़े रूढि़वादी थे.

‘‘अपने बारे में कुछ बताओ विक्रम,’’ राधा के पिता ने पूछा.

‘‘जी, मेरा नाम विक्रम दास है. मैं अनाथ हूं, लेकिन आप की राधा का खयाल बहुत अच्छी तरह रखूंगा. पेशे से मैं इंपोर्टऐक्सपोर्ट का कारोबार करता हूं,’’ विक्रम ने बताया.

इस से पहले विक्रम अपनी बात आगे बढ़ाता, राधा के पिता के चेहरे के तेवर बदलने लगे, ‘‘विक्रम दास… दास यानी शिड्यूल कास्ट… तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘जी, मैं तो आप से आज ही मिला हूं.’’

‘‘वह मैं कुछ नहीं जानता, तुम्हारी शादी राधा से नहीं हो सकती.’’

‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारी जाति हमारी जाति से मेल नहीं खाती. हम ठहरे ऊंचे कुल के ब्राह्मण और तुम…’’

‘‘आप यकीन मानिए, मैं राधा से बहुत प्यार करता हूं.’’

ये भी पढ़ें- Short Story: भूत नहीं भरम

‘‘प्यारव्यार कुछ नहीं… मैं ने एक बार कह दिया कि मैं गैरब्राह्मण परिवार में राधा की शादी हरगिज नहीं कर सकता और तुम तो…’’

‘‘बस कीजिए आप, आज जमाना कहां से कहां पहुंच चुका है और आप अभी भी वहीं जातपांत और अमीरीगरीबी पर अटके हैं.’’

‘‘मैं इस बात पर कोई बहस नहीं चाहता. तुम ने मेरी बेटी को गुंडों से बचाया, इसलिए तुम यहां खड़े हो, वरना तुम्हारी जाति के लोग हमारी दहलीज के पार नहीं आते.’’

अब विक्रम को राधा के पिता की बात चुभने लगी. उधर राधा भी अपने पिता के आगे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

तभी पुलिस का सायरन बजा. इंस्पैक्टर अंदर आया और आननफानन विक्रम को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सब लोग अचानक पुलिस की ऐंट्री से चौंक गए.

राधा घबरा कर बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप यह क्या कर रहे हैं?’’

राधा की बात बीच में काट कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘मैं बिलकुल ठीक कर रहा हूं. यह बहुत बड़ा चोर है. पुलिस को कई दिनों से इस की तलाश थी.’’

राधा हैरान सी खड़ी रही और विक्रम चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं, मुझे गलत मत समझना. मेरा इंतजार करना. जेल और जाति की दीवारें मुझे तुम से जुदा नहीं कर सकतीं. तुम मेरा इंतजार करना राधा…’’ और पुलिस की जीप विक्रम को ले कर राधा की आंखों से ओझल हो गई.

सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि राधा सोचती रह गई, ‘विक्रम तो कारोबारी था, फिर पुलिस उसे चोर क्यों बता रही थी? इस का मतलब विक्रम ने मुझ से झूठ बोला था, मुझे धोखा दिया था.’

राधा के पिता ने उस से कहा, ‘‘तुम इस धोखेबाज के झांसे में आने से बच गई, वरना यह चोर तो हमें धोखा दे ही चुका था.’’

कल तक विक्रम के लिए दिल में इज्जत रखने वाली राधा अब उस से नफरत करने लगी थी.

उधर विक्रम जेल में अपनी सजा खत्म होने का इंतजार कर रहा था, ताकि जल्द से जल्द अपनी राधा से मिल सके.

तभी विक्रम का शागिर्द चंदू उस से मिलने आया, ‘‘नमस्ते उस्ताद.’’

‘‘कहो, कैसे हो चंदू? कैसी है मेरी राधा?’’

चंदू कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘उस्ताद, बुरी खबर है.’’

‘‘बुरी खबर… क्या बात है चंदू?’’

‘‘उस्ताद, वह… वह… वह…’’

‘‘वह… वह… क्या… तेरी जबान क्यों लड़खड़ा रही है? कुछ बोलता क्यों नहीं?’’

‘‘उस्ताद, राधा की कल शादी हो गई.’’

‘‘नहीं… नहीं… ऐसा नहीं हो सकता,’’ विक्रम के हाथ चंदू की गरदन पर थे, ‘‘कह दे कि यह झूठ है.’’

‘‘नहीं उस्ताद, यह सच है.’’

‘‘राधा मेरे सिवा किसी और की नहीं हो सकती. राधा सिर्फ मेरे लिए बनी है. उसे मुझ से कोई और नहीं छीन सकता. अगर ऐसा हुआ, तो मैं दुनिया को आग लगा दूंगा,’’ चंदू के गले पर विक्रम के हाथों का दबाव बढ़ने लगा. वह बड़ी मुश्किल से बोला, ‘‘उस्ताद, मेरी गरदन…’’

विक्रम ने गरदन छोड़ दी और अपना सिर सलाखों पर मारने लगा, ‘‘राधा, तुम मुझे धोखा नहीं दे सकतीं… मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा. तुम्हें सिर्फ मेरे लिए बनाया गया है,’’ विक्रम का माथा खून से लथपथ हो चुका था.

‘‘चंदू, जा कर पता करो कि मेरी राधा को मुझ से छीनने वाला आखिर कौन है?’’

‘‘जी उस्ताद…’’ कह कर चंदू चला गया.

विक्रम की जेल की कोठरी में बचे 2 दिन अब सदियों से लंबे लग रहे थे. वह अब एक पंछी की तरह आजाद होने के लिए फड़फड़ा रहा था. जेलर राउंड पर आया. उस ने देखा कि विक्रम ने बैरक की दीवारों पर हर जगह राधा का ही नाम लिख रखा है.

जेलर विक्रम पर चिल्लाया, ‘‘तेरे बाप की दीवार है क्या? खर्चा आता है खर्चा. हरामखोर कहीं का… यहां पर सजा काटने आया है या आशिकी करने.’’

विक्रम चुप रहा. सीखचों के पास आ कर जेलर फिर चीखा, ‘‘क्यों बे, गूंगा है क्या? कुछ बोलता क्यों नहीं? खड़ा हो…’’

विक्रम सलाखों के पास आ गया.

‘‘एक बात बता…’’ जेलर बोला, ‘‘कौन है यह? धोखा दे गई क्या… कौन थी? बीवी, प्रेमिका या फिर धंधे वाली?’’

जेलर इस से आगे कुछ और बोलता, विक्रम के दोनों हाथ उस की गरदन दबोच चुके थे.

विक्रम गुस्से से चीख उठा, ‘‘मेरी राधा को धंधे वाली बोलता है. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा. तेरी इस बदजबानी की सजा सिर्फ मौत है,’’ विक्रम के सिर पर खून सवार हो चुका था.

विक्रम के हाथ जेलर की गरदन पर लगातार दबाव बढ़ाते जा रहे थे. जेलर के हलक से घुटीघुटी चीखें निकल रही थीं. जेलर को बचाने के लिए 2-3 सिपाही दौड़े. उन्होंने विक्रम पर डंडों की बौछार कर दी, लेकिन उस के हाथों का दबाव तब तक ढीला नहीं पड़ा, जब तक जेलर की जान नहीं निकल गई.

विक्रम ने उस सिपाही पर वार कर दिया, जो दरवाजा खोल कर उस पर डंडे बरसा रहा था. बाहर खड़े सिपाही सीटी बजा रहे थे. विक्रम ने सलाखों से बाहर आ कर दोनों को एकएक घूंसे से ही जमीन सुंघा दी.

जेलर की कमर से रिवाल्वर निकाल कर विक्रम छत की तरफ दौड़ा. छत से सड़क पर एक ट्रक आता दिखा. पुलिस की एक गोली उस की पीठ में धंस चुकी थी. विक्रम चीख उठा, पर जैसेतैसे उस ने ट्रक में छलांग लगा दी.

इस बात को एक साल बीत चुका था. राधा एक प्यारे से बच्चे की मां बन चुकी थी. उस का पति अरुण एक बैंक में मैनेजर था. वह राधा को बहुत चाहता था. दोनों अपने छोटे से परिवार में बहुत खुश थे.

एक दिन पतिपत्नी बाजार से घर लौट रहे थे, तभी वहां से गुजर रहे चंदू की नजर राधा पर पड़ी. वह तो कई महीनों से राधा की तलाश में था ही, इसलिए दोनों के पीछे हो लिया. अरुण ने घर का दरवाजा खोला और वे दोनों अंदर दाखिल हो गए.

चंदू ने घर देखा और वापस हो लिया. विक्रम के जेल से फरार होने के बाद पुलिस बुरी तरह से उस के पीछे पड़ गई थी. विक्रम भी अपनी कोठी में कुछ वक्त के लिए अंडरग्राउंड हो गया था. जख्मी हालत में चंदू ने ही विक्रम का इलाज किया था. इस पूरे साल के दरम्यान वह राधा को भूल नहीं पाया था, बल्कि उस की दीवानगी और बढ़ चुकी थी.

चंदू दौड़ादौड़ा आया, ‘‘उस्ताद, उस्ताद…’’

‘‘क्या हुआ चंदू?’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘उस्ताद, राधा का पता लग गया है. मैं अभी उस का घर देख कर आ रहा हूं.’’

विक्रम खुशी से उछल उठा. उस ने चंदू को सीने से लगा लिया.

‘‘चंदू, मेरे दोस्त, मेरे भाई, आज तू ने मुझे वह खुशी दी है, जो मैं बयान नहीं कर सकता. मैं यह तेरा एहसान सारी जिंदगी नहीं भूलूंगा. कहां रहती है मेरी राधा?’’

‘‘बांद्रा पैडर रोड.’’

‘‘मैं अभी अपनी राधा के पास जाता हूं. अब और इंतजार नहीं होता.’’

‘‘उस्ताद, संभल कर. पुलिस पागल कुत्ते की तरह आप की तलाश में है.’’

‘‘तू मेरी फिक्र मत कर चंदू. आज मैं अपनी राधा को अपने साथ ले कर ही आऊंगा. आज मेरे और राधा के बीच पुलिस तो क्या कोई भी नहीं आ सकता.’’

विक्रम ने काला लिबास पहना. चश्मे और टोपी से अपना चेहरा छिपाते हुए वह राधा के घर निकल पड़ा. हाथ में रिवाल्वर लिए विक्रम आज राधा से मिलने को बेचैन था.

दिन के ठीक 12 बजे थे. अरुण रोजाना की तरह बैंक जा चुका था. राधा घर पर अकेली थी. बच्चा सो रहा था. घंटी बजी. राधा ने दरवाजा खोला. विक्रम को इतने दिनों बाद अचानक सामने देख वह चौंक गई.

‘‘विक्रम… तुम?’’

‘‘हां, मैं. तुम्हारा विक्रम. मैं ने तुम से कहा था ना कि तुम मेरा इंतजार करना. लेकिन तुम ने मेरा इंतजार क्यों नहीं किया? मैं तुम्हें एक पल भी नहीं भुला पाया. जेल में हर घड़ी बस तुम्हारा नाम लेता था. चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ… तुम्हें मेरे साथ चलना है.’’

‘‘तुम क्या बकवास कर रहे हो? हां, मैं मानती हूं कि तुम ने मुझे गुंडों से बचाया था, लेकिन तुम ने मुझ से अपनी जाति और चोर होने की बात भी तो छिपाई थी. तुम ने मुझे धोखे में रखा, वरना मैं तो यही समझती रहती कि तुम बिजनैसमैन हो, फिर भी मैं उस घटना के लिए तुम्हारी शुक्रगुजार हूं.’’

‘‘शुक्रगुजार… सिर्फ शुक्रगुजार? अरे, मैं तुम्हारे लिए सारी दुनिया से टकराने के लिए तैयार हूं. तुम्हारे चलते मैं ने जेलर का कत्ल कर दिया, जेल से भागा, गोलियां खाईं और कहती हो कि तुम शुक्रगुजार हो.’’

‘‘देखो विक्रम, आज मैं एक शादीशुदा औरत हूं. अच्छा होगा कि तुम खुद को पुलिस के हवाले कर दो.’’

विक्रम राधा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘नहीं राधा, मुझ से इतनी बेरुखी से बात मत करो. मेरे साथ चलो. मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता.’’

हैवान- भाग 2: प्यार जब जुनून में बदल जाए

इस बार राधा चीख उठी, ‘‘ओह विक्रम, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मैं अब किसी और की हो चुकी हूं. मेरा पति है, बच्चा है, अपना घर है. हो सके, तो तुम मुझे भूल जाओ. अगर तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे, तो मजबूरन मैं पुलिस को फोन कर दूंगी.’’

‘‘नहीं राधा… नहीं… मैं बगैर तुम्हारे जी नही पाऊंगा.’’

‘‘लगता है कि तुम ऐसे नहीं जाओगे,’’ राधा फोन की तरफ बढ़ी. फोन लगाया, ‘‘हैलो, पुलिस स्टेशन.’’

इस से पहले कि राधा अपनी बात पूरी करती, विक्रम ने फोन छीन कर तार काट दिया.

विक्रम गुस्से में चीखा, ‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगा राधा. अगर मैं तुम्हारे लिए इतना तड़प सकता हूं, तो तुम्हें भी अपने लिए तड़पा सकता हूं. अब तो तुम्हें मेरे साथ चलने से कोई नहीं रोक सकता,’’ विक्रम आगे बढ़ा.

‘‘आगे मत बढ़ना. मैं कहती हूं कि वहीं रुक जाओ,’’ राधा चिल्लाई, लेकिन विक्रम ने आगे बढ़ कर उसे आपनी बांहों में भर लिया. राधा कसमसाई. इस से पहले कि वह बचाव के लिए चीखती, विक्रम ने उस के सिर पर हलके से वार कर उसे बेहोश कर दिया. उसे अपनी गोद में उठाया. बाहर सन्नाटा था. राधा को अपनी कार की पिछली सीट पर लिटा कर गाड़ी अपनी कोठी की तरफ दौड़ा दी.

राधा को होश आया, तो उस ने खुद को एक खूबसूरत बैडरूम में पाया. पूरे कमरे में राधा की तसवीरें लगी थीं. राधा ने दरवाजा खोला. बाहर एक बहुत बड़ा कमरा था. 2 आदमी हाथ में रिवाल्वर लिए पहरेदारी कर रहे थे. राधा समझ गई कि भागना बेकार है. वह वापस कमरे में आ गई.

ये भी पढ़ें- उसके साहबजी: श्रीकांत की जिंदगी में आई शांति

‘‘कैसी हो राधा,’’ विक्रम बोला.

‘‘मुझे यहां क्यों लाए हो?’’

‘‘अपनी चीज को अपने पास ही तो लाया हूं.’’

‘‘तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो विक्रम.’’

‘‘नहीं, मैं कोई गलती नहीं कर रहा. प्यार करना कोई जुर्म नहीं है. तुम सिर्फ मेरी हो… सिर्फ मेरी.’’

‘‘मैं सिर्फ अपने पति की हूं. तुम मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. मुझे हाथ मत लगाना. मैं तुम से नफरत करती हूं.’’

‘‘नहीं राधा, मुझ से नफरत मत करो. मैं मर कर भी सुकून नहीं पाऊंगा.’’

‘‘मुझे यहां से जाने दो प्लीज,’’ राधा गिड़गिड़ाई.

‘‘नहीं, अब तुम यहीं रहने की आदत डाल लो. अब यही तुम्हारा घर है.’’

‘‘घर… थू… अरे, तुम क्या जानो कि घर किसे कहते हैं, पत्नी क्या होती है और प्यार क्या होता है? तुम तो छीनने वालों में से हो.’’

‘‘हां, मैं लुटेरा हूं. तुम मुझे आसानी से हासिल नहीं हुई, इसलिए मैं ने तुम्हें छीन लिया.’’

‘‘यहां ला कर तुम क्या साबित करना चाहते हो? प्यार के नाम पर तुम्हें मेरा जिस्म चाहिए… यह लो, लूट लो मेरी इज्जत. मुझे पा कर तुम्हारी हवस बुझ सकती है, तो बुझा लो,’’ कहते हुए राधा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए.

विक्रम ने राधा को एक जोरदार थप्पड़ मारा और जिस्म से हटी साड़ी राधा को थमाते हुए बोला, ‘‘तुम ने समझ क्या रखा है? अगर मुझे जिस्म की प्यास ही बुझानी होती, तो बाजार में जिस्म बेचने वालों की कोई कमी नहीं है. अरे, मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे जिस्म से नहीं. तुम्हें यहां मुझ से कोई खतरा नहीं है. मैं तुम्हारा अपना हूं.’’

‘‘ये कैसा प्यार है तुम्हारा, जो मेरी ही जिंदगी बरबाद करने पर तुला है, आखिर तुम्हें मुझ से चाहिए क्या?’’

‘‘शादी… मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ विक्रम ने जवाब दिया.

‘‘तुम जानते हो कि ऐसा नहीं हो सकता है. मैं शादीशुदा हूं?’’

‘‘तलाक दे दो उसे.’’

‘‘शादी कोई मजाक है, जो आज की और कल तलाक दे दिया? मैं ऐसी औरत नहीं हूं, जो तुम जैसे झूठे और अपराधी के लिए अपने पति को धोखा दे दे,’’ कहते हुए राधा ने विक्रम को चले जाने के लिए कहा.

‘‘अभी तो मैं जा रहा हूं, लेकिन तुम्हें हर हाल में हासिल कर के ही दम लूंगा,’’ विक्रम कमरे से बाहर निकल गया.

उधर थाने में अरुण ने इंस्पैक्टर को सारा हाल बताया.

‘‘मिस्टर अरुण…’’ इंस्पैक्टर दयाल ने पूछा, ‘‘आप यह कैसे कह सकते हैं कि आप की पत्नी किडनैप हुई है? हो सकता है कि वह अपनी मरजी से कहीं गई हो?’’

ये भी पढ़ें- निकम्मा बाप: उस दिन महेश ने जसदेव के साथ क्या किया

‘‘इंस्पैक्टर साहब…’’ अरुण बोला, ‘‘मैं अपनी राधा को अच्छी तरह से जानता हूं. वह बिना बताए कहीं नहीं जाती. अपने दूधपीते बच्चे को छोड़ कर कहां जाएगी राधा? नहीं साहब, घर में बिखरा सामान और टैलीफोन का कटा तार साबित करता है कि हाथापाई के बाद कोई राधा को जबरदस्ती उठा ले गया है.’’

‘‘मिस्टर अरुण, बुरा मत मानना, पर आप की पत्नी का कोई चाहने वाला था? मेरा मतलब शादी से पहले उस का…’’

अरुण का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, पर अपना गुस्सा दबा कर वह बोला, ‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, अभी आप जाइए. हम आप की पत्नी को ढूंढ़ने की पूरी कोशिश करेंगे. अगर इस दौरान आप को कोई जानकारी मिले, तो हमें जरूर बताना.’’

‘‘ओके इंस्पैक्टर,’’ अरुण ने हाथ मिलाया और बाहर निकल गया. घर में बच्चा रो रहा था. अरुण ने दूध की बोतल से चुप कराना चाहा, लेकिन उसे तो मां की छाती चाहिए थी.

ये भी पढ़ें- गणपति का जन्म: विकृत बच्चे को देख क्या हुआ

अरुण इस अचानक हुए हादसे से सकते में था. उधर, विक्रम अपने खयालों में यही सोच रहा था कि अगर राधा का पति मर जाए, तो राधा का ध्यान उस की तरफ आएगा. उस का पति ही उस के रास्ते का सब से बड़ा कांटा था. उस की मौत ही उसे राधा के करीब ला सकती थी. एक शादीशुदा औरत दूसरी शादी नहीं कर सकती, लेकिन एक विधवा तो कर सकती है. हां… राधा तभी उस की होगी, जब उस के पति की मौत हो जाएगी… और विक्रम ने एक भयानक इरादा कर लिया. उस के चेहरे पर दरिंदगी के भाव आ गए थे.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ कालबैल की आवाज सुन कर अरुण ने जैसे ही दरवाजा खोला… ‘धांयधांय’ 2 गोलियां उस के सीने में समा गईं. अरुण कटे पेड़ सा ढेर हो गया. गोली की आवाज से बच्चे की नींद खुल गई. वह जोरजोर से रोने लगा.

हैवान- भाग 3: प्यार जब जुनून में बदल जाए

विक्रम ने बच्चे को उठाया और बाहर निकला. गोली की आवाज सुन कर बाहर काफी लोग जमा हो चुके थे.

‘‘खबरदार कोई हिला तो गोली से भून कर रख दूंगा,’’ विक्रम चीखा. सभी सहम कर दूर हट गए. विक्रम ने गाड़ी खोली और बच्चे को ले कर खंडाला रोड की तरफ निकल गया.

विक्रम जैसे ही अपनी कोठी में पहुंचा, बच्चे का रोना सुन कर राधा दौड़ कर वहां आई. अपने बच्चे को सीने से लगाने लगी. बच्चे को भूखा जान कर उस ने उसे आंचल में छिपा लिया.

‘‘वे कैसे हैं?’’ राधा ने पूछा, ‘‘मैं उन से कब मिल सकूंगी? कब जाने दोगे मुझे उन के पास?’’

‘‘उस से तो अब तुम कभी नहीं मिल सकतीं.’’

‘‘क्यों?’’ राधा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘तुम पहले बच्चे को दूध पिलाओ.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. दूध पीतेपीते बच्चा सो गया.

‘‘क्यों नहीं मिल सकती मैं उन से?’’ राधा ने फिर पूछा.

‘‘क्योंकि अब वह इस दुनिया में नहीं है.’’

‘‘नहीं… तुम झूठ बोल रहे हो.’’

‘‘अपने हाथों से खत्म किया है मैं ने उसे. मेरे और तुम्हारे बीच दीवार था वह.’’

‘‘कमीने, तू ने मेरा सुहाग छीन लिया. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ राधा घायल शेरनी की तरह विक्रम पर झपट पड़ी.

विक्रम कुछ देर तो खामोश रहा, फिर अचानक राधा पर लातघूंसों से हमला कर दिया. उस पर दरिंदगी सी छाई थी.

‘‘मैं तेरे लिए मरा जा रहा हूं और तू मरे हुए आदमी के लिए जिंदा आदमी को मार रही है. तेरे और मेरे बीच जो भी आएगा, उस का अंजाम सिर्फ मौत होगा,’’ इतना कह कर विक्रम बाहर चला गया.

राधा बच्चे को सीने से लगा कर जोरजोर से रोने लगी. कुछ देर में वह सो गई. इसी बीच विक्रम आया और बच्चे को चंदू को थमा कर सोती हुई राधा के पास लेट गया और उस के पैरों को चूमने लगा.

राधा जाग कर चौंकते हुए बोली, ‘‘तुम यहां? मेरा बच्चा कहां है?’’

‘‘वह जहां भी है ठीक है,’’ विक्रम ने कहा, ‘‘तुम मुझे ही अपना बच्चा समझ लो,’’ विक्रम मासूम बच्चे की तरह राधा से लिपट गया.

राधा ने धक्का दे कर उसे दूर किया, ‘‘खबरदार, जो मेरे नजदीक आए, तुम खूनी हो, दरिंदे हो.’’

अचानक राधा के इस धक्के से विक्रम के अंदर एक बार फिर हैवानियत सी छा गई. उस ने राधा के बदन से कपड़े खींचने शुरू कर दिए.

राधा चीख उठी, ‘‘छोड़ो मुझे.’’

विक्रम ने एक झटके से साड़ी खींच दी. अब राधा के जिस्म पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज बचा था. विक्रम तेजी से राधा पर झपटा. राधा ने बचने की पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.

वह विक्रम की बांहों की गिरफ्त में आ चुकी थी. पिंजरे में बंद पंछी की तरह फड़फड़ा रही थी. मगर उस की चीखें सुनने वाला कोई नहीं था.

विक्रम ने उसे पलंग पर लिटा दिया. राधा कसमसाई. विक्रम ने उस का पेटीकोट खींच दिया.

राधा रोते हुए फरियाद करने लगी, ‘‘मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं, छोड़ दो मुझे.’’

विक्रम ने राधा के जिस्म को अपने जिस्म से सटा लिया. राधा फरियाद करती रही, पर विक्रम उस के एकएक अंग को चूमता रहा और बोला, ‘‘राधा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. उस दिन मैं ने तुम्हें मारा था. मुझे माफ कर दो. उस दिन मैं ने खुद को भी सजा दी थी. यह देखो,’’ विक्रम ने राधा के सीने से मुंह हटा कर अपने जिस्म पर लगे घावों को दिखाने लगा.

‘‘राधा, मैं ने तुम्हारे कपड़े इसलिए उतारे हैं, क्योंकि मैं नहीं चाहिता कि तुम्हारे जिस्म पर किसी और के दिए कपड़े हों. तुम मेरी हो और तुम्हारा जिस्म भी मेरा है. मैं बगैर शादी के तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूंगा. मैं ने तुम्हारे लिए कपड़े खरीदे हैं, अभी लाता हूं,’’ कह कर विक्रम पास के कमरे में चला गया.

राधा अपने जिस्म को हाथों से छिपाए बैठी थी. विक्रम वापस आया, तो उस के हाथ में खूबसूरत साड़ी, ब्लाउज और खूबसूरत गहने थे.

‘‘मैं अपने हाथों से तुम्हें ये पहनाऊंगा.’’

‘‘मैं तुम्हारी दी हुई कोई चीज नहीं पहनूंगी.’’

‘‘कैसे नहीं पहनोगी,’’ विक्रम गुर्राया.

विक्रम के सख्त चेहरे को देख कर राधा घबरा गई. वह जानती थी कि जब भी यह चेहरा खतरनाक होता है, या तो उस का कोई मरता है या उस की पिटाई होती है.

‘‘अरे, मुझ से क्या शरमाना,’’ विक्रम ने राधा से कहा. विक्रम उसे जबरदस्ती कपड़े पहनाने लगा. हाथों में हीरे की अंगूठी और गले में सोने की चेन पहना कर वह बोला, ‘‘राधा, देखो तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो.’’

विक्रम राधा को विशाल आईने के पास ले गया.

‘‘राधा, आज मैं तुम्हारे साथ सोऊंगा, पर करूंगा कुछ नहीं.’’

हैवान- भाग 4: प्यार जब जुनून में बदल जाए

राधा तो जैसे पत्थर की मूरत बन गई थी. विक्रम ने राधा को पलंग पर लिटाया और फिर बच्चे की तरह उस से लिपट कर सो गया.

‘‘सर, एमएमपी-9989 नंबर की गाड़ी खंडाला रोड पर जाती देखी गई है,’’ हवलदार बोला.

‘‘हूं,’’ इंस्पैक्टर ने सिगरेट का एक कश खींचा और पास खड़े आदमी से बोला, ‘‘इस नंबर की गाड़ी वाले ने अरुण का खून किया और बच्चे को ले गया?’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘पता करो कि कितने घर हैं इस इलाके में और यह नंबर किस के नाम पर हैं?’’

‘‘जी साहब,’’ हवलदार अपने काम पर लग गया.

‘‘राधा, मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता. प्लीज, तुम मुझ से शादी कर लो. तुम्हारे अलावा मेरा है ही कौन. हम दोनों कहीं दूर चले जाएंगे. मैं तुम्हारे बच्चे को भी अपना नाम दूंगा.’’

राधा चीख उठी, ‘‘तुम ने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई धंधे वाली हूं कि आज इस की हो गई और कल किसी और की. मैं अपने पति के हत्यारे के साथ शादी करूं, हरगिज नहीं. मैं अपने मासूम बेटे को उस के पिता का नाम दूंगी. अरे, तुम्हारे जैसे खूनी और हैवान का बेटा कहलाने से अच्छा है कि वह लावारिस ही रहे. और तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा कोई नहीं है? मेरा बच्चा है, उस के बल से मैं गर्व से जी लूंगी. थूकती हूं मैं तुम पर… थू…’’

राधा का थूक विक्रम के चेहरे पर गिरा. विक्रम गुस्से से लाल हो उठा. उस के चेहरे पर हैवानियत छाने लगी, पर वह चुपचाप बाहर चला गया.

विक्रम अपनी सोच में डूब गया, ‘मुझे राधा से दूर करने वाली एक ही दीवार है, उस का बच्चा. अगर वह उस के पास नहीं रहे, तो वह मेरी हो कर रहेगी. मैं यह दीवार हटाऊंगा…’ विक्रम के चेहरे पर दरिंदगी के इतने भयानक भाव आ गए, जो पहले कभी नहीं आए थे.

विक्रम ने पहले उस के बच्चे को मौत की नींद सुलाया, फिर राधा की इज्जत को तारतार करने के लिए उसे अपने वहशी आदमियों के हवाले कर दिया.

विक्रम के आदमी राधा को एक सुनसान कमरे की तरफ ले गए. वे आपस में बातें कर रहे थे, ‘‘आज तो मजा आ जाएगा. हम सब मिलबांट कर खाएंगे.’’

इस के बाद दरवाजे बंद हो गए. विक्रम उस झोंपड़ीनुमा मकान के पास पहुंच गया. खिड़की खुली थी. अंदर 6 लोग थे. राधा की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी.

‘‘कौन हो तुम लोग? मुझे यहां…’’

इस के बाद थोड़ेथोड़े अंतर के बाद राधा के कपड़े खिड़की से बाहर गिरते नजर आ रहे थे. राधा की चीखें बढ़ती जा रही थीं. हर चीख पर विक्रम अपनी रिवाल्वर में कारतूस भरता. उस के चेहरे पर हैवानियत सवार हो गई. यह आखिरी चीख थी. 6 लोगों ने राधा की इज्जत लूटी. एकएक कर मकान से बाहर आए. सभी बहुत खुश थे. विक्रम ने राधा के जिस्म को ढका और अपने कंधों पर उठा कर बाहर आया.

ये भी पढ़ें- Serial Story: सम्मान की जीत

विक्रम बाहर आ कर चिल्लाया, ‘‘ठहरो.’’

वे सभी रुक गए. विक्रम ने अपनी रिवाल्वर तानते हुए कहा, ‘‘तुम सब ने मेरी राधा को बहुत तकलीफ दी है, अब तुम्हारी बारी है.’’

इतना कह कर विक्रम ने सभी को गोलियों से भून दिया.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ इंस्पैक्टर ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, बांद्रा पुलिस स्टेशन?’’ दूसरी ओर से धरधराती आवाज आई.

‘‘इंस्पैक्टर रमेश हैं.’’

‘‘हां, मैं इंस्पैक्टर रमेश बोल रहा हूं.’’

‘‘मेरी बात गौर से सुनो इंस्पैक्टर. आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले सैंट्रल जेल में जेलर और कुछ पुलिस वालों की हत्या कर एक कैदी फरार हो गया था. उस पर एक लाख रुपए का इनाम भी है…’’

ये भी पढ़ें- लालच: कहानी जोगवा और सुखिया की

‘‘क्या जानते हो तुम विक्रम के बारे में?’’

‘‘मैं यह पूछ रहा था कि अगर मैं विक्रम का पता बता दूं, तो मुझे इनाम कब और कैसे मिलेगा?’’

‘‘हां जरूर मिलेगा, पहले विक्रम का मिलना जरूरी है.’’

‘‘तो सुनो. विक्रम खंडाला रोड से 4 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर एक बंगले में रहता है.’’

‘‘अपना नाम बताओ.’’

‘‘नहीं इंस्पैक्टर, विक्रम बहुत खतरनाक अपराधी है. जब तक वह गिरफ्तार नहीं हो जाता, मैं सामने नहीं आऊंगा,’’ दूसरी ओर से फोन कट गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें