खौफ: क्या था स्कूल टीचर अवनि और प्रिंसिपल मि. दास के रिश्ते का सच

प्रिंसिपल दास की नजरें आजकल अक्सर ही अवनि पर टिकी रहती थीं. अवनि स्कूल में नई आई थी और दूसरे टीचर्स से काफी अलग थी. लंबी, छरहरी, गोरी, घुंघराले बालों और आत्मविश्वास से भरपूर चाल वाली अवनि की उम्र 30- 32 साल से अधिक की नहीं थी. उधर 48 साल की उम्र में भी मिस्टर दास अकेले थे. बीवी का 10 साल पहले देहांत हो गया था. तब से वे स्कूल के कामों में खुद को व्यस्त रखते थे. मगर जब से स्कूल में टीचर के रूप में अवनि आई है उन के दिल में हलचल मची हुई है. वैसे अवनि विवाहिता है पर कहते हैं न कि दिल पर किसी का जोर नहीं चलता. प्रिंसिपल दास का दिल भी अवनि को देख बेकाबू रहता था.

” अवनि बैठो,” प्रिंसिपल दास ने अवनि को अपने केबिन में बुलाया था.

उन की नजरें अवनि के बालों में लगे गुलाब पर टिकी हुई थीं. अवनि के बालों में रोज एक छोटा सा गुलाब लगा होता था जो अलगअलग रंग का होता था. प्रिंसिपल दास ने आज पूछ ही लिया,” आप के बालों में रोज गुलाब कौन लगाता है?”

“कोई भी लगाता हो सर वह महत्वपूर्ण नहीं. महत्वपूर्ण यह है कि आप की नजरें मेरे गुलाब पर रहती हैं. जरा अपनी मंशा तो जाहिर कीजिए,”
शरारत से मुस्कुराते हुए अवनि ने पूछा तो प्रिंसिपल दास झेंप गए.

हकलाते हुए बोले,” नहीं ऐसा नहीं. दरअसल मेरी नजरें तो… आप पर ही रहती हैं.”

अवनि ने अचरज से प्रिंसिपल दास की तरफ देखा फिर मीठी मुस्कान के साथ बोली,” यह बात तो मुझे पता थी जनाब बस आप के मुंह से सुनना चाहती थी. वैसे मानना पड़ेगा आप हैं काफी दिलचस्प.”

“थैंक्स,” अवनि के कमेंट पर प्रिंसिपल दास थोड़े शरमा गए थे.

पानी का गिलास बढ़ाते हुए बोले,” आप के लिए क्या मंगाऊं चाय या कॉफी?”

“नहीं नहीं पानी ही ठीक है. आज तो आप की बातों ने ही चायकॉफ़ी का सारा काम कर दिया,” कहते हुए अवनि हंस पड़ी.

ऐसी ही दोचार छोटीमोटी मुलाकातों के बाद आखिर प्रिंसिपल दास ने एक दिन हिम्मत कर के कह ही दिया,” आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो. वैसे मैं जानता हूं एक विवाहित स्त्री से मेरा ऐसी बातें कहना उचित नहीं पर बस एक बार कह देना चाहता था.”

“मिस्टर दास हर बात जुबां से कहनी जरूरी तो नहीं होती. वैसे भी आप की नजरें यह बात कितनी ही दफा कह चुकी हैं.”

“तो क्या आप भी नजरों की भाषा पढ़ लेती हैं?”

“बिल्कुल. मैं हर भाषा पढ़ लेती हूं.”

“आप के पति भी आप से बहुत प्यार करते होंगे न,” प्रिंसिपल ने उस के चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए पूछा.

“देखिए मैं यह नहीं कहूंगी कि वह प्यार नहीं करते. प्यार तो करते हैं पर बहुत बोरिंग इंसान हैं. न कहीं घूमने जाना, न रोमांटिक बातें करना और न हंसनाखिलखिलाना. वैरी बोरिंग. घर में पति के अलावा केवल सास हैं जो बीमार हैं. ससुर हैं नहीं. पूरे दिन घर में बोर हो जाती थी इसलिए स्कूल जॉइन कर लिया. मुझे घूमनाफिरना, दिलचस्प बातें करना, दुनिया की खुशियों को अपनी बाहों में समेट लेना यह सब बहुत पसंद है. आप जैसे लोग भी पसंद हैं जिन के अंदर कुछ अट्रैक्शन हो. मेरे पति में कोई अट्रैक्शन नहीं है.”

प्रिंसिपल दास को अवनि की बातें सुन कर गुदगुदी हो रही थी. अवनि जैसी महिला उन्हें अट्रैक्टिव कह रही थी और क्या चाहिए था. उन्हें दिल कर रहा था अपनी महबूबा यानी अवनि को बाहों में भर लें पर कैसे? कोई पृष्ठभूमि तो बनानी पड़ेगी.

मिस्टर दास ने इस का भी उपाय निकाल लिया.

“अवनि क्यों न आप की क्लास के बच्चों को ले कर हम पिकनिक पर चलें. स्पोर्ट्स डे के दौरान आप की क्लास के बच्चों ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी. उन के रिजल्ट भी काफी अच्छे आए हैं.”

“ग्रेट आइडिया सर. बताइए न कब चलना है और कहां जाना है?” खुश हो कर अवनि ने कहा.

अवनि क्लास 7 की क्लास टीचर थी. अगले संडे ही कक्षा 7 के बच्चों को शहर के सब से खूबसूरत पार्क में ले जाया गया. पूरे दिन बच्चे एक तरफ खेलते रहे और पार्क के दूसरे कोने में मिस्टर दास अवनि के साथ रोमांस की पींगे बढ़ाने में व्यस्त रहे.

अब तो अक्सर बहाने ढूंढे जाने लगे. प्रिंसिपल और अवनि कभी कोई मीटिंग अटैंड करने बाहर निकल जाते तो कभी किसी सेलिब्रेशन के नाम पर, कभी स्कूल के दूसरे बच्चे और टीचर की शामिल होते तो कभी दोनों अकेले ही जाने का प्रोग्राम बना लेते. प्रिंसिपल को हर समय अवनि का साथ पसंद था तो अवनि को इस बहाने घूमनाफिरना, खानापीना और मस्ती मारना. दोनों ही एकदूसरे की इच्छा पूरी कर अपना मतलब निकाल रहे थे. ऐसे ही वक्त गुजरता रहा. उन का यह अवैध रिश्ता वैध रास्तों से आगे बढ़ता रहा.

अब तो अवनि अक्सर अपने हाथ का बना खाना और पकवान आदि प्रिंसिपल के लिए ले कर आती. सब की नजरें बचा कर दोनों एकदूसरे में खो जाते. पर कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. धीरेधीरे स्टाफ रूम में दूसरे टीचर इन के रिश्ते पर कानाफूसी करने लगे. मगर अवनि इन बातों के लिए तैयार थी. वह बड़ी कुशलता से इन बातों को अफवाह बता कर आगे बढ़ जाती.

एक दिन अवनि स्कूल आई तो उसे खबर मिली कि साधारण टीचर के रूप में हाल ही में आई मिस श्वेता गुलाटी को प्रमोशन दे कर क्लास 10th की क्लास टीचर बना दिया गया है. इस बात से हर कोई अचंभित था. स्कूल के सब से सीनियर क्लास की क्लास टीचर बनना और वह भी इतने कम दिनों में, किसी को भी सहजता से कुबूल नहीं हो रहा था. अवनि तो बौखला ही गई.

वह पहले से ही यह बात गौर कर रही थी कि प्रिंसिपल दास आजकल श्वेता गुलाटी पर काफी मेहरबान रहने लगे हैं. 20 साल की श्वेता काफी खूबसूरत थी जैसे अभीअभी किसी कमसिन कली ने पंखुड़ियां खोली हों. वह जब इंग्लिश में गिटिरपिटिर करती तो दूसरे टीचर इनफीरियरिटी कंपलेक्स से ग्रस्त हो जाते. उस पर श्वेता के कपड़े भी काफी बोल्ड होते. कभी ऑफशोल्डर्ड ड्रेस तो कभी स्लीवलैस, कभी बैकलेस तो कभी शौर्ट स्कर्ट. वैसे तो उस की अदाओं के दीवाने स्कूल के ज्यादातर पुरुष थे मगर सब से ज्यादा पावरफुल प्रिंसिपल दास ही थे. सो श्वेता उन के केबिन के आसपास मंडराने लगी थी.

अवनि गुस्से में आगबबूला हो कर प्रिंसिपल के केबिन में पहुंची पर वे वहां नहीं थे. पूछने पर पता चला कि वे मिस गुलाटी के साथ लाइब्रेरी में हैं. अवनि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने बैग उठाया और बिना किसी को इन्फॉर्म किए घर चली आई. बाद में उस के मोबाइल पर प्रिंसिपल का फोन आया तो अवनि ने फोन उठाया ही नहीं.

अगले दिन भी वह स्कूल नहीं पहुंची तो प्रिंसिपल ने उसे मैसेज किया,’ मैं तुम्हारे घर के सामने कार ले कर पहुँच रहा हूं. मुझ से नाराज हो तो भी एक बार हमें बात करनी चाहिए. आज हम बाहर ही लंच करेंगे. मैं 20 -25 मिनट में पहुंच जाऊँगा, तैयार रहना. ‘

अवनि तैयार हो कर बाहर निकली. तब तक प्रिंसिपल की कार पहुंच चुकी थी. वह कार में पीछे जा कर बैठ गई. दोनों शहर से दूर एक रेस्टोरेंट पहुंचे. कोने की एक खाली सीट पर बैठते हुए प्रिंसिपल ने बात शुरू की,” अब आप कुछ बताएंगी इस नाराज़गी की वजह क्या है?”

“वजह भी बतानी पड़ेगी? आप इतने नादान तो नहीं.”

“ओके बाबा मैं ने श्वेता को प्रमोशन दी इसी बात पर नाराज़ हो न?” प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी.

“मैं जान सकती हूं उस में ऐसे कौन से सुर्खाब के पंख लगे हैं जो मुझ में नहीं?” गुस्से में अवनि ने कहा.

“ऐसा कुछ नहीं है डार्लिंग…..मैं… ”

“डोंट टेल मी डार्लिंग. अब तो नई डार्लिंग मिल गई है जनाब को.”

“अरे ऐसी बात नहीं अवनि. ऐसा क्यों कह रही हो?”

“सच ही कह रही हूं. जरूर उस ने खुश कर दिया होगा आप को. तभी तो इतने कम समय में…, ” अवनि ने सीधा इल्जाम लगा दिया था.

“जुबान संभाल कर बात करो अवनि. मैं ऐसा नहीं कि हर किसी को इसी नजर से देखूं. खबरदार जो ऐसी बातें कीं. मैं प्रिंसिपल हूं, मेरे पास ऑथोरिटी है. जो मुझे काबिल लगेगा उसे प्रमोशन दूंगा. इस में तुम्हें बीच में आने का कोई हक नहीं.” प्रिंसिपल ने भी तेवर में कहा.

“हक तो वैसे भी कुछ डिसाइड नहीं हुए हैं मेरे. अब बता देना कि मैं कहां फेंक दी जाऊंगी? अब मेरी जरुरत तो रही नहीं आप को ”

“शट अप अवनि कैसी बातें कर रही हो? ”

“बातें ही नहीं काम भी करूंगी. आप खुद को सीनियर मोस्ट मत समझो. आप के ऊपर भी मैनेजमेंट है. मैं मैनेजमेंट से आप की शिकायत करूंगी.”

“अच्छा तो इतनी सी बात के लिए तुम मुझे धमकी दे रही हो? अवनि मेरे प्यार का यही बदला दोगी? ठीक है मैं भी देख लूंगा. तुम्हारे भी तो अमीर पति हैं न जिन्हें धोखा दे रही हो. मेरे पास भी बहुत से सबूत हैं अवनि जिन्हें तुम्हारे पति को दिखा दूं तो अभी हाथ में तलाक के कागजात मिल जाएंगे,” प्रिंसिपल ने धमकी दी.

“तो मिस्टर दास आप भी सावधान रहना. मेरे साथ आप की बहुत सी तस्वीरें, मैसेज और चैटिंग हैं जिन्हें मैनेजमेंट को दिखा कर अभी आप को नौकरी से निकलवा सकती हूं. आप को लूज करेक्टर साबित कर इज्जत पानी में मिला सकती हूं. पर मैं ऐसा करूंगी नहीं. मैं ने भी प्यार किया है आप को. भले ही आज कोई और पसंद आ गई हो.”

“ऐसा नहीं है अवनि. श्वेता पसंद नहीं आई बल्कि मेरे छोटे भाई की फ्रेंड है और फिर काबिल भी है. नॉलेज अच्छी है उस की. अगर तुम्हें बुरा लगा तो सॉरी पर मेरा मकसद तुम्हें हर्ट करना नहीं था,” प्रिंसिपल की आवाज नर्म पड़ गई थी.

“इट्स ओके सर. शायद मैं ने भी कुछ ज्यादा ही कह दिया आप को,”

अवनि ने भी झगड़ा बढ़ाना उचित नहीं समझा. झगड़ा बढ़ता इस से पहले ही दोनों ने पैचअप कर लिया. दोनों ही जानते थे कि उन के हाथ में एकदूसरे की कमजोर कड़ी है. नुकसान दोनों का ही होना था. बात आई गई हो गई. दोनों फिर से एकदूसरे के रोमांस में डूबते चले गए.

मगर इस बार दोनों की ही तरफ से सावधानी बरती जा रही थी. मिल कर तस्वीरें और सेल्फी लेने की परंपरा बंद कर दी गई. दोनों घूमने भी जाते तो साथ में तस्वीरें कम से कम लेते. चैटिंग के बजाय व्हाट्सएप कॉल करते और मैसेज करना भी बंद कर दिया गया. दोनों को ही डर था कि सामने वाला कभी भी उस की पोल पट्टी खोल कर उसे नंगा कर सकता है. उन के बीच पतिपत्नी का रिश्ता तो था नहीं जो हक के साथ रोमांस करें. यहां रोमांस भी छिपछिप कर करना था और एकदूसरे पर कोई हक भी नहीं था.

अवनि ने अपने मोबाइल ‘में से वे सारी तसवीरें निकाल कर लैपटॉप में एक जगह इकट्ठी कर लीं जिन तस्वीरों में दोनों एकदूसरे के बहुत करीब नजर आ रहे थे. यही नहीं सारी चैटिंग और मैसेज भी एक जगह स्टोर कर के रख लिए. वह कभी भी मौके पर चौका मारने के लिए तैयार थी. उसे पता था कि प्रिंसिपल भी ऐसा ही कुछ कर सकता है. इसलिए वह इस रिश्ते को खत्म कर उस की नाराजगी भी बढ़ाना नहीं चाहती थी.

अब उन के बीच जो रोमांस था उस में मजा तो था पर एकदूसरे से ही खौफ भी था. प्यार के साथ डर की यह भावना दोनों के लिए ही नई थी. मगर अब यही खौफ उन की जिंदगी का हिस्सा बन चूका था. दोनों ही एकदूसरे को प्यार भरी नजरों से देखते थे पर दोनों के दिमाग का एक हिस्सा समझ रहा था कि एक शख्स मेरी तबाही की वजह बन सकता है.

मनोहर कहानियां : ट्यूशन के बहाने प्यार की पाठशाला

अलवर जिले में निमराणा की एक खास पहचान है. उस के अंतरगत कस्बाई इलाका ततारपुर में 16
मार्च, 2022 को थानाप्रभारी विजय चंदेल बोरी में लाश की सूचना पा कर चौंक गए थे. वह सोचने लगे आखिर कौन है, जिस ने इलाके की शांति भंग करने की कोशिश की. सूचना देने वाला कोई अज्ञात राहगीर था, जिस ने फोन पर शास्त्री कालोनी में पुलिया के नीचे एक प्लास्टिक की बोरी में लाश होने की जानकारी दी थी. उस से बदबू आने की भी बात कही थी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी चंदेल तुरंत अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. तब तक वहां लोगों की भीड़ जुट गई थी. सभी नाकमुंह बंद किए हुए सड़क पर से ही पुलिया के नीचे प्लास्टिक की बोरी को देख रहे थे. उन की नजरें बोरी पर टिकी थीं. 2 पुलिसकर्मी बोरे के पास गए. उस में से आ रही बदबू से लाश के 2-3 दिन पुरानी होने का अंदाजा लगाया. सावधानी से बोरी के बंधे मुंह को खोला.
बोरी में लाश ठूंस कर कसी गई थी. ऊपर मुड़े हुए पैर थे, जिसे देख कर किसी महिला की लाश होने की पहचान हुई. लाश को बोरी से बाहर निकाला गया, जो एक सुंदर युवती की थी. चंदेल ने लाश का मुआयना किया.

अंदाज से उस की उम्र 30 के करीब आंकी गई. पहनावे, बालों व चेहरे के बनाव शृंगार से वह शहरी और किसी साधनसंपन्न घराने की लग रही थी. उसे बोरी में भर कर फेंकने का मतलब साफ था कि उस की किसी ने हत्या कर ठिकाने लगाने की कोशिश की थी. पुलिस ने लाश की पहचान आसपास खड़े लोगों के जरिए कराने की कोशिश की, किंतु अधिकतर ने बताया कि वह ततारपुर इलाके की नहीं है.

उस की शिनाख्त नहीं होने पर थानाप्रभारी ने अधिकारियों के निर्देश पर लाश का पंचनामा बनाया और लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. चंदेल ने थाने लौट कर एक अज्ञात युवती की लाश बरामदगी की प्राथमिकी दर्ज कर ली. जल्द ही लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में युवती की गला घोट कर मौत होने की बात कही गई थी. उस के बाद पुलिस के सामने 2 उलझनें थीं. पहली, लाश की जल्द से जल्द सही पहचान हो जाए. दूसरी, उस के हत्यारे को दबोच लिया जाए. इस के लिए ततारपुर थानाप्रभारी ने कुछ तरीके अपनाए. मुखबिरों को अलर्ट करने के साथसाथ शास्त्री कालोनी और घटनास्थल पर लगे सीसीटीवी कैमरे के बीते हफ्ते भर की फुटेज निकलवाई.

मुखबिरों से मालूम हुआ कि ततारपुर के कुछ लोगों ने घटनास्थल पर 14 मार्च की शाम करीब 7 बजे एक सफेद कार देखी थी. इस का सुराग लगते ही भिवाड़ी एसपी शांतनु कुमार सिंह के निर्देश पर थानाप्रभारी विजय चंदेल की अगुवाई में एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एएसआई सुरेंद्र कुमार, कांस्टेबल अमर सिंह, महिला कांस्टेबल बलकेश, कांस्टेबल अनिल कुमार आदि शामिल किए गए.
पुलिस टीम ने सीसीटीवी कैमरे से निकाले गए फुटेज की जांच की. उन्हें सफेद कार दिखी, जिस का नंबर डीएल10 सीएन 9908 था. यह संदिग्ध कार 14 मार्च, 2022 को बहरोड़ से ततारपुर के घटनास्थल पर आ कर रुकी थी और कुछ देर बाद उसी रास्ते से वापस लौटती दिखाई दी थी.

दिल्ली के रजिस्ट्रैशन वाली यह कार पुलिस की निगाह में चढ़ गई. उस की डिटेल से कार मालिक का नाम और पता मालूम हो गया. कार का मालिक कपिल गुप्ता (39 वर्ष) आनंद विहार में कड़कड़डूमा में दयानंद विहार का रहने वाला था. पुलिस को उस तक पहुंचने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. दिल्ली पहुंच कर राजस्थान पुलिस ने कपिल को दबोच लिया. हालांकि पकड़े जाने पर कपिल अड़ गया. नाराजगी दिखाते हुए बोल पड़ा, ‘‘ऐसे क्यों पकड़ा है मुझे? मैं एक इज्जतदार बिजनैसमैन हूं, कोई ऐरागैरा नहीं जो…’’

‘‘तुम्हें अभी बताता हूं कि तू कौन है. और सुन, ज्यादा तावतेवर दिखाने की जरूरत नहीं है. यह फोटो देख और बता इस बोरी को पहचानता है? अच्छा छोड़, इसे देख कर बता, इस कार को तो पहचानता ही होगा?’’ जांच करने वाले पुलिस अधिकारी ने एक झापड़ मारते हुए कहा. ‘‘कार तो मेरी है, लेकिन बोरी को नहीं पहचानता हूं.’’ कपिल हकलाता हुआ बोला.

‘‘तू अभी सब कुछ पहचान लेगा. पहले ये बता तुम्हारी कार 14 मार्च को दिल्ली से निमराणा में ततारपुर क्यों गई थी?’’ पुलिस ने कड़कती आवाज में पूछा.‘‘मैं तो एक महीने से दिल्ली के दूसरे इलाके में भी नहीं गया और आप राजस्थान की बात कर रहे हैं.’’ कपिल ने सफाई दी. लेकिन तुरंत उस के गाल पर एक और झन्नाटेदार झापड़ लगा.

‘‘इस वीडियो में देखो, गाड़ी कौन चला रहा है? और तुम्हारी बगल में बैठी औरत कौन है?’’
‘‘जी…जी…यह तो मैं ही हूं, बगल में मेरी पत्नी है. लेकिन यह वीडियो दिल्ली की है,’’ कपिल बोला.
‘‘दिल्ली की है? लगता है तुम पुलिस का डंडा खाए बगैर सच नहीं बताओगे… वीडियो में समय और तारीख क्या दिख रहा है 14 मार्च 2022. समय है 18:52 यानी शाम के 6 बज कर 52 मिनट. अब यहीं पूरी बात बताएगा या दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में ले चलूं. मैं ने वहां की परमिशन ले रखी है.’’
‘‘बताता हूं, यहीं बताता हूं. सब सच बताऊंगा. मैं ने वह सब तंग आ कर किया. बहुत परेशान हो गया था साहब. मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था. मैं अपनी ही गलतियों के कारण ब्लैकमेल हो रहा था.’’ बोलतेबोलते कपिल भावुक हो गया.

उस की आवाज भर्रा गई. आंखों से आंसू निकल आए. यह देख कर पुलिस ने उसे अपना रूमाल निकाल कर दे दिया. एक गिलास पानी मंगवाया.कपिल गटागट आधा गिलास पानी एक सांस में ही पी गया. नम आंखें साफ कीं. फिर उस ने जो कुछ बताया, वह काफी चौंकाने वाली जानकारी थी.सब से पहले तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह 14 मार्च को अपनी गाड़ी से ततारपुर के इलाके में गया था. उस के साथ पत्नी सुनैना के अलावा 2 नौकर भी थे. वहां जाने का कारण थी प्रियंका बंसल खत्री.

वह उस के बच्चों को पिछले 9 सालों से ट्यूशन पढ़ा रही थी, लेकिन बीते 2 सालों से उसे ब्लैकमेल भी कर रही थी. पैसे ऐंठ रही थी. 6-7 महीने से तो 50 लाख रुपए मांग रही थी. नहीं देने पर मुझे बलात्कार के जुर्म में जेल भेजने की धमकी दे रही थी. पुलिस बड़े ध्यान से कपिल की बातें सुन रही थी. उस के बयान की रिकौर्डिंग भी की जा रही थी. पुलिस ने बीच में ही कपिल को टोका, ‘‘तुम ने प्रियंका के खिलाफ पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?’’

‘‘उस की क्या शिकायत करता साहब, किस मुंह से करता. मैं ही उस के रूपजाल और जवानी में फंसा हुआ था. उस के साथ मेरा सालों से अवैध रिश्ता बना था.‘‘वह चाहती थी कि मैं अपनी पत्नी को छोड़ कर उस से शादी कर लूं. जब मैं ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है, तब उस ने पत्नी की हत्या करवाने की भी बात की. वह मुझे बारबार जेल भेजने की धमकी देती थी. सो एक दिन मैं ने ही उसे खत्म करवा दिया.’’
‘‘खत्म करवा दिया मतलब?’’
‘‘मैं ने अपनी पत्नी से कह कर नौकरों के द्वारा उस की हत्या करवा दी. उस के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए ततारपुर गया था. वहीं हम ने बोरी में रखी प्रियंका की लाश को सुनसान इलाके में फेंक दिया. उसी रात 11 बजे वापस दिल्ली भी आ गए.’’ कपिल ने बात पूरी की.
‘‘प्रियंका की हत्या किस ने की? उसे कैसे मारा?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘वह भी बताऊंगा साहब, सब कुछ बताऊंगा. मैं ने उसे नहीं मारा और न ही उस की लाश तक को हाथ लगाया. पहले थोड़ा पानी पी लेता हूं.’’ कपिल शांति से बोला. ‘ठीक है, ठीक है. …और पानी मंगवाऊं क्या? कहो तो चाय या कौफी मंगवाता हूं.’’‘‘नहीं, नहीं. करीब 29 साल की छरहरी देह वाली प्रियंका को हमारे 2 नौकरों, राजकिशोर यादव और सचिन देवल ने झांसे में लेने के बाद गला दबा कर मार दिया था.’’

‘‘प्रियंका के बारे में भी बताओ. वह कौन थी? कैसे तुम्हारी जिंदगी में आई, उस के परिवार वाले मातापिता, भाईबहन पति या कोई और प्रेमी आदि…’’ पुलिस ने कहा.‘प्रियंका पास के ही चांद मोहल्ला गांधी नगर में अपने परिवार के साथ रहती थी. मेरी जानपहचान तब से है, जब वह मात्र 20 साल की थी. उन दिनों मेरी उम्र भी 30 साल थी. मेरी शादी हो चुकी थी और 2 बच्चे स्कूल जाने लगे थे. उन की घर पर ट्यूशन के लिए मैं ने प्रियंका को लगा दिया था…’’

इस पूछताछ के बाद उसी वक्त पुलिस की एक टीम प्रियंका के घर पर भी गई. घर पर प्रियंका की मां मिलीं. उन से प्रियंका के बारे में पूछा. इस पर उस की मां ने बताया कि वह 14 मार्च को बैंक से पैसे लाने को कह कर निकली थी, उस के बाद से वापस नहीं लौटी है.पुलिस ने प्रियंका के मांबाप से 3 दिनों तक जवान बेटी के घर नहीं लौटने पर भी उस की किसी तरह की खोजखबर नहीं लेने का कारण पूछा. इस पर उन्होंने बेरुखी से जवाब दिया, ‘‘साहब, वह अपने मनमरजी की मालिक थी. बेफिक्र रहती थी. पहले भी 3-4 दिनों तक बगैर बताए चली जाती थी. लौटने पर बताती थी कि जिस बिजनैसमैन के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है, उस के काम के सिलसिले में टूर पर अचानक जाना पड़ता है. अपने जरूरी सामान का एक बैग वहीं पैक रखती थी.’’

‘‘अभी तुम्हारी बेटी किस हाल में है नहीं देखना चाहोगी?’’ पुलिस ने कहा.‘‘किस हाल में है का क्या मतलब साहब! क्या हुआ उसे?’’ प्रियंका की मां बोली.‘‘यह जानने के लिए तुम्हें मेरे साथ निमराणा चलना होगा. वहीं सब कुछ मालूम पड़ जाएगा.’’इस तरह राजस्थान पुलिस को लावारिस लाश के बारे में करीबकरीब तमाम आवश्यक जानकारियां मिल चुकी थीं. हत्यारे के बारे में भी मालूम हो गया था. वे हिरासत में भी ले लिए गए थे.

लाश की पहचान होते ही मामले की सिलसिलेवार रिपोर्ट तैयार करनी रह गई थी. अगले रोज सभी के साथ जांच टीम ततारपुर थाने में थी.सब से पहले लाश की पहचान करवाई गई, जिस की शिनाख्त उस के मांबाप ने प्रियंका के रूप कर ली. अपनी बेटी को अचानक मृत पा कर वे वहीं रोनेपीटने लगे. खुद को कोसने लगे और अपने भविष्य को ले कर मातम मनाने लगे. कारण वही घर का खर्च उठाए हुए थी.
अलवर के ततारपुर थाने में कपिल गुप्ता, सुनैना गुप्ता, राजकिशोर यादव और सचिन देवल को प्रियंका की हत्या का आरोपी बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया गया. प्रियंका की लाश उस के मातापिता को सौंप दी गई, जिस का ततारपुर में ही अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

प्रियंका हत्याकांड का विस्तार से खुलासा करने के लिए सभी आरोपियों से बारीबारी पूछताछ की गई. मुख्य आरोपी के रूप में कपिल गुप्ता के दोनों नौकरों का नाम सामने आया, जबकि कपिल और सुनैना का नाम हत्या की योजना बनाने और लाश को ठिकाने लगाने में आया.हालांकि इस पूरे हत्याकांड का इकलौता जिम्मेदार कपिल गुप्ता ही था, जिस की प्रेम कहानी और अवैध संबंध का अंजाम था. उस के बाद हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार स्थित दयानंद विहार, कड़कड़डूमा में रेडीमेड गारमेंट्स के व्यापारी कपिल गुप्ता परिवार समेत रहते थे. परिवार में पत्नी सुनैना और 2 बच्चों का खुशहाल परिवार था. उन का अच्छाखासा करोड़ों के टर्नओवर का बिजनैस था.बात साल 2014 की है. कपिल ने अपने बच्चों का अच्छे पब्लिक स्कूल में नाम लिखवा दिया था. उन के होमवर्क आदि के लिए प्रियंका को ट्यूशन पर रख लिया था. वह कुछ समय के लिए घर आ कर हर रोज बच्चों को पढ़ा दिया करती थी.
दरअसल, मध्यमवर्गीय परिवार की प्रियंका बंसल भी उन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन कर टीचर की नौकरी की तलाश में थी. टीचर ट्रेनिंग का कोर्स भी करना चाहती थी.

वैसे प्रियंका बहुत ही सुंदर थी. मौडल की तरह फिगर था. सिनेमा और सीरियल जैसी हीरोइन जैसा चेहरा मासूमियत से दमकता रहता था. बगैर मेकअप के भी वह गजब की खूबसूरत दिखती थी. फिर भी बनठन कर रहती थी. उस की सुंदरता ऐसी थी कि जो कोई उसे एक नजर में देख लेता, बारबार निहारे बगैर नहीं रहता था.महत्त्वाकांक्षी भी कम नहीं थी प्रियंका. अपनी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करती थी. स्वभाव से जिद्दी. वह चाहती थी कि हमेशा सुंदर दिखती रहे. इस के लिए अपने खानपान से ले कर सेहतमंद बने रहने के लिए दूसरे तरीके भी अपनाती थी.

यहां तक कि हर्बल टैबलेट्स और स्किन ग्लो करने के लिए दवाइयां तक खाती थी. अपनी आमदनी की अच्छी रकम अपने शरीर की देखभाल और नए ड्रैस पर किया करती थी. मौजमस्ती की जिंदगी की लालसा थी.कपिल के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के दरम्यान उस की मुलाकात कपिल और सुनैना से होती रहती थी. अपने मिलनसार स्वभाव के कारण जल्द ही वह सभी की प्रिय बन गई. उस की पढ़ाई से बच्चे भी संतुष्ट रहते थे. उन का रिजल्ट अच्छा आने लगा था. इसे देखते हुए कपिल उस की तारीफ करने लगा था.

2 सालों में प्रियंका एक घर की सदस्य की तरह बन गई थी. बेरोकटोक घर में आनेजाने लगी थी. इसी बीच प्रियंका ने महसूस किया कि कपिल उस से अकेले में मिलने और बातें करने के बहाने ढूंढने लगा है. कई बार उस के ड्रैस की तारीफ भी कर चुका था. बाल बनाने के स्टाइल के बारे में पूछते हुए कहा था कि सुनैना को भी वह स्टाइल सिखा दे.संयोग से एक बार कपिल को उसे गाड़ी में ले जाने का मौका मिल गया था. दरअसल, मौका मिला नहीं था, बल्कि उस ने जनबूझ कर ऐसा किया था, ताकि उस से अकेले में बातें कर सके.

उस दिन कपिल ने अपने प्रेम का इजहार प्रियंका को एक गिफ्ट दे कर किया. गुदगुदी तो प्रियंका के दिल में भी काफी समय से हो रही थी. उस ने भी थैंक्स कहने के बजाय सीधे गले गई थी. कपिल के लिए यह अनोखा अनुभव था. वह हतप्रभ हो गया था. खुश था, बोल पड़ा, ‘‘बड़ी अच्छी परफ्यूम लगाई है, कौन सी है?’’‘‘आप भी तो हमेशा अच्छी परफ्यूम लगाते हो. भीनीभीनी हो कर भी प्यारी लगती है.’’ प्रियंका हंसती हुई बोली.

इस के जवाब में कपिल सिर्फ मुसकरा कर रह गए. प्रियंका भी ‘बाय’ बोलती हुई जाने लगी.
कपिल उसे जाते हुए तब तक देखता रहा, जब तक वह सड़क पार नहीं कर गई. कपिल को उस का लचकती कमर मटकाते हुए चलने का अंदाज अच्छा लग रहा था. उस ने प्रियंका को जींस में पीछे से सैक्स अपील का अनुभव किया था.अगले ही रोज कपिल ने प्रियंका को एक जींस गिफ्ट करते हुए कहा, ‘‘यह मेरी फैक्ट्री का नया आइटम है.’’

प्रियंका अचकचाती हुई बोली, ‘‘कल ही तो आप ने महंगा सलवारसूट का गिफ्ट दिया था. तो आज फिर क्यों?’’‘‘यूं ही रख लो, मुझे तुम कल जींसटौप में बहुत ही हौट लगी थी, इसीलिए मैं ने सोचा…’’ कपिल की बात पूरी होने से पहले ही प्रियंका चहकती हुई बोल पड़ी, ‘‘हांहां, मेरी फ्रैंड्स भी कहती हैं कि मैं जींस में हौट और सैक्सी दिखती हूं.’’‘दिखती क्या हो, तुम तो हो ही ऐसी. किसी हीरोइन से कम दिखती हो क्या. तुम्हारा फिगर अच्छेअच्छों को भी नसीब नहीं होता है. तुम खुशनसीब हो.’’
प्रियंका अपनी तारीफ सुन कर शरमाने लगी, लेकिन कपिल के इस बदले रूप को उस ने पहली बार देखा था. थैंक्स बोली. कपिल ने भी जवाब में कहा कि उसे जब भी कुछ जरूरी हो बेझिझक उस से कह सकती है.

इस तरह दोनों के बीच दिलों की दूरियां कम होती चली गईं. दोनों कभी एकदूसरे की तारीफ करते तो कभी साथ समय गुजारने का मौका निकाल लेते.कुछ समय में ही प्रियंका ने महसूस किया कि कपिल की नजर उस पर अपनी पत्नी सुनैना से अधिक रहती है. इस का फायदा उठाते हुए वह जबतब पैसे की मदद भी लेने लगी थी. प्रियंका के लिए कपिल एक मालदार व्यक्ति था, जिस के दिल में उस ने जगह बना ली थी.दूसरी तरफ कपिल के लिए प्रियंका पैसे खर्च कर दिल बहलाने वाली खूबसूरत लड़की थी. वह उस की देह पर भी नजर गड़ाए हुए था.

एक दिन उसे मौका मिल गया. प्रियंका कपिल की आंखों में इस चाहत को अच्छी तरह से भांप चुकी थी. मन ही मन में उस की पत्नी बनने का सपना देखने लगी थी. आग दोनों तरफ से लग चुकी थी और फिर उन्होंने शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए.यहीं से दोनों की जिंदगी में बदलाव आने की शुरुआत हो गई. प्रियंका कपिल से और अधिक खुल गई. कपिल उसे घुमाने के लिए दिल्ली से बाहर हिल स्टेशनों पर ले जाने लगा. दोनों खुल कर मौजमस्ती करने लगे. उन के अवैध संबंध की भनक कई सालों तक किसी को नहीं लगी.

इस बीच प्रियंका के मातापिता ने उस की शादी के कई रिश्ते देखे, लेकिन प्रियंका कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती थी. उस की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन उस ने तो कपिल की बीवी बनने की ठान ली थी.2 साल पहले कोरोना काल का दौर आ गया. उन दिनों कपिल का बिजनैस बंद हो गया. कपिल और प्रियंका के प्रेम संबंध पर भी इस का असर हुआ. हिल स्टेशनों पर घूमने जाना तो दूर, राजधानी में ही उन के मिलनजुलने की समस्या आ गई.

बीते साल महामारी के बाद स्थिति सामान्य होने पर प्रियंका ने एक बार फिर कपिल के करीब आने की कोशिश की. प्रियंका ने कपिल से सीधे लहजे में बात की और शादी करने के लिए दबाव बनाया.
कपिल बोला कि पहली पत्नी के रहते हुए वह ऐसा कैसे कर सकता है. ऊपर से वह उस के बच्चों को राखी बांधती है, लोगबाग क्या कहेंगे? इसे ले कर एक बार घर में ही तीखी बहस हो गई. संयोग से बच्चे घर पर नहीं थे, लेकिन सुनैना दूसरे कमरे में थी.

हाल में उन के बीच बहस हो रही थी.भागीभागी हाल में आ कर सुनैना ने उन से पूछा कि क्या बात है प्रियंका इतनी नाराज क्यों है? सुनैना के आते ही प्रियंका आंखें दिखाती हुई बोली, ‘‘देख लेना, मैं ने जो कहा है उसे हलके में मत लेना. मैं कमजोर नहीं पड़ने वाली हूं.’’ उस के बाद प्रियंका तेजी से मेन गेट से बाहर चली गई.कपिल समझ गया था कि उस के छिपे अनैतिक कर्मों की पोल खुलने वाली है. प्रियंका के साथ उस के संबंध लोगों को मालूम होने वाला है. वह और शोर मचाए और घरपरिवार में लोगों को इस की जानकारी हो जाए, इस से पहले कुछ करना होगा. लेकिन क्या करे, समझ नहीं पा रहा था. अपना सिर पकड़ कर वहीं सोफे पर बैठ गया.

वहीं खड़ी सुनैना ने अपने पति को इस तरह से असहाय पहले कभी नहीं देखा था. उसे परेशान देख कर चिंता जताते हुए पूछा, ‘‘क्या बात हो गई? प्रियंका इतने गुस्से में क्यों थी?’’‘‘बात तो बड़ी है, मुझे ही उस का समाधान निकालना पड़ेगा,’’ कपिल बोला.‘‘सामाधान निकालना पड़ेगा? क्या समस्या है? मुझे बताओ, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं,’’ सुनैना बोली.

‘‘तुम उस में कुछ नहीं कर पाओगी, वह मुझे ब्लैकमेल कर रही है.’’ कपिल निराशा से बोला.
‘‘ब्लैकमेल! किस बात के लिए?’’ सुनैना चौंक गई.
‘‘अरे हां भई, हां. पिछले कई महीने से 50 लाख रुपए की डिमांड कर रही है. अगर नहीं दिया तो मुझे तिहाड़ जेल भिजवा देगी.’’ कपिल के मुंह से अचानक यह बात निकल गई.
‘‘तिहाड़ जेल क्यों? तुम ने क्या किया है?’’ सुनैना बोली.

यह सुनते ही कपिल फफक पड़ा, उस की आंखों से आंसू निकल आए. सुनैना ने उसे पकड़ कर उठाया. दुपट्टे से आंसू पोछे. बोली, ‘‘पूरी बात साफसाफ बताओ, मैं देखती हूं कि उस पिद्दी सी प्रियंका की इतनी औकात जो तुम्हें कुछ कहे. आने दो उसे, मैं सबक सिखाती हूं.’’
सुनैना की बातों से कपिल को बल मिला. सामान्य हो कर उस ने पूरी बात विस्तार से बता दी. अपने संबंधों को ले कर उस से माफी मांगी. सुनैना बोली, ‘‘तुम सुबह के भूले की तरह लौट आए, यही मेरे लिए बहुत है. अब तुम देखते जाओ मैं तुम्हारे लिए क्या करती हूं.’’

पत्नी की बदौलत कपिल में भी हिम्मत आ गई. उस के मन पर से एक बड़ा बोझ उतर चुका था. सुनैना की बातों से महसूस हुआ कि आगे भी सब कुछ सामान्य होने वाला है. उस रोज वह अपने काम में लग गए. उस के ठीक एक सप्ताह बाद सुनैना ने 14 मार्च को सुबहसुबह प्रियंका को फोन कर बुलाया. उसे बताया कि उस के लिए कपिल ने कुछ पैसे रखे हैं, आ कर ले जाए.

प्रियंका यह सुन कर भागीभागी आई. आ कर सुनैना के गले लग गई. बीते दिनों कपिल से गुस्से में बात करने के लिए माफी मांगी. सुनैना ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं है. कपिल बोल रहे थे कि तुम्हें मकान खरीदने के लिए कुछ पैसों की जरूरत है. उस का उन्होंने इंतजाम कर दिया है. कुछ कैश इस पैकेट में है और कुछ बैंक से निकालने होंगे. तुम हमारे दोनों स्टाफ राजकिशोर और सचिन के साथ चली जाओ. वहीं कपिल मिल जाएंगे.’’
इस की जानकारी प्रियंका ने फोन से अपनी मां को दे दी और कपिल के दोनों स्टाफ के साथ गाड़ी में बैठ कर चली गई. जैसा कि सुनैना ने बताया था कपिल बैंक में ही मिल गया. प्रियंका पैसा निकाल कर कपिल के साथ गाड़ी में आगे बैठ गई.

कपिल उस के साथ इधरउधर की बातें करने लगा. उस की शादी तय होने की बातें करते हुए गाड़ी सुनसान लंबे हाईवे पर ले आया.
‘‘अरे यह क्या मुझे तो पहले ही मुड़ना था, अब कट यहां से ढाई किलोमीटर दूर आएगा.’’ प्रियंका हंसती हुई बोली, ‘‘कोई बात नहीं, कभीकभी ऐसी मिस्टेक हो जाती है. वैसे भी तुम बातें करने में लगे हुए थे. तुम्हारा ध्यान मुझ पर अधिक था.’’

तभी पीछे बैठे राजकिशोर और सचिन ने प्रियंका के गले में रस्सी डाल कर खींच ली. प्रियंका इस अचानक हुए हमले के लिए तैयार नहीं थी. कुछ समय में ही उस की गला घुटने से मौत हो गई.
कपिल ने गाड़ी किनारे रोक दी. राजकिशोर और सचिन तुरंत आगे आए और प्रियंका को बोरी में बंद कर दिया. बोरी को पीछे डिक्की में डाल कर वीडियो काल कर दिया, ‘‘मैडम, आप प्लाईओवर खत्म होने के बाद मौल के सामने मिल जाइए, काम हो गया है. यह देखिए हम लोग अभी इस जगह से चलने वाले हैं.’’

कपिल फिर अपनी ड्राइविंग सीट पर आ गया. थोड़ी देर में ही सुनैना मौल के सामने खड़ी मिल गई. वह कपिल के साथ वाली सीट पर बैठ गई. पीछे मुड़ कर दोनों स्टाफ को थैंक्स बोला और अपने पर्स से एकएक पैकेट निकाल कर दोनों को दे दिया. उस में पैसे थे. बाकी का काम पूरा होने पर और पैसे देने का आश्वासन दिया.

अब कपिल की गाड़ी राजस्थान के अलवर जाने वाले रास्ते पर थी. वे शाम के 7 बजे के करबी ततारपुर इलाके में पहुंच गए थे. वहीं मौका पा कर उन के स्टाफ ने बोरी में रखी प्रियंका की लाश को एक पुलिया के नीचे गिरा दी और रात के 11 बजे तक सभी वापस दिल्ली आ गए.

पूरी कहानी सुनने के बाद ततारपुर थानाप्रभारी ने चारों अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अगले रोज मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर दिया. वहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कलंक- भाग 2 : बलात्कारी होने का कलंक अपने माथे पर लेकर कैसे जीएंगे वे तीनों ?

उन में से एक की ऊंची आवाज ने इन तीनों को बुरी तरह चौंका दिया, ‘‘हे… कौन हो तुम लोग? इस लड़की को यहां फेंक कर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘रुको जर…सोनू, तू कार का नंबर नोट कर, मुझे सारा मामला गड़बड़ लग रहा है,’’ एक दूसरे आदमी की आवाज उन तक पहुंची तो वे फटाफट कार में वापस घुसे और आलोक ने झटके से कार सड़क पर दौड़ा दी.

‘‘संजय, तुझे तो मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ उस लड़की की क्रोध से भरी यह चेतावनी उन तीनों के मन में डर और चिंता की तेज लहर उठा गई.

‘‘उसे मेरा नाम कैसे पता लगा?’’ संजय ने डर से कांपती आवाज में सवाल पूछा.

‘‘शायद हम दोनों में से किसी के मुंह से अनजाने में निकल गया होगा,’’ नरेश ने चिंतित लहजे में जवाब दिया.

‘‘आज मारे गए हमसब. मैं ने उन आदमियों में से एक को अपनी हथेली पर कार का नंबर लिखते हुए देखा है. उस लड़की को ‘संजय’ नाम पता है. पुलिस को हमें ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं आएगी,’’ आलोक की इस बात को सुन कर उन दोनों का चेहरा पीला पड़ चुका था.

नरेश ने अचानक सहनशक्ति खो कर संजय से चिढ़े लहजे में पूछा, ‘‘बेवकूफ इनसान, क्या जरूरत थी तुझे उस लड़की को उठा कर कार में डालने की?’’

‘‘यार, उस ने हमारी मांबहन…तो मैं ने अपना आपा खो दिया,’’ संजय ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तो उसे उलटी हजार गालियां दे लेता…दोचार थप्पड़ मार लेता. तू उसे उठा कर कार में न डालता, तो हमारी इस गंभीर मुसीबत की जड़ तो न उगती.’’

‘‘अरे, अब आपस में लड़ने के बजाय यह सोचो कि अपनी जान बचाने को हमें क्या करना चाहिए,’’ आलोक की इस सलाह को सुन कर उन दोनों ने अपनेअपने दिमाग को इस गंभीर मुसीबत का समाधान ढूंढ़ने में लगा दिया.

पुलिस उन तक पहुंचे, इस से पहले ही उन्हें अपने बचाव के लिए कदम उठाने होंगे, इस महत्त्वपूर्ण पहलू को समझ कर उन तीनों ने आपस में कार में बैठ कर सलाहमशविरा किया.

अपनी जान बचाने के लिए वे तीनों सब से पहले आलोक के चाचा रामनाथ के पास पहुंचे. वे 2 फैक्टरियों के मालिक थे और राजनीतिबाजों से उन की काफी जानपहचान थी.

रामनाथ ने अकेले में उन तीनों से पूरी घटना की जानकारी ली. आलोक को ही अधिकतर उन के सवालों के जवाब देने पड़े. शर्मिंदा तो वे तीनों ही नजर आ रहे थे, पर सब बताते हुए आलोक ने खुद को मारे शर्म और बेइज्जती के एहसास से जमीन में गड़ता हुआ महसूस किया.

‘‘अंकल, हम मानते हैं कि हम से गलती हुई है पर ऐसा गलत काम हम जिंदगी में फिर कभी नहीं करेंगे. बस, इस बार हमारी जान बचा लीजिए.’’

‘‘दिल तो ऐसा कर रहा है कि तुम सब को जूते मारते हुए मैं खुद पुलिस स्टेशन ले जाऊं, लेकिन मजबूर हूं. अपने बड़े भैया को मैं ने वचन दिया था कि उन के परिवार का पूरा खयाल रखूंगा. तुम तीनों के लिए किसी से कुछ सहायता मांगते हुए मुझे बहुत शर्म आएगी,’’ संजय को आग्नेय दृष्टि से घूरने के बाद रामनाथ ने मोबाइल पर अपने एक वकील दोस्त राकेश मिश्रा का नंबर मिलाया.

राकेश मिश्रा को बुखार ने जकड़ा हुआ था. सारी बात उन को संक्षेप में बता कर रामनाथ ने उन से अगले कदम के बारे में सलाह मांगी.

‘‘जिस इलाके से उस लड़की को तुम्हारे भतीजे और उस के दोनों दोस्तों ने उठाया था, वहां के एसएचओ से जानपहचान निकालनी होगी. रामनाथ, मैं तुम्हें 10-15 मिनट बाद फोन करता हूं,’’ बारबार खांसी होने के कारण वकील साहब को बोलने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘इन तीनों को अब क्या करना चाहिए?’’

‘‘इन्हें घर मत भेजो. ये एक बार पुलिस के हाथ में आ गए तो मामला टेढ़ा हो जाएगा.’’

‘‘इन्हें मैं अपने फार्म हाउस में भेज देता हूं.’’

‘‘उस कार में इन्हें मत भेजना जिसे इन्होंने रेप के लिए इस्तेमाल किया था बल्कि कार को कहीं छिपा दो.’’

‘‘थैंक्यू, माई फैं्रड.’’

‘‘मुझे थैंक्यू मत बोलो, रामनाथ. उस थाना अध्यक्ष को अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी है. तुम्हें रुपयों का इंतजाम रखना होगा.’’

‘‘कितने रुपयों का?’’

‘‘मामला लाखों में ही निबटेगा मेरे दोस्त.’’

‘‘जो जरूरी है वह खर्चा तो अब करेंगे ही. इन तीनों की जलील हरकत का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा. तुम मुझे जल्दी से दोबारा फोन करो,’’ रामनाथ ने फोन काटा और परेशान अंदाज में अपनी कनपटियां मसलने लगे थे.

 

कलंक- भाग 1: बलात्कारी होने का कलंक अपने माथे पर लेकर कैसे जीएंगे वे तीनों ?

उस रात 9 बजे ही ठंड बहुत बढ़ गई थी. संजय, नरेश और आलोक ने गरमाहट पाने के लिए सड़क के किनारे कार रोक कर शराब पी. नशे के चलते सामने आती अकेली लड़की को देख कर उन के भीतर का शैतान जागा तो वे उस लड़की को छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाए.

‘‘जानेमन, इतनी रात को अकेली क्यों घूम रही हो? किसी प्यार करने वाले की तलाश है तो हमें आजमा लो,’’ आसपास किसी को न देख कर नरेश ने उस लड़की को ऊंची आवाज में छेड़ा.

‘‘शटअप एंड गो टू हैल, यू बास्टर्ड,’’ उस लड़की ने बिना देर किए अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘तुम साथ चलो तो ‘हैल’ में भी मौजमस्ती रहेगी, स्वीटहार्ट.’’

‘‘तेरे साथ जाने को पुलिस को बुलाऊं?’’ लड़की ने अपना मोबाइल फोन उन्हें दिखा कर सवाल पूछा.

‘‘पुलिस को बीच में क्यों ला रही हो मेरी जान?’’

‘‘पुलिस नहीं चाहिए तो अपनी मां या बहनों…’’

वह लड़की चीख पाती उस से पहले ही संजय ने उस का मुंह दबोच लिया और झटके से उस लड़की को गोद में उठा कर कार की तरफ बढ़ते हुए अपने दोस्तों को गुस्से से निर्देश दिए, ‘‘इस ‘बिच’ को अब सबक सिखा कर ही छोड़ेंगे. कार स्टार्ट करो. मैं इस की बोटीबोटी कर दूंगा अगर इस ने अपने मुंह से ‘चूं’ भी की.’’

आलोक कूद कर ड्राइवर की सीट पर बैठा और नरेश ने लड़की को काबू में रखने के लिए संजय की मदद की. कार झटके से चल पड़ी.

उस चौड़ी सड़क पर कार सरपट भाग रही थी. संजय ने उस लड़की का मुंह दबा रखा था और नरेश उसे हाथपैर नहीं हिलाने दे रहा था.

‘‘अगर अब जरा भी हिली या चिल्लाई तो तेरा गला दबा दूंगा.’’

संजय की आंखों में उभरी हिंसा को पढ़ कर वह लड़की इतना ज्यादा डरी कि उस का पूरा शरीर बेजान हो गया.

‘‘अब कोई किसी का नाम नहीं लेगा और इस की आंखें भी बंद कर दो,’’ आलोक ने उन दोनों को हिदायत दी और कार को तेज गति से शहर की बाहरी सीमा की तरफ दौड़ाता रहा.

एक उजाड़ पड़े ढाबे के पीछे ले जा कर आलोक ने कार रोकी. उन की धमकियों से डरी लड़की के साथ मारपीट कर के उन तीनों ने बारीबारी से उस लड़की के साथ बलात्कार किया.

लड़की किसी भी तरह का विरोध करने की स्थिति में नहीं थी. बस, हादसे के दौरान उस की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू बहते रहे थे.

लौटते हुए संजय ने लड़की को धमकाते हुए कहा, ‘‘अगर पुलिस में रिपोर्ट करने गई, तो हम तुझे फिर ढूंढ़ लेंगे, स्वीटहार्ट. अगर हमारी फिर मुलाकात हुई तो तेजाब की शीशी होगी हमारे हाथ में तेरा यह सुंदर चेहरा बिगाड़ने के लिए.’’

तीनों ने जहां उस लड़की को सड़क पर उतारा. वहीं पास की दीवार के पास 4 दोस्त लघुशंका करने को रुके थे. अंधेरा होने के कारण उन तीनों को वे चारों दिखाई नहीं दिए थे.

दर्द का सफर: जीवन के दर्द पाल कर बैठ जाएं तो..

‘मन क्यों रोनेरोने को है
क्या जाने क्या होने को है
हृदय संजोए अनगिनत यादें तन तो बोझा ढोने को है
आहें दर्पण धुंधलाने को,
हर आंसू मुख धोने को है.
दिया जिंदगी ने बहुतेरा,
मिला सभी, पर खोने को है.
फूल समय ने सभी चुन लिए,
अब जाने क्या बोने को है.’

सैटेलाइट रोड पर स्थित सरदार पटेल हौल में अपने शो की शुरुआत मैं ने विश्व प्रकाश दीक्षित की इसी गजल के साथ शुरू की. गजल खत्म होते ही श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हौल गूंज उठा. इस से मुझे काफी संतोष हुआ, क्योंकि यह मेरा पहला सोलो परफौर्मेंस था. शो से पहले मैं काफी नर्वस थी. पर थैंक्स टू देव. उन के मोटिवेशन से मेरा हौसला सातवें आसमान पर था. गजल के बाद कुछ फिल्मी गीत और 2 घंटे की रजनी पंडित म्यूजिकल इवनिंग खत्म हुई. मेरा दर्द का सफर खुशी के मुकाम पर आखिरकार पहुंच ही गया.

मेरा अब तक का जीवन दर्द का ही सफर है. हर पहलू, हर हिस्से में दर्द ही दर्द है. इस से मुझे प्रेरणा भी मिलती है, क्योंकि हर गम की काली रात का अंत सुहानी सुबह से जरूर होता है. पहले अपना परिचय दे दूं. मेरा नाम रजनी है और उम्र 27 साल है. समाजशास्त्र में एमए हूं. फिलहाल अहमदाबाद में रहती हूं. इस शहर में आए कुछ महीने ही हुए. वैसे मैं मूलरूप से नडियाद जिले के एक गांव की रहने वाली हूं. मेरे पिताजी राजस्व विभाग में कार्यरत हैं और मां गृहिणी हैं. बाकी परिवार में भाई, बहन, भाभी, भतीजे सब हैं.

देखा जाए तो मेरा परिवार एक आदर्श परिवार है. पर मेरे बचपन की शुरुआत दर्द के सफर से शुरू हुई. मुझे एक बात जो धीरेधीरे समझ आने लगी वह थी बेटी की उपेक्षा. आज भले ही चारों तरफ ये नारे दिए जाते हों कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, लड़कालड़की एक समान, पढ़ीलिखी लड़की, रोशनी घर की, पर हकीकत अलग है. मेरे घर में ही मिलेंगे कुछ ऐसे निशान, जहां अरमानों ने खुदकुशी की है.

वास्तव में अपने ही घर वाले बेटियों से अच्छा व्यवहार नहीं करते. चाहे मातापिता हों या भाईभाभी, उन का व्यवहार भी ठीक नहीं रहता. वे पगपग पर लड़कियों की उपेक्षा करते हैं. उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करते हैं. लड़कियों को बोझ समझा जाता है. हो सकता है कि हर घर में ऐसा नहीं होता हो, पर मेरे घर में ऐसा होता है. मैं ने इसे महसूस किया है और भोगा है.

मैं ने मांबेटी, बापबेटी, भाईबहन और भाभीननद के बीच रिश्तों की असलियत देखी है. उस का दुखद अनुभव किया है. आपसी रिश्तों में प्रेम के महत्त्व पर मुझे एक लघुकथा याद आ रही है. एक बार एक ग्वालन दूध बेच रही थी और सब को दूध नापनाप कर दे रही थी. उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो ग्वालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बरतन दूध से भर दिया.

वहीं थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला ले कर मनकों को फेर रहा था. उस की नजर ग्वालन पर पड़ी और उस ने यह सब देखा और पास बैठे व्यक्ति को सारी बात बता कर इस का कारण पूछा. उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस ग्वालन ने बिना नापे दूध दिया है वह उस से प्रेम करती है. यह बात साधु के दिल को छू गई और उस ने सोचा कि एक दूध बेचने वाली ग्वालन जिस से प्रेम करती है, उस का हिसाब नहीं रखती और मैं यहां बैठा सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेर रहा हूं. मुझ से तो अच्छी यह ग्वालन है और उस ने माला तोड़ कर फेंक दी.

जीवन ऐसा ही होना चाहिए. जहां प्रेम होता है, वहां हिसाबकिताब नहीं होता और जहां हिसाबकिताब होता है वहां प्यार नहीं, सिर्फ व्यापार होता है. हम कम से कम आपसी रिश्तों को तो स्वार्थ, उपेक्षा, नफरत, विरोध व व्यापार से दूर रखें.

मैं अपने घर के अनुभव को आज के समाज से जोड़ती हूं. पिछले 2 दिनों से लगातार अखबार में कुछ ऐसी ही खबरें आ रही हैं उन में एक खबर थी कि मुंबई में एक महिला का बेटा अमेरिका से जब घर आया तो उसे अपनी मां का कंकाल बंद घर में मिला, उस महिला के उसी बिल्डिंग में

2 फ्लैट थे जिन की कीमत करोड़ों में है और बेटा भी अमेरिका में अच्छा कमाता है. दूसरी खबर थी कि रेमंड्स कंपनी के मालिक विजयपत सिंघानिया अब जिंदगी के आखिरी दिनों में मुंबई के एक छोटे से फ्लैट में मुफलिसी में जिंदगी बिता रहे हैं.

एक मामले में मां और बेटे के बीच रिश्ते असंवेदनशील हो गए तो दूसरी मिसाल में बापबेटे के बीच रिश्ते तल्ख हो गए. विजयपत का सगा बेटा गौतम ही उन्हें कुछ भी देने को राजी नहीं है, इसलिए विजयपत को अदालत का सहारा लेना पड़ा.

आज के रिश्ते स्वार्थी, क्रूर, निर्दयी और असंवेदनशील हो गए हैं. उन में नजदीक का स्नेह और अपनापन नहीं है. रिश्तों में गर्मजोशी नहीं है. प्रेम गायब हो चुका है. मैं ईश्वर दत्त अंजुम को याद करती हूं. तुम को रोना है तो महफिल सजा कर न रोना, दिल का हर दर्द जमाने से छिपा कर रोना.

रोनेधोने के भी दस्तूर हुआ करते हैं, अपने अश्कों में लहू दिल का मिला कर रोना. मेरी मां मेरे प्रति पता नहीं क्यों कुछ ज्यादा ही क्रूर नजर आई हैं. इसे मैं काफी पहले से महसूस कर रही हूं, लेकिन इस क्रूरता में इजाफा 2 साल पहले हुआ जब मेरे भाई की शादी हुई और भाभी का घर में प्रवेश हुआ. भाभी ने आते ही मेरा जीना हराम कर दिया. वह छोटीछोटी बातों को ले कर मेरे पीछे पड़ने लगी. मुझे ताना मारने लगी. जब गुस्सा आता तो पूरा आसमान सिर पर उठा लेती और चीखचीख कर बोलती, ‘रजनी ने मेरा जीना हराम कर दिया है.’ भाभी ने एक बार फांसी लगाने का भी नाटक किया. मेरी मां हमेशा उसी के पक्ष में रहतीं, क्योंकि घर में भाई ही कमाने वाला है.

मां भाभी का समर्थन करतीं और कहतीं, ‘रजनी, तुम चुप रहो, अपनी भाभी से जबान मत लड़ाओ. तुम्हारा क्या है, तुम्हें तो शादी कर दूसरे घर जाना है.

मैं अपनी मां की खूब इज्जत करती हूं. उन के लिए मेरे मन में अगाध सम्मान है. मेरी नजर में मेरी मां सरीखी दुनिया में कोई दूसरा नहीं है. वे बेमिसाल हैं, पर उन का एक और पक्ष आप के सामने रख चुकी हूं. वे कई बार तो यह भी कह चुकी हैं कि मुझे तुम से कोई मतलब नहीं. कहीं तुम्हारी वजह से मेरे दोनों बेटों का कत्ल न हो जाए. मेरे लिए अफसोस की बात है कि मेरा सगा भाई भी भाभी की हां में हां मिलाता.

भाई पैसे के घमंड में रहता है क्योंकि वह काफी पैसे कमाता है. वह भी कहता कि रजनी तुम जबान बहुत चलाती हो. तुम मेरी दुश्मन बन गई हो. अपनी भाभी का सम्मान किया करो. तुम भाभी का हमेशा अपमान करती हो. वे तुम से बड़ी हैं. मेरी भाभी एक बार तो मेरे ऊपर हाथ भी उठा चुकी है. मैं भी भाभी को मार कर उसे करारा जवाब दे सकती थी, पर मैं ने ऐसा नहीं किया. मैं खून का घूंट पी कर रह गई.

भाई यह भी कहता कि रजनी, तुम जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगी. नौकरी कर के कितना कमाओगी? 5 हजार, 10 हजार, बस. इतनी मेरी एक दिन की कमाई और खर्च है.

मैं मांपिताजी का बहुत सम्मान करती हूं. कुल मिला कर मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है. पर मेरा दुख है कि चाहे मां हों या पिताजी दोनों ने मेरी भावनाओं को समझने का कोई प्रयास नहीं किया. लिहाजा, मेरा दर्द का सफर चलता रहा. ‘रात गम की बसर नहीं होती, उफ, सहर क्यों नहीं होती.’

मां को चाहिए कि वे बेटी की भावनाओं और आकांक्षाओं को समझें, बेटी को कभी हर्ट न करें. कहते भी हैं कि एक बेटी का मनोविज्ञान उस की मां ही समझ सकती है. पर मेरी मां ने तो मुझे बिलकुल नहीं समझा. मां ने हमेशा मेरी उपेक्षा ही की है. मैं लड़की हूं, मां मुझे जिस खूंटे से बांध दें मैं वहीं चली जाऊं तो मैं बहुत अच्छी वरना खराब. मां ने खूब डरायाधमकाया, किसी से बात नहीं करने दी. सैकड़ों प्रतिबंध लगा दिए. ‘एक तपती दोपहर है अब हमारी जिंदगी. एक उजड़ा सा शहर है अब हमारी जिंदगी. हर दिशा में हाथ में पत्थर सजे छोटेबड़े एक सुंदर कांच का घर है अब हमारी जिंदगी.’ मां का ऐसा व्यवहार मुझे बराबर तोड़ता रहता. यह तो कोई बात नहीं हुई अपनी संतानों में से कि मां एक को दबाए और दूसरे को बाहुबली बना दे. यह बिलकुल भी उचित नहीं है, लेकिन मेरे साथ यह सबकुछ किया गया.

Ī मैं हमेशा से एक सिंगर बनने का सपना देखती रही. अहमदाबाद में इस का काफी स्कोप था लेकिन वहां शायद ही मेरा सपना पूरा हो पाए. यह सोच कर मैं अहमदाबाद चली आई. और यहां मैं ने एक संगीत विद्यालय में दाखिला ले लिया. इस में मेरी नई सहेली दीपाली ने काफी मदद की. दीपाली भी बहुत अच्छा गाती है. उस से पहले देव का प्रवेश मेरे जीवन में हो चुका था. देव ने मुझे भावनात्मक सहारा दिया. मैं गायन की दुनिया में आगे बढ़ने लगी. धीरधीरे मुझे गायिकी के मंच मिलने लगे और मेरी जिंदगी ढर्रे पर आ गई और आज मेरे पहले प्रोफैशनल शो की कामयाबी ने दर्द का सफर खत्म कर दिया.

यह घर मेरा भी है: शादी के बाद समीर क्यों बदल गया?

मैं और मेरे पति समीर अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ एक रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे, अचानक बेटी चीनू के हाथ के दबाव से चम्मच उस की प्लेट से छिटक कर उस के कपड़ों पर गिर गया और सब्जी छलक कर फैल गई.

यह देखते ही समीर ने आंखें तरेरते हुए उसे डांटते हुए कहा, ‘‘चीनू, तुम्हें कब अक्ल आएगी? कितनी बार समझाया है कि प्लेट को संभाल कर पकड़ा करो, लेकिन तुम्हें समझ ही नहीं आता… आखिर अपनी मां के गंवारपन के गुण तो तुम में आएंगे ही न.’’

यह सुनते ही मैं तमतमा कर बोली, ‘‘अभी बच्ची है… यदि प्लेट से सब्जी गिर भी गई तो कौन सी आफत आ गई है… तुम से क्या कभी कोई गलती नहीं होती और इस में गंवारपन वाली कौन सी बात है? बस तुम्हें मुझे नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना चाहिए.’’

‘‘सुमन, तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है… इसे टेबल मैनर्स आने चाहिए. मैं नहीं चाहता इस में तुम्हारे गुण आएं… मैं जो चाहूंगा, इसे सीखना पड़ेगा…’’

मैं ने रोष में आ कर उस की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं है कि उसे जिस तरह चाहो नचा लो और फिर कभी तुम ने सोचा है कि इतनी सख्ती करने का इस नन्ही सी जान पर क्या असर होगा? वह तुम से दूर भागने लगेगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी,’’ कहते हुए समीर चम्मच प्लेट में पटक कर बड़बड़ाता हुआ रैस्टोरैंट के बाहर निकल गया और गाड़ी स्टार्ट कर घर लौट गया.

मेरी नजर चीनू पर पड़ी. वह चम्मच को हाथ में

पकड़े हमारी बातें मूक दर्शक बनी सुन रही थी. उस का चेहरा बुझ गया था, उस के हावभाव से लग रहा था, जैसे वह बहुत आहत है कि उस से ऐसी गलती हुई, जिस की वजह से हमारा झगड़ा हुआ. मैं ने उस का फ्रौक नैपकिन से साफ किया और फिर पुचकारते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, गलती तो किसी से भी हो सकती है. तुम अपना खाना खाओ.’’

‘‘नहीं ममा मुझे भूख नहीं है… मैं ने खा लिया,’’ कहते हुए वह उठ गई.

मुझे पता था कि अब वह नहीं खाएगी. सुबह वह कितनी खुश थी, जब उसे पता चला था कि आज हम बाहर डिनर पर जाएंगे. यह सोच कर मेरा मन रोंआसा हो गया कि मैं समीर की बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती. मगर मैं भी क्या करती. आखिर कब तक बरदाश्त करती? मुझे नीचा दिखाने के लिए बातबात में चीनू को मेरा उदाहरण दे कर कि आपनी मां जैसी मत बन जाना, उसे डांटता रहता है. मेरी चिढ़ को उस पर निकालने की उस की आदत बनती जा रही थी.

हम दोनों कैब ले कर घर आए तो देखा समीर दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में था. हम भी आ कर सो गए, लेकिन मेरा मन इतना अशांत था कि उस के कारण मेरी आंखों में नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने बगल में लेटी चीनू को भरपूर दृष्टि से देखा, कितनी मासूम लग रही थी वह. आखिर उस की क्या गलती थी कि वह हम दोनों के झगड़े में पिसे?

विवाह होते ही समीर का पैशाचिक व्यवहार मुझे खलने लगा था. मुझे हैरानी होती थी यह देख कर कि विवाह के पहले प्रेमी समीर के व्यवहार में पति बनते ही कितना अंतर आ गया. वह मेरे हर काम में मीनमेख निकाल कर यह जताना कभी नहीं चूकता कि मैं छोटे शहर में पली हूं. यहां तक कि वह किसी और की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता था.

इस से पहले कि मैं समीर को अच्छी तरह समझूं, चीनू मेरे गर्भ में आ गई. उस के बाद तो मेरा पूरा ध्यान ही आने वाले बच्चे की अगवानी की तैयारी में लग गया था. मैं ने सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद उस का व्यवहार बदल जाएगा. मैं उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने मानअपमान पर ध्यान देने का मुझे वक्त ही नहीं मिला. वैसे चीनू की भौतिक सुखसुविधा में वह कभी कोई कमी नहीं छोड़ता था.

वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता गया और चीनू 3 साल की हो गई. इन सालों में मेरे प्रति समीर के व्यवहार में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया. खुद तो चीनू के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता था, लेकिन उस के पालनपोषण में मेरी कमी निकाल कर वह मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

धीरेधीरे वह इस के लिए चीनू को अपना हथियार बनाने लगा कि वह भी

मेरी आदतें सीख रही है, जोकि मेरे लिए असहनीय होने लगा था. इस प्रकार का वादविवाद रोज का ही हिस्सा बन गया था और बढ़ता ही जा रहा था. मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे झगड़े के दलदल में चीनू को भी घसीटे. चीनू तो सहमी हुई मूकदर्शक बनी रहती थी और आज तो हद हो गई थी. वास्तविकता तो यह है कि समीर को इस बात का बड़ा घमंड है कि वह इतना कमाता है और उस ने सारी सुखसुविधाएं हमें दे रखी हैं और वह पैसे से सारे रिश्ते खरीद सकता है.

मैं सोच में पड़ गई कि स्त्री को हर अवस्था में पुरुष का सुरक्षा कवच चाहिए होता है. फिर चाहे वह सुरक्षाकवच स्त्री के लिए सोने के पिंजरे में कैद होने के समान ही क्यों न हो? इस कैद में रह कर स्त्री बाहरी दुनिया से तो सुरक्षित हो जाती है, लेकिन इस के अंदर की यातनाएं भी कम नहीं होतीं. पिछली पीढ़ी में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती थीं, इसलिए असहाय होने के कारण पति द्वारा दी गई यातनाओं को मनमार कर स्वीकार लेती थीं. उन्हें बचपन से ही घुट्टी पिला दी जाती थी कि उन के लिए विवाह करना आवश्यक है और पति के साथ रह कर ही वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकती हैं, इस के इतर उन का कोई वजूद ही नहीं है.

मगर अब स्त्रियां आत्मनिर्भर होने के साथसाथ अपने अधिकारों के लिए भी जागरूक हो गई हैं. फिर भी कितनी स्त्रियां हैं जो पुरुष के बिना रहने का निर्णय ले पा रही हैं? लेकिन मैं यह निर्णय ले कर समाज की सोच को झुठला कर रहूंगी. तलाक ले कर नहीं, बल्कि साथ रह कर. तलाक ही हर दुखद वैवाहिक रिश्ते का अंत नहीं होता. आखिर यह मेरा भी घर है, जिसे मैं ने तनमनधन से संवारा है. इसे छोड़ कर मैं क्यों जाऊं?

लड़कियों का विवाह हो जाता है तो उन का अपने मायके पर अधिकार नहीं रहता, विवाह के बाद पति से अलग रहने की सोचें तो वही उस घर को छोड़ कर जाती हैं, फिर उन का अपना घर कौन सा है, जिस पर वे अपना पूरा अधिकार जता सकें? अधिकार मांगने से नहीं मिलता, उसे छीनना पड़ता है. मैं ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बेफिक्र हो कर सो गई.

सुबह उठी तो मन बड़ा भारी हो रहा था. समीर अभी भी सामान्य नहीं था. वह

औफिस के लिए तैयार हो रहा था तो मैं ने टेबल पर नाश्ता लगाया, लेकिन वह ‘मैं औफिस में नाश्ता कर लूंगा’ बड़बड़ाते हुए निकल गया. मैं ने भी उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

चीनू आ कर मुझ से लिपट गई. बोली, ‘‘ममा, पापा को इतना गुस्सा क्यों आता है? मुझ से थोड़ी सब्जी ही तो गिरी थी…आप को याद है उन से भी चाय का कप लुढ़क गया था और आप ने उन से कहा था कि कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है. फिर तुरंत कपड़ा ला कर आप ने सफाई की थी. मेरी गलती पर पापा ऐसा क्यों नहीं कहते? मुझे पापा बिलकुल अच्छे नहीं लगते. जब वे औफिस चले जाते हैं, तब घर में कितना अच्छा लगता है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा बेटा, तू परेशान मत हो… मैं हूं न,’’ कह कर मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और सोचने लगी कि इतनी प्यारी बच्ची पर कोई कैसे गुस्सा कर सकता है? यह समीर के व्यवहार का कितना अवलोकन करती है और इस के बालसुलभ मन पर उस का कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

समीर और मुझ में बोलचाल बंद रही. कभीकभी वह औपचारिकतावश चीनू से पूछता कहीं जाने के लिए तो वह यह देख कर कि वह मुझ से बात नहीं करता है, उसे साफ मना कर देती थी. वह सोचता था कि कोई प्रलोभन दे कर वह चीनू को अपने पक्ष में कर लेगा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. समीर की बेरुखी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मनमानी भी धीरेधीरे बढ़ रही थी. जबतब घर का खाना छोड़ कर बाहर खाने चला जाता, मैं भी उस के व्यवहार को अनदेखा कर के चीनू के साथ खुश रहती. यह स्थिति 15 दिन रही.

एक दिन मैं चीनू के साथ कहीं से लौटी तो देखा समीर औफिस से अप्रत्याशित जल्दी लौट कर घर में बैठा था. मुझे देखते ही गुस्से में बोला, ‘‘क्या बात है, आजकल कहां जाती हो बताने की भीजरूरत नहीं समझी जाती…’’ उस की बात बीच में काट कर मैं बोली, ‘‘तुम बताते हो कि तुम कहां जाते हो?’’

‘‘मेरी बात और है.’’

‘‘क्यों? तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने की इजाजत है, क्योंकि तुम पुरुष हो, मुझे नहीं. क्योंकि…’’

‘‘लेकिन तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हें किस चीज की कमी है? हर सुख घर में मौजूद है. पैसे की कोई कमी नहीं. जो चाहे कर सकती हो,’’ गुलछर्रे उड़ाने वाली बात सुन कर वह थोड़ा संयत हो कर मेरी बात को बीच में ही रोक कर बोला, क्योंकि उस के और उस की कुलीग सुमन के विवाहेतर संबंध से मैं अनभिज्ञ नहीं थी.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन भौतिक सुखों के लिए ही स्त्री अपने पूर्व रिश्तों को विवाह की सप्तपदी लेते समय ही हवनकुंड में झोंक देती है और बदले में पुरुष उस के शरीर पर अपना प्रभुत्व समझ कर जब चाहे नोचखसोट कर अपनी मर्दानगी दिखाता है… स्त्री भी हाड़मांस की बनी होती है, उस के पास भी दिल होता है, उस का भी स्वाभिमान होता है, वह अपने पति से आर्थिक सुरक्षा के साथसाथ मानसिक और सामाजिक सुरक्षा की भी अपेक्षा करती है. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे सामने मुझे कितना भी नीचा दिखा लें, लेकिन तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. तुम मूकदर्शक बने खड़े देखते रहते हो… स्वयं हर समय मुझे नीचा दिखा कर मेरे मन को कितना आहत करते हो, यह कभी सोचा है?’’

‘‘ठीक है यदि तुम यहां खुश नहीं हो तो अपने मायके जा कर रहो, लेकिन चीनू तुम्हारे साथ नहीं जाएगी, वह मेरी बेटी है, उस की परवरिश में मैं कोई कमी नहीं रहने देना चाहता. मैं उस का पालनपोषण अपने तरीके से करूंगा… मैं नहीं चाहता कि वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारे स्तर की बने,’’ समीर के पास जवाब देने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए अधिकतर पुरुषों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अंतिम वार करते हुए चिल्ला कर बोला.

‘‘चिल्लाओ मत. सिर्फ पैदा करने से ही तुम चीनू के बाप बनने के अधिकारी नहीं हो सकते. वह तुम्हारे व्यवहार से आहत होती है. आजकल के बच्चे हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं कि उन पर अपने विचारों को थोपा जाए, हम उन को उस तरह नहीं पाल सकते जैसे हमें पाला गया है. इन के पैदा होने तक समय बहुत बदल गया है.

‘‘मैं उसे तुम्हारे शाश्नात्मक तरीके की परवरिश के दलदल में नहीं धंसने दूंगी…

मैं उस के लिए वह सब करूंगी जिस से कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके और मैं तुम्हारी पत्नी हूं, तुम्हारी संपत्ति नहीं. यह घर मेरा भी है. जाना है तो तुम जाओ. मैं क्यों जाऊं?

‘‘इस घर पर जितना तुम्हारा अधिकार है, उतना ही मेरा भी है. समाज के सामने मुझ से विवाह किया है. तुम्हारी रखैल नहीं हूं… जमाना बदल गया, लेकिन तुम पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच नहीं बदली. सारी वर्जनाएं, सारे कर्तव्य स्त्रियों के लिए ही क्यों? उन की इच्छाओं, आकांक्षाओं का तुम पुरुषों की नजरों में कोई मूल्य नहीं है.

‘‘उन के वजूद का किसी को एहसास तक भी नहीं. लेकिन स्त्रियां भी क्यों उर्मिला की तरह अपने पति के निर्णय को ही अपनी नियत समझ कर स्वीकार लेती हैं? क्यों अपने सपनों का गला घोंट कर पुरुषों के दिखाए मार्ग पर आंख मूंद कर चल देती हैं? क्यों अपने जीवन के निर्णय स्वयं नहीं ले पातीं? क्यों औरों के सुख के लिए अपना बलिदान करती हैं? अभी तक मैं ने भी यही किया, लेकिन अब नहीं करूंगी. मैं इसी घर में स्वतंत्र हो कर अपनी इच्छानुसार रहूंगी,’’ समीर पहली बार मुझे भाषणात्मक तरीके से बोलते हुए देख कर अवाक रह गया.

‘‘पापा, मैं आप के पास नहीं रहूंगी, आप मुझे प्यार नहीं करते. हमेशा डांटते रहते हैं… मैं ममा के साथ रहूंगी और मैं उन की तरह ही बनना चाहती हूं… आई हेट यू पापा…’’ परदे के पीछे खड़ी चीनू, जोकि हमारी सारी बातें सुन रही थी, बाहर निकल कर रोष और खुशी के मिश्रित आंसू बहने लगी. मैं ने देखा कि समीर पहली बार चेहरे पर हारे हुए खिलाड़ी के से भाव लिए मूकदर्शक बना रह गया.

धुंधली तस्वीरें

मनोहर कहानियां – औनर किलिंग: धर्म की भेंट चढ़ा प्यार

ईद के अगले दिन 4 मई, 2022 की रात को करीब 9 बजे का वक्त था. तेलंगाना में हैदराबाद के सरूरनगर इलाके की मेन सड़क पर गाडि़यों का आवागमन लगातार बना हुआ था. पैदल यात्रियों की भी भीड़भाड़ थी. तहसीलदार औफिस से ठीक पहले चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल के ग्रीन होने के इंतजार में हर तरह की छोटीबड़ी गाडि़यां खड़ी थीं. कुछ पैदल लोग सड़क पार कर रहे थे, जबकि कुछ सड़क के किनारे खड़े थे.
ग्रीन सिग्नल होने का इंतजार स्कूटी पर बैठे एक नवविवाहिता जोड़े को भी था. वह युवक कोई और नहीं बिलियमपुरम नागराजू था, जिस ने आशरीन सुलताना के साथ हाल ही में प्रेम विवाह किया था. शादी के बाद आशरीन ने अपना नाम पल्लवी रख लिया था.

गहरे सांवले रंग के नागराजू के साथ पीछे चिपक कर बैठी गोरीचिट्टी पल्लवी साइड मिरर में अपनी सूरत निहार रही थी. तभी युवक पत्नी से मुसकराते हुए बोला, ‘‘अपनी खूबसूरती आईने को दिखा रही हो या मुझे?’‘‘अरे नहीं जी, मुहांसे देख रही हूं. कुछ ज्यादा ही निकल आए हैं,’’ पल्लवी बोली.
‘‘देसी उपाय करो, ठीक हो जाएंगे. वैसे तुम इस में भी गजब की सुंदर दिखती हो,’’ नागराजू ने मजाक किया.‘‘अच्छाजी! तुम तो दादी अम्मा की तरह बोलते हो,’’ पल्लवी भी मजाकिया लहजे में बोली. तभी सिग्नल की लाइट ग्रीन हो गई.

पल्लवी ने नागराजू की कमर कस कर पकड़ ली और उस ने स्कूटी तेजी से आगे बढ़ा दी. स्कूटी के अचानक तेज होने से पल्लवी थोड़ा पीछे की ओर झुक गई और संभलती हुई बोली, ‘‘गिराने का इरादा है क्या?’’‘‘तुम्हें कैसे गिरा सकता हूं, तुम तो मेरी जान हो.’’ नागराजू प्यार जताते हुए बोला.
‘‘अच्छा ऐसा है क्या?’’पल्लवी का बोलना था कि उस के पति नागराजू ने स्कूटी को अचानक ब्रेक लगा दिया.‘‘अरे..अरे…अब क्या हुआ?’’ पल्लवी ने तेज आवाज में पूछा, लेकिन तब तक वह स्कूटी से नीचे धड़ाम से गिर चुकी थी. नागराजू भी उस से अलग जा गिरा था.

पल्लवी को मामूली चोट आई थी. तुरंत खुद को संभालती हुई उठ खड़ी हुई. जबकि नागराजू उस से थोड़ा दूर गिरा हुआ ही था. वह उठने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उठ नहीं पा रहा था. 2 युवक उसे घेरे खड़े थे.
एक बोला, ‘‘उठ हरामजादे… कुत्ते की औलाद. चला है इश्क लड़ाने. आज देखता हूं तुझे कौन बचाता है.’’
आशरीन उर्फ पल्लवी को आवाज जानीपहचानी लगी. उसे समझने में देर नहीं लगी. यह उस के बड़े भाई मोबिन की आवाज थी. वह हाथ में रौड लिए था.पल्लवी ने तुरंत उस के पैर पकड़ लिए, ‘‘भाई छोड़ दे. अब ये मेरे शौहर हैं. तुम्हारे दूल्हाभाई. मत मार इन्हें. तुझे जो कुछ कहना है मुझ से कह…’’

आशरीन उर्फ पल्लवी की बात अनसुनी कर गुस्से में चाकू पकड़े दूसरे युवक ने उसे खींच कर अलग कर दिया. चीखता हुआ गुस्से में बोला, ‘‘चल हट यहां से, आज इस का काम तमाम कर के ही दम लूंगा. बड़ी मुश्किल से महीने भर बाद हाथ लगा है.’’‘‘छोड़ दे भाई, इन्हें छोड़ दे. हमारी शादी हो चुकी है,’’ पल्लवी गिड़गिड़ाई.‘‘चल भाग यहां से हरामजादी, कुतिया कहीं की. भाग जा, वरना तुझे भी नहीं छोड़ूंगा. मुसलमानों में लड़कों की कमी हो गई है, जो तूने इस हिंदू से शादी की है. और वह भी नीची जाति के लड़के से. आज पकड़ में आया है, अब इस की खैर नहीं.’’ गुस्से में आगबबूला युवक ने अपने पति की जान की भीख मांगती बहन आशरीन को जोर का धक्का दिया.

खुद को संभालती पल्लवी कभी अपने पति को रौड से पीट रहे भाई की तरफ भागती तो कभी चाकू लिए दूसरे हमलावर को पकड़ने की कोशिश करती. लेकिन वह कोशिश के बाद भी सड़क पर जख्मी छटपटाते पति को नहीं बचा पा रही थी.तब तक वहां चारों ओर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी. उन में अधिकतर मारपीट, हंगामे और खूनखराबे का तमाशा देख रहे थे तो कुछ लोगों ने अपनेअपने मोबाइल से वीडियो बनानी शुरू कर दी थी.जबकि हताश और विचलित पल्लवी जमा भीड़ में सभी से हाथ जोड़ कर पति को बचाने की गुहार लगा रही थी. गिड़गिड़ा रही थी कि कोई तो उस के पति को खून के प्यासे दरिंदों से बचा ले.

हमलावरों की आंखों में उतर आया था खून पल्लवी ने रौड से पिटाई कर रहे भाई के हाथ पकड़ लिए. रौड छीनने की कोशिश करती हुई बोली, ‘‘छोड़ दो, इन्हें छोड़ दो. जैसा तुम कहोगे मैं वैसा ही करूंगी. तुम चाहते हो कि मैं घर लौट जाऊं तो चलती हूं. मैं तुम्हारी हर बात मानने को तैयार हूं, लेकिन इन्हें छोड़ दो.’’
निर्दयी बने दोनों हमलावरों की आंखों में तो खून उतर आया था. एक ने युवती को भी रौड से पीट डाला, जबकि दूसरे ने नागराजू को चाकुओं से ताबड़तोड़ वार करते हुए गोद डाला.नागराजू की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. बर्बरता का यह मंजर करीब 20 मिनट तक चलता रहा, लेकिन तमाशबीन लाश बने रहे और दोनों हत्यारे चाकू और रौड लहराते हुए वहां से फरार हो गए.

थोड़ी देर में ही घटनास्थल पंजाल अनिल कुमार कालोनी की मेनरोड पर सरूरनगर थाने की पुलिस आ गई. थानाप्रभारी के. सीथाराम को 23 वर्षीय आशरीन सुलताना उर्फ पल्लवी ने सब कुछ बता दिया.
आशरीन ने थानाप्रभारी को यह भी बताया उन्होंने इसी साल 31 जनवरी को हैदराबाद के एक आर्यसमाज मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज से 25 वर्षीय बिलियमपुरम नागराजू के साथ शादी कर ली थी. इस के एक दिन पहले ही उस ने अपना हिंदू नाम पल्लवी रख लिया था.आशरीन के अलावा घटनास्थल पर मौजूद स्थानीय लोगों से भी पूछताछ की गई. इसी के साथ घटना की सूचना तत्काल पुलिस के उच्च अधिकारियों को दे दी गई. साथ ही लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस के सामने सब से पहली चुनौती वारदात के बाद फरार हमलावरों की गिरफ्तारी की थी.

मामला तुरंत राज्य के गृह मंत्रालय तक जा पहुंचा और इस घटना की राजनीतिक गलियारे में चर्चा होने लगी. तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन ने इस मामले में राज्य सरकार से डिटेल्ड रिपोर्ट मांगी. इसे हिंदूमुसलिम और दलित की हत्या के नजरिए से देखा जाने लगा.इस बीच तेलंगाना में भाजपा नेताओं ने हमलावरों के खिलाफ सख्त काररवाई की मांग की. तेलंगाना के भाजपा विधायक राजा सिंह ने हत्या की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में शामिल सभी लोगों की गिरफ्तारी की मांग की.

डीसीपी सुनप्रीत सिंह और एलबी नगर के एसीपी पी. श्रीधर रेड्डी के आदेश पर पुलिस टीम बनाई गई और सीसीटीवी के फुटेज निकलवाए गए. सीसीटीवी की फुटेज के अनुसार, घटना की रात नागराजू आशरीन के साथ अपनी बहन के घर से अपने घर लौट रहा था. उसे सरूरनगर में हमलावरों ने रास्ते में रोक लिया था.
सीसीटीवी कैमरों और मोबाइल वीडियो में कैद हमले के कथित दृश्यों में 2 लोग नागराजू की बेरहमी से पिटाई करते हुए दिख रहे थे, जिस से वह खून से लथपथ हो गया.

अगले रोज 5 मई, 2022 को सरूरनगर पुलिस ने नागराजू की बेरहमी से हत्या करने वाले दोनों हमलावर गिरफ्तार कर लिए. इस संबंध में सरूरनगर पुलिस थाने में आईपीसी की धारा 302 और एससी/एसटी (पीओए) संशोधन अधिनियम 2015 की धारा 3 (2) (वी) के तहत मामला दर्ज कर लिया गया.

आरोपी हुए गिरफ्तार

गिरफ्तार आरोपियों की पहचान हैदराबाद के बालानगर इलाके के गुरुमूर्ति नगर में रहने वाले सैय्यद मोबिन अहमद (30 साल) और रंगारेड्डी जिले के शेरिलिंगमपल्ली के तारानगर इलाके के रहने वाले मोहम्मद मसूद अहमद (29 साल) के रूप में हुई.सैय्यद मोबिन अहमद आशरीन का भाई था. वह एक फल विक्रेता है, जबकि अन्य गिरफ्तार आरोपी मोहम्मद मसूद पेशे से मोटर मैकेनिक है. मृतक नागराजू मलकपेट के एक मारुति शोरूम में मार्केटिंग का काम करता था. वह अनुसूचित जति माला समुदाय से आता था.

आशरीन ने घटना के पीछे के कारण के बारे में बताया. बड़ा भाई सैयद मोबिन अहमद को उस के नागराजू से प्रेमसंबंध पसंद नहीं थे. वह उस का घोर विरोधी बना हुआ था. वह बारबार कहता था कि नागराजू पढ़ालिखा है तो क्या हुआ, है तो नीची जाति का. हमें अपनी कौम में रहना है, यहीं जीना है, यहीं मरना है तब दूसरी कौम से रिश्ता क्यों बनाएं?

मोबिन ने उसे शादी से पहले इस के खिलाफ चेतावनी दी थी. फिर 30 जनवरी, 2022 को उस ने घर छोड़ दिया. तब वह अपना मोबाइल फोन साथ नहीं ले जा पाई थी.वारदात के दिन वह पति नागराजू के साथ स्कूटर से अपने किराए के कमरे पर जा रही थी. सरूरनगर के अनिल कुमार कालोनी के पास उसे हमलावारों ने रोक लिया था. अचानक उन पर हमले होने लगे थे. 2 हमलावर थे, जिन में वह सिर्फ भाई को ही पहचान पाई. दूसरे को वह नहीं जानती है.साथ ही आशरीन ने यह भी कहा कि उस ने मदद के लिए वहां खड़े तमाशबीनों से भी भीख मांगी थी, लेकिन कोई भी आगे नहीं आया, जबकि उस के पति नागराजू को सब के सामने सिग्नल पर पीटा जा रहा था.

आशरीन ने नागराजू की हत्या का आरोप सीधेसीधे अपने भाई मोबिन अहमद और उस के साथी मोहम्मद मसूद पर लगाया. वह रोरो कर कहने लगी, ‘‘मैं हत्यारों से अपने पति के जान की भीख मांगती रही. लेकिन दोनों कसाई बने रहे. मेरे पति को उन्होंने चाकुओं से गोद दिया. मेरी आंखों के सामने मेरे पति की हत्या कर दी.’’

वीडियो हुआ वायरल

इस हत्याकांड के वीडियो में नागराजू की हत्या करता आशरीन का भाई साफ दिख रहा था. आशरीन अपने भाई से पति को बचाने की कोशिश करती दिख रही थी, लेकिन हत्यारोपी उसे धक्का मार कर दूर झटक देता है और जमीन पर पड़े नागराजू के सिर पर वार करता रहता है. यह वीडियो किसी छत से शूट किया गया था.वारदात में आशरीन ने नागराजू द्वारा सुने गए अंतिम शब्द के बारे में भी बताया कि उस का पति भी जान बचाने की भीख मांग रहा था, ‘‘मुझे क्यों मार रहे हो, मुझे छोड़ दो, जाने दो. मैं तुम्हारा जीजा हूं.’’
इस के बावजूद नागराजू के साले मोबिन का दिल नहीं पसीजा था. वह गैरधर्म में हुई शादी से बहुत गुस्से में था. गुस्सा इतना था कि साथी के साथ मिल कर अपनी ही बहन का सुहाग उजाड़ दिया.

आशरीन बताती है कि नागराजू अपने प्यार की खातिर अपना धर्म बदलने को भी राजी था. वह इसलाम धर्म कुबूलने को तैयार थे. फिर भी उस का भाई नहीं माना. आशरीन ने बताया कि शादी से पहले ही उस ने नागराजू को कहा था कि उस के घर वाले इस शादी से खुश नहीं हैं और वे उस की जान भी ले सकते हैं. इस पर नागराजू ने कहा था कि उसे किसी बात की परवाह नहीं है. वह जिए या मरे, हर हाल में आशरीन के साथ ही रहना चाहता है.नागराजू सिकंदराबाद के मरेडपल्ली का रहने वाला था और पुराने शहर मलकपेट में एक कार शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. इस मामले को ले कर एसीपी पी. श्रीधर रेड्डी ने जांच की.

जांच में पाया कि हत्या से एक महीने पहले से मोबिन ने आशरीन और नागराजू का पता लगाने के लिए पहली फरवरी, 2022 को बालानगर पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी. साथ ही अपने स्तर से उन्हें तलाश रहा था, लेकिन इस में उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी.

यूं शुरू हुई मोहब्बत की दास्तान

आशरीन ने नागराजू से प्यार किया था. इस प्यार के लिए उन्होंने धर्म और जाति की सभी बंदिशों से टकराने की हिम्मत जुटाई थी. शादी के बाद दोनों ने जिंदगी भर साथ रहने के वादे किए थे, कसमें खाई थीं.
वे अपने वादे निभाते भी जा रहे थे, लेकिन उन के सपने हमेशा टूटते भी रहे. …और वह काला दिन भी आ गया, जब उन के सारे सपने सब के सामने मिट्टी में मिल गए. सारे सपने अपने प्रियतम के खून में तब मिल गए, जब उस की आंखों के सामने नागराजू की हत्या हो गई.

नागराजू की हत्या की एकमात्र वजह उस का एक मुसलिम लड़की से प्रेम करना, उस से शादी करना ही था. दोनों के परिवार उन की शादी से खुश नहीं थे. आशरीन के भाई की नाराजगी तो कुछ अधिक ही थी, जबकि आशरीन अपनी जिंदगी नागराजू के साथ ही गुजारना चाहती थी.

हैदराबाद से करीब 80 किलोमीटर दूर है तालुका विकाराबाद. इसी तालुका में एक गांव मारपल्ली है. यही नागराजू का गांव है. आशरीन का गांव गानपुर यहां से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है. नागराजू हत्याकांड के बाद दोनों के परिवार अपनेअपने गांवसे दूर जा कर कहीं छिप गए. दोनों गांवों में हिंदू और मुसलमानों की आबादी लगभग बराबर है.आशरीन और नागराजू एकदूसरे को तब से जानते हैं, जब वे किशोर उम्र के थे. दोनों ने एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ाई की. वहीं से उन के बीच दोस्ती हुई और फिर वे प्रेमीयुगल बन गए.

नागराजू ने की थी घर वालों को मनाने की कोशिश

नागराजू को आशरीन इसलिए पसंद थी, क्योंकि सारे दोस्तों में एक वही थी, जो उसे इंसान की तरह समझती थी, उस ने कभी भी उसे नीची जाति के नजरिए से नहीं देखा. बल्कि उसे हमेशा अधिकार के लिए लड़ने की हिम्मत बढ़ाती रहती थी.2 साल पहले नागराजू ने आशरीन से कहा कि वह बड़े शहर में जा कर नौकरी करना चाहता है. वहीं रह कर पहले कोई प्राइवेट जौब कर लेगा और अच्छी सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करेगा. इसी बीच कोरोना का दौर आ गया और उस की योजना धरी की धरी रह गई. पढ़ाई भी पिछड़ गई.

एक रोज आशरीन ने नागराजू को फोन पर बताया कि उस के घर वाले शादी करने के लिए लड़का देख रहे हैं. इसलिए वह अपने घर वालों से बात करे.नागराजू ने अपने मातापिता से आशरीन से शादी के बारे में जिक्र किया. दूसरी तरफ आशरीन ने अपनी मां से नागराजू की तारीफ करते हुए उस से निकाह करवाने की मिन्नत की. दोनों के घर वालों ने उन की शादी से इनकार कर दिया. दोनों ने एक ही वजह बताई, ‘‘हमारी कौम अलगअलग है. यह नहीं हो सकता.’’

इस पर नागराजू ने आशरीन की मां से कहा कि वह आशरीन के लिए इसलाम धर्म अपनाने को राजी है.
कुछ इसी तरह की बात आशरीन ने नागराजू की मां से कही थी. उन्होंने साफ लहजे में कहा था कि वह नागराजू से शादी करने और उन के परिवार में घुलमिल कर रहने के लिए हिंदू धर्म अपनाने को राजी है. संयोग से धर्म परिवर्तन करने के मामले में आशरीन ने ही पहल की और और हिंदू नाम पल्लवी रख लिया.
आशरीन ने अपने प्यार के लिए धर्म के बंधनों को तोड़ दिया था. कहने को तो नागराजू और आशरीन के बीच धर्म कभी भी कोई परेशानी नहीं था क्योंकि दोनों एकदूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे, किंतु सामाजिक और पारिवारिक संतुष्टि के लिए आशरीन ने अपने प्यार के लिए धर्म के बंधनों को तोड़ दिया था.

आर्यसमाज मंदिर में की थी शादी

आशरीन हमेशा ही विरोध करने वालों को कहती थी, ‘मुझे राजू के हिंदू होने से कोई समस्या नहीं थी. मैं हमेशा सिर्फ यह सोचती थी कि वो मेरे लिए हैं. हिंदूमुसलिम जैसा कुछ भी हमारे बीच नहीं था. हम दोनों एकदूसरे को समझते थे और हंसीखुशी अपनी जिंदगी बिता रहे थे.’कहने को तो प्यार के सहारे उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला किया, लेकिन हर कोई आशरीन और नागराजू की तरह नहीं सोचता है, कुछ लोग जो धर्म और जाति को इज्जत से जोड़ कर देखते हैं, उन्हें नागराजू और आशरीन जैसों के सपनों को मौत के घाट उतारने में पलभर भी नहीं लगता.

हैदराबाद के लक्ष्मीनगर इलाके में एक आर्यसमाज मंदिर से उन्हें बाकायदा शादी का सर्टिफिकेट दिया गया और वहां के पंडित एम. रविंद्र ने दोनों की वैदिक रीति और गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ शादी करवाई. इस मंदिर में शादी के लिए बहुत से लोग आते हैं, जिन में अंतरधार्मिक विवाह वाले भी होते हैं.
वहां शादी के रीतिरिवाज शुरू करने से पहले लड़कालड़की को समझाया भी जाता है. बाकायदा उन की काउंसलिंग की जाती है.उन के परिवार और परिवार के विचारों के बारे में पूछा जाता है. आर्यसमाज मंदिर में शादी करने से पहले शख्स को हिंदू धर्म अपनाना होता है. आशरीन ने ऐसा करने का फैसला किया था. जब कोई ईसाई और मुसलिम शादी करते हैं तो उन्हें हिंदू धर्म में परिवर्तन करना होता है. हिंदू धर्म अपनाने के लिए उन्हें कुछ चीजें करनी होती हैं. जो हिंदू धर्म स्वीकार करते हैं, सिर्फ वही यहां शादी कर सकते हैं.

आशरीन और नागराजू की शादी के समय भी ऐसा ही हुआ. उन्होंने भी गायत्री मंत्र का जाप किया. ये बातें पुजारी एम. रविंद्र ने बताईं. उन्होंने बताया कि हर जोड़े की तरह नागराजू और आशरीन को भी इस बारे में सब कुछ बताया और समझाया गया था.आशरीन मोबिन की तीसरी और छोटी बहन है. परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी मोबिन पर है. उस का फल का कारोबार है और परिवार का खर्च वही उठाता है. एक तरह से घर पर उस के फैसले को ही महत्त्व दिया जाता है. वह आशरीन से 2 बड़ी बहनों की शादियां कर चुका था.

मोबिन ने आशरीन की शादी के बाद अपनी शादी की योजना बनाई थी. इसी बीच उसे पता चला कि उस की बहन आशरीन पास के गांव के ही नागराजू से प्यार करती है.दूसरी कौम का होने के चलते मोबिन ने उसे समझाया था. जब वह भाई की बात मानने को राजी नहीं हुई, तब उस ने उस की पिटाई भी कर दी थी.
उस के बाद ही आशरीन ने घर छोड़ने का निर्णय ले लिया था और 30 जनवरी, 2022 की रात करीब 8 बजे किसी को बिना बताए घर से निकल गई थी. साथ में नागराजू भी था. अगले दिन उस ने हिंदू परंपरा के अनुसार पुराने हैदराबाद स्थित आर्यसमाज मंदिर में नागराजू से शादी कर ली थी. आशरीन के घर वालों को जब उस शादी की जानकारी हुई, तब उन्होंने नागराजू से अपनी बहन को छोड़ने के लिए दबाव बनाया. लेकिन नागराजू और उस के परिवार ने इनकार कर दिया. इस के बाद ही मोबिन ने नागराजू को मारने की योजना बनाई.

ऐप से तलाशा नागराजू को

आशरीन उर्फ पल्लवी और नागराजू की तलाश करने के लिए आरोपियों ने ‘फाइंड माई डिवाइस’ नाम के ऐप का इस्तेमाल किया. इस का खुलासा मोबिन ने रिमांड के दौरान पुलिस से पूछताछ में किया.
उस ने बताया कि वह अपने साथी के साथ मिल कर करीब एक महीने से नागराजू की तलाश में जुटा हुआ था. वारदात से पहले उन्होंने नागराजू की हत्या के लिए उसे ट्रैक करने की कोशिश की. उस का पता लगाने के लिए मोबाइल स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया.हालांकि हत्या के दिन आरोपी ने पहले कार शोरूम के बाहर की हत्या करने की कोशिश की थी, जहां नागराजू काम करता था. वहां ट्रैफिक अधिक होने के चलते वह वारदात को अंजाम नहीं दे पाया.

जब आशरीन और नागराजू को मोबिन के योजना की भनक लगी, तब वे सरूरनगर आ गए. वहीं नागराजू ने एक कार के शोरूम में नौकरी कर ली. उधर मोबिन नागराजू की तलाश में लगा रहा.रिपोर्ट के अनुसार, मोबिन ने अपनी बहन के मोबाइल से नागराजू का नंबर निकाल लिया था. आशरीन के फोन में तलाशी के दौरान नागराजू की मेल आईडी भी मिल गई थी. इस के बाद उस ने फाइंड माई डिवाइस ऐप डाउनलोड किया और नागराजू को ट्रैक करने के लिए उस के मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का यूज किया.
उस के बाद वह करीब एक हफ्ते तक नागराजू की तलाश में जुटा रहा. इस के लिए ऐप पर नजर बनाए रखी. वहीं से मोबिन को नागराजू की लोकेशन सरूरनगर की मिली. उस के बाद मोबिन ने 4 मई, 2022 को अपने साथी को फोन कर सरूरनगर बुलाया.

आंखों के सामने घूमता है वह खौफनाक मंजर

मोबिन के कहने पर उस का साथी मसूद अहमद आने को राजी हो गया. दोनों एक साथ बस से लोहे की रौड और चाकू ले कर मियापुर पहुंच गए. मियांपुर से मोबिन अपने एक अन्य साथी के साथ सरूरनगर के लिए रवाना हुआ. वहां उन्होंने फाइंड माई डिवाइस ऐप के जरिए नागराजू की सटीक लोकेशन का पता कर लिया.ऐप में नागराजू की लोकेशन कालोनी के मेनरोड पर मूसाराम बाग में दिखी. मोबिन जब वहां पहुंचा, तब नागराजू दिख गया. उस के साथ आशरीन भी थी.

इस के बाद बाइक पर सवार मोबिन और मसूद ने मिल कर स्कूटी चला रहे नागराजू और आशरीन को रोका. स्कूटी के एक झटके में रुकते ही मोबिन ने नागराजू के सिर पर लोहे की रौड से वार कर दिया. एक ही वार में नागराजू सड़क पर गिर गया. इस के बाद मोबिन और मसूद रौड और चाकू से नागराजू पर ताबड़तोड़ हमला करने लगे.अपनी आंखों के सामने अपने पति की न सिर्फ मौत, बल्कि बर्बर हत्या देखने वाली आशरीन का अब कोई ठौरठिकाना तक नहीं बचा है.

वह कहती है, ‘‘मैं अपने भाई से मिलना चाहती हूं. मैं राजू के बिना जिंदा नहीं रहना चाहती. लेकिन मैं अपने भाई से बहुत नाराज हूं और सिर्फ यही एक कारण है कि मैं जिंदा हूं. जिस तरह से उस ने राजू को… मेरे पति को मारा, मैं भी उस को उसी तरह मारना चाहती हूं. उसे भी मेरा दर्द महसूस होना चाहिए.’’
पूरी तरह टूट चुकी आशरीन जब भी अपनी बातें बताने लगती है, उस समय भी उस के चेहरे पर दर्द साफ नजर आ जाता है. उसे देख कर ऐसा लगता है मानो कोई तूफान उस की सारी खुशियां उड़ा ले गया हो. उस की बेजार हो चुकी जिंदगी का कोई भी अंदाजा लगा सकता है. वह जिस से भी मिलती है, अपना वही दर्द दोहराती है.

तमाशबीन भीड़ से भी है पल्लवी को शिकायत

आशरीन का दर्द कुछ इस तरह रहरह कर सामने आ जाता है, ‘‘उस सड़क पर पैदल और बाइक पर बहुत सारे लोग थे, लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया. मैं ने उन से विनती की, उन के पैर छुए, लेकिन किसी ने हमले को रोकने की कोशिश नहीं की. मेरे पति को लोहे की रौड से इतना पीटा जा
रहा था कि उस का मांस बाहर आ गया था.‘‘जब तक लोग मदद के लिए आते, तब तक मेरे पति की मौत हो चुकी थी. अगर सभी ने शुरू में आरोपियों पर पथराव किया होता तो हमले को रोका जा सकता था. कुछ हमलावरों को रोकने के लिए कितने लोगों की जरूरत है?’’ पल्लवी पूछती है, ‘‘क्या यह समाज में किसी के जीवन का मूल्य है? हम जिस जगह पर हैं, वह कोई समाज नहीं है?’’
इस के साथ ही नाराजगी भरा सवाल भी पूछती है, ‘‘मेरे पति की मृत्यु के बाद उस के शरीर के चारों ओर लगभग 100 लोग जमा हो गए. जब हमला चल रहा था, तब ये लोग क्यों नहीं रुके और मदद करने की कोशिश क्यों नहीं की?’’

पुलिस से की थी सुरक्षा की मांग

आशरीन ने बताया कि वह और नागराजू जानते थे कि जनवरी में शादी के बाद से वे खतरे में हैं और इस के लिए उन्होंने पुलिस सुरक्षा भी मांगी थी.नागराजू के घर वाले भी युवा सदस्य की इस तरह हत्या किए जाने से काफी खफा हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि अनुरोध करने पर हत्यारे को जरा भी दया नहीं आई. लड़की का भाई तो पूरा कसाई ही बन गया था.नागराजू की बहन रमा देवी काफी गुस्से में कहती हैं, ‘‘पुलिस सुरक्षा मांगने के बावजूद, मेरे भाई को मार दिया गया. पुलिस ने अपनी ड्यूटी क्यों नहीं की, सुरक्षा की उन की दलील को क्यों नजरअंदाज किया?’’

इस सवाल पर सुरक्षा की गुहार करने वाले मोमिनपेट पुलिस स्टेशन ने चुप्पी साध ली है. हालांकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इसे गंभीरता से लिया है. इसे ‘संदिग्ध औनर किलिंग’ बताते हुए तेलंगाना के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.आयोग ने मुख्य सचिव से यह बताने का अनुरोध किया है कि क्या राज्य सरकार की अंतरजातीय/अंतरधार्मिक विवाह के मामलों में औनर किलिंग की ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई नीति है? साथ ही डीजीपी से जांच, पीडि़त की पत्नी और परिवार की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी गई है. कहा गया है. यही नहीं तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने
भी घटना पर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.

नागराजू के पुश्तैनी गांव में उस की कब्र बनाई गई है. उल्लेखनीय है कि भारत में कुछ अनुसूचित जाति के लोगों को भी दफनाए जाने की परंपरा है. नागराजू की कब्र पर उस के पूरे परिवार सहित आशरीन ने भी कई दिनों तक श्रद्धांजलि के फूल चढ़ाए.गांव वाले और नागराजू के रिश्तेदार बताते हैं कि वह 2 साल पहले गांव छोड़ कर पढ़ाई के सिलसिले में हैदराबाद चला गया था. आशरीन के साथ अच्छी जिंदगी शुरू करने के लिए दोनों ने वहां से निकल कर शादी कर ली थी.

परेशानियों से दूर रहने के लिए दोनों कुछ दिनों तक विशाखापट्टनम में भी रहे. इस के बाद वे यह सोच कर हैदराबाद लौट आए कि यह जगह भी सुरक्षित होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.नागराजू के दादा नागरपल्ली जगन की आंखें नम हो जाती हैं. वे नागराजू की कब्र से हटने का नाम ही नहीं लेते हैं. उन्होंने बताया कि नागराजू ने परिवार को अपनी शादी के बारे में नहीं बताया था. हालांकि उन्हें आशरीन के परिवार के विरोध के बारे में पता था.इस बारे में जगन कहते हैं कि मसला ये नहीं है कि हम पसंद करते हैं या नहीं करते हैं. हमें इस बारे में तब पता चला, जब उन की शादी हो गई. उन्होंने घर पर कुछ भी नहीं बताया था. लड़की मुसलमान थी और वो हिंदू. लड़की का परिवार एक हिंदू लड़के से उन की शादी के लिए तैयार नहीं था और शायद यही वजह रही होगी कि नागराजू ने इस बारे में अपने घर में नहीं बताया था. वह डर गया था.
उन के रिश्ते और शादी के बारे में गांव के पूर्व सरपंच मोहम्मद कलीमुद्दीन की भी अपनी राय है. वे कहते हैं, ‘‘आशरीन के घर वाले जब पुलिस स्टेशन पहुंचे, तब उन्हें बताया गया कि लड़कालड़की बालिग हैं. इस पर आशरीन के भाई का गुस्सा बना रहा. आशरीन के घर वालों ने दोनों का रिश्ता तोड़ने की बहुत कोशिशें कीं.’’

आशरीन के घर वाले इस शादी से अपने समाज में काफी आलोचना झेलने लगे थे.
वे आशरीन को वापस अपने घर ले जाना चाहते थे.कलीमुद्दीन ने भी परिवार को राजी करने की बहुत कोशिश की, लेकिन शर्त रखी कि वे अगर शांति से आएं तभी इस मसले का कोई समाधान निकाला जा सकता है.लेकिन जिस समय कलीमुद्दीन ये सब बातें उन्हें समझा रहे थे, उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं था कि 3 महीने बाद ऐसा कुछ हो जाएगा.अंतरधार्मिक विवाह करने पर औनर किलिंग का यह कोई पहला मामला नहीं है. हैदराबाद ही नहीं, देश के हर राज्य में इस तरह के मामले आए दिन होते रहते हैं.
आधुनिक भारत का गौरव समझने वाले इस दकियानूसी समाज को अपराध का रास्ता अपनाने के बजाय अपनी सोच में बदलाव करना होगा. इस के अलावा पुलिस को भी ऐसे जोड़ों की सुरक्षा की मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए वरना ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और नेता राजनीतिक रोटियां सेंकते रहेंगे.
बहरहाल, पुलिस ने हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया

काका-वा : रानी को चेन्नई में क्या अलग लगा

बिहार से तबादला होने के बाद रानी जब चेन्नई पहुंची तो उस के लिए सबकुछ ही बदला हुआ था. हवा, पानी, खानपान, पहनावा और भाषा सबकुछ ही तो अलग था. शुरूशुरू में चेन्नई के लोग भी उसे अजीब ही लगते थे. अधिकतर औरतों ने पूरे शरीर पर ही हलदी रगड़ी हुई होती. शुरू में तो रानी को लगा शायद यहां की औरतें पीलिया रोग से पीडि़त हैं. पर धीरेधीरे यह भेद भी खुल गया कि नहाने से पहले हलदी लगाना यहां की परंपरा है.

भाषा न आने के कारण रानी को अकेलापन अधिक लगता था. वह आसपास बोले जाने वाले शब्दों को ध्यान से सुनती पर सब उस के सिर के ऊपर से गुजर जाते थे. तमिल भाषा सिखाने वाली एक किताब भी वह ले आई थी. उसे यहां के कौए भी अलग नजर आते थे. बिहार जैसे कौए नहीं थे. यहां के कौए तो पूरे के पूरे चमकीले काले थे और आकार में भी कुछ बड़े थे. उन की कांवकांव में भी अधिक कर्कशता थी और घर में फुदकने वाली, चींचीं करने वाली चिडि़यां तो यहां थीं ही नहीं.

यहां सुबह उठने के बाद जैसे ही रानी रसोई में चाय बनाने जाती, तो रसोई की खिड़की की मुंडेर पर कौओं के ही दर्शन करती. उस की रसोई की खिड़की से सामने वाली बड़ी इमारत साफ नजर आती थी और उसे ऐसा लगा कि उस इमारत के सभी फ्लैटों के रसोईघर इसी दिशा में थे क्योंकि सभी खिड़कियों की मुंडेरों पर कौओं के लिए चावल डले होते. उस के गांव में तो लोग कबूतर को दाना देना अच्छा समझते थे, पर यहां कौओं को पके हुए चावल डालना शायद अच्छा समझा जाता था. यही देख कर उस ने भी कौओं को चावल डालने की बात सोची. पर सुबहसुबह वह चावल नहीं पकाती थी. उस की रसोई में तो सुबह के समय परांठे और पूरियां बनती थीं.

पहले दिन उस ने आधी चपाती के टुकड़े खिड़की की बाहरी चौखट पर रख दिए पर एक भी कौआ नहीं आया. उसे बहुत दुख हुआ कि कौओं ने चपाती का एक टुकड़ा भी ग्रहण नहीं किया. सारा दिन रोटी के टुकड़े वहीं पड़े रहे. दूसरे दिन फिर उस ने नाश्ते में बनी पहली रोटी के कुछ टुकड़े कर के खिड़की में डाल दिए. शायद घी की महक थी या रानी की श्रद्धा का असर था कि एक कौआ उड़ कर आया, बैठा और उस ने रोटी के टुकड़ों को ध्यान से देखा. फिर अपने पंजों में उठा कर कुछ देर बैठा रहा जैसे सोच रहा हो कि यह नई चीज खाऊं या नहीं, फिर उस ने पूरा का पूरा टुकड़ा निगल लिया. फिर दूसरा टुकड़ा चोंच में उठा कर उड़ गया. फिर दूसरा कौआ आया तो उस ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया दोहराई.

आज रानी को अच्छा लगा और उस का हौसला बढ़ गया. दूसरे दिन उस ने एक बड़ी रोटी बनाई और उस के अनेक टुकड़े कर के खिड़की के बाहर डाल दिए. पहले एक कौआ आया और उस ने कुछ ऐसी आवाज निकाली कि उसे सुन कर बहुत सारे कौए एकसाथ आ गए और पल भर में ही सारी रोटी खा गए. आज रानी को बहुत अच्छा लगा. उस ने सोचा कि ये दक्षिण भारतीय कौए भी अब रोटी खाना सीख गए हैं. अब तो कौओं को रोटी डालना उस की सुबह की दिनचर्या में शामिल हो गया था. धीरेधीरे वह कौओं को पहचानने भी लगी थी. एक कौए की चोंच मुड़ी हुई थी. दूसरे कौए का एक पंजा ही नहीं था तो एक और कौए की गरदन के बाल झड़े हुए थे. वह सोचती कि जैसे उसे कौओं की पहचान होती जा रही है वैसे ही क्या कौए भी उसे पहचानते होंगे? पर इस का कोई उत्तर उस के पास नहीं था.

एक दिन रानी ने डबलरोटी का नाश्ता तैयार किया. डबलरोटी के ही छोटेछोटे टुकड़े कर के उस ने खिड़की में डाल दिए. कौए आए, कांवकांव किया, पर उन्होंने डबलरोटी के टुकड़े नहीं खाए. उन्हें वहीं छोड़ कर वे उड़ गए, उस ने सोचा पहले रोटी नहीं खाते थे और आज डबलरोटी नहीं खा रहे हैं. कल भी उन्हें यही डालूंगी तब खा लेंगे.

दूसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर किसी भी कौए ने नहीं खाई. तीसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर फिर कौओं ने नहीं खाई. तब उस ने जल्दी से आटा निकाला, एक रोटी बनाई और रोटी के टुकड़े डाले. कौओं ने पहले की तरह पल भर में सब टुकड़े लपक लिए थे. आज उस ने जाना कि कौओं की भी पसंद और नापसंद होती है. उस की जांच करने के लिए उस ने अगले दिन उबले चावल डाले. कौए आए और सूंघ कर चले गए. दिनभर चावल वहीं पड़े रहे और गिलहरियां खाती रहीं. उस दिन रानी ने गिलहरियों के व्यवहार को भी करीब से देखा, कैसे एकएक दाने को दोनों पंजों से पकड़ कर कुतरकुतर कर बड़े प्यार से खाती हैं. उन की चमकती हुई दोनों आंखें कितनी सुंदर लगती हैं. इन जीवों का व्यवहार देखने में रानी को आनंद आने लगा था. उसे लगा था कि उसे तो जीवशास्त्री बनना चाहिए था.

कौओं को रोटी डालतेडालते रानी ने उन के व्यवहार को भी बहुत करीब से देखा. उस ने देखा कि कौओं में भी लालच होता है. कई कौए तो अधिक से अधिक रोटी के टुकड़े निगल कर और फिर चोंच में भी दबा कर उड़ जाते थे. अपने रोज के साथियों के लिए एक टुकड़ा तक नहीं छोड़ते थे. ऐसे दबंग कौओं से कमजोर कौए डरते भी थे. दबंग कौए जब तक खिड़की पर बैठे रहते कमजोर कौए दूर बैठे उन के उड़ने का इंतजार करते. जब दबंग कौए उड़ जाते तभी वे खिड़की पर आते और बचेखुचे टुकड़ों को खा कर ही संतोष कर लेते थे.

कौओं के खाने की प्रक्रिया में रानी ने उन की काली, पतली और लंबी जीभ भी देखी. उन की जीभ देख कर उसे उबकाई सी आने लगती थी. उसे टेढ़ी चोंच वाले और एक पैर वाले कौए पर विशेष दया आती थी. इसलिए उन दोनों विकलांग कौओं के लिए वह अलग से रोटी रख लेती थी. जब और सब कौए रोटी ले कर उड़ जाते थे तब वे दोनों कौए एकसाथ खिड़की पर आते और वह दोनों को रोटी डालती. आराम से अपनाअपना हिस्सा ले कर वे उड़ जाते थे.

रानी ने एक और बात जानी कि कमजोर कौओं में बहुत अधिक धीरज होता है. कभीकभी रानी काम में इतना अधिक व्यस्त होती कि उन दोनों को देख कर भी उन्हें अनदेखा सा कर जाती थी. पर वे दोनों शांत बैठे इंतजार करते रहते थे. एकदो बार तो आधे घंटे से अधिक देर तक दोनों धीरज धरे बैठे रहे थे. उन्हें इस तरह देख कर उस ने मन ही मन उन से माफी मांगी थी और उन्हें रोटी दे दी थी. इतनी देर से भोजन न मिलने पर भी उन में अधीरता नहीं थी, दोनों ने बड़े शांत भाव से रोटी खाई. टेढ़ी चोंच वाले कौए पर उसे अधिक दया आती थी क्योंकि वह रोटी का टुकड़ा बड़ी मुश्किल से उठा पाता था.

कौओं से दोस्ती ने रानी को दार्शनिक भी बना दिया था. वह मानव और पक्षियों की तुलना करने लगती. उसे लगता दोनों में कितनी समानता है. दोनों में लालच है, दोनों में पसंदनापसंद है, दोनों में धीरज है, दोनों में मैत्री और दया भी है.

रानी जब इस प्रकार दोनों की तुलना करती तो उस के मन में एक विचार बारबार आता था कि क्या ये भी मनुष्य को पहचानते हैं. इस मुश्किल का हल भी उसे शीघ्र ही मिल गया. तभी एक अंगरेजी की पत्रिका उस के हाथ लगी. उस में पूरा एक लेख था कि कौए भी आदमी को पहचानते हैं. इस कहानी में एक ऐसे व्यक्ति के अनुभव लिखे हुए थे जिस ने एक कौए को पाल रखा था और वह कौआ हजारों की भीड़ में उसे पहचान कर उस के कंधे पर ही आ कर बैठता था. यह पढ़ कर रानी भी खुश हुई कि ये दोनों कौए जो रोज उस के हाथ की रोटी खा कर जाते हैं उसे जरूर पहचानते होंगे. इस का प्रमाण भी उसे मिल गया. एक दिन सुबह की सैर के लिए निकली तो टेढ़ी चोंच वाला कौआ उड़ता हुआ आया और उस के सिर पर बैठ गया. अचानक इतने बोझ को सिर पर महसूस कर के वह घबरा गई थी और उस ने जोर से धक्का दे कर उसे उड़ा दिया था. घर आ कर उस ने जब इस घटना के बारे में बताया तो सब ने इस का अलगअलग अर्थ लगाया. पति बोले, ‘‘जल्दी नहा लो. कौए कितने गंदे होते हैं.’’

सासूमां बोलीं, ‘‘यह तो बहुत बड़ा अपशकुन है. कौए का सिर पर बैठना घर में किसी की मृत्यु का संकेत देता है. जल्दी मंदिर जाओ और एक चांदी का कौआ दान करो.’’

अनजाने में ही रानी के इस दोस्त ने उसे दुविधा में डाल दिया था. फिर उस ने अंगरेजी पत्रिका के लेख के सहारे सासूमां को समझाया कि कौऐ का यह व्यवहार दोस्ती के कारण था. वह कौआ किसी चांदी के दुकानदार का एजेंट तो था नहीं, इसलिए इस तर्कहीन दान की बात एकदम बेकार है. सासूमां ने भी जब इस पर ध्यान से सोचा तो उन्हें अपने द्वारा बताए गए इस उपाय पर खुद हंसी आने लगी.

जिंदगी अपनी रफ्तार चलती रही. कौए के सिर पर बैठने के अपशकुन का वहम दम तोड़ चुका था. चेन्नई में आना रानी को भा गया था. वह सुबह उठते ही अन्य चेन्नई वालों की तरह आवाज लगाती, ‘‘काका वा (अर्थात कौएजी) आओ और भोजन ग्रहण करो.

करमवती

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