बड़ी बेगम जानती थीं इस का गुस्सा निकलना अच्छा है. उन्होंने बहस नहीं की.
बोलीं, ‘‘ठीक है तुम को लगता है तुम अकेली ही अच्छी परवरिश कर सकती हो तो ठीक है, पर मैं चाहती हूं कि तुम तलाक की अर्जी 6 महीने बाद दो. कुछ वक्त दो फिर जो तुम्हारा फैसला होगा मैं मानूंगी.’’
‘‘नो वे अम्मी मैं 6 दिन भी न दूं. जबजब मुझे याद आता है साहिल और बाई… घिन आती है उस के नाम से. कोई इतना गिर सकता है?’’
बड़ी बेगम ने दुनिया देखी थी. अपने पति को बहुतों के साथ देखा था. उन्होंने अपने अनुभव का निचोड़ बताया, ‘‘वह एक वक्ती हरकत थी. उस का कोई अफेयर नहीं था. जब एक औरत और एक मर्द अकेले हों तो दोनों के बीच तनहाई में एक कमजोर पल आ सकता है.’’
मैं भी तो औफिस में अकेली मर्दों के साथ घंटों काम करती हूं. मेरे साथ तो कभी ऐसा नहीं हुआ. आत्मसंयम और मर्यादा ही इंसान होने की पहचान हैं वरना जानवर और आदमी में क्या फर्क है?’’
‘‘मैं ने अब तक तुम से कुछ नहीं कहा पर बहुत सोच कर तुम से समय देने को कह रही हूं. आगे तुम्हारी जो मरजी.’’
‘‘ठीक है आप कहतीं हैं तो मान लेती हूं पर मेरे फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’
सनोबर यह सोच कर मान गई कि उसे भी तो कुछ काम निबटाने हैं. प्रौपर्टी के पेपर अपने नाम करवाना और सेविंग्स में नौमिनी बदलना आदि. फिर अभी औफिस का भी प्रैशर है. रात को रोज की तरह साहिल ने फोन किया तो सनोबर ने उठा लिया.
साहिल खुशी और अचंभे के मिलेजुले स्वर में बोला, ‘‘सनोबर मुझे माफ कर दो, वापस आ जाओ.’’
सनोबर ने तटस्थ स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना है.’’
साहिल बोला, ‘‘हां, हां… जब कहो.’’
सनोबर बोली, ‘‘कल औफिस के बाद घर पर.’’ और फोन रख दिया.
औफिस के बाद सनोबर घर पहुंची. साहिल उस की प्रतिक्षा कर रहा था. घर भी उस ने कुछ ठीक किया था. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने झिड़क दिया और दूर बैठ गई.
‘‘साहिल मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती. शांति से सब तय करना चाहती हूं. मेरातुम्हारा जौइंट अकाउंट बंद करना है. इंश्योरैंस पौलिसीज में नौमिनी हटाना है. इस फ्लैट में तुम्हारा जो पैसा लगा वह तुम ले लो. मैं इसे अपने नाम करवाना चाहती हूं. मुझे तुम से कोई पैसा नहीं चाहिए, मैं काजी के यहां खुला (औरत की ओर से निकाह तोड़ना) की अर्जी देने जा रही हूं.’’
थोड़ी देर के लिए साहिल चुप रहा फिर बोला, ‘‘सनोबर, मेरा जो कुछ है सब तुम्हारा और हमारी बेटी का है. तुम सब ले लो मुझे मेरी सनोबर दे दो. मुझे एक बार माफ कर दो. मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो. अगर तुम मेरी जिंदगी में नहीं तो मैं यह जिंदगी ही खत्म कर दूंगा,’’ सनोबर जानती थी साहिल भावुक है पर इतना ज्यादा है यह नहीं जानती थी. वह उठ कर चली गई.
अब बस औफिस जाने और मन लगा कर काम करने में और बेटी के साथ उस का समय बीतने लगा. बड़ी बेगम के कहने पर और बेटी की जिद पर वह राजी हुई कि साहिल सप्ताह में एक बार बेटी से मिल सकता है. उसे बाहर ले जा सकता है. वह नहीं चाहती थी कि उस की बेटी को उस के पिता की असलियत पता चले. इस आयु में यदि उसे पिता के घिनौने कारनामे का पता चलेगा तो वह जाने क्या प्रतिक्रिया करे. साहिल सप्ताह में 2 घंटे के लिए बेटी को घुमाने ले जाता, गिफ्ट दिलाता और सनोबर की पसंद का भी कुछ बेटी के साथ भेजता पर सनोबर आंख उठा कर भी न देखती.
तभी सनोबर की पदोन्नति हुई साथ ही मुख्यालय में तबादला भी. सनोबर को न चाह कर भी दिल्ली जाना पड़ा. बेटी को नानी के पास छोड़ना पड़ा. स्कूल का सैशन समाप्त होने में अभी 2 महीने थे. बड़ी बेगम ने आश्वासन दिया, ‘‘मैं संभाल लूंगी तुम जाओ मगर हर वीकैंड पर आ जाना.’’
मुख्यालय में उस के कुछ पूर्व साथी भी थे, सब ने स्वागत किया. एक प्रोजैक्ट में उस को समीर के साथ रखा गया. समीर भी सनोबर का पुराना साथी था और उस पर फिदा भी था.
समीर और सनोबर साथसाथ काम करते हुए काफी समय एकदूसरे के साथ बिताते. सनोबर ने साहिल और अपने बारे में समीर को नहीं बताया. जिस प्रोजैकट पर दोनों काम कर रहे थे उस में क्लाइंट की लोकेशन पर भी जाना होता था. दोनों साथसाथ जाते, होटल में रहते और काम पूरा कर के आते. घंटों अकेले एकसाथ काम करते. आज भी दोनों सुबह की फ्लाइट से गए थे. दिन भर काम कर के रात को होटल पहुंचे. समीर बोला, ‘‘फ्रैश हो लो फिर खाना खाने नीचे डाइनिंगरूम में चलते हैं.’’
सनोबर बोली, ‘‘तुम जाओ. मैं अपने रूम में ही कुछ मंगवा लूंगी.’’
समीर बोला, ‘‘ठीक है मेरा भी कुछ और्डर कर देना, साथ ही खा लेंगे.’’
सनोबर को समीर चाहता भी था, उस का आदर भी करता था. सनोबर के हैड औफिस आने के बाद समीर ने कभी अपने पुराने प्यार को प्रकट नहीं किया. वह अपनी पत्नी और बच्चों में खुश था.
समीर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना आने की प्रतीक्षा में दोनों काम से जुड़ी बातें ही करते रहे. समीर की पत्नी का फोन भी आया. समीर की और उस की पत्नी की बातों से लग रहा था दोनों सुखी व संतुष्ट हैं.
समीर ने साहिल के बारे में पूछा तो सनोबर बात टाल गई. फिर खाना आया, दोनों खाना खातेखाते पुराने दिनों की बातें करने लगे.
समीर ने सनोबर से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात बताओ यदि तुम साहिल से शादी न करतीं तो क्या मुझ से शादी करतीं?’’
सनोबर झिझकी फिर बोली, ‘‘शायद हां.’’
समीर ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘अरे पहले बताती तो मैं उस को गोली मार देता,’’ बात आईगई हो गई. दोनों ने खाना खाया फिर समीर अपने कमरे में चला गया.
सनोबर सोचने लगी समीर अच्छा दोस्त हैं. फिर जाने क्यों साहिल याद आ गया. वह काफी थकी थी. कुछ ही देर में सो गई. अगले दिन भी दोनों बहुत व्यस्त रहे.
‘‘आज भी खाना कमरे में मंगवाते हैं ठीक है?’’ समीर ने पूछा तो सनोबर बोली, ‘‘हां, ठीक है.’’
फिर समीर फ्रैश हो कर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना और्डर कर के दोनों बातें करने लगे. सनोबर को खाते समय खाना सरक गया वह खांसने लगी. समीर ने उसे जल्दी से पानी निकाल कर दिया. पानी पी कर ठीक हुई. खाने के बाद समीर ने चाय बना कर सनोबर की दी तो दोनों का हाथ एकदूसरे से टकराया. दोनों चुपचाप धीरेधीरे चाय पीने लगे.
एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. दोनों पासपास बैठे थे. एक अजीब सी चाह सनोबर ने अपने मन में महसूस की जैसे वह समीर के सीने से लग के रोना चाहती हो. फिर उस ने देखा समीर की निगाहें भी उस के ऊपर टिकी हैं. शायद वह भी सनोबर को अपनी बांहों में जकड़ना चाहता है. तभी उसे लगा कहीं यही वह एकांत कमजोर पल तो नहीं है जिस के बारे में अम्मी कह रही थी. वह संभल गई और उठ कर इधरउधर कुछ रखनेउठाने लगी. समीर से बोली, ‘‘अच्छा, कल मिलते हैं.’’
समीर भी उठते हुए बोला, ‘‘हां देर हो गई, गुड नाईट.’’
अगले दिन दोनों वापस आ गए. सनोबर अपनी अम्मी के पास चली गई. अम्मी उसे बताने लगीं कि उस की बेटी खाने में नखरा करती है. साहिल बेटी का बहुत ध्यान रखता है. अपने साथ ले जाता है, बराबर फोन करता है. अम्मी साहिल की प्रशंसा किए जा रही थीं.
सनोबर ने साहिल को फोन किया, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं अभी.’’ वह साहिल से मिलने चल पड़ी. साहिल पलकें बिछाए उस की राह ताक रहा था. घर लगता था साहिल ने ही साफ किया था. बैडरूम पर नजर गई तो बदलाबदला लग रहा था. साहिल बहुत प्यार से बोला, ‘‘अब तो वापस आ जाओ, मुझे माफ कर दो.’’
सनोबर एकांत कमजोर पल क्या होता है यह जान चुकी थी. उस ने साहिल को माफ कर दिया. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ा और दोनों एकदूसरे के बहुत पास आ गए.