एक रात की उजास : भाग 1

शाम ढलने लगी थी. पार्क में बैठे वयोवृद्घ उठने लगे थे. मालतीजी भी उठीं. थके कदमों से यह सोच कर उन्होंने घर की राह पकड़ी कि और देर हो गई तो आंखों का मोतियाबिंद रास्ता पहचानने में रुकावट बन जाएगा. बहू अंजलि से इसी बात पर बहस हुआ करती थी कि शाम को कहां चली जाती हैं. आंखों से ठीक से दिखता नहीं, कहीं किसी रोज वाहन से टकरा गईं तो न जाने क्या होगा. तब बेटा भी बहू के सुर में अपना सुर मिला देता था.

उस समय तो फिर भी इतना सूनापन नहीं था. बेटा अभीअभी नौकरी से रिटायर हुआ था. तीनों मिल कर ताश की बाजी जमा लेते. कभीकभी बहू ऊनसलाई ले कर दोपहर में उन के साथ बरामदे मेें बैठ जाती और उन से पूछ कर डिजाइन के नमूने उतारती. स्वेटर बुनने में उन्हें महारत हासिल थी. आंखों की रोशनी कम होने के बाद भी वह सीधाउलटा बुन लेती थीं. धीरेधीरे चलते हुए एकाएक वह अतीत में खो गईं.

पोते की बिटिया का जन्म हुआ था. उसी के लिए स्वेटर, टोपे, मोजे बुने जा रहे थे. इंग्लैंड में रह रहे पोते के पास 1 माह बाद बेटेबहू को जाना था. घर में उमंग का वातावरण था. अंजलि बेटे की पसंद की चीजें चुनचुन कर सूटकेस में रख रही थी. उस की अंगरेज पत्नी के लिए भी उस ने कुछ संकोच से एक बनारसी साड़ी रख ली थी. पोते ने अंगरेज लड़की से शादी की थी. अत: मालती उसे अभी तक माफ नहीं कर पाई थीं. इस शादी पर नीहार व अंजलि ने भी नाराजगी जाहिर की थी पर बेटे के आग्रह और पोती होने की खुशी का इजहार करने से वे अपने को रोक नहीं पाए थे और इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम बना लिया था.

उस दिन नीहार और अंजलि पोती के लिए कुछ खरीदारी करने कार से जा रहे थे. उन्होंने मांजी को भी साथ चलने का आग्रह किया था लेकिन हरारत होने से उन्होंने जाने से मना कर दिया था. कुछ ही देर बाद लौटी उन दोनों की निष्प्राण देह देख कर उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था. उस से अधिक आश्चर्य उन्हें इस बात पर होता है कि इस भयंकर हादसे के 7 साल बाद भी वह जीवित हैं.

उस हादसे के बाद पोते ने उन्हें अपने साथ इंग्लैंड चलने का आग्रह किया था पर उन्होंने यह सोच कर मना कर दिया कि पता नहीं अंगरेज पतोहू के साथ उन की निभ भी पाएगी कि नहीं. लेकिन आज लगता है वह किसी भी प्राणी के साथ निबाह कर लेंगी. कोई तो होता, उन्हें आदर न सही, उलाहने ही देने वाला. आज इतना घोर एकांत तो नहीं सहना पड़ता उन्हें. पोते के बच्चे भी अब लगभग 6-7 साल के होंगे. अब तो संपर्क भी टूट गया. अचानक जा कर कैसे लाड़प्यार लुटाएंगी वह. उन बच्चों को भी कितना अस्वाभाविक लगेगा यह सब. इतने सालों की दूरियां पाटना क्या कोई आसान काम है. उस समय गलत फैसला लिया सो लिया. मालतीजी पश्चात्ताप की माला फेरने लगीं. उस समय ही क्यों, जब नीहार और अंजलि खरीदारी के लिए जा रहे थे तब वह भी उन के साथ निकल जातीं तो आज यह एकाकी जिंदगी का बोझ अपने झुके हुए, दुर्बल कंधों पर उठाए न घूम रही होतीं.

अतीत की उन घटनाओं को बारबार याद कर के पछताने की आदत ने मालतीजी को घोर निराशावादी बना डाला था. शायद यही वजह थी जो चिड़चिड़ी बुढि़या के नाम से वह महल्ले में मशहूर थीं. अपने ही खोल में आवृत्त रह कर दिन भर वह पुरानी बातें याद किया करतीं. शाम को उन्हें घर के अंदर घुटन महसूस होती तो पार्क में आ कर बैठ जातीं. वहां की हलचल, हंसतेखेलते बच्चे, उन्हें भावविभोर हो कर देखती माताएं और अपने हमउम्र लोगों को देख कर उन के मन में अगले नीरस दिन को काटने की ऊर्जा उत्पन्न होती. यही लालसा उन्हें देर तक पार्क में बैठाए रखती थी.

आज पार्क में बैठेबैठे उन के मन में अजीब सा खयाल आया. मौत आगे बढ़े तो बढ़े, वह क्या उसे खींच कर पास नहीं बुला सकतीं, नींद की गोलियां उदरस्थ कर के.

इतना आसान उपाय उन्हें अब तक भला क्यों नहीं सूझा? उन के पास बहुत सी नींद की गोलियां इकट्ठी हो गई थीं.

नींद की गोलियां एकत्र करने का उन का जुनून किसी जमाने में बरतन जमा करने जैसा था. उन के पति उन्हें टोका भी करते, ‘मालती, पुराने कपड़ों से बरतन खरीदने की बजाय उन्हें गरीबों, जरूरतमंदों को दान करो, पुण्य जोड़ो.’

वह फिर पछताने लगीं. अपनी लंबी आयु का संबंध कपड़े दे कर बरतन खरीदने से जोड़ती रहीं. आज वे सारे बरतन उन्हें मुंह चिढ़ा रहे थे. उन्हीं 4-6 बरतनों में खाना बनता. खुद को कोसना, पछताना और अकेले रह जाने का संबंध अतीत की अच्छीबुरी बातों से जोड़ना, इसी विचारक्रम में सारा दिन बीत जाता. ऐसे ही सोचतेसोचते दिमाग इतना पीछे चला जाता कि वर्तमान से वह बिलकुल कट ही जातीं. लेकिन आज वह अपने इस अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहती हैं. ताज्जुब है. यह उपाय उन्हें इतने सालों की पीड़ा झेलने के बाद सूझा.

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 1

तांत्रिक बाबूलाल (65 वर्ष) एक दिन चौपाल पर बैठा था. उस दौरान लोग उस के ठाठबाट को
ले कर बात कर रहे थे, तभी वह अपनी शेखी बघारते हुए बोला, ‘‘अरे भाई, हमारे पास अब क्या कमी है. जो चाहते हैं, खातेपीते हैं और ऐश की जिंदगी जी रहे हैं. एक समय था, जब मैं बहुत गरीब था, मगर अब ऐसी बात नहीं है.’’
बाबूलाल यादव ने साथ बैठे हुए चौपाल के अपने हमउम्र और अन्य लोगों से गोलमोल बातें कहीं.
‘‘मगर भाई बाबूलाल, आज के समय आज की महंगाई में भी तुम्हारे ठाटबाट… कुछ समझ में नहीं आता.’’ किशन जायसवाल ने बड़े लल्लोचप्पो भरे स्वर
में कहा.
किशन ने किसी से सुन रखा था कि बाबूलाल के पास कोई ऐसी जादुई शक्ति है, जिस से वह मालामाल हो गया है. वह और अन्य कई लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर माजरा क्या है.
जब बात चली तो सभी उत्सुक भाव से बाबूलाल की ओर देख और सुन रहे थे. बाबूलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘देखो भई, संसार में एक से एक बड़ी शक्तियां हैं. सवाल है उन शक्तियों को साधने का और अगर एक बार आप ने साधना कर ली तो पूरी जिंदगी आप सुखशांति, ऐश्वर्य से बिता सकते हैं.’’
बाबूलाल के यह कहने के बाद तो लोगों में और भी उत्सुकता बढ़ गई. लोग बाबूलाल की प्रशंसा करने लगे. कोई कुछ कह रहा था तो कोई कुछ. अपनी प्रशंसा सुन कर के बाबूलाल उस समय बेहद गौरवान्वित था.
वहां पर मौजूद रमेश साहू नाम के युवक ने बाबूलाल से चिरौरी करते हुए कहा, ‘‘काका, कुछ तो ऐसा रास्ता हम लोगों को भी बताओ, ताकि हमारी जिंदगी भी सुखी हो जाए.’’
‘‘अरे बेटा, तुम तो जवान हो, दुकान चलाते हो, पैसे वाले हो. तुम्हारे पास क्या कमी है, जो मेरा रहस्य जानना चाहते हो?’’ हंसते हुए बाबूलाल ने रमेश साहू से कहा.
‘‘नहींनहीं काका, आज तो आप को बताना ही होगा आखिर आप के पास ऐसी क्या शक्ति है?’’ सुदर्शन यादव ने मिन्नतें करते हुए पूछा, ‘‘हम ने सुना है कि आप के पास सोना बनाने वाला कोई पत्थर है. क्या यह सच है?’’

ये बातें सुन कर के गांव में चौपाल में एक तरह से सन्नाटा पसर गया. सभी के मन में यह था कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसी शक्ति है, कोई मणि है जिस से वह मालामाल है. क्योंकि एक बार तो उस ने स्वयं बातोंबातों में गांव की सावित्री नामक महिला से कहा था कि उस के पास पारस मणि है. वहां से यह बात धीरेधीरे फैलती चली गई थी, मगर अंदरखाने थी.
उस दिन बाबूलाल बहुत खुश था. उस के चेहरे पर खुशी की आभा स्पष्ट दिखाई दे रही थी. गांव में उस का सम्मान बढ़ता चला जा रहा था. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस गांव में उस ने गरीबी देखी है, अभाव देखे हैं, घर में एक बार ही खाना बनता था और दिन भर भूखे पूरा परिवार गुजार देता था. उसी गांव में उसे इतना मानसम्मान और पैसा मिलेगा.
मगर वह समझ रहा था कि यह सब उस के तंत्रमंत्र और रुपएपैसे के कारण हो रहा है. वह अपने ज्ञान पर मंत्रमुग्ध भी था.

लोगों की भावना में बह कर बाबूलाल यादव ने कहा, ‘‘देखो, एक होती है पारस मणि, जो तुम कह रहे हो न, मैं उसी की बात कर रहा हूं. पारस मणि एक दिव्य पत्थर है, कहते हैं कि अगर लोहे को छुआ दो तो वह सोना बन जाता है. तुम ठीक कह रहे हो.’’ बाबूलाल यादव ने बड़ी समझदारी से जानबूझ कर के बातों को आधाअधूरा कहा, ताकि कुछ लोग बात समझ जाएं और कुछ अस्पष्ट भी हो.
चौपाल में बैठे हुए लोगों की धड़कनें बढ़ गई थीं. लोग यह सोच रहे थे कि आज बहुत बड़ा खुलासा होने वाला है. बाबूलाल खुद यह बता देगा कि उस के पास पारस मणि है. अगर ऐसा है तो गांव की तकदीर बदल सकती है. गांव धनधान्य से परिपूर्ण हो जाएगा.

एक बुजुर्ग मनहरण शर्मा ने बाबूलाल की पीठ पर हाथ रख कर के बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘भाई बाबूलाल, अगर ऐसा है कि तुम्हारे पास पारस मणि है तो फिर तो तुम हमारे लिए किसी भगवान से कम नहीं हो.’’
बाबूलाल की छठी इंद्री अब काम करने लगी थी. उस ने संभल कर कहा, ‘‘अरे भाई, मैं ने कब कहा कि कोई मणि मेरे पास है लेकिन साधना करने से क्या नहीं मिल सकता. मैं ने साधना की है. मैं उसी की वजह से खुशहाल हूं. आप लोग भी मेरे रास्ते पर चलो. मगर यह आसान नहीं है 20-30 साल लग जाते हैं, तब जा कर के कोई शक्ति प्राप्त हो पाती है.’’

 

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 3

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे बात गांव में फैलने लगी कि किरणपाल और मिथिलेश के बीच नाजायज रिश्ता है. मगर किरणपाल की दबंगई के कारण किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि सामने कुछ बोल दे.

बात धीर सिंह के कान में भी पड़ी. उस ने पत्नी से पूछा तो वह साफ मुकर गई. धीर सिंह भी सोचता कि 40 साल की औरत, 2 बेटियों की मां भला प्रेमप्यार के चक्कर में कैसे पड़ सकती है? फिर किरणपाल ने वक्त जरूरत पर उस की मदद भी की है, ऐसे आदमी की नीयत पर वह कैसे शक करे? यही सोच कर वह चुप रहा.

मिथिलेश और धीर सिंह मिल कर अपनी जवान बेटियों के लिए इधरउधर के गांवों में रिश्ते ढूंढ रहे थे. रिश्ते मिल भी गए और दोनों की शादियां भी धूमधाम से हो गईं. शादी में पूरे गांव को न्योता था. किरणपाल का परिवार भी आया और शगुन दे कर गया.दोनों बेटियों के ससुराल चले जाने के बाद मिथिलेश अकेली हो गई. धीर सिंह की गैरमौजूदगी में उस का अकेलापन दूर करने के लिए किरणपाल अकसर उस से मिलने आने लगा. जैसेजैसे दोनों की उम्र बढ़ रही थी, दीवानगी भी बढ़ती जा रही थी. खासतौर से किरणपाल की.

अब उस ने खुलेआम मिथिलेश पर अपना हक जताना शुरू कर दिया था. यह देख कर मिथिलेश उस से कुछ भय खाने लगी थी.किरणपाल की यह बात मिथिलेश को अच्छी नहीं लगती थी. ढंकेछिपे जो प्रेम चल रहा था, वह ज्यादा मजे दे रहा था. मगर जब किरणपाल ने लोगों के सामने मिथिलेश से मिलना और बात करनी शुरू कर दी तो मिथिलेश की बदनामी होने लगी.

इधर कुछ दिनों से किरणपाल ने मिथिलेश पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह धीर सिंह को छोड़ कर हमेशा के लिए उस के पास आ जाए. मगर मिथिलेश ने साफ इंकार कर दिया. वह किसी भी हालत में अपना घर नहीं छोड़ना चाहती थी और फिर उस की दोनों बेटियों के ससुराल का भी मामला था. कितनी बदनामी होती उस के इस कदम से.बेटियों का ससुराल में सिर उठा कर जीना मुश्किल हो जाता. मिथिलेश ने किरणपाल को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा.

किरणपाल की जिद को देख कर अब मिथिलेश उस से दूर रहने लगी. वह 10 बार बुलाता तो कहीं एक बार जाती थी. उस के इस बर्ताव ने जैसे आग में घी का काम किया. किरणपाल प्यार की आग में धूधू कर जलने लगा. प्रेमिका से बनी हुई दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वह अब आरपार का फैसला करना चाहता था.एक दिन उस ने सुबह के धुंधलके में मिथिलेश को खेत पर पकड़ लिया. उस दिन वह उस का फैसला जान लेना चाहता था. उस ने मिथिलेश पर शादी का दबाव बनाया तो मिथिलेश ने साफ इंकार करते हुए यहां तक कह दिया कि वह उस से अब तंग आ चुकी है और अब वह उस से कभी नहीं मिलेगी. यह कह कर मिथिलेश तेज कदमों से अपने घर की ओर चल दी.

किरणपाल की तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गई. वह ठगा सा खेत की मेड़ पर बैठा रह गया. उसे मिथिलेश से ऐसा जवाब मिलने की कतई उम्मीद नहीं थी. उस के लिए तो उस ने कभी अपनी पत्नी की परवाह नहीं की, जिस ने उस के आंगन में एक नहीं 4-4 फूल खिलाए. मिथिलेश के लिए उस ने क्या नहीं किया. जब जरूरत पड़ी, उस की आर्थिक मदद की. लेकिन आज मिथिलेश के जवाब ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया.

किरणपाल ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि मिथिलेश अगर उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की हो कर भी नहीं रहने देगा. यह 13 जुलाई, 2022 की बात है जब उस ने अपनी प्रेम कहानी का अंत सोच लिया.

इस के बाद वह अपने लोडेड तमंचे के साथ मिथिलेश को अकेला पाने की टोह में लग गया. 15 जुलाई, 2022 की सुबह उसे यह मौका मिल गया और वह तमंचा लहराते हुए मिथिलेश के सामने आ खड़ा हुआ. मिथिलेश उस से कुछ कह पाती, इस का उस ने कोई मौका नहीं दिया. किरणपाल के गुस्से का आवेग इतना तेज था कि चंद मिनटों में ही दोनों की कहानी खत्म हो गई.

गांव के लोगों ने घटना की जानकारी पुलिस को दी. घटना की सूचना मिलते ही एसपी (देहात) केशव कुमार, सीओ (सदर देहात) पूनम सिरोही और परीक्षितगढ़ पुलिस भी मौके पर पहुंची. जल्दी ही फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई.पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. सीओ पूनम सिरोही ने लाशों की स्थिति को देखते ही अंदेशा जता दिया कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. गांव वालों से थोड़ी पूछताछ के बाद ही यह बात सामने आ गई कि मिथिलेश अब किरणपाल से पीछा छुड़ा रही थी, जिस के विरोध में किरणपाल ने उसे गोली मार दी और फिर खुद को भी गोली मार ली.

गांव में प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि महिला जब अपने घर से कचरा डालने निकली थी, तभी पीछे से किरणपाल भी पहुंच गया और आवाज लगाई कि मिथिलेश तू मेरी तो नहीं हो सकी, किसी और की भी नहीं होने दूंगा… आज जिंदगी भी खत्म समझ लेना.मिथिलेश कुछ समझ पाती, इस से पहले ही किरणपाल ने अपनी प्रेमिका को गोली मार दी. आसपास के लोग वहां पहुंचते, उस से पहले ही किरणपाल ने खुद को भी गोली मार ली. चंद मिनटों में ही दोनों की मौत हो गई.

इस सनसनीखेज वारदात के बारे में जिस ने भी जाना और देखा वह हैरान रह गया. दोनों के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो गया. किरणपाल की पत्नी शीला अपने चारों बेटों को सीने से लगाए एक ओर पड़ी कलप रही थी. वहीं घर वालों के बीच बैठा धीर सिंह भी जारजार रोए जा रहा था.वहीं पर मिथिलेश की बेटियां भी दहाड़े मार कर रो रही थीं. लोग उन्हें संभाल रहे थे. पति धीर सिंह भी बेटियों को संभाल रहा था और बारबार कह रहा था सोचा नहीं था, ऐसा भी दिन देखने को मिलेगा.

किरणपाल की पत्नी शीला ने पुलिस को बताया कि अपने पति और मिथिलेश के प्रेम प्रसंग का उस ने कई बार विरोध किया. उस के बेटों ने भी पिता को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ. अकसर वह मिथिलेश का पीछा करता और उसे रोक कर जबरन बातें करने की कोशिश करता था.
लोगों ने पुलिस को बताया कि करीब 5 साल से पूरे गांव को इस प्रेम प्रसंग की जानकारी थी. 15 दिन पहले किरणपाल ने मिथिलेश पर बच्चों को छोड़ कर कहीं बाहर जा कर रहने का दबाव बनाया था.

मिथिलेश ने अपने और उस के बच्चों का हवाला दे कर इस से इंकार कर दिया था. इस पर वह शराब पी कर उस के घर पहुंच गया था और हंगामा किया था. मिथिलेश के पति धीर सिंह ने उसे समझाबुझा कर किसी तरह वापस भेजा था. मगर इस के बाद से किरणपाल जगहजगह मिथलेश का रास्ता रोक लेता था और उस से झगड़ा करता था.दबंग प्रवृत्ति के किरणपाल को कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. उस के हाथों में मिले तमंचे को देख कर फोरैंसिक टीम भी दंग रह गई. पुलिस ने तमंचे को लोड कर के भी देखा. तमंचे की नाल की लंबाई 24 इंच से ज्यादा थी.

पुलिसकर्मी चर्चा करते दिखे कि आखिर ऐसे बढि़या किस्म के तमंचे बन कहां रहे हैं? पुलिस अब किरणपाल का इतिहास खंगालने में जुटी है. उस ने वह तमंचा कब और किस से खरीदा? उस का आपराधिक तत्त्वों से कितना गहरा संबंध है? उस के धंधे क्याक्या थे? उस के पास किनकिन माध्यमों से पैसे आ रहे थे? इन सब बातों की पुलिस कथा लिखने तक जांच कर रही थी.

चांद पर धब्बे – भाग 2 : नीटू को किसकी चीख सुनाई दी

हां, कल दोपहर की टिकटें भी हैं, कुल्लूमनाली की.’’ ‘‘पर, आप ने तो बताया नहीं.’’ ‘‘मुझे ही कहां पता था. सुबह भाभी ने बताया कि कामिनी का यह तोहफा है.’’ यह सुनते ही पद्मा सुलग उठी. अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत वह कामिनी के तोहफे से करेगी, इसे मानने से उस का मन मना कर रहा था. समीर नीचे से लौट कर आए, तब भी पद्मा यों ही बैठी थी. उन्होंने पूछा, ‘‘हो गई तैयारी?’’ ‘‘अच्छा, एक बात बताइए, क्या आप ने कभी कामिनी बहन को इतना महंगा तोहफा दिया है?’’ ‘‘तोहफा, इतना महंगा? तुम्हारा मतलब टिकटों के पैसे से है…

नहीं, पर क्यों?’’ समीर ने पूछा. ‘‘फिर हमारा भी उस से इतना महंगा तोहफा लेने का हक नहीं बनता.’’ पद्मा की बात का क्या असर समीर पर हुआ, नहीं पता. पर वे खामोश हो गए. पद्मा ने 40,000 रुपए उन के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘यह मेरी मुंहदिखाई के रुपए हैं… आप उसे टिकटों और होटल के किराए के दाम दे दें.’’ मेरे रुपए वापस मेरी मुट्ठी में रखते हुए बोले, ‘‘इन रुपयों पर सिर्फ तुम्हारा हक है. रुपए तो मेरे पास हैं… मैं दे भी दूंगा. पर जो बात तुम ने मुझे अभी बताई, वह मेरे दिमाग में कभी आई ही नहीं. कामिनी भैया के अफसर की बेटी है.

उस की इन हरकतों को सब हंसते हुए झेलते हैं, क्योंकि उस की खुशी में भैया की तरक्की भी शामिल है.’’ तभी माया ने दरवाजे से ही आवाज दी, ‘‘समीर भैया, छोटी बहू को मांजी नीचे बुला रही हैं.’’ माया ने जिस रिश्ते की तरफ पद्मा का ध्यान मोड़ा था, उन की तरफ उस ने बारीकी से देखा था. समीर ने इन को शक नहीं होने दिया था. पद्मा ने देखा कि समीर एक मासूम बालक की तरह हैं, जिसे जिधर उंगली पकड़ चला दो चल देगा. समीर उस के प्यार में इस तरह डूब गए कि कामिनी के आनेजाने का भी उन्हें पता न चलता.

फिर कुछ दिनों बाद कामिनी का ब्याह हो गया और वह अपने पति के साथ कनाडा चली गई. तब पद्मा ने चैन की सांस ली. परंतु आने वाले दिनों में ऐसा कुछ घट गया, जिस की उम्मीद किसी को भी न थी. एक सुबह तेज चीखों और शोरगुल की आवाजें आने लगी थीं. उन दिनों नीटू होने वाली थी. पद्मा झटके से उठने लगी, पर समीर ने उसे रोक दिया, ‘‘नहीं, तुम ठहरो… मैं देखता हूं.’’ लौट कर समीर ने जो खबर दी, उस पर पद्मा को यकीन ही नहीं हुआ. वह उस औरत पर लगाए गए इलजाम पर कैसे यकीन कर लेती? माया के पति ने दूध का खौलता पतीला उस के ऊपर उलट दिया था. कमरे में चारों तरफ मिट्टी का तेल डाल कर उस ने माया को जलाने की कोशिश की, पर उस की चीख से घर के लोगों के पहुंच जाने पर वह बचा ली गई.

‘‘क्या हुआ? कैसे हो गया?’’ पद्मा के सवाल के जवाब में बड़ी भाभी की आवाज सुनाई दी थी, ‘‘यह पाप की हांड़ी तो फूटनी थी न कभी. कैसे हंसहंस कर बतियाती थी बांके से. आखिर मर्द था… कैसे सह सकता था. बचा ली गई वरना मार डालता तो अच्छा था. कैसा घमंड था अपने रूप पर इस को.’’ किसी ने पुलिस को खबर कर दी. पुलिस आई और माया के पति को पकड़ कर ले गई. पद्मा को समीर ने नीचे नहीं जाने दिया था. पद्मा जाना चाहती थी उस औरत को देखने, जिस ने उसे कामिनी के बारे में बताया था. वह खुद बुरे चालचलन वाली हो सकती है, पूरे घर के लोग ऐसा कह रहे थे, एक पद्मा को छोड़ कर. माया को पुलिस वाले अस्पताल ले गए.

कुछ दिनों बाद मालूम हुआ कि वह अपनी 3-4 साल की बेटी को ले कर कहीं चली गई है. आज वही माया 9 सालों के बाद सामने खड़ी थी. कैसे गुजारे होंगे उस ने ये दिन? क्या वह सब सच था? अगर नहीं तो सच क्या था? यह सब जानने के लिए पद्मा उतावली हो रही थी. सुबह होने वाली थी. पद्मा ने समीर को देखा, वे बेसुध सो रहे थे. नीटू भी पिता के गले में बांहें डाले आराम से सो रही थी. पद्मा एक कागज पर 2 लाइनें लिख कर मेज पर छोड़ आई कि समीर जागने पर परेशान न हों.

नीचे ही नाव वाला मिल गया. उस पार पहुंचने तक भी सूरज नहीं निकला था. बादल छाए हुए थे. ठंडी हवा जिस्म में चुभ रही थी. माया ने कच्चे कोयलों की अंगीठी लगा रखी थी. उस की बेटी बरतन धो रही थी. पद्मा को देखते ही माया हैरानी से भर उठी, ‘‘छोटी बहू… आप इस समय… दर्द कैसा है?’’ ‘‘ठीक है माया… यों ही चली आई. तुम्हारी बेटी तो अब काफी बड़ी हो गई?है.’’ ‘‘हां छोटी बहू… इसी को देख कर इसे बड़ा करने में गुजरते दिनों का पता ही नहीं चला. आप बैठिए न…

सोमी, चाय का पानी अंगीठी पर चढ़ा दे.’’ ‘‘छोटी बहू बकरी के दूध की चाय तो पी लेंगी न आप?’’ ‘‘तुम जो दोगी, पी लूंगी. माया, तुम ने पहले दिन जो तोहफा दिया था, उसे मैं कैसे भूल सकती हूं. पर एक सवाल बरसों से मुझे बेचैन किए हुए है कि वह सब क्या था? आज भी मेरा दिल उस बात को सच मानने से इनकार करता है…’’ कुछ पल माया चुप रही, फिर आंखें उठाईं तो उन में आंसू डबडबा आए थे. ‘‘मैं ने किसी को नहीं बताया कि सच क्या था. किसी ने कुलटा कहा, किसी ने वेश्या… सब सुन लिया, मुंह नहीं खोला. पर आप से झूठ बोलने की हिम्मत नहीं है… क्योंकि आप ने वह सच नहीं माना… मेरे ऊपर इतना बड़ा एहसान क्या कम है? ‘‘छोटी बहू, मेरा पति कमजोर था.

मौसी के प्रेमी से पंगा : भाग 2

सामने मोरकली खड़ी दुपट्टा संभाल रही थी, जबकि उस के पीछे रामसुमेर खड़ा था. सामने पारुल को खड़ा देख दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया था. मोरकली तेजी से बाथरूम की और भाग गई थी, जबकि रामसुमेर बाहर जाने वाले दरवाजे की ओर जाने लगा था, लेकिन दरवाजे पर ही रूमा से टकरातेटकराते बचा. उस के हाथ से मवेशी को चारा देने वाली टोकरी गिर गई थी. वह नाराजगी के साथ बोली, ‘‘अरे रामसुमेर, तुम यहां! इस वक्त!’’

‘‘जी…जी भाभी, मैं तो पारुल के साथ ही आया था. मैं ने उसे कालेज से अकेली आते देखा था, इसलिए उस के पीछेपीछे हो लिया था. गांव में कुछ लड़के आवारा हो गए हैं अकेली लड़की को छेड़ते रहते हैं.’’
‘‘नहीं मम्मी, सुमेर चाचा झूठ बोल रहे हैं, मैं तो अकेली आई हूं.’’
पारुल के आगे कुछ और बोलने से पहले ही रूमा बोल पड़ी, ‘‘मुझे पता है बेटी, आज नया थोड़े कालेज से तुम्हारा घर आनाजाना हो रहा है. …और ये तुम्हारा चाचा कितना झूठा है, मुझे नहीं मालूम है क्या? खुद जैसा है, वैसा ही दूसरे लड़कों के बारे में सोचता है. जाओ, तुम अपने कमरे में जाओ, आज मैं इस की खबर लेती हूं.’’ रूमा बोली.

रूमा ने सुनाया फैसला

पारुल पहले रसोई में गई, पानी पीया फिर छत पर अपने कमरे में चली गई. रूमा अपने देवर के यहां आने का करण अच्छी तरह से समझती थी. उसी वक्त मोरकली के बाथरूम से निकलने पर उस का विश्वास और मजबूत हो गया. उसे वहीं रुकने को बोली. रामसुमेर का हाथ खींचती हुई बोली, ‘‘अब तू कहां भागता है? चल इधर आ.’’
‘‘भाभी, बाद में आऊंगा,’’ कहता हुआ रामसुमेर जाने को हुआ.
‘‘नहीं, अभी यहीं मेरा फैसला सुनना होगा.’’ रूमा बोली.
‘‘फैसला! कैसा फैसला? मैं ने क्या किया है?’’ मोरकली बोली.
‘‘तुम और रामसुमेर जो कर रहे हो, वह मेरी नजरों से छिपा नहीं है. तुम क्या समझती हो तुम्हें रामसुमेर दिल से प्यार करता है? अरे नहीं, उसे तुम्हारी देह से लगाव है. तुम्हारी जिंदगी को बरबाद कर देगा. …और तुम रामसुमेर, इस की जिंदगी के साथ तो खिलवाड़ कर ही रहे हो, अपनी बीवीबच्चों को भी धोखा दे रहे हो.’’ रूमा दोनों को समझाते हुई बोली.

‘‘भाभी, मुझे गलत समझ रही हो. मैं ने ऐसा क्या कर दिया है, जो मोरकली की जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं तो उसे दिल से…’’
रामसुमेर की बातों को बीच में काटती हुई रूमा बोली, ‘‘बस, बहुत हो गया तुम दोनों का प्यारमोहब्बत का खेल अभी बात मुझ तक है, लगता है आज इस की भनक पारुल को भी हो गई. कल तुम्हारे भैया को हो जएगी. इस का असर हमारे परिवार पर पड़ेगा, वह मुझे बरदाश्त नहीं होगा. इसलिए कह रही हूं, तुम लोग संभल जाओ और आइंदा कभी मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

पारुल को मिली धमकियां

रूमा देवी के इस फरमान का असर मोरकली और रामसुमेर पर कितना हुआ, इस का पता कुछ दिनों बाद ही चल गया. दोनों उफनती वासना के बहाव में बह रहे थे. लोकलाज और सामाजिक, पारिवारिक नैतिकता को नजरंदाज कर चुके थे.
दोनों एक रोज फिर पारुल की नजरों के सामने आ गए. इस बार पारुल ने उन्हें घर के बाहर एकांत में देखा था. उस रोज रामसुमेर ने सीधे उस का गला पकड़ लिया था और साफ लहजे में धमकी दे डाली थी कि अपनी मां को कुछ भी नहीं बताए, वरना उस का अंजाम कुछ भी हो सकता था. मोरकली ने भी धमकी दी थी कि अगर उस ने किसी को कुछ भी बताया तो वह उसे बदनाम कर देगी.
बावजूद इन धमकियों के पारुल ने अपनी मां को सब कुछ उसी रोज बता दिया था. संयोग से इस की जानकारी उस के पिता रणवीर यादव को भी एक ग्रामीण से हो गई थी. घर आते ही उन्होंने मोरकली की जबरदस्त डांट लगाई. उसे अगले रोज उस के घर छोड़ आने के लिए कहा. उसी वक्त उन्होंने रामसुमेर को बुला कर भी सभी के सामने खूब डांटा.

घर में मोरकली और रामसुमेर को ले कर तनाव का माहौल बन गया था. पारुल कुछ अधिक तनाव में आ गई थी. वह डर भी गई थी. रामसुमेर के व्यवहार को जानती थी. वह किसी से भी लड़नेझगड़ने और मरनेमारने से पीछे नहीं हटता था. उस के मन में डर समा गया था कि कहीं उस के चलते कालेज की पढ़ाई न छूट जाए.मोरकली अपने घर जा चुकी थी. उस का भी पारुल को डर था. वह भी उसे बदनाम करने की धमकी दे गई थी.बात 3 जून, 2022 की है. रात को पारुल अचानक घर से लापता थी. घर का माहौल कुछ दिनों से मोरकली और रामसुमेर को ले कर ठीक नहीं था. एक दिन पहले ही रणवीर यादव मोरकली को उस के घर छोड़ आए थे.

अब पारुल के अचानक गायब होने से वह चिंतित हो गए. वह कोई छोटी बच्ची नहीं, जो कोई उठा ले जाए, बल्कि 18 साल की इंटरमीडिएट की छात्रा थी. वह रात करीब 8 बजे फोन काल सुन कर अपने घर से मां के साथ ही बाहर निकली थी. गाय और बछड़े को चारापानी दे कर वापस घर नहीं आई थी.
ऐसा पहली बार हुआ था, लेकिन कुछ समय बाद ही घर वालों ने उस की तलाश शुरू कर दी. काफी रात तक खोजने के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चला.

मिली पारुल की लाश अगले रोज 4 जून, 2022 को करीब 7 बजे ग्रामीणों के जरिए पारुल की खून सनी लाश खेत में होने की सूचना मिली. ग्रामीणों ने इस की सूचना तुरंत मोहनलालगंज थाने को को भी दे दी. लाश कोराना गांव से 500 मीटर दूर अमर सिंह के खेत में मिली थी. वह खून से लथपथ थी.
सूचना पा कर रणवीर यादव खेत पर गए. वहां बेटी पारुल की लाश देख कर वह बेसुध हो गए. उस का शव लहूलुहान खेत में पड़ा था. कुछ समय में ही पुलिस भी दलबल के साथ आ गई थी. लाश का मुआयना किया.

पुलिस ने पाया कि पारुल के सिर में चोट के निशान थे. जिस का मतलब साफ था कि उस कि सिर पर पीछे से ईंट और डंडे से प्रहार किया गया था. मोहनलालगंज थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा ने पारुल के पिता रणवीर यादव से पूछताछ की. किसी से दुश्मनी, प्रेम संबंध और घरपरिवार में उस के व्यवहार आदि से संबंधित सवाल पूछे गए. लेकिन रणवीर यादव से इस बारे में उन्हें कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. हालांकि रणवीर यादव ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह काफी सख्त मिजाज की लड़की थी. एकदम से निडर. उस का न तो घर में और न ही पासपड़ोस में किसी से भी कोई मनमुटाव था. यहां तक कि उसे किसी के द्वारा परेशान करने की कोई शिकायत तक नहीं मिली थी.
पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और रणवीर यादव की तहरीर के आधार पर हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. उन्होंने रामसुमेर के छोटे भाई आशीष यादव पर शक जताया था.

थानाप्रभारी ने केस को सुलझाने के लिए एक टीम बनाई. टीम में थाने के अतिरिक्त इंसपेक्टर ए.जेड. खान (क्राइम), एसआई ओमपाल सिंह, शैलेष कुमार तिवारी, शशिकला, कांस्टेबल शांति देवी आदि को शामिल किया.जांच की शुरुआत पारुल की मां रूमा देवी से पूछताछ के साथ हुई. बातचीत से पता चला कि 3 जून की रात करीब 8 बजे पारुल रूमा के साथ मवेशियों को चारा देने के लिए गई थी. उसी समय उस के फोन पर एक काल आई. फोन पर बात करतेकरते वह घर से बाहर निकल गई. घर की रसोई में गैस पर दूध रखा था. इस कारण रूमा तुरंत घर के अंदर आ गई. उन्होंने सोचा कि पारुल गाय और बछड़ों को चारापानी दे कर आ जाएगी. कुछ देर तक जब वह नहीं आई तब रूमा चिंतित हो गईं. उन्होंने इस की जानकारी अपने पति रणवीर यादव को दी.

वह खाना खाने के बाद पारुल की तलाश के लिए निकल पड़े. उन के साथ चचेरा भाई रामसुमेर यादव और उस का छोटा भाई आशीष यादव भी थे. उन्होंने रात 3 बजे तक पारुल की तलाश की. काफी थक जाने पर वे वापस लौट आए.तलाशी के दौरान रणवीर ने पाया कि आशीष उन्हें बरगला रहा है. कभी पोखर जाने के रास्ते पर ले गया तो कभी अलग जगहों पर ले गया. यहां तक कि उस ने तालाब में पैर फिसल कर गिरने की भी आशंका जताई थी. उस खेत की ओर उस ने उन्हें जाने ही नहीं दिया, जहां पारुल की लाश मिली थी. हत्याकांड की जांचपड़ताल

उलझन- भाग 3 : कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर थी हैरान?

शायद यहीं आ कर नई पीढ़ी आगे निकल गई है. आज किसी कनिका और किसी अभिषेक को किसी से डरने की जरूरत नहीं है. अपना फैसला वे खुद करते हैं. मांबाप को सूचित कर दिया यही काफी है. यह तो कनिका और अभिषेक के भले संस्कारों का असर है जो इंडिया आ कर शादी कर रहे हैं. यों अगर वे अमेरिका में ही कोर्टमैरिज कर लेते तो भला कोई क्या कर लेता.

प्रेरणा की शादी अनिकेत से तय हो गई थी. न कोई शिकवा न गिला यों हुआ उन की प्रेमकथा का एक मूक अंत.

विदाई के समय प्रेरणा की नजरें घर की छत पर जा टिकीं, जहां कपिल को खडे़ देख कर उस के दिल में एक हूक सी उठी थी लेकिन चाहते हुए भी प्रेरणा की नजरें कुछ क्षण से ज्यादा कपिल पर टिकी न रह सकीं.

हर जख्म समय के साथ भर जाए यह जरूरी नहीं.

प्रेरणा को याद है. जब शादी के कुछ समय बाद कपिल से उस की मुलाकात मायके में हुई थी, वह कैसा बुझाबुझा सा लग रहा था.

‘कैसे हो कपिल?’ प्रेरणा ने कपिल के करीब आ कर पूछा.

न जाने कपिल को क्या हुआ कि वह प्रेरणा के सीने से चिपक कर रोने लगा. ‘काश, प्रेरणा हम समय पर बोल पाते. क्यों मैं ने हिम्मत नहीं दिखाई? पे्ररणा, इतनी कायरता भी अच्छी नहीं. तुम से बिछड़ कर जाना कि मैं ने क्या खो दिया.’

‘ओह कपिल…’ प्रेरणा भी रोने लगी.

चाहीअनचाही इच्छाओं के साथ प्रेरणा और कपिल का रिश्ता एक बार फिर से जुड़ गया. प्रेरणा के मायके के चक्कर ज्यादा ही लगने लगे थे.

अब प्रेरणा की दिलचस्पी फिर से कपिल में बढ़ती जा रही थी और अनिकेत में कम होती जा रही थी. पर अकसर टूर पर रहने वाले अनिकेत को प्रेरणा के बारबार मायके जाने का कारण अपनी व्यस्तता और उस को समय न देना ही लगता.

प्रेरणा और कपिल का यह रिश्ता उन्हें कहां ले जाएगा यह दोनों ही नहीं सोचना चाहते थे. बस, एक लहर के साथ वे बहते चले जा रहे थे.

शादी के पहले तो सब के अफेयर होते हैं, जो नाजायज तो नहीं पर जायज भी नहीं होते हैं. पर शादी के बाद के रिश्ते नाजायज ही कहलाएंगे. यह बात प्रेरणा को अच्छी तरह समझ में आ गई थी. कनिका के जन्म के बाद से ही प्रेरणा ने कपिल से संबंध खत्म करने का निर्णय ले लिया था. कनिका के जन्म के बाद पहली बार प्रेरणा अपने मायके आई थी. कमरे में प्रेरणा अपने और कनिका के कपड़े अलमारी में लगा रही थी कि अचानक कपिल ने पीछे से आ कर प्रेरणा को अपनी बांहों में भर लिया.

‘ओह, प्रेरणा कितने दिनों बाद तुम आई हो. उफ, ऐसा लगता है मानो बरसों बाद तुम्हें छू रहा हूं. प्रेरणा, तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो. तुम्हारा यह भरा हुआ बदन…सच में मां बनने के बाद तुम्हारी खूबसूरती और भी निखर गई है.’ और हर शब्दों के साथ कपिल की बांहों का कसाव बढ़ता जा रहा था.

इस वक्त घर में कोई नहीं है यह बात कपिल को पता थी, इस वजह से वह बिना डरे बोले जा रहा था.

प्रेरणा के इकरार का इंतजार किए बिना ही कपिल उस की साड़ी उतारने लगा. कंधे से पल्ला गिरते ही लाल रंग के ब्लाउज में प्रेरणा का बदन बहुत उत्तेजित लगने लगा जिसे देख कर कपिल मदहोश हुआ जा रहा था.

इस से पहले कि कपिल के हाथ प्रेरणा के ब्लाउज के हुक खोलते, एक झन्नाटेदार चांटा कपिल के गाल पर पड़ा. ‘यह क्या कर रहे हो कपिल, तुम्हें शर्म नहीं आती कि मेरी बेटी यहां पर लेटी है. अब मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है.’ न जाने प्रेरणा में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था, जो अपने ही प्यार का अपमान इस तरह से कर रही थी.

कपिल एक क्षण के लिए चौंक गया फिर बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. शायद इतनी बेइज्जती के बाद उस ने वहां रुकना उचित न समझा. कपिल के जाते ही प्रेरणा फूटफूट कर रोने लगी. कपिल से रिश्ता खत्म करने का शायद उसे यही एक रास्ता दिखा था. कपिल से रिश्ता तोड़ना प्रेरणा के लिए आसान नहीं था पर आज प्रेरणा एक औरत बन कर नहीं बल्कि एक मां बन कर सोच रही थी. कल को उस के नाजायज संबंधों का खमियाजा उस की बेटी को न भोगना पड़े.

बच्चों को आदर्श की बातें बड़े तभी सिखा पाते हैं जब वे खुद उन के लिए एक आदर्श हों. जिन भावनाओं को प्रेरणा शादी के बाद भी नहीं छोड़ पाई, उन्हीं भावनाओं को अपनी औलाद के लिए त्यागना कितना आसान हो गया था.

उस के बाद प्रेरणा और कपिल की कोई मुलाकात नहीं हुई.

पर आज भी कपिल प्रेरणा के खयालों में रहता है और अनिकेत के साथ अंतरंग क्षणों में प्रेरणा को कपिल की यादों का एहसास होता है. वक्तबेवक्त कपिल की यादें प्रेरणा की आंखों को नम कर देती थीं.

कुछ रिश्ते यादों की धुंध में ही अच्छे लगते हैं. यह बात प्रेरणा अच्छी तरह जानती थी पर आज वही रिश्ते यादों की धुंध से निकल कर प्रेरणा को विचलित कर रहे थे.

जिस इनसान से प्रेरणा कभी प्रेम करती थी अब उसी का बेटा उस की बेटी के जीवन में आ गया था.

कैसे प्रेरणा कपिल का सामना कर पाएगी? कपिल के लिए जो भावनाएं आज भी उस के दिल में जीवित हैं उन भावनाओं को हटा कर एक नया रिश्ता कायम करना क्या उस के लिए संभव हो सकेगा? कैसे वह इन नए संबंधों को संभाल पाएगी? बरसों बाद अपने पहले प्यार की मिलनबेला का स्वागत करे या…

कैसे वह अपनी ही जाई बेटी की खुशियों का गला घोट डाले? कैसे अपने और कपिल के रिश्ते को सब के सामने खोले? क्या कनिका यह सहन कर पाएगी?

वैसे भी नई पीढ़ी जातिपांति को नहीं मानती. उस के लिए तो प्यार में सब चलता है. नई पीढ़ी तो इन बंधनों के सख्त खिलाफ है. जातपांति के मिटने में ही सब का भला है. आज की पीढ़ी यही समझ रही है, तब किस आधार पर अभिषेक और कनिका का रिश्ता ठुकराया जाए?

अपने ही खयालों के भंवर में प्रेरणा फंसती जा रही थी. सच में दुनिया गोल है. कोई सिरा अगर छूट जाए तो आगेपीछे मिल ही जाता है. पर ऐसे सिरे से क्या फायदा जो सुलझाने के बजाय और उलझा दे.

अभिषेक के मातापिता को देख कर कनिका का दिल शायद न धड़के पर कपिल का सामना करने के केवल खयाल से ही प्रेरणा का दिल आज पहले की तरह तेजी से धड़क रहा था. धड़कते दिल को संभालने के लिए अनायास ही उस के मुंह  से निकल गया.

‘रखा था खयालों में अपने

जिसे संभाल कर,

ताउम्र उस को निहारा, सब से छिपा कर,

पर आज,

वक्त के थपेड़ों से सब बिखरता नजर आता है,

छिप कर आज कहां जाऊं,

वही चेहरा हर तरफ नजर आता है.’?

‘तो क्या जिस तरह यादों के तीर मेरे सीने के आरपार होते रहे उसी तरह के तीरों का शिकार अपनी बेटी को भी होने दूं?’ खुद से पूछे गए इस एक सवाल ने प्रेरणा को ठीक फैसला ले सकने की प्रेरणा दे दी. ‘कनिका को वैसा कुछ न सहना पड़े जो मैं ने सहा, चाहे इस के लिए अब मुझे कुछ भी सहना पड़े’ यह सोच कर प्रेरणा के मन की सारी उलझन गायब हो गई.

पिता का दोस्त

उलझन- भाग 1 : कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर थी हैरान?

‘‘मम्मी, आप को फोटो कैसी लगी?’’ कनिका ने पूछा, ‘‘अभिषेक कैसा लगा, अच्छा लगा न, बताओ न मम्मी… अभिषेक अच्छा है न…’’

कनिका लगातार फोन पर पूछे जा रही थी पर प्रेरणा के मुंह में मानो दही जम गया हो. एक भी शब्द मुंह से नहीं निकल रहा था.

‘‘आप तो कुछ बोल ही नहीं रही हो मम्मी, फोन पापा को दो,’’ कनिका ने तुरंत कहा.

प्रेरणा की चुप्पी कनिका को इस वक्त बिलकुल भी नहीं भा रही थी. उसे तो बस अपनी बात का जवाब तुरंत चाहिए था.

‘‘पापा, अभिषेक कैसा लगा?’’ कनिका ने कहा, ‘‘मैं ने उस के पापा व मम्मी की फोटो ईमेल की थी…आप ने देखी, पापा…’’ कनिका की खुशी उस की बातों से साफ झलक रही थी.

‘‘हां, बेटे, अभिषेक अच्छा लगा है अब तुम वापस इंडिया आ जाओ, बाकी बातें तब करेंगे,’’ अनिकेत ने कनिका से कहा.

कनिका एम. टैक करने अमेरिका गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात अभिषेक से हुई थी. दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. 2 साल के बाद दोनों इंडिया वापस आ रहे थे. आने से पहले कनिका सब को अभिषेक के बारे में बताना चाह रही थी.

सच में नया जमाना है. लड़का हो या लड़की, अपना जीवनसाथी खुद चुनना शर्म की बात नहीं रही. सचमुच नई पीढ़ी है.

कनिका जिद किए जा रही थी, ‘‘पापा, बताइए न प्लीज, अभिषेक कैसा लगा…मम्मी तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं, आप ही बता दो न…’’

‘‘कनिका, जिद नहीं करते बेटा, यहां आ कर ही बात होगी,’’ अनिकेत ने कहा.

पापा की आवाज तेज होती देख कनिका ने चुप रहना ही ठीक समझा.

‘‘तुम्हें अभिषेक कैसा लगा? लड़का देखने में तो ठीक लग रहा है. परिवार भी ठीकठाक है. इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ अनिकेत ने फोन रखते हुए प्रेरणा से पूछा.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ कह कर प्रेरणा रसोई में चली गई.

‘‘अरे, पता नहीं का क्या मतलब? परसों कनिका और अभिषेक इंडिया आ रहे हैं. हमें कुछ सोचना तो पड़ेगा न,’’ अनिकेत बोले जा रहे थे.

पर अनिकेत को क्या पता था कि जिस अभिषेक के परिवार के बारे में वे प्रेरणा से पूछ रहे हैं उस के बारे में वह कल रात से ही सोचे जा रही थी.

कल इंटरनैट पर प्रेरणा ने कनिका द्वारा भेजी गई अभिषेक और उस के परिवार की फोटो देखी तो एकदम हैरान हो गई. खासकर यह जान कर कि अभिषेक, कपिल का बेटा है. वह मन ही मन खीझ पड़ी कि कनिका को भी पूरी दुनिया में यही लड़का मिला था. उफ, अब मैं क्या करूं?

अभिषेक के साथ कपिल को देख कर प्रेरणा परेशान हो उठी थी.

‘‘अरे, प्रेरणा, देखो दूध उबल कर गिर रहा है, जाने किधर खोई हुई हो…’’ अनिकेत यह कहते हुए रसोई में आ गए और पत्नी को इस तरह खयालों में डूबा हुआ देख कर उन को भी चिंता हो रही थी.

‘‘प्रेरणा, तुम शायद कनिका की बात से परेशान हो. डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा,’’ कनिका के इस समाचार से अनिकेत भी परेशान थे पर आज के जमाने को देख कर शायद वे कुछ हद तक पहले से ही तैयार थे, फिर पिता होने के नाते कुछ हद तक परेशान होना भी वाजिब था.

अनिकेत को क्या पता कि प्रेरणा परेशान ही नहीं हैरान भी है. आज प्रेरणा अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि एक मां को अपनी बेटी से ईर्ष्या हो रही थी. पर क्यों? इस का जवाब प्रेरणा के ही पास था.

किचन से निकल कर प्रेरणा कमरे में पलंग पर जा आंखें बंद कर लेटी तो कपिल की यादें किसी छायाचित्र की तरह एक के बाद एक कर उभरने लगीं. प्रेरणा उस दौर में पहुंच गई जब उस के जीवन में बस कपिल का प्यार ही प्यार था.

कपिल और प्रेरणा दोनों पड़ोसी थे. घर की दीवारों की ही तरह उन के दिल भी मिले हुए थे.

छत पर घंटों खड़े रहना. दूर से एकदूसरे का दीदार करना. जबान से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती थी. आंखें ही हाले दिल बयां करती थीं.

निश्चित समय पर आना और अनिश्चित समय पर जाना. न कुछ कहना न कुछ सुनना. अजब प्रेम कहानी थी प्रेरणा और कपिल की. बरसाती बूंदें भी दोनों की पलकें नहीं झपका पाती थीं. एक दिन भी एकदूसरे को देखे बिना वे नहीं रह सकते थे.

 

अपराध: नजदीकी रिश्तों में हत्या

नजदीकी रिश्तों में हत्या कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सभापति रमेश बाबू यादव के 22 साल के बेटे अभिजीत की हत्या में उस की 55 साल की मां मीरा यादव की गिरफ्तारी की गई थी. एक मां ने अपने सगे बेटे की हत्या क्यों की? वजह थी, बेटे का नशा कर के मां को मारनापीटना. मां भी कहां तक सहन करती. एक दिन उस का गुस्सा भड़क गया और परिवार तबाह हो गया. इस मामले में मां ने बेटे की हत्या की,

क्योंकि वह शराब पीता था और मां से पैसे मांगता था, जो मां के पास थे ही नहीं. इंगलैंड में रहे रहे भारतीय मूल के मुसलिम परिवार की मां ने साल 2010 में 7 साल के बेटे की हत्या केवल इसलिए कर दी थी कि वह कुरान की आयतें याद नहीं कर पा रहा था. गुरदासपुर, पंजाब में नाजायज रिश्ता बनाए रखने के लिए एक औरत ने अपने बेटे की हत्या कर उस की लाश नदी में फेंक दी थी. इसी तरह बहराइच, उत्तर प्रदेश में एक औरत ने अपने बेटे की हत्या कर डाली, क्योंकि वह पहले अपने पति की मौत के बाद प्रेमी के साथ चली गई, पर जब बेटे ने अपना मकान बना लिया तो वह लौट कर रहना चाहती थी. इस अनबन में मां ने अपने प्रेमी की मदद से बेटे की हत्या कर डाली. हरियाणा में रोहतक में एक मां ने अपने छोटे बेटे के साथ मिल कर बड़े बेटे की हत्या कर डाली थी, जो 22 साल का था. उन्होंने उसे घर में ही गड्ढा खोद कर दबा दिया था. हालांकि इस तरह के मामलों में मां को गिरफ्तार कर ही लिया जाता है,

पर केरल हाईकोर्ट के जज ने एक मामले में सजा उलटते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में जो दिखता है, उस से कुछ अलग भी होता है. कोई भी अपने पिता व उस कथित मां की भावनाओं को पूरी तरह नहीं सम झ सकता, जिस ने अपने बेटे की ही हत्या कर डाली है. आमतौर पर औरत के अधकचरे बदलते बयानों, पुलिस की रिपोर्ट, पड़ोसियों के बयानों पर ही फैसले सुना दिए जाते हैं और मां की सही हालत का आकलन नहीं होता है. नशे की लत ने बढ़ाई दूरी अभिजीत यादव के मामले में रमेश यादव खुद 12, कालीदास मार्ग पर बने अपने सरकारी आवास में रहते थे. दारुलशफा में बने आवास में उन का आनाजाना नहीं होता था. रमेश यादव मूलरूप से एटा के रहने वाले थे. वे ज्यादातर समय वहीं गुजारते थे. मीरा का बड़ा बेटा अभिषेक कंस्ट्रक्शन का काम करता था.

उस ने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. छोटा बेटा अभिजीत अपनी पढ़ाई के साथ दूसरे काम करता था, पर वह किसी भी काम में कामयाब नहीं हुआ था. ऐसे में वह नशे का शिकार भी हो गया था. अभिजीत को यह लगता था कि उसे जितना पैसा मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है. ऐसे में उस का मां के साथ झगड़ा होता था. मां के साथ झगड़े में अभिजीत अपने पिता रमेश यादव के साथ की गई शादी को ले कर भी ताने मारता था और उन के चरित्र को ले कर भी सवाल उठाता था. मीरा को ये बातें बुरी लगती थीं. मीरा ने अपने गहने बेच कर बेटे का बिजनैस शुरू कराया, पर वह उस में कामयाब नहीं हो सका. दशहरे के दिन भी अभिजीत ने अपनी मां से पैसे मांगे और न मिलने पर झगड़ा किया. मां को मारापीटा भी था. बारबार पैसे दे कर मीरा भी थक चुकी थीं. लखनऊ के एएसपी पूर्वी सर्वेश कुमार मिश्रा ने बताया कि पुलिस को दिए गए अपने बयान में मीरा ने कहा कि अभिजीत शराब पीने का आदी था.

वह आएदिन शराब पी कर हंगामा करता था. वे रोजरोज के झगड़े से तंग आ चुकी थीं. शनिवार की रात को तकरीबन 11 बजे अभिजीत शराब के नशे में चूर हो कर आया और आते ही गालीगलौज करने लगा. मीरा ने अभिजीत को थप्पड़ मारते हुए धक्का दे दिया, जिस से वह मर गया. ऐसे मामलों में मां को जेल में रखना कानून की तो जरूरत हो सकती है, पर इस का कोई नैतिक आधार नहीं है. बेटे की हत्या पर मां को सजा देना एक गलत बात है. उसे 2 बार सजा दी जा रही है. एक मां के रूप में और एक अपराधी के रूप में. हर इनसान एक ही सजा का पात्र होता है, 2 का नहीं.

अंधविश्वास: जरूरी नहीं है कांवड़ यात्रा कदमों को सही दिशा में ले जाएं

जरूरी नहीं है कांवड़ यात्रा कदमों को सही दिशा में ले जाएं हिंदुओं की धार्मिक किताबों के मुताबिक, शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है. यह जल एक पवित्र जगह से अपने कंधे पर ले जा कर शिव को सावन के महीने में चढ़ाया जाता है. इस यात्रा के दौरान कांवडि़ए ‘बम भोले’ के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं. कहा यह भी जाता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है.

पर क्या वाकई ऐसा होता है या सिर्फ धार्मिक किताबों का हवाला दे कर किसी मान्यता को पूरा करने के लिए लोगों को भरमाया जाता है? देखा जाए तो हर किसी को कोई भी धर्म अपनाने और उस का पालन करने का हक है और यह उस की निजी पसंद होती है, लेकिन धर्म का दिखावा करना किसी भी लिहाज से सही नहीं है. हिंदू धर्म में तमाम तरह के धार्मिक कर्मकांड हैं और हर कर्मकांड को पूरा करने के बाद लोगों की ऊपर वाले से उम्मीद बंध जाती है कि अब तो सब सही हो जाएगा. इसी बात को सच साबित करने के लिए लोग तरहतरह की धार्मिक यात्राएं करते हैं, जिन में से एक कांवड़ यात्रा भी है. ऐसा नहीं है कि भारत में कांवड़ यात्रा कोई नया चलन है, पर जब से देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, तब से इस यात्रा का काफी महिमामंडन किया गया है. इसे ऐसा उत्सव बना दिया है कि लोगों में कांवड़ यात्रा करने की होड़ सी मच गई है. दरअसल, जब कोई मान्यता भेड़चाल में बदल जाती है, तो उस से भक्तों को कोई फायदा हो या न हो, पर देश और समाज को काफी नुकसान होता है. साल 2022 की कांवड़ यात्रा पर नजर डालें, तो 13 दिन की इस कांवड़ यात्रा ने शासन और प्रशासन के सारे इंतजाम फेल कर के रख दिए. ऋषिकेश, हरिद्वारदिल्ली हाईवे कांवडि़यों और उन के वाहनों की भीड़ से अटा हुआ था.

इस से दूसरे उन यात्रियों को परेशानी हो रही थी, जो अपने रोजमर्रा के कामों पर घर से निकले हुए थे. शिव मंदिरों पर जल चढ़ाने से एक दिन पहले यानी सोमवार, 25 जुलाई, 2022 को देहरादून से कुमाऊं और उत्तर प्रदेश जाने वाली बसें नेपाली फार्म इलाके तक ही जा सकीं. यात्रा का आखिरी दिन होने के चलते सोमवार को कांवडि़यों की भीड़ से गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से ले कर ज्वालापुर तक 4 किलोमीटर का इलाका पूरी तरह से जाम हो गया था. हरिद्वार से सप्लाई नहीं मिल पाने के चलते देहरादून के तीनों सीएनजी पंपों पर सोमवार को सीएनजी गैस की किल्लत रही थी. सोमवार, 25 जुलाई को 60 लाख शिव भक्तों ने गंगाजल भर कर अपने प्रदेशों के लिए वापसी की थी. अब तक 3 करोड़, 50 लाख, 70 हजार श्रद्धालु वापसी कर चुके थे. इस सब में पुलिस को यातायात व्यवस्था बनाने के लिए पसीना बहाना पड़ा था. इस साल 14 जुलाई, 2022 को कांवड़ यात्रा शुरू हुई थी. यात्रा शुरू होने से पहले ही शिव भक्तों का हरिद्वार और ऋषिकेश पहुंचना शुरू हो गया था. याद रहे कि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 2 साल कांवड़ यात्रा की इजाजत नहीं मिली थी. इस बार शासन और प्रशासन ने बिना किसी पाबंदी के कांवड़ यात्रा करने की इजाजत दे दी थी. पुलिस प्रशासन ने 4 करोड़ कांवडि़यों के आने की उम्मीद जताई थी. 4 करोड़ लोग उस यात्रा पर निकले हुए थे,

जिस का फल उन्हें पता नहीं कब मिलेगा, पर इस से दूसरे लोगों को जो परेशानियां हुईं, वे तो साफ नजर आईं. एक मामले से इसे समझते हैं. रविवार, 24 जुलाई, 2022 को उत्तराखंड में कांवड़ स्पैशल ट्रेन में बम की सूचना से हड़कंप मच गया था. यह ट्रेन दिल्ली से यात्रियों को ले कर हरिद्वार पहुंची थी. पुलिस और बम निरोधक दस्ते ने आननफानन में यात्रियों को अलर्ट करते हुए स्टेशन में छानबीन की, लेकिन बम कहीं नहीं मिला. जांच में सामने आया कि बम होने की सूचना फर्जी थी. कांवडि़यों का किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था और गाजियाबाद के रहने वाले रिंकू वर्मा ने कंट्रोल रूम में ट्रेन में बम होने की झूठी सूचना दे दी. बाद में पुलिस ने रिंकू वर्मा को गिरफ्तार कर लिया था. वह नशे में था और कांवड़ लेने हरिद्वार आया था. इस बात से यह तो साबित हो गया कि रिंकू वर्मा का कांवड़ यात्रा में आने का कोई धार्मिक मकसद नहीं था और उस की वजह से जो तनाव का माहौल बना उस से दूसरे लोगों की जान सांसत में आ गई थी. इसी तरह कांवड़ यात्रा के बीच उत्तर प्रदेश के बिजनौर में माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई. जानकारी के मुताबिक, भगवा रंग का साफा पहने 2 लोगों ने एक मजार में तोड़फोड़ की. उन दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

बाद में पता चला कि वे दोनों मुसलिम समुदाय से थे. यहां सवाल उठता है कि ऐसी धार्मिक यात्रा से क्या फायदा, जो लोगों की भावनाओं को भड़काने की वजह बने? ऐसे लोगों पर हैलीकौप्टर से फूलों की बारिश करने की क्या तुक है, जो जरा सी बात पर भड़क कर पूरा रोड ही जाम कर दें या मारपीट करने पर उतारू हो जाएं? इसी साल की कांवड़ यात्रा का एक और मामला है. मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव के कांवडि़ए शिवरात्रि की सुबह हरिद्वार से गंगाजल ले कर वापस लौट रहे थे. मंगलौर, उत्तर प्रदेश के पास पानीपत, हरियाणा के गांव चुलकाना के डाक कांवडि़यों के साथ आगे निकलने को ले कर उन की कहासुनी हो गई. इसी दौरान हरियाणा के कांवडि़यों ने लाठीडंडों और चाकुओं से उन पर हमला बोल दिया. नतीजतन, सिर पर लाठी लगने से सिसौली गांव के कार्तिक की मौत हो गई, जबकि कई और लड़के घायल हो गए. कार्तिक सेना में नौकरी करता था. वैसे, हत्या की वारदात के बाद भाग रहे कांवडि़यों को पकड़ लिया गया था.

कांवड़ यात्रा के कुछ छिपे नुकसान भी होते हैं. सब से पहले तो जो लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं, वे तकरीबन एक महीने तक ऐसा कोई काम नहीं करते हैं, जिस से देश या समाज का कोई ठोस भला हो. बहुत से तो बेरोजगार होते हैं, जबकि कई सारे लोग अपने कामधंधे छोड़ कर इस यात्रा के भागीदार बनते हैं, जिस से उन्हें अपनी कमाई से हाथ धोना पड़ता है. चूंकि इन लोगों में पिछड़े और दलित समाज की भी काफी तादाद होती है, तो उन में से कइयों के घरों में तो फाके तक पड़ जाते हैं, जबकि इन दिनों में अगर वे लोग मेहनतमजदूरी कर के चार पैसे कमाते तो उन्हें ऊपर वाले से कुछ मांगना ही नहीं पड़ता. यह यात्रा मुफ्त में भी नहीं होती है. मतलब, यह आप का खर्चा बढ़ा देती है, क्योंकि चाहे हरिद्वार हो या ऋषिकेश, वहां कोई मुफ्त में तो आप को ठहराएगा नहीं.

लिहाजा, वहां के होटल वगैरह, खाने की चीजें कई गुना महंगी हो जाती हैं. हरिद्वार में इन दिनों में केला 80 से 90 रुपए प्रति दर्जन बिका, तो सेब 100 से 200 रुपए प्रति किलो तक लोगों को खरीदना पड़ा. कांवड़ मेले में जाम और रूट बदलने से फलसब्जी की ढुलाई महंगी हुई. कई फलसब्जी कम मात्रा में उपलब्ध रहे. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि दूसरे राज्यों से फलसब्जी ले कर ज्वालापुर मंडी पहुंचने वाले वाहन 4 दिन से मंडी नहीं पहुंचे थे. जो छोटे वाहन सब्जीफल ले कर आ भी रहे थे, वे घंटों जाम में फंसे रहे थे. कुलमिला कर यही कह सकते हैं कि देश की नौजवान पीढ़ी को सोचसमझ कर ऐसी बातों पर विचार करना चाहिए कि उन के लिए कौन सी बात फायदे की है और कौन सी नुकसान की. ऐसी कांवड़ यात्रा किस काम की, जो किसी देश की ताकत नौजवान पीढ़ी को कमजोर करे? लिहाजा, समय रहते अपने हाथों पर भरोसा करें और कदमों को ऐसी मंजिल की तरफ ले जाएं, जहां एक मेहनतकश तबके को रोजगार से भटकाने की साजिश के लिए कोई जगह न हो.

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