जरूरी नहीं है कांवड़ यात्रा कदमों को सही दिशा में ले जाएं हिंदुओं की धार्मिक किताबों के मुताबिक, शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है. यह जल एक पवित्र जगह से अपने कंधे पर ले जा कर शिव को सावन के महीने में चढ़ाया जाता है. इस यात्रा के दौरान कांवडि़ए ‘बम भोले’ के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं. कहा यह भी जाता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है.
पर क्या वाकई ऐसा होता है या सिर्फ धार्मिक किताबों का हवाला दे कर किसी मान्यता को पूरा करने के लिए लोगों को भरमाया जाता है? देखा जाए तो हर किसी को कोई भी धर्म अपनाने और उस का पालन करने का हक है और यह उस की निजी पसंद होती है, लेकिन धर्म का दिखावा करना किसी भी लिहाज से सही नहीं है. हिंदू धर्म में तमाम तरह के धार्मिक कर्मकांड हैं और हर कर्मकांड को पूरा करने के बाद लोगों की ऊपर वाले से उम्मीद बंध जाती है कि अब तो सब सही हो जाएगा. इसी बात को सच साबित करने के लिए लोग तरहतरह की धार्मिक यात्राएं करते हैं, जिन में से एक कांवड़ यात्रा भी है. ऐसा नहीं है कि भारत में कांवड़ यात्रा कोई नया चलन है, पर जब से देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, तब से इस यात्रा का काफी महिमामंडन किया गया है. इसे ऐसा उत्सव बना दिया है कि लोगों में कांवड़ यात्रा करने की होड़ सी मच गई है. दरअसल, जब कोई मान्यता भेड़चाल में बदल जाती है, तो उस से भक्तों को कोई फायदा हो या न हो, पर देश और समाज को काफी नुकसान होता है. साल 2022 की कांवड़ यात्रा पर नजर डालें, तो 13 दिन की इस कांवड़ यात्रा ने शासन और प्रशासन के सारे इंतजाम फेल कर के रख दिए. ऋषिकेश, हरिद्वारदिल्ली हाईवे कांवडि़यों और उन के वाहनों की भीड़ से अटा हुआ था.
इस से दूसरे उन यात्रियों को परेशानी हो रही थी, जो अपने रोजमर्रा के कामों पर घर से निकले हुए थे. शिव मंदिरों पर जल चढ़ाने से एक दिन पहले यानी सोमवार, 25 जुलाई, 2022 को देहरादून से कुमाऊं और उत्तर प्रदेश जाने वाली बसें नेपाली फार्म इलाके तक ही जा सकीं. यात्रा का आखिरी दिन होने के चलते सोमवार को कांवडि़यों की भीड़ से गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से ले कर ज्वालापुर तक 4 किलोमीटर का इलाका पूरी तरह से जाम हो गया था. हरिद्वार से सप्लाई नहीं मिल पाने के चलते देहरादून के तीनों सीएनजी पंपों पर सोमवार को सीएनजी गैस की किल्लत रही थी. सोमवार, 25 जुलाई को 60 लाख शिव भक्तों ने गंगाजल भर कर अपने प्रदेशों के लिए वापसी की थी. अब तक 3 करोड़, 50 लाख, 70 हजार श्रद्धालु वापसी कर चुके थे. इस सब में पुलिस को यातायात व्यवस्था बनाने के लिए पसीना बहाना पड़ा था. इस साल 14 जुलाई, 2022 को कांवड़ यात्रा शुरू हुई थी. यात्रा शुरू होने से पहले ही शिव भक्तों का हरिद्वार और ऋषिकेश पहुंचना शुरू हो गया था. याद रहे कि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 2 साल कांवड़ यात्रा की इजाजत नहीं मिली थी. इस बार शासन और प्रशासन ने बिना किसी पाबंदी के कांवड़ यात्रा करने की इजाजत दे दी थी. पुलिस प्रशासन ने 4 करोड़ कांवडि़यों के आने की उम्मीद जताई थी. 4 करोड़ लोग उस यात्रा पर निकले हुए थे,
जिस का फल उन्हें पता नहीं कब मिलेगा, पर इस से दूसरे लोगों को जो परेशानियां हुईं, वे तो साफ नजर आईं. एक मामले से इसे समझते हैं. रविवार, 24 जुलाई, 2022 को उत्तराखंड में कांवड़ स्पैशल ट्रेन में बम की सूचना से हड़कंप मच गया था. यह ट्रेन दिल्ली से यात्रियों को ले कर हरिद्वार पहुंची थी. पुलिस और बम निरोधक दस्ते ने आननफानन में यात्रियों को अलर्ट करते हुए स्टेशन में छानबीन की, लेकिन बम कहीं नहीं मिला. जांच में सामने आया कि बम होने की सूचना फर्जी थी. कांवडि़यों का किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था और गाजियाबाद के रहने वाले रिंकू वर्मा ने कंट्रोल रूम में ट्रेन में बम होने की झूठी सूचना दे दी. बाद में पुलिस ने रिंकू वर्मा को गिरफ्तार कर लिया था. वह नशे में था और कांवड़ लेने हरिद्वार आया था. इस बात से यह तो साबित हो गया कि रिंकू वर्मा का कांवड़ यात्रा में आने का कोई धार्मिक मकसद नहीं था और उस की वजह से जो तनाव का माहौल बना उस से दूसरे लोगों की जान सांसत में आ गई थी. इसी तरह कांवड़ यात्रा के बीच उत्तर प्रदेश के बिजनौर में माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई. जानकारी के मुताबिक, भगवा रंग का साफा पहने 2 लोगों ने एक मजार में तोड़फोड़ की. उन दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
बाद में पता चला कि वे दोनों मुसलिम समुदाय से थे. यहां सवाल उठता है कि ऐसी धार्मिक यात्रा से क्या फायदा, जो लोगों की भावनाओं को भड़काने की वजह बने? ऐसे लोगों पर हैलीकौप्टर से फूलों की बारिश करने की क्या तुक है, जो जरा सी बात पर भड़क कर पूरा रोड ही जाम कर दें या मारपीट करने पर उतारू हो जाएं? इसी साल की कांवड़ यात्रा का एक और मामला है. मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव के कांवडि़ए शिवरात्रि की सुबह हरिद्वार से गंगाजल ले कर वापस लौट रहे थे. मंगलौर, उत्तर प्रदेश के पास पानीपत, हरियाणा के गांव चुलकाना के डाक कांवडि़यों के साथ आगे निकलने को ले कर उन की कहासुनी हो गई. इसी दौरान हरियाणा के कांवडि़यों ने लाठीडंडों और चाकुओं से उन पर हमला बोल दिया. नतीजतन, सिर पर लाठी लगने से सिसौली गांव के कार्तिक की मौत हो गई, जबकि कई और लड़के घायल हो गए. कार्तिक सेना में नौकरी करता था. वैसे, हत्या की वारदात के बाद भाग रहे कांवडि़यों को पकड़ लिया गया था.
कांवड़ यात्रा के कुछ छिपे नुकसान भी होते हैं. सब से पहले तो जो लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं, वे तकरीबन एक महीने तक ऐसा कोई काम नहीं करते हैं, जिस से देश या समाज का कोई ठोस भला हो. बहुत से तो बेरोजगार होते हैं, जबकि कई सारे लोग अपने कामधंधे छोड़ कर इस यात्रा के भागीदार बनते हैं, जिस से उन्हें अपनी कमाई से हाथ धोना पड़ता है. चूंकि इन लोगों में पिछड़े और दलित समाज की भी काफी तादाद होती है, तो उन में से कइयों के घरों में तो फाके तक पड़ जाते हैं, जबकि इन दिनों में अगर वे लोग मेहनतमजदूरी कर के चार पैसे कमाते तो उन्हें ऊपर वाले से कुछ मांगना ही नहीं पड़ता. यह यात्रा मुफ्त में भी नहीं होती है. मतलब, यह आप का खर्चा बढ़ा देती है, क्योंकि चाहे हरिद्वार हो या ऋषिकेश, वहां कोई मुफ्त में तो आप को ठहराएगा नहीं.
लिहाजा, वहां के होटल वगैरह, खाने की चीजें कई गुना महंगी हो जाती हैं. हरिद्वार में इन दिनों में केला 80 से 90 रुपए प्रति दर्जन बिका, तो सेब 100 से 200 रुपए प्रति किलो तक लोगों को खरीदना पड़ा. कांवड़ मेले में जाम और रूट बदलने से फलसब्जी की ढुलाई महंगी हुई. कई फलसब्जी कम मात्रा में उपलब्ध रहे. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि दूसरे राज्यों से फलसब्जी ले कर ज्वालापुर मंडी पहुंचने वाले वाहन 4 दिन से मंडी नहीं पहुंचे थे. जो छोटे वाहन सब्जीफल ले कर आ भी रहे थे, वे घंटों जाम में फंसे रहे थे. कुलमिला कर यही कह सकते हैं कि देश की नौजवान पीढ़ी को सोचसमझ कर ऐसी बातों पर विचार करना चाहिए कि उन के लिए कौन सी बात फायदे की है और कौन सी नुकसान की. ऐसी कांवड़ यात्रा किस काम की, जो किसी देश की ताकत नौजवान पीढ़ी को कमजोर करे? लिहाजा, समय रहते अपने हाथों पर भरोसा करें और कदमों को ऐसी मंजिल की तरफ ले जाएं, जहां एक मेहनतकश तबके को रोजगार से भटकाने की साजिश के लिए कोई जगह न हो.