प्यार की कोई उम्र नहीं होती, यह किसी भी उम्र में किसी से हो सकता है. जैसे 2 शादीशुदा बेटियों की मां मिथिलेश को गांव के ही 4 जवान बेटों के पिता किरणपाल से हो गया था. जमाने की रुसवाई को नजरंदाज कर यह प्यार 10 सालों तक चला. इस के बाद इस का जो खूनी अंजाम हुआ, वह… ‘अंजलि मैं तुम्हें भूल जाऊं ये हो नहीं सकता और तुम मुझे भूल जाओ ये मैं होने नहीं दूंगा…’फिल्म ‘धड़कन’ में सुनील शेट्टी ने यह डायलौग क्या मारा, नौजवानों को अपनी प्रेमिकाओं को अपनी मोहब्बत की ताकत दिखाने का जबरदस्त मसाला मिल गया.
बहुत से आशिकों ने सिचुएशन के मुताबिक इस डायलौग में थोड़ाबहुत फेरबदल कर के इजहारे मोहब्बत किया होगा. हर प्रेमी किसी न किसी मौके पर अपनी महबूबा के सामने यह डायलौग जरूर मारता है. इस डायलौग को सुन कर प्रेमिकाओं को भी लगता है कि उन का प्रेमी उन के लिए कितना पजेसिव है. 2 दशक से यह डायलौग प्रेमी दिलों की तड़प जाहिर करता आ रहा है.लेकिन जब सुनील शेट्टी के डायलौग की तर्ज पर किरणपाल ने तमंचा लहराते हुए अपनी प्रेमिका मिथिलेश से कहा, ‘‘तू मेरी हो न सकी और मैं तुझे किसी और की होने न दूंगा…’’ तो मारे डर के मिथिलेश अपनी जान बचाने के लिए भागी.
मगर उस दिन किरणपाल के सिर पर इंतकाम का ऐसा भूत सवार था कि उस ने अपनी प्रेमिका पर गोली दाग दी. धांय… धांय… एक नहीं 2-2 गोलियां. वह तय कर के आया था कि बस अब यह प्रेम कहानी यहीं खत्म कर देनी है.पहली गोली लगते ही मिथिलेश जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. किरणपाल उस के पास आया. खून से लथपथ जमीन पर पड़ी छटपटाती प्रेमिका को देख कर उस की आंखें भीग गईं.
वह पलभर उसे टकटकी लगाए निहारता रहा और फिर रोतेरोते उस के शरीर पर झुक गया. वह उस के तड़पते जिस्म को अपनी छाती से भींच कर रोने लगा और तमंचे का स्ट्रिगर फिर दबा दिया.
इस बार गोली मिथिलेश की छाती पर लगी और कुछ ही देर में उस की छटपटाहट भी शांत हो गई. आंखें मुंद गईं और गरदन एक ओर को लुढ़क गई. किरणपाल प्रेमिका के मृत शरीर से लिपट गया. उसे अपनी बांहों में लपेट कर फूटफूट कर रोने लगा.अचानक उस ने तमंचे की नाल अपनी कनपटी से लगाई और स्ट्रिगर फिर दबा दिया. धांय के साथ गोली निकली और किरणपाल के लगी. यानी मिथिलेश को मार कर किरणपाल ने अपनी भी इहलीला समाप्त कर ली.
दोनों के शव एकदूसरे से लिपटे हुए जब लोगों ने देखे तो फिर जितने मुंह उतनी बातें, क्योंकि मामला ही कुछ ऐसा था. जिन बातों को बदनामी के डर से अब तक दबाछिपा कर रखा गया था, मौत के इस मंजर ने उन्हें उघाड़ कर रख दिया.प्रेम में असफल प्रेमी के इंतकाम की यह भयानक कहानी है मेरठ के परीक्षितगढ़ के गांव दुर्वेशपुर की. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ये युवावस्था में कदम रखने वाले किन्हीं 18-20 साल के प्रेमी युगल की कहानी नहीं, बल्कि 2 शादीशुदा और जवान बच्चों के अधेड़ मातापिता के प्रेम और उस के अंत की कहानी थी.
मेरठ के परीक्षितगढ़ के गांव दुर्वेशपुर में 15 जुलाई की सुबह हुई इस वारदात से इलाके में हड़कंप मच गया.उस रात किरणपाल रात भर जागता रहा. बारबार सिरहाने तकिए के नीचे रखे तमंचे को निकाल कर बिस्तर पर उठ बैठता. लोडेड तमंचे को होंठों से लगाता फिर उसे अंगुलियों के बीच घुमाता दरवाजे से कभी बाहर कभी अंदर होता फिर बिस्तर पर आ बैठता.
उस की बेचैनी चरम पर थी. वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच चुका था और उस निष्कर्ष से अब उसे कोई विमुख नहीं कर सकता था. 10 साल की मोहब्बत आज अपने अंजाम पर पहुंचने वाली थी.पौ फटते ही किरणपाल अपनी पैंट में तमंचा खोंस कर निकल पड़ा. उस के अंदर आग सी लगी हुई थी. आज फैसला हो जाना था. वह अब दोहरी जिंदगी से तंग आ चुका था. अपने प्यार को वह पूरी तरह पा लेना चाहता था, मगर वह उसे हासिल नहीं हो रहा था. और अब तो वह उस से मिलना ही नहीं चाहती थी. बातबात पर उसे ताने देने लगी थी. पीछा छोड़ने को कहने लगी थी.
उस के घर से कोई 400 मीटर की दूरी पर था उस की प्रेमिका मिथिलेश का घर. उसे पता था कि हर रोज वह भोर में घर के पीछे गोबर बटोरने आती है. किरणपाल घात लगा कर वहीं बैठ गया और उस के आने का इंतजार करने लगा.
साढ़े 6 बजे के करीब उस की प्रेमिका मिथिलेश हाथों में कूड़ा उठाए घर से निकली और उसी ओर चल पड़ी. घर के पीछे खाली जगह थी, जहां गायभैंसें गोबर कर जाती थीं. मिथिलेश ने हाथ का कूड़ा अभी फेंका ही था कि किरणपाल आड़ से निकल कर सामने आ खड़ा हुआ. उस की लंबी गुच्छेदार मूंछों के पीछे उस का उग्र चेहरा देख कर मिथिलेश डर गई.
मिथिलेश का पति धीर सिंह उस वक्त घर पर ही था, ऐसे में किरणपाल कोई बखेड़ा न खड़ा करे, यह सोच कर वह घर की ओर भागने को हुई. मगर किरणपाल ने उसे मौका ही नहीं दिया और तमंचा निकाल कर उस पर गोली चला दी.गोली लगने के बाद मिथिलेश जान बचाने के लिए चंद कदम भागी, मगर फिर लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का शरीर गोली लगने से छटपटा रहा था. किरणपाल उस के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने डूबीडूबी आंखों से किरणपाल की ओर देखा, जैसे पूछ रही हो, ‘ये तुम ने क्या किया?’
किरणपाल भी उसे यूं तड़पता देख रो पड़ा. मगर अब उस के सामने कोई रास्ता नहीं बचा था. वह रोतेरोते घुटनों के बल बैठ गया और तड़पती प्रेमिका को बाहों में ले कर बोला, ‘‘तू मेरी हो न सकी, मैं तुझे किसी दूसरे की होने न दूंगा मिथिलेश…’’कुछ पल वह उसे सीने से लगा कर रोता रहा, फिर उस ने उस पर दोबारा फायर झोंक दिया. दूसरी गोली लगते ही मिथिलेश जोर से तड़पी और थोड़ी देर में शांत हो गई.