अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 1

प्यार की कोई उम्र नहीं होती, यह किसी भी उम्र में किसी से हो सकता है. जैसे 2 शादीशुदा बेटियों की मां मिथिलेश को गांव के ही 4 जवान बेटों के पिता किरणपाल से हो गया था. जमाने की रुसवाई को नजरंदाज कर यह प्यार 10 सालों तक चला. इस के बाद इस का जो खूनी अंजाम हुआ, वह… ‘अंजलि मैं तुम्हें भूल जाऊं ये हो नहीं सकता और तुम मुझे भूल जाओ ये मैं होने नहीं दूंगा…’फिल्म ‘धड़कन’ में सुनील शेट्टी ने यह डायलौग क्या मारा, नौजवानों को अपनी प्रेमिकाओं को अपनी मोहब्बत की ताकत दिखाने का जबरदस्त मसाला मिल गया.

बहुत से आशिकों ने सिचुएशन के मुताबिक इस डायलौग में थोड़ाबहुत फेरबदल कर के इजहारे मोहब्बत किया होगा. हर प्रेमी किसी न किसी मौके पर अपनी महबूबा के सामने यह डायलौग जरूर मारता है. इस डायलौग को सुन कर प्रेमिकाओं को भी लगता है कि उन का प्रेमी उन के लिए कितना पजेसिव है. 2 दशक से यह डायलौग प्रेमी दिलों की तड़प जाहिर करता आ रहा है.लेकिन जब सुनील शेट्टी के डायलौग की तर्ज पर किरणपाल ने तमंचा लहराते हुए अपनी प्रेमिका मिथिलेश से कहा, ‘‘तू मेरी हो न सकी और मैं तुझे किसी और की होने न दूंगा…’’ तो मारे डर के मिथिलेश अपनी जान बचाने के लिए भागी.

मगर उस दिन किरणपाल के सिर पर इंतकाम का ऐसा भूत सवार था कि उस ने अपनी प्रेमिका पर गोली दाग दी. धांय… धांय… एक नहीं 2-2 गोलियां. वह तय कर के आया था कि बस अब यह प्रेम कहानी यहीं खत्म कर देनी है.पहली गोली लगते ही मिथिलेश जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. किरणपाल उस के पास आया. खून से लथपथ जमीन पर पड़ी छटपटाती प्रेमिका को देख कर उस की आंखें भीग गईं.
वह पलभर उसे टकटकी लगाए निहारता रहा और फिर रोतेरोते उस के शरीर पर झुक गया. वह उस के तड़पते जिस्म को अपनी छाती से भींच कर रोने लगा और तमंचे का स्ट्रिगर फिर दबा दिया.

इस बार गोली मिथिलेश की छाती पर लगी और कुछ ही देर में उस की छटपटाहट भी शांत हो गई. आंखें मुंद गईं और गरदन एक ओर को लुढ़क गई. किरणपाल प्रेमिका के मृत शरीर से लिपट गया. उसे अपनी बांहों में लपेट कर फूटफूट कर रोने लगा.अचानक उस ने तमंचे की नाल अपनी कनपटी से लगाई और स्ट्रिगर फिर दबा दिया. धांय के साथ गोली निकली और किरणपाल के लगी. यानी मिथिलेश को मार कर किरणपाल ने अपनी भी इहलीला समाप्त कर ली.

दोनों के शव एकदूसरे से लिपटे हुए जब लोगों ने देखे तो फिर जितने मुंह उतनी बातें, क्योंकि मामला ही कुछ ऐसा था. जिन बातों को बदनामी के डर से अब तक दबाछिपा कर रखा गया था, मौत के इस मंजर ने उन्हें उघाड़ कर रख दिया.प्रेम में असफल प्रेमी के इंतकाम की यह भयानक कहानी है मेरठ के परीक्षितगढ़ के गांव दुर्वेशपुर की. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ये युवावस्था में कदम रखने वाले किन्हीं 18-20 साल के प्रेमी युगल की कहानी नहीं, बल्कि 2 शादीशुदा और जवान बच्चों के अधेड़ मातापिता के प्रेम और उस के अंत की कहानी थी.

मेरठ के परीक्षितगढ़ के गांव दुर्वेशपुर में 15 जुलाई की सुबह हुई इस वारदात से इलाके में हड़कंप मच गया.उस रात किरणपाल रात भर जागता रहा. बारबार सिरहाने तकिए के नीचे रखे तमंचे को निकाल कर बिस्तर पर उठ बैठता. लोडेड तमंचे को होंठों से लगाता फिर उसे अंगुलियों के बीच घुमाता दरवाजे से कभी बाहर कभी अंदर होता फिर बिस्तर पर आ बैठता.

उस की बेचैनी चरम पर थी. वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच चुका था और उस निष्कर्ष से अब उसे कोई विमुख नहीं कर सकता था. 10 साल की मोहब्बत आज अपने अंजाम पर पहुंचने वाली थी.पौ फटते ही किरणपाल अपनी पैंट में तमंचा खोंस कर निकल पड़ा. उस के अंदर आग सी लगी हुई थी. आज फैसला हो जाना था. वह अब दोहरी जिंदगी से तंग आ चुका था. अपने प्यार को वह पूरी तरह पा लेना चाहता था, मगर वह उसे हासिल नहीं हो रहा था. और अब तो वह उस से मिलना ही नहीं चाहती थी. बातबात पर उसे ताने देने लगी थी. पीछा छोड़ने को कहने लगी थी.

उस के घर से कोई 400 मीटर की दूरी पर था उस की प्रेमिका मिथिलेश का घर. उसे पता था कि हर रोज वह भोर में घर के पीछे गोबर बटोरने आती है. किरणपाल घात लगा कर वहीं बैठ गया और उस के आने का इंतजार करने लगा.

साढ़े 6 बजे के करीब उस की प्रेमिका मिथिलेश हाथों में कूड़ा उठाए घर से निकली और उसी ओर चल पड़ी. घर के पीछे खाली जगह थी, जहां गायभैंसें गोबर कर जाती थीं. मिथिलेश ने हाथ का कूड़ा अभी फेंका ही था कि किरणपाल आड़ से निकल कर सामने आ खड़ा हुआ. उस की लंबी गुच्छेदार मूंछों के पीछे उस का उग्र चेहरा देख कर मिथिलेश डर गई.

मिथिलेश का पति धीर सिंह उस वक्त घर पर ही था, ऐसे में किरणपाल कोई बखेड़ा न खड़ा करे, यह सोच कर वह घर की ओर भागने को हुई. मगर किरणपाल ने उसे मौका ही नहीं दिया और तमंचा निकाल कर उस पर गोली चला दी.गोली लगने के बाद मिथिलेश जान बचाने के लिए चंद कदम भागी, मगर फिर लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का शरीर गोली लगने से छटपटा रहा था. किरणपाल उस के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने डूबीडूबी आंखों से किरणपाल की ओर देखा, जैसे पूछ रही हो, ‘ये तुम ने क्या किया?’

किरणपाल भी उसे यूं तड़पता देख रो पड़ा. मगर अब उस के सामने कोई रास्ता नहीं बचा था. वह रोतेरोते घुटनों के बल बैठ गया और तड़पती प्रेमिका को बाहों में ले कर बोला, ‘‘तू मेरी हो न सकी, मैं तुझे किसी दूसरे की होने न दूंगा मिथिलेश…’’कुछ पल वह उसे सीने से लगा कर रोता रहा, फिर उस ने उस पर दोबारा फायर झोंक दिया. दूसरी गोली लगते ही मिथिलेश जोर से तड़पी और थोड़ी देर में शांत हो गई.

कलंक : आखिर किसने किया रधिया की बेटी गंगा को मैला

अपनी बेटी गंगा की लाश के पास रधिया पत्थर सी बुत बनी बैठी थी. लोग आते, बैठते और चले जाते. कोई दिलासा दे रहा था तो कोई उलाहना दे रहा था कि पहले ही उस के चालचलन पर नजर रखी होती तो यह दिन तो न देखना पड़ता.

लोगों के यहां झाड़ूबरतन करने वाली रधिया चाहती थी कि गंगा पढ़ेलिखे ताकि उसे अपनी मां की तरह नरक सी जिंदगी न जीनी पड़े, इसीलिए पास के सरकारी स्कूल में उस का दाखिला करवाया था, पर एक दिन भी स्कूल न गई गंगा. मजबूरन उसे अपने साथ ही काम पर ले जाती. सारा दिन नशे में चूर रहने वाले शराबी पति गंगू के सहारे कैसे छोड़ देती नन्ही सी जान को?

गंगू सारा दिन नशे में चूर रहता, फिर शाम को रधिया से पैसे छीन कर ठेके पर जाता, वापस आ कर मारपीट करता और नन्ही गंगा के सामने ही रधिया को अपनी वासना का शिकार बनाता.

यही सब देखदेख कर गंगा बड़ी हो रही थी. अब उसे अपनी मां के साथ काम पर जाना अच्छा नहीं लगता था. बस, गलियों में इधरउधर घूमनाफिरना… काजलबिंदी लगा कर मतवाली चाल चलती गंगा को जब लड़के छेड़ते, तो उसे बहुत मजा आता.

रधिया लाख कहती, ‘अब तू बड़ी हो गई है… मेरे साथ काम पर चलेगी तो मुझे भी थोड़ा सहारा हो जाएगा.’

गंगा तुनक कर कहती, ‘मां, मुझे सारी जिंदगी यही सब करना है. थोड़े दिन तो मुझे मजे करने दे.’

‘अरी कलमुंही, मजे के चक्कर में कहीं मुंह काला मत करवा आना. मुझे तो तेरे रंगढंग ठीक नहीं लगते. यह क्या… अभी से बनसंवर कर घूमतीफिरती रहती है?

इस पर गंगा बड़े लाड़ से रधिया के गले में बांहें डाल कर कहती, ‘मां, मेरी सब सहेलियां तो ऐसे ही सजधज कर घूमतीफिरती हैं, फिर मैं ने थोड़ी काजलबिंदी लगा ली, तो कौन सा गुनाह कर दिया? तू चिंता न कर मां, मैं ऐसा कुछ न करूंगी.’

पर सच तो यही था कि गंगा भटक रही थी. एक दिन गली के मोड़ पर अचानक पड़ोस में ही रहने वाले 2 बच्चों के बाप नंदू से टकराई, तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई. इस के बाद तो वह जानबूझ कर उसी रास्ते से गुजरती और नंदू से टकराने की पूरी कोशिश करती.

नंदू भी उस की नजरों के तीर से खुद को न बचा सका और यह भूल बैठा कि उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. अब तो दोनों छिपछिप कर मिलते और उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दी थीं.

पर इश्क और मुश्क कब छिपाए छिपते हैं. एक दिन नंदू की पत्नी जमना के कानों तक यह बात पहुंच ही गई, तो उस ने रधिया की खोली के सामने खड़े हो कर गंगा को खूब खरीखोटी सुनाई, ‘अरी गंगा, बाहर निकल. अरी कलमुंही, तू ने मेरी गृहस्थी क्यों उजाड़ी? इतनी ही आग लगी थी, तो चकला खोल कर बैठ जाती. जरा मेरे बच्चों के बारे में तो सोचा होता. नाम गंगा और काम देखो करमजली के…’

3 दिन के बाद गंगा और नंदू बदनामी के डर से कहीं भाग गए. रोतीपीटती जमना रोज गंगा को कोसती और बद्दुआएं देती रहती. तकरीबन 2 महीने तक तो नंदू और गंगा इधरउधर भटकते रहे, फिर एक दिन मंदिर में दोनों ने फेरे ले लिए और नंदू ने जमना से कह दिया कि अब गंगा भी उस की पत्नी है और अगर उसे पति का साथ चाहिए, तो उसे गंगा को अपनी सौतन के रूप में अपनाना ही होगा.

मरती क्या न करती जमना, उसे गंगा को अपनाना ही पड़ा. पर आखिर तो जमना उस के बच्चों की मां थी और उस के साथ उस ने शादी की थी, इसलिए नंदू पर पहला हक तो उसी का था.

शादी के 3 साल बाद भी गंगा मां नहीं बन सकी, क्योंकि नंदू की पहले ही नसबंदी हो चुकी थी. यह बात पता चलते ही गंगा खूब रोई और खूब झगड़ा भी किया, ‘क्यों रे नंदू, जब तू ने पहले ही नसबंदी करवा रखी थी तो मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की?’

नंदू के कुछ कहने से पहले ही जमना बोल पड़ी, ‘आग तो तेरे ही तनबदन में लगी थी. अरी, जिसे खुद ही बरबाद होने का शौक हो उसे कौन बचा सकता है?’

उस दिन के बाद गंगा बौखलाई सी रहती. बारबार नंदू से जमना को छोड़ देने के लिए कहती, ‘नंदू, चल न हम कहीं और चलते हैं. जमना को छोड़ दे. हम दूसरी खोली ले लेंगे.’

इस पर नंदू उसे झिड़क देता, ‘और खोली के पैसे क्या तेरा शराबी बाप देगा? और फिर जमना मेरी पत्नी है. मेरे बच्चों की मां है. मैं उसे नहीं छोड़ सकता.’

इस पर गंगा दांत पीसते हुए कहती, ‘उसे नहीं छोड़ सकता तो मुझे छोड़ दे.’

इस पर गंगू कोई जवाब नहीं देता. आखिर उसे 2-2 औरतों का साथ जो मिल रहा था. यह सुख वह कैसे छोड़ देता. पर गंगा रोज इस बात को ले कर नंदू से झगड़ा करती और मार खाती. जमना के सामने उसे अपना ओहदा बिलकुल अदना सा लगता. आखिर क्या लगती है वह नंदू की… सिर्फ एक रखैल.

जब वह खोली से बाहर निकलती तो लोग ताने मारते और खोली के अंदर जमना की जलती निगाहों का सामना करती. जमना ने बच्चों को भी सिखा रखा था, इसलिए वे भी गंगा की इज्जत नहीं करते थे. बस्ती के सारे मर्द उसे गंदी नजर से देखते थे.

मांबाप ने भी उस से सभी संबंध खत्म कर दिए थे. ऐसे में गंगा का जीना दूभर हो गया और आखिर एक दिन उस ने रेल के आगे छलांग लगा दी और रधिया की बेटी गंगा मैली होने का कलंक लिए दुनिया से चली गई.

एक रात की उजास : भाग 2

पार्क से लौटते समय रास्ते में रेल लाइन पड़ती है. ट्रेन की चीख सुन कर इस उम्र मेें भी वह डर जाती हैं. ट्रेन अभी काफी दूर थी फिर भी उन्होंने कुछ देर रुक कर लाइन पार करना ही ठीक समझा. दाईं ओर देखा तो कुछ दूरी पर एक लड़का पटरी पर सिर झुकाए बैठा था. वह धीरेधीरे चल कर उस तक पहुंचीं. लड़का उन के आने से बिलकुल बेखबर था. ट्रेन की आवाज निकट आती जा रही थी पर वह लड़का वहां पत्थर बना बैठा था. उन्होंने उस के खतरनाक इरादे को भांप लिया और फिर पता नहीं उन में इतनी ताकत कहां से आ गई कि एक झटके में ही उस लड़के को पीछे खींच लिया. ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल गई.

‘‘क्यों मरना चाहते हो, बेटा? जानते नहीं, कुदरत कोमल कोंपलों को खिलने के लिए विकसित करती है.’’

‘‘आप से मतलब?’’ तीखे स्वर में वह लड़का बोल पड़ा और अपने दोनों हाथों से मुंह ढक फूटफूट कर रोने लगा.

मालतीजी उस की पीठ को, उस के बालों को सहलाती रहीं, ‘‘तुम अभी बहुत छोटे हो. तुम्हें इस बात का अनुभव नहीं है कि इस से कैसी दर्दनाक मौत होती है.’’ मालतीजी की सर्द आवाज में आसन्न मृत्यु की सिहरन थी.

‘‘बिना खुद मरे किसी को यह अनुभव हो भी नहीं सकता.’’

लड़के का यह अवज्ञापूर्ण स्वर सुन कर मालतीजी समझाने की मुद्रा में बोलीं, ‘‘बेटा, तुम ठीक कहते हो लेकिन हमारा घर रेलवे लाइन के पास होने से मैं ने यहां कई मौतें देखी हैं. उन के शरीर की जो दुर्दशा होती है, देखते नहीं बनती.’’

लड़का कुछ सोचने लगा फिर धीमी आवाज में बोला,‘‘मैं मरने से नहीं डरता.’’

‘‘यह बताने की तुम्हें जरूरत नहीं है…लेकिन मेरे  बच्चे, इस में इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि पूरी तरह मौत हो ही जाए. हाथपैर भी कट सकते हैं. पूरी जिंदगी अपाहिजों की तरह गुजारनी पड़ सकती है. बोलो, है मंजूर?’’

लड़के ने इनकार में गरदन हिला दी.

‘‘मेरे पास दूसरा तरीका है,’’ मालतीजी बोलीं, ‘‘उस से नींद में ही मौत आ जाएगी. तुम मेरे साथ मेरे घर चलो. आराम से अपनी समस्या बताओ फिर दोनों एकसाथ ही नींद की गोलियां खाएंगे. मेरा भी मरने का इरादा है.’’

लड़का पहले तो उन्हें हैरान नजरों से देखता रहा फिर अचानक बोला, ‘‘ठीक है, चलिए.’’

अंधेरा गहरा गया था. अब उन्हें बिलकुल धुंधला दिखाई दे रहा था. लड़के ने उन का हाथ पकड़ लिया. वह रास्ता बताती चलती रहीं.

उन्हें नीहार के हाथ का स्पर्श याद आया. उस समय वह जवान थीं और छोटा सा नीहार उन की उंगली थामे इधरउधर कूदताफांदता चलता था.

फिर उन का पोता अंकुर अपनी दादी को बड़ी सावधानी से उंगली पकड़ कर बाजार ले जाता था.

आज इस किशोर के साथ जाते समय वह वाकई असहाय हैं. यह न होता तो शायद गिर ही पड़तीं. वह तो उन्हेें बड़ी सावधानी से पत्थरों, गड्ढों और वाहनों से बचाता हुआ ले जा रहा था. उस ने मालतीजी के हाथ से चाबी ले कर ताला खोला और अंदर जा कर बत्ती जलाई तब उन की जान में जान आई.

‘‘खाना तो खाओगे न?’’

‘‘जी, भूख तो बड़ी जोर की लगी है. क्योंकि आज परीक्षाफल निकलते ही घर में बहुत मार पड़ी. खाना भी नहीं दिया मम्मी ने.’’

‘‘आज तो 10वीं बोर्ड का परीक्षाफल निकला है.’’

‘‘जी, मेरे नंबर द्वितीय श्रेणी के हैं. पापा जानते हैं कि मैं पढ़ने में औसत हूं फिर भी मुझ से डाक्टर बनने की उम्मीद करते हैं और जब भी रिजल्ट आता है धुन कर रख देते हैं. फिर मुझ पर हुए खर्च की फेहरिस्त सुनाने लगते हैं. स्कूल का खर्च, ट्यूशन का खर्च, यहां तक कि खाने का खर्च भी गिनवाते हैं. कहते हैं, मेरे जैसा मूर्ख उन के खानदान में आज तक पैदा नहीं हुआ. सो, मैं इस खानदान से अपना नामोनिशान मिटा देना चाहता हूं.’’

किशोर की आंखों से विद्रोह की चिंगारियां फूट रही थीं.

‘‘ठीक है, अब शांत हो जाओ,’’ मालती सांत्वना देते बोलीं, ‘‘कुछ ही देर बाद तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे.’’

‘…और मेरे भी,’ उन्होंने मन ही मन जोड़ा और रसोईघर में चली आईं. परिश्रम से लौकी के कोफ्ते बनाए. थोड़ा दही रखा था उस में बूंदी डाल कर स्वादिष्ठ रायता तैयार किया. फिर गरमगरम परांठे सेंक कर उसे खिलाने लगीं.

‘‘दादीजी, आप के हाथों में गजब का स्वाद है,’’ वह खुश हो कर किलक रहा था. कुछ देर पहले का आक्रोश अब गायब था.

उसे खिला कर खुद खाने बैठीं तो लगा जैसे बरसों बाद अन्नपूर्णा फिर उन के हाथों में अवतरित हो गई थीं. लंबे अरसे बाद इतना स्वादिष्ठ खाना बनाया था. आज रात को कोफ्तेपरांठे उन्होेंने निर्भय हो कर खा लिए. न बदहजमी का डर न ब्लडप्रेशर की चिंता. आत्महत्या के खयाल ने ही उन्हें निश्चिंत कर   दिया था.

खाना खाने के बाद मालती बैठक का दरवाजा बंद करने गईं तो देखा वह किशोर आराम से गहरी नींद में सो रहा था. उन के मन में एक अजीब सा खयाल आया कि सालों से तो वह अकेली जी रही हैं. चलो, मरने के लिए तो किसी का साथ मिला.

मालती उस किशोर को जगाने को हुईं लेकिन नींद में उस का चेहरा इस कदर लुभावना और मासूम लग रहा था कि उसे जगाना उन्हें नींद की गोलियां खिलाने से भी बड़ा क्रूर काम लगा. उस के दोनों पैर फैले हुए थे. बंद आंखें शायद कोई मीठा सा सपना देख रही थीं क्योंकि होंठों के कोनों पर स्मितरेखा उभर आई थी. किशोर पर उन की ममता उमड़ी. उन्होंने उसे चादर ओढ़ा दी.

‘चलो, अकेले ही नींद की गोलियां खा ली जाएं,’ उन्होंने सोचा और फिर अपने स्वार्थी मन को फटकारा कि तू तो मर जाएगी और सजा भुगतेगा यह निरपराध बच्चा. इस से तो अच्छा है वह 1 दिन और रुक जाए और वह आत्महत्या की योजना स्थगित कर लेट गईं.

 

अपना बेटा -भाग 3 : मामाजी को देख क्यों परेशान हो उठे अंजलि और मुकेश

मुकेश यह भी समझ रहा था कि मामाजी की नजर उस के और अंजलि के पैसों पर थी. उन्हें लग रहा था कि उन का एक बच्चा भी अगर मेरे घर आ गया तो बाकी के परिवार का मेरे घर पर अपनेआप हक हो जाएगा. उसे आज भी याद है जब मामाजी की हर चाल नाकाम रही तो खीज कर वह चिल्ला पड़े थे, ‘अपने लोगों को दौलत देते हुए एतराज है पर गैरों में बांट कर खुश हो, तो जाओ आज के बाद हमारा तुम से कोई वास्ता नहीं.’

मामाजी जब अंतिम बार मिले तो बोले थे, ‘कान खोल कर तुम दोनों सुन लो, गैर गैर होते हैं, अपने अपने ही. और मैं यह साबित कर दूंगा.’

‘और आज यही साबित करने आए हैं. लगता है गगन को गैर साबित कर के ही जाएंगे, लेकिन मैं मामाजी की यह इच्छा पूरी नहीं होने दूंगा,’ सोचता हुआ मुकेश करवट बदल रहा था.

इधर अंजलि की आंखों से नींद जैसे गायब थी. जब रहा नहीं गया तो उठ कर वह गगन के कमरे की तरफ चल दी. उस का अंदाजा सही था, गगन जाग रहा था. रजत भी जागा हुआ था.

‘‘तू पागल है, गगन,’’ रजत बोला, ‘‘मामाजी ने कहा और तू ने उसे सच मान लिया. मामाजी हमारे ज्यादा अपने हैं या मम्मीपापा.’’

अंजलि के पीछे मुकेश भी आ गए. दोनों गगन के कमरे में अपराधियों की तरह आ कर बैठ गए. अंजलि ने गगन को देखा. उस की आंखें भरी हुई थीं.

‘‘गगन, तू ने खाना क्यों नहीं खाया?’’

गगन कुछ बोला नहीं. बस, मां की नजरों में देखता रहा.

‘‘ऐसे क्या देख रहा है? मैं क्या गैर हूं?’’ अंजलि रो पड़ी. उस के शब्दों में अपनापन और रोब दोनों थे, ‘‘मम्मी हूं मैं तेरी…कोई भी उठ कर कुछ कह देगा और तू मान लेगा? मेरी बात पर यकीन नहीं है? उस की बात सुन रहा

है जो सालों बाद अचानक उठ कर चला आया.

‘‘बेटे, अगर हम तेरे मातापिता न होते तो क्या तुम्हें इतने प्यार से रखते? क्या तुम्हें कभी महसूस हुआ कि हम ने तुम्हें रजत से कम चाहा है,’’ अंजलि के आंसू रुक ही नहीं रहे थे. फिर मुकेश की तरफ देख कर बोली, ‘‘तुम्हारे मामा को किसी का बसता घर देख खुशी नहीं होती. कहीं भी उलटीसीधी बातें बोलने लगते हैं. मालूम नहीं कब जाएंगे.’’

गगन नजरें झुकाए आंसू टपकाता रहा. उस का चेहरा बनबिगड़ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये अचानक तूफान कहां से आ गया. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में इस तरह के किसी तूफान का सामना करना पड़ेगा.

‘‘बेटे, मैं कभी तुम्हें नहीं बताता पर आज स्थिति ऐसी है कि बताना ही पड़ेगा,’’ मुकेश ने कहा, ‘‘अगर हम तुम्हें पराया जानते तो मैं अपनी वसीयत में सारी प्रापर्टी, बैंकबैलेंस सबकुछ, तुम तीनों के नाम न करता.’’

‘‘और मैं ने भी अपनी वसीयत में अपने हिस्से की सारी प्रापर्टी तुम दोनों के नाम ही कर दी है, ताकि कभी भी झगड़ा न हो सके. हमारे किसी बेटे का, अगर कभी दिल बदल भी जाए तो कानूनी फैसला न बदले,’’ अंजलि बोली, ‘‘तुम मामाजी की बातों पर ध्यान मत दो, बेटे.’’

गगन खामोशी से दोनों की बातें सुन रहा था. उसे लगा कि अगर वह कुछ भी बोला तो सिर्फ रुलाई ही बाहर आएगी.

सुबह अंजलि ने रजत को झकझोरा तो उस की नींद खुली.

‘‘गगन कहां है?’’ अंजलि की आवाज में घबराहट थी.

‘‘कहां है, मतलब? वह तो यहीं सो रहा था?’’ रजत बोला.

‘‘बाथरूम में होगा न?’’ रजत ने अधमुंदी आंखों से कहा.

‘‘कहीं नहीं है वह. पूरा घर छान लिया है मैं ने.’’

अंजलि लगभग चीख रही थी, ‘‘तू सोता रहा और तेरी बगल से उठ कर वह चला गया. बदतमीज, तुझे पता ही नहीं चला.’’

‘‘मम्मी, मुझे क्या पता… मम्मी, आप बेकार परेशान हो रही हैं, यहीं होगा, मैं देखता हूं,’’ रजत झटके से बिस्तर से उठ गया पर मन ही मन वह भी डर रहा था कि कहीं मम्मी की बात सच न हो.

‘‘कहीं घूमने निकल गया होगा, आज रविवार जो है? आ जाएगा,’’ मुकेश ने अंजलि को बहलाया. पर वह जानता था कि वह खुद से भी झूठ बोल कर तसल्ली दे रहा है.

अंजलि का देर से मन में रुका गुबार सहसा फूट पड़ा. वह फफक पड़ी. उस का मन किया कि मामाजी को कहे कि हो गई तसल्ली? पड़ गई दिल में ठंडक? साबित कर दिया तुम ने. अब जाओ, यहां से दफा हो जाओ? पर प्रत्यक्ष में कुछ कह नहीं पाई.

‘‘दोपहर हो चुकी है. एक फोन तक नहीं किया उस ने जबकि पहले कभी यों बिना बताए वह कहीं जाता ही नहीं था,’’ मुकेश भी बड़बड़ाए. उन की आंखों से भी अनजानी आशंका से नमी उतर रही थी.

हर फोन पर मुकेश लपकता. अंजलि की आंखों में एक उम्मीद जाग जाती पर फौरन ही बुझ जाती. इस बीच मामाजी अपने घर वालों से फोन पर लंबी बातें कर के हंसते रहे. साफ लग रहा था कि वह इन दोनों को चिढ़ा रहे हैं.

अंधेरा हो गया, रजत लौटा, पर खाली हाथ. उस का चेहरा उतर गया था. वह सोच रहा था कि गगन कितना बेवकूफ है. कोई कुछ कहेगा तो हम उसे सच मान लेंगे?

तभी मामाजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘आजा, आजा, मेरे बेटे, आजा…बैठ…’’

अंजलि, मुकेश और रजत बाहर के दरवाजे की तरफ लपके. गगन मामाजी के पास बैठ रहा था.

‘‘कहां रहा सारा दिन? कहां घूम के आया? पानी पीएगा? अंजलि बेटे, इसे पानी दे, थकाहारा आया है,’’ मामा की आवाज में चटखारे लेने वाला स्वर था.

अंजलि तेजी से गगन की तरफ आई और उसे बांह से पकड़ कर मामाजी के पास से हटा दिया.

‘‘कहां गया था?’’ अंजलि चीखी थी, ‘‘बता के क्यों नहीं गया? ऐसे जाते हैं क्या?’’ और गुस्से से भर कर उसे थप्पड़ मारने लगी और फिर फफक- फफक कर रो पड़ी.

‘‘गगन, तेरा गुस्सा मम्मी पर था न, तो मुझे क्यों नहीं बता कर गया,’’ रजत बोला, ‘‘मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘ऐसे भी कोई चुपचाप निकलता है घर से, हम क्या इतने पराए हो गए?’’ मुकेश की आवाज भी भर्राई हुई थी.

सभी की दबी संवेदनाएं फूट पड़ी थीं.

‘‘मामाजी, आप कुछ कह रहे थे. कहिए न…’’ गगन ने अपने आंसू पोंछे… पर अंजलि ने पीछे से गगन को खींच लिया. पागल सी हो गई थी अंजलि, ‘‘कुछ नहीं कह रहे थे. तू जा अपने कमरे में. जो कुछ सुनना है मुझ से सुन. मैं तेरी मां हूं, ये तेरे पिता हैं और ये तेरा भाई.’’

मुकेश अंजलि को पकड़ रहा था.

‘‘मामाजी, आप कह रहे थे मैं इन का गोद लिया बेटा हूं, है न…’’

‘‘नहीं, तुम मेरे बेटे हो,’’ अंजलि ने गगन को जोर से झटक दिया.

गगन अंजलि के कंधे को थाम कर बोला, ‘‘मम्मी, मैं तो मामाजी को यही समझा रहा हूं कि मैं आप का बेटा हूं. मम्मी, अपने पैदा किए बच्चे को तो हर कोई पालता है, पर एक अनाथ बच्चे को इतना ढेर सारा प्यार दे कर तो शायद ही कोई औरत पालती होगी. उस से बड़ी बात तो यह है कि आप ने रजत और मुझ में कोई फर्क नहीं रखा, तो मैं क्यों मानूं मामाजी की बात.

‘‘आप ही मेरी मां हैं,’’ गगन ने अंजलि को अपनी बांहों में समेट लिया और मामाजी से कहा, ‘‘मामाजी, आप ने क्या सोचा था कि मुझे जब पता चलेगा कि मैं अनाथाश्रम से लाया गया हूं तो मैं अपनी असली मां को ढूंढ़ने निकल पड़ूंगा? मामाजी, क्यों ढूंढं़ ू मैं उस औरत को जिस को मेरी जरूरत कभी थी ही नहीं. उस ने मुझे पैदा कर के मुझ पर एहसान नहीं किया बल्कि मम्मीपापा ने मुझे पालापोसा, मुझे नाम दिया, मुझे भाई दिया, मुझे एक घर दिया, समाज में मुझे एक जगह दी. इन का एहसान मान सकता हूं मैं. वरना आज मैं सड़ रहा होता किसी अनाथाश्रम के मैलेकुचैले कमरों में.’’

रजत ने खुशी से गगन का हाथ दबा दिया. मुकेश ने गगन के सिर पर हाथ फिराया. अंजलि, मुकेश और रजत की आंखों में आंसू छलक आए. सब ने तीखी नजरों से मामाजी को देखा.

अंजलि तो नहीं बोली पर मुकेश से रहा नहीं गया. बोले, ‘‘क्यों मामाजी, आप तो गैर को गैर साबित करने आए थे न? और आप, आप तो मेरे अपने थे, तो आप ने गैरों सी दुश्मनी क्यों निभाई?’’

गगन अंजलि के गले से लिपट गया. अंजलि के आंसू फिर निकल आए.

अंजलि जानती थी अब उसे मामा जैसे किसी व्यक्ति से डरने की कोई जरूरत नहीं है. अब सच में उस के दोनों बेटे अपने ही हैं.            द्य

मौसी के प्रेमी से पंगा : भाग 3

रणवीर को थाने पर बुला कर अलगअलग तरीके से पूछताछ हुई. उसी तरह की पूछताछ रामसुमेर और आशीष से भी हुई. इसी बीच पुलिस को गांव की एक महिला से मालूम हुआ कि पारुल की मौत की वजह घर के कलह के कारण हुई है. उस ने पारुल की मौसी के बारे में बताया, जो इन दिनों परिवार के साथ नहीं रह रही थी. एक अन्य ग्रामीण महिला ने दबी जुबान में बताया कि रामसुमेर और पारुल की मौसी के बीच प्रेम संबंध थे, जो पारुल को पसंद नहीं थे.

इस एंगल से पुलिस ने एक बार फिर रणवीर और उन की पत्नी रूमा से पूछताछ की. रणवीर ने यह माना कि उस के घर पर चचेरे भाई का आनाजाना उस की बेटी को अच्छा नहीं लगता था. जबकि रामसुमेर उन की गैरमौजूदगी में घर आता था.पारुल से उस की जरा भी नहीं बनती थी. वह रामसुमेर का विरोध करती थी. रूमा ने पुलिस को बताया कि किस तरह से उस ने भी रामसुमेर को अपनी बहन से संबंध खत्म करने को ले कर डांट पिलाई थी.

उस के बाद पुलिस की नजर में रामसुमेर ही शक के दायरे में आ गया था. वह पहले भी पूछताछ से कतराता रहता था और थाने आने से इनकार कर दिया था.खैर, 8 जून, 2022 की रात के करीब 11 बजे रामसुमेर को उस के घर से गिरफ्तार कर घंटों थाने में बैठाए रखा. मानसिक दबाव बनाया और सरकारी गवाह बनाने का आश्वासन दिया. एक ही सवाल को कई पुलिसकर्मियों ने पूछा. आखिरकार वह टूट गया और उस ने हत्याकांड के बारे में जो बताया, वह काफी चौंकाने वाला था—

रणवीर यादव को लोग पप्पू यादव के नाम से भी जानते हैं. उस के पास खेती की जमीन थी, लेकिन शटरिंग का काम करता था. उस के 3 बच्चों में पारुल सब से बड़ी थी, 2 बेटे सर्वेश और राजेश हैं.
पारुल इंटरमीडिएट में पढ़ती थी. वह खूबसूरत खुशमिजाज लड़की थी. मोहनलालगंज में रोजाना पढ़ने जाती थी. उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. उस के पिता रणवीर की एक चचेरी साली मोरकली भी परिवार के साथ ही रहती थी. हालांकि वह मूलरूप से एटा जिले के रंगतेरी गांव की थी.
वह रणवीर के परिवार के साथ पिछले 3 सालों से रह रही थी. उस ने अपने कामकाज से परिवार के सभी सदस्यों का दिल जीत लिया था. जबकि अपनी जवानी और रूपरंग की बदौलत उस पर रामसुमेर लट्टू हो गया था. रिश्ते में साली होने चलते उस से मजाक किया करता था, जिस का कोई भी बुरा नहीं मानता था.

रामसुमेर गांव के लोगों की नजर में गलत चरित्र का युवक था. ग्रामीणों के साथ अकसर उस का झगड़ा होता रहता था. वह मोरकली को दिलोजान से चाहता था, लेकिन रणवीर यादव और रूमा देवी के चलते उस की दाल नहीं गलती थी.पारुल भी उस का जबतब विरोध किया करती थी. एक बार जब पारुल ने उन को रंगेहाथों प्रेमालाप में देख लिया था, तब उन्होंने पारुल को धमकी दी थी. जबकि रामसुमेर ने बताया कि मोरकली ने कहा था कि उस के प्यार की दुश्मन पारुल ही है.

रामसुमेर के मन में मोरकली की यह बात चुभ गई थी. उस के बाद से ही वह पारुल को अपने प्यार की राह से हटाने की ताक में रहने लगा था. संयोग से उसे 3 जून की रात को मौका मिल गया था. पारुल जैसे ही फोन पर बात करते हुए घर से बाहर निकली, रामसुमेर ने उसे दबोच लिया.
दरअसल, फोन मोरकली का था, जो रामसुमेर ने ही करवाया था. रामसुमेर उसे घर से कुछ दूर ले गया और उस के सिर पर डंडे से प्रहार किया. सिर पर चोट लगने से वह बेहोश हो गई और खेत में गिर गई थी. गिरने के बाद उस ने डंडे से उस की खूब पिटाई की. फिर बाद में उस के सिर पर गुस्से में ईंट से वार किया, जिस से उस की मौत हो गई. हत्या करने के बाद वह घर वापस लौट आया.

उस वक्त घर वाले पारुल की तलाश में लगे हुए थे. उन के साथ रामसुमेर भी तलाश करने लगा.
हत्या का जुर्म स्वीकार लेने के बाद 9 जून का उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल किया गया डंडा और ईंट भी बरामद कर ली. बाद में रामसुमेर को मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मौसी के प्रेमी से पंगा : भाग 1

कहानी मोहनलालगंज के कोराना गांव की है. एक सामान्य जीवन गुजारते हुए यादव परिवार में
शटरिंग का काम करने वाला घर का मुखिया रणवीर यादव जहां अपने कामकाज के सिलसिले में गांव और शहर एक करता रहता था, वहीं उस की पत्नी रूमा देवी घरेलू कामकाज में लगी रहती थी.
खाना पकाने, बरतन मांजने, कपड़े धोने, अनाज के रखरखाव से ले कर साफसफाई एवं मवेशियों का भी खयाल रखने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. उस में उन की छोटी बहन मोरकली और बेटी पारुल यादव भी मदद करती थी. वैसे पारुल पढ़ाई भी कर रही थी.

इन के अलावा पट्टीदारों में रामसुमेर यादव और उस का छोटा भाई आशीष यादव का भी अपने चचेरे बड़े भाई रणवीर यादव के घर आनाजाना लगा रहता था. परिवार में मेलजोल बना हुआ था. वक्तवेबक्त सभी एकदूसरे के सुखदुख में सहयोगी बने रहते थे.रामसुमेर खेतीकिसानी के कामों में लगा रहने वाला एक विवाहित युवक था. किंतु था मनचला. गांव की लड़कियों और दूसरी औरतों को वासना की नजरों से देखता था. मौका मिलते ही उन से मजाक करता और छेड़छाड़ तक कर दिया करता था.

एक रोज कालेज से लौटती पारुल को उस के चाचा रामसुमेर ने रास्ते में रोक लिया. उसे डांटते हुए बोला, ‘‘देख पारुल, तुझे आखिरी बार समझा रहा हूं, मेरे और मोरकली के बीच में तुम मत आओ. तुम बहुत छोटी हो इसलिए चेता रहा हूं.’’पारुल कुछ कहे बगैर चुपचाप अपने चाचा की बात सुन कर घर आ गई. लेकिन गुस्सा मन में दबा था. बरामदे में कुरसी के साथ लगी टेबल पर किताबों का बैग पटका और सीधे रसोई में घुस गई. पानी पीने के लिए स्टील का गिलास उठाया, लेकिन वह हाथ से छूट कर जमीन पर जा गिरा. गिलास वहीं पर 2-3 बार उछलने के बाद झनझनाहट की तेज आवाज के साथ घूमने लगा.
बगल के कमरे से उस की मां रूमा की आवाज आई, ‘‘पारुल, अरे ठीक से. बरतन पर अपना गुस्सा क्यों निकाल रही है.’’

असल में रूमा ने उसेघर में पैर पटकती हुई आते देखा था और घर में बरतन गिरने की वजह वह जानती थी. ऐसा तभी होता था, जब पारुल गुस्से में होती थी.‘‘क्या बात है, इधर आ कर बता तो!’’ वह बोली.
‘‘अरे कुछ नहीं मम्मी! मोरकली कहां है?’’ पारुल ने मम्मी को जवाब देते हुए पूछा.
‘‘क्यों? होगी कहीं? क्या किया मोरकली ने? ..और सुन वह तुम से बड़ी है मौसी कह कर नहीं बुला सकती हो.’’ मम्मी ने समझाया.‘‘कैसी मौसी मम्मी? उस के चलते ही हमें आज चाचा ने चार बातें सुना दी,’’ पारुल तुनकती हुई बोली.

‘‘कौन रामसुमेर! वह थोड़ी देर पहले ही तो यहां आया था. मैं ने उसे डांट कर भगाया. वह मोरकली की शिकायत कर रहा था.’’ रूमा बोली.तब तक पारुल ने मम्मी के पास आ कर रास्ते में चाचा द्वारा कही गई बात बता दी.इस पर रूमा बोली, ‘‘अच्छा तो उस करमजली के चलते बात यहां तक आ पहुंची है. आने दो उसे, अभी उस की खैर लेती हूं. बाबूजी ने उसे मेरे गले मढ़ दिया है. कब तक यहां रहेगी पता नहीं.’’मोरकली रूमा की चचेरी बहन थी, जिस के मांबाप नहीं थे. उस की देखभाल के लिए रूमा के पिता उस के पास छोड़ गए थे.मोरकली थी कि अपनी ही मस्ती में रहती थी. घरेलू काम में रूमा की बहुत मदद करती थी. इस कारण घर के सभी सदस्य उस के मेहनती होने को ले कर खुश रहते थे, लेकिन कुछ दिनों से उस के रंगढंग में बदलाव आ गया था. वह खेतों में घूमने लगी थी. पास के दूसरे लोगों से गप्पें लड़ाने लगी थी. हंसीमजाक भी करने लगी थी.

पारुल ने पकड़ी मोरकली का करतूत एक बार मोरकली को पारुल ने रामसुमेर से हंसहंस कर बातें करते देख लिया था. पारुल को देखते ही दोनों अचानक चुप हो गए थे. रामसुमेर चुपचाप वहां से चला गया था. मोरकली ने पारुल का हाथ पकड़ते हुए कहा था, ‘‘पारुल, मम्मी को मत बोलना कि मैं तुम्हारे चाचा के साथ मिली थी. उसी ने मुझे जबरदस्ती रोक लिया था. मैं तो खेत से घर आ रही थी.’’ मोरकली सफाई देती हुई बोली.

उस रोज पारुल अपनी मौसी के कहने का मतलब बहुत अधिक नहीं समझ पाई कि वह उसे देख कर सफाई क्यों देने लगी थी. किंतु वह इतना समझ गई थी मोरकली अपनी करतूत छिपाना चाहती है.
2 दिन बाद दोपहर को उस ने अपने घर में जो देखा, वह उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा. हुआ यह था कि पारुल अपने कालेज से घर आई थी. हमेशा की तरह उस ने अपना बैग बरामदे में टेबल पर रख दिया था और रसोई में पानी पीने के लिए जाने लगी, लेकिन उस के कमरे से फुसफुसाने की आवाजें सुनाई दीं. उस ओर देखा. कमरे का दरवाजा बंद था.

उस की जिज्ञासा जागी और दरवाजे के पास आ गई. तब आवाजें और साफ सुनाई देने लगी थीं. मोरकली कह रही थी, ‘‘…अब जाओ, कोई आ जाएगा.’’पारुल ने दरवाजे से कान सटा दिए थे. कुछ सेकेंड बाद फिर आवाज आई, ‘‘अरे मुंह मत बंद करो, दम घुट जाएगा. चलो, हटो अब.’’
पारुल तब तक इतना समझ गई थी कि कमरे में मोरकली के साथ कोई और भी है, और जो भीतर हो रहा है वह गलत है. उस ने दरवाजा पीटने के लिए हाथ उठाया ही था कि एक झटके में दरवाजे का एक पल्ला खुल गया.

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 3

राजेश हरबंस और शांतिबाई यही चाहते थे कि वे बारबार बाबूलाल के पास आएं और संबंध बना कर के पारस मणि के बारे में सच्चाई को जान जाएं और उसे हथिया लें.
राजेश हरबंस हंसहंस के बाबूलाल से बातें करता बड़ा सम्मान देते हुए कुछ भी कहता. एक दिन मौका पा कर राजेश ने कहा, ‘‘बाबूलाल जी, एक बात पूछूं अगर आप बुरा ना मानें और हमें अपना छोटा भाई मानें तो.’’

सहज भाव से बाबूलाल ने कहा, ‘‘नहींनहीं भाई, भला मैं बुरा क्यों मानूंगा. पूछो क्या जानना चाहते हो?’’
‘‘मैं ने सुना है कि आप के पास पारस मणि है. क्या यह सच है? अगर यह सच है तो आप तो दुनिया के सब से अमीर आदमी बन सकते हो. रोज सोना बना कर के दुनिया भर की सुविधाओं का उपभोग कर सकते हो. मगर ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो. इस में अगर हमारी कोई मदद चाहिए तो बताइए, मेरी पहचान छत्तीसगढ़ के मंत्री तक है.’’

बाबूलाल ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हर बात हर आदमी को नहीं बताई जाती, मैं जैसा भी हूं खुश हूं. मुझे और ज्यादा क्या चाहिए, मैं तो सेवक आदमी हूं. लोगों की सेवा में मुझे आनंद आता है और जो कुछ भी मेरे पास है वह पर्याप्त है.’’राजेश हरबंस ने अपनी आंखों को घुमाते हुए कहा, ‘‘बाबूलालजी, मैं यह जानना चाहता हूं कि आप के पास पारस मणि है कि नहीं?’’

राजेश की बातों को बाबूलाल ने सहजता से लिया और कहा, ‘‘छोड़ो, तुम अपने इलाज पानी पर ध्यान दो.’’बाबूलाल की बातों को एक गहरे अर्थ में समझ कर के राजेश हरबंस मौन रह गया. अब उसे पूरा विश्वास हो गया था कि बाबूलाल यादव के पास पारस मणि है और वह सहजता से न दिखाएगा और न देगा. इस के लिए कोई दूसरा रास्ता ही अख्तियार करना होगा.उस ने टेकचंद जायसवाल से बात की और बताया कि बाबूलाल तो बड़ा चालाक आदमी है वह कुछ नहीं बता रहा है. इस के लिए कोई योजना बनाओ, ताकि वह सब कुछ सचसच बोल दे और हमें पारस मणि दे दे.

एक दिन टेकचंद जायसवाल के गांव लोहारकोटा स्थित घर में अद्वितीय पारस मणि को प्राप्त करने के लालच में राजेश हरबंस, शांतिबाई यादव, रामनाथ श्रीवास, यासीन खान, प्रकाश जायसवाल, रवि जायसवाल सहित 10 लोग इकट्ठे हुए.वहां हुई बैठक में टेकचंद ने कहा, ‘‘तांत्रिक बाबूलाल जैसे मूर्ख के हाथ में पारस मणि है, जिसे हम आसानी से हथिया सकते हैं. आज हमें तय करना है कि पारस मणि प्राप्त करने के लिए चाहे जो भी करना पड़े, हम योजनाबद्ध तरीके से करेंगे.’’

यह सुन कर शांतिबाई यादव बोली, ‘‘बाबूलाल बहुत ही घाघ आदमी है. मैं ने उसे अपने तमाम लटकेझटके दिखाए, मगर उस ने थोड़ी सी भी बात नहीं बताई.’’राजेश हरबंस बोल पड़ा, ‘‘इसलिए मैं कहता हूं कि हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा. उस से पारस मणि प्राप्त करना आसान नहीं है. वह बहुत ही चतुर है. ठाठ की जिंदगी जीता है मगर घर तो ऐसा है मानो झोपड़ी, जिसे देख कर
कोई नहीं कहेगा कि इस के पास पारस मणि होगी.’’यासीन खान ने भी कहा, ‘‘मुझे तो लगता है उस के पास सौ प्रतिशत पारस मणि है. और आप जो भी कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं. चाहे जो भी करना हो.’’

उस दिन सभी ने एकजुट हो कर के तय किया कि योजना बना कर के बाबूलाल यादव को घर से बाहर निकाला जाए और जिला जांजगीर के कटरा जंगल में ले जा कर उस से पूछताछ की जाए. वहां वह घबरा जाएगा और हमें पारस मणि सौंप देगा.

योजना के तहत 8 जुलाई, 2022 को राजेश हरबंस और शांतिबाई यादव बाबूलाल यादव के पास पहुंचे. राजेश ने उस से निवेदन किया, ‘‘मेरे घर पर कुछ बाधा है, उसे आप को दूर करना है. आप अभी चलेंगे तो अच्छा होगा.’’

चूंकि राजेश शांतिबाई को ले कर बाबूलाल के पास कई बार जा चुका था, इसलिए तांत्रिक बाबूलाल ने उस की बात पर विश्वास कर लिया और राजेश की बाइक पर बैठ कर उसी वक्त चल दिया.
बाबूलाल यादव को ले कर के दोनों बाइक से बलौदा के जंगल की ओर निकल गए. योजना के अनुसार, एक जगह टेकचंद जायसवाल, यासीन खान, रामनाथ श्रीवास आदि वहीं जंगल में इकट्ठा मिल गए.
वहां जा कर बाबूलाल को सभी ने एक सुनसान घर में ले गए. सभी ने उसे घेर लिया और पारस मणि के बारे में पूछने लगे. मगर बाबूलाल ने शांत भाव से कहा, ‘‘मेरे पास कोई पारस मणि नहीं है. आप लोगों को जरूर गलतफहमी है.’’

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो, तुम्हारे पास कुछ तो है. सारे गांव वाले बोल रहे हैं कि तुम्हारे पास पारस मणि है, जिस से तुम लोहे को सोना बना सकते हो. उसे चुपचाप हमें सौंप दो नहीं तो…’’ गुस्से से उफनते हुए टेकचंद जायसवाल ने उस के बाल पकड़ कर गालों पर कई थप्पड़ जड़ दिए.बाबूलाल यादव की आंखों में आंसू आ गए. वह घबरा गया. उस की एक नहीं सुनी गई और हाथपांव बांध कर उस से सभी पूछताछ करने लगे. 10 लोगों के गिरोह में फंसा बाबूलाल बेबस, लाचार हो गया था.

सभी उसे बारीबारी से मारपीट रहे थे और पूछ रहे थे कि बताओ पारस मणि तुम ने कहां पर रखी हुई है.
जब बाबूलाल कुछ न बता पाया तो टेकचंद जायसवाल ने सभी से कहा कि चलो सब इस के घर चलते हैं और इस के घर में खोजबीन करते हैं. जहां भी पारसमणि होगी, उसे हम ले आएंगे.
कुछ लोगों को बाबूलाल की सुरक्षा में छोड़ कर बाकी सभी बाबूलाल यादव के गांव मुनुंद रात को 11 बजे पहुंचे. घर खुलवा कर के पत्नी रामवती को उन्होंने डराधमका कर एक जगह बैठा दिया और सारे घर में इधरउधर पारस मणि खोजने लगे. मगर उन्हें जब संदूक और अन्य जगहों पर पारस मणि नहीं मिली तो संभावित जगहों पर उन्होंने कुदाली से खोद कर देखा.

जब कहीं भी पारस मणि नहीं मिली तो सभी दुखी हो गए और सिर पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे कि आखिर पारस मणि बाबूलाल ने कहा छिपाई हुई है.कुछ समझ में नहीं आया तो घर में बाबूलाल की पत्नी की ज्वैलरी और 23 हजार रुपए नकद कब्जे में ले कर रामवती को धमकी दे कर वहां से चले आए.
वे सभी जंगल में पहुंचे तो बाबूलाल को रस्सियों से बंधा हुआ पाया.

बाबूलाल से टेकचंद आदि ने फिर पूछताछ शुरू की. बाबूलाल चूंकि पारस मणि की झूठी अफवाह फैला चुका था, इसलिए अब लाख सफाई देने पर भी उस की बात कोई मानने को तैयार नहीं हुआ.
उस के साथ प्रताड़ना शुरू हो गई. बारबार उस से पूछा जाता कि बताओ कहां पर पारस मणि छिपा रखी है. जब वह नहीं बता पाया तो उसे सभी ने पीटपीट कर मार डाला. फिर उस की लाश लेवई गांव के पास कटरा जंगल में गड्ढा खोद कर दफना दी गई.

सुबह 9 जुलाई, 2022 दिन शनिवार को जब रामवती यादव ने गांव वालों को बताया कि कुछ लोग उस के घर पारस मणि ढूंढने आए थे. मणि नहीं मिली तो वे घर में लूटपाट कर के ले गए. जाते समय वे उसे धमकी भी दे गए थे. उस ने यह भी बताया कि पति बाबूलाल भी कल से लापता है.

यह सुन कर गांव वाले चिंतित हो गए और कयास लगाया जाने लगा कि जरूर कोई बड़ी घटना घटी है. इसलिए मामले की जानकारी पुलिस को देने में ही समझदारी होगी. तब रामवती यादव कुछ गांव वालों को ले कर जांजगीर थाने पहुंची और थानाप्रभारी उमेश साहू से मिल कर पूरी घटना की जानकारी दी. उमेश साहू ने मामले की जांच के लिए तत्काल स्टाफ को गांव मुनुंद घटनास्थल के लिए रवाना कर दिया.

पुलिस टीम ने गांव में जांच करने के बाद थानाप्रभारी को बता दिया कि रामवती यादव सही बोल रही थी. थानाप्रभारी उमेश साहू को जब जांच में मामले की गंभीरता समझ में आई तो उन्होंने एसपी विजय अग्रवाल को पूरी घटना की जानकारी दे कर मामले की गंभीरता के बारे में बताया.

एसपी विजय अग्रवाल ने अन्य थानों के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को ले कर तत्काल जांच के लिए 4 टीमें गठित कीं. पुलिस टीम में थानप्रभारी उमेश साहू, इंसपेक्टर विवेक पांडेय, एसआई कामिल हक, अवनीश श्रीवास, सुरेश धुर्व, एएसआई संतोष तिवारी, हैडकांस्टेबल राजकुमार चंद्रा, मनोज तिग्गा, यशवंत राठौर, मुकेश यादव, मोहन साहू, जगदीश अजय, कांस्टेबल मनीष राजपूत, दिलीप, सिंह, प्रतीक सिंह के अलावा साइबर सेल टीम को शामिल किया गया. पुलिस टीमों ने मामले की जांच बड़ी तेजी से शुरू कर दी.जांच में पुलिस को यह पता चल गया था कि तांत्रिक बाबूलाल को राजेश हरबंस और शांतिबाई तांत्रिक क्रिया के लिए अपने साथ ले गए थे.

पुलिस ने जब दोनों को बुला कर पूछताछ की तो धीरेधीरे टेकचंद जायसवाल, रवि जायसवाल, प्रकाश जायसवाल, यासीन खान आदि के नाम भी सामने आ गए. पुलिस ने सभी को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी.

पुलिस पूछताछ में सब से पहले शांतिबाई यादव ने सब कुछ सचसच बता दिया. इस के बाद सभी को हिरासत में ले कर सभी से अलगअलग गहन पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने पारसमणि पाने के चक्कर में तांत्रिक बाबूलाल यादव की पीटपीट कर हत्या की. फिर उस के शव को जंगल में ही गड्ढा खोद कर दबा दिया था. उस के कपड़े आदि जला दिए थे.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर जंगल में दफनाया गया बाबूलाल का शव बरामद कर लिया. इस के अलावा आरोपियों की निशानदेही पर रामवती के घर से लूटी हुई ज्वैलरी, 9 हजार रुपए नकदी, बाबूलाल को मारपीट करने के दौरान उपयोग हुए डंडे, शव को दफनाने में प्रयुक्त फावड़ा, कुदाली, सब्बल, घटना में प्रयुक्त 3 मोटरसाइकिलें, बाबूलाल का थैला, मोबाइल फोन व अन्य सामान जो आरोपियों ने लेवई के जंगल में जला दिए थे, उन के अधजले अवशेष भी लेवई जंगल से बरामद कर लिए.

पुलिस ने केस में हत्या तथा डकैती की धाराएं भी जोड़ दीं. आरोपियों को भादंवि की धाराओं 457, 458, 360, 395, 342, 302, 201, 120बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर लिया.गिरफ्तार किए गए आरोपीगण टेकचंद जायसवाल, रामनाथ श्रीवास, राजेश हरबंस, मनबोधन यादव, छवि प्रकाश जायसवाल, यासीन खान, खिलेश्वर राम पटेल, तेजराम पटेल, अंजू कुमार पटेल एवं शांतिबाई यादव को पुलिस ने 15 जुलाई, 2022 को जांजगीर की कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. द्य

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 2

किरणपाल उस की लाश से लिपट कर रोता रहा और फिर तमंचे की नाल अपनी कनपटी से सटा कर उस ने खुद को गोली मार ली और अपनी प्रेमिका को बाहों में भरेभरे मौत को गले लगा लिया. चंद मिनटों में ही दोनों की इहलीला समाप्त हो गई.

गांव के लोग तो पहली गोली की आवाज पर ही आसपास इकट्ठा हो गए थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि हाथ में तमंचा लहराते किरणपाल के नजदीक भी चला जाए.उस खौफनाक दृश्य को मिथिलेश के पति धीर सिंह ने भी अपनी आंखों से देखा. इस घटना के बाद वह शर्म और बदनामी से जैसे जमीन में गड़ा जा रहा था. किसी से आंख मिला कर बात करने की उस की हिम्मत नहीं थी.

आखिर जिस संबंध के बारे में बारबार पूछने पर भी उस की पत्नी साफ इंकार कर जाती थी, वह इस तरह पूरे गांव के सामने उजागर होगा, ऐसा तो उस ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था. आखिर यह कोई उम्र थी ऐसी हरकतें करने की? जिस उम्र में गांवदेहात की औरतें नानीदादी बन जाती हैं, उस उम्र में उस की पत्नी प्रेम रचा कर बैठी थी? उफ!समाज में किसकिस तरह के नाजायज रिश्ते पनपते और जारी रहते हैं, यह घटना उस का उदाहरण है. मिथिलेश की उम्र 44 साल हो रही थी. वह न सिर्फ शादीशुदा थी, उस का पति उस के साथ रहता था बल्कि वह 2 शादीशुदा बेटियों की मां भी थी.

उधर उस का प्रेमी किरणपाल भी 4 बच्चों का बाप था. उस की भी उम्र 45-46 साल थी. घर में उस की पत्नी थी, जो कभी अपने पति से वह प्यार और विश्वास नहीं पा सकी, जिस की वह हकदार थी. पता नहीं 2 बेटियों की मां मिथिलेश में किरणपाल ने क्या देखा कि वह ऐसा लट्टू हुआ.बीते 10 सालों से दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. कोई पति कितना भी छिपाना चाहे मगर पत्नी की नजरें भांप ही लेती हैं. मिथिलेश के कारण कई बार किरणपाल का अपनी पत्नी से झगड़ा हो चुका था.

लेकिन अधेड़ावस्था के इस प्रेम का अंजाम इतना भयावह होगा, इस की किसी को उम्मीद नहीं थी. दोनों को एकदूसरे से लिपटे हुए जिस हालत में लोगों ने मृत अवस्था में देखा, उस के बाद तो दोनों के घर वालों को लोग लानतें दे रहे थे.गांवोंदेहातों में अकसर पुरुष कमाई के लिए शहर चले जाते हैं. बीवीबच्चे गांव में ही रह जाते हैं. ऐसे में कई बार घर के अन्य पुरुषों से या बाहर के आदमियों से औरतों के नाजायज संबंध बन जाते हैं.

देहातों में अभी भी शौच आदि के लिए अनेक महिलाएं मुंहअंधेरे ही लोटा ले कर खेतों पर जाती हैं. यह वक्त प्रेमी जोड़ों के मिलन के लिए सब से उपयुक्त होता है. बहाना शौच का होता है और अंधेरे का फायदा भी मिलता है.देवरभाभी और जीजासाली संबंधों की कहानियां गांव की फिजा में ही ज्यादा सुनाई देती हैं. कुछ ऐसे ही संबंध 10 साल पहले मिथिलेश और किरणपाल के बीच भी बन गए, जब मिथिलेश का पति धीर सिंह काम के सिलसिले में बाहर गया था.

दुर्वेशपुर गांव के निवासी धीर सिंह की पत्नी मिथिलेश अपना घर संभालने के साथसाथ मजदूरी भी करती थी. धीर सिंह भी मेहनतमजदूरी के लिए कभी गांव में मनरेगा के तहत काम करता था तो कभी शहर चला जाता था. उस के 2 बेटियां थीं, जिन की शादियों की जिम्मेदारी पूरी करनी थी.लिहाजा पतिपत्नी दोनों मेहनत करते थे. मगर जब धीर सिंह शहर चला जाता था, तब मिथिलेश बहुत अकेलापन महसूस करती थी. 10 साल पहले इसी अकेलेपन में उस की दोस्ती किरणपाल से हो गई. किरणपाल दबंग टाइप का आदमी था. छोटीमोटी ठेकेदारी करता था. उस ने मिथिलेश को कई बार मजदूरी के काम पर लगाया और अच्छा मेहनताना दिया था.

किरणपाल को गोरी चमड़ी वाली मिथिलेश अच्छी लगने लगी. वह अकसर उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. मिथिलेश भी कभीकभी कनखियों से किरणपाल को देखती और मुसकरा देती. उस की इस अदा पर किरणपाल निहाल हो जाता था.धीरेधीरे दोनों के बीच दूरियां कम होने लगीं. बातचीत बढ़ने लगी. दोनों एक ही बिरादरी के थे. लिहाजा दोनों के बीच अकसर घरपरिवार और खानदान को ले कर लंबीलंबी बातें होती थीं.

मिथिलेश के घर से कोई 400 मीटर की दूरी पर किरणपाल का घर था. उस के घर में उस की पत्नी और 4 बेटे थे. मगर किरणपाल अब मिथिलेश का दीवाना हो गया था. वह उस से बेइंतहा प्यार करने लगा था.
वह उस की शारीरिक नजदीकियों की चाहत करने लगा था. पहले तो मिथिलेश ने किरणपाल की इस चाहत का दबादबा विरोध किया, लेकिन एक दिन धीर सिंह की गैरमौजूदगी में मिथिलेश के कदम बहक गए.

वह किरणपाल के मोहपाश में बंध गई. जब रहीसही दूरियां भी मिट गईं तो वह भी रातबिरात उस से मिलने आने लगी. दोनों छिपछिप कर खेतों में मिलते और रात भर एकदूसरे की बाहों में समाए रहते.
मिथिलेश को एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि वह 2 जवान बेटियों की मां है. किरणपाल की दबंगई में उस को मर्द वाली बात लगती थी. फिर वह पैसे वाला भी था. वक्तजरूरत पर मिथिलेश की मदद भी करता था. यह सब बातें मिथिलेश को उस के बहुत करीब खींच ले गईं.

किरणपाल का साथ मिथिलेश को बहुत अच्छा लगता था. वहीं किरणपाल को भी इस बात का होश नहीं रहा कि घर में उस की पत्नी और 4 बेटे हैं. वह तो चाहता था कि मिथिलेश अपने पति को छोड़ कर हमेशा के लिए उस की हो जाए. इस के लिए वह अपना घर भी छोड़ने को तैयार था. मगर मिथिलेश इस बात के लिए राजी नहीं होती थी. खैर, यह प्रेम कहानी 10 साल चलती रही.

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