2 सगे भाइयों की साझा प्रेमिका की नफरत का सैलाब : भाग 3

डाटा डिलीट करने से पुलिस को शक हुआ कि कहीं दंपति की हत्या की साजिश रचने वाली कोमल तो नहीं है. अनूप का मोबाइल फोन खंगालने पर कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला.
गहन जांचपड़ताल के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक मुन्नालाल व उन की पत्नी राजदेवी के शवों का पंचनामा कराया फिर पोस्टमार्टम हेतु पुलिस सुरक्षा में लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया.
शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद पुलिस अधिकारियोें और फोरैंसिक टीम के सदस्यों ने सिर से सिर जोड़ कर इस
जघन्य कांड के संबंध में विचारविमर्श किया और अब तक की गई जांचपड़ताल की
समीक्षा की.

विचारविमर्श के बाद यह बात सामने आई कि मृतक दंपति के बेटा बेटी में ही कोई एक है, जिस ने कातिलों के साथ मिल कर हत्या की साजिश रची है. पुलिस जांच में मृतक दंपति का बेटा अनूप तो शक के घेरे में नहीं आया, लेकिन दंपति की पालनहार बेटी कोमल शक के दायरे में आ चुकी थी. अत: पुलिस ने कोमल को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.
कोमल को थाना बर्रा लाया गया. डीसीपी सलमान ताज ने कोमल को महिला पुलिस की सुरक्षा में सामने बिठाया फिर उस से सवालजवाब शुरू किए.
उन्होंने पूछा, ‘‘3 नकाबपोश कातिल घर में कैसे घुसे? घर का दरवाजा खुला था?’’
‘‘सर, मुझे पता नहीं. घर का मुख्य दरवाजा मम्मीजी बंद करती थीं.’’ कोमल ने बताया.
‘‘जब तुम ने नकाबपोशों को घर से भागते देखा था तो शोर क्यों नहीं मचाया था?’’ डीसीपी ने पूछा.
‘‘सर, मैं उन्हें देख कर डर गई थी. शोर मचाती तो वे शायद मुझ पर पलटवार कर सकते थे.’’
‘‘कोमल, तुम यह बताओ कि कातिलों ने तुम्हारे मांबाप की हत्या की, लेकिन तुम्हें क्यों छोड़ दिया. जबकि तुम वहां मौजूद थी?’’
‘‘पता नहीं सर.’’
‘‘तुम ने मातापिता व भाई को बीती रात जूस दिया था. भाई को जूस पीने के बाद उल्टी व चक्कर आने लगे थे. कहीं तुम ने उस जूस में जहर तो नहीं मिलाया था?’’
‘‘नहीं सर, मैं भला ऐसा क्यों करूंगी? हम अकसर जूस बना कर सभी को देते थे. बीती रात भी दिया था. मैं जहर क्यों मिलाऊंगी?’’
‘‘सीसीटीवी फुटेज में एक युवक रात पौने एक बजे तुम्हारे घर दाखिल हुआ फिर सवा 2 बजे हाथ में थैला लिए हुए बाहर आया. क्या उस के लिए तुम्हीं ने दरवाजा खोला था?’’ डीसीपी ने पूछा.

इस प्रश्न से कोमल का चेहरा फक पड़ गया. फिर खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, मैं उस के बारे में कुछ भी नहीं जानती. मैं ने किसी के लिए दरवाजा नहीं खोला.’’
डीसीपी सलमान ताज ने उस से अगला सवाल किया, ‘‘तुम ने अपने मोबाइल फोन का डाटा क्यों डिलीट कर दिया? क्या उस में हत्या का रहस्य छिपा था?’’
इस प्रश्न का कोमल ने जवाब नहीं दिया. उस ने चुप्पी साध ली.
तभी उन्होंने अगला सवाल किया, ‘‘तुम्हारे अंडरगारमेंट्स में सीमेन मिला है. क्या तुम ने किसी से फिजिकल रिलेशन बनाए थे?’’
इस प्रश्न का भी कोमल ने जवाब नहीं दिया और चेहरा नीचे झुका लिया.

कोमल ने स्वीकारा दोनों हत्याओं का जुर्म

हर प्रश्न का गोलमोल जवाब दे कर कोमल पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. लेकिन डीसीपी को यकीन हो गया था कि दंपति हत्या का रहस्य कोमल के पेट में ही छिपा है. अब उस पर सख्ती बरती गई. इस का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही देर बाद कोमल टूट गई और उस ने पालनहार मातापिता की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.
कोमल ने बताया कि उस ने अपने पहले प्रेमी राहुल उत्तम की मदद से हत्या की साजिश रची, फिर राहुल के भाई यानी दूसरे प्रेमी रोहित की मदद से मुन्नालाल व राजदेवी की हत्या कर दी. उस ने भाई अनूप को भी मारने का प्लान बनाया था, लेकिन किस्मत ने उसे बचा लिया.
कोमल ने बताया कि राहुल और रोहित सगे भाई हैं. दोनों फतेहपुर जिले के गांव शाहजहांपुर के रहने वाले हैं. राहुल सेना में है. वह कोलाबा (मुंबई) के मिलिट्री अस्पताल बेस में सहायक एंबुलेंस चालक है. जबकि उस का छोटा भाई रोहित कर्रही (कानपुर) में रहता है और ईरिक्शा चलाता है. वह दोनों सगे भाइयों की प्रेमिका है. दोनों भाई उस की मौसी के रिश्तेदार हैं.
यह सुनने के बाद वहीं पर मौजूद पुलिस कमिश्नर विजय सिंह मीणा ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने अपने पालनहार मातापिता का बेरहमी से कत्ल क्यों किया?’’
‘‘सर, मेरे मातापिता मुझे प्रताडि़त करते थे. हर बात पर टोकते थे. भाई के आगे मेरी कोई वैल्यू नहीं थी. भाई अनूप को मांबाप ने सिर पर चढ़ा रखा था. सब उसी की बात मानते थे. ऐसा लगता था कि पूरी जायदाद भी उसी के नाम कर दी जाएगी.
‘‘मां राजदेवी भी मुझे प्रताडि़त करती थी. वह मुझे फोन पर बात नहीं करने देती थी. घर के बाहर जाने पर टोकाटाकी करती थी. मुझे जब पता चला कि मैं उन की कोखजाई नहीं, गोद ली गई बेटी हूं, तब से नफरत और बढ़ गई थी. मुझे ऐसा लगता था कि मातापिता व भाई रास्ते से हट जाएंगे तो करोड़ों रुपए की संपत्ति मुझे मिल जाएगी. और मेरी जिंदगी संवर जाएगी. वह किसी एक प्रेमी से विवाह कर आराम से जिंदगी गुजारेगी.
‘‘प्यार और धन के हवस में अंधी हो कर मैं ने रिश्तों का कत्ल कर दिया. लेकिन यह पता नहीं था कि गहरी साजिश रचने के बावजूद पुलिस इतनी जल्दी पकड़ लेगी. मुझे मांबाप की हत्या करने का कोई अफसोस नहीं है.’’
कोमल के बयान के बाद पुलिस अधिकारियों ने रोहित और राहुल को गिरफ्तार करने के लिए 2 टीमें लगाईं. एसआई प्रमोद व जमाल को राहुल की गिरफ्तारी के लिए फ्लाइट से मुंबई भेजा गया. जबकि इंसपेक्टर दीनानाथ मिश्रा की टीम रोहित को पकड़ने के लिए सक्रिय हुई.

मुंबई आर्मी बेस से प्रेमी राहुल को
किया गिरफ्तार

पुलिस टीम ने रोहित के गांव शाहजहांपुर में छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. टीम ने उस के पिता विद्यासागर से उस के अन्य ठिकानों का पता किया फिर ताबड़तोड़ छापे मारे.
इसी बीच टीम को पता चला कि रोहित कानपुर (देहात) के भोगनीपुर तिराहे पर मौजूद है. और वह सूरत भागने की फिराक में है. पुलिस टीम ने 6 जुलाई, 2022 की सुबह दबिश दे कर रोहित को भोगनीपुर तिराहे से गिरफ्तार कर लिया.
थाना बर्रा में जब उस ने कोमल को पुलिस हिरासत में देखा तो वह सब समझ गया. उस ने बिना हीलाहवाली के डबल मर्डर का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, उस ने हत्या में प्रयुक्त तेज धार वाला चाकू, खून से सने कपड़े, जूता व झोला आदि सामान कर्रही के पास नाले से बरामद करा दिया.
इस सामान को पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. रोहित ने यह भी खुलासा किया कि दंपति की हत्या के पहले उस ने कोमल के साथ शारीरिक संबंध भी बनाए थे.
इधर मुंबई गई पुलिस टीम ने कोलाबा (मुंबई) स्थित आर्मी मैडिकल बेस के अधिकारियों को राहुल का अरेस्ट वारंट सौंपा और राहुल को हैंडओवर करने की बात कही. गिरफ्तारी के जरूरी कागजात लेने के बाद अधिकारियों ने राहुल को कानपुर की पुलिस की सुपुर्दगी में दे दिया. इस के बाद राहुल को मुंबई कोर्ट में पेश कर कानपुर पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर ले आई.
थाना बर्रा में पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह सेना की धौंस जमाने लगा और लगाए गए आरोपों को नकारता रहा. अंत में पुलिस अधिकारियों ने उसे झांसे में लिया और उसे बताया कि उसे सरकारी गवाह बना देंगे. सजा कम होगी और नौकरी भी मिलने की संभावना है.

इस के बाद राहुल टूट गया और साजिश रचने का आरोप स्वीकार कर लिया. उस ने स्वीकार किया कि घटना वाली रात कोमल मोबाइल फोन के जरिए उस के संपर्क में थी. उस ने ही घटना के पूर्व नशीली गोलियां भाई रोहित को एक केमिस्ट मित्र के मार्फत मुहैया कराई थीं. उस ने ही भाई रोहित से कहा था कि कोमल जो चाहती है, वह करो.
हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने पहले गिरफ्तार किए गए अनूप के साले मयंक व सुरेंद्र को थाने से घर भेज दिया. क्योंकि दंपति की हत्या में उन का कोई हाथ नहीं था.
चूंकि पुलिस ने डबल मर्डर का खुलासा कर दिया था और कातिलों को गिरफ्तार कर आलाकत्ल भी बरामद कर लिया था, अत: बर्रा थानाप्रभारी दीनानाथ मिश्र ने मृतक के बेटे अनूप को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/120 बी के तहत कोमल व रोहित के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

प्यार और संपत्ति के लालच ने
बनाया अपराधी

राहुल हत्या में शामिल नहीं था. पुलिस ने उसे षडयंत्र रचने व उस में शामिल होने का दोषी पाया. पुलिस ने भादंवि की धारा 120बी के तहत राहुल के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और उसे भी विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में प्यार और धन की हवस में रिश्तों के कत्ल की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के नरवल थानांतर्गत एक गांव है- प्रेमपुर. इसी गांव में रामचंद्र उत्तम सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कृष्णा के अलावा 4 बेटे भैयालाल, मुन्नालाल, राजेलाल तथा छोटेलाल थे. रामचंद्र किसान थे. उन के पास 15 बीघा उपजाऊ भूमि थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. रामचंद्र ने अपने जीवन काल में ही चारों भाइयों के बीच घर व जमीन का बंटवारा कर दिया था. चारों भाइयों के बीच करीब 4-4 बीघा जमीन हिस्से में आई थी.
मुन्नालाल का मन खेतीकिसानी में नहीं लगता था सो वह सालों पहले छोटे भाई छोटेलाल को साथ ले कर कानपुर आ गए थे. यहां उन्होंने बर्रा-2 की सब्जी मंडी में बिजली की दुकान खोली. दोनों भाइयों की मेहनत और लगन से दुकान अच्छी चलने लगी और आमदनी भी होने लगी. इसी बीच मुन्नालाल की नौकरी फील्डगन फैक्ट्री में लग गई. नौकरी लगने के बाद मुन्नालाल ने बिजली की दुकान भाई छोटेलाल के हवाले कर दी.
समय बीतते मुन्नालाल उत्तम ने बर्रा भाग 2 में यादव मार्केट के पास ईडब्लूएस स्कीम के तहत केडीए की एक कालोनी में फ्लैट ले लिया. फिर उस में परिवार सहित रहने लगे. मुन्नालाल के परिवार में पत्नी राजदेवी के अलावा एक बेटा अनूप था, जिस की उम्र मात्र 2 साल थी.
सन 1998 में मुन्नालाल के भाई छोटेलाल की पत्नी कमला ने 2 जुड़वां बेटियों को जन्म दिया. कमला ने इन का नाम बरखा और कोमल रखा.
छोटेलाल की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. वह 2 बच्चियों का पालनपोषण कैसे करेगा, यही सोच कर मुन्नालाल और उन की पत्नी राजदेवी ने एक बच्ची को गोद लेने की इच्छा जताई. क्योंकि उन का एक ही बेटा था और वह बेटी चाहते थे. छोटेलाल और कमला बच्ची को गोद देने को राजी हो गए.

एक साल की कोमल को लिया था गोद

कोमल की उम्र एक साल थी, तभी मुन्नालाल व राजदेवी ने उसे गोद ले लिया था. उस समय मुन्नालाल के बेटे अनूप की उम्र 4 साल थी. अनूप को बहन के रूप में कोमल मिली तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

चूंकि मुन्नालाल की बेटी की आकांक्षा पूरी हुई थी, सो उस ने कोमल का नाम आकांक्षा रख दिया. इस के बाद बिना भेदभाव के बड़े लाड़प्यार से कोमल उर्फ आकांक्षा का पालनपोषण किया तथा उसे पढ़ायालिखाया.
मुन्नालाल जितना खयाल अपने बेटे अनूप का रखते थे, उतना ही आकांक्षा का भी रखते थे. इस लाड़प्यार के कारण गलीमोहल्ला तो दूर खास रिश्तेदार भी न जान सके कि कोमल उर्फ आकांक्षा उन की सगी बेटी नहीं है.
कोमल उर्फ आकांक्षा बचपन से ही सुंदर थी. जवान हुई तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. कोमल जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने बीए करने के बाद 2 वर्षीय बीटीसी के लिए एस.जे. महाविद्यालय, रमईपुर में प्रवेश ले लिया था. वह बीटीसी कर टीचर बनना चाहती थी.

कोमल उर्फ आकांक्षा की मौसी बिंदकी (फतेहपुर) में रहती थी. एक रोज कोमल अपने मम्मीपापा के साथ मौसी के घर विवाह समारोह मे गई. सजीधजी कोमल विवाह समारोह में खास लग रही थी.
इसी विवाह समारोह में कोमल की मुलाकात राहुल उत्तम से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए. शादी समारोह में उन की बात तो ज्यादा न हो सकी. लेकिन वे एकदूसरे के दिल में जरूर समा गए.
राहुल उत्तम के पिता विद्यासागर उत्तम फतेहपुर जनपद के शाहजहांपुर गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे राहुल व रोेहित थे. राहुल सेना में था और कोलाबा (मुंबई) में मिलिट्री बेस अस्पताल में सहायक एंबुलेंस चालक था. वह पणजी गोवा बेस से संबद्ध था. दूसरा बेटा रोहित अपराधी प्रवृत्ति का था. वह कर्रही कानपुर में रहता था और ईरिक्शा चलाता था. दोनों भाई कोमल की मौसी के रिश्तेदार थे.

राहुल से हुई मुलाकात बदली प्यार में

कोमल और राहुल की मुलाकात को अभी सप्ताह भी न बीता था कि एक रोज कोमल के इंस्टाग्राम एकाउंट में राहुल की तरफ से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई, जिस के बाद एक सप्ताह तक दोनो की इंस्टाग्राम चैट पर ही बात होती रही. इस के बाद दोनों फेसबुक पर भी फ्रैंड बन गए और मैसेंजर से बात होने लगी.
कुछ दिन बाद दोनों की मोबाइल फोन पर बात होने लगी. फोन पर प्यारमोहब्बत की बातें करते.
कुछ माह बाद जब राहुल कानपुर आया तो उस ने कोमल उर्फ आकांक्षा से मुलाकात की. उन का प्यार पहले ही परवान चढ़ चुका था, अत: शारीरिक मिलन में देर नहीं लगी.
राहुल कोमल को अपने एक रिश्तेदार के घर ले जाता था जो बर्रा में रहता था. वहीं राहुल कोमल से शारीरिक संबंध बनाता था. राहुल जब तक रहता था, कोमल उस से मिलती रहती थी.
कोमल को शरीर सुख का चस्का लग गया था. इस सुख को पाने के लिए कोमल ने राहुल के भाई रोहित से दोस्ती कर ली और उस ने रोहित से भी शारीरिक रिश्ता कायम कर लिया. लेकिन कोमल ने इस रिश्ते की भनक राहुल को नहीं लगने दी. रोहित कोमल को अपने ईरिक्शा पर बैठा कर कानपुर शहर की सैर कराने लगा.
इसी बीच कोमल उर्फ आकांक्षा के भाई अनूप की शादी बिंदकी निवासी देवीसहाय की बेटी सोनिका से हो गई. उस का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था. 5 दिन ससुराल में रही, उस के बाद वह मायके चली गई. उस ने अनूप के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा दिया.
अनूप के साले मयंक व सुरेंद्र ने मामले को सुलटाने के लिए उस से 50 लाख रुपयों की मांग की. न देने पर जानमाल के नुकसान की धमकी दी. इस धमकी से मुन्नालाल तिलमिला उठे और वह परेशान रहने लगे.
वर्ष 2021 की जनवरी माह में कोमल को पता चला कि वह मुन्नालाल की सगी नहीं बल्कि गोद ली बेटी है. उस के पिता तो छोटेलाल हैं. यह पता चलने के बाद कोमल का व्यवहार मुन्नालाल व राजदेवी के प्रति बदलने लगा.
उसे लगने लगा कि उस के पिता उस की शादी साधारण परिवार में कर देंगे और करोड़ों की संपत्ति अपने बेटे के नाम कर देंगे.

मां राजदेवी को हो गया था कोमल पर शक

राजदेवी फोन पर बात करने पर उसे टोकती थी और घर से निकलने पर भी टोका करती थी. इसलिए वह राजदेवी से भी नफरत करने लगी थी.
अब तक मुन्नालाल फील्ड गन फैक्ट्री से सुपरवाइजर के पद से रिटायर हो चुके थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. हाईवे किनारे गांव में 4 बीघा जमीन थी, जो करोड़ों की थी. इस के अलावा गुजैनी व नौबस्ता में प्लौट व मकान था, जिन की कीमत कई करोड़ रुपए थी. इस अकूत संपत्ति की जानकारी कोमल उर्फ आकांक्षा को थी. इस पर उस की गिद्धदृष्टि लगी थी.
कोमल की नफरत तब और बढ़ गई, जब मुन्नालाल उस के लिए वर खोजने लगे. कोमल को लगा कि जल्द ही उसे घर से रुखसत कर दिया जाएगा और सारी संपत्ति उस के हाथ से निकल जाएगी.
राजदेवी को भी जानकारी हो गई थी कि कोमल बाहर गुलछर्रे उड़ाने लगी है और किसी दिन उस की इज्जत पर दाग लगा क र फुर्र हो जाएगी. वह भी चाहती थी कि कोमल की शादी जल्द हो जाए.
कोमल ने मांबाप की अकूत संपत्ति की जानकारी अपने दोनों प्रेमियों राहुल और रोहित को दी. संपत्ति के लालच में राहुल और रोहित फंस गए. कोमल ने राहुल से कहा कि वह उस के मातापिता व भाई को ठिकाने लगा दे. उस के बाद वह उस से शादी कर लेगी और बाप की प्रौपर्टी भी उसे मिल जाएगी. फिर दोनों आराम से जिंदगी गुजारेंगे.

5 अप्रैल, 2022 को राहुल छुट्टी पर घर आया. उस के बाद कोमल ने खुल कर राहुल से बात की और पूरे परिवार को नेस्तनाबूद करने की योजना बनाई. इस योजना में उस का भाई रोहित भी शामिल रहा.
राहुल 12 दिन कानपुर शहर रहा. इस बीच लगभग हर रोज दोनों शारीरिक सुख उठाते रहे. 17 मई को राहुल वापस मुंबई चला गया.
राहुल के जाने के बाद कोमल हर रोज मोबाइल फोन पर उस से बात करती थी और अपना दुखड़ा सुना कर उसे हत्या के लिए उकसाती थी. राहुल को भी संपत्ति का लालच आ गया था, अत: उस ने 2 जुलाई, 2022 को अपने भाई रोहित से कहा मार डालो पूरे परिवार को.
योजना के तहत उस ने नशीली गोलियों का इंतजाम अपने एक केमिस्ट दोस्त के सहयोग से किया, फिर रोहित को रामादेवी ओवर ब्रिज पर भेजा. रोहित ने नींद की गोलियों के 10 पत्ते ला कर कोमल को दे दिए. कोमल ने उन गोलियों को पीस कर चूर्ण बना लिया.
4 जुलाई, 2022 की रात 8 बजे कोमल ने मम्मीपापा व भाई को खाना खिलाया, फिर 9 बजे रात को जूसर से अनार व चुकंदर का मिक्स जूस निकाला. इस के बाद निकाले गए जूस में उस ने नशीली गोलियों का चूर्ण मिला दिया. इस जूस को 3 गिलासों में डाल कर कोमल ने मुन्नालाल, राजदेवी व अनूप को दे दिया.
मुन्नालाल और राजदेवी ने तो किसी तरह जूस पी लिया लेकिन अनूप ने 2-3 घूंट ही जूस पिया. उसे जूस कड़वा लगा तो उस ने बाकी जूस नहीं पिया और कोमल से शिकायत की कि जूस कड़वा है. जूस पीने के बाद अनूप का जी मिचलाने लगा और चक्कर सा आने लगा तो वह अपने कमरे में जा कर लेट गया और अंदर से कुंडी लगा ली.
इधर जूस पीने के बाद मुन्नालाल व उन की पत्नी बेसुध हो गए. कोमल ने बेहोशी की फोटो राहुल को भेजी और बताया कि दोनों बेहोश हो गए है. उन की मौत का इंतजार है.

इस के बाद कोमल ने मुन्नालाल के मोबाइल फोन पर सुसाइड नोट टाइप किया फिर अपने फोन पर इस नोट का स्क्रीन शौट लिया. दरअसल, कोमल का प्लान था कि मम्मीपापा ने भाई अनूप के कारण आत्महत्या कर ली, फिर आत्मग्लानि से अनूप ने भी मौत को गले लगा लिया.
लेकिन जब रात 12 बजे तक मुन्नालाल की मौत नहीं हुई और उसे अपना प्लान फेल होता नजर आया तो उस ने तीनों को कत्ल करने की योजना बनाई. इस के लिए उस ने रोहित को मैसेज भेजा और तुरंत घर आने को कहा.
प्लान-ए फेल होने की सूचना उस ने मोबाइल फोन से राहुल को भी दे दी. इस के बाद कोमल ने प्लान-बी बनाया. इस प्लान के तहत अनूप ने पहले मांबाप का कत्ल किया, फिर स्वयं फांसी लगा कर जीवनलीला समाप्त कर ली.

हत्या से पहले बनाए थे शारीरिक संबंध

रात लगभग पौने एक बजे रोहित मुंह पर कपड़ा लपेट कर कोमल के घर पहुंचा. कोमल ने दरवाजा पहले ही खोल रखा था, अत: रोहित आसानी से घर में घुस गया. रोहित घर के अंदर आया तो कोमल ने उसे गले लगा लिया. रोहित भी उस से लिपट गया.
इस के बाद दोनों बिस्तर पर पहुंच गए और दोनों ने शारीरिक संबंध बनाए. शारीरिक सुख प्राप्त करने के बाद कोमल उस कमरे में आई, जहां मुन्नालाल बेसुध पडे़ थे. उस ने घृणा भरी नजर मुन्नालाल पर डाली फिर रसोई से गोश्त काटने वाला चाकू ले आई.
कोमल ने चाकू रोहित को पकड़ाया और बोली, ‘‘मार डालो मेरे बाप को.’’
रोहित ने चाकू पकड़ा तो वह घबरा गया और उस के हाथ कांपने लगे. तब कोमल ने रोहित के हाथ से चाकू छीन लिया और बाप की गरदन पर वार कर दिया. एक ही वार से मुन्नालाल की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और खून का फव्वारा फूट पड़ा. मुन्नालाल कुछ देर छटपटाया, फिर दम तोड़ दिया.
बाप को मौत के घाट उतारने के बाद कोमल उस कमरे में पहुंची, जहां राजदेवी बेसुध पड़ी थी. दोनों ने मिल कर राजदेवी को उठाया और उस कमरे में लाए, जहां मुन्नालाल मरा पड़ा था. यहां रोहित ने चाकू से राजदेवी पर वार किया तो वह छटपटाने लगीं.
इसी छटपटाहट में कोमल ने उस के हाथों को दबोचा तो चाकू से वार करते समय कोमल की अंगुली में कट लग गया. कुछ क्षण छटपटाने के बाद राजदेवी ने भी दम तोड़ दिया. डबल मर्डर करने के बाद भी कोमल और रोहित विचलित नहीं हुए.
बाथरूम में जा कर कोमल और रोहित ने खून से सने हाथपैर व चाकू धोया, फिर कपड़े बदले. कोमल ने अनूप की शर्ट रोहित को पहनने को दी. इस के बाद रोहित ने खून से सने कपड़े तथा चाकू लाल रंग के थैले में डाला फिर मुंह पर सफेद रंग का कपड़ा लपेट कर हाथ में थैला ले कर रात सवा 2 बजे कोमल के घर से निकल गया.

रोहित के घर आने तथा घर से बाहर जाने की तसवीरें बगल के घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गईं. इस की जानकारी रोहित को नहीं हुई. घर से निकलने के बाद रोहित ने खून से सने कपड़े, चाकू, जूता व थैला कर्रही स्थित नाले के पास फेंक दिए. उस के बाद वह फरार हो गया.
इधर कोमल रात 3 बजे के आसपास पहली मंजिल पर अनूप के कमरे के बाहर पहुंची और जोरजोर से दरवाजा पीटने लगी. अनूप ने दरवाजा खोला तो सामने कोमल खड़ी थी. वह रोते हुए बोली, ‘‘भैया, जल्दी से नीचे चलो, मम्मीपापा मर गए हैं.’’
अनूप घबरा गया. वह नीचे आया तो देखा कि मांबाप की किसी ने गला काट कर हत्या कर दी है. उस ने घर के बाहर शोर मचाया तो पासपड़ोस के लोग आ गए. इस के बाद अनूप ने डायल 112 पर फोन कर के पुलिस को सूचना दी तो पुलिस की वैन आ गई.
डायल 112 पुलिस ने कंट्रोलरूम को सूचना दी तो पुलिस महकमे में सनसनी फैल गई. आननफानन में थाना बर्रा पुलिस व पुलिस अधिकारी घटनास्थल पहुंचे और जांच शुरू की. जांच में प्यार और धन की हवस में रिश्तों के कत्ल का सनसनीखेज खुलासा हुआ.
थाना बर्रा पुलिस ने आरोपी कोमल, रोहित तथा राहुल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.द्य

तपस्या- भाग 2 : क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली?

‘ठीक है बेटी, अगर सुखनंदन भी यही कहेगा तो फिर मैं अब कभी जोर नहीं दूंगा,’ पिताजी का स्वर निराशा में डूबा हुआ था.

तभी अचानक शिखर के पिता को दिल का दौरा पड़ा था और उन्होंने अपने बेटे को सख्ती से कहा था कि वह अपने जीतेजी अपने मित्र को दिया गया वचन निभा देना चाहते हैं, उस के बाद ही वह शिखर को विदेश जाने की इजाजत देंगे. इसी दबाव में आ कर शिखर  शादी के लिए तैयार हो गया था. वह तो कुछ समझ ही नहीं पाई थी.  उस के पिता जरूर बेहद खुश थे और उन्होंने कहा था, ‘मैं न कहता था, आखिर सुखनंदन मेरा बचपन का मित्र है.’

‘पर, पिताजी…’ शैली का हृदय  अभी  भी अनचाही आशंका से धड़क रहा था.

‘तू चिंता मत कर बेटी. आखिरकार तू अपने रूप, गुण, समझदारी से सब का  दिल जीत लेगी.’

फिर गुड्डेगुडि़या की तरह ही तो आननफानन में उस की शादी की सभी रस्में अदा हो गई थीं. शादी के समय भी शिखर का तना सा चेहरा देख कर वह पल दो पल के लिए आशंकाओं से घिर गई थी. फिर सखीसहेलियों की चुहलबाजी में सबकुछ भूल गई थी.

शादी के बाद वह ससुराल आ गई थी. शादी की पहली रात मन धड़कता रहा था. आशा, उमंगें, बेचैनी और भय सब के मिलेजुले भाव थे. क्या होगा? पर शिखर आते ही एक कोने में पड़ रहा था, उस ने न कोई बातचीत की थी, न उस की ओर निहार कर देखा था.

वह कुछ समझ ही नहीं सकी थी. क्या गलती थी उस की? सुबह अंधेरे ही वह अपना सामान बांधने लगा था.

‘यह क्या, लालाजी, हनीमून पर जाने की तैयारियां भी शुरू हो गईं क्या?’ रिश्ते की किसी भाभी ने छेड़ा था.

‘नहीं, भाभी, नौकरी पर लौटना है. फिर अमरीका जाने के लिए पासपोर्ट वगैरह भी बनवाना है.’

तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गया था वह. दूसरे कमरे में बैठी शैली ने सबकुछ सुना था. फिर दिनभर खुसरफुसर भी चलती रही थी. शायद सास ने कहा था, ‘अमरीका जाओ तो फिर बहू को भी लेते जाना.’

‘ले जाऊंगा, बाद में, पहले मुझे तो पहुंचने दो. शादी के लिए पीछे पड़े थे, हो गई शादी. अब तो चैन से बैठो.’

न चाहते हुए भी सबकुछ सुना था शैली ने. मन हुआ था कि जोर से सिसक पड़े. आखिर किस बात के लिए दंडित किया जा रहा था उसे? क्या कुसूर था उस का?

पिताजी कहा करते थे कि धीरेधीरे सब का मन जीत लेगी वह. सब सहज हो जाएगा. पर जिस का मन जीतना था वह तो दूसरे ही दिन चला गया था. एक हफ्ते बाद ही फिर दिल्ली से अमेरिका भी.

पहुंच कर पत्र भी आया था तो घर वालों के नाम. उस का कहीं कोई जिक्र नहीं था. रोती आंखों से वह देर तक घंटों पता नहीं क्याक्या सोचती रहती थी. घर में बूढ़े सासससुर थे. बड़ी शादीशुदा ननद शोभा अपने बच्चों के साथ शादी पर आई थी और अभी वहीं थी. सभी उस का ध्यान रखते थे. वे अकसर उसे घूमने भेज देते, कहते, ‘फिल्म देख आओ, बहू, किसी के साथ,’ पर पति से अपनेआप को अपमानित महसूस करती वह कहां कभी संतुष्ट हो पाती थी.

शोभा जीजी को भी अपनी ससुराल लौटना था. घर में फिर वह, मांजी और बाबूजी ही रह गए थे. महीने भर के अंदर ही उस के ससुर को दूसरा दिल का दौरा पड़ा था. सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया. बड़ी कठिनाई से हफ्ते भर की छुट्टी ले कर शिखर भी अमेरिका से लौटा था, भागादौड़ी में ही दिन बीते थे. घर नातेरिश्तेदारों से भरा था और इस बार भी बिना उस से कुछ बोले ही वह लौट गया था.

‘मां, तुम अकेली हो, तुम्हें बहू की जरूरत है,’ यह जरूर कहा था उस ने.

शैली जब सोचने लगती है तो उसे लगता है जैसे किसी सिनेमा की रील की तरह ही सबकुछ घटित हो गया था उस के साथ. हर क्षण, हर पल वह जिस के बारे में सोचती रहती है उसे तो शायद कभी अवकाश ही नहीं था अपनी पत्नी के बारे में सोचने का या शायद उस ने उसे पत्नी रूप में स्वीकारा ही नहीं.

इधर सास का उस से स्नेह बढ़ता जा रहा था. वह उसे बेटी की तरह दुलराने लगी थीं. हर छोटीमोटी जरूरत के लिए वह उस पर आश्रित होती जा रही थीं. पति की मृत्यु तो उन्हें और बूढ़ा कर गई थी, गठिया का दर्द अब फिर बढ़ गया था. कईर् बार शैली की इच्छा होती, वापस पिता के पास लौट जाए. आगे पढ़ कर नौकरी करे. आखिर कब तक दबीघुटी जिंदगी जिएगी वह? पर सास की ममता ही उस का रास्ता रोक लेती थी.

‘‘बहूरानी, क्या लौट आई हो? मेरी दवाई मिली, बेटी? जोड़ों का दर्द फिर बढ़ गया है.’’

मां का स्वर सुन कर तंद्रा सी टूटी शैली की. शायद वह जाग गई थीं और उसे आवाज दे रही थीं.

‘‘अभी आती हूं, मांजी. आप के लिए चाय भी बना कर लाती हूं,’’ हाथमुंह धो कर सहज होने का प्रयास करने लगी थी शैली.

चाय ले कर कमरे में आई ही थी कि बाहर फाटक पर रिकशे से उतरती शोभा जीजी को देखते ही वह चौंक गई.

‘‘जीजी, आप इस तरह बिना खबर दिए. सब खैरियत तो है न? अकेले ही कैसे आईं?’’

बरामदे में ही शोभा ने उसे गले से लिपटा लिया था. अपनी आंखों को वह बारबार रूमाल से पोंछती जा रही थी.

‘‘अंदर तो चल.’’

और कमरे में आते ही उस की रुलाई फूट पड़ी थी. शोभा ने बताया कि अचानक ही जीजाजी की आंखों की रोशनी चली गई है, उन्हें अस्पताल में दाखिल करा कर वह सीधी आ रही है. डाक्टर ने कहा है कि फौरन आपरेशन होगा. कम से कम 10 हजार रुपए लगेंगे और अगर अभी आपरेशन नहीं हुआ तो आंख की रोशनी को बचाया न जा सकेगा.

एक रात की उजास : भाग 3

उस किशोर की तरह वह खुशकिस्मत तो थी नहीं कि लेटते ही नींद आ जाती. दृश्य जागती आंखों में किसी दुखांत फिल्म की तरह जीवन के कई टुकड़ोंटुकड़ों में चल रहे थे कि तभी उन्हें हलका कंपन महसूस हुआ. खिड़की, दरवाजों की आवाज से उन्हें तुरंत समझ में आया कि यह भूकंप का झटका है.

‘‘उठो, उठो…भूकंप आया है,’’ उन्होंने किशोर को झकझोर कर हिलाया. और दोनों हाथ पकड़ कर तेज गति से बाहर भागीं.

उन के जागते रहने के कारण उन्हें झटके का आभास हो गया. झटका लगभग 30 सेकंड का था लेकिन बहुत तेज नहीं था फिर भी लोग चीखते- चिल्लाते बाहर निकल आए थे. कुछ सेकंड बाद  सबकुछ सामान्य था लेकिन दिल की धड़कन अभी भी कनपटियों पर चोट कर रही थी.

जब भूकंप के इस धक्के से वह उबरीं तो अपनी जिजीविषा पर उन्हें अचंभा हुआ. वह तो सोच रही थीं कि उन्हें जीवन से कतई मोह नहीं बचा लेकिन जिस तेजी से वह भागी थीं, वह इस बात को झुठला रही थी. 82 साल की उम्र में निपट अकेली हो कर भी जब वह जीवन का मोह नहीं त्याग सकतीं तो यह किशोर? इस ने अभी देखा ही क्या है, इस की जिंदगी में तो भूकंप का भी यह पहला ही झटका है. उफ, यह क्या करने जा रही थीं वह. किस हक से उस मासूम किशोर को वे मृत्युदान करने जा रही थीं. क्या उम्र और अकेलेपन ने उन की दिमागी हालत को पागलपन की कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है?

मालतीजी ने मिचमिची आंखों से किशोर की ओर देखा, वह उन से लिपट गया.

‘‘दादी, मैं अपने घर जाना चाहता हूं, मैं मरना नहीं चाहता…’’ आवाज कांप रही थी.

वह उस के सिर पर प्यार भरी थपकियां दे रही थीं. लोग अब साहस कर के अपनेअपने घरों में जा रहे थे. वह भी उस किशोर को संभाले भीतर आ गईं.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘उदय जयराज.’’

अभी थोड़ी देर पहले तक उन्हें इस परिचय की जरूरत महसूस नहीं हुई थी. मृत्यु की इच्छा ने अनेक प्रश्नों पर परदा डाल दिया था, पर जिंदगी के सामने तो समस्याएं भी होती हैं और समाधान भी.

ऐसा ही समाधान मालतीजी को भी सूझ गया. उन्होंने उदय को आदेश दिया कि अपने मम्मीपापा को फोन करो और अपने सकुशल होने की सूचना दो.

उदय भय से कांप रहा था, ‘‘नहीं, वे लोग मुझे मारेंगे, सूचना आप दीजिए.’’

उन्होेंने उस से पूछ कर नंबर मिलाया. सुबह के 4 बज रहे थे. आधे घंटे बाद उन के घर के सामने एक कार रुकी. उदय के मम्मीपापा और उस का छोटा भाई बदहवास से भीतर आए. यह जान कर कि वह रेललाइन पर आत्महत्या करने चला था, उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. रात तक उन्होेंने उस का इंतजार किया था फिर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

उदय को बचाने के लिए उन्होेंने मालतीजी को शतश: धन्यवाद दिया. मां के आंसू तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

‘‘आप दोनों से मैं एक बात कहना चाहती हूं,’’ मालतीजी ने भावनाओं का सैलाब कुछ थमने के बाद कहा, ‘‘देखिए, हर बच्चे की अपनी बौद्घिक क्षमता होती है. उस से ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं होता. उस की बुद्घि की दिशा पहचानिए और उसी दिशा में प्रयत्न कीजिए. ऐसा नहीं कि सिर्फ डाक्टर या इंजीनियर बन कर ही इनसान को मंजिल मिलती है. भविष्य का आसमान हर बढ़ते पौधे के लिए खुला है. जरूरत है सिर्फ अच्छी तरह सींचने की.’’

अश्रुपूर्ण आंखों से उस परिवार ने एकएक कर के उन के पैर छू कर उन से विदा ली.

उस पूरी घटना पर वह पुन: विचार करने लगीं तो उन का दिल धक् से रह गया. जब उदय अपने घर वालों को बताएगा कि वह उसे नींद की गोलियां खिलाने वाली थीं, तो क्या गुजरेगी उन पर.

अब तो वह शरम से गड़ गईं. उस मासूम बचपन के साथ वह कितना बड़ा क्रूर मजाक करने जा रही थीं. ऐन वक्त पर उस की बेखबर नींद ने ही उन्हें इस भयंकर पाप से बचा लिया था.

अंतहीन विचारशृंखला चल पड़ी तो वह फोन की घंटी बजने पर ही टूटी. उस ओर उदय की मम्मी थीं. अब क्या होगा. उन के आरोपों का वह क्या कह कर खंडन करेंगी.

‘‘नमस्ते, मांजी,’’ उस तरफ चहकती हुई आवाज थी, ‘‘उदय के लौट आने की खुशी में हम ने कल शाम को एक पार्टी रखी है. आप की वजह से उदय का दूसरा जन्म हुआ है इसलिए आप की गोद में उसे बिठा कर केक काटा जाएगा. आप के आशीर्वाद से वह अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करेगा. आप के अनुभवों को बांटने के लिए हमारे इष्टमित्र भी लालायित हैं. उदय के पापा आप को लेने के लिए आएंगे. कल शाम 6 बजे तैयार रहिएगा.’’

‘‘लेकिन मैं…’’ उन का गला रुंध गया.

‘‘प्लीज, इनकार मत कीजिएगा. आप को एक और बात के लिए भी धन्यवाद देना है. उदय ने बताया कि आप उसे नींद की गोलियां खिलाने के बहाने अपने घर ले गईं. इस मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाने के कारण ही वह आप के साथ आप के घर गया. समय गुजरने के साथ धीरेधीरे उस का उन्माद भी उतर गया. हमारा सौभाग्य कि वह जिद्दी लड़का आप के हाथ पड़ा. यह सिर्फ आप जैसी अनुभवी महिला के ही बस की बात थी. आप के इस एहसान का प्रतिदान हम किसी तरह नहीं दे सकते. बस, इतना ही कह सकते हैं कि अब से आप हमारे परिवार का अभिन्न अंग हैं.’’

उन्हें लगा कि बस, इस से आगे वह नहीं सुन पाएंगी. आंखों में चुभन होने लगी. फिर उन्होंने अपनेआप को समझाया. चाहे उन के मन में कुविचार ही था पर किसी दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं था. आखिरकार परिणाम तो सुखद ही रहा न. अब वे पापपुण्य के चक्कर में पड़ कर इस परिवार में विष नहीं घोलेंगी.

इस नए सकारात्मक विचार पर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ. कहां गए वे पश्चात्ताप के स्वर, हर पल स्वयं को कोसते रहना, बीती बातों के सिर्फ बुरे पहलुओं को याद करना.

उदय का ही नहीं जैसे उन का भी पुनर्जन्म हुआ था. रात को उन्होंने खाना खाया. पीने के पानी के बरतन उत्साह से साफ किए. हां, कल सुबह उन्हेें इन की जरूरत पड़ेगी. टीवी चालू किया. पुरानी फिल्मों के गीत चल रहे थे, जो उन्हें भीतर तक गुदगुदा रहे थे. बिस्तर साफ किया. टेबल पर नींद की गोलियां रखी हुई थीं. उन्होंने अत्यंत घृणा से उन गोलियों को देखा और उठा कर कूड़े की टोकरी में फेंक दिया. अब उन्हें इस की जरूरत नहीं थी. उन्हें विश्वास था कि अब उन्हें दुस्वप्नरहित अच्छी नींद आएगी.

तेंदूपत्ता : क्या था शर्मिष्ठा का असली सच

शर्मिष्ठा ने कार को धीमा करते हुए ब्रैक लगाई. झटका लगने से सहयात्री सीट पर बैठी जेनिथ, जो ऊंघ रही थी, की आंखें खुल गईं, उस ने आंखें मिचका कर आसपास देखा. समुद्रतट के साथ लगते गांव का कुदरती नजारा. बड़ेबड़े, ऊंचेऊंचे नारियल और पाम के पेड़, सर्वत्र नयनाभिराम हरियाली.

‘‘आप का गांव आ गया?’’

‘‘लगता तो है.’’ सड़क के किनारे लगे मील के पत्थर को पढ़ते शर्मिष्ठा ने कहा. दोढाई फुट ऊंचे, आधे सफेद आधे पीले रंग से रंगे मील के पत्थर पर अंगरेजी और मलयाली भाषा में गांव का नाम और मील की संख्या लिखी थी.

‘‘यहां भाषा की समस्या होगी?’’ जेनिथ ने पूछा.

‘नहीं, सारे भारत में से केरल सर्वसाक्षर प्रदेश है. यहां अंगरेजी भाषा सब बोल और समझ लेते हैं. मलयाली भाषा के साथसाथ अंगरेजी भाषा में बोलचाल सामान्य है.’’

‘‘तुम यहां पहले कभी आई हो?’’

‘‘नहीं, यह मेरा जन्मस्थान है, ऐसा बताते हैं. मगर मैं ने होश अमेरिका की ईसाई मिशनरी में संभाला था.’’ शर्मिष्ठा ने कहा.

‘‘तुम्हारी मेरी जीवनगाथा बिलकुल एकसमान है.’’

कार से उतर कर दोनों ने इधरउधर देखा. चारों तरफ फैले लंबेचौड़े धान के खेतों में धान की मोटीभारी बालियां लिए ऊंचेऊंचे पौधे लहरा रहे थे.

समुद्र से उठती ठंडी हवा का स्पर्श मनमस्तिष्क को ताजा कर रहा था. धान के खेतों से लगते बड़ेबड़े गुच्छों से लदे केले के पेड़ भी दिख रहे थे.

एक वृद्ध लाठी टेकता उन के समीप से गुजरा.

‘‘बाबा, यहां गांव का रास्ता कौन सा है?’’ थोड़े संकोचभरे स्वर में शर्मिष्ठा ने अंगरेजी में पूछा.

लाठी टेक कर वृद्ध खड़ा हो गया, बोला, ‘‘आप यहां बाहर से आए हो?’’ साफसुथरी अंगरेजी में उस वृद्ध ने पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘यहां किस से मिलना है?’’

‘‘कौयिम्मा नाम की एक स्त्री से.’’

‘‘वह नाथर है या नादर? इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक सवर्ण जाति की है, दूसरी दलित है. पहली, आजकल सरकारी डाकबंगले में मालिन है, खाली समय में तेंदूपत्ते तोड़ कर बीडि़यां बनाती है. दूसरी, मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़ी है.’’

फिर उस वृद्ध ने उन को एक कच्चा वृत्ताकार रास्ता दिखाया जो सरकारी डाकबंगले को जाता था. दोनों ने उस वृद्ध, जिस का नाम जौन मिथाई था और जो धर्मांतरण कर के ईसाई बना था, का धन्यवाद किया.

कार मंथर गति से चलती, डगमगाती, कच्चे रास्ते पर आगे बढ़ चली.

डाकबंगला अंगरेजों के जमाने का बना था व विशाल प्रागंण से घिरा था. चारदीवारी कहींकहीं से खस्ता थी. मगर एकमंजिली इमारत सदियों बाद भी पुख्ता थी. डाकबंगले का गेट भी पुराने जमाने की लकड़ी का बना था. गेट बंद था.

कार गेट के सामने रुकी. ‘‘यहां सुनसान है. दोपहर ढल रही है. यहां कहीं होटल होता?’’ जेनिथ ने कहा.

शर्मिष्ठा खामोश रही. उस ने कार से बाहर निकल डाकबंगले का गेट खोला और प्रागंण में झांका, सब तरफ सन्नाटा था.

एक सफेद सन के समान बालों वाली स्त्री एक क्यारी में खुरपी लिए गुड़ाई कर रही थी. उस ने सिर उठा कर शर्मिष्ठा की तरफ देखा और सधे स्वर में पूछा, ‘‘आप किस को देख रही हैं?’’

‘‘यहां कौन रहता है?’’

‘‘कोई नहीं. सरकारी डाकबंगला है. कभीकभी कोई सरकारी अफसर यहां दौरे पर आते हैं. तब उन के रहने का इंतजाम होता है,’’ वृद्ध स्त्री ने धीमेधीमे स्वर में कहा.

‘‘आप कौन हो?’’

‘मैं यहां मालिन हूं. कभीकभी खाना भी पकाना पड़ता है.’’

‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘मैं कौयिम्मा नाथर हूं’’

शर्मिष्ठा खामोश नजरों से क्यारी में सब्जियों की गुड़ाई करती वृद्धा को देखती रही.

उस को अपनी मां की तलाश थी. मगर उस का पूरा नाम उस को मालूम नहीं था. कौयिम्मा नाथर या कौयिम्मा नादर.

‘‘आप को यहां डाकबंगले में  ठहरना है?’’ वृद्धा ने हाथ में पकड़ी खुरपी को एक तरफ रखते हुए कहा.

‘‘यहां कोई होटल या धर्मशाला है?’’

‘‘नहीं, यहां कौन आता है?’’

‘‘खानेपीने का इंतजाम क्या है?’’

‘‘रसोईघर है, मगर खाली बरतन हैं. लकड़ी से जलने वाला चूल्हा है. गांव की हाट से सामान ला कर खाना पका देते हैं.’’

‘‘बिस्तर वगैरा?’’

‘‘उस का इंतजाम अच्छा है.’’

‘‘यहां का मैनेजर कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सरकारी रजिस्टर है. ठहरने वाला खुद ही रजिस्टर में अपना नाम, पता, मकसद सब दर्ज करता है,’’ वृद्धा साफसुथरी अंगरेजी बोल रही थी.

‘‘आप अच्छी अंगरेजी बोलती हैं. कितनी पढ़ीलिखी हैं?’’

‘‘यहां मिडिल क्लास तक का सरकारी स्कूल है. ज्यादा ऊंची कक्षा तक का होता तो ज्यादा पढ़ जाती,’’ वृद्धा ने अपने मात्र मिडिल कक्षा यानी 8वीं कक्षा तक ही पढ़ेलिखे होने पर जैसे अफसोस किया.

शर्मिष्ठा और उस की अमेरिकन साथी जेनिथ को मात्र 8वीं कक्षा तक पढ़ीलिखी स्त्री को इतनी साफसुथरी अंगरेजी बोलने पर आश्चर्य हुआ.

वृद्धा ने एक बड़ा कमरा खोल दिया. साफसुथरा डबलबैड, पुराने जमाने का

2 बड़ेबड़े पंखों वाला खटरखटर करता सीलिंग फैन, आबनूस की मेज, बेत की कुरसियां.

चंद मिनटों बाद 2 कप कौफी और चावल के बने नमकीन कुरमुरे की प्लेट लिए कौयिम्मा नाथर आई.

‘‘आप पैसा दे दो, मैं गांव की हाट से सामान ले आऊं.’’

शर्मिष्ठा ने उस को 500 रुपए का एक नोट थमा दिया. एक थैला उठाए कौयिम्मा नाथर सधे कदमों से हाट की तरफ चली गई.

कौयिम्मा नाथर अच्छी कुक थी. उस ने शाकाहारी और मांसाहारी भोजन पकाया. मीठा हलवा भी बनाया. खाना खा दोनों सो गईं.

शाम को दोनों घूमने निकलीं. कौयिम्मा नाथर साथसाथ चली. बड़े खुले प्रागंण में ऊंचेऊंचे कगूंरों वाला मंदिर था.

‘‘यह प्राचीन मंदिर है. यहां दलितों प्रवेश निषेध है.’’

थोड़ा आगे खपरैलों से बनी हौलनुमा एक बड़ी झोंपड़ी थी. उस के ऊपर बांस से बनी बड़ी बूर्जि थी. उस पर एक सलीब टंगी थी.

‘‘यह चर्च है. जिन दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता था, वे सम्मानजनक जीवन जीने के लिए हिंदू धर्म को छोड़ कर ईसाई बन गए. उन सब ने मिल कर यह चर्च बनाया. हर रविवार को ईसाइयों का एक बड़ा समूह यहां मोमबत्ती जलाने आता है,’’ कौयिम्मा नाथर के स्वर में धर्मपरिवर्तन के लिए विवश करने वालों के प्रति रोष झलक रहा था.

मंथर गति से चलती तीनों गांव घूमने लगीं. सारा गांव बेतरतीब बसा था. कहींकहीं पक्के मकान थे, कहींकहीं खपरैलों से बनी छोटीबड़ी झोंपडि़यां.

एक बड़े मकान के प्रागंण में थोड़ीथोड़ी दूरी पर छोटीछोटी झोंपडि़यां बनी थीं.

‘‘प्रागंण की ये झोंपडि़यां क्या नौकरों के लिए हैं?’’

‘‘नहीं, ये बेटी और जंवाई की झोंपड़ी कहलाती हैं.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘अधिकांश इलाके में मातृकुल का प्रचलन है. यहां बेटियों के पति घरजंवाई बन कर रहते आए हैं. अब इस परंपरा में धीरेधीरे परिवर्तन आ रहा है,’’ कौयिम्मा नाथर ने बताया.

‘‘मगर अलगअलग स्थानों पर झोंपडि़यां?’’

‘‘यहां बेटियां बहुतायत में होती हैं. आधा दर्जन या दर्जनभर बेटियां सामान्य बात है. शादी की रस्म साधारण सी है. जो पुरुष या लड़का, बेटी को पसंद आ जाता है उस से एक धोती लड़की को दिला दी जाती है. बस, वह उस की पत्नी बन जाती है.’’

‘‘और अगर संबंधविच्छेद करना हो तो?’’

‘‘वो भी एकदम सीधे ढंग से हो जाता है. पति का बिस्तर और चटाई लपेट कर झोंपड़ी के बाहर रख दी जाती है. पति संबंधविच्छेद हुआ समझा जाता है. वह चुपचाप अपना रास्ता पकड़ता है.’’

कौयिम्मा नाथर ने विद्रूपताभरे स्वर में कहा, ‘‘मानो, पति नहीं कोई खिलौना हो जिस को दिल भरते फेंक दिया जाता है.’’ वृद्धा ने आगे कहा, ‘‘मगर इस खिलौने की भी अपनी सामाजिक हैसियत है.’’

‘‘अच्छा, वह क्या?’’ जेनिथ, जो अब तक खामोश थी, ने पूछा.

‘‘मातृकुल परंपरा में भी पिता नाम के व्यक्ति का अपना स्थान है. समाज में अपना और संतान का सम्मान पाने के लिए किसी भद्र पुरुष की पत्नी होना या कहलाना जरूरी है.’’

शर्मिष्ठा और जेनिथ को कौयिम्मा नाथर का मंतव्य समझ आ रहा था.

‘‘आप का मतलब है कि स्त्री के गर्भ में पनप रहा बच्चा चाहे किसी असम्मानित व्यक्ति का हो मगर बच्चे को समाज में सम्मान पाने के लिए उस की माता का किसी सम्मानित पुरुष की पत्नी कहलाना जरूरी है,’’ जेनिथ ने कहा.

कौयिम्मा नाथर खामोश रही. शाम का धुंधलका गहरे अंधकार में बदल रहा था. तीनों डाकबंगले में लौट आईं.

अगली सुबह कौयिम्मा नाथर उन को नाश्ता करवाने के बाद तेंदूपत्ते की पत्तियां गोल करती, उन में तंबाकू भरती बीडि़यां बनाने बैठ गई. दोनों अपनेअपने कंधे पर कैमरा लटकाए गांव की तरफ निकलीं.

एक भारतीय लड़की और एक अंगरेज लड़की को गांव घूमते देखना ग्रामीणों के लिए सामान्य ही था. ऐसे पर्यटक वहां आतेजाते रहते थे.

चर्च का मुख्य पादरी अप्पा साहब बातूनी था. साथ ही, उस को गांव के सवर्ण या उच्च जाति वालों से खुंदक थी. सवर्ण जाति वालों के अनाचार और अपमान से त्रस्त हो कर उस ने धर्मपरिवर्तन कर ईसाईर् धर्म अपनाया था.

उस ने बताया कि कौयिम्मा नाथर एक सवर्ण जाति के परिवार से है जो गरीब परिवार था. गांव में सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन थी. जिस को आजादी से पहले तत्कालीन राजा के अधिकारी और कानूनगो ने जबरन गांव के अनेक परिवारों के नाम चढ़ा दी थी.

विवश हो उन परिवारों को खेती कर या मजदूरों से काम करवा कर राजा को लगान देना पड़ता था. एक बार लगान की वसूली के दौरान कानूनगो रास शंकरन की नजर नईनई जवान हुई कौयिम्मा नाथर पर पड़ी. उस ने उस को काबू कर लिया था.

जब उस को गर्भ ठहर गया तब कानूनगो ने कौयिम्मा को अपने एक कारिंदे कुरू कुनाल नाथर से धोती दिला दी थी. इस प्रकार कुरू नाथर कौयिम्मा का पति बन कर उस की झोंपड़ी में सोने लगा था.

जब कौयिम्मा नाथर को बेटी के रूप में एक संतान हो गई तब उस ने एक दोपहर कुरू कुनाल नाथर का बिस्तर और चटाई दरवाजे के बाहर रख दी. शाम को जब कुरू कुनाल नाथर लौटा तब उस को दरवाजा बंद मिला. तब वह चुपचाप अपना बिस्तर उठा किसी अन्य स्त्री को धोती देने चला गया.

बेटी का भविष्य भी मेरे ही समान न हो, इस आशय से कौयिम्मा नाथर ने एक रोज अपनी बेटी को ईसाई मिशनरी के अनाथालय में दे दिया था. वहां से वह बेटी केंद्रीय मिशनरी के अनाथालय में चली गई थी.

इतना वृतांत बताने के बाद पादरी खामोश हो गए. आगे की कहानी शर्मिष्ठा को मालूम थी. ईसाई मिशनरी के केंद्रीय अनाथालय से उस को अमेरिका में रहने वाले निसंतान दंपती ने गोद ले लिया था.

अब शर्मिष्ठा मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत थी. जब उस को पता चला था कि वह घोष दंपती की गोद ली संतान है तो वह अपने वास्तविक मातापिता का पता लगाने के लिए भारत चली आई.

माता का पता चल गया था. पिता दो थे. एक जिस ने माता को गर्भवती किया था. दूसरा, जिस ने माता को समाज में सम्मान बनाए रखने के लिए धोती दी थी.

अजीब विडंबनात्मक स्थिति थी. सारे गांव को मालूम था. कौयिम्मा नाथर का असल पति कौन था. धोती देने वाला कौन था. तब भी थोथा सम्मान थोथी मानप्रतिष्ठा.

रिटायर्ड कानूनगो बीमार पड़ा था. उस के बड़े हवेलीनुमा मकान में पुरुषों की संख्या की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या काफी ज्यादा थी. अपने सेवाकाल में पद के रोब में कानूनगो ने पता नहीं कितनी स्त्रियों को अपना शिकार बनाया था. बाद में बच्चे की वैध संतान कहलाने के लिए उस स्त्री को किसी जरूरतमंद से धोती दिला दी थी.

बाद में वही संतान अगर लड़की हुई, तो उस को बड़ी होने पर कोई प्रभावशाली भोगता और बाद में उस को धोती दिला दी जाती.

यह बहाना बना कर कि वे दोनों पुराने जमाने की हवेलियों पर पुस्तक लिख रही हैं, शर्मिष्ठा और जेनिथ हवेली और उस के कामुक मालिक को देख कर वापस लौट गईं.

धोती देने वाला पिता मंदिर के प्रागंण में बने एक कमरे में आश्रय लिए पड़ा था. उस को मंदिर से रोजाना भात और तरकारी मिल जाती थी. उस की इस स्थिति को देख कर शर्मिष्ठा दुखी हुई. मगर वह क्या कर सकती थी. दोनों चुपचाप डाकबंगले में लौट आईं.

दोनों पिताओं में किसी को भी शर्मिष्ठा अपना पिता नहीं कह सकती थी. मगर क्या माता उस को स्वीकार कर अपनी बेटी कहेगी? यह देखना था.

‘‘मुझे अपनी मां को पाना है, वे इसी गांव की निवासी हैं, क्या आप मदद कर सकती हैं?’’ अगली सुबह नाश्ता करते शर्मिष्ठा ने वृद्धा से सीधा सवाल किया.

‘‘उस का नाम क्या है?’’

‘‘कौयिम्मा.’’

‘‘नाथर या नादर?’’

‘‘मालूम नहीं. बस, इतना मालूम है कि कौयिम्मा है. उस ने मुझे यहां कि ईसाई मिशनरी के अनाथालय में डाल दिया था.’’

‘‘अब आप कहां रहती हो?’’

‘‘मैं अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हूं. मुझे गोद लेने वाले मातापिता अमीर और प्रतिष्ठित हैं.’’

‘‘मां को ढूंढ़ कर क्या करोगी?’’

‘‘मां, मां होती है.’’

बेटी के इन शब्दों को सुन कर मां की आंखें भर आईं, वह मुंह फेर कर बाहर चली आई. रसोई में काम करते कौयिम्मा सोच रही थी, क्या करे, क्या उस को बताए कि वह उस की मां थी. मगर ऐसे में उस का भविष्य नहीं बिगड़ जाएगा.

अनाथालय ने ब्लैकहोल के समान शर्मिष्ठा के बैकग्राउंड, उस के अतीत को चूस कर उस को सिर्फ एक अनाथ की संज्ञा दे दी थी. जिस का न कोई धर्म था न कोई जाति या वर्ग. वहां वह सिर्फ एक अनाथ थी.

अब वह एक सम्मानित परिवार की बेटी थी. वैल स्टैंड थी. कौयिम्मा नाथर द्वारा यह स्वीकार करने पर कि वह उस कि मां थी, उस पर एक अवैध संतान होने का धब्बा लग सकता था.

एक निश्चय कर कौयिम्मा नाथर रसोई से बाहर आई. ‘‘मेम साहब,

आप को शायद गलतफहमी हो गई है. इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक मैं कौयिम्मा नाथर, दूसरी कौयिम्मा नादर. दोनों ही अविवाहित हैं. आप ने गांव कौन सा बताया है?’’

‘‘अप्पा नाडू.’’

‘‘यहां 3 गांवों के नाम अप्पा नाडू हैं. 2 यहां से अगली तहसील में पड़ते हैं. वहां पता करें.’’

शर्मिष्ठा खामोश थी. जेनिथ भी खामोश थी. मां बेटी को अपनी बेटी स्वीकार नहीं कर रही थी. कारण? कहीं उस का भविष्य न बिगड़ जाए. पिता को पिता कैसे कहे? कौन से पिता को पिता कहे.

कार में बैठने से पहले एक नोटों का बंडल बिना गिने बख्शिश के तौर पर शर्मिष्ठा ने अपनी जननी को थमाया और उस को प्रणाम कर कार में बैठ गई. कार वापस मुड़ गई.

‘‘कोई मां इतनी त्यागमयी भी होती है?’’ जेनिथ ने कहा.

‘‘मां मां होती है,’’ अश्रुपूरित नेत्रों से शर्मिष्ठा ने कहा. कार गति पकड़ती जा रही थी.

उलझन : कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर थी हैरान?

तपस्या- भाग 1: क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली?

शैली उस दिन बाजार से लौट रही थी कि वंदना उसे रास्ते में ही मिल गई.

‘‘तू कैसी है, शैली? बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी. आ, चल, सामने रेस्तरां में बैठ कर कौफी पीते हैं.’’

वंदना शैली को घसीट ही ले गई थी. जाते ही उस ने 2 कप कौफी का आर्डर दिया.

‘‘और सुना, क्या हालचाल है? कोई पत्र आया शिखर का?’’

‘‘नहीं,’’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर शैली का मन उदास  हो गया था.

‘‘सच शैली कभी तेरे बारे में सोचती हूं तो बड़ा दुख होेता है. आखिर ऐसी क्या जल्दी पड़ी थी तेरे पिताजी को जो तेरी शादी कर दी? ठहर कर, समझबूझ कर करते. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल तो है नहीं.’’

इस बीच बैरा मेज पर कौफी रख गया और वंदना ने बातचीत का रुख दूसरी ओर मोड़ना चाहा.

‘‘खैर, जाने दे. मैं ने तुझे और उदास कर दिया. चल, कौफी पी. और सुना, क्याक्या खरीदारी कर डाली?’’

पर शैली की उदासी कहां दूर हो पाई थी. वापस लौटते समय वह देर तक शिखर के बारे में ही सोचती रही थी. सच कह रही थी वंदना. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल थोड़े ही होता है. पर उस के साथ क्यों हुआ यह खेल? क्यों?

वह घर लौटी तो मांजी अभी भी सो ही रही थीं. उस ने सोचा था, घर पहुंचते ही चाय बनाएगी. मांजी को सारा सामान संभलवा देगी और फिर थोड़ी देर बैठ कर अपनी पढ़ाई करेगी. पर अब कुछ भी करने का मन नहीं हो रहा था. वंदना उस की पुरानी सहेली थी. इसी शहर में ब्याही थी. वह जब भी मिलती थी तो बड़े प्यार से. सहसा शैली का मन और उदास हो गया था. कितना फर्क आ गया था वंदना की जिंदगी में और उस की  अपनी ंिंजदगी में. वंदना हमेशा खुश, चहचहाती दिखती थी. वह अपने पति के साथ  सुखी जिंदगी बिता रही थी. और वह…अतीत की यादों में खो गई.

शायद उस के पिता भी गलत नहीं होंगे. आखिर उन्होंने शैली के लिए सुखी जिंदगी की ही तो कामना की थी. उन के बचपन के मित्र सुखनंदन का बेटा था शिखर. जब वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था तभी  उन्होंने  यह रिश्ता तय कर दिया था. सुखनंदन ने खुद ही तो हाथ मांग कर यह रिश्ता तय किया था. कितना चाहते थे वह उसे. जब भी मिलने आते, कुछ न कुछ उपहार अवश्य लाते थे. वह भी तो उन्हें चाचाजी कहा करती थी.

‘‘वीरेंद्र, तुम्हारी यह बेटी शुरू से ही मां के अभाव में पली है न, इसलिए बचपन में ही सयानी हो गई है,’ जब वह दौड़ कर उन की खातिर में लग जाती तो वह हंस कर उस के पिता से कहते.

फिर जब शिखर इंजीनियर बन गया तो शैली के पिता जल्दी शादी कर देने के लिए दबाव डालने लगे थे. वह जल्दी ही रिटायर होने वाले थे और उस से पहले ही यह दायित्व पूरा कर लेना चाहते थे. पर जब सुखनंदन का जवाब आया कि शिखर शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रहा है तो वह चौंक पड़े थे. यह कैसे संभव है? इतने दिनों का बड़ों द्वारा तय किया रिश्ता…और फिर जब सगाई हुई थी तब तो शिखर ने कोई विरोध नहीं किया था…अब क्या हो गया?

शैली के पिता ने खुद भी 2-1 पत्र लिखे थे शिखर को, जिन का कोई जवाब नहीं आया था. फिर वह खुद ही जा कर शिखर के बौस से मिले थे. उन से कह कर शायद जोर डलवाया था उस पर. इस पर शिखर का बहुत ही बौखलाहट भरा पत्र आया था. वह उसे ब्लैकमेल कर रहे हैं, यह तक लिखा था उस ने. कितना रोई थी तब वह और पिताजी से भी कितना कहा था, ‘क्यों नाहक जिद कर रहे हैं? जब वे लोग नहीं चाहते तो क्यों पीछे पड़े हैं?’

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 2

बाबूलाल की इस तरह की गोलमोल बातें सुन कर गांव वाले अलगअलग अर्थ निकाल रहे थे. कुछ लोग मान रहे थे कि बाबूलाल ने स्वीकार कर लिया है कि उस के पास पारस मणि है और कुछ लोगों को साफसाफ महसूस हुआ कि ऐसा कुछ भी नहीं है, मगर गांव में बाबूलाल की अब तो बल्लेबल्ले अपने उफान पर थी.बाबूलाल यादव बड़े ठाटबाट से रहा करता था. वह एक तांत्रिक था. पूजा और तंत्रमंत्र से वह अच्छे पैसे कमा लेता था.

आज भी गांवदेहात में मजदूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है. लोग शहर की ओर पलायन कर जाते हैं या फिर गांव के धनी किसानों के यहां काम कर के जीवनयापन करते हैं. मगर बाबूलाल तांत्रिक होने के कारण बड़े मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.अच्छा पहनता, अच्छा खातापीता. लोग उसे बिना जमीनजायदाद के भी बड़ा आदमी मानते थे. उस की साख दिनोंदिन आसपास के गांव में भी फैलती चली जा रही थी.

छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा जिला धनधान्य से परिपूर्ण होने के कारण धान का सच्चे अर्थों में कटोरा कहा जा सकता है.जिले के जांजगीर थानांतर्गत गांव मुनुंद है, जहां लगभग ढाई हजार लोगों की बस्ती है और ज्यादातर लोग खेतीकिसानी कर के अपना जीवन बसर करते हैं. यहीं बाबूलाल यादव तंत्रमंत्र और झाड़फूंक करते हुए धीरेधीरे आसपास के गांवों में प्रसिद्ध हो गया था.

आसपास के गांवों ही नहीं, बल्कि उस के पास आसपास के जिलों कोरबा, बिलासपुर से भी लोग आने लगे थे. वह किसी बीमारी भूतप्रेत आदि बाधाओं को दूर करने का दावा करता था. उस का प्रभाव बढ़ता ही चला जा रहा था.उस के पास कोई पारस मणि है, यह चर्चा भी आसपास के गांवों से होती हुई दूर तक प्रसारित हो चुकी थी.जिला चांपा जांजगीर के बाराद्वार निवासी टेकचंद जायसवाल, जो एक किसान परिवार से है, ने भी एक दिन जब यह सुना कि तांत्रिक बाबूलाल के पास पारस मणि है तो उस के मन में उत्सुकता पैदा हुई कि क्यों न इसी तरीके से पारस मणि को हथिया लिया जाए.

वह साहसी व्यक्ति के रूप में गांव में जाना जाता था. शरीर में ताकत थी और वह गांव में अच्छे रुतबे वाला था. टेकचंद ने जब यह बात सुनी तो उस ने अपने दोस्तों से पता लगाया कि आखिर माजरा क्या है.एक दिन उस ने गांव बिरगहनी के रहने वाले अपने एक दोस्त राजेश हरबंस से मोबाइल पर इस संबंध में बात की. फिर दोनों ने प्लान बनाया कि बाबूलाल यादव के गांव चलें और उस से मिल कर समझा जाए कि आखिर सचमुच उस के पास पारस मणि है या कोई अफवाह है. अगर उस के पास पारस मणि है तो उसे हथियाने की योजना बनाई जाए.

टेकचंद जायसवाल और राजेश हरबंस दोनों हमउम्र थे. टेकचंद अपनी बाइक से बाराद्वार से बिरगहनी आ पहुंचा. उस के बाद दोनों बाइक से बाबूलाल यादव से मिलने मुनुंद गांव की ओर बढ़ चले.
रास्ते में दोनों बातें कर रहे थे. टेकचंद ने बाइक चलाते हुए राजेश से पूछा, ‘‘राजेश भाई, क्या महसूस कर रहे हो तुम? क्या सच में पारस मणि होती है?’’‘‘हां, यह सच है कि पारस मणि होती है. मैं ने गूगल पर सर्च किया और पाया कि ऐसी पारस मणि का जिक्र हमारे ग्रंथों में भी है. मगर यह भी सच है कि उसे पाना आसान नहीं है, यह तो बड़े भाग्य से मिलती है. लाखोंकरोड़ों लोगों में से किसी एक के पास होती है.’’ राजेश ने कहा.

बाइक चलाते हुए टेकचंद ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बात को तुम ने माना स्वीकार किया है. मुझे भी लगता है कि पारस मणि होती तो है. अब हमें यह पता करना है कि क्या बाबूलाल यादव तांत्रिक के पास पारस मणि है भी? और अगर है तो उसे कैसे प्राप्त किया जाए?’’ टेकचंद बोला.‘‘देखो भाई, कोई भी आदमी जिस के पास पारस मणि होगी, वह यह नहीं बताएगा कि मेरे पास है. अगर तुम्हारे पास होगी तो क्या भला किसी को बताओगे?’’ राजेश ने तर्क दिया.

‘‘हां, तुम्हारी बात भी बिलकुलसही है. अब कैसे पता करें भला?’’ टेकचंद बोला
‘‘इस का सीधा सा रास्ता यह है कि हम लोग गांव वालों से पता करेंगे. गांव वाले सच बताएंगे. गांव में कोई भी सच्चाई छिप नहीं सकती. और हो सकेगा तो बाबूलाल यादव से भी मिल कर के देखेंगे कि आखिर सच क्या है, वह कैसा आदमी है. बातचीत से भी बहुत कुछ समझ में आ जाएगा.’’
उस दिन टेकचंद और राजेश हरबंस बाबूलाल यादव के गांव मुनुंद पहुंचे और कुछ लोगों से बातचीत की. लोगों ने उन्हें दबी जुबान में बताया कि बाबूलाल के पास सचमुच पारस मणि है, मगर वह स्वीकार नहीं करता.

इस के बाद दोनों बाबूलाल से भी मिले. उस के हावभाव और बातचीत से दोनों ही बड़े प्रभावित हुए और जब घर लौटे तो दोनों इस बात को पूरी तरीके से मान चुके थे कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसा है जिस से वह मालामाल हुआ है.टेकचंद और राजेश हरबंस ने धीरेधीरे महमदपुर निवासी रामनाथ श्रीवास, बलौदा की शांतिबाई यादव, कोरबा निवासी यासीन खान और अन्य कई लोगों से बातचीत कर के एक योजना पर अमल करने की कोशिश शुरू कर दी.

उन सभी ने यह प्लान बनाया कि अलगअलग तरीके से हम बाबूलाल यादव से उस के घर पर जा कर मिलेंगे. चूंकि वह तांत्रिक है, इसलिए अपना इलाज कराने का बहाना भी बना सकते हैं. बातचीत करते हुए हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि उस ने वह पारस मणि कहां छिपा रखी है या फिर ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि पारस मणि हमें दिखा दे तो हम लोग उसे हथिया लें.राजेश हरबंस और शांति यादव दोनों ही गांव बिरगहनी थाना बलौदा एक ही गांव के रहने वाले और आपस में परिचित थे. दोनों ने योजना बनाई कि शांतिबाई की बीमारी का हवाला देते हुए बाबूलाल यादव से मिला जाए.
राजेश हरबंस ऐसी परिस्थिति बनाएगा कि पारस मणि ले कर के खुद बाबूलाल खड़ा हो जाएगा.

शांतिबाई यादव की उम्र 21 वर्ष थी. वह दिखने में खूबसूरत और कमसिन थी. राजेश हरबंस उसे अपना परिचित बताते हुए एक दिन बाबूलाल यादव के घर पहुंच गया और इलाज की फरियाद की. शांतिबाई ने बाबूलाल से हंस कर बातें की और बताया कि उस के शरीर में हमेशा दर्द बना रहता है. कई डाक्टरों को दिखाया मगर वह ठीक नहीं हो पा रही है, इसलिए सोचा कि आप के पास झाडंफूंक करवाऊं.
बाबूलाल यादव ने शांतिबाई का इलाज शुरू किया. उसे तंत्रमंत्र कर के भभूत दी और कहा कि कोई बाधा है जिसे वह एक महीने में ठीक कर देगा. इस के लिए उसे हर सप्ताह आना पड़ेगा.

 

अपना बेटा -भाग 2 : मामाजी को देख क्यों परेशान हो उठे अंजलि और मुकेश

अंजलि ने देखा कि मामाजी की बातों में कोई वैरभाव नहीं था. मुकेश भी अंजलि को देख रहा था, मानो कह रहा हो, देखो, हम बेकार ही डर रहे थे.

‘‘अरे, तुम्हारे दोनों बच्चे कहां हैं? क्या नाम हैं उन के?’’

‘‘गगन और रजत,’’ मुकेश बोला, ‘‘स्कूल गए हैं. वे तो जाना ही नहीं चाह रहे थे. कह रहे थे मामाजी से मिलना है. इसीलिए कार से गए हैं ताकि समय से घर आ जाएं.’’

‘‘अच्छा? तुम ने अपने बच्चों को गाड़ी भी सिखा दी. वेरी गुड. मेरे पास तो गाड़ी ही नहीं है, बच्चे सीखेंगे क्या… शादियां कर लूं यही गनीमत है. मैं तो कानवेंट स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ा सका. अगर तुम मेरे एक को भी…पढ़ा…’’ मामाजी इतना कह कर रुक गए पर अंजलि और मुकेश का हंसता चेहरा बुझ सा गया.

अंजलि वहां से उठ कर बेडरूम में चली गई.

‘‘कब आ रहे हैं बच्चे?’’ मामाजी ने बात पलट दी.

‘‘आने वाले होंगे,’’ मुकेश इतना ही बोले थे कि घंटी बज उठी. अंजलि दरवाजे की तरफ लपकी. गगनरजत थे.

‘‘मामाजी आ गए…’’ दोनों ने अंदर कदम रखने से पहले मां से पूछ लिया और कमरे में कदम रखते ही पापा के साथ एक अजनबी को बैठा देख कर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यही हैं मामाजी.

‘‘नमस्ते, मामाजी,’’ दोनों ने उन के पैर छू लिए. मुकेश ने हंस के कहा, ‘‘मामाजी, मेरे बेटे गगन और रजत हैं.’’

‘‘वाह, कितने बड़े लग रहे हैं. दोनों कद में बाप से ऊंचे निकल रहे हैं और शक्लें भी इन की कितनी मिलती हैं,’’  इस के आगे मामाजी नहीं बोले.

‘‘मामाजी, मैं आप के लिए आइसक्रीम लाया हूं. मम्मी, ये लो ब्रिक,’’ गगन ने अंजलि को ब्रिक पकड़ा दी.

‘‘अच्छा, तुम्हें कैसे पता कि मामाजी को आइसक्रीम अच्छी लगती है?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘पापा, आइसक्रीम किसे अच्छी नहीं लगती,’’ गगन बोला.

अंजलि ने सब को प्लेटों में आइसक्रीम पकड़ा दी. उस के बाद मामाजी ने दोनों बच्चों से पूछना शुरू किया कि कौन सी क्लास में पढ़ते हो? क्याक्या पढ़ते हो? किस स्कूल में पढ़ने जाते हो? वहां क्याक्या खाते हो?

‘‘बस, मामाजी, अब आप आराम कर लें,’’ अंजलि ने उठते हुए कहा, ‘‘गगनरजत, तुम दोनों कपड़े बदल लो, मैं तुम्हारे कमरे में ही खाना ले कर आती हूं.’’

‘‘मामाजी, आप अभी रहेंगे न हमारे साथ?’’ गगन ने उठतेउठते पूछा.

‘‘हां, 3-4 दिन तो रहूंगा ही.’’

अंजलि के साथ गगन और रजत अपने बेडरूम की तरफ बढ़े.

अंजलि रसोई में जाने लगी तो मामाजी ने मुकेश से पूछा, ‘‘गगन को ही एडोप्ट किया था न तुम ने…’’ मुकेश सकपका गया.

‘‘दोनों को देखने पर बिलकुल नहीं लगता कि इन में एक गोद लिया है,’’ मामाजी ने फिर बात दोहराई थी.

‘‘मामाजी, यह क्या बोल रहे हैं?’’ मुकेश ने हैरत से मामाजी को देखा, ‘‘आप को ऐसा नहीं बोलना चाहिए. वह भी बच्चों के सामने?’’

बच्चे मामाजी की बात सुन कर रुक गए थे. अंजलि के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. गगन तो सन्न ही रह गया. रजत को जैसे होश सा आया.

‘‘मम्मी, मामाजी किस की बात कर रहे हैं? कौन गोद लिया है?’’

अंजलि तो मानो बुत सी खड़ी रह गई थी. सालों पहले कहे गए मामाजी के शब्द, ‘गैर, गैर होते हैं अपने अपने, मैं ऐसा साबित कर दूंगा,’ उस की समझ में अब आ रहे थे. तो इतने सालों बाद मामाजी इसलिए मेरे घर आए हैं कि मेरा बसाबसाया संसार उजाड़ दें.

गगन अभी तक खामोश मामाजी को ही देख रहा था. अंजलि को जैसे होश आया हो, ‘‘कुछ नहीं, बेटे, किसी और गगन की बात कर रहे हैं. तुम अपने कमरे में जाओ.’’

मुकेश के पांव जड़ हो रहे थे.

‘‘अरे, अंजलि बेटे, तुम ने गगन को बताया नहीं कि इस को तुम अनाथाश्रम से लाई थीं. उस के बाद रजत पैदा हुआ था…’’ मामाजी रहस्यमय मुसकान के साथ बोले.

‘‘यह क्या कह रहे हैं, मामाजी?’’ मुकेश विचलित होते हुए बोला.

‘‘देखो मुकेश, आज नहीं तो कल किसी न किसी तरह गगन को सच का पता चल ही जाएगा तो फिर तुम क्यों छिपा रहे हो इस को.’’

गगन जहां खड़ा था वहीं बुत की तरह खड़ा रहा, पर उस की आंखें भर आईं, क्योंकि मम्मीपापा भी मामाजी को चुप कराने की ही कोशिश कर रहे थे. यानी वह जो कुछ कह रहे हैं वह सच… रजत हैरानपरेशान सब को देख रहा था. गगन पलट कर अपने बेडरूम में चला गया. रजत उस के पीछेपीछे चला आया. पूरे घर का माहौल पल भर में बदल गया था. कपड़े बदल कर गगन सो गया. उस ने खाना भी नहीं खाया.

‘‘मम्मी, गगन रोए जा रहा है, आज वह दोस्तों से मिलने भी नहीं गया. पहले कह रहा था कि मुझे एक पेपर लेने जाना है.’’

अंजलि की हिम्मत नहीं हुई गगन से कुछ भी पूछे. रात के खाने के लिए अंजलि ने ही नहीं चाहा कि गगन व रजत मामाजी के पास बैठ कर खाना खाएं. मामाजी टीवी देखने में मस्त थे. ऐसा लग रहा था कि उन का मतलब हल हो गया. मुकेश भी ज्यादा बात नहीं कर रहा था. उसे ध्यान आ रहा था उस झगड़े का, जो मम्मीपापा, मामामामी ने उस के साथ किया था. दरअसल, वे चाहते थे कि हमारा बच्चा नहीं हुआ तो मामी के छोटे बच्चे को गोद ले लें. पर अंजलि चाहती थी कि हम उस बच्चे को गोद लें जिस के मातापिता का पता न हो, ताकि कोई चांस ही न रहे कि बच्चा बड़ा हो कर अपने असली मातापिता की तरफ झुक जाए. वह यह भी चाहती थी कि जिसे वह गोद ले वह बच्चा उसे ही अपनी मां समझे.

वक्त का दोहराव : शशांक को आखिर कौन सी बात याद आई

शशांक दबे पांव छत पर पहुंचा. पूरे महल्ले में निस्तब्धता छाई हुई थी. कहीं आग से झुलसे मकान, टूटी दुकानें, सड़कों पर टूटी लाठियां, ईंटपत्थर और कहींकहीं तो खून के धब्बे भी नजर आ रहे थे. कितना खौफनाक मंजर था. हिंदू-मुसलिम दंगे ने नफरत की ऐसी आग लगाई है कि इंसान सभ्यता की सभी हदों को लांघ कर दरिंदगी पर उतर आता है.

राजनीतिबाज न जाने कब बाज आएंगे अपनी रोटियां सेंकने से. शशांक के अंतर में अपने दादाजी के कहे वो शब्द याद आ रहे थे कि नेता लोग राजनीति खेल जाते हैं और कितने ही लोग अपनी जान से खेल जाते हैं…

भारत-पाकिस्तान का बंटवारा. मानो एक हंसतेखेलते परिवार का दोफाड़ कर दिया गया. कौन अपना, कौन पराया. हिंदू-मुसलमानों के मन में ऐसा जहर घोला कि देखते ही देखते कल तक एक ही थाली में साथसाथ खाते दोस्त एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे. अपने पिताजी के मुंह से सुनी थी उस ने उस वक्त की दास्तान. आज वही कहानी फिर से उस की आंखों के सामने पसरने लगी थी…

हवेलीनुमा दोमंजिला घर और बहुत बड़ा चौक, चौक को पार कर के एक बहुत बड़ा दरवाजा, दरवाजा क्या था, पूरा किले का दरवाजा था, बड़ीबड़ी सांकल, सेफ पोल, बड़ेबड़े ताले उस दरवाजे को खोलना व बंद करना हर एक के बस की बात नहीं थी. मास्टर जीवन लाल ही उसे अपने मुलाजिमों के साथ मिल कर खोलते व बंद करते थे.

लेकिन आज यह क्या, वही दरवाजा, ऐसे लगता था कि बस अब गिरा तब गिरा. लगता भी क्यों न, आज एक बहुत बड़ा झुंड उस दरवाजे को धकेल रहा था, पीट रहा था, यह कैसा झुंड था?

मास्टर जीवनलाल जिन का इस पूरे शहर में नाम था, इज्जत थी, रुतबा था, आज वही मास्टरजी अपने पूरे परिवार के साथ इस हवेली में सांस रोके बैठे हैं.

परिवार में पत्नी, 3 बेटे, 3 बेटियां, बहू, सालभर का एक पोता सभी तो हैं, हंसता खेलता परिवार है.

कुछ समय से चल रही हिंदू मुसलमानों की आपस की दूरियां दिख तो रही थीं पर हालात ऐसे हो जाएंगे, किसी ने सोचा भी न था.

मुसलमान और हिंदू एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे, आपस में इतनी नफरत होगी, कभी किसी ने सोचा भी न था. यह क्या हो गया भाइयो, जन्मजन्म से एकदूसरे के साथ रहते आए परिवार एकदूसरे से इतनी नफरत क्यों करने लगे.

हालात ऐसे हो गए थे कि जवान लड़कियों को उठा कर ले जाया जा रहा था.  बूढ़ों को मार दिया जा रहा था. मास्टर जीवन लाल अपनी तीनों जवान लड़कियों और बहू को हवेली की ऊपर वाली मंजिल पर पलंग के नीचे छिपाए हुए थे और दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देख रहे थे. कभी भी दरवाजा टूट सकता था.

मास्टर जीवन लाल का बड़ा बेटा, कटार लिए खड़ा था कि दरवाजा खुलते ही वह अपनी तीनों बहनों व पत्नी को इसलिए मार डालेगा कि कोई उन्हें उठा कर नहीं ले जा पाए. बहनें व पत्नी सामने मौत खड़ी देख ऐसे कांप रही थीं जैसे आंधी में डाल पर लगा पत्ता फड़फड़ा रहा हो.

पर यह क्या, दरवाजे के पीटने और धकेलते रहने के बीच एक आवाज उभरी. वह आवाज थी मास्टर जीवन लाल के किसी विद्यार्थी की. वह कह रहा था कि अरे, क्या कर रहे हो. यह तो मेरे मास्टरजी का घर है. इस घर को छोड़ दो. आगे चलो, और देखते ही देखते बाहर कुछ शांति हो गई.

रात का यह तूफान जब गुजर गया तो मास्टर जीवन लाल ने सोचा कि यहां से अपने पूरे परिवार को सहीसलामत कैसे बाहर निकाला जाए. इस सोच में वे दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो बाहर का भयानक दृश्य देख कर रो पड़े. लाशें पड़ी हैं, कोई तड़प रहा है, कोई पानी मांग रहा है. जिस गली में वे और उन का परिवार बड़ी शान से होली, दीवाली, ईद मनाते थे, पड़ोसियों के साथ हंसीमजाक, मौजमस्ती होती थी, वही गली आज खून से नहाई हुई है. सभी आज कितने बेबस व लाचार हैं, किस को पानी पिलाएं, किस को अस्पताल पहुंचाएं. रात आए तूफान से घबराए, आगे आने वाले तूफान से अपने परिवार को बचाने के लिए वे क्या करें. अपनी तीनों जवान बेटियों को आगे आने वाले तूफान से बचाने की गरज से सबकुछ अनदेखा कर के वे आगे बढ़ गए.

मास्टर जीवन लाल जब बाहर का जायजा लेने निकले तो उन्हें पता चला कि हिंदुओं से यह जगह खाली कराई जा रही है. हिंदुओं को किसी तरह लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है और वहां से आगे.

मास्टर जीवन लाल ने यह सुना तो वे जल्दी ही अपने परिवार की हिफाजत के लिए वापस मुड़े और घर पहुंच कर उन्होंने बीवी व बच्चों से कहा कि घर खाली करने की तैयारी करो. अब यहां से सबकुछ छोड़छाड़ कर जाना होगा.

इतना सुनते ही पूरा परिवार शोक में डूब गया. ऐसा होना लाजिमी भी है. सालों से यहां रह रहे थे. यहीं पैदा हुए, यहीं बड़े हुए, यहीं पढ़े और फिर उन से कहा जाए कि यहां तुम्हारा कुछ नहीं है, तुम यहां से जाओ, कैसा लगेगा. खैर, मास्टर जीवन लाल ने हिम्मत दिखाते हुए सब को तैयार किया और जरूरी कागजात व कुछ पैसे लिए. फिर उस आलीशान हवेली को हमेशा के लिए आंसुओं से अलविदा किया.

पैर हवेली के बाहर निकले तो इतने भारी थे कि उठ ही नहीं रहे थे. दिल हाहाकार कर रहा था. परंतु फिर भी उन्होंने अपने परिवार को देखा हिम्मत की और चल पड़े.

अब मास्टर जीवन लाल बिना छत, बेसहारा अपने परिवार के साथ खुले आसमान के नीचे खड़े थे. अब उन के पास कुछ न था. हाय समय का फेर देखो, कुछ समय पहले तो खुशियों की लहरें उठ रही थीं और अब यह क्या हो गया. यह कैसा तूफान था. इस तूफानी बवंडर में कैसे फंस गए. कब बाहर निकलेंगे इस तूफान से, पता नहीं.

अब मास्टर जीवन लाल के पास एक ही मकसद था कि अपने परिवार को सहीसलामत हिंदुस्तान पहुंचाया जाए. मास्टर जीवन लाल को पता चला कि ट्रक भर कर लोगों को लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है. बहुत कोशिश के बाद मास्टर जीवन लाल की बहू व पत्नी को एक ट्रक में जगह मिल गई. और पीछे रह गईं मास्टरजी की बेटियां व बेटे.

उफ्फ अब क्या करें अब जो रह गए उन्हें किस के सहारे छोड़ें और जो चले गए उन्हें आगे का कुछ पता नहीं. मास्टरजी इस कशमकश में खड़े थे कि फिर लोगों का जनून उभरा. मार डालो, काट डालो की आवाजें. मास्टरजी फिर से परेशान हो गए. अब वे बेटियों को कहां छिपाएं. मास्टरजी की आंखों से आंसू बह निकले.

इतने में मास्टरजी को एक फरिश्ते की आवाज सुनाई दी. सलाम अलैकम, भाईजान. मास्टरजी ने जब उस ओर देखा तो मास्टरजी के सामने चलचित्र की तरह पुरानी घटनाएं याद आ गईं. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे. दोनों परिवार एकसाथ सारे तीजत्योहार एकसाथ मनाते थे. फिर अचानक सलीम भाई को विदेश जाना पड़ गया. और अब मिले तो इस हाल में. न हवेली अपनी थी, न ही देश अपना रह गया था. सबकुछ खत्म हो चुका था. मास्टरजी लुटेपिटे खड़े थे.

सलीम भाई ने मास्टरजी को गले लगा लिया. मास्टरजी का हाल देख कर सलीम भाई भी रो पड़े. सलीम भाई ने मास्टरजी को एक बहुत बड़ी तसल्ली दी, कहा कि भाईजान, आप की बेटियां मेरी बेटियां. अब तुम इन की फिक्र छोड़ो और लाहौर जा कर भाभीजी और बहू को खोजो. मास्टरजी के पास अब कोई चारा भी नहीं था. सलीम भाई का विश्वास ही था, और वे आगे बढ़ गए.

कितना सहा होगा उस वक्त लोगों ने जब अपनी जड़ों से उखड़ कर रिफ्यूजी बन गए होंगे. धर्म क्या यही सिखाता है हमें, तोड़ दो रिश्तों को, मानवीय संवेदनाओं का खून कर दो.

बरसों पुरानी हिंदू, मुसलमान की वह नफरत आज भी बरकरार है तो इन नेताओं की वजह से, धर्म के ठेकेदारों की वजह से, अंधविश्वास की गठरी उठाए लोगों की अंधभक्ति की वजह से.

काश, जल्दी ही हमें समझ में आ जाए कि धर्म तो दिलों को मिलाता है, चोट पर मरहम लगाता है. खून की नदियां नहीं बहाता, बच्चों को रुलाता नहीं, औरतों की इज्जत नहीं उतारता, बसेबसाए घरों को उजाड़ता नहीं. काश, यह बात आने वाली हमारी पीढ़ी जल्दी ही समझ जाए.

 

तपस्या- भाग 3 : क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली?

‘‘अब मैं क्या करूं? कहां से इंतजाम करूं रुपयों का? तू ही शिखर को खबर कर दे, शैली. मेरे तो जेवर भी मकान के मुकदमे में गिरवी  पड़े  हुए हैं,’’ शोभा की रुलाई नहीं थम रही थी.

जीजाजी की आंखों की रोशनी… उन के नन्हे बच्चे…सब का भविष्य एकसाथ ही शैली के  आगे घूम गया था.

‘‘आप ऐसा करिए, जीजी, अभी तो ये मेरे जेवर हैं, इन्हें ले जाइए. इन्हें खबर भी करूंगी तो इतनी जल्दी  कहां पहुंच पाएंगे रुपए?’’

और शैली ने अलमारी से निकाल कर अपनी चूडि़यां और जंजीर  आगे रख दी थीं.

‘‘नहीं, शैली, नहीं…’’ शोभा स्तंभित थी.

फिर कहनेसुनने के बाद ही वह जेवर लेने के लिए तैयार हो पाई थी. मां की रुलाई फूट पड़ी थी.

‘‘बहू, तू तो हीरा है.’’

‘‘पता नहीं शिखर कब इस हीरे का मोल समझ पाएगा,’’ शोभा की आंखों में फिर खुशी के आंसू छलक पड़े थे.

पर शैली को अनोखा संतोष  मिला था. उस के मन ने कहा, उस का नहीं तो किसी और का परिवार तो बनासंवरा रहे. जेवरों का शौक तो उसे वैसे ही नहीं था. और अब जेवर पहने भी तो किस की खातिर? मन की उसांस को उस ने दबा  दिया था.

8 दिन के बाद खबर मिली थी, आपरेशन सफल रहा. शिखर को भी अब सूचना मिल गई थी, और वह आ रहा था. पर इस बार शैली ने अपनी सारी उत्कंठा को दबा लिया था. अब वह किसी तरह का उत्साह  प्रदर्शित नहीं कर  पा रही थी. सिर्फ तटस्थ भाव से रहना चाहती थी वह.

‘‘मां, कैसी हो? सुना है, बहुत बीमार रही हो तुम. यह क्या हालत बना रखी है? जीजाजी को क्या हुआ था अचानक?’’ शिखर ने पहुंचते ही मां से प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘मेरी  तो तबीयत तू देख ही रहा है, बेटे. बीच में तो और भी बिगड़ गई थी. बिस्तर से उठ नहीं पा रही थी. बेचारी बहू ने ही सब संभाला. तेरे जीजाजी  की तो आंखों की रोशनी ही चली गई थी. उसी समय आपरेशन नहीं होता तो पता नहीं क्या होता. आपरेशन के लिए पैसों का भी सवाल था, लेकिन उसी समय बहू ने अपने जेवर दे कर तेरे जीजाजी  की आंखों की रोशनी वापस ला दी.’’

‘‘जेवर दे दिए…’’ शिखर हतप्रभ था.

‘‘हां, क्या करती शोभा? कह रही थी कि तुझे खबर कर के रुपए मंगवाए तो आतेआते भी तो समय लग जाएगा.’’

मां बहुत कुछ कहती जा रही थीं पर शिखर के सामने सबकुछ गड्डमड्ड हो गया था. शैली चुपचाप आ कर नाश्ता रख गई थी. वह नजर उठा कर  सिर ढके शैली को देखता रहा था.

‘‘मांजी, खाना क्या बनेगा?’’ शैली ने धीरे से मां से पूछा था.

‘‘तू चल. मैं भी अभी आती हूं रसोई में,’’ बेटे के आगमन से ही मां उत्साहित हो उठी थीं. देर तक उस का हालचाल पूछती रही थीं. अपने  दुखदर्द  सुनाती रही थीं.

‘‘अब बहू भी एम.ए. की पढ़ाई कर रही है. चाहती है, नौकरी कर ले.’’

‘‘नौकरी,’’ पहली बार कुछ चुभा शिखर के मन में. इतने रुपए हर महीने  भेजता हूं, क्या काफी नहीं होते?

तभी उस की मां बोलीं, ‘‘अच्छा है. मन तो लगेगा उस का.’’

वह सुन कर चुप रह गया था. पहली बार उसे ध्यान आया, इतनी बातों के बीच इस बार मां ने एक बार भी नहीं कहा कि तू बहू को अपने साथ ले जा. वैसे तो हर चिट्ठी में उन की यही रट रहती थी. शायद अब अभ्यस्त हो गई हैं  या जान गई हैं कि वह नहीं ले जाना चाहेगा. हाथमुंह धो कर वह अपने किसी दोस्त से मिलने के लिए घर से निकला  पर मन ही नहीं हुआ जाने का.

शैली ने शोभा को अपने जेवर दे  दिए, एक यही बात उस  के मन में गूंज रही थी. वह तो शैली और उस के पिता  दोनों को ही बेहद स्वार्थी समझता रहा था जो सिर्फ अपना मतलब हल करना जानते हों. जब से शैली के पिता ने उस के बौस से कह कर उस पर शादी के लिए दबाव डलवाया था तभी से उस का मन इस परिवार के लिए नफरत से भर गया था और उस ने सोच लिया था कि मौका पड़ने पर वह भी इन लोगों से बदला ले कर रहेगा. उस की तो अभी 2-4 साल शादी करने की इच्छा नहीं थी, पर इन लोगों ने चतुराई से उस के भोलेभाले पिता को फांस लिया. यही सोचता था वह अब तक.

फिर शैली का हर समय चुप रहना उसे खल जाता. कभी अपनेआप पत्र भी तो नहीं लिखा था उस ने. ठीक है, दिखाती रहो अपना घमंड. लौट आया तो  मां ने उस का खाना परोस दिया था. पास ही बैठी बड़े चाव से खिलाती रही थीं. शैली रसोई में ही थी. उसे लग रहा था कि  शैली जानबूझ कर ही उस  के सामने आने से कतरा रही है.

खाना खा कर उस ने कोई पत्रिका उठा ली थी. मां और शैली ने भी खाना खा लिया था. फिर मां को दवाई  दे कर शैली मां  के कमरे से जुड़े अपने छोटे से कमरे में चली गई और कमरे की बत्ती जला दी थी.

देर तक नींद नहीं आई थी शिखर को. 2-3 बार बीच में पानी पीने के बहाने  वह उठा भी था. फिर याद आया था पानी का जग  तो शैली  कमरे में ही  रख गई थी. कई बार इच्छा हुई थी चुपचाप उठ कर शैली को  आवाज देने की. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आज  पहली बार उसे क्या हो रहा है. मन ही मन वह अपने परिवार के बारे में सोचता रहा था. वह सगा बेटा हो कर भी घरपरिवार का इतना ध्यान नहीं रख पा रहा था. फिर शैली तो दूसरे घर की है. इसे क्या जरूरत है सब के लिए मरनेखपने की, जबकि उस का पति ही उस की खोजखबर नहीं ले रहा हो?

पूरी रात वह सो नहीं सका था.

दूसरा दिन मां को डाक्टर के यहां दिखाने के लिए ले जाने, सारे परीक्षण फिर से करवाने में बीता था.

सारी दौड़धूप में शाम तक काफी थक चुका था वह. शैली अकेली कैसे कर पाती होगी? दिनभर वह भी तो मां के साथ ही उन्हें सहारा दे कर चलती रही थी. फिर थकान के  बावजूद रात को मां से पूछ कर उस की पसंद के कई व्यंजन  खाने  में बना लिए थे.

‘‘मां, तुम लोग भी साथ ही खा लो न,’’ शैली की तरफ देखते हुए उस ने कहा था.

‘‘नहीं, बेटे, तू पहले गरमगरम खा ले,’’ मां का स्वर लाड़ में भीगा हुआ था.

कमरे में आज अखबार पढ़ते हुए शिखर का मन जैसे उधर ही उलझा रहा था. मां ने शायद खाना खा लिया था, ‘‘बहू, मैं तो थक गईर् हूं्. दवाई दे कर बत्ती बुझा दे,’’ उन की आवाज आ रही थी. उधर शैली रसोईघर में सब सामान समेट रही थी.

‘‘एक प्याला कौफी मिल सकेगी क्या?’’ रसोई के दरवाजे पर खड़े हो कर उस ने कहा था.

शैली ने नजर उठा कर देखा भर था. क्या था उन नजरों में, शिखर जैसे सामना ही नहीं कर पा रहा था.

शैली कौफी का कप मेज पर रख कर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि शिखर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आओ, बैठो.’’

उस के कदम ठिठक से गए थे. दूर की कुरसी की तरफ बैठने को उस के कदम बढ़े ही थे कि शिखर ने धीरे से हाथ खींच कर उसे अपने पास पलंग पर बिठा लिया था.

लज्जा से सिमटी वह कुछ बोल भी नहीं पाई थी.

‘‘मां की तबीयत अब तो काफी ठीक जान पड़ रही है,’’ दो क्षण रुक कर शिखर ने बात शुरू करने का प्रयास किया था.

‘‘हां, 2 दिन से घर में खूब चलफिर रही हैं,’’ शैली ने जवाब में कहा था. फिर जैसे उसे कुछ याद हो आया था और वह बोली थी, ‘‘आप शोभा जीजी से भी मिलने जाएंगे न?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मांजी को भी साथ ले जाइएगा. थोड़ा परिवर्तन हो जाएगा तो उन का मन बदल जाएगा. वैसे….घर से जा भी कहां पाती हैं.’’

शिखर चुपचाप शैली की तरफ देखता भर रहा था.

‘‘मां को ही क्यों, मैं तुम्हें भी साथ ले चलूंगा, सदा के लिए अपने साथ.’’

धीरे से शैली को उस ने अपने पास खींच लिया था. उस के कंधों से लगी शैली का मन जैसे उन सुमधुर क्षणों में सदा के लिए डूब जाना चाह रहा था.

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