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कविता
खुद के जाम से पी लो दो घूंट जिंदगी के
सुनो शोर धड़कनों का, जब जिंदगी खामोश होती है. सुनो सरगोशी सांसों की, जब सोच बेहोश सी होती है.
मलेंद्र कुमार
अपने प्यार से मेरा तन मन नहला दो न
रूप को आंख से भी जरा पीया कीजे
भर कर अपनी बांहों में खूब प्यार कीजिए
मुझे छोड़ कर अब कहीं न जाओ
आप की जिस पर नजर हो गई
जाड़े की तपिश और तेरा अंगूरी बदन
रसभरे तेरे होंठों की आपसी घिसाई में
जन्नत भी इस हुस्न से पनाह मांगती है
तेरे बिन सजनी कैसे कटेंगी सर्द लंबी रातें
तू खूबसूरत, तेरी हर अदा भी है खूबसूरत
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