सुपरकॉप सोनिया नारंग: राजनीतिज्ञों को सिखाया सबक

लेखक- पुष्कर 

सोनिया नारंग वह दबंग महिला आईपीएस हैं जो न मुख्यमंत्री के सामने झुकीं, न लोकायुक्त के सामने. उन्होंने वही किया जो एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को करना चाहिए. यही वजह है कि कर्नाटक के लोग सीबीआई से ज्यादा सोनिया की जांच पर…

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा ले कर जब कोई महिला ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपना वर्चस्व कायम करती है तो उस की एक अलग ही छवि निखर कर आती है, बेखौफ, दबंग और ईमानदार अफसर की छवि. जिस के लिए उस का कर्तव्य पहले होता है, बाकी सब बाद में.

जोश और जुनून से लबरेज सोनिया नारंग भी उन्हीं विशेष अफसरों में अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराती हैं जिन के लिए आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए कानून की एक ही परिभाषा है. फिर चाहे वो खास अफसरशाही पर हुकूमत चलाने वाले नेता ही क्यों न हों.

सोनिया नारंग का जन्म और परवरिश चंडीगढ़ में हुई. उन के पिता भी प्रशासनिक अधकारी थे. उन से प्रेरणा ले कर सोनिया ने बचपन से ही सिविल सर्विस जौइन करने को अपना लक्ष्य बना लिया था. इस लक्ष्य को पाने की तैयारी उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही शुरू कर दी थी. 1999 में पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में गोल्ड मेडल पाने वाली सोनिया नारंग की लगन और मेहनत रंग लाई. वह कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्ग में हुई. सोनिया ने जौइंन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में हो रहे एक प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता व उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंची. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया नारंग से ही उलझ कर अभद्रता पर उतर आए.

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तब सोनिया नारंग ने एमएलए रेनुकाचार्य को कानून का सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया.

इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बुरी तरह से बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया निडरता से अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में यही भाजपा नेता रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

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सोनिया नारंग ने अपने हौसले और मजबूत इरादों का परिचय तब भी दिया था जब कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल कर दिया था.

मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सर्वजनिक किया. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खदान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम भी सामने आया है. सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर भी भारी

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तूफान सा मच गया. एक बेदाग छवि की आईपीएस अधिकारी का नाम किसी घोटाले में लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था. लेकिन सोनिया नारंग घोटाले से उठी आंधी के बीच भी अविचल रहीं.

उन्होंने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही अन्य अधिकारियों की तरह सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. इस सब की बजाय सोनिया नारंग ने सीएम के आरोप के खिलाफ मजबूती से मोर्चा खोल दिया और सीधे प्रेस के लिए स्टेटमेंट जारी किए.

सोनिया ने कहा, ‘मेरी अंतरात्मा साफ है. आप चाहें तो किसी भी तरह की जांच करा लें. मैं इस आरोप का न सिर्फ खंडन करती हूं, बल्कि इस का कानूनी तरीके से हर स्तर पर विरोध भी करूंगी.’ उन्होंने ऐसा ही किया भी. सोनिया नारंग ने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए बताया, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है, जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

कानून को सर्वोपरि मानने वाली सोनिया ने किसी भी अवैध खनन को बढ़ावा देने या खनन माफिया से सांठगांठ करने से स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए तत्कालिन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के आरोप का पुरजोर विरोध किया था. मुख्यमंत्री से सीधे टकराने का साहस सोनिया नारंग जैसी दबंग और ईमानदार आईपीएस ही कर सकती थीं. आखिरकार उन का विश्वास जीता और उन्हें इस मामले में क्लीन चिट भी मिली.

यही वजह है कि कर्नाटक के लोग सोनिया नारंग पर अटूट विश्वास करते हैं. यहां तक कि निष्पक्ष जांच के लिए उन्हें सीबीआई से ज्यादा भरोसा अपनी अफसर सोनिया पर है.

ऐसा ही एक मामला तब सामने आया था जब सोनिया नारंग कर्नाटक लोकायुक्त की एसपी थीं. लोकायुक्त जस्टिस वाई भास्कर राव के बेटे अश्विन राव और कुछ रिश्तेदारों पर राज्य के संदिग्ध भ्रष्ट अफसरों से फिरौती वसूली का रैकेट चलाने का आरोप लगा था.

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पीडब्ल्यूडी के एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे गए थे. उक्त इंजीनियर को जांच से बचने के लिए 25 लाख रुपए तुरंत देने को कहा गया था. तब इंजीनियर ने इस बात की शिकायत लोकायुक्त पुलिस एसपी सोनिया नारंग से की.

उन्होंने मौखिक शिकायत के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की विधिवत जांच कर के अपनी रिपोर्ट लोकायुक्त के रजिस्ट्रार को सौंप दी. इस पर केस खुल कर सामने आया. परिणामस्वरूप  जस्टिस वाई भास्कर राव को इस्तीफा देना पड़ा और उन के बेटे सहित 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. इसी से पे्ररित हो कर उन के जीवन पर कन्नड़ भाषा में ‘अहिल्या’ नाम की फिल्म बनी है.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की

लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

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तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

प्यार का ‘पागलपन’

प्यार की चाहत स्वाभाविक है. स्त्री हो या पुरुष सबको एक साथी की जरूरत होती है. मगर जब यह प्यार दीवानगी और पागलपन की हद को छूने लगे तो यहां से मर्यादा और कानून की सीमाओं का उल्लंघन शुरू हो जाता है, बात जब बढ़ती है तो बात “अपराध” तक जा पहुंचती है. और अपने जीवन के साथ साथ दूसरों का जीवन भी बर्बाद हो जाता है.

सवाल है संबंधों के और सामाजिक दायरे के भीतर रहने का. इसके उल्लंघन के साथ ही कानून का भी उल्लंघन शुरू हो जाता है और अपराध की श्रेणी में आ जाता है. आज इस रिपोर्ट में इस महत्वपूर्ण सामाजिक और अपराधिक मसले में होते तब्दीली पर हम कुछ ऐसे तथ्य आपके सामने रखने जा रहे हैं जो बेहद जरूरी हैं. और जनहित के महत्वपूर्ण सवाल भी.

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देखिए कुछ ऐसे अपराधिक घटनाक्रम जो हमारी इस रिपोर्ट की पुष्टि करते हैं.

पहला घटनाक्रम–  छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिला में एक शख्स सुरजीत सिंह ने अपने पड़ोसन के खातिर अपने पत्नी परिवार को छोड़कर दूसरी महिला का दामन थामा और दो परिवार एक साथ तबाही के दहलीज पर पहुंच गए .

दूसरा घटनाक्रम– जिला राजनांदगांव में एक महिला ने पड़ोस के एक शादीशुदा व्यक्ति रमेश शर्मा से प्यार की पेंगे बढ़ाई और अपने घर परिवार को छोड़कर भाग गई.इस तरह दो परिवार तबाह हो गए.

तीसरा घटनाक्रम– छत्तीसगढ़ के न्यायधानी बिलासपुर के जबरा पारा के सुदामा वर्मा नामक शख्स ने एक महिला के फेर में पड़कर अपने तीन बच्चों और पत्नी को छोड़ दूसरा विवाह रचा लिया. पहली पत्नी ने बच्चों से आखिरकार आत्महत्या कर ली.

और जलाकर मारने की कोशिश

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के निकट सेरीखेड़ी गांव आदिवासी बाहुल्य है. 9 मार्च 2021 को रात एक शादीशुदा शख्स ने पड़ोस में जाने वाली एक नाबालिग आदिवासी लड़की को जलाकर मारने की कोशिश की. प्यार के पागलपन में उसने मिट्‌टी तेल (किरोसीन आइल) डालकर उसके शरीर में आग लगाने की हिमाकत कर दी.

इस दौरान झूमाझटकी में आरोपी भी झुलस गया. लेकिन जब उसे अपराध का संज्ञान हुआ तो वहां से भाग निकला. नाबालिग चीख पुकार करते हुए बाहर आई. परिजनों ने आग बुझायी. उसके बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया.

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डाक्टरों के मुताबिक नाबालिग 50 फीसदी झुलस गई है. हादसे के बाद से सेरीखेड़ी में सनसनी फैल गई. सवाल यह है कि आरोपी नाबालिग युवती के घर के भीतर कैसे पहुंच गया.इतनी बड़ी घटना के बाद कैसे भाग गया.

पुलिस बताती है कि यह सारा मामला एक तरफा प्यार का है.

सेरीखेड़ी में 16 साल की रानू (काल्पनिक नाम) परिवार के साथ रहती है‌ . वहीं पास में आरोपी करन पोर्ते (22) का घर है. वह पिछले कुछ महीने से रानू काे परेशान कर रहा था वह जहां भी जाती वह उसका पीछा करते हुए पहुंच जाता. करन नाबालिग से शादी करना चाहता था, जबकि नाबालिग उसे पसंद नहीं करती. वह करन को बातचीत करने से भी इंकार करती रही.

नाबालिग के पिता ने कई बार करन काे समझाया और चेतावनी भी दी कि वह रानू को परेशान करना छोड़ दे. इसके बाद भी करन ने उसका पीछा करना नहीं छोड़ा.वह पिछले कुछ दिनों से उसे फोन कर परेशान करने लगा था खास बात यह कि करन एक मजदूर है और विवाहित भी उसके दो बच्चे हैं.

घटना रात्रि को 3 बजे करन मौका देख कर रानू के घर घुस गया. नाबालिग के माता-पिता और बहन सो रहे थे.वह नाबालिग के कमरे में घुस गया. वहां दोनों के बीच विवाद हुआ. करन ने अचानक ही रानू पर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी. इस दौरान उसके शरीर पर भी आग लग गई. उसने तुरंत अपने कपड़ों की आग बुझाई और वहां से भाग गया.

रानू चींखती बाहर आई. उसकी आवाज सुनकर परिजनों ने आग की लपटों में घिरा देख किसी तरह आग बुझाई और उसे अस्पताल ले गए.

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प्यार का अपराधीकरण

दरअसल, जब कोई विवाहित किसी नाबालिग अथवा अविवाहित लड़की से प्यार का इजहार करने लगे और शादी करने की जिद तो यहीं से अपराध के बीज पड़ने लगते हैं. समाज और कानून के नियमों परंपराओं का उल्लंघन करने के कारण जहां अपराध होने लगते हैं वही विकृति भी पैदा हो जाती है.
उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता बीके शुक्ला के मुताबिक उनके पेशेवर समय में ऐसे अनेक मामले उनके पास आए हैं जिनमें ऊपर घटित अपराध घटनाक्रम के पात्र रानू और करन जैसे हालात रहे हैं. ऐसे मामलों में कुल मिलाकर दोनों ही परिवारों का जीवन बर्बाद होते मैंने देखा है. कानून की अपनी मर्यादा होती है, सीमाएं हैं. अच्छा हो कि इस लेख को पढ़कर समझ कर अगर कुछ लोग भी अपनी मर्यादा लक्ष्मण रेखा खींच लें, तो उनका जीवन सुखमय हो जाएगा.

पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह के मुताबिक अक्सर इस तरह के घटनाक्रम पुलिस के पास आते ही रहते हैं. मैंने विवेचना की है और पाया है कि पुरुष हो या स्त्री दोनों में से किसी के भी पैर भटक सकते हैं और जब जब ऐसा होता है तो सामाजिक परंपराओं का उल्लंघन होता है. और परिवार टूट जाते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता शिव दास महंत के मुताबिक उनके सामाजिक जीवन में भी ऐसे कुछ उदाहरण उन्होंने देखे समझे हैं. और जीवन की डगर में भटकती हुई महिला पुरुषों को समझाइश देकर उन्हें सही मार्ग पर लाने का छोटा सा सफल प्रयास किया है.

अप्राकृतिक कृत्य के जाल में नौनिहाल

चाइल्ड पोर्नोग्राफी का कानून सख्त से सख्त हो चुका है, उसी के बरक्स नौनिहालों.. बच्चों के साथ होने वाले अप्राकृतिक कृत्य भी समाज के लिए एक चिंता का विषय है.

दरअसल, यह कुछ ऐसी मानसिक बुनावट का गंभीर कुकृत्य… अपराध होता है जिसके शिकार न जाने कितने बच्चे होते रहते हैं और अक्सर अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं.

आज हम इस रिपोर्ट में इस गंभीर मसले पर अपराध के ताने-बाने और बच्चों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है, इस पर चर्चा कर रहे हैं.

वस्तुतः सच यह है कि बच्चे मासूम होते हैं और वह जल्द ही किसी के साथ भी हिल मिल जाते हैं. ऐसे में अगर मानसिक विकृति का कोई व्यक्ति बालक के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने की मंशा रखता है तो अक्सर सफल भी हो जाता है और स्थिति बिगड़ने पर बालक की हत्या भी हो जाती है.

ऐसा ही एक मसला छत्तीसगढ़ के जिला सूरजपुर में हाल में घटित हुआ जिसमें एक बच्चे के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने की कोशिश के बाद हत्या कर एक मजदूर गायब हो गया.

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सूरजपुर के गोपालपुर में 5 मार्च 2021 को 9 साल के एक मासूम बच्चे की खेत में लाश मिली थी. बच्चा गोपालपुर का ही रहने वाला था, वह घटना के एक दिन पूर्व शाम से लापता था. बच्चे की गायब होने की सूचना परिवार वालों ने थाने में की, तत्पश्चात बच्चे की तलाश शुरू हुई. बच्चे की खोजबीन शुरू की तो घर से कुछ ही दूर पर खेत में लाश मिली.

पुलिस ने बच्चे के शव का निरीक्षण कर प्रथम दृष्टया हत्या की परिस्थितियां पाई. आगे हत्या के कारणों पर पुलिस ने कई पहलुओं पर बारीकी से जांच शुरू की, गोपालपुर के निर्माणाधीन स्टेडियम में जहां बालक हमेशा खेलने जाया करता था, वहां मजदूरी कर रहे रूपनारायण से सख्ती से पूछताछ की गई, जिस पर उसने बच्चे के साथ शौच जाने के दौरान अनैतिक कृत्य करना स्वीकार किया. बच्चे के इनकार करने व शोर मचाने पर गला और मुंह दबाकर हत्या करने सच्चाई स्वीकार कर ली. जिस पर पुलिस ने आरोपी को विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया है.

अप्राकृतिक कृत्य आया सामने

जांच के दौरान पुलिस ने कई संदिग्धों से बारीकी से पूछताछ की . ग्राम गोपालपुर मे स्टेडियम में कार्यरत् मजदूरों से भी सख्ती से पूछताछ शुरू हुई. इसी दरमियान जानकारी मिली कि मजदूर के रूप नारायण को अंतिम बार गुम बालक के साथ देखा गया था. संदेही रूप नारायण से घटना के संबंध में पूछताछ की गई . उसने पुलिस को काफी गुमराह करने के बाद अंततः घटना को अंजाम देना स्वीकार किया. आरोपी रूपनारायण पिता सुखदेव उम्र 19 वर्ष निवासी ग्राम मकरबंधा थाना रामानुजनगर जो लगभग 1 माह से ग्राम गोपालपुर के स्टेडियम में अन्य मजदूरों के साथ झोपड़ी नुमा घर बना मजदूरी का काम कर रहा था. चॅूकि मृत बालक का घर स्टेडियम से नजदीक था, बालक खेलते-खेलते ग्राउण्ड आ जाता था और इससे मिलता और बात करता था जिससे बालक से आरोपी रूप नारायण अच्छी पहचान हो गई जिसका फायदा उठाकर दिनांक 4 मार्च की रात्रि करीब 7 बजे शौच जाने के बहाने बालक को अपने साथ खेत की तरफ ले गया जहां शौच करने के बाद आरोपी ने मृत बालक को खेत से लगे झाडियों के पास ले गया जहां उसके साथ अनैतिक संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. तब बालक के द्वारा इसका विरोध किया गया इस पर घबराकर आरोपी ने बालक का नाक मुंह को दबा दिया. बच्चा खामोश हो गया और बेहोश होकर पास के गढडे में गिर गया. अपनी जान बचाने के लिए मजदूर रूपनारायण ने बालक को वहां से उठाकर झाड़ी में फेंक कर छुपा दिया और फरार हो गया.

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जरूरत, परिजन सावधान रहें!

सूरजपुर जिला के पुलिस अधीक्षक राजेश कुकरेजा ने हमारे संवाददाता से बातचीत में कहा कि मासूम के साथ हुआ यह अपराध बेहद शर्मनाक और दिल को हिला देने वाला था. वस्तुत: आज समाज में इस बात के लिए “जागरूकता” की दरकार है की हम अपने बच्चों को कैसे इस तरह के अपराध से बचा सकते हैं.
इसे हेतु परिजनों को चाहिए कि मासूम बच्चों को किसी भी अपरिचित से मेल मुलाकात के समय ध्यान रखें क्योंकि कई मामलों में यह तथ्य सामने आया है की बच्चों के साथ अप्राकृतिक कृत्य कुछ इसी तरह के लोगों द्वारा होता है.

डॉक्टर जी. आर. पंजवानी के मुताबिक ऐसे मामलों में बच्चों के परिजनों को जागरूक रहना होगा क्योंकि थोड़ी सी चूक बड़ी सी घटना का बुलावा बन सकती है.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के मुताबिक उनके 20 वर्षों के कार्यकाल में कुछ बच्चों के साथ अप्राकृतिक कृत्य के मामले सामने आए है जिनमें आरोपी आसपास के परिजन अथवा परिचित या नौकर चाकर हुआ करते हैं.

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Women’s Day Special- साइबर अपराध: महिलाएं हैं सौफ्ट टारगेट

तकनीक जितनी ताकतवर होती है, उतनी ही तीखी और तेजतर्रार भी. किसी भी समाज और देश के लिए वहां होने वाले अपराध उस के माथे पर कलंक जैसे होते हैं. अब जब से दुनिया ‘साइबर वर्ल्ड’ के दमघोंटू गुब्बारे में बंद हो कर रह गई है, तब से वहां इस तकनीक से होने वाले अपराध भी बेलगाम होने लगे हैं.

इस कड़ी में साइबर उत्पीड़न सब से आगे और बड़ी मजबूती से इनसानियत को शर्मसार कर रही है. आमतौर पर यह उत्पीड़न समाज के उस हिस्से को चोट पहुंचा रहा है जिसे हम बड़ी शान से ‘आधी दुनिया’ का तमगा दे चुके हैं यानी महिला समाज. यही वजह है कि साइबर उत्पीड़न के ऐसेऐसे किस्से हमारे सामने आते हैं कि डर के मारे रोंगटे तक खड़े हो जाते हैं.

हाल ही में दिल्ली के दक्षिणपश्चिमी जिले की साइबर सैल ने सोशल मीडिया पर 50 से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को परेशान करने वाले 19 साल के एक लड़के रहीम खान को फरीदाबाद, हरियाणा से पकड़ा. वह इतना शातिर दिमाग था कि महिला के नाम पर फर्जी आईडी बना कर पहले तो सोशल मीडिया प्लेटफार्म से लड़कियों और महिलाओं को दोस्ती की रिक्वैस्ट भेजता था, फिर वहां मौजूद उन के फोटो से छेड़छाड़ कर वायरल करने की धमकी देता था. साथ ही, पीड़िता को अपना अश्लील फोटो भेजने को भी कहता था. रहीम खान की इस घटिया हरकत के चलते एक लड़की तो डर की वजह से डिप्रैशन में चली गई थी.

डीसीपी इंगित प्रताप सिंह के मुताबिक, आरके पुरम की एक पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा था कि कोई उसे उस के ही अश्लील फोटो इंस्टाग्राम आईडी के जरीए भेज रहा है. इतना ही नहीं, वह उस से अश्लील फोटो भी मांग रहा था.

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मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच साइबर सैल को सौंपी गई. साइबर सैल प्रभारी रमन कुमार सिंह की देखरेख में टीम ने जांच शुरू की और तकनीकी जांच के बाद एसआई नीरज कुमार की टीम ने फरीदाबाद के ऊंचा गांव के रहीम खान को पकड़ लिया.

पुलिस ने रहीम खान के मोबाइल फोन से कई चैट डिटेल, महिलाओं व लड़कियों के वीडियो क्लिप और फोटो बरामद किए.

ऐसे अपराध कोई महीनेसाल में नहीं होते हैं, बल्कि भारत जैसे देश में हर दूसरे सैकंड, एक महिला साइबर उत्पीड़न का शिकार होती है. एक नया शब्द ‘ट्रोलिंग’ तो जैसे आम हो गया है. सोशल मीडिया पर महिलाओं खासकर जवान लड़कियों से गालीगलौज करना, उन्हें धमकी देना, घूरना, बदनाम करना, पीछा करना, बदला लेना और अश्लील बातें करना इसी साइबर उत्पीड़न का ही घिनौना रूप है.

हैरत और शर्म की बात है कि देश में साल 2017 से साल 2019 के बीच धोखाधड़ी, यौन उत्पीड़न और घृणा से जुड़े साइबर अपराध के 93,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी थी.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 में 21,796, साल 2018 में 27,248 और साल 2019 में 44,546 साइबर अपराध मामले दर्ज किए गए.

जी. किशन रेड्डी ने बताया, “देश में होने वाले साइबर अपराध के पीछे जो विभिन्न मंशा रही हैं, उन में निजी दुश्मनी, धोखाधड़ी, यौन उत्पीड़न, नफरत फैलाना, पायरेसी का विस्तार, सूचनाओं की चोरी आदि शामिल हैं.”

साइबर उत्पीड़न में ज्यादातर मामले प्रेमप्रसंग के होते हैं. अगर किसी लड़की या महिला ने अपने पुरुष साथी से पीछा छुड़ाना चाहा (जब ऐसा युगल शादीशुदा नहीं है) तो तिलमिलाए आशिक ने उसे सोशल मीडिया पर बदनाम करने की धमकी दे डाली. जैसे वह उन के प्रेम दर्शाते फोटो या वीडियो या फिर चैटिंग को वायरल कर देगा. दुनिया को बता देगा कि वह कितनी चरित्रहीन है.

बहुत बार तो बहुत से सिरफिरे एकतरफा आशिक भी तकनीक का गलत इस्तेमाल कर के महिलाओं को ब्लैकमेल करते हैं. घबराई महिलाएं परेशान हो कर मैसेज डिलीट कर देती हैं. पर यह समस्या का हल नहीं है, बल्कि सामने वाले को बढ़ावा देना होता है. होना तो यह चाहिए कि जो महिलाएं ऐसे अपराध या साइबर हमलों का शिकार हुई हैं, उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए. पहले अपने परिवार वालों और फिर पुलिस में इस अपराध की शिकायत करनी चाहिए.

सवाल उठता है कि कानून इस में क्या और कितनी मदद कर सकता है? सब से पहले तो यह समझिए कि जब कोई लड़की या महिला के खिलाफ साइबर अपराध होता है, तो कानून का सहारा कैसे लिया जा सकता है? याद रखिए कि कंप्यूटर या मोबाइल फोन आदि का सहारा ले कर किए जाने वाले ऐसे मामले सीधेसीधे एक महिला की इज्जत को चोट पहुंचाने से जुड़े होते हैं. ऐसे अपराधों को भारतीय दंड संहिता की धारा 354, धारा 509 और 292(ए) में डाला जा सकता है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 354 कहती है कि अगर किसी महिला की लज्जा भंग करने के लिए उस पर हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल किया जाए तो इस धारा के तहत मामला आता है. ऐसे मामलों में अपराधी को कम से कम एक साल से 5 साल की सजा और आर्थिक दंड का भी प्रावधान है.

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वहीं धारा 509 के अनुसार अगर कोई शब्द, इशारा, ध्वनि या किसी वस्तु को इस आशय से दिखाया जाए जिस से किसी स्त्री की लज्जा का अनादर होता है या जिस से उस की निजता पर अतिक्रमण होता है तो ऐसी हालत में अपराधी को 3 साल तक जेल या आर्थिक दंड या दोनों ही सजा दी सकती हैं.

गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल भी बनाया गया है जिस में बताया गया है कि औनलाइन कैसे सुरक्षित रह सकते हैं. इस पोर्टल पर बच्चों और महिलाओं के साथ हो रहे साइबर अपराध की शिकायत भी दर्ज कराई जा सकती है.

ऐसा करने से बचें

-सोशल मीडिया पर अपने निजी फोटो डालने से बचें. किसी अनजान से चैटिंग करते हुए निजी बातें न करें. वीडियो भी न शेयर करें.

-सोशल मीडिया पर अपनी प्राइवेसी सैटिंग्स को पब्लिक न करें. सैटिंग्स ऐसी ही रखें कि आप के जानपहचान वाले ही आप के फोटो आदि देख सकें.

-सोशल मीडिया पर किसी अनजान को न जोड़ें. एकदम से भरोसा तो कतई न करें. अगर वह कहीं बाहर मिलने के लिए बुलाता है तो सावधान हो जाएं.

-अगर आप किसी समस्या में फंस भी जाएं तो घबराएं नहीं, बल्कि पुलिस को इस की जानकारी दें.

याद रखिए, तकनीक का यह तीखापन कानून और आप की जागरूकता व हिम्मत से ही कुंद किया जा सकता है, इसलिए सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हुए हमेशा जागरूक रहें.

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रोजगार: अटकी भर्तियां, दांव पर करियर

1. आरएएस भर्ती. पद : 980.

कोर्ट में मामला और वजह : विभागीय मंत्रालयिक कर्मचारी व भूतपूर्व सैनिक कोटे में अपात्र अभ्यर्थी बुलाए. 3 गुना के बजाय डेढ़ गुना अभ्यर्थी बुलाए.

2. पुलिस कांस्टेबल. पद : 5,438.

कोर्ट में मामला और वजह : जिला स्तर की जगह राज्य स्तर पर मैरिट बना दी.

3. स्टेनोग्राफर. पद : 1,085.

कारण : 2018 की भरती, टाइप टैस्ट, सर्वर डाउन का विवाद.

4. प्रीप्राइमरी टीचर, 2018. पद : 1310.

कोर्ट में मामला और वजह : दूसरे राज्यों से एनटीटी की डिगरी पर विवाद.

5. पटवारी भर्ती.

कोर्ट में मामला और वजह : ओबीसी आरक्षण व विवादित आंसरकी मामला.

6. एलडीसी भर्ती, 2018. पद : 11,322.

कोर्ट में मामला और वजह : मैरिट अनुसार संभाग व गृह जिले का आवंटन नहीं. हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो कोर्ट को भरती में दखल देना पड़ा.

7. पशु चिकित्सा अधिकारी भर्ती. कुल पद : 900.

कोर्ट में मामला और वजह : अंक और कटऔफ जारी किए बिना इंटरव्यू के लिए बुलाया.

8. पशुधन सहायक भर्ती.

कोर्ट में मामला और वजह : सवाल व आंसरकी में गड़बड़ी. हाईकोर्ट ने रोक लगाई.

9. हैडमास्टर भर्ती. कुल पद : 1,200. कोर्ट में मामला और वजह : भूतपूर्व सैनिकों को आरक्षण का लाभ न देने का मामला विवादित.

पिछले 2 साल में जिस तरह से हर भरती पेपर लीक या कोर्ट के चक्कर में लंबित पड़ी है, उस से साफ है कि सरकार में बैठे अफसर इन भर्तियों को लेकर संवेदनशील नहीं हैं. हर साल लाखों की तादाद में इंटर, ग्रेजुएशन पास करने वाले बच्चे जब किसी सरकारी नौकरी की लिखित परीक्षा दे कर वापस अपने घर तक नहीं पहुंंच पाते हैं, तब तक परीक्षा संबंधी वैबसाइट पर पेपर लीक या परीक्षा स्थगित होने की जानकारी अपलोड कर दी जाती है.

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भरती चाहे स्थगित हो या कोर्ट में जाए, पर इन सभी बातों का नतीजा अभ्यर्थी को ही भुगतना पड़ता है. वह अभ्यर्थी जो सालोंसाल दिनरात मेहनत कर के एक अदद सी नौकरी के सपने देखता है, पर उसे पेपर लीक या स्थगित होने से निराशा ही हाथ लगती है. जिस युवाशक्ति के दम पर हम दुनियाभर में इतराते घूमते हैं, देश की वही युवाशक्ति एक नौकरी के लिए दरदर भटकने को मजबूर है.

5 लाख कर्ज, जमीन गिरवी

हरिराम बताते हैं, “पिताजी ने 5 लाख रुपए कर्ज ले कर कई सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कराई. सोचा था कि मैं घर में बड़ा हूं, नौकरी लग जाएगी तो छोटों को भी रास्ता दिखा सकूंगा, लेकिन सब खत्म हो गया.”

हरिराम नागौर के मेड़तासिटी इलाके के रहने वाले हैं. उन्हें पहले लाइब्रेरियन भरती में नौकरी मिल जाने की पूरी उम्मीद थी, पर पेपर ही आउट हो गया. सरकार ने इम्तिहान रद्द कर दिया. अब जब दोबारा इम्तिहान कराया जा चुका है तो रिजल्ट जारी नहीं किया जा रहा है. भरोसा है कि इस इम्तिहान में पास हो जाएंगे, लेकिन हर दिन उम्मीद धीरेधीरे टूटती जा रही है. कर्ज इतना ज्यादा हो चुका है कि जमीन बेचने के सिवाय अब कोई रास्ता नहीं दिखता.

पति की मौत, बहाली भी अटकी

सुगना दौसा के प्रेमपुरा गांव की रहने वाली हैं. साल 2009 में एनटीटी किया था. साल 2018 में सरकार ने भरती निकाली. चयन भी हो गया. अंतिम परिणामों में भी नाम था. खुशी थी कि 1-2 महीने में नौकरी मिलेगी, लेकिन इंतजार लंबा होता गया.

इसी दौरान सुगना के पति की मौत हो गई. सोचा कि नौकरी होगी तो जिंदगी ठीक से कटेगी. लेकिन सरकार की लापरवाही से नियुक्ति आदेश पर रोक लग गई.

सुगना कहती हैं, “साल 2014 में शादी हो गई थी. साल 2018 में सरकार ने एनटीटी भरती निकली तो नौकरी की आस बंधी थी.”

सुगना का नियुक्ति आदेश इसलिए रुका कि सरकार ने गीता बजाज कालेज को इम्तिहान के बाद दायरे से बाहर कर दिया.

हाईकोर्ट में जीते, अब सुप्रीम कोर्ट में

प्रभु सिंह और उन की पत्नी अंजू बीकानेर के रहने वाले हैं. प्रभु सिंह ने बताया कि साल 2010 में बीएड की थी. 2012 की शिक्षक भरती में नंबर आ गया, लेकिन रिशफल नतीजे में बाहर हो गया. इस के बाद साल 2016 की शिक्षक भरती के लैवल 2 में इंगलिश विषय में नंबर आया. इस में भी रिशफल नतीजे में बाहर कर दिया गया.

हाईकोर्ट की सिंगल और डबल बैंच ने उन के हक में फैसला दिया. लेकिन सरकार ने नौकरी देने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी. अब इंसाफ का इंतजार है.

प्रभु सिंह के साथ उन की पत्नी अंजू शेखावत की कहानी भी ऐसी ही है. इसी भर्ती में चयन हुआ था, लेकिन रिशफल नतीजे में बाहर कर दिया गया.

चयन हुआ, बहाली नहीं

बाड़मेर के तेज सिंह का कहना है, “हम 4 भाई और 5 बहनें हैं. घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिताजी के पैसे तो मेरी और भाईबहनों की शादी और घर चलाने में ही खर्च हो गए. मुझे बीएड कराने के लिए उन्होंने 60,000 रुपए लोन लिया था.

“पहले साल 2013 की भरती में नंबर नहीं आया और फिर साल 2016 की भरती में नंबर आया तो मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया. मातापिता बुजुर्ग हो गए हैं. प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर किसी तरह घर चला रहा था, लेकिन कोरोना में लगे लौकडाउन के बाद से उस का भी वेतन अटक गया.”

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शादी का पैसा पढ़ाई पर खर्च

सांचौर तहसील में चौरा गांव है. रामशरण वहीं के रहने वाले हैं. पिता ने बेटियों की शादी के लिए खेत गिरवी रख कर 7 लाख रुपए का कर्ज लिया था. इसी रकम में से एक लाख रुपए खर्च कर रामशरण को रीट के लिए कोचिंग कराई गई. लेकिन सरकार न तो रिशफल नतीजा जारी कर रही और न ही प्रतीक्षा सूची.

रामशरण का कहना है कि रीट में 77 फीसदी से ज्यादा अंक हासिल किए. भरती के 863 पद आज भी खाली हैं. सरकार प्रतीक्षा सूची जारी करे तो नंबर आ जाएगा. मन में दर्द यह है कि बहन की शादी का पैसा पढ़ाई पर खर्च कर लिया, लेकिन नतीजा सिफर है.

नौकरी नहीं तो छोड़ गई पत्नी

गांव हसामपुर, सीकर के महेश कुमार लखेरा ने 2006-07 में ‘विद्यार्थी मित्र’ के रूप में नौकरी शुरू की. साल 2013 में शिक्षा सहायक भरती निकली, फिर 2015 में विद्यालय सहायक भरती, लेकिन दोनों ही भरतियां कोर्ट में अटक गई हैं.

दिसंबर, 2012 में शादी हुई, लेकिन कुछ दिन बाद पत्नी की मौत हो गई. दिसंबर, 2013 में दूसरी शादी की, लेकिन शादी के 4 महीने बाद अप्रैल, 2014 में सरकार ने ‘विद्यार्थी मित्रों’ को हटा दिया. बेरोजगार हो गए तो पत्नी बेटी को उन्हीं के पास छोड़ कर चली गई.

पढ़ाई में अव्वल, कर्ज की चिंता

राजसमंद के रहने वाले आदित्य शर्मा के घर वालों ने तकरीबन पौने 3 लाख रुपए कर्ज ले कर उन्हें जीएनएम का कोर्स कराया. वे हर बार फर्स्ट डिवीजन लाए. साल 2013 में जीएनएम भरती में आवेदन किया. दस्तावेज सत्यापन तक हो चुके, लेकिन नौकरी नहीं मिली.

एक बार उदयपुर मैडिकल कालेज में अर्जेन्ट टैंपरेरी बेस पर नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन आदित्य बताते हैं कि वे पहली लिस्ट में 11वें नंबर पर, दूसरी लिस्ट में 21वें पर थे और तीसरी लिस्ट में बाहर कर दिए गए.

गिरवी जमीन बिकने की नौबत

अलवर के रोशनलाल सैनी ने जमीन गिरवी रख कर 11 साल पहले ढाई लाख रुपए कर्ज ले कर डीएमएलटी और बीएससी एमएलटी कोर्स किया. कुछ दिन एसएमएस अस्पताल में संविदा पर काम किया. लैब टैक्निशियन भरती 2018 में आवेदन किया. नंबर भी आ गया. दस्तावेज सत्यापन भी हो गया, लेकिन भरती कोर्ट पहुंच गई.

रोशनलाल सैनी कहते हैं, “कर्ज बढ़ कर 7 लाख रुपए से ऊपर पहुंच चुका है. चुकाने की हालत नहीं है. अब जमीन बेच कर कर्ज चुकाने की सलाह देते हैं लोग.”

जमीन बेची, करनी पड़ रही मजदूरी

बयाना, भरतपुर के रहने वाले विनोद कुमार 10वीं जमात में थे तो पिता की मौत हो गई. इस से परिवार की हालत खराब हो गई. 35,000 रुपए में जमीन बेच कर आयुर्वेद नर्सिंग का कोर्स में दाखिला लिया. जमीन का पैसा एक साल में ही खर्च हो गया तो दूसरे साल की फीस बहनोई से उधार ले कर जमा कराई.

साल 2013 में आयुर्वेद नर्सिंग की भरती में आवेदन किया, जो अब तक अटकी पड़ी है. 2014 में शादी हो गई, 2 बच्चे भी हो गए. अब बच्चों को पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है.

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गहने गिरवी, मजदूरी ही सहारा

बीपीएल परिवार के बाबूलाल सैनी को मां ने मजदूरी कर और पत्थरों को तोड़ने का काम कर के पढ़ाया. बीफार्मा का कोर्स कराते समय पैसे कम पड़े तो गहने गिरवी रखे जो आज तक नहीं छुड़ा पाए हैं.

3 बहनों के भाई बाबूलाल कहते हैं कि फार्मासिस्ट भरती निकली, लेकिन 4 बार स्थगित होने के बाद हाल में 5वीं बार रद्द हो गई. मां का सपना था कि बेटा सरकारी नौकरी कर गहने छुड़ा कर लाएगा और बहनों की शादी करेगा, लेकिन कुछ नहीं कर सका.

भरती बोर्ड में न अध्यक्ष, न सचिव

सरकारी महकमों में मुलाजिमों की भरती करने वाला राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड खुद ही भरतियों की बांट जोह रहा है. बोर्ड में अब न तो अध्यक्ष है, न ही सचिव. इतना ही नहीं, बोर्ड में सदस्य तक नहीं है. ऐसे में अब बोर्ड सिर्फ कर्मचारियों के भरोसे ही चल रहा है. बोर्ड में नियुक्तियां नहीं होने से प्रदेश के लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य अंधकार में है.

गौरतलब है कि एक साल में 2 भरती परीक्षाओं के पेपर आउट होने के बाद विवादों में आए राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड के अध्यक्ष बीएल जाटावट को इस्तीफा देना पड़ा था, वहीं सचिव का तबादला होने के बाद यहां कोई अधिकारी नहीं लगाया गया है. सदस्यों का कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका है.

अटकी भरतियों को ले कर छात्रों की सुनवाई करने वाला बोर्ड में कोई नहीं बचा. हालत यह है कि छात्रों ने बोर्ड पर प्रदर्शन करना बंद कर दिय. ज्ञापन भी किसे दें. अब छात्रों को बोर्ड भरतियों के मामले में राजस्थान यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन करना पड़ रहा है.

दरदर भटकने को मजबूर

ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बेरोजगारी का ग्राफ काफी बढ़ा है. जिन नौजवानों के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं, उस की बुनियाद की हालत बेहद निराशाजनक है. सालों से तैयारी कर रहे नौजवानों के लिए, जब अपनी राजनीति चमकाने वाले नेताओं का बयान ‘प्रदेश में नौकरी की नहीं योग्यता की कमी है’ कहा जाता है तो इसी सोच के एक दूसरे पक्ष की ओर सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता कि 21वीं सदी में मौडर्न टैक्नोलौजी अपनाने के बाद भी हम एक ऐसा सिस्टम नहीं खड़ा कर पाए हैं जो एक भरती परीक्षा को सकुशल पूरा करा सके.

बेरोजगारी नामक शब्द देश का ऐसा सच है, जिस से राजनीतिबाजों, खुद को देश का रहनुमा समझने वालों ने अपनी आंखें मूंद ली हैं. दरअसल, सरकारें चुनावी मौसम में इन लंबित भर्तियों का विज्ञापन निकाल कर वोट पाने की लालसा में रहती है. देश में बेरोजगारी की दर कम किए बिना विकास का दावा करना कभी भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता. देश का शिक्षित बेरोजगार युवा आज स्थायी रोजगार की तलाश में है. ऐसे में बमुश्किल किसी निजी संस्थान में अस्थायी नौकरी मिलना भविष्य में नौकरी की सुरक्षा के लिहाज से एक बड़ा खतरा है.

प्राइवेट कंपनियों या फैक्टरियों के मालिको को इस बात का आभास अच्छी तरह से है कि बेरोजगारों का दर्द क्या है. इसी की आड़ में वे कर्मचारियों का शोषण कर रहे हैं. कम तनख्वाह में काम करने के लिए कोई शख्स तभी तैयार होता है जब उस को कहीं और काम मिलने में दिक्कत हो. इन हालात में देश के युवा क्या करें, जब उन के पास रोजगार के लिए मौके नहीं है, उचित संसाधन नहीं हैं, सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं.

नौकरियों में नए पदों के सृजन पर रोक लगी हुई है, उस पर बढ़ती बेरोजगारी आग में घी डालने का काम कर रही है. सरकारों को देश में बढ़ती बेरोजगारी के लिए केवल चुनावी मौसम में कही जाने वाली बातों तक ही सीमित नही रहना होगा, बल्कि उस को धरातल पर भी उतारना होगा, वरना कहीं ऐसा न हो कि सत्ता में बैठाने वाले युवा विमुख हो कर सत्ता से बेदखल भी कर दें.

बेबस रोजगार कार्यालय

जयपुर के जिला रोजगार कार्यालय में बीते 2 साल में 2 लाख, 50 हजार, 373 युवाओं ने पंजीयन कराया है, जबकि बेरोजगारों का गैरसरकारी आंकड़ा 5 लाख से ज्यादा है, जिन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिली. प्राइवेट नौकरी के आंकड़े विभाग के पास उपलब्ध नहीं हैं.

राज्य सरकार इन युवाओं को सालाना 6,000 रुपए बेरोजगारी भत्ता देती है यानी 500 रुपए महीना, जबकि महंगाई दर तेजी से बढ़ रही है. सवाल यह है कि क्या कोई भी युवा 500 रुपए महीने में घर चला सकता है, जबकि प्रदेश के आंकड़े और भी चिंताजनक हैं? 2 साल में 8 लाख बेरोजगार रोजगार विभाग पहुंचे, लेकिन विभाग 349 करोड़ रुपए खर्च कर के सिर्फ 765 लोगों को प्राइवेट नौकरी दिला पाया.

रोजगार विभाग कहता है कि 2016 के बाद कोर्ट की रोक के बाद जिले में कोई भी चपरासी, ड्राइवर ग्रुप सी व डी तक की सरकारी नौकरी नहीं लग पाया है. जिला रोजगार विभाग का कहना है कि रोजगार मेलों में युवाओं को प्राइवेट कंपनियों में नौकरी दिलाई है, लेकिन इस में ज्यादातर को वाटरमैन, फायरमैन, गार्ड जैसे पदों पर 8,000 से 10,000 रुपए महीने की नौकरी ही मिली.

जल्द निकालेंगे हल

लंबित भरतियों के मसले पर राज्य के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा कहते है, “प्रदेश के मुख्यमंत्री भरतियां समय पर पूरा करने को ले कर गंभीर हैं. लंबित मामलों में वित्त व विधि विभाग के अफसरों के साथ समीक्षा करेंगे. जो मामले कोर्ट में हैं, उन में देखेंगे कि किस तरह से रिलीफ दे सकते हैं. शिथिलता की जरूरत पड़े तो वह भी देखेंगे.”

सीमा ढाका: बहादुरी की मिसाल

सीमा ढाका पुलिस में जरूर हैं, लेकिन मां भी हैं. उन की संवेदनशीलता और बहादुरी ही उन्हें खास बनाती है, जिस के चलते उन्होंने 76 ऐसे बच्चों को उन के परिवारों तक पहुंचाया जो अपने जिगर के टुकड़ों के लिए तरस रहे थे. सीमा का यह सफर कतई…

कुछ देर के लिए जिगर का टुकड़ा दूर हो जाए तो कैसी छटपटाहट होती है, सभी जानते हैं. उस परिवार के लोगों पर क्या बीतती है जिन के

बच्चों को कोई चुरा ले जाए या अपहरण हो जाए. उम्मीदों के आंसू हर पल दरवाजे पर टिके रहते हैं. ऐसे ही परिवारों के लिए उम्मीद बनी हैं दिल्ली पुलिस की सीमा ढाका. जिन्होंने एकदो नहीं बल्कि 76 परिवारों की खुशियां लौटाई हैं.

उन के परिवार में त्यौहार का माहौल सा बना दिया है. महज ढाई माह में 76 बच्चों की बरामदगी सीमा के लिए आसान नहीं थी. वो भी अलगअलग राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा से. अधिकांश मामले भी अपहरण के थे.

दिल्ली के समयपुर बादली थाने में तैनात 33 वर्षीय सीमा ढाका दिनरात बच्चों की तलाश में लगी रहती थीं. उन्होंने 2013 से 2020 के बीच हुए सभी थानों से बच्चों के अपहरण की सूची तैयार की. एफआइआर के जरीए उन परिवारों की तलाश कर उन से बात की, बच्चों के बारे में जानकारी जुटाई.

फिर साइलैंट सिंघम बनीं सीमा ने एकएक कर हर एफआइआर के आधार पर अलगअलग तरीके से बच्चों की बरामदगी के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया.

सीमा चूंकि दिल्ली पुलिस आयुक्त के गुमशुदा बच्चों को तलाशने के लिए मिशन के तहत काम कर रही थीं. इसलिए उन के वरिष्ठ अधिकारियों का भी उन्हें पूरा सहयोग मिला.

स्टाफ उन के लिए हर समय उपलब्ध रहता था. रात बे रात कई बार दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था.

बच्चों के अपहरणकर्ता तक पहुंचने के लिए, जिन राज्यों में बच्चों की लोकेशन मिलती, वहां पहुंच कर उस क्षेत्र की पुलिस के सहयोग से आरोपितों को पकड़ना और उन के चंगुल से बच्चों को छुड़ाने के लिए पूरा जाल बुनना आसान नहीं होता था.

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कहीं फोन पर आधारकार्ड अपडेट करने के बहाने जैसी काल कर जाल में फंसाया तो कहीं बगैर वर्दी के पहुंच पुलिस की भूमिका निभाई. पश्चिम बंगाल के डेबरा थानाप्रभारी और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पुलिस का भरपूर सहयोग मिला. यहां आरोपितों के चंगुल को तोड़ कर किशोर को निकालना कड़ी चुनौती था.

सीमा ने चुनौतियों का सामना करना और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना स्कूल के समय से ही सीखा था. मूल रूप से उत्तर प्रदेश के शामली में भाज्जू गांव निवासी सीमा ने पढ़ाई भी वहीं से की. स्कूल और कालेज में सिर्फ पढ़ाई में ही अव्वल नहीं रहीं बल्कि खेलकूद, ज्ञानविज्ञान, वादविवाद की हर प्रतियोगिता में वह सब से आगे रहती थीं. गांव में घरों में इन के कौशल की मिसाल दी जाती तो किसान पिता का सिर फख्र से ऊंचा हो जाता और खुशी से आंखें भर आती थीं.

वर्ष 2006 में सीमा जब दिल्ली पुलिस में भर्ती हुईं तो उस समय उन के आसपास के गांव से भी कोई लड़की दिल्ली पुलिस में नहीं थी. हां, बाद में गांव की अन्य लड़कियों को जरूर प्रेरणा मिली, बाहर पढ़ने के लिए निकलीं और पुलिस में भी भर्ती हुईं.

पति अनीत ढाका भी दिल्ली पुलिस में हेडकांस्टेबल हैं, वह उत्तरी रोहिणी थाने में तैनात हैं. कई बार रात में जब कहीं किसी बच्चे की बरामदगी के लिए अचानक ही मिशन पर निकलना पड़ता था तो अनीत को ले कर ही निकल जाती थीं.

सुबह अपने समय से दोनों ड्यूटी पर भी मुस्तैद हो जाते थे. सीमा को परिवार के अन्य सदस्यों और सासससुर का पूरा सहयोग मिलता. जब काम का बहुत दबाव रहता तो मां जैसी सास थाने तक ब्रेकफास्ट या लंच पहुंचा देतीं. सीमा भी अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान रखती थीं. वर्दी और सामाजिक कर्तव्यों के बीच परिवार के लिए कुछ समय जरूर निकालती हैं.

33 वर्षीय सीमा ढाका को दिल्ली पुलिस में हेडकांस्टेबल से पदोन्नत कर एएसआई बनाया गया है. दरअसल दिल्ली पुलिस आयुक्त ने 15 बच्चों को ढूंढने वाले पुलिसकर्मियों को असाधारण कार्य पुरस्कार और 14 वर्ष तक के 50 लापता बच्चों को उन के परिजनों को सौंपने पर पुलिसकर्मियों

को समय से पहले पदोन्नति देने की घोषणा की थी.

लेकिन दिल्ली पुलिस में तैनात महिला हेड कांस्टेबल सीमा ढाका ने तो अपनी बहादुरी के दम पर तकरीबन 3 महीने के दौरान 76 बच्चों को तलाश करने में कामयाबी हासिल की. इस उपलब्धि के बाद सीमा ढाका को आउट औफ टर्न प्रमोशन दिया गया है. उन्होंने जिन 76 बच्चों को खोज निकाला उन में 56 की उम्र 14 साल से भी कम है.

सीमा ढाका मूलरूप से शामली की रहने वाली हैं. शामली वही जिला है, जहां पर कुछ वर्ष पहले लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल फोन रखने जैसी बातों पर कई फरमान जारी हुए थे. पेशे से किसान पिता की संतान सीमा का भाई निजी क्षेत्र में जौब करता है.

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सीमा के गांव में उन के रिश्तेदार और परिवार में काफी लोग टीचिंग प्रोफेशन से जुड़े हैं. वो कहती हैं कि मैं बचपन से ही सुनती आ रही थी कि महिलाओं के लिए टीचिंग प्रोफेशन सब से बढि़या है. यही वजह थी कि उन्होंने भी शिक्षक बनने का निर्णय लिया था, इतना ही नहीं उन्होंने तो ऐसे विषय पढ़ाई के लिए चुने, जिस से शिक्षक बन सकें.

इसी दौरान दिल्ली पुलिस की भर्ती का फार्म भर दिया. संयोग से उन का चयन भी हो गया. इस तरह 2006 से वह दिल्ली पुलिस से जुड़ गईं.

सीमा का कहना है कि पढ़ाई के प्रति लगाव और जुनून ही था कि गांव से कालेज की दूरी करीब 6 किलोमीटर थी, लेकिन साइकिल से रोजाना आतीजाती थी. सीमा के पति अनीत ढाका बड़ौत के रहने वाले हैं. आउट औफ टर्न प्रमोशन पाने वालीं सीमा ढाका की उपलब्धि पर उत्तर प्रदेश के 2-2 जिलों में जश्न का माहौल है.

सीमा बेहद भावुक महिला हैं. कहा जाता है कि पुलिस काफी सख्त होती है, लेकिन सीमा को देख कर ऐसा नहीं लगता.  8 साल के बच्चे की मां सीमा की मानें तो जब भी बच्चों की गुमशुदगी की बात आती थी तो गुस्सा आता था.

यही वजह थी कि पुलिस टीम के साथ बैठक में उन्होंने खुद गुमशुदा बच्चों को तलाशने वाली सेल में काम करने की इच्छा जाहिर की थी. अधिकारियों ने भी सीमा ढाका की कमिटमेंट पर भरोसा किया और नतीजा सामने है. अब महकमा अपनी हेड कांस्टेबल सीमा ढाका पर गर्व कर रहा है.

समयपुर बादली पुलिस थाने में तैनात महिला हेड कांस्टेबल सीमा ढाका को खुद दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने आउट आफ टर्न प्रमोशन देते हुए एएसआई का बैज लगाया. आउट औफ टर्न प्रमोशन पाने वाली सीमा दिल्ली पुलिस की पहली महिला कर्मचारी बन गई.

सीमा ढाका ने दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब के बच्चों को बचाया है. उन के लिए हर बच्चे को अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़ाना एक नई तरह की चुनौती से कम नहीं था.

पिछले साल अक्तूबर में पश्चिम बंगाल से एक नाबालिग को छुड़ाना था. पुलिस दल ने नावों में यात्रा की और बच्चे को खोजने के लिए बाढ़ के दौरान दो नदियों को पार किया. लड़के की मां ने साल भर पहले शिकायत दर्ज की थी, लेकिन बाद में अपना पता और मोबाइल नंबर बदल दिया था.

सीमा उसे ट्रेस नहीं कर सकीं. लेकिन वे जानती थीं कि वे पश्चिम बंगाल से ही हैं. तलाशी अभियान शुरू किया गया. वे एक छोटे से गांव पहुंचीं, जहां बाढ़ के दौरान 2 नदियों को पार किया. किसी तरह वह बच्चे को उस के रिश्तेदार के पास से छुड़ाने में कामयाब रहीं.

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नुजहत परवीन: छोटे शहर की बड़ी क्रिकेटर

भारतीय महिला ट्वैंटी20 क्रिकेट टीम की सदस्य नुजहत परवीन सिंगरौली जैसे एक छोटे शहर से आती हैं. बेहद सीमित संसाधनों और बड़े स्तर पर क्रिकेट का माहौल न होने के बाद भी वे लगातार आगे बढ़ी हैं. शुरुआती दिनों में वे क्रिकेट नहीं, बल्कि फुटबाल खेलती थीं, लेकिन एक दिन जब वे क्रिकेट के मैदान में पहुंचीं, तो कोच ने उन्हें विकेटकीपर के दस्ताने पहना दिए. क्रिकेट और उसके नियमों से एकदम अनजान नुजहत परवीन ने पहले मैच में ही अपने हुनर का शानदार प्रदर्शन किया. विकेट के पीछे तो वे कामयाब रहीं ही, विकेट के आगे बल्ले से भी उन्होंने धमाल मचाया. संभाग स्तर पर ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से उन में आत्मविश्वास आ गया और फिर उन का वह सफर शुरू हो गया, जिस की कल्पना खुद उन्होंने भी कभी नहीं की होगी.

नुजहत परवीन अपने अंदाज में खेलती गईं और उनका हुनर उनकी कामयाबी की कहानी लिखता गया. आज खेल के दम पर ही वे भारतीय रेलवे के साथ जुड़ी हैं और उन के परिवार में भी खुशहाली का माहौल है.

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देशप्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाने के बाद अब रीवा संभाग देश और प्रदेश के खेल नक्शे पर भी उसी अंदाज में दिखने लगा है खासकर क्रिकेट में हाल के सालों में रीवा ने बहुत ज्यादा तरक्की की है. अवधेश प्रताप सिंह स्टेडियम में क्रिकेट टर्फ विकेट बनने के बाद यहां खेल में बड़ा शानदार बदलाव आया है.

रीवा के तेज गेंदबाज ईश्वर पांडे भारतीय क्रिकेट टीम में चुने जाने वाले इस संभाग के पहले खिलाड़ी थे. अब सिंगरौली से निकली विकेटकीपर बल्लेबाज नुजहत परवीन नैशनल लैवल पर अपनी पहचान तेजी से बना रही हैं. उन्हें एक बार फिर दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 7 मार्च से शुरू हुई ट्वैंटी20 महिला क्रिकेट सीरीज के लिए टीम में शामिल किया गया.

वे पहले भी देश की टीम का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. हाल में हुए महिला आईपीएल की 3 टीमों में से एक टीम में वे भी शामिल थीं. उन की एक विस्फोटक बल्लेबाज के रूप में पहचान है. एक तरह से वे ट्वैंटी20 टीम की अब नियमित सदस्य बन गई हैं. उन के आतिशी अंदाज के चलते ही उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट का ‘धौनी’ कहा जाता है. राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कई बेहतरीन पारियां खेली हैं.

सनद रहे कि नुजहत परवीन एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती हैं. उन के परिवार में कोई क्रिकेट के बारे न अच्छी तरह जानता था और न ही इस खेल में कोई खास दिलचस्पी ही थी. नुजहत परवीन आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है, लेकिन उन को परखने, निखारने और आगे बढ़ने का जज्बा पैदा करने वाला और कोई है. रीवा संभाग के बीसीसीआई के ए लैवल के कोच एरिल एंथोनी ने ही उन के हुनर को परखा और फिर जीजान से उसे निखारने में जुट गए.

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एरिल एंथोनी की पारखी निगाहों ने पहली नजर में ही नुजहत परवीन के टैलेंट को पहचान लिया था. उन के आक्रामक अंदाज को बनाए रखने के लिए उन्होंने उन में शौट सलैक्शन की समझ, गेंद की चाल और दिशा को भांपने की कला पैदा की. उन का तकनीकी पक्ष मजबूत करने के लिए भी कोच ने उन्हें वे सारे गुर सिखाए जो एक बेहतर बल्लेबाज बनने के लिए जरूरी होते हैं.

नुजहत परवीन आज विकेट के पीछे भी उतनी ही चपल हैं जितनी विकेट के आगे मुस्तैद रहती हैं. उन के जुनून और कोच की मेहनत ने उन में एक विस्फोटक बल्लेबाज पैदा कर दिया है.

इस समय रीवा के कई क्रिकेटर मध्य प्रदेश रणजी टीम में अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं. रीवा के महज 24 साल के कुलदीप सेन इस समय मध्य प्रदेश के प्रमुख तेज गेंदबाज हैं. वे भी ईश्वर पांडे की ही तरह के तेज गेंदबाज हैं.

कुलदीप सेन के आंकड़ों की बात की जाए तो वे अब तक प्रथम श्रेणी, लिस्ट ए और ट्वैंटी20 के तकरीबन 32 मैचों में 55 से ज्यादा विकेट ले चुके हैं. उन के हुनर को भी खोजने, निखारने और संवारने का काम एरिल एंथोनी ने किया है. एरिल खुद भी कभी एमआरएफ पेस फाउंडेशन में आस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज डेनिस लिली की निगरानी में निखरे हैं. एरिल खतरनाक तेज गेंदबाज थे, पर किन्हीं वजह से वह बड़े फलक पर नही आ सके, लेकिन आज वे उसी जुनून के साथ रीवा संभाग के खिलाड़ियों की राष्ट्रीय स्तर की फौज तैयार करने में जुटे हैं.

यहां “डाल डाल” पर ठग बैठे हैं

सुपरकॉप स्पेशल: हिमाचल की शेरनी- सौम्या सांबशिवन

लेखक- पुष्कर    

शायराना मिजाज की सौम्या सांबशिवन किसी भी दबाव में काम नहीं करतीं. उन के लिए कानून व्यवस्था और देशहित पहले है, बाकी बाद में. लेकिन ऐसे ईमानदार अफसरों को सरकार और उच्च अधिकारी चैन से कहां रहने देते हैं. देखना है हिमाचल की इस शेरनी का अंजाम…

जब भी जांबाज महिला आईपीएस अफसरों का नाम आता है तो शिमला में 1947 से 2017 तक 53वीं एसपी रह चुकीं सौम्या सांबशिवन को नहीं भूला जा सकता. वह स्वभाव से सौम्य हैं, लेकिन दिल से दबंग.

केरल की रहने वाली सौम्या बनना चाहती थीं लेखिका, लेकिन बन गईं एसपी. जाहिर है, ऐसे में मन गलत के प्रति विद्रोह तो करेगा ही, विद्रोह होगा तो दबंगई भी होगी. गनीमत यह है कि उन्हें पढ़ने का शौक है और यह शौक विद्रोह को रोकता है. फिर भी वह अपराधियों के लिए खौफनाक तो हैं ही.

इंजीनियर पिता की एकलौती बेटी सौम्या ने बायोस्ट्रीम से ग्रेजुएशन करने के बाद एमबीए में दाखिला लिया था. एमबीए हो गया तो उन्होंने 2 साल तक एक मल्टीनेशनल बैंक में नौकरी की. इस बीच वह यूपीएससी की तैयारी करती रहीं. 2010 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईपीएस बन कर 11 महीने की ट्रेनिंग में चली गईं. उन्हें हिमाचल कैडर मिला था. विभागीय ट्रेनिंग के लिए उन्हें शिमला भेजा गया, जहां वह डिप्टी एसपी की पोस्ट पर रहीं. फिर उन्हें एडिशनल एसपी बनाया गया.

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एसपी के तौर पर उन की पहली पोस्टिंग सिरमौर में हुई. सिरमौर में ड्रग का बोलबाला था. ड्रग्स की तसकरी और बिक्री भी होती थी और लोग ड्रग्स लेते भी थे. झाडि़यों में ड्रग की खाली रेपर पुडि़या पड़ी मिलती थीं. सब से पहले सौम्या ने नशेडि़यों की धरपकड़ कर के ड्रग लेने वालों पर लगाम लगाई.

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इस के लिए उन्होंने पकड़े गए नशेडि़यों की वीडियोग्राफी कराई और बताया इस की डौक्यूमेंट्री बना कर देश भर में दिखाई जाएगी. इस से होने वाली बदनामी से लोग डरे. उन्होंने नशेडि़यों के ठिकानों को भी जेसीबी से हटवा दिया और उस का भी वीडियो बनवाया.

नशेडि़यों के अड्डे बने खंडहर भवनों में कांचकली (खुजली वाला पाउडर) का छिड़काव करा दिया गया ताकि वे वहां जाएं तो खुजातेखुजाते पागल हो जाएं. सिरमौर में चला अपनी तरह का यह पहला अभियान था, जिसे जनता का भरपूर समर्थन मिला. उन्होंने देवीनगर में कृपालशिला और गुरुद्वारे के पास नशेडि़यों के छिप कर बैठने के अड्डों को भी नेस्तनाबूद करवा दिया.

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सौम्या के अनुसार एक ब्लाइंड मर्डर की तफ्तीश के लिए वह झाडि़यों में गई थीं, जहां नशीली दवाइयों के रेपर, नशे के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री आदि मिली. तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि नशे के खिलाफ अभियान चलाएंगी. संदिग्ध नशेडि़यों पर नजर रखने के लिए उन्होंने पावटा में 75 सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए.

इस के बाद उन्होंने नशा बेचने, सप्लाई करने वाले तसकरों को घेरा. अपने प्रयासों से सौम्या ने सिरमौर को ड्रग्स मुक्त तो किया ही. नशेडि़यों की लत छुड़वाने के लिए जिलेभर में नशा मुक्ति केंद्र भी बनवाए. इसी बीच उन्होंने कई ब्लाइंड केस सुलझाए. तिहाड़ जेल से फरार एक ऐसे पेशेवर हत्यारे को भी पकड़ा जो कत्ल कर के खुला घूम रहा था.

पढ़ने लिखने की शौकीन सौम्या को साहित्य, कविताओं और मुशायरों का खूब शौक है. एक बार तो वह सिरमौर से सैकड़ों किलोमीटर दूर देवबंद में होने वाले लेडीज मुशायरे में शामिल होने पहुंच गईं. उन का कहना था कि पुलिस के काम में दिमाग के साथ दिल की मजबूती भी बेहद जरूरी है और यह मजबूती, शक्ति साहित्य से ही मिल सकती है.

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कविताएं सदियों से मनुष्य को प्रेरित करती रही हैं, ये मानव के अंदर छुपी संभावनाओं को सामने लाने का बढि़या माध्यम हैं. साहित्य आदमी को सरल भी बनाता है और मजबूत भी.

एक तरफ सौम्या का यह सरल रूप सामने आया तो दूसरी तरफ उन्होंने सिरमौर में, खास कर नहान में खनन माफियाओं की नाक में ऐसी नकेल डाली कि खनन कार्य ही बंद करवा दिए. एक ही दिन में सौम्या ने 21 वाहन व जेसीबी मशीनें जब्त कीं, 40 वाहनों के चालान काटे और 1,47000 रुपए का जुर्माना वसूला.

सौम्या सब से ज्यादा चर्चाओं में तब आईं जब एक प्रदर्शन के दौरान उन्होंने बदतमीजी करने पर एक विधायक को न केवल थप्पड़ जड़ा, बल्कि जेल भी भेजा. उन का कहना था, इतनी छूट किसी को नहीं दी जा सकती. चाहे वह कोई भी क्यों न हो.

सिरमौर की सीमाएं 2 अलगअलग राज्यों से लगती हैं, इस नजरिए से इस जिले को संवेदनशील माना जाता है. लेकिन सौम्या ने अपराधियों में पुलिस का इतना खौफ भर दिया कि उन्हें ड्रग, शराब और मानव तसकरी बंद करनी पड़ी.

लड़कियों की रोल मौडल

सौम्या के पास लड़कियों से छेड़छाड़ की बहुत शिकायतें आती थीं. ऐसे मामलों में छेड़छाड़ के कुछ मामलों को तो रोका जा सकता था, लेकिन हर जगह पुलिस मौजूद नहीं रह सकती थी. इस के लिए उन्होंने सोचना शुरू किया. दरअसल बचाव के लिए पेपर स्प्रे एक तो हर जगह मिलता नहीं है, दूसरे महंगा भी होता है. कई बार मौका नहीं मिलता तो लड़कियां इस का इस्तेमाल भी नहीं कर पातीं. तीसरे इस का असर भी ज्यादा देर नहीं रह पाता.

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सौम्या ने इस बारे में सोचना शुरू किया तो थोड़ी सी मेहनत से उन्हें रास्ता मिल गया. उन्होंने मिर्च, रिफाइंड और नेल पौलिश से एक अलग तरह का तरल पदार्थ बनाया. यह इतना कारगर था कि एक बार स्प्रे करने से मनचले आधे घंटे से पहले नहीं उठ सकते थे.

उन्होंने इस का एक वीडियो बनाया और कालेज और स्कूलों की लड़कियों को ट्रेनिंग देनी शुरू की. यह काम उन्होंने हाईस्कूल से डिगरी कालेजों में पढ़ने वाली लड़कियों के बीच किया. साथ ही उन्हें खास तरह की खाली बोतलें दीं ताकि लिक्वेड को उस में भर कर अपने साथ रख सकें.

सौम्या की इस पहल को उद्योग संगठनों और प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने सहयोग दिया और रीफिल की जाने वाली खाली स्प्रे बोतलें उपलब्ध कराईं. एसपी ने फैसला किया वह देश की बेटियों के लिए इस नए तरीके को यू ट्यूब के जरीए सार्वजनिक करेंगी, ताकि वे कम खर्च में अपनी सुरक्षा कर सकें. एसपी सौम्या की यह मुहिम काम आई और सिरमौर में छेड़छाड़ की घटनाएं बंद हो गईं.

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शिमला ट्रांसफर

इसी बीच शिमला के कोटखाई में गुडि़या गैंग रेप और हत्या के मामले को ले कर शिमला में लौ एंड और्डर की स्थिति बिगड़ी तो सुपरकौप सौम्या का ट्रांसफर शिमला कर दिया गया.

दरअसल, शिमला से 58 किलोमीटर दूर कोटखाई में 4 जुलाई, 2017 को एक स्कूली छात्रा लापता हो गई थी. 2 दिन बाद जंगल में उस की लाश मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि छात्रा के साथ गैंग रेप के बाद उस की हत्या की गई थी, वह भी 2 दिन पहले.

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सवाल उठा जंगली जानवरों के होते 2 दिन तक लाश सहीसलामत कैसे पड़ी रही. इसे ले कर हंगामा हुआ तो पुलिस ने एक स्थानीय युवक सहित 5 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन लोग इस से संतुष्ट नहीं थे. हंगामा बढ़ते देख पुलिस ने जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी.

उस समय हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी. लोग जांच से संतुष्ट नहीं हुए. इसी बीच 18 जुलाई को पकड़े गए एक युवक सूरज की हवालात में मौत हो गई. इस से हंगामा और बढ़ गया. लोग सड़कों पर उतर आए. आरोप था कि सूरज की मौत पुलिस टार्चर से हुई है.

लौ एंड और्डर को बिगड़ता देख मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शिमला के एसपी डब्ल्यू डी नेगी को हटा कर 19 जुलाई, 2017 को सिरमौर की तेजतर्रार और ईमानदार आईपीएस सौम्या सांबशिवन को शिमला का नया एसपी तैनात कर दिया. साथ ही मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति दे दी.

जांच शुरू हुई तो सीबीआई ने अन्य लोगों के साथ नई एसपी सौम्या सांबशिवन का भी बयान लिया. इस के बाद सीबीआई ने हवालात में सूरज की मौत (हत्या) के मामले में सूबे के आईजी जहूर एच जैदी, एसपी डब्ल्यू डी नेगी और डीएसपी मनोज जोशी सहित 5 पुलिस वालों को आरोपी बनाया.

सीबीआई जांच के दौरान यह बात सामने आई कि आईजी जहूर एच जैदी ने एसपी सौम्या पर बयान बदलने के लिए बारबार दबाव बनाया था.

सौम्या के लिए जब काम करना मुश्किल हो गया तो उन्होंने 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस हेडक्वार्टर धर्मशाला फोन कर के डीजीपी से शिकायत की तो जैदी के फोन आने बंद हुए. डीजीपी ने यह बात मुख्यमंत्री को बताई तो जैदी को निलंबित कर दिया गया.

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सूरज की हत्या के आरोपी पुलिस वालों पर शिमला की सीबीआई अदालत में केस चलना शुरू हुआ, लेकिन वहां के वकीलों ने इन लोगों की पैरवी करने से इनकार कर दिया. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो सर्वोच्च अदालत ने इस केस को चंडीगढ़ ट्रांसफर करने का आदेश दिया.

शिमला की एसपी सौम्या सांबशिवन ने इस मामले में आईजी जहूर एच जैदी पर मानसिक रूप से प्रताडि़त करने का आरोप लगाते हुए अदालत में कहा कि आईजी इस केस में मेरा बयान बदलवाना चाहते हैं.

सौम्या के इस बयान से हिमाचल की सियायत में हलचल मच गई. तब नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ऐसे अधिकारियों पर बड़ी काररवाई करेगी जो केस के गवाहों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री ठाकुर का कहना था कि हम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. इस मामले में किसी ने सबूतों या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश तो यह बरदाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने बताया कि एसपी सौम्या सांबशिवन ने आईजी जैदी द्वारा दबाव बनाए जाने की बात डीजीपी से कही थी और डीजीपी ने मुझे बताया. उन्होंने जैदी को चेतावनी भी दी थी. इस के बाद जैदी ने उन्हें फोन करना बंद कर दिया था. लेकिन यह मामला फिर से उठ खड़ा हुआ. सूरज और गुडि़या मामले में उन्होंने सौम्या पर जो दबाव बनाया, उस के लिए जैदी को 3 बार सस्पैंड किया गया. लेकिन उन्हें नियमों के तहत ही फिर से नियुक्ति दी गई.

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सरकारी खेल

इस बीच सौम्या सांबशिवन का ट्रांसफर कर के उन्हें पुलिस ट्रेनिंग कालेज भेज दिया गया. बाद में उन्हें वहां से भी ट्रांसफर कर के पंडोह में आईआरबी 3 का कमांडेंट बना दिया गया था. बाद में सौम्या ने फिर चंडीगढ़ कोर्ट में बयान दिया कि सुनवाई से पहले उन पर इतना दबाव डाला गया कि वह परेशान हो गईं और इस स्थिति में उन के लिए काम करना मुश्किल हो गया.

जैदी साहब सितंबर 2019 में उन के मोबाइल, शिमला औफिस के लैंडलाइन पर बात करने की लगातार कोशिश कर रहे थे. उन्होंने शिमला हेडक्वार्टर, वाट्सएप काल और सबौर्डिनेटर के फोन पर भी बात की.

सौम्या ने अपने मानसिक तनाव का जिक्र करते हुए आगे कहा कि दिनप्रतिदिन परिस्थितियां इतनी मुश्किल होती गईं कि उन के पीएसओ, स्टेनो ने फोन उठाना बंद कर दिया. ऐसी स्थिति में कोई कैसे काम कर सकता है.

अधिकारी कितना बड़ा और पावरफुल हो, लेकिन अपने सीनियर के सामने या उस के बारे में कुछ कहने से पहले 10 बार सोचता है, भविष्य की चिंता करता है. लेकिन सौम्या उन में से नहीं थीं जो डर जातीं. उन्होंने कोर्ट में कहा, ‘जैदी साहब ने मुझ से फोन पर कहा, ‘मैं वकीलों की एक टीम और 30 पेज की प्रश्नावली का सामना करने को तैयार हूं. उम्मीद है आप यह सूचना सीबीआई को नहीं देंगी.’

मजबूरी में उन्हें 10 दिसंबर, 2019 को धर्मशाला हेडक्वार्टर फोन कर के यह सूचना तत्काल डीजीपी को देनी पड़ी. इस के बाद उन का फोन आना तो बंद हो गया, लेकिन मेरे पीएसओ से मेरी लोकेशन जानने की कोशिश की गई. इस पर कोर्ट ने सीबीआई को सौम्या के कोर्ट आनेजाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था करने को कहा. सौम्या के बयान से यह बात साबित हो रही थी कि जैदी सहित कोटखाई मामले से जुड़े अन्य पुलिस अधिकारियों ने कहीं न कहीं लापरवाही बरती थी और अब खुद को बचाने के लिए गवाहों पर उन के पक्ष में बयान देने के लिए दबाव बना रहे थे. जैदी कौन सा बयान बदलवाना चाहते थे, यह बात क्लीयर नहीं हो पाई.

बहरहाल यह केस अभी भी चल रहा है. आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता. सौम्या सांबशिवन जहां भी रहीं अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, वह भी पूरी ईमानदारी से.

इसी बीच गतवर्ष अक्तूबर, 2020 में जब बिहार में 3 चरणों में चुनाव होने थे तो सौम्या को आदेश मिला कि बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन की होगी. इस के लिए उन्हें राज्य कमांडर का दर्जा दिया गया था. तब भी वह पंडोह में आईआरबी 3 की कमांडेंट थीं.

आदेश मिलते ही वह हिमाचल के 600 जवानों के साथ निश्चित तारीख पर बिहार के लिए रवाना हो गईं. इन जवानों में पंडोह, बनगढ़ (ऊना) व कोलर (सिरमौर) की आईआरबी की 6 कंपनियां थीं. ये लोग सहारनपुर से टे्रन पकड़ कर बिहार के लिए रवाना हुए.

बिहार में शांतिपूर्ण चुनाव कराना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन सौम्या ने यह चुनौती स्वीकार की और पूरी भी की. फिलहाल सौम्या हिमाचल के पंडोह में आईआरबी 3 (भारतीय आरक्षित वाहिनी) की कमांडेंट हैं. उन की ईमानदारी और बेखौफ दबंग अधिकारी की छवि कभी नहीं बदलेगी. क्योंकि वह इसीलिए पुलिस फोर्स में आई हैं कि कानूनव्यवस्था को बनाए रखें और देशहित में काम करें.

जज्बे को सलाम

ईमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने वाले पुलिस अधिकारी हों या आम लोग जहां भी जाते हैं. कुछ अलग कर के अपनी छाप छोड़ ही देते हैं. सौम्या सांबशिवन भी उन ही में से हैं. शिमला में जब उन का पंगा अपने सिनियर औफिसर आईजी से हुआ था तो राजनीतिक दबाव के चलते उन का तबादला कांगड़ा जिले के दरोह पुलिस प्रशिक्षण कालेज में कर दिया गया था, जहां उन्हें प्रिंसिपल बनाया गया था. वहां जाते ही उन्होंने अपने सहयोगी अफसरों से कहा, ‘हम मानकों के साथ इस कालेज की प्रतिष्ठा को न केवल बनाए रखेंगे बल्कि बेहतर से बेहतर काम करेंगे.’

सौम्या ने केवल कहा ही नहीं बल्कि स्वयं को साबित कर के भी दिखाया. उन्होंने जून 2018 के चयनित कांस्टेबलों के बैच के लिए कंप्यूटर और सामान्य संचार साधनों का प्रबंध कराया ताकि उन्हें मौजूदा दौर की जरूरी शिक्षा दी जा सके. इस बैच में 682 कांस्टेबल और 3 पूर्व सैनिक थे. इस बैच के सभी प्रशिक्षार्थी बुनियादी कंप्यूटर और सामान्य संचार माध्यमों में प्रशिक्षित हो कर पासिंग आउट परेड के बाद नियुक्ति के लिए विभिन्न थानों को भेजे गए थे.

भारत सरकार की संस्था ब्यूरो फौर पुलिस एंड डेवलपमेंट द्वारा किए गए अध्ययन के बाद कांगड़ा जिले को पुलिस प्रशिक्षण कालेज दरोह को राष्ट्रीय स्तर का सर्वश्रेष्ठ केंद्र (कांस्टेबल श्रेणी) घोषित किया था. प्रशिक्षण केंद्र को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 20 लाख का नकद पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र दिया गया था.

कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जिंदगी की हर राह उपलब्धि बन जाती है. अपने सेवा काल के दौरान राह में आने वाली हर बाधा, रुकावट को अपनी उपलब्धि में बदलने वाली सौम्या सांबशिवन एक बेमिसाल अफसर तो हैं ही, साथ ही ईव टीजिंग का शिकार लड़कियों की स्नेहशील गार्जियन भी हैं.

सुपरकॉप स्पेशल: रियल हीरो- IPS शिवदीप लांडे

शिवदीप लांडे ईमानदार ही नहीं, रौबिनहुड की छवि वाले पुलिस अधिकारी हैं. उन्होंने अपनी ड्यूटी को दिलोजान से निभाया और कई बार जान भी दांव पर लगाई. ट्रांसफर कहीं भी हुआ, लांडे ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली. दूसरे अधिकारियों से अलग हट कर काम करने से ही उन्हें…

आप ने दबंग छवि वाले कई पुलिस अफसरों को बड़े परदे पर देख कर तालियां बजाई होंगी. लेकिन, सही मायने में हमारे असल हीरो वो अफसर हैं, जो समाज में फैली गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार तथा अराजकता को जड़ से खत्म करने का काम करते हैं. वर्दी पहनने का मौका तो बहुतों को मिलता है. लेकिन इस वर्दी का दम बहुत कम लोग ही दिखा पाते हैं.

शिवदीप वामनराव लांडे एक ऐसे आईपीएस हैं जो बस एक पुलिस अफसर ही नहीं, बल्कि अनगिनत कहानियों के पात्र हैं. वैसे अफसर जिन के बारे में लोग बस कल्पना करते हैं, हकीकत में ऐसा इंसान सामने देखना अजूबा लगता है.

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शिवदीप वामनराव लांडे एक समय बिहार के गुंडेबदमाशों के लिए खौफ बन गए थे. इन से छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही रास्ता था और वो था इन का ट्रांसफर. इस बेखौफ आईपीएस अफसर ने फिल्मी स्टाइल में बिहार के ला ऐंड और्डर को कायम किया था. वैसे कहने को तो शिवदीप लांडे पुलिस अधिकारी हैं, लेकिन उन की भूमिका किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं रही. बात चाहे उन के आईपीएस बनने की हो, उन के काम करने के तरीके की हो, लोगों के दिलों में उन के प्रति प्यार और सम्मान की हो या फिर उन की प्रेम कहानी की. हर तरह से उन की कहानी किसी ब्लौकबस्टर फिल्म की कहानी जैसी लगती है.

शिवदीप वामनराव लांडे का जन्म 29  अगस्त, 1976 को महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. शिवदीप के पिता ने तीन बार 10वीं की परीक्षा दी. लेकिन पास न हो सके. वहीं उन की मां भी केवल 7वीं तक पढ़ पाईं थीं. ऐसे में शायद शिवदीप भी एक किसान बन कर रह जाते.

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मगर ऐसा नहीं हुआ. क्योेंकि उन के सपने बडे़ थे. उन्होंने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और निष्ठा व लगन से वह सपना पूरा कर दिखाया, जिसे उन के पिता पूरा नहीं कर पाए थे. दरअसल, बचपन से ही उन में कुछ अलग हट कर करने का जुनून था. घरपरिवार में कई तरह के अभाव थे. घर की तमाम मजबूरियां और कमियों के बावजूद बाधाएं उन के पैरों की बेडि़यां नहीं बन सकीं.

2 बडे़ भाइयों से छोटे शिवदीप ने स्कौलरशिप प्राप्त कर इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर यूपीएससी की तैयारी की.

शिवदीप लांडे की परवरिश एक सामान्य परिवार में हुई थी. चूंकि मातापिता अधिक पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए परिवार की तरफ से पढ़ाई के प्रति कोई दबाव या प्रेरणा नहीं मिलती थी.

भले ही उन का जन्म साधारण परिवार में हुआ था. लेकिन शिवदीप के सपने बहुत ऊंचे थे. बचपन से हिंदी फिल्में देखने का शौक रहा था. जिस में अक्सर फिल्म के नायक को पुलिस अफसर के किरदार में बदमाश खलनायक का अंत करते देख वे रोमांचित हो उठते थे. वह अकसर नायक में खुद की छवि देख कर कल्पना लोक में विचरण करने लगते.

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बस इन्हीं कल्पनाओं के बीच मन में एक विचार जन्मा कि क्यों न बड़े हो कर ऐसा ही दंबग पुलिस अफसर बना जाए और गुंडों का खात्मा किया जाए. इसीलिए कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी ऊंची शिक्षा पूरी की.

महाराष्ट्र के श्री संत गजानन महाराज इंजीनियरिंग कालेज, शेगांव से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की.

अच्छी सर्विस छोड़ बने आईपीएस

हालांकि शिवदीप एक प्रतिष्ठित कालेज के प्रोफेसर तथा उस के बाद राजस्व विभाग में आईआरएस के पद पर भी कार्यरत रहे. लेकिन इसी बीच 2006 में उन का संघ लोक सेवा आयोग में चयन हो गया. उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ और उन्हें बिहार कैडर मिला. 2 साल प्रशिक्षण का काम पूरा किया.

शिवदीप लांडे की पहली नियुक्ति 2010 में मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित जमालपुर इलाके में हुई थी. अपनी पहली पोस्टिंग से ही वे मीडिया की सुर्खियों में रहे थे.

लेकिन पटना में तैनाती के दौरान अनोखी कार्यशैली के कारण उन का यह कार्यकाल आज तक अविस्मरणीय है, जिस के कारण शिवदीप पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए थे.

पुलिस महकमे में शिवदीप किसी बौलीवुड फिल्मों की कहानी के पात्र की तरह सामने आए थे. जब शिवदीप पटना आए थे, तब शहर गुंडों से त्रस्त था. तमंचे वाले तो थे ही. शरीफ गुंडे भी थे. दवाई वाले गुंडे जो बंदूक नहीं रखते थे, पर दवाओं का अकाल पैदा कर देते थे. शहर में ब्लैक मार्केटिंग कर के शराब की दुकानें जरूरत से ज्यादा खुल गई थीं, लेकिन बिना लाइसेंस के.

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10 महीनों में शिवदीप ने शहर को रास्ते पर ला दिया और यह सब कुछ फिल्मी स्टाइल में होता था. यह नहीं कि पुलिस गई और गिरफ्तार कर के ले लाई. नए तरीके आजमाए जाते थे. कभी शिवदीप बहुरुपिया बन के जाते तो कभी लुंगीगमछा पहन के पहुंच जाते. कभी चलती मोटरसाइकिल से जंप मार देते तो कभी किसी की चलती मोटरसाइकिल के सामने खड़े हो जाते.

शिवदीप ने पटना को 9 महीने सेवा दी और इन 9 महीनों में उन्होंने यहां के लोगों, खासकर लड़कियों के दिल में एक खास तरह का प्रेम और सम्मान बना लिया.

दरअसल, ये वह दौर था जब पटना में आवारा लफंगों के कारण स्कूली लड़कियों व महिलाओं का सड़कों पर निकलना बेहद मुश्किल था. आवारा गुंडे लड़कियों को न सिर्फ छेड़ते और भद्दे कमेंट करते थे, बल्कि कई बार तो जहांतहां छू भी देते. ऐसे समय में हुई शिवदीप लांडे की एंट्री.

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वह पटना के नए एसपी बन कर पहुंचे थे. लड़कियों की यह परेशानी जब उन तक पहुंची, तो वे खुद कालेज की लड़कियों से मिलने जाने लगे. लांडे ने सब को अपना नंबर दिया और एक ही बात कही कि जब कोई तंग करे तो उन्हें काल करें या एसएमएस करें. लड़कियों ने यही किया.

उन्होंने सड़कछाप रोमियो को सबक सिखाने के लिए पुरुष व महिला पुलिसकर्मियों के सादा लिबास दस्ते तैयार किए. इस के साथ ही शिवदीप भी कालेजों तथा सार्वजनिक स्थलों पर राउंड मारने लगे. वह शायद पहले आईपीएस थे जो मोटरसाइकिल पर गश्त लगाते थे.

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एक फोन पर शिवदीप अपनी बाइक उठा कर अकेले ही निकल जाते और अगले ही पल वे लड़कियों की मदद के लिए वहां मौजूद होते. कितने मनचले धरे गए, कई मौके पर सीधे भी किए गए.

देखते ही देखते लड़कियों में हिम्मत आने लगी, उन का डर खत्म होने लगा. यही वजह थी लड़कियों के मन में शिवदीप के प्रति स्नेह और सम्मान की. लांडे ने यहां मनचलों को खूब सबक सिखाया.

कुछ ही महीनों में उन्होंने पटना शहर की सड़कों को मजनुओं की टोलियों से मुक्त करा दिया. लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी थीं. शहर की हर छात्रा के मोबाइल में उन का नंबर होता था, किसी को जरा भी परेशानी होती तो नंबर मिलाते ही शिवदीप लांडे अपनी टीम के साथ पीडि़त छात्रा के सामने हाजिर हो जाते.

पटना में शिवदीप लांडे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि राजनीतिक दबाव में सरकार ने पटना से जब उन का अररिया तबादला कर दिया तो लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. पटना के इतिहास में किसी पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा पहली बार हुआ था.

स्थानांतरण के बावजूद पटना के लोगों में उन के प्रति दीवानगी आज तक कायम है. उन्हें आज भी पटना की स्कूली छात्राओं के फोन और एसएमएस आते रहते हैं. लांडे के नएनए आइडियाज की वजह से उन के कार्यकाल में पटना का क्राइम रेट कम हो गया था.

जहां भी रहे, गलत कामों पर रही नजर

पटना की तरह ही रोहतास जिले में भी शिवदीप लांडे ने अपने कार्यकाल के दौरान खनन माफियाओं की नींद उड़ा दी थी.  दरअसल रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर में खनन और रोड माफिया का छत्ता बड़ा पुराना है. इस छत्ते में सभी दलों के लोग शामिल हैं. कभी राजद का हल्ला होता, तो कभी भाजपा का शोर मचता था.

संदीप लांडे जब रोहतास के एसपी बने, तो उन्होंने भी इस खेल को उजाड़ने में कसर नहीं छोड़ी. हांलाकि कुछ समय बाद रोहतास एसपी के पद से 2015 में लांडे की विदाई कैसे हुई, पुलिस महकमे में यह बात सब को पता है. क्योेंकि बिहार में राजनीतिक दबाव इतना हावी रहता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी स्वतंत्र तरीके से काम कर ही नहीं सकता.

बहरहाल, अपनी दबंगई के कारण शिवदीप को रोहतास में भी कई बार अपनी जान तक जोखिम में डालनी पड़ी. उन दिनों शिवदीप रोहतास के एसपी थे. इन्होंने खनन माफिया की नाक में दम कर रखा था.

उधर दुश्मन भी घात लगाए रहते थे. एक रोज शिवदीप अवैध खनन रोकने निकले. लेकिन वे इस बात से अनजान थे कि दुश्मन उन की जान लेने के लिए घात लगाए बैठे हैं. शिवदीप जैसे ही वहां पहुंचे, उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई.

30 से ज्यादा राउंड फायर हुए. पूरा फिल्मी सीन बन गया था. फर्क बस इतना था कि यहां कोई कट बोल कर फायरिंग रोकने वाला नहीं था. न ही बहने वाला खून नकली था. जो भी हो रहा था सब असली था. शिवदीप हटे नहीं, डटे रहे.

अंत में शिवदीप के आगे गुंडे पस्त हो गए. इस के बाद शिवदीप ने खुद जेसीबी मशीन चला कर अवैध खनन की सारी मशीनें उखाड़ फेंकी, साथ ही 500 लोगों को गिरफ्तार करवाया.

पश्चिम बिहार के रोहतास जिले के एसपी के तौर पर 6 महीने में ही लांडे ने अपने कारनामों से लोगों को अपना दीवाना बना लिया था. खनन माफिया से टकराव के बाद शिवदीप लावारिस छोड़ी गई नवजात बच्चियों के पालनहार के रूप में भी सुर्खियों में रहे.

दरअसल, अपनी तैनाती के कुछ दिन बाद ही रोहतास के सासाराम स्थित जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर गोटपा गांव के पास रेलवे ट्रैक के निकट भैरव पासवान को एक बच्ची लावारिस हालत में शाल में लिपटी मिली थी. 45 साल के पासवान और उन की पत्नी कलावती के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वह इस नवजात को अपनाना चाहते थे.

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लेकिन बच्ची की बीमारी के चलते उन्हें डर था कि वह इसे खो देंगे. जब भैरव और उन की पत्नी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें, कहां जाएं तो उन्होंने जिला पुलिस के मुखिया लांडे से संपर्क किया.

पासवान को मुसीबत में देख लांडे ने चंद मिनटों के अंदर मुफस्सिल पुलिस स्टेशन के इंचार्ज विवेक कुमार को पासवान के घर भेजा जो बीमार बच्ची को पुलिस की गाड़ी में ले कर तुरंत जिला अस्पताल पहुंचे.

इस के बाद लांडे खुद अपनी डाक्टर पत्नी के साथ अस्पताल पहुंचे. बच्ची को स्पैशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में भरती कराया गया. इस के बाद एसपी लांडे ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन को बुला कर बच्ची को दिए जाने वाले जरूरी इलाज पर बातचीत की.

लांडे की इस नेकदिली के कारण बच्ची पूरी तरह सुरक्षित रही. बच्ची को लाने वाला पासवान इस बात पर हैरान था कि वह एक गरीब आदमी है, अगर लांडे साहब और उन की पत्नी ने उस की मदद न की होती तो कोई उम्मीद नहीं थी कि बच्ची जीवित रह पाती.

बच्ची के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद शिवदीप लांडे के हस्तक्षेप से पासवान ने बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करवाई.

लावारिस नवजात बच्चियों के प्रति शिवदीप लांडे के भावनात्मक प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2012 में जब वह अररिया में एसपी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची की जान बचाई थी. जिसे उस की मां ने कड़कती ठंड में उन के सरकारी आवास के गेट के बाहर छोड़ दिया था.

मासूम का रोना सुन कर लांडे घर से बाहर आए और उसे अपने सीने से लगा कर अंदर ले गए. बच्ची को गरमी का एहसास कराने और उस की सांसें सामान्य होने के बाद उन्होंने उसे सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष रीता घोष के पास पहुंचा दिया, जहां उस का जरूरी उपचार हो सका.

इस के अलावा जब वह पटना के एसपी सिटी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची को उस समय बचाया था जब एक प्राइवेट अस्पताल द्वारा ढाई लाख रुपए का बिल बनाने के कारण उस का पिता उसे अस्पताल में ही छोड़ गया था.

एसपी सिटी रहते जब इस बात की जानकारी शिवदीप लांडे को हुई तो वह बच्ची की मां का पता लगाने के लिए इस हद तक गए कि पूर्वी बिहार के कटिहार जिले में उस के घर तक जा पहुंचे.

वहां पहुंचने पर पता चला कि अस्पताल के पैसे न चुकाने के कारण बच्ची के पिता ने अपनी पत्नी से बता रखा था कि जन्म के दौरान ही उस की मौत हो गई और वहीं उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लांडे ने बच्ची को ही उस के घर तक नहीं पहुंचाया बल्कि उस के इलाज का भी इंतजाम किया, जिस से वह जिंदा रह सकी.

खनन माफिया से टकराव के कारण भले ही लांडे का तबादला कर दिया गया. लेकिन वह जहां भी रहे, अपराध और अपराधियों से कभी समझौता नहीं किया.

अनोखी है शिवदीप की प्रेम कहानी

अब जब सब कुछ फिल्म जैसा था, तो भला शिवदीप की शादी आम कैसे होती. शिवदीप द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम तथा उन की छवि के कारण लड़कियां उन पर मरती थीं. उन के फोन का मैसेज बौक्स हमेशा भरा रहता था. लेकिन इसे शिवदीप ने स्नेह से बढ़ कर और कुछ नहीं माना. क्योंकि उन की प्रेम कहानी तो कहीं और ही लिखी जानी थी.

शिवदीप जो उस वक्त बिहार में कर रहे थे, उस की हवा उन के गृहराज्य महाराष्ट्र में भी बह रही थी. उन के कारनामों तथा लुक के कारण वहां भी शिवदीप की खूब चर्चा थी. शिवदीप मुंबई में रह कर पढ़े थे. इस कारण यहां उन का अच्छाखासा फ्रैंड सर्कल था. बिहार में होने के बावजूद वह दोस्तों से मिलने मुंबई जाया करते थे.

ऐसे ही शिवदीप एक दोस्त के किसी समारोह में उपस्थिति दर्ज कराने मुंबई गए थे. इसी पार्टी में उन की मुलाकात एक लड़की से हुई. लड़की का नाम था ममता शिवतारे. शिवदीप एसपी थे, तो ममता भी कम नहीं थी. ममता शिवतारे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और पुणे के पुरंदर से एमएलए विजय शिवतारे की बेटी थीं.

यहीं दोनों की मुलाकात हुई. इस एक मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा. जिस का नतीजा यह निकला कि दोनों प्यार में पड़ गए. यह प्यार आगे चल कर शादी में बदल गया. बस ममता और शिवदीप ने 2 फरवरी, 2014 को शादी कर ली और एकदूसरे को जन्मजन्मांतर के लिए अपना मान लिया.

दिल तो कई लड़कियों के टूटे मगर शिवदीप का घर बस गया. परिवार में पत्नी ममता और उस के बाद दोनों के प्यार की निशानी के रूप में जन्म लेने वाली बेटी अरहा अब उन के जीवन की प्रेरणा बन चुकी है.

शिवदीप लांडे जहां भी रहे,  जिस तरह अपराधियों की कमर तोड़ी, मीडिया ने उस से उन की ‘दबंग’ पुलिस अधिकारी की छवि बना दी. लेकिन वास्तव में वह अपनी ड्यूटी पर जितना सख्त नजर आते थे, निजी जीवन में उतने ही विनम्र.

यह न समझा जाए कि शिवदीप केवल गुंडे बदमाशों को सबक सिखाने भर के ही हीरो रहे हैं. इस दबंग अफसर के पीछे एक कोमल दिल वाला नायक छिपा बैठा है. एक तरफ जहां शिवदीप अपराधियों के लिए काल का रूप साबित हुए, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जरूरतमंदों की दिल खोल कर मदद की.

विवाह से पहले वे अपने वेतन का 60 प्रतिशत एनजीओ को दान कर देते थे. हालांकि शादी और एक बेटी के जन्म  के बाद दान में कमी जरूर आई है परंतु बंद नहीं हुआ है. वेतन का 25 से 30 प्रतिशत भाग वे आज भी दान में दे देते हैं. इस के अलावा कई सामाजिक कार्यों में भी वह सहयोग करते हैं. उन्होंने कई गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह भी करवाया.

छोटेमोटे चोरउचक्कों से ले कर बड़ेबड़े माफिया तक में शिवदीप का खौफ था. उन्होंने लैंड माफिया से ले कर मैडीसिन माफिया तक की कमर तोड़ी. हालांकि, इन सब की वजह से उन्हें बारबार ट्रांसफर की तकलीफ झेलनी पड़ी. लेकिन उन का जहां से भी ट्रांसफर हुआ, वहां की आम जनता ने उन के जाने का दुख मनाया.

अब तैनाती महाराष्ट्र में

वर्तमान में शिवदीप लांडे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र के पुलिस विभाग में मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच के एंटी नारकोटिक्स सेल में एडीशनल कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवारत हैं और मादक पदार्थ तस्करों की कमर तोड़ रहे हैं.

जब आप लीक से हट कर कुछ करते हैं तो आप का नाम सुर्खियों में आना स्वभाविक है. वैसे तो शिवदीप लांडे ने अपनी पुलिस की नौकरी के सारे फैसले लीक से हट कर ही लिए. लेकिन कई मौकों पर उन के नाम की खूब धूम मची. ऐसा एक मौका तब भी आया, जब शिवदीप ने एक लड़की को 3 शराबियों के गिरोह से मुक्त कराया था.

इसी तरह मुरादाबाद के एक इंस्पेक्टर को भेष बदल कर उन्होंने रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा था. यह जनवरी, 2015 की घटना है. शिवदीप को जानकारी मिली कि मुरादाबाद के इंस्पेक्टर सर्वचंद 2 व्यापारी भाइयों से उन का पुराना केस खत्म करने के बदले में पैसे की मांग कर रहे हैं. इस बात को साबित करने के लिए शिवदीप तुरंत सिर पर दुपट्टा लपेट कर पटना के डाक बंगला चौराहे पर पहुंच गए.

उन की जानकारी के अनुसार इंसपेक्टर पैसे लेने के लिए यहीं आने वाला था. इंसपेक्टर जैसे ही वह पैसे लेने वहां पहुंचा, वैसे ही भेष बदल कर वहां इंतजार कर रहे शिवदीप ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद मीडिया में शिवदीप का नाम खूब उछला था.

अच्छा काम करने के बावजूद बारबार तबादला किए जाने से परेशान शिवदीप लांडे ने बाद में बिहार छोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने केंद्रसरकार से अपने गृह राज्य महाराष्ट्र लौटने की इच्छा जताई. शिवदीप लांडे के ससुर और महाराष्ट्र सरकार में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय शिवतारे ने खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब उन की पैरवी की तो यह काम और भी आसान हो गया.

हालांकि अब शिवदीप भले ही बिहार से जा चुके हैं. लेकिन उन का एक्शन मूड अभी भी जारी है. शिवदीप इन दिनों मुंबई एंटी नारकोटिक्स सेल क्राइम ब्रांच में डीआईजी के पद पर हैं. डांस बार में छापेमारी के साथसाथ कई बार नशीले पदार्थों की धरपकड़ के कारण उन का नाम यहां भी सुर्खियों में बना रहता है.

इसी साल जनवरी में शिवदीप फिर से चर्चा में तब आए, जब उन्होंने हेरोइन तस्करों को पकड़ने के लिए आटो ड्राइवर का भेष बनाया था. इस छापेमारी में मुंबई पुलिस ने 12 करोड़ की हेरोइन बरामद की थी. एक तरह से शिवदीप ने साबित कर दिया है कि चाहे जगह जो भी हो, उन का लक्ष्य एक ही रहेगा, और वो है अपने दबंग स्टाइल में अपराध और अपराधियों का खात्मा करना.

इसे एक अधिकारी की लोकप्रियता ही कहेंगे कि जब मुंगेर से शिवदीप का तबादला हुआ तो 6 किलोमीटर तक फूलों की बारिश करते हुए लोगों ने उन्हें विदा किया था. भीषण ठंड में जब पटना से उन का तबादला हुआ तो लोगों ने कई दिनों तक भूख हड़ताल और प्रर्दशन किए.

अररिया जिले से तबादला हुआ तो लोगों ने 48 घंटों तक उन्हें जिले से बाहर ही नहीं जाने दिया. रोहतास में खनन माफियाओं के खिलाफ उन की मुहिम में हमेशा लोगों का साथ मिला.

लांडे की पुलिस विभाग में जहां भी नियुक्ति रही, वह लोगों की आंख का तारा बन कर रहे. लोगों ने उन्हें अपनाया. मीडिया ने उन्हें ‘दबंग’, ‘सिंघम’, ‘रौबिनहुड’ और न जाने कितने उपनाम दिए, लेकिन उन के अपने उन्हें  ‘शिवदीप’ नाम से बुलाते हैं.

दंबग फिल्म में सलमान खान ने चुलबुल पांडे नाम के जिस पुलिस अफसर का किरदार निभाया है, उन में से अधिकांश किस्से आईपीएस शिवदीप लांडे की रीयल जिंदगी से जुडे़ है. ऐसा कहा जाता है कि सलमान खान ने यह फिल्म आईपीएस अफसर लांडे को केंद्र में रख कर ही बनाई थी, बस इस में कुछ बदलाव कर दिए गए थे.

यहां “डाल डाल” पर ठग बैठे हैं

छत्तीसगढ़ गरीबी और भूख से पीड़ित एक पिछड़े हुए राज्य के रूप में देश भर में जाना जाता है. मगर यहां ठगी और लूट के धंधे अब चलन में है. अंधविश्वास और पोंगा पंथ के फेर में पढ़ कर लोग ठगे जा रहे हैं, ऐसा लग रहा है छत्तीसगढ़ कि हर डाल पर ठग बैठे हैं. और यहां के सीधे साधे लोगों को एन केन प्रकारेण ठगे जा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के खमतराई और तिल्दा थाने में दो मामले घटित हुए हैं. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि ये गिरोह छत्तीसगढ़ के बाहरी राज्यों के हो सकते हैं.

राजधानी रायपुर के संतोषी नगर में रहने वाली चंद्रावती एक सामान्य घरेलू महिला हैं. पड़ोस की 13 साल की बच्ची डॉली शर्मा और 12 साल की खुशी शर्मा के साथ वह राशन दुकान में सरकार की तरफ से मिलने वाला राशन लेने जा रही थीं. अचानक बाइक सवार दो युवक पास पहुंचे. पहले तो दोनों किसी आयुर्वेदिक दफ्तर का पता पूछने लगे .महिला ने स्पष्ट कह दिया कि हमें नहीं पता.इस पर एक युवक ने महिला से बड़े ही मीठे स्वर में कहा – आपने जो सोने की चेन गले में पहन रखी है, उसे हाथ में पकड़ लीजिए, आपको देवी मां के दर्शन होंगे. हमने कुछ लोगों को दर्शन करवाए भी हैं. और महिला भी इनकी बातों में आ गई.

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जब महिला ने चेन उतारी और बालिका डॉली को पकड़ा दी. युवक ने डॉली से कहा कि वो अपनी चांदी की अंगूठी अपने हाथ में रखे. ताकि आपको देवी माता दिखाई दे. युवकों ने महिला को बातों में उलझाकर रखा. कहते रहे कि बस अब आपको भगवान के दर्शन होने ही वाले हैं. तभी दूसरे युवक ने बच्ची के हाथ में झपट्टा मारकर जेवर छीने और देखते ही देखते नौ दो ग्यारह हो गए. रोते हुए दुखी महिला थाने पहुंची और सारी राम कहानी पुलिस को बताई.

और जेवर… गायब !

रायपुर जिले के तिल्दा नगर की रहवासी अनन्या संतवानी एक ऐसी ही अन्य घटना का शिकार हो गई. घर पर दो लड़के आए, और दावा किया कि वह पीतल के बर्तन साफ करने का एक ऐसा पाउडर लेकर आए हैं जिससे बर्तन बिल्कुल नए जैसे चमकते हैं.

बातों में आकर महिला ने अपने कुछ पूजा में इस्तेमाल होने वाले बर्तन ला कर दिए. युवकों ने इसे चमका दिया. वो बार-बार एक लाल डिबिया दिखा रहे थे, कह रहे थे कि इसमें और भी खास पाउडर है जो जेवरों को चमका देता है.महिला की सास और जेठानी की उस वक्त घर पर मौजूद थीं, वह भी बर्तनों को साफ होता देख रही थीं.

महिला को युवकों ने अपनी बात में ऐसे फंसाया की पास ही बैठी उसकी जेठानी निकिता संतवानी ने अपनी चांदी की पायल उतार कर दे दी. युवक ने इसे साफ करके लौटा दिया और महिलाओं का भरोसा जीत लिया. दूसरे युवक ने अचानक अनन्या के हाथ में पहने सोने के कड़ों पर पाउडर लगा दिया, कहने लगा उतारिए इसे भी साफ कर दूंगा. अनन्या ने कड़े दे दिए.

युवक ने पाउडर पानी में घोलकर कहा कि पाउडर ज्यादा घुल गया है कुछ और जेवरात हों सोने चांदी के तो दीजिए अभी साफ कर देंगे.महिला की सास कृष्णा संतवानी ने भी अपनी चूड़ियां उतारकर दे दी. इन्हें युवकों ने कूकर में डाला और कहा कि कुछ देर बार जेवर निकालकर धो लें. इसके बाद युवक भाग गए. महिलाओं कूकर खोलकर देखा तो वो खाली था. इसके पश्चात मामला पुलिस के पास पहुंचा.

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ठगी का कारण और निवारण

दरअसल, ठगी का सीधा साधा मनोविज्ञान है अगर आप इसे समझने लगे तो कभी भी जगह नहीं जा सकते. ठगने वाले धर्म का सहारा लेते हैं किसी भगवान अथवा देवी का दर्शन कराने के नाम पर ठगा जाता है. अतः आप सचेत हैं जागृत हैं तो आप कभी भी ठगे नहीं जाएंगे दूसरी और लालच बुरी बला यह कहावत सौ फ़ीसदी सच है. जब जग लोग लालच के फंदे में फंसते हैं तो ठगे जाते हैं.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के मुताबिक ठगी का शिकार अक्सर महिलाएं ज्यादा होती है क्योंकि वह भोली भाली और सीधी होती है और शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी कम है अतः किसी की भी बातों में आकर ठगी का शिकार हो जाती है.

वहीं शासन को भी चाहिए कि ऐसे टोल फ्री नंबर जारी किया जाएं जो लोगों को सूचित करें सही जानकारी जानकारी दें.

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