प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी : काशी की ली सुध या साधा सियासी निशाना

अपने समय के दिग्गज समाजवादी नेता डाक्टर राममनोहर लोहिया का धर्म की राजनीति के बारे में कहना था कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति है. समाजवादियों ने तो इस गहरी बात के माने कभी समझे नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 18 जून, 2024 को एक बार फिर से काशी में देख कर लगा कि डाक्टर राममनोहर लोहिया गलत नहीं कह गए थे. वैसे, उन के सच्चे अनुयायी तो अब दक्षिणपंथी हो चले हैं, जिन्होंने धर्म और राजनीति में फर्क ही खत्म कर रखा है.

4 जून, 2024 को आम लोकसभा चुनाव के नतीजे देख कर सकपका तो नरेंद्र मोदी भी गए थे कि हे राम, यह क्या हो गया. इसी सदमे में उन्होंने बेखयाली में शपथ वाले दिन संविधान को माथे से लगा भी लिया था, जो अल्पकालिक धर्म था. फिर 13 दिनों के मंथन के बाद वे दीर्घकालिक राजनीति वाले फार्मूले पर आ गए.

इसी बीच गम कम करने की गरज से उन्होंने एक चक्कर विदेश का भी लगा लिया, जिस के बारे में एक दक्षिण भारतीय वामपंथी ऐक्टर प्रकाश राज के नाम से किसी शरारती तत्त्व ने सटीक टिप्पणी यह वायरल कर दी कि 70 सालों में पहली बार कोई प्रधानमंत्री महज एक सैल्फी लेने के लिए विदेश गया.

इटली में आयोजित जी-7 सम्मेलन में भारत की मौजूदगी औफिशियल नहीं थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद देश में ‘प्रधान सेवक’ होने जैसी फीलिंग पूरी तरह नहीं आ रही थी, इसलिए इटली जा कर उन्होंने अपना खोया हुआ आत्मविश्वास हासिल किया.

वहां नरेंद्र मोदी कई बड़े नेताओं से मिले और उन्हें बताया कि दुनिया के सब से बड़े लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लेने के बाद इस सम्मेलन का हिस्सा बनना बहुत संतुष्टि की बात है. मेरा सौभाग्य है कि जनता ने मुझे तीसरी बार देश की सेवा करने का अवसर दिया है.

यह पक्का करने के बाद कि दुनिया के इन राष्ट्र प्रमुखों और पूरी दुनिया को उन के तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बनने की तसल्ली हो गई है, तो वे दिल्ली होते हुए सीधे गंगा किनारे काशी जा पहुंचे.

वहां नरेंद्र मोदी पहले के मुकाबले थोड़ा सहज दिखे, फिर भी यह कसक छिपाए न छिपी कि बस, डेढ़ लाख वोटों से ही जीते, वरना बात तो 8-10 लाख की हो रही थी.

धर्म की कई खूबियों में से एक यह भी होती है कि वह दुख भुलाने में लोगों की मदद करता है. भगवान की शरण में जा कर महसूस होता है कि अच्छा हो या बुरा, सबकुछ इसी का कियाधरा होता है. वह जो करता है, भले के लिए करता है, उस की मरजी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता और लाख टके की बात, गीता का यह सार याद आ जाता है कि, ‘तू क्या ले कर आया था और क्या ले कर जाएगा. तेरा क्या है जो तू शोक करता है. हानिलाभ, जीवनमरण, यशअपयश विधि के हाथ… इस ज्ञान के आगे घोर नास्तिकों की नास्तिकता भी विसर्जित होने लगती है,

तो आस्तिकों की बिसात क्या जो एकदम झूम उठते हैं. ये धार्मिक बातें भरम मिटाती हैं या बढ़ाती हैं, इस का जवाब दोनों में से कुछ दिया जाए तो नतीजा यही निकलता है कि भरम न तो मिटता है, न बढ़ता है, बल्कि वैसा का वैसा रहता है. हां, उस के होने का एहसास नहीं होता.

यह ज्ञान पेनकिलर दवा जैसा होता है, जिन के असर से दर्द खत्म नहीं होता, उस का महसूस होना खत्म हो जाता है. बकौल कार्ल मार्क्स, धर्म अफीम का नशा.

तो शिव की नगरी आ कर नरेंद्र मोदी ने 13 दिनों बाद ज्ञान की गंगा, गंगा किनारे बहाई, औफलाइन भी और औनलाइन भी बहाई, जहां ज्ञान समुद्र के पानी की तरह दिनरात बहता रहता है और कभीकभी तो ज्ञान का तूफान भी आता है. मोदीजी ने हिंदी और इंगलिश दोनों भाषाओं में ज्ञान सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर भी दिया.

जैसे ही उन्होंने धार्मिक गेटअप धारण किया, वैसे ही वे 4 जून से पहले के प्रधानमंत्री लगने लगे. उन्हें इस नवकंज लोचन कंजमुख कर… टाइप मनभावन, मनमोहक रूप में देख ‘टाइगर जिंदा है’ की तर्ज पर भक्तों में भी खुशी की लहर दौड़ गई. थोड़ी देर में ही ‘हरहर गंगे’ और ‘भोलेनाथ’ के नारे लगने लगे.

एक बार फिर घंटेघडि़याल बजने लगे, भजनआरतीपूजन होने लगे, जिस से देश, देश जैसा लगने लगा. सब से पहले उन्होंने गरीब किसानों को पैसा बांटा, ठीक वैसे ही जैसे जीत के बाद चक्रवर्ती सम्राट टाइप के राजा जनता से इकट्ठा किए खजाने का थोड़ा सा मुंह जनता पर ही एहसान थोपते हुए खोल देते थे, ताकि वह ओवरफ्लो न हो.

फिर शुरू हुईं मुद्दे की बातें, मसलन मुझे मां गंगा ने गोद ले लिया है, अब मैं यहीं का हो गया हूं. यहीं का दिखने की जरूरी शर्तें पूरी करने के लिए उन्होंने गंगा आरती भी की, फिर दशाश्वमेघ घाट भी गए और विश्वनाथ मंदिर भी गए. वहां उन्होंने न मालूम वजहों के चलते इस बार षोडशोपचार पूजा की, जो सनातन धर्म का एक कठिन पूजन है. इस में 16 चरणों में पूजन संपन्न होता है. इस तरह भगवान और काशी के लोगों का धन्यवाद उन्होंने एकसाथ कर दिया.

काशीवासियों को भी यह यकीन हो गया कि ये वही मोदीजी हैं, जो सारी समस्याओं का हल भगवान पर डाल कर चलते बनते हैं. डेढ़ लाख से जिताओ या 10 लाख से, इन्हें इस से कोई सबक नहीं मिलता. 370 दे दो या 241 सीटें दे दो, ये देश और जनता की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने की भूल नहीं करते. हां, राज करने के लिए जरूर सैक्युलरों का एहसान ले लेते हैं, जिस से कम्युनलों का भरोसा कायम रहे.

140 करोड़ लोगों को यह मैसेज दे कर कि अब तुम्हारा भगवान ही मालिक है, वापस दिल्ली उड़ गए. धर्म की असल खूबी यही है कि यह जिम्मेदारियों से बच निकलने के लिए तंग और संकरी गलियां ही नहीं, बल्कि लंबेचौड़े हाईवे मुहैया करा देता है. उन के जाने के बाद जब धरमकरम की धूल छंटी तो लोगों को सम?ा आया कि मोदीजी इसी दफा उन के हुए हैं, 10 साल से गैर थे. इस के पहले काशी के लोग महान नहीं थे और न ही लोकतंत्र इतना मजबूत था जितना कि 4 जून को हुआ.

यही बात जो वाकई बड़ा सच है, उन्होंने इटली में विदेशी शासकों को भी बताई थी, बल्कि गए शायद यही बताने के लिए थे कि इस बार भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ है. बात सच इस लिहाज से है कि 234 सीटों के जरीए जनता ने विपक्ष को मजबूती दे दी है, जो किसी भी लोकतंत्र को मजबूत बनाती है.

अब क्या होगा, इस का किसी को अंदाजा नहीं, क्योंकि सरकार एक बेमेल गठबंधन की है. इस के सहयोगी मां गंगा की गोद और पूजापाठ में भरोसा नहीं करते. लिहाजा, धरमकरम एक हद तक ही वे बरदाश्त कर पाएंगे. लगता नहीं कि वे देश और जनता को भगवान भरोसे छोड़ने के रिस्क पर राजी होंगे, लेकिन मोदीजी ने अपनी तरफ से वतन ऊपर वाले के हवाले कर दिया है.

मेरे ससुराल वाले लालची है वो हमेशा पैसा खर्च की बात करते है, इस समस्या का हल बताएं?

सवाल

मैं 22 साल की हूं और जल्दी ही मेरी शादी होने वाली है. लड़का सरकारी नौकरी करता है और अच्छे स्वभाव का भी है. पर मुझे उस लड़के के मांबाप थोड़े लालची किस्म के इनसान लगे. वे हर बात में यह कहने की कोशिश करते हैं कि मेरे मातापिता को शादी में कहां और कितना पैसा खर्च करना चाहिए.

मुझे यह बात बहुत ज्यादा अखर रही है. क्या हमें आंखों देखी मक्खी निगलनी चाहिए? मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? इस बात से मुझे तनाव रहने लगा है. मेरी इस समस्या का हल कैसे निकलेगा?

जवाब

यह इतनी बड़ी समस्या नहीं है कि आप तनाव पालें. अगर लड़के वाले कुछ मांग नहीं रहे हैं, तो वे लालची किस बिना पर हुए? शादीब्याह की बातों में दोनों पक्ष एकदूसरे के खर्चे की बाबत सलाह देते और लेते हैं. अपने घर के बड़ों पर भरोसा रखें. वे सब मैनेज कर लेंगे. जब आप को ऐसा लगे कि अलग से कुछ मांग की जा रही है, तभी कोई कदम उठाएं.

वैसे, लगता ऐसा है कि आप अपने मांबाप को बहुत चाहती हैं, इसलिए यह आप को पसंद नहीं आ रहा है कि कोई उन्हें इस तरह सलाह दे. इसे आंखोंदेखी मक्खी निगलना न सम?ों. मुमकिन है कि लड़के के मांबाप सही बात कह रहे हों. हर शादी में थोड़ीबहुत ऐसी चिकचिक होती है, इसलिए इतमीनान से शादी की तैयारियां करें और कुछ गड़बड़ लगे तो अपने होने वाले पति से बात करें.

 

सनी लियोनी का एडल्ट स्टार से लेकर एक अच्छी मां बनने का सफर है बहुत खूबसूरत

एडल्ट स्टार सनी लियोनी एक खूबसूरत एक्ट्रेस और भारत के गूगल में ज्यादा सर्च करें जानें वाली फिल्म स्टार है. सनी लियोनी जिस तरह अपना करियर शुरु किया उसने सभी को चौंका कर रख दिया. उसके बाद शादी का निर्णय लेकर भी उन्होंने सबको हैरान कर दिया. ऐसा ही सनी ने सबकों मां बनकर भी चौंकाया. कि उन्होंने एक बच्ची को अडौप्ट किया. जिसे अपना नाम भी दिया.

 

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सनी लियोनी लातूर में रहने वाली निशा से मिलीं तो उन्हें लगा कि यही है वो बच्ची है जिसका उन्हें सालों से इंतजार था. निशा उनकी जिंदगी में आई और बन गई निशा कौर वेबर. जिसके बाद सनी एक बच्चे की मां बन गई. इस कदम के चलते सनी को एक तरफ तो बहुत सी तारीफें मिलीं, वहीं ट्रोल करने वालों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा.

एडल्ट फिल्म स्टार की जो छवी सनी बहुत पीछे छोड़ आईं थीं, लोगों ने उसे सोशल मीडिया पर ट्रोल करने के लिए बारबार इस्तेमाल किया. लेकिन कहते हैं ना, मां का दिल जितना कोमल होता है, उतना ही मजबूत भी होता है.  सनी ने इन ट्रोलर्स का मुकाबला करते हुए, कुछ ही दिनों में अपने घर दो और बच्चों का स्वागत किया.

ये दोनों बच्चे नोआ सिंह वेबर और अशर सिंह वेबर सेरोगेसी से जन्मे हैं.जब इनका जन्म हुआ, सनी ने सोशल मीडिया पर अपने तीनों बच्चों समेत एक फोटो के साथ पूरी दुनिया को इस खबर के बारे में बताया. सनी अपने बच्चों को शुरू से ही मीडिया फ्रेंडली बनाएं हुए हैं.

सनी की लाइफ में तीन बच्चों के आने के बाज उनकी करियर चौइसेज भी काफी बदल गईं. अब वो अच्छे रोल्स और अच्छी स्क्रिप्ट्स पर फोकस करने लगी हैं. इस बीच वो अपने बच्चों के साथ भी भरपूर समय बिताती हैं, जिससे वो उन्हें सही परवरिश दे सकें.

सनी लियोनी अपने बच्चों को एक अच्छी परवरिश के साथ अच्छे तौर-तरीके भी सिखा रही हैं. सिर्फ हिंदुस्तानी ही नहीं, पूरी दुनिया से बच्चों की परवरिश के अच्छे तरीके सनी और डेनियल आजमाते हैं. जिन लोगों को आज भी सनी लियोनी के अच्छी मां होने पर शक है और जो उन्हें आज भी उनकी लाइफ चौइसेज के लिए ट्रोल करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उनकी सोच से सनी को कोई फर्क नहीं पड़ता. वो अपने परिवार , करियर और बच्चों के साथ अपनी लाइफ एन्जौय कर रही हैं.

बिग बौस OTT 3 को मिला नया ट्विस्ट : आ रही है ये सैक्सी वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट

विवादित शो बिग बौस ओटीटी 3 धमाकेदार चल रहा है शो में अबतक कई एविक्शन हो चुके हैं, वहीं शो में सबके नएनए राज खुलकर सामने आ रहे है. सभी कंटेस्टेंट अच्छा खेलते दिख रहे हैं . शो में ओर तड़का लगाने के लिए मेकर्स ने वाइल्ड कार्ड एंट्री कराने की सोची है. जो शो को और मजेदार बना देगी. बता दें वाइल्ड कार्ड एंट्री में फीमेल कंटेस्टेंट आने वाली है.

 

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इस बार शो में सोशल इन्फ्लुएंसर ज्यादा नजर आ रहे है. इसी को देखते हुए वाइल्ड कार्ड एंट्री भी एक मौडल के साथ साथ सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. जो कि अपनी बोल्ड फोटोज को लेकर ज्यादा पौपुलर है नाम है ब्रिष्टि समद्दार.

ब्रिष्टि समद्दार सोशल मीडिया पर हमेशा सैक्सी फोटोज और वीडियोज शेयर करती है. फैंस उनकी इसी अदा पर फिदा है. ब्रिष्टि समद्दार वेस्ट बंगाल की रहने वाली हैं. ब्रिष्टि रीजनल सिनेमा का हिस्सा रह चुकी है. मगर उन्हें पॉपुलैरिटी बोल्ड तस्वीरों से मिली.

हालांकि जब से सोशल मीडिया पर लोगों को पता चला है कि बिग बौस ओटीटी 3 में ब्रिष्टि समद्दार आ रही है तो लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरु कर दिया है. लोग उन्हें तरहतरह के कमेंट्स कर रहे है और भड़क रहे है. एक ने कहा- नहीं प्लीज, इनका प्रोफाइल देखो, बिग बॉस को कोई पोटेंशियल कंटेस्टेंट लेकर आना चाहिए, ऐसे छपरी को नहीं लेकर आना चाहिए.

एक ने कहा- इससे अच्छा तो राखी को ले आते. एक अन्य यूजर ने कहा- लो, एक और छपरी. एक और यूजर ने कहा- लोग बीबी फैन से बीबी हेटर में बदल जाएंगे, भूलकर भी मत करो. एक यूजर ने लिखा- प्लीज बिग बौस, प्लीज ऐसी घटिया स्टफ मत लेकर आओ, मैं हमेशा से बिग बौस की फैन रही हूं और हर साल देखती हूं लेकिन जो क्वॉलिटी ये ओटीटी पर लेकर लोग आए हैं वो सचमुच बेहद घटिया है.

इनके अलावा शो में चंद्रिका दीक्षित, रणवीर शौरी, नैजी, सना मकबूल, सना सुल्तान, विशाल पांडे, लव कटारिया , पौलमी दास, साई केतन, मुनीषा खटवानी, शिवानी कुमारी और नीरज गोयत कंटेस्टेंट शामिल हैं.

नहीं चाहते हैं जल्दी बुढापा, तो आज से ही डाइट में कम करें शुगर

बौडी को फिट रखने के लिए ये जरूरी है कि अपनी डाइट को सही रखें, क्योंकि इससे आप लंबे समय तक जवान दिखेंगे. कई लोग ज्यादा मीठा खाना पसंद करते हैं इसलिए अपने खाने में शुगर का लेवल ज्यादा रखते हैं, लेकिन ऐसा करने से आपके शरीर को कई नुकसान हो सकते हैं.

 

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लो शुगर लेने से आपको कई फायदे हो सकते हैं, आप स्किन की केयर भी अच्छी तरह से कर सकते हैं. जो आपको जवां रखने के लिए काफी फायदेमंद है. इसलिए आज से ही खाने में या चाय में चीनी की मात्रा कम कर दें, आपकी सेहत हो जाएगी फिट.

कम चीनी खाना लड़को के लिए ज्यादा फायदेमंद माना गया है. उनको ड्रिंक्स का सेवन नहीं करना चाहिए जिनमे शुगर ज्यादा मात्रा में हो.

– खाने में चीनी कम डालने से होगा वेट लौस

चीनी में कैलोरीज की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. अगर आप शुगर कम लेंगे, तो आपका वेट जल्दी लौस होने लगेगा. इससे आप मोटापे का शिकार नहीं होंगे.

– बौडी में एनर्जी लेवल को बढ़ाएगा

ज्यादा शुगर आपके शरीर के एनर्जी लेवल को घटाने का काम करता है अगर आप शुगर का इंटेक कम कर देते है तो बौडी का एनर्जी का लेवल बढ़ जाएगा. जिससे आप फुर्ती से कोई भी काम कर सकते है.

– चीनी कम खाने से स्किन रहती है ज्यादा हेल्दी

ज्यादा चीनी खाने से चेहरे पर बुढ़ापे के निशान जल्दी नजर आ सकते हैं. इसका कारण ग्लाइकेशन है. इसमे आपके फेस पर एक्ने, प्रीमैच्योर एजिंग, रिंकल्स और फाइन लाइंस जैसे स्किन से जुड़ी परेशानियां हो जाती है. इसलिए अगर खाने से शुगर कम कर देंगे तो स्किन की इन प्रौब्लम्स से बच सकेंगे.

– कम चीनी, शुगर लेवल रखेगा कंट्रोल

बहुत ज्यादा चीनी आपके टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ा देती है. इसलिए चीनी कम करने से या बिलकुल कम करने से आपका इंसुलिन का लेवल कंट्रोल में रहता है.

– ब्लड प्रेशर रहता है बैलेंस

खाने से चीनी कम करने का सबसे ज्यादा फायदा ब्लड प्रेशर का लेवल इंप्रूव करता है. जिससे ने आपका ब्लड प्रेशर ज्यादा होगा, न कम होगा.

– लेजी नहीं महसूस होने देगा

डेली ज्यादा शुगर खाने से आपके शरीर में आलस और सुस्ती बढ़ जाती है. अगर आलस से दूर रहना चाहते हैं, तो खाने से चीनी की मात्रा को कम कर दें.

– डेंटल हेल्थ का रखता है ख्याल

चीनी का सबसे ज्यादा असर डेंटल पर पड़ता है ज्यादा चीनी का इंटेक दांतों को खराब कर देता है. दातों में कैविटी होने का कारण ज्यादा चीनी ही है. तो आज से चीनी कम खाना शुरु कर दें.

राहुल गांधी का संसद में बयान, क्यों बौखलाई भाजपा

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी का पहला भाषण ऐसा लगता है मानो भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बिजली की तरह गिरा. राहुल गांधी के भाषण की जैसी प्रतिक्रिया देशभर में आई है, वह बताती है कि राहुल गांधी का एकएक शब्द लोगों ने ध्यान से सुना और भाजपा तो मानो चारों खाने चित हो गई. यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उठ खड़े हुए और उन्होंने सफाई दी.

अब भाजपा नेताओं, नरेंद्र मोदी सहित संघ ने मोरचा संभाला और कहा कि राहुल गांधी हिंदुओं को ऐसावैसा कह रहे हैं….देखिए… जबकि हकीकत यह है कि जिस ने भी राहुल गांधी का भाषण सुना है, वह जानता है कि राहुल गांधी ने भाजपा और संघ पर टिप्पणी की है और कहा कि हिंदू समाज ऐसा नहीं है मगर भरम यह फैलाया जा रहा है कि राहुल गांधी ने संपूर्ण हिंदू समाज को हिंसक कहा है जो सीधेसीधे गलत है.

दरअसल, भाजपा के काम करने का ढंग यही है कि वह बातों को तोड़मरोड़ देती है. इस का सब से बड़ा उदाहरण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसद में खड़े हो कर के कहना कि राहुल गांधी हिंदुओं को हिंसक कर रहे हैं, जबकि राहुल ने क्या कहा, यह साफ है.

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोमवार, 1 जुलाई, 2024 को भाजपा पर देश में हिंसा, नफरत और डर फैलाने का आरोप लगाया और दावा किया, ‘ये लोग हिंदू नहीं हैं, क्योंकि 24 घंटे की हिंसा की बात करते हैं.’

राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा, ‘हिंदू कभी हिंसा नहीं कर सकता, कभी नफरत और डर नहीं फैला सकता.’

राहुल गांधी ने जब भाजपा पर यह आरोप लगाया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बौखलाहट साफ दिखाई दी. दोनों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि कांग्रेस नेता ने पूरे हिंदू समाज को हिंसक कहा है.

राहुल गांधी ने भाजपा पर युवाओं, छात्रों, किसानों, मजदूरों, दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों में डर पैदा करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग अल्पसंख्यकों, मुसलमानों, सिखों एवं ईसाइयों को डराते हैं, उन पर हमला करते हैं और उन के खिलाफ नफरत फैलाते हैं, लेकिन अल्पसंख्यक इस देश के साथ हैं.

नरेंद्र मोदी सामने आए

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि खुद को हिंदू कहने वाले हर समय ‘हिंसा और नफरत फैलाने’ में लगे हैं, जिस पर सत्ता पक्ष के सदस्यों ने जोरदार तरीके से विरोध जताया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामने आए और कहा, “पूरे हिंदू समाज को हिंसक कहना बहुत गंभीर बात है.” हालांकि राहुल गांधी ने प्रतिक्रिया में कहा कि वे भाजपा की बात कर रहे हैं और भाजपा, नरेंद्र मोदी या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरा हिंदू समाज नहीं हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सदन में कई बार भगवान शिव की एक तसवीर दिखाते हुए कहा कि वे अहिंसा और निडरता का संदेश देते हैं. सदन में राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘सभी धर्मों और हमारे सभी महापुरुषों ने अहिंसा और निडरता की बात की है. वे कहते थे कि डरो मत, डराओ मत.’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामने आया

संघ ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के बयान पर आपत्ति जाहिर की. संघ की ओर से कहा गया कि हिंदुत्व को हिंसा से जोड़ना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. विश्व हिंदू परिषद ने भी राहुल के भाषण की भर्त्सना की है. हिंदुत्व चाहे विवेकानंद का हो या गांधी का, वह सौहार्द्र व बंधुत्व का परिचायक है. हिंदुत्व के बारे में ऐसी प्रतिक्रिया ठीक नहीं है.

विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि लोकसभा में राहुल गांधी ने बहुत ही नाटकीय आक्रामकता से भरा भाषण दिया है. नेता प्रतिपक्ष के नाते शायद उन के पहले भाषण में अपनेआप को साबित करने का जोश होगा. इस दौरान वे बोल गए कि हिंदू समाज हिंसक होता है.

संघ के सुनील आंबेकर ने कहा कि संसद में जिम्मेदार लोगों द्वारा हिंदुत्व को हिंसा से जोड़ना दुर्भाग्यजनक है.
उन्होंने कहा कि जिस हिंदू समाज के भिक्षुक पैदल ही दुनिया का भ्रमण करते थे, अपने प्रेम से, तर्क से, करुणा से लोगों को हिंदू बनाते थे, उस समाज पर ऐसा आरोप लगाने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

कुलमिला कर राहुल गांधी के कथन से भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों के हाथों के तोते उड़े हुए हैं.

कोठे से वापसी: शमा की उम्मीद

उस कोठे पर जो भी आता, शमा उस से यही उम्मीद लगाए रखती कि वह उस की मदद करेगा और उसे वहां से निकाल कर ले जाएगा. मगर कोई उस की फिक्र नहीं करता था और अपना मतलब निकाल कर चला जाता था. एक दिन शमा की कोठेदारनी चंद्रा को उस के भाग निकलने की योजना का पता चल गया.

‘‘अगर तू ने यहां से निकल भागने की कोशिश की, तो मैं तुझे काट डालूंगी. अरी, एक बार जो धंधे वाली बन जाती है, उसे तो उस के घर वाले भी वापस नहीं लेते हैं,’’ चंद्रा ने गुस्से में उबलते हुए कहा. शमा के कमरे से थोड़ी दूरी पर एक पान की दुकान थी. वह उस दुकान पर अकसर जाती थी.

एक दिन शमा ने पान वाले से कहा, ‘‘भैया, आप ही मुझे यहां से निकलवा दीजिए. मैं तवायफ नहीं हूं, मजबूरी में फंस कर यह सब…’’ पान वाले ने कहा, ‘‘मेरी इतनी ताकत नहीं है कि मैं तुम्हें यहां से निकलवा सकूं. हां, मेरे पास कमल और आरिफ आते हैं, वे तुम्हारी मदद जरूर कर सकते हैं.’’

शमा ने जब आरिफ और कमल का नाम सुना, तो उसे कुछ उम्मीद नजर आई. अब उस की आंखें हर पल आरिफ और कमल का इंतजार करने लगीं. एक शाम को आरिफ और कमल पान की दुकान पर आए, तो शमा भी दुकान पर पहुंच गई.

शमा बगैर किसी हिचक के उन से फरियाद करने लगी, ‘‘भैया, मैं तवायफ नहीं हूं. मैं यहां से निकलना चाहती हूं. आप ही मुझ बेसहारा, मजबूर लड़की की मदद कर सकते हैं. मैं आप के पास बहुत उम्मीद ले कर आई हूं.’’ ‘‘हम इस बारे में सोच कर बताएंगे,’’ कमल ने शमा को तसल्ली देते हुए कहा.

वहां से लौट कर उन दोनों ने आपस में बातचीत की और एक योजना बनाई. फिर कमल ने कोठे के एक दलाल से शमा को एक रात के लिए अपने पास रखने की बात की. दलाल ने जितनी रकम बताई, कमल ने फौरन अदा कर दी और उसे जगह बता दी.

वह आदमी उस महल्ले का काफी पुराना और भरोसेमंद दलाल था. हर कोठेदारनी उस पर भरोसा कर के उस के साथ लड़कियों को महल्ले से बाहर भेज देती थी. चंद्रा भी इनकार न कर सकी और रकम रखते हुए बोली, ‘‘तड़के ही शमा को वापस ले आना.’’

‘‘ठीक है,’’ दलाल ने अपनी मोटी गरदन हिलाते हुए कहा. रात को वादे के मुताबिक वह दलाल शमा को ले कर कमल के बताए पते पर पहुंच गया.

शमा ने जब वहां आरिफ और कमल को देखा, तो वह अपने बुलाए जाने का मकसद समझ गई और मन ही मन खुश हो गई. शमा को वहां छोड़ कर जब वह दलाल चला गया, तब आरिफ और कमल ने उस से अपने बारे में सबकुछ बताने को कहा.

शमा ने आराम से बैठते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘साहब, मैं पश्चिम बंगाल की रहने वाली हूं. वहां मेरे पिता का अच्छा कारोबार है. मेरे 3 भाई और एक बहन है. भाइयों के भी अच्छे कारोबार हैं. बहन की शादी हो चुकी है. ‘‘कुछ महीने पहले हमारे घर में शीला नाम की एक औरत किराए पर रहने आई थी. कुछ ही दिनों में वह हमारे परिवार से घुलमिल गई थी. हम सब बच्चे उसे आंटी कह कर बुलाते थे.

‘‘एक शाम को मैं स्कूल से आ रही थी. एक सुनसान जगह पर एक गाड़ी आ कर मेरे पास रुकी. कुछ गुंडों ने मुझे उस गाड़ी के अंदर खींच लिया. इस से पहले कि मैं कुछ बोल पाती, मेरे मुंह पर कपड़ा बांध दिया गया. इस के बाद मैं बेहोश हो गई. ‘‘जब मुझे होश आया, तो मैं ने वहां शीला आंटी को देखा. उसे देख कर मैं हैरान रह गई.

‘‘मुझे यह समझते देर न लगी कि इसी औरत ने मुझे अगवा कराया है. रात को शीला और उस के एक साथी ने मुझे जिस्मफरोशी के लिए मजबूर किया. ‘‘अगर मैं उन की किसी बात से इनकार करती थी, तो वे चाकू से मेरे जिस्म को हलका सा काट कर उस में मिर्च भर देते थे, ताकि मैं इस धंधे में उतर आऊं.

‘‘साहब, वहां मेरी चीखें सुनने वाला भी कोई नहीं था. वे मुझे बहुत मारते थे,’’ कहतेकहते शमा रो पड़ी. शमा की दर्दभरी कहानी सुन कर कमल और आरिफ ने उस की हिम्मत की दाद दी.

‘‘शमा, हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे, लेकिन तुम इस राज को अपने तक ही रखना,’’ आरिफ ने कहा. सुबह होते ही वह दलाल वहां आ गया और शमा को ले गया.

कमल और आरिफ कुछ लोगों की मदद से एक पुलिस अफसर से मिले और उन को शमा के बारे में पूरी जानकारी दी. उन की बातें सुन कर पुलिस अफसर ने कहा, ‘‘ठीक है, हम छापा मार कर लड़की को वहां से निकालते हैं.’’

पुलिस कोठे पर छापा मार कर शमा के साथ चंद्रा और कई दलालों को पकड़ लाई. थाने में आ कर पुलिस अफसर ने शमा से पूछताछ शुरू की. इस पर शमा ने पुलिस अफसर को जो बताया, उसे सुन कर आरिफ और कमल के होश उड़ गए. उस ने बयान दिया, ‘‘साहब, मैं एक तवायफ हूं और अपने मरजी से यह धंधा करती हूं.’’

शमा का बयान सुनने के बाद पुलिस अफसर ने कमल और आरिफ को डांटते हुए कहा कि दोबारा इस तरह पुलिस को परेशान करने की कोशिश की, तो बहुत बुरा होगा. उन्होंने शमा को चंद्रा के साथ भेज दिया. कई दिन बाद कमल जब उसी गली से गुजर रहा था, तब शमा उसे रोक कर रोने लगी. वह बोली, ‘‘चंद्रा को हमारी योजना पता लग गई थी. उस ने अपने कुछ आदमियों से मुझे बहुत पिटवाया था, इसलिए मैं डर गई थी. लेकिन साहब, मैं अब भी यहां से किसी भी तरह निकलना चाहती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हें एक मौका और दूंगा. अगर निकल सकती हो, तो निकल जाना, वरना जिंदगीभर यहीं जिस्मफरोशी करती रहना,’’ कमल ने गुस्से में कहा. ‘‘इस बार आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी,’’ शमा ने हाथ जोड़ते हुए कहा. जब कमल ने आरिफ से कहा, तो वह बोला, ‘‘कमल, हमें यह काम अब अकेले नहीं करना चाहिए. हमें अपने कुछ और दोस्तों की मदद लेनी चाहिए. मामला कुछ पेचीदा नजर आ रहा है.’’

कमल और आरिफ अपने एक दोस्त असद खां से मिले. असद खां का उस इलाके में काफी दबदबा था. वह जब उस गली से गुजरता था, तो सारी तवायफें उस के खौफ से अपने दरवाजे बंद कर लेती थीं. कमल ने असद खां को शमा के बारे में बताया. उस की सारी बातें सुन कर वह भी संजीदा हो गया और बोला, ‘‘पहले मैं उस लड़की से बात करूंगा, उस के बाद कोई फैसला लूंगा.’’

अगले दिन असद खां अपने कुछ साथियों के साथ उस कोठे पर पहुंच गया. असद खां को देखते ही महल्ले में भगदड़ सी मच गई. सारी तवायफें अपनेअपने कोठे के दरवाजे बंद करने लगीं.

असद खां ने शमा का कमरा खुलवाया. शमा ने उसे बैठने को कहा, लेकिन असद खां ने रोबीली आवाज में कहा, ‘‘मैं यहां बैठने नहीं आया हूं. मुझे कमल ने भेजा है.’’ असद खां के मुंह से कमल का नाम सुनते ही शमा सबकुछ समझ गई.

‘‘क्या तुम यहां से जाना चाहती हो?’’ असद खां ने उस से पूछा. ‘‘हां, मैं यहां से निकलना चाहती हूं, लेकिन आप लोगों ने देर कर दी, तो मुझे 1-2 दिन में कहीं दूर भेज दिया जाएगा,’’ शमा ने रोते हुए कहा.

‘‘मैं तुम्हें यहां से निकाल दूंगा, मगर याद रखना कि इस बार तुम पुलिस के सामने अपना बयान मत बदलना. अगर तुम ने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें पुलिस थाने में ही गोली मार दूंगा,’’ असद खां ने कहा. ‘‘मैं थाने नहीं जाऊंगी. मुझे पुलिस से डर लगता है,’’ शमा ने सिसकते हुए कहा.

‘‘अच्छा, मैं तुम्हें थाने नहीं ले जाऊंगा. लेकिन तुम्हें अदालत में बयान देना होगा.’’ शमा ने ‘हां’ में अपना सिर हिला दिया.

‘‘देखो लड़की, मैं तुम्हें इस कोठे से खुलेआम निकाल कर ले जाऊंगा. किसी माई के लाल में इतनी हिम्मत नहीं, जो मुझे रोक सके,’’ असद खां ने आंखें फाड़ते हुए कहा. असद खां की बातों से शमा को यकीन हो गया कि वह उसे यहां से जरूर निकाल ले जाएगा.

असद खां जब शमा का हाथ पकड़ कर कमरे से बाहर ले आया, तो पूरे कोठे में सन्नाटा छा गया. किसी बदमाश या दलाल की उस से बात करने की हिम्मत न हो सकी. असद खां शमा को एक वकील के साथ अदालत में ले गया.

शमा मजिस्ट्रेट के सामने फूटफूट कर रोने लगी. उस ने उन्हें अपनी सारी कहानी सुना दी और अपने जिस्म के जख्मों के निशान भी दिखाए. शमा की दर्दभरी कहानी सुन कर मजिस्ट्रेट ने फौरन पुलिस को हुक्म दिया कि चंद्रा और उन लोगों को गिरफ्तार किया जाए, जिन्होंने इस लड़की पर जुल्म किया है.

मजिस्ट्रेट के हुक्म पर पुलिस ने फौरन गिरफ्तारी शुरू कर दी. बाद मैं मजिस्ट्रेट ने हुक्म दिया कि पुलिस की निगरानी में शमा को उस के घर भेज दिया जाए. कुछ दिनों के बाद शमा को हिफाजत के साथ उस के घर भेज दिया गया.

रिश्ता दोस्ती का: क्या सास की चालों को समझ पाई सुदीपा

12 साल की स्वरा शाम में खेलकूद कर वापस आई. दरवाजे की घंटी बजाई तो
सामने किसी अजनबी युवक को देख कर चकित रह गई.

तब तक अंदर से उस की मां सुदीपा बाहर निकली और मुस्कुराते हुए बेटी से
कहा,” बेटे यह तुम्हारी मम्मा के फ्रेंड, अविनाश अंकल हैं . नमस्ते करो
अंकल को.”

“नमस्ते मम्मा के फ्रेंड अंकल ,” कह कर हौले से मुस्कुरा कर वह अपने कमरे
में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी. कुछ ही देर में उस का भाई विराज भी
घर लौट आया. विराज स्वरा से दोतीन साल ही बड़ा था.

विराज को देखते ही स्वरा ने सवाल किया,” भैया आप मम्मा के फ्रेंड से मिले?”

“हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन
तू कहीं गई हुई थी.”

“वह सब छोड़ो भैया. आप तो मुझे यह बताओ कि वह मम्मा के बॉयफ्रेंड हुए न ?”

” यह क्या कह रही है पगली, वह तो बस फ्रेंड है. यह बात अलग है कि आज तक
मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है
मम्मा ने.”

” वही तो मैं कह रही हूं कि वह बॉय भी है और मम्मा का फ्रेंड भी. यानी वह
बॉयफ्रेंड ही तो हुए न,” मुस्कुराते हुए स्वरा ने कहा.

” ज्यादा दिमाग मत दौड़ा. अपनी पढ़ाई कर ले,” विराज ने उसे धौल जमाते हुए कहा.

थोड़ी देर में अविनाश चला गया तो सुदीपा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुए
थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं,” बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रेंड अब
अक्सर ही घर आने लगा है.”

“अरे नहीं मम्मी जी वह दूसरी बार ही तो आया था और वह भी ऑफिस के किसी काम
के सिलसिले में ही आया था.”

” मगर बहू तू तो कहती थी कि तेरे ऑफिस में ज्यादातर महिलाएं हैं. अगर
पुरुष हैं भी तो वे अधिक उम्र के हैं. जब कि यह लड़का तो तुझ से भी छोटा
लग रहा था.”

” मम्मी जी हम समान उम्र के ही हैं. अविनाश मुझ से केवल 4 महीने छोटा है.
एक्चुअली हमारे ऑफिस में अविनाश का ट्रांसफर हाल में ही हुआ है. पहले उस
की पोस्टिंग हेड ऑफिस मुंबई में थी. सो इसे प्रैक्टिकल नॉलेज काफी ज्यादा
है. कभी भी कुछ मदद की जरूरत होती है तो यह तुरंत आगे आ जाता है. तभी यह
ऑफिस में बहुत जल्द सब का दोस्त बन गया है. अच्छा मम्मी जी आप बताइए आज
खाने में क्या बनाऊं?”

” जो दिल करे बना ले बहू, पर देख लड़कों को जरूरत से ज्यादा मेलजोल बढ़ाना
सही नहीं होता. तेरे भले के लिए ही कह रही हूं बहू.”

” अरे मम्मी जी आप निश्चिंत रहिए. अविनाश बहुत अच्छा लड़का है,” कह कर
हंसती हुई सुदीपा अंदर चली गई मगर सास का चेहरा बना रहा.

रात में जब सुदीपा का पति अनुराग घर लौटा तो खाने के बाद सास ने अनुराग
को कमरे में बुलाया और धीमी आवाज में उसे अविनाश के बारे में सब कुछ
बताने लगी.

अनुराग ने मां को समझाने की कोशिश की,” मां आज के समय में महिलाओं और
पुरुषों की दोस्ती आम बात है. वैसे भी आप जानती ही हो सुदीपा कितनी
समझदार है. आप टेंशन क्यों लेते हो मां ?”

” बेटा मेरी बूढ़ी हड्डियों ने इतनी दुनिया देखी है जितनी तू सोच भी नहीं
सकता. स्त्रीपुरुष की दोस्ती यानी घी और आग की दोस्ती. आग पकड़ते समय
नहीं लगता बेटे. मेरा फर्ज था तुझे समझाना सो समझा दिया.”

” डोंट वरी मां ऐसा कुछ नहीं होगा. अच्छा मैं चलता हूं सोने,” अविनाश मां
के पास से तो उठ कर चला आया मगर कहीं न कहीं उन की बातें देर तक उस के
जेहन में घूमती रहीं. वह सुदीपा से बहुत प्यार करता था और उस पर पूरा
यकीन भी था. मगर आज जिस तरह मां शक जाहिर कर रही थीं उस बात को वह पूरी
तरह इग्नोर भी नहीं कर पा रहा था.

रात में जब घर के सारे काम निपटा कर सुदीपा कमरे में आई तो अविनाश ने उसे
छेड़ने के अंदाज में कहा ,” मां कह रही थीं आजकल आप की किसी लड़के से
दोस्ती हो गई है और वह आप के घर भी आता है.”

पति के भाव समझते हुए सुदीपा ने भी उसी लहजे में जवाब दिया,” जी हां आप
ने सही सुना है. वैसे मां तो यह भी कह रही होंगी कि कहीं मुझे उस से
प्यार न हो जाए और मैं आप को चीट न करने लगूं. ”

” हां मां की सोच तो कुछ ऐसी ही है मगर मेरी नहीं. ऑफिस में मुझे भी
महिला सहकर्मियों से बातें करनी होती हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि
मैं कुछ और सोचने लगूं. मैं तो मजाक कर रहा था.”

” आई नो एंड आई लव यू, ” प्यार से सुदीपा ने कहा.

” ओहो चलो इसी बहाने यह लफ्ज़ इतने दिनों बाद सुनने को तो मिल गए,”
अविनाश ने उसे बाहों में भरते हुए कहा.

सुदीपा खिलखिला कर हंस पड़ी. दोनों देर तक प्यार भरी बातें करते रहे.

वक्त इसी तरह गुजरने लगा. अविनाश अक्सर सुदीपा के घर आ जाता. कभीकभी
दोनों बाहर भी निकल जाते. अनुराग को कोई एतराज नहीं था इसलिए सुदीपा भी
इस दोस्ती को एंजॉय कर रही थी. साथ ही ऑफिस के काम भी आसानी से निबट
जाते. सुदीपा ऑफिस के साथ घर भी बहुत अच्छे से संभालती थी. अनुराग को इस
मामले में भी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी.

पर मां अक्सर बेटे को टोकतीं ,”यह सही नहीं है अनुराग. तुझे फिर कह रही
हूं, पत्नी को किसी और के साथ इतना घुलनमलने देना उचित नहीं.”

” मां एक्चुअली सुदीपा ऑफिस के कामों में ही अविनाश की हेल्प लेती है.
दोनों एक ही फील्ड में काम कर रहे हैं और एकदूसरे को अच्छे से समझते हैं.
इसलिए स्वाभाविक है कि काम के साथसाथ थोड़ा समय संग बिता लेते हैं. इस
में कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगता मां और फिर तुम्हारी बहू इतना कमा भी तो
रही है. याद करो मां जब सुदीपा घर पर रहती थी तो कई दफा घर चलाने के लिए
हमारे हाथ तंग हो जाते थे. आखिर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके इस के
लिए सुदीपा का काम करना भी तो जरूरी है न. फिर जब वह घर संभालने के बाद
काम करने बाहर जा रही है तो हर बात पर टोकाटाकी भी तो अच्छी नहीं लगती
न. ”

” बेटे मैं तेरी बात समझ रही हूं पर तू मेरी बात नहीं समझता. देख थोड़ा
नियंत्रण भी जरूरी है बेटे वरना कहीं तुझे बाद में पछताना न पड़े,” मुंह
बनाते हुए मां ने कहा.

” ठीक है मां मैं बात करूंगा ,” कह कर अनुराग चुप हो जाता.

एक ही बात बारबार कही जाए तो वह कहीं न कहीं दिमाग पर असर डालती है. ऐसा
ही कुछ अनुराग के साथ भी होने लगा था. जब काम के बहाने सुदीपा और अविनाश
शहर से बाहर जाते तो अनुराग का दिल बेचैन हो उठता. उसे कई दफा लगता कि
सुदीपा को अविनाश के साथ बाहर जाने से रोक ले या डांट लगा दे. मगर वह ऐसा
कर नहीं पाता. आखिर उस की गृहस्थी की गाड़ी यदि सरपट दौड़ रही थी तो उस
के पीछे कहीं न कहीं सुदीपा की मेहनत ही तो थी.

इधर बेटे पर अपनी बातों का असर पड़ता न देख अनुराग के मांबाप ने अपने
पोते और पोती यानी बच्चों को उकसाना शुरू किया. एक दिन दोनों बच्चों को
बैठा कर वह समझाने लगे,” देखो बेटे आप की मम्मा की अविनाश अंकल से दोस्ती
ज्यादा ही बढ़ रही है. क्या आप दोनों को नहीं लगता कि मम्मा आप को या
पापा को अपना पूरा समय देने के बजाय अविनाश अंकल के साथ घूमने चली जाती
है? ”

” दादी जी मम्मा घूमने नहीं बल्कि ऑफिस के काम से ही अविनाश अंकल के साथ
जाती हैं, ” विराज ने विरोध किया.

” भैया को छोड़ो दादी जी पर मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मम्मा हमें सच में
इग्नोर करने लगी हैं. जब देखो ये अंकल हमारे घर आ जाते हैं या मम्मा को
ले जाते हैं. यह सही नहीं.”

“हां बेटे मैं इसलिए कह रही हूं कि थोड़ा ध्यान दो. मम्मा को कहो कि अपने
दोस्त के साथ नहीं बल्कि तुम लोगों के साथ समय बिताया करें.”

उस दिन संडे था. बच्चों के कहने पर सुदीपा और अनुराग उन्हें ले कर वाटर
पार्क जाने वाले थे. दोपहर की नींद ले कर जैसे ही दोनों बच्चे तैयार होने
लगे तो मां को न देख कर दादी के पास पहुंचे, “दादी जी मम्मा कहां है दिख
नहीं रही?”

“तुम्हारी मम्मा गई अपने फ्रेंड के साथ.”

“मतलब अविनाश अंकल के साथ?”

“हां ”

” लेकिन उन्हें तो हमारे साथ जाना था. क्या हम से ज्यादा बॉयफ्रेंड
इंपॉर्टेंट हो गया ?” कह कर स्वरा ने मुंह फुला लिया. विराज भी उदास हो
गया.

लोहा गरम देख दादी मां ने हथौड़ा मारने की गरज से कहा, ” यही तो मैं कहती
आ रही हूं इतने समय से कि सुदीपा के लिए अपने बच्चों से ज्यादा
महत्वपूर्ण वह पराया आदमी हो गया है. तुम्हारे बाप को तो कुछ समझ ही नहीं
आता.”

” मां प्लीज ऐसा कुछ नहीं है. कोई जरुरी काम आ गया होगा,” अनुराग ने
सुदीपा के बचाव में कहा.

” पर पापा हमारा दिल रखने से जरूरी और कौन सा काम हो गया भला? ” कह कर
विराज गुस्से में उठा और अपने कमरे में चला गया. उस ने अंदर से दरवाजा
बंद कर लिया.

स्वरा भी चिढ़ कर बोली,” लगता है मम्मा को हम से ज्यादा प्यार उस अविनाश
अंकल से हो गया है.”

वह भी पैर पटकती अपने कमरे में चली गई. शाम को जब सुदीपा लौटी तो घर में
सब का मूड ऑफ था.

सुदीपा ने बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा,” तुम्हारे अविनाश
अंकल के पैर में गहरी चोट लगी लग गई थी. तभी मैं उन्हें ले कर अस्पताल
गई.”

” मम्मा आज हम कोई बहाना नहीं सुनने वाले. आप ने अपना वादा तोड़ा है और
वह भी अविनाश अंकल की खातिर. हमें कोई बात नहीं करनी ,” कह कर दोनों वहां
से उठ कर चले गए.

स्वरा और विराज मां की अविनाश से इन नज़दीकियों को पसंद नहीं कर रहे थे.
वे अपनी ही मां से कटेकटे से रहने लगे. गर्मी की छुट्टियों के बाद बच्चों
के स्कूल खुल गए और विराज अपने हॉस्टल चला गया.

इधर सुदीपा के सासससुर ने इस दोस्ती का जिक्र उस के मांबाप से भी कर
दिया. सुदीपा के मांबाप भी इस दोस्ती के खिलाफ थे. मां ने सुदीपा को
समझाया तो पिता ने भी अनुराग को सलाह दी कि उसे इस मामले में सुदीपा पर
थोड़ी सख्ती करनी चाहिए और अविनाश के साथ बाहर जाने की इजाजत कतई नहीं
देनी चाहिए.

इस बीच स्वरा की दोस्ती सोसाइटी के एक लड़के सुजय से हो गई. वह स्वरा से
दोचार साल बड़ा था यानी विराज की उम्र का था. वह जूडोकराटे में चैंपियन
और फिटनेस फ्रीक लड़का था. स्वरा उस की बाइक रेसिंग से भी बहुत प्रभावित
थी. वे दोनों एक ही स्कूल में थे. दोनों साथ स्कूल आनेजाने लगे. सुजय
दूसरे लड़कों की तरह नहीं था. वह स्वरा को अच्छी बातें बताता. उसे सेल्फ
डिफेंस की ट्रेनिंग देता और स्कूटी चलाना भी सिखाता. सुजय का साथ स्वरा
को बहुत पसंद आता.

एक दिन स्वरा सुजय को अपने साथ घर ले आई. सुदीपा ने उस की अच्छे से आवभगत
की. सब को सुजय अच्छा लड़का लगा इसलिए किसी ने स्वरा से कोई पूछताछ नहीं
की. अब तो सुजय अक्सर ही घर आने लगा. वह स्वरा की मैथ्स की प्रॉब्लम भी
सॉल्व कर देता और जूडोकराटे भी सिखाता रहता.

एक दिन स्वरा ने सुदीपा से कहा,” मम्मा आप को पता है सुजय डांस भी जानता
है. वह कह रहा था कि मुझे डांस सिखा देगा.”

” यह तो बहुत अच्छा है. तुम दोनों बाहर लॉन में या फिर अपनी कमरे में
डांस की प्रैक्टिस कर सकते हो.”

” मम्मा आप को या घर में किसी को एतराज तो नहीं होगा ?” स्वरा ने पूछा.

” अरे नहीं बेटा. सुजय अच्छा लड़का है. वह तुम्हें अच्छी बातें सिखाता
है. तुम दोनों क्वालिटी टाइम स्पेंड करते हो. फिर हमें ऐतराज क्यों होगा?
बस बेटा यह ध्यान रखना सुजय और तुम फालतू बातों में समय मत लगाना. काम
की बातें सीखो, खेलोकूदो, उस में क्या बुराई है ?”

“ओके थैंक यू मम्मा,” कह कर स्वरा खुशीखुशी चली गई.

अब सुजय हर संडे स्वरा के घर आ जाता और दोनों डांस प्रैक्टिस करते. समय
इसी तरह बीतता रहा. एक दिन सुदीपा और अनुराग किसी काम से बाहर गए हुए थे.
घर में स्वरा दादीदादी के साथ अकेली थी. किसी काम से सुजय घर आया तो
स्वरा उस से मैथ्स की प्रॉब्लम सॉल्व कराने लगी. इसी बीच अचानक स्वरा को
दादी के कराहने और बाथरूम में गिरने की आवाज सुनाई दी.

स्वरा और सुजय दौड़ कर बाथरूम पहुंचे तो देखा दादी फर्श पर बेहोश पड़ी है.
स्वरा के दादा ऊंचा सुनते थे. उन के पैरों में भी तकलीफ रहती थी. वह अपने
कमरे में सोए पड़े थे. स्वरा घबरा कर रोने लगी तब सुजय ने उसे चुप कराया
और जल्दी से एंबुलेंस वाले को फोन किया. स्वरा ने अपने मम्मी डैडी को भी
हर बात बता दी. इस बीच सुजय जल्दी से दादी को ले कर पास के अस्पताल भागा.
उस ने पहले ही अपने घर से रुपए मंगा लिए थे. अस्पताल पहुँच कर उस ने बहुत
समझदारी के साथ दादी को एडमिट करा दिया और प्राथमिक इलाज शुरू कराया. उन
को हार्ट अटैक आया था. अब तक स्वरा के मांबाप भी हॉस्पिटल पहुंच गए थे.

डॉक्टर ने सुदीपा और अनुराग से सुजय की तारीफ करते हुए कहा,” इस लड़के ने
जिस फुर्ती और समझदारी से आप की मां को हॉस्पिटल पहुंचाया वह काबिलेतारीफ
है. अगर ज्यादा देर हो जाती तो समस्या बढ़ सकती थी और जान को भी खतरा हो
सकता था. ”

सुदीपा ने बढ़ कर सुजय को गले से लगा लिया. अनुराग और उस के पिता ने भी
नम आंखों से सुजय का धन्यवाद कहा. सब समझ रहे थे कि बाहर का एक लड़का आज
उन के परिवार के लिए कितना बड़ा काम कर गया. हालात सुधरने पर स्वरा की
दादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

घर लौटने पर दादी ने सुजय का हाथ पकड़ कर गदगद स्वर में कहा,” आज मुझे
पता चला कि दोस्ती का रिश्ता इतना खूबसूरत होता है. तुम ने मेरी जान बचा
कर इस बात का एहसास दिला दिया बेटे की दोस्ती का मतलब क्या है.”

“यह तो मेरा फर्ज था दादी जी, ” सुजय ने हंस कर कहा.

तब दादी ने सुदीपा की तरफ देख कर ग्लानि भरे स्वर में कहा,” मुझे माफ कर
दे बहू. दोस्ती तो दोस्ती होती है, बच्चों की हो या बड़ों की. तेरी और
अविनाश की दोस्ती पर शक कर के हम ने बहुत बड़ी भूल कर दी. आज मैं समझ
सकती हूं कि तुम दोनों की दोस्ती कितनी प्यारी होगी. आज तक मैं समझ ही
नहीं पाई थी. ”

सुदीपा बढ़ कर सास के गले लगती हुई बोली,” मम्मी जी आप बड़ी हैं. आप को मुझ
से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं. आप अविनाश को जानती नहीं थीं इसलिए आप
के मन में सवाल उठ रहे थे. यह बहुत स्वाभाविक था. पर मैं उसे पहचानती हूं
इसलिए बिना कुछ छुपाए उस रिश्ते को आप के सामने ले कर आई थी. ”

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सुदीपा ने दरवाजा खोला तो सामने हाथों में फल
और गुलदस्ता लिए अविनाश खड़ा था. घबराए हुए स्वर में उस ने पूछा,” मैं ने
सुना है कि अम्मां जी की तबीयत खराब हो गई है. अब कैसी हैं वह? ”

” बस तुम्हें ही याद कर रही थीं,” हंसते हुए सुदीपा ने कहा और हाथ पकड़
कर उसे अंदर ले आई.

सैरोगेट मदर: आबिदा ने अपने परिवार की खुशी के लिए लिया बड़ा फैसला

आबिदा अपनी गरीबी से काफी परेशान थी. सिर्फ उस के पति जैनुल की कमाई से घर चलता था. जैनुल कपड़े सिलता था. एक तो बड़ी मुश्किल से घर चलता था, दूसरे कुछ दिनों से उस की आंखों की रोशनी बहुत ज्यादा कमजोर हो गई थी. उस की आंखें बहुत साल से खराब चल रही थीं.

आबिदा जैनुल की आंखों की कम होती रोशनी और घटती ताकत से बहुत परेशान थी.

आबिदा के 2 बच्चे थे. दोनों स्कूल में पढ़ रहे थे. आबिदा घर की तंगहाली के चलते दोनों बच्चों को ठीक से पढ़ालिखा भी नहीं पा रही थी.

आबिदा सोच रही थी कि अगर जैनुल की आंखों का आपरेशन हो जाए तो आंख की रोशनी भी ठीक हो जाएगी और वह काम भी ज्यादा करने लगेगा, मगर इस के लिए पैसे नहीं थे. आंख का आपरेशन कराने में कम से 50,000 रुपए लगेंगे.

आबिदा अपनी पड़ोसन जैनब से किसी काम के बारे में पूछताछ करती रहती थी, मगर कोई ढंग का काम नहीं मिल रहा था.

एक दिन पड़ोसन जैनब ने आबिदा को सैरोगेट मदर के बारे में बताया. दरअसल, जैनब की एक सहेली ने सैरोगेट मदर बन कर 2 लाख रुपए कमाए थे. इस में अपनी कोख किराए पर देनी होती है. अपनी कोख में किसी पराए मर्द के बच्चे को पालना पड़ता है.

पड़ोसन जैनब की इस बात का असर आबिदा पर हुआ था. उस ने भी सैरोगेट मदर बनने की ठान ली थी.

इधर जैनुल की तबीयत और खराब रहने लगी थी. आबिदा को भी पड़ोसन जैनब ने सैरोगेट मदर बनने के लिए और ज्यादा उकसाया.

आबिदा ने कहा, ‘‘इस के लिए मुझे इजाजत नहीं मिल पाएगी.’’

जैनब ने पति से पूछने को कहा.

आबिदा ने सैरोगेट मदर बनने की बात अपने पति को बताई. यह सुनते ही वह भड़क गया, ‘‘कोई जरूरत नहीं है यह सब करने की. जैसे भी होगा, मैं घर चला लूंगा.’’

‘‘लेकिन इस में बुराई भी क्या है? जैनब की एक सहेली भी सैरोगेट मदर बन कर खुशहाल है. इस पैसे से तुम्हारी आंखों का आपरेशन भी हो जाएगा और बच्चों की पढ़ाईलिखाई भी ठीक से होने लगेगी. अब सैरोगेट मदर बनने में किसी के साथ सोना नहीं होता है. यह सब डाक्टर करते हैं,’’ आबिदा ने पति जैनुल को मनाते हुए कहा.

‘‘रिश्तेदार, पासपड़ोस के लोग क्या कहेंगे? सब तु झ पर हंसेंगे, मु झ पर थूकेंगे,’’ जैनुल बोला.

‘‘नहीं, कहीं कुछ गलत नहीं है. यह बुरा भी नहीं है. कितनी औरतें आज सैरोगेट मदर बन कर अपना काम बना रही हैं.’’

‘‘यह काम होता ही गुपचुप है. किसी को क्या पता चलेगा. इस में डाक्टरों को लाखों रुपए मिलते हैं. दलाल भी हजारों रुपए लेते हैं.

‘‘सब से बड़ी बात यह कि कोई जोड़ा औलाद की खुशी पाएगा, मेरी वजह से.’’

आबिदा के बहुत सम झाने और घरेलू हालात देख कर जैनुल ने आखिरकार इजाजत दे दी.

एक साल में आबिदा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसे अस्पताल में मरा हुआ कह दिया गया. वह मन में खुशी दबाए लौट आई. उसे नहीं पता चला कि बच्चा किस का था और अब कहां है.

आबिदा ने सैरोगेट मदर बन कर अपने पति की आंखें ठीक कराईं, बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल कराया. उन का घरखर्च भी आराम से चलने लगा था.

कुछ दिन बाद लड्डू खिलाते हुए आबिदा ने जैनुल से कहा, ‘‘लो, मुंह मीठा करो.’’

‘‘किसलिए?’’ जैनुल ने पूछा.

‘‘मैं आप के बच्चे की मां बनने जा रही हूं, किसी दूसरे के बच्चे की नहीं.’’

जैनुल की खुशी इस बार दोगुनी हो गई.

लेखक- मो. अफजल

फैसला : कैसा था शादीशुदा रवि और तलाकशुदा सविता का प्यार

मैं अपने सहयोगियों के साथ औफिस की कैंटीन में बैठा था कि अचानक सविता दरवाजे पर नजर आई. खूबसूरती के साथसाथ उस में गजब की सैक्स अपील भी है. जिस की भी नजर उस पर पड़ी, उस की जबान को झटके से ताला लग गया.

‘‘रवि, लंच के बाद मुझ से मिल लेना,’’ यह मुझ से दूर से ही कह कर वह अपने रूम की तरफ चली गई.

मेरे सहयोगियों को मुझे छेड़ने का मसाला मिल गया. ‘तेरी तो लौटरी निकल आई है, रवि… भाभी तो मायके में हैं. उन्हें क्या पता कि पतिदेव किस खूबसूरत बला के चक्कर में फंसने जा रहे हैं… ऐश कर ले सविता के साथ. हम अंजू भाभी को कुछ नहीं बताएंगे…’ उन सब के ऐसे हंसीमजाक का निशाना मैं देर तक बना रहा.हमारे औफिस में तलाकशुदा सविता की रैपुटेशन बड़ी अजीब सी है. कुछ लोग उसे जबरदस्त फ्लर्ट स्त्री मानते हैं और उन की इस बात में मैं ने उस का नाम 5-6 ऐसे पुरुषों से जुड़ते देखा है, जिन्हें सीमित समय के लिए ही उस के प्रेमियों की श्रेणी में रखा  जा सकता है. उन में से 2 उस के आज भी अच्छे दोस्त हैं. बाकियों से अब उस की साधारण दुआसलाम ही है.

सविता के करीब आने की इच्छा रखने वालों की सूची तो बहुत लंबी होगी, पर वह इन दिलफेंक आशिकों को बिलकुल घास नहीं डालती. उस ने सदा अपने प्रेमियों को खुद चुना है और वे हमेशा विवाहित ही रहे हैं. मैं तो पिछले 2 महीनों से अपनी विवाहित जिंदगी में आई टैंशन व परेशानियों का शिकार बना हुआ था. अंजू 2 महीने से नाराज हो कर मायके में जमी हुई थी. अपने गुस्से के चलते मैं ने न उसे आने को कहा और न ही लेने गया. समस्या ऐसी उलझी थी कि उसे सुलझाने का कोई सिरा नजर नहीं आ रहा था. मेरा अंदाजा था कि सविता ने मुझे पिछले दिनों जरूरत से ज्यादा छुट्टियां लेने की सफाई देने को बुलाया है. तनाव के कारण ज्यादा शराब पी लेने से सुबह टाइम से औफिस आने की स्थिति में मैं कई बार नहीं रहा था. लंच के बाद मैं ने सविता के कक्ष में कदम रखा, तो उस ने बड़ी प्यारी, दिलकश मुसकान होंठों पर ला कर मेरा स्वागत किया.

‘‘हैलो, रवि, कैसे हो?’’ कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस ने दोस्ताना लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘अच्छा हूं, तुम सुनाओ,’’ आगे झूठ बोलने के लिए खुद को तैयार करने के चक्कर में मैं कुछ बेचैन हो गया था.

‘‘तुम से एक सहायता चाहिए.’’

अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए मैं ने पूछा, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ दिन पहले एक पार्टी में मैं तुम्हारे एक अच्छे दोस्त अरुण से मिली थी. वह तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था.’’

‘‘वह जो बैंक में सर्विस करता है?’’

‘‘हां, वही. उस ने बताया कि तुम बहुत अच्छा गिटार बजाते हो.’’

‘‘अब उतना अच्छा अभ्यास नहीं रहा है,’’ अपने इकलौते शौक की चर्चा छिड़ जाने पर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘मेरे दिल में भी गिटार सीखने की तीव्र इच्छा पैदा हुई है, रवि. प्लीज कल शनिवार को मुझे एक अच्छा सा गिटार खरीदवा दो.’’

बड़े अपनेपन से किए गए सविता के आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने उस के साथ बाजार जाना स्वीकार किया, तो वह किसी बच्चे की तरह खुश हो गई.

‘‘अंजू मायके गई हुई है न?’’

‘‘हां,’’ अपनी पत्नी के बारे में सवाल पूछे जाने पर मेरे होंठों से मुसकराहट गायब हो गई.

‘‘तब तो तुम कल सुबह नाश्ता भी मेरे साथ करोगे. मैं तुम्हें गोभी के परांठे खिलाऊंगी.’’

‘‘अरे, वाह. तुम्हें कैसे मालूम कि मैं उन का बड़ा शौकीन हूं?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त अरुण ने बताया था.’’

‘‘मैं कल सुबह 9 बजे तक पहुंचूं?’’

‘‘हां, चलेगा.’’

सविता ने दोस्ताना अंदाज में मुसकराते हुए मुझे विदा किया. मेरे आए दिन छुट्टी लेने के विषय पर चर्चा ही नहीं छिड़ी थी, लेकिन अपने सहयोगियों को मैं सच्ची बात बता देता, तो वे मेरा जीना मुश्किल कर देते. इसलिए उन से बोला, ‘‘ज्यादा छुट्टियां न लेने के लिए लैक्चर सुन कर आ रहा हूं.’’ यह झूठ बोल कर मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. पिछले 2 महीनों में वह पहली शुक्रवार की रात थी जब मैं शराब पी कर नहीं सोया. कारण यही था कि मैं सोते रह जाने का खतरा नहीं उठाना चाहता था. सविता के साथ पूरा दिन गुजारने का कार्यक्रम मुझे एकाएक जोश और उत्साह से भर गया था. पिछले 2 महीनों से दिलोदिमाग पर छाए तनाव और गुस्से के बादल फट गए थे. कालेज के दिनों में जब मैं अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने जाता था, तब बड़े सलीके से तैयार होता था. अगले दिन सुबह भी मैं ढंग से तैयार हुआ. ऐसा उत्साह और खुशी दिलोदिमाग पर छाई थी, मानो पहली डेट पर जा रहा हूं. सविता पर पहली नजर पड़ी तो उस के रंगरूप ने मेरी आंखें ही चौंधिया दीं. नीली जींस और काले टौप में वह बहुत आकर्षक लग रही थी. उस पल से ही उस जादूगरनी का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. दिल की धड़कनें बेकाबू हो चलीं. मैं उस के इशारे पर नाचने को एकदम तैयार था. फिर हंसीखुशी के साथ बीतते समय को जैसे पंख लग गए. कब सुबह से रात हुई, पता ही नहीं चला.

सविता जैसी फैशनेबल, आधुनिक स्त्री से खाना बनाने की कला में पारंगत होने की उम्मीद कम होती है, लेकिन उस सुबह उस के बनाए गोभी के परांठे खा कर मन पूरी तरह तृप्त हो गया. प्यारी और मीठीमीठी बातें करना उसे खूब आता था. कई बार तो मैं उस का चेहरा मंत्रमुग्ध सा देखता रह जाता और उस की बात बिलकुल भी समझ में नहीं आती.

‘‘कहां हो, रवि? मेरी बात सुन नहीं रहे हो न?’’ वह नकली नाराजगी दर्शाते हुए शिकायत करती और मैं बुरी तरह झेंप उठता.

मैं ने उसे स्वादिष्ठ परांठे खिलाने के लिए धन्यवाद दिया तो उस ने सहजता से मुसकराते हुए कहा, ‘‘किसी अच्छे दोस्त के लिए कुकिंग करना मुझे पसंद है. मुझे भी बड़ा मजा आया है.’’

‘‘मुझे तुम अपना अच्छा दोस्त मानती हो?’’

‘‘बिलकुल,’’ उस ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘कब से?’’

‘‘इस सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण एक दूसरा सवाल है, रवि.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘क्या तुम आगे भी मेरे अच्छे दोस्त बने रहना चाहोगे?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांका.

‘‘बिलकुल बना रहना चाहूंगा, पर क्या मुझे कुछ खास करना पड़ेगा तुम्हारी दोस्ती पाने के लिए?’’

‘‘शायद… लेकिन इस विषय पर हम बाद में बातें करेंगे. अब गिटार खरीदने चलें?’’ सवाल का जवाब देना टाल कर सविता ने मेरी उत्सुकता को बढ़ावा ही दिया.

हमारे बीच बातचीत बड़ी सहजता से हो रही थी. हमें एकदूसरे का साथ इतना भा रहा था कि कहीं भी असहज खामोशी का सामना नहीं करना पड़ा. हमारे बीच औफिस से जुड़ी बातें बिलकुल नहीं हुईं. टीवी सीरियल, फिल्म, खेल, राजनीति, फैशन, खानपान जैसे विषयों पर हमारे बीच दिलचस्प चर्चा खूब चली. उस ने अंजू से जुड़ा कोई सवाल मुझ से पूछ कर बड़ी कृपा की. हां, उस ने अपने भूतपूर्व पति संजीव से अपने संबंधों के बारे में, मेरे बिना पूछे ही जानकारी दे दी.

‘‘संजीव से मेरा तलाक उस की जिंदगी में आई एक दूसरी औरतके कारण हुआ था, रवि. वह औरत मेरी भी अच्छी सहेली थी,’’ अपने बारे में बताते हुए सविता दुखी या परेशान बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.

‘‘तो पति ने तुम्हारी सहेली के साथ मिल कर तुम्हें धोखा दिया था?’’ मैं ने सहानुभूतिपूर्ण लहजे में टिप्पणी की.

‘‘हां, पर एक कमाल की बात बताऊं?’’

‘‘हांहां.’’

‘‘मुझे पति से खूब नाराजगी व शिकायत रही. पर वंदना नाम की उस दूसरी औरत के प्रति मेरे दिल में कभी वैरभाव नहीं रहा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘वंदना का दिल सोने का था, रवि. उस के साथ मैं ने बहुत सारा समय हंसतेमुसकराते गुजारा था. यदि उस ने वह गलत कदम न उठाया होता तो वह मेरी सब से अच्छी दोस्त होती.’’

‘‘लगता है तुम्हें पति से ज्यादा अपनी जिंदगी में वंदना की कमी खलती है?’’

‘‘अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, रवि. शादी कर के एक पति या पत्नी तो हर कोई पा लेता है.’’

‘‘यह तो बड़े पते की बात कही है तुम ने.’’

‘‘कोई बात पते की तभी होती है जब उस का सही महत्त्व भी इंसान समझ ले. बोलबोल कर मेरा गला सूख गया है. अब कुछ पिलवा तो दो, जनाब,’’ बड़ी कुशलता से उस ने बातचीत का विषय बदला और मेरी बांह पकड़ कर एक रेस्तरां की दिशा में बढ़ चली.

उस के स्पर्श का एहसास देर तक मेरी नसों में सनसनाहट पैदा करता रहा. सविता की फरमाइश पर हम ने एक फिल्म भी देख डाली. हौल में उस ने मेरा हाथ भी पकड़े रखा. मैं ने एक बार हिम्मत कर उस के बदन के साथ शरारत करनी चाही, तो उस ने मुझे प्यार से घूर कर रोक दिया. ‘‘शांति से बैठो और मूवी का मजा लो रवि,’’ उस की फुसफुसाहट में कुछ ऐसी अदा थी कि मेरा मन जरा भी मायूसी और चिढ़ का शिकार नहीं बना.

लंच हम ने एक बढि़या होटल में किया. फिर अच्छी देखपरख के बाद गिटार खरीदने में मैं ने उस की मदद की. उस के दिल में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए वह गिटार मैं उसे अपनी तरफ से उपहार में देना चाहता था, पर वह राजी नहीं हुई.

‘‘तुम चाहो तो मुझे गिटार सिखाने की जिम्मेदारी ले सकते हो,’’ वह बोली तो उस के इस प्रस्ताव को सुन कर मैं फिर से खुश हो गया.

जब हम सविता के घर वापस लौटे, तो रात के 8 बजने वाले थे. उस ने कौफी पिलाने की बात कह कर मेरी और ज्यादा समय उस के साथ गुजारने की इच्छा पूरी कर दी. वह कौफी बनाने किचन में गई तो मैं भी उस के पीछेपीछे किचन में पहुंच गया. उस के नजदीक खड़ा हो कर मैं ऊपर से हलकीफुलकी बातें करने लगा, पर मेरे मन में अजीब सी उत्तेजना लगातार बढ़ती जा रही थी. अंजू के प्यार से लंबे समय तक वंचित रहा मेरा मन सविता के सामीप्य की गरमाहट को महसूस करते हुए दोस्ती की सीमा को तोड़ने के लिए लगभग तैयार हो चुका था. तभी सविता ने मेरी तरफ घूम कर मुझे देखा. उस ने जरूर मेरी प्यासी नजरों को पढ़ लिया होगा, क्योंकि अचानक मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे ड्राइंगरूम की तरफ ले चली.

मैं ने रास्ते में उसे बांहों में भरने की कोशिश की, तो उस ने बिना घबराए मुझ से कहा, ‘‘रवि, मैं तुम से कुछ खास बातें करना चाहती हूं. उन बातों को किए बिना तुम को मैं दोस्त से प्रेमी नहीं बना सकती हूं.’’ उसे नाराज कर के कुछ करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता था. मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रण में कर के ड्राइंगरूम में आ बैठा और सविता बेहिचक मेरी बगल में बैठ गई.

मेरा हाथ पकड़ कर उस ने हलकेफुलके अंदाज में पूछा, ‘‘मेरे साथ आज का दिन कैसा गुजरा है, रवि?’’

‘‘मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत दिनों में से एक होगा आज का दिन,’’ मैं ने सचाई बता दी.

‘‘तुम आगे भी मुझ से जुड़े रहना चाहोगे?’’

‘‘हां… और तुम?’’ मैं ने उस की आंखों में गहराई तक झांका.

‘‘मैं भी,’’ उस ने नजरें हटाए बिना जवाब दिया, ‘‘लेकिन अंजू के विषय में सोचे बिना हम अपने संबंधों को मजबूत आधार नहीं दे सकते.’’

‘‘अंजू को बीच में लाना जरूरी है क्या?’’ मेरा स्वर बेचैनी से भर उठा.

‘‘तुम उसे दूर रखना चाहोगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम्हें मेरी प्रेमिका के रूप में स्वीकार नहीं करेगी.’’

‘‘और तुम मुझे अपनी प्रेमिका बनाना चाहते हो?’’

‘‘क्या तुम ऐसा नहीं चाहती हो?’’ मेरी चिढ़ बढ़ रही थी.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘रवि, लोग मुझे फ्लर्ट मानते हैं और तुम्हें भी जरूर लगा होगा कि मैं तुम्हें अपने नजदीक आने का खुला निमंत्रण दे रही हूं. इस बात में सचाई है क्योंकि मैं चाहती थी कि तुम मेरा आकर्षण गहराई से महसूस करो. ऐसा करने के पीछे मेरी क्या मंशा है, मैं तुम्हें बताऊंगी. पर पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो, प्लीज.’’

‘‘पूछो,’’ उस को भावुक होता देख मैं भी संजीदा हो उठा.

‘‘क्या तुम अंजू को तलाक देने का फैसला कर चुके हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने चौंकते हुए जवाब दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त अरुण से मालूम पड़ा कि अंजू तुम से नाराज हो कर पिछले 2 महीने से मायके में रह रही है. तुम उसे वापस क्यों नहीं ला रहे हो?’’

‘‘हमारे बीच गंभीर मनमुटाव चल रहा है. उस को अपनी जबान…’’

‘‘मुझे पूरा ब्योरा बाद में बताना रवि, पर क्या तुम्हें उस की याद नहीं आती है?’’ सविता ने मुझे कोमल लहजे में टोक कर सवाल पूछा.

‘‘आती है… जरूर आती है, पर ताली एक हाथ से तो नहीं बज सकती है, सविता.’’

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर मिल कर साथ रहने का आनंद तो तुम दोनों ही खो रहे हो न?’’

‘‘हां, पर…’’

‘‘देखो, कुसूरवार तो तुम दोनों ही होंगे… कम या ज्यादा की बात महत्त्वपूर्ण नहीं है, रवि. इस मनमुटाव के चलते जिंदगी के कीमती पल तो तुम दोनों ही बेकार गवां रहे हो या नहीं?’’

‘‘तुम मुझे क्या समझाना चाह रही हो?’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘रवि, मेरी बात ध्यान से सुनो,’’ सविता का स्वर अपनेपन से भर उठा, ‘‘आज तुम्हारे साथ सारा दिन मौजमस्ती के साथ गुजार कर मैं ने तुम्हें अंजू की याद दिलाने की कोशिश की है. उस से दूर रह कर तुम उन सब सुखसुविधाओं से खुद को वंचित रख रहे हो जिन्हें एक अपना समझने वाली स्त्री ही तुम्हें दे सकती है.

‘‘मेरा आए दिन ऐसे पुरुषों से सामना होता है, जो अपनी अच्छीखासी पत्नी से नहीं, बल्कि मुझ से संबंध बनाने को उतावले नजर आते हैं

‘‘मेरे साथ उन का जैसा रोमांटिक और हंसीखुशी भरा व्यवहार होता है, अगर वैसा ही अच्छा व्यवहार वे अपनी पत्नियों के साथ करें, तो वे भी उन्हें किसी प्रेमिका सी प्रिय और आकर्षक लगने लगेंगी.

‘‘तुम मुझे बहुत पसंद हो, पर मैं तुम्हें और अंजू दोनों को ही अपना अच्छा दोस्त बनाना चाहूंगी. हमारे बीच इसी तरह का संबंध हम तीनों के लिए हितकारी होगा.

‘‘तुम चाहो तो मेरे प्रेमी बन कर सिर्फ आज रात मेरे साथ सो सकते हो. लेकिन तुम ने ऐसा किया, तो वह मेरी हार होगी. कल से हम सिर्फ सहयोगी रह जाएंगे.

‘‘तुम ने दोस्त बनने का निर्णय लिया, तो मेरी जीत होगी. यह दोस्ती का रिश्ता हम तीनों के बीच आजीवन चलेगा, मुझे इस का पक्का विश्वास है.’’

‘‘बोलो, क्या फैसला करते हो, रवि? अंजू और अपने लिए मेरी आजीवन दोस्ती चाहोगे या सिर्फ 1 रात के लिए मेरी देह का सुख?’’

मुझे फैसला करने में जरा भी वक्त नहीं लगा. सविता के समझाने ने मेरी आंखें खोल दी थीं. मुझे अंजू एकदम से बहुत याद आई और मन उस से मिलने को तड़प उठा.

‘‘मैं अभी अंजू से मिलने और उसे वापस लाने को जा रहा हूं, मेरी अच्छी दोस्त.’’ मेरा फैसला सुन कर सविता का चेहरा फूल सा खिल उठा और मैं मुसकराता हुआ विदा लेने को उठ खड़ा हुआ

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