ऐताहासिक कहानी: वंश की मर्यादा- भाग 1

उदयपुर के राजमहल में राणाजी ने आपात सभा रखी थी. सभा में बैठे हर राजपूत सरदार के चेहरे पर चिंता

की लकीरें साफ नजर आ रही थीं. आंखों में गहरे भाव दिख रहे थे. सब के हावभाव देख कर ही लग रहा था कि किसी बडे़ दुश्मन के साथ युद्ध की रणनीति पर गंभीर विचारविमर्श हो रहा है.

सभा में प्रधान की ओर देखते हुए राणाजी ने गंभीर होते हुए कहा, ‘‘इन मराठों ने तो आए दिन हमला कर सिरदर्द कर रखा है.’’

‘‘सिरदर्द क्या कर रखा है अन्नदाता, इन मराठों ने तो पूरा मेवाड़ राज्य ही तबाह कर रखा है. गांवों को लूटना और उस के बाद आग लगा देने के अलावा तो ये कुछ जानते ही नहीं.’’ पास ही बैठे सरदार सोहन सिंह ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘इन मराठों जैसी दुष्टता तो बादशाही हमलों के समय मुसलमान भी नहीं करते थे. पर मराठों का उत्पात तो सारी हदें ही पार कर रहा है. मुसलमान ढंग से लड़ते तो थे, लेकिन मराठे तो लूटपाट और आगजनी कर भाग खड़े होते हैं.’’ एक और राजपूत सरदार ने पहले सरदार सोहन सिंह की बात को आगे बढ़ाया.

सभा में इसी तरह की बातें सुन राणाजी और गंभीर हो गए. उन की गंभीरता उन के  चेहरे पर साफ नजर आ रही थी.

मराठों की सेना मेवाड़ पर हमला कर लूटपाट व आगजनी करते हुए आगे बढ़ रही थी. मेवाड़ की जनता उन के उत्पात से आतंकित थी.

उन्हीं मराठों से मुकाबला करने के लिए देर रात तक राणाजी मुकाबला करने के लिए रणनीति बना रहे थे और मराठों के खिलाफ युद्ध की तैयारी में जुटे थे. अपने राजपूत सरदारों को बुला कर उन्हें जिम्मेदारियां समझा रहे थे.

तभी प्रधानजी ने पूरी परिस्थिति पर गौर करते हर कहा, ‘‘खजाना रुपयों से खाली है. मराठों के आतंक से प्रजा आतंकित है. मराठों की लूटपाट व आगजनी के चलते गांव के गांव खाली हो गए और प्रजा अपना घर छोड़ कर भागने में लगी है. राजपूत भी अब पहले जैसे रहे नहीं, जो इन उत्पातियों को पलक झपकते मार भगा दें और ऐसे दुष्टों के हमले का मुकाबला कर सकें.’’

प्रधान के मुंह से ऐसी बात सुन पास ही बैठे एक राजपूत सरदार ने तैश में आ कर कहा, ‘‘पहले जैसे राजपूत अब क्यों नहीं हैं? कभी किसी संकट में पीछे हटे हों तो बताएं? आज तक हम तो गाजरमूली की तरह सिर कटवाते आए हैं और आप कह रहे हैं कि पहले जैसे राजपूत नहीं रहे.

‘‘पिछले 200 सालों से लगातार मेवाड़ पर हमले हो रहे हैं, पहले मुसलमानों के और अब इन मराठों के. रातदिन लगातार चलने वाले युद्धों में भाग लेतेलेते राजपूतों के घरों की हालत क्या हो गई? कभी देखा है आप ने? कभी राजपूतों के गांवों में जा कर देखो एकएक घर में 10-10 शहीदों की विधवाएं बैठी मिलेंगी. फिर भी राजपूत तो अब भी सिर कटवाने के लिए तैयार हैं. बस एक हुक्म चाहिए राणाजी का. मराठा तो क्या खुद यमराज भी आ जाएंगे तब भी मेवाड़ के राजपूत पीठ नहीं दिखाएंगे.’’

यह सुन राणा बोले, ‘‘राज पाने व बचाने के लिए गाजरमूली की तरह सिर कटवाने ही  पड़ते हैं. इसीलिए तो कहा जाता है कि राज्य का स्वामी बनना आसान नहीं. स्वराज बलिदान मांगता है और हम राजपूतों ने अपने बलिदान के बूते ही यह राज हासिल किया है. धरती उसी की होती है जो इसे खून से सींचने के लिए तैयार रहे.

‘‘हमारे पूर्वजों ने मेवाड़ भूमि को अपने खून से सींचा है. इस की स्वतंत्रता के सिर जंगलजंगल ठोकरें खाई हैं. मातृभूमि की रक्षा के लिए घास की रोटियां खाई हैं और अब ये लुटेरे इस की अस्मत लूटने आ गए तो क्या हम आसानी से इसे लुट जाने दें? अपने पूर्वजों के बलिदान को यूं ही जाया करें? इसलिए बैठ कर बहस करना छोड़ें और मराठों को माकूल जबाब देने की तैयारी करें.’’

राणा की बात सुन कर सभा में चारों ओर चुप्पी छा गई. सब की नजरों के आगे सामने आई युद्ध की विपत्ति का दृश्य घूम रहा था. मराठों से मुकाबले के लिए इतनी तोपें कहां से आएंगी? खजाना खाली है फिर सेना के लिए खर्च का बंदोबस्त कैसे होगा? सेना कैसे संगठित की जाए? सेना का सेनापति कौन होगा? साथ ही इन्हीं बिंदुओं पर चर्चा भी होने लगी.

आखिर चर्चा पूरी होने के बाद राणाजी ने अपने सभी सरदारों व जागीरदारों के नाम एक पत्र लिख कर उस की प्रतियां अलगअलग घुड़सवारों को दे कर तुरंत दौड़ाने का आदेश दिया.

पत्र में लिखा था, ‘मेवाड़ राज्य पर उत्पाती मराठों ने आक्रमण किया है. उन का मुकाबला करने व उन्हें मार भगाने के लिए सभी सरदार व जागीरदार यह पत्र पहुंचते ही अपने सभी सैनिकों व हथियारों के साथ मेवाड़ की फौज में शामिल होने के लिए बिना कोई देरी किए जल्द से जल्द हाजिर हों.’

पत्र में राणाजी के दस्तखत के पास ही राणा द्वारा लिखा था, ‘जो जागीरदार इस संकट की घड़ी में हाजिर नहीं होगा, उस की जागीर जब्त कर ली जाएगी. इस मामले में किसी भी तरह की कोई रियायत नहीं दी जाएगी और इस काम की तामील ना करना देशद्रोह व हरामखोरी माना जाएगा.’

राणा का एक घुड़सवार राणा का पत्र ले कर मेवाड़ की एक जागीर कोसीथल पहुंचा और जागीर के प्रधान के हाथ में पत्र दिया. प्रधान ने पत्र पढ़ा तो उस के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं. कोसीथल चूंडावत राजपूतों के वंश की एक छोटी सी जागीर थी और उस वक्त सब से बुरी बात यह थी कि उस वक्त उस जागीर का वारिस एक छोटा बच्चा था.

कोई 2 साल पहले ही उस जागीर के जागीरदार ठाकुर एक युद्ध में शहीद हो गए थे और उन का छोटा सा इकलौता बेटा उस वक्त जागीर की गद्दी पर था. इसलिए जागीर के प्रधान की हवाइयां उड़ रही थीं.

राणाजी का बुलावा आया है और गद्दी पर एक बालक है. वो कैसे युद्ध में जाएगा. प्रधान के आगे एक बड़ा संकट आ गया. सोचने लगा, ‘क्या इन मराठों को भी अभी हमला करना था. कहीं नियति उन की परीक्षा तो नहीं ले रही.’

प्रधान राणा का संदेश ले कर जनाना महल के द्वार पर पहुंचा और दासी के जरिए माजी साहब (जागीरदार बच्चे की विधवा मां) को आपात मुलाकात करने की अर्ज की.

दासी के मुंह से प्रधान द्वारा आपात मुलाकात की बात सुनते ही माजी साहब के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. पता नहीं अचानक कोई मुसीबत तो नहीं आ गई. खैर, माजी साहब ने तुरंत प्रधान को बुलाया और परदे के पीछे खड़े हो कर प्रधान का अभिवादन स्वीकार करते हुए पत्र प्राप्त किया.

पत्र पढ़ते ही माजी साहब के मुंह से सिर्फ एक छोटा सा वाक्य ही निकला, ‘अब क्या होगा’. और वे प्रधान से बोलीं, ‘‘अब क्या करें? आप ही कोई सलाह दें. जागीर के ठाकुर साहब तो आज सिर्फ 2 साल के ही बच्चे हैं. उन्हें राणाजी की चाकरी में युद्ध के लिए कैसे ले जाया जाए.’’

तभी माजी के बेटे ने आ कर माजी साहब की अंगुली पकड़ी. माजी ने बेटे का मासूम चेहरा देखा तो उन के हृदय में ममता भर आई. मासूम बेटे की नजर से नजर मिलते ही माजी के हृदय में उस के लिए उस की जागीर के लिए दुख उमड़ पड़ा.

अंत भला तो सब भला- भाग 1

संगीता को यह एहसास था कि आज जो दिन में घटा है, उस के कारण शाम को रवि से झगड़ा होगा और वह इस के लिए मानसिक रूप से तैयार थी. लेकिन जब औफिस से लौटे रवि ने मुसकराते हुए घर में कदम रखा तो वह उलझन में पड़ गई.

‘‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारा मूड हो तो खाना बाहर खाया जा सकता है,’’ रवि ने उसे हाथ से पकड़ कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘किस कारण इतना खुश नजर आ रहे हो ’’ संगीता ने खिंचे से स्वर में पूछा.

‘‘आज मेरे नए बौस उमेश साहब ने मुझे अपने कैबिन में बुला कर मेरे साथ दोस्ताना अंदाज में बहुत देर तक बातें कीं. उन की वाइफ से तो आज दोपहर में तुम मिली ही थीं. उन्हें एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने मैं ही ले गया था. मेरे दोस्त विपिन के पिताजी उस स्कूल के चेयरमैन को जानते हैं. उन की सिफारिश से बौस की वाइफ को वहां टीचर की जौब मिल जाएगी. बौस मेरे काम से भी बहुत खुश हैं. लगता है इस बार मुझे प्रमोशन जरूर मिल जाएगी,’’ रवि ने एक ही सांस में संगीता को सारी बात बता डाली. संगीता ने उस की भावी प्रमोशन के प्रति कोई प्रतिक्रिया जाहिर करने के बजाय वार्त्तालाप को नई दिशा में मोड़ दिया, ‘‘प्रौपर्टी डीलर ने कल शाम जो किराए का मकान बताया था, तुम उसे देखने कब चलोगे ’’

‘‘कभी नहीं,’’ रवि एकदम चिड़ उठा.

‘‘2 दिन से घर के सारे लोग बाहर गए हुए हैं और ये 2 दिन हम ने बहुत हंसीखुशी से गुजारे हैं. कल सुबह सब लौट आएंगे और रातदिन का झगड़ा फिर शुरू हो जाएगा. तुम समझते क्यों नहीं हो कि यहां से अलग हुए बिना हम कभी खुश नहीं रह पाएंगे…हम अभी उस मकान को देखने चल रहे हैं,’’ कह संगीता उठ खड़ी हुई.

‘‘मुझे इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाना है. अगर तुम में जरा सी भी बुद्धी है तो अपनी बहन और जीजा के बहकावे में आना छोड़ दो,’’ गुस्से के कारण रवि का स्वर ऊंचा हो गया था. ‘‘मुझे कोई नहीं बहका रहा है. मैं ने 9 महीने इस घर के नर्क में गुजार कर देख लिए हैं. मुझे अलग किराए के मकान में जाना ही है,’’ संगीता रवि से भी ज्यादा जोर से चिल्ला पड़ी. ‘‘इस घर को नर्क बनाने में सब से ज्यादा जिम्मेदार तुम ही हो…पर तुम से बहस करने की ताकत अब मुझ में नहीं रही है,’’ कह रवि उठ कर कपड़े बदलने शयनकक्ष में चला गया और संगीता मुंह फुलाए वहीं बैठी रही.

उन का बाहर खाना खाने का कार्यक्रम तो बना ही नहीं, बल्कि घर में भी दोनों ने खाना अलगअलग और बेमन से खाया. घर में अकेले होने का कोई फायदा वे आपसी प्यार की जड़ें मजबूत करने के लिए नहीं उठा पाए. रात को 12 बजे तक टीवी देखने के बाद जब संगीता शयनकक्ष में आई तो रवि गहरी नींद में सो रहा था. अपने मन में गहरी शिकायत और गुस्से के भाव समेटे वह उस की तरफ पीठ कर के लेट गई. किराए के मकान में जाने के लिए रवि पर दबाव बनाए रखने को संगीता अगली सुबह भी उस से सीधे मुंह नहीं बोली. रवि नाश्ता करने के लिए रुका नहीं. नाराजगी से भरा खाली पेट घर से निकल गया और अपना लंच बौक्स भी मेज पर छोड़ गया. करीब 10 बजे उमाकांत अपनी पत्नी आरती, बड़े बेटे राजेश, बड़ी बहू अंजु और 5 वर्षीय पोते समीर के साथ घर लौटे. वे सब उन के छोटे भाई के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए 2 दिनों के लिए गांव गए थे.

फैली हुई रसोई को देख कर आरती ने संगीता से कुछ तीखे शब्द बोले तो दोनों के बीच फौरन ही झगड़ा शुरू हो गया. अंजु ने बीचबचाव की कोशिश की तो संगीता ने उसे भी कड़वी बातें सुनाते हुए झगड़े की चपेट में ले लिया. इन लोगों के घर पहुंचने के सिर्फ घंटे भर के अंदर ही संगीता लड़भिड़ कर अपने कमरे में बंद हो गई थी. उस की सास ने उसे लंच करने के लिए बुलाया पर वह कमरे से बाहर नहीं निकली. ‘‘यह संगीता रवि भैया को घर से अलग किए बिना न खुद चैन से रहेगी, न किसी और को रहने देगी, मम्मी,’’ अंजु की इस टिप्पणी से उस के सासससुर और पति पूरी तरह सहमत थे. ‘‘इस की बहन और मां इसे भड़काना छोड़ दें तो सब ठीक हो जाए,’’ उमाकांत की विवशता और दुख उन की आवाज में साफ झलक रहा था.

‘‘रवि भी बेकार में ही घर से कभी अलग न होने की जिद पर अड़ा हुआ है. शायद किराए के घर में जा कर संगीता बदल जाए और इन दोनों की विवाहित जिंदगी हंसीखुशी बीतने लगे,’’ आरती ने आशा व्यक्त की.‘‘किराए के घर में जा कर बदल तो वह जाएगी ही पर रवि को यह अच्छी तरह मालूम है कि उस के घर पर उस की बड़ी साली और सास का राज हो जाएगा और वह इन दोनों को बिलकुल पसंद नहीं करता है. बड़े गलत घर में रिश्ता हो गया उस बेचारे का,’’ उमाकांत के इस जवाब को सुन कर आरती की आंखों में आंसू भर आए तो सब ने इस विषय पर आगे कोई बात करना मुनासिब नहीं समझा.

सौतेली मां: क्या था अविनाश की गलती का अंजाम- भाग 1

मां की मौत के बाद ऋजुता ही अनुष्का का सब से बड़ा सहारा थी. अनुष्का को क्या करना है, यह ऋजुता ही तय करती थी. वही तय करती थी कि अनुष्का को क्या पहनना है, किस के साथ खेलना है, कब सोना है. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था. मां की मौत के बाद ऋजुता ने मां की तरह अनुष्का को ही नहीं संभाला, बल्कि घर की पूरी जिम्मेदारी वही संभालती थी.

ऋजुआ तो मनु का भी उसी तरह खयाल रखना चाहती थी, पर मनु उम्र में मात्र उस से ढाई साल छोटा था. इसलिए वह ऋजुता को अभिभावक के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं था. तमाम बातों में उन दोनों में मतभेद रहता था. कई बार तो उन का झगड़ा मौखिक न रह कर हिंसक हो उठता था. तब अंगूठा चूसने की आदत छोड़ चुकी अनुष्का तुरंत अंगूठा मुंह में डाल लेती. कोने में खड़ी हो कर वह देखती कि भाई और बहन में कौन जीतता है.

कुछ भी हो, तीनों भाईबहनों में पटती खूब थी. बड़ों की दुनिया से अलग रह सकें, उन्होंने अपने आसपास इस तरह की एक दीवार खड़ी कर ली थी, जहां निश्चित रूप से ऋजुता का राज चलता था. मनु कभीकभार विरोध करता तो मात्र अपना अस्तित्व भर जाहिर करने के लिए.

अनुष्का की कोई ऐसी इच्छा नहीं होती थी. वह बड़ी बहन के संरक्षण में एक तरह का सुख और सुरक्षा की भावना का अनुभव करती थी. वह सुंदर थी, इसलिए ऋजुता को बहुत प्यारी लगती थी. यह बात वह कह भी देती थी. अनुष्का की अपनी कोई इच्छाअनिच्छा होगी, ऋजुता को कभी इस बात का खयाल नहीं आया.

अगर अविनाश को दूसरी शादी न करनी होती तो घर में सबकुछ इसी तरह चलता रहता. घर में दादी मां यानी अविनाश की मां थीं ही, इसलिए बच्चों को मां की कमी उतनी नहीं खल रही थी. घर के संचालन के लिए या बच्चों की देखभाल के लिए अविनाश का दूसरी शादी करना जरूरी नहीं रह गया था.

इस के बावजूद उस ने घर में बिना किसी को बताए दूसरी शादी कर ली. अचानक एक दिन शाम को एक महिला के साथ घर आ कर उस ने कहा, ‘‘तुम लोगों की नई मम्मी.’’

उस महिला को देख कर बच्चे स्तब्ध रह गए. वे कुछ कहते या इस नई परिस्थिति को समझ पाते, उस के पहले ही अविनाश ने मां की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘संविधा, यह मेरी मां है.’’

बूढ़ी मां ने सिर झुका कर पैर छू रही संविधा के सिर पर हाथ तो रखा, पर वह कहे बिना नहीं रह सकीं. उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इस तरह अचानक… कभी सांस तक नहीं ली, चर्चा की होती तो 2-4 सगेसंबंधी बुला लेती.’’

‘‘बेकार का झंझट करने की क्या जरूरत है मां.’’ अविनाश ने लापरवाही से कहा.

‘‘फिर भी कम से कम मुझ से तो बताना चाहिए था.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है,’’ अविनाश ने उसी तरह लापरवाही से कहा, ‘‘नोटिस तो पहले ही दे दी थी. आज दोपहर को दस्तखत कर दिए. संविधा का यहां कोई सगासंबंधी नहीं है. एक भाई है, वह दुबई में रहता है. रात को फोन कर के बता देंगे. बेटा ऋजुता, मम्मी को अपना घर तो दिखाओ.’’

उस समय क्या करना चाहिए, यह ऋजुता तुरंत तय नहीं कर सकी. इसलिए उस समय अविनाश की जीत हुई. घर में जैसे कुछ खास न हुआ हो, अखबार ले कर सोफे पर बैठते हुए उस ने मां से पूछा, ‘‘मां, किसी का फोन या डाकवाक तो नहीं आई, कोई मिलनेजुलने वाला तो नहीं आया?’’

संविधा जरा भी नरवस नहीं थी. अविनाश ने जब उस से कहा कि हमारी शादी हम दोनों का व्यक्तिगत मामला है. इस से किसी का कोई कुछ लेनादेना नहीं है. तब संविधा उस की निडरता पर आश्चर्यचकित हुई थी. उस ने अविनाश से शादी के लिए तुरंत हामी भर दी थी. वैसे भी अविनाश ने उस से कुछ नहीं छिपाया था. उस ने पहले ही अपने बच्चों और मां के बारे में बता दिया था. पर इस तरह बिना किसी तैयारी के नए घर में, नए लोगों के बीच…

‘‘चलो,’’ ऋजुता ने बेरुखी से कहा.

संविधा उस के साथ चल पड़ी. उसे पता था कि विधुर के साथ शादी करने पर रिसैप्शन या हनीमून पर नहीं जाया जाता, पर घर में तो स्वागत होगा ही. जबकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था. अविनाश निश्चिंत हो कर अखबार पढ़ने लगा था. वहीं यह 17-18 साल की लड़की घर की मालकिन की तरह एक अनचाहे मेहमान को घर दिखा रही थी. घर के सब से ठीकठाक कमरे में पहुंच कर ऋजुता ने कहा, ‘‘यह पापा का कमरा है.’’

‘‘यहां थोड़ा बैठ जाऊं?’’ संविधा ने कहा.

‘‘आप जानो, आप का सामान कहां है?’’ ऋजुता ने पूछा.

‘‘बाद में ले आऊंगी. अभी तो ऐसे ही…’’

‘‘खैर, आप जानो.’’ कह कर ऋजुता चली गई.

पूरा घर अंधकार से घिर गया तो ऋजुता ने फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मनु, तू जाग रहा है?’’

‘‘हां,’’ मनु ने कहा, ‘‘दीदी, अब हमें क्या करना चाहिए?’’

‘‘हमें भाग जाना चाहिए.’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘कहां, पर अनुष्का तो अभी बहुत छोटी है. यह बेचारी तो कुछ समझी भी नहीं.’’

‘‘सब समझ रही हूं,’’ अनुष्का ने धीरे से कहा.

‘‘अरे तू जाग गई?’’ हैरानी से ऋजुता ने पूछा.

‘‘मैं अभी सोई ही कहां थी,’’ अनुष्का ने कहा और उठ कर ऋजुता के पास आ गई. ऋजुता उस की पीठ पर हाथ फेरने लगी. हाथ फेरते हुए अनजाने में ही उस की आंखों में आंसू आ गए. भर्राई आवाज में उस ने कहा, ‘‘अनुष्का, तू मेरी प्यारी बहन है न?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘देख, वह जो आई है न, उसे मम्मी नहीं कहना. उस से बात भी नहीं करनी. यही नहीं, उस की ओर देखना भी नहीं है.’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘वह अपनी मम्मी थोड़े ही है. वह कोई अच्छी औरत नहीं है. वह हम सभी को धोखा दे कर अपने घर में घुस आई है.’’

‘‘चलो, उसे मार कर घर से भगा देते हैं,’’ मनु ने कहा.

‘‘मनु, तुझे अक्ल है या नहीं? अगर हम उसे मारेंगे तो पापा हम से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘भले न करें बात, पर हम उसे मारेंगे.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते मनु, पापा उसे ब्याह कर लाए हैं.’’

‘‘तो फिर क्या करें?’’ मनु ने कहा, ‘‘मुझे वह जरा भी अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘मुझे भी. अनुष्का तुझे?’’

मंदिर: क्या अपनी पत्नी और बच्चों का कष्ट दूर कर पाएगा परमहंस- भाग 1

परमहंस गांव से उकता चुका था. गांव के मंदिर के मालिक से उसे महीने भर का राशन ही तो मिलता था, बाकी जरूरतों के लिए उसे और उस की पत्नी को भक्तों द्वारा दिए जाने वाले न के बराबर चढ़ावे पर निर्भर रहना पड़ता था. अब तो उस की बेटी भी 4 साल की हो गई है और उस का खर्च भी बढ़ गया है. तन पर न तो ठीक से कपड़ा, न पेट भर भोजन. एक रात परमहंस अपनी पत्नी को विश्वास में ले कर बोला, ‘‘क्यों न मैं काशी चला जाऊं.’’ ‘‘अकेले?’’ पत्नी सशंकित हो कर बोली.

‘‘अभी तो अकेले ही ठीक रहेगा लेकिन जब वहां काम जम जाएगा तो तुम्हें भी बुला लूंगा,’’ परमहंस खुश होते हुए बोला. ‘‘काशी तो धरमकरम का स्थान है. मुझे पूरा भरोसा है कि वहां तुम्हारा काम जम जाएगा.’’ पत्नी की विश्वास भरी बातें सुन कर परमहंस की बांछें खिल गईं. दूसरे दिन पत्नी से विदा ले कर परमहंस ट्रेन पर चढ़ गया. चलते समय रामनामी ओढ़ना वह नहीं भूला था, क्योंकि बिना टिकट चलने का यही तो लाइसेंस था. माथे पर तिलक लगाए वह बनारस के हसीन खयालों में कुछ ऐसे खोया कि तंद्रा ही तब टूटी जब बनारस आ गया. बनारस पहुंचने पर परमहंस ने चैन की सांस ली.

प्लेटफार्म से बाहर आते ही उस ने अपना दिमाग दौड़ाया. थोडे़ से सोचविचार के बाद गंगाघाट जाना उसे मुनासिब लगा. 2 दिन हो गए उसे घाट पर टहलते मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. यहां पंडे़ पहले से ही जमे थे. कहने लगे, ‘‘एक इंच भी नहीं देंगे. पुश्तैनी जगह है. अगर धंधा जमाने की कोशिश की तो समझ लेना लतियाए जाओगे.’’ निराश परमहंस की इस दौरान एक व्यक्ति से जानपहचान हो गई. वह उसे घाट पर सुबहशाम बैठे देखता.

बातोंबातों में परमहंस ने उस के काम के बारे में पूछा तो वह हंस पड़ा और कहने लगा, ‘‘हम कोई काम नहीं करते. सिपाही थे, नौकरी से निकाल दिए गए तो दालरोटी के लिए यहीं जम गए.’’ ‘‘दालरोटी, वह भी यहां?’’ परमहंस आश्चर्य से बोला, ‘‘बिना काम के कैसी दालरोटी?’’ वह सोचने लगा कि वह भी तो ऐसे ही अवसर की तलाश में यहां आया है. फिर तो यह आदमी बड़े काम का है. उस की आंखें चमक उठीं, ‘‘भाई, मुझे भी बताओ, मैं बिहार के एक गांव से रोजीरोटी की तलाश में आया हूं.

क्या मेरा भी कोई जुगाड़ हो सकता है?’’ ‘‘क्यों नहीं,’’ बडे़ इत्मीनान से वह बोला, ‘‘तुम भी मेरे साथ रहो, पूरीकचौरी से आकंठ डूबे रहोगे. बाबा विश्वनाथ की नगरी है, यहां कोई भी भूखा नहीं सोता. कम से कम हम जैसे तो बिलकुल नहीं.’’ इस तरह परमहंस को एक हमकिरदार मिल गया. तभी पंडा सा दिखने वाला एक आदमी, सिपाही के पास आया, ‘‘चलो, जजमान आ गए हैं.’’ सिपाही उठ कर जाने लगा तो इशारे से परमहंस को भी चलने का संकेत दिया. दोनों एक पुराने से मंदिर के पास आए.

वहां एक व्यक्ति सिर मुंडाए श्वेत वस्त्र में खड़ा था. पंडे ने उसे बैठाया फिर खुद भी बैठ गया. कुछ पूजापाठ वगैरह किया. उस के बाद जजमान ने खानेपीने का सामान उस के सामने रख कर खाने का आग्रह किया. तीनों ने बडे़ चाव से देसी घी से छनी पूरी व मिठाइयों का भोजन किया. जजमान उठ कर जाने को हुआ तो पंडे ने उस से पूरे साल का राशनपानी मांगा. जजमान हिचकिचाते हुए बोला, ‘‘इतना कहां से लाएं. अभी मृतक की तेरहवीं का खर्चा पड़ा था.’’ वह चिरौरी करने लगा, ‘‘पीठ ठोक दीजिए महाराज, इस से ज्यादा मुझ से नहीं होगा.’’

बिना लिएदिए जजमान की पीठ ठोकने को पंडा तैयार नहीं था. परमहंस इन सब को बडे़ गौर से देख रहा था. कैसे शास्त्रों की आड़ में जजमान से सबकुछ लूट लेने की कोशिश पंडा कर रहा था. अंतत: 1,001 रुपए लेने के बाद ही पंडे ने सिर झुकवा कर जजमान की पीठ ठोकी. उस ने परम संतोष की सांस ली. अब मृतक की आत्मा को शांति मिल गई होगी, यह सोच कर उस ने आकाश की तरफ देखा. लौटते समय पंडे को छोड़ कर दोनों घाट पर आए. कई सालों के बाद परमहंस ने तबीयत से मनपसंद भोजन का स्वाद लिया था. सिपाही के साथ रहते उसे 15 दिन से ऊपर हो चुके थे. खानेपीने की कोई कमी नहीं थी मगर पत्नी को उस ने वचन दिया था कि सबकुछ ठीक कर के वह उसे बुला लेगा.

कम से कम न बुला पाने की स्थिति में रुपएपैसे तो भेजने ही चाहिए पर पैसे आएं कहां से? परमहंस चिंता में पड़ गया. मेहनत वह कर नहीं सकता था. फिर मेहनत वह करे तो क्यों? पंडे को ही देखा, कैसे छक कर खाया, ऊपर से 1,001 रुपए ले कर भी गया. उसे यह नेमत पैदाइशी मिली है. वह उसे भला क्यों छोडे़? इसी उधेड़बुन में कई दिन और निकल गए. एक दिन सिपाही नहीं आया. पंडा भी नहीं दिख रहा था. हो सकता हो दोनों कहीं गए हों. परमहंस का भूख के मारे बुरा हाल था. वह पत्थर के चबूतरे पर लेटा पेट भरने के बारे में सोच रहा था कि एक महिला अपने बेटे के साथ उस के करीब आ कर बैठ गई और सुस्ताने लगी. परमहंस ने देखा कि उस ने टोकरी में कुछ फल ले रखे थे. मांगने में परमहंस को पहले भी संकोच नहीं था फिर आज तो वह भूखा है, ऐसे में मुंह खोलने में क्या हर्ज?

‘‘माता, आप के पास कुछ खाने के लिए होगा. सुबह से कुछ नहीं खाया है.’’ साधु जान कर उस महिला ने परमहंस को निराश नहीं किया. फल खाते समय परमहंस ने महिला से उस के आने की वजह पूछी तो वह कहने लगी, ‘‘पिछले दिनों मेरे बेटे की तबीयत खराब हो गई थी. मैं ने शीतला मां से मन्नत मांगी थी.’’ परमहंस को अब ज्यादा पूछने की जरूरत नहीं थी. इतने दिन काशी में रह कर कुछकुछ यहां पैसा कमाने के तरीके सीख चुका था. अत: बोला, ‘‘माताजी, मैं आप की हथेली देख सकता हूं.’’ वह महिला पहले तो हिचकिचाई मगर भविष्य जानने का लोभ संवरण नहीं कर सकी. परमहंस कुछ जानता तो था नहीं. उसे तो बस, पैसे जोड़ कर घर भेजने थे. अत: महिला का हाथ देख कर बोला, ‘‘आप की तो भाग्य रेखा ही नहीं है.’’ उस का इतना कहना भर था कि महिला की आंखें नम हो गईं, ‘‘आप ठीक कहते हैं. शादी के 2 साल बाद ही पति का फौज में इंतकाल हो गया.

यही एक बच्चा है जिसे ले कर मैं हमेशा परेशान रहती हूं. एक प्राइवेट स्कूल में काम करती हूं. बच्चा दाई के भरोसे छोड़ कर जाती हूं. यह अकसर बीमार रहता है.’’ ‘‘घर आप का है?’’ परमहंस ने पूछा. ‘‘हां’’ बातों के सिलसिले में परमहंस को पता चला कि वह विधवा थी, और उस ने अपना नाम सावित्री बताया था. विधवा से परमहंस को खयाल आया कि जब वह छोटा था तो एक बार अपने पिता मनसाराम के साथ एक विधवा जजमान के घर अखंड रामायण पाठ करने गया था. रामायण पाठ खत्म होने के बाद पिताजी रात में उस विधवा के यहां ही रुक गए. अगली सुबह पिताजी कुछ परेशान थे. जजमान को बुला कर पूछा, ‘बेटी, यहां कोई बुजुर्ग महिला जल कर मरी थी?’ यह सुन कर वह विधवा जजमान सकते में आ गई. ‘जली तो थी और वह कोई नहीं मेरी मां थी. बाबूजी बहरे थे. दूसरे कमरे में कुछ कर रहे थे. उसी दौरान चूल्हा जलाते समय अचानक मां की साड़ी में आग लग गई.

सबसे हसीन वह: भाग 1

इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.

ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

उस की विचारशृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को  झेल भी रही थी.  झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.

लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.

सोचतेविचारते अकसर उस की आंखें सजल हो उठतीं. नित्य 2 बूंद अश्रु उस के दामन में ढुलक भी आते और वह उन अश्रुबूंदों को देखती हुई फिर से विचारों की दुनिया में चली जाती और अपने अकेलेपन पर रोती.

अवसाद, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी से उस का हृदय तारतार हुआ जा रहा था. लगने लगा था जैसे वह अबतब में ही पागल हो जाएगी. उस के अंदर तो जैसे सांप रेंगने लगा था. लगा जैसे वह खुद को नोच ही डालेगी या फिर वह कहीं अपनी जान ही गंवा बैठेगी. वह सोचती, ‘जानती होती कि यह ऐसा कर जाएगा तो ब्याह ही न करती इस से. तब दुनिया की कोई भी ताकत मु झे मेरे निर्णय से डिगा नहीं सकती थी. पर, अब मु झे क्या करना चाहिए? क्या इस के लौट आने का इंतजार करना चाहिए? या फिर पीहर लौट जाना ही ठीक रहेगा? क्या ऐसी परिस्थिति में यह घर छोड़ना ठीक रहेगा?’

वक्त पर कोई न कोई उसे खाने की थाली पहुंचा जाता. बीचबीच में आ कर कोई न कोई हालचाल भी पूछ जाता. पूरा घर तनावग्रस्त था. मरघट सा सन्नाटा था उस चौबारे में. सन्नाटा भी ऐसा, जो भीतर तक चीर जाए. परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से नजरें चुराता दिखता. ऐसे में वह खुद को कैसे संभाले हुए थी, वह ही जानती थी.

दुलहन के ससुराल आने के बाद अभी तो कई रस्में थीं जिन्हें उसे निभाना था. वे सारी रस्में अपने पूर्ण होने के इंतजार में मुंहबाए खड़ी भी दिखीं उसे. नईनवेली दुलहन से मिलनजुलने वालों का आएदिन तांता लग जाता है, वह भी वह जानती थी. ऐसा वह कई घरों में देख चुकी थी. पर यहां तो एकबारगी में सबकुछ ध्वस्त हो चला था. उस के सारे संजोए सपने एकाएक ही धराशायी हो चले थे. कभीकभार उस के भीतर आक्रोश की ज्वाला धधक उठती. तब वह बुदबुदाती, ‘भाड़ में जाएं सारी रस्मेंरिवाज. नहीं रहना मु झे अब यहां. आज ही अपना फैसला सुना देती हूं इन को, और अपने पीहर को चली जाती हूं. सिर्फ यही नहीं, वहां पहुंच कर अपने मांबाबूजी को भी तो खरीखोटी सुनानी है.’ ऐसे विचार उस के मन में उठते रहे थे, और वह इस बाबत खिन्न हो उठती थी.

इन दिनों उस के पास तो समय ही समय था. नित्य मंथन में व्यस्त रहती थी और फिर क्यों न हो मंथन, उस के साथ ऐसी अनूठी घटना जो घटी थी, अनसुल झी पहेली सरीखी. वह सोचती, ‘किसे सुनाऊं मैं अपनी व्यथा? कौन है जो मेरी समस्या का निराकरण कर सकता है? शायद कोईर् भी नहीं. और शायद मैं खुद भी नहीं.’

फिर मन में खयाल आता, ‘अगर परीक्षित लौट भी आया तो क्या मैं उसे अपनाऊंगी? क्या परीक्षित अपने भूल की क्षमा मांगेगा मुझ से? फिर कहीं मेरी हैसियत ही धूमिल तो नहीं हो जाएगी?’ इस तरह के अनेक सवालों से जूझ रही थी और खुद से लड़ भी रही थी अनुजा. बुदबुदाती, ‘यह कैसी शामत आन पड़ी है मु झ पर? ऐसा कैसे हो गया?’

तभी घर के अहाते से आ रही खुसुरफुसुर की आवाजों से वह सजग हो उठी और खिड़की के मुहाने तक पहुंची. देखा, परीक्षित सिर  झुकाए लड़खड़ाते कदमों से, थकामांदा सा आंगन में प्रवेश कर रहा था.

उसे लौट आया देखा सब के मुर झाए चेहरों की रंगत एकाएक बदलने लगी थी. अब उन चेहरों को देख कोई कह ही नहीं सकता था कि यहां कुछ घटित भी हुआ था. वहीं, अनुजा के मन को भी सुकून पहुंचा था. उस ने देखा, सभी अपनीअपनी जगहों पर जड़वत हो चले थे और यह भी कि ज्योंज्यों उस के कदम कमरे की ओर बढ़ने लगे. सब के सब उस के पीछे हो लिए थे. पूरी जमात थी उस के पीछे.

इस बीच परीक्षित ने अपने घर व घर के लोगों पर सरसरी निगाह डाली. कुछ ही पलों में सारा घर जाग उठा था और सभी बाहर आ कर उसे देखने लगे थे जो शर्म से छिपे पड़े थे अब तक. पूरा महल्ला भी जाग उठा था.

जेठानी की बेटी निशा पहले तो अपने चाचा तक पहुंचने के लिए कदम बढ़ाती दिखी, फिर अचानक से अपनी नई चाची को इत्तला देने के खयाल से उन के कमरे तक दौड़तीभागतीहांफती पहुंची. चाची को पहले से ही खिड़की के करीब खड़ी देख वह उन से चिपट कर खड़ी हो गई. बोली कुछ भी नहीं. वहीं, छोटा संजू दौड़ कर अपने चाचा की उंगली पकड़ उन के साथसाथ चलने लगा था.

लेखक : केशव राम वाड़दे

सहेली की साजिश में फंसी सिंगर वैशाली

पार नामक नदी के पास से सुबह के समय गुजर रहे लोगों की नजर नदी के किनारे खड़ी एक कार पर पड़ी.

सुनसान जगह पर लावारिस हालत में कार खड़ी होने पर लोगों को अजीब सा लगा. कार के आसपास भी कोई दिखाई नहीं दिया. उत्सुकतावश जब लोग कार के पास पहुंचे तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कार की पिछली सीट पर एक महिला की लाश पड़ी थी. लाश देखते ही लोगों द्वारा पुलिस को फोन कर कार में लाश पड़ी होने की जानकारी दी गई.

सूचना मिलते ही गुजरात के जिला वलसाड के थाना पारदी की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. यह नदी गुजरात के वलसाड शहर के पारदी इलाके में स्थित है. यह बात 28 अगस्त, 2022 की है.

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर निरीक्षण किया. कार और महिला की लाश की हालत देख कर पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला हत्या का है. महिला की उम्र 32-33 साल के आसपास थी. उस के गले पर निशान देखने से ऐसा लग रहा था कि महिला की गला दबा कर हत्या की गई है.

उस की चप्पलें ड्राइविंग सीट के नीचे पड़ी थीं. जबकि लाश कार की पिछली सीट पर जिस हालत में थी, उस से लग रहा था कि महिला को जबरन खींच कर पिछली सीट पर लिटा कर उस का गला दबाया गया है.

महिला के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस के कपड़े भी अस्तव्यस्त नहीं थे और अपना बचाव करने के भी कोई सबूत दिखाई नहीं दे रहे थे. इतना जरूर था कि महिला की ब्लू कलर की मारुति बलेनो कार की चाबी, उस का  मोबाइल  व अन्य सामान गायब था.

पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि जब महिला का गला दबाया गया, तब उस ने हत्यारों से संघर्ष क्यों नहीं किया? हत्यारों का पता लगाने के लिए सब से पहले मरने वाली महिला की शिनाख्त होनी जरूरी थी.

तब कार के नंबर से कार मालिक का पता करने का प्रयास किया गया, वहीं पुलिस ने ऐसी किसी महिला की गुमशुदगी के संबंध में भी पता करना शुरू किया.

हरेश ने की पत्नी की लाश की शिनाख्त

संयोग से बीती 27 अगस्त की शाम को ही वलसाड के ही रहने वाले हरेश बलसारा ने थाने में अपनी पत्नी और प्रसिद्ध गरबा सिंगर वैशाली बलसारा की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. इस पर पुलिस ने हरेश बलसारा से संपर्क किया.

अपनी कार और पत्नी की लाश को देखते ही हरेश फूटफूट कर रोने लगा. उस ने बताया कि लाश उस की पत्नी वैशाली बलसारा की है. हरेश ने पुलिस को बताया कि उस की 34 वर्षीय पत्नी वैशाली बलसारा 27 अगस्त, 2022 की शाम को किसी से मिलने की बात कह कार से अकेली निकली थी.

देर शाम जब वह लौट कर नहीं आई और न उस का कोई फोन आया, तब उसे फोन किया. लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था.

काफी देर तक जब फोन नहीं मिला तो वह घबरा गया. उस ने पत्नी के बारे में परिचितों से पूछताछ के साथ ही स्वयं भी तलाश की. लेकिन हर ओर से निराशा मिलने के बाद उस ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

घटना की जानकारी मिलते ही वलसाड के एसपी डा. राजदीप सिंह झाला व डीएसपी  वी.एन. पटेल सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम की भी मदद ली गई.

लाश की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए वैशाली का शव सूरत भेज दिया. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए.

अब यह बात स्पष्ट हो गई थी कि मृतका वैशाली बलसारा है. पुलिस के सामने अब यह प्रश्न था कि वैशाली की किसी से क्या कोई दुश्मनी थी? या उस की शोहरत से किसी को जलन थी? वैशाली की हत्या कैसे, क्यों और किस ने की?

हत्या के संबंध में पुलिस पूछताछ में हरेश ने बताया कि जाते समय वैशाली बलसारा ने किसी से मिलने जाने और कुछ देर में लौट आने की बात कही थी. इस से ज्यादा वह कुछ नहीं बता पाया.

गरबा गुजरात का एक प्रसिद्ध डांस है. गरबा की धुन ही अलग और गाने भी बेहद खास होते हैं. इस में डांडिया ले कर लोग डांस करते हैं. इसी गरबा की जानीमानी, बेहद खूबसूरत, गुजरात के वलसाड की रहने वाली लोक गायिका वैशाली बलसारा की पहचान हो जाने के बाद पता चला कि मृतका वैशाली जहां मशहूर गरबा सिंगर थी, वहीं उस का पति हरेश बलसारा म्यूजिशियन था. वह कार्यक्रमों में गिटार बजाता था.

दोनों ही संगीत की दुनिया के लिए जानापहचाना चेहरा थे. वे गुजरात, मुंबई के अलावा विदेशों में भी शो करते थे. मशहूर गरबा सिंगर की हत्या की खबर मिलते ही वलसाड में सनसनी फैल गई.

पुलिस की 6 टीमें जुटीं जांच में

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया था कि वैशाली की हत्या उस की गला दबा कर की गई थी. हत्यारों का उद्देश्य केवल वैशाली की हत्या करना था. यदि हत्यारे चाहते तो कार भी ले जा सकते थे.

अब सवाल यह था कि वैशाली का कत्ल क्यों किया गया? क्या वैशाली की प्रौपर्टी के लिए हत्या की गई या कोई अन्य कारण था?

पुलिस ने जांच का काम शुरू किया. हत्या के खुलासे के लिए पुलिस की 6 टीमें बनाई गईं. सब से पहले पतिपत्नी के संबंधों के बारे में जानकारी जुटाई. हरेश और वैशाली की शादी साल 2011 में हुई थी. दोनों की एक बेटी भी है. जबकि हरेश बलसारा के पहली पत्नी से भी एक बेटी थी.

इस समय हरेश और वैशाली अपनी दोनों बेटियों और मातापिता के साथ रहते थे. परिवार में किसी तरह की कोई समस्या नहीं थी. पुलिस को इस बात का यकीन हो गया था कि मृतका का पति हरेश पुलिस से झूठ नहीं बोल रहा और न कोई बात छिपा रहा है.

अब वैशाली के कत्ल में पुलिस ने गहराई से जांच का काम शुरू किया. कातिल का पता लगाने के लिए पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों को खंगालना शुरू किया.

वैशाली की सहेली बबीता से की पूछताछ

पुलिस ने अनेक लोगों से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की. इस जांच के बाद पुलिस को एक बड़ा सुराग मिला. इस से यह भी पता चला कि आखिरी बार जिंदा रहते हुए वैशाली को एक महिला दोस्त बबीता कौशिक के साथ देखा गया था. अब पुलिस ने बबीता की काल डिटेल्स निकाली. उस की काल डिटेल्स भी चैक की. इस से यह स्पष्ट हो गया कि जब वैशाली की हत्या हुई, तब उस के

साथ बबीता भी थी. यानी हत्या की वह चश्मदीद थी.

बबीता के बारे में पुलिस ने जानकारी जुटाई. पुलिस को पता चला कि बबीता इस समय 8 माह से अधिक की गर्भवती है. ऐसे में मानवीय पहलू को देखते हुए उस से पूछताछ करना बेहद ही मुशकिल था.

पुलिस के सामने यह चुनौती भी थी कि बबीता से पूछताछ के दौरान यदि स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी हो गई तो उस के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी नुकसान हो सकता था. बबीता के 10 साल का एक बेटा भी है.

ऐसे में पुलिस ने सभी बातों का ध्यान रखते हुए एक नई और अनोखी तरकीब निकाली. पुलिस ने सब से पहले डाक्टरों की एक टीम बनाई. फिर बबीता के घर जा कर पुलिस ने उसे बताया, ‘‘आप की दोस्त वैशाली बलसारा की हत्या हो गई है. जांच में पाया गया है कि आखिरी बार वैशाली की आप से बात हुई थी, इसलिए आप से इस संबंध में कुछ जानकारी करना चाहते हैं ताकि आप की दोस्त के हत्यारों को शीघ्र पकड़ा जा सके.’’

इस के साथ ही पुलिस ने बबीता को डाक्टरों से भी मिलवाया ताकि उसे यह न लगे कि उसे किसी तरह की परेशानी होगी. इस तरह बबीता को भी पुलिस पर भरोसा हो गया.

बबीता के पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद पुलिस ने पूछा, ‘‘आखिरी बार जब आप वैशाली से मिलीं तो आप को कोई संदिग्ध नजर आया था?’’

तब बबीता ने पुलिस को उलझाने का प्रयास किया. इसलिए झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘हां, आखिरी बार जब मैं मिली थी तो वैशाली के साथ 2 और लोग भी थे. जिन में एक को वह सामने आने पर पहचान सकती है.’’

पुलिस ने झूठ बोल कर उगलवाया सच

इस पर पुलिस ने कुछ संदिग्ध लोगों के सीसीटीवी फुटेज दिखाए. इस के अलावा भी कुछ संदिग्धों के फोटो दिखाए. ये फोटो उन लोगों के थे, जिन का वैशाली मर्डर केस से दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं था.

लेकिन पुलिस के इस जाल में बबीता फंस गई. उस ने उन दिखाए हुए फोटो में से एक को पहचान लिया. फिर पूरे यकीन के साथ पुलिस को बताया कि यही वह संदिग्ध व्यक्ति था, जिसे आखिरी बार वैशाली के साथ उस ने देखा था.

इस प्रकार पुलिस का शक यकीन में बदल गया कि बबीता झूठ बोल रही है और वैशाली के कत्ल में बबीता का ही हाथ है. इस के बाद महिला पुलिसकर्मियों ने समझाते हुए उस से गहराई से पूछताछ की. तब रहस्यों में लिपटी गरबा सिंगर वैशाली के कत्ल की कहानी उजागर हुई.

जुर्म करने के बाद हर अपराधी झूठ बोलता है. लेकिन पुलिस ने ही जब कातिल से झूठ बोल कर उसे अपने बुने हुए जाल में फांस लिया तो कातिल ने कत्ल की पूरी सच्चाई उगल दी.

असल में मर्डर की यह पूरी कहानी 25 लाख रुपए से शुरू होती है. बबीता और वैशाली दोनों दोस्त थीं. उन की दोस्ती 2 साल पुरानी ही थी. वैशाली से बबीता ने ब्याज पर कई बार में 25 लाख रुपए उधार लिए थे. लेकिन अब बबीता उधार लिए गए रुपयों को लौटा नहीं पा रही थी. जबकि वैशाली अपने पैसों के लिए बारबार उस से तकादा कर रही थी. घटना से एक सप्ताह पहले भी वैशाली ने पैसे लौटाने के लिए बबीता पर दबाव बनाया था.

बबीता की हो गई नीयत खराब

इस पर परेशान हो कर बबीता ने फेसबुक के जरिए 2 सुपारी किलर्स से संपर्क किया. हत्या के लिए 10 लाख रुपयों की मांग की गई. बातचीत के बाद 8 लाख रुपए में वैशाली की हत्या करने की बात तय हो गई.

इस के बाद बबीता ने 27 अगस्त, 2022 को वैशाली से बात की. उस ने वैशाली से कहा, ‘‘इस समय मेरे पास 8 लाख रुपए हैं.’’

उस ने उधार दिए गए रुपए वापस देने के लिए उसे पुरानी और बंद पड़ी हीरे की फैक्ट्री के पास आने के लिए कहा.

चालाकी दिखाते हुए बबीता खुद उस दिन अपनी कार के बजाय स्कूटी ले कर घर से निकली. उस ने अपनी स्कूटी फैक्ट्री से करीब 2 किलोमीटर दूर ही खड़ी कर दी. इस के बाद आटो ले कर वह उस जगह पहुंची, जहां उस ने वैशाली को रुपए लेने के लिए बुलाया था. यहां पहले से ही बबीता के बुलाए सुपारी किलर छिपे हुए थे.

बबीता हत्यारों के साथ वैशाली का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. बबीता को देख कर वैशाली ने कार को बबीता के पास रोका. कार रुकते ही बबीता और उस का एक साथी कार में बैठ गए.

कार में बैठेबैठे ही बबीता ने वैशाली से कहा, ‘‘बहन, पूरे रुपए का इंतजाम तो अभी नहीं हो पाया है. केवल 8 लाख रुपए ही लाई हूं. शेष रुपए भी जल्दी ही दे दूंगी.’’

बबीता अपने साथ रुपए एक बैग में ले कर आई थी. उस ने वैशाली को बताया कि वह अपने साथ भाई को लाई है. उस ने रुपयों का बैग वैशाली को थमाते हुए कहा कि गिन लो पूरे 8 लाख रुपए हैं.

इसी के साथ बबीता ड्राइविंग सीट के बगल में जबकि उस का कथित भाई पीछे की सीट पर बैठ गए. जबकि एक साथी पहरेदारी करता रहा. इसी बीच पीछे बैठे सुपारी किलर ने वैशाली की नाक पर क्लोरोफार्म लगा रुमाल रख दिया, जिस से वह बेहोश हो गई. फिर बेहोश वैशाली का अंगोछे से गला घोट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद अपने साथी की मदद से उस की लाश को कार की पिछली सीट पर लिटा दिया ताकि देखने वालों को लगे कि तबियत खराब होने से वैशाली की मौत हो गई है.

फिर बबीता ने वे 8 लाख रुपए दोनों बदमाशों को दे दिए. हत्या करने के बाद वे सभी लोग वहां से चले गए.

काश! पति से न छिपाया होता राज

वैशाली बलसारा के पति हरेश को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस की पत्नी ने अपनी महिला दोस्त बबीता को 25 लाख रुपए उधार दिए थे. वैशाली ने अपने पति को बिना बताए बबीता को रुपए दिए थे, इस के चलते वह कहां और क्यों जा रही है, यह बात उस दिन अपने पति से छिपाई, जो उस की हत्या का कारण बनी.

बबीता से हुई पूछताछ में कई राज परत दर परत खुलते चले गए. बबीता के जानकारी देने पर पुलिस की एक टीम ने पंजाब के लुधियाना जिले के बिसिया गांव से वहां के रहने वाले सुखविंदर सिंह उर्फ सुखा भटिनी नाम के सुपारी किलर को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उसे वलसाड ले लाई.

गिरफ्तार आरोपी सुखा ने पुलिस को हत्या की पूरी सच्चाई बताई. बताया कि घटना से सप्ताह भर पहले ही बबीता ने हत्या का फैसला लिया था. उस ने हम लोगों से संपर्क किया. घटना से एक दिन पहले पंजाब से हम लोग ट्रेन से सूरत आए और एक होटल में रुके.

अगले दिन वे ट्रेन से वलसाड पहुंचे, जहां बबीता उन्हें लेने आई थी. वहां सभी ने मिल कर वैशाली की हत्या की आखिरी साजिश रची. इस के बाद वैशाली को मारने के लिए जगह चुनी.

योजना के अनुसार बबीता ने रुपए देने के लिए वैशाली को फोन किया और उस जगह पर बुलाया. सुपारी किलर रिक्शे से मौके पर पहुंचे. उन के पहुंचने के बाद बबीता आटो से तथा कुछ देर बाद वैशाली कार से वहां पहुंची.

कार में वैशाली को क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश करने के बाद हत्यारों ने उसे कार की पिछली सीट पर लिटा कर अंगोछे से उस का गला घोट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई कि हत्या से पहले बबीता ने सुपारी किलर्स को गुजरात में आने के लिए किराए के पैसे और सूरत के एक होटल में ठहरने के पैसे गूगलपे के जरिए दिए थे. पुलिस ने जांच के दौरान वैशाली की हत्या जिस अंगोछे से की गई थी, उसे भी बरामद कर लिया. वह सुखवीर का था.

11 साल से संपर्क में था कौन्ट्रैक्ट किलर

गुजरात की जानीमानी गायिका वैशाली हत्याकांड में वलसाड और पारदी पुलिस ने बड़ी सफलता हासिल करते हुए पंजाब के लुधियाना से सुपारी ले कर हत्या करने वाले आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में इस किलर ने खुलासा किया कि वह और बबीता पिछले 11 सालों से सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में थे. बबीता ने उस से संपर्क किया और यह झूठ बोल कर अपनी दोस्त वैशाली की हत्या कराई थी कि वैशाली की वजह से उस का पति से तलाक हो गया था. इस पर कौन्ट्रैक्ट किलर ने वैशाली की हत्या की सुपारी ले ली.

 

आरोपियों ने वैशाली की हत्या के बदले मिले रुपयों से मंहगी चीजें खरीदीं. इस के साथ ही हाथों पर महंगे टैटू भी बनवाए. यह भी खुलासा हुआ कि आरोपी लंबे समय से पंजाब में कोई काम नहीं कर रहे थे.

पुलिस ने इस अपराध के सभी सबूत ढूंढ लिए हैं. एक कहावत है कि पैसा इंसानी रिश्तों का कातिल है. आज के दौर में पैसों के लालच ने आदमी को ऐसा अंधा कर दिया है कि उसे कोई रिश्ता नजर ही नहीं आता है. यह एक ऐसी ही कहानी है, जिस में एक दोस्त ने अपनी दूसरी महिला दोस्त की सिर्फ इसलिए हत्या करा दी ताकि उसे उधार की रकम वापस नहीं करनी पड़े.

वलसाड जिला पुलिस ने राज्य के बाहर एक अभियान चला कर एक सुपारी किलर को गिरफ्तार कर लिया. जबकि एक अन्य सुपारी किलर की तलाश में जुटी थी.

गिरफ्तारी के बाद बच्ची को जन्म देने वाली वैशाली की हत्या की मास्टरमाइंड बबीता को न्यायालय ने एक माह की जमानत दे दी है. जमानत पूरी होने के बाद बबीता के खिलाफ कानूनी काररवाई की जाएगी.

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

सम्मान: क्यों आसानी से नही मिलता सम्मान- भाग 2

ऐसे कई खर्च उन्होंने गिनाते हुए कहा, ‘‘संस्था की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए हम सब से सहयोग लेते हैं. चंदा करते हैं. ऐसे में लेखकों का दायित्व भी है कि वे अपने ही सम्मान के लिए कुछ तो खर्च करें. आखिर नाम तो लेखकों का ही होता है. हमारी जेब से भी बहुत खर्च होता है. लेकिन साहित्य सेवा का बीड़ा उठाया है, तो कर रहे हैं साहित्य की सेवा. आप जल्दी करिए. हमें गर्व होगा आप को सम्मानित करने में. भविष्य में योजना है कि लेखकों को नकद पुरस्कार भी दिया जाए. आनेजाने का खर्च भी. अब आप से इतने सहयोग की तो अपेक्षा कर ही सकते हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, बाकी तो सब भेज दूंगा लेकिन जिसे आप प्रविष्टि शुल्क या रजिस्ट्रेशन शुल्क कहते हैं वह भेज पाना संभव नहीं है.’’

उधर से कुछ नाराजगीभरी आवाज आई, ‘‘संस्था का नियम है कि बिना शुल्क के सम्मान पर विचार नहीं किया जाएगा. बाकी भले ही कुछ न भेजें लेकिन शुल्क जरूर भेजें. आजकल तो बड़ीबड़ी पत्रिकाएं छापने से पहले शर्त रखती हैं कि पत्रिका की वार्षिक, आजीवन सदस्यता लेने वालों की रचनाएं ही छापी जाएंगी. फिर, हमारी संस्था तो छोटी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘विचार कर के बताता हूं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘जल्दी करिए.’’

मैं ने दूसरे पत्र को पढ़ कर उस के अंत में दिए फोन नंबर पर फोन लगाया.

मैं ने कहा, ‘‘महोदय, आप ने मुझे कविता पर सम्मान देने के लिए आमंत्रणपत्र भेजा है. लेकिन मैं तो कविताएं लिखता ही नहीं हूं.’’

‘‘अरे, तो साहब लिख डालिए. न लिख सकें तो जो लिखा है उसी पर सम्मान दे देंगे. फोटो, परिचय और 2,500 रुपए का मनीऔर्डर भेज दीजिए. जल्दी करिए.’’

ऐसा लगा जैसे किसी कंपनी का लुभावना औफर निकला हो. मैं ने प्रविष्टि/सहयोग/रजिस्ट्रेशन शुल्क के विषय में पूछा तो पहले सेवा करने वाले की तरह ही उत्तर मिला, ‘‘बिना शुल्क के कुछ नहीं. पहली और अनिवार्य शर्त है शुल्क.’’

समझ में तो सब आ रहा था लेकिन मन में सम्मान की इच्छा थी, तो सोचा, एक बार चल कर देखा जाए और मैं ने प्रविष्टि शुल्क सहित सबकुछ भेज दिया. कुछ समय बाद निमंत्रणपत्र आया कि आप को सम्मान 28 अगस्त, 2019 समय 2 बजे रामप्रसाद शासकीय विद्यालय में दिया जाएगा. हम अपने साथ 2 जोड़ी कपड़े ले कर ट्रेन में चढ़े. समयपूर्व रिजर्वेशन करवा लिया था. 500 किलोमीटर के लंबे सफर की थकान के बाद एक होटल पहुंचे. 1,000 रुपए एक दिन के हिसाब से होटल में कमरा मिला. 100 रुपए प्लेट के हिसाब से भोजन किया. फिर रिकशा कर के नियत समय पर कार्यक्रम में सम्मानित होने की लालसा लिए पहुंचे. वहां अपना परिचय दिया. संस्था के सचिव ने हाथ मिला कर बधाई देते हुए कहा, ‘‘आप बैठिए.’’

समारोह कब शुरू होगा?’’

‘‘मुख्य अतिथि के आने पर. वे ठहरे बड़े आदमी. आराम से आएंगे. तब तक बैनर, पोस्टर लग जाएंगे. आप चाहें तो थोड़ी मदद कर सकते हैं.’’

मैं ने हामी भर दी. उन्होंने मुझे मंच पर मुख्य अतिथियों की कुरसी लगाने में लगा दिया. धीरेधीरे लोग आते रहे. मैं अपना काम समाप्त कर के दर्शक दीर्घा में पड़ी कुरसी पर बैठ गया. छोटा सा हौल भर गया. हौल में 50 लोगों के बैठने की जगह थी. कैमरामैन भी आ गया.

मंच पर 8-10 लोगों को नाम ले कर बिठाया गया जिन में कोई शिक्षा विभाग का कुलपति, अखबार का प्रधान संपादक, राजनीति से जुड़े हुए स्थानीय नेता थे. एक वयोवृद्ध लेखक जिन का नाम तभी पता चला कि ये लेखक हैं, इस शहर के बहुत बड़े लेखक. एकदो ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने दिवंगत मातापिता के नाम पर पुरस्कार रखे थे.

सारा मंच मुख्य अतिथियों से भरा हुआ था और दर्शक दीर्घा में मेरे जैसे लेखक बैठे हुए थे.

जनता हम ही थे. दर्शक हम लेखक लोग ही थे. पढ़ने वाला, सुनने वाला कोई नहीं था. सब से पहले मुख्य अतिथियों महोदय ने दीप प्रज्ज्वलित किए. इसी बीच कुछ कन्याओं ने अपने गीतों से सब को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस के बाद संस्था अध्यक्ष, जोकि मंच संचालक भी थे, ने एक घंटे तक संस्था के कार्यों पर, सेवा पर उल्लेखनीय प्रकाश डाला.

दर्शक दीर्घा में बैठे लेखक ताली बजाते प्रतीक्षा करते रहे कि कब उन्हें सम्मान मिलेगा. लेकिन अभी तो कार्यक्रम की शुरुआत थी. इस के बाद अपनेअपने क्षेत्र के आमंत्रित 10 मुख्य अतिथियों को फूलमाला पहना कर उन्हें बोलने के लिए बुलाया गया. अपनेअपने क्षेत्र के मुख्य अतिथि अपनेअपने क्षेत्र की बातें बोलते रहे. बोलते रहने का तात्पर्य यह है कि वे अपने विरोधी लेखकों, दूसरी विचारधाराओं के लोगों, अपने शत्रुओं को जीभर कर कोसते रहे. अपने मन की भड़ास निकालते रहे.

संस्था के अध्यक्ष ने तमाम साहित्यिक संस्थाओं को जीभर कर कोसा. सब को उन्होंने फर्जी, झूठा और ठग करार दिया. भारत सरकार, राज्य सरकार और तमाम बड़े संगठनों को कोसा जिन्होंने उन की संस्था को आर्थिक सहायता देना मंजूर नहीं किया था. उन के आमंत्रण पर जो लोग नहीं आए थे और सहायता देने में असमर्थता जाहिर की थी, उन्हें भी मंच से आड़ेहाथों लिया. तमाम वरिष्ठ, गरिष्ठ और कनिष्ठ लेखकों, संपादकों, प्रकाशकों को भरभर कर कोसा. क्योंकि मंच संचालक उर्फ संस्था अध्यक्ष स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय लेखक कह चुके थे और उन की रचनाओं को सभी बड़ीछोटी पत्रिकाएं अस्वीकृत कर चुकी थीं. उन्होंने उन सब को साहित्यविरोधी, राष्ट्रविरोधी कहा.

नौकरी की भेट चढ़ा मासूम

शाम के 8 बज गए थे. राजस्थान के कोटा नगर निगम में अपनी रोजमर्रा की ड्यूटी पर तैनात इमरान अंसारी के पास पत्नी अंजुम का फोन आया. अंजुम उस समय बुरी तरह हड़बड़ाई हुई थी. कांपतीलरजती हुई आवाज में उस ने बताया, ‘‘अबीर कहीं नहीं मिल रहा है.’’

डेढ़ वर्षीय अबीर इमरान का इकलौता बेटा था. बेहद खूबसूरत और चंचल अबीर पूरे परिवार का ही नहीं पूरे मोहल्ले का भी दुलारा था.

अंजुम ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘मैं बावर्चीखाने में खाना बना रही थी, अबीर उस समय नीचे कमरे में खेल रहा था. खाना पक गया तो मेरी तवज्जो उस की तरफ गई, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. अपनी छत की तरफ गई, लेकिन वहां भी नहीं दिखा.

‘‘मम्मी की छत की मुंडेर पर खड़े हो कर मैं ने चौतरफा आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं. आसपड़ोस में भी देख आई, लेकिन कोई नहीं बता सका कि अबीर कहां है. अबीर की तो कहीं किलकारी तक नहीं सुनाई दी. जब कोई नतीजा नहीं निकला तो आप को फोन किया.’’ इस के साथ ही अंजुम फूटफूट कर रोने लगी.

इमरान ने बीवी को तसल्ली देते हुए  कहा, ‘‘इस तरह घबराओ मत. वो तो पूरे मोहल्ले का लाडला है, जरूर कोई घुमाने ले गया होगा.’’ इमरान ने अपने छोटे भाई का नाम लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने जीशान भाई से पूछा.’’

अंजुम बिलख पड़ी, ‘‘मैं ने तो सब से पूछ लिया. जब कोई नतीजा नहीं निकला, तब कहीं जा कर आप को फोन किया.’’

अब तो इमरान का भी माथा ठनकने लगा. भला उस मासूम बच्चे का कौन दुश्मन हो सकता है? अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए उस ने बीवी अंजुम को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम परेशान मत होओ. बस, मैं आधे घंटे में पहुंच रहा हूं.’’

यह बात 25 अप्रैल, 2022 की है. बेटे को ले कर अंजुम फूटफूट कर रोने लगी.

उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए. औरतों ने अंजुम को दिलासा दिलाई, ‘‘घबराओ मत, बच्चा मिल जाएगा.’’

उधर इमरान औफिस से सीधा घर पहुंचने के बजाय मोहल्ले में बच्चे को तलाश करने लगा. तभी पत्नी का फोन आया, अबीर अम्मी वाले मकान की छत पर रखी पानी की टंकी में मिल गया है.

हतप्रभ इमरान लपकता हुआ घर पहुंचा. बेटे को अंजुम की गोद में बेहोश पड़ा देख कर इमरान फफक पड़ा. बिलखते हुए वह अपने छोटे भाइयों शाकिर और इफ्तखार के साथ बेसुध बच्चे को ले कर जे.के. लोन अस्पताल की तरफ दौड़ा. लेकिन डाक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया.

लाडले की मौत से घरपरिवार और बस्ती में कोहराम मच गया. दहाड़ मारती पत्नी को संभालना इमरान के लिए मुश्किल हो गया. आखिरकार आंसुओं का सैलाब बहाते हुए परिवार के लोगों ने रात में ही बच्चे को कब्रिस्तान में दफना दिया.

कब्रिस्तान से घर लौटने के बाद परिवार के लोग एकजुट हो कर बैठे तो इस बात पर चर्चा होने लगी कि नन्हा बच्चा कैसे इतनी ऊंचाई पर रखी टंकी तक पहुंचा? फिर अबीर को जिस टंकी से बरामद किया गया है, उस का ढक्कन तो बंद था. आखिर माजरा क्या है?

अंजुम बुरी तरह फफक पड़ी कि जरूर किसी ने हमारे बच्चे की हत्या की है. घुटने पर चलने वाला अबीर सीढि़यां कैसे चढ़ गया? पानी की टंकी का ढक्कन बंद था तो कैसे खोला?

बात सोलह आने सच थी. ऐसा कौन करेगा, कहते हुए सभी के मुंह खुले के खुले रह गए.

बेटे की रहस्यमय और दर्दनाक मौत से पगलाए हुए इमरान की रात को पलक तक नहीं झपकी. भोर का झुटपुटा होते ही वह रामपुरा कोतवाली पहुंच कर एसएचओ हंसराज मीणा के पावों में गिर कर बिलख पड़ा, ‘‘साहब, मेरे मासूम बच्चे को पता नहीं किस ने मार डाला.’’

एसएचओ मीणा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘पूरी बात डिटेल में बताओ, कैसे क्या हुआ?’’

इमरान ने सुबकते हुए पूरी घटना उन्हें बता दी, ‘‘साहब, बीती शाम को कोई साढ़े 5 बजे, जिस वक्त मेरी बीवी अंजुम खाना पका रही थी, नीचे कमरे में खेलता हुआ हमारा डेढ़ साल का बेटा अबीर पता नहीं कहां निकल गया. बाद में घंटों की भागदौड़ में तलाश किया तो वह मेरी अम्मा के मकान की छत पर रखी पानी से भरी टंकी में मिला.

‘‘उसे ले कर हम फौरन अस्पताल पहुंचे, लेकिन डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. अब यह अहम सवाल सामने आ रहा है कि घुटने पर चलने वाला बच्चा सीढि़यां कैसे चढ़ा? टंकी का ढक्कन बंद था, कैसे उसे खोला? बाद में किस ने ढक्कन बंद किया? इस से तो यही लगता है कि बच्चे की हत्या की गई है.’’

इमरान की बात सुन कर एसएचओ मीणा भी सकते में आ गए. उन्होंने कहा कि बच्चे की ऐसी खौफनाक मौत की वजह रंजिश के अलावा कुछ नहीं हो सकती. बच्चे को जिस दर्दनाक तरीके से मारा गया है, उस के पीछे कोई अदावत ही हो सकती है. उन्होंने उस से पूछा कि तुम्हारी किसी से कोई रंजिश तो नहीं है?

‘‘नहीं साहब, मेरी या मेरे परिवार की किसी से कोई भी अदावत नहीं है. यह काम तो कोई बददिमाग आदमी ही कर सकता है.’’  इमरान बोला.

घटना इस कदर दहलाने वाली थी कि आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. नतीजतन पूरा शहर कोतवाली की तरफ उमड़ पड़ा. एडिशनल एसपी प्रवीण चंद जैन ने लोगों को समझाबुझा कर विश्वास दिलाया, ‘‘आप निश्चिंत रहें. अपराधी जो भी होगा, जल्दी ही कानून की गिरफ्त में होगा.’’

उन के विश्वास दिलाने पर आहिस्ताआहिस्ता भीड़ छंटने लगी. उधर पुलिस आईजी रविदत्त गौड़ के निर्देश पर एडिशनल एसपी प्रवीण चंद जैन की अगुवाई में मामले की पड़ताल के लिए एसएचओ हंसराज मीणा समेत एक दरजन पुलिसकर्मियों को एक टीम में शामिल किया गया.

आईजी के निर्देश पर मजिस्टै्रट बोर्ड का गठन किया गया. बोर्ड ने इमरान तथा उस के परिवार की सहमति पर अबीर का शव कब्रिस्तान से निकाल कर उस का पोस्टमार्टम करवाया.

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट चौंकाने वाली थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्चे को टंकी के पानी में जबरन डुबोए रखा गया था. नतीजतन बच्चे ने छटपटाते हुए दम तोड़ा था. रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि बच्चा किसी साजिश का शिकार हुआ है.

मामले की पड़ताल को ले कर पुलिस ने 3 बातों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. पहला— वारदात के दिन घरपरिवार में महिलाओं और बच्चों के अलावा कोई मर्द नहीं था. दूसरा— किसी बाहरी शख्स की घर में आवाजाही तो कतई नहीं थी. तीसरा— कुछ अरसा पहले अबीर की चाची सोबिया ने गुस्से में बच्चे को बुरी तरह खरोंच दिया था. इस पर परिवार में भूचाल आ गया था. पूरे परिवार ने उस की लानतमलामत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

अबीर भी इस घटना से इस कदर सहम गया था कि सोबिया के करीब जाने से भी डरता था. पुलिस को सुराग मिल गया था. लेकिन फिलहाल पुलिस घर वालों से पूछताछ करने से कतरा रही थी.

दरअसल, एक तरफ तो परिवार सदमे में था, दूसरी तरफ रमजान चल रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई थी. किस से पूछताछ की जाए और सिलसिले की शुरुआत कैसे की जाए? जबकि दूसरी तरफ मीडिया का भी जबरदस्त दबाव था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए बीच का रास्ता अपनाते हुए एक एएसआई और महिला पुलिसकर्मियों को सादा वेशभूषा में परिवार के लोगों की निगरानी में लगा दिया. पुलिस परिवार के हर सदस्य के तौरतरीकों पर नजर गड़ाए हुए थी.

इस दौरान अबीर की चाची सोबिया की गतिविधियों ने संदेह पैदा कर दिया. सोबिया घटना वाले दिन से लगातार सामने वाले मकान में रहने वाले 3 बच्चों से ज्यादा मिलजुल रही थी और घर में चल रही हलचल का ब्यौरा पूछ रही थी.

पुलिस ने बच्चों को बुला कर सोबिया से मिलने की वजह पूछी तो बच्चों के चेहरे फक पड़ गए. उन्होंने पलभर में सारा रहस्य उगल दिया. पुलिस के सामने सोबिया का चेहरा बेनकाब हो गया था. अफसरों ने जब सोबिया से सच उगलवाने के लिए पुलिसिया अंदाज अपनाया तो वह टूट गई और सब कुछ सच उगलने लगी.

सोबिया के मुंह से हत्याकांड का सच सुन कर पुलिस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. डेढ़ वर्षीय मासूम बालक की निर्मम हत्या करने वाली एक महिला है और वह भी सगी चाची… यह सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए. सोबिया द्वारा पुलिस को दिए गए बयान से कहानी इस प्रकार सामने आई—

राजस्थान के शहर कोटा के रामपुरा इलाके के आखिरी छोर पर लाडपुरा में एक मुसलिम बाहुल्य बस्ती है कर्बला. इसी बस्ती में शबाना मंजिल के पास इमरान अंसारी अपनी बीवी अंजुम और डेढ़ वर्षीय बेटे अबीर के साथ करीब 21 लोगों के कुनबे के बीच रहता था.

इमरान अंसारी कोटा नगर निगम में नौकरी करता था. उसे अपने अब्बू मुस्तकीम अहमद की मौत के बाद निगम में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी. इमरान 9 भाइयों में सब से बड़ा था. उस से छोटे भाई का नाम जीशान अहमद था. पिता की विरासत में उस का भी बराबर का हक था.

हालांकि सभी भाइयों ने अब्बू की मौत के बाद इमरान के लिए नौकरी की रजामंदी दे दी थी. लेकिन दिली तौर पर जीशान चाहता था कि पिता के करीब वो ज्यादा था. इसलिए अब्बू की नौकरी पाने का पहला हकदार वह था.

जीशान अहमद की बीवी सोबिया इस बात से खफा थी और गाहेबगाहे अपने शौहर को उकसाती रहती थी कि इस तरह खामोश रहने से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला.

आखिर बीवी की ख्वाहिशों ने जोर मारा तो जीशान भी उखड़ गया. बिफरते हुए उस ने कह दिया, ‘‘भाईजान, वालिद की खिदमत जिस तरह मैं ने की, उस के मद्देनजर उन की नौकरी का हकदार मैं हुआ. आप तो नाजायज रूप से इस पर काबिज हो गए.’’

इमरान जानता था कि जीशान गलत नहीं है. लेकिन निगम की आरामपसंद नौकरी और अच्छीखासी पगार का लालच उस के दिलोदिमाग पर पूरी तरह हावी हो चुका था. ऐसे में नौकरी के हाथ से निकल जाने की सोच भी उस के लिए गमजदा करने वाली थी.

इमरान यह भी जानता था कि जीशान दिमागी तौर पर ज्यादा तेजतर्रार नहीं है. लेकिन जिस तरह वो बदसलूकी पर आमादा है, उस के पीछे पूरी तरह उस की बीवी सोबिया की भड़काऊ कोशिशें हैं.

इमरान समझदार था. उस ने तनिक ठंडे दिमाग से काम लिया. उस ने पूरी तरह दरियादिली दिखाते हुए कहा, ‘ठीक है भाई, महज नौकरी के लिए भाइयों की मोहब्बत में फर्क नहीं आना चाहिए. लेकिन रजामंदी के कागज पर दस्तखतों के बाद ही मुझे नौकरी मिली है. अब नौकरी तुम्हारे नाम करवाने के लिए फिर सब कुछ नए सिरे से लिखनापढ़ना होगा. पता नहीं इस काररवाई में कितना वक्त लग जाए? अफसर इस से खफा भी हो सकते हैं, नतीजतन घरेलू झगड़े के मद्देनजर नौकरी खटाई में भी पड़ सकती है. फिर तो दोनों भाई खाली हाथ रह जाएंगे.’’

इमरान ने थोड़ी समझाइश करते हुए कहा, ‘‘ऐसा है भाई, मैं तुम्हें माली इमदाद करता रहूंगा और नौकरी भी घर में ही बनी रहेगी.’’ जीशान मान गया, लेकिन इमरान अपने वादे पर खरा नहीं उतरा.

अपने शौहर जीशान अहमद की नौकरी हजम करना और आर्थिक मदद के वादे से मुकरना सोबिया के दिल में कील की तरह चुभ गया. रंजिश के कोढ़ में खुजली तब पैदा हुई जब नौकरी और ऊपरी आमदनी ने इमरान और उस की बीवी अंजुम के रहनसहन और बरताव में भी तब्दीली पैदा कर दी.

कहते हैं कि औरत ही औरत की सब से बड़ी दुश्मन होती है. इस कहावत को अंजुम के सोबिया के प्रति नफरत के बरताव ने भी रंजिश के शोलों को हवा दी. परिवार में किसी भी मसले पर इमरान और अंजुम को अहमियत दी जाती थी, यह सोबिया के लिए बरदाश्त से बाहर हो गया था. उसे लगता था कि परिवार में उस की कद्र नहीं है.

उस के 2 बेटों की अपेक्षा इमरान के बेटे अबीर को जिस तरह हर किसी का प्यारदुलार मिलता था, वह उस की आंखों की किरकिरी बन गया था.

खुंदक की वजह से वह यह नहीं समझ पाती थी कि अबीर जितना मासूम और खूबसूरत लगता है, उस की वजह से वो हर किसी का लाडला था. एक दिन तो अबीर खेलते हुए उस के दुपट्टे को खींचने लगा तो सोबिया इस कदर गुस्साई कि उस ने अबीर को बुरी तरह नोचते हुए खून भी निकाल दिया.

सोबिया के लिए यह फितूर बड़ा महंगा पड़ा. नतीजतन पूरे परिवार ने उस की जबरदस्त लानतमलामत कर दी. सरेआम बेइज्जती का यह कड़वा घूंट सोबिया को बरदाश्त नहीं हुआ. इस घटना ने रंजिश के शोलों को भड़काने में जबरदस्त हवा दी और वह बदला लेने पर आमादा हो गई.

वह बखूबी जानती थी कि मां की ममता ऐसी होती है कि वह अपनी औलाद को जिगर का टुकड़ा मानती है और लख्तेजिगर को ही खत्म कर दिया जाए तो औरत एक तरह से ताउम्र के लिए लहूलुहान हो जाती है.

सोबिया अंजुम को ऐसा ही सबक सिखाना चाहती थी. नतीजतन उस ने अबीर को ही अपना निशाना बनाया. अबीर की हत्या का शक उस पर न हो, इसलिए उस ने पड़ोस के 3 बच्चों को अपनी योजना में शामिल किया. तीनों बच्चों का उस की योजना में शामिल होना उन की मजबूरी थी.

दरअसल, तीनों बच्चे गलत सोहबत की वजह से सोबिया के जाल में फंसे हुए थे. बच्चों की करतूतों की राजदार सोबिया ने बच्चों को डराते हुए कहा कि अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारे वालिदैन के सामने तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा खोल दूंगी. इस कारण बच्चे पूरी तरह से सोबिया की मुट्ठी में थे.

पहले सोबिया ने अबीर को नदी में फेंक आने की योजना बनाई, लेकिन बच्चे इस में जोखिम बता कर बिदक गए. उन का कहना था कि बच्चे को नदी तक ले जाने में वे किसी की भी निगाह में आ सकते हैं.

बाद में उस ने अबीर को पानी की टंकी में डालने की योजना बनाई. उस ने इस के लिए सोमवार 25 अप्रैल, 2022 का दिन चुना. उस समय परिवार का कोई मर्द घर पर नहीं होता. उस ने सोमवार को दोपहर से शाम के बीच का वक्त चुना.

शाम को तकरीबन साढ़े 5 बजे अंजुम जब सामने वाले बड़े मकान में बनी रसोई में खाना बना रही थी और अबीर नीचे मकान में खेल रहा था. उसी दौरान उन 3 बच्चों में से एक अबीर को ले कर दूसरी मंजिल पर गया. वहां से 2 बच्चे भी उस के साथ हो लिए.

उन्होंने छत पर जा कर 500 लीटर की पानी की टंकी का ढक्कन खोल दिया. फिर डेढ़ साल के अबीर को टंकी में डाल दिया. वारदात के समय सोबिया सामने वाली छत पर खड़ी हो कर इशारों से उन्हें गाइड कर रही थी.

अबीर को पानी की टंकी में डालने के बाद बच्चे घबरा गए. एक बार तो उन्होंने अबीर को बाहर निकाल लिया, लेकिन सोबिया ने सामने वाली छत से इशारों में उन बच्चों को धमकाया. जिस से बच्चे डर गए और अबीर को फिर से पानी की टंकी में डाल दिया.

इस के बाद बच्चे नीचे आ गए. साबिया ने सामने वाले मकान से बड़े मकान में आ कर टंकी का ढक्कन चैक किया. वह पूरी तरह से नहीं लगा था. सोबिया ढंग से टंकी का ढक्कन लगा कर चली गई.

इस बीच जब मां अंजुम को अबीर नजर नहीं आया तो उस ने परिवार की औरतों के साथ उसे तलाशना शुरू किया. छत की 2 टंकियों को चैक किया. अबीर शाम को साढ़े 5 बजे करीब गायब हुआ था. रात को साढ़े 7 बजे के आसपास पानी की टंकी में उस का शव मिला.

पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 120बी के तहत सोबिया को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया और तीनों बच्चों को पुलिस ने बेकुसूर मान कर छोड़ दिया.

अपने संगीन अपराध के बावजूद सोबिया के चेहरे पर शर्मिंदगी तक नहीं दिख रही थी. उस ने इस तर्क के साथ जमानत पर बाहर आने की कोशिश की कि मुझे झूठा फंसाया गया है. लेकिन उस का यह घिसा हुआ तर्क नहीं चला. सोबिया अभी न्यायिक अभिरक्षा में है. पुलिस उस के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है.

 

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी- भाग 3

देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’

पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’

स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.

उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन  लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.

अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.

अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’

तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’

डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’

दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.

आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’

1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.

रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’

वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.

घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’

हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.

अनुराग अपनी मां के  साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.

फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.

इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.

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