आम रास्ता नहीं : क्या था उस रास्ते का राज

सुरेश शहर की धान मंडी में गेहूं की बोरियां बेच कर लौट रहा था. अभी उसे कई चौराहे व छोटीबड़ी सड़कें पार कर के अपने गांव पहुंचना था.

वह मंडी रोड से सीधा दिल्ली रोड पर आ गया था. यहां से परली तरफ उस के गांव को जाने वाली सड़क थी. इन दोनों के बीच की जगह में एक शानदार सरकारी इमारत थी. इस इमारत के चारों ओर घास से लदा हराभरा मैदान और चारदीवारी थी.

चारदीवारी के छोर पर बड़ा सा लोहे का गेट था, जहां एक चौकीदार खड़ा था. इस गेट से अंदर हो कर दूसरे गेट से बाहर गांव की ओर जाने वाली सड़क पर निकला जा सकता था.

यह आम रास्ता नहीं था, लेकिन छोटा जरूर था. लिहाजा, सुरेश ने डेढ़ मील पैदल न चल कर इमारत से हो कर जाने वाले रास्ते से ही गुजरना ठीक समझा.

सुरेश गेट के पास जा कर थोड़ी देर तक खड़ा देखता रहा. 2 औरतें और 4 आदमी एकएक कर के निकल गए थे. उन में से 3 ने तो चौकीदार के हाथ में कुछ दिया था और 3 को चौकीदार ने सलाम ठोंका था.

सुरेश भी मौका देख कर अंदर घुसने लगा तो चौकीदार की रोबदार और कड़क आवाज गूंजी, ‘‘ऐ रुको.’’

वह ठिठक कर वहीं खड़ा हो गया.

चौकीदार अपने बेंत को जोर से खटखटाता हुआ उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘क्या बात है, बिना इजाजत लिए अंदर कैसे जा रहे हो?’’

‘‘इधर से उधर जाना था,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘इस बिल्डिंग से हो कर? क्या तुम ने बोर्ड नहीं पढ़ा कि बिना इजाजत अंदर जाना मना है,’’ चौकीदार बोला.

‘‘हां, जा तो रहा था, पर बोर्ड नहीं पढ़ा,’’ सुरेश ने जवाब दिया.

‘‘अंदर किस से मिलना है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘किसी से भी नहीं,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘किसी से भी नहीं मिलना तो क्या इसे आम रास्ता समझ रखा है?’’ चौकीदार ने कड़क लहजे में पूछा.

‘‘हां,’’ सुरेश बोला.

‘‘क्या उस पार आगरा रोड पर जाना है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘हां जी, आप ने बिलकुल ठीक समझा.’’

‘‘पर, कानूनन तुम इधर से नहीं जा सकते, क्योंकि यहां घुसना भी जुर्म?है,’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘लेकिन, गैरकानूनन तो जा सकता हूं न?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘ऐ, मेरे सामने गैरकानूनी बात करता है. पता है कि मैं कौन हूं? ऐसी बातें मुझे कतई पसंद नहीं हैं,’’ चौकीदार कानून झाड़ने लगा.

‘‘क्या इस देश में सबकुछ कानून के मुताबिक चलता है? क्या यहां गैरकानूनी कुछ नहीं होता?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘फालतू बकवास कर के क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हो?’’ चौकीदार ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘मैं इस बात को बखूबी जानता हूं, पर आप मुझे अभी उस तरफ जाने दीजिए, वरना मेरी आखिरी बस निकल जाएगी,’’ सुरेश ने खुशामद की.

‘‘कहा न, यह आम रास्ता नहीं है.’’

‘‘तो क्या यह खास रास्ता है, खास लोगों के लिए?’’

‘‘हां, तू ऐसा ही समझ ले.’’

‘‘तो फिर आप मुझे भी कुछ देर के लिए खास आदमी मान लीजिए. इस में आप का क्या जाता है?’’

‘‘कैसे मान लूं…’’ चौकीदार कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा इस शहर में कोई कोठीबंगला है या फिर तुम किसी ऊंचे घराने से वास्ता रखते हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम किसी पार्टी के सदस्य हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी क्लब के मैंबर हो, प्रैस क्लब, जिमखाना क्लब, किसी के भी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी भ्रष्टाचार के मामले में तुम्हारा नाम कभी उछला है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी एमपी, एमएलए, सीएम, कैबिनेट मिनिस्टर से कोई पहुंच रखते हो?’’

‘‘मुझे तो इस शहर में कोई नहीं जानता, सिवा धान मंडी के मुनीमों के,’’ सुरेश ने बताया.

‘‘क्या तुम्हें बौडीगार्ड मिले हुए हैं?’’

‘‘मिले होते तो क्या अकेला यहां मक्खी मारने के लिए खड़ा होता?’’

‘‘माफिया से सांठगांठ है?’’

‘‘जी, वह भी नहीं है.’’

‘‘किसी का खून किया है या फिर कभी जेल गए हो?’’

‘‘क्या मैं आप को शक्ल से खूनी लगता हूं?’’

‘‘शक्ल से तो तुम मासूम लगते हो, लेकिन खूनी के चेहरे पर नहीं लिखा होता कि उस ने खून किया है.’’

‘‘आप सही कह रहे हैं, लेकिन मैं ने कोई खून नहीं किया.’’

‘‘क्या तुम्हारे पास काला पैसा है?’’

‘‘काला क्या, जो सफेद भी है वह भी थोड़ा सा है.’’

‘‘तो फिर तुम खास आदमी नहीं हो सकते. मैं तुम्हें खास आदमी मान कर खास आदमियों की इज्जत धूल में नहीं मिलाऊंगा,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘तो क्या खास आदमी ऐसे लोग होते हैं?’’

‘‘हां, बिलकुल ऐसे ही होते हैं.’’

तभी अचानक चौकीदार को खयाल आया कि वह एक बेहद मामूली आदमी के हर सवाल का जवाब दिए जा रहा?है, जैसे बहुत फुरसत में हो. वह खामोश हो गया.

‘‘आप कुछ खास लोगों के बारे में बता रहे थे न,’’ चौकीदार को अचानक चुप हुआ देख कर सुरेश ने कहा.

‘‘हां बता तो रहा था, लेकिन यह जरूरी नहीं कि मैं सारी बातें बताऊं.’’

‘‘अजी, आप तो नाराज हो गए. चलिए, बातें खत्म करते हैं. अब मुझे इधर से निकलने दीजिए.’’

‘‘बिलकुल नहीं. तुम इतनी जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं जल्दी घर नहीं पहुंचा तो बीवीबच्चे चिंता करेंगे. मुझे कई जरूरी काम भी निबटाने हैं.’’

‘‘इस मुल्क में जितने गैरजरूरी लोग हैं, उन्हें ही जरूरी काम होते हैं.’’

‘‘आप अब हद से आगे बढ़ रहे?हैं,’’ सुरेश गुस्से से बोला.

‘‘मेरी हद क्या है, यह तुम तय करोगे?’’ चौकीदार भी सख्त लहजे में बोला.

कुछ पलों तक सुरेश सख्त नजरों से उसे देखता रहा, फिर चौकीदार बोला, ‘‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं इस समय ड्यूटी पर हूं. यहां की सिक्योरिटी का जिम्मा भी मेरा है. तुम्हें शायद पता नहीं, इस बिल्डिंग में बड़े लोगों की मीटिंग चल रही?है. उन की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी भी मेरी ही है.’’

‘‘किस मुद्दे को ले कर मीटिंग चल रही है?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘मीटिंग के लिए किसी मुद्दे की जरूरत नहीं होती’’

‘‘बिना मुद्दों के मीटिंग?’’ सुरेश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘इस राजधानी में एक करोड़ लोग रहते हैं. मुद्दे भी एक करोड़ ही समझो. यहां मुद्दों की क्या कमी है?’’

‘‘फिर भी, कुछ तो मुद्दा होगा.’’

‘‘हां, फिलहाल चायनाश्ते के साथ मीटिंग इस मुद्दे पर हो रही है कि अगले हफ्ते किस मुद्दे को ले कर मीटिंग की जाए.’’

इसी बीच सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया. उस ने गेट में घुसने की कोशिश की.

उसे घुसता देख कर चौकीदार कड़क लहजे में बोला, ‘‘ऐ रुको, यह आम रास्ता नहीं है.’’

उस आदमी ने जेब में से 10 रुपए का सिक्का निकाला. उसे अपने हथेली में फंसाते हुए चौकीदार के पास अपने हाथ को ले कर बोला, ‘‘कैसे हो दोस्त?’’

चौकीदार मुसकराया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर आदमी के हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अच्छा हूं दोस्त, बहुत दिनों बाद मिले हो.’’

इस बीच 10 रुपए का वह सिक्का चौकीदार की हथेली में चला गया था. फिर लोहे का गेट पूरा खुला और खास रास्ता, खास आदमी के लिए खुल गया. इधर 10 रुपए का सिक्का चौकीदार की जेब में पहुंच गया था.

अब सुरेश की समझ में सारी बात आ गई थी. उस ने जेब में हाथ डाल कर 5 रुपए का सिक्का निकाला. सिक्का अपने हाथ में रख कर चौकीदार की ओर बढ़ाने लगा कि तभी चौकीदार बोला, ‘‘अब क्यों शर्मिंदा करते हो यार. अब तुम जाओ. देखो, मैं ने तुम्हारे लिए गेट खोल रखा है. यह आम रास्ता तो नहीं है, फिर भी अब तुम मेरे खास हो.’’

सुरेश ने चौकीदार की तरफ देखा. वह काफी शर्मिंदा सा लग रहा था. पर यही तो उस की ऊपरी कमाई थी, जो खास रास्ते से गुजरने वाले खास लोगों से उसे मिलती थी.

सुरेश उस का शुक्रिया अदा कर के अपने रास्ते की ओर निकल गया.

जब फूटफूट कर रो पड़े थे ये नेता जी, वीडियो हुए वायरल

नेताओं को भाषण देते हुए तो आपने खूब सुना होगा. अपने भाषणों में अच्छा बुरा सब बोलते हुए देखे गए है, लेकिन कभी कभी नेता मंच पर पुराने किस्से या नेताओं को याद कर इमोशनल भी हो जाते है. ऐसे कई नेता जी है जिनकी वीडियो सोशल मीडिया पर रोने की खूब वायरल होती रहती है. आप भी देखें एक झलक कि आखिर क्यों और कहां रो पड़े ये नेतगण.

 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हुए थे इमोशनल, कर दी थी सबकी आंखे नम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कई बार इमोशनल होते देखा गया है. उनकी कई ऐसी वीडियोज है जिनमें वे काफी इमोशनल होते दिखे है. मोदी कई बार इंटरव्यू में भी कई किस्से सुनाते हुए भावुक नजर आए है. लेकिन पहली दफा जब नरेंद्र मोदी संसद भवन के अंदर गए थे. तो पहले तो सेंट्रल हौल में जाने से पहले सीढियों पर झुके और फिर अपनी पार्टी के सदस्यों को संबोधित करते हुए रो पड़े.

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वैशाली में चिराग पासवान ने रो रो के कर लिया था बुरा हाल

चिराग पासवान वैशाली में एक बार काफी भावुक हो गए थे. वे बुरी तरह रो पड़े थे, हालांकि मंजर ही कुछ ऐसा था. राम विलास पासवान की 76वीं जयंती के मौके पर जब लोगों के आंसू छलके, तब चिराग पासवान भी फूट फूट कर रोने लगे. हालांकि वे इससे पहले भी कई बार विपक्ष के वार पर बोलते हुए भी इमोशनल हो चुके है.

मंच पर फूट फूट कर रोने लगे थे पप्पू यादव

राजेश रंजन, जिन्हें ‘पप्पू यादव’ के नाम से जाना जाता है. एक नेता है. जो अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते है. हालांकि उन्हे हमेशा बेबाकी से बोलते हुए देखा है. लेकिन उनके साथ ऐसा भी हुआ है कि वे बी मंच पर बोलते बोलते इमोशनल हो गए. जी हां, पुरनिया में भाषण के दौरान पप्पू यादव रोने लगे थे. उन्होंने कहा था कि मेरी पार्टी खत्म की, मुझसे नफरत और अब ऐसी दुश्मनी.. ये बातें कर पप्पू यादव रो पड़े थे.

भाषण के दौरान रो पड़े थे राहुल गांधी

राहुल गांधी ने एक युवा नेता के रुप में सबके दिलों पर राज किया. आज भी राहुल गांधी को चुनावी रैलियों में देखा जाता है कभी मंच पर, कभी रोड़ पर. राहुल गांधी भी एक बार काफी इमोशनल हो गए थे. जब वे लोकसभा में मंच पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे. वे मंच पर कुछ ऐसे गहरे शब्द कह गए. जिनसे वे भावुक हो उठे.

रातों की नींद उड़ा देंगी ये हिंदी Horror Web Series

अगर आप Horror पसंद करते हैं और डर को दूर भगाना चाहते हैं तो हौटेंड वेब सीरीज देखना बिलकुल न भूलें. एक से बढ़कर एक वेबसीरीज आ रही है इन दिनों ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर, जिनकी कहानियां रोमांच से भरी होती है. इन वेब सीरीज में आपको कंटैंट भी बिलकुल हटके देखने को मिलेगा. ये वेब सीरीज नेटफिलिक्स, जी5 और अमेजन प्राइम पर देखने को मिलेगी.

 

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भूतों के डर से बाहर आना है तो देखें वेब सीरीज ‘परछाई’

जादुई, रहस्यमय, रोमांचक कहानियों के लिए मशहूर लेखक रस्किन बौन्ड की भूतों की कहानियों पर वेब सीरीज बन रही है. ZEE5 पर घोस्ट सीरीज ‘परछाई’ (Parchayee) का पहला एपिसोड ‘द घोस्ट इन द गार्डन’ 15 जनवरी को रिलीज हो गया. इस कहानी को इतनी खूबसूरती से पिरोया गया है कि डरावनी घोस्ट सीरीज कहना बिल्कुल गलत होगा. बाकी हौरर मूवीज के मुकाबले ये कुछ अलग हटकर है. इसमें भूत के डर को हमारे मन से बहुत ही खूबसूरत तरीके से बाहर निकाल फेंका है.

हौन्टेड विला के ईर्द गिर्द घूमती है ‘टाइपराइटर’ TypeWriter वेब सीरीज की कहानी

इस वेब सीरीज को सुजौय घोष ने निर्देशित किया. इसकी कहानी एक हौन्टेड विला के ईर्द गिर्द घूमती है. धीरेधीरे सीरीज की स्टोरी एक टाइपराइटर से जुड़ती है आगे चल कर ये हौरर जौनर की एक बेहतरीन वेब सीरीज बन जाती है. इस सीरीज को अगर आपने देखा होगा तो आपको लगेगा यह फिल्म एक ‘टाइपराइट मशीन’ जैसी लगती है. Lifestyle

‘बेताल’ ज़ोम्बी हौरर स्ट्रीमिंग सीरीज है

‘बेताल’ Betaal एक भारतीय ज़ोम्बी हौरर स्ट्रीमिंग सीरीज है. जिसमें गांव एक लड़ाई का अखाड़ा बन जाता है, जब ईस्ट इंडिया कंपनी का एक मरा हुआ अधिकारी और जोंबी रेडकोट की उसकी बटालियन आधुनिक सैनिकों की एक टुकड़ी पर हमला करती है. इस सीरीज में विनीत कुमार सिंह, अहाना कुमरा, सुचित्रा पिल्लै लीड रोल में हैं.

‘भ्रम’ Bharam एक साइकोलौजिकल थ्रिलर हौरर वेब सीरीज

भ्रम एक भारतीय हिंदी-भाषा साइकोलौजिकल थ्रिलर टीवी सीरीज है, जिसमें नायक PTSD पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर बीमारी का शिकार हो जाता है और एक लंबे समय से भूले हुए सच को उजागर करने के लिए सभी तरह की सीमाओं से गुजरता है. इस सीरीज में एक्ट्रेस क्लकि भूत का रोल प्ले करती दिखाई देंगी. ये वेब सीरीज भारत में जी5 पर स्ट्रीम होती है.

हौंटिंग औफ हिल हाउस (Haunting of Hill House)

ये इंग्लिश वेब सीरीज है अगर हिंदी के अलावा इंग्लिश वेब सीरीज देखने का शौक रखते है. तो ये हौरर वेब सीरीज देखना न भूले. इसमें हौंटेड हाउस होता है. यह चार लोगों की कहानी है जो एक अंधेरे और ऐतिहासिक हवेली यानी हिल हाउस में अजीबोगरीब घटनाओं की जांच करने के लिए आते हैं. नायक, एलेनोर वेंस है.

20 साल बाद लौट कर घर आया, पुलिस ने यह सपना सच कराया

यह अकसर होता है कि किसी तरह की नाराजगी या कुछ बनने की फितरत या फिर कुछ नया कर गुजरने की लालसा से बहुत से नौजवान अपने घर परिवार को छोड़ कर निकल पड़ते हैं और फिर उन में से कुछ तो बड़ा मुकाम हासिल कर लेते हैं, मगर ज्यादातर आमतौर पर गुमनाम रह जाते हैं.

यही जिंदगी का एक ऐसा फलसफा है जो यह बताता है कि इनसान में कुछ कर गुजरने की चाह उसे ऊंचाइयों पर पहुंचा देती है. मगर कुछ ऐसे होते हैं जो घर ठिकाना छोड़ कर भटकते रह जाते हैं और कभी कोई मुकाम हासिल नहीं कर पाते हैं और फिर जब कभी अपनों के बीच लौटते हैं तो अपने घर आ कर जो खुशी होती है, उसे शब्दों में कहा नहीं जा सकता. आइए, देखें कुछ ऐसी ही घटनाएं :

पहली घटना

एक नौजवान अपने पिता से नाराज हो कर घर परिवार छोड़ कर चला गया. पत्नी बच्चे सभी थे. 20 साल बाद लौटा तो मध्यवर्गीय इस परिवार के हालात बदल चुके थे और लड़का अपने बूते चार्टर्ड अकाउंटैंट बन गया था.

दूसरी घटना

एक बालक घर परिवार छोड़ कर चला गया, मगर लंबे समय तक दुखों का पहाड़ उठाया. वह जब 25 साल बाद लौटा तो उस के परिवार ने उसे पा कर खुशियां मनाईं और उसे एक नई जिंदगी मिल गई.

तीसरी घटना

एक बालक घर से नाराज हो कर बड़े शहर आ गया. 15 साल बाद जब वह अपने गांव लौटा तो उसे एहसास हुआ उस ने बहुत बड़ी गलती की थी.

पुलिस की अनोखी पहल

आप को बताते हैं एक ऐसे नौजवान की कहानी जो 20 साल बाद घर लौटा और इस में एक पुलिस अधीक्षक ने मददगार बनने का रोल निभाया.

झारखंड के गढ़वा जिले में पुलिस की एक अनोखी पहल देखने को मिली है, जहां पुलिस अधीक्षक दीपक पांडेय ने 20 साल से बिछड़े एक बेटे को उस के मांबाप से मिलाया.

दरअसल, यह मामला गढ़वा जिले के रंका थाना क्षेत्र के पिंडरा गांव का है, जहां 20 साल पहले रामजनम नाम का शख्स काम की तलाश में हरियाणा के पलवल जिले चला गया था. वहां उस की मुलाकात एक परिवार से हुई. परिवार ने उस सीधे सादे लड़के को अपने घर पर रख लिया.

देखते ही देखते 20 साल बीत गए, लेकिन रामजनम घर वापस नहीं लौटा. घर वालों को लगा उस का बेटा अब इस दुनिया में नहीं है. वहीं रामजनम ने भी अपने मां बाप से मिलने की उम्मीद छोड़ दी थी.

अचानक रामजनम को अपने घर की याद आई तो उस ने यह बात अपनी मकान मालकिन को बताई जिस के बाद उस औरत ने गूगल से गढ़वा पुलिस का सरकारी नंबर निकाला और मोबाइल से बात करते हुए रामजनम की तसवीर शेयर की.

पुलिस अधीक्षक दीपक पांडेय ने तत्काल रंका थाना को फोटो गांव में भेज कर पता लगाने का निर्देश दिया, जिस के बाद थाना प्रभारी ने गांव में पहुंच कर फोटो की पहचान उस लड़के के मां बाप से कराई. मां बाप ने भी अपने बेटे को पहचान लिया, जिस के बाद पुलिस ने रंका थाना में मां बाप को ले जा कर उन के बेटे रामजनम से वीडियो काल से बात कराई.

रामजनम और उस के मां बाप वीडियो काल से बात कर के भावुक हो उठे. दोनों की आंखों में आंसू आ गए. इस घटना के बाद गढ़वा पुलिस की इस पहल की चारों तरफ तारीफ हो रही है.

पुलिस अधीक्षक दीपक पांडेय ने कहा, “हरियाणा से एक औरत का मेरे सरकारी नंबर पर फोन आया था. उन्होंने बताया कि एक नौजवान 12 साल से उन के यहां काम कर रहा है, जो गढ़वा जिले के रंका थाने के पिंडरा गांव का रहने वाला है. औरत द्वारा उस नौजवान की तसवीर भी भेजी गई थी. पुलिस के द्वारा उस गांव में जा कर उस की पहचान रामजनम सिंह के रूप में की गई, जो 20 साल पहले कमाने के लिए बाहर गया था और कभी वापस नहीं लौटा. उस के माता पिता को थाने बुला कर पुलिस ने वीडियो काल से बात कराई, जिस में रामजनम और उस के माता पिता दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया. घर और गांव के लोग उसे मरा समझ बैठे थे, लेकिन इस वाकिए ने परिवार के साथ साथ गांव वालों के चेहरे पर भी खुशी ला दी.

पति की वफादारी का इन बातों से लगाएं पता, हर पत्नी के लिए है जरूरी

एक पतिपत्नी का रिश्ता सिर्फ भरोसे से बना होता है, जहां सिर्फ प्यार और विश्वास की नींव पर ये रिश्ता कायम होता है. इसलिए आपका पति आपके साथ कितना वफादार है ये बात जानना हर वाइफ के लिए जरूरी है और इस बात का पता सिर्फ कुछ बातों से ही लगाया जा सकता है. तो इन बातों पर आप जरूर ध्यान दें अगर पति आपके साथ ऐसा ही करता है तो आपका पति वफादार है. अगर ऐसा नहीं है तो आपको अपनी आंख खोलने की जरूरत है.

 

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फोन में नहीं लगाता है कोई लौक

वैसे सभी अपनी लाइफ पर्सनल ज्यादा रखना पसंद करते है. चाहे वे पति- पत्नी ही क्यों ने हो, लेकिन रिश्ते में विश्वास के लिए ये जरूरी है कि आपका पति आपको फोन का लौक जरूर बता कर रखें. अगर वे ऐसा करते है तो आपका पति वफादार है.

अपनी सारी बातें शेयर करता है

पार्टनर को जानने का सबसे अच्छा एक तरीका ये भी है कि वे आपसे कितनी बातें करता है. क्या वे अपनी सारी बातें शेयर करता है या सोच सोच कर आपसे वे बातें करता है, अगर वे अपनी सारी बातें आपको बताता है तो पति वफादार है. Husband wife

अपने फ्रेंड सर्किल में ले जाना करता है पसंद

पार्टनर हमेशा ऐसा होना चाहिए. जो अपने फ्रेंड्स सर्किल में आपको साथ ले जाना पसंद करे. इससे पता चलता है कि आपका पार्टनर आपको बाहर अपने साथ ले जाकर अच्छा महसूस करते है. इसका मतलब ये है कि वे अपने दोस्तों में आपको मिलवाने से खुशी महसूस करते है.

आंखों में आंख मिलाकर करते है बातें

माना जाता है जो इंसान दिल का साफ होता है वह हमेशा आंखों से आंख मिलाकर बात करता है. अगर आपके पति आंखें मिलाकर पूरे विश्वास के साथ आपसे बात करते हैं. तो इसका मतलब वह लौयल और वफादार है.

मेरा एक्स बौयफ्रेंड मिलना चाहता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 33 साल की विवाहिता हूं. पति और 2 बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रही हूं. शादी से पहले मेरी जिंदगी में एक युवक आया था, जिस से मैं प्यार करती थी, पर किन्हीं वजहों से हमारी शादी नहीं हो पाई थी. अब उसका भी अपना परिवार, पत्नी व बच्चे हैं. इधर कुछ दिनों पहले फेसबुक पर हम दोनों मिले. मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ और अब हम घंटों बातचीत, चैटिंग करते हैं. वह मुझ से मिलना चाहता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

वह आप का अतीत था. अब आप दोनों के ही रास्ते अलग हैं. पति, परिवार, बच्चे व सुखद जीवन है. पुरानी यादों को ताजा कर आप दोनों की नजदीकियां दोनों ही परिवारों की खुशियों पर ग्रहण लगा सकती हैं.
इसलिए बेहतर यही होगा कि इस रिश्ते को अब आगे न बढ़ाया जाए. हां, अगर वह एक दोस्त के नाते आप से मिलना चाहता है, तो इस में कोई बुराई नहीं. आप घर से बाहर किसी रेस्तरां, पार्क आदि में उस से मिल सकती हैं. बुनियाद दोस्ती की हो तो मिलने में हरज नहीं, बशर्ते मुलाकात मर्यादित रहे. हद न पार की जाए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

चाहत : दहेज के लालच में न पड़ता तो सुमन रमण की होती

यह सुन कर मैं पसोपेश में पड़ गया कि अपनी पत्नी को साथ ले कर जाना ठीक रहेगा कि नहीं. रमण हमारे इलाके का ही है. उस का गांव मेरे गांव से 3 किलोमीटर दूर है. इधर कई साल से हमारा मिलनाबोलना तकरीबन बंद ही था. अब मैं प्रमोशन ले कर उस के औफिस में उस के शहर में आ गया तो हमारे संबंध फिर से गहरे होने लगे थे. पिछले 20 सालों में हमारे बीच बात ही कुछ ऐसी हो गई थी कि हम एकदूसरे को अपना मुंह दिखाना नहीं चाहते थे.

रमण और मैं 10वीं क्लास तक एक ही स्कूल में पढ़े थे. यह तो लाजिम ही था कि हमें एक ही कालेज में दाखिला लेना था, क्योंकि 30 मील के दायरे में वहां कोई दूसरा कालेज तो था नहीं. हम दोनों रोजाना बस से शहर जाते थे.

रमण अघोषित रूप से हमारा रिंग लीडर था. वह हम से भी ज्यादा दिलेर, मुंहफट और जल्दी से गले पड़ने वाला लड़का था.

पढ़ाई में वह फिसड्डी था, पर शरीर हट्टाकट्टा था उस का, रंग बेहद गोरा.

बचपन से ही मुझे कहानीकविता लिखने का चसका लग गया था. मजे की बात यह थी कि जिस लड़की सुमन के प्रति मैं आकर्षित हुआ था, रमण भी उसी पर डोरे डालने लगा था. हमारी क्लास में सुमन सब से खूबसूरत लड़की थी.

हम लोग तो सारे पीरियड अटैंड करते, मगर रमण पर तो एक ही धुन सवार रहती कि किसी तरह जल्दी से कालेज की कोई लड़की पट जाए. अपनी क्लास की सुमन पर तो वह बुरी तरह फिदा था. खैर, हर वक्त पीछे पड़े रहने के चलते सुमन का मन किसी तरह पिघल ही गया था.

सुमन रमण के साथ कैफे जाने लगी थी. इस कच्ची उम्र में एक ही ललक होती है कि विपरीत लिंग से किसी तरह दोस्ती हो जाए. आशिकी के क्या माने होते हैं, इस की समझ कहां होती है. रमण में यह दीवानगी हद तक थी.

एक दिन लोकल अखबार में मेरी कहानी छपी. कालेज के इंगलिश के लैक्चरर सेठ सर ने सारी क्लास के सामने मुझे खड़ा कर के मेरी तारीफ की.

मैं तो सुमन की तरफ अपलक देख रहा था, वहीं सुमन भी मेरी तरफ ही देख रही थी. उस समय उस की आंखों में जो अद्भुत चमक थी, वह मैं कई दिनों तक भुला नहीं पाया था. पता नहीं क्यों उस लड़की पर मेरा दिल अटक गया था, जबकि मुझे पता था कि वह मेरे दोस्त रमण के साथ कैफे जाती है. रमण सब के सामने ये किस्से बढ़ाचढ़ा कर बताता रहता था.

सुमन से अकेले मिलने के कई और मौके भी मिले थे मुझे. कालेज के टूर के दौरान एक थिएटर देखने का मौका मिला था हमें. चांस की बात थी कि सुमन मेरे साथ वाली कुरसी पर थी. हाल में अंधेरा था. मैं ने हिम्मत कर के उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया तो बड़ी देर तक उस का हाथ मेरे हाथ में रहा.

रमण से गहरी दोस्ती होने के बावजूद बरसों तक मैं ने रमण से सुमन के प्रति अपना प्यार छिपाए रखा. डर था कि क्या पता रमण क्या कर बैठे. कहीं कालेज आना न छोड़ दे. सुमन के मामले में वह बहुत संजीदा था.

एक दिन किसी बात पर रमण से मेरी तकरार हो गई. मैं ने कहा, ‘क्या हर वक्त ‘मेरी सुमन’, ‘मेरी सुमन’ की रट लगाता रहता है. यों ही तू इम्तिहान में कम नंबर लाता रहेगा तो वह किसी और के साथ चली जाएगी.’

रमण दहाड़ा, ‘मेरे सिवा वह किसी और के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती.’

मैं ने अनमना हो कर यों ही कह दिया, ‘कल मैं तेरे सामने सुमन के साथ इसी कैफे में इसी टेबल पर कौफी पीता मिलूंगा.’ हम दोनों में शर्त लग गई.

मैं रातभर सो नहीं पाया. सुमन ने अगर मेरे साथ चलने से मना कर दिया तो रमण के सामने मेरी किरकिरी होगी. मेरा दिल भी टूट जाएगा. मगर मुझे सुमन पर भरोसा था कि वह मेरा दिल रखेगी.

दूसरे दिन सुमन मुझे लाइब्रेरी से बाहर आती हुई अकेली मिल गई. मैं ने हिम्मत कर के उस से कहा कि आज मेरा उसे कौफी पिलाने का मन कर रहा है.

मेरे उत्साह के आगे वह मना न कर सकी. वह मेरे साथ चल दी. थोड़ी देर बाद रमण भी वहां पहुंच गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. खैर, कुछ दिनों बाद वह बात आईगई हो गई.

सुमन और मेरे बीच कुछ है या हो सकता है, रमण ने इस बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी और उसे कभी इस बात की भनक तक नहीं लगी.

कालेज में छात्र यूनियन के चुनावों के दौरान खूब हुड़दंग हुआ. रमण ने चुनाव जीतने के लिए दिनरात एक कर दिया. वह तो चुनाव रणनीति बनाने में ही बिजी रहा. वह जीत भी गया.

चुनाव प्रचार के दौरान मुझे सुमन के साथ कुछ पल गुजारने का मौका मिला. न वह अपने दिल की बात कह पाई और न ही मेरे मुंह से ऐसा कुछ निकला. दोनों सोचते रहे कि पहल कौन करे.

जब कभी कहीं अकेले सुमन के साथ बैठने का मौका मिलता तो हम ज्यादातर खामोश ही बैठे रहते.

एक दिन तो रमण ने कह ही दिया था कि तुम दोनों गूंगों की अपनी ही कोई भाषा है. सचमुच सच्चे प्यार में चुप रह कर ही दिल से सारी बातें करनी होती हैं.

मैं एमए की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी चला गया. रमण ने बीए कर के घर में खेती में ध्यान देना शुरू कर दिया. साथ में नौकरी के लिए तैयारी करता रहता.

मैं महीनेभर बाद गांव आता तो फटाफट रमण से मिलने उस के गांव में चल देता. वह मुझे सुमन की खबरें देता.

रमण को जल्दी ही अस्थायी तौर पर सरकारी नौकरी मिल गई. सुमन भी वहीं थी. सुमन के पिता को हार्टअटैक हुआ था, इसीलिए सुमन को जौब की सख्त जरूरत थी.

काफी अरसा हो गया था. सुमन से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई. मौका पा कर मैं उस के कसबे में चक्कर लगाता, उस कैफे में कई बार जाता, मगर मुझे सुमन का कोई अतापता न मिलता.

मेरी हालत उस बदकिस्मत मुसाफिर की तरह थी, जिस की बस उसे छोड़ कर चली गई थी और बस में उस का सामान भी रह गया था.

संकोच के मारे मैं रमण से सुमन के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकता था. रमण के आगे मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता था. मुझे उम्मीद थी कि अगर मेरा प्यार सच्चा हुआ तो सुमन मुझे जरूर मिलेगी.

सुमन को तो उस की जौब में पक्का कर दिया गया. उस में काम के प्रति लगन थी. रमण को 6 महीने बाद निकाल दिया गया.

रमण को जब नौकरी से निकाला गया, तब वह जिंदगी और सुमन के बारे में संजीदा हुआ. उस के इस जुनून से मैं एक बार तो घबरा गया.

अब तक वह सुमन को शर्तिया तौर पर अपना मानता था, मगर अब उसे लगने लगा था कि अगर उसे ढंग की नौकरी नहीं मिली तो सुमन भी उसे नहीं मिलेगी.

इसी दौरान मैं ने सुमन से उस के औफिस जा कर मिलना शुरू कर दिया था. मैं उसे साहित्य के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां बताता. उसे खास पत्रिकाओं में छपी अपनी रोमांटिक कविताएं दिखाता.

रमण ने सुमन को बहुत ही गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था. रमण मुझे कई कहानियां सुनाता कि आज उस ने सुमन के साथ फलां होटल में लंच किया और आज वे किसी दूसरे शहर घूमने गए. सुमन के साथ अपने अंतरंग पलों का बखान वह मजे ले कर करता.

पहले रमण का सुमन के प्रति लापरवाही वाला रुख मुझे आश्वस्त कर देता था कि सुमन मुझे भी चाहती है, मगर अब रमण सच में सुमन से प्यार करने लगा था. ऐसे में मेरी उलझनें बढ़ने लगी थीं.

फिर एक अनुभाग में मुझे और रमण को नियुक्ति मिली. रमण खुश था कि अब वह सुमन को प्रपोज करेगा तो वह न नहीं कहेगी. मैं चुप रहता.

मैं सोचने लगा कि अब अगर कुछ उलटफेर हो तभी मेरी और सुमन में नजदीकियां बढ़ सकती हैं. हमारा औफिस सभी विभागों के बिल पास करता था. यहां प्रमोशन के चांस बहुत थे. मैं विभागीय परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया.

एक दिन मैं और रमण साथ बैठे थे, तभी अंदर से रमण के लिए बुलावा आ गया.

5 मिनट बाद रमण मुसकराता हुआ बाहर आया. उस ने मुझे अंदर जाने को कहा. अंदर जिला शिक्षा अधिकारी बैठे थे. वे मुझे अच्छी तरह से जानते थे. मेरे बौस ने ही सारी बात बताई, ‘बेटा, वैसे तो मुझे यह बात सीधे तौर पर तुम से नहीं करनी चाहिए. कौशल साहब को तो आप जानते ही हैं. मैं इन से कह बैठा कि हमारे औफिस में 2 लड़कों ने जौइन किया है. इन की बेटी बहुत सुंदर और होनहार है. ये करोड़पति हैं. बहुत जमीन है इन की शहर के साथ.

‘ये चाहते हैं कि तुम इन की बेटी को देख लो, पसंद कर लो और अपने घर वालों से सलाह कर लो.

‘रमण से भी पूछा था, मगर उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. अब तुम्हें मौका मिल रहा है.’

रमण से मैं हर बार उन्नीस ही पड़ता था. बारबार कुदरत हमारा मुकाबला करवा रही थी. एक तरफ सुमन थी और दूसरी तरफ करोड़ों की जायदाद.

घरजमाई बनने के लिए मैं तैयार नहीं था और सुमन से इतने सालों से किया गया प्रेम…

फिर पता चला कि शिक्षा अधिकारी ने रमण के मांबाप को राजी कर लिया है. रमण ने अपना रास्ता चुन लिया था. सुमन से सारे कसमेवादे तोड़ कर वह अपने अमीर ससुराल चला गया था. मैं प्रमोशन पा कर दिल्ली चला गया था.

सुमन का रमण के प्रति मोह भंग हो गया था. सुमन ने एक दूसरी नौकरी ले ली थी और 2 साल तक मुझे उस का कोई अतापता नहीं मिला.

बहन की शादी के बाद मैं भी अखबारों में अपनी शादी के लिए इश्तिहार देने लगा था. सुमन को मैं ने बहुत ढूंढ़ा. इस के लिए मैं ने करोड़पति भावी ससुर का औफर ठुकरा दिया था. वह सुमन भी अब न जाने कहां गुम हो गई थी. उस ने मुझे हमेशा सस्पैंस में ही रखा. मैं ने कभी उसे साफसाफ नहीं कहा कि मैं क्या चाहता हूं और वह पगली मेरे प्यार की शिद्दत नहीं जान पाई.

अखबारों के इश्तिहार के जवाब में मुझे एक दिन सुमन की मां द्वारा भेजा हुआ सुमन का फोटो और बायोडाटा मिला. मैं तो निहाल हो गया. मुझे लगा कि मुझे खोई हुई मंजिल मिल गई है. मैं तो सरपट भागा. मेरे घर वाले हैरान थे कि कहां तो मैं लड़कियों में इतने नुक्स निकालता था और अब इस लड़की के पीछे दीवाना हो गया हूं.

शादी के बाद भी लोग पूछते रहते थे कि क्या तुम्हारी शादी लव मैरिज थी या अरैंज्ड तो मैं ठीक से जवाब नहीं दे पाता था. मैं तो मुसकरा कर कहता था कि सुमन से ही पूछ लो.

सुमन से शादी के बाद रमण के बारे में मैं ने कभी उस से कोई बात नहीं की. सुमन ने भी कभी भूले से रमण का नाम नहीं लिया.

वैसे, रमण सुंदर और स्मार्ट था. सुमन कुछ देर के लिए उस के जिस्मानी खिंचाव में बंध गई थी. रमण ने उस के मन को कभी नहीं छुआ.

जब रमण ने सुमन को बताया होगा कि उस के मांबाप उस की सुमन से शादी के लिए राजी नहीं हो रहे हैं तो सुमन ने कैसे रिएक्ट किया होगा.

रमण ने यह तो शायद नहीं बताया होगा कि करोड़पति बाप की एकलौती बेटी से शादी करने के लिए वह सुमन को ठुकरा रहा है. मगर जिस लहजे में रमण ने बात की होगी, सुमन सबकुछ समझ गई होगी. तभी तो वह दूसरी नौकरी के बहाने गायब हो गई.

इन 2 सालों में सुमन ने मेरे और रमण के बारे में कितना सोचाविचारा होगा. रमण से हर लिहाज में मैं पहले रैंक पर रहा, मगर सुंदरता में वह मुझ से आगे था.

आज रमण के बेटे की सगाई का समाचार पा कर मैं सोच में था कि रमण के घर जाएं या नहीं.

सुमन ने सुना तो जाने में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिखाई. उसे यकीन था कि अब रमण का सामना करने में उसे कोई झोंप या असहजता नहीं होगी. इतने सालों से रमण अपने ससुराल में ही रह रहा था. सासससुर मर चुके थे. इतनी लंबीचौड़ी जमीन शहर के साथ ही जुट गई थी. खुले खेतों के बीच रमण की आलीशान कोठी थी. खुली छत पर पार्टी चल रही थी.

रमण ने सुमन को देख कर भी अनदेखा कर दिया. एक औपचारिक सी नमस्ते हुई. अब मैं रमण का बौस था, रमण के बेटे और होने वाली बहू को पूरे औफिस की तरफ से उपहार मैं ने सुमन के हाथों ही दिलवाया.

पहली बार रमण ने हमें हैरानी से देखा था, जब मैं और सुमन उस के घर के बाहर कार से साथसाथ उतरे थे. वह समझ गया था कि हम मियांबीवी हैं.

दूर तक फैले खेतों को देख कर मेरे मन में आया कि ये सब मेरे हो सकते थे, अगर उस दिन मैं जिला शिक्षा अधिकारी की बात मान लेता.

उस शाम सारी महफिल में सुमन सब से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. शायद उसे देख कर रमण के मन में भी आया होगा कि अगर वह दहेज के लालच में न पड़ता तो सुमन उस की हो सकती थी. चलो, जिस की जो चाहत थी, उसे मिल गई थी.

चालाक लड़की : राजेश की फूटी किस्मत

‘‘कौन सी गाड़ी का टिकट कट रहा है साहब?’’ एक सुरीली आवाज ने राजेश का ध्यान खींचा. बगल में एक खूबसूरत लड़की को देख कर वह जैसे सबकुछ भूल चुका.

‘‘मैं आप से ही पूछ रही हूं साहब… कौन सी गाड़ी आ रही है?’’

‘‘जी… जी, ‘महामाया ऐक्सप्रैस’, डोंगरपुर से नागिरी जाने वाली.’’

‘‘आप कौन सी क्लास का टिकटले रहे हो? मेरा मतलब, मेरे लिए भी एक टिकट कटा दोगे तो आप की बड़ी मेहरबानी होगी. कहां जा रहे हैं आप?’’

‘‘रौधा सिटी.’’

‘‘तब तो और भी अच्छी बात है. मुझे भी रौधा सिटी ही जाना है,’’ कह कर उस लड़की ने अपने बैग से नोटों की गड्डी निकाल कर 100-100 के 2 नोट राजेश के हाथ में थमा दिए.

‘‘माफ करना… मैं कब से टिकट लेने की कोशिश कर रही हूं, पर भीड़ इतनी ज्यादा है…’’ रुपए की गड्डी बैग में रखते हुए वह लड़की बोली.

‘‘कोई बात नहीं. आप आराम से सामने वाली बैंच पर बैठ जाइए.’’

जब ट्रेन आई तो राजेश अपने डब्बे में चादर बिछा कर एक सीट पर बैठ गया. वह जैसे उस लड़की के विचारों में खो गया. काश, वह लड़की उसी के पास आ कर बैठती…

‘‘अरे, आप…’’ थोड़ी ही देर बाद वह लड़की उसी डब्बे में आ कर राजेश से बोली.

‘‘आप को एतराज न हो, तो आप की बिछाई चादर पर…’’

‘‘जी बैठिए. जब हम और आप एक ही शहर जा रहे हैं, तो एतराज कैसा?’’ राजेश बोला.

वह लड़की राजेश की बिछाई चादर पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद वह अपने हैंडबैग की चेन खोलने लगी. कभी इस पौकेट की चेन तो कभी दूसरे पौकेट की चेन खोलती और बंद करती. वह बारबार बैग टटोल रही थी. वह बहुत परेशान लग रही थी.

राजेश से रहा न गया, तो पूछ ही लिया, ‘‘क्या हो गया? लगता है कि कुछ…’’

‘‘मेरे रुपए का बंडल…’’ उस लड़की ने बैग टटोलते हुए कहा.

‘‘कितने रुपए थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘2,000 रुपए थे,’’ मामूली सी बात समझ कर लड़की ने लापरवाही से कहा.

‘‘लगता है, किसी ने हाथ साफ कर दिया. आप के साथ और कोई नहीं है क्या?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘छोड़ो, शहर तो पहुंच जाऊंगी. कोई नहीं है तो आप तो हो ही? मुझे घर तक छोड़ देना. घर पर आप को टैक्सी का किराया वापस कर दूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

तेज रफ्तार से ट्रेन चली जा रही थी. वह लड़की राजेश से सट कर बैठ गई. लड़की की छुअन पा कर राजेश को जैसे बिजली का झटका लगा. उस के बदन की खुशबू से वह मदहोश हो रहा था.

‘‘आप रौधा सिटी के कौन से महल्ले में रहती हैं?’’

‘‘पटेल चौक में… और आप?’’ जवाब देने के बाद लड़की ने पूछा, ‘‘किसी सरकारी नौकरी में?’’

‘‘जी, मैं स्वास्थ्य विभाग में ट्यूटर हूं.’’

इसी बीच ट्रेन रुकी. वह लड़की राजेश से टकराई.

राजेश को मानो फिर बिजली का करंट लगा. शायद कोई स्टेशन आया था. राजेश गाड़ी से उतर कर चायबिसकुट और फल ले कर अपनी सीट पर बैठ गया.

‘‘लीजिए, नाश्ता कीजिए. और यह रही आप की चाय की प्याली.’’

‘‘आप नाहक ही तकलीफ कर रहे हैं,’’ लड़की ने कहा.

‘‘किस बात की तकलीफ. मौके पर साथ देना तो हर इनसान का फर्ज है.’’

‘‘मैं यह सबकुछ कब अदा करूंगी? आप जैसे का साथ पा कर कौन खुश नहीं होगा…’’ वह लड़की बोली.

‘‘छोड़ो. आप यों ही मेरी तारीफ कर रही हैं,’’ राजेश ने कहा.

‘‘नहींनहीं, मैं सच कह रही हूं, पर आप ने अभी तक अपना परिचय तो दिया ही नहीं?’’

‘‘मैं एमपीईबी में इंजीनियर हूं. मेरा नाम राजेश है.’’

‘‘पर, आप ने भी तो अभी तक अपना नाम नहीं बताया?’’ राजेश ने अपना परिचय देने के बाद पूछा.

‘‘आप ने नाम पूछा ही कब?

लो, अब बताए देती हूं. मुझे कुमुदिनी कहते हैं.’’

‘‘नाम के साथ कुदरत ने बनाया भी वैसा ही है. जहां खिलेंगी, वहां सारा माहौल महक जाएगा,’’ राजेश ने कहा.

‘‘आप कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हो,’’ राजेश की आंखों में झांकते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘वैसे, मेरे खयाल में कुमुदिनी रात में ही तो ज्यादा महकती है,’’ राजेश ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप ने सही कहा. पर अभी खुशबू लेने वाला है ही कहां,’’ कुमुदिनी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वह बहुत खुशनसीब होगा, जो ऐसे खूबसूरत फूल को पाएगा.’’

‘‘सभी लोग फूलों की इज्जत थोड़े ही न करते हैं. कुछ लोग उन्हें मसल कर फेंक देते हैं.

‘‘हम जैसे बदनसीबों की किस्मत में कहां? काश…’’

‘‘किस्मत अपने हाथ से बनती है राजेश साहब. जो किस्मत को कोसता है, वह तो हार जाता है,’’ कुमुदिनी बोली.

थोड़ी ही देर बाद गाड़ी रुक गई.

‘‘अपना शहर आ गया. चलो उठो, मैं आप को आप के घर तक पहुंचा दूं,’’ राजेश बोला.

कुमुदिनी अपने पर्स को खोल कर कुछ टटोल रही थी.

‘‘क्यों, क्या हो गया?’’

‘‘अरे यार, घर की चाबी लाना तो मैं भूल ही गई. मेरे मातापिता के पास ही चाबी का गुच्छा रह गया. उफ, जब मुसीबत आती है, तो हर तरफ से आती है,’’ खीजते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘आप के मातापिता कब लौट रहे हैं घर?’’

‘‘परसों शाम तक.’’

‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो अपना घर आप के लिए खुला है कुमुदिनीजी.’’

‘‘एतराज तो कोई नहीं, पर आप का तो पहले ही इतना ज्यादा अहसान हो गया है मुझ पर कि…’’

‘‘आप तो मुझे शर्मिंदा कर रही हैं. परसों शाम को मैं आप को आप के घर छोड़ दूंगा.’’ कुमुदिनी ने कोई जवाब नहीं दिया.

राजेश ने कहा, ‘‘लगता है, आप फिर कुछ सोच रही हैं?’’

‘‘कहीं आप के मातापिता या आप की श्रीमतीजी?’’

‘‘मातापिता तो कब के चल बसे. श्रीमतीजी भी अपनी बहन की शादी में मायके गई हैं. उन्हें ही छोड़ कर लौटा हूं, और फिर यह सब रहेंगे भी तो आप को क्या…

‘‘नहींनहीं, मैं अपने लिए नहीं सोच रही, मैं तो आप के लिए ही परेशान हूं.’’

‘‘किसी का मुसीबत में साथ देना कोई गुनाह तो नहीं. चलो, मैं आप को कोई कष्ट नहीं दूंगा, बल्कि मुझे आप की सेवा करने का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘ठीक है, पर परसों मेरे साथ घर तक छोड़ने चलना होगा?’’

‘‘वादा रहा.’’

ट्रेन से उतर कर राजेश और कुमुदिनी टैक्सी से घर आए. राजेश के दिल में तो लड्डू फूट रहे थे. वह अपनी कामयाबी पर बहुत खुश था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी ज्यादा खूबसूरत लड़की उस के सूने घर में चलने के लिए तैयार हो जाएगी.

राजेश का आलीशान बंगला देख कुमुदिनी हैरान रह गई. दरबान ने बंगले का गेट खोला और नमस्ते की. नौकर ने राजेश की अटैची टैक्सी से निकाल कर बंगले में रखी.

‘‘मैडम, यह है अपनी कुटिया. आप के आने से हमारी कुटिया भी पवित्र हो जाएगी,’’ राजेश ने कुमुदिनी से कहा.

‘‘बहुत ही खूबसूरत बंगला बनाया है. कितनी भाग्यशाली हैं इस बंगले की मालकिन?’’

‘‘छोड़ो, इधर बाथरूम है. आप फ्रैश जाओ. मैं आप के लिए कपड़े लाता हूं,’’ कह कर राजेश दूसरे कमरे में जा कर एक बड़ी सी कपड़ों की अटैची ले आया. अटैची खोली तो उस में कपड़े तो कम थे, सोनेचांदी के गहने व नोटों की गड्डियां भरी पड़ी थीं.

‘‘नहींनहीं, यह अटैची मैं भूल से ले आया. कपड़े वाली अटैची इसी तरह की है,’’ और राजेश तुरंत अटैची बंद कर उसे रख कर दूसरी अटैची ले आया.

‘‘यह लो अपनी पसंद के कपड़े… मेरा मतलब, साड़ीब्लाउज या सूट निकाल लो. इस में रखे सभी कपड़े नए हैं.’’

‘‘पसंद तो आप की रहेगी,’’ तिरछी नजरों से कुछ मुसकरा कर कुमुदिनी ने कहा.

‘‘यह नीली ड्रैस बहुत ज्यादा फबेगी आप पर. यह रही मेरी पसंद.’’

वह ड्रैस ले कर कुमुदिनी बाथरूम में चली गई. तब तक राजेश भी अपने बाथरूम में नहा कर ड्राइंगरूम में आ कर कुमुदिनी का इंतजार करने लगा.

कुमुदिनी जब तक वहां आई, तब तक नौकर चायनाश्ता टेबल पर रख कर चला गया.

दोनों ने नाश्ता किया. राजेश ने पूछा, ‘‘खाने में क्या चलेगा?’’

‘‘आप तो मेहमानों की पसंद का खाना खिलाना चाहते हो. मैं ने कहा न आप की पसंद.’’

‘‘मैं तो आलराउंडर हूं. फिर भी?’’

‘‘वह सबकुछ तो ठीक है, पर मैं आप के बारे में कुछ…’’

‘‘क्या? साफसाफ कहो.’’

‘‘आप के नौकरचाकर श्रीमतीजी को जरूरत बता सकते हैं. मेरे चलते आप के घर में पंगा खड़ा हो, मुझे गवारा नहीं.’’

‘‘आप चाहो तो मैं परसों तक नौकरों को छुट्टी पर भेज देता हूं, पर मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कौन सी शर्त?’’

‘‘खाना आप को बनाना पड़ेगा.’’

‘‘हां, मुझे मंजूर है, पर आप के घर में कोई पंगा न हो.’’

‘‘पहले यह तो बताओ खाने में…’’ राजेश ने पूछा.

‘‘आप जो खिलाओगे, मैं खा लूंगी,’’ आंखों में झांक कर कुमुदिनी ने कहा.

राजेश ने एक नौकर से चिकन और शराब मंगवाई और बाद में सभी नौकरों को छुट्टी पर भेज दिया. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

‘‘आप ने तो…’’ शराब से भरे जाम को देखते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘जब मेरी पसंद की बात है तो साथ तो देना ही पड़ेगा,’’ राजेश ने जाम आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘मैं ने आज तक इसे छुआ भी नहीं है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं चलेगी. मैं अगर अपने हाथ से पिला दूं तो…?’’ और राजेश ने जबरदस्ती कुमुदिनी के होंठों से जाम लगा दिया.

‘‘काश, आप के जैसा जीवनसाथी मुझे मिला होता तो मैं कितनी खुदकिस्मत होती,’’ आंखों में आंखें डाल कर कुमुदिनी ने कहा.

‘‘यही तो मैं सोच रहा हूं. काश, आप की तरह घर मालकिन रहती तो सारा घर महक जाता.’’

‘‘अब मेरी बारी है. यह लो, मैं अपने हाथों से आप को पिलाऊंगी,’’ कह कर कुमुदिनी ने दूसरा रखा हुआ जाम राजेश के होंठों से लगा दिया.

शराब पीने के बाद राजेश से रहा न गया और उस ने कुमुदिनी के गुलाबी होंठों को चूम लिया.

‘‘आप तो मेहमान की बहुत ज्यादा खातिरदारी करते हो,’’ मुसकराते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘बहुत ही मधुर फूल है कुमुदिनी का. जी चाहता है, भौंरा बन कर सारा रस पी लूं,’’ राजेश ने कुमुदिनी को अपने आगोश में लेते हुए कहा.

‘‘आप ने ही तो यह कहा था कि कुमुदिनी रात में सारे माहौल को महका देती है.’’

‘‘मैं ने सच ही तो कहा था. लो, एक जाम और पीएंगे,’’ गिलास देते हुए राजेश ने कहा.

‘‘कहीं जाम होंठ से टकराते हुए टूट न जाए राजेश साहब.’’

‘‘कैसी बात करती हो कुमुदिनी. यह बंदा कुमुदिनी की मधुर खुशबू में मदहोश हो गया है. यह सब तुम्हारा है कुमुदिनी,’’ जाम टकराते हुए राजेश ने कहा और एक ही सांस में शराब पी गया.

कुमुदिनी ने अपना गिलास राजेश के होंठों से लगाते हुए कहा, ‘‘इस शराब को अपने होंठों से छू कर और भी ज्यादा नशीली बना दो राजेश बाबू, ताकि यह रात आप के ही नशे में मदहोश हो कर बीते.’’

नशे में धुत्त राजेश ने कुमुदिनी को बांहों में भर कर प्यार किया. कुमुदिनी भी अपना सबकुछ उस पर लुटा चुकी थी. राजेश पलंग पर सो गया.

थोड़ी देर में कुमुदिनी उठी और अपने पर्स से एक छोटी सी शीशी निकाल राजेश को सुंघाई. शीशी में क्लोरोफौर्म था. इस के बाद कुमुदिनी ने किसी को फोन किया.

राजेश जब सुबह उठा, उस समय 8 बजे थे. राजेश के बिस्तर पर कुमुदिनी की साड़ी पड़ी थी. साड़ी को देख उसे रात की सारी बातें याद हो आईं. उस ने जोर से पुकारा, ‘‘ऐ कुमुदिनी.’’

बाथरूम से नल के तेजी से चलने की आवाज आ रही थी. राजेश ने दोबारा आवाज लगाई, ‘‘कुमुदिनी, हो गया नहाना. बाहर निकलो.’’

पर, कुमुदिनी की कोई आवाज नहीं आई. तब राजेश ने बाथरूम का दरवाजा धकेला, तो उसे कुमुदिनी नहीं दिखी.

वह घर के अंदर गया. सारा सामान इधरउधर पड़ा था. रुपएपैसे व जेवर वाला सूटकेस, घर की कीमती चीजें गायब थीं. राजेश को समझाते देर नहीं लगी. उस के मुंह से निकला, ‘‘चालाक लड़की…’’

News Kahani: हनी ट्रैप का चक्रव्यूह

दिलशाद गार्डन के एक गंदे से फ्लैट में रहने वाली 26 साल की सीमा अच्छी देह की मालकिन थी. वह दिल्ली में बड़े सपने ले कर आई थी और हाल ही में उस ने कुछ ऐसा काम कर दिया था कि उस के वारेन्यारे होने में ज्यादा समय नहीं बचा था.

सीमा आज सुबह से ही बड़ी चहक रही थी. हरे रंग की चुस्त बनियान और हलके भूरे रंग की शौर्ट से उस की भरपूर जवानी बाहर आने को बेताब थी. उस ने अंगड़ाई लेते हुए पहले एक कप ब्लैक कौफी बनाई और फिर सुबह का अखबार ले कर सोफे पर ‘धम्म’ से बैठ गई. यह सोफे पर उस की पसंदीदा जगह थी, जहां उस के हमेशा बैठे रहने से कुशन पर गड्ढा सा बन गया था.

सीमा ने कौफी की चुसकी लेते हुए अखबार पलटा, तो एक खबर पर उस की निगाहें जम गईं. जब खबर पढ़ी, तो सीमा की सांसें तेज हो गईं. अचानक से उसे पसीना आ गया. हाथपैर ठंडे पड़ गए. सारी खुशी पलभर में काफूर हो गई.

खबर दिल्ली की थी और सीमा का दिल दहलाने के लिए काफी थी. हुआ यों था :

पश्चिमी दिल्ली के राजौरी गार्डन में बने ‘बर्गर किंग’ के आउटलेट में मंगलवार, 18 जून, 2024 की रात हुए एक शूटआउट में ?ाज्जर, हरियाणा के अमन जून की हत्या कर दी गई थी. पुलिस वालों का कहना है कि अमन की हत्या गैंगवार में हुई है.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, अमन जून की अशोक प्रधान गैंग से नजदीकियां थीं. इस मामले में विदेश में बैठे गैंगस्टर हिमांशु भाऊ ने सोशल मीडिया पर राजौरी गार्डन शूटआउट की जिम्मेदारी ली है. भाऊ ने इंस्टाग्राम की एक पोस्ट में दावा किया है कि नवीन बाली (तिहाड़ में बंद) के साथ वह खुद राजौरी गार्डन की हत्या की जिम्मेदारी लेता है.

भाऊ का आरोप है कि अमन जून ने उस के करीबी शक्तिदादा की हत्या के दौरान मुखबिरी की थी. मंगलवार को राजौरी गार्डन में इसी का बदला लिया गया है. भाऊ ने धमकी दी है कि अब शक्ति दादा की हत्या में शामिल दूसरे लोगों का भी नंबर आने वाला है.

सूत्रों का यह भी कहना है कि गैंगस्टर नीरज बवानिया, नवीन बाली और हिमांशु भाऊ एकसाथ मिल कर लौरैंस गैंग के खिलाफ खुद को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मजबूत करने में जुटे हैं. वहीं, गैंगस्टर अशोक प्रधान लौरैंस के साथ काम करता है. अशोक प्रधान से अमन जून की नजदीकी थी.

ऐसे में पुलिस को शक है कि नवीन बाली और हिमांशु भाऊ गैंग ने नीरज बवानिया के इशारे पर मंगलवार रात अमन जून की हत्या कर दी. इस की वजह यह है कि अक्तूबर, 2020 में नीरज बवानिया के मौसरे भाई शक्ति दादा की हरियाणा के ?ाज्जर जिले के छाछी गांव में हत्या कर दी गई थी. नीरज बवानिया को शक था कि अमन ने इस में मुखबिरी की थी.

सीमा के होश गुम कर देने वाली खबर तो आगे थी. वजह, सीमा अब तक जिस काम को पैसे कमाने का जरीया समझ रही थी, वह तो एक ऐसा चक्रव्यूह था, जिसे भेदना उस के बस की बात नहीं थी.

खबर में आगे लिखा था कि पुलिस ने मौका ए वारदात से सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले हैं. इस में 2 शूटर और एक लड़की नजर आ रहे हैं. पुलिस सूत्रों का कहना है कि अमन को हनी ट्रैप कर वहां बुलाया गया था. वह लड़की मैट्रो से वारदात वाली जगह पर पहुंची थी.

वारदात के बाद पुलिस को अमन जून के पास से एक डीटीसी बस का टिकट, गमछा और एक मोबाइल चार्जर मिला था, पर मोबाइल और पर्स नहीं मिला था. पुलिस को शक है कि अमन जून के साथ रही वह लड़की पर्स और मोबाइल ले कर फरार हुई है.

गैंगस्टर हिमांशु भाऊ विदेश में बैठा है. उस के खिलाफ इंटरपोल ने रैड कौर्नर नोटिस भी जारी किया हुआ है. एक महीने पहले पश्चिमी दिल्ली इलाके में ही भाऊ ने फ्यूजन कार पर अपने शूटरों के जरीए रंगदारी के लिए गोलियां चलवाई थीं. बाद में स्पैशल सैल ने एक शूटर को मुठभेड़ के दौरान मार गिराया था. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हिमांशु भाऊ गैंग पर मकोका के तहत केस भी दर्ज किया है.

पुलिस के मुताबिक, शूटरों ने अमन जून पर तकरीबन 40 गोलियां चलाईं. मौके से पुलिस को 30 कारतूस के खोल बरामद हुए. गैंगस्टर हिमांशु भाऊ ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में कहा भी था कि 14 के बदले 40 गोलियां दी हैं.

बताया जा रहा है कि 24 साल की उस लड़की का नाम अनु है, जिसे डौन बनने की चाहत गैंगस्टर हिमांशु भाऊ के करीब ले आई. हिमांशु को अनु पर काफी भरोसा था, इसीलिए उस ने इस टास्क की जिम्मेदारी अनु को दी.

दिल्ली के राजौरी गार्डन के ‘बर्गर किंग’ में हुए हत्याकांड की परतें जैसेजैसे खुलती जा रही हैं, वैसेवैसे इस लेडी डौन और इस की हकीकत सामने आती जा रही है. बताया जा रहा है कि अनु ने अमन जून को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर रैस्टोरैंट बुलाया और 40 गोलियां मरवा कर उसे मौत के घाट उतार दिया, फिर बड़े आराम से फरार हो गई.

इतनी खबर पढ़ कर सीमा के तो तोते उड़ गए. उसे आज सम?ा आया कि समीर ने उसे मनोज से क्यों मिलवाया था. अभी एक महीने पहले की तो बात है. सीमा की समीर से नईनई दोस्ती हुई थी. उस ने खुद को प्राइवेट जासूस बताया था और मनोज नाम के एक रईसजादे से मेलजोल बढ़ाने के एवज में एक लाख रुपए देने का वादा किया था. सीमा को 50,000 रुपए मिल भी चुके थे, क्योंकि वह मनोज से एक होटल में मीटिंग कर भी चुकी थी.

यह मीटिंग बड़ी रसभरी थी. दरअसल, मनोज को नईनई लड़कियों के साथ सोने का चसका था. वह समीर और सीमा के ?ांसे में आ गया था. वैसे, समीर ने सीमा को यह कह रखा था कि वह दूसरी मीटिंग में एक छिपे हुए कैमरे से अपने और मनोज की बिस्तरबाजी के फोटो और वीडियो बना कर उसे दे देगी, ताकि वह मनोज की बीवी को उस की असलियत बता कर तलाक दिलवा दे.

उस दिन सोमवार की रात थी, जब सीमा मनोज के साथ होटल में गई थी. कमरे में वे दोनों अकेले थे. मनोज ने शराब पीते हुए उस से कहा था, ‘‘तुम मु?ो पहली ही नजर में पसंद आ गई हो. आज रात को बड़ा मजा आएगा.’’

सीमा मनोज की सब बातें सुन रही थी और गौर से देख रही थी कि किस एंगल से और कहां पर कैमरा फिट किया जाए कि बैड पर होने वाली हर हरकत अच्छी तरह से रिकौर्ड हो जाए.

उस ने मनोज का पैग बनाते हुए पूछा था, ‘‘क्या आप मु?ा से दोबारा भी मिलेंगे?’’

इस पर मनोज ने सीमा को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा था, ‘‘यह तो आज की रात पता चल जाएगा कि हमें दोबारा मिलना है या नहीं.’’

इधर मनोज शराब पी रहा था, उधर सीमा लाल रंग की नाइटी में उस के सामने खड़ी थी. मनोज ने उसे देखा और एकदम उतावला हो गया. उस रात सीमा ने मनोज को भरपूर देह सुख दिया.

इसी बीच मनोज ने सीमा को यह भी बताया कि वह अमीर बाप का एकलौता बेटा है और गलत संगत में पड़ कर कुछ लोगों का दुश्मन बन चुका है. पर तब सीमा को लगा था कि मनोज अपनी शादी की बात छिपा कर उस से दोबारा मिलने का बहाना ढूंढ़ रहा है.

पर आज अखबार की खबर पढ़ कर सीमा को सम?ा आ गया कि समीर ने किसी और इरादे से उसे फंसा कर हनी ट्रैप की तरह इस्तेमाल किया है. वह यह सोच कर घबरा गई कि अगर आज रात को मनोज और उस की मुलाकात के बीच कोई कांड हो गया और गलती से गोली उसे लग गई तो… अगर गोली नहीं भी लगी, पर अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई तो? वह सम?ा गई थी कि दाल में कुछ काला है.

सीमा को कुछ सम?ा नहीं आ रहा था. उस ने समीर को फोन किया और दुखी लहजे में बोली, ‘‘समीर, मेरी तबीयत खराब है. मैं आज रात को मनोज के पास नहीं जा पाऊंगी.’’

‘‘अब हम लोग पीछे नहीं हट सकते. मनोज के खिलाफ एक बार सुबूत मिल जाए, फिर हमारा काम बन जाएगा. तुम्हें तुम्हारे 50,000 रुपए के साथसाथ इनाम भी मिलेगा, जिसे तुम जिंदगीभर नहीं भूल पाओगी.’’

यह सुनते ही सीमा के कान खड़े हो गए. उस ने आव देखा न ताव, अपने कपड़े और पैसे एक सूटकेस में भरे और वहां से भाग निकलने की सोची.

पर सुनीता अभी बाहर की गैलरी में ही पहुंची थी कि उस ने 2 लोगों को वहां खड़े पाया. वे तो समीर के आदमी थे. मतलब, उस पर भी नजर रखी जा रही थी.

सीमा दोबारा अपने घर में जा घुसी. उस ने सूटकेस पटका और बिस्तर पर बैठ गई. उसे सम?ा आ गया था कि वह हनी ट्रैप के लिए इस्तेमाल की जा रही है और आज उस की जिंदगी की सब से काली रात होने वाली है, उस की ठंडी हो चुकी ब्लैक कौफी की तरह.

शक्ति के सपने : क्या पूरे हो सके

हरियाणा के पलवल इलाके में पलाबढ़ा शक्ति बेहद चंचल और चालाक था. बचपन से ही वह पढ़ाई में तो नहीं, पर दिमाग से बाकी काम बनाने में बहुत तेज था. मिसाल के तौर पर सामाजिक समारोह में दरीगद्दे कैसे लगाने हैं, कौन सा हलवाई बढि़या है, किस जगह पर थोक में आतिशबाजी वाजिब दाम पर मिलेगी जैसी बहुत सी बातों का वह बचपन से ही जानकार था.

शुद्ध खानपान और कर्मठ दिनचर्या ने शक्ति का डीलडौल भी मजबूत बना दिया था. उस की 2 बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी और जैसे ही वह 18 साल का हुआ, परिवार वाले उस का भी ब्याह करने के लिए जोर देने लग गए थे. मगर शक्ति के मन में कुछ और ही था. वह अभी शादी के लिए तैयार नहीं था.

दिल्ली में शक्ति के मामा रहते थे. उन की मदद से शक्ति ने वहां के एक कालेज में अपना दाखिला करा लिया. वह शादी करने के दबाव से छुटकारा पाना चाहता था और बाहर पढ़ने को मिला, तो काफी हद तक कामयाब भी रहा.

शक्ति 3-4 महीने बाद कुछ दिन के लिए घर जाता और फिर पढ़ाई का बहाना कर के अपने होस्टल वापस लौट आता. कालेज की जिंदगी उसे खूब रास आने लगी थी. सब चिंताओं और जिम्मेदारियों से परे और यारदोस्तों से हंसीमजाक के साथ वह नएनए अनुभव ले रहा था. शहर का चकाचौंध भरा माहौल उसे सुकून दे रहा था.

शक्ति के डीलडौल और बोलने के हरियाणवी स्टाइल ने उसे जल्दी ही कालेज का एक जानापहचाना चेहरा बना दिया, मगर ज्यादातर लड़कियां जरूर उस से बचती थीं, क्योंकि अपने देहातीपन से वह गुंडा सा लगता था.

पहला साल इसी मस्तीमजाक में गुजर गया. पास होने लायक नंबर लाने में शक्ति को ज्यादा मेहनत नहीं लगी. 3 सहपाठियों को छोड़ कर बाकी सभी छात्र दूसरे साल में ऐंट्री पाने में कामयाब हो गए थे.

एक महीने की छुट्टी पर जाने से पहले सब छात्रों ने मिल कर एक पार्टी रखी. इस पार्टी में शक्ति ने भी पहली बार बीयर के अलावा रम और वोदका का स्वाद चखा था. उस के बाद खुमारी में जब उस ने खुल कर एक जोश वाला हरियाणवी लोकगीत गाया, तो सुनने वाले मस्त हो गए.

शक्ति के लिए देर तक तालियां बजती रहीं. अब उस से कन्नी काटने वाली लड़कियां भी हाथ मिला कर बधाई दे रही थीं, पर सविता का हाथ मिलाने का अंदाज सब से अलग था. उस की आंखों का गहरापन, गालों की लाली और दोनों हाथों से उस की हथेली को जोर से जकड़ना साफ संकेत दे रहे थे कि वह उस के मोहपाश मे बंध चुकी है.

इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे का फोन नंबर ले लिया था. महीनेभर की छुट्टियों में एक दिन भी ऐसा नहीं बीता कि दोनों के बीच बातचीत न हुई हो. न ही छुट्टी का ऐसा कोई दिन बीता, जिस में शादी को ले कर चर्चा न हुई हो.

कालेज का दूसरा साल शुरू होते ही शक्ति होस्टल पहुंचने वाले छात्रों में सब से पहले था. 2 दिन के बाद सविता भी वहां आ गई. वह शक्ति के लिए अपने हाथों से बना क्रोशिया आसन तोहफे में लाई थी.

शक्ति को बड़ा अजीब सा लगा. वह तो उस के लिए कुछ लाया नहीं था. घर से लाया घी का डब्बा उस ने सविता को पकड़ा दिया. सविता को शक्ति के इस भोलेपन पर बहुत हंसी आई, पर वह उस के भीतर खुद के लिए पनप चुके प्यार को अच्छी तरह महसूस कर पा रही थी. उस का जी चाहा कि वह कस कर उस के होंठों को चूम ले, पर लोकलाज ने ऐसा करने से रोक दिया.

शक्ति को अभी एक और नए अनुभव से रूबरू होना था. उसे कालेज का महासचिव चुनने की तैयारी कर ली गई थी. बाकी पदों के लिए तो चुनाव हुए, पर उस के सामने कोई खड़ा नहीं हुआ. इस अनुभव ने शक्ति को उम्र से ज्यादा बड़ा कर दिया. अब उसे इज्जत भी मिलती और बुराई भी होती.

शक्ति अब राजनीति को गंभीरता से लेने लग गया. बड़े नेताओं से मिलने का मौका वह कभी न चूकता. दिल्ली में होने का फायदा उसे मिलता गया और नैशनल लैवल के नेताओं से उस की मुलाकात बढ़ती गई. वह राजनीति को तेजी से समझाता जा रहा था.

तीसरे साल में शक्ति को सीधे यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बना दिया गया. जिस दिन उस का चयन हुआ, उसी दिन सविता उस से अकेले मिलने आई.

शक्ति बहुत खुश था, पर सविता उदास थी. वजह जान कर उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. सविता उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. इस नाजुक मोड़ पर यह खबर किसी एटम बम से कम नहीं थी. विरोधी उम्मीदवार को अगर पता चलता तो गरमागरम अफवाह फैला कर उसे जीतने का आसान मौका मिल सकता था.

शक्ति ने कुछ खास दोस्तों के साथ जा कर मंदिर में सविता से शादी कर ली. शादी के वक्त शक्ति को पता चला कि सविता तो निचली जाति की है. उस ने कभी पूछा नहीं और सविता ने बताया भी नहीं. प्यार तो इनसान का इनसान से हुआ था. जाति को जानना प्यार के लिए बिलकुल जरूरी नहीं था, पर घर वालों को तो इस की सूचना दे कर उन की रजामंदी लेना जरूरी था.

सविता को तो अपने घर वालों को राजी कर लेने का पूरा भरोसा था, पर शक्ति को नहीं. उस ने यह जिम्मेदारी अपने मामा के कंधों पर सौंप दी और खुद चुनाव प्रचार में बिजी हो गया.

यूनिवर्सिटी के 5 कालेजों में एक महीने तक जम कर किए प्रचार का नतीजा भी सुखद आया. 1,000 से भी ज्यादा वोटों से शक्ति जीता था. उस का भाषण और बोलने का चुटीला अंदाज छात्रों को खूब भा रहा था, पर इस खुशी के आलम में शक्ति के घर पर मातम पसर गया था. मामा ने उस के अध्यक्ष बनने और शादी करने की खबर एकसाथ परिवार वालों को दी थी.

शक्ति की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया था. उस की बहनों ने मोरचा संभाला और परिवार वालों को समझाया, फिर शक्ति और सविता को घर बुलाया गया. घर पर नाराजगी कम तो हुई थी, पर खत्म नहीं. एक ही दिन में सब से मिल कर वे दोनों दिल्ली लौट आए.

हफ्तेभर बाद वे दोनों सविता के मातापिता के घर भी गए. एक गांव में सविता के पिता अपने 2 बेटों के साथ दरी और छोटे कालीन बनाने का काम करते थे. घर पर ग्राहक सीधे ही कालीन खरीदने आते थे. यह इस बात का सुबूत था कि उन का काम बहुत अच्छा था.

उन का घर छोटा था, पर शक्ति के लिए उन सब का स्नेह बहुत गहरा और एकदम खरा था. दिनभर के लिए रुकने की सोच कर आया शक्ति सब के कहने पर 2 दिन खुशीखुशी वहीं रुका. अब तक शादी के नाम से भागने वाले शक्ति को शादी के बाद यह मेहमाननवाजी मजा दे रही थी.

सविता के साथ लौटते समय शक्ति सोच रहा था कि वह राजनीति करने के काबिल है. अपनी सोच और बातों से लोगों को प्रभावित करने की उस में काबिलीयत भी है और जुनून भी.

शक्ति ने सविता को अपने मन की बात बताई, तो वह भी उस से सहमत थी. वह बोली, ‘‘तुम अपना पूरा ध्यान राजनीति को दो.’’

सविता जागरूक थी. वह शक्ति की बाधा नहीं, बल्कि ताकत बनना चाहती थी. सविता चाहती थी कि शक्ति खुद को और मजबूत कर के एक मुकाम हासिल करने की दिल से कोशिश करे. वह जानती थी कि अपने बच्चे के 2 साल का होने तक वह अपनी एमए की डिगरी पा लेगी. उस के बाद वह घर के लिए जरूरी खर्च उठाने लायक हो जाएगी, तब तक वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ा लेगी.

रात हो चली थी. अपने कमरे में लौटते हुए खिड़की से बाहर दिखाई दे रहे आसमान की ओर उन दोनों ने एकसाथ निहारा. स्याह आसमान में बहुत से तारे टिमटिमा रहे थे, पर एक तारा ऐसा था, जिस की चमक कुछ ज्यादा थी. शायद अगला सूरज बनने का ख्वाब उस तारे के मन में भी मजबूती से पनप रहा था.

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