Crime: एक ठग महिला से ‘दोस्ती का अंजाम’

सोशल मीडिया पर  खूबसूरत महिला से दोस्ती कुछ लोग गर्व का सबब मानते हैं. मृगतृष्णा सामान सोशल मीडिया का यह संसार मन को आकर्षित करता है. जहां कोई खूबसूरत चेहरा देखा तो फ्रेंडशिप करने के लिए मन लालयित हो उठता है. ऐसे में अगर कोई खूबसूरत चेहरा फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजे  तो कौन मना कर सकता है!

और जब खूबसूरत चेहरा  फोन पर बात करने लगता है ऐसे में आमतौर पर पुरुष वर्ग अपनी सुध बुध बिसार बैठता है. और कब यह खूबसूरत अदाएं ” बला” बन जाती है, पता ही नहीं चलता.

इस रिपोर्ट में आज आपको कुछ ऐसी ही घटनाओं के बारे में बताते हुए हम यह ठोस जानकारी दे रहे हैं कि आप और आपके आसपास के लोग सुरक्षित रहे.

पहली घटना-

मध्य प्रदेश के कटनी में सोशल मीडिया की फ्रेंडशिप में,एक उद्योगपति एक खूबसूरत लड़की के फेर में पड़कर लाखों रूपए लुटाने के बाद होश में आया. मामला पुलिस तक पहुंचा तो लड़की फरार हो गई. आखिर जेल की हवा खा रही है.

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दूसरी घटना-

राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक अफसर महिला के मोह जाल में फंस गया ब्लैकमेल का शिकार हो गया जब मामला पुलिस तक पहुंचा तो पुलिस ने न्याय किया महिला जेल भेज दी गई.

तीसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक अभिनेता महिला के चक्कर में पड़ गया लाखों रुपए ब्लेक मेल करने पर देने पड़े अंततः महिला पुलिस के शिकंजे में फसी.

सोशल मीडिया की बला!

फेसबुक पर दोस्ती कर पैसे ऐंठने वाली एक महिला को बस्तर पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार किया है. साथ में उसके दो साथियों को भी पुलिस ने दबोचा है. आरोपियों के कब्जे से लाखों रुपये नगदी समेत अन्य सामान भी बरामद किया . पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि अगस्त 2020 में सरदार दरबारा सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि फेसबुक के माध्यम से एक “खूबसूरत महिला” ने उससे दोस्ती की.

दोस्ती करने के बाद विदेश से गिफ्ट मंगाकर उसे भेजने और गिफ्ट में कस्टम ड्यूटी के बहाने अलग-अलग किश्तों में 27 लाख 75 हजार 7 सौ रुपये अपने खाते में जमा कराए. कुछ दिनों बाद एहसास हुआ कि वह ठगी का शिकार हो चुका है.

मामला दर्ज होते ही पुलिस कप्तान दीपक कुमार झा के दिशा-निर्देश पर बोधघाट टीआई राजेश मरई और निरीक्षक धनंजय सिन्हा के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया. जिसके बाद टीम ने मामले की जांच शुरू की. जांच के दौरान ही पुलिस को पुख्ता सबूत मिलते चले गए. सबूतों के आधार पर पुलिस टीम को आरोपियों की दिल्ली में होने की सूचना मिली. पुलिस ने तीन आरोपियों शोभराज थापा (37), रेणुका पोंडेल (33) और राजू हितांग (26) को दिल्ली से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता कोबताया कि यह तीनों आरोपी मूलतः नेपाल के रहवासी  हैं. कुछ सालों से दिल्ली में रह कर ठगी का नेटवर्क चला रहे थे.

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खूबसूरत बलाओं से कैसे बचें?

सोशल मीडिया के इस्तेमाल के समय खूबसूरत चेहरे जो आकर्षित करते हैं. उनके पीछे का सच आप नहीं जानते. आपको पता नहीं कि इस चेहरे के पीछे  कोई महिला अथवा ऐसा पुरुष सकता है जो आपको “गहरा दंश” दे सकता है.

जैसे की कहावत है- सुरक्षा हटी दुर्घटना घटी वैसे ही सोशल मीडिया के प्लेटफार्म में भी- जैसे ही आप का ध्यान हटा और आप का एक्सीडेंट हुआ!

लाखों रुपए बर्बाद होना संभव हो सकता है. ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण बातों को अपने मन मस्तिष्क में बैठा कर आप हमेशा के लिए एक सुरक्षा कवच बना सकते हैं.

जिसमें सबसे महत्वपूर्ण पहली बात यह है कि सोशल मीडिया में आप अपनी मर्यादा बनाए रखें. कभी भी मर्यादा का बंधन नहीं तोड़े. लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन न करें.

पुलिस अधिकारी इंद्रपाल सिंह के मुताबिक आजकल सोशल मीडिया का जाल विस्तार ले चुका है और आए दिन लोगों के लोग जाने का मामला प्रकाश में आ रहा है. ऐसे में हम यही सलाह देंगे की फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर बहुत ही समझदारी से आप भूमिका निभाएं. आर्थिक मामलों में वकील अथवा पुलिस से सलाह ले कर के ही आपका कदम आगे बढ़ना चाहिए.

निशाने पर एकता: भाग 1

दिल्ली में किन्नरों के कई ग्रुप हैं, जो मोटी कमाई करते हैं. अंडरवर्ल्ड की तरह किन्नरों में भी आपसी रंजिश रहती है. कई हत्याएं भी हुई हैं. एकता जोशी की हत्या भी किसी ग्रुप ने ही कराई, लेकिन किस ग्रुप ने, यह पता लगाना आसान नहीं होगा. फिर भी…

पूर्वी दिल्ली के जीटीबी एनक्लेव में बने डीडीए के जनता फ्लैट्स का वह कंपाउंड सब से आलीशान था. 6 फ्लैट के इस पूरे कंपाउड को 3 किन्नरों ने खरीद कर इसे आलीशान बंगले के रूप में तब्दील कर दिया था. इस बंगलेनुमा कंपाउंड में 3 किन्नरों के परिवार रहते हैं. किन्नरों के इस ग्रुप ने कुछ महीनों पहले ही इस कपांउड में आ कर रहना शुरू किया था.

इन्हीं में एक परिवार था एकता जोशी (40) का. एकता मूलरूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली थी. एकता के पिता दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट में जौब करते हैं, जबकि मां और भाई गांव में रहते हैं.

एकता ने भाई के बच्चों 3 बेटों व एक बेटी को अपने पास रखा हुआ था. जबकि भाईभाभी और मां गांव में रहते थे. एकता चाहती थी कि उस के भाई के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़लिख कर काबिल बने.चारों बच्चों की पढ़ाई के खर्चे एकता खुद उठाती थी.

एकता बचपन से किन्नर थी, इसलिए युवावस्था में पहले वह उत्तराखंड में रही, इस के बाद दिल्ली के किन्नर समाज में आ कर रहने लगी. किन्नरों की गुरू अनीता का एकता से खास लगाव था. इसलिए जिस कंपाउंड में एकता रहती थी, अनीता का निवास भी उसी कंपाउंड में था.

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धर्मालु स्वभाव और घूमनेफिरने की शौकीन एकता की सुंदरता के कारण लोगों को इस बात का पता ही नहीं चलता था कि वह किन्नर है. एकता का एक ही सपना था कि उस के भतीजेभतीजी पढ़लिख कर काबिल बने और उन्हें जीवन की हर खुशी मिले.

एकता का अपने परिवार से बहुत ज्यादा लगाव था. इसीलिए वह हमेशा परिवार के संपर्क में रहती थी. कभी वह बच्चों को ले कर गांव चली जाती तो कभी मां, भाई और भाभी उस से मिलने के लिए चले आते थे.

5 सितंबर, 2020 की रात के लगभग 9 बजे का वक्त था. उस दिन बड़े भतीजे अमित ने बुआ एकता से नई जींस और कुछ दूसरे कपड़े खरीदने की फरमाइश की थी.

कोरोना महामारी के चलते लगे लौकडाउन के बाद से एकता ने बच्चों के लिए और अपने लिए भी कोई नई ड्रैस नहीं खरीदी थी. इसलिए वह भतीजे अमित को ले कर लक्ष्मीनगर में शौपिंग करने के लिए निकल गई. अपने व सभी बच्चों के लिए उस ने कुछ ना कुछ खरीदा.

कई घंटे तक शौपिंग करने के बाद 9 बजे वह वापस घर लौट आई. अमित कपड़ों से भरे बैग ले कर घर के भीतर चला गया. एकता कार को घर के सामने पार्क करने के बाद जैसे ही बाहर निकली, अचानक तेजी से एक सफेद रंग की स्कूटी उस के पास आ कर रुकी.

अज्ञात स्कूटी सवारों का हमला

स्कूटी पर 2 लोग सवार थे, दोनों ने चेहरों पर मास्क और सिर पर हेलमेट पहने थे. एकता जब तक स्कूटी सवार आगंतुकों से कुछ पूछती, तब तक उन दोनों ने पैंट के अंदर खोंस रखे पिस्तौल निकाले और एक के बाद एक 4 गोलियों की आवाजों से इलाका गूंज उठा. आगंतुक स्कूटी सवारों के पिस्तौल से बेहद करीब से चलाई गई चारों गोलियां एकता के शरीर के नाजुक हिस्सों में लगी थी.

गोलियां लगते ही एकता के हलक से बचाओ…ओ….ओ की चीख निकली और खून में नहाया उस का शरीर लहरा कर जमीन पर गिर गया. गोलियों की आवाज और एकता की चीख सुन कर उस कंपाउंड में रहने वाले किन्नरों के परिवार और राहगीर वहां एकत्र हो गए.

इस बीच एकता पर गोलियां दागने वाले स्कूटी सवार जिस तेजी से आए थे, उसी तेजी के साथ वहां से नौ दो ग्यारह हो गए.

एकता के भाई के चारों बच्चे भी शोर व गोलियों की आवाज सुन कर वहां पहुंच गए. एकता को खून में लथपथ देख वे फूटफूट कर रोने लगे. तब तक किसी ने अस्पताल ले चलने की बात कही तो कंपाउंड में रहने वाले कुछ किन्नर एकता को जल्दी से गाड़ी में डाल कर समीप के जीटीबी अस्पताल ले गए. लेकिन वहां पहुंचते ही डाक्टरों ने बता दिया कि उस की मौत हो चुकी है. किन्नरों के कंपाउंड में रहने वाले किसी व्यक्ति ने तब तक पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर के वारदात की सूचना दे दी थी.

सूचना मिलने के 10 मिनट बाद ही पीसीआर की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. वारदात की पुष्टि करने के बाद पीसीआर ने घटनास्थल से संबंधित इलाके के जीटीबी एनक्लेव थाने को फोन कर के घटना की जानकारी दे दी और तत्काल वहां पहुंचने के लिए कहा.

सूचना मिलते ही जीटीबी थाने के एसएचओ अरुण कुमार अपने इंसपेक्टर इनवैस्टीगेशन धर्मेंद्र कुमार को ले कर वारदात वाले स्थान पर पहुंच गए.

पता चला कि एकता किन्नर को कुछ लोग जीटीबी अस्पताल ले गए हैं और उस की मौत हो चुकी है. एसएचओ अरुण कुमार ने इंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार को पंचनामे की काररवाई के लिए जीटीबी अस्पताल भेज दिया और खुद घटनास्थल पर जांच व पूछताछ का काम शुरू कर दिया.

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सब से पहले उन्होंने अमित से पूछताछ की, जिस ने लक्ष्मीनगर बाजार से शौपिंग कर के लौटने और घर के भीतर जाने के बाद बाहर अपनी बुआ को गोली मार जाने की सारी बात बता दी.

तब तक वारदात की सूचना पा कर एसीपी (सीमापुरी) मुकेश त्यागी और शाहदरा जिले के डीसीपी अमित शर्मा भी क्राइम व फोरैंसिक टीम के साथ मौके पर आ गए.

पूछताछ में पता चला कि वारदात के बाद कातिल मुश्किल से 5 मिनट में वारदात को अंजाम दे कर वहां से फरार हो गए थे.

इंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार भी एकता के शव की जांचपड़ताल और उस के शव के पंचनामे की काररवाई कर के वापस घटनास्थल पर पहुंच गए.

एकता के सीने व पेट में 4 गोली लगी थीं. गोली मारने के बाद मौके से स्कूटी पर फरार हुए कातिलों का चेहरा किसी ने नहीं देखा था. जिस कंपाउंड में एकता व अन्य किन्नरों के परिवार रहते थे, उस के गेट पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को जांच के लिए अपने कब्जे में ले लिया.एसीपी मुकेश त्यागी के निर्देश पर उसी रात एसएचओ अरुण कुमार ने धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच का काम इंसपेक्टर इनवैस्टीगेशन धर्मेंद्र के सुपुर्द कर दिया. साथ ही उन की मदद के लिए एक विशेष टीम का गठन कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें-  किन्नर एकता जोशी की हत्या किसने की ?

निशाने पर एकता: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

जांच का काम शुरू करते ही पुलिस ने सब से पहले सीसीटीवी फुटेज की जांच की, लेकिन उस से कोई विशेष मदद नहीं मिली. क्योंकि बदमाशों के चेहरे पूरी तरह हेलमेट व मास्क से ढके थे. पुलिस को वारदात में इस्तेमाल की गई स्कूटी के नंबर से मदद मिलने की उम्मीद थी. क्योंकि सीसीटीवी में उस का नंबर स्पष्ट नजर आ रहा था.

लेकिन जब नंबर की पड़ताल की गई तो पता चला कि इस नंबर पर स्कूटी रजिस्टर्ड ही नहीं है, जिस से साफ हो गया कि कातिलों ने स्कूटी पर फरजी नंबर प्लेट का इस्तेमाल किया था. पुलिस को शक था कि संभव है पिछले दिनों एकता का किसी से कोई झगड़ा हुआ हो या फिर किसी ने धमकी दी हो. क्योंकि आमतौर पर किन्नर समाज में सब से ज्यादा झगड़े इलाके को ले कर होते हैं.

कई ग्रुप हैं किन्नरों के

दिल्ली में किन्नरों के अलगअलग ग्रुप हैं और अकसर इलाके में काम करने को ले कर कोई ग्रुप किसी दूसरे इलाके में घुस आता है तो उस इलाके में काम करने वाले किन्नर झगड़ा कर लेते हैं.

जब इस बिंदु पर जांच हुई और कंपाउंड में रहने वाले किन्नरों से पूछताछ की गई तो पता चला एकता स्वभाव से बेहद मिलनसार थी. उस का किसी से कोई विवाद नहीं था.

पूछताछ करने पर पता चला कि इसी कंपाउंड में रहने वाली अनीता जोशी इस इलाके की गुरु हैं, जिन्होंने एकता को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. इसलिए पैसे के लेनदेन का सारा हिसाब एकता ही रखती थी. किन्नर समाज में एकता का रुतबा बन चुका था. वह पूरी दिल्ली की गुरु बनने की रेस में शामिल हो गई थी.

एकता के करीबियों से पूछताछ में यह भी पता चला कि जिस रात एकता की हत्या हुई, उसी सुबह नंदनगरी 212 बस स्टैंड पर जनता फ्लैट्स के किन्नर ग्रुप का दूसरे किन्नरों के ग्रुप से विवाद हुआ था.

दूसरा ग्रुप कमजोर पड़ गया था, जिस ने रात को देख लेने की धमकी दी थी. इसलिए पुलिस को आशंका हुई कि कहीं इस हत्याकांड को आपसी रंजिश के तहत अंजाम न दिया गया हो.

पुलिस ने किन्नरों से पूछताछ के बाद किन्नरों के दूसरे गुट के बारे में जानकारी हासिल की और कुछ किन्नरों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन पूछताछ के बाद भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी.

फिर भी न जाने क्यों एसएचओ अरुण कुमार को अंदेशा था कि किन्नर समाज के लोग ही इस हत्या में शामिल हैं, गुरु की कुरसी हासिल करने के चलते भी यह हत्या हो सकती है. जिन संदिग्ध लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया था, उन से हत्याकांड के बारे में तो पता नहीं चला लेकिन यह जरूर पता चल गया कि एकता को उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद दिल्ली में कई किन्नर गुरु एकता से नाराज थे.

दूसरी तरफ पुलिस की टीम ने इलाके के सौ से ज्यादा लोगों से पूछताछ कर ली थी और 2 सौ से ज्यादा कैमरों की फुटेज खंगाल चुकी थी. लेकिन इस के बावजूद कोई ठोस जानकारी हासिल नहीं हो पाई थी.

कुछ किन्नरों से पूछताछ के बाद पुलिस को ऐसे संकेत मिले कि एकता जोशी की हत्या में भाड़े के हत्यारों का इस्तेमाल हो सकता है. ऐसा इसलिए भी लग रहा था क्योंकि गोली चलाने वाले बेहद प्रोफेशनल थे.

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दूसरी तरफ देश के कई हिस्सों में किन्नर समाज के लोगों ने एकता जोशी की हत्या पर आक्रोश जताते हुए हत्याकांड का जल्द खुलासा करने की मांग शुरू कर दी थी.

एकता के रुतबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि उस की हत्या के बाद शिवसेना के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष जयभगवान भी शोक प्रकट करने के लिए उस के घर पर पहुंचे. किन्नर महामंडलेश्वर लक्ष्मी किन्नर एकता को अपनी खास दोस्त मानती थी, इसलिए वह भी शोक प्रकट करने के लिए उन के घर पहुंची.

एसएचओ अरुण कुमार ने जांचपड़ताल में साइबर सेल टीम की भी मदद ली थी. साइबर टीम के सहयोग से पुलिस ने घटनास्थल के आसपास उस रात एक्टिव मोबाइल फोन नंबरों का डंप निकाल कर छानबीन शुरू कर दी थी. एकता जोशी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर पुलिस ने उस की भी छानबीन की.

इस बिंदु पर की गई छानबीन के बाद पुलिस को पता चला कि एकता जोशी की पश्चिमी यूपी के मेरठ व गाजियाबाद में कुछ लोगों से बातचीत होती थी. जिन नंबर से उन्हें काल आती या की जाती, वे सभी मेरठ के अपराधियों के नंबर थे. इसीलिए एसीपी मुकेश त्यागी ने मेरठ में एसटीएफ टीम से संपर्क कर हत्याकांड में मदद करने के लिए कहा था.

उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पैशल टास्क फोर्स के डीएसपी बृजेश सिंह ने अपने तेजतर्रार इंसपेक्टर रविंद्र कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में सबइंसपेक्टर संजय कुमार, हेडकांस्टेबल संजय सिंह, रवि वत्स, रकम सिंह, कांस्टेबल दीपक कुमार व अंकित श्यौरान को शामिल किया गया.

छानबीन पहुंची मेरठ तक

पुलिस की इस टीम के पास मेरठ के अधिकांश अपराधियों की कुंडली थी. दिल्ली पुलिस से सूचना मिलने के बाद पुलिस ने अपने मुखबिर नेटवर्क का इस्तेमाल करना शुरू किया. एसटीएफ की टीम ने ऐसे अपराधियों को चिह्नित करना शुरू किया, जो सुपारी ले कर हत्या करने के लिए जाने जाते थे. पुलिस ने चिह्नित किए गए सभी बदमाशों के मोबाइल नंबर हासिल कर उन की काल डिटेल्स निकाल कर उसे खंगालना शुरू कर दिया.

इसी पड़ताल के दौरान एसटीएफ की टीम को आमिर गाजी नाम के एक बदमाश के मोबाइल की लोकेशन 5 सितंबर को दिल्ली में मिली. संयोग से आमिर के मोबाइल की लोकेशन रात को साढ़े 8 से 9 बजे के करीब जीटीबी एनक्लेव के जनता फ्लैट के आसपास थी और यहीं एकता जोशी की हत्या हुई थी.

एसटीएफ की टीम समझ गई कि दिल्ली पुलिस का शक सही है कि एकता जोशी की हत्या करने वाले बदमाशों का संबंध मेरठ से है. इतनी जानकारी मिलने के बाद एसटीएफ की टीम ने आमिर गाजी को ट्रैक करना शुरू कर दिया. और 9 नवंबर को सटीक सूचना मिलने के बाद एसटीएफ टीम ने शाम को करीब 7 बजे उसे इस्माइल वाली गली से गिरफ्तार कर लिया.

आमिर के साथ एक अन्य युवक भी था. तलाशी लेने के बाद दोनों के कब्जे से एक आटोमैटिक पिस्टल और एक तमंचा बरामद हुआ. आमिर के साथ पकड़े गए युवक का नाम सुहैल खान था.

पुलिस को दोनों से पूछताछ करने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. थोड़ी सी सख्ती के बाद आमिर ने कबूल कर लिया कि उसी ने अपने एक दोस्त गगन पंडित के साथ मिल कर किन्नर एकता जोशी की हत्या की थी.

आमिर मेरठ के कुख्यात अपराधी और गाजियाबाद की डासना जेल में बंद सलमान गाजी का छोटा भाई है. सलमान की मेरठ के दूसरे कुख्यात अपराधी शारिक से जानलेवा दुश्मनी चल रही है.

एक जमीन को ले कर कई साल पहले शुरू हुई शारिक व सलमान की दुश्मनी में अब तक दोनों के गैंग के कई लोग मारे जा चुके हैं. इन दिनों सलमान व शारिक दोनों ही जेल में बंद हैं.

आमिर गाजी ने बताया कि कोतवाली क्षेत्र में सराय बहलीम निवासी गगन पंडित ने किन्नर गुरु एकता जोशी की हत्या कराई थी. चूंकि उस के भाई सलमान के गैंग की रंजिश शारिक गैंग से चल रही है. इसलिए जेल में बंद सलमान ने आमिर से कहा था कि किसी भी तरह शारिक की हत्या करा दें तो शहर में उन की पकड़ मजबूत हो जाएगी.

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बस इसी काम के लिए आमिर ने कुछ दिन पहले गगन पंडित से मदद मांगी थी. आमिर की गगन पंडित से 6 महीने पहले ही हाजी याकूब गली में रहने वाले असलम पहलवान के जरिए मुलाकात हुई थी. दोनों की जानपहचान जल्द ही दोस्ती में बदल गई थी.

अगले भाग में पढ़ें- गगन पंडित की गिरफ्तारी हुई या नहीं?

निशाने पर एकता: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

3 महीने पहले गगन पंडित ने आमिर से कहा था कि वह पहले दिल्ली के शाहदरा में जीटीबी एनक्लेव में एक हत्या करने में उस की मदद कर दे तो उस के बाद वह शारिक गैंग का खात्मा कराने में उस की मदद करेगा.

आमिर ने कह दिया कि वह उस के काम में मदद जरूर करेगा, लेकिन उस के बाद उसे शारिक गैंग को खत्म करने में उस की मदद करनी पडे़गी. इस बात पर दोनों की ही सहमति बन गई थी.

5 सितंबर, 2020 को आमिर मेरठ में था जब सुबह के वक्त उस के पास गगन पंडित का फोन आया. उस ने बताया कि वह दिल्ली में है. गगन ने उस से कहा, दोस्त जिस काम के लिए तुम्हें मेरी मदद करनी है उसे पूरा करने का वक्त आ गया है. इसी वक्त दिल्ली चले आओ.

मदद लेने से पहले दोस्त की मदद करने का वायदा किया था, लिहाजा आमिर उसी समय दिल्ली के लिए रवाना हो गया. शाम को 3 बजे के करीब वह दिल्ली पहुंच गया और नंदनगरी में उस जगह पहुंचा, जहां गगन ने उसे पहुंचने के लिए कहा था.

गगन पंडित के साथ वहां कुछ और लोग भी थे. यहीं पर गगन ने उसे बताया कि जीटीबी एनक्लेव में रहने वाले एक किन्नर एकता जोशी से उस की खुन्नस चल रही है.

‘‘किन्नर से तुम्हारी किस बात की खुन्नस गगन भाई?’’ आमिर ने उत्सुकता में पूछा.

‘‘मेरी सीधी तो खुन्नस नहीं है लेकिन उसी की बिरादरी के कुछ लोग हैं, जिन से अपनी दोस्ती है और वे मदद भी करते रहते हैं. उन्हीं के रास्ते का कांटा बन गई है एकता जोशी, बस इसीलिए टपकाना है. समझो, पीछे से डिमांड मिली है.’’ गगन जोशी ने थोड़े शब्दों में पूरी बात बता दी.

‘‘ठीक है भाई, आप चाहते हो तो टपका देते हैं साली को.’’ आमिर ने जोश के साथ कहते हुए पूछा, ‘‘सामान वगैरह है या जुगाड़ करने पडें़गे?’’

‘‘चिंता मत करो पूरा सामान है.’’ कहते हुए गगन ने उसे एक इंग्लिश पिस्टल दी और खुद भी एक पिस्टल निकाल कर अपनी पैंट में खोंस ली.

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गगन का खेल

इस के बाद वे किसी के फोन का इंतजार करने लगे. शाम को किसी का फोन आने के बाद गगन आमिर को एक स्कूटी पर बैठा कर अपने साथ जीटीबी एनक्लेव में जनता फ्लैट के पास पहुंचा और इंतजार करने लगा. पहचान छिपाने के लिए दोनों ने सिर पर हेलमेट लगा लिए थे और चेहरे पर मास्क भी पहन रखे थे. उन्हें बैकअप देने के लिए गगन के कुछ साथी भी स्कूटी ले कर उन के आसपास थे.

रात करीब 9 बजे जैसे ही एकता जोशी की कार उस के कंपाउंड के बाहर आ कर रुकी तो गगन ने थोड़ी दूर पर खड़ी अपनी स्कूटी स्टार्ट की और जब तक एकता कार से बाहर निकलती, तब तक स्कूटी ले जा कर एकता के पास रोक दी.

एकता जैसे ही कार से बाहर निकली आमिर और गगन ने उस पर 2-2 गोलियां इतने नजदीक से दागीं कि उस के बचने की गुजांइश ही नहीं थी. गोलियां मारने के बाद दोनों फौरन घटनास्थल से फरार हो गए.

एकता की हत्या के बाद आमिर और गगन दोनों ही मेरठ वापस आ गए. हालांकि आमिर के साथ गिरफ्तार हुए सुहैल खान उर्फ सोनू का एकता की हत्या से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन उस से पुलिस ने अवैध हथियार बरामद किया था. इसलिए एसटीएफ ने उस के खिलाफ भी आमिर के साथ शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया.

मेरठ के नूरनगर का रहने वाला सुहैल ईव्ज चौराहे पर कार वाशिंग का काम करता है. सुहैल 2 साल से आमिर के संपर्क में था. श्यामनगर निवासी इरफान ने परवेज से उस का संपर्क कराया था. परवेज मेरठ के एक बड़े गैंगस्टर हाजी इजलाल का भाई है.

इजलाल ने 10 साल पहले दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी एस.के. गिहा के भतीजे पुनीत गिरि, उस के दोस्त सुनील ढाका और कुलदीप उज्ज्वल की हत्या कर उन के शव बागपत नहर में डाल दिए थे.

इजलाल ने अपनी प्रेमिका के कहने पर मेरठ कालेज में पढ़ने वाले इन तीनों लड़कों की बेरहमी से हत्या की थी. इस हत्याकांड में परवेज भी जेल गया था, लेकिन 2 साल पहले उसे जमानत मिल गई थी.

उसी इजलाल के भाई परवेज ने सुहैल को 2 हत्याओं के लिए 10-10 लाख रुपए की सुपारी दी थी, लेकिन उस ने अभी यह नहीं बताया था कि उसे किस की हत्या करनी है.

परवेज ने सुहैल से कहा था कि किस की हत्या करनी है और कब करनी है, इस के बारे में आमिर उसे बताएगा. आमिर को परवेज ने बता दिया था कि उसे सुहैल के साथ मिल कर किन लोगों की हत्या को अंजाम देना है.

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आमिर गाजी के एकता हत्याकांड के कबूलनामे के बाद एसटीएफ के डीएसपी बृजेश सिंह ने सीमापुरी एसीपी मुकेश त्यागी और जीटीबी एनक्लेव थाने के एसएचओ अरुण कुमार को आमिर की गिरफ्तारी और एकता हत्याकांड के खुलासे की सूचना दे दी और उन के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला दर्ज कर मेरठ की अदालत में पेश कर दिया. जहां से उन्हें मेरठ जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक हत्याकांड में शामिल गगन पंडित की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. पुलिस को आशंका है कि एकता की हत्या किसी विरोधी किन्नर ग्रुप ने सुपारी दे कर कराई है. आमिर व गगन से पूछताछ के बाद ही पूरे राज से परदा उठेगा. लेकिन वह लापता है.

Crime: अकेला घर, चोरों की शातिर नजर

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के एक कारोबारी परिवार का ही किस्सा लेते हैं. 17 जनवरी, 2021 को वहां के शास्त्रीनगर इलाके के रहने वाले बौबी जैन, जिन का कानपुर में लोहे का कारोबार है, अपने परिवार के साथ आगरा गए थे, लेकिन जब वापस लौटे तो घर में बड़ी चोरी हो चुकी थी.

बौबी जैन के घर का मेन ऐंट्री वाला गेट टूटा हुआ था. घर के अंदर सामान फैला हुआ था. सवा लाख रुपए की नकदी के अलावा पत्नी के हीरे और सोने के जेवर भी गायब थे. उन जेवरों की कीमत तकरीबन 14 लाख रुपए थी.

पुलिस तहकीकात में पता चला कि चोरों को इस बात की खबर थी कि बौबी जैन का परिवार घर पर नहीं है. तभी यह कांड कर दिया गया.

बिहार के बांका जिले में साल 2020 के नवंबर महीने में शिव विहार (थाना कालोनी) में चोरों ने देर रात पूर्व जिला पार्षद कंचन साह का घर सूना पा कर ताला तोड़ कर नकदी समेत तकरीबन 3 लाख रुपए की कीमत के जेवर की चोरी कर ली.

इस बाबत कंचन साह के पति दिलीप कुमार साह ने पुलिस को बताया कि छठ पर्व के मौके पर वे अपने पुश्तैनी घर रजौन में थे. इसी दौरान रात को चोरों ने ताला तोड़ कर घर में रखे नकद 30,000 रुपए समेत सोने और चांदी के जेवरों की चोरी कर ली.

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सितंबर, 2020 में मध्य प्रदेश के इंदौर के बाणगंगा थाना इलाके में चोरों ने एक निजी गैस कंपनी के ठेकेदार के सूने घर में धावा बोल कर लाखों रुपए का सोना लूट लिया. चोरी की पृरी घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई. घर के मालिक के मुताबिक चोर तकरीबन 22 तोला सोना ले गए, जिस की कीमत 30 लाख रुपए के आसपास आंकी गई.

देशभर में चोरी के ऐसे न जाने कितने ही मामले रोज सामने आते रहते हैं. दिल्ली भी इस से अछूती नहीं है. साल 2018 में आईपीसी के तहत दर्ज अपराध के कुल 2,36,476 मामलों में से 75 फीसदी मामले चोरी के थे. हद तो यह रही थी कि चोरी के इन मामलों में से 86 फीसदी मामलों में पुलिस चोरों का पता ही नहीं लगा पाई थी.

कहने का मतलब है कि चोरी होना तो जैसे अब अपराध ही नहीं रह गया है. इस से चोरों के हौसले इतने ज्यादा बुलंद हो चुके हैं कि अगर उन्हें पता चल जाए कि फलां घर में कोई नहीं है, तो वे दिनदहाड़े वहां कांड कर देते हैं. रात हो तो कहने ही क्या.

नवंबर, 2020 का एक मामला देखें. चोरों ने एक रात उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद इलाके के कौशांबी थाना क्षेत्र के वैशाली सैक्टर 3 में कारोबारी पीयूष कुमार के बंद घर में पहले दारू पार्टी की उस के बाद लाखों के माल पर हाथ साफ कर दिया.

कुछ चोर तो इतने शातिर होते हैं कि अपनी काली करतूतों से मीडिया और फिल्मी दुनिया तक में छा जाते हैं. ‘बंटी चोर’ याद है? उस का असली नाम देविंदर सिंह है और अपनी चालाकी भरी चोरियों के चलते वह ‘सुपर चोर’ का खिताब पा चुका है. एक समय तो वह इतना ज्यादा चर्चा में था कि उस पर साल 2008 में फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए’ बना दी गई थी. वह साल 2010 में टैलीविजन के रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ में भी दिखाई दिया था.

ऐसा ही एक चोर कालिया नाम का है, जो राजस्थान के बाड़मेर इलाके का रहने वाला है. कालिया चोरी की 100 से ज्यादा वारदातों को अंजाम दे चुका है और उस पर 45 मुकदमे दर्ज हैं. उस ने बाड़मेर पुलिस की नाक में दम कर रखा है.

बताया जाता है कि कालिया चोर को धंधे वालियों और नशे की बुरी लत है. इन दोनों के लिए वह
कितनी बार चोरी कर चुका है, खुद उसे भी नहीं पता. फिलहाल वह पुलिस की गिरफ्त में है.

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देश में न जाने कितने ही बंटी और कालिया जैसे चोर भरे पड़े हैं जो खाली घरों की रेकी कर के वहां चोरी की वारदात को अंजाम देते हैं. बहुत से शहरी इलाकों में घर में काम करने वाली नौकरानी, ड्राइवर या चौकीदार ही इन को अपने साहब के आशियाने का भेद दे देते हैं, जिस से इन का काम और भी आसान हो जाता है.

लिहाजा, ऐसे लोगों से भी सावधान रहना चाहिए. दिलोदिमाग से यह बात निकाल देनी चाहिए कि हमारे साथ ऐसा नहीं होगा. कहते हैं कि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’, पर साथ ही यह भी सच है कि ‘जब जागो तभी सवेरा’. खुद के घर में कोई ऐसा हादसा हो, इस से पहले अगर कुछ कदम उठा लिए जाएं तो चोरों को अपनी हाथ की सफाई दिखाने का मौका ही हाथ नहीं लगेगा. जब भी परिवार समेत घर से बाहर जाएं, तो इन बातों पर अमल जरूर करें :

-घर के किसी कमरे की लाइट जला कर जाएं. इस से घर रात को एकदम सूना नहीं लगेगा.

-घर की कीमती चीजों की नुमाइश न करें. अगर कामवाली या कोई दूसरा नौकर घर पर आता है, तो आंख मूंद कर उस पर यकीन न करें. जेवर और नकदी को अलमारी में ही लौकर रखें.

-अपने घर की दूसरी जोड़ी चाबी को भरोसेमंद पड़ोसी के पास रख सकते हैं. अगर किसी पर यकीन नहीं है, तो उन्हें एकदम सेफ जगह पर रखें.

-गैरजरूरी कीमती सामान को बैंक के लौकर में रखें.

-परिवार समेत घर से बाहर जाने पर घर के हर खिड़कीदरवाजे को अच्छी तरह बंद करें और जहां जरूरी हो ताला लगाएं.

-किसी भी सेल्समैन, सब्जी वाले या किसी अनजान से अपने या अपने घर के बारे में ज्यादा बात न करें.

-अगर सीसीटीवी कैमरा लगवा सकते हैं, तो जरूर लगवाएं.

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आर-पार की मोहब्बत: भाग 2

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से चाकू से गला रेत कर लक्की की हत्या की थी. लाश देख कर लोग गुस्से से भर गए. गुस्साए लोग लाश वहीं छोड़ कर आरोपियों के घर की ओर चल दिए. इस बीच मौके की स्थिति को भांप कर किसी ने बहादुरपुर थाने में फोन कर घटना के बारे में जानकारी दे दी थी.

सूचना मिलते ही बहादुरपुर थाने के थानाप्रभारी सनोवर खान फोर्स के साथ अजीमाबाद पहुंच गए जहां लक्की की लाश पड़ी हुई थी. वह घटना की जांच में जुट गए.

आरोपी घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर स्थित सेक्टर-डी, अजीमाबाद कालोनी में रहते थे. गुस्साए लोगों ने आरोपियों के घर पर पत्थरबाजी शुरू कर दी.

यह जानकारी थानाप्रभारी को मिली तो वह घटनास्थल से अजीमाबाद कालोनी पहुंच गए. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की. लेकिन भीड़ नियंत्रित नहीं हो पा रही थी. यह देख उन्होंने उच्चाधिकारियों को सूचित कर दिया.

घटना की सूचना पा कर डीएसपी अमित शरण और एसपी (सिटी पूर्वी) जितेंद्र कुमार बगैर समय गंवाए मौके पर पहुंच गए. फिर फोर्स ने मोर्चा संभाल लिया.

लोगों ने की आगजनी

पुलिस सेक्टर-डी में आक्रोशित लोगों को संभालने में जुटी हुई थी, तभी घटनास्थल से करीब 3 किलोमीटर दूर कुम्हरार बाईपास के पास गुस्साए लोगों की भीड़ भड़क उठी. हत्या से नाराज भीड़ बाईपास पर आगजनी कर बवाल कर रही थी और हत्यारों को फांसी देने तथा मृतक की मां आरती देवी की आर्थिक सहायता करने की मांग कर रही थी.

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धीरेधीरे घटना दंगे का रूप ले रही थी. एसपी जितेंद्र कुमार ने हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए थानाप्रभारी (सुल्तानगंज) शेर सिंह राणा, थानाप्रभारी (आलमगंज) सुधीर कुमार और बीएमपी के जवानों को कुम्हरार बाईपास पर तैनात कर दिया ताकि हिंसा को काबू किया जा सके क्योंकि मामला 2 समुदायों से जुड़ा हुआ था और धीरेधीरे दंगे का रूप ले चुका था.

घंटों चला उपद्रव एसपी जितेंद्र कुमार के आने और समझाने के बाद समाप्त हो सका. एसपी के निर्देश पर डीएसपी अमित शरण ने आरोपी अरमान मलिक, उस की बहन खुशबू और फुफेरे भाई अजहर को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपितों के गिरफ्तार होने के बाद हालात पर काबू पा लिया गया था. गिरफ्तार किए तीनों आरोपितों को थाने ला कर उन से अलगअलग पूछताछ की गई.

पूछताछ के दौरान खुशबू ने सच कबूल लिया. उस ने बताया कि लक्की से उस के प्रेम संबंध थे. लेकिन इन संबंधों की वजह से उसे थाने आना पड़ेगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

इस के बाद पुलिस ने अरमान और अजहर से पूछताछ की तो लक्की हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

19 वर्षीय अंशु साहनी उर्फ लक्की किंग मूलरूप से पटना के बहादुरपुर थाने के अजीमाबाद संदलपुर का रहने वाला था. 3 भाइयों रीतेश, लक्की और पिशु में वह दूसरे नंबर का था. पिता संजय साहनी की बीमारी से मौत हो चुकी थी.

पिता की मौत के बाद मां आरती देवी ने तीनों बेटों का पालनपोषण किया. आरती देवी का साथ दिया उन के देवर कृष्णदेव साहनी ने, सच्चा सारथी बन कर. भाई की मौत के बाद उन्होंने भाभी को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा. उन की मदद के लिए वह हमेशा तत्पर रहे एक देवर की तरह नहीं, बल्कि एक बेटे की तरह.

रीतेश, लक्की और पिशु तीनों चाचा कृष्णदेव का दिल से सम्मान करते थे. चाचा का एकएक शब्द उन के लिए पत्थर की लकीर होती थी, वह जो कहते थे तीनों उन की बात मानते थे.

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ठाटबाट से रहता था लक्की

तीनों भाई धीरेधीरे बड़े हो चले थे. तीनों भाइयों में से लक्की सब से अलग सोच का था. शरीर से चुस्तदुरुस्त और दिमाग से चंचल लक्की खुद को किसी राजा से कम नहीं समझता था. इसीलिए वह अपने नाम के आगे किंग लगाता था. लक्की औनलाइन कंपनी अमेजन का डिलीवर बौय था.

हालांकि उस का सपना, सिर्फ सपना ही था. सपने को हकीकत में बदलने के लिए ढेर सारे पैसे चाहिए थे जो उस के पास नहीं थे. बड़ा भाई रीतेश मोटर मैकेनिक था, वह खुद डिलीवरी बौय का काम करता था जबकि छोटा भाई पिशु मछली बेचता था.

अपनी कमाई का सारा पैसा वह खुद पर खर्च करता था. अपनी कमाई के पैसे से महंगे और अच्छे कपड़े खरीदना, महंगा मोबाइल फोन रखना, काम से निपटने के बाद दोस्तों के साथ पार्टी करना लक्की की दिनचर्या में शामिल था.

बात करीब एक साल पहले की है. एक दिन अरमान मलिक के नाम से अमेजान कंपनी से एक पार्सल आया. लक्की दोपहर करीब एक बजे डिलीवरी देने अरमान के घर पहुंचा. उस दिन अरमान घर पर नहीं था. वह किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस की छोटी बहन खुशबू डिलीवरी लेने घर से बाहर निकली.

16 साल की खुशबू बला की खूबसूरत थी. खुशबू को देख कर वह अपलक उसे निहारता रह गया. उसे देख कर लक्की पहली ही नजर में उस पर लट्टू हो गया था.

खुशबू पार्सल रिसीव कर के बलखाती हुई घर के भीतर चली गई. लक्की उसे निहारता रह गया. रात ड्यूटी से घर लौटने के बाद जब लक्की खाना खाने बैठा तो उस की आंखों के सामने खुशबू की खूबसूरती थिरकने लगी. खाना खातेखाते उस के खयालों में खो गया. दोनों भाई खाना खा कर कब उठ गए, उसे पता ही नहीं चला.

उस रात जब घर के सभी लोग सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए तो लक्की बिना घर वालों को बताए चुपके से रात 12 बजे के करीब अपने जिगरी दोस्त जीतू के घर जा पहुंचा. जीतू किराए का कमरा ले कर अकेला ही रहता था. पूरी रात लक्की उस से खुशबू के बारे में बातें करता रहा.

दिल में बसा ली थी खुशबू

अगले दिन लक्की जब डिलीवरी के लिए सामान ले कर घर से निकला तो वह सीधे ग्राहक के घर न जा कर अरमान के घर के रास्ते हो कर निकला ताकि खुशबू का दीदार हो जाए. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी तो लक्की काम पर निकल गया.

रात में घर लौटते समय भी वह उसी के घर के सामने से हो कर निकला ताकि खुशबू को एक नजर देख सके. लेकिन निराशा ही हाथ लगी. मायूस हो कर लक्की घर लौट आया.

अगले दिन काम पर जाते हुए लक्की फिर उसी के घर के सामने से निकला तो दरवाजे पर खुशबू खड़ी मिल गई. उसे देखते ही लक्की के चेहरे पर खुशी उमड़ पड़ी. उसे देख वह मुसकराता हुआ बाइक से आगे बढ़ गया.

लक्की खुशबू से बात करना चाहता था लेकिन उसे इस का जरिया नहीं मिला. इसी दौरान उसे उस फोन नंबर का ध्यान आया जो खुशबू ने पार्सल रिसीव करते समय लिखा था. उसी फोन नंबर पर बात कर के लक्की खुशबू के करीब पहुंच ही गया.

खुशबू के भी दिल में लक्की के लिए चाहत पैदा होने लगी थी. वह भी लक्की से प्यार करने लगी थी. दो जवां दिलों में एकदूजे के लिए प्यार की इबारत लिखी जा रही थी. मौका मिलने पर वे घर से बाहर भी मुलाकातें करने लगे.

मोहब्बत का इजहार और इकरार करने के बाद दोनों चोरीछिपे यहांवहां मिलते और प्यार की बातें करते. लक्की खुशबू को खुश रखने के लिए खूब पैसे खर्च करता और मंहगे तोहफे देता था.

लक्की से प्यार होने के बाद खुशबू के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. पहली बार घर वालों ने खुशबू के बदले हावभाव देखे तो उन्हें उस पर शक हो गया कि मामला कुछ गड़बड़ है.

उस दिन के बाद से उस का बड़ा भाई अरमान बहन पर नजर रखने लगा. वैसे भी अरमान को कहीं से उड़ती हुई खबर मिल चुकी थी कि खुशबू का किसी अंजान लड़के के साथ चक्कर चल रहा है.

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अरमान ने धमकाया लक्की को

उस दिन के बाद से अरमान बहन के प्रेमी को ढूंढने में जुट गया. आखिरकार अरमान ने एक दिन लक्की को बहन से बातें करते देखा तो उसे धमकाया, ‘‘2 टके के डिलीवरी बौय, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन पर बुरी नजर डालने की. आज के बाद तूने फिर से उस की तरफ नजर उठा कर देखा तो तेरी आंखें निकाल लूंगा.’’

लक्की को धमकाने के बाद अरमान खुशबू को ले कर घर चला गया और लक्की अपने काम पर निकल गया. घर पहुंच कर अरमान ने खुशबू की करतूतें मांबाप से बताईं.

घर वाले बेटी की करतूत जान क र शर्मसार हो गए और उन्हें उस पर गुस्सा भी खूब आया. उन्होंने बेटी पर हाथ भर नहीं उठाया, पर उसे खूब जलील किया.

अगले भाग में पढ़ें-  लिख डाली खूनी इबारत

आर-पार की मोहब्बत: भाग 1

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

अंशू साहनी उर्फ लक्की किंग और खुशबू एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. वे शादी भी करना चाहते थे.

‘‘मांआज खाने में क्याक्या है?’’ किचन में मां आरती देवी से लिपटते हुए बेटे अंशू साहनी उर्फ लक्की ने पूछा.

‘‘तेरे पसंद की मछली करी और भात बनाया है.’’ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए मां ने कहा.

‘‘वाह! मछली करी और भात.’’ कह कर लक्की चहक उठा और लंबी सांसें भरते हुए बोला, ‘‘कढ़ाई में से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है. आज तो खाने में मजा आ जाएगा मां.’’

‘‘पगला कहीं का, ऐसा क्यों कह रहा है जैसे आज के पहले तूने कभी मछली करी और भात खाया ही नहीं.’’

‘‘नहीं, मां. बस ऐसे ही… अब तो खाना परोस दो. बड़े जोरों की भूख लगी है.’’ पेट पर हाथ फेरते हुए लक्की बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है, हाथमुंह धो कर कमरे में बैठो, तब तक मैं खाना परोस कर लाती हूं.’’ कह कर आरती देवी ने 3 कटोरीदार थालियां निकालीं.

तीनों थालियों में खाना परोस कर कमरे में ले गईं, जहां लक्की के साथसाथ उस के 2 भाई रीतेश और पिशु बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे.

खाना खाने के बाद लक्की अपने कमरे में सोने चला गया और दोनों भाई भी वहीं कमरे में चौकी पर ही सो गए. उस के बाद आरती भी अपने कमरे में सोने चली गईं. उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. ये बात 12 दिसंबर, 2020 की थी.

रोजमर्रा की तरह अगली सुबह भी आरती देवी करीब 6 बजे उठ गईं. रोज की तरह वह मझले बेटे लक्की के कमरे में झाड़ू लगाने पहुंचीं तो देखा लक्की अपने बिस्तर पर नहीं था.

यह देख कर उन्हें बड़ा अजीब लगा कि इतनी सुबह वह कहां गया होगा? जबकि वह इतनी जल्दी सो कर उठता ही नहीं था. तभी उन्हें याद आया कि वह अकसर बिना किसी को बताए अपने दोस्त जीतू के यहां चला जाता था सोने के लिए. हो सकता है बिना बताए रात वहीं सोने चला गया हो. यह सोच कर आरती देवी लापरवाह हो गईं और अपने कामों में जुट गईं.

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घर की साफसफाई से जब वह फारिग हुईं और दीवार घड़ी पर नजर डाली तो घड़ी में 8 बज रहे थे. पता नहीं क्यों लक्की को ले कर उस के मन में एक संशय सा उठ रहा था.

आरती के दोनों बेटे रीतेश और पिशु भी सो कर उठ चुके थे. बेटों के उठते ही आरती ने बड़े बेटे रीतेश से कहा, ‘‘देखो न, लक्की अपने कमरे में नहीं है. उस का फोन भी बंद आ रहा है. पता नहीं क्यों उसे ले कर मेरे मन में अजीब सा कुछ हो रहा है. देखो न कहां है?’’

‘‘मां, उसे ले कर तुम खामखा परेशान हो रही हो, उस की आदत को तरह जानती तो हो कि कितना लापरवाह है. कितनी बार बिना बताए घर से चला जाता है. और तो और अपना फोन भी बंद रखता है. कहांकहां तलाशता फिरूं? आ जाएगा घर. तुम उस की फिक्र मत करो.’’ रीतेश बोला.

आरती देवी समझ रही थीं कि रीतेश जो कह रहा है वह सच है. क्योंकि लक्की कई बार ऐसा कर चुका था. इसलिए घर वाले यही सोच कर निश्ंिचत हो गए कि लक्की रात भी वहीं गया होगा.

घड़ी में 9 बज गए, उस का फोन अभी भी बंद आ रहा था और वह घर भी नहीं लौटा तो आरती परेशान हो गई और रीतेश को उस के बारे में पता करने को कहा. मां को परेशान देख रीतेश ने लक्की के फोन पर काल की लेकिन फोन बंद था.

यह देख कर रीतेश भी परेशान हो गया. उस ने लक्की के दोस्त जीतू को फोन कर के लक्की के बारे में पूछा तो जीतेश ने बताया कि लक्की तो उस के पास आया ही नहीं था. जीतू की बात सुन रीतेश के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

उस ने जीतू से पूछा, ‘‘अगर लक्की तुम्हारे पास नहीं आया तो वह कहां गया?’’

‘‘मुझे नहीं पता वह कहां गया भैया,’’ जीतू ने सामान्य तरीके से जबाव दिया, ‘‘यहां आया होता तो मैं जरूर बताता. मैं और दोस्तों को फोन कर के पता करता हूं कि वह कहीं किसी और के पास तो नहीं रुका है?’’

‘‘ठीक, जल्द पता कर के बताओ तब तक मैं उसे तलाशता हूं.’’ कह कर रीतेश ने फोन काट दिया.

रीतेश ने मां को लक्की के जीतू के घर न पहुंचने की बात बताई. तब वह और ज्यादा परेशान हो गईं और उन्होंने उसे उस का पता लगाने के लिए भेज दिया.

रीतेश सीधा अपने चाचा कृष्णदेव साहनी के घर पहुंच गया. उस के चाचा 2 घर छोड़ कर अपने परिवार के साथ नए घर में रहते थे. उस ने चाचा से पूरी बात बता दी.

लक्की के गायब होने की बात सुन कर कृष्णदेव भी चौंके. लक्की की खोज में वह उस के साथ हो लिए. चाचाभतीजा घर से जैसे ही थोड़ी दूर पहुंचे तभी मछली बेचने वाले कुछ दुकानदार उन के पास पहुंचे और उन्होंने जो बताया उसे सुन कर दोनों के होश उड़ गए.

दुखद खबर से उड़े होश

दरअसल, पिशु की वजह से मछली दुकानदार उन्हें अच्छी तरह पहचानते थे. पिशु भी मछली बेचने का धंधा करता था. बहरहाल, दुकानदारों ने बताया कि इसी इलाके की अजीमाबाद सड़क के किनारे लक्की की खून सनी लाश पड़ी है. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी है.

भाई की हत्या की बात सुनते ही रीतेश एकदम से बदहवास सा हो गया. ऐसा लगा जैसे गश खा कर वहीं गिर जाएगा. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? बदहवास और दौड़ता हुआ वह उस जगह पहुंचा, जहां लक्की की लाश पड़ी थी.

खून से सनी लक्की की लाश देख कर रीतेश दहाड़ मार कर रोने लगा. चाचा कृष्णदेव साहनी भी भावुक हो काठ बन गए थे. जैसे काटो तो खून नहीं. इन्होंने भतीजे को संभालते हुए जमीन पर बैठा दिया. थोड़ी देर में लक्की की हत्या की खबर घर तक पहुंच गई.

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बेटे की हत्या की खबर मिलते ही आरती देवी गश खा कर गिर पड़ीं. घर में मौजूद पिशु ने मां को संभाला. भाई की मौत की खबर सुन कर वह भी हतप्रभ था. देखते ही देखते लक्की की मौत की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई थी.

मोहल्ले के सैकड़ों लोग आरती के घर के बाहर जमा हो गए. आरती और उन के दोनों बेटों को शक था कि लक्की की हत्या फिरोज मलिक और उस के घरवालों ने ही की होगी. यह बात आरती ने मोहल्ले वालों को भी बता दी.

इंतकाम की आग में जलते हुए मोहल्ले के लोग घटनास्थल पहुंच गए थे.

अगले भाग में पढ़ेंअरमान ने धमकाया लक्की को

आर-पार की मोहब्बत: भाग 3

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

मां ने उसे समझाया, ‘‘बेटी, जो किया सो किया. कम से कम घर की इज्जत तो बाजार में मत उछाल. तू पढ़लिख. वक्त आने पर तेरे अब्बू अच्छा लड़का देख कर तेरा निकाह धूमधाम से कर देंगे. तू ऐसे छिछोरों के साथ गलबहियां जोड़ कर घर की इज्जत मत बेच. समझी.’’

सिर झुकाए खुशबू मां की बातें चुपचाप सुन रही थी. उस समय उस ने मां से झूठ बोल कर मामला वहीं खत्म कर दिया और वादा किया कि अब वह लक्की से कभी नहीं मिलेगी और न ही बात करेगी.

बेटी के किए वादे पर उन्हें यकीन हो गया था कि अब वह कोई ऐसी हरकत नहीं करेगी, जिस से घर वालों को शर्मिंदा होना पड़े.

पर बात यहीं खत्म नहीं हुई. अरमान ने फुफेरे भाई अजहर के साथ मिल कर लक्की के घर का पता लगा लिया था. एक दिन वह उस के घर पहुंच गया. उस ने उस की मां को धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘आंटी, तू अपने बेटे लक्की को समझा देना, वह मेरी बहन से दूर ही रहे तो उस के लिए अच्छा है, नहीं तो इस का नतीजा बहुत बुरा होगा.’’

अरमान और अजहर चले गए. लेकिन आरती देवी एकदम से सन्न रह गई थीं. बेटे को ले कर उन्हें चिंता सताने लगी थी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच न हो जाए. वह लक्की के घर लौटने की राह देखने लगी.

रात में जब लक्की ड्यूटी से घर लौटा तो खाना खिलाने के बाद मां ने उसे समझाया और बताया कि दूसरों की इज्जत से खेलने का अंजाम बहुत बुरा होता है. तू संभल जा बेटा. आज 2 लड़के घर आ कर मुझे धमका गए हैं.

बेटा, मेरे जीने का तुम्हीं सब सहारा हो, अगर तुम्हें कुछ हुआ तो मैं किस के सहारे जीऊंगी? मेरी बात मान बेटा, तू उस लड़की का चक्कर छोड़ कर अपने काम में मन लगा. समय आने पर अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी करा दूंगी.

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मां की बात सुन कर लक्की सकपका गया कि उस के प्यार का राज खुल गया है. वह उलटा मां को ही समझाने लगा, ‘‘मां, खुशबू बहुत अच्छी लड़की है. मैं उसे बहुत प्यार करता हूं, वह भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, मां. हमें बस तुम्हारे आशीर्वाद की जरूरत है.’’

लक्की मां के सामने फिल्मी डायलौग मारने लगा. बेटे की बात आरती को तनिक भी अच्छी नहीं लगी. तभी उस ने उस के कान के नीचे एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद किया. वह तिलमिला कर रह गया. आरती को बेटे की चिंता सताने लगी थी क्योंकि उन्होंने उन दोनों लड़कों के तेवर देखे थे. कितने गुस्से में थे वे.

फिलहाल मां के समझाने का लक्की पर कोई असर नहीं हुआ. वह खुशबू से अब भी छिपछिप कर मिल रहा था. लक्की के बिना जी पाना खुशबू के लिए भी मुश्किल होता जा रहा था. दोनों ने फैसला किया कि चाहे जो कुछ हो जाए, वे कभी जुदा नहीं होंगे. जमाने से लड़ कर अपने प्यार को हासिल करेंगे.

इधर, भले ही खुशबू मांबाप को यकीन दिलाने में कामयाब हो गई थी लेकिन भाई अरमान की नजर बहन पर ही टिकी थी. उसे पता चल गया था कि खुशबू मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर छिपछिप कर लक्की से मिलती है. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लान ने जन्म लिया. उस ने अपनी योजना में फुफेरे भाई अजहर को भी शामिल कर लिया था.

लिख डाली खूनी इबारत

अजहर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह बहादुरपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. अजहर के षडयंत्र में शामिल होने से अरमान को बल मिल गया था.

योजना को अंजाम देने के लिए अरमान और अजहर ने खुशबू को धमका कर अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया था. क्योंकि खुशबू के बिना उन की यह योजना पूरी नहीं हो सकती थी.

प्लान के मुताबिक 12/13 दिसंबर, 2020 की रात एक बजे खुशबू ने लक्की को फोन किया और उसे मिलने के लिए उसी समय घर के पीछे बुलाया. खुशबू का फोन आते ही लक्की कपड़े पहन कर मोबाइल साथ ले कर चुपके से घर से निकल गया. उस समय घर के सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे. वह घर से थोड़ी दूर पहुंचा तो रास्ते में उसे अरमान और अजहर मिल गए.

दोनों को देखते ही लक्की समझ गया था कि खुशबू ने धोखे से उसे यहां बुलाया है. इन से बचना कठिन है.

वह खतरे को भांप चुका था. जैसे ही उस ने वहां से भागने की कोशिश की दोनों ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया. कसरती बदन वाले अजहर ने अपना मजबूत हाथ लक्की के मुंह पर रख दिया ताकि वह चिल्ला न सके. उस के हाथों के दबाव से लक्की की आवाज गले में घुट कर रह गई.

तब तक दोनों ने उसे जमीन पर पटक दिया. अरमान ने लक्की के दोनों पैर पकड़ लिए. अजहर ने कमर में खोंसा धारदार चाकू निकाला और लक्की का गला रेत दिया. थोड़ी देर में लक्की की मौत हो गई. इतने पर भी उसे यकीन नहीं हुआ तो उस के सीने पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए. फिर दोनों वहां से फरार हो गए और साथ में उस का फोन भी ले गए.

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भागते हुए उन्होंने खून से सना चाकू झाड़ी में फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक कभी न पहुंच पाए. लेकिन कातिल कितना ही चालाक क्यों न हो, कानून की गिरफ्त से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता.

मृतक की मां आरती देवी की नामजद तहरीर पर लक्की की हत्या के आरोप में पुलिस ने खुशबू, अरमान मलिक और अजहर को गिरफ्तार कर लिया. आरती देवी ने अरमान के पिता फिरोज मलिक को भी नामजद किया था, लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद वह घर से फरार हो गया था.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर लक्की की हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. कथा लिखे जाने तक 3 आरोपी जेल में बंद थे.

काश! लक्की ने अपनी मां का कहना मान लिया होता तो आज वह जिंदा रहता.

—कथा में खुशबू परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime- नाजायज शराब: ‘कंजर व्हिस्की’ पीना है रिस्की

आखिरकार 4 फरवरी  2021 को पुलिस यह उजागर करने में कामयाब हुई कि मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से 13 गांवों के 28 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन इसके जिम्मेदार कौन-कौन लोग हैं?

गौरतलब है कि जनवरी, 2021 के तीसरे हफ्ते में मुरैना में जहरीली शराब पीने से सिलसिलेवार हुई इन मौतों पर खासा हाहाकार मचा था. नतीजतन, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 20 जनवरी, 2021 को सख्त तेवर दिखाते हुए सरकारी अफसरों के कान एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरीए उमेठते हुए हिदायत दी थी कि नाजायज शराब के इस कारोबार को जैसे भी हो खत्म किया जाए और आइंदा अगर नाजायज शराब से राज्य में मौतें हुईं, तो सीधे तौर पर कलक्टर समेत पुलिस और आबकारी महकमों के अफसर इसके जिम्मेदार होंगे.

इस फटकार के बाद राज्य में हड़कंप मच गया और जगह-जगह मारे गए छापों में नशे के कारोबार में लगे कई लोग गिरफ्तार किए गए. रायसेन जिले के सुलतानपुर थाना इलाके के गांव सेमरा कलां में पुलिस टीम पहुंची, तो वहां सन्नाटा पसरा था, क्योंकि छापेमारी की खबर नाजायज शराब बनाने और बेचने वालों को पहले ही न जाने कौन से जादू के जोर से लग चुकी थी. पुलिस के हाथ तकरीबन 5,500 लिटर लहान यानी गुड़ का घोल लगा जो शराब बनाने में इफरात से इस्तेमाल होता है.

2 फरवरी 2021 को भोपाल से महज 30 किलोमीटर दूर तरावली और करारिया गांवों से रिकौर्ड 21,000 लिटर महुए का घोल पुलिस वालों ने जब्त किया था, जिसे ड्रमों में भर कर जमीन में गाड़ कर रखा गया था. एक दूसरी बड़ी कार्यवाही में पुलिस ने इंदौर के तकरीबन आधा दर्जन ढाबे ढहा दिए जहां नाजायज शराब बिकती थी.

इसके पहले मुरैना के ही सेंवढ़ा कसबे से सटे गांव मुबराकपुरा में भी पुलिस ने छापा मार कर हजारों लिटर कच्ची शराब नष्ट की थी. यह गांव मुरैना से तकरीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर है. 2 फरवरी, 2021 को ही निमाड़ इलाके के धार जिले के नाजायज शराब बनाने के लिए बदनाम 2 गांवों छोटी बूटी और बड़ी बूटी के छापेमारी में पुलिस ने 40,000 लिटर से भी ज्यादा महुआ का घोल बरामद किया था. इन गांवों में लगी शराब की 200 भट्ठियां तोड़ते हुए पुलिस ने 550 लिटर शराब भी जब्त की थी. ये दोनों गांव इंदौर मुंबई हाईवे पर 10 किलोमीटर में बसे हुए हैं.

निमाड़ इलाके के ही शहरों सनावद, बड़वाह, महेश्वर और कसरावद के कई गांवों में छापा मार कर पुलिस और आबकारी महकमे ने 4,000 लिटर महुए का घोल नष्ट किया था और 60 लिटर भट्ठी की बनी नाजायज शराब भी जब्त की थी.

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ग्वालियर के नजदीक डबरा के एक छापेमारी में 50 लाख रुपए की कीमत की कच्ची शराब और गुड़ का घोल जब्त किया गया था. महाकौशल इलाके के जबलपुर में भी 100 लिटर कच्ची शराब और उस से दोगुनी तादाद में घोल जब्त किया गया था. विंध्य इलाके के रीवा जिले के डिहिया गांव में 650 लिटर महुए का घोल, 50 किलोग्राम यूरिया और भारी तादाद में कच्ची शराब बरामद की गई थी. यहां तो शराब माफिया के हौसले इतने बुलंद थे कि उस ने पुलिस टीम पर हमला कर के 5 पुलिस वाले घायल कर दिए थे.

छापे हैं छापों का क्या

ऐसे कई छापे मुरैना के हादसे के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बिगड़े मूड के चलते राज्य के हर इलाके में पड़े, लेकिन इन से नाजायज शराब की समस्या हल हो गई या हल हो जाएगी, ऐसा कहने की कोई ठोस वजह नहीं है, क्योंकि नकली शराब का कारोबार असली शराब के मुकाबले कहीं ज्यादा और बड़ा है. फर्क इतना भर है कि असली यानी लाइसेंसी शराब फैक्टरियों और कारखानों में बनती है, जबकि नाजायज शराब कोने-कोने में खासतौर से देहाती और उस में भी आदिवासी इलाकों में ज्यादा बन रही होती है. ऐसा भी नहीं है कि इन छापों से नाजायज शराब के कारोबार पर बहुत ज्यादा फर्क पड़ा हो.

भोपाल के शिवाजी नगर में बने आबकारी महकमे के एक मुलाजिम की मानें तो यह चंद दिनों का तमाशा है जो अभी कुछ दिनों तक और चलेगा, क्योंकि होली का त्योहार नजदीक है और उन दिनों में शराब की मांग और खपत ज्यादा रहती है. मुरैना जैसे कोई किरकिरी कराने वाले हादसे का दोहराव न हो, इसलिए ये छापे जारी रहेंगे.

इस मुलाजिम के मुताबिक नाजायज शराब, जो ‘कंजर व्हिस्की’ के नाम से मशहूर हो गई है, का बाजार जायज शराब से कमतर नहीं आंका जा सकता.

क्या है ‘कंजर व्हिस्की’

कंजर एक घुमक्कड़ जाति है जो सुनसान इलाकों में बस जाती है.  आजादी के पहले इस जाति के लोग आमतौर पर लुटेरे माने जाते थे. अंगरेजी हुकूमत में तो इसे बाकायदा अपराधी जाति घोषित कर दिया गया था.

कंजर शराब के धंधे में कैसे आए, इस के लिए इस जाति के गुजरे कल पर नजर डालें तो कई दिलचस्प बातें उजागर होती हैं. चूंकि ये लोग जंगलों में रहते थे, इसलिए कभी इन्हें समाज ने अपनाया नहीं, उलटे इन की हर लैवल पर अनदेखी हुई. इस जाति की औरतें ही घर की मुखिया होती हैं और गुजरबसर करने के लिए वे देह धंधा भी करती थीं, जिसे कंजर बुरा या गलत नहीं मानते. शादी के पहले लड़कियों को अपनी मरजी से कहीं भी किसी से भी सैक्स ताल्लुकात बनाने की आजादी है, लेकिन शादी के बाद नहीं होती, क्योंकि पति तयशुदा रकम दे कर शादी करता है.

बदलते वक्त के साथसाथ कंजर समाज के तौरतरीकों और रहनसहन में भी बदलाव आए, लेकिन इन्हें सभ्य समाज ने कभी बराबरी का दर्जा नहीं दिया. आजादी के बाद इस जाति के लोग यहांवहां भटकते हुए जैसेतैसे गुजरबसर करने लगे, लेकिन लूटपाट और जिस्मफरोशी से पूरी तरह किनारा नहीं कर पाए, लिहाजा आज भी ये बदनाम हैं. इन के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते और जो थोड़ेबहुत जाते भी हैं, वे 5वीं या 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. इन के भले के लिए वक्त-वक्त पर सरकारी योजनाएं बनीं, लेकिन सरकारी अफसरों के निकम्मेपन, लापरवाही और अनदेखी के चलते वे भी इन का कोई भला नहीं कर पाईं.

लिहाजा, 30 साल पहले इस समाज के बहुत से लोग पूरी तरह शराब के धंधे में आ गए, क्योंकि खुद पियक्कड़ होने के चलते ये देशी शराब बनाने में माहिर होते हैं. शुरू-शुरू में ये नकली या नाजायज शराब नहीं बनाते थे, लेकिन बाद में मुनाफे के लालच में बनाने लगे. यह वह दौर था जब शराब लगातार महंगी हो रही थी और गांव-देहात के बाशिंदों की पहुंच से बाहर होने लगी थी. इनकी बनाई शराब लाइसेंस वाले ठेकों और दुकानों पर मिलने वाली शराब से बहुत सस्ती होती है, इसलिए उसकी मांग बढ़ने लगी, देखते ही देखते इन की और दूसरों की भी बनाई गई नाजायज शराब ‘कंजर व्हिस्की’ के नाम से मशहूर हो गई. यह नाम पियक्कड़ों और आबकारी महकमे ने ही दिया. देशी शराब का जो क्वार्टर या पौआ सरकारी ठेके पर 80 रुपए में मिलता है उसे ये 40 रुपए में मुहैया कराते हैं.

ऐसे बनती है कंजर व्हिस्की

नाजायज शराब बनाना कोई मुश्किल या टैक्निकल काम नहीं है, इसलिए इसे आसानी से बना लिया जाता है. पूरे देश के आदिवासी कच्ची शराब खुद बनाते हैं और इस बाबत उन्हें कानूनन छूट भी मिली हुई है. यह शराब महुए और गुड़ के लहन यानी घोल से भट्ठी पर बनाई जाती है. इस तरीके से बनाई गई शराब के एक पौआ यानी 180 मिलीलिटर शराब बाजार में 40 रुपए से 60 रुपए में बिकती है, जो सरकारी शराब से काफी सस्ती होती है.

भट्ठी में यह घोल गरम होता है तो एक नली के जरीए निकली भाप को बरतन में इकट्ठा कर लिया जाता है. इसे शराब उतारना कहा जाता है. यह देशी या कच्ची शराब जहरीली नहीं होती, लेकिन एल्कोहल की मात्रा ज्यादा होने से इस से नशा अंगरेजी शराब से ज्यादा होता है. आदिवासी और गैरआदिवासी इलाकों में हर कहीं ये भट्ठियां दिखना आम बात है.

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गड़बड़ तब शुरू होती है जब इस घोल में जानलेवा और खतरनाक कैमिकल मिलाए जाने लगते हैं. इन में यूरिया, नौसादर और आक्सीटोसिन खास हैं. इस के अलावा कच्ची शराब को और नशीला बनाने इस में धतूरा, बेशरम पेड़ की पत्तियां, सड़े संतरे व अंगूर और कुत्ते का शौच यानी मल भी मिलाया जाता है.

यह तो हर कोई जानता है कि शराब कोई सी भी हो उस में इथाइल एल्कोहल होता है. अंगरेजी शराब यानी व्हिस्की में इस की मौजूदगी 40 से 68 फीसदी तक होती है. यह तादाद जानलेवा नहीं होती और 2-3 पैग यानी 180 मिलीलिटर में पीने वाला मानो नशे में उड़ने लगता है.

कच्ची शराब में भी यही होता है लेकिन जब इस में ऊपर बताए कैमिकल मिला दिए जाते हैं, तो यह जहर हो जाती है, क्योंकि इस में रासायनिक क्रियाओं से जहर बन जाता है जो बेहद घातक साबित होता है. मिथाइल एल्कोहल के पेट में पहुंचते ही नुकसानदेह रासायनिक क्रियाएं तेज होने लगती हैं और चंद मिनटों में ही शरीर के अंदरूनी हिस्से काम करना बंद कर देते हैं.  फेफड़ों, जिगर, गुरदे और आंतों को मिथाइल अल्कोहल एक तरह से जला डालता है. इसका सीधा असर दिमाग और नर्वस सिस्टम पर भी होता है, जिससे लोग अंधे तक हो जाते हैं. जब भी जहरीली शराब से लोग मरते हैं तो कइयों के अंधे होने की खबर भी जरूर आती है.

मध्य प्रदेश में जहां-जहां बड़े छापे पड़े वहां-वहां भारी तादाद में आक्सीटोसिन और यूरिया भी मिला. इन केमिकलों को कच्ची शराब में मिलाने से शराब सस्ती भी पड़ती है और नशा भी ज्यादा होता है, लेकिन शामत पीने वालों की होती है.

कंजरों को आक्सीटोसिन, यूरिया और बाकी दूसरे आइटम तो आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन मिथाइल एल्कोहल मिलने में मुश्किल होती है. मुरैना के आरोपियों के पकड़े जाने के बाद यह खुलासा हुआ था कि उन्होंने ज्यादा मुनाफे के लालच में कच्ची शराब में मिथाइल एल्कोहल मिलाया था. इस का 200 लिटर का ड्रम 25,000 रुपए में मिलता है, लेकिन आगरा के एक कारोबारी अंतराम शर्मा ने मिलावटियों को 5 ड्रम महज 30,000 रुपए में मुहैया कराए थे जिस से उन के 95,000 रुपए बच गए थे. इस लिहाज से देखें तो जहरीली शराब से मरने वाले 28 लोगों की जिंदगी की कीमत 3,392 रुपए एक आदमी की बैठती है. यह जहर कास्मेटिक आइटम बनाने के नाम पर खरीदा गया था.

मुख्य आरोपियों मुकेश किरार, राहुल शर्मा और खुशीराम ने इस जहरीली शराब को चखा भी नहीं था. जाहिर है कि इस का अंजाम उन्हें मालूम था. अब यह कह पाना मुश्किल है कि न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर के नाजायज शराब बनाने वालों को यह मिथाइल एल्कोहल मिलता कहां से है, पर यह साफ दिख रहा है कि इस की खुदरा सप्लाई गांव-गांव तक है.

और ऐसे बिकती है

डबरा के छापों से यह उजागर हुआ था कि नाजायज यानी ‘कंजर व्हिस्की’ बनाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन इसे बेचना उस से ज्यादा आसान काम है. कंजर बाहुल्य इलाकों में औरतें और बच्चें व्हिस्की के पाउच और बोतलें हर कहीं बेचते दिख जाते हैं. मध्य प्रदेश के भिंड, मुरैना, गुना, शिवपुरी और डबरा सहित दतिया जिले में तो औसतन हर 10 किलोमीटर पर टोकनियों में औरतें सड़क किनारे भाजीतरकारी की तरह इस की बिक्री करते दिख जाती हैं. इस के अलावा छोटे होटल और ढाबों पर भी ‘कंजर व्हिस्की’ की सप्लाई होती है.

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लौकडाउन के दिनों में जब पियक्कड़ों को शराब के लाले पड़े थे तब नाजायज शराब इफरात से बिकी थी. पीने वाले अपनी गाड़ियां ले कर गांवदेहातों की तरफ दौड़ते नजर आए थे.

ट्रक ड्राइवर, गरीब मजदूर और किसान सस्ते के चक्कर में बिना जान की परवाह किए यह जहरीली शराब खरीदते हैं और पीते भी जम कर हैं, लेकिन जब जहर अपना असर दिखाता है तो  इन के बचने की गुंजाइश न के बराबर रह जाती है और जो बच जाते हैं, वे जिंदगीभर देख नहीं पाते हैं.

नाजायज शराब बेचने वाली एक औरत दिनभर में 3,000 से 4,000 रुपए कमा लेती है, जब कि इस की लागत 300 से 400 रुपए ही बैठती है. इन के मर्द सुबह 8 से ले कर दोपहर कर 12 बजे तक शराब बनाते हैं और उस की पैकिंग कर औरतों को सड़कों पर मोटरसाइकिल से छोड़ देते हैं और फिर चारों तरफ घूम-घूम कर निगरानी करते रहते हैं. इन्हें जरा सा भी खतरा दिखता है तो ये मोबाइल के जरिए औरतों को आगाह कर देते हैं जिससे वे छिप जाती हैं.

इंदौर के एक सब इंस्पेक्टर की मानें तो इन कंजरों का मुखबिर सिस्टम पुलिस से कहीं ज्यादा पुख्ता और मजबूत होता है. इन के लोग गांव के बाहर 15-20 किलोमीटर तक तैनात रहते हैं.  छापों की खबर इन्हें पहले ही लग जाती है, लिहाजा ये गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं और पुलिस के हत्थे भट्ठी और घोल ही आता है.

कंजरों के उन गांवों में जहां पूरे घर शराब बनाने का धंधा करते हैं वहां 2-4 की तादाद में पैर रखने की हिम्मत पुलिस वाले नहीं करते हैं, क्योंकि ये लोग हमला कर उन्हें खदेड़ देते हैं, इसलिए हालिया छापों की मुहिम में 40 से ले कर 100 पुलिस वालों की टीमें बनाई गई थीं, पर इस के बाद भी धंधा बदस्तूर और बेखौफ जारी है. पुलिस के जाते ही जंगलों में छिपे आरोपी फिर से आ कर शराब बनाना शुरू कर देते हैं.

तो फिर हल क्या

भारी मुनाफे का धंधा नाजायज शराब के कारोबारी कुछ छापों के खौफ से छोड़ेंगे, ऐसा लग नहीं रहा, क्योंकि ऐसी कई मुहिम पहले भी जोरशोर से परवान चढ़ दम तोड़ चुकीं हैं, तो फिर इस समस्या का हल क्या है जिस से देशभर में हजारों लोग हर साल बेमौत मारे जाते हैं. इस सवाल का जवाब किसी मुख्यमंत्री या अफसर के पास नही है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में भी ‘कंजर व्हिस्की’ इसी या किसी और नाम से मध्य प्रदेश की तरह ही धड़ल्ले से बिक रही है. पकड़-धकड़ की मुहिम भी हर राज्य में चल रही है, लेकिन नतीजा हमेशा ढाक के तीन पात ही निकलता है.

नाम न छापने की शर्त पर भोपाल के एक आबकारी अफसर का कहना है कि सस्ती शराब जब ज्यादा बिकने लगती है, तो नुकसान बड़े शराब निर्माताओं का होता है, इसलिए वे हम और पुलिस महकमे पर सियासी दबाव डलवाते हैं, जिस से हम लोग छापे मारने लगते हैं. लेकिन अमला कम होने से बारह महीने ऐसी मुहिम नहीं चलाई जा सकती, इसलिए फिर से नाजायज और जहरीली शराब का कारोबार जोर पकड़ने लगता है. मुरैना जैसा कोई हादसा होता है तो हल्ला और मचता है जिस से कुछ छोटी मछलियां पकड़ में आ जाती हैं.

यह भी हकीकत है कि शराब का महंगा होते रहना सस्ती शराब के चलन को बढ़ावा देता है. सरकार अगर शराब सस्ती करे तो उस का ही नुकसान होता है. ऐसे में बेहतर तो यही लगता है कि वह नाजायज शराब के कारोबार को जायज बनाने के रास्तों पर गौर करे. अगर बड़े शराब निर्माता कच्ची शराब वाजिब दाम पर खरीद कर उसे अपने प्लांट में वैज्ञानिक तरीके से बनाएं तो एक हद तक समस्या हल हो सकती है नहीं तो ‘कंजर व्हिस्की’ जानलेवा होने के बाद भी बिकती रहेगी, क्योंकि इसे बनाने वालों को कोई और काम आता और भाता ही नहीं.

शराब पीने के आदी हो गए लोगों को भी हादसों से सबक लेते हुए नाजायज शराब खरीदने और पीने से बचना चाहिए. यह सस्ती जरूर है, लेकिन रिस्की भी कम नहीं.

Crime- चैनलों की चकमक: करोड़ों की अनोखी ठगी

चैनलों के डिसटीब्यूशन से करोड़ों रुपए की कमाई का मायाजाल दिखाकर, दूर नोएडा में बैठ छत्तीसगढ़ की एक महिला के साथ बड़े ही आसानी से करोड़ों की ठगी हो गई.
ठगी की यह अपने आप में एक बेमिसाल कहानी है जो आपको बताती है कि ठग और ठगी का स्वरूप कितना विस्तार लिए हुए होता है. थोड़ी सी भी नादानी और लापरवाही आपको आपके बेशकीमती धन से महरूम कर सकती है.
आज छत्तीसगढ़ की राजधानी में घटित ऐसी ही एक घटना सुर्ख़ियों का सबब बनी हुई है. दरअसल हुआ यह कि रिलायंस बिग टीवी और टेक्नोलॉजी इंडिपेंट टीवी के डायरेक्टर विवेक प्रकाश को राजधानी की पुलिस ने गिरफ्तार किया है. रायपुर गुढ़ियारी की रहने वाली प्रीति मुंदड़ा पुलिस के पास पहुंची और शिकायत बताया कि किस तरह उसके साथ 1-2 करोड़ नहीं बल्कि 16 करोड़ों रुपए की ठगी हुई है.

पुलिस ने इस पर मामला दर्ज किया और जांच-पड़ताल प्रारंभ हो गई  पुलिस ने कथित रूप से आरोपी नोएडा से पकड़ा है. प्रीति ने अपनी शिकायत में कहा कि आरोपी ने उन्हें छत्तीसगढ़ जोनल डिस्ट्रीब्यूटर बनाने का झांसा देकर 16 करोड़ की ठगी की है.

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प्रीति ने पेंटल टेक्नोलॉजी इंडिपेन्टेड टीवी कंपनी के हेड अतुल मिश्रा, विवेक प्रकाश और अजय राठौर सहित कई डायरेक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई . प्रीति के अनुसार  उनको प्रलोभन दिया गया था कि 500 चैनलों का प्रकाशन और पूरे प्रदेश में रिटेलर रूप में लाखों रुपए कमीशन मिलेगा. आरोपियों ने अलग-अलग बैंक खातों में 16 करोड़ रूपये जमा करा लिए बाद में उन्हें अहसास हुआ  की उसके साथ ठगी हो गयी है. पुलिस के अनुसार ऐसे ही देश भर के हजारों लोगों को ठगा  गया है.

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घटना के बाद रायपुर पुलिस से उपनिरीक्षक सेराज खान के नेतृत्व में 4 सदस्यीय टीम बनाकर नोएडा भेजी गई जहां विवेक प्रकाश को गिरफ्तार कर ट्रांजिट रिमाण्ड पर रायपुर कार्रवाई की जा रही है.

कैसे “फांसा” गया प्रीति को

इस संपूर्ण प्रकरण में चकित करने वाली बात यह सामने आई है कि ठगी करने वाला बेहद नफासत और शान से अपना जीवन नोएडा जैसी भव्यतम सिटी में व्यतीत कर रहा था.

नोएडा के एक पॉश इलाके से एक रईस कारोबारी को रायपुर पुलिस ने ठगी के मामले में गिरफ्तार किया और छत्तीसगढ़ ले आई. विवेक प्रकाश नाम के इस शख्स पर आरोप है कि इसने “बिजनेस पार्टनर” बनाने के नाम पर रायपुर की एक महिला से लगभग 16 करोड़ रुपए ले लिए. इसके बाद डील के मुताबिक महिला को कंपनी   मे ना कोई पोजिशन मिली और ना ही कोई जवाबदेही इस कारोबारी और इसके साथियों ने दी.

 प्रीति मूंदड़ा ने कुछ महीने पहले चारों तरफ से थक हार और निराश होकर  रायपुर के गुढ़ियारी थाना में अपनी फरियाद को शिकायत के रूप में शिकायत दर्ज करवाई .

 “करोड़ों रुपए” देकर क्या अच्छे समय का इंतजार

प्रीति मुंदड़ा और उसके परिवार को यह प्रतीत हो रहा था की करोड़ों रुपए  इन्वेस्ट करके आने वाले समय में उनका भविष्य सुखद और सुखमय बन जाएगा. ऐसा कुछ नहीं हुआ और ठगे जाने के बाद प्रीति मुद्रा की रिपोर्ट दर्ज होने के साथ  ही पुलिस सक्रिय हुई  छानबीन विवेचना प्रारंभ हुई. विवेक प्रकाश पेंटल टेक्नोलाजी इंडिपेन्टेड टी.वी. नाम की कंपनी चलाता है. यह एक जिस तरह से डिश और टाटा स्काय अपनी सेवाएं देते हैं, विवेक की कथित कंपनी भी ऐसी ही सर्विस देने का दावा करती रही. इनके सेट टॉप बॉक्स और डिश एंटिना भी बाजार में मिल रहे थे.

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इनके संपर्क में आई रायपुर की प्रीति सिंघल मुंदडा ने पुलिस कहा कि जोनल डिस्ट्रीब्यूटरशीप देने के नाम पर विवेक के साथी अतुल मिश्रा, अजय राठौर ने मार्च 2019 तक लगभग 16 करोड़ रुपए ले लिए. महिला से कहा गया कि लाखों की कमाई होगी, पूरे छत्तीसगढ़ में आपका बिजनेस साम्राज्य फैलेगा.  मगर रुपए लेने के बाद कोई सर्विस कंपनी ने नहीं दी . राजधानी पुलिस  ने एक  जांच टीम बना कर मामला उसके सुपुर्द कर दिया.

इतनी बड़ी राशि की हेराफेरी की वजह से पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार करने का एक्शन प्लान बनाया. एक साल से भी अधिक वक्त से आरोपी विवेक को तलाशने का काम जारी था. पुलिस टीम को पता चला कि विवेक नोएडा में रह रहा है. सब इंस्पेक्टर सेराज खान के साथ 4 लोगों की टीम जिला गौतम बुद्ध नगर (उ.प्र.) के नोएडा चली गई. टीम ने आरोपी विवेक का पता ढूंढ लिया और अंततः उसे गिरफ्तार करके छत्तीसगढ़ ले आई.

Crime Story: रान्ग नंबर भाग 3

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