मैं 25 साल की हूं, यूरिन के दौरान प्राइवेट पार्ट में जलन महसूस होती है, क्या करूं?

सवाल
मैं 25 वर्षीय अविवाहित स्त्री हूं. वजन 45 किलोग्राम है. मुझे पेशाब करते समय योनिमुख में जलन महसूस होती है. खुजलाहट नहीं होती है, लेकिन योनि से सफेद चिपचिपा डिस्चार्ज निकलता है, जिस से दुर्गंध आती है. मैं ने पेशन की पूरी माइक्रोस्कोपी करवाई है. रिपोर्ट में मेरा पीएच का स्तर 5, विशिष्ट घनत्व 1.05 था और नाइट्राइटिस तथा बिलिरुबिन नैगेटिव था.  मैं ने बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए यूरिन कल्चर भी करवाया. डाक्टर ने कैंडिड क्रीम और वी वौश लिखा, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है. बताएं क्या करूं?

जवाब
डाक्टर ने आप को कैंडिडिआसिस (फंगल इन्फैक्शन) मान कर दवा लिखी है. मेरे विचार से आप की मूत्रनली में इन्फैक्शन (यूटीआई) हो सकता है. आप 5 दिनों तक भोजन करने के बाद सिप्रोफ्लोक्सासिन की गोली रोजाना 2 बार लें. इस से आप ठीक हो जाएंगी.

राजस्थान : लड़कियों से जबरदस्ती, शर्मसार बार बार

24 दिसंबर, 2016 की रात. राजस्थान के चूरू जिले के एक गांव में एक नाबालिग लड़की को अगवा कर गैंगरेप किया गया. इतने पर भी जी नहीं भरा, तो उस पर मोटरसाइकिल चढ़ा दी गई. इस से उस की रीढ़ की हड्डी टूट गई. उस लड़की की एक आंख फोड़ दी गई. बेंगलुरु, कनार्टक के एमजी रोड पर नए साल की पूर्व संध्या के मौके पर कुछ मर्दों ने लड़कियों के साथ हाथापाई की, जबकि वहां पुलिस मौजूद थी.

जयपुर में वहशीपन

राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी वहशीपन की सारी हदें पार कर देने वाले 2 ऐसे मामले सामने आए, जो शर्मसार कर देने वाले हैं. पहले मामले में अलवर से जयपुर आई एक लड़की से 3 लड़कों के साथसाथ एक आटोरिकशा ड्राइवर ने रेप किया और उस के बाद बिना कपड़ों के उसे एमएनआईटी के बाहर फेंक कर फरार हो गए. लड़की ने खुद ही कंट्रोल रूम में फोन पर पुलिस को बताया.

डीसीपी ईस्ट कुंवर राष्ट्रदीप ने बताया कि उत्तर प्रदेश की रहने वाली पीडि़त लड़की जगतपुरा में अपने भाई के साथ रह कर सरकारी नौकरी के इम्तिहान की तैयारी कर रही थी. सुबह वह रेलवे स्टेशन पर उतरी और जगतपुरा में अपने भाई के कमरे तक जाने के लिए आटोरिकशे में बैठ गई. इस दौरान आटोरिकशे में 3 और लड़के भी थे.

लड़की को अकेला पा कर आरोपी लड़कों ने आटोरिकशा को सुनसान जगह पर रुकवाया और लड़की के मुंह पर कपड़ा बांध कर उस के साथ बारीबारी से रेप किया. रेप के बाद तीनों लड़के वहां से फरार हो गए, उस के बाद आटोरिकशा ड्राइवर ने भी उस के साथ रेप किया.

इस वारदात के बाद पुलिस ने शहरभर में नाकाबंदी कराई और लड़की को ले कर सिंधी कैंप बसस्टैंड और रेलवे स्टेशन पहुंची, जहां पीडि़ता से संदिग्ध आटोरिकशा ड्राइवर की शिनाख्त कराई गई. पीड़िता ने पुलिस को बताया कि वे तीनों लड़के हिंदी में बातें कर रहे थे और उस से पूछा कि कहां की रहने वाली हो और यहां क्या करती हो. उस पीडि़ता ने बताया वे तीनों आटोरिकशे में पहले से ही बैठे हुए थे. उन्हें कहां जाना था, इस बारे में वह नहीं जानती.

दूसरा मामला जयपुर के ही सांगानेर थाना इलाके का है. यहां 57 साल के एक टीचर ने अपनी ट्यूशन छात्रा, जिस की उम्र 16 साल बताई जा रही है, के साथ रेप कर दिया. पुलिस ने इस मामले में आरोपी टीचर को गिरफ्तार किया है. सांगानेर थाना पुलिस ने बताया कि नागरिक नगर, सांगानेर की पीडि़त लड़की के परिवार वालों ने मामला दर्ज कराया कि विरेंद्र सारस्वत नाम के टीचर ने यह करतूत की थी.

दरिंदगी की हदें पार

राजस्थान के चूरू जिले में भी दरिंदगी का एक मामला सामने आया.    2 लड़कों ने एक लड़की का रेप कर उस की रीढ़ की हड्डी व पसलियां तोड़ दीं. उन दरिंदों ने पीडि़ता की एक आंख भी फोड़ दी. इस के बाद वह लड़की जयपुर के एसएमएस अस्पताल में कई दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझती रही.

यह वारदात बीदासर थाना इलाके के गांव सांरगसर की है. बीदासर थानाधिकारी प्रहलाद राय के मुताबिक, पीडि़ता के पिता ने रिपोर्ट दी है कि 24 दिसंबर, 2016 को 15 साला पीडि़ता अपने घर पर पढ़ाई कर रही थी. रात 11 बजे गांव भोमपुरा का एक बाशिंदा राकेश भार्गव अपने रिश्तेदार के एक लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर आया और वे दोनों पीडि़ता को जबरदस्ती मोटरसाइकिल पर बिठा कर ले गए. आरोपियों ने गांव से एक किलोमीटर दूर चरला रोड पर ले जा कर उस के साथ ज्यादती की.

उस के बाद आरोपियों ने उसे किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी दी और मोटरसाइकिल चढ़ा कर उस की रीढ़ की हड्डी व पसलियां तोड़ दीं. उस की एक आंख भी फोड़ दी. शरीर के कई हिस्सों पर गहरे घाव कर के उसे लहूलुहान हालत में मौके पर छोड़ कर भाग गए.

25 दिसंबर, 2016 की दोपहर 3 बजे पीडि़ता की मां के पास राकेश के मातापिता आए और उन्होंने लड़की के घायल होने की जानकारी दी. तब घर वालों को पता चला.

परिवार वालों ने पीडि़ता को सुजानगढ़ के अस्पताल में भरती कराया, जहां से उसे गंभीर हालत में पहले बीकानेर और फिर जयपुर भेज दिया गया. पीडि़ता का पिता गुजरात में मजदूरी करता है. घटना का पता चलने पर वह वहां आया और मामला दर्ज कराया.

राजस्थान पुलिस के मुताबिक, साल 2008 में रेप के 568 मामले दर्ज हुए थे. पिछले साल 2016 में यह तादाद बढ़ कर 3,769 हो गई. ये आंकड़े भयावह इसलिए भी हैं, क्योंकि 75 फीसदी आरोपी सुबूतों की कमी में बाइज्जत बरी हो जाते हैं. वैसे, साल 2015 में देशभर में दुष्कर्म के कुल 37,413 मामले हुए. इन में सब से ऊपर मध्य प्रदेश (5,076), राजस्थान (3769), उत्तर प्रदेश (3,467), महाराष्ट्र (3,438) जैसे राज्य ही थे. महानगरों की बात हो, तो दिल्ली (1,813), मुंबई (607), चेन्नई (65), बेंगलुरु (104) और कोलकाता (36) सब से आगे थे.

जयपुर की एक लीगल फर्म के मुताबिक, लापरवाही से की गई जांच, एफआईआर में देरी, आरोपियों के वकील का पीडि़ता के प्रति आक्रामक रुख और अदालतों में संवेदनशीलता की कमी इस की अहम वजह रही हैं. सजा की दर भी इसलिए कम है, क्योंकि ज्यादातर पीडि़ता चुपचाप ज्यादती सह जाती हैं. अगर पीडि़ता समाज के तानों की परवाह न करे, तो उसे पुलिस और कानून से इंसाफ मिलने की उम्मीद कम रहती है. साल 2015 में हुई एक स्टडी के मुताबिक, भारत में पति द्वारा जबरन सैक्स के सिर्फ 0.6 फीसदी यानी 167 में से महज एक केस ही दर्ज होता है.

दिखाया जज्बा

बेंगलुरु में 2 शोहदे एक लड़की से बेशर्मी के साथ छेड़छाड़ करते रहे और आसपास के लोग तमाशबीन और चुप ही रहे, लेकिन राजस्थान के चूरू जिले के राजगढ़ कसबे में जो घटा, वह सजगता की एक मिसाल बन गया है. यह किस्सा महशूर ओलिंपियन एथलीट कृष्णा पूनिया की बहादुरी की भी एक नजीर है.

कृष्णा पूनिया ने बताया कि रविवार की दोपहर दिन के डेढ़ बजे जब वे  सादुलपुर कसबे की कृष्णा बहल रोड से गुजर रही थीं, तो पिलानी रेलवे फाटक बंद था. वहां 3 बदमाश 2 किशोरियों पर फब्तियां कस रहे थे और छेड़खानी कर रहे थे. छेड़छाड़ करते हुए उन बदमाशों ने लड़कियों को जमीन पर गिरा दिया और मोटरसाइकिल से भागने लगे. इस घटना को बहुत से लोग देख रहे थे, लेकिन कोई भी अपनी जगह से नहीं हिला. सभी तमाशबीन खडे़ थे.

लड़कियां छेड़छाड़ से परेशान थीं और रो रही थीं. कृष्णा पूनिया अचानक कार से उतरीं और उन तीनों बदमाश लड़कों के पीछे दौड़ पड़ीं. उन्होंने 50 मीटर दौड़ने के बाद एक लड़के को धर दबोचा और पुलिस को फोन किया.

लड़कियां कह रही थीं कि अगर उन के घर वालों को इस घटना का पता लगा, तो वे आइंदा उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने देंगे. लेकिन कृष्णा पूनिया ने किशोरियों को हौसला दिया और उन्हें उन के घर पर छोड़ कर आईं. वे पुलिस स्टेशन भी गईं और पुलिस अफसरों को नसीहत दी कि आखिर थाने के ठीक पास ही बदमाश इस तरह लड़कियों से कैसे छेड़छाड़ कर रहे हैं.

बीजिंग और लंदन ओलिंपिक में भारत की नुमाइंदगी कर चुकी कृष्णा पूनिया हरियाणा से हैं और चूरू जिले में उन की ससुराल है. इन दिनों वे राजनीति में हैं, लेकिन उन में एक बहादुर खिलाड़ी का जज्बा आज भी बरकरार है.

बेंगलुरु और राजगढ़ की ये दोनों घटनाएं एक ही समय में घटित हुई हैं, लेकिन एक में भीड़ के बीच खड़ी एक हिम्मती खिलाड़ी कृष्णा पूनिया ने पूरे हालात को ही बदल दिया और दूसरी में एक आधुनिक कसबे की जनता का वह तबका शर्मसार है, जो घटना के समय चुप्पी साधे रहा.

हद तो यह है कि बेंगलुरु की इस घटना के बाद कर्नाटक के गृह मंत्री डाक्टर जी. परमेश्वरा ने यह तक कह दिया कि नए साल और दूसरे ऐसे मौकों पर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहा है कि राजस्थान का भी एक पक्ष है, जहां गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने अभी तक कृष्णा पूनिया की तारीफ नहीं की है, क्योंकि वे कांग्रेस से जुड़ी हैं.

सवाल यह उठता है कि क्या यह देश औरतों व लड़कियों के लिए महफूज नहीं है  क्या वे हमेशा यह डर साथ ले कर घर से बाहर निकलें कि कोई न कोई उन के साथ कुछ बुरा सोच कर तैयार बैठा है और वे हमेशा डरती रहें

आखिर हमारी सरकार, पुलिस और समाज का पूरा तबका अपनी सोच कब बदलेगा  ऐसे में यही बेहतर है कि हर लड़की कृष्णा पूनिया की तरह बन जाए और छेड़छाड़ करने वालों को गरदन से दबोच कर पुलिस के हवाले कर दे.

Mother’s Day 2024-छोटा सा घर: क्या सुषमा अपनी गृहस्थी बसा पाई?

ट्रेन तेज गति से दौड़ी चली जा रही थी. सहसा गोमती बूआ ने वृद्ध सोमनाथ को कंधे से झकझोरा, ‘‘बाबूजी, सुषमा पता नहीं कहां चली गई. कहीं नजर नहीं आ रही.’’

सोमनाथ ने हाथ ऊंचा कर के स्विच दबाया तो चारों ओर प्रकाश फैल गया. फिर वे आंखें मिचमिचाते हुए बोले, ‘‘आधी रात को नींद क्यों खराब कर दी… क्या मुसीबत आन पड़ी है?’’

‘‘अरे, सुषमा न जाने कहां चली गई.’’

‘‘टायलेट की ओर जा कर देखो, यहीं कहीं होगी…चलती ट्रेन से कूद थोड़े ही जाएगी.’’

‘‘अरे, बाबा, डब्बे के दोनों तरफ के शौचालयों में जा कर देख आई हूं. वह कहीं भी नहीं है.’’

बूआ की ऊंची आवाज सुन कर अन्य महिलाएं भी उठ बैठीं. पुष्पा आंचल संभालते हुए खांसने लगी. देवकी ने आंखें मलते हुए बूआ की ओर देखा और बोली, ‘‘लाइट क्यों जला दी? अरे, तुम्हें नींद नहीं आती लेकिन दूसरों को तो चैन से सोने दिया करो.’’

‘‘मूर्ख औरत, सुषमा का कोई अतापता नहीं है…’’

‘‘क्या सचमुच सुषमा गायब हो गई है?’’ चप्पल ढूंढ़ते हुए कैलाशो बोली, ‘‘कहीं उस ने ट्रेन से कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली?’’

बूआ ने उसे जोर से डांटा, ‘‘खामोश रह, जो मुंह में आता है, बके चली जा रही है,’’ फिर वे सोमनाथ की ओर मुड़ीं, ‘‘बाबूजी, अब क्या किया जाए. छोटे महाराज को क्या जवाब देंगे?’’

‘‘जवाब क्या देना है. वे इसी ट्रेन के  फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे हैं. अभी मोबाइल से बात करता हूं.’’

सोमनाथ ने छोटे महाराज का नंबर मिलाया तो उन की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, बाबा, काहे नींद में खलल डालते हो?’’

‘‘महाराज, बहुत बुरी खबर है. सुषमा कहीं दिखाई नहीं दे रही. बूआ हर तरफ उसे देख आई हैं.’’

‘‘रात को आखिरी बार तुम ने उसे कब देखा था?’’

‘‘जी, रात 9 बजे के लगभग ग्वालियर स्टेशन आने पर सभी ने खाना खाया और फिर अपनीअपनी बर्थ पर लेट गए. आप को मालूम ही है, नींद की गोली लिए बिना मुझे नीद नहीं आती. सो गोली गटकते ही आंखें मुंदने लगीं. अभी बूआ ने जगाया तो आंख खुली.’’

छोटे महाराज बरस पड़े, ‘‘लापरवाही की भी हद होती है. बूआ के साथसाथ तुम्हें भी कई बार समझाया था कि सुषमा पर कड़ी नजर रखा करो. लेकिन तुम सब…कहीं हरिद्वार में किसी के संग उस का इश्क का कोई लफड़ा तो नहीं चल रहा था? मुझे तो शक हो रहा है.’’

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‘‘मुझे तो कुछ मालूम नहीं. लीजिए, बूआ से बात कीजिए.’’

बूआ फोन पकड़ते ही खुशामदी लहजे में बोलीं, ‘‘पाय लागूं महाराज.’’

‘‘मंथरा की नानी, यह तो कमाल हो गया. आखिर वह चिडि़या उड़ ही गई. मुझे पहले ही शक था. उस की खामोशी हमें कभीकभी दुविधा में डाल देती थी. खैर, अब उज्जैन पहुंच कर ही कुछ सोचेंगे.’’

बूआ ने मोबाइल सोमनाथ की ओर बढ़ाया तो वे पूछे बिना न रह सके, ‘‘क्या बोले?’’

‘‘अरे, कुछ नहीं, अपने मन की भड़ास निकाल रहे थे. हम हमेशा सुषमा की जासूसी करते रहे. कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा. अब क्या चलती ट्रेन से हम भी उस के साथ बाहर कूद जाते. न जाने उस बेचारी के मन में क्या समाया होगा?’’

थोड़ी देर में सोमनाथ ने बत्ती बुझा दी पर नींद उन की आंखों से कोसों दूर थी. बीते दिनों की कई स्याहसफेद घटनाएं रहरह कर उन्हें उद्वेलित कर रही थीं :

लगभग 5-6 साल पहले पारिवारिक कलह से तंग आ कर सोमनाथ हरिद्वार के एक आश्रम में आए थे. उस के 3-4 माह बाद ही दिल्ली के किसी अनाथाश्रम से 11-12 साल के 4 लड़के और 1 लड़की को ले कर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आश्रम में आया था. तब सोमनाथ के सुनने में आया था कि बदले में उस व्यक्ति को अच्छीखासी रकम दी गई थी. आश्रम की व्यवस्था के लिए जो भी कर्मचारी रखे जाते थे वे कम वेतन और घटिया भोजन के कारण शीघ्र ही भाग खड़े होते थे, इसीलिए दिल्ली से इन 5 मासूम बच्चों को बुलाया गया था.

शुरूशुरू में इस आश्रम में बच्चों का मन लग गया, पर शीघ्र ही हाड़तोड़ मेहनत करने के कारण वे कमजोर और बीमार से होते गए. आश्रम के पुराने खुशामदी लोग जहां मक्खनमलाई खाते थे, वहीं इन बच्चों को रूखासूखा, बासी भोजन ही खाने को मिलता. कुछ माह बाद ही चारों लड़के तो आसपास के आश्रमों में चले गए पर बेचारी सुषमा उन के साथ जाने की हिम्मत न संजो सकी. बड़े महाराज ने तब बूआ को सख्त हिदायत दी थी कि इस बच्ची का खास खयाल रखा जाए.

बूआ, सुषमा का खास ध्यान तो रखती थीं, पर वे बेहद चतुर, स्वार्थी और छोटे महाराज, जोकि बड़े महाराज के भतीजे थे और भविष्य में आश्रम की गद्दी संभालने वाले थे, की खासमखास थीं. बूआ पूरे आश्रम की जासूसी करती थीं, इसीलिए सभी उन्हें ‘मंथरा’ कह कर पुकारते थे.

18 वर्षीय सुषमा का यौवन अब पूरे निखार पर था. हर कोई उसे ललचाई नजरों से घूरता रहता. पर कुछ कहने की हिम्मत किसी में न थी क्योंकि सभी जानते थे कि छोटे महाराज सुषमा पर फिदा हैं और किसी भी तरह उसे अपना बनाना चाहते हैं. बूआ, सुषमा को किसी न किसी बहाने से छोटे महाराज के कक्ष में भेजती रहती थीं.

पिछले साल दिल्ली से बड़े महाराज के किसी शिष्य का पत्र ले कर नवीन नामक नौजवान हरिद्वार घूमने आया था. प्रात: जब दोनों महाराज 3-4 शिष्यों के साथ सैर करने निकल जाते तो सोमनाथ और सुषमा बगीचे में जा कर फूल तोड़ने लगते. 2-3 दिनों में ही नवीन ने सोमनाथ से घनिष्ठता कायम कर ली थी. वह भी अब फूल तोड़ने में उन दोनों की सहायता करने लगा.

28-30 साल का सौम्य, शिष्ट व सुदर्शन नौजवान नवीन पहले दिन से ही सुषमा के प्रति आकर्षण महसूस करने लगा था. सुषमा भी उसे चाहने लगी थी. उन दोनों को करीब लाने में सोमनाथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. उन की हार्दिक इच्छा थी कि वे दोनों विवाह बंधन में बंध जाएं.

सोमनाथ ने सुषमा को नवीन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में सबकुछ बता दिया था कि कानपुर में उस का अपना मकान है. उस की शादी हुई थी, लेकिन डेढ़ वर्ष बाद बेटे को जन्म देने के बाद उस की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. घर में मां और छोटा भाई हैं. एक बड़ी बहन शादीशुदा है. नवीन कानपुर की एक फैक्टरी के मार्केटिंग विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उसे 15 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है. इन दिनों वह फैक्टरी के काम से ज्यादातर दिल्ली में ही अपने शाखा कार्यालय की ऊपरी मंजिल पर रहता है.

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1 सप्ताह गुजरने के बाद जब नवीन ने वापस दिल्ली जाने का कार्यक्रम बनाया तो ऐसा संयोग बना कि छोटे महाराज को कुछ दिनों के लिए वृंदावन के आश्रम में जाना पड़ा. उन के जाने के बाद सोमनाथ ने नवीन को 3-4 दिन और रुकने के लिए कहा तो वह सहर्ष उन की बात मान गया.

एक दिन बाग में फूल तोड़ते समय सोमनाथ ने विस्तार से सारी बातें सुषमा को कह डालीं, ‘बेटी, तुम हमेशा से कहती हो न कि घर का जीवन कैसा होता है, यह मैं ने कभी नहीं जाना है. क्या इस जन्म में किसी जानेअनजाने शहर में कोई एक घर मेरे लिए भी बना होगा? क्या मैं सारा जीवन आश्रम, मंदिर या मठ में व्यतीत करने को विवश होती रहूंगी?

‘बेटी, मैं तुम्हें बहुत स्नेह करता हूं लेकिन हालात के हाथों विवश हूं कि तुम्हारे लिए मैं कुछ कर नहीं सकता. अब कुदरत ने शायद नवीन के रूप में तुम्हारे लिए एक उमंग भरा पैगाम भेजा है. तुम्हें वह मनप्राण से चाहने लगा है. वह विधुर है. एक छोटा सा बेटा है उस का…छोटा परिवार है…वेतन भी ठीक है…अगर साहस से काम लो तो तुम उस घर, उस परिवार की मालकिन बन सकती हो. बचपन से अपने मन में पल रहे स्वप्न को साकार कर सकती हो.

‘लेकिन मैं नवीन की कही बातों की सचाई जब तक खुद अपनी आंखों से नहीं देख लूंगा तब तक इस बारे में आगे बात नहीं करूंगा. वह कल दिल्ली लौट जाएगा. फिर वहां से अगले सप्ताह कानपुर जाएगा. इस बारे में मेरी उस से बातचीत हो चुकी है. 3-4 दिन बाद मैं भी दिल्ली चला जाऊंगा और फिर उस के साथ कानपुर जा कर उस का घर देख कर ही कुछ निर्णय लूंगा.

‘यहां आश्रम में तो तुम्हें छोटे महाराज की रखैल बन कर ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा. हालांकि यहां सुखसुविधाओं की कोई कमी न होगी, परंतु अपने घर, रिश्तों की गरिमा और मातृत्व सुख से तुम हमेशा वंचित ही रहोगी.’

‘नहीं बाबा, मैं इन आश्रमों के उदास, सूने और पाखंडी जीवन से अब तंग आ चुकी हूं.’

अगले दिन नवीन दिल्ली लौट गया. उस के 3-4 दिन बाद सोमनाथ भी चले गए क्योंकि कानपुर जाने का कार्यक्रम पहले ही नवीन से तय हो चुका था.

एक सप्ताह बाद सोमनाथ लौट आए. अगले दिन बगीचे में फूल तोड़ते समय उन्होंने मुसकराते हुए सुषमा से कहा, ‘बिटिया, बधाई हो. जैसे मैं ने अनुमान लगाया था, उस से कहीं बढ़ कर देखासुना. सचमुच प्रकृति ने धरती के किसी कोने में एक सुखद, सुंदर, छोटा सा घर तुम्हारे लिए सुरक्षित रख छोड़ा है.’

‘बाबा, अब जैसा आप उचित समझें… मुझे सब स्वीकार है. आप ही मेरे हितैषी, संरक्षक और मातापिता हैं.’

‘तब तो ठीक है. लगभग 2 माह बाद ही छोटे महाराज, बूआ और इस आश्रम की 5-6 महिलाओं के साथ हम दोनों को भी हर वर्ष की भांति उज्जैन के अपने आश्रम में वार्षिक भंडारे पर जाना है. इस बारे में नवीन से मेरी बात हो चुकी है. इस बारे में नवीन ने खुद ही सारी योजना तैयार की है.

‘यहां से उज्जैन जाते समय रात्रि 10 बजे के लगभग ट्रेन झांसी पहुंचेगी. छोटे महाराज अपने 3 शिष्यों के साथ प्रथम श्रेणी के ए.सी. डब्बे में यात्रा कर रहे होंगे, शेष हम लोग दूसरे दर्जे के शयनयान में सफर करेंगे. तुम्हें झांसी स्टेशन पर उतरना होगा…वहां नवीन अपने 3-4 मित्रों के संग तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा. वैसे घबराने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि नवीन की बूआ का बेटा वहीं झांसी में पुलिस सबइंस्पैक्टर के पद पर तैनात है. अगर कोई अड़चन आ गई तो वह सब संभाल लेगा.’

‘क्या आप मेरे साथ झांसी स्टेशन पर नहीं उतरेंगे?’ सुषमा ने शंकित नजरों से उन की ओर देखा.

‘नहीं, ऐसा करने पर छोटे महाराज को पूरा शक हो जाएगा कि मैं भी तुम्हारे साथ मिला हुआ हूं. वे दुष्ट ही नहीं चालाक भी हैं. वैसे तुम जातनी ही हो कि बूआ, छोटे महाराज की जासूस है. अगर कहीं उस ने हम दोनों को ट्रेन से उतरते देख लिया तो हंगामा खड़ा हो जाएगा. तुम घबराओ मत. चंदन आश्रम में रह रहा राजू तुम्हारा मुंहबोला भाई है…उस पर तो तुम्हें पूरा विश्वास है न?’

‘हांहां, क्यों नहीं. वह तो मुझ से बहुत स्नेह करता है.’

‘कल शाम मैं राजू से मिला था. मैं ने उसे पूरी योजना के बारे में विस्तार से समझा दिया है. तुम्हारी शादी की बात सुन कर वह बहुत प्रसन्न था. वह हर प्रकार से सहयोग करने को तैयार है. वह भी हमारे साथ उसी ट्रेन के किसी अन्य डब्बे में यात्रा करेगा.

‘झांसी स्टेशन पर तुम अकेली नहीं, राजू भी तुम्हारे साथ ट्रेन से उतर जाएगा. मैं तुम दोनों को कुछ धनराशि भी दे दूंगा. यात्रा के दौरान मोबाइल पर नवीन से मेरा लगातार संपर्क बना रहेगा. राजू 3-4 दिन तक तुम्हारे ससुराल में ही रहेगा, तब तक मैं भी किसी बहाने से उज्जैन से कानपुर पहुंच जाऊंगा. बस, अब सिर्फ 2 माह और इंतजार करना होगा. चलो, अब काफी फूल तोड़ लिए हैं. बस, एक होशियारी करना कि इस दौरान भूल कर भी बूआ अथवा छोटे महाराज को नाराज मत करना.’

फिर तो 2 माह मानो पंख लगा कर उड़ते नजर आने लगे. सुषमा अब हर समय बूआ और छोटे महाराज की सेवा में जुटी रहती, हमेशा उन दोनों की जीहुजूरी करती रहती. छोटे महाराज अब दिलोजान से सुषमा पर न्योछावर होते चले जा रहे थे. उस की छोटी से छोटी इच्छा भी फौरन पूरी की जाती.

निश्चित तिथि को जब 8-10 लोग उज्जैन जाने के लिए स्टेशन पर पहुंचे तो छोटे महाराज को तनिक भी भनक न लगी कि सुषमा और सोमनाथ के दिलोदिमाग में कौन सी खिचड़ी पक रही है.

आधी रात को लगभग साढ़े 12 बजे बीना जंक्शन पर सोमनाथ ने जब छोटे महाराज को सुषमा के गायब होने की सूचना दी तो उन्होंने उसे और बूआ को फटकारने के बाद अपने शिष्य दीपक से खिन्न स्वर में कहा, ‘‘यार, सुषमा तो बहुत चतुर निकली…हम तो समझ रहे थे कि चिडि़या खुदबखुद हमारे बिछाए जाल में फंसती चली जा रही है, लेकिन वह तो जाल काट कर ऊंची उड़ान भरती हुई किसी अदृश्य आकाश में खो गई.’’

‘‘लेकिन इस योजना में उस का कोई न कोई साथी तो अवश्य ही रहा होगा?’’ दीपक ने कुरेदा तो महाराज खिड़की से बाहर अंधेरे में देखते हुए बोले, ‘‘मुझे तो सोमनाथ और बूआ, दोनों पर ही शक हो रहा है. पर एक बार आश्रम की गद्दी मिलने दो, हसीनाओं की तो कतार लग जाएगी.’’

उज्जैन पहुंचने पर शाम के समय बाजार के चक्कर लगाते हुए सोमनाथ ने जब नवीन के मोबाइल का नंबर मिलाया तो उस ने बताया कि रात को वे लोग झांसी में अपनी बूआ के घर पर ही रुक गए थे और सुबह 5 बजे टैक्सी से कानपुर के लिए चल दिए. नवीन ने राजू और सुषमा से भी सोमनाथ की बात करवाई. सोमनाथ को अब धीरज बंधा.

निर्धारित योजना के अनुसार तीसरे दिन छोटे महाराज के पास सोमनाथ के बड़े बेटे का फोन आया कि कोर्ट में जमीन संबंधी केस में गवाही देने के लिए सोमनाथ का उपस्थित होना बहुत जरूरी है. अत: अगले दिन प्रात: ही सोमनाथ आश्रम से निकल पड़े, परंतु वे दिल्ली नहीं, बल्कि कानपुर की यात्रा के लिए स्टेशन से रवाना हुए.

कानपुर में नवीन के घर पहुंचने पर जब सोमनाथ ने चहकती हुई सुषमा को दुलहन के रूप में देखा तो बस देखते ही रह गए. फिर सुषमा की पीठ थपथपाते हुए हौले से मुसकराए और बोले, ‘‘मेरी बिटिया दुलहन के रूप में इतनी सुंदर दिखाई देगी, ऐसा तो कभी मैं ने सोचा भी न था. सदा सुखी रहो. बेटा नवीन, मेरी बेटी की झोली खुशियों से भर देना.’’

‘‘बाबा, आप निश्ंिचत रहें. यह मेरी बहू ही नहीं, बेटी भी है,’’ सुषमा की सास यानी नवीन की मां ने कहा.

‘‘बाबा, अब 5-6 माह तक मैं दिल्ली कार्यालय में ही ड्यूटी बजाऊंगा.’’

नवीन की बात सुनते ही सोमनाथ बहुत प्रसन्न हुए, ‘‘वाह, फिर तो हमारी बिटिया हमारी ही मेहमान बन कर रहेगी.’’

फिर वे राजू की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘बेटे, अपनी बहन को मंजिल तक पहुंचाने में तुम ने जो सहयोग दिया, उसे मैं और सुषमा सदैव याद रखेंगे. चलो, अब कल ही अपनी आगे की यात्रा आरंभ करते हैं.’’

मायके ने बरबाद की जिंदगी : कैसी रही शमा की शादी

शमा देखने में किसी हूर से कम न थी. उसे अपनी खूबसूरती पर नाज था. गुलाबी होंठ, गोरे गाल, गदराए बदन की मालकिन होने के साथसाथ काले घने और लंबे बालों ने उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रखे थे.

शमा की पहली शादी आज से तकरीबन 10 साल पहले हुई थी, तब उस की उम्र 22 साल थी. शादी के कुछ महीने तो सब ठीक चला, पर उस के आएदिन अपने मायके में ही पड़े रहने और अपने शौहर को कम समय देने से उन के बीच खटास आ गई थी.

शमा के शौहर ने कई बार उसे समझाने की कोशिश भी की, पर वह लड़ने पर उतारू हो जाती थी, जिस से धीरेधीरे उन में दूरिया बनती गईं और फिर शमा अपने घर आ कर बैठ गई. उस के बाद शुरू हुई पंचायत, जिस ने उन्हें हमेशाहमेशा के लिए अलग कर दिया.

दरअसल, शमा ने अपने शौहर पर कई झूठे इलजाम लगाए थे कि वह उसे खर्चा नहीं देता है. उस का घर छोटा है और वह उस के साथ वहां रह कर घुटन महसूस करती है.

नतीजतन, शौहर ने पंचायत में ही कह दिया था, ‘‘आप जो खर्चा बोलेंगे, मैं देने के लिए तैयार हूं, बस मैं शमा के अब्बू से यह पूछना चाहता हूं कि जब ये शमा का रिश्ता ले कर मेरे घर आए थे, तब मैं ने इन्हें अपने घर में ही बिठाया था या किसी और के घर में?

‘‘इन लोगों ने शादी से पहले मेरा घर देखा था. इन्हें मालूम था कि इन की लड़की शादी के बाद इसी घर में आ कर रहेगी, पर अब इन को यह घर छोटा लग रहा है…’’

पंचायत के एक सदस्य ने शमा के अम्मीअब्बू से मुखातिब हो कर पूछा था, ‘‘क्या यह सही बोल रहा है?’’

इतना सुनते ही शमा की अम्मी बोलीं, ‘‘शमा इस के साथ नहीं रहना चाहती है. हमारा फैसला करा दो.’’

इस के बाद शमा के शौहर से 5 लाख रुपए ले कर शमा और उस के शौहर का फैसला हो गया था.

कुछ समय के बाद शमा की फिर से शादी हो गई. शादी के कुछ महीनों तक सब ठीक चला. शमा की अम्मी अकसर वहां आतीजाती रहती थीं, पर एक दिन शमा और उस के शौहर में पैसे को ले कर ?ागड़ा हो गया.

हुआ यों था कि शमा अकसर अपने शौहर को बिना बताए अपनी अम्मी को पैसे देती थी, पर एक दिन तंग आकर उस के शौहर ने पैसे देने से मना कर दिया.

फिर क्या था, घर में महाभारत शुरू हो गई. शमा ने अपनी अम्मी को बुला लिया. उस की अम्मी ने शमा के शौहर से बोला, ‘‘जब बीवी रखने की हिम्मत नहीं थी, तो शादी क्यों की?’’ और शमा को अपने साथ ले गईं.

कुछ दिन के बाद शमा का शौहर उस के घर चला गया और शमा के अम्मीअब्बू से उसे घर ले जाने के लिए कहा, पर शमा की अम्मी ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘अब यह तुम्हारे साथ नहीं जाएगी. हमें फैसला चाहिए.’’

शमा के शौहर ने बहुत मनाया, पर शमा के घर वाले न माने. फिर घर के बड़ों ने बैठ कर फैसला किया और 4 लाख रुपए में फैसला हो गया. शमा का दूसरे शौहर से भी तलाक हो गया.

कुछ महीनों के बाद शमा की तीसरी शादी हो गई. शमा जैसी हसीन बीवी पा कर उस का तीसरा शौहर बहुत खुश था. दोनों प्यारमुहब्बत से रह रहे थे. जल्द ही शमा को एक बेटी हो गई. घर में अच्छी खुशहाली थी.

शमा के शौक और खयाल बहुत बड़े थे. वह हर चीज ब्रांडेड इस्तेमाल करती थी. हजारों रुपए ब्यूटीपार्लर में खर्च कर देती थी.

शुरूशुरू में तो शमा का शौहर कुछ न बोला, लेकिन जल्द ही उस ने शमा को सम?ाने की कोशिश की, तो शमा रूठ गई.

थकहार कर शमा का शौहर चुप हो गया, लेकिन शमा ने अपनी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं किया. उस के शौक भी बड़े हो गए और खर्चे भी बढ़ गए.

शमा के शौहर ने उसे काफी सम?ाने की कोशिश की, पर वह नहीं मानी. फिर पंचायत बैठी, फैसला हुआ और इस बार बच्चे का हवाला दे कर शमा के शौहर से 10 लाख रुपए ऐंठ लिए गए.

वक्त गुजरता गया. शमा अपने अम्मीअब्बू के ही साथ रहने लगी. अब उस के लिए कोई रिश्ता भी नहीं आ रहा था. एक तो वह 3 शौहर छोड़ चुकी थी, दूसरे अब उस के पास एक बेटी भी थी.

वक्त की मार और उम्र के बढ़ने के साथसाथ अब शमा अकेली रहने के लिए मजबूर हो गई थी, लेकिन महंगे शौक और दिखावे ने उसे ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया, जो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

शमा को जो पैसा मिला था, वह धीरेधीरे खत्म हो गया. घर का खर्चा उठाना मुश्किल हो गया. मांबाप ने भी अपना हाथ खींच लिया. बेटी की पढ़ाई के खर्च के भी लाले पड़ गए और शमा ने जो रास्ता चुना, उस ने उसे एक गलत धंधे पर ला खड़ा कर दिया.

अब शमा अपना खर्चा चलाने के लिए अपने जिस्म का सौदा करने पर मजबूर हो गई और एक धंधेवाली बन कर रह गई. लेकिन फिर उस की जिंदगी में सैफ आया. उसे शमा की पुरानी जिंदगी से कुछ लेनादेना नहीं था.

शमा की चौथी शादी को 5 महीने ही हुए थे. इन 5 महीने में दोनों बड़े प्यार से रह रहे थे. दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे

सैफ तो इतनी हसीन बीवी पा कर खुश था ही, उस के घर में उस की मां और बहन भी शमा की तारीफ करते नहीं थकते थे. चारों तरफ शमा के ही चर्चे हो रहे थे.

फिर एक दिन किसी बात को ले कर सैफ और शमा में कुछ कहासुनी हो गई और शमा अपनी मां के घर चली गई.

उन दोनों में ऐसा कुछ खास भी ?ागड़ा नहीं हुआ था. बस, इतनी सी बात थी कि शमा अपने किसी दूर के भाई की शादी में जाना चाहती थी, पर सैफ को कुछ जरूरी काम था, तो वह उसे शादी में नहीं ले जा सकता था.

शमा ने अकेले जाने की जिद की, तो सैफ ने उसे साफ मना कर दिया. बस, इसी बात को ले कर दोनों में कहासुनी हो गई. शमा गुस्से में आ कर अपने मायके आ गई.

अगले दिन जब सैफ शमा को लेने उस के घर गया, तो उस ने आने से साफ मना कर दिया और बेइज्जत कर के अपने घर से भगा दिया. चाची और बड़ी अम्मी ने शमा को भड़का दिया कि एकदम से सैफ के कहने में न आ जाना. आदमी को अपनी मुट्ठी में दबा कर रखना चाहिए. अपनी मनमानी के लिए पुलिस की धौंस और दहेज के मुकदमे जैसे हथियारों से डराया जाता है.

सैफ कई बार शमा को लेने अपनी सुसराल गया, पर हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी. इतना ही नहीं, एक दिन शमा के रिश्तेदारों ने उस के मांबाप को भड़का कर सैफ के खिलाफ पहले तो मारपीट की रिपोर्ट लिखा दी, उस के बाद उस पर दहेज का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस सैफ को पकड़ कर ले गई, पर सुबूत न मिलने के चलते जल्द ही उसे छोड़ दिया.

अब सैफ अंदर से पूरी तरह टूट चुका था. वह बारबार सुसराल जा कर बेइज्जत हो कर वापस आ चुका था. अब उस के नाम पर कोर्ट का नोटिस भी आ चुका था. कई साल मुकदमा चलता रहा. उधर शमा को भड़काने में उस के रिश्तेदारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर यह रिश्ता खत्म हो गया.

सैफ ने दूसरी शादी कर ली और खुशीखुशी अपनी जिंदगी गुजारने लगा. एक साल के अंदर ही वह एक बेटे का बाप बन गया. उधर शमा घर पर पड़ी रही. उस की उम्र बीतती जा रही थी. उस के अम्मीअब्बू की भी मौत हो चुकी थी. भाइयों की शादी हो गई. भाईभाभियों को अब शमा बो?ा लगने लगी थी.

सैफ बेकुसूर था. उस पर जो मुकादमा किया गया था, वे सब ?ाठे थे, इसलिए वह बाइज्जत बरी हो गया और अपनी बीवीबच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था. ?ाठे इलजाम लगाने की वजह से उस ने शमा से तलाक ले लिया था.

शमा की उम्र उस के चेहरे पर ?ालकने लगी थी. वक्त की मार ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया था. अब उस के लिए कोई रिश्ता न था. वह तनहा जीने के लिए मजबूर थी. उस की खूबसूरती, उस की चमक सब खत्म हो चुकी थी.

लोगों के बहकावे में आ कर शमा ने अपना घर खुद ही बरबाद कर लिया था. सच तो यह है कि हमारे समाज में आज भी न जाने कितने घर दूसरों के बहकावे में आ कर बरबाद हो रहे हैं. शमा भी उन में से एक थी.

Mother’s Day 2024 : दोबारा आना – मां की हरकतें देख क्या एहसास हुआ

मां के कमरे से जोरजोर से चिल्लाने की आवाज सुन कर नीरू ने किताबें टेबल पर ही एक किनारे खिसकाईं और मां के कमरे की ओर बढ़ गई. कमरे में जा कर देखा तो मां कस कर अपने होंठ भींचे और आंखें बंद किए पलंग पर बैठी थीं. आया हाथ में मग लिए उन से कुल्ला करने के लिए कह रही थी. नीरू के पैरों की आहट पा कर मां ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और फिर आंखें बंद कर के ऐसे बैठ गईं जैसे कुछ देखा ही न हो.

नीरू को देखते ही आया दुखी स्वर में बोली, ‘‘देखिए न दीदी, मांजी कितना परेशान कर रही हैं. एक घंटे से मग लिए खड़ी हूं पर मांजी अपना मुंह ही नहीं खोल रही हैं. मुझे दूसरे काम भी तो करने हैं. आप ही बताइए अब मैं क्या करूं?’’

मां की मुखमुद्रा देख कर नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंस कर आया से कहा, ‘‘तुम जा कर अपना काम करो, मां को मैं संभाल लूंगी,’’ और यह कहतेकहते नीरू ने मग आया के हाथ से ले कर मां के मुंह के सामने लगा कर मां से कुल्ला करने के लिए कहा. पर मां छोटे बच्चे के समान मुंह बंद किए ही बैठी रहीं. तब नीरू ने उन्हें डांट कर कहा, ‘‘मां, जल्दी करो मुझे औफिस जाना है.’’

नीरू की बात सुन कर मां ने शैतान बच्चे की तरह धीरे से अपनी आधी आंखें खोलीं और मुंह घुमा कर बैठ गईं. परेशान नीरू बारबार घड़ी देख रही थी. आज उस के औफिस में उस की एक जरूरी मीटिंग थी. इसलिए उस का टाइम पर औफिस पहुंचना बहुत जरूरी था. पर मां तो कुछ भी समझना ही नहीं चाहती थीं.

थकहार कर नीरू ने उन के दोनों गाल प्यार से थपथपा कर जोर से कहा, ‘‘मां, मेरे पास इतना समय नहीं है कि तुम्हारे नखरे उठाती रहूं. अब जल्दी से मुंह खोलो और कुल्ला करो.’’

नीरू की बात सुन कर इस बार जब मां ने कुल्ला करने के लिए चुपचाप मुंह में पानी भरा तो नीरू ने चैन की सांस ली. थोड़ी देर तक नीरू इंतजार करती रही कि मां कुल्ला कर के पानी मग में डाल देंगी पर जब मां फिर से मुंह बंद कर के बैठ गईं तो नीरू के गुस्से का ठिकाना न रहा.

गुस्से में नीरू ने मां को झकझोर कर कहा, ‘‘मां, क्या कर रही हो? मैं तो थक गई हूं तुम्हारे नखरे सहतेसहते…’’ नीरू की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि मां ने थुर्र कर के अपने मुंह का पूरा पानी इस प्रकार बाहर फेंका कि एक बूंद भी मग में न गिर कर नीरू के मुंह पर और कमरे में फैल गया. यह देख कर नीरू को जोर से रुलाई आ गई.

रोतेरोते उस ने मां से कहा, ‘‘क्यों करती हो तुम ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा? मैं अभी नहा कर साफ कपड़े पहन कर औफिस जाने के लिए तैयार हुई थी और तुम ने मेरे कपड़े और कमरा दोनों ही फिर से गंदे कर दिए. तुम दिन में कितनी बार कमरा गंदा करती हो, कुछ अंदाजा है तुम्हें? आज आया 5 बार पोंछा लगा चुकी है. अगर आया ने काम छोड़ दिया तो? मां तुम समझती क्यों नहीं, मैं अकेली क्याक्या करूं?’’ कहती हुई नीरू अपनी आंखें पोंछती मां के कमरे से बाहर चली गई.

अपने ही कहे शब्दों पर नीरू चौंक गई. उसे लगा उस ने ये शब्द पहले किसी और के मुंह से भी सुने हैं. पर कहां?

औफिस पहुंच कर नीरू मां और घर के बारे में ही सोचती रही. पिताजी की मृत्यु के बाद मां ने अकेले ही चारों भाईबहनों को कितनी मुश्किल से पाला, यह नीरू कभी भूल नहीं सकती. नौकरी, घर, हम छोटे भाईबहन और अकेली मां. हम चारों भाईबहन मां की नाक में दम किए रहते. कभीकभी तो मां रो भी पड़ती थीं. कभी पिताजी को याद कर के रोतेरोते कहती थीं, ‘‘कहां चले गए आप मुझे अकेला छोड़ कर. मैं अकेली क्याक्या करूं.’’

अरे, मां ही तो कहती थीं, ‘मैं अकेली क्याक्या करूं,’ मां तो सचमुच अकेली थीं. मेरे पास तो काम वाली आया, कुक सब हैं. बड़ा सा घर है, रुपयापैसा और सब सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी मैं चिड़चिड़ा जाती हूं. अब मैं मां पर अपनी चिढ़ कभी नहीं निकालूंगी. मां की मेहनत से ही तो मुझे ये सबकुछ मिला है वरना मैं कहां इस लायक थी कि आईआईटी में नौकरी कर पाती.

कितनी मेहनत की, कितना समय लगाया मेरे लिए. अभी दिन ही कितने हुए हैं जब छोटी बहन मीतू ने मुझ से कहा था, ‘मां की वजह से तुम इस मुकाम तक पहुंची हो वरना हम सभी तो बस किसी तरह जी रहे हैं. हम तो चाह कर भी मां को कोई सुख नहीं दे सकते. वैसे तुम ने बचपन में मां को कितना परेशान किया है, तुम भूली नहीं होगी. अब मां इसी जन्म में अपना हिसाब पूरा कर रही हैं.’ आज लगता है कि सच ही तो कहती है मेरी बहन.

शाम को नीरू मां की पसंद की मिठाई ले कर घर गई. घर में कुहराम मचा था. आया मां के कमरे के बाहर बैठी रो रही थी और अंदर कमरे में मां जोरजोर से चिल्ला रही थीं. नीरू को देखते ही आया दौड़ कर उस के पास आई और रोतेरोते बोली, ‘‘दीदी, अब आप दूसरी आया रख लीजिए, मुझ से आप का काम नहीं हो पाएगा.’’

‘‘क्या हुआ?’’ नीरू ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘काम छोड़ने की बात क्यों कर रही हो. मां पहले से ऐसी नहीं थीं. तुम बरसों से हमारे यहां काम कर रही हो. अच्छी तरह से जानती हो कि मां कुछ सालों से बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब इस कठिन समय में अगर तुम चली जाओगी तो मैं क्या करूंगी? तुम्हारे सहारे ही तो मैं घर और औफिस दोनों संभाल पाती हूं. अच्छा चलो, मैं तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी पर काम मत छोड़ना, प्लीज. मैं मां को भी समझाऊं्रगी.

‘‘अब बताओ, हुआ क्या है, इतनी परेशान क्यों हो?’’

‘‘मैं ने मांजी से बारबार कहा कि कपड़े गंदे न करें, जरूरत पड़ने पर मुझे बताएं. सुबह मैं ने उन से बाथरूम चलने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया और दो मिनट बाद ही बिस्तर गंदा कर दिया. मैं ने उन की सफाई के साथ ही साथ उन से नहाने के लिए भी कहा तो वे बोलीं, ‘पानी कमरे में ही ले आओ, मैं कमरे में ही नहाऊंगी.’ बहुत समझाने पर भी जब मांजी नहीं मानीं तो मैं पानी कमरे में ले आई. वैसे भी अकेले मेरे लिए मांजी को उठाना मुश्किल था. मैं ने सोचा था कि गीले कपड़े से पोंछ दूंगी, फिर खाना खिला दूंगी. पर मांजी ने तो गुस्से में पैर से पानी की पूरी बालटी ही उलट दी और खाने की थाली उठा कर नीचे फेंक दी. मैं तो दिनभर कमरा साफ करकर के थक जाती हूं.’’

नीरू ने मां के कमरे में पैर रखा तो उस का दिल घबरा गया. पूरे कमरे में पानी ही पानी भरा था. खाने की थाली एक ओर पड़ी थी और कटोरियां दूसरी तरफ. रोटी, दाल, चावल सब जमीन पर फैले थे. मां मुंह फुलाए बिस्तर पर बैठी थीं.

नीरू ने मां के पास जा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, खाना क्यों नहीं खाया? तुम ने कल रात को भी खाना नहीं खाया. इस तरह तो तुम कमजोर हो जाओगी.’’

मैं आया के हाथ का खाना नहीं खाऊंगी, आया गंदी है. उसे भगा दो. मुझ से कहती है कि मेरी शिकायत तुम से करेगी, फिर तुम मुझे डांटोगी. तुम डांटोगी मुझे?’’ मां ने किसी छोटे बच्चे की तरह भोलेपन से पूछा तो नीरू को हंसी आ गई. उस ने मां के गले में हाथ डाल कर प्यार किया और कहा, ‘‘मैं अपनी प्यारी मां को अपने हाथों से खाना खिलाऊंगी. बोलो, क्या खाओगी?’’

‘‘मिठाई दोगी?’’ मां ने आशंकित हो कर कहा.

‘‘मिठाई? पर मिठाई तो खाना खाने के बाद खाते हैं. पहले खाना खा लो, फिर मिठाई खा लेना.’’

‘‘नहीं, पहले मिठाई दो.’’

‘‘नहीं, पहले खाना, फिर मिठाई.’’ नीरू ने मां की नकल उतार कर कहा तो मां ताली बजा कर खूब हंसीं और बोलीं, ‘‘बुद्धू बना रही हो, खाना खा लूंगी तो मिठाई नहीं दोगी. पहले मिठाई लाओ.’’

नीरू ने मिठाई ला कर सामने रख दी तो मां खुश हो कर बोलीं, ‘‘पहले एक पीस मिठाई, फिर खाना.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, लड्डू लोगी या रसगुल्ला?’’

‘‘रसगुल्ला,’’ मां ने खुश हो कर कहा.

नीरू ने एक रसगुल्ला कटोरी में रख कर उन्हें दिया और उन के लिए थाली में खाना निकालने लगी. दो कौर खाने के बाद ही मां फिर खाना खाने में आनाकानी करने लगीं. ‘‘पेट गरम हो गया, अब और नहीं खाऊंगी,’’ मां ने मुंह बना कर कहा.

‘‘अच्छा, एक कौर मेरे लिए, मां. देखो, तुम ने कल भी कुछ नहीं खाया था, अभी दवाई भी खानी है और दवाई खाने से पहले खाना खाना जरूरी है वरना तबीयत बिगड़ जाएगी.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं खा सकती. अब एक कौर भी नहीं.’’ तुम तो दारोगा की तरह पीछे लग जाती हो. मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मेरी अम्मा बनने चली हो. अब पेट में जगह नहीं है तो क्या करूं, पेट बड़ा कर लूं,’’ कहते हुए मां ने पेट फुला लिया तो नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंसते हुए थाली की ओर हाथ बढ़ाया तो मां ने समझा कि नीरू फिर उस से खाने के लिए कहेगी. सो, अपनी आंखें बंद कर के लेट गईं. तभी फोन की घंटी बजी तो नीरू फोन पर बात करने लगी. बात करतेकरते नीरू ने देखा कि मां ने धीरे से आंखें खोल कर देखा और रसगुल्ले की ओर हाथ बढ़ाया पर नीरू को अपनी ओर आते देखा तो झट से बोलीं, ‘‘हम रसगुल्ला थोड़े उठा रहे थे, हम तो उस पर बैठा मच्छर भगा रहे थे.’’

‘‘तुम्हें एक रसगुल्ला और खाना है?’’ नीरू ने हंस कर पूछा.

‘‘हां, मुझे रसगुल्ला बहुत अच्छा लगता है.’’

‘‘तो पहले रोटी खाओ, फिर रसगुल्ला भी खा लेना.’’

‘रसगुल्ला, कचौड़ी, कचौड़ी फिर रसगुल्ला, फिर कचौड़ी…’ मां मुंह ही मुंह में बुदबुदा रही थीं. नीरू ने सुना तो उसे हंसी आ गई.

‘‘शाम को मेहमान आने वाले हैं. तब तुम्हारी पसंद की कचौड़ी बनाऊंगी,’’ नीरू ने मां को मनाने के लिए कहा तो मां प्रसन्न हो कर बोलीं, ‘‘हींग वाली कचौड़ी?’’

‘‘हां, हींग वाली. लो, अब एक रोटी खा लो, फिर शाम को कचौड़ी खाना.’’

‘‘तो मैं शाम को रोटी नहीं खाऊंगी, हां. मुझे पेटभर कचौड़ी देना.’’

‘‘अच्छा बाबा. मैं तो इसलिए रोकती हूं कि मीठा और तलाभुना खाने से तुम्हारी शुगर बढ़ जाती है. आज शाम को जो तुम कहोगी मैं तुम्हें वही खिलाऊंगी पर अभी एक रोटी खाओ.’’

नीरू ने मां को रोटी खाने के लिए मना ही लिया.

शाम को मां अपने कमरे में अकेली बैठी कसमसा रही थीं. बाहर के कमरे से लगातार बातों के साथसाथ हंसने की भी आवाजें आ रही थीं. ‘क्या करूं, नीरू को बुलाने के लिए आवाज दूं क्या? नहींनहीं, नीरू गुस्सा करेगी. तो फिर? मन भी तो नहीं लग रहा है. मैं भी उसी कमरे में चली जाऊं तो? ये मेहमान भी चले क्यों नहीं जाते. 2 घंटे से चिपके हैं. अभी न जाने कितनी देर तक जमे रहेंगे. मैं पूरे दिन नीरू का इंतजार करती हूं कि शाम को नीरू के साथ बातें करूंगी वरना इस कमरे में अकेले पड़ेपड़े कितना जी घबराता है, किसी को क्या पता?’

अचानक मां के कमरे से ‘हाय मर गई. हे प्रकृति, तू मुझे उठा क्यों नहीं लेती,’ की आवाज आने लगी तो सब का ध्यान मां के कमरे की ओर गया. सब दौड़ते हुए कमरे में पहुंचे तो देखा मां अपने बिस्तर पर पड़ी कराह रही हैं. नीरू ने मां से पूछा, ‘‘क्या हुआ मां, कराह क्यों रही हो?’’

‘‘मेरा पेट गरम हो रहा है. देखो, और गरम होता जा रहा है. गरमी बढ़ती जा रही है. खड़ीखड़ी क्या कर रही हो? मेरे पेट की आग से पूरा घर जल जाएगा. सब जल जाएंगे.’’

मां की बात सुन कर नीरू ने कहा, ‘‘चलो, अस्पताल चलते हैं.’’ फिर नीरू ने मेहमानों से कहा, ‘‘आप आराम से बैठें, मैं मां को डाक्टर को दिखा कर आती हूं.’’

समय की नजाकत को भांपते हुए मेहमानों ने भी कहा, ‘‘आप मां को अस्पताल ले जाएं, हम फिर कभी आ जाएंगे.’’

मेहमानों के जाते ही मां आराम से बैठ गईं और टीवी पर अपना मनपसंद सीरियल देखने लगीं. नीरू गाड़ी की चाबी ले कर कमरे में आई और मां से बोली, ‘‘चलो मां.’’

‘‘कहां?’’ मां ने हंस कर पूछा.

‘‘कहां? अस्पताल और कहां? अभी थोड़ी देर पहले तो तुम तड़प रही थीं,’’ नीरू ने अपना पर्स उठा कर कहा.

‘‘हां, पर अब मैं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘क्यों.’’

‘‘अब मेरी तबीयत ठीक हो गई. मैं अस्पताल नहीं जाऊंगी.’’

‘‘अरे, फिर से पेट गरम हो गया तो आधी रात को जाना पड़ेगा.’’

‘‘नहीं, नहीं जाना पड़ेगा,’’ मां ने आराम से कहा.

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे कुछ हुआ नहीं. मैं तो एकदम ठीक हूं.’’

‘‘तो वह क्या था जो थोड़ी देर पहले हो रहा था?’’

‘‘वह तो मेहमानों को भगाने के लिए मैं ने नाटक किया था. अच्छा था न?’’ मां ने बड़ी मासूमियत से कहा तो नीरू ने अपना सिर पीट लिया.

अब वह मां को क्या बताती कि ये कोई रोज के बैठने वाले मेहमान नहीं थे. इन लोगों को उस ने अपनी बेटी के रिश्ते के लिए बुलाया था. पर क्या हो सकता है.

रोजरोज यही होता था. नीरू औफिस में भी घर की ही चिंता में डूबी रहती. पता नहीं मां ने घर में क्या तबाही मचाई होगी. आया होगी भी या काम छोड़ कर भाग गई होगी? घर जा कर जब सबकुछ ठीक देखती तो चैन की सांस लेती.

नीरू को चिंता में डूबा देख कर उस की सहेली ने पूछा, ‘‘क्या कोई परेशानी की बात तुम्हें खाए जा रही है? पता है आज मीटिंग में तुम्हारा ध्यान ही नहीं था. पता नहीं कहां और किस सोच में डूबी थी तुम. सब का ध्यान तुम्हारी तरफ लगा था. इस तरह तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. घर, बच्चे और मां सब की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर ही तो है.’’

‘‘मां की चिंता ही तो मुझे खाए जा रही है. मां बिलकुल बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब बच्चे के लिए तो यह सोच कर सब्र हो जाता है कि थोड़े दिनों की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा. पर मां के लिए क्या करूं?’’

‘‘गोद ले ले.’’

‘‘क्या कहा, फिर से तो कहना.’’

‘‘कह तो रही हूं, मां को गोद ले ले. उस से तेरी चिंता कम हो जाएगी.’’

‘‘दिमाग तो खराब नहीं हो गया तेरा? मैं अपनी मां को गोद ले लूं. अगर ले भी लूं तो क्या होगा?’’

‘‘होगा यह कि मां की परेशानी तुझे परेशान नहीं करेगी. तू ने यह तो सुना ही होगा कि बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं. बुढ़ापा बचपन का दोबारा आना होता है. बुढ़ापे में मनुष्य की आदतें, बात, व्यवहार, जिद सब में बचपना दिखाई देने लगता है. अगर हम उन्हें बच्चा समझ कर ही लें तो उन की हरकतों पर गुस्से की जगह प्यार आने लगेगा और घर का माहौल भी अच्छा हो जाएगा.

‘‘अब हम उन से तो यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वे बदल जाएं. बदलना तो हमें पड़ेगा.

‘‘तू अपने मन में यह मान ले कि अब वे तेरी बच्ची हैं और तुझे उन का वैसे ही ध्यान रखना है जैसे कभी वे तुम्हारा रखती थीं. जब भी तुम्हें उन की कोई बात बुरी लगे, तुम अपने बचपन की कोई ऐसी घटना याद करना और उस घटना पर मां की प्रतिक्रिया भी. मुझे यकीन है तेरा गुस्सा कम हो जाएगा. यार, अब हमारी बारी है कुछ करने की.’’

‘‘मम्मी, अकेले बैठीबैठी हंस क्यों रही हो?’’ नीरू कमरे में अकेली बैठी हंस रही थी, तभी उस की बेटी रितु ने पूछा.

‘‘मैं अपने बचपन को याद कर रही थी. पता है, मैं मां को बहुत तंग करती थी. एक बार मेरी घड़ी खराब हो गई तो मैं अड़ गई कि जब तक नई घड़ी नहीं आएगी, मैं स्कूल नहीं जाऊंगी. छोटे से उस शहर में घड़ी की कोई अच्छी दुकान भी नहीं थी. तब मां पास के शहर जा कर मेरे लिए नई घड़ी लाई थीं. बहुत प्यार करती हैं मां मुझे.’’

‘‘अच्छा, तो तुम उन पर गुस्सा क्यों करती हो?’’ रितु ने पूछा.

‘‘वह तो उन की परेशानी देख कर गुस्सा आ जाता है. पर अब मैं गुस्सा नहीं करूंगी.’’

‘‘क्यों? अब ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘तुम्हें क्या पता, जब मेरी शादी के बाद तुम्हारे दादादादी मुझे बहुत तंग करने लगे और तुम्हारे पापा भी उन्हीं की भाषा बोलने लगे तब मां मुझे वहां से अपने पास ले आईं. मैं तो उस दुख से कभी उबर ही न पाती अगर मां मुझे सहारा न देतीं.

‘‘अदालतों के चक्कर लगालगा कर, अपने जेवर बेच कर उन्होंने तुम्हारे पापा से न सिर्फ तलाक दिलवाया, मुझे नौकरी करने के लिए प्रेरित भी किया. आज मैं जो भी हूं, यह उन्हीं की मेहनत का फल है. अब मेहनत करने की बारी मेरी है.

‘‘अब मैं ने उन्हें गोद ले लिया है. अब मैं उन की मां हूं और वे मेरी प्यारी सी बच्ची. मैं उन की हर बचकानी हरकत का आनंद लूंगी. वैसे ही जैसे जब तुम छोटी थी तो तुम्हारी शैतानियों, बचकानी बातों पर मैं खुश होती थी. अब यह समय मां के बचपन का पुनरागमन ही तो है. आओ, हम सब मिल कर मां की शैतानियों का आनंद उठाएं. चलो, चलो, चलो मां के कमरे में मस्ती करेंगे सब, मां के साथ.’’

‘‘नानी उठो, हम आप के साथ मस्ती करने आए हैं,’’ रितु ने कमरे के बाहर से ही चिल्ला कर कहा पर अंदर पहुंच कर जब नानी को सोते देखा तो मायूसी से नीरू से कहा, ‘‘मां, नानी तो आज अभी से सो गईं. चलिए, हम बाहर का चक्कर लगा कर आते हैं.’’

अभी नीरू कमरे के दरवाजे तक ही पहुंची थी कि ऐसी आवाज आने लगी जैसे कोई कुछ खा रहा हो. नीरू तुरंत मुड़ी और उस ने मां की चद्दर खींच दी. चद्दर हटते ही मां घबरा कर बैठ गईं. उन्होंने अपने दोनों हाथ पीछे छिपा लिए.

‘‘दिखाओ मां, तुम्हारे हाथों में क्या है? क्या छिपा रही हो, मुझे दिखाओ?’’ कहते हुए नीरू ने मां के दोनों हाथ पकड़ कर सामने कर लिए, तो देखा मां के हाथों में अधखाए मीठे बिसकुट थे. अगर कोई और दिन होता तो नीरू जोर से चिल्ला कर पूरा घर सिर पर उठा लेती.  शुगर बढ़ जाने की चिंता करती पर आज उसे याद आया अपना बचपन जब वह मां के सोने के बाद दोपहर में फ्रिज से निकाल कर स्टोर में छिप कर आईसक्रीम खाती थी. बस, यह याद आते ही उसे हंसी आ गई. उसे आज मां छोटी बच्ची सी लगीं और उस ने मां को प्यार से गले लगा लिया.

हल: पति को सबक सिखाने के लिए क्या था इरा का प्लान

इराकल रात के नवीन के व्यवहार से बेहद गुस्से में थी. अब मुख्यमंत्री की प्रैस कौन्फ्रैंस हो और वह मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हो कर जल्दी कैसे घर आ सकती थी. पर नहीं. नवीन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. माना लौटने में रात के 11 बज गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री को बिदा करते ही वह घर आ गई थी. नवीन के मूड ने उसे वहां एक

भी निवाला गले से नीचे नहीं उतारने दिया. दिनभर की भागदौड़ से थकी जब वह रात को भूखी घर आई, तो मन में कहीं हुमक उठी कि अम्मां की तरह कोई उसे दुलारे कि नन्ही कैसे मुंह सूख रहा है तुम्हारा. चलो हम खाना परोस दें. लेकिन कहां वह कोमलता और ममत्व की कामना और कहां वास्तविकता में क्रोध से उबलता चहलकदमी करता नवीन. उसे देखते ही उबल पड़ा, ‘‘यह वक्त है घर आने का? 12 बज रहे हैं?’’

‘‘आप को पता तो था आज सीएम की प्रैस कौन्फ्रैंस थी. आप की नाराजगी के डर से मैं ने वहां खाना भी नहीं खाया और आप हैं कि…’’ इरा रोआंसी हो आई थी.

‘‘छोड़ो, आप का पेट तो लोगों की सराहना से ही भर गया होगा. खाने के लिए जगह ही कहां थी? हम ने भी बहुत सी प्रैस कौन्फ्रैंस अटैंड की हैं. सब जानते हैं महिलाओं की उपस्थिति वहां सिर्फ वातावरण को कुछ सजाए रखने से अधिक कुछ नहीं?’’

‘‘शर्म करो… जो कुछ भी मुंह में आ रहा है बोले चले जा रहे हो,’’ इरा साड़ी हैंगर में लगाते हुए बोली.’’

‘‘इस घर में रहना है, तो समय पर आनाजाना होगा… यह नहीं कि जब जी चाहा घर से चली गई जब भी चाहा चली आई. यह घर है कोई सराय नहीं.’’

‘‘क्या मैं तफरीह कर के आ रही हूं? तुम इतने बड़े व्यापारिक संस्थान में काम करते हो, तुम्हें नहीं पता, देरसबेर होना अपने हाथ की बात नहीं होती?’’ इरा को इस बेमतलब की बहस पर गुस्सा आ रहा था.

गुस्से से उस की भूख और थकान दोनों ही गायब हो गई. फिर कौफी बना कप में डाल कर बच्चों के कमरे में चली गई. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इरा ने शांति की सांस ली. नवीन की टोकाटाकी उस के लिए असहनीय हो गई थी.

फोन किसी का भी हो, नवीन के रहते आएगा तो वही उठाएगा. फोन पर पूरी जिरह करेगा क्या काम है? क्या बात करनी है? कहां से बोल रहे हो?

लोग इरा का कितना मजाक उड़ाते हैं. नवीन को उस का जेलर कहते हैं. कुछ लोगों की नजरों में तो वह दया की पात्र बन गई है.

इरा सोच कर सिहर उठी कि अगर ये बातें बच्चे सुनते तो? तो क्या होती उस की छवि

बच्चों की नजरों में. वैसे जिस तरह के आसार हो रहे हैं जल्द ही बच्चे भी साक्षी हो जाएंगे ऐसे अवसरों के. इरा ने कौफी का घूंट पीते हुए

निर्णय लिया, बस और नहीं. उसे अब नवीन

के साथ रह कर और अपमान नहीं करवाना है. पुरुष है तो क्या हुआ? उसे हक मिल गया है

उस के सही और ईमानदार व्यवहार पर भी आएदिन प्रश्नचिन्ह लगाने का और नीचा दिखाने का…अब वह और देर नहीं करेगी. उसे जल्द

से जल्द निर्णय लेना होगा वरना उस की छवि बच्चों की नजरों में मलीन हो जाएगी. इसी ऊहापोह में कब वह वहीं सोफे पर सो गई पता ही नहीं चला.

अगले दिन बच्चों को स्कूल भेजा. नवीन ऐसा दिखा रहा था मानो कल की रात रोज गुजर जाने वाली सामान्य सी रात थी. लेकिन इरा का व्यवहार बहुत सीमित रहा.

इरा को 9 बजे तक घर में घूमते देख, नवीन बोला, ‘‘क्या आज औफिस नहीं जाना है? आज छुट्टी है? अभी तक तैयार नहीं हुई.’’

‘‘मैं ने छुट्टी ली है,’’ इरा ने कहा.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक लग रही है, फिर छुट्टी क्यों?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘कभीकभी मन भी बीमार हो जाता है इसीलिए,’’ इरा ने कसैले स्वर में कहा.

‘‘समझ गया,’’ नवीन बोला, ‘‘आज तुम्हारा मन क्या चाह रहा है. क्यों बेकार में अपनी छुट्टी खराब कर रही हो, जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘नहीं,’’ इरा बोली, ‘‘आज मैं किसी हाल में भी जाने वाली नहीं हूं,’’ इरा की आवाज में जिद थी. नवीन कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘ठीक है तुम्हारी मरजी.’’

बच्चों और पति को भेजने के बाद वह देर तक घर में इधरउधर चहलकदमी

करती रही. उस का मन स्थिर नहीं था. अगर नवीन की नोकझोंक से तंग आ कर नौकरी छोड़ भी दूं तो क्या भरोसा कि नवीन के व्यवहार में अंतर आएगा या फिर बात का बतंगड़ नहीं बनाएगा… लड़ने वाले को तो बहाने की भी जरूरत नहीं होती. नवीन के पिता के इसी कड़वे स्वभाव के कारण ही उस की मां हमेशा घुटघुट कर जी रही थीं. पैसेपैसे के लिए उन्हें तरसा कर रखा था नवीन के पिता ने.

अपनी मरजी से हजारों उड़ा देंगे. नवीन की नजरों में उस के पिता ही उस के आदर्श पुरुष थे और मां का पिता से दब कर रहना ही नवीन के लिए मां की सेवा और बलिदान था.

इरा जितना सोचती उतना ही उलझती

जाती, उसे लग रहा था अगर वह इसी तरह मानसिक तनाव और उलझन में रही तो पागल हो जाएगी. हर जगह सम्मानित होने वाली इरा अपने ही घर में यों प्रताडि़त होगी उस ने सोचा भी न था. असहाय से आंसू उस की आंखों में उतर आए. अचानक उस की नजर घड़ी पर पड़ी. अरे, डेढ़ बज गया… फटाफट उठ कर नहाने के लिए गई. वह बच्चों को अपनी पीड़ा और अपमान का आभास नहीं होने देना चाहती थी. नहा कर सूती साड़ी पहन हलका सा मेकअप किया. फिर बच्चों के लिए सलाद काटा, जलजीरा बनाया, खाने की मेज लगाई.

दोनों बेटे मां को देख कर खिल उठे. बिना छुट्टी के मां का घर होना उन के लिए

कोई पर्व सा बन जाता है. तीनों ने मिल कर खाना खाया. फिर बच्चे होमवर्क करने लग गए.

5 बजे के लगभग इरा को याद आया कि उस की सहेली मानसी पाकिस्तानी नाटक का वीडियो दे कर गई थी. बच्चे होमवर्क कर चुके थे. इरा ने उन्हें नाटक देखने के लिए आवाज लगाई. दोनों बेटे उस की गोदी में सिर रख कर नाटक देख रहे थे. अजीब इत्तफाक था. नाटक

में भी नायिका अपने पति की ज्यादतियों से

तंग आ कर अपने अजन्मे बच्चे के संग घर छोड़ कर चली जाती है हमेशा के लिए.

इरा की तरफ देख कर अपूर्व बोला, ‘‘मां, आप ये रोनेधोने वाली फिल्में मत देखा करो. मन उदास हो जाता है.’’

‘‘मन उदास हो जाता है इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’ इरा ने सवाल किया.

‘‘बेकार का आईडिया है एकदम,’’ अपूर्व खीज कर बोला, ‘‘इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’

‘‘अपूर्व,’’ इरा ने कहा, ‘‘समझो इसी औरत की तरह अगर हम भी घर छोड़ना चाहें तो तुम किस के साथ रहोगे?’’

‘‘कैसी बेकार की बातें करती हैं आप भी मां,’’ अपूर्व नाराजगी के साथ बोला, ‘‘आप ऐसा क्यों करेंगी?’’

‘‘यों समझो कि हम भी तुम्हारे पापा के साथ इस घर में नहीं रह सकते तो तुम किस के साथ रहोगे?’’ इरा ने पूछा.

‘‘जरूरी नहीं है कि आप के हर सवाल का जवाब दिया जाए,’’ 13 वर्ष का अपूर्व अपनी आयु से अधिक समझदार था.

‘‘अच्छा अनूप तुम बताओ कि तुम क्या करोगे?’’ इरा ने छोटे बेटे का मन टटोला.

अनूप को बड़े भाई पर बड़प्पन दिखाने

का अवसर मिल गया. बोला, ‘‘वैसे तो हम

चाहते हैं कि आप दोनों साथ रहें? लेकिन अगर आप जा रही हैं तो हम आप के साथ चलेंगे. हम आप को बहुत प्यार करते हैं,’’ अनूप बोला, ‘‘चल झूठे…’’ अपूर्र्व बोला, ‘‘मां, अगर पापा आप की जगह होते तो यह उन्हीं को भी यही जवाब देता.’’

‘‘नहीं मां, भैया झूठ बोल रहा है. यही पापा के साथ जाता. पापा हमें डांटते हैं. हमें नहीं रहना उन के साथ. आप हमें प्यार करती हैं. हम आप के साथ रहेंगे,’’ अनूप प्यार से इरा के गले में बांहें डालते हुए बोला.

‘‘डांटते तो हम भी है,’’ इरा ने पूछा, ‘‘क्या तब तुम हमारे साथ नहीं रहोगे?’’

‘‘आप डांटती हैं तो क्या हुआ, प्यार भी तो करती हैं, फिर आप को खाना बनाना भी आता है. पापा क्या करेंगे?’’ अगर नौकर नहीं होगा तो? अनूप ने कहा.

‘‘अच्छा अपूर्व तुम जवाब दो,’’ इरा ने अपूर्व के सिर पर हाथ रख कर उस का मन फिर से टटोलना चाहा.

इरा का हाथ सिर से हटा कर अपूर्र्व एक ही झटके में उठ बैठा. बोला, ‘‘आप उत्तर चाहती हैं तो सुन लीजिए, हम आप दोनों के साथ ही रहेंगे.’’

इरा हैरत से अपूर्व को देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों?’’

‘‘जब आप और पापा 15 साल एकदूसरे के साथ रह कर भी एकदूसरे के साथ नहीं रह सकते, अलग होना चाहते हैं तब हम तो आप के साथ 12 साल से रह रहे हैं. हमें आप कैसे जानेंगे? आप और पापा अगर अलग हो रहे हैं तो हमें होस्टल भेज देना, हम आप दोनों से ही नहीं मिलेंगे,’’ अपूर्व तिलमिला उठा था.

‘‘पागल है क्या तू?’’ इरा हैरान थी, ‘‘नहीं बिलकुल नहीं. इतने वर्षों साथ रह कर भी आप को एकदूसरे का आदर करना, एकदूसरे को अपनाना नहीं आया, तो आप हमें कैसे अपनाएंगे.

‘‘पापा आप का सम्मान नहीं करते तभी आप को घर छोड़ कर जाने देंगे. आप पापा को और घर को इतने सालों में भी समझा नहीं पाईं तभी घर छोड़ कर जाने की बात कर सकती हैं. इसलिए हम आप दोनों का ही आदर नहीं कर सकेंगे और हम मिलना भी नहीं चाहेंगे आप दोनों से,’’ अपूर्व के चेहरे पर उत्तेजना और आक्रोश झलक रहा था.

इरा ने अपूर्व के कंधे को कस कर पकड़ लिया. उस का बेटा इतना समझदार होगा उस ने सोचा भी नहीं था. नवीन से अलग हो कर उस ने सोचा भी नहीं था कि अपने बेटे की नजरों में वह इतनी गिर जाएगी. अगर नवीन उसे सम्मान नहीं दे रहा, तो वह भी अलग हो रही है नवीन का तिरस्कार कर के. इस से वह नवीन को भी तो अपमानित कर रही है. परिवार टूट रहा है, बच्चे असंतुलित हो रहे हैं. वह विवाहविच्छेद नहीं करेगी. उस के आशियाने के तिनके उस के आत्मसम्मान की आंधी में नहीं उड़ेंगे. उसे नवीन के साथ अब किसी अलग ही धरातल पर बात करनी होगी.

अकसर ही नवीन झगड़े के बाद 2-4 दिन देर से घर आता है. औफिस में अधिक काम

का बहाना कर के देर रात तक बैठा रहता.

इरा उस की इस मानसिकता को अच्छी तरह समझती है.

इरा ने औफिस से 10 दिनों का अवकाश लिया. नवीन 2-4 दिन तटस्थता से इरा का रवैया देखता रहा. फिर एक दिन बोला, ‘‘ये बेमतलब की छुट्टियां क्यों ली जा रही हैं?’’

छुट्टियां खत्म हो जाएंगी तो हाफ पे ले लूंगी, जब औफिस जाना ही

नहीं है तो पिछले काम की छुट्टियों का हिसाब पूरा कर लूं,’’ इरा ने स्थिर स्वर में कहा.

‘‘किस ने कहा तुम औफिस छोड़ रही हो?’’ नवीन ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैडम, आजकल नौकरी मिलती कहां है जो तुम यों आराम से लगीलगाई नौकरी को लात मार

रही हो?’’

‘‘और क्या करूं?’’ इरा ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘जिन शर्तों पर नौकरी करनी है वह मेरे बस के बाहर की बात है.’’

‘‘कौन सी शर्तें?’’ ‘‘नवीन ने अनजान बनते हुए पूछा.’’

‘‘देरसबेर होना, जनसंपर्क के काम में सभी से मिलनाजुलना होता है, वह भी तुम्हें पसंद

नहीं. कैरियर या होम केयर में से एक का चुनाव करना था. सो मैं ने कर लिया. मैं ने नौकरी

छोड़ने का निर्णय कर लिया है,’’ इरा ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘क्या बच्चों जैसी जिद करती हो,’’ नवीन झल्लाई आवाज में बोला, ‘‘एक जने की सैलरी में घरखर्च और बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?’’

‘‘पर नौकरी छोड़ कर तुम सारा दिन करोगी क्या?’’ नवीन को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह इरा का निर्णय बदले.

‘‘जैसे घर पर रहने वाली औरतें खुशी से दिन बिताती हैं. टीवी, वीडियो, ताश, बागबानी, कुकिंग, किटी पार्टी हजार तरह के शौक हैं. मेरा भी टाइम बीत जाएगा. टाइम काटना कोई समस्या नहीं है,’’ इरा आराम से दलीलें दे रही थी.

‘‘तुम्हारा कितना सम्मान है, तुम्हारे और मेरे सर्किल में लोग तुम्हें कितना मानते हैं. कितने लोगों के लिए तुम प्रेरणा हो, सार्थक काम कर रही हो,’’ नवीन ने इरा को बहलाना चाहा.

‘‘तो क्या इस के लिए मैं घर में रोजरोज कलहकलेश सहूं, नीचा देखूं, हर बात पर मुजरिम की तरह कठघरे में खड़ी कर दी जाऊं बिना किसी गुनाह के?

‘‘क्यों सहूं मैं इतना अपमान इस नौकरी के लिए? इस के बिना भी मैं खुश रह सकती हूं. आराम से जी सकती हूं,’’ इरा ने बिना किसी तनाव के अपना निर्णय सुनाया.

‘‘इरा आई एम वैरी सौरी, मेरा मतलब तुम्हें अपमानित करने का नहीं था. जब भी तुम्हें आने में देर होती है मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाता है. उसी तनाव में तुम्हें बहुत कुछ उलटासीधा बोल दिया होगा. मुझे माफ कर दो. मेरा इरादा तुम्हें पीड़ा पहुंचाने या अपमानित करने का नहीं था,’’ नवीन के चेहरे पर पीड़ा और विवशता दोनों झलक रही थीं.

‘‘ठीक है कल से काम पर चली जाऊंगी. पर उस के लिए आप को भी वचन देना होगा कि इस स्थिति को तूल नहीं देंगे. मैं नौकरी करती हूं. मेरे लिए भी समय के बंधन होते हैं. मुझे भी आप की तरह समय और शक्ति काम के प्रति लगानी पड़ती है. आप के काम में भी देरसबेर होती ही है पर मैं यों शक कर के क्लेश नहीं करती,’’ कहतेकहते इरा रोआंसी हो उठी.

‘‘यार कह दिया न आगे से ऐसा नहीं करूंगा. अब बारबार बोल कर क्यों नीचा दिखाती हो,’’ इरा का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम कर नवीन ने कहा.

इरा सोच रही थी कि रिश्ता तोड़ कर अलग हो जाना कितना सरल हल लग रहा था.

लेकिन कितना पीड़ा दायक.

परिवार के टूटने का त्रास सहन करना क्या आसान बात थी. मन ही मन वह अपने बेटे की ऋणी थी, जिस की जरा सी परिपक्वता ने यह हल निकाल दिया था, उस की समस्या का.

श्वेता तिवारी ने पानी में दिए हौट पोज, 10 साल छोटे एक्टर को कर रही हैं डेट

टीवी की जानी मानी खूबसूरत एक्ट्रेस श्वेता तिवारी अपनी फोटोज और वीडियो को लेकर चर्चा में बनीं रहती है उतना ही श्वेता की बेटी पलक तिवारी भी मीडिया की लाइमलाइट में छाई रहती है. श्वेता तिवारी अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी खूब सुर्खियां बटोरती है. अब श्वेता ने पानी में बैठ कर कुछ फोटोज क्लिक कराई है जो कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

 

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आपको बता दें कि श्वेता तिवारी का नाम कई एक्टर्स संग जुड़ा है और इन दिनों उनका नाम खुद से 10 साल छोटे एक्टर फहमान खान संग लिया जा रहा है. दावा है कि दोनों एक समय पर डेटिंग लाइफ एन्जॉय कर चुके हैं. इन सबके बीच श्वेता की हर एक फोटो आग की तरह इंटरनेट पर वायरल हो रही हैं. एक्ट्रेस की पल पल की खबर फैंस रख रहे हैं. श्वेता का लेटेस्ट पोस्ट भी फैंस के बीच वायरल हो गया है.

श्वेता तिवारी इन दिनों वेकेशन पर हैं. एक्ट्रेस लगातार अपने वेकेशन की फोटोज पोस्ट कर रही हैं. लेटेस्ट फोटोज में वह अपने बेटे संग मस्ती करती दिख रही हैं. इन फोटोज में श्वेता तिवारी किसी जंगल वाले इलाके के बीच में पानी में बैठी हुई नजर आ रही हैं. एक्ट्रेस के चेहरे पर स्माइल देखने लायक है. श्वेता ने इन फोटोज में व्हाइट कलर का आउटफिट पहना है, जो पानी की वजह से काफी ट्रांसपेरेंट हो गया. श्वेता ने अपना लुक काले चश्मे से पूरा किया है.

श्वेता तिवारी एक फोटो में अपना साइड पोज दिखा रही हैं. नो मेकअप लुक में श्वेता इस फोटो काफी सुंदर लग रही हैं. एक्ट्रेस ने अपने बालों को बन बनाया हुआ है.

 

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बता दें कि श्वेता तिवारी के बेटे का नाम रेयांश है. इस फोटो में श्वेता तिवारी अपने बेटे के साथ नजर आ रही है. एक्ट्रेस अपने बेटे को प्यार लुटा रही हैं और रेयांश भी अपनी मां की तरफ ही देख रहे हैं. मां बेटे की जोड़ी कमाल लग रही.

बता दें कि श्वेता तिवारी और फहमान खान की डेटिंग की खबरें सामने आई हैं. दावा है कि श्वेता 10 साल छोटे फहमान खान को डेट कर चुकी हैं. हालांकि, एक्टर ने इन खबरों को मजाक बताया है. श्वेता तिवारी ने फहमान खान संग रिश्ते की खबरों पर अब तक चुप्पी नहीं तोड़ी है. ऐसे में फैंस श्वेता के रिएक्शन का इंतजार कर रहे हैं.

अंकिता लोखंडे का टूटा हाथ, पति विक्की जैन के साथ फोटो कीं शेयर

टीवी इंडस्ट्री के स्टार कपल अंकिता लोखंडे और विक्की जैन बिग बौस से ही चर्चा में रहना वाला कपल बन चुका हैं. विक्की जैन और अंकिता लोखंडे फैंस के बीच काफी पौपुलर है. अकिंता की फैन फौलोइंग भी काफी अच्छी है, लेकिन अब उनके चाहने वालों के लिए एक बुरी खबर सामन आई है. जी हां, अकिंता के हाथ में चोट आ गई है जिस वजह से वे इन अस्पताल में भर्ती है. जहां की फोटो अंकिता ने शेयर की है जिसमे विक्की जैन भी साथ नजर आ रहे है.


आपको बता दें कि कपल की बिगड़ी तबीयत ने फैंस को चिंता में डाल दिया है. जी हां, विक्की जैन और अंकिता लोखंडे दोनों की साथ में ही तबीयत खराब हो गई है और इस वक्त दोनों एक ही अस्पातल में भर्ती हैं. इस बात की जानकारी खुद अंकिता लोखंडे ने कुछ फोटोज शेयर कर दी है, जिसमें विक्की और अंकिता की हालत काफी ज्यादा खराब दिखाई दे रही है.


टीवी इंडस्ट्री की हिट एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे और विक्की जैन अस्पताल के एक ही कमरे में एडमिट हैं. अंकिता लोखंडे के हाथ में चोट लगी हुई है और विक्की की हालत भी काफी ज्यादा खराब है. एक्ट्रेस ने अपने ऑफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर अस्पताल के कमरे से ही कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें दोनों ही अस्पताल के बेड पर लेटे हुए हैं. कुछ फोटोज में अंकिता और विक्की एक ही बेड पर लेटे हुए हैं और कैमरे की ओर देखकर स्माइल कर रहे हैं. वहीं, एक फोटो में अंकिता लोखंडे अपने बेड पर बैठी हुई हैं और विक्की अपने बेड पर बैठकर फोन चला रहे हैं. इन फोटोज के साथ एक्ट्रेस ने कैप्शन में लिखा, ‘सच में… बीमारी और स्वास्थ्य में एक साथ.’ इस कैप्शन के साथ अंकिता लोखंडे ने बियर्ड और फनी दोनों इमोजी लगाए हैं.

अंकिता लोखंडे और विक्की जैन के फैंस दोनों की ये तस्वीरें देखकर चिंता में पड़ गए हैं. हर कोई दोनों के जल्द ठीक होने की दुआ मांग रहा है, लेकिन कपल को ट्रोल करने वालों की कमी नहीं हैं. इन फोटोज पर भी लोग कपल की टांग खिंचना नहीं भूल रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘प्यार कितना है ये तो बिग बॉस में ही देख लिया.’ दूसरे यूजर ने लिखा, ‘अस्पताल में आराम करो… वहां भी शोऑफ ही करना है.’ इतना ही नहीं, एक यूजर ने तो यह भी पूछ लिया, ‘पेशंट कौन है?’ हालांकि, कई सेलेब्स ने भी अंकिता और विक्की के जल्द ठीक होने की दुआ की है.

एथलीट राम बाबू : मनरेगा मजदूर से मैडल तक का सफर

4 राज्यों झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरहदों से लगे हुए उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर बसा सोनभद्र का बहुअरा गांव इन दिनों सुर्खियों में है. वाराणसीशक्तिनगर हाईवे से लगा हुआ यह गांव सोनभद्रचंदौली का सरहदी गांव भी है.

कभी नक्सलियों की धमक से दहलने वाले चंदौली के नौगढ़ से लगा हुआ यह गांव नक्सलियों की आहट से सहमा हुआ करता था, लेकिन अब यह गांव दूसरी वजह से सुर्खियों में बना हुआ है.

सिर्फ एक ही नाम के चर्चे इन दिनों हरेक की जबान पर हैं. वह नाम कोई और नहीं, बल्कि एक साधारण से गरीब आदिवासी परिवार के नौजवान रामबाबू का है. इस साधारण से लड़के ने गरीबी और बेरोजगारी को पीछे छोड़ते हुए इन्हें ढाल न बना कर, बल्कि चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इंटरनैशनल लैवल पर अपने कामयाबी के झंडे गाड़ते हुए उन लोगों  के लिए एक मिसाल पेश की है, जो चुनौतियों से घबरा कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाते हैं.

चीन के हांग शहर में हुए 19वें 35 किलोमीटर पैदल चाल इवैंट में कांसे का तमगा हासिल करने वाले 24 साल के रामबाबू ने गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई शुरू कर नवोदय विद्यालय में इंटर तक की तालीम हासिल करने के बाद इंटरनैशनल लैवल पर छाने के लिए हर उस चुनौती का सामना किया है, जो उन राह में रोड़ा बनी हुई थी.

रामबाबू के परिवार में पिता छोटेलाल उर्फ छोटू और माता मीना देवी हैं. 2 बड़ी बहनों किरन और पूजा की शादी हो चुकी है, जबकि छोटी बहन सुमन प्रयागराज में रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है.

रोजाना दौड़ने की आदत को अपनी दिनचर्या में शामिल करने के बाद रामबाबू का धावक बनने

का सफर शुरू हुआ था. सुबहशाम गांव की पगडंडियों, खाली पड़े खेतखलिहानों में दौड़ लगाने के साथसाथ वे मेहनत के कामों से जी नहीं चुराया करते थे. अपने मकसद को हासिल करने के लिए मेहनतमजदूरी से भी पैर पीछे नहीं हटाया.

इस तरह अति पिछड़े गांव से बाहर निकल कर नैशनल लैवल पर छा गए रामबाबू साल 2022 में गुजरात में हुए राष्ट्रीय पैदल चाल इवैंट में एक नए रिकौर्ड के साथसाथ गोल्ड मैडल हासिल करने में कामयाब हुए थे.

इस 35 किलोमीटर की दूरी की प्रतियोगिता को उन्होंने महज 2 घंटे, 36 मिनट और 34 सैकंड में पूरा कर अपने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए थे.

बताते चलें कि इस के पहले यह रिकौर्ड हरियाणा के मोहम्मद जुनैद के नाम था. रामबाबू ने मोहम्मद जुनैद को हरा कर ही गोल्ड मैडल जीता था.

इस के बाद 15 फरवरी, 2023 को रामबाबू ने झारखंड राज्य की राजधानी रांची में आयोजित राष्ट्रीय पैदल चाल गेम्स में अपना ही रिकौर्ड तोड़ते हुए

2 घंटे, 30 मिनट और 36 सैकंड का एक नया रिकौर्ड कायम किया था. इस के बाद 25 मार्च, 2023 को स्लोवाकिया में 2 घंटे, 29 मिनट और 56 सैकंड में यही दूरी तय करते हुए रामबाबू ने अपने नाम एक और रिकौर्ड किया था.

गुरबत में गुजरबसर कुछ समय पहले तक रामबाबू का घरपरिवार उन सभी बुनियादी सुविधाओं से महरूम था, जिन की उसे रोजाना जरूरत होती है. पीने का पानी लाने के लिए एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. आवास के नाम पर खपरैल और झोंपड़ी वाला मकान लाचार नजर आता है.

वह तो भला हो सोनभद्र के कलक्टर चंद्र विजय सिंह का, जिन्होंने राष्ट्रीय खेलों में गोल्ड मैडल हासिल करने वाले रामबाबू की कामयाबी के बाद उन के घर पहुंच कर पानी की समस्या को हल करने के लिए तत्काल हैंडपंप लगवाए जाने का निर्देश दिया था.

कलक्टर के निर्देश का असर ही कहा जाएगा कि रामबाबू के परिवार को पानी की समस्या से नजात मिल गई है. उन्होंने 10 बिस्वा जमीन भी पट्टा करने के साथसाथ आवास के लिए अलग से एक बिस्वा जमीन मुहैया कराई.

पर अफसोस यह है कि रामबाबू के परिवार को भले ही कहने के लिए कलक्टर ने आवास, खेतीकिसानी के लिए जमीन आवंटित कर दी है, लेकिन देखा जाए तो यह रामबाबू के परिवार के लिए बेकार है. वजह, जो जमीन मिली है, वह भी डूब क्षेत्र में 10 बिस्वा मिली है.

बहुअरा बंगाल में एक बिस्वा जमीन आवास के लिए मिली है. यह जमीन मार्च, 2023 में मिली थी. लेकिन लेखपाल और प्रधान ने मनमानी करते हुए बाद में दूसरी जगह नाप दी है, जहां से 11,000 पावर की टावर लाइन गुजरती है, जबकि बगल में ही ग्राम समाज की जमीन खाली पड़ी हुई है. वहां जमीन न दे कर कलक्टर के आदेश को भी एक तरह से दरकिनार करते हुए मनमानी की गई है.

दबंगों का खौफ रामबाबू का जो घर है, वह अब जर्जर हो चुका है. उन के परिवार वाले बताते हैं कि वे लोग 35 सालों से गांव में रहते आ रहे हैं. गांव के ही एक आदमी को 10 बिस्वा का पैसा आज से 25 साल पहले दिया था, इस के बावजूद वह न जमीन दे रहा है, न ही पैसा वापस कर रहा है, बल्कि दबंग लोग कच्चे घर के खपरैल को भी तोड़ देते हैं.

कई बार शिकायत करने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है, जिस से सर्दी, बरसात के थपेड़ों को सहते हुए जंगली जीवजंतुओं के डर के बीच रहने को मजबूर होना पड़ रहा है.

रामबाबू के घर तक सड़क, खड़ंजा नाली की कमी बनी हुई है. हलकी बारिश में भी पानी भरने के साथ कीचड़ में चलना दूभर हो जाता है, जबकि लिंक मार्ग से रामबाबू का घर लगा हुआ है. अगर 50 मीटर तक खड़ंजा बिछा दिया जाए, तो कीचड़ से राहत मिल जाए, लेकिन इस के लिए न तो प्रधान ने पहल की और न ही किसी और जनप्रतिनिधि ने.

वेटर और मनरेगा मजदूर

भारत में लौकडाउन के दौरान जब समूचा मजदूर तबका हलकान और परेशान हो उठा था, उस दौर में भी रामबाबू ने हिम्मत नहीं हारी थी. साल 2020 में जब वे भोपाल में प्रैक्टिस कर रहे थे, तब लौकडाउन  के दौरान वे गांव लौट आए थे. वहां मातापिता के साथ मिल कर मनरेगा के तहत मजदूरी किया करते थे. इस के पहले वे वाराणसी में एक होटल में वेटर का भी काम कर चुके हैं.

रामबाबू भारतीय सेना में हवलदार हैं. उन का अगला टारगेट पैरिस ओलिंपिक, 2024 में तमगा हासिल करना है.

फल बेचने वाले की बेटी चमकी

सोनभद्र के रामबाबू के साथ ही जौनपुर जिले के रामपुर विकास खंड क्षेत्र के अंतर्गत सुलतानपुर गांव की रहने वाली ऐश्वर्या ने भी गोल्ड मैडल हासिल कर अपने जिले का मान बढ़ाया है.

हालांकि ऐश्वर्या और उन के मातापिता मुंबई में रहते हैं, फिर भी उन के गांव में उन की कामयाबी के चर्चे हर जबान पर होते रहे हैं.

ऐश्वर्या के पिता कैलाश मिश्रा मुंबई में रह कर फल बेचने का कारोबार करते हैं. उन की बेटी ऐश्वर्या ने चीन में एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता है. ऐश्वर्या का जन्म व पढ़ाईलिखाई मुंबई में ही हुई है. उन के परिवार वाले बताते हैं कि इस की तैयारी ऐश्वर्या पिछले 11 साल से कर रही थीं.

देश के लिए ऐश्वर्या ने यह चौथा मैडल जीता है. सब से पहले वे थाईलैंड में पहला मैडल जीती थीं. ऐश्वर्या की जीत पर प्रधानमंत्री ने भी ट्वीट कर के बधाई दी थी.

भाई चाहता है कि पिता जमीन बेचकर उसे डंकी के रास्ते अमेरिका भेज दें, क्या यह सही है?

सवाल

मैं 21 साल की लड़की हूं और पंजाब के एक गांव में रहती हूं. हमारे गांव के बहुत से नौजवान किसी न किसी बहाने विदेश जाने की फिराक में रहते हैं. मेरा 25 साल का भाई भी इसी चक्कर में लगा हुआ है. वह पिताजी पर दबाव बना रहा है कि जमीन बेच कर उसे अमेरिका भेज दिया जाए.

अभी मैं ने ‘डंकी’ फिल्म में देखा था कि गलत तरीके से विदेश जाने वालों का क्या बुरा हाल होता है. घर में मेरी चलती नहीं है और पिताजी समझ नहीं पा रहे हैं कि जमीन बेचें या नहीं. इस बात से मैं बड़ी परेशान रहती हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पिताजी को चाहिए कि गलत तरीके से विदेश जाने देने के लिए जमीन न बेचें और आप अपने भाई को समझाएं कि पासपोर्ट और वीजा वगैरह बनवाए. इस में देर लगेगी और दिक्कतें भी आएंगी, लेकिन काम कानूनी और पुख्ता होगा.

‘डंकी’ फिल्म से पहले भी चोरीछिपे विदेश जाने वालों की हालत पर कई फिल्में बन चुकी हैं. इन में साल 1978 में आई देवानंद की फिल्म ‘देशपरदेश’ में बेहतर तरीके से बताया गया था कि गलत तरीके से विदेश जाने वालों की दुर्गति कैसेकैसे होती है.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन कोई हाथ में नौकरी या रोजगार ले कर भारतीयों का इंतजार या स्वागत नहीं करते हैं. अभी वहां चुनाव प्रचार चल रहा है, जिस में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप घुसपैठियों को जानवर कहते हुए उन से सख्ती से निबटने की बात कह रहे हैं. वहां भारतीय खासतौर से कम पढ़ेलिखे गुलामों सरीखी ही जिंदगी जीते हैं. जब सीधेसीधे जाने वालों के हाल अच्छे नहीं हैं, तो गलत तरीके से जाने वाले तो जिंदगीभर दलालों के रहमोकरम पर रहने के लिए मजबूर रहते हैं.

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