दो चुटकी सिंदूर : सविता को अमित ने कैसे ठगा

‘‘ऐ सविता, तेरा चक्कर चल रहा है न अमित के साथ?’’ कुहनी मारते हुए सविता की सहेली नीतू ने पूछा.

सविता मुसकराते हुए बोली, ‘‘हां, सही है. और एक बात बताऊं… हम जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘अमित से शादी कर के तो तू महलों की रानी बन जाएगी. अच्छा, वह सब छोड़. देख उधर, तेरा आशिक बैजू कैसे तुझे हसरत भरी नजरों से देख रहा है.’’

नीतू ने तो मजाक किया था, क्योंकि वह जानती थी कि बैजू को देखना तो क्या, सविता उस का नाम भी सुनना तक पसंद नहीं करती.

सविता चिढ़ उठी. वह कहने लगी, ‘‘तू जानती है कि बैजू मुझे जरा भी नहीं भाता. फिर भी तू क्यों मुझे उस के साथ जोड़ती रहती है?’’

‘‘अरे पगली, मैं तो मजाक कर रही थी. और तू है कि… अच्छा, अब से नहीं करूंगी… बस,’’ अपने दोनों कान पकड़ते हुए नीतू बोली.

‘‘पक्का न…’’ अपनी आंखें तरेरते हुए सविता बोली, ‘‘कहां मेरा अमित, इतना पैसे वाला और हैंडसम. और कहां यह निठल्ला बैजू.

‘‘सच कहती हूं नीतू, इसे देख कर मुझे घिन आती है. विमला चाची खटमर कर कमाती रहती हैं और यह कमकोढ़ी बैजू गांव के चौराहे पर बैठ कर पानखैनी चबाता रहता है. बोझ है यह धरती पर.’’

‘‘चुप… चुप… देख, विमला मौसी इधर ही आ रही हैं. अगर उन के कान में अपने बेटे के खिलाफ एक भी बात पड़ गई न, तो समझ ले हमारी खैर नहीं,’’ नीतू बोली.

सविता बोली, ‘‘पता है मुझे. यही वजह है कि यह बैजू निठल्ला रह गया.’’

विमला की जान अपने बेटे बैजू में ही बसती थी. दोनों मांबेटा ही एकदूसरे का सहारा थे.

बैजू जब 2 साल का था, तभी उस के पिता चल बसे थे. सिलाईकढ़ाई का काम कर के किसी तरह विमला ने अपने बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था.

विमला के लाड़प्यार में बैजू इतना आलसी और निकम्मा बनता जा रहा था कि न तो उस का पढ़ाईलिखाई में मन लगता था और न ही किसी काम में. बस, गांव के लड़कों के साथ बैठकर हंसीमजाक करने में ही उसे मजा आता था.

लेकिन बैजू अपनी मां से प्यार बहुत करता था और यही विमला के लिए काफी था. गांव के लोग बैजू के बारे में कुछ न कुछ बोल ही देते थे, जिसे सुन कर विमला आगबबूला हो जाती थी.

एक दिन विमला की एक पड़ोसन ने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘‘अब इस उम्र में अपनी देह कितना खटाएगी विमला, बेटे को बोल कि कुछ कमाएधमाए. कल को उस की शादी होगी, फिर बच्चे भी होंगे, तो क्या जिंदगीभर तू ही उस के परिवार को संभालती रहेगी?

‘‘यह तो सोच कि अगर तेरा बेटा कुछ कमाएगाधमाएगा नहीं, तो कौन देगा उसे अपनी बेटी?’’

विमला कहने लगी, ‘‘मैं हूं अभी अपने बेटे के लिए, तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है… समझी. बड़ी आई मेरे बेटे के बारे में सोचने वाली. देखना, इतनी सुंदर बहू लाऊंगी उस के लिए कि तुम सब जल कर खाक हो जाओगे.’’

सविता के पिता रामकृपाल डाकिया थे. घरघर जा कर चिट्ठियां बांटना उन का काम था, पर वे अपनी दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना चाहते थे. उन की दोनों बेटियां थीं भी पढ़ने में होशियार, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि उन की बड़ी बेटी सविता अमित नाम के एक लड़के से प्यार करती है और वह उस से शादी के सपने भी देखने लगी है.

यह सच था कि सविता अमित से प्यार करती थी, पर अमित उस से नहीं, बल्कि उस के जिस्म से प्यार करता था. वह अकसर यह कह कर सविता के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की जिद करता कि जल्द ही वह अपने मांबाप से दोनों की शादी की बात करेगा.

नादान सविता ने उस की बातों में आ कर अपना तन उसे सौंप दिया. जवानी के जोश में आ कर दोनों ने यह नहीं सोचा कि इस का नतीजा कितना बुरा हो सकता है और हुआ भी, जब सविता को पता चला कि वह अमित के बच्चे की मां बनने वाली है.

जब सविता ने यह बात अमित को बताई और शादी करने को कहा, तो वह कहने लगा, ‘‘क्या मैं तुम्हें बेवकूफ दिखता हूं, जो चली आई यह बताने कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा है? अरे, जब तुम मेरे साथ सो सकती हो, तो न जाने और कितनों के साथ सोती होगी. यह उन्हीं में से एक का बच्चा होगा.’’

सविता के पेट से होने का घर में पता लगते ही कुहराम मच गया. अपनी इज्जत और सविता के भविष्य की खातिर उसे शहर ले जा कर घर वालों ने बच्चा गिरवा दिया और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर उस की शादी करने का विचार कर लिया.

एक अच्छा लड़का मिलते ही घर वालों ने सविता की शादी तय कर दी. लेकिन ऐसी बातें कहीं छिपती हैं भला.अभी शादी के फेरे होने बाकी थे कि लड़के के पिता ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘बंद करो… अब नहीं होगी यह शादी.’’

शादी में आए मेहमान और गांव के लोग हैरान रह गए. जब सारी बात का खुलासा हुआ, तो सारे गांव वाले सविता पर थूथू कर के वहां से चले गए.

सविता की मां तो गश खा कर गिर पड़ी थीं. रामकृपाल अपना सिर पीटते हुए कहने लगे, ‘‘अब क्या होगा… क्या मुंह दिखाएंगे हम गांव वालों को? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस लड़की ने हमें. बताओ, अब कौन हाथ थामेगा इस का?’’

‘‘मैं थामूंगा सविता का हाथ,’’ अचानक किसी के मुंह से यह सुन कर रामकृपाल ने अचकचा कर पीछे मुड़ कर देखा, तो बैजू अपनी मां के साथ खड़ा था.

‘‘बैजू… तुम?’’ रामकृपाल ने बड़ी हैरानी से पूछा.

विमला कहने लगी, ‘‘हां भाई साहब, आप ने सही सुना है. मैं आप की बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं और वह इसलिए कि मेरा बैजू आप की बेटी से प्यार करता है.’’

रामकृपाल और उन की पत्नी को चुप और सहमा हुआ देख कर विमला आगे कहने लगी, ‘‘न… न आप गांव वालों की चिंता न करो, क्योंकि मेरे लिए मेरे बेटे की खुशी सब से ऊपर है, बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, उस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

अब अंधे को क्या चाहिए दो आंखें ही न. उसी मंडप में सविता और बैजू का ब्याह हो गया.

जिस बैजू को देख कर सविता को उबकाई आती थी, उसे देखना तो क्या वह उस का नाम तक सुनना पसंद नहीं करती थी, आज वही बैजू उस की मांग का सिंदूर बन गया. सविता को तो अपनी सुहागरात एक काली रात की तरह दिख रही थी.

‘क्या मुंह दिखाऊंगी मैं अपनी सखियों को, क्या कहूंगी कि जिस बैजू को देखना तक गंवारा नहीं था मुझे, वही आज मेरा पति बन गया. नहीं… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इतनी बड़ी नाइंसाफी मेरे साथ नहीं हो सकती,’ सोच कर ही वह बेचैन हो गई.

तभी किसी के आने की आहट से वह उठ खड़ी हुई. अपने सामने जब उस ने बैजू को खड़ा देखा, तो उस का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

बैजू के मुंह पर अपने हाथ की चूडि़यां निकालनिकाल कर फेंकते हुए सविता कहने लगी, ‘‘तुम ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाया है. तुम्हें क्या लगता है कि दो चुटकी सिंदूर मेरी मांग में भर देने से तुम मेरे पति बन गए? नहीं, कोई नहीं हो तुम मेरे. नहीं रहूंगी एक पल भी इस घर में तुम्हारे साथ मैं… समझ लो.’’

बैजू चुपचाप सब सुनता रहा. एक तकिया ले कर उसी कमरे के एक कोने में जा कर सो गया.

सविता ने मन ही मन फैसला किया कि सुबह होते ही वह अपने घर चली जाएगी. तभी उसे अपने मातापिता की कही बातें याद आने लगीं, ‘अगर आज बैजू न होता, तो शायद हम मर जाते, क्योंकि तुम ने तो हमें जीने लायक छोड़ा ही नहीं था. हो सके, तो अब हमें बख्श देना बेटी, क्योंकि अभी तुम्हारी छोटी बहन की भी शादी करनी है हमें…’

कहां ठिकाना था अब उस का इस घर के सिवा? कहां जाएगी वह? बस, यह सोच कर सविता ने अपने बढ़ते कदम रोक लिए.सविता इस घर में पलपल मर रही थी. उसे अपनी ही जिंदगी नरक लगने लगी थी, लेकिन इस सब की जिम्मेदार भी तो वही थी.

कभीकभी सविता को लगता कि बैजू की पत्नी बन कर रहने से तो अच्छा है कि कहीं नदीनाले में डूब कर मर जाए, पर मरना भी तो इतना आसान नहीं होता है. मांबाप, नातेरिश्तेदार यहां तक कि सखीसहेलियां भी छूट गईं उस की. या यों कहें कि जानबूझ कर सब ने उस से नाता तोड़ लिया. बस, जिंदगी कट रही थी उस की.

सविता को उदास और सहमा हुआ देख कर हंसनेमुसकराने वाला बैजू भी उदास हो जाता था. वह सविता को खुश रखना चाहता था, पर उसे देखते ही वह ऐसे चिल्लाने लगती थी, जैसे कोई भूत देख लिया हो. इस घर में रह कर न तो वह एक बहू का फर्ज निभा रही थी और न ही पत्नी धर्म. उस ने शादी के दूसरे दिन ही अपनी मांग का सिंदूर पोंछ लिया था.

शादी हुए कई महीने बीत चुके थे, पर इतने महीनों में न तो सविता के मातापिता ने उस की कोई खैरखबर ली और न ही कभी उस से मिलने आए. क्याक्या सोच रखा था सविता ने अपने भविष्य को ले कर, पर पलभर में सब चकनाचूर हो गया था.

‘शादी के इतने महीनों के बाद भी भले ही सविता ने प्यार से मेरी तरफ एक बार भी न देखा हो, पर पत्नी तो वह मेरी ही है न. और यही बात मेरे लिए काफी है,’ यही सोचसोच कर बैजू खुश हो उठता था.

एक दिन न तो विमला घर पर थी और न ही बैजू. तभी अमित वहां आ धमका. उसे यों अचानक अपने घर आया देख सविता हैरान रह गई. वह गुस्से से तमतमाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?’’

अमित कहने लगा, ‘‘अब इतना भी क्या गुस्सा? मैं तो यह देखने आया था कि तुम बैजू के साथ कितनी खुश हो? वैसे, तुम मुझे शाबाशी दे सकती हो. अरे, ऐसे क्या देख रही हो? सच ही तो कह रहा हूं कि आज मेरी वजह से ही तुम यहां इस घर में हो.’’

सविता हैरानी से बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से… क्या मतलब?’’

‘‘अरे, मैं ने ही तो लड़के वालों को हमारे संबंधों के बारे में बताया था और यह भी कि तुम मेरे बच्चे की मां भी बनने वाली हो. सही नहीं किया क्या मैं ने?’’ अमित बोला.

सविता यह सुन कर हैरान रह गई. वह बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? बोलो न? जानते हो, सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मेरी जिंदगी नरक बन चुकी है. क्या बिगाड़ा था मैं ने तुम्हारा?

‘‘बड़ा याद आता है मुझे तेरा यह गोरा बदन,’’ सविता के बदन पर अपना हाथ फेरते हुए अमित कहने लगा, तो वह दूर हट गई.

अमित बोला, ‘‘सुनो, हमारे बीच जैसा पहले चल रहा था, चलने दो.’’

‘‘मतलब,’’ सविता ने पूछा.

‘‘हमारा जिस्मानी संबंध और क्या. मैं जानता हूं कि तुम मुझ से नाराज हो, पर मैं हर लड़की से शादी तो नहीं कर सकता न?’’ अमित बड़ी बेशर्मी से बोला.

‘‘मतलब, तुम्हारा संबंध कइयों के साथ रह चुका है?’’

‘‘छोड़ो वे सब पुरानी बातें. चलो, फिर से हम जिंदगी के मजे लेते हैं. वैसे भी अब तो तुम्हारी शादी हो चुकी है, इसलिए किसी को हम पर शक भी नहीं होगा,’’ कहता हुआ हद पार कर रहा था अमित.

सविता ने अमित के गाल पर एक जोर का तमाचा दे मारा और कहने लगी, ‘‘क्या तुम ने मुझे धंधे वाली समझ रखा है. माना कि मुझ से गलती हो गई तुम्हें पहचानने में, पर मैं ने तुम से प्यार किया था और तुम ने क्या किया?

‘‘अरे, तुम से अच्छा तो बैजू निकला, क्योंकि उस ने मुझे और मेरे परिवार को दुनिया की रुसवाइयों से बचाया. जाओ यहां से, निकल जाओ मेरे घर से, नहीं तो मैं पुलिस को बुलाती हूं,’’ कह कर सविता घर से बाहर जाने लगी कि तभी अमित ने उस का हाथ अपनी तरफ जोर से खींचा.

‘‘तेरी यह मजाल कि तू मुझ पर हाथ उठाए. पुलिस को बुलाएगी… अभी बताता हूं,’’ कह कर उस ने सविता को जमीन पर पटक दिया और खुद उस के ऊपर चढ़ गया.

खुद को लाचार पा कर सविता डर गई. उस ने अमित की पकड़ से खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, पर हार गई. मिन्नतें करते हुए वह कहने लगी, ‘‘मुझे छोड़ दो. ऐसा मत करो…’’

पर अमित तो अब हैवानियत पर उतारू हो चुका था. तभी अपनी पीठ पर भारीभरकम मुक्का पड़ने से वह चौंक उठा. पलट कर देखा, तो सामने बैजू खड़ा था.

‘‘तू…’’ बैजू बोला.

अमित हंसते हुए कहने लगा, ‘‘नामर्द कहीं के… चल हट.’’ इतना कह कर वह फिर सविता की तरफ लपका. इस बार बैजू ने उस के मुंह पर एक ऐसा जोर का मुक्का मारा कि उस का होंठ फट गया और खून निकल आया.

अपने बहते खून को देख अमित तमतमा गया और बोला, ‘‘तेरी इतनी मजाल कि तू मुझे मारे,’’ कह कर उस ने अपनी पिस्तौल निकाल ली और तान दी सविता पर.

अमित बोला, ‘‘आज तो इस के साथ मैं ही अपनी रातें रंगीन करूंगा.’’ पिस्तौल देख कर सविता की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

बैजू भी दंग रह गया. वह कुछ देर रुका, फिर फुरती से यह कह कह अमित की तरफ लपका, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरी पत्नी पर गोली चलाए…’’ पर तब तक तो गोली पिस्तौल से निकल चुकी थी, जो बैजू के पेट में जा लगी.

बैजू के घर लड़ाईझगड़ा होते देख कर शायद किसी ने पुलिस को बुला लिया था. अमित वहां से भागता, उस से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. खून से लथपथ बैजू को तुरंत गांव वालों ने अस्पताल पहुंचाया. घंटों आपरेशन चला.

डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली तो निकाल दी गई है, लेकिन जब तक मरीज को होश नहीं आ जाता, कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

विमला का रोरो कर बुरा हाल था. गांव की औरतें उसे हिम्मत दे रही थीं, पर वे यह भी बोलने से नहीं चूक रही थीं कि बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सविता है.

‘सच ही तो कह रहे हैं सब. बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हूं. जिस बैजू से मैं हमेशा नफरत करती रही, आज उसी ने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई,’ अपने मन में ही बातें कर रही थी सविता.

तभी नर्स ने आ कर बताया कि बैजू को होश आ गया है. बैजू के पास जाते देख विमला ने सविता का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘नहीं, तुम अंदर नहीं जाओगी. आज तुम्हारी वजह से ही मेरा बेटा यहां पड़ा है. तू मेरे बेटे के लिए काला साया है. गलती हो गई मुझ से, जो मैं ने तुझे अपने बेटे के लिए चुना…’’

‘‘आप सविता हैं न?’’ तभी नर्स ने आ कर पूछा. डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’

‘‘अंदर जाइए, मरीज आप को पूछ रहे हैं.’’

नर्स के कहने से सविता चली तो गई, पर सास विमला के डर से वह दूर खड़ी बैजू को देखने लगी. उस की ऐसी हालत देख वह रो पड़ी. बैजू की नजरें, जो कब से सविता को ही ढूंढ़ रही थीं, देखते ही इशारों से उसे अपने पास बुलाया और धीरे से बोला, ‘‘कैसी हो सविता?’’

अपने आंसू पोंछते हुए सविता कहने लगी, ‘‘क्यों तुम ने मेरी खातिर खुद को जोखिम में डाला बैजू? मर जाने दिया होता मुझे. बोलो न, किस लिए मुझे बचाया?’’ कह कर वह वहां से जाने को पलटी ही थी कि बैजू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बड़े गौर से उस की मांग में लगे सिंदूर को देखने लगा.

‘‘हां बैजू, यह सिंदूर मैं ने तुम्हारे ही नाम का लगाया है. आज से मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूं,’’ कह कर वह बैजू से लिपट गई.

Mother’s Day 2024- रोटी बेटी : क्या खुलेगी जात पांत की गांठ

बेटी सरोजिनी छात्रावास के अपने कमरे में रचना बहुत उधेड़बुन में बैठी हुई थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह मनीष के सामने कैसे अपने मन में पड़ी गांठ की गिरह को खोले. कितना बड़ा जोखिम था इस गांठ की गिरह को खोलने में, यह सोच कर ही वह कांप गई.

इस तनाव को झेलने के लिए रचना सुबह से चाय के 3 प्याले हर घंटे के भीतर गटक गई थी. वह जानती थी कि वह मनीष से कितना प्यार करती?है और मनीष… वह तो उस के प्यार में दीवाना है, पागल है. इन हालात में कैसे वह उस बात को कह दे, जिस के बाद कुछ भी हो सकता था. लेकिन फिर उस ने सोचा कि अब समय आ गया है कि कुछ बातें तय हो ही जानी चाहिए. कुछ अनकही बातें अब बताई ही जानी चाहिए.

लेकिन तभी रचना के मन में खयाल आया कि अगर उस ने मनीष से अपनी जाति की चर्चा कर दी, तो कहीं वह उसे खो न बैठे. लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान में आया कि अगर इस समय मनीष से उस ने अपनी जाति नहीं बताई, तो यह मनीष के साथ धोखा होगा और फिर हमेशा के लिए वह उसे खो सकती है. अगर वह उसे न भी खोए, तो उस का यकीन तो खो ही सकती है.

आखिरकार रचना इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हो, वह मनीष को अपनी जाति बता कर रहेगी, क्योंकि यकीन प्यार का सब से बड़ा सूत्र होता है. अगर एक बार यकीन की डोर टूट गई, तो फिर प्यार की डोर टूटने में पलभर की देरी भी न लगेगी.

अपना पक्का मन बना कर रचना मैडिकल कालेज जाने की तैयारी करने लगी. आज मनीष के साथ उसे रैजिडैंसी  घूमने भी जाना था. रैजिडैंसी घूमने के नाम पर उस का मन गुलाबी हो जाया करता था. यही वह जगह थी, जहां घूमघूम कर उन का प्यार परवान चढ़ा था.

रैजिडैंसी का नाम आते ही रचना के मन में एक कसक सी उठती थी. इसलिए आज उस ने मनीष की पसंद की अमीनाबाद से लाई हुई और उस की भेंट की हुई गुलाबी ड्रैस पहन ली.

मैडिकल कालेज की अपनी क्लास अटैंड करने के बाद दोनों आटोरिकशा के बजाय रिकशा में बैठ कर हाथी पार्क से होते हुए गोमती के किनारे से रैजिडैंसी पहुंच गए.

1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों ने लखनऊ के नवाब आसफउद्दौला और सआदत अली खां द्वारा बनवाए गए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों ने इस भवन को बुरी तरह से तहसनहस कर दिया था. लेकिन इस के खंडहर अभी भी इस की भव्यता के गवाह हैं. इस के टूटेफूटे बुर्ज से अभी भी दूर तक लखनऊ के दर्शन किए जा सकते हैं.

‘अंगरेजी साम्राज्य का बेटा’ हैनरी लौरैंस आज भी 2,00 अंगरेजों के साथ यहां की कब्रगाह में हमेशा के लिए

सोया पड़ा है. ?लेकिन यहां की मनोरम घास, फूलों की महक, चिडि़यों की चहचहाहट, छायादार पेड़ों की शीतल छांव और एकांत वातावरण एक रूमानी माहौल पैदा करते हैं, जिस के चलते यहां अनेक प्रेमी जोड़े खिंचे चले आते हैं.

रचना और मनीष ने भी हमेशा की तरह उस पेड़ की छाया में शरण ली, जहां कितनी ही बार वे रूमानी दुनिया में खो चुके थे. लेकिन आज तो रचना के मन में एक ही सवाल सावनभादों के बादलों की तरह उमड़घुमड़ रहा था.

वहां बैठते ही मनीष ने हमेशा की तरह अपना सिर रचना की गोद में रख दिया.

मनीष के बालों को सहलाते हुए रचना ने कहा, ‘‘मनीष, तुम मुझे बहुत चाहते हो न?’’

‘‘रचना, यह भी कोई कहने की बात है.’’

‘‘क्या मैं तुम्हें बहुत अच्छी लगती हूं?’’

‘‘बहुत अच्छी बाबा, बहुत अच्छी,’’ मनीष ने बेपरवाही से कहा.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मैं कौन हूं?’’ रचना ने मनीष की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

मनीष जो अभी तक रचना की उंगलियों को सहला रहा था, इस सवाल को सुन कर अचानक उस के हाथ रुक गए और कुछ अचकचाते हुए उस ने कहा, ‘‘रचना, आज तुम ये कैसी बातें कर रही हो? तुम कौन हो, एक इनसान और कौन? लेकिन, ऐसे रूमानी मौके पर तुम्हें ये सब फालतू की बातें क्यों सूझ रही हैं?’’

‘‘मनीष, ये सब फालतू की बातें नहीं हैं. बहुत दिनों से मैं एक उलझन में हूं. तुम्हें सचाई बता कर मैं इस उलझन को दूर कर लेना चाहती हूं.

‘‘सब से बड़ी बात यह है कि तुम्हें वह सचाई जरूर पता होनी चाहिए, जिस से हमारा प्यार और जिंदगी पर असर पड़ सकता है,’’ रचना अब कुछ ज्यादा ही भावुक हो गई थी.

‘‘ओह रचना, बंद भी करो ये सब बातें. अच्छा, यह बताओ कि वह सचाई क्या?है, जो तुम्हें उलझन में डाले हुए है. पहले तुम्हारी उलझन ही दूर करता हूं.’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मेरी जाति क्या है?’’

‘‘रचना, ये क्या बेहूदी बातें ले कर बैठ गई हो. हम मैडिकल साइंस के छात्र, जो मनुष्य के शरीर के एकएक अंग को पहचानते हैं और जानते हैं कि सारी दुनिया के इनसानों की बनावट एकजैसी है, चाहे वह किसी भी जाति, नस्ल और धर्म का हो. वह साइंस का छात्र ही क्या, जो जातियों में उलझने के लिए इतनी पढ़ाई करता है?

‘‘और वैसे भी तुम सिसौदिया हो और सिसौदिया राजपूत जाति का गोत्र है. मेरे लिए जैसे मेरी जाति के बनिए वैसे ही राजपूत. इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

‘‘और वाल्मीकि… क्या उन से फर्क पड़ता है मनीष?’’ रचना की बारिश में अब बादलों की गड़गड़ाहट भी शुरू हो गई थी. बारिश का मिजाज बिगड़ने सा लगा था.

‘‘क्या सारा मूड खराब किए दे रही हो रचना? क्या हम इस रूमानी जगह पर अपना मूड खराब करने के लिए आए थे? मैं ने तुम्हें बता दिया कि मैं मैडिकल का छात्र हूं. मुझे किसी की जाति से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

‘‘लेकिन मनीष, अगर मैं कहूं कि मैं वाल्मीकि परिवार से हूं और मेरे कितने ही रिश्तेदार सुबह हाथ में झाड़ू ले कर सड़कों और नालियों की गंदगी साफ करने निकल पड़ते हैं, तब…?’’ रचना की बारिश में तेज गड़गड़ाहट सी बिजली चमकी.

रचना की बात को सुन कर मैडिकल स्टूडैंट मनीष अग्रवाल को बिजली का सा जोरदार झटका लगा. वह सवालिया निगाहों से रचना को देखने लगा 2 फुट दूर खड़ा हो कर.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मनीष? मैं तो आज अपना मन बना कर आई थी कि तुम्हें अपनी जाति की सचाई बता कर रहूंगी. अभी भी फैसला तुम्हारे हाथ में है कि तुम मुझे अपनाओ या नहीं. मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहती थी,’’ रचना सिसौदिया की बारिश में न बिजली की चमक बची थी, न गड़गड़ाहट. अब तो उस बारिश की सिसकियां बची थीं.

‘‘लेकिन रचना, तुम अपने नाम के साथ राजपूतों का सिसौदिया गोत्र क्यों लगाती हो?’’

‘‘क्योंकि मेरा गोत्र ही सिसौदिया है?’’

‘‘लेकिन, वह कैसे रचना?

‘‘मनीष, ये सब इतिहास की बातें हैं. जैसे आज भी अनेक मुसलमानों में हिंदू गोत्र मलिक, बाजवा, चौधरी मिल जाते हैं, ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ.

‘‘हम वाल्मीकियों में भी क्षत्रियों के अनेक गोत्र मिलते हैं. जब सुलतानों और मुगलों से लड़ते हुए हिंदू फौजें हार जाती थीं, तो बंदी फौजियों के सामने इसलाम स्वीकार करने या उन के हरम की गंदगी साफ करने के रास्ते रखे जाते थे. हमारे पुरखों ने शायद दूसरा रास्ता स्वीकार किया हो.

‘‘जब से हम वाल्मीकि समाज का हिस्सा बन गए और तब से हमारे समाज के लोग गंदगी साफ करने का काम करते आ रहे हैं. यह अलग बात है कि कुछ हम जैसे पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच गए. लेकिन यह बात कह कर मैं तुम्हें किसी बात के लिए मजबूर नहीं कर रही हूं. अगर मेरे मातापिता सफाई करने वाले भी होते तो भी मुझे उन पर गर्व ही होता.’’

‘‘रचना, बैठो तो सही. मुझे तुम्हारी जाति से कोई लेनादेना नहीं है. मैं अपनी बात पर अभी भी कायम हूं,’’ कह कर मनीष ने अपना सिर फिर से रचना की गोद में रख लिया और उस की भीगी पलकों को अपनी उंगलियों से पोंछ डाला. रचना ने भी अपनी जुल्फों की ओट ले कर मनीष के होंठों पर अपने होंठ रख कर अपनी सच्ची मुहब्बत की मोहर लगा दी.

मनीष ने जब अपने घर मुरादाबाद आ कर अपनी मुहब्बत का जिक्र मम्मीपापा से किया, तो उन्होंने उस की मुहब्बत पर कोई एतराज नहीं जताया, बल्कि उन्हें खुशी हुई कि मनीष ने मैडिकल लाइन की लड़की को अपनी भावी जीवनसंगिनी के रूप में चुना. लेकिन जब मनीष ने उन्हें बताया कि रचना पास के ही जिले रामपुर के वाल्मीकि परिवार से है, तो उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

इस पर उस के पापा ने कहा, ‘‘मनीष बेटा, हमें तुम्हारी मुहब्बत पर कोई एतराज नहीं, लेकिन जरा यह तो सोचो कि जमाना क्या कहेगा और हमारे बनिए समाज के लोग ही हम पर कितनी उंगली उठाएंगे?’’

‘‘पापा, समाज के केवल दकियानूसी लोग ही ऐसे मामलों में फालतू की बकवास करते हैं. उन्हें तो किसी भी सामाजिक काम में मीनमेख निकालने के लिए कोई और काम ही नहीं होता. लेकिन अगर हम पढ़ेलिखे लोग भी जातबिरादरी पर जाने लगे, तो हमारे पढ़नेलिखने और प्रगतिशील होने का क्या फायदा?’’

‘‘बेटा, तू सच कह रहा है. हमें रचना और उस की जाति पर कोई एतराज नहीं. आखिर जातियों के बंधनों को हमजैसे लोग नहीं तोड़ेंगे तो फिर कौन तोड़ेगा? रचना काबिल?है, पढ़ीलिखी है, तुम्हारी पसंद है. हमें इस से ज्यादा और क्या चाहिए? लेकिन यह समाज तुम्हारी शादी के वक्त कितनी उंगली उठाएगा, यह तुम नहीं जानते बेटा.’’

‘‘पापा, आप इस की चिंता न करें. मैं रचना से कोर्ट मैरिज कर लूंगा. वैवाहिक कार्यक्रमों, गाजेबाजे, बरात का काम ही खत्म. समाज के उलाहने देने के रास्ते ही बंद.’’

‘‘बेटा, तेरी बात सही है. ऐसा करना ही ठीक होगा. वैवाहिक कार्यक्रम करेंगे तो लोग न जाने क्याक्या बात बनाएंगे,’’ मनीष की मम्मी ने सहमति जताते हुए कहा.

उधर रामपुर में जब रचना ने अपने परिवार वालों से मनीष का जिक्र किया, तो उस के पापा उसे समझाने लगे, ‘‘रचना, ऊंची जाति में शादी करने का मतलब समझती हो. मान लो, मनीष तुम्हें अपना भी ले तो क्या उस के परिवार के लोग और उस के रिश्तेदार तुम्हें अपना लेंगे? बेटी, जातियों की दीवार अभी बहुत ऊंची है. इसे गिरने में अभी न जाने कितनी सदियां लगेंगी.’’

‘‘पापा, मुझे मनीष और उस के परिवार से मतलब है, उस के रिश्तेदारों से नहीं. मनीष ने बताया है कि उस के मम्मीपापा मुझे अपनाने को तैयार हैं.’’

रचना की बात सुन कर उस के पापा कुछ देर चुप रहे. फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘रचना, एक बार मैं मनीष के मम्मीपापा से मिल लूं, उस के बाद ही कोई फैसला लूंगा.’’

मम्मी ने भी रचना का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम चिंता न करो. तुम्हारे पापा मनीष से तुम्हारी शादी करने को मना नहीं कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी तो अपना फर्ज निभाना है. हर बाप यही चाहता है कि उस की बेटी सुख से रहे.’’

कुछ ही दिनों के बाद रचना के मम्मीपापा मनीष के मम्मीपापा से मिलने के लिए मुरादाबाद गए. मनीष और उस के मम्मीपापा ने रचना के मम्मीपापा के स्वागत में कोई कोरकसर बाकी न छोड़ी.

दोनों परिवार इस बात पर सहमत हो गए कि रचना और मनीष कोर्टमैरिज कर लें और बाद में केवल खास रिश्तेदारों को बुला कर रिसैप्शन पार्टी दे दें.

धीरेधीरे रचना के महल्ले में यह बात फैल गई कि विनोद सिसौदिया अपनी बेटी रचना सिसौदिया की शादी बनियों में कर रहा है. इस के साथ यह अफवाह भी फैल गई कि बनियों ने वाल्मीकियों की बेइज्जती करने के लिए बरात लाने से साफ मना कर दिया है. इस से पूरा वाल्मीकि समाज बौखला गया.

वाल्मीकि समाज के लोग इकट्ठे हो कर अपने अध्यक्ष दौलतराम के पास गए. एक आदमी ने बड़े गुस्से में कहा, ‘‘अध्यक्षजी, हम अपने समाज की बेटी को बनियों में तब तक नहीं ब्याहने देंगे, जब तक बनिए बैंडबाजे के साथ बरात ले कर नहीं आते हैं और बेटी के साथसाथ रोटी का रिश्ता नहीं बनाते हैं. सामूहिक भोज से कम कुछ स्वीकार नहीं.’’

दौलतराम बड़े सुलझे हुए और सामाजिक इनसान थे. उन्होंने उन की बात सुन कर ठंडे दिमाग से कहा, ‘‘भाइयो, मैं ने आप की बात सुन ली. बात मेरी समझ में आ गई है, लेकिन एक बार मैं विनोद सिसौदिया से बात कर लूं, तभी हम कोई फैसला लेंगे.’’

इस तरह समझाबुझा कर दौलतराम ने अपने समाज के गुस्साए लोगों को संतुष्ट कर के वापस भेजा.

शाम को दौलतराम विनोद सिसौदिया के घर पहुंचे. उन से बात की. दौलतराम पके बालों के अनुभवी इनसान थे. उन्होंने रचना के पापा से कहा, ‘‘विनोद, मैं कोर्टमैरिज को गलत नहीं मानता हूं. लेकिन कोर्टमैरिज करने में जितनी आसानी है, उस के टूटने में भी उतनी ही आसानी है. अरैंज मैरिज में दोनों तरफ के कितने ही रिश्तेदार और समाज के लोग शामिल होते हैं. अनेक लोग गवाह होते हैं. ऐसे में ऐसी शादियों का टूटना भी उतना ही मुश्किल होता?है.

‘‘तुम ऐसा करो कि अगर लड़के वालों को एतराज न हो, तो बरात बुलवा लो. इस से हमारे समाज के लोग भी संतुष्ट हो जाएंगे और लड़के वालों को भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा.’’

विनोद सिसौदिया को दौलतराम की बात समझ में आ गई. लेकिन उन के मन में डर था कि कहीं ऐसा न हो कि मनीष के मम्मीपापा इस के लिए तैयार न हों.

लेकिन मनीष के पापा बड़े खुले दिमाग के आदमी थे. उन्होंने फोन पर बात करते हुए कहा, ‘‘विनोदजी, मेरे लिए उस से बड़ी खुशी की कोई बात नहीं हो सकती. हम तो आप की चिंता कर रहे थे. अब आप की ओर से सहमति है, तो हम पूरे गाजेबाजे के साथ बरात ले कर आएंगे.

मनीष की बरात रामपुर पहुंच गई. शादी वाल्मीकि महल्ले के ही एक मैरिज हाल में होनी थी.

जैसे ही बरात वहां पहुंची, उस का भव्य स्वागत किया गया. इस के बाद विनोद सिसौदिया, दौलतराम बरात को खाने के लिए आमंत्रित करने लगे. बराती खाने के लिए रखी प्लेटों की ओर बढ़ने लगे. तभी मनीष के पापा अरविंद अग्रवाल ने देखा कि लड़की वाले खाने के लिए आगे नहीं बढ़ रहे हैं. वे बरातियों को सचेत करते हुए बोले, ‘‘ठहरो. कोई भी खाने को हाथ नहीं लगाएगा.’’

उन की आवाज सुनते ही मैरिज हाल में सन्नाटा छा गया. वाल्मीकि समाज के लोगों में खुसुरफुसुर शुरू हो गई. एक ने कहा, ‘‘हम पहले ही कहते थे कि ऊंची जाति में बेटी मत दो. ये हमारे खाने को छूते तक नहीं हैं, इस से बड़ी बेइज्जती और क्या?’’

दूसरे ने कहा, ‘‘अगर ऐसा हुआ, तो चाहे कितना भी खूनखराबा हो जाए, हम रचना की डोली नहीं उठने देंगे.’’

वाल्मीकियों के कुछ उत्पाती लड़के तो डंडे, छुरे और कटार चलाने की बात करने लगे. तभी विनोद सिसौदिया और दौलतराम बात को संभालने के लिए आगे बढ़े, उन के दिलों की धड़कन बहुत बढ़ी हुई थी. दौलतराम ने कहा, ‘‘अग्रवालजी, अब हम से क्या गलती हो गई?’’

‘‘गलती कहते हो दौलतरामजी, इस से बड़ी गलती और क्या होगी? हम बनिए खाना खाएं और आप का समाज खड़ाखड़ा मुंह ताके.’’

‘‘नहीं, नहीं, आप हमारे अतिथि हैं. पहले आप भोजन लें,’’ दौलतराम ने अतिथि सत्कार दिखाते हुए कहा.

‘‘बड़ी जल्दी भूल गए दौलतरामजी. बात हुई थी सामूहिक भोज की और अब आप के समाज के लोग ही पीछे हट रहे हैं. ऐसा नहीं हो सकता. हम तब तक भोजन को हाथ नहीं लगाएंगे, जब तक आप लोग भी हमारे साथ भोजन नहीं करेंगे,’’ यह कहते हुए मनीष के पापा ने डोंगे में से रसगुल्ला उठा कर वाल्मीकि समाज के अध्यक्ष दौलतराम के मुंह की ओर बढ़ा दिया.

दौलतराम की आंखों में खुशी के आंसू आ आए, उन्होंने मनीष के पापा को गले लगा लिया.

बहुत दिनों तक इस शादी की चर्चा होती रही, जहां जातिवाद की दीवार टूटी थी. लोग कहते रहे, ‘कौन कहता है कि जातिवाद की दीवारें दरक नहीं सकतीं, बस मन में चाह होनी चाहिए.’

महादान : कैसा था मनकूलाल

सर्दी का मौसम था. धूप खिली हुई थी. गांव की चौपाल पर बैठे लोग कहकहे लगा रहे थे कि लेकिन अचानक वे चुप हो गए. थोड़ी ही दूरी पर कंजूस मनकूलाल आता दिखाई दिया. सिर पर पुरानी टोपी, सस्ती सूती कमीज, धोती और टूटी चप्पलों को पैरों में घसीटता सा वह चला आ रहा था.

मनकूलाल पहले से ही जानता था कि चौपाल पर बैठे लोग उस पर ताने कसेंगे, इसलिए वह दूर से ही मुसकराने लगा. जैसे ही वह करीब आया, एक नौजवान ने पूछा, ‘‘क्यों कंजूस चाचा, आज इधर कैसे?’’

‘‘हाट जा रहा हूं भाई,’’ मनकूलाल ने उसी तरह मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अरे, तो पैदल क्यों जा रहे हो? बस भी तो आने वाली है.’’

‘‘मैं तो पैदल ही जाऊंगा. बेकार में 25 रुपए खर्च हो जाएंगे. हाट यहां से है ही कितना दूर. इतनी दूर तो शहर के लोग सैर करने जाते हैं.’’

‘‘अरे, तो जनाब सैर करने जा रहे हैं?’’ दूसरे नौजवान ने ताना कसते हुए कहा.

तभी वहां एक जोरदार ठहाका गूंज उठा. पर मनकूलाल पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह उसी तरह मुसकराता चला गया.

चौपाल पर बैठे लोगों में से एक ने कहा, ‘‘यह कभी नहीं सुधरेगा.’’

‘‘उस के पास बहुत रुपए हैं, पर खर्च तो वह एक पाई भी नहीं करता,’’ दूसरा आदमी बोला.

‘‘अरे, यह सब कहने की बातें हैं…’’ एक अधेड़ आदमी बुरा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘कंजूस का धन कौए खाते हैं. अभी पिछले दिनों उस के घर चोरी हो गई थी. अभीअभी उस का छोटा बेटा बीमार पड़ गया था. एक हफ्ते तक अस्पताल में भरती रहा. न जाने कितना रुपया खर्च हुआ होगा…’’

मनकूलाल के बारे में ऐसी बातें आएदिन होती थीं. गांव के लोग उसे नफरत की नजर से देखते थे. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. गांव में उस की

20 बीघा जमीन थी. उसी से उस की गृहस्थी चलती थी.

उत्तर प्रदेश के दूरदराज इलाके में बसे इस गांव में कोई भी अमीर नहीं था. सभी मनकूलाल की तरह मामूली किसान थे. वह गांव के लोगों की नजरों में इसलिए भी गिरा हुआ था, क्योंकि वह किसी धरमकरम के मामले में कभी दान नहीं देता था. गांव में नौटंकी हो या रामलीला, मंदिर बन रहा हो या मसजिद, वह कभी चंदा नहीं देता था. गांव में कोई भी साधुसंत आया हो, तो मनकूलाल उस के सामने नाक रगड़ने नहीं जाता था.

आज तक उस ने किसी ब्राह्मण से पूजापाठ नहीं करवाया था. एक बार गांव में साधुओं की टोली चंदा मांगने के लिए आई. गांव में इतने साधु एकसाथ चंदा लेने कभी नहीं आए थे, इसलिए गांव वाले उन के साथ घूम कर चंदा दिलवा रहे थे. गांव वालों की श्रद्धा देख कर साधु फूले नहीं समा रहे थे.

उन्हें लग रहा था कि इस गांव में तो खूब दानदक्षिणा मिलेगी. जब से गांवदेहात में मंदिरों की कायाकल्प होने लगी थी, तब से साधुसंतों की खूब आवभगत होने लगी थी.

जब साधुसंतों की टोली मनकूलाल के घर पहुंची, तब वह खेतों की ओर जाने की तैयारी कर रहा था. साधु सीधे उस के पास पहुंच कर चंदा मांगने लगे, पर मनकूलाल ने चंदा देने से साफ इनकार कर दिया. गांव वालों के समझाने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ.

तब एक साधु तैश में आ कर बोला, ‘‘अधर्मी, हम कोई अपने लिए चंदा नहीं मांग रहे हैं, बल्कि हम यज्ञ करने के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं.’’

‘‘यज्ञ करने से क्या होगा बाबा?’’ मनकूलाल ने पूछा.

‘‘अरे मूर्ख, इतना भी नहीं जानता कि यज्ञ करने से क्याक्या फायदे होते हैं? राम ने अश्वमेध यज्ञ क्यों करवाया

था? युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ क्यों करवाया था?’’

साधु के रुकते ही मनकूलाल बोला, ‘‘बाबा, वे राजा लोग थे. उन के कई चोंचले होते थे. हम तो अपना पेट ही बड़ी मुश्किल से भर रहे हैं, फिर बेकार में इन चोंचलों में पैसा खर्च कर के क्या फायदा?’’

साधु मनकूलाल का मुंह देखते रह गए. उन से कुछ बोलते नहीं बना. पर गांव वालों के सामने अपनी हेठी न हो जाए, यह सोच कर एक साधु बोला, ‘‘अरे, वे सब चोंचले नहीं करते थे. सुन, यज्ञ से आदमी का बहुत भला होता है, दुनिया में शांति होती है, देवता खुश होते हैं, पानी अच्छा बरसता है,’’ कह कर उस साधु ने अपने पीछे खड़े गांव के लोगों की तरफ देखा.

‘‘मैं इतना जानकार तो नहीं हूं और दुनियादारी की बात नहीं जानता. पर आज से पहले भी तो बहुत से यज्ञ करवाए गए हैं, उन से क्या हुआ? कौन सी शांति आई? गरीबी कहां दूर हुई? हमारे गांव में तो रोज ही झगड़े होते हैं. लोग हर साल ही तंगी में जीते हैं. हर साल बारिश कम होती है,’’ कह कर मनकूलाल खामोश हो गया.

साधु खिसिया गए और उसे अधर्मी, पापी वगैरह कहते हुए चले गए. उस दिन से गांव वाले मनकूलाल से ज्यादा ही नफरत करने लगे. वे सोचते थे कि मनकू को साधुओं का ‘शाप’ जरूर लगेगा. पूरा साल गुजर गया, पर उस का कुछ नहीं बिगड़ा.

अगले साल उस इलाके में बारिश न होने के चलते अकाल जैसी हालत पैदा हो गई. लोग भूखे मरने लगे. ऐसी हालत में साहूकारों ने भी मुंह फेर लिया. सरकारी दावों में खूब प्रचार किया गया कि इतने करोड़ भूखों का पेट भरा गया है, पर हकीकत में सरकारी मदद गांव तक पहुंच ही नहीं पाई थी.

मनकूलाल के गांव वाले पहले ही गरीब थे. गांव में ऐसा एक भी परिवार नहीं था, जो दूसरे परिवार की मदद कर सके. पूरे गांव में हाहाकार मचा हुआ था. पर गांव के 10-12 परिवार, जो मजदूरी कर के गुजारा करते थे, बहुत ही बुरी हालत में दिन बिता रहे थे. वे परिवार गांव से शहर जाने के लिए मजबूर हो गए थे. इस के चलते गांव के सभी लोग बेहद दुखी थे, पर वे कर भी क्या सकते थे, क्योंकि वे तो खुद ही बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. जिस दिन वे मजदूर परिवार ट्रैक्टरट्रौली पर अपना सामान लाद कर रवाना होने वाले थे, तब गांव के सभी लोग वहां इकट्ठे हो गए थे.

उसी समय मनकूलाल वहां आया. उस के हाथ में लाल कपड़े की छोटी सी पोटली थी. गांव के मुखिया को वह गठरी देते हुए मनकूलाल ने कहा, ‘‘यह मेरी 10 सालों की जमापूंजी है. रुपया मुसीबत के समय ही काम आता है. आज अपने गांव में भी मुसीबत आई हुई है. ऐसे समय में मेरा पैसा गांव के काम आ जाए, तो मैं खुद को धन्य समझूंगा.’’

मुखिया हैरान रह गया. वह कभी मनकूलाल की तरफ देखता, तो कभी पोटली में लिपटे रुपयों की तरफ. वहां खड़े सभी लोगों की भी यही हालत थी. एक आदमी ने खुश हो कर रुपए गिने, तो उस की खुशी की सीमा न रही. वे इतने रुपए थे कि उन से तंगहाली में आ गए सभी परिवारों के लिए सालभर का अनाज आ सकता था. मुखिया ने यह बात गांव के सब लोगों को बताई, तो वे वाहवाह कर उठे.

कुछ लोग तो शर्म के मारे मनकूलाल से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. गांव छोड़ कर जाने वाले परिवार रुक गए. मनकूलाल के लिए उन के दिल इज्जत से भर गए थे. पूरा गांव जिस इनसान को अधर्मी, कंजूस और न जाने क्याक्या समझता था, वही आज मुसीबत के समय गांव के काम आया था.

अब गांव वाले सोच रहे थे कि मनकूलाल कंजूस नहीं, किफायती था. थोड़े खर्चे से काम चलाता था. वह उन की तरह अंधविश्वासी और मूर्ख नहीं था. वह जानता था कि दान कहां देना है. मुसीबत के समय दिया जाने वाला दान ही ‘महादान’ है. वही सच्चा धर्म है. बाकी सब बेकार की बातें हैं.

सब लोगों ने मनकूलाल को यकीन दिलाया कि अब वे भी बचत करेंगे और उस की पाईपाई सूद समेत सालभर में चुका देंगे.

मनकूलाल ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा भला चाहिए, सूद नहीं.’’

इस पर मुखिया बोला, ‘‘सूद तो तुम्हारा हक है. भला तुम इन गरीबों

को बिना लिखतपढ़त के उधार दे कर

ही क्या कम कर रहे हो… यह पैसा तो तुम्हें लेना ही होगा, जब भी वे लोग

दे सकेंगे.’’

मनकूलाल मुसकरा कर रह गया. उस ने मुखिया की बात का मान रखा.

शहनाज गिल का बोल्ड लुक फैंस को नहीं हुआ हजम, इन फोटोज के कारण हुईं ट्रोल

बिग बौस 13 फेम एक्ट्रेस शहनाज गिल की फैन फोलोइंग किसी के कम नहीं है, कम फिल्मों में अपनी एक्टिंग और टैलेंट के दम पर एक्ट्रेस ने लोगों का खूब दिल जिता हैं. एक्ट्रेस सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती है. शहनाज गिल अक्सर अपनी तस्वीरें शेयर करती रहती हैं. जिन पर फैंस जमकर प्यार लुटाते हैं. शहनाज गिल ने कई बार अपनी बोल्ड फोटोज शेयर कर ट्रोल्स के निशाने पर आ चुकी हैं. एक्ट्रेस का बोल्ड लुक लोगों के लिए परेशानी बन जाता हैं. वही, इन फोटो की वजह से लोग उन्हे खरी-खोटी सुनाते है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)


शहनाज गिल इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव रहती हैं. शहनाज गिल अक्सर अपनी तस्वीरें फैंस के लिए शेयर करती रहती हैं. शहनाज गिल इंस्टाग्राम पर अच्छी फैन फॉलोइंग है. शहनाज गिल की तस्वीरें आते ही वायरल हो जाती हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)


शहनाज गिल की फोटो को फैंस पसंद करते हैं. इसके साथ ही अपनी पसंदीदा एक्ट्रेस शहनाज गिल पर प्यार बरसाते हैं. शहनाज गिल कई बार बोल्ड फोटोज शेयर करती हैं. शहनाज गिल की इन अदाओं की फैंस तारीफ करते हैं. शहनाज गिल अपनी बोल्डनेस के चलते ट्रोल भी हो जाती हैं. शहनाज गिल को लेकर काफी निगेटिव कमेंट आते हैं. शहनाज गिल की तस्वीरों को देखकर अधिकतर लोगों का कहना होता है वह सादगी में अच्छी लगती हैं. शहनाज गिल को ड्रेसिंग सेंस को लेकर नसीहत दी जाती है. शहनाज गिल को ट्रोल्स की बातों से फर्क नहीं पड़ता है.शहनाज गिल अपनी बोल्ड तस्वीरें शेयर करती रहती हैं.

लाइव कॉन्सर्ट के दौरान सुनिधि चौहान के साथ हुई बदतमीजी, फेंकी गई बोतल

सुनिधि चौहान ने अपनी अवाज से सबको अपना दीवाना बनाया है, उनकी सिंगिग की जितनी तारीफ की जाएं उतनी कम है. उनके गाने सुनने वालों लाखों करोडों फैन हैं, जो उन्हे आज भी फोलो करते है.हाल में सुनिधि चौहान एक कॉन्सर्ट में पहुंची थीं. जहां का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.  दरअसल, सुनिधि चौहान के लाइव कॉन्सर्ट के दौरान लोग उनकी आवाज पर झूमते नजर आ रहे थे कि अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसने लोगों को हैरान कर दिया.

सुनिधि चौहान के कॉन्सर्ट में काफी संख्या में उनके फैंस पहुंचते हैं, सुनिधि चौहान के एक कॉन्सर्ट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और इसको लेकर वह सुर्खियों में आ गई है.


एंटरटेनमेंट की मशहूर गायिका सुनिधि चौहान अपने गानों से महफिल अपने नाम कर लेती हैं. सुनिधि चौहान लाइव कॉन्सर्ट भी करती हैं और अपनी बेहतरीन आवाज से लोगों को झमूने पर मजबूर कर देती हैं. हाल में सुनिधि चौहान का देहरादून के एक कॉलेज में लाइव कॉन्सर्ट था. इस दौरान सुनिधि चौहान गा रही थीं और लोग उनकी गायकी सुनकर मस्त थे कि अचानक भीड़ से किसी ने उन पर बोतल फेंक दी. ये देखकर लोग हैरान रह गए लेकिन सुनिधि चौहान को इस पर गुस्सा नहीं बल्कि उन्होंने मजेदार तरीक से रिएक्शन दिया. सुनिधि चौहान का ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

सुनिधि चौहान ने बोतल फेंकने के बाद अपने लाइव कॉन्सर्ट को जारी रखा. हालांकि, सुनिधि चौहान ने कहा, ‘ये क्या हो रहा है? बोतल फेंकने से क्या होगा? शो रुकेगा, क्या तुम ऐसा चाहते हो?’ उनकी बात सुनकर फैंस नहीं नहीं चिल्लाने लगती है. सुनिधि चौहान का वीडियो वायरल होने के बाद उनके फैंस सपोर्ट में आए हैं और उनकी सादगी की जमकर तारीफ कर रहे हैं.


बता दें कि सुनिधि चौहान ने फिल्मों के लिए एक से बढ़कर एक गाने गाए हैं. सुनिधि चौहान की प्यारी आवाज सुनने के लिए लोग इंतजार करते हैं.

 

क्यों नहीं चल पाती समलैंगिकता से जुडी फिल्में

समलैंगिकता हमेशा से समाज में रही है, लोगों ने बस स्वीकार करने में देरी की है. सिनेमा भी उसी अनुरूप ढलता रहा. आज क्वीर फिल्में बनाई तो जा रही हैं पर दर्शकों में शर्म और झिझक के चलते ये फिल्में चल नहीं पातीं. जानिए आने वाले समय में क्या है क्वीर फिल्मों का भविष्य.पिछले कुछ सालों से क्वीर फिल्मों का निर्माण देश में बढ़ा है, क्योंकि अब कानून इस को अपराध नहीं मानता. उन्हें अपने तरीके से जीने का अधिकार देता है, लेकिन शादी करने की मान्यता नहीं देता.

ऐसे में कुछ अलग तरीके के भाव और रहनसहन को फौलो करने वाले लोगों को छिप कर रहने की अब जरूरत नहीं रही, लेकिन परिवार, समाज और धर्म के कुछ लोग आज भी इन्हें हीन दृष्टि से देखते हैं. उन्हें अपनी भावनाओं को खुल कर कहने या रखने की आजादी नहीं है.

कोर्ट के फैसले से अब उन्हें खुल कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का कुछ मौका अवश्य मिला है. ऐसे में अच्छी समलैंगिक फिल्में भी बनीं, मसलन ‘फायर’, ‘तमन्ना’, ‘दरमिया’, ‘माय ब्रदर निखिल’, ‘बौम्बे टाकीज’ आदि, जिन की गिनती अच्छी फिल्मों में की गई और लोगों ने इन की मेकिंग को सराहा भी.

क्वीर फिल्मों का इतिहास 

समय के साथसाथ यह मौका पूरे विश्व में ‘न्यू क्वीर सिनेमा’ के रूप मे जाना गया, जिसे पहली बार 80 और 90 के दशकों में सब के सामने लाया गया, जिस पर कई सालों तक बहस छिड़ी और प्राइड मार्च हुए ताकि उन्हें ऐसी अलग कहानी कहने का मौका दिया जाए. अंत में कई देशों ने इसे कानूनी मान्यता दी और उन्हें आजादी से जीने का अधिकार दिया.

इस के बाद निर्मातानिर्देशकों ने ऐसे अलग विषयों को ले कर कई फिल्में बनाईं, फिल्म फैस्टिवल करवाए गए. इतने सब के बावजूद इन फिल्मों को बौक्सऔफिस पर लाने से हमेशा रोका जाता रहा. पहले इन फिल्मों को नैशनल फिल्म डैवलपमैंट कौर्पोरेशन (हृस्नष्ठष्ट) हौल तक लाने में सहयोग करता था, लेकिन उस का सहयोग अब कम मिल पाता है. आज भी थिएटर हौल मिलने में मुश्किलें हैं, दर्शकों की पहुंच से आज भी ये फिल्में दूर हैं. आखिर क्वीर फिल्मों के साथ इतना भेदभाव क्यों है, क्या है इन का भविष्य?

क्या हैं क्वीर फिल्में

समलैंगिकों को आम बोलचाल की भाषा में एलजीबीटी यानी लैस्बियन, गे, बाईसैक्सुअल और ट्रांसजैंडर कहते हैं. वहीं कई और दूसरे वर्गों को जोड़ कर इसे क्विटयर  समुदाय का नाम दिया गया है. इसलिए इसे रुत्रक्चञ्जक्त भी कहा जाता है. सभी क्वीर फिल्मों में प्यार को अधिक महत्त्व दिया गया और बताया गया है कि प्यार कभी भी किसी से हो सकता है और इसे स्वीकार करना जरूरी है.

समलैंगिक सिनेमा अपना आधिकारिक लैवल दिए जाने से पहले दशकों तक अस्तित्व में था, जैसे कि फ्रांसीसी रचनाकारों जीन कोक्ट्यू, डी अन पोएटे और जीन जेनेट की फिल्में ऐसी ही कहानियों को कहती हैं.

जिम्मेदार सभी

इस बारे में फिल्म निर्माता, निर्देशक ओनीर कहते हैं, ‘‘मु?ो वह अच्छा लग रहा है कि मेरी फिल्म पाइन कोन क्वीर सैंट्रिक फिल्म होने के बावजूद ब्रिटिश फिल्म ‘इंस्टिट्यूट फ्लेर’ लंदन में दिखाई जा रही है और उसे देखने वाले भी काफी हैं. भारत में भी इन फिल्मों का निर्माण बढ़ा है, लेकिन हौल तक पहुंचने में मुश्किल है.

‘‘इस के अलावा इन फिल्मों को बढ़ावा मिलने की मुश्किल होने की वजह समाज और धर्म है, क्योंकि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को कानूनन मान्यता देने की बात आई तो यही बात सामने आई कि समाज तैयार नहीं है और मना हो गया. समाज इसे बहुत धीरेधीरे मान रहा है कि इस तरीके के व्यक्तित्व वाले लोग हमारे समाज में हैं.

‘‘मैं जब किसी आम फिल्म को देखने हौल तक जाता हूं तो मेरे दिमाग में एक लव स्टोरी देखने की बात सामने आती है, इस के आगे और कुछ भी नहीं सोचता, लेकिन ऐसी आम फिल्म बनाने वालों को बहुत मुश्किल होती है. क्वीर फिल्मों की लव स्टोरी को देखना, इतना डर, असुरक्षा की भावना उन के अंदर क्यों आती है, मुझे समझ में नहीं आता, लेकिन उन्हीं फिल्मों को औनलाइन लोग छिपछिप कर देखते हैं. आंकड़ों के अनुसार, समाज में करीब 10 प्रतिशत लोग क्वीर समुदाय के हैं, क्या उन्हें अपनी तरह से जीने का अधिकार नहीं होना चाहिए?’’

ओनीर आगे कहते हैं, ‘‘लोगों का डर मैं ने तब भी देखा था जब मेरी पहली फिल्म ‘माई ब्रदर निखिल’ रिलीज हुई थी. तब भी इंटरवल में जब कुछ दर्शकों को पता चलता है कि मुख्य भूमिका निभाने वाला समलैंगिक है तो वे उठ कर चले गए. पुरुष दर्शकों को इस की चिंता अधिक होती है कि कोई उन्हें समलैंगिक फिल्में देखते हुए देख न ले. डर तो उन्हें तब लगना चाहिए जब वे काफी पैसे खर्च कर हिंसात्मक फिल्में देखने हौल तक जाते हैं. प्यार से इतना डर क्यों? किसी की खुशी को मानने से उन्हें डर क्यों होता है? ये कमियां हमारे समाज और धर्म की हैं, जो इसे स्वीकार नहीं करतीं.

‘‘समस्या हो रही है कि थिएटर में ऐसी फिल्मों को रिलीज होने के लिए जगह नहीं मिलती. पहले नैशनल फिल्म डैवलपमैंट कौर्पोरेशन (हृस्नष्ठष्ट) इन फिल्मों को रिलीज करने में सहयोग देता था. अभी तो किसी फिल्म को दिखाने के लिए थिएटर को रकम देनी पड़ती है, पहले ऐसा नहीं था. अभी छोटी फिल्मों को रिलीज करना बहुत मुश्किल हो चुका है. ओटीटी पर भी रिलीज करने के लिए भी कई समस्याएं आती हैं, मसलन हीरो कितना बड़ा है, कैसी फिल्म है आदि के बारे में उन्हें बताना पड़ता है.

‘‘क्वीर फिल्मों को इस लिहाज से अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता, उन्हें चुनने वाले ही ऐसी फिल्मों को रिलीज करने में असहज महसूस करते हैं. क्वीर फिल्मों की समस्या हर स्तर पर अलगअलग होती है. ऐसे में वही फिल्में हौल तक पहुंच पाती हैं जिन की कहानी आम दर्शकों के स्वीकार करने योग्य हों. एक अलग रंग या व्यक्तित्व को जब तक कोई मान्यता नहीं मिलेगी, इन फिल्मों को स्वीकारा नहीं जाएगा. सो, दर्शक कैसे बढ़ेंगे?

‘‘साल 2005 में मैं ने फिल्म ‘माई ब्रदर निखिल’ बनाई थी और अब ‘पाइन कोन’ ले कर आया हूं. यह फिल्म अपनी जिंदगी. प्यारमोहब्बत, लिविंग आदि के बारे में है. इसलिए यहां पर इसे कम लोग स्वीकार कर रहे हैं, जबकि विदेशों में इसे देखने वाले काफी हैं. मु?ो यह नहीं सम?ा आता है कि 100 करोड़ की घटिया फिल्मों को थिएटर हौल मिल जाते हैं, लेकिन 2 या 3 करोड़ की छोटी और क्वीर फिल्मों को क्यों नहीं? ऐसी कई बड़ी फिल्में आईं और नहीं चलीं, दर्शक नहीं मिले, क्या हौल मालिक को घाटा नहीं हुआ?’’

माध्यमों की कमी का नहीं होगा असर 

छोटी और क्वीर फिल्मों को दिखाने के माध्यम की कमी भले ही हो, लेकिन इसे बनाना बंद नहीं करना है, क्योंकि ऐसी फिल्में कई अलग माध्यमों में भी दिखाई जा सकती हैं और इन के दर्शक भी हैं.

निर्देशक ओनीर कहते है, ‘‘लोग मुझ से पूछते हैं कि मैं ने समलैंगिक फिल्में क्यों बनाईं, इस की जरूरत क्या है? मैं ने उन से कहा कि, मुझे अदृश्य रह कर जीना मंजूर नहीं और मैं ने ही समलैंगिक विषयों पर फिल्में बनाई हैं और आगे भी बनाता रहूंगा. मैं जब बड़ा हुआ, तो ऐसी फिल्में नहीं थीं, क्योंकि समाज ऐसी बातों को नजरअंदाज करता था.’’

इक्वल ह्यूमन राइट्स

वे आगे कहते हैं, ‘‘मेरी फिल्म ‘पाइन कोन’ उन लोगों के लिए है जो इक्वलिटी इन ह्यूमन राइट को समझें. इन फिल्मों के लिए विजन की जरूरत है. ऐसे में फिल्म फैस्टिवल में भी दिखाया जाना एक अच्छा कदम है. आजकल थोड़े जागरूक लोग इन फिल्मों के को देखते हैं, क्योंकि प्राइड मार्च अब छोटेछोटे शहरों में भी होता है. इस का अर्थ यह है कि लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं और आगे आने वाली यंग जनरेशन छोटी और क्वीर फिल्में बनाना नहीं छोड़ेगी. आगे दर्शकों का प्यार उन्हें मिलेगा, फिल्में हौल तक जाएंगी.’’

क्या बला है बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट और यह फेल क्यों हुआ

तकरीबन 13 वर्षों पहले सोशल मीडिया पर शुरू हुआ बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट ‘मी टू’ मूवमैंट की तरह दम तोड़ चुका है. हां, अब युवा खुद को ज्यादा एक्सपोज करते हैं. सोशल मीडिया पर हो रही ट्रोलिंग कहती है कि लोगों की मेंटैलिटी इस मामले में नहीं बदली है.

‘तू मोटी है, तू काली है, तू नाटा है, इस की नाक देखो कैसी पकौड़े जैसी है, इस का पेट देखो कितना बाहर निकला हुआ है’ इसी तरह के कमैंट इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. ऐसा लगता है मानो कुछ लोग बस दूसरों को यह बताना चाहते हैं कि उन की बौडी, उन की पर्सनैलिटी सही नहीं है. उस में कुछ न कुछ कमी है.

इसी का एक उदाहरण इलियाना डिक्रूज है. एक बार इलियाना (इलियाना प्रैग्नैंसी न्यूज) ने अपने इंस्टाग्राम पर ‘आस्क एनीथिंग’ सैशन रखा था. तब एक यूजर ने उन से पूछा कि आप अपनी अजीब बौडीटाइप से कैसे डील करती हैं? इस पर ऐक्ट्रैस ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘पहली बात मेरी बौडीटाइप अजीब नहीं है. मेरी क्या किसी की नहीं होती. दूसरी बात मैं अपनी बौडीटाइप को ले कर बहुत क्रिटिसाइज हुई हूं. लेकिन मैं अपनेआप से प्यार करना सीख रही हूं और किसी दूसरे के आदर्शों के अनुरूप नहीं बनना चाहती हूं.’’

कहने का अर्थ यह है कि आम नागरिक क्या, सैलिब्रिटीज भी यानी सभी अपनी बौडी, स्किन के लिए कभी न कभी क्रिटिसाइज जरूर हुए हैं लेकिन युवाओं ने इस मुद्दे को ऐड्रैस किया और साल 2012 के आसपास एक मूवमैंट की शुरुआत हुई जिसे बौडी पौजिटिवटी मूवमैंट कहा गया. इस का उद्देश्य अपनी शारीरिक बनावट को स्वीकार करना और आत्मसम्मान को बढ़ावा देना था.

मूवमैंट की शुरुआत

यह मूवमैंट 2012 में इंस्टाग्राम पर उभरा था. इस मूवमैंट के शुरू होने के बाद इंस्टाग्राम पोस्ट पर बड़ी संख्या में बौडी पौजिटिविटी हैशटैग देखने को मिले. बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट बौडी की शेप को बेहतर बनाने की कोशिश में शरीर के प्रति प्यार और एक्स्पैक्टेशन को बढ़ावा देता है. साथ ही, यह सभी शारीरिक आकृतियों, साइज, लिंग और त्वचा टोन की स्वीकृति को बढ़ावा देता है. लेकिन 13 वर्षों बाद यह मूवमैंट फेल होता दिखाई दे रहा है. इस के फेल होने के कई कारण रहे.

बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के फेल होने का एक कारण यह है कि शरीर के अतिरिक्त वजन उठाने से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को बौडी पौजिटिविटी की अवधारणा नजरअंदाज करती है. आलोचकों का कहना था बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के चलते लोग मोटापे को इग्नोर करेंगे और मोटापे से होने वाली बीमारियों से घिर जाएंगे, जो उन की हैल्थ के लिए बिलकुल भी सही नहीं है.

दूसरा कारण यह था कि बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के हैशटैग का यूज करने वाले ज्यादातर इंस्टाग्राम पोस्ट युवा, श्वेत, पारंपरिक रूप से आकर्षक, गैरविकलांग, सिजैंडर महिलाओं को दर्शाता था. जो बाकी जातीय लोगों, पुरुषों, एलजीबीक्यूटी प्लस समुदायों के लोगों और बूढ़े लोगों को सही प्रतिनिधित्व नहीं देता है.

तीसरा कारण यह था कि बहुत से लोग सोशल मीडिया पर जो फोटो और वीडियो पोस्ट करते हैं वह एडिट किया गया होता था, ऐसे में दूसरों के लिए यह जान पाना बहुत मुश्किल हो गया कि सच क्या है और ?ाठ क्या.

चौथा कारण यह था कि कुछ लोग इसे सिर्फ अभिनेत्रियों की एक प्रकार की पहचान मानते थे. इस का मतलब है कि वे उन्हें केवल उन की शारीरिक सुंदरता के आधार पर मापते थे.  बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट का मुख्य उद्देश्य यह था कि सभी शरीरों को स्वीकार किया जाए, लेकिन यह मूवमैंट कुछ लोगों के लिए बस एक विदेशी कला बन गया था.

पांचवां कारण यह था कि कुछ लोगों का मानना था कि इस में शारीरिक सुंदरता के आधार पर महिलाओं को अधिक प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिस से कि यह केवल महिलाओं के बारे में ही सिमट कर रह गया है. बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट को सामाजिक समता के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए था, लेकिन कुछ लोगों ने इसे एक महिला आंदोलन के सिवा कुछ और नहीं सम?ा था.

हवाहवाई बन गया कैंपेन

यह मूवमैंट इसलिए भी फेल रहा क्योंकि कुछ लोग इसे एक सामाजिक सुधार प्रक्रिया की तरह देखते थे, जिस में शारीरिक सुंदरता और हैल्थ के मानकों को सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन के साथ जोड़ा गया. कुछ लोग इस मूवमैंट को एक संघर्ष के रूप में देखते थे जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के बीच एक विवाद का विषय बन गया.

इस ने सोसाइटी के अलगअलग ग्रुप्स के लोगों के बीच एक खाई पैदा कर दी. बजाय इस के कि यह एक ग्रुप के रूप में मिल कर बौडी पौजिटिविटी के उद्देश्यों के लिए काम करता, बल्कि इस ने उन गु्रप्स के बीच विरोधात्मक भावना पैदा कर दी.

बौडी पौजिटिविटी को बढ़ावा देना आमतौर पर एक अच्छी बात है. लेकिन जरूरी यह है कि इस पौजिटिविटी की धारा में समाज के सभी सेगमैंट्स को जोड़ा जाए न कि इक्कादुक्का और फिल्मी सैलिब्रिटी को. अगर इन कारणों को नहीं सुधारा गया तो जबजब बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट आएंगे, फेल ही कहलाएंगे.

बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट आखिर क्यों फेल हुआ. अगर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ा जाए तो इस का सब से बड़ा जवाब यही है कि यह मूवमैंट एक हवाहवाई मूवमैंट था, बिलकुल वैसे ही जैसे कुछ सालों पहले ‘मी टू’ मूवमैंट आया था, जिस ने हल्ला खूब मचाया पर उस से निकला क्या, किसी को कुछ नहीं पता. इस मूवमैंट का भी कोई सिरपैर न था. हालांकि यह सच है कि इस मूवमैंट के जरिए लोगों में सैल्फ कौन्फिडैंस आया लेकिन उस कौन्फिडैंस का क्या फायदा जो आप को बीमारियों का घर बना दे.

कमियों को स्वीकारना जरूरी

अगर आप मोटे हैं, आप का शरीर थुलथुला है, आप की तोंद आप की पैंट में नहीं फंसती तो आप के लिए यह एक समस्या है, न कि इसे पौजिटिव माना जाए. ऐसे में आप को शरीर पर काम करना चाहिए न कि बौडी पौजिटिविटी के नाम पर प्राउड.

याद रखें, अगर आप मोटे हैं तो लोग आप को मोटा ही कहेंगे. आप के सामने नहीं तो आप के पीठपीछे ही सही, पर कहेंगे जरूर. आप उन की आवाज पर रोक लगा सकते हैं पर सोच पर नहीं. यही उन की मानसिकता है. लेकिन आप औरों के लिए नहीं, खुद के लिए, खुद को बदलें. इस से न सिर्फ आप हैल्दी रहेंगे बल्कि बीमारियों से आप की दोस्ती भी नहीं होगी.

वहीं अगर आप बौडी पौजिटिविटी के नाम पर मोटापे को अपनी बौडी पर कब्जा करने देंगे तो आप भविष्य में जरूर पछताएंगे. मोटापा कोई अच्छी चीज नहीं है. इस से पर्सनैलिटी और कौन्फिडैंस खराब ही होता है.

बौडी पौजिटिविटी उन मानो में अच्छा है जहां यह रंगत की बात करता हो. अगर आप काले हैं, आप की स्किन पर निशान हैं, आप की बौडी पर ज्यादा हेयर हैं और लोग आप को इन चीजों के लिए चिढ़ा रहे हैं तो यहां आप का बौडी पौजिटिविटी वाला एटिट्यूड काम आएगा क्योंकि रंगत से आप की हैल्थ को कोई नुकसान नहीं होगा.

सैक्स सिखाता है आपको साफ रहना

रानी और रजनी पक्की सहेलियां हैं. दोनों मध्यवर्गीय, पढ़ीलिखी, उदार, सहिष्णु, मितव्ययी, परिवार का खयाल रखने वाली, नईनई चीजों को सीखने की इच्छुक हैं. बस दोनों में एक ही अंतर है. यह अंतर देह प्रेम को ले कर है. एक छत के नीचे रहते हुए भी रानी और उस के पति के बीच देह प्रेम उमड़ने में काफी वक्त लगता है. महीनों यों ही निकल जाते हैं. उधर रजनी और उस का पति हफ्ते में 1-2 बार शारीरिक निकटता जरूर पा लेते हैं. रानी इस प्रेम को गंदा भी समझती है, जबकि रजनी ऐसा नहीं सोचती है. दोनों एकदूसरे के इस अंतर को जानती हैं.

आप कहेंगे कि भला यह क्या अंतर हुआ? जी हां, यही तो बड़ा अंतर है. पिछले दिनों इस एक अंतर ने दोनों सहेलियों में कई और अंतर पैदा कर दिए थे.

इस एक अंतर से ही रानी तन को स्वच्छ रखने में संकोची हो गई थी. केवल वह ही नहीं, बल्कि उस के पति का भी यही हाल था. उसे अपने कारोबार से ही फुरसत नहीं थी. वह हर समय गुटका भी चबाता रहता था.

सैक्स सिखाए स्वच्छ रहना

उधर, रजनी नख से शिख तक हर अंग को ले कर सतर्क थी. बेहतर तालमेल, प्रेम, अंतरंगता और नियमित सहवास की वजह से रजनी को यह एहसास रहता था कि एकांत, समय और निकटता मिलने पर पति कभी भी उसे आलिंगन में भर सकता है. वह कभी भी उस के किसी भी अंग को चूम सकता है. कभी भी दोनों के यौन अंगों का मिलन हो सकता है. ऐसे में वह अंदरूनी साफसफाई को ले कर लापरवाह नहीं हो सकती थी. रजनी की तरफ से इसी प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया उस के पति को भी अंदरूनी रूप से स्वच्छ रखने में मदद करती थी.

इस एक अंतर से ही रानी अपनी देह और खानपान के प्रति भी लापरवाह हो गई थी. जब देह को निहारने वाला, देह की प्रशंसा करने वाला कोई न हो तो अकसर शादी के बाद इस तरह की लापरवाही व्यवहार में आ जाती है. रानी इस का सटीक उदाहरण थी. इस वजह से समय बीतने के साथ उस ने चरबी की कई परतों को आमंत्रण दे दिया था. उधर रजनी का खुद पर पूरा नियंत्रण था, लिहाजा वह छरहरे बदन की स्वामिनी थी.

इस एक अंतर के कारण ही रानी एक दिन डाक्टर के सामने बैठी थी. रजनी भी साथ थी. रानी को जननांग क्षेत्र में दर्द की समस्या थी, जो काफी अरसे से चली आ रही थी. डाक्टर ने बताया कि इन्फैक्शन है. इन्फैक्शन का कारण शरीर की साफसफाई पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जाना है. साफसफाई में लापरवाही से समस्या गंभीर हो गई थी.

रानी का मामला रजनी के पति को भी पता चल गया था. वास्तव में हर वह बात जो रजनी और उस के पति में से किसी एक को पता चलती थी, वह दूसरे की जानकारी में आए बिना नहीं रहती थी. वे दोनों हर मामले पर बात करते थे. रात में जब रजनी ने पति राजेश को सारी बात बताई तो राजेश ने कहा, ‘‘तुम्हें अपनी सहेली को समझाना चाहिए कि देह प्रेम गंदी क्रिया नहीं है. मैं यह तो नहीं कहता कि ऐसे सभी विवाहित लोग जो सहवास नहीं करते, वे शरीर की साफसफाई को ले कर लापरवाह रहते होंगे, लेकिन मैं यह गारंटी से कह सकता हूं कि यदि पतिपत्नी नियमित अंतराल पर देह प्रेम करते हैं, तो दोनों ही अपने तन की स्वच्छता के प्रति लापरवाह नहीं रह सकते यानी यदि वे सहवास का आनंद लेते हैं तो वे ज्यादा स्वस्थ और स्वच्छ रहते हैं.’’

दवा है सैक्स

राजेश ने बिलकुल ठीक कहा. दरअसल, जब पतिपत्नी को यह एहसास रहता है कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और उन्हें शारीरिक रूप से जल्दीजल्दी निकट आना है, तो दोनों ही स्वाभाविक रूप से अपने हर अंग की साफसफाई के प्रति सचेत रहते हैं. इस से न सिर्फ उन का व्यक्तित्व निखरता है और दोनों में प्रेम बढ़ता है, बल्कि कई रोग भी शरीर से दूर रहते हैं. इस के उलट जो दंपती शारीरिक संबंधों के प्रति उदासीन रहते हैं, वे अपनी साफसफाई के प्रति भी लापरवाह हो सकते हैं.

हम सभी जानते हैं कि वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध के 2 प्रमुख उद्देश्य होते हैं. पहला संतान की उत्पत्ति और दूसरा आनंद की प्राप्ति. लेकिन बारीकी से नजर डालें तो सहवास से एक परिणाम और निकलता है, जिसे तीसरा उद्देश्य भी बनाया जा सकता है. दरअसल, सहवास से पतिपत्नी अच्छा स्वास्थ्य भी पा सकते हैं. इसे हम यों भी कह सकते हैं कि यदि पतिपत्नी के बीच नियमित अंतराल पर शारीरिक संबंध बन रहे हैं, तो इस बात की संभावना ज्यादा है कि वे स्वस्थ भी रहेंगे.

जी हां, पतिपत्नी के बीच सैक्स को कई तरह की दिक्कतें दूर करने की दवा बताया गया है. सैक्स को ले कर दुनिया भर में अनेक शोध किए गए हैं और किए जा रहे हैं. विभिन्न शोधों के बाद दुनिया भर के विशेषज्ञों ने सैक्स के फायदे कुछ इस तरह गिनाए हैं:

– पतिपत्नी के बीच नियमित अंतराल पर शारीरिक संबंध बनने से तनाव और ब्लड प्रैशर नियंत्रण में रखने में सहायता मिलती है. तनाव में कमी आती है, तो अनेक अन्य रोग भी पास नहीं फटकते हैं.

– सप्ताह में 1-2 बार किया गया सैक्स रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

– सैक्स अपनेआप में एक शारीरिक व्यायाम है और विशेषज्ञों के अनुसार आधे घंटे का सैक्स करीब 90 कैलोरी कम करता है यानी सैक्स के जरीए वजन घटाने में भी मदद मिलती है.

– एक अध्ययन कहता है कि जो व्यक्ति हफ्ते में 1-2 बार सैक्स करते हैं उन में हार्ट अटैक की आशंका आधी रह जाती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि शारीरिक प्यार एक तरह से भावनात्मक प्यार का ही बाहरी रूप है, इसलिए जब हम शारीरिक प्यार करते हैं, तो भावनाओं का घर यानी हमारा दिल स्वस्थ रहता है.

– वैज्ञानिकों के अनुसार सैक्स, फील गुड के एहसास के साथसाथ स्वसम्मान की भावना को भी बढ़ाने में सहायक होता है.

– शारीरिक संबंध प्रेम के हारमोन औक्सीटौसिन को बढ़ाने का काम करता है, जिस से स्त्रीपुरुष का रिश्ता मजबूत होता है.

– सैक्स शरीर के अंदर के स्वाभाविक पेनकिलर ऐंडोर्फिंस को बढ़ावा देता है, जिस से सैक्स के बाद सिरदर्द, माइग्रेन और यहां तक कि जोड़ों के दर्द में भी राहत मिलती है.

– वैज्ञानिकों के अनुसार जिन पुरुषों में नियमित अंतराल पर स्खलन (वीर्य का निकलना) होता रहता है, उन में ज्यादा उम्र होने पर प्रौस्टेट संबंधी समस्या या प्रौस्टेट कैंसर की आशंका काफी कम हो जाती है. यहां नियमित अंतराल से मतलब 1 हफ्ते में 1-2 बार सहवास से है.

– सैक्स नींद न आने की दिक्कत को भी दूर करता है, क्योंकि सैक्स के बाद अच्छी नींद आती है.

सहवास एक दवा है. दवा भी ऐसी जिस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है, इसलिए पतिपत्नी को स्वस्थ रहने के लिए इस दवा का नियमित अंतराल पर सेवन अवश्य करना चाहिए.

घरवाले मेरी लव मैरिज नहीं कर रहे हैं इसलिए मैं भाग रही हूं, क्या मेरा निर्णय सही है?

सवाल
मेरी उम्र 18 साल है, मुझे अपने कालेज के एक लड़के से प्यार हो गया है. वह भी मुझ से बहुत प्यार करता है और शादी भी करना चाहता है. यहां तक कि उस ने अपने घर में भी इस बारे में जिक्र किया है. लेकिन दोनों की फैमिली वाले मानने को तैयार नहीं हैं. लेकिन मैं उस के बिना नहीं रह सकती, चाहे मुझे घर से भागना ही क्यों न पड़े. बताएं कि क्या मेरा निर्णय सही है?

जवाब
देखिए अभी आप की उम्र पढ़ाई लिखाई व लोगों को जाननेसमझने की है क्योंकि अभी न ही आप और न ही वह युवक इतना मैच्योर हुआ है कि आप शादी जैसे जिम्मेदारीभरे रिश्ते में बंध जाएं. आप के परिवार वाले आप के हितैषी हैं तभी तो वे इस रिश्ते के लिए अभी इनकार कर रहे हैं ताकि आप को बाद में पछताना न पड़े. आप दोनों मिल कर परिवार वालों को समझाएं कि हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं लेकिन कैरियर बनने के बाद.

इस से वे भी आप को जरूर समझेंगे और इस रिश्ते को समय आने पर स्वीकार भी करेंगे. और आप भूल कर भी घर से भागने की बात मन से निकाल दीजिए वरना बाद में पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा क्योंकि जल्दबाजी में कुछ नहीं रखा. आप ही सोचिए जब आर्थिकरूप से आप दोनों सशक्त होंगे तो आप को जिंदगी जीने का अलग ही आनंद आएगा वरना पैसों की कमी के कारण आप जीवनभर इस निर्णय पर पछताएंगी ही.

एआई तकनीक का चक्रव्यूह : मोबाइल फोन से लूटे रुपए

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाली 24 साल की प्रतिभा एक बड़ी कंपनी में इंफौर्मेशन टैक्नोलौजी डिपार्टमैंट के सपोर्ट सिस्टम में काम करती थी. वह अपने काम में माहिर थी. उस का पूरा परिवार इलाहाबाद में रहता था, बस यहां पश्चिम विहार में उस का 18 साल का छोटा भाई राघव साथ में रहता था. राघव का कालेज में पहला साल था और वह मैट्रो से कालेज आताजाता था.

प्रतिभा के घर वाले उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे, लेकिन वह अपने औफिस के एक लड़के दीपक को पसंद करती थी. दोनों में खूब जमती थी और वे डेट पर भी जाते थे.

प्रतिभा का औफिस ओखला में था और वह मैट्रो से आनाजाना करती थी. 10 से 6 बजे का औफिस था. सुबह 8 बजे घर से निकलना और रात के 8 बजे तक घर वापसी.

एक दिन प्रतिभा औफिस के काम में मगन थी. सोमवार था शायद. दोपहर के 12 बजे उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. ह्वाट्सएप काल थी. अनजान नंबर होने के बावजूद प्रतिभा ने वह काल पिक कर ली, ‘‘हैलो…’’

सामने से एक रोबीली मर्दाना आवाज आई, ‘आप प्रतिभा बोल रही हैं?’

‘‘जी कहिए, क्या काम है?’’ प्रतिभा ने कहा.

‘काम तो ऐसा है मैडमजी कि आप के छोटे भाई ने बहुत बड़ा कांड कर दिया है,’ उस आवाज ने यह कह कर अचानक बम सा फोड़ दिया.

‘‘मतलब…?’’ राघव का खयाल आते ही प्रतिभा के तनबदन में डर की ?ार?ारी सी फैल गई.

‘मतलब, राघव ने तगड़ा क्लेश कर दिया है और वह अभी पुलिस हिरासत में है,’ उस रोबीली आवाज की सख्ती धीरेधीरे बढ़ने लगी थी.

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप? राघव तो अभी कालेज में होगा,’’ अपना सारा डर दबाते हुए प्रतिभा बोली. पर तब तक उस के माथे पर पसीना आ गया था.

‘तेरा भाई कालेज में ड्रग्स लेते पकड़ा गया है. पैडलर है वह. ड्रग्स की स्मगलिंग भी करता है,’ इतना सुनते ही प्रतिभा को मानो लकवा सा मार गया.

‘और सुन, मैं बोल रहा हूं स्पैशल पुलिस विंग का इंस्पैक्टर. हमारा काम ही ऐसे स्लीपर पैडलर को पकड़ना है. अब तो वह लंबे समय के लिए गया जेल में,’ उस आदमी की आवाज मानो और भी कड़क होती जा रही थी.

प्रतिभा की अब तक घिग्घी बंध चुकी थी. उस के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. उसे लगा कि जैसे वह किसी गहरे अंधे कुएं में गिर गई है और कोई उस पर मिट्टी डाल रहा है. उसे चक्कर सा आ गया.

इतने में प्रतिभा के साथ वाली सीट पर बैठी सुधा को शक हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है. उस ने प्रतिभा का हाथ पकड़ कर झिड़का. हाथ एकदम ठंडा पड़ा हुआ था. प्रतिभा जैसे नींद से जागी और उसे अहसास हुआ कि वह तो औफिस में बैठी है.

प्रतिभा ने तुरंत मोबाइल फोन पर हाथ रखा और सुधा को इग्नोर करते हुए वाशरूम की तरफ बढ़ गई. सुधा ने इशारे से दीपक को बुलाया.

दीपक उस कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर था और जैसे ही उस ने सुधा से प्रतिभा के बारे में सुना, तो वह दबे पैर प्रतिभा के पीछे गया.

‘‘आप मेरे भाई से बात कराइए,’’ प्रतिभा उस फोन करने वाले से कह रही थी.

थोड़ी देर तक दूसरी तरफ से आवाज नहीं आई, तो प्रतिभा ने कहा, ‘‘हैलो…’’

‘दीदी, प्लीज मुझे बचा लो. मैं आगे से ऐसा काम नहीं करूंगा. दीदी, इन्होंने मुझे बहुत मारा. मेरा हाथ तोड़ दिया है. पुलिस वाले अंकल को किसी भी तरह मना लो. मेरा कैरियर खत्म हो जाएगा. प्लीज दीदी…’ इतना कहते ही आवाज आनी बंद हो गई.

यह तो राघव की आवाज थी. प्रतिभा के दिल में तेज चुभन सी हुई और उस के पैर लड़खड़ा गए.

‘‘प्रतिभा, सब ठीक है न?’’ पीछे खड़े दीपक ने उसे संभालने की कोशिश की.

प्रतिभा एकदम से गरजी, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो? दफा हो जाओ. मैं ठीक हूं…’’

दीपक ने बहुत कोशिश की कि प्रतिभा उसे फोन पकड़ा दे, पर वह नाकाम रहा और वहां से चला गया.

‘हां जी मैडम, फिर क्या विचार है आप का? इस लड़के को छोड़ दें या बना दें कोई पक्का केस?’ फोन पर आवाज आई.

‘‘आप को क्या चाहिए?’’ प्रतिभा गिड़गिड़ाई.

‘‘जी, वैसे तो हम पुलिस वाले रिश्वत लेने में विश्वास नहीं करते हैं, पर आप के भाई ने कांड ही इतना बड़ा कर दिया कि बिना पैसे लिए छोड़ नहीं सकते. ऐसा करो, आप 50,000 रुपए हमारे खाते में डलवा दो और अपने भाई को छुड़वा लो.’

प्रतिभा ने आव देखा न ताव और तुरंत उस आदमी द्वारा बताए गए एक खाते में 20,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए.

‘‘देखो, मैं ने पैसे भेज दिए हैं. अब आप मेरे भाई को छोड़ दो…’’ प्रतिभा अपनी बात पूरी कर पाती, इस से पहले ही फोन कट गया.

प्रतिभा हैरान रह गई. उस ने दोबारा वही नंबर मिलाया, पर नहीं लगा. वह सम?ा गई कि उस के साथ कोई धोखाधड़ी हुई है. हालांकि, उस ने 20,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए थे, फिर भी उस ने मोबाइल एसएमएस पर चैक किया. 20,000 रुपए का चूना लग चुका था. फिर उस ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, भाई तो महफूज है.

प्रतिभा सीट पर आई ही थी कि दोबारा उसी आदमी का फोन आ गया, ‘मैडम, यह आप ने क्या कर दिया. सिर्फ 20,000 रुपए ही भेजे हैं. अब तो हमारे बड़े साहब नाराज हो गए हैं. वे बोल रहे हैं कि ड्रग्स का मामला है, कम से कम 2 लाख रुपए और लगेंगे.’

प्रतिभा बोली, ‘‘आप मु?ो थोड़ा समय दें. मु?ो इतने सारे रुपए जमा करने में 2 घंटे से ज्यादा का समय लगेगा.’’

उधर से आवाज आई, ‘जल्दी कर जो करना है…’ और फोन कट गया.

प्रतिभा को रोते देख कर आसपास का स्टाफ वहां जमा हो गया. थोड़ी देर के बाद प्रतिभा ने बताया कि पिछले 15 मिनट में उस की जिंदगी में कितना बड़ा तूफान तबाही मचा कर गया है.

सब लोग हैरान थे कि अगर राघव अपने कालेज में था, तो फिर वह आवाज किस की थी, जिसे राघव सम?ा लिया गया? साइबर क्राइम का यह कैसा घिनौना रूप है, जो आप को पैसे के साथसाथ दिमागी तौर पर भी तोड़ देता है?

दीपक ने कहा, ‘‘आजकल मोबाइल फोन पर लोगों को इस तरह ?ाठ के जाल में बरगलाया जाता है कि अच्छाभला पढ़ालिखा इनसान भी गच्चा खा जाता है.

‘‘इसे एक सच्ची खबर से सम?ाते हैं. हाल ही में मुंबई में रहने वाले एक सीनियर सिटीजन के पास कनाडा से एक फोन आया. यहां ठग ने पीडि़त शख्स से कहा कि मैं आप के बेटे का दोस्त बोल रहा हूं. उस ने हूबहू बेटे के दोस्त की आवाज में बात की थी. इसी के साथ ठग ने

3 लाख रुपए की चपत लगा दी.

‘‘यह 2 मार्च, 2024 का मामला है. पुलिस ने बताया कि 63 साल के शिकायत करने वाले आदमी की

2 बेटियां और एक बेटा है. तीनों विदेश में रहते हैं. 2 मार्च को उन के पास एक अनजान नंबर से ह्वाट्सएप पर वौइस काल आई.

‘‘काल करने वाले ने अपना नाम विकास गुप्ता बताया. चूंकि पीडि़त विकास गुप्ता को बचपन

से जानते थे और काल करने वाले की आवाज विकास गुप्ता से मिलतीजुलती थी, इसलिए पीडि़त ने उस आवाज पर भरोसा कर लिया.

‘‘इस के बाद फोन करने वाला यह कहते हुए रोने लगा कि वह मुसीबत में है और उसे तुरंत पैसों की जरूरत है. इस के बाद पीडि़त ने काल करने वाले के खाते में 2 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए और अपने

2 दोस्तों से भी 50-50 हजार रुपए और ट्रांसफर करवा दिए.

‘‘जब जालसाज ने फिर से पैसों की मांग की तो पीडि़त को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है. उस ने काल करने वाले को वीडियो काल किया, जिस का जवाब नहीं दिया गया, तब पुष्टि हुई कि उन के साथ धोखाधड़ी हुई है.’’

दीपक की बात सुन कर सब हैरान रह गए. फिर एक लड़की सुरभि ने दूसरी खबर का हवाला देते हुए कहा, ‘‘सर, यह तो एकदम ताजा मामला है. साइबर ठगों ने एआई डीपफेक की मदद से आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहे छात्र की आवाज में उस की मां को ह्वाट्सएप काल कर 40,000 रुपए हड़प लिए.

‘‘आईआईटी कानपुर में पढ़ रहे इंजीनियरिंग के एक छात्र उत्कर्ष सिंह ने बताया कि बीती 3 अप्रैल को किसी अनजान शख्स ने उन की मां सरिता देवी को ह्वाट्सएप काल की. किसी पुलिस वाले की डीपी लगे नंबर से काल करने वाले ने खुद को पुलिस वाला बताते हुए कहा कि उन के बेटे को दुष्कर्म व हत्या के मामले में पकड़ा गया है.

‘‘इतना ही नहीं, यकीन दिलाने के लिए शातिरों ने आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस (एआई) से बेटे की आवाज में एक संदेश भी सुनाया, जिस में बेटा खुद को बचा लेने की गुहार लगा रहा था. उस ने कहा कि मेरे दोस्तों ने मु?ो फंसा दिया है, मु?ो बचा लीजिए.

‘‘बेटे की आवाज सुनाई देने पर तुरंत मां ने बताए गए बैंक खाते में 40,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए. हालांकि, जब रुपए देने के बाद मांबेटे की आपस में बात हुई, तो इस साइबर ठगी का पता चला.’’

‘‘पर, यह हूबहू आवाज कैसे मिला दी जाती है?’’ किसी ने सवाल किया.

दीपक ने बताया, ‘‘जहां तक मैं जानता हूं, आजकल बहुत से ऐसे वौइस इंजन टूल हैं, जो सिर्फ छोटे से औडियो से ही क्लोन वौइस जैनरेट करने की ताकत रखते हैं. इस के साथ ही ये कई भाषाओं में काम कर सकते हैं.

‘‘इतना ही नहीं, ये टूल्स आवाज के साथसाथ किसी इनसान की शक्ल से भी लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नई तकनीक के गलत इस्तेमाल पर अपनी चिंता जाहिर की है.

‘‘एक एआई ऐक्सपर्ट अतुल रौय ने बताया है, ‘एआई के जरीए क्लोन बनाना अब आसान हो गया है, जिस का फायदा अपराधी भी उठा रहे हैं. ऐसे में जरूरी है कि हम सतर्क रहें और अपनी जानकारी को बढ़ाएं.’

‘‘आप को याद होगा कि कुछ साल पहले एक वैब सीरीज आई थी ‘जामताड़ा-सब का नंबर आएगा’. इस में इसी मुद्दे को उठाया गया था कि मोबाइल फोन में सिम बदलबदल कर कैसे लोगों को लालच दे कर उन से पैसा किसी अनजान अकाउंट में डलवाया जाता था.

‘‘अब एआई तकनीक ने इस साइबर क्राइम को और ज्यादा भयावह बना दिया है. पर अगर जरा सी सावधानी बरती जाए, तो समय रहते बचा भी जा सकता है.’’

‘‘पर कैसे?’’ दीपक के एक साथी ने पूछा.

‘‘जब भी आप के पास कोई काल आए तो सामने वाले की पहचान पूरी होने के बाद ही अपनी जानकारी उसे दें. स्कैमर्स आप को काल लगाते हैं और पर्सनल जानकारी मांगते हैं, इसलिए कोई काल करने के साथ ही पैसे या पर्सनल जानकारी मांगे, तो सम?ा जाएं कि स्कैमर्स हैं.

‘‘पर भारत में लोग अभी भी इस सब तकनीकी से अनजान हैं. एक खबर के मुताबिक, दुनिया में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस वौइस स्कैम का सब से ज्यादा भारत के ही लोग शिकार हो रहे हैं. एक सर्वे में शामिल 47 फीसदी से ज्यादा भारतीयों ने माना है कि या तो वे खुद पीडि़त हैं या ऐसे किसी को जानते हैं, जो वौइस स्कैम का शिकार हुआ है.’’

फिर दीपक ने कुछ आंकड़ों का हवाला दिया कि दुनिया के 7 देशों में 7,054 लोगों पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट इस तरह है :

* 83 फीसदी लोग यह पता लगाने में नाकाम हैं कि उन के पास आया स्पैम काल किसी मशीन या सौफ्टवेयर की मदद से किया गया है या सच में कोई इनसान बोल रहा है.

* 66 फीसदी भारतीयों ने बताया है कि ऐसे वौइस स्कैम वाले ज्यादा काल किसी दोस्त या परिवार के सदस्य से आते हैं, जिसे पैसे की तत्काल जरूरत होती है.

* स्कैम वौइस काल में सब से ज्यादा दावा किया गया था ‘मैं लुट गया हूं’ (70 फीसदी). इस के बाद ‘कार हादसा हो गया’ (69 फीसदी), ‘फोन खो गया या पर्स खो गया’ (65 फीसदी) या ‘विदेश में हू्ं पैसे की तुरंत जरूरत है’ (62 फीसदी) जैसे बहाने बनाए गए.

‘‘तो फिर ठगी का शिकार लोग क्या करें और कहां गुहार लगाएं?’’ किसी ने दीपक से सवाल किया.

‘‘आज हमारे औफिस में यह कांड हुआ है, तो मैं प्रतिभा से कहूंगा कि वह पहले तो खुद को संभाले और फिर सब से पहले अपने बैंक अकाउंट से धोखाधड़ी कर के निकाले गए पैसों को वापस लेने के लिए अपने बैंक से बात करे. अगर बैंक की ब्रांच दूर है, तो फोन कर के कस्टमर केयर को जानकारी दे.

‘‘जिस के साथ भी यह कांड हुआ है, वह तुरंत पुलिस को जानकारी दे. धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क करें. आप साइबर सुरक्षा अधिकारियों को भी रिपोर्ट कर सकते हैं, जैसे कि नैशनल साइबर सिक्योरिटी एजेंसी या नैशनल इनफार्मेशन सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन.’’

सब लोग दीपक की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे और प्रतिभा उसे देखे जा रही थी. वह चुप हो गया. जब सब लोग चले गए, तो प्रतिभा ने दीपक से कहा, ‘‘बांट दिया ज्ञान… अब काम करने का समय आ गया है. उस आदमी का लालच बढ़ गया है. उस ने 2 लाख रुपए की डिमांड की है. हमारे पास बस 2 घंटे हैं उसे ट्रेस करने के लिए.’’

दीपक ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बड़ी दिलेर निकली, जो 20,000 रुपए का रिस्क ले लिया. अगर वह ट्रेस नहीं हो पाया तो…?’’

‘‘ट्रेस तो उस का बाप भी होगा. तुम किस मर्ज की दवा हो. चलो, अपने अड्डे पर और करते

हैं उस बेवकूफ का सबकुछ हैक,’’ प्रतिभा बोली.

‘‘अजी, आप की खातिर हम उसे ट्रेस तो कर देंगे, पर इस गरीब को क्या इनाम मिलेगा?’’ दीपक थोड़ा रोमांटिक होते हुए बोला.

‘‘डार्लिंग, आज यह मिशन पूरा होते ही मैं सारी रात तुम्हारे साथ अपार्टमैंट्स पर रहूंगी, क्योंकि राघव तो इलाहाबाद गया हुआ है. फिर निकाल लेना अपने दिल के अरमान. पूरी रात जश्न मनेगा.’’

दरअसल, प्रतिभा और दीपक एक एआई कंपनी के लिए काम करते थे. दीपक किसी के भी फोन से उस इनसान की सारी जानकारी निकाल लेता था, जिसे हैकिंग कहते हैं. अब जब उस आदमी का 2 लाख रुपए लेने के लिए फोन आएगा, तब प्रतिभा उसे बातों में उल?ा कर रखेगी और दीपक उस की लोकेशन से फोन के जरीए उसे हैक कर लेगा.

थोड़ी देर में वे दोनों एक ऐसे औफिस में बैठे थे, जो उन्हीं की कंपनी में गुप्त तरीके से बना हुआ था. वहां सिर्फ स्पैशल लोग ही जा सकते थे, जैसे आज प्रतिभा और दीपक का मिशन था.

2 घंटे होते ही उस आदमी का फोन आ गया. दीपक ने प्रतिभा को सम?ा दिया कि वह किसी तरह उसे बातों में उल?ा कर उस बैंक अकाउंट तक पहुंच जाए, फिर वह उसे हैक कर लेगा.

प्रतिभा बोली, ‘‘देखिए भाई साहब, मैं आप को

2 लाख रुपए तो एकसाथ नहीं दे पाऊंगी, पहले 10,000 रुपए आप के अकाउंट में आएंगे और फिर उस के आधे घंटे के बाद पूरी रकम आप को मिल जाएगी.’’

‘यह क्या नौटंकी है. जो करना है जल्दी कर. अगर बड़े साहब नाराज हो गए, तो रकम बढ़ जाएगी. फिर मत रोना,’ यह कहते हुए उस आदमी ने अपना अकाउंट नंबर बता दिया. थोड़ी देर में ही उस के खाते में 10,000 रुपए चले गए.

इधर दीपक अपना काम कर रहा था. वह हैकिंग का मास्टर था. उस ने नई तकनीक की मदद से उस आदमी का फोन हैक कर के उस के बैंक अकाउंट में सेंध लगा दी थी. उस आदमी ने भी लापरवाही बरतते हुए अपना फोन स्विच औफ नहीं किया था और न ही सिमकार्ड बदला था.

5 मिनट में ही दीपक ने उस आदमी का फोन पूरी तरह से हैक कर लिया था. इतना ही नहीं, उस के सोशल मीडिया अकाउंट से 10 और दोस्तों के फोन हैक कर के उन के बैंक अकाउंट की डिटेल भी अपने कब्जे में ले ली थी.

दीपक को यह सब जानने के बाद शक हुआ कि यह कोई बड़ा गिरोह है, जो साइबर क्राइम को अंजाम देता है और इस गिरोह के सरगना विदेश में बैठे हैं और बड़े जालिम हैं.

दीपक ने अपनी करामात दिखाते हुए उन सब के अकाउंट से 1-1 लाख रुपए एक अनजान बैंक अकाउंट में भेज दिए.

इस के बाद दीपक ने प्रतिभा से कहा, ‘‘अभी उस आदमी का फोन आएगा. उसे पता चल चुका होगा कि उस के बैंक अकाउंट से पैसे कहीं ट्रांसफर हुए हैं. अब तुम उसे दिन में तारे दिखा देना.’’

‘‘मैं भी फोन आने का इंतजार कर रही हूं,’’ इतना कह कर प्रतिभा ने दीपक को चूम लिया.

वही हुआ भी. ह्वाट्सएप काल आ गया. उधर से आवाज आई, ‘यह सब क्या माजरा है? मेरे अकाउंट से पैसे कहां चले गए. क्या किया है तुम ने?’

‘‘क्या हुआ?’’ प्रतिभा ने ?ाठी हैरानी जताते हुए कहा.

‘तुम ने किया क्या है और तुम हो कौन?’ उस आदमी की हेकड़ी जैसे निकल रही थी.

‘‘क्या किसी पुलिस वाले को कोई चूना लगा गया? अपने बड़े साहब को बता दो या फिर मैं तुम्हारे आका का भी फोन हैक करूं. खुद को बड़ा शातिर सम?ाता है न.

‘‘बेटा, अभी तुम इस खेल के नए खिलाड़ी हो. तुम ने गलत इनसान से पंगा ले लिया है. तेरे ही क्या, तेरे और दूसरे 10 साथियों के अकाउंट से पैसे ट्रांसफर हुए हैं, वे भी तेरे बैंक अकाउंट में. उन का फोन आने ही वाला होगा.

‘‘तुम लोगों ने आम जनता की जिंदगी जहन्नुम कर रखी है. उन की गाढ़ी कमाई को साइबर क्राइम से लूट लेते हो और फिर कोई सुबूत भी नहीं छोड़ते. पर, मैं जहां नौकरी करती हूं, वहां आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस पर ही काम होता है.

‘‘तू ने हमें अपना शिकार नहीं बनाया है, बल्कि हम ने तु?ो किसी चूजे की तरह फांसा है. ज्यादा चूंचपड़ की तो ऐसा हाल करेंगे कि जिंदगीभर किसी को बेवकूफ नहीं बना पाएगा.

‘‘और हां, यह मत सम?ा लेना कि मु?ो किसी तरह का नुकसान पहुंचा पाएगा. तेरे फरिश्ते भी मु?ा तक नहीं पहुंच पाएंगे, पर हम लोग तेरी एकएक रग से वाकिफ हो चुके हैं. मु?ो कहीं भी और कभी भी एक खरोंच तक आई, तो तेरे पूरे गिरोह का बैंड बजा देंगे. वैसे भी तेरी तो उलटी गिनती शुरू हो चुकी है…’’ प्रतिभा ने अपना असली रूप दिखा दिया.

इतना सुनना था कि दूसरी तरफ से फोन कट गया. दीपक और प्रतिभा ने एकदूसरे को देखा और खिलखिला कर हंस दिए. उन के औफिस स्टाफ को भी नहीं मालूम था कि वे किस तरह से यह खुफिया काम करते हैं.

दीपक प्रतिभा के बालों में हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘डार्लिंग, उस आदमी को तो तुम ने दिन में तारे दिखा दिए हैं, अब आज रात का क्या सीन है?’’

प्रतिभा बोली, ‘‘जो वादा किया था, आज रात को पूरा होगा. फिर कर लेना अपने मन की.’’

इस के बाद वे दोनों अपना मिशन पूरा कर के औफिस की तरफ चल दिए, जहां वे आम मुलाजिमों की तरह काम करते थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें