Hindi Kahani : अभिलाषा – रूपी क्यों भागकर शादी करना चाहती थी?

Hindi Kahani : एक दिन रूपी मोहल्ले के ही रामू के साथ भाग गई. इस के बाद तो जितने लोग, उतनी तरह की बातें होने लगीं. अधिकतर लोग रूपी  के मातापिता को ही इस का दोष दे रहे थे. मामला लड़की के भागने का था, इसलिए रूपी के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

करीब एक महीना बीत गया. काफी दौड़धूप और खोजबीन के बाद भी उन दोनों का कुछ पता नहीं चला. सब हैरान थे. आश्चर्य की बात तो यह थी कि रामू शादीशुदा था, इस के बावजूद भी उस ने ऐसा काम किया था.

रामू और रूपी शहर से दूर चले गए थे. वे कहां चले गए, यह बात मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था. बेटी की हरकत से रूपी के मातापिता अपने संबंधियों, मोहल्ले वालों और समाज की दृष्टि में गिर चुके थे. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं थे.

लोग उन के सामने ही उन्हें ताने देते थे. इस से उन का घर से निकलना दूभर हो गया था. ऐसे में वे बेचारे कर भी क्या सकते थे? लोगों की तरहतरह की बातें सुनने को वे लाचार थे.

अचानक एक दिन सुनने में आया कि रामू और रूपी जयपुर में पकड़े गए हैं. मोहल्ले के एक प्रोफेसर माथुर ने जयपुर में अपने रिश्तेदार भरत माथुर के घर रामू और रूपी को देख लिया था. फिर क्या था, उन्होंने इस बात की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने रामू और रूपी को पकड़ लिया था.

पुलिस ने रूपी को तो उस के मातापिता के घर पहुंचा दिया, जबकि रामू को हिरासत में ले लिया. रामू को उम्मीद थी कि रूपी कभी भी उस के खिलाफ बयान नहीं देगी, क्योंकि वह उस के साथ करीब 6 महीने पत्नी की तरह रही थी. पर बात एकदम इस के विपरीत निकली. रूपी ने अपने मातापिता की भावनाओं और दबाव में आ कर कोर्ट में अपने प्रेमी रामू के खिलाफ ही बयान दिया था. रूपी नाबालिग थी, इसलिए कोर्ट ने रामू को एक नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में 3 साल की सजा सुनाई.

इस बीच रूपी की शादी एक आवारा लड़के से कर दी गई, क्योंकि समाज में कोई भी शरीफ लड़का उस से शादी करने को तैयार नहीं था. 3 साल की सजा काट कर रामू घर आया तो मेरे दिमाग में तरहतरह की शंकाओं के बीच वही प्रश्न बारबार आ रहा था कि शादीशुदा रामू ने ऐसा क्यों किया?

मुझे उस पर रहरह कर गुस्सा भी आ रहा था, क्योंकि रामू को मैं बचपन से जानता था. वह एक चरित्रवान और शरीफ लड़का था. सब उस का सम्मान करते थे. फिर उस ने ऐसा नीच कार्य क्यों किया? यह हकीकत जानने के लिए एक दिन मैं उस के घर चला गया.

‘‘कहो, भाई क्या हालचाल है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हाल तो ठीक है, पर चाल खराब हो गई है.’’ उस ने टूटे दिल से कहा, ‘‘तुम अपना हाल बताओ.’’

‘‘मेरा हाल तो ठीक है. तुम्हारा हाल जानने आया हूं.’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरा हाल तो एक खुली किताब की तरह है, जिसे दुनिया ने पढ़ा है, तुम ने भी पढ़ा होगा.’’ एक मायूसी मिश्रित लंबी आह भर कर रामू ने कहा और शून्य में न जाने क्या खोजने लगा.

रामू की इस ‘आह’ में कितनी विवशता, कितनी कसक और कितनी दुखभरी वेदना थी, यह मैं खुद देख रहा था. वह आंखों में छलक आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने लगा. उस के छलकते आंसू रूमाल के धागों में विलीन हो गए.

‘‘छोड़ो बीती बातों को.’’ मैं ने सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘यह भी एक संयोग है.’’ उस ने आगे कहा, ‘‘तुम तो जानते ही हो कि मेरी शादी हुए करीब 6 साल हो गए हैं, परंतु हम दोनों के जीवन में कोई फूल नहीं खिला. तुम्हारी भाभी के प्यार का साथ ही मेरे जीवन का सर्वस्व था. मैं सुखी था, प्रसन्न था, परंतु वह न जाने क्यों अंदर ही अंदर घुटती रहती थी. उस का सौंदर्य, उस का स्वास्थ्य धीरेधीरे उस से दामन छुड़ाने लगा था.

‘‘मैं ने इस राज को जानने का बहुत प्रयत्न किया. एक दिन तुम्हारी भाभी ने विनीत भाव से कहा, ‘कितना अच्छा होता कि हमारे आंगन में भी बच्चा होता.’

‘‘यह सुन कर उस दिन से मुझे भी अपने घर में बच्चे का अभाव अखरने लगा. डाक्टर ने तुम्हारी भाभी का परीक्षण करने के बाद बताया कि यह कभी मां नहीं बन सकती. इस बात से वह बड़ी दुखी हुई. उस ने मुझे दूसरी शादी के लिए प्रेरित किया. लेकिन मैं ने शादी करने से साफ मना कर दिया.

‘‘उस दिन से मैं उसे और अधिक प्रेम करने लगा. जिस से वह इस मानसिक दुख से छुटकारा पा सके. लेकिन वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. उन्हीं दिनों हमारे पड़ोस में रहने वाली रूपी तुम्हारी भाभी के पास आनेजाने लगी. दोनों एकांत में घंटों बैठी न जाने क्याक्या बातें करती रहतीं. एक दिन रात को सोने से पहले तुम्हारी भाभी ने मुझ से कहा, ‘रूपी कितनी सुशील और सुंदर लड़की है. तुम रूपी से शादी क्यों नहीं कर लेते.’

‘‘पागल हो गई हो क्या? ऐसा कभी हो सकता है?’’ मैं ने उसे बांहों में कसते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं, क्या आप एक बच्चे के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’ कह कर वह फूटफूट रोने लगी.

‘‘मैं ने तुम्हारी भाभी को बहुत समझाया कि एक विवाहित व्यक्ति के साथ कोई भी पिता अपनी लड़की का विवाह नहीं करेगा. यह असंभव है. मैं तुम्हारी सौत नहीं ला सकता. पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही. वह फफकफफक कर रोने लगी. दूसरे दिन जब रूपी हमारे घर आई तो मैं उसे निहारने लगा.

‘‘रूपी की शोख जवानी और सुंदरता ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि तनमन से मैं उस की ओर खिंचता चला गया. तुम्हारी भाभी ने हमें संरक्षण दिया और हमारे प्रेम को पलने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया.’’

इतना कह कर रामू न जाने किन स्वप्नों में खो गया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर कहने लगा, ‘‘रूपी मुझ से शादी करने के लिए तैयार थी, लेकिन मैं उस के मातापिता से यह सब कहने का साहस नहीं कर सका. रूपी मुझ से जिद करती रही और मैं टालता रहा.

‘‘एक दिन शाम के समय रूपी जब हमारे घर आई तो उस ने कहा, ‘रामू, ऐसे कब तक चलेगा. चलो, हम कहीं भाग चलें.’ यह सुन कर मैं कांप उठा. रूपी मुझे देखती रही और हंसती रही.

‘‘उस ने फिर कहा, ‘बस, एक साल की बात है. एक बच्चा हो जाएगा तो हम लौट आएंगे. उस के बाद पिताजी भी मजबूर हो कर मेरी शादी तुम्हारे साथ कर देंगे.’ कह कर उस ने अपना चेहरा मेरे सीने पर रख दिया.’’

रामू न जाने किन खयालों में खो गया. मैं भी कहीं खो चुका था. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए रामू ने आगे कहा, ‘‘लेकिन स्वप्न साकार नहीं हुए. हम दोनों जोधपुर छोड़ कर जयपुर भाग गए और दोस्त भरत के यहां रहने लगे. 6 महीने बाद हम पुलिस द्वारा पकड़े गए. तुम्हारी भाभी की चिरपोषित अभिलाषा भी एक स्वप्न बन कर रह गई.’’ इतना कह कर वह चुप हो गया.

मैं ने भी इस से अधिक पूछताछ करनी उचित नहीं समझी और उस से विदा ले कर अपने घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में सोचता रहा कि क्या रामू दोषी है, जो समाज के ताने सहन न कर सका और संतान की चाह ने उसे अंधा बना दिया. शादीशुदा होते हुए भी वह नाबालिग रूपी के साथ भाग गया.

क्या रामू की पत्नी दोषी है, जिस ने अपने पति को गलत राह पर चलने की सलाह दी? या फिर रूपी का पिता दोषी है, जिस ने 2 प्रेमियों को मिलने से रोक कर अपनी लड़की का किसी आवारा लड़के के साथ ब्याह रचा दिया? मैं अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि आखिर दोषी कौन है?

Short Story : जीने की राह

Short Story : मैंचांद साधारण घर से थी. मुझे याद है कि मेरे पापा के पास हम 6 बहनभाई को अच्छा खिलाने और पहनाने के बाद कोई खास पूंजी नहीं बचती थी. जैसे ही मैं ने कालेज किया, लोगों ने मेरी शादी के बारे में बात करना शुरू कर दिया. मैं इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी. मुझे अभी भी पढ़ना था और मेरा परिवार भी अभी शादी करने के बारे में ज्यादा नहीं सोच रहा था. वजह न जाने क्या थी, पर वे लोग तैयार नहीं थे.

मेरी जिंदगी गुजरती जा रही थी. मैं ट्यूशन क्लास दे कर जो भी कमाती थी, सब खानेपहनने पर ही खर्च कर देती थी. नौकरी करने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि मुसलिम लड़कियां नौकरी नहीं करतीं.

मैं देखने में कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी. मेरा रंग थोड़ा गहरा था. वैसे भी मैं दुबलीपतली थी और सोने पर सुहागा यह कि मेरे दांत भी थोड़े आगे निकले हुए थे. सब लोग मुझे ‘काली’, ‘दांतों’ और न जाने क्याक्या कह कर बुलाते. किसी को कभी मेरी ऐजूकेशनल क्वालिटी नजर न आती.

इन बातों को सुन कर कभी मैं भावुक हो कर रोती, तो कभी गुस्से में आ कर बहस करती, ‘‘जाओ, ऊपर वाले से जा कर लड़ो, जिस ने मुझे ऐसा बनाया.’’

मैं अपनी मां से कहती, ‘‘मां, मुझे काली क्यों पैदा किया? मुझे भी खूबसूरत पैदा करती…’’

मेरी मां कभी मुझे शांत हो कर देखती रह जातीं और कभी समझातीं. मैं ने 26 साल का आंकड़ा पार कर लिया था. इन सालों में मैं ने डबल सब्जैक्ट्स में मास्टर्स की डिगरी हासिल की थी.

मैं ने अपनी ऐजूकेशन के लिए सब गहने बेच दिए, क्योंकि मेरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं प्रोफैशनल कोर्स करूं, तो उन्होंने कोई सपोर्ट नहीं किया. मुझे नौकरी की इजाजत नहीं मिली. हर कोई पूछा करता था कि शादी नहीं हुई? रिश्ता नहीं हुआ? मैं थक गई थी सुनसुन कर. अब और नहीं. शादी करने के लिए ही मजबूर हो गई.

रिश्तों के आने का एक सिलसिला शुरू हुआ. रिश्ते एक तो आते बहुत मुश्किल से थे और अगर आते भी थे  तो वे मुझे नापसंद कर जाते.

पहली बार में मुझे बहुत गुस्सा आया, लेकिन फिर आदत हो गई. वजह, मेरे नैननक्श से ज्यादा हमारी माली हालत थी. मेरा परिवार लड़की दे सकता था, पर कार कैसे देता? और वह एक गोरी बहू भी नहीं दे सकता था.

मां और मेरी छोटी बहन बिलकुल टूट चुकी थीं. मुझे मेरी मां की उदासी अंदर तक तोड़ देती थी. जब कोई परिवार आता और बिना कोई जवाब दिए उठ कर चला जाता, तो मेरी हिम्मत नहीं होती थी उन का चेहरा देखने की.

अब मैं ने सोच लिया था कि बस बहुत हुआ, अब यह सब अब और नहीं. मैं ने रूढि़वाद को खत्म करने की सोच ली. मैं ने अच्छा कोर्स किया. मैं ने टीचर बन कर पढ़ाना शुरू किया. साथ में पढ़ाई भी करती रही. दिनभर पढ़ाना और रात को पढ़ना मेरा रूटीन बन गया.

मैं ने सब की मरजी न होते हुए भी आईसीएस एग्जाम दिया और टौप किया. बस, अब मेरे खराब दिन खत्म हुए और ऐसी रोशनी आई, जिस ने सब तरफ का अंधेरा मिटा दिया. सब लोग मेरे बारे में अच्छे तरीके से बात कर रहे थे. हर कोई मेरी काबिलीयत को सलाम कर रहा था. कई लोग मुझ से शादी करना चाहते थे, लेकिन अब मुझे शादी नहीं करनी थी.

मैं ने अपने मांबाप को सपोर्ट किया. अपनी 4 बहनों की शादी की. खुद के बारे में भी सोचना था मुझे और मैं ने सोचा भी. एक प्यारी सी बेटी को गोद लिया और उस का नाम रखा ‘चांदनी’.

अब मेरी जिंदगी में कुछ बुरा नहीं है. मैं खुश हूं. मैं अगर बुरे वक्त में जिंदगी से हार कर खुदकुशी कर लेती तो क्या होता? कुछ नहीं, इसलिए निराश न हों परेशानी से, बल्कि प्रेरणा बनें दूसरों की.

लेखक- इरफना परवीन

Short Story : बीरा ने बढ़ाया अपने गांव का मान-सम्मान

Short Story : आज भी बीरा के मांबाप को भजन सिंह चेताने आए थे, ‘‘तुम अपनी बेटी को संभाल कर रखो, नहीं तो मैं उस के हाथपैर तोड़ दूंगा.’’

हर रोज बीरा किसी न किसी लड़के से झगड़ा कर लेती थी. गांव के लड़के बीरा को हमेशा छेड़ा करते थे, ‘तुम लड़के जैसी लगती हो, लेकिन तुम्हारी आवाज लड़की जैसी है. एक पप्पी नहीं दोगी…’

कोई लड़का बीरा के गाल को पकड़ लेता तो कोई मौका मिलते ही उस की छाती को भी. बीरा कभी बरदाश्त नहीं करती और मारपीट पर उतारू हो जाती. स्कूल, गलीमहल्ले, खेतखलिहान, खेल के मैदान, बीरा को हर रोज इन समस्याओं से जूझना पड़ता था.

धीरेधीरे पूरे गांव में यह प्रचार होने लगा कि बीरा किन्नर है.

इसी बीच बीरा की मां की मौत हो गई. अब तो बीरा की परेशानियों को दुनिया में समझने वाला भी कोई नहीं रहा. बीरा की मां उसे एक लड़की की तरह जिंदगी जीने का सलीका सिखाने आई थी. खाना बनाना, बरतन धोना, लड़की की तरह सिंगार करना, सबकुछ उस ने अपनी मां से सीखा था.

बीरा के पिता को लोग चिढ़ाने लगे. खुलेआम मजाक उड़ाने लगे, ‘तेरी बेटी किन्नर है. इस ने तो गांव की नाक कटवा दी है. आज तक इस गांव में कोई किन्नर पैदा नहीं हुआ है.’

बीरा के पिता का भी बरताव बदलने लगा. जैसेजैसे बीरा के कदम जवानी की तरफ बढ़ने लगे, गांव के लड़के उस की तरफ खिंचने लगे और मौका मिलते ही और ज्यादा छेड़ने लगे. बीरा इन हरकतों से तंग आ चुकी थी.

एक दिन बीरा के पिता ने कहा, ‘‘तुम घर से निकल जाओ. रोजरोज के झगड़ों से मैं तंग आ चुका हूं.’’

बीरा भी अपने परिवार वालों का रुख देख कर घर से निकल गई और बिना मंजिल के एक ट्रेन पकड़ ली. उसे मालूम नहीं था कि कहां जाना है.

बीरा आसनसोल स्टेशन पहुंची, जहां किन्नरों की हैड से उस की मुलाकात हुई. उस ने खाना खिलाया, प्यार से बातें कीं और ट्रेन में ही गाने गा कर लोगों से पैसा वसूलने का हुनर सिखाया.

बीरा अब पैसा तो कमाती थी, लेकिन उस का सुख नहीं भोगती थी, क्योंकि सारा पैसा किन्नर की हैड ले लेती. वह 4 महीने तक आसनसोल में रही. वह वहां की जिंदगी से भी तंग आ चुकी थी.

एक दिन किसी को बिना बताए बीरा पटना चली आई. वहां उस की रेशमा नामक समाजसेवी किन्नर से मुलाकात हुई. रेशमा ने बीरा के दर्द को समझने की कोशिश की.

बीरा पढ़ना चाहती थी. रेशमा ने उस का बीए में दाखिला करा दिया. वह मन लगा कर पढ़ने लगी. अपना खर्च निकालने के लिए वह शादीब्याह और पर्वत्योहार के मौके पर आरकैस्ट्रा में नाचगाने का काम भी करने लगी.

बीए करने के बाद बीरा ने कोचिंग की और बीपीएससी की तैयारी करने लगी. पहली बार में वह नाकाम हुई, पर दूसरी बार बीपीएससी पास कर गई. उस की बहाली बीडीओ के पद पर हुई. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपने साथियों को जम कर पार्टी दी.

बीरा के पिता को जब गांव वालों से मालूम हुआ तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिसे वे और गांव वाले हिकारत की नजर से देखते थे, वह बीरा पढ़लिख कर अफसर बन जाएगी.

गांव वालों द्वारा यह सूचना भी उन्हें चिढ़ाने जैसी ही लगी. पर उन के गांव का ही एक लड़का बीरा से मिलवाने के लिए उन्हें ब्लौक दफ्तर ले गया. पिता को गलती का एहसास हुआ.

बीरा ने अपने पिता से गांव का हालचाल पूछा और यह भी बोली, ‘‘पिताजी, अब आप को गांव के लोग यह कह कर नीचा नहीं दिखाएंगे कि आप की बेटी किन्नर है.’’

बीरा ने यह भी पूछा कि गांव की मुख्य समस्या क्या है? पिता ने कहा, ‘‘गांव में स्कूल नहीं है.’’

बीरा ने अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाने का वादा किया. 6 महीने के अंदर बीरा ने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाया, जहां गांव के बच्चे मुफ्त में पढ़ने लगे.

गांव वालों ने बीरा से माफी मांगते हुए उसे सम्मानित किया. सम्मान समारोह में लोगों ने यही कहा कि उन के गांव में आज तक कोई ऐसा लड़का या लड़की नहीं पैदा हुई, जो हमारे गांव का नाम रोशन कर सके. बीरा ने इस गांव का मानसम्मान बढ़ाया है.

Short Story : कोठा – उस लड़की ने धंधा करने से क्यों मना कर दिया

Short Story : ‘‘अरे  रामू, क्या हुआ?’’ चनकू बाई ने पूछा.

‘‘यह लड़की धंधा करने को तैयार नहीं हो रही है,’’ रामू ने कहा.

रामू की बात सुन कर चनकू बाई कुछ सोचने लगी. कुछ याद आते ही वह बोली, ‘‘रामू, फौरन डीडी को बुलाओ, वही चुटकियों में ऐसे केस हल कर देता है.’’

डीडी उर्फ दामोदर गांव का एक सीधासादा नौजवान था. गांव के ऊंचे घराने की लड़की से उसे इश्क हो गया था. वह लड़की भी उसे बहुत प्यार करती थी. लेकिन उन दोनों के प्यार के बीच दौलत की दीवार थी, जिसे दामोदर तोड़ न सका.

दामोदर के सामने ही उस की प्रेमिका किसी और की हो गई. उस दिन दामोदर बहुत रोया था. उसे एहसास हो गया था कि दौलत के बिना इनसान अधूरा है. उस के पास दौलत होती, तो शायद उस का प्यार नहीं बिछुड़ता.

अपने प्यार का घरौंदा उजड़ते देख कर दामोदर ने फैसला किया कि वह बहुत दौलत कमाएगा, चाहे यह दौलत पाप की कमाई ही क्यों न हो.

इश्क में हारा दामोदर घर में अपने मांबाप से बगावत कर के शहर में

दौलत कमाने का सपना ले कर मुंबई आ गया.

मुंबई में दामोदर बिलकुल अकेला था. काम की तलाश में वह बहुत भटका, मगर उसे काम नहीं मिला.

एक दिन दामोदर की मुलाकात रामू से हो गई. दामोदर ने उसे अपनी आपबीती सुनाई, तो रामू को अपनापन महसूस हुआ.

वह बोला, ‘‘मैं तुम्हें काम दिला सकता हूं, पर उस काम में जोखिम बहुत है और पुलिस का डर भी है.’’

‘‘मो सिर्फ पैसा चाहिए, काम चाहे कितना भी खतरनाक ही क्यों न हो.’’

दामोदर की बात सुन कर रामू ने एक बार उसे ऊपर से नीचे तक देखा. वह समा चुका था कि दामोदर के सिर पर दौलत कमाने का भूत सवार है. इस से कुछ भी काम कराया जा सकता है.

रामू दामोदर को ले कर चनकू बाई के कोठे पर पहुंचा.

चनकू बाई ने दामोदर से बात की, फिर उसे एक वैन दे दी, जिस से वह लड़कियां सप्लाई करने लग पड़ा.

इस काम में दामोदर को अच्छीखासी रकम मिलती थी. अब रामू व दामोदर एकसाथ रहने लगे थे. उन दोनों में गहरी दोस्ती भी हो गई थी.

कुछ ही दिनों में दामोदर ने अपनी मेहनत से चनकू बाई के दिल में अच्छीखासी जगह बना ली थी. अब चनकू बाई दामोदर को डीडी के नाम से पुकारती थी.

डीडी उर्फ दामोदर को चनकू बाई का संदेश मिला और वह फौरन कोठे पर पहुंचा.

रामू ने लड़की के बारे में दामोदर को सबकुछ बता दिया.

दामोदर दरवाजा खोल कर कमरे में आया. उस ने फर्श पर पड़ी लड़की को उठाना चाहा, मगर वह बेहोशी की हालत में थी. उस का जिस्म किसी गरम भट्ठी की तरह तप रहा था.

‘‘बाई, इस लड़की को तो काफी

तेज बुखार है. किसी डाक्टर को दिखाना होगा,’’ दामोदर ने कहा.

‘‘इस कोठे पर कौन डाक्टर आएगा…’’ चनकू बाई परेशान होते हुए बोली.

‘‘फिर?’’ रामू ने पूछा.

‘‘ठीक है बाई, मैं इस लड़की को घर ले जाता हूं, वहां किसी डाक्टर को दिखा लूंगा. जब यह ठीक हो जाएगी, तो कोठे पर ले आऊंगा,’’ दामोदर बोला.

दामोदर की बात से रामू और चनकू बाई दोनों राजी थे.

दामोदर लड़की को अपने घर ले आया. उस का घर बहुत छोटा था.

उस के साथ लड़की देख कर महल्ले वाले यह समो कि शायद यह उस की बीवी है.

डाक्टर ने आ कर लड़की को दवाएं दे दीं. बुखार उतर नहीं रहा था.

दामोदर पूरी रात उस लड़की के माथे पर पट्टियां रखता रहा.

दामोदर की मेहनत रंग लाई. सुबह लड़की को होश आ गया. दामोदर ने उसे कुछ दवाएं खाने को दीं. नानुकर के बाद लड़की ने दवा खा ली.

दोपहर तक लड़की पूरी तरह से होश में आ चुकी थी. उस ने अपना नाम रजनी बताया. बचपन में ही उस के पिता की मौत हो चुकी थी.

रजनी की मां ने बेटी को पालने के लिए दूसरी शादी कर ली. शादी के कुछ साल बाद ही रजनी की मां की मौत हो गई.

मां की मौत के बाद से ही रजनी के सौतेले बाप ने उसे तंग करना शुरू कर दिया था. पिता से आजिज हो चुकी रजनी गांव के एक नौजवान को दिल दे बैठी.

उस नौजवान ने रजनी को शहर की चमकदमक के सुनहरे सब्जबाग दिखाए. वह रजनी को बहलाफुसला कर शहर ले आया और धोखे से कोठे पर बेच दिया था.

दामोदर ने रजनी की कहानी बड़े गौर से सुनी. आज तक उस ने जितनी भी लड़कियों को धंधे में उतारा था, उन में से किसी की भी कहानी नहीं सुनी थी.

थोड़ी देर के बाद दामोदर दरवाजे पर बाहर से ताला लगा कर खाना लेने होटल चला गया.

कुछ देर बाद ही दामोदर खाना ले कर लौटा. रजनी ने खाना खाया. उस के बाद वह तख्त पर लेट गई. दामोदर भी फर्श पर चटाई बिछा कर पुराना सा कंबल ले कर लेट गया.

रजनी की सेहत दिन ब दिन सुधरने लगी थी. दामोदर रोज घर के बाहर ताला लगाने के बाद कोठे पर जा कर चनकू बाई को रजनी की सेहत के बारे में बताता था.

एक दिन दामोदर जल्दी में बाहर से ताला लगाना भूल गया. जब वह शाम को घर लौटा, तो उस ने खुला दरवाजा देखा. उस के मानो होश उड़ गए. उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. लेकिन रजनी घर पर ही थी.

‘‘रजनी, आज तो भागने का मौका था. तुम भागी क्यों नहीं?’’

दामोदर की बात सुन कर रजनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘भाग कर जाती भी तो कहां? अब तो दुनिया के सभी दरवाजे मेरे लिए बंद हो गए हैं.’’

रजनी के ये शब्द दामोदर के दिल में तीर की तरह चुभ गए थे.

‘‘लो, खाना खा लो,’’ दामोदर ने खाने का पैकेट रजनी को देते हुए कहा.

‘‘नहीं, आज मैं ने घर पर ही खाना बना लिया था. आप हाथमुंह धो लीजिए. मैं खाना परोसती हूं,’’ रजनी बोली.

दामोदर ने रजनी के हाथ का बना खाना खाया. आज पहली बार मां के बाद उस ने किसी दूसरी औरत के हाथ का बना स्वादिष्ठ खाना खाया था.

खाना खाने के बाद दामोदर पुराना कंबल ले कर जमीन पर लेट गया. रजनी भी तख्त पर लेट गई. पर उन दोनों को नींद नहीं आ रही थी. वे दोनों अपनीअपनी जगह पर करवटें बदलते रहे.

सर्दी भरी रात में दामोदर ठंड से सिकुड़ता जा रहा था, लेकिन रजनी जाग रही थी.

रजनी लेटे हुए ही दामोदर को देख रही थी, शायद दामोदर सो चुका था.

रजनी ने अपनी रजाई उठाई और वह भी दामोदर के साथ सो गई.

सुबह जब दामोदर की आंख खुली, तब तक काफी देर हो चुकी थी. रजनी ने अपना सबकुछ दामोदर को सौंप दिया था. दामोदर अपनी इस गलती के लिए शर्मिंदा था.

दामोदर तैयार हो कर जैसे ही कोठे पर जाने के लिए निकला, सामने रामू अपने गुरगे ले कर पहुंच गया. वह रजनी को लेने आया था, पर दामोदर ने रजनी के बीमार होने की बात कही और उन के साथ कोठे पर चला गया.

अब दामोदर रजनी को कोठे पर नहीं लाना चाहता था. शायद उसे रजनी से प्यार हो गया था.

दामोदर ने अपने प्यार वाली बात रामू को बताई. रामू ने दामोदर को चनकू बाई के कहर का वास्ता दिया और आगे से ऐसी गलती न करने की राय भी दी.

दूसरे दिन रामू जीप ले कर रजनी को लेने दामोदर की खोली में पहुंचा, तो दामोदर वहां नहीं था. उस के कमरे के बाहर ताला लटका देखा. रामू तो समा गया कि दामोदर रजनी को ले कर कहीं भाग गया है.

जब यह खबर चनकू बाई को मिली, तो वह गुस्से से तिलमिला उठी. उस ने फौरन शहर में गुंडे फैला दिए थे, ताकि दामोदर और रजनी शहर से बाहर न जाने पाएं.

अब सारे शहर में चनकू बाई के आदमी घूम रहे थे, पर दामोदर और रजनी का कहीं अतापता नहीं था.

रामू भी कुछ आदमियों को ले कर रेलवे स्टेशन पर तलाश कर रहा था. हथियारों से लैस चनकू बाई के आदमी टे्रन के हर डब्बे की तलाशी ले रहे थे.

रामू जैसे ही डब्बे में घुसा, सामने दामोदर और रजनी को देख कर ठिठक गया था. रजनी किसी अमरबेल की तरह दामोदर से चिपकी थी.

रामू को देख कर वह कांप उठी. दामोदर भी रामू की आंखों में आंखें डाले देख रहा था. उधर ट्रेन चलने के लिए हौर्न दे रही थी.

‘‘रामू, वे इस डब्बे में हैं क्या?’’ चनकू बाई के किसी आदमी ने चिल्ला कर पूछा.

‘‘नहीं, इस डब्बे में कोई नहीं है. चलो, कहीं दूसरी जगह ढूंढें़.’’

रामू की यह बात सुन कर दामोदर और रजनी की जान में जान आई.

रामू ट्रेन से नीचे उतर गया था. वह खिड़की के पास से गुजरते हुए बोला, ‘‘जाओ मेरे दोस्त, तुम्हें नई जिंदगी मुबारक हो. तुम दोनों हमेशा खुश रहो. इस दलदल से निकल कर एक नई जिंदगी जीओ.’’

ट्रेन चल चुकी थी. दामोदर ने खिड़की से बाहर देखा. रामू जीप स्टार्ट कर के चनकू बाई के आदमियों के साथ दूर जा चुका था.

Social Story : गांव की गोरियां

Social Story : सोशल मीडिया भी गजब ही है भैया. यहां कबाड़ भरा है तो जुगाड़ भी भरा है. अब टिक टौक और लाइक को ही ले लो. एक अलग ही दुनिया. कुछ सैकंड का धमाल, दुनिया में कर दो कमाल. अब तो बड़ेबड़े नामचीन भी इस के असर से अछूते नहीं हैं. शहर की गोरीचिट्टी छोरियां इंगलिश में गिटपिट बोलें, लड़कों के मजे लें और अपने हुस्न के जलवे बिखेर कर खूब लाइक बटोरें.

पर गांवदेहात की लड़कियों को भी कम मत सम?ाना. टिक टौक और लाइक पर छाई हुई हैं ये कसे बदन की तितलियां. कभी गौर किया है इन बिजली सी चमकती ठेठ गोरियों पर. सपना चौधरी के ‘तेरी आंख्यां का यू काजल…’ गीत पर ठुमके लगा कर सपना चौधरी को ही पानी भरवा दें. सब से बड़ी बात तो यह कि ऐसी लड़कियां ज्यादा अमीर घरों की नहीं होती हैं. उन के कच्चेपक्के घरों, बिना ओट की छतों से अंदाजा लगा सकते हैं कि वे किसी अगड़े समाज से नहीं आती हैं, पर उन में अपना हुनर दिखाने की ललक होती है.

हां, एक बात जरूर है कि कैमरे के सामने आने से पहले वे अपना होमवर्क बड़े अच्छे ढंग से करती हैं. कैसे अपनी फिगर का इस्तेमाल करना है, कैसे कपड़े पहनने हैं कि बदन उतना ही दिखे कि आह निकल जाए. वे मेकअप पर भी खूब ध्यान देती हैं और जो भी पेश करती हैं, उस में उन की मेहनत दिखाई देती है.

इस सब में फिल्मी गानों, संवादों और चुटकुलों का भी बड़ा अहम रोल होता है. देशी बोली के तड़कतेभड़कते गाने और लड़कियों का कूल्हे मटकाना जबरदस्त जुगलबंदी बन जाता है. इस में बहुत सी लड़कियां अपने डांस को और मस्त बनाने के लिए कपड़े भी इतने बदनदिखाऊ पहन लेती हैं कि मनचलों की आहें निकल जाती हैं. फिर कुछ लड़कियां तो एडल्ट चुटकुले भी अपने दिलकश अंदाज में सुना देती हैं.इस से उन के चाहने वालों की लिस्ट लंबी हो जाती है.

सपना चौधरी के गाने पहले सस्ते वीडियो कैसेट पर बजते थे, फिर जब उन की देखादेखी बहुत सी लड़कियों ने ऐसे छोटेछोटे वीडियो बना कर टिक टौक वगैरह पर डालने शुरू कर दिए तो उन के भी फैन बनते चले गए.

हरियाणा की सोनाली फोगाट तो इतनी मशहूर हो गईं कि उन को हरियाणा विधानसभा की टिकट तक मिल गई. उन के वीडियो भी कम दिलचस्प नहीं हैं. पूजा जैन से ढिंचक पूजा बन चुकी यह लड़की अब इंटरनैट की सनसनी है.

Family Story : रामलाल की घर वापसी

Family Story : तकरीबन 7-8 घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था. रामलाल ने कमला को भी अपने साथ बस से उतार लिया था.

‘‘देखो कमला, तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है, तो तुम उस के साथ क्यों रहना चाहती हो?’’

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनी रही. उस ने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा.

‘‘पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे, तो क्या कहोगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्दबाजी में ब्याह करना पड़ा.’’

कमला कुछ नहीं बोली. दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गए.

रामलाल के सामने पिछले एक महीने में घटी एकएक बात किसी फिल्म की तरह सामने आ रही थी.

रामलाल शहर में मजदूरी करता था. ब्याह नहीं हुआ था, इसलिए जो मजदूरी मिलती उस में उस का खर्च आराम से चल जाता. थोड़ेबहुत पैसे जोड़ कर वह गांव में अपनी मां को भी भेज देता. गांव में एक बहन और मां ही रहते हैं. एक बीघा जमीन है, पर उस से सभी की गुजरबसर होना मुमकिन नहीं था. गांव में मजदूरी मिलना मुश्किल था, इसलिए उसे शहर आना पड़ा.

‘शहर गांव से तो बहुत दूर था, ऊपर उसे कौन रोजरोज गांव आना है…’ सोच कर रामलाल यहीं काम करने भी लगा था. एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था. एक स्टोव और कुछ बरतन. शाम को जब काम से लौटता तो 2 रोटी बना लेता और खा कर सो जाता. दिनभर का थका होता, इसलिए नींद भी अच्छी आती.

रामलाल ईमानदारी से काम करता था, इस वजह से सेठ भी उस से खुश रहता था. वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता.

सालभर हो गया था रामलाल को शहर में रहते हुए. इस एक साल में वह अपने गांव भी नहीं जा पाया था. उस दिन उस ने देर तक काम किया था. वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था. जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह सेठ से कुछ पैसे ले ले. उस ने अपनी जेब टटोली 10 का सिक्का उस के हाथ में आ गया.

‘चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा, कल सेठ से पैसे मिल ही जाएंगे.’ रामलाल ने गहरी सांस ली. 2 रोटी बनाई और खा कर सो गया.

सुबह जब रामलाल नहा कर काम पर जाने के लिए निकला, तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं. सरकार ने लौकडाउन लगा दिया है. बहुत देर तक तो वह इस का मतलब ही नहीं सम झ पाया. केवल यही सम झ में आया कि वह आज काम पर नहीं जा पाएगा. वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया. मकान मालिक उस के कमरे के सामने ही मिल गया था.

‘देखो रामलाल, महीनेभर का लौकडाउन है. कोई वायरस फैल रहा है. तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो.’

रामलाल वैसे ही लौकडाउन का मतलब नहीं सम झ पाया था, उस पर वायरस की बात तो उसे बिलकुल भी सम झ में नहीं आई.

‘कमरा खाली कर दो… मु झ से कोई गलती हो गई क्या?’

‘नहीं, पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे, तो कमरे का किराया कैसे दोगे?’

‘क्या महीनेभर काम बंद रहेगा?’

‘हां, घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे.’

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा. उस के पास तो केवल 10 का सिक्का ही है. वह कुछ नहीं बोला, उदास कदमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया.

जब रामलाल की नींद खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था. उस ने बाहर निकल कर देखा. बाहर सुनसान था. उसे पैसों की चिंता सता रही थी अगर वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से कम खाने का जुगाड़ तो हो जाता.

अगर वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे जरूर दे सकते हैं. उस ने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका. बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उस की हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई. वह फिर से दरी पर लेट गया. उस की नींद जब खुली, उस समय रात के 2 बज रहे थे. भूख के चलते उस के पेट में दर्द सा हो रहा था.

वह उठा और स्टोव जला लिया, पर आटा रखने वाले डब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह जानता था कि उस में थोड़ा सा ही आटा बचा है. अगर अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा. उस ने निराशा के साथ डब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया. 2 छोटीछोटी रोटियां ही बन पाईं. एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डब्बे में रख दिया.

सुबह हो गई थी. रामलाल ने बाहर झांक कर देखा. पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी. वह कमरे से बाहर निकल आया. उस के कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए.

सेठ का घर बहुत दूर था. छिपतेछिपाते वह उन के घर के सामने पहुंच गया था. दिन पूरा निकल आया था. यह सोच कर कि सेठ जाग गए होंगे, उस के हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे. उन के नौकर ने दरवाजा खोला था.

‘जी मैं रामलाल हूं, सेठजी के यहां ठेके पर काम करता हूं.’

‘हां तो…’

‘मुझे कुछ पैसे चाहिए.’

‘हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे. सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते.’

‘पर, वह लौकडाउन लग गया है, न तो काम तो महीनेभर बंद रहेगा.’

‘तभी आना…’

‘तुम एक बार उन से बोलो तो सही, वे मु झे बहुत चाहते हैं.’

‘अच्छा रुको, मैं पूछता हूं,’ नौकर को शायद दया आ गई थी उस पर.

नौकर के साथ सेठ भी बाहर आ गए थे. उन के चेहरे पर झुं झलाहट के भाव साफ झलक रहे थे, जिन्हें रामलाल नहीं पढ़ पाया.

सेठजी को देखते ही उस ने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे, पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया.

‘अब तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई कि घर चले आए…’

‘सेठजी कल आप से पैसे ले नहीं पाया था. मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लौकडाउन हो गया है. इसलिए आना पड़ा,’ रामलाल ने सकपकाते हुए कहा.

‘चल यहां से… बड़ा पैसे लेने आया है. मैं घर पर लेनदेन नहीं करता.’

सेठ ने उसे गुस्साई निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया. उस ने सेठजी के पैर पकड़ लिए, ‘मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं. थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर.’

सेठ उसे ठोकर मारते हुए अंदर चले गए. हक्काबक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. तभी पुलिस की गाडि़यों के आने की आवाज गूंजने लगी. वह डर गया और भागने लगा. छिपतेछिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया, पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया. वह कुछ बोल पाता, इस के पहले ही उस के ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे.

रामलाल दर्द से कराह उठा. पुलिस वालों ने गंदीगंदी गालियां देनी शुरू कर दी थीं. तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नौजवान आ कर रुक गए. उन्होंने पुलिस वालों से कुछ बात की. पुलिस ने उन्हें जाने दिया. रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया. वह हांफते हुए अपने कमरे
की दरी पर लेट गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें पोंछने वाला कोई नहीं था. उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

मां की याद आते ही उस के आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी. रोतेरोते वह सो गया था. दोपहर का समय ही रहता होगा, जब उस की आंख खुली. उस का सारा बदन दुख रहा था. पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था. वह कराहता हुआ उठा. बहुत जोर की भूख लगी थी. वह जानता था कि डब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है.

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा. वह अब क्या करे? उस के सामने अनेक सवाल थे. मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था, सीधे अंदर घुस आया था, ‘तुम कमरा कब खाली कर रहे हो?
वह सकपका गया.

‘मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रुक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो, ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ़ सकूं.’

रामलाल हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया था.

‘नहीं, माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा. तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो… नहीं तो मु झे जबरदस्ती करनी पड़ेगी,’ कहता हुआ वह चला गया.

रामलाल को सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह चुपचाप बैठा रहा. अभी तो उसे शाम के खाने की भी फिक्र थी.

सूरज ढलने को था. रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था, खामोश. और वह करता भी क्या? उस ने कमरे का दरवाजा जरा सा खोल कर देखा. बाहर पुलिस नहीं थी. वह बाहर निकल आया. थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी.

वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया. कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे. वह भी लाइन में लग गया. हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे, इसलिए समय लग रहा था. उस का नंबर आया. एक आदमी ने उस के हाथ में खाने का पैकेट रखा, साथ में और लोग भी उस के चारों ओर खड़े हो गए. कैमरे का फ्लैश चमकने लगा. फोटो खिंचवा कर वे लोग जा चुके थे.

रामलाल भी अपने कमरे की ओर लौट पड़ा, ‘चलो, आज के खाने का इंतजाम तो हो गया. इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह खा लेंगे.’

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी, इसलिए कमरे में आते ही उस ने पैकेट खोल लिया था. पैकेट में केवल 2 मोटी सी पूरी थी और जरा सी सब्जी. सब्जी बदबू मार रही थी, शायद वह खराब हो गई थी.

हक्काबक्का रामलाल पूरी को कुछ देर तक यों ही देखता रहा, फिर उस ने मोटी पूरी को चबाना शुरू कर दिया. दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा. वह अब क्या करे. कमरा भी खाली करना है.

अपने गांव भी नहीं लौट सकता, क्योंकि ट्रेनें और बसें बंद हो चुकी हैं, पैसे भी नहीं हैं. रामलाल समझ नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करे.

रामलाल ने सुबह ही पता लगा लिया था कि सरकार की ओर से खाने का इंतजाम किया गया है, इसलिए वह ढ़ूंढ़ते हुए यहां आ गया था. उस के जैसे यहां बहुत सारे लोग लाइन में लगे थे. वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे. यहीं उस की मुलाकात मदन से हुई थी, जो उस के पास वाले जिले का था. उस से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपनेअपने गांव लौट रहे हैं. मदन भी उन के साथ जा रहा है.

रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है. उसे भी इन के साथ गांव चले जाना चाहिए. पर क्या इतनी दूर पैदल चल पाएगा? पर, अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं. अगर मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा. गहरी सांस ले कर उस ने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया.

शाम को वह अपना सामान बोरे में भर कर तय जगह पर पहुंच गया, जहां मदन उस का इंतजार कर रहा था. सैकड़ों की तादाद में उस के जैसे लोग थे, जो अपनाअपना सामान सिर पर रख कर पैदल चल रहे थे. इन में बच्चे भी थे और औरतें भी.

रात का अंधकार फैलता जा रहा था, पर चलने वालों के कदम नहीं रुक रहे थे. कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ का फोटो खींच रहे थे. इसी वजह से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था. वे गालियां बक रहे थे और लौट जाने को कह रहे थे. भीड़ उन की बात सुन नहीं रही थी. पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था.

‘आप सभी की जांच की जाएगी और रुकने का इंतजाम किया जाएगा, कोई आगे नहीं बढ़ेगा,’ लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था.

सारे लोग रुक गए थे. एकएक कर सभी की जांच की गई. फिर सभी को इकट्ठा कर आग बु झाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई. दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी. मदन भी आंख बंद किए

कराह रहा था. और भी लोगों को परेशानी हो रही थी, पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था.

दवा छिड़कने वाले कर्मचारी उलटासीधा बोल रहे थे. सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था. सैकड़ों लोग और कमरे कम. बिछाने के लिए केवल दरी थी. पानी के लिए हैंडपंप था. औरतों के लिए ज्यादा परेशानी थी. 2 रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था.

‘हरामखोरों ने परेशान कर दिया,’ बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला, एक औरत ने उसे रोक लिया, ‘क्या बोला… हरामखोर… अरे, हम तो अच्छेभले जा रहे थे, हमें जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं.’

उस औरत की आवाज सुन कर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे.

‘भूखों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए…’ वह फिर बड़बड़या.

‘रोकने का इंतजाम नहीं था तो क्यों रोका… 2 सूखी रोटी दे कर अहसान जता रहे हैं,’ किसी ने जोर से बोला था, ताकि सभी सुन लें. पर, साहब को यह पसंद नहीं आया. उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था, ‘कौन बोला… जरा सामने तो आओ… यहां मेरी बेटी की बरात लग रही है क्या… जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवा कर खिलवाएं.’

सारे सकपका गए. वे सम झ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटने पड़ेंगे. छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसेतैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते. बाथरूम तक का इंतजाम नहीं था. औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं.

कोई नेताजी आए थे उन से मिलने. वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से शिकायत नहीं करेगा, इसलिए बाकी सारे लोग तो खामोश रहे, पर एक बूढ़ी औरत खामोश नहीं रह पाई.

जैसे ही नेताजी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘कैसे हो आप लोग… हम ने आप के लिए बहुत सारा इंतजाम किया है उम्मीद है कि आप अच्छे से होंगे.’

बुजुर्ग औरत यह सुन कर भड़क गई, ‘दो सूखी रोटी और सड़ी दाल दे कर अहसान जता रहे हो.’

किसी को उम्मीद नहीं थी. सभी लोग सकपका गए. एक कर्मचारी उस औरत की ओर दौड़ा, पर वह खामोश नहीं हुई, ‘हुजूर, यहां कोई इंतजाम नहीं है. हम लोग एक कमरे में भेड़बकरियों की तरह रह रहे हैं.’

नेताजी कुछ नहीं बोले. वे लौट चुके थे. उन के जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था.

फिर सरकार ने बस भिजवाई थी, ताकि सभी लोग अपनेअपने गांव लौट सकें. मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे, तभी किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई दी थी.

रामलाल उधर पहुंच गया था. एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ कर पीठ पर मुक्के मार रहा था. वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी.

‘इसे क्यों मार रहे हो भाई?’ रामलाल से सहन नहीं हो रहा था.

‘तू बीच में मत पड़. यह मेरी घरवाली है. सम झ गया तू,’ उस ने अकड़ कर कहा.

‘घरवाली है तो ऐसे मारोगे.’

‘तुझे क्या, जा अपना काम कर.’

रामलाल का खून खौलने लगा था, ‘पर बता तो सही, इस ने किया क्या है?’

‘यह औरत मनहूस है. इस के चलते ही मैं परेशान हो रहा हूं,’ कहते हुए उस ने जोर से औरत के बाल खींचे. वह दर्द से रो पड़ी. रामलाल सहन नहीं कर सका. उस ने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया.

‘तुम मेरे साथ बैठो. देखता हूं, कौन माई का लाल है, जो तुम्हें हाथ लगाएगा?’

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी. उस ने अपना नाम कमला बताया था. उस ने तो केवल यह सोचा था कि उस के आदमी का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तो वह ही उसे ले जाएगा. पर, वह उसे लेने नहीं आया.

‘अच्छा ही हुआ. उस ने इस की जिंदगी खराब कर रखी थी, पर अब यह जाएगी कहां?’ सवाल तो रामलाल के मन में था, पर जवाब उस के पास नहीं था. बस से उतर कर उस ने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था.

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी. उसे नहीं मालूम था कि उस का भविष्य क्या है, पर रामलाल उसे अच्छा लगा था. वह जिन यातनाओं से हो कर गुजरी है, शायद उसे उन से छुटकारा मिल जाए.

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थीं.

रामलाल उन से लिपट पड़ा, ‘‘मां…’’ उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. रो तो मां भी रही थी, जब से लौकडाउन लगा था, तब से ही मां उस के लिए बेचैन थीं. उन्होंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था. दोनों रो रहे थे, कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी.

अपने आंसू पोछ कर उस ने कमला की ओर इशारा किया. ‘‘मां, आप की बहू…’’

यह सुन कर चौंक गईं मां, ‘‘बहू… तू ने बगैर मु झ से पूछे ब्याह रचा लिया…?’’

‘‘मां, मजबूरी थी, लौकडाउन के चलते… गांव आना था इसे कहां छोड़ता… बेसहारा है न मां.’’

मां ने नजर भर कर कमला को देखा.

‘‘चल, अच्छा किया.’’ कह कर मां ने कमला का माथा चूम लिया.

Family Story : रफूचक्कर

Family Story : ईशा बिजनौर जिले के नगीना इलाके में अपने अम्मीअब्बा के साथ रहती थी. उस से बड़ी दो बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी, बाकी के 2 भाई मुंबई में स्टोर चलाते थे.

घर पर केवल ईशा और उस के अम्मीअब्बा ही रहते थे. उन का घर मेन रोड पर था. जब ईशा छत पर कपड़े फैलाने जाती थी, तो अकसर आनेजाने वाले लड़के उसे हसरतभरी निगाहों से देखते थे.

ईशा की उम्र अभी 17 साल थी, पर वह थी बड़ी गजब की खूबसूरत. सुनहरे बाल, गोरा चमकता चेहरा, छोटीछोटी कत्थई आंखें, सुर्ख होंठ, पतली कमर, उभरी हुई छाती. ऐसा लगता था जैसे सारा रस छाती में भर गया हो, जिसे पीने के लिए हर कोई बेताब रहता था और उसे अपना बनाने की तरकीब सोचता रहता था.

उन्हीं में से एक लड़का था इमरान. ईशा जब भी छत पर जाती थी, तब इमरान हमेशा उसे हसरतभरी निगाहों से देखता रहता था और वह ईशा का ऐसा दीवाना बना हुआ था कि दोपहर की भरी गरमी हो या तूफानी बारिश या फिर कड़ाके की ठंड… ईशा की एक झलक पाने के लिए वह बेकरार रहता था. इन सब मौसम की परवाह न करते हुए उस के घर के पास खड़ा रहता था.

ईशा समझ गई थी कि इमरान उसे दिलोजान से चाहता है. ईशा के दिल में भी इमरान के लिए प्यार के बीज फूटने लगे थे और अब वह भी कोई न कोई बहाना बना कर छत पर आ जाती और इमरान को अपनी एक कातिल मुसकान से घायल कर जाती.

कई दिनों तक यों ही आंखोंआंखों में वे दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार करते रहे, फिर उन की जिंदगी में आखिरकार वह दिन भी आ ही गया, जब दोनों ने एकदूसरे से मिल कर अपने प्यार का इजहार किया.

ईशा के अम्मीअब्बू पास के एक गांव में अपने किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे. बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश हो रही थी.

इमरान इस तेज बारिश में ईशा के दीदार के लिए पागलों की तरह बारिश में खड़ा था. उस का पूरा बदन पानी में भीग चुका था.

ईशा अपने घर मे अकेली थी. तभी उस ने इमरान की झलक पाने के लिए छत पर जा कर नजर दौड़ाई, तो देखा इमरान बारिश में खड़ा हुआ भीग रहा था. दूरदूर तक इमरान के सिवा कोई नजर नहीं आ रहा था. सब लोग तेज आंधी और बारिश की वजह से अपनेअपने घरों में कैद थे.

ईशा भी छत पर गई, तो पलभर में ही बुरी तरह भीग गई. उस ने जल्दी से इमरान को अपने घर में आने का इशारा किया और नीचे चली आई.

दरवाजा खुला था. इमरान फौरन मौका देख कर घर के अंदर दाखिल हो गया. ईशा बरामदे में ही खड़ी थी और इमरान को तौलिया दे कर बोली, ‘‘सिर पोंछ लो, नहीं तो सर्दी लग जाएगी.’’

इमरान की नजर जब ईशा के भीगे हुए बदन पर पड़ी, तो वह मदहोश हो गया. ईशा की उठी हुई छाती उस के कपड़े से चिपकी हुई अलग ही नजर आ रही थी.

ईशा के भीगे हुए बदन से कपड़े ऐसे चिपके हुए थे कि बदन का एकएक अंग साफ नजर आ रहा था. उस की पतली कमर देख कर इमरान का मन ललचाने लगा था.

इमरान ने आगे बढ़ कर ईशा को अपने आगोश में भर लिया और उस पर चुम्मों की बौछार कर दी. वह उस की उभरी हुई छाती को अपने सख्त हाथों से मसलने लगा.

इमरान की इन हरकतों से ईशा को एक अजब ही मजा आने लगा था. वह धीरेधीरे अपने बदन को इमरान को सौंपने लगी.

इमरान ने पलभर में ही बारिश से भीगे ठंडे बदन को अपने बदन की गरमी से गरम कर दिया था. ईशा ने पूरी तरह अपना कमसिन बदन इमरान को सौंप दिया था.

इमरान ने ईशा को अपनी गोद में उठा कर वहीं पड़े पलंग पर लिटा दिया. पलभर में ही वे दोनों पसीने से सराबोर हो गए.

ईशा के बदन से कपड़े हटते ही उस का गोरा और कमसिन बदन संगमरमर की तरह चमकने लगा. ईशा दर्द से तड़पने लगी. उस का कुंआरा बदन आज इमरान के आगोश में आ कर एक अजीब और मीठा दर्द महसूस कर रहा था.

कुछ देर दोनों ऐसे ही एकदूसरे का साथ देते रहे, फिर ठंडे पड़ कर एकदूसरे से अलग हो गए.

वे दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए थे और साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे.

ईशा बोली, ‘‘इमरान, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. चलो, हम कहीं भाग चलें.’’

इमरान ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी में गलत कदम नहीं उठाना. ऐसा करने से घर वालों की बेइज्जती होगी. हम दोनों एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. पहले हम कोशिश करेंगे कि हमारे घर वाले हमारी शादी के लिए राजी हो जाएं. अगर उन्होंने हमारी बात नहीं मानी, तो हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’

ईशा बोली, ‘‘ठीक है, मैं अपने घर वालों को मनाने की पूरी कोशिश करूंगी. अगर वे नहीं माने तो तुम्हें मेरा साथ देना होगा, क्योंकि मेरे घर वाले ऊंचनीच का भेदभाव करते हैं. वे अपनेआप को ऊंची जाति का समझते हैं.’’

‘‘वे क्या जानें दो दिलों की मुहब्बत के बारे में. उन्हें तो बस अपनी जात प्यारी है,’’ इमरान बोला.

‘‘इमरान, तुम कोशिश तो करो. क्या पता कि वे हमारी मुहब्बत को समझे… हमारे प्यार को कबूल कर लें और हमारा निकाह करा दें,’’ ईशा की यह बात सुन कर इमरान ने उस से रुखसती ली और अपने घर चला गया.

इमरान पिछड़ी मुसलिम जाति की सलमानी बिरादरी से ताल्लुक रखता था, जबकि ईशा मुसलिम समुदाय की खान बिरादरी से ताल्लुक रखती थी.

उत्तर प्रदेश में बिरादरीवाद कुछ ज्यादा ही रहता है. वहां कोई भी अपनी बिरादरी की लड़की या लड़के की शादी किसी गैरबिरादरी में नहीं करता है. अगर करता है तो उन के समुदाय के लोग उन से बातचीत तो बंद करते ही हैं, साथ ही उन्हें यह भी ताना मारते हैं कि इसे अपनी बिरादरी में लड़का या लड़की नहीं मिली, जो दूसरों के यहां रिश्ता कर दिया.

इमरान ने जब अपने अब्बा से खान बिरादरी की ईशा से शादी करने की बात कही, तो पहले तो उस के अब्बा ने नानुकर की, पर जब इमरान अपनी जिद पर अड़ा रहा, तो उन्हें इमरान के आगे झुकना पड़ा और वे इस शादी के लिए राजी हो गए.

ईशा ने जब अपने अब्बा से इमरान से शादी करने की बात कही, तो वे यह सुनते ही आगबबूला हो गए और गुस्से में कहने लगे, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती एक गैरबिरादरी के लड़के से शादी करने की सोच रखते हुए. हम किसी भी कीमत पर उस लड़के से तेरी शादी नहीं करेंगे.

‘‘अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो तेरे ऊपर इश्क का भूत सवार हो गया. यह सब हमारी आजादी का नतीजा है,’’ कहते हुए उन्होंने ईशा पर कड़ी नजर रखने की हिदायत दी.

ईशा रोतीबिलखती रही और अपनी मुहब्बत की भीख मांगती रही, पर उस के अम्मीअब्बा इमरान से उस की शादी के लिए राजी न हुए.

ईशा की उम्र 18 साल होने में अभी एक महीना बाकी था. वह अपनी मरजी से इमरान से शादी करने के लिए अभी मजबूर थी और उस एक महीने का इंतजार कर रही थी कि कब उस की उम्र 18 साल हो और वह इमरान के साथ रफूचक्कर हो जाए.

ईशा ने इमरान को अपने अम्मीअब्बा की सारी बातें अपनी एक सहेली के जरीए बता दीं, जो उस की खास
सहेली थी.

अब इमरान और ईशा की प्रेमकहानी प्रेमपत्र के जरीए चलने लगी, जिस को ईशा की एक सहेली अच्छी तरह से अंजाम दे रही थी.

दोनों तरफ एकदूसरे को पाने की आग लगी थी. उन का एकदूसरे से मिलनाजुलना मुश्किल हो रहा था. बस, प्रेमपत्र के जरीए ही वे अपने अपने प्यार का इजहार करते और अपने दिल की बात एकदूसरे से शेयर करते.

एक महीने तक वे दोनों अपनेअपने दिल पर पत्थर रख कर बिना एकदूसरे से मिले अपनी बात प्रेमपत्र के द्वारा ही बताते रहे.

फिर आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब ईशा 18 साल की हो गई. वह आज बहुत खुश थी. उस के सपनों का राजकुमार अब उसे मिलने वाला था.

ईशा उस की बांहों में अपनेआप को सौंप कर उस से जीभर कर प्यार करने के लिए बेचैन थी, इसलिए आज उस के चेहरे पर अजीब सी खुशी दिखाई दे रही थी.

ईशा ने अपनी सहेली के जरीए प्रेमपत्र भेज दिया, जिस में उस ने लिखा था, ‘आज रात को 4 बजे जब सब गहरी नींद में सो रहे होंगे, तब तुम मुझे लेने आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’

काली घनी रात थी. सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे. ईशा के अम्मीअब्बा भी गहरी नींद मे सो चुके थे. ईशा का रास्ता साफ हो चुका था. रात के 4 बजने में अभी भी थोड़ा समय बाकी था.

ईशा बड़ी बेसब्री से सुबह के 4 बजने का इंतजार कर रही थी. पर आज उसे ऐसा लग रहा था कि घड़ी जहां की तहां रुकी हुई है और वक्त आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.

ईशा कभी घर के अंदर तो कभी छत पर जा कर इमरान के आने का इंतजार कर रही थी, पर दूरदूर तक इमरान दिखाई नहीं दे रहा था.

ईशा बेचैन हो रही थी और सोच रही थी कि कब इमरान आएगा और उसे अपने साथ ले जाएगा, पर आज वक्त कुछ धीमा हो गया था. ईशा को आज की रात का 1-1 मिनट घंटों के बराबर लग रहा था.

काफी देर तक यों ही तड़पने के बाद आखिरकार 4 बजे ईशा छत पर गई और उसे दूर कहीं इमरान के आने की आहट सुनाई दी.

ईशा ने फौरन छत से उतर कर अपना सामान उठाया और हलके से घर का दरवाजा खोला, तो उसे बाहर इमरान दिखाई दिया. दोनों ने फौरन तेज कदमों के साथ वह जगह छोड़ दी और रफूचक्कर हो गए.

अगले दिन जब सुबह को ईशा घर में कहीं नजर नहीं आई और घर का दरवाजा भी खुला देखा, तो उस के अम्मीअब्बा समझ गए कि ईशा इमरान के साथ घर छोड़ कर रफूचक्कर हो गई है.

ईशा के अम्मीअब्बू को ईशा की इस हरकत पर बड़ा गुस्सा आया और ईशा को कोसने लगे कि ऐसी नालायक बेटी किसी को न दे, जिस ने जीतेजी उन की नाक कटवा दी और उन्हें बेइज्जत कर दिया.

इमरान और ईशा ने भाग कर शादी कर ली और अपनी जिंदगी जीने लगे. लोग कुछ दिन तक दोनों को बुराभला कहते रहे, फिर इस मामले को धीरेधीरे भूल गए.

अगर ईशा के अम्मीअब्बा पहले ही उस की बात मान लेते तो आज उन्हें यह दिन न देखना पड़ता और न यों रुसवा होना पड़ता. उन की बेटी भी उन के पास होती और इज्जत भी बनी रहती.

तकरीबन एक साल के बाद ईशा इमरान के साथ एक बेटा गोद में ले कर आई, जो उन दोनों का था. वे दोनों पहले इमरान के घर गए. इमरान के अम्मीअब्बू ने अपनी बहू को प्यार से अपने घर में रख लिया.

कुछ दिनों के बाद ईशा भी इमरान और अपने बेटे को ले कर अपने अम्मीअब्बा से मिलने गई, तो उन्होंने भी ईशा की हरकत को नजरअंदाज कर गले से लगा लिया और इमरान को भी अपना दामाद मान लिया.

फिर वे सब हंसीखुशी रहने लगे.

Short Story : हमसफर

Short Story : साजिद की एक साल पहले रेशमा से शादी हुई थी. रेशमा जैसी खूबसूरत और गदराए बदन की बीवी पा कर साजिद बहुत खुश था और बड़े मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

रेशमा को पा कर तो साजिद ने अपने भाईबहनों और करीबी रिश्तेदारों से भी मिलनाजुलना छोड़ दिया था और दिनरात उस की बांहों में पड़ा रहता था.

साजिद की इस हरकत से जहां एक तरफ उस के परिवार वालों के साथ खटास पैदा हुई, वहीं उस की माली हालत भी बद से बदतर होने लगी, क्योंकि अब वह काम से भी जी चुराने लगा था.

साजिद का भले ही छोटा सा घर था, पर रेशमा उस के साथ खुश थी, लेकिन जब से साजिद आएदिन काम से छुट्टी करने लगा, तब से घर का खर्चा उठाना मुश्किल हो गया था.

एक दिन रेशमा ने इस की शिकायत साजिद से की, ‘‘तुम दिनरात यहीं पड़े रहोगे, तो घर का खर्चा कैसे चलेगा?’’

साजिद भले ही रेशमा को दिलोजान से चाहता था, पर वह था बड़े गुस्सैल स्वभाव का. अपने मर्द होने के घमंड में वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘तू अपनी औकात में रह. अब तू मुझे बताएगी कि मैं क्या करूं और क्या न करूं? औरत है तो औरत बन कर रह, मर्द बनने की कोशिश मत कर.’’

साजिद का यह रूप देख कर रेशमा के होश ही उड़ गए. उस ने साजिद को समझते हुए कहा, ‘‘आप तो नाराज हो गए. मैं ने ऐसी कौन सी गलत बात कह दी, जो आप इतना भड़क रहे हो?’’

साजिद ने झट से रेशमा को एक तमाचा रसीद कर दिया और बोला, ‘‘मुझ से जबान लड़ाती है… जा, मैं तुझे तलाक देता हूं, तलाक… तलाक… तलाक…’’

रेशमा की जिंदगी पलभर में बरबाद हो गई और वह अपने मायके चली गई.

5-6 महीने में तलाक का मामला निबट गया, पर मेहर के पैसे देने में साजिद की काफी जमापूंजी खत्म हो गई. साजिद ने दूसरी शादी करने का इरादा किया और नई बीवी की तलाश में लग गया.

साजिद ने कई लोगों से अपने रिश्ते की बात की, लेकिन कई महीने गुजर गए, पर उसे कोई कुंआरी लड़की नहीं मिली.

नए हमसफर की तलाश में साजिद वक्त से पहले बूढ़ा होने लगा था. वह समझ चुका था कि उसे अब मनमुताबिक रिश्ता नहीं मिल पाएगा.

एक दिन एक पड़ोसी ने साजिद को बताया, ‘‘हमारी नजर में एक औरत है, जिस के शौहर का इंतकाल हो गया है और वह अपने यतीम बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही है.’’

साजिद ने पड़ोसी से मिन्नतें करते हुए कहा, ‘‘आप जल्द से जल्द मेरा निकाह करा दो. मैं आप का यह अहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगा.’’

पड़ोसी ने उस औरत के परिवार वालों से साजिद के साथ निकाह का जिक्र किया. कुछ दिन बाद वे लोग साजिद के घर आए और उस की कमाई के बारे में पूछा.

पर जब साजिद ने उन्हें अपनी साधारण सी कमाई के बारे में बताया, तो उन्होंने इस निकाह से साफ मना
कर दिया.

उस औरत के भाई ने साफसाफ कह दिया, ‘‘इतनी साधारण कमाई से आप अपना खर्च तो उठा नहीं सकते, अपनी बीवी और उस के बच्चों का खर्चा कहां से उठा पाओगे?’’

यह सुन कर साजिद पूरी तरह टूट गया. वह समझ गया कि अब उस की शादी होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. अब उसे उस का हमसफर कभी नहीं मिल पाएगा.

साजिद की जिंदगी का खालीपन अब उसे काटने को दौड़ने लगा. तनहाई उसे अंदर ही अंदर तोड़ने लगी. उस की रातें उसे काटने को दौड़तीं. वह रातभर करवटें बदलता रहता और अपने हमसफर की याद में तड़प कर रह जाता.

साजिद की आंखों में अपने हमसफर की तलाश की बेचैनी साफ दिखाई देती थी. जब कभी कोई दोस्त साजिद से उस की शादी की बात करता, तो वह तड़प उठता और उस की आंखों से आंसू छलक पड़ते.

एक दिन की बात है. अपने एक दोस्त से बात करते हुए साजिद का गला रुंध गया. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्या करूं यार… कितने सालों से अपने हमसफर की तलाश कर रहा हूं, पर मुझे मेरा हमसफर मिल ही नहीं पा रहा है. कितने लोगों से मिन्नतें कीं, पर अभी तक मुझे मेरा हमसफर मिल नहीं पाया.

‘‘कभी कोई छोटा घर कह कर मुझे दुत्कार देता है, तो कभी कोई मेरी साधारण कमाई को ले कर सवाल उठाता है और कहता है कि तुम इतनी कमाई में बीवीबच्चों का खर्च कैसे उठाओगे?

‘‘अब तो ऐसा लगता है कि शायद मुझे मेरा हमसफर कभी मिल ही नहीं पाएगा. घर में खानेपीने की अलग परेशानी है. वक्त पर खाना न मिलने से मेरा शरीर कमजोर होता जा रहा है. अब तो मेरा काम करने में भी मन नहीं लगता है. कभीकभी सोचता हूं कि मैं खुदकुशी कर लूं.’’

साजिद की ऐसी मायूसी भरी बातें सुन कर उस के दोस्त की आंखों मे आंसू आ गए. वह अच्छी तरह समझ गया कि साजिद कितनी परेशानी में जिंदगी जीने को मजबूर है.

काफी अरसा इसी तरह गुजर गया, पर साजिद को उस का हमसफर न मिला. कई सालों के बाद उस ने परेशान हो कर एक बूढ़ी औरत को अपने घर में रख लिया, जिस का इस दुनिया में कोई नहीं था. उस औरत की उम्र तकरीबन 60 साल थी, जबकि साजिद की उम्र अभी 40 साल के आसपास थी.

साजिद ने उस बूढ़ी औरत पर अपने घर की जिम्मेदारी सौंप दी, ताकि उसे खानापीना तो वक्त पर मिल सके, क्योंकि जिंदगी तो उसे किसी तरह गुजारनी ही थी.

भले ही साजिद को हमसफर न मिला, पर जिंदगी तो अब उस बूढ़ी औरत के साथ गुजर ही रही थी. घर
में कुछ रौनक तो आ ही गई थी. घर का सूनापन अब खत्म हो चुका था, पर अकेलापन अभी भी था.

साजिद को हमेशा यह मलाल रहता था कि उस ने अच्छीभली रेशमा को क्यों तलाक दे दिया. उसे कभीकभार रेशमा दिखाई देती थी, जो अपने नए शौहर के साथ मजे से रह रही थी. वह कमाई भी अच्छी करता था और रेशमा से प्यार भी बहुत करता था. उस ने तो रेशमा को मेहंदी लगाने का काम भी शुरू करा दिया था, ताकि रेशमा के हाथों में कभी पैसे की कमी न रहे.

Love Story : फिर कब आओगे

Love Story : जमीला फूटे हुए अंडे को देख रही थी. कुछ कबूतर लड़भिड़ रहे थे, इसी से एक अंडा गिर कर फूट गया था. लड़कपन में वह झब्बू साह के घर खेलने जाया करती थी. उन के यहां ढेरों कबूतर थे. एक जोड़ी कबूतर वहीं से वह ले आई थी. हालांकि, अब्बा नाराज हुए थे, पर खाला जुबैदा खातून ने उन को चुप करा दिया था.

धीरेधीरे जमीला बड़ी हुई. कबूतर कभी उस के कंधों पर आ बैठते, तो कभी हाथों पर आ जाते और कभी उस के दुपट्टे में छिप कर आंखमिचौली करते. तब वह अजीब गुदगुदी से सिहर जाती.

जल्दी ही जमीला का निकाह हो गया. पर कुदरत को यह सब मंजूर न था. शहर में दंगा हुआ और उस का शौहर हमेशा के लिए उसे छोड़ कर चला गया. तब से जमीला के भीतर और बाहर धुआं ही धुआं भर गया. 2 सालों से वह इसी तरह घुटघुट कर जी रही थी.

अचानक ही दरवाजे पर बड़ी जोर से दस्तक हुई.

‘इस वक्त दोपहर में कौन हो सकता है?’ जमीला सोचने लगी, ‘बिना नामपता जाने कैसे दरवाजा खोलूं. अभीअभी तो पुलिस की गाड़ी इधर से गुजरी है.’

शहर में फिर दंगा भड़क उठा था. कई धमाको हो चुके थे. दर्जनभर लाशें बिछ चुकी थीं. जमीला चंद कदम आगे बढ़ कर ठिठक गई.

कोई दरवाजे को बारबार थपथपा रहा था. एकाध बार ‘बचा लो’ की हलकी आवाज भी उभरी थी.

‘जरूर फिर कहीं कुछ हुआ है,’ डर जमीला के पैर जकड़ रहा था और इनसानियत आगे धकेल रही थी.

आखिरकार इनसानियत की जीत हुई. जमीला ने दरवाजा खोल दिया. सामने डरा हुआ एक नौजवान हाथ जोड़े खड़ा था. जमीला की खामोश मंजूरी पा कर वह भीतर चला आया. लेकिन यह क्या, घबरा कर वह जमीला को गौर से देख कर वापस जाने लगा.

तब तक जमीला सबकुछ समझ गई थी. वह झट से बोली, ‘‘इस तरह घबरा कर क्यों जाने लगे, क्या तुम…?’’

वह नौजवान रुक कर बोला, ‘‘तुम तो मुसलमान हो, यहां मेरी जान को खतरा है…’’

‘‘इस तरह क्यों कहते हो? क्या सभी मुसलमान एकजैसे होते हैं? क्या सभी हिंदू दयावान ही होते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो तुम्हें मुझ से खौफ नहीं खाना चाहिए. वैसे, तुम कहां से आ रहे हो? क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘मेरा नाम अमर है. मैं अपने गांव जा रहा था… रास्ते में कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया… किसी तरह खुद को छुड़ा कर भागा हूं. आगे जाने की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि सड़कों पर लोगों का हुजूम है.’’

जमीला ने दरवाजा बंद कर दिया और अमर को भीतर आने का इशारा किया. फिर कोठरी में चौकी पर बैठते हुए वह बोली, ‘‘सामने खाट पर बैठ जाओ. वैसे, किसी ने देखा तो नहीं न तुम्हें यहां आते हुए?’’

‘‘नहीं,’’ अमर ने भी हौले से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें अब भी डर लग रहा है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘भूख लगी है?’’

अमर कुछ बोला नहीं. वह चुपचाप जमीला की ओर देखता रहा.

‘‘प्यास तो लगी होगी?’’

अमर फिर भी चुप रहा.

‘‘तो फिर चले जाओ यहां से… न खाओगे, न बोलोगे, तो क्या भूखेप्यासे और गूंगे बन कर यहां रुकोगे?’’ जमीला मीठा गुस्सा बरसाते हुए रसोईघर में चली गई.

फिर एक थाली में खाना परोस कर जमीला खाला जुबैदा खातून के कमरे में दे आई.

घर में ये ही 2 जने थे. जुबैदा खातून ज्यादातर खाट पर ही पड़ी रहती थीं. हां, लाठी के सहारे वे कभीकभार आंगन में टहलने लगती थीं.

उन्होंने पूछा, ‘‘बेटी, किस से बातें कर रही थी?’’

जमीला पहले तो हंसी, फिर बोली, ‘‘एक बुद्धू है खाला. पास ही के गांव का है… भटका हुआ यहां आया है.’’

‘‘उसे खाना नहीं खिलाया?’’

जमीला फिर हंसी और बोली, ‘‘यही तो मुसीबत है. वह ठहरा हिंदू और हम…’’

‘‘तो देखो, वह न खाए तो जबरदस्ती मत खिलाना. उस से कहना कि जब बाहर कहर बरपना बंद हो जाए, तभी यहां से बाहर निकले. बेटी, इनसानियत से बढ़ कर कोई मजहब नहीं है. तू ने अभी तक खाना खाया कि नहीं?’’

‘‘नहीं खाला, घर में आया मेहमान भूखा हो तो मैं कैसे खा लूं?’’

अमर उन दोनों की बातें सुन रहा था. उस के दिल में हिंदूमुसलमान का कोई फर्क न था, पर वह डरा हुआ जरूर था.

जमीला फिर आ कर अमर के सामने चौकी पर बैठ गई. उस ने एक नजर अमर पर डाली. वह भी उसे ही देख रहा था. ज्यों ही जमीला की नजर उस पर पड़ी, वह सहम गया. जमीला उस के डर और भोलेपन को देख भीतर से मुसकरा उठी, पर चेहरे को जरा सख्त बनाए रखा.

जमीला अमर के बारे में सोच रही थी कि अचानक उस की आवाज ने चौंका दिया, ‘‘जमीला, क्या तुम खाना नहीं खाओगी?’’ अमर की आवाज में अपनापन था.

‘न जाने यह कमल किस तरह खिल गया?’ जमीला ने अमर को देख कर सोचा, तो अमर एक बार फिर झेंप गया. लेकिन फिर वह उस की हिरनी जैसी काली, चंचल गहरी आंखों में डूब गया.

अमर ने देखा कि इन आंखों से खूबसूरत कोई और जगह नहीं, फूलों का कोई बगीचा भी नहीं. सागर जैसी इस गहराई में प्यार की लहरें हैं, जो उस की तरफ बढ़ रही हैं.

अचानक जमीला की आवाज ने अमर को चौंका दिया, ‘‘अगर तुम खाना नहीं खाओगे, तो मैं भी नहीं खाऊंगी.’’

‘‘मुझे तो जोरों की भूख लगी है, इसीलिए कह रहा हूं,’’ कह कर अमर हंस दिया.

‘‘कहीं तुम्हारा धर्म तो नहीं बिगड़ जाएगा न?’’

‘‘कैसा धर्म? इनसानियत से बढ़ कर भी कोई धर्म है क्या? जल्दी से दो न मुझे खाना.’’

‘‘अभी देती हूं,’’ कहते हुए जमीला उठ गई.

शाम को जमीला चाय बना कर लाई. एक प्याला अमर के हाथों में थमाया, दूसरा खुद ले कर पीने बैठ गई.

‘‘चाय कैसी लगी?’’ थोड़ी देर बाद जमीला ने पूछा.

‘‘बहुत अच्छी.’’

‘‘और मैं?’’

‘‘तुम… तुम…’’

‘‘हांहां… मैं… बुद्धू…’’ खिलखिला कर हंसते हुए जमीला खड़ी हो गई.

अमर ने देखा, छिपकली की तरह दीवार से लग कर जमीला ने अपने बदन को ऐंठा और हौलेहौले रसोईघर की तरफ चल दी.

जमीला इस वक्त खिली हुई थी. उस का चेहरा सुर्ख हो उठा था. अमर उसे अपने दिल में जगह देने के लिए बेताब सा हो गया.

दूसरे दिन रात के 11 बजे बिलकुल नजदीक ही बम फटने की आवाज आई. धमाका इतना जोरदार था कि बरामदे में खाट पर सोई जमीला हड़बड़ा कर उठ बैठी. उसे लगा, जैसे धरती हिल गई हो.

अमर तो सोया ही नहीं था. कमरे से बाहर आ कर चारदीवारी से उचक कर बाहर देखने की कोशिश करने लगा, पर जमीला ने उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, ‘‘बुद्धू, तुम्हारी यह बचकानी हरकत हम सब को ले डूबेगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें इतनी चिंता क्यों होने लगी है? कहीं मुझे पनाह देने की वजह से तो तुम नहीं डर रहीं? आखिर मैं शरणार्थी ही तो हूं.’’

‘‘क्या कहा? तुम शरणार्थी हो?’’ जमीला झुंझला उठी, ‘‘क्या तुम खुद को शरणार्थी महसूस कर रहे हो? पर शरणार्थी के साथ धोखा भी हो सकता है अमर. तुम्हें काफिर समझ कर उन लोगों के हाथों सौंप भी सकती हूं. बोलो, ऐसा कर सकती हूं कि नहीं?’’

अमर जल्दी से बोल पड़ा, ‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकती…’’

‘‘क्यों नहीं कर सकती… आखिर क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम मुझे चाहती हो…’’ अमर ने कहा.

‘‘तुम झूठ बोलते हो.’’

‘‘यह सच है. मैं नहीं जानता था… मुहब्बत भी कभीकभी इतनी जल्दी हो जाती है. तुम मुझ से प्यार करने लगी हो… और मैं भी…’’

इतना सुनते ही जमीला अमर के सीने से चिपक गई. पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह नदी बन कर किसी सागर में उतरती जा रही है. सारे बांधों को तोड़ते हुए, जैसे उस में समाती जा रही है.

सुबह जमीला रोटियां सेंकसेंक कर अमर की थाली में रखती जा रही थी और वह वहीं पीढ़े पर बैठा खा रहा था. अचानक वह बोल बैठा, ‘‘तुम मुझे इस तरह अपने करीब बिठा कर खाना खिला रही हो, जैसे हम दोनों के बीच मियांबीवी का रिश्ता हो.’’

जमीला ने तवे को चूल्हे से उतार दिया, फिर दुपट्टे से माथे पर आए पसीने को पोंछा और अमर की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘अगर मैं कहूं कि रिश्ता बना लो… यही, जो तुम ने अभी कहा है, तो क्या तुम तैयार हो जाओगे?’’

‘‘मैं तैयार हूं… पर, क्या तुम्हारे धर्म के लोग अड़चन नहीं डालेंगे?’’

‘‘अड़चन तो डालेंगे… और लड़ भी लूंगी मैं उन से, लेकिन मुश्किल है कि तुम अपनों से नहीं लड़ पाओगे अमर. लड़ने की ताकत तुम में है ही नहीं. अगर होती तो तुम मेरे घर छिप कर न बैठते?’’

अमर को लगा, सचमुच वह जमीला से बहस नहीं कर पाएगा. फिर भी उस ने छेड़ा, ‘‘यह जानते हुए भी तुम ने मुझे अपने यहां छिपा कर रखा और प्यार दिया.’’

‘‘इसलिए कि तुम भोले हो… तुम्हारी इसी नादानी और भोलेपन ने ही मुझे खींच लिया.’’

‘‘जमीला, तुम ठीक कहती हो. तुम सचमुच बहुत हिम्मत वाली हो. तुम ने बता दिया कि मुहब्बत ही असली धर्म है. मैं कोशिश करूंगा कि खुद को तुम्हारे जैसा बनाऊं.’’

‘‘लेकिन अमर, याद रहे… मुझे पाने के लिए वह सब तुम नहीं करोेगे, जो आशिक अकसर कर दिया करते हैं. प्यार से लोगों को समझा सको, तभी मुझे भी पा सकते हो.’’

‘‘पर, दुनिया वाले इतनी आसानी से नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों नहीं मानेंगे? अगर नहीं मानेंगे तो पछताना भी उन्हीं को पड़ेगा न…’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘क्योंकि प्यार नहीं पछताता. मौका पड़ने पर अपनी जिद पर अड़ जाता है. चलो, अब चाय पी लो.’’

‘‘तो अब तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे लिए सब सह लूंगा.’’

जमीला एकटक अमर को देखने लगी और अमर जमीला को.

शौहर की मौत के बाद से जमीला की हंसी ही जैसे छिन गई थी. बाद में निकाह के कई रिश्ते भी आए, पर उस ने कोई दिलचस्पी न दिखाई. कुम्हार के चाक पर गढ़ी हुई यह हसीना जब कभी बाहर कदम रखती तो शोहदों का कलेजा बाहर निकल आता. हालांकि, उस के चेहरे पर संजीदगी छाई रहती, पर आंखों से मस्ती और देह से खूशबू छलकती थी.

इन 3 दिनों में ही वे दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे. जमीला ने इतनी खुशी पाई, इतना प्यार पाया, जो सालों में उसे न मिला था. अमर ने जब अपने हाथों से उसे खाना खिलाया, तो वह मजहब की दीवार को भूल गई.

अपने शौहर नसीम के साथ कुछ वक्त उस ने गुजारा था, पर उस ने कभी ढंग से चंद बातें भी न की थीं. वह तो नशे में सिर्फ कड़वी बातें ही कहता था.

कुदरत का खेल भी निराला होता है. एक उस की जिंदगी में आया, पर जल्दी ही चला गया. जमीला उसे हमेशा के लिए भूल गई. पर, दूसरा जो आया, उसे वह अब कहां भूल सकती थी…

यही सोचतेसोचते आधी रात बीत गई. जमीला को नींद न आई, क्योंकि अमर को भोर में ही अपने गांव चले जाना था. फिर कब आएगा, यह तो वही जाने.

जमीला यह कहां जानती थी कि इतनी जल्दी वह एक अजनबी से इस तरह घुलमिल जाएगी… उस की आंखें भर आईं. वह भीतर से आ कर आंगन में बैठ गई.

अमर के दिल में भी यही तूफान चल रहा था. उसे चारों तरफ जमीला ही जमीला दिखाई दे रही थी. एक पल के लिए भी जब बिस्तर पर लेटे रहना उस के लिए मुश्किल हो गया, तो वह भी कमरे से निकल पड़ा.

सामने देखा कि जमीला बैठी हुई है. वह भी उस के नजदीक आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘जमीला, तुम कब से यहां बैठी हो?’’

पर जमीला कुछ न बोली. अमर ने उस का चेहरा ऊपर उठाते हुए वही सवाल दोहराया, तो जमीला हिचकियां लेने लगी. चांद की रोशनी में आंसुओं से लबालब उस की आंखें एकटक अमर को देखने लगीं.

यह देख कर अमर का दिल डूबने लगा. पौ फटने में अभी देर थी. अमर जाने के लिए खड़ा हो गया, तो जमीला ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘फिर कब आओगे?’’

अमर ने भरे गले से कुछ बोलना चाहा, पर होंठों ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

लेखक – डा. महेश चंद

Family Story : पागल आदमी

Family Story : कुदरत ने बहुत सारे हक अपने पास रखे हुए हैं, इसीलिए इनसान जैसा चाहता है, वैसा होता नहीं है. वह सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है.

प्रोफैसर मुकेश बालियान अपने रूम में अकेले बैठे थे. अनमने मन से आज दिन में ही वे शराब पीने बैठ गए थे. अभी उन्होंने एक पैग खाली किया था, लेकिन पता नहीं क्यों अभी दूसरा पैग लगाने को मन नहीं हो रहा था. वे अपनी जिंदगी में बिलकुल अकेला महसूस कर रहे थे. बेवजह ही वे मुसकरा रहे थे और उस मुसकराहट के साथ अचानक से रो भी पड़े थे.

औरतों की तरह मर्द दूसरों के सामने मुश्किल से ही रोता है, लेकिन अकेले में वह अपने दुख में फूटफूट कर रोता है और अपनी बुजदिली को छिपाता है.

जब भावनाओं का जोर कुछ कम हुआ, तो प्रोफैसर मुकेश बालियान ने आंखों में आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने के बाद मन को हलका करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली.

सिगरेट से उड़ते धुएं के छल्ले उन्हें अपनी जिंदगी के छल्लों की तरह एकदम खोखले लग रहे थे. वे सोचने लगे कि आज डायरैक्टर को इस्तीफा सौंपने के बाद उन का और यवनिका का साथ हमेशाहमेशा के लिए छूट जाएगा.

यह प्यार भी अजीब चीज है, साथी का साथ छूटने से ऐसा लगता है जैसे जिंदगी खत्म हो गई हो. जीतेजी मौत का सा अहसास होने लगता है. जिस ने कभी टूट कर प्यार किया हो, वही तो इस को महसूस कर सकता है. उन पत्थरदिलों का क्या, जिन्होंने प्यार को हवस या खिलौना समझा?

प्रोफैसर मुकेश बालियान ने सिगरेट का आखिरी छल्ला हवा में उड़ाया और फिर अपना इस्तीफा लिखना शुरू किया.

लिखने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था. बस, वे तो अपना एक वादा पूरा कर रहे थे, जिस के पूरा होने से किसी की जिंदगी खुशियों से लबरेज हो जानी थी. जैसा उन के साथ हुआ किसी और के साथ न हो, इसीलिए वे इस्तीफा दे रहे थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान की ट्रेन मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन से शाम 5 बज कर 15 मिनट पर छूटनी थी. अपने जरूरी सामान का सूटकेस और एक बैग उन्होंने पहले ही तैयार कर लिया था.

एसी 2 में टिकट का जुगाड़ भी जैसेतैसे हो ही गया था. वे अपना इस्तीफा डायरैक्टर को सौंप कर मुंबई छोड़ने की पूरी तैयारी में थे. मुंबई छोड़ने की वे किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होने देना चाहते थे.

इस्तीफा लिखने के बाद प्रोफैसर मुकेश बालियान ने डायरैक्टर कुलदीप खंडेलवाल से मिलने के लिए समय मांगा. डायरैक्टर अभी औफिस में ही थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान के इस्तीफे को अचानक अपने सामने देख कर उन का चौंक जाना लाजिमी था. ऐसे हालात में जो बातचीत हो सकती थी, वह हुई, लेकिन जब कोई अपनी जिद पर अड़ा हो, तो उसे कौन रोक सकता है?

आखिरकार प्रो. मुकेश बालियान का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. सारी औपचारिकताएं पूरी करवा ली गईं.

प्रो. मुकेश बालियान टैक्सी पकड़ कर मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन पहुंच गए. उन की ट्रेन ‘तेजस राजधानी ऐक्सप्रैस’ मुंबई छोड़ने के लिए तैयार थी.

प्रोफैसर मुकेश बालियान ट्रेन में अपनी सीट पर लेट गए और पुरानी यादों में खो गए. उन की कहानी का कथानक कुछ ऐसा था…

आज से तकरीबन 30 साल पहले प्रोफैसर मुकेश बालियान इसी ट्रेन से पहली बार मुंबई आए थे. उन्होंने सांख्यिकी की एक नैशनल लैवल की प्रतियोगिता पास की थी और उन का एडमिशन मुंबई के एक नामचीन जैव सांख्यिकी संस्थान में हो गया था.

उन्हें खुशी थी कि पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठा रही थी. उन्हें तो बस मेहनत कर के एमएससी बायो स्टैट की डिगरी अच्छे अंकों से हासिल करनी थी.

पहले ही दिन मुकेश बालियान की मुलाकात अजनबी यवनिका से हुई थी. मुलाकात क्या, यह तो पहली नजर का प्यार था.

‘‘मुकेश, किस जगह से हो तुम?’’ यवनिका ने सवाल पूछा था.

‘‘मैं उत्तर प्रदेश से,’’ मुकेश ने छोटा सा जवाब दिया था.

‘‘अरे, उत्तर प्रदेश तो बहुत बड़ा है. उत्तर प्रदेश में कहां से हैं?’’ यवनिका सही जगह जान लेना चाहती थी.

‘‘बिजनौर जिले से.’’

‘‘अरे, यह बिजनौर कहां है? यह नाम तो मैं पहली बार सुन रही हूं.’’

‘‘यवनिका, चाय तो लो. चाय ठंडी हो रही है. मेरठ का नाम तो सुना होगा तुम ने, बस उसी से 100 किलोमीटर उत्तर दिशा में उत्तराखंड के बौर्डर पर बिजनौर जिला है.’’

‘‘मतलब, हरिद्वार के आसपास.’’

‘‘बिलकुल सही यवनिका.’’

मुकेश सोचने लगा था कि यवनिका बहुतकुछ पूछने वाली है, लेकिन मुकेश के मन में भी जिज्ञासा जगी. उस ने पूछा, ‘‘यवनिका, तुम कहां से हो?’’

‘‘मैं तो महाराष्ट्र की हूं, नागपुर से,’’ यवनिका ने बताया.

इस से पहले कि यवनिका कुछ और पूछती, मुकेश ने उठते हुए कहा, ‘‘ठीक है यवनिका, कल मिलते हैं.’’
यवनिका ने अनमने मन से कहा, ‘‘ठीक है.’’

लेकिन यवनिका के मन में मुकेश को ले कर अभी भी कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह तो सारे सवाल आज ही पूछ लेना चाहती थी. वह वहां से प्यासे पपीहे की तरह उठी.

जल्दी ही मुकेश और यवनिका में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन दोनों की अच्छी जोड़ी बन गई थी. संस्थान में यह कोई अचंभे की बात नहीं थी. वहां तो कई प्रेमी जोड़े थे. ऐसे कई छात्र जोड़े थे, जो पहले एमएससी करते, फिर यहीं से पीएचडी करते और यहीं प्रोफैसर बन जाते थे.

मुकेश और यवनिका के परिवार वाले भी उन के प्रेम संबंधों के बारे में जान गए थे, लेकिन उन्हें भी कोई एतराज नहीं था. उन दोनों के परिवार सुलझे हुए और समझदार थे.

एक बार संस्थान की ओर से हिमाचल प्रदेश के कुल्लूमनाली, शिमला और धर्मशाला के लिए 10 दिन का टूर गया था. यवनिका और मुकेश वहां रूमानी दुनिया में खो गए थे.

जवानी के जोश में मुकेश सबकुछ कर लेना चाहता था, लेकिन यवनिका ने कहा था, ‘‘मुकेश, हम कोई नादान बच्चे नहीं हैं, जो ऐसी गलती करें. हम जानवर नहीं हैं कि अपनी हवस पर कंट्रोल न रख सकें. हम इनसान हैं. यह सब काम शादी के बाद.’’

उस दिन से मुकेश की नजरों में यवनिका की इज्जत कई गुना बढ़ गई थी. वह देखता था कि हवस के मारे प्रेमी जोड़े कितने मौजमस्ती में डूबे रहते हैं और फिर आएदिन जानवरों की तरह आपस में ऐसे लड़ते हैं, जैसे उन में कोई शर्महया बची ही न हो.

मुकेश सोचने लगा कि यवनिका कितनी समझदार है. वह चाहती तो मौजमस्ती के लिए कुछ भी कर सकती थी, लेकिन हर चीज का एक दायरा और समय होता है. सच्चा प्यार हवस का गुलाम नहीं होता. प्यार तो जिंदगी में कुरबानी मांगता है.

समय गुजरता गया और उसी संस्थान से मुकेश और यवनिका ने पीएचडी भी कर ली. इस के बाद यवनिका और मुकेश अपने अपनेअपने घर चले गए. दोनों पढ़लिख कर भी अभी बेरोजगार थे और नौकरी की तलाश में थे.

यवनिका के पापा को उस की शादी करने की जल्दी थी. वह 28 साल पार कर चुकी थी.

एक दिन यवनिका के पापा नितिन साल्वे ने उस से कहा, ‘‘यवनिका, मुझे तुम्हारी शादी की बड़ी चिंता है. मैं बूढ़ा तो हो ही रहा हूं, मेरा लिवर भी जवाब दे रहा है. मुकेश अच्छा लड़का है, लेकिन वह अभी बेरोजगार है और नौकरी तलाश रहा है. मैं उस के हाथ में तुम्हारा हाथ कैसे दे दूं, आखिर बेटी का बाप हूं? बेटी के सुख में ही तो बाप का सुख बसता है,’’ कह कर यवनिका के पापा कुछ मायूस से हो गए थे.

तब यवनिका बोली, ‘‘पापा, कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं. मुकेश नौकरी की तलाश तो कर ही रहा है.’’

‘‘यवनिका, मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह कहने की हिम्मत की है. बेरोजगारी के जमाने में नौकरी का क्या भरोसा? मेरी चिंता कड़वी हकीकत है. आज अगर भावनाओं में बह कर मैं तुम्हारा हाथ एक बेरोजगार के हाथ में दे दूं, तो कल तुम्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, तुम्हें इस का अंदाजा भी नहीं है.’’

यवनिका जानती थी कि उस के पापा सही बोल रहे हैं. इतने नामचीन संस्थान से पीएचडी करने के बाद भी लोग उस की बेरोजगारी पर तंज कसने से नहीं चूकते थे.

यवनिका ने कहा, ‘‘पापा, बस कुछ दिन का समय और दे दो. किसी न किसी संस्थान में हम दोनों की नौकरी लग ही जाएगी.’’

‘‘यवनिका, मैं 2 साल से इंतजार ही तो कर रहा हूं, नहीं तो कब का तुम्हारे हाथ पीले कर देता. अब एक अच्छा सा लड़का निगाह में आया है, तो तुम से यह सब कह रहा हूं.

‘‘अपनी ही बिरादरी का एक लड़का मुंबई में इनकम टैक्स महकमे में अफसर लगा है. वह हैंडसम है और अच्छी पगार वाला है. और सब से बड़ी बात है कि अपने हाथ में है.

‘‘वह जिन का लड़का है, वे हमें अच्छे से जानते हैं. मैं चाहता हूं बेटी कि इस मौके को हाथ से न जाने दूं और अपने प्राण निकलने से पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं.’’

उस रात यवनिका ने मुकेश से फोन पर लंबी बातचीत की. मुकेश ने कहा, ‘यवनिका, ऐसा लगता है कि यह पीएचडी ही बोझ बन गई है. किसी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई करता हूं, तो कंपनी वाले यह कह कर टरका देते हैं कि कल तुम्हारी सरकारी नौकरी लग गई, तो हमारी नौकरी छोड़ कर भाग जाओगे.’

‘‘तो मुकेश अब क्या करना है? मैं तो बहुत परेशानी में हूं. पापा मेरी शादी करने की जिद पर अड़े हुए हैं.’’

‘यवनिका, जब इतना अच्छा लड़का मिल रहा है, तो शादी कर लो न. पापा की बात मान लो. मेरी नौकरी के इंतजार में तो तुम बुढि़या हो जाओगी. मेरी तो अपने मांबाप से भी खटपट हो गई है. मैं अलग रह रहा हूं. एडहौक पर एक डिगरी कालेज में नौकरी कर के किसी तरह अपना खर्चा चला रहा हूं.’

‘‘तो क्या हुआ मुकेश, मैं भी ऐसी ही कोई प्राइवेट नौकरी कर लूंगी. आखिर मैं ने भी तो पीएचडी की हुई है. रहेंगे तो दोनों साथ.’’

‘नहीं यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि अपने चलते तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूं.’

‘‘तुम पागलों जैसी बातें क्यों कर रहे हो मुकेश? हम ने प्यार किया है. मैं तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में सोच भी कैसे सकती हूं?’’ यवनिका ने गुस्सा जताते हुए कहा.

लेकिन मुकेश तो जैसे आज ज्ञान का पितामह बना बैठा था. वह फिर से ज्ञान बखारने लगा, ‘यवनिका, हालात को समझो. आदमी तो अकेले भी जिंदगी काट लेता है, लेकिन औरत के लिए अकेले जिंदगी काटना इस दुनिया में मुहाल हो जाता है. और ध्यान रखो तुम…’

‘‘मुकेश, यह क्या पागलपन लगा रखा है? कहीं भांग तो खाना नहीं शुरू कर दिए हो? क्या बेवकूफों वाले उपदेश दिए जा रहे हो? कहीं मुझ से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते हो? कहीं अपने गांव में जा कर किसी दूसरी लड़की से तो चक्कर नहीं चला बैठे?’’

‘बस, इन औरतों के साथ यही परेशानी होती है. जरा सी बात हुई नहीं कि दूसरी औरत का शक दिमाग में बैठ जाता है. मैं तुम्हारा भला चाह रहा हूं और तुम बेबुनियाद आरोप लगाए जा रही हो. अगर ऐसा है तो ऐसा ही सही.’

‘‘मुकेश, जब किसी मर्द को किसी औरत से छुटकारा पाना होता है, तो वह ऐसी ही पागलों जैसी बातें करने लगता है. जाओ मरो तुम उस चुड़ैल के साथ… और आज के बाद फिर कभी मुझे फोन करने की कोशिश भी मत कर लेना,’’ यवनिका ने गुस्से में फोन काट दिया और फफकफफक कर रोने लगी.

मुकेश भी अपनी बेबसी पर रो रहा था. उसे लगा कि अगर उस के पास अच्छा रोजगार होता, तो यवनिका उस की होती. वह शान से उसे दुलहन बना कर अपने घर लाता. वह अब किस मुंह से यवनिका के पापा से यवनिका का हाथ मांगने जाए? प्यार में मजबूर कर के यवनिका को लाना उस की जिंदगी को बरबाद करने के सिवा क्या होगा? क्या प्यार का मतलब यही है? नहींनहीं… किसी की जिंदगी को बरबाद करना प्यार नहीं है.

कुछ दिनों के बाद यवनिका की इनकम टैक्स अफसर दौलत साल्वे के साथ धूमधाम से शादी हो गई. वह अपने पति के साथ मुंबई में रहने लगी. सभी सुख और आराम उस की जिंदगी में थे. उसे मुकेश की याद अभी भी आती थी, लेकिन सिर्फ चिढ़ और नफरत के साथ. उस ने तो मुकेश को अपनी जिंदगी से निकाल ही फेंका था.

यवनिका की किस्मत देखिए कि शादी के कुछ ही महीनों बाद वह उसी संस्थान में असिस्टैंट प्रोफैसर बन गई, जहां से उस ने पीएचडी की थी. वहां पहुंच कर यवनिका को मुकेश के साथ बिताए पुराने दिन याद आए, लेकिन उन में अब सिर्फ नफरत का धुआं था. वे दिन अब उसे काटने को दौड़ते थे.

यवनिका की जिंदगी खुशियों से लबालब भरी थी. पति दौलत साल्वे उसे बहुत प्यार करता था और उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए उतावला रहता था. यवनिका की शानदार नौकरी लगने से उस की खुशियां आसमान छू रही थीं.

खुशियों से भरी जिंदगी के इसी मुहाने पर तकरीबन एक साल के बाद एक दिन… मुकेश यवनिका के सामने आ गया. उसे सामने देख कर पहले तो वह हैरान रह गई और फिर बिना सोचेसमझे नफरत की आग के साथ तिड़क कर बोली, ‘‘तुम और यहां…?’’

‘‘हां, मैं यवनिका, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना चौंक क्यों गई हो?’’

‘‘अब क्या लेने आए हो यहां? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है. मैं अब शादीशुदा हूं.’’

‘‘यवनिका, तुम्हें तुम्हारी शादी की बधाई. बस, मैं तो तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि मेरी भी यहां असिस्टैंट प्रोफैसर के पद पर नौकरी लग गई है.’’

‘‘क्या? क्या कहा… तुम यहां असिस्टैंट प्रोफैसर बन गए हो? और वह चुड़ैल, डायन कहां है, जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा?’’

‘‘यवनिका, फिर वही पागलपन. मेरी जिंदगी में तुम्हारे सिवा कोई दूसरी थी ही नहीं. तुम ने बेवजह ही मुझ पर शक किया है.’’

‘‘तुम मर्द सफेद झूठ बोलने में माहिर होते हो और औरतों को निहायत ही बेवकूफ समझते हो, नहीं तो दुनिया का कोई भी प्रेमी अपनी प्रेमिका की शादी होते हुए नहीं देख सकता.

‘‘तुम उस डायन को कहीं भी छिपा लो, जिस ने तुम्हें मुझ से छीना है, लेकिन एक दिन तो वह सामने आएगी ही. मैं भी देखती हूं कि वह कितनी हुस्न की परी है.’’

अभी यवनिका और मुकेश की बात चल ही रही थी कि तभी उधर से प्रोफैसर राजीव खंडेलवाल आ गए और उन्हें अपनी बातें बंद करनी पड़ीं.

कुछ ही दिनों में यवनिका को यकीन हो गया कि मुकेश की जिंदगी में कोई दूसरी नहीं है. तब एक दिन यवनिका ने मुकेश से अपने दिल की बात कही, ‘‘मुकेश, भले ही मेरा पति मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आने के लिए तैयार हूं, बस अपने प्यार की खातिर.’’

यह सुन कर मुकेश हंसा और फिर बोला, ‘‘यवनिका, मैं ने अभी तक किताबों में ही पढ़ा था कि औरत प्यार में पागल हो जाती है और आज देख भी रहा हूं.’’

‘‘मुकेश, तुम मर्द क्या समझोगे औरत के दिल को? ये पत्थरदिल मर्दों की दुनिया औरत के कोमल दिल को समझ पाती, तो यह दुनिया ही अलग होती. छोड़ो इन सब बातों को, अब इन में क्या रखा है. मुकेश, तुम अपना फैसला सुनाओ.’’

‘‘यवनिका, यह सही है कि तुम्हारा फैसला बहुत बड़ा है. एक औरत के लिए प्यार सब से कीमती चीज है. इस के लिए वह अपनी इज्जत और समाज की भी परवाह नहीं करती है, लेकिन जिस मर्द को तुम इतनी आसानी से पत्थरदिल कह देती हो, वह ऐसा होता नहीं है. वह कम जज्बाती होता है और दुनियादारी की परवाह करने वाला ज्यादा होता है. मैं चाहूं तो जज्बातों में बह कर तुम्हें भगा ले जाऊं, लेकिन इस के बाद जो होगा, उस की तुम ने कल्पना भी नहीं की है.’’

‘‘क्या होगा, जरा मैं भी तो सुनूं?’’

‘‘सब से पहले तो यह समाज तुम्हें कलंकिनी कहेगा. तुम्हारा पति अंदर तक टूट जाएगा और तुम्हारे मांबाप कभी तुम्हें माफ नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘मुकेश, तुम डरपोक हो. इन बातों से मुझे डराओ मत. अपना फैसला सुनाओ. हां या न?’’

‘‘यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि तुम्हारी जिंदगी में भूचाल पैदा कर दूं और दुनिया हम पर थूके. मर्द जिंदगी में एक ही बार प्यार करता है, चाहे शादी वह हजार कर ले. औरत भी एक मर्द के दिल को नहीं समझ सकती. तुम मेरा फैसला सुनना चाहती हो तो सुनो… मैं ने तो जिंदगीभर कुंआरा रहने का फैसला किया है.’’

यह सुन कर यवनिका अपना सिर पकड़ कर बैठ गई, फिर अचानक से बोली, ‘‘इसीलिए… इसीलिए, मुझे तुम से नफरत हो गई है… जिद्दी आदमी. न तुम ने तब मेरी बात मानी और न अब मान रहे हो. आखिर क्यों रहोगे तुम सारी जिंदगी कुंआरे, बस मुझ पर अहसान चढ़ाने के लिए? लेकिन, मैं तो कह रही हूं कि अब भी मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘देखो यवनिका, मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं ने तुम से प्यार किया था और अब किसी और से नहीं कर सकता. एक मर्द यह काम कर ही नहीं सकता कि वह एक बार में 2 औरतों से प्यार करे.

‘‘हां, औरतों को कुदरत ने यह ताकत बख्शी है कि वह एक बार में एक से ज्यादा मर्दों से प्यार कर सकती है और जब मैं यह बात कह रहा हूं, तो मैं प्यार की बात कर रहा हूं, हवस की नहीं.’’

‘‘तुम से बातों में मैं नहीं जीत सकती मुकेश.’’

‘‘यवनिका, आखिरी बात… प्यार का मतलब सिर्फ शादी करना नहीं होता है. मैं तुम्हारे शरीर को छुए बगैर भी तुम से प्यार कर सकता हूं और जिंदगीभर कर सकता हूं,’’ कह कर मुकेश वहां से उठ कर चला गया.

यवनिका के मन में कई सवाल उठे और खत्म भी हो गए. लेकिन यह सुन कर उसे संतुष्टि हुई कि मुकेश उसे जिंदगीभर प्यार करता रहेगा. बाकी सब बातें यवनिका के लिए छोटी हो गई थीं. वह होंठों पर मुसकान लिए अपनी कार की ओर बढ़ गई.

सच में मुकेश उसी संस्थान में रहा. 26 साल गुजर गए थे, लेकिन न तो उस ने शादी की और न ही उस का किसी लड़की या औरत से कोई अफेयर सुना गया. ऐसा लगता था मानो यवनिका से उस ने अपने प्यार को शिद्दत से निभाया था.

यवनिका ने एक दिन मुकेश को बताया, ‘‘मुकेश, अब हम बुढ़ापे की दहलीज पर हैं और मै इतिहास को दोहराते देख रही हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं यवनिका…’’

‘‘मेरे बेटे दुष्यंत की गर्लफ्रैंड ने बोल दिया है कि अगर दुष्यंत की नौकरी नहीं लगी, तो उस के पापा उस की शादी कहीं और कर देंगे. तुम तो जानते ही हो कि दुष्यंत ने अपनी गर्लफैं्रड सोफिया के साथ यहीं से पीएचडी की है. अब तुम्हें तो सब पता ही है कि यहां नौकरी एकदम से तो मिलती नहीं है. कोई वैकेंसी ही नहीं है.’’

मुकेश ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, ‘‘अगर मान लो कि वैकेंसी क्रिएट हो जाए, तब…?’’

‘‘मैं ने डायरैक्टर से बात की है. वे दुष्यंत को इसी कंडीशन पर यहीं लगवाने को तैयार हैं.’’

‘‘तो यवनिका, तुम बिलकुल चिंता मत करो. कल ही यहां एक वैकेंसी क्रिएट होगी.’’

यह सुन कर यवनिका बड़ी जोर से हंसी और बोली, ‘‘मुकेश, या तो तुम बुढ़ापे में सठिया गए हो या फिर तुम ने कोई जादूवादू सीख लिया है. भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कल ही यहां वैकेंसी क्रिएट हो जाएगी?’’

‘‘मैं कह रहा हूं न, इसलिए ऐसा होगा.’’

‘‘अच्छा जादूगर साहब, आप की बात मान लेते हैं.’’

अगले दिन जैसे ही यवनिका को पता चला कि मुकेश इस्तीफा दे कर अपने गांव चला गया है, तो वह दौड़ते हुए डायरैक्टर के कमरे में पहुंच गई. आज उस ने डायरैक्टर से अंदर आने की इजाजत भी नहीं मांगी.

वह हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘सर, क्या सचमुच मुकेश सर इस्तीफा दे कर अपने गांव चले गए हैं?’’

डायरैक्टर यवनिका की भावनाओं को समझेते थे. उन के ‘हां’ में जवाब देते ही यवनिका ऐसे बिलख कर रो पड़ी, जैसा उस का अपना कोई सगा मर गया हो.

मुकेश का जाना यवनिका के लिए किसी हादसे से कम नहीं था. तन भले ही यवनिका ने अपने पति के नाम कर दिया था, लेकिन मन तो उस का मुकेश में ही रमा था.

यवनिका के होंठों पर बस 2 ही शब्द थरथराए, ‘‘पागल आदमी.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें