Romantic Hindi Story: कहते हैं कि जब कोई इश्क में होता है, तो उसे रंगीन ख्वाबों के नए पंख लग जाते हैं और वह अपनी ही बनाई दुनिया के आसमान में उड़ने लगता है. कल्पना और अजीत के इश्क की यह उड़ान उन्हें दिल्ली से भोपाल ले आई थी.

दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में पड़ोसी रहे कल्पना और अजीत के लिए भोपाल जाने की यह राह कहने को आसान थी, पर वहां उन के प्यार का एक अलहदा ही इम्तिहान होना था.

हुआ यों कि भोपाल आने से पहले दिल्ली में एक रात अजीत ने कल्पना को मोबाइल फोन पर बताया, ‘‘कल्पू, अब हमें अपने प्लान को आखिरी अंजाम तक ले जाना होगा. मुझे लगता है कि हम दोनों के घर वालों को हमारे प्यार की भनक लग गई है और इस से पहले कि वे जातपांत का वही पुराना राग अलापें, हमें यहां से कहीं दूर चले जाना होगा.’’

‘पर हम जाएंगे कहां?’ कल्पना ने सीधा सवाल किया.

‘‘देखो, हम इश्क के मारों की तरह सीधा मुंबई तो भागेंगे नहीं,’’ अजीत ने कहा.

‘तो मेरा सपनों का राजकुमार मुझे किस शहर में ले जा कर अपने दिल और घर की रानी बनाएगा?’ कल्पना ने ठिठोली की.

‘‘कल्पू, मैं ने सोच लिया है कि हम दोनों भोपाल चलेंगे. वहां मेरा एक दोस्त संजीव रहता है. वह हम दोनों को कोई काम भी दिला देगा और हमारी कोर्ट मैरिज भी करा देगा,’’ अजीत ने कहा.

‘ठीक है, मैं सारी तैयारी कर के रखूंगी,’ कल्पना ने कहा.

24 साल का अजीत ग्रेजुएशन कर चुका था और पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था. वह बहुत सुलझा हुआ नौजवान था. वह हद से ज्यादा मेहनती भी था. रंगरूप से भी वह ठीक था. बस, एक ही कमी थी कि वह दलित समाज से था और ब्राह्मणों की लड़की कल्पना को अपना दिल दे बैठा था.

दूसरी तरफ कल्पना 22 साल की बहुत खूबसूरत लड़की थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी और उन की लाड़ली भी. पर वह अपने मांबाप को अजीत के बारे में बताने से डरती थी.

बहरहाल, एक दिन तय समय पर अजीत और कल्पना अपने घर में बिना बताए निकले और भोपाल की ट्रेन में बैठ कर दिल्ली के लिए जैसे हमेशा के लिए पराए हो गए.

भोपाल जंक्शन पर अजीत का दोस्त संजीव मिला और उन्हें अपने साथ घर ले गया. संजीव काफी साल से भोपाल में अकेला रह रहा था. उस का घर बड़ा तालाब के पास ही था.

जब अजीत और कल्पना ने पहली बार बड़ा तालाब देखा, तो कल्पना के मुंह से अचानक निकला, ‘‘संजीव, यह तालाब है या कोई समुद्र. मुझे तो लगा कि गांव का कोई तालाब होगा, थोड़ा सा बड़ा होगा, पर यह तो बहुत ज्यादा बड़ा है यार…’’

‘‘यह इनसानों द्वारा बनाई गई एक बहुत बड़ी झोल है और लगता है कि कोई समुद्री छोर है. ऐसा माना जाता है कि बड़ा तालाब को 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था. तब इस इलाके में पीने की पानी की बड़ी समस्या थी.

‘‘भोपाल आज भी इसी तालाब का पानी पीता है. यही नहीं, बड़ा तालाब आज भोपाल के लोगों के लिए जीवनरेखा के साथसाथ मनोरंजन और रोजगार का जरीया भी बन गया है,’’ संजीव ने बताया.

‘‘मुझे तो भोपाल शहर बड़ा अच्छा लगा. रास्ते में जब हम आटोरिकशा में आ रहे थे तो ढलान और चढ़ाई वाली बलखाती सड़कें देख कर मैं तो रोमांचित हो गई,’’ कल्पना ने कहा.

‘‘यह शहर जितना खूबसूरत है, उस से भी ज्यादा खूबसूरत यहां के लोग हैं. और अब तो तुम भी यहां आ गई हो, तो हमारे शहर का रुतबा और ज्यादा बढ़ गया है,’’ संजीव कल्पना को देख कर बोला.

‘‘अगर तेरी फ्लर्टिंग खत्म हो गई हो तो हमें वह मकान भी दिखा दे, जहां हमारे रहने का इंतजाम किया गया है,’’ अजीत कल्पना को अपनी तरफ खींच कर बोला.

संजीव ने अपने ही इलाके में एक वन बीएचके फ्लैट दिखाया, जो पहली मंजिल पर बना था. ग्राउंड फ्लोर पर मकान मालिक अपने परिवार के साथ रहता था.

कल्पना और अजीत को वह मकान पसंद आया. उन्होंने अपना सामान वहां रखा. सब से अच्छी बात यह थी कि उस फ्लैट में मकान मालिक ने रोजमर्रा का जरूरी सामान रखा हुआ था, जिस का इस्तेमाल वे दोनों कर सकते थे.

ऊपर से तो कल्पना और अजीत बहुत खुश थे, पर मन ही मन वे डरे हुए थे. कल्पना जानती थी कि उस के पापा ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस थाने में लिखवा दी होगी और आज नहीं तो कल उन्हें पता चल जाएगा कि अजीत भी अपने घर से गायब है.

हालांकि, उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन में नए सिमकार्ड भी डलवा लिए थे, पर उन की हिम्मत नहीं हो पा रही थी अपनेअपने घर बात करने की.

संजीव अपने मकान पर जा चुका था. उस का अगला काम था कल्पना और अजीत को कहीं कोई काम दिलाना और फिर उन की कोर्ट मैरिज करवाने का इंतजाम करना.

‘‘कल्पू, हम ने सही फैसला लिया है न? अगर तुम चाहो तो हम वापस जा कर अपने बड़ों से माफी मांग सकते हैं,’’ अजीत ने रोटी का कौर कल्पना को खिलाते हुए कहा.

‘‘सही या गलत का तो पता नहीं, पर अब जब हम यहां आ ही गए हैं, तो खुद को तो यह चुनौती दे ही सकते हैं कि चाहे कैसे भी हालात हों, हमें हिम्मत नहीं हारनी है,’’ कल्पना बोली.

कल्पना और अजीत दोनों अच्छे खातेपीते घर के थे. उन के पास इतने पैसे तो थे कि 2 महीने आराम से भोपाल में गुजार दें, पर अगर उन्हें जिंदगीभर साथ रहना था, तो सिर्फ प्यार की किश्ती उन का बेड़ा पार नहीं कर सकती थी. उन्हें कड़ी मेहनत करनी थी और जो भी काम मिलता, उस में अपना सबकुछ झोंक
देना था.

अगले दिन संजीव अजीत को एक अखबार एजेंट करीम मियां के पास ले गया. करीम मियां इस धंधे के पुराने खिलाड़ी थे. उन्होंने अजीत से कहा, ‘‘देखो बरखुरदार, तुम अच्छेखासे पढ़ेलिखे हो, पर फिलहाल मैं तुम्हें सुबह घरघर अखबार डालने का काम दिलवा सकता हूं. सुबह 2 घंटे का काम है. 2,000 रुपए महीना मिल जाएंगे. उस के बाद तुम कोई दूसरा धंधा भी पकड़ सकते हो.’’

‘‘करीम मियां, काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. मुझे अखबार बांटने में कोई परेशानी नहीं है. पर मेरे पास कोई साइकिल नहीं है और मैं भोपाल में नया हूं,’’ अजीत बोला.

‘‘मुझे पता है बेटा. संजीव ने मु?ो सब बता दिया है. साइकिल तो मैं तुम्हें दे दूंगा और जहां तक अखबार बांटने के इलाके का सवाल है, तो मेरा एक छोकरा तुम्हें वे सारे घर दिखा देगा, जहां तुम्हें अखबार डालना है,’’ करीम मियां ने कहा.

अजीत को साइकिल मिल गई और उसे अगली सुबह से अपनी नई नौकरी पर लग जाना था. कल्पना खुश हुई कि चलो एक को तो नौकरी मिली.

‘‘यार, मैं सोच रहा हूं कि सुबह अखबार बांटने के बाद किसी दुकान पर कोई छोटीमोटी नौकरी भी पकड़ लूंगा. इस से हम दोनों अंटी से और ज्यादा मजबूत हो जाएंगे,’’ अजीत बोला.

‘‘सुनो अजीत, मैं ने कल्पना के लिए एक जगह बात की है. वह इलैक्ट्रोनिक्स आइटम का बड़ा शोरूम है, जहां लड़कियां पैकिंग करती हैं. उस शोरूम का मालिक बड़ा ही शरीफ है.

‘‘सब से अच्छी बात तो यह है कि वह शोरूम मेरे औफिस के ही नजदीक है. मैं ही सुबह कल्पना को अपनी बाइक से ले जाऊंगा और फिर शाम को वापस ले आऊंगा. महीने के 10,000 रुपए मिलेंगे,’’ संजीव बोला.

‘‘यह तो बहुत अच्छी खबर है. मैं घर पर अकेले क्या करती… कुछ पैसा और जुड़ेगा तो हम जल्दी सैटल हो कर शादी भी कर लेंगे,’’ कल्पना ने खुश हो कर कहा.

अगले दिन अजीत सुबह 5 बजे अपनी साइकिल ले कर करीम मियां के पास निकल गया. इधर, 8 बजे के आसपास संजीव कल्पना को ले कर इलैक्ट्रोनिक्स सामान के शोरूम में ले गया.

कल्पना को उसी दिन से काम मिल गया. सुबह 9 बजे से शाम के 6 बजे तक ड्यूटी थी. शाम को 6 बजे संजीव उसे अपनी बाइक से घर वापस ले आया.

घर पर अजीत मौजूद था. वह बोला, ‘‘कल्पू, कैसा रहा आज का दिन?’’

‘‘एकदम बढि़या. पैकिंग करने में ज्यादा दिक्कत नहीं है. मैं सोच रही हूं कि अगर मालिक मुझे ओवरटाइम भी करने दे तो मैं पैकिंग के अलावा वहां के और भी तमाम काम सीखना चाहूंगी, जैसे सेल्स वाले क्या करते हैं, टैलीविजन वगैरह सामान बेचने की कला कैसे आती है,’’ कल्पना ने अपने मन की बात रखी.

‘‘मुझे भी एक दुकान के बाहर मोबाइल फोन के कवर बेचने वाले अंकल ने नौकरी पर रख लिया है. 8,000 रुपए महीना देंगे. सुबह 8 बजे तक अखबार का काम खत्म, उस के बाद मोबाइल कवर बेचने का धंधा.

‘‘मुझे मोबाइल फोन की सारी सैटिंग्स पता हैं, किसी को कोई दिक्कत आएगी, तो उस की समस्या भी सुलझा दूंगा,’’ अजीत बोला.

‘‘फिर तो मेरी पार्टी बनती है. अभी बड़ा तालाब के सामने बने रैस्टोरैंट में चलते हैं और चाइनीज खाते हैं,’’ संजीव बोला.

वे तीनों बाहर खाना खाने चले गए. जब कल्पना और अजीत वापस घर आए, तो कल्पना बोली, ‘‘यार, वैसे तो सब सही जा रहा है, पर अभी भी एक अनजाना डर मन में है कि अगर हमारे घर वालों को पता चल गया, तो क्या होगा…’’

‘‘तुम सही कह रही हो. सारा दिन मुझे बस यही खयाल रहता है कि अगर उन्होंने तुम्हें ढूंढ़ लिया और जबरदस्ती अपने साथ ले गए, तो मेरा क्या होगा…’’ अजीत बोला.

‘‘क्यों न हम यहां के थाने में शिकायत लिखवा दें कि हम दोनों बालिग हैं और अपनी मरजी से यहां रहते हैं. अगर हमें कुछ खतरा महसूस होता है, तो पुलिस को हमारी हिफाजत करनी होगी,’’ कल्पना ने सु?ाव दिया.

‘‘इस सब का एक ही हल है और वह है हमारी कोर्ट मैरिज. हम कल ही अर्जी दाखिल कर देते हैं और मंजूरी मिलते ही शादी कर लेंगे,’’ अजीत बोला.

हुआ भी यही. तकरीबन 2 महीने बाद अजीत और कल्पना ने शादी कर ली. संजीव ने सारा इंतजाम किया था. इसी तरह देखतेदेखते 6 महीने गुजर गए.

अजीत और कल्पना अपनी नौकरी में जैसे खो गए थे. वे दोनों बहुत मेहनती थे और रोजाना 15 घंटे अपने काम को देते थे.

घर वापस आते तो बहुत ज्यादा थके होते थे. खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया. इस से उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी नीरस होने लगी थी.

शायद यही वजह थी कि कल्पना अब संजीव के करीब हो रही थी या संजीव को ऐसा महसूस हो रहा था. वह शुरू से ही कल्पना की खूबसूरती का कायल था और उसे घर से शोरूम और शोरूम से घर लाने ले जाने में और ज्यादा जुड़ने लगा था.

कभीकभार जब कल्पना बहुत ज्यादा थकी होती थी, तब वह बाइक पर संजीव के कंधे से लग कर ऊंघने लगती थी. ऐसा कई बार अजीत ने भी देखा था, पर उसे कल्पना पर यकीन था. पर उसे कोई रिस्क भी नहीं लेना था.

एक दिन रविवार को अजीत और कल्पना बड़ा तालाब के सामने बैठे सुहानी शाम का मजा ले रहे थे.

अजीत ने कल्पना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘क्या तुम इस शादी से खुश हो? मैं जानता हूं कि यह अनजाना शहर है और मेरे सिवा तुम्हारा यहां कोई नहीं है.

‘‘हम दोनों मजबूरी में ऐसा काम कर रहे हैं, जो हमारी पढ़ाई से कमतर है. जो खुशियां मुझे तुम्हें देनी चाहिए, वे मैं फिलहाल नहीं दे पा रहा हूं. कल्पू, तुम मुझे छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी न?’’

अजीत के मुंह से अचानक यह सब सुन कर कल्पना एकदम हैरान रह गई. उस की आंखों में आंसू आ गए.

वह बोली, ‘‘अजीत, यह ठीक है कि हमारे दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं और जो ख्वाब हम ने देखे थे, वे शायद इस हकीकत से ज्यादा हसीन थे, पर प्यार करने का मतलब यह नहीं होता कि दुख के समय में साथ छोड़ दो.

‘‘मैं इसलिए ज्यादा काम नहीं कर रही हूं कि मुझे घर काटने को दौड़ता है या मुझे ज्यादा पैसे चाहिए, बल्कि मैं चाहती हूं कि काम और मेहनत के मामले में मैं किसी भी तरह तुम से उन्नीस न रहूं. मैं हर हाल में तुम्हारे साथ खुश हूं और हमेशा रहूंगी.’’

अजीत के मन से शक के बादल छंट गए. इसी बीच एक दिन अजीत ने संजीव से कहा, ‘‘यार, तुम एक बार मेरे घर फोन कर के वहां के हालात के बारे में जानो. उन्हें यह जताना कि जैसे तुम्हें पता ही नहीं है कि मैं यहां तुम्हारे पास हूं.’’

‘‘पर अगर उन्हें भनक लग गई तो?’’ संजीव ने कहा.

‘‘आज नहीं तो कल उन्हें पता चल ही जाएगा. हम कब तक यों छिप कर रहेंगे. कल्पना कहती नहीं है, पर उसे अपने मम्मीपापा की बहुत याद सताती है,’’ अजीत बोला.

अगले दिन संजीव ने अजीत के घर फोन लगाया और बोला, ‘‘अंकल, मैं भोपाल से अजीत का दोस्त संजीव बोल रहा हूं. बड़े दिन से अजीत से बात नहीं हो पाई है. सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटा, अजीत तो कई महीने से गायब है. हमारे पड़ोसी ने उन की बेटी को अगवा करने के इलजाम में अजीत का नाम पुलिस थाने में लिखवा दिया है. पता नहीं वे दोनों कहां होंगे… साथ हैं भी या नहीं…’’

यह सुनते ही संजीव के मन में एक बार आया कि वह सब सचसच बता दे, पर कल्पना के बारे में सोच कर वह चुप रह गया.

जब अजीत के पापा ने अपनी पत्नी को संजीव के फोन के बारे में बताया, तो उन्हें शक हुआ कि कहीं अजीत और कल्पना भोपाल में तो नहीं हैं. वे तभी कड़ा मन कर के कल्पना के घर गईं और फोन वाली बात बता दी.

अगले ही दिन अजीत और कल्पना के मांबाप भोपाल जा पहुंचे और संजीव पर दबाव डालने और पुलिस की धमकी देने के बाद अजीत और कल्पना के मकान का पता उगलवा लिया.

घर की डोरबैल बजी. कल्पना को लगा कि संजीव आया होगा. उस ने दरवाजा खोला और सामने मम्मीपापा को देख कर उस का रंग सफेद पड़ गया.

तब तक अजीत भी दरवाजे पर आ गया था. उन्हें देख कर पहले तो वह सकपकाया, पर बाद में धीरे से बोला, ‘‘अंदर आइए.’’

उन सब के साथ संजीव भी था. वह इस सब के लिए खुद को अपराधी सा महसूस कर रहा था.

पहले तो कल्पना के पापा को बड़ा गुस्सा आया, पर जब उन्हें पता चला कि अपनी गृहस्थी को बेहतर करने के लिए वे दोनों इतनी ज्यादा कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो वे मन ही मन खुश भी हुए.

‘‘मैं न तो इस शादी से खुश हूं और न ही तुम दोनों से नाराज हूं. किसी मांबाप को गुस्सा तब आता है, जब उन की औलाद भाग कर शादी तो कर लेती है, पर दुनिया के थपेड़े खा कर उन का प्यार चार दिन में ही हवाहवाई हो जाता है.

‘‘तुम दोनों खुश रहो और हमेशा यहीं भोपाल में रहना, मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूं, क्योंकि इस बुढ़ापे में मैं अपने खानदान और चार लोगों से यह नहीं सुनना चाहता कि मेरी बेटी ने छोटी जाति के लड़के से शादी कर के हमारी नाक कटवा दी.

‘‘मैं कुछ पैसे तुम्हें दे दूंगा और वहां पुलिस में दर्ज कराई गई अपनी शिकायत रद्द करवा दूंगा. मुझे लगता है कि अजीत के मांबाप को भी मेरा यह आइडिया सही लगेगा.’’

यह सुन कर अजीत के पापा की तो मानो जान में जान आई. उन के बोलने से पहले ही कल्पना ने कहा, ‘‘हमारा मकसद आप लोगों की बेइज्जती कराना नहीं था. यहां संजीव ने हमें सहारा दे कर हमारा हौसला बढ़ाया था. यह हमारा सच्चा दोस्त है.

‘‘और हां, हम दोनों ने शादी कर के कोई गुनाह नहीं किया है और अगर आप को लगता है कि हम यहीं भोपाल में रहें, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है. हम यहीं अपनी गृहस्थी बसाएंगे.’’

‘‘अजीत बेटा, मैं जानता हूं कि तुम एक समझदार बच्चे हो. मैं और तुम्हारी मां भी यही चाहते हैं कि तुम यहां अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करो,’’ अजीत के पापा ने कहा. वे सब एक रात वहां रहे और फिर अगले दिन वहां से चले गए. उन्होंने कुछ पैसे भी अपने बच्चों के अकाउंट में डलवा दिए थे.

इस घटना को 6 साल बीत गए थे. एक दिन अजीत और कल्पना के पापा के पास एक ह्वाट्सएप आया, जिस में एक इनविटेशन था. अजीत और कल्पना ने अपनी कड़ी मेहनत से इलैक्ट्रोनिक्स के सामान का अपना शोरूम खोला था. अगले रविवार को उस की ओपनिंग थी.

वे चारों दोबारा भोपाल गए. अजीत और कल्पना बहुत खुश हुए. उन दोनों की मम्मियों ने उस शोरूम का उद्घाटन किया, जिस का नाम था ‘कल्पना इलैक्ट्रोनिक्स’. अजीत और कल्पना की कड़ी मेहनत का सुखद नतीजा. Romantic Hindi Story

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