Short Hindi Story: गांव पिपलिया खुर्द, जिला सतना. मिट्टी के घर, टूटी पगडंडी और रात के अंधेरे में अब भी लोग सड़कों पर नहीं निकलते. वहीं रहती थी सीमा, एक कोरी जात की लड़की. पिता रामभरोसे दलित टोले में जूते बनाने का काम करते थे. मां की बचपन में ही मौत हो गई थी.

‘बेटी हो कर पढ़ाई करेगी? तू तो हाथ का काम सीख, यही तेरा भविष्य है,’ बस्ती के लोग अकसर कहते.

मगर सीमा ने यह मान लिया था कि उस की जात उस की नियति नहीं है. गांव के सरकारी स्कूल से उस ने 10वीं जमात पास की, लेकिन असली लड़ाई तो उस के बाद शुरू हुई.

जब इंटर के लिए शहर जाना चाहा, तो पंचायत ने विरोध किया, ‘लड़की है, अकेली जाएगी शहर? और पढ़लिख कर करेगी क्या?’

पिता ने भी हाथ खड़े कर दिए, ‘‘बिटिया, हम गरीब हैं, छोटी जात वाले हैं, ये बड़े सपने हमें शोभा नहीं देते.’’

सीमा ने तब पहली बार सीधे आंखों में आंख डाल कर कहा, ‘‘बाबूजी, मैं पढूंगी. चाहे भूखी रहूं, लेकिन पढ़ाई नहीं छोडूंगी.’’

वह खेतों में मजदूरी करने लगी. दिन में स्कूल, रात में चूल्हा. शहर की गलियों में झाड़ू भी लगाई, लेकिन किताबों का साथ नहीं छोड़ा. धीरेधीरे, वह बीए, फिर एमए तक पहुंच गई.

कालेज में अकसर टीचर भी ताना मारते, ‘तुम जैसी जात की लड़कियां यहां क्यों आती हैं? टीचर बनोगी क्या?’

सीमा मुसकरा कर कहती, ‘‘नहीं सर, अफसर बनूंगी.’’

आईएएस की कोचिंग करनी थी, मगर पैसे नहीं थे. उस ने सरकारी लाइब्रेरी में बैठ कर नोट्स बनाना शुरू किया. दिनभर न पढ़ पाने पर रात को शौचालय की सफाई के बाद बल्ब की रोशनी में पढ़ती थी.

और एक दिन जब उस का नाम अखबार में आया, ‘सीमा बंसोड़, अनुसूचित जाति वर्ग से, टौपर’ तो उसी गांव की पंचायत, जो कभी विरोध करती थी, अब मिठाई बांट रही थी.

सीमा ने अपना पहला भाषण उसी स्कूल में दिया, जहां उस के नाम से कभी टीचर मुंह चिढ़ाते थे.

‘‘जात वह दीवार है, जिसे मैं गिरा नहीं सकी, लेकिन उस पर चढ़ कर मैं ने उड़ना जरूर सीख लिया.’’

अब वही लोग, जिन की बेटियां कभी स्कूल नहीं जाती थीं, सीमा को देख कर पूछते, ‘हमारी बेटी भी अफसर बन सकती है न?’

सीमा मुसकरा कर कहती, ‘‘अगर जात, गरीबी और लड़कपन एकसाथ हो सकते हैं, तो जीत भी साथ हो
सकती है.’’ Short Hindi Story

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