चुनाव के सट्टा बाजार में कौन गिरा, कौन उठा

चुनाव हो या खेल सट्टा बाजार का अपना अलग महत्व होता है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी सट्टा बाजार का अपना अलग अंदाज चल रहा है. उत्तर प्रदेश के विषय गुजरात, मुम्बई, मध्य प्रदेश और दिल्ली के सट्टा बाजार में मुख्य टक्कर सपा और भाजपा के बीच दिखाई जा रही है. इस सट्टा के बाजार में सबसे अधिक झटका बहुजन समाज पार्टी को लगा है. जहां प्रदेश में लोग बसपा को सत्ता का मुख्य दावेदार मान रहे थे वही सट्टा बाजार में बसपा धडाम से गिर कर तीसरे नम्बर पर हांफ रही है. सट्टा बाजार में पंजाब में आप को सबसे आगे और भाजपा-अकाली को कांग्रेस के बाद तीसरे नम्बर का भाव मिला है. सट्टा बाजार में भाजपा गोवा में सरकार बनाते दिख रही है वहां कांग्रेस दूसरे और आप पार्टी तीसरे नम्बर पर है. उत्तराखंड में सट्टा ने भाजपा को सत्ता के करीब माना है. कांग्रेस और बसपा को दूसरे तीसरे नम्बर पर रखा है.

सट्टा बाजार के जानकार कहते हैं कि यहां पर भाव पलपल में बदलता रहता है. यहां का भाव सही तरह से चुनावी नतीजो का आकलन नहीं करता, वह चुनावी प्रचार, खबरें और लोगों की बातचीत से अंदाजा लगाता है. सबसे बड़ा सट्टा उत्तर प्रदेश में बनने वाली सरकार को लेकर लगा है. उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब और गोवा का नम्बर आता है. पहाडी राज्यों में केवल उत्तराखंड को थोडा बहुत महत्व इस बाजार में मिला है. मणिपुर का इस सट्टा बाजार में कोई जिक्र भी नहीं है. असल में सट्टा बाजार में जिसका भाव सबसे कम होता है अगर वह बडा उलटफेर करता है तो उस पर पैसा लगाने वालों को लाभ का सबसे अधिक होता है. उत्तर प्रदेश में बसपा को सबसे बड़ा खिलाडी माना जा रहा है जो उलटफेर करने में माहिर है. ऐसे में बसपा के भाव को सबसे कम रखा गया है. जिससे बसपा के पक्ष में सट्टा लगाने वालों को सबसे बड़ा मुनाफा हो सकता है.

राजनीतिक हलकों में बसपा को लेकर जानकार लोगों का उत्साह इसलिये खत्म हो गया है. सभी को लग रहा है कि वोटों के धुव्रीकरण के कारण बसपा को सबसे अधिक नुकसान होगा है. धर्म के मसले पर बसपा का दलित वर्ग भी भाजपा के साथ खडा हो जाता है. यही हालत सपा की भी है. सपा के यादव वर्ग को छोड़कर बाकी पिछडी जातियां धार्मिक धुव्रीकरण का शिकार होकर भाजपा के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं. यही कारण है कि बहुत सारी परेशानियों के बाद भी भाजपा केवल अपने प्रचार के बल पर सबसे आगे खड़ी नजर आ रही है.

उत्तर प्रदेश में नेताओं रूप में सीधा मुकाबला मायावती, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के बीच चल रहा है. नरेंद्र मोदी की केन्द्र सरकार की योजनाओं को घेरने का कोई काम सपा, बसपा और कांग्रेस के नेता नहीं कर पाये. नोटबंदी से लेकर बाकी किसी भी मसले पर यह लोग भाजपा को घेरने में सफल नहीं हुये. भाजपा ने राहुल और अखिलेश को निशाने पर लेकर प्रचार अभियान चलाया. भाजपा के मुकाबले सपा बसपा और कांग्रेस बहुत मुखर होकर काम नहीं कर पायें. इसका प्रभाव चुनाव प्रचार पर पड़ रहा है. अगर विरोधी दल भाजपा को मुद्दों पर घेर पाते तो भाजपा के लोग जुमलेबाजी करके नहीं निकल पाते. केवल आक्रामक प्रचार के बल पर ही भाजपा सबसे आगे दिख रही है. इस चुनाव में साफ दिख रहा है कि चुनाव प्रबंधन जीत के लिये सबसे जरूरी हो गया है.

लालू आए फिर रंग में, सबसे पहले मोदी को घेरा

चीन की हिस्सेदारी वाली कंपनी पेटीएम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते हुए लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि ऐसा कोई प्रधानमंत्री होता है क्या, जो दूसरे देश की कंपनी का प्रचार करते हुए कहता है कि पेटीएम कर लो पेटीएम. ठेठ लहजे में पेटीएम का मतलब समझाते हुए वे आगे कहते हैं कि पेटीएम यानी पे टू मी. मतलब, मुझे पैसा दो. ऐसा प्रधानमंत्री तो कभी देखा ही नहीं. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की गरिमा का तो खयाल रखना चाहिए.

राहुल गांधी के सामने नरेंद्र मोदी बौने दिखने लगे हैं. इसे साबित करने के लिए लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि वाराणसी की सभा में नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाई थी. उस के तुरंत बाद राहुल गांधी ने जौनपुर में सभा की थी, तो उस में ‘मोदी मुरदाबाद’ के नारे लगने लगे. राहुल गांधी ने बड़प्पन दिखाते हुए नारे लगाने वालों को रोक दिया. उन्होंने मुरदाबाद का नारा लगाने वालों से कहा कि नरेंद्र मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं और उन के खिलाफ ऐसा नारा नहीं लगाना चाहिए. विरोध विचारों का है और भारतीय जनता पार्टी को चुनाव से ही हराना है.

नोटबंदी का हाल भी नसबंदी जैसा ही होगा. नसबंदी की वजह से कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ गई थी और अब नोटबंदी की वजह से जनता भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकेगी. प्रधानमंत्री ने 90 फीसदी लोगों को गरीब बना दिया है.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ सभाएं, बैठकें, धरने वगैरह कर के लालू प्रसाद यादव एक बार फिर अपने पुराने रंग में लौटते नजर आने लगे हैं. देश और राज्य के मसलों पर वे खुल कर अपनी राय रखने लगे हैं और अपने वोटरों को नए सिरे से गोलबंद करने में लगे हैं. खुद को और अपनी पार्टी को नीतीश कुमार की छाया से निकालने की कवायद में लग गए हैं और पूरे ठसक के साथ जनता से रूबरू होने लगे हैं.

पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के सब से बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद लालू प्रसाद यादव ने अपने दोनों बेटों को नीतीश कुमार सरकार में मंत्री बनवा दिया और बेटी मीसा भारती को राज्यसभा में भेज कर आराम फरमा रहे थे.

पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने और कई मसलों पर उन के द्वारा नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के बाद उठी सियासी अटकलों के बीच लालू प्रसाद यादव फिर पुराने तेवर के साथ सियासी अखाड़े में उतर आए हैं.

नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने पर राष्ट्रीय जनता दल ने 28 दिसंबर, 2016 को महाधरना का आयोजन किया था, लेकिन उस में महागठबंधन के साथी दल नहीं पहुंचे.

गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने पहले ही नोटबंदी को सही करार दे कर इस से पल्ला झाड़ लिया, तो कांग्रेस ने उसी दिन पार्टी ‘स्थापना दिवस’ होने का बहाना बना कर इस महाधरने से कन्नी काट ली. इस के बाद भी लालू प्रसाद यादव ने अकेले अपने बूते भाजपा के खिलाफ हुंकार भरी और उस में काफी हद तक कामयाब भी रहे.

अब उन्हें यह महसूस हो गया है कि महागठबंधन के साथी जद (यू) और कांग्रेस से इतर उन्हें अपनी ताकत फिर से दिखाने का समय आ गया है. अब उन्होंने भाजपा के साथसाथ महागठबंधन में शामिल दलों से भी निबटने के लिए कमर कस ली है.

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पटना समेत बिहार के सभी 38 जिलों के हैडक्वार्टरों पर महाधरने का आयोजन किया था और उस की कामयाबी से खुश हो कर नए साल में नोटबंदी के खिलाफ बड़ी रैली के आयोजन का ऐलान भी कर डाला.

महागठबंधन के दूसरे साथियों के महाधरने में शामिल नहीं होने से नाराज लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि ईगो प्रोब्लम की वजह से सभी विरोधी दल एकजुट नहीं हो पा रहे हैं, जबकि गैरभाजपाई दलों की एक ही मंजिल है. सभी दल दिल्ली से भाजपा को उखाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं.

राजद को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने दूसरे दलों में गए राजद नेताओं की घर वापसी का दरवाजा खोल दिया है. अपनी पार्टी राजद के 20वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित जलसे में उन्होंने पार्टी छोड़ कर भागने वालों को दोबारा पार्टी में शामिल होने का खुला न्योता दिया. खास बात यह रही कि न्योते के साथसाथ उन्होंने धमकी भी दे डाली. उन्होंने साफ कहा कि जिसे राजद में  आना है, आ सकता है, पर आने के पहले अपनी आदतों को सुधार ले. पुरानी आदतों को सुधारने के बाद ही राजद में जगह मिलेगी.

सियासी हलकों में चर्चा है कि लालू प्रसाद यादव के बुलावे पर उन के कुछ पुराने दोस्तों का मन डोलने लगा है.

एक बार फिर पुराने तेवर में नजर आने वाले लालू प्रसाद यादव को अब अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का भी खासा खयाल आने लगा है, तभी तो उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की बैठक में उन की दुखती रग पर हाथ रखते हुए कहा कि जो अफसर राजद कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनेंगे, उन पर कार्यवाही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात कर के की जाएगी. सरकार में शामिल सभी दलों में सब से बड़ा दल होने के बाद भी राजद को दरकिनार रखा गया है. इस से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है.

लालू प्रसाद यादव ने कार्यकर्ताओं को आगाह करते हुए कहा कि भाजपा सरकार आरक्षण को खत्म करने की साजिश रच रही है. वह धर्म के नाम पर देश को तोड़ने में लगी हुई है. इस के साथ ही वह भाजपा को चुनौती देने वाले लहजे में कहते हैं, ‘‘ऐ भाजपा वालो, जब तक लालू के शरीर के खून का एक कतरा भी रहेगा, वह आरक्षण को खत्म नहीं होने देगा.’’

लालू प्रसाद यादव केंद्र की भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं गंवाते हैं. वे हर मौके पर केंद्र की मोदी सरकार पर भी जम कर तीर चलाते हैं. वे बारबार जोर दे कर अपने वोटरों से कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने अडानी का 2 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया. रिलायंस को फायदा पहुंचाया जा रहा है.

मोदी सरकार को अमीरों की सरकार करार देते हुए लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत है, नहीं तो गरीबों का जीना मुहाल हो जाएगा.

लालू प्रसाद यादव के पुराने रंग में लौटने की सब से बड़ी वजह यह भी है कि उन्हें नीतीश कुमार का अकेले दूसरे राज्यों में जा कर सभाएं करना और भाजपा और नरेंद्र मोदी पर निशाना साधना हजम नहीं हो रहा था. उन्होंने नीतीश कुमार की बेरुखी पर काफी दिनों तक चुप्पी साधे रखी, पर अब उन्हें लगने लगा है कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है. अब खुल कर सामने आने का समय आ गया है.

राजद के थिंक टैंक माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह कहते हैं कि अपने सियासी फायदे के लिए नीतीश कुमार महागठबंधन के दूसरे साथियों की अनदेखी कर रहे हैं. उन्होंने नीतीश कुमार से कुछ तल्ख सवाल पूछे हैं, ‘आखिर उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार किस ने बना दिया? किस हैसियत से वे मिशन-2019 की बात कर रहे हैं? क्या अकेले घूम कर नीतीश कुमार सैकुलर ताकतों को कमजोर और सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत नहीं कर रहे हैं?

दूसरे राज्यों में सभाएं करने से पहले नीतीश कुमार को क्या सहयोगी दलों से बात नहीं करनी चाहिए थी? क्या उन्हें भरोसे में नहीं लेना चाहिए था?’ वगैरह.

अभी तक राजद को इन सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं.लालू प्रसाद यादव इस बात से भी नाराज बताए जाते हैं कि नीतीश कुमार उन से कोई सलाहमशवरा किए बगैर उत्तर प्रदेश के बनारस, कानपुर, नोएडा और लखनऊ में अकेले ही लगातार रैलियां करते रहे. इस मामले में महागठबंधन को भरोसे में नहीं लिया गया.

गौरतलब है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाति की खासी आबादी है और नीतीश कुमार की नजर उन पर गड़ी हुई है. उस के बहाने वे वहां अपना जनाधार बढ़ाने की चाहत रखते हैं.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच तनातनी की हवा के तूफान में बदलने से पहले लालू प्रसाद यादव बड़े भाई की भूमिका में खुल कर सामने आ गए. राजद और जद (यू) के नेताओं के बेवजह की बयानबाजी पर लगाम लगाने के लिए उन्होंने नीतीश कुमार से बातचीत की. दोनों नेताओं के बीच एक घंटे तक गुफ्तगू चली.

राजद सूत्रों ने बताया कि लालू प्रसाद यादव ने दोनों पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बनाने और सरकार को सही तरीके से काम करने के मसले पर बात की.

लालू प्रसाद यादव को महागठबंधन में अपनी ताकत का अहसास है और इस के साथ उन्हें यह भी डर सता रहा है कि महागठबंधन में बवाल मचने से भाजपा उस का फायदा उठा सकती है, इसलिए वे ताल ठोंक कर एक बार फिर बिहार की राजनीति के अखाड़े में कूद पड़े हैं.

सोशल मीडिया पर भी छाए लालू

 लालू प्रसाद यादव के साथसाथ उन के बेटे व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव, बेटी और सांसद मीसा भारती और उन की बीवी और पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकी राबड़ी देवी भी सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं. अपने फेसबुक अकाउंट पर लालू प्रसाद यादव ने लिखा है, ‘रोजगार छीना, मजदूरी छीनी और मारी पेट पर लात, अंबानीअडानी के दलालों की झूठी है नोटबंदी की बिसात.’ दूसरा नारा है, ‘नोटबंदी से हुआ देश का नुकसान, अर्थव्यवस्था पस्त, गरीब परेशान.’

25 दिसंबर, 2016 को लालू प्रसाद यादव ने अपने अकाउंट पर लिखा, ‘नोटबंदी की आड़ में गरीबों के घर डाका डाल, उन्हें बंधक बना कर अमीरों की तिजोरी भरी जा रही है. गरीब लाइन में हैं और अमीर उन के जमा धन से पार्टी कर रहा है.’ राबड़ी देवी भी भला कहां पीछे रहने वाली थीं. उन्होंने अपने फेसबुक पर लिख डाला, ‘नोटबंदी की क्या पहचान, भ्रष्ट मस्त गरीब परेशान.’

तेजस्वी यादव ने अपने फेसबुक वाले पेज पर लिखा, ‘निष्ठुर सरकार को पूंजीवादी नींद से जगाएं.’ तेजप्रताप ने नारा दिया, ‘क्या अच्छे दिन का यही था वादा, गरीब और युवाओं का रोजगार छीन कर मौज में बैठा अंधा राजा.’ मीसा भारती ने अपने फेसबुक वाल पर ‘फोर्ब्स’ मैगजीन के हवाले से लिखा है, ‘नोटबंदी से भारत को लगेगा खरबों का झटका.’

नोटबंदी के कुछ दिनों बाद ही लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट के जरीए कहा है कि प्रधानमंत्री अंकल पोजर की तरह काम करते हैं. किसी काम को शुरू कर के उसे बिगाड़ कर रख देते हैं और उस के बाद अपनी गलती का ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ देते हैं. अपने कारनामों से वे भाजपा का  नुकसान कर रहे हैं.

हिंदी सीखने में मुश्किल आई : शाल्मली खोलगडे

बौलीवुड सिंगर शाल्मली खोलगडे के गाने ‘बेबी को बेस पसंद है…’, ‘मुझे तो तेरी लत लग गई…’, ‘बलम पिचकारी…’, ‘मैं परेशां…’ हर पार्टी की शान बन गए हैं. वैसे, शाल्मली खोलगडे को केवल गाने गाना ही पसंद नहीं है, बल्कि वे डांस और ऐक्टिंग का भी शौक रखती हैं. स्कूली दिनों में उन को यह तय करने में बहुत मुश्किल आई थी कि कैरियर के रूप में वे इस दिशा में जाएं. शाल्मली खोलगडे की मां उमा खोलगडे क्लासिकल सिंगर और थिएटर आर्टिस्ट हैं. वे बेटी को भी उसी दिशा में ले जाना चाहती थीं. शाल्मली खोलगडे ने अपने कैरियर की शुरुआत एक मराठी फिल्म से की थी. उन को असल पहचान फिल्म ‘इशकजादे’ के गाने ‘मैं परेशां…’ से मिली. इस के बाद उन्होंने एक के बाद कई हिट गाने गाए. पेश हैं, उन के साथ की गई बातचीत के खास अंश:

ऐक्टिंग और डांस के शौक के बाद आप सिंगिंग की लाइन में कैसे आईं?

 मेरी मां क्लासिकल सिंगर हैं. उन की कोशिश थी कि मैं भी क्लासिकल सिंगर बनूं. मैं उन दिनों गानों को ले कर बहुत गंभीर नहीं थी. 8वीं क्लास में मां ने मेरी बात मान ली और कहा कि जो तुम को बनना है, बनो.

स्कूल के बाद कालेज तक मैं यह समझ नहीं पा रही थी कि किस राह पर आगे जाऊं. मैं ऐक्टिंगडांस सबकुछ पसंद कर रही थी. हमारे कालेज में मल्हार फैस्टिवल हुआ था. उस में सोलो सिंगिंग का एक कंपीटिशन था. उस में मैं गाना गा रही थी. गाने के साथ म्यूजिक और सबकुछ देख कर मैं काफी प्रभावित हुई और सोच लिया कि अब तो मुझे सिंगर ही बनना है.

क्या अब सिंगिंग महज प्लेबैक सिंगिंग नहीं रह गई है?

 अब गायकी का दौर बदल रहा है. गायकों को स्टेज पर एक अच्छा परफौर्मर होना भी जरूरी होता है. इस में आप का ग्लैमर और लुक भी अहम रोल अदा करता है.

मेरा डांस और ऐक्टिंग का जो शौक था, वह परफौर्मर के रूप में मुझे काम देता है. टैलीविजन चैनल ‘स्टार प्लस’ के सिंगिंग रिएलिटी शो ‘दिल है हिंदुस्तानी’ में करन जौहर और शेखर रविजानी के साथ जज की भूमिका में मुझे बहुतकुछ सीखने को मिला है.

सिंगिंग के रिएलिटी शो के कई विजेता बौलीवुड सिंगिंग में अपनी जगह क्यों नहीं बना पाते हैं?

 बौलीवुड में भी कंपीटिशन बहुत है. रिएलिटी शो में केवल वे लोग होते हैं, जो उस शो में हिस्सा ले रहे होते हैं. बौलीवुड सिंगिंग में और लोग भी मुकाबले में होते हैं.

शो जीतने के बाद ही किसी सिंगर का असल कैरियर शुरू होता है. कई बार विजेता संघर्ष करना बंद कर देता है. ऐसे में उस की पहचान वहीं खो जाती है.

यह बात जरूर है कि आज के दौर में अगर आप की आवाज में दम है, तो मौके जरूर मिलेंगे. कई ऐसे कलाकार भी हैं, जो शो में विजेता नहीं बन सके, पर बाद में सिंगिंग में बेहतर कैरियर बनाने में कामयाब हो गए.

आप मराठी हैं, पर हिंदी बहुत अच्छी तरह से बोलती हैं. कैसे?  

स्कूल में हिंदी गलत लिखने और बोलने को ले कर मुझे कई बार मार भी खानी पड़ी है. हिंदी बोलने में मुझे काफी मुश्किलें आईं. मुझे मराठी और अंगरेजी अच्छी आती थी. जब हिंदी गाना शुरू किया, तो हिंदीं सीखना शुरू किया. सच कहूं, तो गाना सीखने से ज्यादा मुश्किल हिंदी सीखने में आई. अब मेरी हिंदी अच्छी है, यह सुन कर अच्छा लगता है.

आप सिंगिंग में किस तरह का कंपीटिशन देखती हैं?

एक सिंगर के रूप में मुझे हर गाने के लिए कंपीटिशन से गुजरना पड़ता है. एक गाने को म्यूजिक डायरैक्टर अलगअलग सिंगर के साथ गवा कर देखता है. इस के बाद किसी एक सिंगर की आवाज में उस को फाइनल करता है. यह हर किसी के साथ होता है, चाहे सिंगर नया हो या पुराना.

क्या आप को वैस्टर्न गाने ज्यादा पसंद हैं?

 ऐसा नहीं है. ज्यादातर म्यूजिक डायरैक्टरों को लगता है कि मुझ पर वैस्टर्न गाने ज्यादा अच्छे लगते हैं. यही वजह है कि मेरे हिस्से में पार्टी गाने ज्यादा आए हैं. मेरे कई स्लो गाने भी पसंद किए गए हैं.

वैसे, अच्छा सिंगर वही माना जाता है, जो हर तरह के गाने को बखूबी गा सके.

अक्षय और ट्विंकल कहानी चोर हैं या…

हीरो अक्षय कुमार ने बड़े जोश में केपटाउन से साल 2017 के पहले दिन अपने प्रशंसकों को नए साल का तोहफा देने के लिए अपनी फिल्म के पोस्टर ट्विटर पर रिलीज किए, लेकिन कुछ देर बाद ही अक्षय कुमार के प्रचारक का ईमेल आ गया कि उस खबर में कुछ गलती है, इसलिए उस का इस्तेमाल न करें. बाद में राज खुला कि अक्षय कुमार पर उन की 2 फिल्मों ‘पैडमैन’ और ‘टायलैट: एक प्रेमकथा’ पर कहानी चोरी का ऐसा इलजाम लग रहा है, जिस का जवाब किसी के पास नहीं है.

मसला ‘पैडमैन’ का

अक्षय कुमार की पत्नी ट्विंकल खन्ना एक फिल्म ‘पैडमैन’ बना रही हैं, जिस का डायरैक्शन आर. बाल्की करेंगे. अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन, सोनम कपूर व राधिका आप्टे जैसे कलाकारों से लैस इस फिल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश के महेश्वर में नर्मदा नदी के तट के अलावा भोपाल में होनी है.

अक्षय कुमार ने जो पोस्टर ट्विटर पर दिया है, उस में लिखा है, ‘पैडमैन: बेस्ड औन एन ऐक्स्ट्रा और्डिनरी स्टोरी’. फिल्म के पोस्टर पर नाम के साथ ही सैनेटरी नैपकिन की तसवीर भी है. जी हां, फिल्म ‘पैडमैन’ की कहानी कोयंबटूर के एक कारोबारी अरुणाचलम मुरुगननाथम की जीवनी है.

ट्विंकल खन्ना फिल्म ‘पैडमैन’ को अपनी 4 कहानियों वाली किताब ‘द लीजैं ड औफ लक्ष्मी प्रसाद’ की कहानियों में से एक कहानी पर आधारित बता रही हैं. मगर इस फिल्म की पटकथा ट्विंकल खन्ना नहीं लिख रही हैं.

यह कहानी एक ऐसे आदमी की है, जो समाज के निचले तबके की औरतों को उन की अच्छी सेहत के लिए कम कीमत पर सैनेटरी नैपकिन मुहैया कराता है.

कौन हैं मुरुगननाथम

 साल 2016 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ अवार्ड से सम्मानित किए गए अरुणाचलम मुरुगननाथम ने अपनी पत्नी की तकलीफ को देख कर सैनेटरी नैपकिन बनाने की एक सस्ती मशीन ईजाद करने के साथसाथ उसे गांवगांव तक इस तरह प्रचारित किया था कि आज भारत के 29 राज्यों में से 23 राज्यों में सैनेटरी नैपकिन बनाने वाली ऐसी मशीनें लग चुकी हैं.

बाजार में आमतौर पर मौजूद सैनेटरी नैपकिनों के मुकाबले अरुणाचलम मुरुगननाथम के बनाए सैनेटरी नैपकिन एकतिहाई लागत में ही आ जाते हैं. उन्होंने गांव की औरतों को सैनेटरी नैपकिन के उपयोग के लिए जागरूक भी किया है.

अब लोग सोच रहे होंगे कि ट्विंकल खन्ना और अक्षय कुमार तो अच्छा काम कर रहे हैं कि वे सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाने वाले की जिंदगी को रुपहले परदे पर लाने जा रहे हैं. मगर असली कहानी यह है कि अरुणाचलम मुरुगननाथम की जिंदगी पर पहले से ही डायरैक्टर अमित राय ‘आईपैड’ नामक फिल्म बना चुके हैं, जो निर्माता मोनीष सेखरी व डायरैक्टर अमित राय के बीच आपसी झगड़े के चलते रिलीज नहीं हो पाई थी, जबकि यह फिल्म साल 2015 में ही बन गई थी.

अमित राय ने इस फिल्म की शूटिंग साल 2014 में भोपाल में पूरी की थी और फिल्म को बेचने के लिए 2015 में गोवा के ‘इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल’ में भी इसे ले जाया गया था.

वैसे, अमित राय का दावा है कि वे मार्च, 2017 में इस फिल्म को सिनेमाघरों में दिखाने वाले हैं. वे चाहते हैं कि फिल्म को रिलीज किया जाए, जबकि मोनीष सेखरी की सोच है कि इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल में उन की फिल्म चर्चा बटोरे, पर इस फिल्म का चयन किसी भी इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल में नहीं हो पाया.

अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ही विवादों में नहीं आई है, बल्कि उन की एक और फिल्म ‘टायलेट: एक प्रेमकथा’ भी विवादों में आ गई है.

ऐडिटर से डायरैक्टर बने श्रीनारायण सिंह की पहली फिल्म ‘टायलेट: एक प्रेमकथा’ में अक्षय कुमार और भूमि पेडणेकर की जोड़ी है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की वकालत करती है.

मगर गुजराती फिल्मों के मशहूर डायरैक्टर कृष्णदेव याज्ञनिक का दावा है कि यह कहानी उन की बन रही फिल्म ‘नारायण दास पे ऐंड यूज’ से चुराई गई है. इस फिल्म की शूटिंग वे जनवरी, 2017 के दूसरे हफ्ते से अहमदाबाद में शुरू करने वाले थे.

इन दिनों फिल्मों की कहानी में ‘पे ऐंड यूज टायलेट’ चलाने वाले एक नौजवान को झुग्गीझोंपड़ी में रहने वाली लड़की से प्यार हो जाता है. यह लड़की हर दिन टायलेट का उपयोग करने आती थी, तभी इन का प्यार परवान चढ़ता है.

कृष्णदेव याज्ञनिक कहते हैं, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि मेरी फिल्म की कहानी, किरदार व किरदार का नाम सबकुछ उन तक कैसे पहुंच गया. मैं ने तो इस फिल्म की कहानी आज से 5 साल पहले लिखी थी.’’

मजेदार बात यह है कि ‘पैडमैन’ और ‘टायलेट: एक प्रेमकथा’ को ले कर उठे विवादों पर अक्षय कुमार की तरफ से कोई सफाईनामा नहीं आया है.

चुनावी सभाओं के नारों में नेताओं की बदजबानी

उत्तर प्रदेश की चुनावी सभाओं में अखिलेश राहुल एक तरफ और मोदी शाह दूसरी तरफ नारों की बरसात तो करते रहे हैं, पर उन से इस बड़े राज्य का भला होने वाला है, ऐसा कहीं नहीं दिखता. आमतौर पर चुनावों में सिर्फ वादे किए जाते हैं और नारे लगाए जाते हैं, पर दोनों में आम गरीब जनता का भला करने की बात होती है. इस बार भाजपा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तीनों ही एकदूसरे पर लट्ठमार जबान चलाते रहे हैं, जनता के लिए क्या करेंगे, इस की बात तक नहीं कही गई.

ठीक है. हमारे देश की ही नहीं, दुनिया के लगभग सारे देशों की जनता ने चुनावों को महज शासकों को टौफी बांटने का खेल बना लिया है. हर 5 या 4 साल बाद कौन बनेगा राजा का खेल होता है और एक आधाअधूरा नेता टौफी को ट्रौफी की तरह ले जाता है और अपने नए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री निवास में सजा देता है. आम वोटर वहीं का वहीं.

उत्तर प्रदेश की गरीबी को बयान करने की जरूरत नहीं. कहीं से उत्तर प्रदेश में घुसो या आसमान से टपको, ऐसा लगेगा मानो किसी जंगल में आ गए हो. कूड़ों के ढेर, रिकशे की भरमार. सड़कों पर दुकानें, दुकानों में ऊंघते मालिक, खंभों पर टूटे बल्ब, पर नए नेताओं के फ्लैक्सी चेहरे, भीड़भाड़, धूलधक्कड़ सब मिलेगा. कहीं ऐसा नहीं लगेगा कि यहां सरकार नाम की चीज है. इन कामों की जिम्मेदारी वैसे नगरपालिकाओं की होती है, पर वे कौन सी नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव या मायावती से अलग हैं. सभी एक थैली के चट्टेबट्टे और शान से उत्तर प्रदेश की जनता को कहते रहे कि हम से वादे भी न लो, बस दूसरों की बुराई सुनो. हम खराब हैं तो क्या दूसरे तो हम से भी खराब. हम कुछ नहीं करेंगे, तो परेशानी क्या है. दूसरे कहां कह रहे हैं कि वे कुछ करेंगे.

नतीजा यह है कि अखिलेशराहुल जोड़ी जीते या न जीते, उत्तर प्रदेश उसी तरह उलटा प्रदेश बना रहेगा, यह पक्का है. यहां कुछ नहीं होगा, क्योंकि न तो वोटर काम करने को राजी है, न नेता काम कराने को. वोटरों को जय हो के नारे लगाने की आदत हो गई है और नेताओं को खादी के कलफ लगे सफेद कपड़े और मोदी जैकेट पहनने की. राज्य की खुशहाली के लिए बस यही काफी है.

ये चुनाव हों, इस से पिछले वाले हों या उस से पिछले वाले, हर बार वही कहानी दोहराई जाती है. कुछ सड़कें बन जाती हैं, कुछ भव्य भवन बन जाते हैं और शासक उन का राग अलापते रहते हैं. पैसा कमाने के लिए जो खेतों में हड्डियां तोड़ते हैं, उन्हें बस जिंदा रहने लायक मिलता है. आधों के घरों से तो कोई न कोई पत्नीबच्चे छोड़ कर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जा कर काम करता है. चुनाव में यह मुद्दा भी कोई नहीं उठाता कि आखिर उत्तर प्रदेश के लोगों को बाहर जा कर काम करने की जरूरत क्यों पड़ती है? बाहर वाले आ कर सत्ता में बैठने को तैयार हैं, पर काम करने को क्यों नहीं?

लोग मुझे चौकलेटी हीरो समझते हैं : अरविंद अकेला

बिहार के बक्सर जिले के अहिरौली गांव में पलेबढ़े 9 साल की उम्र से ही भोजपुरी गीतों के गायन में तहलका मचाने वाले अरविंद अकेला ‘कल्लूजी’ अब 19 साल के हो चुके हैं. भोजपुरी गायन के इन 10 सालों के पड़ाव में उन्होंने कई सुपरहिट गीत गाए हैं. अब वे भोजपुरी फिल्मों में अपनी ऐक्टिंग का भी लोहा मनवा रहे हैं. अरविंद अकेला ‘कल्लूजी’ की चौकलेटी इमेज का ही कमाल है कि उन के पास ऐक्शन, प्यार व रोमांस से सजी फिल्मों की भरमार है. उन्होंने लीड रोल में ‘हुकूमत’, ‘त्रिदेव’, ‘दिल भईल दीवाना’, ‘मंगिया सजाई दा हमार’, ‘दिलदार सजना’ जैसी सुपरहिट फिल्में दी हैं. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

9 साल की बेहद कम उम्र में आप का भोजपुरी गायन के क्षेत्र में कैसे आना हुआ?

इस का श्रेय मेरे पिता चुन्नूजी चौबे को जाता है, क्योंकि मेरे पिताजी पहले अपने गांव में रंगमंच के लिए भोजपुरी पटकथा लेखन व निर्देशन का काम करते थे. मैं उन के साथ मंच पर बचपन में भोजपुरी में गीत गाता था, जिसे लोगों ने खूब सराहा. इसी बात से खुश हो कर मेरे पिताजी ने बिहार की बी सीरीज नाम की एक कैसेट कंपनी से 9 साल की उम्र में मेरा पहला अलबम ‘गवनवा कहिया ले जइवा’ रेकौर्ड कराया और उन्होंने खुद घरघर जा कर मेरे अलबम के कैसेट को पहुंचाया, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया.

आप कौन से म्यूजिक अलबम से मशहूर हुए?

मुझे भोजपुरी गायकी में मुकाम दिलाने का श्रेय वेव कैसेट से आए मेरे अलबम ‘लभ के टौनिक पियल करा’ और इस के बाद ‘लगाई देता चोलिया में हुक राजाजी’ को जाता है.

आप भोजपुरी गायन के साथसाथ कई फिल्मों में भी ऐक्टिंग कर चुके हैं. क्या अपने गायन की वजह से आप फिल्मों में आए?

भोजपुरी फिल्म जगत में जितने भी हीरो हैं, उन में से ज्यादातर भोजपुरी गायकी के सुपरस्टार हैं. मेरे भोजपुरी गायन को ही भोजपुरी फिल्में दिलाने का सारा श्रेय जाना चाहिए.

आप ने भोजपुरी फिल्मों के कई बड़े फिल्म स्टारों के साथ बतौर सहकलाकार के रूप में काम किया है. अब आप भोजपुरी की फिल्मों में लीड रोल भी कर रहे हैं. ऐसे में अपनी इस कामयाबी के पीछे किस हीरो को श्रेय देंगे?

वैसे तो मैं ने भोजपुरी फिल्मों की शुरुआत पवन सिंह, मनोज तिवारी ‘मृदुल’, विराट भट्ट, रानी चटर्जी, पाखी हेगड़े, अक्षरा सिंह, नेहाश्री, मोनालिसा, निशा दुबे सरीखे कलाकारों के साथ की और इन सब ने फिल्म सैट पर मेरा भरपूर सहयोग किया, लेकिन मेरी कामयाबी में सब से बड़ा योगदान पवन सिंह का है.  वे मेरे मार्गदर्शक ही नहीं, बल्कि गुरु भी हैं.

आप की उम्र अभी 19 साल है और आप की इमेज भी एक चौकलेटी हीरो के तौर पर है. ऐसे में आप को फिल्में मिलने में भी आसानी रही है. अभी तक आप ने किन विषयों पर ज्यादा फिल्में की हैं?

लोग मुझे चौकलेटी हीरो और गायक के रूप में देखते हैं, ऐसे में मेरी इमेज के मुताबिक ही मुझे रोल भी मिल रहे हैं, जिन में प्यार, रोमांस, मारधाड़ होती है.

आप वर्तमान में किन फिल्मों में काम कर रहे हैं?

मेरी आने वाली फिल्म ‘रंग’ प्यार, रोमांस और ऐक्शन से भरपूर है. इस फिल्म में मेरे साथ रितिका शर्मा ने काम किया है. मेरी एक और फिल्म ‘त्रिशूल’ भी आने वाली है.

आप फिल्म की कहानी को कितनी अहमियत देते हैं?

जितनी भी फिल्में करता हूं, उस की कहानी पढ़ने के बाद ही मैं फिल्में करने की हामी भरता हूं.

आप को अगर किसी फिल्म में नैगेटिव रोल का औफर मिले, तो क्या उस फिल्म को करना चाहेंगे?

अगर मुझे किसी फिल्म की कहानी अच्छी लगी, मैं जरूर नैगेटिव रोल करना चाहूंगा.

भोजपुरी फिल्में बौलीवुड की हिंदी फिल्मों की तरह कमाई में पीछे छूट जाती हैं. इस पर क्या कहेंगे?

अगर राज्य सरकारें टैक्स में छूट दे कर भोजपुरी फिल्मों को भी बढ़ावा दें, तो ये भी हिंदी फिल्मों की तरह कमाई करने लगेंगी.

भोजपुरी फिल्मों में आने के बाद आप के गायन पर कोई असर?

जी नहीं, मैं आज भी गायन को उतनी ही तवज्जुह देता हूं.

आप ने सामाजिक बुराइयों पर चोट करता भोजपुरी अलबम लौंच किया है. इस में किस तरह के गीतों को शामिल किया है?

मैं ने अलबम ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ लौंच किया है, जिस में मैं ने बेटियों के साथ होने वाले भेदभाव पर चोट की है.

आप अभी 19 साल के हैं और 11वीं जमात में पढ़ भी रहे हैं. ऐसे में जब कभी आप स्कूल जाते हैं, तो क्या आप को अपने फैंस की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा?

बिलकुल नहीं. मैं अपने फैंस की वजह से ही आज इस मुकाम पर पहुंच पाया हूं. वर्तमान में मैं बनारस के बीएमसी कालेज में 11वीं का छात्र हूं और स्कूल के दोस्तों के साथ मिल कर आम आदमी की तरह ऐंजौय करता हूं.

खाली समय में मन बहलाने के लिए आप क्या करते हैं?

जब भी मेरे पास खाली समय होता है, तो मैं अपने गांव में जा कर मम्मीपापा के साथ समय बिताना पसंद करता हूं. इस के अलावा टीवी देखना और खाली समय में ‘सरस सलिल’ पत्रिका जरूर पढ़ता हूं.

बैडरुम सीन करने में हिचक होती है : विक्रांत सिंह राजपूत

विक्रांत सिंह राजपूत भोजपुरी सिनेमा के सब से स्मार्ट और फिट हीरो माने जाते हैं. उन्होंने ऐक्शन कौमेडी फिल्म ‘मुन्ना बजरंगी’ के साथ इस इंडस्ट्री में कदम रखा था, जिस के बाद उन्होंने ‘दूल्हा अलबेला’, ‘पायल’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘कर्तव्य’, ‘सैयां तूफानी’, ‘प्रेमलीला’ जैसी तकरीबन एक दर्जन से भी ज्यादा फिल्में कीं.

विक्रांत सिंह राजपूत द्वारा निभाए गए दमदार किरदारों की भोजपुरी सिनेमा उद्योग में हमेशा से चर्चा होती रही है. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

भोजपुरी फिल्मों में बने रहने के लिए आप क्या करते हैं?

किसी रोल का चुनाव करने में बहुत सावधानी बरतना मेरी पहली जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि मुझे मालूम है कि एक गलत कदम मुझे काम से बाहर करा सकता है. भोजपुरी फिल्म उद्योग में फिल्मों के चुनाव से मैं खुद एक अलग स्टैंडर्ड सैट कर चुका हूं, इसीलिए मैं हिट फिल्में देने का दबाव भी महसूस करता हूं. यहां गलाकाट होड़ मची है.

आप को कामयाबी कैसे मिली?

मुझे बचपन से ही ऐक्टिंग करने का शौक था. मैं स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया करता था. घर वालों को पता चला, तो मैं डरा हुआ था कि उन्हें यह सब पसंद न हों और गुस्सा करें, बल्कि इस के उलट वे बहुत खुश हुए. उन का सपोर्ट रहा और मेरे पापा खुद मुझे खुशीखुशी मुंबई छोड़ने आए थे.

‘मुन्ना बजरंगी’ मेरी पहली फिल्म थी और उस के बाद मुझे पीछे मुड़ कर नहीं देखना पड़ा. अब मेरी कई सारी फिल्में आ चुकी हैं. घर के लोगों से खुद की तारीफ सुनता हूं, तो खुशी होती है.

फिल्मों को चुनने में कलाकार को क्या क्या सावधानियां बरतनी होती हैं?

मैं ने अलगअलग किरदार निभाए हैं और समय के साथ फिल्मों की अच्छी समझ भी बनती गई. मेरे हिसाब से एक उम्दा फिल्म ही इंडस्ट्री के प्रति आप का नजरिया बदल देती है और नजरिया बदलने से कई मुसीबतें हल हो जाती हैं. आप के नजरिए में भी बदलाव आता है, तब आप छोटीछोटी चीजों को ले कर मायूस होना छोड़ देते हैं और मैं इसी कोशिश में हूं कि मेरी हर फिल्म इस उद्योग से जुड़े हर किसी की उम्मीद पर खरी उतरे.

आप के द्वारा निभाए गए किरदारों में कौन सा किरदार सब से बढि़या है?

यह बताना बहुत मुश्किल है कि मेरा कौन सा किरदार मुझे सब से ज्यादा पसंद है. वैसे, मुझे फिल्मों में बैडरूम सीन फिल्माने में हिचक होती है.

अपनी आने वाली फिल्मों के बारे में बताएं?

‘मिलन: एक संजोग’, ‘जय श्रीराम’, ‘नथुनिए पे गोली मारे-2’ के अलावा कुछ अनाम फिल्मों पर बात चल रही है.

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में आप से भी ज्यादा पौपुलर है आप का गठीला बदन. बिजी शैड्यूल के बीच फिटनैस और शूटिंग में कैसे तालमेल बिठाते हैं?

शूटिंग के दौरान भी मैं हर रोज 30 मिनट तक दिल को सेहतमंद रखने वाली कसरतें, जिस में दौड़ना, जौगिंग और किक बौक्सिंग वगैरह शामिल हैं, करता हूं.

वैटलिफ्टिंग मेरे वर्कआउट का खास हिस्सा है. मुझे बाहर जा कर वर्कआउट करना ज्यादा पसंद है, लेकिन समय की कमी में ऐसा मौका कम ही मिल पाता है.

शादी के लिए पहले प्यार होना जरूरी : अमृता राव

भोलीभाली सूरत की वजह से फैंस के दिलों में खास जगह बनाने वाली अमृता ने अपने 14 साल के फिल्मी कैरियर में कुल 24 फिल्में की हैं. उन का नाम उन के दादाजी अमृत के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने सुभाषचंद्र बोस के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था. मौडलिंग से अपना कैरियर शुरू करने वाली अमृता को पहला ब्रेक महज 17 साल की उम्र में मिला था. एक फेयरनैस क्रीम की मौडलिंग के लिए 60 मौडल्स में से उन्हें चुना गया था. करीब 35 से ज्यादा कमर्शियल ऐड करने के बाद उन्हें बौलीवुड में ऐंट्री 2002 में राजकुंवर की फिल्म ‘अब के बरस’ से मिली. इस फिल्म में उन्होंने लीड रोल निभाया. उन के अपोजिट राज बब्बर के बेटे आर्य बब्बर थे. संगीत की शौकीन अमृता की असली पहचान सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘विवाह’ से मिली. 2011 में मोस्ट डिजायरेबल ऐक्ट्रैस की लिस्ट में शामिल हुईं अमृता ने बौलीवुड में कोई खास मुकाम हासिल न होने पर छोटे परदे का रूख कर लिया है. पिछले दिनों मैट्रोमोनिअल साइट्स ‘लव विवाह’ के लौंच पर पहुंचीं अमृता ने अपनी शादी और छोटे परदे के अनुभवों को साझा किया. पेश हैं, कुछ चुनिंदा अंश:

आप की शादी बहुत सीक्रेट रही

ऐसा तो मेरा कोई सीक्रेट नहीं है, जो आप लोगों से छिपा हो. मैं और अनमोल पिछले 7 सालों से एकदूसरे को जानते थे. जब हमें लगा कि हमें अपने रिश्तों को नाम देना चाहिए तब घर वालों की मरजी से हम ने शादी कर ली. लोग कहते हैं कि शादी के बाद जीवन बदल जाता है, लेकिन मुझे तो अपनी लाइफ में कोई बदलाव नजर नहीं आता. जैसा पहले थी वैसी ही आज हूं, वही लाइफस्टाइल, वही सोच किसी में भी चेंज नहीं आया.

किसी भी शादी में प्यार का होना कितना जरूरी है

प्यार में पड़े बगैर शादी सफल नहीं हो सकती फिर चाहे वह लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज. लव मैरिज में तो मैं मानती हूं कि दोनों एकदूसरे की पसंदनापसंद के बारे में पहले से जानते हैं. पर अरेंज्ड मैरिज में तो दोनों एकदूसरे से तब तक अनजान रहते हैं जब तक एकदूसरे को पर्याप्त समय नहीं देते.

मैं सभी अभिभावकों से कहना चाहती हूं कि अगर आप का बेटा या बेटी आप की पसंद के अनुसार शादी करने जा रही है तो शादी के समय को ले कर उस पर दबाव न डालें, बल्कि दोनों को एकदूसरे को समझने का समय दें ताकि वे समझ सकें कि उस के साथ जिंदगी की गाड़ी आसानी से दौड़ाई जा सकती है या नहीं.

शादी में मैट्रोमोनिअल साइट्स कितनी सहायक हैं

पहले शादी एकदूसरे के बताने पर ही हो जाती थी, पर अब समय बदल गया है.  कैरियर की तलाश में लोगों ने अपने आशियाने अलगअलग जगह बना लिए हैं. समय की कमी सभी के पास है. इसी के चलते ये वैवाहिक साइट्स बहुत फायदेमंद साबित हो रही हैं. इन में आप अपनी अपेक्षाओं के अनुसार रिश्ते की तलाश कर सकते हैं.

फिल्म ‘सत्याग्रह’ के बाद लंबे ब्रेक की क्या वजह है

फिल्मों से दूरी जरूर हो गई थी लेकिन मैं ने ऐक्ंिटग से दूरी बिलकुल नहीं बनाई. ‘सत्याग्रह’ फिल्म करने के बाद मैं फिल्मों के रूटीन से उकता गई थी. मेरी बहन प्रतिभा जो छोटे परदे की अच्छी कलाकार हैं, ने कहा कि चेंज के लिए छोटा परदा मेरे लिए बिलकुल सही जगह है. उसी समय ऐंड टीवी का शो ‘मेरी आवाज ही पहचान है’ का औफर मेरे पास आया. जब मैं ने शो की कास्ट पर नजर डाली तो दीप्ति नवल से ले कर जरीना बहाव, सलमा आगा सभी इस शो का हिस्सा थीं. मैं ने जब इतने लोगों को देखा तो तुरंत काम करने को हां कह दी.

छोटे परदे का कैसा अनुभव रहा

जितना मैं सोच कर आई थी उस से बढ़ कर यहां सीखने को मिला. टीवी का शैड्यल फिल्मों से बिलकुल अलग होता है. यहां आप को ज्यादा समय अपनेआप को साबित करने के लिए दिया जाता है. आप लाखों दर्शकों के सामने रोज आते हैं. मेरा भी शो ‘डेली सोप’ था, जिस में काम कर के मुझे बहुत मजा आया. सच मानिए, छोटे परदे पर आना मेरे किसी सपने के सच होने के बराबर है.

आज के टीवी शो में क्या अभाव खलता है

अच्छे कंटैंट का अभाव आज भी टैलीविजन शोज में देखने के मिलता है. अगर अच्छा कंटैंट हो तो शो यादगार बन जाता है. दूरदर्शन पर समाप्त होने वाला शो ‘बुनियाद’ इतने साल बीत जाने पर भी लोगों के दिलोदिमाग में बसा है. कुछ सालों से बौलीवुड के कलाकार भी छोटे परदे का रूख करने लगे हैं. इस जुगलबंदी की शुरुआत अमितजी ने बहुत पहले कर दी थी. उस के बाद कई कलाकारों ने छोटे परदे का रूख किया. क्योंकि सभी जानते हैं कि अगर दर्शकों के जेहन में जिंदा रहना है तो टीवी पर आना ही होगा. इस में सब से बड़ा योगदान टैक्नोलौजी और पब्लिसिटी का भी है. आज के टीवी शोज के बजट और निर्माण की प्रक्रिया किसी भी हाल में एक फिल्म के बजट से कम नहीं है.

आप ने हमेशा सीधीसादी घरेलू लड़की का किरदार निभाया है. क्या वास्तव में अमृता ऐसी ही हैं

हां, मुझे ज्यादा तड़कभड़क पसंद नहीं है. निजी जिंदगी में भी मैं ऐसी ही घरेलू टाइप लड़की हूं. एक शौक जो मुझे बचपन से रहा है वह है गाने का. मेरे घर वाले फिल्मों में आने से पहले मेरे बारे में यही जानते थे कि मैं बड़ी हो कर सिंगर बनूंगी. मेरा फिल्मों में आना मेरे घर वालों को मेरा हैरान करने वाला निर्णय था. मैं जितने भी गाने गाती हूं अपने मन से गाती हूं. मुझे भावपूर्ण गाने बहुत पसंद हैं.

सूरज के साथ एक सफल फिल्म के बाद आप ने उन की दूसरी फिल्म के लिए मना क्यों कर दिया

यह सच है कि सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘विवाह’ से मुझे काफी लोकप्रियता मिली थी. उन की 2015 में आई फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में जो किरदार मुझे औफर हुआ था उस के लिए मना किया था. फिल्म के लिए कभी मना नहीं किया था. मुझे सलमान खान की बहन बनने को कहा गया था, जिस में नैगेटिव और कई अलगअलग किरदार की परतें थीं. मैं अभी इतनी जल्दी नैगेटिव भूमिकाएं नहीं करना चाहती हूं.

अमृता यों रहीं चर्चा में

– फिल्म ‘जब वी मेट’ की शूटिंग के दौरान शाहिद कपूर और करीना कपूर के बीच हुए ब्रेकअप की वजह अमृता को बताया गया. हालांकि अमृता ने इस बात से इनकार करते हुए कहा कि यह सिर्फ अफवाह है.

– 2015 में जयपुर में एक ज्वैलरी के उद्घाटन से लौटते समय अमृता की वैनिटी वैन से किसी ने 7 लाख की डायमंड ज्वैलरी चुरा ली थी. इस के बाद भी अमृता ने किसी के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया था.

– अमृता ऐक्ट्रैस और मौडल के अलावा एक बेहतर सिंगर भी हैं. शाहिदअमृता का इश्क एक समय सुर्खियों में था. बौलीवुड ऐक्टर शाहिद कपूर के साथ फिल्मी स्क्रीन शेयर करने के बाद फैंस ने इन की जोड़ी शाहिद के साथ बना दी. इस के बाद अमृता की ज्यादातर फिल्में शाहिद के साथ आईं और वे बौक्स औफिस पर सुपरहिट भी साबित हुईं. लेकिन शाहिद के साथ अपनी रिलेशनशिप पर चुप्पी तोड़ते हुए अमृता ने कहा कि उन्होंने शाहिद को कभी डेट नहीं किया. वे शाहिद की सिर्फ एक अच्छी दोस्त और उन की कोस्टार है.

– 2009 में प्रियंका चोपड़ा और हरमन बावेजा के ब्रेकअप की वजह भी अमृता राव को बताया गया, जिस पर अमृता का कहना था कि दोनों का ब्रेकअप उन की अपनी मिसअंडरस्टैंडिंग की वजह से हुआ, न कि उन की वजह से.

बौलीवुड की नई ‘लैला’ ने मचा दी है धूम

हिंदी फिल्म ‘कुरबानी’ में ‘लैला मैं लैला…’ गाने पर थिरक कर सैक्सी हीरोइन जीनत अमान ने अपने जमाने में धूम मचाई थी. अब शाहरुख खान की आने वाली फिल्म ‘रईस’ में इसी गाने के रीमिक्स पर सनी लियोनी ने ठुमके लगाए हैं.

यह गाना इतना पसंद किया जा रहा है कि कोलकाता के एक कार्यक्रम में जब सनी लियोनी ने डांस किया, तो अपने चाहने वालों की फरमाइश पर वे 6 बार इस गाने पर नाचीं.

फिर बनेगी शाहरुख और ऐश्वर्या की जोड़ी

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘देवदास’ में शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय की रोमांटिक जोड़ी ने खूब धमाल मचाया था. अब अफवाह है कि संजय लीला भंसाली इन दोनों कलाकारों को ले कर फिल्म ‘गुस्ताखियां’ बनाने जा रहे हैं, जो पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम और शायर व गीतकार साहिर लुधियानवी की रोमांटिक रिलेशनशिप पर बन रही है.

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