अपना प्यार पाने के लिए एक मां बनीं हत्यारी, बेटे का कराया कत्ल

पति की मौत के बाद आरफा बेगम की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी. शादीशुदा बेटे मोहम्मद नदीम (30 वर्ष) ने भी पूरी तरह अब्बू का बिजनैस संभाल लिया था. लेकिन इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आरफा बेगम अपने इकलौते बेटे नदीम की कातिल बन गई? उस ने 25 लाख की सुपारी दे कर आंखों के तारे, राजदुलारे की क्रूरता से हत्या करा दी.

19 जुलाई, 2024 को एसएचओ अवनीश कुमार सिंह को एक मुखबिर से पता चला कि सलीम उन्नाव स्टेशन पर मौजूद है. चूंकि सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए अवनीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ उन्नाव स्टेशन पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर टीम ने सलीम को दबोच लिया. उस समय वह स्टेशन के बाहर किसी व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहा था. सलीम को थाना अजगैन लाया गया. यहां पुलिस टीम ने उस से नदीम की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से सख्ती की गई तो उस ने नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. 

उस ने बताया कि कानपुर निवासी कपड़ा कारोबारी मोहम्मद नदीम की हत्या उस ने ही पैसों के लालच में चाकू से गोद कर की थी तथा शव को कुएं में फेंक दिया था. उस ने यह भी बताया कि हत्या की साजिश नदीम की मां आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली निवासी कोडरा पसन नगर, थाना किशनगंज जिला अजमेर (राजस्थान) ने रची थी. उन्होंने ही नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख रुपए में उसे दी थी. 15 लाख रुपए उसे नकद दिया था. शेष रुपए काम तमाम होने के बाद देने का वादा किया था. शेष रुपए ही वह लेने आया था, लेकिन पकड़ा गया. इस के बाद सलीम ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल (चाकू) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने मांस तिराहे के पास पन्नी में लपेट कर छिपा दिया था. 

सलीम को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने नाटकीय ढंग से आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली को भी गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों ने जब सलीम को हवालात में देखा तो समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं. अत: उन दोनों ने भी सहज में ही नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने नदीम की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर नदीम की हत्या का खुलासा किया. 

पुलिस ने भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सलीम, हासम अली तथा आरफा बेगम को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक ऐसी मां की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने जवान बेटे को ही सुपारी दे कर कफन में लपेट दिया. कानपुर महानगर के अनवरगंज थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है-इफ्तखाराबाद. मुसलिम बाहुल्य इस मोहल्ले में ज्यादातर लोग व्यापार करते हैं. कोई कपड़े का व्यापार तो कोई लकड़ी का. कोई चमड़े का तो कोई मांसमछली का व्यापार करता है. घनी आबादी वाले इसी मोहल्ले में मोहम्मद नईम सपरिवार रहते थे. 

अलहम्द रेजीडेंसी में उन का निजी मकान था. उन के परिवार में पत्नी आरफा बेगम के अलावा एक बेटी आलिया तथा बेटा मोहम्मद नदीम था. मोहम्मद नईम रेडीमेड कपड़ा कारोबारी थे. अनवरगंज में उन की दुकान थी. बड़ी बेटी आलिया का वह निकाह कर चुके थे. मोहम्मद नदीम उन का इकलौता बेटा था. इसलिए वह सभी का दुलारा था. नदीम बचपन से ही तेज दिमाग था. वह जिद्ïदी व हठी भी था. उस के जिद्ïदी स्वभाव के कारण उस की अम्मी आरफा बेगम परेशान रहती थी. वह शौहर को उलाहना भी देती कि उन्होंने नदीम को बिगाड़ दिया है. 

नदीम का मन पढ़ाई में कम और गिल्लीडंडा खेलने में ज्यादा लगा रहता था. इस से नईम चिंतित रहते थे. जैसेतैसे नदीम ने 10वीं तक पढ़ाई की. फिर उस का मन पढ़ाई से उचट गया. नदीम कहीं गलत संगत में न पड़ जाए, इसलिए नईम ने उसे अपने कपड़ा व्यवसाय में लगा लिया. नदीम अब अब्बू के साथ कपड़े की दुकान पर जाता और दुकानदारी के गुर सीखता. मोहम्मद नदीम अब तक जवान हो चुका था और दुकान भी संभालने लगा था. इसलिए मोहम्मद नईम ने जुलाई, 2020 में उस का विवाह जीनत फातिमा नाम की लड़की से कर दिया.

जीनत फातिमा के अब्बू मोहम्मद कासिम बाकरगंज (बाबूपुरवा) कानपुर में रहते थे. बाकरगंज बाजार में उन की भी कपड़े की दुकान थी. अच्छा घरवर पा कर जीनत फातिमा भी खुश थी. घर में किसी चीज की कमी न थी और बेहद चाहने वाला शौहर मिला था. हंसीखुशी से दिन बीतते अभी एक साल ही बीता था कि नईम ऐसे बीमार पड़े कि उन्होंने खाट पकड़ ली. नदीम ने उन का कई डाक्टरों से इलाज कराया, लेकिन वह बच न पाए. आखिर उन्होंने दम तोड़ ही दिया. 

शौहर की मौत पर आरफा बेगम ने खूब आंसू बहाए. किसी तरह नदीम ने मां को संभाला. ताहिर ने भी बहन को समााया. तब कहीं जाकर वह सामान्य हुई. अब्बू के जाने का नदीम को भी बड़ा सदमा पहुंचा. उस ने अब्बू के गुजर जाने के बाद नदीम ने दुकान और घर चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. बीवी ने भी उस का साथ दिया.

आरफा बेगम की तन्हाइयां कैसे हुईं दूर

कहते हैं वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है. आरफा बेगम भी पति की मौत का गम भूल चुकी थी. बेटाबहू अपनी जिंदगी जी रहे थे और वह तन्हाइयों में जी रही थी. अकेलापन उसे बहुत खलता था. उन्हीं दिनों एक रोज हासम अली आरफा बेगम के घर आया. वह उस के मरहूम शौहर नईम का दोस्त व रिश्तेदार था. पहले भी वह घर आ चुका था. हासम अली, अजमेर (राजस्थान) शहर के कोडरा पसन नगर का रहने वाला था. वह कपड़ा व्यापारी था. दोनों में जानपहचान पहले से थी. इसलिए आरफा बेगम ने उस की खूब मेहमाननवाजी की. हासम अली ने दोस्त के गुजर जाने का दुख जताया और आरफा बेगम को धैर्य बंधाया. इस के बाद उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.

आरफा बेगम के घर आतेजाते दोनों के बीच नजदीकियां बढऩे लगीं. उन के बीच छेड़छाड़ और हंसीमजाक भी होने लगी. दोनों तन्हा जिंदगी जी रहे थे. इसलिए दोनों को ही साथी चाहिए था. सो एक रात जब बेटाबहू सो गए, तब हासम अली आरफा बेगम के कमरे में पहुंचा और उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. आरफा बेगम भी फिसल गई. फिर दोनों ने ही अपनी हसरतें पूरी कीं. उन के बीच नाजायज रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता ही गया. अधेड़ उम्र की बेवा आरफा बेगम के जीवन में अब बहार आ गई थी. वह हासम अली पर दिलोजान से फिदा हो गई थी. हासम भी उस का दीवाना था. हासम अली अब होटल में भी रुकने लगा था. आरफा को वह होटल में ही बुला लेता था. 

उधर नदीम की बीवी जीनत फातिमा ने अनुभव किया कि जब से हासम अली घर आने लगा, तब से सासू मां की चालढाल में बदलाव आ गया है. क्योंकि अब वह सजसंवर कर रहने लगी थी और चेहरा खिलाखिला सा रहने लगा था. एक रात जीनत फातिमा बाथरूम जाने को उठी तो उस ने सासू आरफा बेगम के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनीं. वह कमरे के अंदर तो नहीं गई, लेकिन समझ गई कि सासूमां हासम अली के साथ मौजमस्ती में डूबी हुई है. अब वह सासू की चालढाल व संजनेसंवरने का मकसद समझ चुकी थी.

सुबह नाश्ते के समय जीनत फातिमा ने नाजायज रिश्तों की बात शौहर नदीम को बताई तो वह नाराज होते हुए बोला, ”जीनत, तुम उन दोनों की उम्र का लिहाज करो. हमारी मां को बदनाम करोगी तो मैं सहन नहीं करूंगा. तुम अपनी गलती सुधारो.’’ नदीम ने बीवी की बातों पर यकीन नहीं किया और उसे फटकार लगाई तो वह रूठ कर मायके चली गई. कुछ दिन बाद मिन्नतें कर नदीम उसे वापस घर लाया. उस के बाद उस ने चुप्पी साध ली. 

इधर आरफा बेगम हासम अली की मोहब्बत में इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने दुकानमकान बेच कर हासम अली के साथ रहने का फैसला कर लिया. उस ने इस बाबत हासम अली से बात की तो वह उसे अपने साथ अजमेर ले जाने को राजी हो गया. वह तो चाहता ही था कि आरफा बेगम सदैव उस के साथ रहे.

एक रोज आरफा बेगम ने दुकानमकान बेचने की चर्चा बेटे नदीम से की तो वह मां पर भड़क उठा. उस ने साफ कह दिया कि वह पैतृक संपत्ति बेच कर दूसरे शहर बसने नहीं जाएगा. उस ने यह भी कहा कि वह किसी के बहकावे में न आए, वरना कुछ भी हो सकता है. इस के बाद तो आए दिन मांबेटे के बीच संपत्ति बेचने को ले कर झगड़ा होने लगा. कभीकभी तो झगड़ा इतना बड़ जाता कि नदीम घर के बजाय दुकान पर सोने चला जाता. 

आरफा बेगम जब समझ गई कि नदीम दुकानमकान नहीं बेचने देगा और वह उस के प्यार में भी बाधा बन सकता है तो उस ने उसे अपने आशिक हासम अली के साथ मिल कर इकलौते बेटे को ही रास्ते से हटाने का निश्चय किया. आरफा बेगम ने इस बाबत हासम से बात की तो वह राजी हो गया. उस ने आरफा से कहा, ”तुम रकम तैयार करो. हम सुपारी किलर को सुपारी दे कर नदीम को रास्ते से हटवा देंगे. इस की किसी को कानोकान खबर भी न होगी.’’

हासम अली की जानपहचान सुपारी किलर मोहम्मद सलीम से थी. वह अजमेर नवल नगर मोहल्ला लौंगिया का रहने वाला था. हासम अली ने सलीम से बात की और नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख में दे दी. सुपारी देने की बात हासम अली ने आरफा बेगम को बताई. आरफा बेगम ने तब अपने इकलौते बेटे को मरवाने के लिए 25 लाख रुपया हासम अली को दे दिए. इस रकम में से 15 लाख रुपया हासम अली ने सलीम को दे दिए. शेष काम होने के बाद देने को कहा. 

रकम मिलने के बाद सलीम 3 जून, 2024 को कानपुर शहर आ गया. वह परेड के एक साधारण होटल में रुका. सुपारी किलर के पहुंचने की जानकारी तथा उस का मोबाइल नंबर हासम अली ने आरफा बेगम को बता दिया. 4 जून, 2024 की दोपहर आरफा बेगम ने बेटे नदीम से कहा कि एक रिश्तेदार बाहर से आए हैं. वह परेड पर हैं. उन्हें शहर घुमा दो. नदीम ने पहले तो नानुकुर की फिर मान गया. उस की बीवी जीनत फातिमा एक सप्ताह से मायके में थी, सो वह निश्चिंत था. नदीम तैयार हुआ फिर अपनी बाइक से परेड के लिए निकल पड़ा. जाने से पहले उस ने मां से रिश्तेदार का फोन नंबर ले लिया था. वह कोई रिश्तेदार नहीं, बल्कि उस की मौत बन कर आया सलीम था.

परेड चौराहा पर पहुंच कर उस ने रिश्तेदार को काल की तो वह चौराहे पर ही मिल गया. दोनों में बातचीत हुई फिर सलीम ने कहा, ”मुझे देवा शरीफ ले चलो. वहां जाने की बड़ी इच्छा है. तुम पेट्रोल की चिंता मत करो.’’ इस के बाद लखनऊ होते हुए शाम को वह देवा शरीफ पहुंच गए. वहां दोनों घूमेफिरे, फिर वापस कानपुर को चल पड़े.  लखनऊ पहुंचने तक रात के 10 बज गए थे. यहां दोनों ने खाना खाया. फिर कानपुर की ओर निकल पड़े. इस बीच दोनों खूब हिल मिल गए थे. रात 11 बजे के लगभग सलीम व नदीम दरबारी खेड़ा गांव पहुंचे. यह गांव उन्नाव जिले के अजगैन थाना अंतर्गत आता है. हाइवे रोड किनारे एक वीरान मंदिर था. मंदिर के पास ही एक कुआं था.

समीप सलीम ने बाथरूम (पेशाब) के बहाने बाइक रुकवा दी. सलीम बाथरूम करने चला गया और नदीम बाइक की सीट पर बैठ कर मोबाइल देखने लगा. उचित मौका देख कर सलीम ने चाकू निकाला और पीछे से नदीम के सिर पर चाकू से 2 प्रहार किए. नदीम जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. इस के बाद सलीम ने उस के गले व गरदन पर चाकू के प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद शव कुएं में फेंक दिया. फिर बाइक कुएं पर ही छोड़ कर फरार हो गया. चाकू को उस ने फरार होते समय मांस फैक्ट्री तिराहे के पास फेंक दिया था. 

सचमुच कुएं में पानी पर एक लाश उतरा रही थी. इस के बाद तो जिस ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर के पास स्थित उस कुएं की तरफ चल दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की भीड़ वहां जमा हो गई. इसी बीच किसी व्यक्ति ने फोन के जरिए कुएं में लाश पड़ी होने की सूचना थाना अजगैन पुलिस को दे दी. यह बात 5 जून, 2024 की सुबह की थी.

सूचना पाते ही एसएचओ अवनीश कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हो गए. रवाना होने से पूर्व उन्होने प्राप्त सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. कुछ देर बाद ही अवनीश कुमार सिंह घटनास्थल पहुंच गए. वह भीड़ को परे हटाते कुएं के पास पहुंचे और झांक कर देखा तो सच में कुएं में किसी युवक की लाश उतरा रही थी. कुएं के पास खून फैला था और एक बाइक खड़ी थी. एसएचओ ने अनुमान लगाया कि बाइक या तो मृतक की है या फिर कातिल की होगी. 

चूंकि बाइक के नंबरों से उस के मालिक का पता चल सकता था. अत: उन्होंने आरटीओ औफिस से उस नंबर के संबंध में जानकारी जुटाई. इस जांच में पता चला कि उक्त बाइक का रजिस्ट्रैशन मोहम्मद नदीम निवासी अलहम्द रेजीडेंसी इफ्तखाराबाद थाना अनवरगंज, कानपुर नगर के नाम है. रजिस्ट्रैशन से बाइक के बारे में तो पता चल गया, लेकिन कुएं में उतराती लाश नदीम की है या किसी और की, बिना शिनाख्त के कहना मुश्किल था. 

इस के बाद पुलिस ने कुएं से लाश बाहर निकलवाई. वहां मौजूद उस युवक की लाश की कोई शिनाख्त नहीं कर सका. पुलिस ने शिनाख्त के लिए नदीम के घर वालों को बुलवा लिया. शव देख कर एक अधेड़ उम्र की महिला फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना नाम आरफा बेगम बताया और कहा कि यह लाश उस के इकलौते बेटे मोहम्मद नदीम की है. घर वालों ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही आरफा बेगम के पति की मृत्यु हुई और अब इकलौता बेटा भी चला गया.

इस के बाद एसएचओ अवनीश सिंह ने शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. उस के सिर व गरदन पर गहरे जख्म थे. उस का मोबाइल फोन व पर्स गायब था. यह सामान या तो कुएं में गिर गया था या फिर कातिल अपने साथ ले गए.

किस ने की नदीम की हत्या

कुछ ही देर में एडिशनल एसपी उन्नाव (दक्षिणी) प्रेमचंद्र तथा सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जहां साक्ष्य जुटाए, वहीं पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने मौके पर मौजूद मृतक की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ की. आरफा बेगम ने बताया कि मोहम्मद नदीम घर से दुकान जाने के लिए कल 2 बजे बाइक से निकला था. जब वह रात 10 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस ने उस के मोबाइल फोन पर काल की, लेकिन उस का फोन बंद था. आज उस की लाश मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि नदीम रेडीमेड कपड़ों का कारोबारी था. अनवरगंज में उस की अपनी दुकान है. वह बेहद सीधा था. किसी से लड़ताझगड़ता नहीं था. उस की न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही लेनदेन का झगड़ा था. पूछताछ के बाद पुलिस ने नदीम के शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव के जिला अस्पताल भेज दिया. वापस थाने आ कर मृतक के मामा ताहिर की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र के निर्देश पर एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की जांच बड़ी बारीकी से शुरू की. उन्होंने सब से पहले एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. इस के बाद उन्होंने मृतक नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए.

लाश उन्नाव जिले के गांव दरबारी खेड़ा के पास मिली थी, इसलिए एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने दरबारी खेड़ा व उसके आसपास के गांवों के कई अपराधी किस्म के लोगों को हिरासत में लिया तथा उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन नदीम की हत्या का सुराग न लगा. इस के अलावा मुखबिर भी कोई खास जानकारी नहीं जुटा पा रहे थे. अब तक एक महीना से ज्यादा का समय गुजर गया था, लेकिन वह नदीम के हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. पुलिस अधिकारी भी जांच टीम पर दबाव बना रहे थे. नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर भी जबतब थाने आ जाते और जवाबसवाल करते.

एक रोज एसएचओ अवनीश कुमार सिंह अपने सहयोगियों के साथ नदीम की हत्या के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक युवती ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह मुसलिम समुदाय की लग रही थी. एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने सहयोगियों को बाहर जाने का इशारा करने के बाद उस युवती को कुरसी पर बैठने को कहा. वह फिर बोले, ”मोहतरमा, आप अपने बारे में बता कर अपनी समस्या बताएं, ताकि हम आप का सहयोग कर सकें.’’

उस युवती ने दाएंबाएं नजर घुमाई फिर बोली, ”हुजूर, मेरा नाम जीनत फातिमा है. मैं मरहूम नदीम की बीवी हूं. छिपतेछिपाते किसी तरह थाने आई हूं. मैं आप को एक ऐसा राज बताने आई हूं, जिस पर शायद आप को यकीन ही न हो.’’

”कैसा राज?’’ इंसपेक्टर अवनीश ने पूछा. 

”यही कि मेरे शौहर की हत्या का राज मेरी सास आरफा बेगम के पेट में छिपा है. मुझे शक है कि उन्होंने ही कोई योजना बना कर मेरे शौहर को मरवाया है.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने एक सरसरी निगाह जीनत फातिमा पर डाली, फिर बोले, ”न जानें क्यों मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है. भला एक मां अपने एकलौते बेटे का कत्ल क्यों कराएगी? फिर भी मैं तुम्हारे शक का कारण जानना चाहता हूं.’’

हुजूर, शक का पहला कारण यह है कि आरफा बेगम मकान व दुकान बेचना चाहती थी, लेकिन मेरे पति इस का विरोध कर रहे थे. इस को ले कर मांबेटे में तकरार होती थी. शक का दूसरा कारण आरफा बेगम की यारी. यानी उस के नाजायज संबंध अजमेर निवासी एक रिश्तेदार से हैं. वह मकानदुकान बेच कर उस के साथ रहना चाहती थी. लेकिन मेरे पति विरोध करते थे. मुझे शक है कि इसी विरोध के चलते सासू अम्मी ने उन का काम तमाम करा दिया.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह सोच में पड़ गए, ”क्या एक मां इतनी बेरहम हो सकती है कि देहसुख के लिए जवान बेटे का कत्ल करा दे?’’

इस के बाद अवनीश कुमार सिंह ने एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र से मुलाकात की और उन्हें पूरी बात बताई. शक के आधार पर उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने का आदेश दिया. यही नहीं उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन भी कर दिया. इस टीम में इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राम नारायण, हैडकांस्टेबल राधेश्याम, कांस्टेबल पवन, अर्पित, सूरजपाल, अरुण कुमार, तथा महिला कांस्टेबल विमल को शामिल किया गया. टीम की बागडोर सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह को सौंपी गई. 

पुलिस टीम ने शक के आधार पर मृतक की मां मोहम्मद आरफा बेगम की निगरानी शुरू कर दी. यही नहीं, आरफा बेगम व मृतक नदीम के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाई. आरफा बेगम की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला. वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात नहीं करती थी. घटना वाले दिन भी उस ने किसी से बात नहीं की थी. रात 10 बजे उस ने नदीम को फोन किया था. 

लेकिन नदीम के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स में टीम को एक संदिग्ध नंबर मिला. इस नंबर पर नदीम ने 4 जून, 2024 को बात की थी. इस संदिग्ध नंबर की पुलिस टीम ने जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर सलीम पुत्र सिद्ïदीकी निवासी गली न 15 नवल नगर मोहल्ला लौंगिया थाना गंज, जिला अजमेर (राजस्थान) के नाम दर्ज है. संदिग्ध व्यक्ति सलीम पुलिस की रडार पर आया तो टीम उस की टोह में अजमेर जा पहुंची. टीम ने लौंगिया बस्ती में सलीम के घर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार था. पता चला कि वह किसी काम से उत्तर प्रदेश गया है. 

पुलिस टीम तब हाथ मलते हुए वापस लौट आई, लेकिन टीम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठी. टीम ने खबरियों का जाल बिछा दिया और स्वयं भी टोह में लग गई. टीम ने उन्नाव के बस अड्ïडा व रेलवे स्टेशन पर निगरानी बढ़ा दी. 

इधर सुबह दरबारी खेड़ा के कुछ लोग खेतों की तरफ गए तो उन्होंने कुएं में उतराती लाश देखी. उन्होंने थाना अजगैन पुलिस को सूचना दी. 21 जुलाई, 2024 को पुलिस ने आरोपी आरफा बेगम, मोहम्मद सलीम व हासम अली को उन्नाव कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. 

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लड़के आंखों से डार्क सर्कल्स कैसे हटाएं

डार्क सर्कल्स जैसा कि नाम से ही मालूम होता है आंखों के नीचे (और कभीकभी ऊपर) बनने वाले काले घेरे होते हैं. ये कई कारणों से हो सकते हैं जैसे, अनिद्रा, तनाव, धूल या धुआं इत्यादि. खून के ठीक तरह से संचालन न होने से या उम्र बढ़ने के कारण त्वचा ढीली व कमजोर पड़ने से भी डार्क सर्कल्स होने लगते हैं.

नियमित रूप से 8 घंटे की पूरी नींद लेने, एलर्जी के कारण डार्क सर्कल्स हैं तो उन एलर्जीस को दूर करने, ढेर सारा पानी पीने और धूम्रपान न करने से आप की आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स नहीं होंगे. परंतु, अगर आप यह नहीं करते हैं तो डार्क सर्कल्स जायज है कि हो जाएं और उन से आप को कुछ उपाय कर निबटना पड़े.

निम्नलिखित कुछ ऐसी टिप्स हैं जिन से आप डार्क सर्कल्स से छुटकारा पा सकते हैं:

  1. ठंडी चम्मच या कपड़ा* – फ्रीजर में कुछ देर चम्मच या किसी कपड़े को रख कर निकाल लीजिए और 1. सीधा अपने डार्क सर्कल्स पर लगाइए. ठंडक डार्क सर्कल्स को हटाने में मदद करती है. आप चाहें तो आंखों पर खीरा भी रख सकते हैं.

2. टी बैग्स – कैफीन हमेशा से डार्क सर्कल्स हटाने का सुलभ तरीका रहा है. टी बैग्स साधारण तरह से इस्तेमाल करने के बाद भीगे हुए टी बैग को कुछ देर फ्रीजर में रख दें. उसे निकालें और आंखों पर कुछ देर रखें. इस से डार्क सर्कल्स आसानी से चले जाएंगे.

3. गुलाब जल – रुई का टुकड़ा ले कर उसे गुलाब जल में भिगाएं और सीधे डार्क सर्कल्स पर हलके हाथ से थपकी देते हुए लगाएं. इसे 10 मिनट के अंतराल में 3 बार दोहराएं. इस से न केवल त्वचा को ठंडक मिलेगी बल्कि मोइश्चर भी मिलेगा और राहत भी महसूस होगी. साथ ही, डार्क सर्कल्स भी हल्के हो जाएंगे.

4. टमाटर – टमाटर एक अच्छा ब्लीचिंग एजेंट है जो आंखों के नीचे के डार्क सर्कल्स को हलका करता है. 2 चम्मच टमाटर के रस में कुछ बूंदे नीबू के रस की मिलाएं और डार्क सर्कल्स पर लगा लें. 10 मिनट बाद गुनगुने पानी से धो लें.

5. बादाम का तेल – बादाम के तेल को आंखों के नीच रात में लगा कर सो जाएं. सुबह उठ कर देखेंगे तो न केवल डार्क सर्कल्स हलके हो जाएंगे बल्कि यह त्वचा के रूखेपन को हटा कर मोइश्चर को भी लोक कर के रखेगा.

6. आलू का रस – आलू विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है जो त्वचा को निखारता है व डार्क सर्कल्स पर बेहद असरदार होता है. इसे इस्तेमाल करने के लिए आलू को घिस कर उस का रस निकाल लीजिए, उस में रुई को डुबाइए और सीधा डार्क सर्कल्स पर रख लीजिए. 10 मिनट रखने के बाद गुनगुने पानी से धो लीजिए.

7. पुदीने के पत्ते– पुदीना ठंडा होता है जो डार्क सर्कल्स हलके करने के साथसाथ त्वचा को रिफ्रेश और रिलेक्स करता है. पुदीने के कुछ पत्ते पीस कर पानी में मिला कर गाढ़ा पेस्ट बना लें. इसे डार्क सर्कल्स पर 10 मिनट लगाए रखने के बाद ठंडे पानी से धो लें. इसे एक हफ्ते तक लगाएं और डार्क सर्कल्स पर इस का असर देखें.

8. एलोवेरा – एलोवेरा में एंटीएजिंग प्रोपर्टीज होती हैं जिस से त्वचा खिल जाती है. यह मोइश्चराइजर का भी काम करता है. एलोवेरा के अनेक फायदे हैं जिन में डार्क सर्कल्स हटाना भी एक है. रोज सोने से पहले आंखों के नीचे एलोवेरा जेल लगा कर सोएं.

दिल तो बच्चा है जी: वैशाली को मिली ऊषा की सीख

वैशाली को जबतब बेटी और बहू से उम्र के लिए टोंट पड़ते थे. इस कारण वह अपनी पसंद जाहिर ही नहीं कर पाई पर जब ऊषा ने उसे सीख दी तो वह उम्र के सारे बंधनों से आजाद हो गई. क्या थी वह सीख?

दुकानदार एक के बाद एक साडि़यां खोलखोल कर दिखा रहा था पर वैशाली की नजर लाल साड़ी पर अटक गई थी. लाल रंग की जमीन पर सुनहरी जरी से बेलबूटे का काम हो रखा था.

कपड़ा इतना हलका जैसे कुछ पहना ही न हो. तभी छोटी बेटी कायरा बोली, ‘‘अरे भैया, यह क्या डार्क कलर दिखा रहे हो, मम्मी की शादी की गोल्डन जुबली है.

कुछ सोबर और एलिगेंट दिखाएं.’’ बहू माही बोली, ‘‘मम्मी को तो ग्रे, क्रीम शेड बेहद पसंद हैं. ऐसा ही कुछ दिखाएं.’’ वैशाली बोलना चाहती थी कि वह अपने सारे शौक इस वर्षगांठ पर पूरे करना चाहती है.

तब वैशाली और पराग की 50 साल पहले शादी हुई थी तब तो उन के पास न इतने पैसे थे और न ही इतनी सुविधा थी. वैशाली ने शादी में चटक रानी रंग का आर्टिफिशियल सिल्क का लहंगा पहना था. उस लहंगे का रंग और काम उसे बिलकुल नहीं सुहाया था. एक लोकल से पार्लर ने उस का मेकअप किया था जिस कारण उस की ठीकठाक शक्ल भी हास्यपद लग रही थी.

आज जब वैशाली किसी की शादी देखती तो उस के मन के सोए अरमान जाग जाते थे. तब वैशाली 70 वर्ष की नहीं बस 20 वर्ष की तरह ही सोचने लगती थी. दोनों बच्चों की शादी में वैशाली की इतनी भागमभाग रही कि वह ठीक से तैयार भी नहीं हो पाई थी.

10 दिन बाद वैशाली और पराग की गोल्डन जुबली है. दोनों बच्चे अब अच्छे से सैटल हैं और यह बच्चों का ही आइडिया था कि गोल्डन जुबली को धूमधाम से मनाया जाए. यह सुनते ही वैशाली के अंदर दबी इच्छाओं को मानो पंख लग गए हों.

हर बार उस की इच्छाओं के पंख उम्र के तले दबा दिए जाते थे. वैशाली के सामने दुकानदार ने क्रीम, वाइट, ग्रे, पीच रंग की साडि़यों का अंबार लगा दिया था पर वैशाली को तो एक भी साड़ी जंच नहीं रही थी. उस का पूरा मूड चौपट हो गया था.

न जाने क्यों माही और कायरा बरबस उसे उस की उम्र का एहसास दिलाने पर तुली हुई हैं. हां वे हैं 70 वर्ष की पर इस दिल का क्या करें जो फिर से एक 20 वर्ष की दुलहन की तरह सजना चाहता है.

दुकान से बाहर निकलते हुए वैशाली के कानों में बेटी कायरा के शब्द पड़ गए थे, ‘‘मम्मी को तो न जाने क्या चाहिए, अरे इस उम्र में कौन इतना चूजी होता है.’’ मेरी सास भी इस उम्र में बालों की रिबौंडिंग, फैशन कलर और न जाने क्याक्या करवाती रहती हैं. तभी माही की आवाज आई, ‘‘शुड ऐज ग्रेसफुल्ली.’’ दोनों को पता ही नहीं चला कि वैशाली को उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

वैशाली का मन खट्टा हो गया था. मतलब अब उन के बच्चों को उन का हेयर कलर करना भी खलता है. बच्चे क्या चाहते हैं कि वे 70 वर्ष की हो गई हैं तो पहननाओढ़ना छोड़ दें. माही और कायरा भी 40 वर्ष से ऊपर की ही हैं पर उन्होंने तो कभी उन के झबलेनुमा कपड़े देख कर व्यंग्य नहीं कसा. वहां से कार पार्लर की तरफ चल पड़ी.

माही बोली, ‘‘मम्मी, आप को क्याक्या सर्विस लेनी हैं, आप बता दो.’’ कायरा बोली, ‘‘भाभी, मम्मी क्या इस उम्र में प्रीब्राइडल पैकेज लेंगी?’’ ‘‘क्यों मम्मी?’’ ‘‘एक फेशियल ले लेंगी और आयब्रो करवा लेंगी.’’ ‘‘मैं खुद ही देख लूंगी, मम्मी को क्या पता?’’ दोनों ननदभाभी ने अपने लिए अच्छाखासा पैकेज लिया मानो एनिवर्सरी उन की ही हो और वैशाली के लिए एक साधारण सा पैक बुक कर दिया था.

जब पार्लर वाली लड़की ने कहा, ‘‘अरे मैम की एनिवर्सरी है, उन के लिए स्पैशल पैक लीजिए. ‘‘अपनी गोल्डन जुबली पर उन्हें एकदम दुलहन की तरह ग्लो करना चाहिए.’’ माही बोली, ‘‘अरे मम्मी को ये सब पसंद नहीं है और इन सब चौचलों से क्या उम्र छिप सकती है?’’

वैशाली मन ही मन सोच रही थी क्या यह बात उन दोनों पर लागू नहीं होती है. जब शाम को वे लोग घर पहुंचे तो पराग बाहर लौन में पौधों को पानी दे रहा था. उन के हाथ में पैकेट्स देख कर बोला, ‘‘लगता है पूरी मार्केट उठा कर ले आए हो.’’

कायरा छूटते ही बोली, ‘‘बस मम्मी के कपड़ों के अलावा. ‘‘न जाने इस उम्र में भी उन्हें क्या चाहिए?’’ रात को जब पराग कमरे में आया तो वैशाली से पूछा, ‘‘तुम्हारे चेहरे पर 12 क्यों बज रहे हैं?’’ ‘‘औरतें तो बहू और बेटी के आने पर खुश होती हैं और तुम बु झ गई हो.’’

वैशाली के सब्र का बांध टूट गया, रोंआसी सी बोली, ‘‘तुम ही बता दो, मु झे इस उम्र में कैसे व्यवहार करना चाहिए. तुम्हारी बेटी और बहू ने तो कोई कमी नहीं छोड़ी थी.’’ पराग को वैशाली के गुस्से का कारण सम झ नहीं आ रहा था. चिढ़ते हुए बोले, ‘‘अरे अब किस बात पर नाराज हो, जितने पैसे तुम ने कहा उतने दिए और चाहिए तो और ले लो पर ये ताने मत दो.’’

‘‘कल कायरा की सास भी आ जाएगी. उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि तुम उन के आने से खुश नहीं हो.’’ वैशाली का मूड और अधिक खराब हो गया था. कायरा की सास उसे फूटी आंख नहीं भाती थी. कायरा की सास ऊषा बेहद दबंग महिला थी.

पति के गुजरने के बाद भी वह खूब सजसंवर कर रहती थी. कायरा के साथसाथ वैशाली को भी ऊषा का इस तरह से सजना, ऊंची आवाज में होहो कर के हंसना, हमेशा पराग के साथ गप्पें लड़ाना बिलकुल पसंद नहीं था. पता नहीं क्यों वे ऐसा बच्चों जैसा व्यवहार करती हैं. अगर बेटी की सास न होती तो वैशाली ऊषा को घर में घुसने भी न देती पर क्या करे, रिश्ते से मजबूर हैं.

अगले दिन सुबह की फ्लाइट से ऊषा आ गई थी. नीली पैंट और लाल रंग की कुरती, लाल रंग की ही लिपस्टिक, केराटिन कराए हुए बाल, सलीके से किए हुए मेकअप के कारण ऊषा अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थी. वैशाली उसे देख कर मन ही मन जलभुन गई थी.

कायरा यह उम्र के प्रवचन अपनी सास को क्यों नहीं सुनाती? कौन कहेगा कि यह विधवा हैं. पता नहीं उसे अपने पति के मरने का दुख है भी या नहीं. ऊषा को देखते ही माही बोली, ‘‘आंटी, यू आर लुकिंग सो यंग एंड फ्रैश.’’ ऊषा बोली, ‘‘भई हमारे समधीसमधन की गोल्डन एनिवर्सरी है तो कुछ तो हमारा भी हक बनता है.’’ शाम को ऊषा ने अपने लाए हुए उपहार सब को दिखाए.

फिर एक पैकेट में से दो साडि़यां निकालते हुए बोली, ‘‘वैशाली आप कोई भी एक साड़ी पसंद कर लो, दूसरी साड़ी माही ले लेगी क्योंकि एनीवर्सरी आप की है तो पहला हक भी आप का है.’’ वैशाली ने अनमने ढंग से पैकेट खोला तो एक हरे रंग की और एक लाल रंग की साड़ी थी.

इस से पहले वैशाली कुछ चुनती, कायरा बोली, ‘‘भाभी को यह लाल रंग की साड़ी दे देते हैं. मम्मी कहां इस उम्र में लाल रंग पहनेंगी?’’ ऊषा डपटते हुए बोली, ‘‘क्यों मम्मी इंसान नहीं है या उम्र के साथ लोग जीना छोड़ देते हैं? वैसे यह लाल रंग वैशाली के गोरे रंग पर खूब फबेगा.

बाकी वैशाली तुम्हारी मरजी.’’ वैशाली िझ झकते हुए बोली, ‘‘इस उम्र में कोई यह तो नहीं कहेगा, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.’’ ऊषा बोली, ‘‘अरे बोलने दो, अब लोग मेरे बारे में न जाने क्याक्या बोलते हैं पर क्या मैं जीना छोड़ दूं. चलो, अब तुम यह बताओ, तुम ने उस रात के लिए क्या ड्रैस ली है?’’

वैशाली बोली, ‘‘अभी कुछ नहीं लिया है.’’ ऊषा हंसते हुए बोली, ‘‘और बहू और बेटी ने सब तैयारी कर ली है. कल सुबह तुम और मैं चलेंगे, माही और कायरा घर देखेंगी.’’ माही बोली, ‘‘पर मम्मी के बिना हम घर कैसे संभालेंगे.’’ ऊषा बोली, ‘‘सम झ लो अब वह सास नहीं, होने वाली दुलहन है. उसे कुछ दिनों के लिए घर की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दो.

‘‘वैसे, अब तुम दोनों के बच्चे भी जवान हो गए हैं, कब तक तुम दोनों बच्ची बनी रहोगी?’’ माही और कायरा ऊषा के इस तंज पर चिढ़ गई थीं पर क्या कर सकती थीं. वैशाली को न जाने क्यों इस बार ऊषा बड़ी अपनी सी लगी थी.

अगले दिन ऊषा और वैशाली ने खूब सारी शौपिंग की. आज वैशाली को कोई उस की उम्र की याद दिलाने वाला नहीं था. वैशाली ने वही लाल साड़ी खरीदी और फिर ऊषा के कहने पर मैचिंग ज्वैलरी भी ली. पार्लर जा कर ऊषा ने अपना और वैशाली का ब्यूटी पैकेज लिया.

फिर दोनों ने बौडी स्पा लिया, बाहर लंच किया और फिर ऊषा के कहने पर वैशाली ने अपने बाल भी कटवा लिए थे. जब शाम को ऊषा और वैशाली पहुंचीं तो वैशाली का बदला रूप देख कर माही और कायरा हक्कीबक्की रह गई थीं पर सामने से कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी थी पर उन के चेहरे पर दबीदबी हंसी वैशाली से छिपी नहीं रही थी.

वैशाली ऊषा से बोली, ‘‘बच्चे मन ही मन मु झ पर हंस रहे हैं.’’ ऊषा बोली, ‘‘पहले मांबाप के हिसाब से जिंदगी बिताई, फिर पति और अब बच्चों के अनुसार जिंदगी बिताई.’’ वैशाली बोली, ‘‘लेकिन उम्र का भी तो सोचना पड़ता है.

अब बच्चे भी बच्चों वाले हो गए हैं.’’ ऊषा हंसते हुए बोली, ‘‘पर दिल तो बच्चा है जी. क्या आज आप को अच्छा नहीं लगा.’’ वैशाली बोली, ‘‘बहुत अच्छा लगा.’’ रात में पराग बोला, ‘‘वैशाली, तुम आज सच में बहुत अच्छी लग रही हो. कटे हुए बाल बहुत सूट कर रहे हैं तुम पर.’’

अगले दिन फिर से वैशाली और ऊषा शौपिंग के लिए निकल पड़ीं. वैशाली ने कभी भी ऊषा को करीब से नहीं देखा था. अब जितना वह ऊषा को सम झती उतना ही उस के लिए सम्मान बढ़ रहा था. आखिकार वैशाली ने बोल ही दिया, ‘‘ऊषाजी, मैं आप को बहुत गलत सम झती थी.’’ ऊषा बोली, ‘‘जानती हूं सब यह ही सोचते हैं कि एक विधवा हो कर क्यों इतना सजतीसंवरती है. क्यों इस उम्र में भी एक्सपैरिमैंट करती रहती है.

‘‘पर वैशालीजी, क्या दिल कभी उम्र की सुनता है? अगर पति नहीं हैं, मेरे बच्चे बड़े हैं तो क्या मैं जीना छोड़ दूं? मेरा दिल तो हमेशा से ही बच्चा था और रहेगा भी.’’ वैशाली को भी ऊषा के उत्साह की छूत लग गई थी. अब वैशाली ने भी कायरा और माही की दबी मुसकान पर ध्यान देना छोड़ दिया था. आज वैशाली की शादी की गोल्डन एनिवर्सरी थी.

लाल साड़ी, कटे बालों में वह एक अलग ही अवतार में नजर आ रही थी. वैशाली को इतने कंप्लीमैंट्स मिले जितने उसे अपनी शादी पर भी नहीं मिले थे. डिनर के बाद कपल डांस का प्रोग्राम था.

बच्चों के डांस करने के बाद जब वैशाली और पराग डांसफ्लोर पर आए तो उन्होंने भी पुराने गानों पर जीभर कर डांस किया. ऊषा ने भी महफिल को जमाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी. अगले दिन सुबह लगभग सभी मेहमान विदा हो गए थे.

अब ऊषाजी ने अपना सामान पैक कर लिया और जब वे विदा होने के लिए चल रही थीं तो वैशाली ने ऊषा को गले लगा कर कहा, ‘‘आप को हमेशा मैं ने गलत ही सम झा था पर इस बार आप से मैं ने बहुतकुछ सीखा है.

अगर हम अपनी उम्र को खुद पर हावी होने देंगे तो सच में समय से पहले ही बूढ़े हो जाएंगे.’’ ऊषा ने हंसते हुए कहा, ‘‘यह बात हमेशा याद रखना कि दिल तो बच्चा है जी. भूल कर भी अपने अंदर के बच्चे को मत मारना, यह ही तो हमारे जिंदा रहने की वजह है.’’

आलू वड़ा : मामी से उलझे दीपक के नैन

‘‘बाबू, तुम इस बार दरभंगा आओगे तो हम तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे,’’ छोटी मामी की यह बात दीपक के दिल को छू गई.

पटना से बीएससी की पढ़ाई पूरी होते ही दीपक की पोस्टिंग भारतीय स्टेट बैंक की सकरी ब्रांच में कर दी गई. मातापिता का लाड़ला और 2 बहनों का एकलौता भाई दीपक पढ़ने में तेज था. जब मां ने मामा के घर दरभंगा में रहने की बात की तो वह मान गया.

इधर मामा के घर त्योहार का सा माहौल था. बड़े मामा की 3 बेटियां थीं, मझले मामा की 2 बेटियां जबकि छोटे मामा के कोई औलाद नहीं थी.

18-19 साल की उम्र में दीपक बैंक में क्लर्क बन गया तो मामा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वहीं दूसरी ओर दीपक की छोटी मामी, जिन की शादी को महज 4-5 साल हुए थे, की गोद सूनी थी.

छोटे मामा प्राइवेट नौकरी करते थे. वे सुबह नहाधो कर 8 बजे निकलते और शाम के 6-7 बजे तक लौटते. वे बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चला पाते थे. ऐसी सूरत में जब दीपक की सकरी ब्रांच में नौकरी लगी तो सब खुशी से भर उठे.

‘‘बाबू को तुम्हारे पास भेज रहे हैं. कमरा दिलवा देना,’’ दीपक की मां ने अपने छोटे भाई से गुजारिश की थी.

‘‘कमरे की क्या जरूरत है दीदी, मेरे घर में 2 कमरे हैं. वह यहीं रह लेगा,’’ भाई के इस जवाब में बहन बोलीं, ‘‘ठीक है, इसी बहाने दोनों वक्त घर का बना खाना खा लेगा और तुम्हारी निगरानी में भी रहेगा.’’

दोनों भाईबहनों की बातें सुन कर दीपक खुश हो गया. मां का दिया सामान और जरूरत की चीजें ले कर दोपहर 3 बजे का चला दीपक शाम 8 बजे तक मामा के यहां पहुंच गया.

‘‘यहां से बस, टैक्सी, ट्रेन सारी सुविधाएं हैं. मुश्किल से एक घंटा लगता है. कल सुबह चल कर तुम्हारी जौइनिंग करवा देंगे,’’ छोटे मामा खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘आप का काम…’’ दीपक ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अरे, एक दिन छुट्टी कर लेते हैं. सकरी बाजार देख लेंगे,’’ छोटे मामा दीपक की समस्या का समाधान करते हुए बोल उठे.

2-3 दिन में सबकुछ सामान्य हो गया. सुबह साढ़े 8 बजे घर छोड़ता तो दीपक की मामी हलका नाश्ता करा कर उसे टिफिन दे देतीं. वह शाम के 7 बजे तक लौट आता था.

उस दिन रविवार था. दीपक की छुट्टी थी. पर मामा रोज की तरह काम पर गए हुए थे. सुबह का निकला दीपक दोपहर 11 बजे घर लौटा था. मामी खाना बना चुकी थीं और दीपक के आने का इंतजार कर रही थीं.

‘‘आओ लाला, जल्दी खाना खा लो. फेरे बाद में लेना,’’ मामी के कहने में भी मजाक था.

‘‘बस, अभी आया,’’ कहता हुआ दीपक कपड़े बदल कर और हाथपैर धो कर तौलिया तलाशने लगा.

‘‘तुम्हारे सारे गंदे कपड़े धो कर सूखने के लिए डाल दिए हैं,’’ मामी खाना परोसते हुए बोलीं.

दीपक बैठा ही था कि उस की मामी पर निगाह गई. वह चौंक गया. साड़ी और ब्लाउज में मामी का पूरा जिस्म झांक रहा था, खासकर दोनों उभार.

मामी ने बजाय शरमाने के चोट कर दी, ‘‘क्यों रे, क्या देख रहा है? देखना है तो ठीक से देख न.’’

अब दीपक को अजीब सा महसूस होने लगा. उस ने किसी तरह खाना खाया और बाहर निकल गया. उसे मामी का बरताव समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन दीपक देर रात घर आया और खाना खा कर सो गया.

अगली सुबह उठा तो मामा उसे बीमार बता रहे थे, ‘‘शायद बुखार है, सुस्त दिख रहा है.’’

‘‘रात बाहर गया था न, थक गया होगा,’’ यह मामी की आवाज थी.

‘आखिर माजरा क्या है? मामी क्यों इस तरह का बरताव कर रही हैं,’ दीपक जितना सोचता उतना उलझ रहा था.

रात खाना खाने के बाद दीपक बिस्तर पर लेटा तो मामी ने आवाज दी. वह उठ कर गया तो चौंक गया. मामी पेटीकोट पहने नहा रही थीं.

‘‘उस दिन चोरीछिपे देख रहा था. अब आ, देख ले,’’ कहते हुए दोनों हाथों से पकड़ उसे अपने सामने कर दिया.

‘‘अरे मामी, क्या कर रही हो आप,’’ कहते हुए दीपक ने बाहर भागना चाहा मगर मामी ने उसे नीचे गिरा दिया.

थोड़ी ही देर में मामीभांजे का रिश्ता तारतार हो गया. दीपक उस दिन पहली बार किसी औरत के पास आया था. वह शर्मिंदा था मगर मामी ने एक झटके में इस संकट को दूर कर दिया, ‘‘देख बाबू, मुझे बच्चा चाहिए और तेरे मामा नहीं दे सकते. तू मुझे दे सकता है.’’

‘‘मगर ऐसा करना गलत होगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मुझे खानदान चलाने के लिए औलाद चाहिए, तेरे मामा तो बस रोटीकपड़ा, मकान देते हैं. इस के अलावा भी कुछ चाहिए, वह तुम दोगे,’’ इतना कह कर मामी ने दीपक को बाहर भेज दिया.

उस के बाद से तो जब भी मौका मिलता मामी दीपक से काम चला लेतीं. या यों कहें कि उस का इस्तेमाल करतीं. मामा चुप थे या जानबूझ कर अनजान थे, कहा नहीं जा सकता, मगर हालात ने उन्हें एक बेटी का पिता बना दिया.

इस दौरान दीपक ने अपना तबादला पटना के पास करा लिया. पटना में रहने पर घर से आनाजाना होता था. छोटे मामा के यहां जाने में उसे नफरत सी हो रही थी. दूसरी ओर मामी एकदम सामान्य थीं पहले की तरह हंसमुख और बिंदास.

एक दिन दीपक की मां को मामी ने फोन किया. मामी ने जब दीपक के बारे में पूछा तो मां ने झट से उसे फोन पकड़ा दिया.

‘‘हां मामी प्रणाम. कैसी हो?’’ दीपक ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘मुझे भूल गए क्या लाला?’’

‘‘छोटी ठीक है?’’ दीपक ने पूछा तो मामी बोलीं, ‘‘बिलकुल ठीक है वह. अब की बार आओगे तो उसे भी देख लेना. अब की बार तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे. तुम्हें खूब पसंद है न.’’

दीपक ने ‘हां’ कहते हुए फोन काट दिया. इधर दीपक की मां जब छोटी मामी का बखान कर रही थीं तो वह मामी को याद कर रहा था जिन्होंने उस का आलू वड़ा की तरह इस्तेमाल किया, और फिर कचरे की तरह कूड़ेदान में फेंक दिया.

औरत का यह रूप उसे अंदर ही अंदर कचोट रहा था.

‘मामी को बच्चा चाहिए था तो गोद ले सकती थीं या सरोगेट… मगर इस तरह…’ इस से आगे वह सोच न सका.

मां चाय ले कर आईं तो वह चाय पीने लगा. मगर उस का ध्यान मामी के घिनौने काम पर था. उसे चाय का स्वाद कसैला लग रहा था.

लक्ष्मण रेखा : सब्र का दूसरा नाम थीं मिसेज राजीव

मेहमानों की भीड़ से घर खचाखच भर गया था. एक तो शहर के प्रसिद्ध डाक्टर, उस पर आखिरी बेटे का ब्याह. दोनों तरफ के मेहमानों की भीड़ लगी हुई थी. इतना बड़ा घर होते हुए भी वह मेहमानों को अपने में समा नहीं पा रहा था. कुछ रिश्ते दूर के होते हुए भी या कुछ लोग बिना रिश्ते के भी बहुत पास के, अपने से लगने लगते हैं और कुछ नजदीकी रिश्ते के लोग भी पराए, बेगाने से लगते हैं, सच ही तो है. रिश्तों में क्या धरा है? महत्त्व तो इस बात का है कि अपने व्यक्तित्व द्वारा कौन किस को कितना आकृष्ट करता है.

तभी तो डाक्टर राजीव के लिए शुभदा उन की कितनी अपनी बन गई थी. क्या लगती है शुभदा उन की? कुछ भी तो नहीं. आकर्षक व्यक्तित्व के धनी डाक्टर राजीव सहज ही मिलने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. उन की आंखों में न जाने ऐसा कौन सा चुंबकीय आकर्षण है जो देखने वालों की नजरों को बांध सा देता है. अपने समय के लेडीकिलर रहे हैं डाक्टर राजीव. बेहद खुशमिजाज. जो भी युवती उन्हें देखती, वह उन जैसा ही पति पाने की लालसा करने लगती. डाक्टर राजीव दूल्हा बन जब ब्याहने गए थे, तब सभी लोग दुलहन से ईर्ष्या कर उठे थे. क्या मिला है उन्हें ऐसा सजीला गुलाब सा दूल्हा. गुलाब अपने साथ कांटे भी लिए हुए है, यह कुछ सालों बाद पता चला था. अपनी सुगंध बिखेरता गुलाब अनायास कितने ही भौंरों को भी आमंत्रित कर बैठता है. शुभदा भी डाक्टर राजीव के व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उन की तरफ खिंची चली आई थी.

बौद्धिक स्तर पर आरंभ हुई उन की मित्रता दिनप्रतिदिन घनिष्ठ होती गई थी और फिर धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के लिए अपरिहार्य बन गए थे. मिसेज राजीव पति के बौद्धिक स्तर पर कहीं भी तो नहीं टिकती थीं. बहुत सीधे, सरल स्वभाव की उषा बौद्धिक स्तर पर पति को न पकड़ पातीं, यों उन का गठा बदन उम्र को झुठलाता गौरवर्ण, उज्ज्वल ललाट पर सिंदूरी गोल बड़ी बिंदी की दीप्ति ने बढ़ती अवस्था की पदचाप को भी अनसुना कर दिया था. गहरी काली आंखें, सीधे पल्ले की साड़ी और गहरे काले केश, वे भारतीयता की प्रतिमूर्ति लगती थीं. बहुत पढ़ीलिखी न होने पर भी आगंतुक सहज ही बातचीत से उन की शिक्षा का परिचय नहीं पा सकता था. समझदार, सुघड़, सलीकेदार और आदर्श गृहिणी. आदर्श पत्नी व आदर्श मां की वे सचमुच साकार मूर्ति थीं. उन से मिलते ही दिल में उन के प्रति अनायास ही आकर्षण, अपनत्व जाग उठता, आश्चर्य होता था यह देख कर कि किस आकर्षण से डाक्टर राजीव शुभदा की तरफ झुके. मांसल, थुलथुला शरीर, उम्र को जबरन पीछे ढकेलता सौंदर्य, रंगेकटे केश, नुची भौंहें, निरंतर सौंदर्य प्रसाधनों का अभ्यस्त चेहरा. असंयम की स्याही से स्याह बना चेहरा सच्चरित्र, संयमी मिसेज राजीव के चेहरे के सम्मुख कहीं भी तो नहीं टिकता था.

एक ही उम्र के माइलस्टोन को थामे खड़ी दोनों महिलाओं के चेहरों में बड़ा अंतर था. कहते हैं सौंदर्य तो देखने वालों की आंखों में होता है. प्रेमिका को अकसर ही गिफ्ट में दिए गए महंगेमहंगे आइटम्स ने भी प्रतिरोध में मिसेज राजीव की जबान नहीं खुलवाई. प्रेमी ने प्रेमिका के भविष्य की पूरी व्यवस्था कर दी थी. प्रेमिका के समर्पण के बदले में प्रेमी ने करोड़ों रुपए की कीमत का एक घर बनवा कर उसे भेंट किया था. शाहजहां की मलिका तो मरने के बाद ही ताजमहल पा सकी थी, पर शुभदा तो उस से आगे रही. प्रेमी ने प्रेमिका को उस के जीतेजी ही ताजमहल भेंट कर दिया था. शहरभर में इस की चर्चा हुई थी. लेकिन डाक्टर राजीव के सधे, कुशल हाथों ने मर्ज को पकड़ने में कभी भूल नहीं की थी. उस पर निर्धनों का मुफ्त इलाज उन्हें प्रतिष्ठा के सिंहासन से कभी नीचे न खींच सका था.

जिंदगी को जीती हुई भी जिंदगी से निर्लिप्त थीं मिसेज राजीव. जरूरत से भी कम बोलने वाली. बरात रवाना हो चुकी थी. यों तो बरात में औरतें भी गई थीं पर वहां भी शुभदा की उपस्थिति स्वाभाविक ही नहीं, अनिवार्य भी थी. मिसेज राजीव ने ‘घर अकेला नहीं छोड़ना चाहिए’ कह कर खुद ही शुभदा का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. मां मिसेज राजीव की दूर की बहन लगती हैं. बड़े आग्रह से पत्र लिख उन्होंने हमें विवाह में शामिल होने का निमंत्रण भेजा था. सालों से बिछुड़ी बहन इस बहाने उन से मिलने को उत्सुक हो उठी थी.

बरात के साथ न जा कर मिसेज राजीव ने उस स्थिति की पुनरावृत्ति से बचना चाहा था जिस में पड़ कर उन्हें उस दिन अपनी नियति का परिचय प्राप्त हो गया था. डाक्टर राजीव काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे. डाक्टरों के अनुसार उन का एक छोटा सा औपरेशन करना जरूरी था. औपरेशन का नाम सुनते ही लोगों का दिल दहल उठता है.

परिणामस्वरूप ससुराल से भी रिश्तेदार उन्हें देखने आए थे. अस्पताल में शुभदा की उपस्थिति, उस पर उसे बीमार की तीमारदारी करती देख ताईजी के तनबदन में आग लग गई थी. वे चाह कर भी खुद को रोक न सकी थीं. ‘कौन होती हो तुम राजीव को दवा पिलाने वाली? पता नहीं क्याक्या कर के दिनबदिन इसे दीवाना बनाती जा रही है. इस की बीवी अभी मरी नहीं है,’ ताईजी के कर्कश स्वर ने सहसा ही सब का ध्यान आकर्षित कर लिया था.

अपराधिनी सी सिर झुकाए शुभदा प्रेमी के आश्वासन की प्रतीक्षा में दो पल खड़ी रह सूटकेस उठा कर चलने लगी थी कि प्रेमी के आंसुओं ने उस का मार्ग अवरुद्ध कर दिया था. उषा पूरे दृश्य की साक्षी बन कर पति की आंखों की मौन प्रार्थना पढ़ वहां से हट गई थी. पत्नी के जीवित रहते प्रेमिका की उपस्थिति, सबकुछ कितना साफ खुला हुआ. कैसी नारी है प्रेमिका? दूसरी नारी का घर उजाड़ने को उद्यत. कैसे सब सहती है पत्नी? परनारी का नाम भी पति के मुख से पत्नी को सहन नहीं हो पाता. सौत चाहे मिट्टी की हो या सगी बहन, कौन पत्नी सह सकी है?

पिता का आचरण बेटों को अनजान?े ही राह दिखा गया था. मझले बेटे के कदम भी बहकने लगे थे. न जाने किस लड़की के चक्कर में फंस गया था कि चतुर शुभदा ने बिगड़ती बात को बना लिया. न जाने किन जासूसों के बूते उस ने अपने प्रेमी के सम्मान को डूबने से बचा लिया. लड़के की प्रेमिका को दूसरे शहर ‘पैक’ करा के बेटे के पैरों में विवाह की बेडि़यां पहना दीं. सभी ने कल्पना की थी बापबेटे के बीच एक जबरदस्त हंगामा होने की, पर पता नहीं कैसा प्रभुत्व था पिता का कि बेटा विवाह के लिए चुपचाप तैयार हो गया. ‘ईर्ष्या और तनावों की जिंदगी में क्यों घुट रही हो?’ मां ने उषा को कुरेदा था.

एकदम चुप रहने वाली मिसेज राजीव उस दिन परत दर परत प्याज की तरह खुलती चली गई थीं. मां भी बरात के साथ नहीं गई थीं. घर में 2 नौकरों और उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था. इतने लंबे अंतराल में इतना कुछ घटित हो गया, मां को कुछ लिखा भी नहीं. मातृविहीन सौतेली मां के अनुशासन में बंधी उषा पतिगृह में भी बंदी बन कर रह गई थी. मां ने उषा की दुखती रग पर हाथ धर दिया था. वर्षों से मन ही मन घुटती मिसेज राजीव ने मां का स्नेहपूर्ण स्पर्श पा कर मन में दबी आग को उगल दिया था. ‘मैं ने यह सब कैसे सहा, कैसे बताऊं? पति पत्नी को मारता है तो शारीरिक चोट ही देता है, जिसे कुछ समय बाद पत्नी भूल भी जाती है पर मन की चोट तो सदैव हरी रहती है. ये घाव नासूर बनते जाते हैं, जो कभी नहीं भरते.

‘पत्नीसुलभ अधिकारों को पाने के लिए विद्रोह तो मैं ने भी करना चाहा था पर निर्ममता से दुत्कार दी गई. जब सभी राहें बंद हों तो कोई क्या कर सकता है? ‘ऊपर से बहुत शांत दिखती हूं न? ज्वालामुखी भी तो ऊपर से शांत दिखता है, लेकिन अपने अंदर वह जाने क्याक्या भरे रहता है. कलह से कुछ बनता नहीं. डरती हूं कि कहीं पति को ही न खो बैठूं. आज वे उसे ब्याह कर मेरी छाती पर ला बिठाएं या खुद ही उस के पास जा कर रहने लगें तो उस स्थिति में मैं क्या कर लूंगी?

‘अब तो उस स्थिति में पहुंच गई हूं जहां मुझे कुछ भी खटकता नहीं. प्रतिदिन बस यही मनाया करती हूं कि मुझे सबकुछ सहने की अपारशक्ति मिले. कुदरत ने जिंदगी में सबकुछ दिया है, यह कांटा भी सही. ‘नारी को जिंदगी में क्या चाहिए? एक घर, पति और बच्चे. मुझे भी यह सभीकुछ मिला है. समय तो उस का खराब है जिसे कुदरत कुछ देती हुई कंजूसी कर गई. न अपना घर, न पति और न ही बच्चे. सिर्फ एक अदद प्रेमी.’

उषा कुछ रुक कर धीमे स्वर में बोली, ‘दीदी, कृष्ण की भी तो प्रेमिका थी राधा. मैं अपने कृष्ण की रुक्मिणी ही बनी रहूं, इसी में संतुष्ट हूं.’ ‘लोग कहते हैं, तलाक ले लो. क्या यह इतना सहज है? पुरुषनिर्मित समाज में सब नियम भी तो पुरुषों की सुविधा के लिए ही होते हैं. पति को सबकुछ मानो, उन्हें सम्मान दो. मायके से स्त्री की डोली उठती है तो पति के घर से अर्थी. हमारे संस्कार तो पति की मृत्यु के साथ ही सती होना सिखाते हैं. गिरते हुए घर को हथौड़े की चोट से गिरा कर उस घर के लोगों को बेघर नहीं कर दिया जाता, बल्कि मरम्मत से उस घर को मजबूत बना उस में रहने वालों को भटकने से बचा लिया जाता है.

‘तनाव और घुटन से 2 ही स्थितियों में छुटकारा पाया जा सकता है या तो उस स्थिति से अपने को अलग करो या उस स्थिति को अपने से काट कर. दोनों ही स्थितियां इतनी सहज नहीं. समाज द्वारा खींची गई लक्ष्मणरेखा को पार कर सकना मेरे वश की बात नहीं.’

मिसेज राजीव के उद्गार उन की समझदारी के परिचायक थे. कौन कहेगा, वे कम पढ़ीलिखी हैं? शिक्षा की पहचान क्या डिगरियां ही हैं?

बरात वापस आ गई थी. घर में एक और नए सदस्य का आगमन हुआ था. बेटे की बहू वास्तव में बड़ी प्यारी लग रही थी. बहू के स्वागत में उषा के दिल की खुशी उमड़ी पड़ रही थी. रस्म के मुताबिक द्वार पर ही बहूबेटे का स्वागत करना होता है. बहू बड़ों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद पाती है. सभी बड़ों के पैर छू आशीष द्वार से अंदर आने को हुआ कि किसी ने व्यंग्य से चुटकी ली, ‘‘अरे भई, इन के भी तो पैर छुओ. ये भी घर की बड़ी हैं.’’ शुभदा स्वयं हंसती हुई आ खड़ी हुई. आशीष के चेहरे की हर नस गुस्से में तन गई. नया जवान खून कहीं स्थिति को अप्रिय ही न बना दे, बेटे के चेहरे के भाव पढ़ते हुए मिसेज राजीव ने आशीष के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटा, आगे बढ़ कर चरणस्पर्श करो.’’

काम की व्यस्तता व नई बहू के आगमन की खुशी में सभी यह बात भूल गए पर आशीष के दिल में कांटा पड़ गया, मां की रातों की नींद छीनने वाली इस नारी के प्रति उस के दिल में जरा भी स्थान नहीं था. शाम को घर में पार्टी थी. रंगबिरंगी रोशनियों से फूल वाले पौधों और फलदार व सजावटी पेड़ों से आच्छादित लौन और भी आकर्षक लग रहा था. शुभदा डाक्टर राजीव के साथ छाया सी लगी हर काम में सहयोग दे रही थी. आमंत्रित अतिथियों की लिस्ट, पार्टी का मीनू सभीकुछ तो उस के परामर्श से बना था.

शहनाई का मधुर स्वर वातावरण को मोहक बना रहा था. शहर के मान्य व प्रतिष्ठित लोगों से लौन खचाखच भर गया था. नईनेवली बहू संगमरमर की तराशी मूर्ति सी आकर्षक लग रही थी, देखने वालों की नजरें उस के चेहरे से हटने का नाम ही नहीं लेती थीं. एक स्वर से दूल्हादुलहन व पार्टी की प्रशंसा की जा रही थी. साथ ही, दबे स्वरों में हर व्यक्ति शुभदा का भी जिक्र छेड़ बैठता. ‘‘यही हैं न शुभदा, नीली शिफौन की साड़ी में?’’ डाक्टर राजीव के बगल में आ खड़ी हुई शुभदा को देखते ही किसी ने पूछा.

‘‘डाक्टर राजीव ने क्या देखा इन में? मिसेज राजीव को देखो न, इस उम्र में भी कितनी प्यारी लगती हैं.’’ ‘‘तुम ने सुना नहीं, दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज?’’

‘‘शुभदा ने शादी नहीं की?’’ ‘‘शादी की होती तो अपने पति की बगल में खड़ी होती, डाक्टर राजीव के पास क्या कर रही होती?’’ किसी ने चुटकी ली, ‘‘मजे हैं डाक्टर साहब के, घर में पत्नी का और बाहर प्रेमिका का सुख.’’

घर के लोग चर्चा का विषय बनें, अच्छा नहीं लगता. ऐसे ही एक दिन आशीष घर आ कर मां पर बड़ा बिगड़ा था. पिता के कारण ही उस दिन मित्रों ने उस का उपहास किया था. ‘‘मां, तुम तो घर में बैठी रहती हो, बाहर हमें जलील होना पड़ता है. तुम यह सब क्यों सहती हो? क्यों नहीं बगावत कर देतीं? सबकुछ जानते हुए भी लोग पूछते हैं, ‘‘शुभदा तुम्हारी बूआ है? मन करता है सब का मुंह नोच लूं. अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा. तुम यहां नहीं रहोगी.’’

मां निशब्द बैठी मन की पीड़ा, अपनी बेबसी को आंखों की राह बहे जाने दे रही थी. बच्चे दुख पाते हैं तो मां पर उबल पड़ते हैं. वह किस पर उबले? नियति तो उस की जिंदगी में पगपग पर मुंह चिढ़ा रही थी. बेटी साधना डिलीवरी के लिए आई हुई थी. उस के पति ने लेने आने को लिखा तो उस ने घर में शुभदा की उपस्थित को देख, कुछ रुक कर आने को लिख दिया था. ससुराल में मायका चर्चा का विषय बने, यह कोईर् लड़की नहीं चाहती. उसी स्थिति से बचने का वह हर प्रयत्न कर रही थी. पर इतनी लंबी अवधि के विरह से तपता पति अपनी पत्नी को विदा कराने आ ही पहुंचा.

शुभदा का स्थान घर में क्या है, यह उस से छिपा न रह सका. स्थिति को भांप कर ही चतुर विवेक ने विदा होते समय सास और ससुर के साथसाथ शुभदा के भी चरण स्पर्श कर लिए. पत्नी गुस्से से तमतमाती हुई कार में जा बैठी और जब विवेक आया तो एकदम गोली दागती हुई बोली, ‘‘तुम ने उस के पैर क्यों छुए?’’ पति ने हंसते हुए चुटकी ली, ‘‘अरे, वह भी मेरी सास है.’’

साधना रास्तेभर गुमसुम रही. बहुत दिनों बाद सुना था आशीष ने मां को अपने साथ चलने के लिए बहुत मनाया था पर वह किसी भी तरह जाने को राजी नहीं हुई. लक्ष्मणरेखा उन्हें उसी घर से बांधे रही.

आंतरिक साहस के अभाव में ही मिसेज राजीव उसी घर से पति के साथ बंधी हैं. रातभर छटपटाती हैं, कुढ़ती हैं, फिर भी प्रेमिका को सह रही हैं सुबहशाम की दो रोटियों और रात के आश्रय के लिए. वे डरपोक हैं. समाज से डरती हैं, संस्कारों से डरती हैं, इसीलिए उन्होंने जिंदगी से समझौता कर लिया है. सुना था, इतनी असीम सहनशक्ति व धैर्य केवल पृथ्वी के पास ही है पर मेरे सामने तो मिसेज राजीव असीम सहनशीलता का साक्षात प्रमाण है.

कोट का अस्तर : रफीक बाबू को किस घटना ने तोड़ दिया था

सर्दी इस कदर ज्यादा थी कि खून भी जमा दे. दफ्तर पहुंच कर रफीक बाबू की रगों में जैसे खून का दौरा शुरू हुआ.

दफ्तर में लोगों की तादाद में इजाफा होने लगा था और शुरू हुई फाइलों की उठापटक, अफसरान की घंटियां.

रफीक बाबू की दाहिनी ओर निरंजन शर्मा बैठते थे, तो बाईं ओर आमोद प्रकाश. वे दोनों उन पर किसी दुश्मन की तरह काबिज रहते थे. उन के तरकश के तीर रफीक के मन को बींध कर रख देते थे.

दफ्तर में कहने को तो और भी बहुत लोग थे, पर उन दोनों का एक ही टारगेट था, रफीक बाबू.

आज फिर निरंजन शर्मा ने ताना कसा, ‘‘यार रफीक, मेरी राय में तुम्हें एक नया कोट खरीद लेना चाहिए. इस बार की सर्दी कम से कम यह कोट तो नहीं   झेल पाएगा.’’

‘‘आप की मानें तब न. जनाब तो कानों में रुई ठूंसे रखते हैं. पता नहीं, इस कोट की जान कहां बाकी है?’’ आमोद प्रकाश ने चुटकी ली.

‘‘भाई, जान नहीं होती, तो ओढे़ रहते?’’ निरंजन शर्मा ने कहा.

‘‘शर्माजी, सच कहूं तो इन की हालत उस बंदरिया जैसी है, जो मरे बच्चे को जिंदा सम  झ कर अपनी छाती से चिपकाए फिरती है. इसे कहते हैं प्यारमुहब्बत,’’ कहते हुए आमोद प्रकाश ने हलकी सी मुसकान छोड़ी, तो रफीक बाबू जलभुन कर खाक हो गए, लेकिन वे सिर   झुकाए खयालों की दुनिया में मशगूल रहे.

उन्होंने सोचा, ‘यह कमबख्त सर्दी कब खत्म होगी और कब इन बदमाशों का ध्यान इस कोट से हटेगा. आज कोट बनवा लूं, तो पेट काटने वाली बात हो जाएगी.

‘इस तनख्वाह से बेटी के निकाह में लिए कर्ज की किस्त चुकता करूं कि बीवी समेत 3-3 बच्चों के मुंह में निवाला डालूं. जितनी चादर होगी, उतने ही तो पैर पसरेंगे.

‘इन का क्या है. बापदादा का कमाया पोता ही तो बरतेगा. ऊपरी कमाई है, सो अलग. अपने गले में ईमानदारी का तमगा जो लगा है, कोढ़ में खाज की तरह. जब समय आएगा, तब कोट भी बन जाएगा.’

इसी उधेड़बुन में शाम ढलने लगी. ऐसा नहीं है कि रफीक बाबू की हैसियत कोट सिलवाने की न थी, पर कुछ पैसे वे मसजिद में चढ़ा कर आते, तो कुछ खैनीजरदा खाने में खर्च कर देते थे. कमजोरी की वजह से डाक्टर का खर्च भी था. जब कोट बनवाने की बात हो, तो दूसरे खर्च काटने का मन न करता और धर्म व जरदे को वे छोड़ नहीं पा रहे थे.

आज महीने का पहला दिन था. तनख्वाह बैंक में चली गई थी. बेगम ने सुबह ही लंबी फेहरिस्त हाथ में थमा दी थी कि यह ले आना, वह ले आना. अब 1-2 दिन हिसाबकिताब में कटेंगे, बाकी बचे दिनों की गिनती करने में.

इधर दीवार घड़ी 5 बार ठुनकी, तब जा कर रफीक बाबू फ्लैशबैक से लौटे.

रफीक बाबू हड़बड़ा कर उठे और सीधे एटीएम की ओर चल दिए. वहां से नोट निकाले. कड़क नोटों को उंगलियों के बीच मसल कर उन्हें पलभर को गरमी का एहसास हुआ.

रफीक बाबू बाहर निकले थे कि तभी उन का निरंजन शर्मा से सामना हो गया.

रफीक बाबू उन की अनदेखी कर दोबारा एटीएम में घुस गए. लेकिन भला निरंजन शर्मा ऐसा मौका क्यों चूकते. उन्होंने धीरे से जुमला उछाल दिया, ‘‘वाह रे कोट, क्या किस्मत पाई है. सर्दी में भी गरमी का एहसास.’’

रफीक बाबू उन से उल  झना नहीं चाहते थे. बस, खून के घूंट पी कर रह गए. आज जल्दी घर पहुंचना चाहते थे, लेकिन निकलतेनिकलते शाम के 6 बज गए.

बसस्टैंड पर पहुंच कर रफीक बाबू ने सोचा, ‘चलो, एक पैकेट सिगरेट ही खरीद लें.’ उन के हाथ की उंगलियां जेबें टटोल रही थीं, मगर रुपयों से टकराव नहीं हुआ. मारे घबराहट के उन्हें सर्दी के बावजूद पसीना छलक आया.

पान वाला रफीक बाबू की उड़ती रंगत भांप गया. सो, मुसकरा कर दूसरे ग्राहकों को निबटाने लगा.

रफीक बाबू के हाथों के तोते उड़ गए थे और जेब से पगार. हिम्मत कर के वे तेजी से उस एटीएम की ओर लपके, जहां से रुपए निकाले थे.

एटीएम का कोनाकोना देख मारा, पर कहीं कुछ न मिला. थकहार कर वे बैरंग लौट आए. अब किस से कहें और किस से पूछें?

अंधेरे के काले डैने फैलने लगे थे. रफीक बाबू खुद को धकियाते हुए पैदल ही घर तक का सफर तय करने लगे.

उन की हालत यह हो गई कि एक बार वे मोटरसाइकिल से टकरातेटकराते बचे थे, तो दूसरी बार ठेली वाले से बातोंबातों में   झगड़ने से बचे थे.

रफीक बाबू किसी तरह घर पहुंचे. उन्हें देखते ही बेगम नसीरा का चेहरा खिल गया, पर रफीक बाबू के मुर्दनी चेहरे को देख कर वे पलभर में उदास हो गईं.

‘‘इतनी देर कैसे हुई? सब ठीक तो है न?’’ शक और डर के अंबार को दबा कर नसीरा ने पूछा.

रफीक बाबू ने जैसे कुछ सुना ही नहीं और सीधे कुरसी में पसर गए.

‘‘क्या बात है? कुछ कहोगे भी या नहीं?’’ नसीरा घबरा कर बोलीं.

‘‘कुछ नहीं नसीरा. बस, बदकिस्मती   झपट गई. लगता है, यह महीना फाका करने में गुजरेगा,’’ रफीक बाबू अपना सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘आखिर हुआ क्या है? मुझे भी तो कुछ पता चले?’’ नसीरा खीज उठीं.

‘‘आज तनख्वाह में से 15 हजार रुपए निकाले थे… और पूरे रुपए कोट की जेब में डाल कर बाहर निकल आया था. जब मैं बसस्टैंड पर पहुंचा, तो देखा कि रुपए नदारद थे,’’ रफीक बाबू ने उदास हो कर कहा.

‘‘मेरे मालिक, तू भी खूब है. किसी को छप्पर फाड़ कर दे और किसी से दो जून की रोटी भी छीन ले,’’ नसीरा दुपट्टे में मुंह छिपा कर रो पड़ीं.

बच्चे दीनदुनिया से बेखबर सो गए थे. उस रात वे दोनों बगैर खाए ही लेट गए. रात चढ़ आई थी, लेकिन नींद उन की आंखों से कोसों दूर थी.

नसीरा को इस घटना ने तोड़ कर रख दिया था. वे खिड़की से अंदर आ रही रोशनी में खूंटी से लटके कोट को घूरे जा रही थीं, मानो सारा कुसूर उस पुराने कोट का था, जिस का अस्तर कोट से बाहर   झांक रहा था, मानो उन्हें चिढ़ा रहा हो.

नसीरा ने उठ कर खिड़की पर परदा तान दिया, तो भी नींद कहां थी भला?

‘‘कितनी बार कहा था कि एक कोट बनवा लो, मगर कान पर जूं तक न रेंगी. ईद भी चली गई. न जाने कब तक लादे रहेंगे इस कमबख्त कोट को?’’ नसीरा लेटेलेटे बड़बड़ाती रहीं.

रफीक बाबू कुछ नहीं बोले. बस, चुपचाप सुनते रहे.

‘इन्होंने कोट अच्छी तरह देख लिया था न? कहीं रुपए अस्तर में न उल  झे पड़े हों?’ नसीरा सारे घटनाक्रम को नए सिरे से सोच रही थीं कि शायद कोई सुराग हाथ आ जाए, मगर पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं.

रफीक बाबू खामोशी का लबादा ओढ़े लेटे हुए थे. सारी रात आंखों में ही कट गई. सुबह होने को थी. रफीक बाबू उठे नहीं, बिस्तर से चिपके रहे.

नसीरा से रहा नहीं गया, ‘‘आज दफ्तर नहीं जाओगे क्या? कुछ तो हौसला रखो. ऐसे लेटे रहने से कुछ नहीं होने वाला.’’

न चाह कर भी रफीक बाबू को दफ्तर का मुंह देखना पड़ा. देर हो गई थी. साथी मुलाजिम अपनेअपने कामों में मसरूफ थे.

रफीक बाबू के मुर  झाए चेहरे को देख कर सभी को हैरानी हो रही थी. वैसे भी आज सब से देर में पहुंचने वालों में वे ही थे.

निरंजन शर्मा ने पलट कर देखा और बोले, ‘‘आओ मियां, आज देर कैसे कर दी? लगता है कि भाभीजान ने बुरी गत बनाई है. खैर, दफ्तर आ गए हो, तो कम से कम हुलिया तो ठीक करो. घरगृहस्थी में सब चलता रहता है.’’

रफीक बाबू से और बरदाश्त नहीं हुआ. मन में आया कि सीधे निरंजन शर्मा का गरीबान पकड़ लें, लेकिन कुछ नहीं कर पाए. बस, वे चिल्ला कर रह गए, ‘‘शर्मा, जूती का मुंह जब खुल जाता है, तो बहुत आवाज करती है. कभी किसी का दर्द महसूस करोगे या नहीं?’’

‘‘अरे क्या हुआ, क्यों तैश खाते हो? कुछ गड़बड़ है क्या?’’ निरंजन शर्मा ने मौके की नजाकत को सम  झा.

रफीक बाबू ने एक लंबी आह छोड़ी और वे बु  झी सी आवाज में बोले, ‘‘मेरे 15 हजार… न जाने कहां गिर गए.’’

‘‘बस, इतनी सी बात और इतनी सारी गालियां. ये लो, पूरे 15 हजार रुपए. मगर एक बार मुसकरा तो दो,’’ कहते हुए निरंजन शर्मा ने रुपए मेज पर रख दिए.

रफीक बाबू की आंखें खुली की खुली रह गईं. उन की जान में जान लौट आई, ‘‘लेकिन तुम्हें… ये रुपए तुम्हें कहां मिले?’’

‘‘इसे गनीमत कहो कि ऐनवक्त पर मैं भी एटीएम पहुंच गया. ठीक तुम्हारे बाद. जब तुम ने रुपए कोट के हवाले किए थे, तभी पूरी गड्डी खिसक कर फर्श पर आ गिरी थी.

‘‘उस समय मैं ने सोचा कि तुम्हें लौटा दूं, फिर खयाल आया कि तुम्हें थोड़ा एहसास करा ही दूं.’’

निरंजन शर्मा ने उन के कंधे पर हाथ रख कर धीमे से कहा, ‘‘कहीं अस्तर तो फटा नहीं है बरखुरदार?’’

रफीक बाबू बुरी तरह   झेंप गए. रुपए मिलने की खुशी में शुक्रिया भी न कह सके. बस, होंठ कांप कर रह गए.

निरंजन शर्मा और आमोद प्रकाश मुसकरा रहे थे. इस बार रफीक बाबू को उन का मुसकराना नहीं अखरा. उन्होंने मन ही मन फैसला कर डाला कि चाहे इस महीने कर्जा न दे पाएं तो चलेगा, लेकिन हर हाल में कोट बनवाएंगे.

अब रफीक बाबू का मन शांत था. वे अपनी कुरसी की ओर बढ़े. उन के ठीक सामने की कुरसी पर एक बड़ा सा पैकेट रखा था. कुछ देर तक वे पैकेट को हैरानी से देखते रह गए.

‘‘क्या देख रहे हो मियां… आप के लिए ही है… नए साल का तोहफा.’’

रफीक बाबू ने पैकेट हाथों में लिया, जिस पर लिखा था, ‘प्रिय रफीक बाबू, अपने दुश्मनों की ओर से यह तोहफा कबूल फरमाएं. इसे पहनें और पुराने कोट को अलविदा कहें. बस, बदले में इन दुश्मनों को मसजिद और जरदे पर पैसा न खर्च करने का वादा करना है.’

रफीक बाबू के होंठों पर पहली बार एक लंबी मुसकान फैल गई. उन्होंने फौरन उन दोनों को ऐसी   झप्पी मारी कि साथी मुलाजिम औरतें पहले तो मुंह खोले देखती रहीं, फिर उन्होंने शरमा कर अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया.

मकान मालिक की पत्नी मेरे साथ रिश्ता बनाना चाहती है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं दिल्ली में किराए के मकान में रहता हूं और बीए की तैयारी कर रहा हूं. मेरे मकान मालिक का किसी दूसरी औरत के साथ नाजायज रिश्ता है, ऐसा उस की पत्नी मु झे बताती है. वह अपने पति को सबक सिखाने के लिए मेरे साथ रिश्ता बनाना चाहती है. वह औरत भरेपूरे बदन की है. उसे देख कर मेरा भी ईमान डगमगाने लगता है. मैं क्या करूं?

जवाब-

अपने ईमान को काबू में रखें. आप के मांबाप ने दिल्ली में आप को पढ़ने के लिए भेजा है, भरेपूरे बदन का नाप लेने नहीं. अगर सबकुछ बिना किसी अड़ंगे के हो जाए तो अपनी ख्वाहिश पूरी कर लें, वरना ऐसे मामलों में कई बार लेने के देने भी पड़ जाते हैं, खासतौर से छात्रों का तो कैरियर बरबाद हो जाता है.

मुमकिन है कि आप की मकान मालकिन आप को हासिल करने के लिए पति के बाबत  झूठ बोल रही हो और इस के लिए वह आप के लिए अभी कुछ भी करने को तैयार हो सकती है. अब यह आप के सब्र और सम झ के ऊपर है कि आप हालात का फायदा कैसे उठाते हैं, भरेपूरे बदन के साथ कुछ और भी हासिल कर पाते हैं.

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क्या इमोजी बता सकते है कि आपकी दिमाग में है कितना सैक्स

आज के जमाने में वौट्सऐप, फेसबुक या किसी अन्य मेसेजिंग सर्विस के जरिये हम दोस्तों को न सिर्फ संदेश भेजते हैं बल्कि इमोजी भी लगाकर अपनी अपनी भावना प्रकट करते हैं. एक नये रिसर्च के मुताबिक आप मेसेज में कितने इमोजी इस्तेमाल करते हैं ये बता सकता है कि आप सैक्स के बारे में कितना सोचते हैं.

रिसर्च के अनुसार अगर आप कोई भी टेक्स्ट बिना इमोजी (emoji) के नहीं भेजते हैं तो सैक्स आपके दिमाग पर कुछ ज़्यादा हावी हो सकता है. हम आपको बता रहे हैं रिसर्च कैसे किया गया और कैसे निष्कर्ष निकाले गये.

डेटिंग वेबसाइट मैच डौट कौम ने किया है रिसर्च

ये रिसर्च डेटिंग वेबसाइट मैच डौट कौम ने किया है. इसके रिसर्च के मुताबिक वे लोग, जो अपने लगभग हर टेक्स्ट मेसेज में इमोजी का इस्तेमाल करते हैं, उनके दिमाग में ज्यादातर वक्त सैक्स की बातें भरी रहती हैं.

रिसर्च का अहम हिस्सा रही हेलेन फिशर ने बताया कि इमोजी इस्तेमाल करने वाले न केवल अधिक सैक्स करते हैं बल्कि डेट्स खूब करते हैं. इनकी शादी की संभावना भी इमोजी का इस्तेमाल कम या बिल्कुल नहीं करने वाले लोगों की तुलना में दोगुनी होती है.

इन लोगों पर हुआ रिसर्च

25 देशों में 8 अलग-अलग भाषाओं में काम कर रही इस वेबसाइट ने इसके पहले भी एक रिसर्च किया था. इस रिसर्च के मुताबिक सर्वे में शामिल आधे से भी ज़्यादा महिला और पुरुष फ्लर्ट करते समय ‘विंक’ इमोजी का इस्तेमाल करते थे. शोध में यह भी पाया गया कि इस तरह की बातचीत में दूसरी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली प्रचलित इमोजी ‘स्माइली’ थी.

5000 लोगों पर हुए इस रिसर्च में 36 से 40 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जो हर मेसेज में एक से अधिक इमोजी का इस्तेमाल करते थे. पाया गया कि ये लोग दिन में कई बार सेक्स के बारे में सोचते थे. वहीं, जो लोग सेक्स के बारे में कभी नहीं सोचते थे, उनके मेसेज में इमोजी का इस्तेमाल ना के बराबर था.

वहीं कई लोग ऐसे भी थे जो सैक्स के बारे में दिन में बस एक बार सोचते थे और इमोजी का इस्तेमाल तो करते थे लेकिन हर मेसेज में नहीं. इस शोध के मुताबिक इस रिसर्च में शामिल 54 प्रतिशत लोग, जो अपने मैसेज में इमोजी का इस्तेमाल करते थे, उन 31 प्रतिशत लोगों की तुलना में अधिक सैक्स करते थे जो इमोजी का इस्तेमाल नहीं किया करते थे.

वहीं एक दूसरी वेबसाइट (DrEd.com) के हाल ही के रिसर्च के अनुसार सेक्शुअली चार्ज्ड इमोजी के तौर पर केले से ज्यादा बैंगन वाली इमोजी का इस्तेमाल किया जाता है. अगर लिंग आधारित आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो महिलाएं केले वाली इमोजी का इस्तेमाल ज्यादा करती हैं और पुरुष बैंगन वाली इमोजी का. वहीं जब बात रोमांस की आती है तो दिल बनी आंखों वाली इमोजी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है.

तंत्र साधना में इतना हुआ लीन कि काट डाला दोस्त का सिर

तथाकथित तांत्रिक परमात्मा तंत्र साधना से अपार दौलत पाने का दावा करता था. इस के लिए उस ने अपने दोस्तों विकास और धनंजय से किसी इंसान का कटा सिर लाने को कहा. 5 लाख रुपए के लालच में विकास और धनंजय अपने दोस्त राजू कुमार की हत्या कर उस का सिर काट कर तांत्रिक परमात्मा के पास ले गए. तांत्रिक ने उस खोपड़ी पर 7 दिनों तक तंत्रमंत्र क्रियाएं कीं. यह सब करने के बाद क्या उन्हें दौलत मिल सकी?

सड़क किनारे जंगल में सुबह करीब साढ़े 6 बजे कुछ लोगों की नजर एक लाश पर गई. उस लाश का सिर कटा हुआ था. इस के बाद जो भी उधर से गुजर रहा था, लाश को देखने लगा. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना गाजियाबाद के थाना टीला मोड़ पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. पुलिस ने देखा कि पेड़ों के बीच एक सिरकटी लहूलुहान लाश पड़ी है. युवक की उम्र करीब 29-30 वर्ष थी. शव के धड़ से सिर गायब था, जबकि शरीर के शेष अंग मौजूद थे. 

सूचना पर पहुंची पुलिस ने डौग स्क्वायड को भी बुला लिया. टीम ने जांचपड़ताल की. मृतक की नारंगी रंग की शर्ट खून से सनी थी, जबकि वह काला सफेद व लाल पट्टी का लोअर पहने हुआ था. पुलिस ने आसपास के क्षेत्र में उस का सिर तलाशा, लेकिन सिर नहीं मिला. एसीपी सिद्धार्थ गौतम भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस को शव के पास एक गद्दी का कवर भी खून से सना मिला. पुलिस ने शव की पहचान कराने का प्रयास किया, लेकिन  कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की जांच करने के बाद ऐसा लग रहा था कि उस युवक की हत्या कहीं और करने के बाद शव वहां डाला गया था. 

पुलिस टीम को मृत युवक के दाहिने हाथ पर कुछ लिखा मिला, जो समझ में नहीं आ रहा था. इस के अलावा बाएं हाथ पर किसी नुकीली चीज से काटने के निशान थे. दोपहर को फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंची और जांच की, लेकिन कोई अहम सुराग नहीं मिला. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. यह घटना गाजियाबाद जिले के टीला मोड़ थाने से करीब एक किलोमीटर दूर लोनी भोपुरा इलाके में 22 जून, 2024 को घटी थी.

डीसीपी (ट्रांस हिंडन) निमिष पाटिल ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी सिद्धार्थ गौतम के निर्देशन में 6 पुलिस टीमों का गठन किया. सभी टीमें अपनेअपने काम में जुट गईं. पुलिस टीमों ने इस सनसनीखेज वारदात के खुलासे के लिए घटनास्थल के निकट के इलाके को खंगालना शुरू किया. पुलिस ने दिल्ली के 161 थानों से भी लापता व्यक्तियों के बारे में जानकारी हासिल की, लेकिन उन थानों में इस हुलिए के किसी युवक की गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. 

पुलिस टीम को हाथ पर बने टैटू से सुराग मिलने की संभावना थी. जांच के दौरान टीम ने दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के आसपास के थानों में भी दर्ज गुमशुदगी के रिकौर्ड खंगालने शुरू कर दिए, लेकिन पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ. पुलिस ने मृतक की फोटो लगे पैंफ्लेट गाजियाबाद और दिल्ली के सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा कर दिए थे. उन्हीं पैंफ्लेट को देख कर दिल्ली के ताहिरपुर का रहने वाला गणेश थाना टीला मोड़ पहुंचा.

उस ने पुलिस को बताया कि उस के साले का 29 साल का बेटा राजू कुमार अचानक 15 जून, 2024 को लापता हो गया. राजू बिहार के मोतिहारी जिला के पिपरा थाना का निवासी था. राजू के मातापिता का निधन हो चुका है. वह उन के साथ ही दिल्ली में ताहिरपुर में रहता था. राजू चाटपकौड़ी का ठेला कमला मार्केट में लगाता था. रात तक जब वह घर वापस नहीं आया, तब उन्हें चिंता हुई. अब सवाल था कि राजू बिना बताए कहां गायब हो गया? उन्होंने इस की संबंधित पुलिस थाने में जा कर शिकायत की, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहींं की और जांच का आश्वासन दे कर घर लौटा दिया था. 

हत्यारों तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगालना शुरू किया. शुरुआती छानबीन के दौरान तुलसी निकेतन में एक बहुमंजिला इमारत की आठवीं मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में एक धुंधली फुटेज हाथ लगी, जिस में एक आटो की हैड व टेल लाइट और पीछे लाल रंग के 2 ट्रायंगल रिफ्लेक्टर नजर आए थे. अब पुलिस ने उस आटो को तलाशना शुरू कर दिया. इस दौरान पुलिस सैकड़ों आटो चैक किए. पुलिस की डेढ़ महीने की मेहनत आखिर रंग लाई और पुलिस ने धुंधली फुटेज से तसवीर साफ कर उस आटोचालक के पास पहुंच गई और उस के आटो को बरामद कर लिया. पुलिस उसी आटो के आधार पर आरोपियों तक जा पहुंची.

आगे की जांच करते हुए पुलिस ने बिहार के मोतिहारी से हत्याकांड में शामिल 2 आरोपियों को 16 अगस्त, 2024 को गिरफ्तार कर लिया. इन में 24 वर्षीय विकास उर्फ मोटा निवासी गली नंबर-1,  ताहिरपुर, दिल्ली तथा उस का साथी 28 वर्षीय धनंजय निवासी कमला मार्केट, दिल्ली जो मूलरूप से हुसैनी, थाना डुमरिया घाट जिला मोतिहारी, बिहार का निवासी है, शामिल थे. जबकि तीसरा मुख्य आरोपी  विकास उर्फ परमात्मा निवासी मोतिहारी बिहार फरार हो गया. 

पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए नेपाल भाग गया है. इस वीभत्स हत्याकांड का खुलासा पुलिस ने घटना के पौने 2 माह बाद आखिर कर दिया. आरोपियों से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर पुलिस वालों के भी रोंगटे खड़े हो गए. पता चला कि तीनों दोस्तों ने तंत्रमंत्र के जरिए अमीर बनने के लिए राजू नाम के युवक की हत्या कर दी थी. पुलिस ने गिरफ्तार दोनों हत्यारोपियों के कब्जे से आलाकत्ल छुरियां, आटोरिक्शा, ईरिक्शा आदि बरामद कर लिए.

5 लाख के लालच में काटा सिर

आरोपी विकास उर्फ मोटा अपने मामा मुन्ना निवासी गोकुलधाम सोसाइटी शालीमार गार्डन, गाजियाबाद का आटो किराए पर ले कर चलाता था. कुछ महीने पहले उस की मुलाकात धनंजय से हुई थी. धनंजय नई दिल्ली के कमला मार्केट निवासी अपने मामा रंजीत और रणधीर साहनी के पास रह कर खाना बनाने का ठेला लगाता था. विकास उर्फ मोटा धनंजय के ठेले पर खाना खाने के लिए आता था. इस के चलते उस की उस से दोस्ती हो गई. उसी के माध्यम से धनंजय की परमात्मा से मुलाकात हुई. परमात्मा ईरिक्शा चालक था. वह कमला मार्केट के पास किराए के कमरे में रहता था. वह इन दोनों से तंत्रमंत्र विद्या और टोनेटोटके से रुपए कमाने के साथ ही सब कुछ हासिल करने की बात कहता रहता था.

परमात्मा ने धनंजय और विकास को एक दिन बताया कि वे तंत्र विद्या के जरिए बहुत पैसा कमा सकते हैं. उसे तंत्र विद्या करनी आती है. एक दिन तुम दोनों को भी बहुत पैसे मिलेंगे. परमात्मा ने दोनों को जल्द अमीर बनने का सपना दिखाया. उस ने कहा कि इस के लिए एक काम करना होगा. तुम दोनों को ऐसे अनाथ व्यक्ति की तलाश करनी होगी, जिस की हत्या कर के उस की खोपड़ी काटने के बाद उस खोपड़ी पर तंत्र क्रिया की जा सके. परमात्मा ने धनंजय से अनाथ युवक को तलाश करने के लिए 5 लाख रुपए देने का लालच भी दिया. 

रुपयों के लालच में धनंजय और विकास उर्फ मोटा एक साथ ऐसे युवक की तलाश करने लगे. इस दौरान धनंजय ने अपने पड़ोसी और दोस्त राजू कुमार, जो उस के साथ ही चाटपकौड़े का ठेला लगाता था, को निशाना बनाने के लिए अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. राजू नशा करने का आदी था. इस का धनजंय और विकास ने फायदा उठाया. कई दिनों तक विकास और धनंजय ने राजू के साथ शराब पी. 15 जून, 2024 को दोनों राजू को शराब का लालच दे कर तथाकथित तांत्रिक परमात्मा के कमरे पर ले गए. वहां 6 दिन तक उसे शराब पिलाते रहे. उसे घर तक नहीं जाने दिया. सातवें दिन यानी 21-22 जून की दरमियानी रात को राजू की उन्होंने गमछे से गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद शव को पंखे से लटका दिया. 

शव को छिपाने के लिए तीनों ने रात करीब ढाई बजे विकास उर्फ मोटा के आटो में शव को रखा और टीला मोड़ थाना क्षेत्र की पंचशील कालोनी ले कर गए. पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से उन्होंने आटो को एक सुनसान जगह पर सड़क किनारे खड़ा किया और मीट काटने वाली छुरी से राजू का सिर काट कर अलग कर दिया. फिर उस के धड़ को जंगल में फेंक  दिया. तीनों ने राजू के कटे सिर को प्लास्टिक की बाल्टी में रखा और आटो में बैठ कर वापस दिल्ली आ गए.

कटे सिर पर 7 दिनों तक करते रहे तंत्रक्रिया

हत्या करने के बाद तीनों आरोपियों ने हैवानियत की सभी हदें पार कर दीं. परमात्मा के दिल्ली के कमला मार्केट स्थित कमरे पर चाकू से उन्होंने उस की आंखें निकालीं, फिर नाक, कान काट कर खोपड़ी की पूरी तरह खाल उतार दी. राजू की खोपड़ी के साथ परमात्मा ने काला टीका लगा कर व काले कपड़े पहन कर तंत्र साधना शुरू की. उस ने मानव खोपड़ी पर तंत्रमंत्र विद्या से पैसे कमाने का तरीका आजमाया. वह कुछ घंटे प्रयास के बावजूद सफल नहीं हुआ. लेकिन उस ने हार नहीं मानी और लगातार 7 दिनों तक वह तंत्र साधना करता रहा, फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.  

इस के बाद उस ने अपने दोनों साथियों से कहा कि खोपड़ी पर चोट का निशान है. यह क्रैक हो गई है. इसलिए यह खोपड़ी तंत्र साधना के लायक नहीं है. तुम लोगों को दूसरी मानव खोपड़ी लानी होगी. खोपड़ी को 7 दिनों तक कमरे में रखने से दुर्गंध आने लगी थी, तब तांत्रिक परमात्मा खोपड़ी ले कर भाग गया और उसे दिल्ली में जीटीबी अस्पताल के पास नाले में फेंक आया. अस्पताल के नाले में खोपड़ी को फेंकने की बात उस ने अपने दोनों साथियों को बताई.

आंखें निकाल कर खेले कंचे

इस घटना से 1994 की फिल्म अंदाज अपना अपनाकी याद आ जाती है. इस फिल्म में क्राइम मास्टर गोगो के किरदार में शक्ति कपूर का फेमस डायलौग था, आंखें निकाल कर गोटियां खेलूंगा.’ इन आरोपियों ने इस डायलौग को हकीकत में बदल दिया. तंत्रमंत्र क्रिया के दौरान राजू के कटे सिर से आंखें निकालने के बाद उन से तांत्रिक क्रिया करते हुए कंचे (गोटियां) भी खेले. इस बात की जानकारी पकड़े गए दोनों आरोपियों धनंजय व विकास उर्फ मोटा ने पुलिस को दी. 5 लाख रुपए का लालच दे कर परमात्मा ने जिंदा मानव की खोपड़ी लाने की बात कह कर एक निर्दोष युवक की हत्या करा दी. इस हत्याकांड का खुलासा करने व आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम को पुलिस कमिश्नर (गाजियाबाद) अजय कुमार मिश्र की ओर से 25 हजार रुपए का तथा डीसीपी (ट्रांस हिंडन) निमिष पाटिल की ओर से 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई है. 

पुलिस पूछताछ में विकास और धनंजय ने बताया कि मुख्य आरोपी परमात्मा ने राजू की खोपड़ी को दिल्ली में जीटीबी अस्पताल के नाले में फेंक दिया था. उस के साथ उस की आंखें, नाक, कान और बाल भी थे.  इस तथ्य के सामने आने के बाद टीला मोड़ पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद से नाले की सफाई कराई, लेकिन कई घंटे के प्रयास के बाद भी टीम को सफलता नहीं मिली. एसीपी सिद्धार्थ गौतम ने बताया, परमात्मा ने अपने एक परिचित के पास अपना ईरिक्शा 35 हजार रुपए में गिरवी रख दिया था. उस के बाद वह अपना मोबाइल बंद कर फरार हो गया. 

राजू कुमार की हत्या के बाद दोनों हत्यारोपी धनंजय और विकास एकदूसरे से मिलते थे. दोनों ने इस बीच परमात्मा से भी मिलने का प्रयास किया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. पुलिस ने यदि मृतक राजू कुमार के फूफा गणेश की बात को गंभीरता से लेते हुए 15 जून, 2024 को राजू के लापता होने पर उन के द्वारा शिकायत करने पर राजू की गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू कर दी होती तो शायद राजू की जान बच सकती थी. क्योंकि उस की हत्या 21-22 जून की रात को की गई थी. ये लालच था जल्दी अमीर बनने का और इस लालच ने एक निर्दोष दोस्त को ऐसी मौत दी, जिसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. पैसे पाने का सपना पाले हत्यारे दोस्तों के हाथ यहीं नहीं कांपे, उन्होंने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. इन के इस जघन्य अपराध ने दोस्ती को भी शर्मसार कर दिया. 

पुलिस ने दोनों आरोपियों विकास उर्फ मोटा और धनंजय को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. वहीं पुलिस मुख्य आरोपी काला जादू करने वाले तथाकथित तांत्रिक परमात्मा की तलाश में जुटी थी. अपनी किस्मत बदलने की चाहत में एक निर्दोष को बलि का बकरा उस के ही वहशी बने दोस्तों ने बनाया. लेकिन तंत्र साधना के चक्कर में पड़ कर दोस्त की जान लेने पर भी उन्हें धन तो नहीं मिला. हां, जेल की सलाखों के पीछे जरूर जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब एक पति ने पत्नी के होते हुए भी किसी ओर बनाएं समलैंगिक फिर हुआ ये…

बैडमिंटन खेलतेखेलते दीपा शादीशुदा और अपनी से दोगुनी उम्र के बबलू से इस कदर प्यार करने लगी कि अपने घर वालों की खिलाफत के बावजूद भी, उस ने बबलू से शादी कर ली. बाद में सुमन नाम की एक महिला के साथ बनी नजदीकी ने दीपा को समलैंगिक संबंधों तक पहुंचा दिया, फिर… 

‘‘मम्मी मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता. और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई. दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा. ‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है? और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला. मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था. ‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नारमल हो जाएगी. बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को शौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलनाजुलना  होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी. बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए. इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए. दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं. सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

 ‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

 ‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है. इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी. 

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा. साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह .32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी. ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था. 

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी. एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी. 27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’ दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई. 28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया. निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’ दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए. हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी(ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दियापुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दियाजेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

   — कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

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