शादी का झूठा प्रोफाइल, नुकसान का सौदा

मेरी शादी 7 महीने पहले हुई थी. मेरे पति ने बायोडाटा में लिखा कि वे बीकौम हैं. उन्होंने अपनी 2 दुकानें दिखाईं. शादी के बाद मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था. वे इंगलिश के छोटेछोटे शब्द भी नहीं जानते थे.

मैं ने कई चीजों को दोबारा चैक किया और फिर मुझे पता चला कि मेरे पति 10वीं फेल हैं. उन्होंने कोई फर्जी डिगरी हासिल की हुई थी. मैं ने वह घर छोड़ दिया और कभी वापस नहीं लौटी.

हम दोनों ने अपने समाज के सामने स्टांप पेपर पर तलाक ले लिया. क्या यह तलाक कानूनी रूप से मान्य है? क्या मैं धोखाधड़ी के आधार पर अपनी शादी को रद्द करने के लिए अपील कर सकती हूं?

शादी के कुछ ही दिन बाद एक पति को पता चला कि उस की पत्नी के सिर पर बाल बहुत कम हैं. वह इतने दिन से झूठ बोल कर विग लगा कर रह रही थी. पति ने इस की जानकारी परिवार वालों को दी. उन लोगों ने दुलहन को उस के घर वापस भेज दिया.

लड़की के घर वालों ने पुलिस के सामने गुहार लगाई. पुलिस ने दोनों पक्षों को थाने में बुलाया और आपसी रजामंदी से मामला सुलझने की बात कही, लेकिन पति और उस के घर वाले उसे वापस ले जाने को राजी नहीं हुए और अब कोर्ट में केस चल रहा है.

आप को क्या लगता है कि अगर आप के बच्चे की शादी में मुश्किल आ रही है, तो झूठ बोल कर की गई शादी का सच कभी पता ही नहीं चलेगा?

सच सामने आने के बाद अगर दूसरा पक्ष तलाक की मांग करने लगे, तो क्या आप अपने बच्चे की जिंदगी बरबाद होने से बचा पाएंगे? झूठ की शादी अगर निभानी भी पड़ जाए, तो क्या लड़का और लड़की एकदूसरे को इज्जत दे पाएंगे?

किन बातों पर बोला जाता है झूठ

पढ़ाईलिखाई को ले कर गलत जानकारी देना, नौकरी या आमदनी को ले कर झूठ बोलना, अगर कोई बीमारी है तो उसे छिपा जाना, अफेयर के बारे छिपाना, किसी गलत चीज की लत हो या नशे की आदत के बारे में ?ाठ बोलना, सही उम्र को ले कर झूठ बोला जाता है, इंटरनैट पर सही जानकारी न देना वगैरह.

आजकल सोशल मीडिया के जरीए भी तमाम शादियां हो रही हैं, जहां बायोडाटा में गलत जानकारी दी जाती है. यहां सभी लोग आपस में दूरदराज से जुड़े होते हैं, तो ऐसे में उन की और पूरे खानदान की जांचपड़ताल करना मुश्किल काम होता है.

यही वजह होती है कि सामने वाला पक्ष सही जानकारी नहीं देता और जब बाद में सचाई खुलती है, तो काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

संबंधों में पड़ जाती है गांठ

ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां शादी के लिए लड़की या लड़के पक्ष के लोग अकसर झूठ बोल देते हैं, जिस का असर उन की जिंदगी पर पड़ता है. शादीशुदा संबंधों में झूठ का सहारा लेना दुखदायी साबित होता है, जैसे कि शादी के बाद आशी नाम की लड़की अपने पति मनोज का झूठ सामने आने के बाद तलाक लेना चाहती थी, लेकिन सामाजिक दबाव की वजह से नहीं ले पाई, पर एक झूठ  के चलते ससुराल वाले उस की नजरों से गिर गए. वह हमेशा अपनी ससुराल वालों से इस बात का बदला लेने का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं देती.

झूठ बोलना मुसीबत मोल लेना

अगर लड़की सीधीसादी भी हुई, तो भी 2-4 साल तो वह सहेगी, क्योंकि वह कमजोर होगी, लेकिन जैसे ही बच्चे हुए, वह लड़ाकू होनी शुरू हो जाएगी, क्योंकि उस की बरदाश्त करने की ताकत खत्म हो जाएगी, फिर वह तांडव मचाएगी और पति बेचारा पिस कर रह जाएगा.

अब बच्चे हो गए, रिश्तेदारी में अच्छेखासे जम गए, अब क्या कर लेगा पति. जैसे ही सास थोड़ी सी कमजोर हुई, वह उसे तंग करना शुरू कर देती है. ससुर के साथ बुरा बरताव होता है. बीमारी में उन्हें ऐसे ही छोड़ देते हैं. लड़की के मन में यह बात घर कर जाती है कि उसे ?ाठ बोल कर यहां लाया गया है.

बच्चों के 5-6 साल के होने पर वह बेलगाम होने लगती है. कभी ननद, देवर या जेठानी से ?ागड़ा करेगी, कभी सास के ऊपर चिल्लाएगी. जैसे ही सास बीमार हुई, उस की हड्डी टूटी, तो वह कहेगी कि मैं तो नहीं सेवा करती. जो करना है कर लो. हमेशा उन्हें इस बात का ताना दे कर जलील करती है.

यह पुराने जमाने में भी होता था और नए जमाने में नए तरीके से होने लगा है, इसलिए औनलाइन शादियों के लिए प्रोफाइल सही दो, वरना आप की अपनी जिंदगी नरक हो जाएगी.

यकीन की डोर से मजबूत करें रिश्ते

एक झूठ से कई जिंदगियां बरबाद हो जाती हैं. इस बात पर अगर पहले से दोनों पक्ष सोचविचार कर लें, तो रिश्ते बिगड़ेंगे ही नहीं. एक बार शादी हो जाए, फिर सब ठीक हो जाएगा, ऐसा सोच कर जैसेतैसे झूठीसच्ची बातें बना कर तय किए गए संबंधों का नतीजा कभी भी अच्छा नहीं होता. कई बार तो लड़का या लड़की खुदकुशी करने जैसा कदम तक उठा लेते हैं. लिहाजा, समझदारी इसी में है कि जानकारी को सहीसही बताएं.

सचझूठ की कसौटी पर परखें

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि औनलाइन मैट्रिमोनियल साइटों या अखबार में इश्तिहारों के जरीए भी काफी रिश्ते तय हो रहे हैं. ऐसे में साइट पर प्रोफाइल के साथ दी गई जानकारी को वैरिफाई करने की जिम्मेदारी लड़के या लड़की और उस के घर वालों की हो जाती है.

हालांकि, ज्यादातर मैट्रिमोनियल साइटें प्रीमियम क्लाइंट के बारे में यह तक लिखती हैं कि हम ने इन का वैरिफिकेशन और इंवैस्टिगेशन कराया है, लेकिन अकसर यह सच नहीं होता. ऐसे में बेहतर है कि मांबाप साइटों के ऐसे दावे में न आ कर खुद ही जांचपड़ताल करें और जरूरत महसूस हो, तो किसी भरोसेमंद एजेंसी से जांच कराएं, लेकिन आगे बढ़ने से पहले हर तरह से संतुष्ट हो जाएं, तभी हां करें, क्योंकि एक बार का गलत फैसला जिंदगीभर का पछतावा बन सकता है.

मैरिड लाइफ में सैक्स कितना है जरुरी

अंजली के पति अजय को अधिकतर अपने व्यवसाय के सिलसिले में दौरे पर रहना पड़ता है. जब भी वे दौरे से लौटने वाले होते हैं, अंजली को खुशी के बजाय घबराहट होने लगती है क्योंकि लंबे अंतराल के बाद सैक्स के समय उसे दर्द होता है. इस कारण वह इस से बचना चाहती है.

इस मानसिक तनाव के कारण वह अपनी दिनचर्या में भी चिड़चिड़ी होती जा रही है. अजय भी परेशान है कि आखिर क्या वजह है अंजली के बहानों की. क्यों वह दूर होती जा रही है या मेरे शहर से बाहर रहने पर कोई और आ गया है उस के संपर्क में? यदि शारीरिक संबंधों के समय दर्द की शिकायत बनी रही तो दोनों ही इस सुख से वंचित रहेंगे.

दर्द का प्रमुख कारण स्त्री का उत्तेजित न होना हो सकता है. जब वह उत्तेजित हो जाती है तो रक्त का प्रवाह तेज होता है, सांसों की गति तीव्र हो जाती है और उस के अंग में गीलापन आ जाता है. मार्ग लचीला हो जाता है, संबंध आसानी से बन जाता है.

फोरप्ले जरूरी

बगैर फोरप्ले के संबंध बनाना आमतौर पर महिलाओं के लिए पीड़ादायक होता है. फोरप्ले से संबंध की अवधि व आनंद दोनों ही बढ़ जाते हैं. महिलाओं को संबंध के लिए शारीरिक रूप से तैयार होने में थोड़ा समय लगता है. उसे इसे सामान्य बात मानते हुए किसी दवा आदि लेने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.
यह देखा गया है कि कुछ दवाएं महिलाओं के गीलेपन में रुकावट पैदा करती हैं. इसीलिए सैक्स को भी एक आम खेल की तरह ही लेना चाहिए. जिस तरह खिलाड़ी खेल शुरू करने से पहले अपने शरीर में चुस्ती व गरमी लाने के लिए अभ्यास करते हैं उसी तरह से वार्मअप अभ्यास करते हुए फोरप्ले की शुरुआत करनी चाहिए. पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर इस का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. महिलाओं के शरीर में कुछ बिंदु ऐसे होते हैं जिन्हें हाथों या होंठों के स्पर्श से स्पंदित किया जा सकता है. हलके स्पर्श से सहला कर उन की भावनाओं को जाग्रत किया जा सकता है.

अगर पर्याप्त फोरप्ले के बावजूद गीलापन न हो, उस स्थिति में चिकनाई वाली क्रीम इस्तेमाल की जा सकती है, जो एक प्रकार की जैली होती है. इस को लगाने के बाद कंडोम का प्रयोग करना चाहिए. कुछ कंडोम ऐसे होते हैं जिन के बाहरी हिस्से में चिकना पदार्थ लगा होता है. इस से पुरुष का अंग आसानी से प्रवेश हो जाता है.

चिकनाईयुक्त कंडोम

यहां यह सावधानी बरतने योग्य बात है कि यदि सामान्य कंडोम प्रयोग किया जा रहा हो तो उस स्थिति में तेल आधारित क्रीम का प्रयोग न करें क्योंकि तेल कंडोम में इस्तेमाल की गई रबड़ को कमजोर बना देता है व संबंध के दौरान कंडोम के फट जाने की संभावना बनी रहती है. कई बार कंडोम का प्रयोग करने से योनि में दर्द होता है, जलन या खुजली होने लगती है. इस का प्रमुख कारण कंडोम में प्रयोग होने वाली रबड़ से एलर्जी होना हो सकता है. पुरुषों के ज्यादातर कंडोम रबड़ या लैटेक्स के बने होते हैं.

आमतौर पर एक से दो फीसदी महिलाओं को इस से एलर्जी होती है. वे इस के संपर्क में आने पर बेचैनी, दिल घबराना यहां तक कि सांस रुकने तक की तकलीफ महसूस करती हैं. सो, यदि पति द्वारा इस्तेमाल कंडोम से ये लक्षण दिखाई पड़ें तो बेहतर है उन्हें अपने कंडोम का ब्रैंड बदलने को कहें.

इस का कारण कंडोम के ऊपर शुक्राणुओं को समाप्त करने के लिए जो रसायन लगाया जाता है, वह भी एलर्जी का कारण हो सकता है. सामान्य कंडोम का प्रयोग कर के भी इस एलर्जी से नजात पाई जा सकती है. इस के बावजूद यदि समस्या बनी रहे तो पुरुष कंडोम की जगह पत्नी स्वयं महिलाओं के लिए बनाए गए कंडोम का प्रयोग करे.

महिलाओं के कंडोम रबड़ की जगह पोलीयूरेथेन के बने होते हैं. वैसे बाजार में पुरुषों के लिए पोलीयूरेथेन कंडोम भी उपलब्ध हैं. इन के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि ये आम रबड़ के बने कंडोम की तुलना में कमजोर होते हैं, संबंध के दौरान इन के फटने की आशंका बनी रहती है. यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि संबंध के दौरान कंडोम के प्रयोग से अनेक लाभ होते हैं. इस के कारण अनचाहे गर्भ से छुटकारा मिलता ही है, रोगों के संक्रमण से भी नजात मिल जाती है.

मैं 35 साल की एक आंटी को पसंद करता हूं, क्या यह सही है?

सवाल

मैं 19 साल का एक लड़का हूं. मेरे पड़ोस में 35 साल की एक आंटी रहती हैं, जो मुझे बहुत पसंद हैं. वे इतनी ज्यादा खूबसूरत हैं कि रात को मेरे सपने में आती हैं. सपने में मैं बहक जाता हूं, पर असली जिंदगी में वे मु झ से बात भी नहीं करती हैं. मैं उन आंटी को देखते ही बौरा जाता हूं और उन्हीं के बारे में सोचता रहता हूं. मेरा पढ़ाई में भी मन नहीं लगता है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप जो कर सकते हैं, वह तो कर ही रहे हैं कि आंटी को पहलू में दबोच कर उन से सैक्स करते हुए खुद हस्तमैथुन करना, जो कतई हर्ज की बात नहीं. आप यही करते रहें और आंटी के बारे में सोचना बंद करें.

आंटी रात को सपने में कोई पूजा का थाल ले कर नहीं आती होंगी, बल्कि आप को वह सब देने आती होंगी, जो आप उस से चाहते हैं. असल जिंदगी में वे आप को घास नहीं डालतीं. इस का सीधा सा मतलब है कि आप में उन की कोई दिलचस्पी नहीं है, इसलिए किसी हमउम्र लड़की से दोस्ती करें, लेकिन उस के भी पहले अपनी पढ़ाई व कैरियर के सपने देख कर उन्हें अमल में लाने की कोशिश करें.

News Kahani: हवस और हैवानियत

‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.

14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.

गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.

रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझदारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.

गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.

दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.

रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.

पिछले हफ्ते की ही बात है. गीता रमेश चाचा की दुकान से नमक लेने गई थी. उस ने तंग सूट पहना हुआ था, जो एक साइड से उधड़ा हुआ था. उस का एक उभार वहां से ?ांक रहा था.

‘‘चाचा, जल्दी से नमक देना. मां ने सब्जी गैस पर चढ़ा रखी है,’’ गीता ने रमेश को पैसे देते हुए कहा.

वैसे तो रमेश के मन में तब तक कोई घटियापन सवार नहीं था, पर गीता के झांकते उभार ने उस की मर्दानगी को जगा दिया.

अब रमेश को गीता में भरीपूरी औरत नजर आने लगी. वह उसे बिस्तर पर ले जाने को उतावला हो गया. उस का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा.

‘‘अरे चाचा, जल्दी से नमक दो न,’’ गीता ने दोबारा कहा, तो रमेश अपनी फैंटेसी से जागा. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जा, भीतर से नमक की थैली ले ले. वहां चौकलेट का एक डब्बा भी रखा है. उस में से एक चौकलेट ले लेना.’’

यह सुन कर गीता खुश हो गई और भाग कर भीतर चली गई. तब गली सुनसान थी. रमेश भी दबे पैर गीता के पीछे चला गया और बहाने से उसे छूने लगा.

पहले तो गीता को ज्यादा पता नहीं चला, पर जब उसे लगा कि चाचा उसे अब गलत तरीके से छू रहे हैं, तो वह सावधान हो गई और नमक की थैली उठा कर अपने घर भाग गई.

तब से गीता को रोज रात को सपने में रमेश चाचा की वह गंदी छुअन दिखाई देती थी और वह गुमसुम सी रहने लगी थी.

आज सुबह जब मां ने गीता को स्कूल जाने के लिए उठाया, तो उस का मन किया कि घर पर ही रहे, पर अपने भाई रवि के जोर देने पर वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.

गीता इतना ज्यादा घबराई हुई थी कि उस ने रमेश की किराने की दुकान की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘दीदी, आज आप ने मुझे टौफी नहीं दिलाई,’’ रवि ने शिकायत की.

‘‘आज के बाद तुझे कोई टौफी नहीं मिलेगी,’’ गीता ने आंखें दिखाते हुए बात बदलनी चाही.

‘‘क्या हुआ दीदी? आप टौफी के नाम पर बिदक क्यों गईं?’’ रवि ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, जल्दी चल, नहीं तो स्कूल में लेट हो जाएगा,’’ गीता ने कहा.

रवि समझ गया था कि दाल में कुछ काला है. लंच टाइम में जब वे दोनों खाना खा रहे थे, तब रवि ने पूछा, ‘‘दीदी, बात क्या है? देखो, अगर मन में कोई बात है, तो मुझे बता दो. मेरे पास हर समस्या का हल है.’’

‘‘अच्छा, मेरे छोटे बहादुर भाई.

क्या तू हर समस्या का हल निकाल सकता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. रवि के पास हर मर्ज की दवा है,’’ रवि बोला.

‘‘भाई, पता नहीं क्यों, मुझे रमेश चाचा अब अच्छे नहीं लगते हैं. जिस दिन मैं नमक लेने गई थी, वे मुझे गलत ढंग से छू रहे थे. मैं डर गई थी. मां से कहने की हिम्मत नहीं हुई.’’

रवि छोटा जरूर था, पर उसे गुड टच और बैड टच की समझ थी. वह जान गया था कि रमेश चाचा की गंदी नजर उस की बहन पर है, पर कोई उन की बात को समझ नहीं पाएगा या समाज का डर दिखा कर गीता को चुप करा दिया जाएगा.

पर रवि चुप रहने वालों में से नहीं था. वह समझ गया कि रमेश चाचा की नीयत सही नहीं है. तभी उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाली माया की याद आई. माया ने बताया था कि उस के चाचा मनोज पुलिस में सिपाही हैं.

रवि उसी शाम को माया के घर जा पहुंचा. मनोज चाचा भी उस समय घर पर ही थे. रवि ने अकेले में मनोज चाचा को सारी बात बताई.

मनोज को सम?ा आ गया कि गीता किस तनाव से गुजर रही है. वह रमेश किराने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न रहे.

अगले दिन शाम को मनोज और रवि ने गीता से अकेले में बात की. पहले तो गीता सब बताने से डर रही थी, पर मनोज के समझाने पर उस ने नमक वाली घटना बता दी.

इस के बाद मनोज सादा कपड़ों में रमेश पर निगरानी रखने लगा. रमेश की हरकतें सही नहीं थीं. वह हर आतीजाती औरत और लड़की को ताड़ता था. उन के उभारों को देख कर उस की नजरों में अलग सी चमक आ जाती थी.

एक दिन मनोज ने गीता से कहा, ‘‘गीता, कल दिन में तुम फिर से रमेश की दुकान पर जाना और अगर वह तुम्हें भीतर बुलाए, तो चली जाना. मैं थोड़ी ही देर में वहां आ जाऊंगा और उसे सबक सिखा दूंगा.’’

गीता ने पहले तो नानुकर की, पर उसे मनोज चाचा पर पूरा भरोसा था, तो बाद में मान गई.

अगले दिन जब गली सुनसान थी, तब गीता रमेश की दुकान पर गई.

‘‘बड़े दिनों के बाद आई हो. क्या हुआ?’’ रमेश ने गीता को गंदी नजरों से घूरते हुए पूछा.

‘‘अरे चाचा, उस दिन मैं चौकलेट लेना भूल गई थी. आज दे दो.’’

रमेश का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा. उस की हवस जाग गई थी. उस ने कहा, ‘‘जा, भीतर जा कर ले ले.’’

गीता ने बाहर की तरफ देखा. दूर मनोज चाचा खड़े थे. वह हिम्मत दिखा कर भीतर चली गई. उस के पीछेपीछे रमेश भी हो लिया.

गीता को पता था कि रमेश जरूर कुछ करेगा, तो वह सावधान थी. तभी रमेश ने बहाने से गीता के कूल्हे पर हाथ फिराया, तो गीता सहम गई.

पर रमेश तो अब सरकारी सांड़ बन गया था. उस ने गीता को तकरीबन दबोच लिया और उसे बोरी पर गिरा दिया और बोला, ‘‘बस, थोड़ा सा मजा करने दे, मैं तुझे 5 चौकलेट दूंगा.’’

गीता को लगा कि अगर मनोज चाचा नहीं आए, तो यह दरिंदा उसे रौंद देगा. पर तभी मनोज चाचा वहां आ गए और उन्होंने बिना देरी किए रमेश को धर दबोचा. रमेश को सपने में भी गुमान नहीं था कि उस की हवस का यह नतीजा निकलेगा.

थोड़ी देर में रमेश हवालात में था. वहां इंस्पैक्टर दीपक रावत ने जब यह पूरा किस्सा सुना, तो वे हैरान रह गए. उन्होंने रमेश से कहा कि अब उस की खैर नहीं, फिर मनोज की चतुराई पर उसे बधाई दी.

पर, मनोज का मन अभी भी गीता के साथ हुई इस हरकत से दुखी था. इंस्पैक्टर दीपक रावत ने इस की वजह पूछी.

सिपाही मनोज ने कहा, ‘‘अरे साहब, किसकिस पर नजर रखें, यहां तो हर घर की रखवाली चोर को दे रखी है.’’

‘‘मैं समझ नहीं. साफसाफ कहो कि माजरा क्या है? क्या कोई और भी कांड हुआ है?’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा.

‘‘साहब, एक मामला हाल ही का है. गुजरात का. वहां एक 6 साल की मासूम छात्रा ने यौन शोषण कर रहे प्रिंसिपल को रोकने की कोशिश की, तो उस की जान ले ली गई.

‘‘यह कांड दाहोद जिले का है. उस इलाके के पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने बताया कि जब छात्रा ने खुद को बचाने की कोशिश की, तो उस प्रिंसिपल गोविंद नट ने उस का गला घोंट दिया.

‘‘साहब सोचिए कि 50 साल का एक बूढ़ा महज 6 साल की लड़की में सैक्स ढूंढ़ रहा था और जब हवस

नहीं मिटी, तो उस की हत्या कर दी,’’ सिपाही मनोज ने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा.

‘‘मुझे पूरा मामला तफसील से बताओ मनोज.’’

‘‘साहब, पुलिस वालों ने रविवार,

22 सितंबर, 2024 को यह जानकारी दी थी. पुलिस के एक अफसर ने बताया कि बृहस्पतिवार, 19 सितंबर को सिंगवाड़ तालुका के एक गांव में स्कूल परिसर के अंदर बच्ची की लाश मिलने के बाद जांच शुरू की गई थी.

‘‘पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने मीडिया को बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10 बज कर

20 मिनट पर प्रिंसिपल अपनी कार से वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने बच्ची की मां के कहने पर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल ले जाने के लिए हां की, जबकि छात्राओं और टीचरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची उस दिन स्कूल नहीं पहुंची थी.

‘‘पूछताछ के दौरान प्रिंसिपल ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि उस ने अपनी कार में छात्रा को बिठाने के बाद उसे स्कूल में छोड़ा था. हालांकि, बाद में उस ने बच्ची की हत्या करने की बात कबूल कर ली.

‘‘स्कूल के रास्ते में प्रिंसिपल ने छात्रा का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की, लेकिन उस के चिल्लाने पर उस ने (प्रिंसिपल) बच्ची का मुंह और नाक दबा दी, जिस से वह बेहोश हो गई.

‘‘प्रिंसिपल स्कूल पहुंचा और अपनी कार पार्क की, जिस में बच्ची की लाश थी. शाम के 5 बजे उस ने लाश

को बाहर निकाला और स्कूल की इमारत के पीछे फेंक दिया. इस के बाद उस ने छात्रा का स्कूल बैग और चप्पलें उस की क्लास में रख दीं.

‘‘पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश मिलने के एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत

गला घोंटने से हुई है. बच्ची जब स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद घर

नहीं लौटी, तो उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने उस की तलाश शुरू की और उसे स्कूल की इमारत के पीछे के परिसर में बेहोशी की हालत में पड़ा पाया. उन्होंने बताया कि बच्ची को लिमखेड़ा सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.’’

इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा, ‘‘पुलिस को प्रिंसिपल पर शक कैसे हुआ?’’

‘‘दरअसल, प्रिंसिपल ने पुलिस को बताया था कि वह शाम 5 बजे स्कूल से निकला था, लेकिन उस की फोन लोकेशन से पता चला कि वह शाम के 6 बज कर 10 मिनट तक स्कूल में था. पुलिस ने कहा कि स्कूल के किसी भी बच्चे ने लड़की को प्रिंसिपल की कार से उतरते नहीं देखा था. उस के साथ पढ़ने वाले बच्चों ने भी कहा कि वह उस दिन क्लास में नहीं आई थी.’’

‘‘मनोज, मैं तुम्हारा गुस्सा और बेबसी समझ सकता हूं, पर कोई इनसान कितना गिरा हुआ है या उस के मन में क्या चल रहा है, इस का पता लगाने की कोई मशीन नहीं बनी है.

‘‘उस लड़की की मां को क्या पता था कि वह जिस आदमी के साथ अपनी लाड़ली को अकेले कार से भेज रही है, वही राक्षस निकलेगा.’’

‘‘सर, गीता तो बच गई, पर हमारे देश में न जाने कितने दरिंदे घूम रहे हैं, जो हवस के पुजारी हैं, पर उन के चेहरे पर अच्छे आदमी होने का मुखौटा लगा होता है. आप ने कहा कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जो लोगों का मन

पढ़ सके, पर क्या यह हम लोगों की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है कि अगर देश और समाज को बेहतर करना है, तो हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सीखना होगा.

‘‘अगर बच्चा किसी वजह से चुपचुप रहता है, जराजरा सी बात पर चिढ़ जाता है, पढ़ने पर ध्यान नहीं दे पा रहा है, तो उस से बात करनी चाहिए, उस की समस्या को ध्यान से सुन कर सुल?ाना चाहिए. शायद यही एक तरीका है अपने बच्चों को महफूज रखने का.’’

‘‘तुम सही कह रहे हो मनोज, पर यह मत भूलो कि आज तुम्हारी वजह से गीता की इज्जत पर दाग लगने से बचा है. तुम ने एक अच्छे इनसान और अपनी वरदी के प्रति वफादार होने का सुबूत दिया है. वैलडन. आगे भी ऐसे ही काम करते रहना,’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने मनोज की पीठ थपथपाते हुए कहा.‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.

14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.

गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले

के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.

रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझादारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.

गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.

दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.

रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.

पिछले हफ्ते की ही बात है. गीता रमेश चाचा की दुकान से नमक लेने गई थी. उस ने तंग सूट पहना हुआ था, जो एक साइड से उधड़ा हुआ था. उस का एक उभार वहां से झांक रहा था.

‘‘चाचा, जल्दी से नमक देना. मां ने सब्जी गैस पर चढ़ा रखी है,’’ गीता ने रमेश को पैसे देते हुए कहा.

वैसे तो रमेश के मन में तब तक कोई घटियापन सवार नहीं था, पर गीता के झांकते उभार ने उस की मर्दानगी को जगा दिया.

अब रमेश को गीता में भरीपूरी औरत नजर आने लगी. वह उसे बिस्तर पर ले जाने को उतावला हो गया. उस का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा.

‘‘अरे चाचा, जल्दी से नमक दो न,’’ गीता ने दोबारा कहा, तो रमेश अपनी फैंटेसी से जागा. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जा, भीतर से नमक की थैली ले ले. वहां चौकलेट का एक डब्बा भी रखा है. उस में से एक चौकलेट ले लेना.’’

यह सुन कर गीता खुश हो गई और भाग कर भीतर चली गई. तब गली सुनसान थी. रमेश भी दबे पैर गीता के पीछे चला गया और बहाने से उसे छूने लगा.

पहले तो गीता को ज्यादा पता नहीं चला, पर जब उसे लगा कि चाचा उसे अब गलत तरीके से छू रहे हैं, तो वह सावधान हो गई और नमक की थैली उठा कर अपने घर भाग गई.

तब से गीता को रोज रात को सपने में रमेश चाचा की वह गंदी छुअन

दिखाई देती थी और वह गुमसुम सी रहने लगी थी.

आज सुबह जब मां ने गीता को स्कूल जाने के लिए उठाया, तो उस का मन किया कि घर पर ही रहे, पर अपने भाई रवि के जोर देने पर वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.

गीता इतना ज्यादा घबराई हुई थी कि उस ने रमेश की किराने की दुकान की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘दीदी, आज आप ने मुझे टौफी नहीं दिलाई,’’ रवि ने शिकायत की.

‘‘आज के बाद तुझे कोई टौफी नहीं मिलेगी,’’ गीता ने आंखें दिखाते हुए बात बदलनी चाही.

‘‘क्या हुआ दीदी? आप टौफी के नाम पर बिदक क्यों गईं?’’ रवि ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, जल्दी चल, नहीं तो स्कूल में लेट हो जाएगा,’’ गीता ने कहा.

रवि समझ गया था कि दाल में कुछ काला है. लंच टाइम में जब वे दोनों खाना खा रहे थे, तब रवि ने पूछा, ‘‘दीदी, बात क्या है? देखो, अगर मन में कोई बात है, तो मुझे बता दो. मेरे पास हर समस्या का हल है.’’

‘‘अच्छा, मेरे छोटे बहादुर भाई.

क्या तू हर समस्या का हल निकाल सकता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. रवि के पास हर मर्ज की दवा है,’’ रवि बोला.

‘‘भाई, पता नहीं क्यों, मुझे रमेश चाचा अब अच्छे नहीं लगते हैं. जिस दिन मैं नमक लेने गई थी, वे मझे गलत ढंग से छू रहे थे. मैं डर गई थी. मां से कहने की हिम्मत नहीं हुई.’’

रवि छोटा जरूर था, पर उसे गुड टच और बैड टच की समझ थी. वह जान गया था कि रमेश चाचा की गंदी नजर उस की बहन पर है, पर कोई उन की बात को समझ नहीं पाएगा या समाज का डर दिखा कर गीता को चुप करा दिया जाएगा.

पर रवि चुप रहने वालों में से नहीं था. वह समझ गया कि रमेश चाचा की नीयत सही नहीं है. तभी उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाली माया की याद आई. माया ने बताया था कि उस के चाचा मनोज पुलिस में सिपाही हैं.

रवि उसी शाम को माया के घर जा पहुंचा. मनोज चाचा भी उस समय घर पर ही थे. रवि ने अकेले में मनोज चाचा को सारी बात बताई.

मनोज को समझ आ गया कि गीता किस तनाव से गुजर रही है. वह रमेश किराने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न रहे.

अगले दिन शाम को मनोज और रवि ने गीता से अकेले में बात की. पहले तो गीता सब बताने से डर रही थी, पर मनोज के सम?ाने पर उस ने नमक वाली घटना बता दी.

इस के बाद मनोज सादा कपड़ों में रमेश पर निगरानी रखने लगा. रमेश की हरकतें सही नहीं थीं. वह हर आतीजाती औरत और लड़की को ताड़ता था. उन के उभारों को देख कर उस की नजरों में अलग सी चमक आ जाती थी.

एक दिन मनोज ने गीता से कहा, ‘‘गीता, कल दिन में तुम फिर से रमेश की दुकान पर जाना और अगर वह तुम्हें भीतर बुलाए, तो चली जाना. मैं थोड़ी ही देर में वहां आ जाऊंगा और उसे सबक सिखा दूंगा.’’

गीता ने पहले तो नानुकर की, पर उसे मनोज चाचा पर पूरा भरोसा था, तो बाद में मान गई.

अगले दिन जब गली सुनसान थी, तब गीता रमेश की दुकान पर गई.

‘‘बड़े दिनों के बाद आई हो. क्या हुआ?’’ रमेश ने गीता को गंदी नजरों से घूरते हुए पूछा.

‘‘अरे चाचा, उस दिन मैं चौकलेट लेना भूल गई थी. आज दे दो.’’

रमेश का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा. उस की हवस जाग गई थी. उस ने कहा, ‘‘जा, भीतर जा कर ले ले.’’

गीता ने बाहर की तरफ देखा. दूर मनोज चाचा खड़े थे. वह हिम्मत दिखा कर भीतर चली गई. उस के पीछेपीछे रमेश भी हो लिया.

गीता को पता था कि रमेश जरूर कुछ करेगा, तो वह सावधान थी. तभी रमेश ने बहाने से गीता के कूल्हे पर हाथ फिराया, तो गीता सहम गई.

पर रमेश तो अब सरकारी सांड़ बन गया था. उस ने गीता को तकरीबन दबोच लिया और उसे बोरी पर गिरा दिया और बोला, ‘‘बस, थोड़ा सा मजा करने दे, मैं तुझे 5 चौकलेट दूंगा.’’

गीता को लगा कि अगर मनोज चाचा नहीं आए, तो यह दरिंदा उसे रौंद देगा. पर तभी मनोज चाचा वहां आ गए और उन्होंने बिना देरी किए रमेश को धर दबोचा.

रमेश को सपने में भी गुमान नहीं था कि उस की हवस का यह नतीजा निकलेगा.

थोड़ी देर में रमेश हवालात में था. वहां इंस्पैक्टर दीपक रावत ने जब यह पूरा किस्सा सुना, तो वे हैरान रह गए. उन्होंने रमेश से कहा कि अब उस की खैर नहीं, फिर मनोज की चतुराई पर उसे बधाई दी. पर, मनोज का मन अभी भी गीता के साथ हुई इस हरकत से दुखी था. इंस्पैक्टर दीपक रावत ने इस की वजह पूछी.

सिपाही मनोज ने कहा, ‘‘अरे साहब, किसकिस पर नजर रखें, यहां तो हर घर की रखवाली चोर को दे रखी है.’’

‘‘मैं समझ नहीं. साफसाफ कहो कि माजरा क्या है? क्या कोई और भी कांड हुआ है?’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा.

‘‘साहब, एक मामला हाल ही का है. गुजरात का. वहां एक 6 साल की मासूम छात्रा ने यौन शोषण कर रहे प्रिंसिपल को रोकने की कोशिश की, तो उस की जान ले ली गई.

‘‘यह कांड दाहोद जिले का है. उस इलाके के पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने बताया कि जब छात्रा ने खुद को बचाने की कोशिश की, तो उस प्रिंसिपल गोविंद नट ने उस का गला घोंट दिया.

‘‘साहब सोचिए कि 50 साल का एक बूढ़ा महज 6 साल की लड़की में सैक्स ढूंढ़ रहा था और जब हवस

नहीं मिटी, तो उस की हत्या कर दी,’’ सिपाही मनोज ने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा.

‘‘मुझे पूरा मामला तफसील से बताओ मनोज.’’

‘‘साहब, पुलिस वालों ने रविवार,

22 सितंबर, 2024 को यह जानकारी दी थी. पुलिस के एक अफसर ने बताया कि बृहस्पतिवार, 19 सितंबर को सिंगवाड़ तालुका के एक गांव में स्कूल परिसर के अंदर बच्ची की लाश मिलने के बाद जांच शुरू की गई थी.

‘‘पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने मीडिया को बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10 बज कर

20 मिनट पर प्रिंसिपल अपनी कार से वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने बच्ची की मां के कहने पर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल ले जाने के लिए हां की, जबकि छात्राओं और टीचरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची उस दिन स्कूल नहीं पहुंची थी.

‘‘पूछताछ के दौरान प्रिंसिपल ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि उस ने अपनी कार में छात्रा को बिठाने के बाद उसे स्कूल में छोड़ा था. हालांकि, बाद में उस ने बच्ची की हत्या करने की बात कबूल कर ली.

‘‘स्कूल के रास्ते में प्रिंसिपल ने छात्रा का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश

की, लेकिन उस के चिल्लाने पर उस ने (प्रिंसिपल) बच्ची का मुंह और नाक दबा दी, जिस से वह बेहोश हो गई.

‘‘प्रिंसिपल स्कूल पहुंचा और अपनी कार पार्क की, जिस में बच्ची की लाश थी. शाम के 5 बजे उस ने लाश

को बाहर निकाला और स्कूल की इमारत के पीछे फेंक दिया. इस के बाद उस ने छात्रा का स्कूल बैग और चप्पलें उस की क्लास में रख दीं.

‘‘पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश मिलने के एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत

गला घोंटने से हुई है. बच्ची जब स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद घर नहीं लौटी, तो उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने उस की तलाश शुरू की और उसे स्कूल की इमारत के पीछे के परिसर में बेहोशी की हालत में पड़ा पाया. उन्होंने बताया कि बच्ची को लिमखेड़ा सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.’’

इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा, ‘‘पुलिस को प्रिंसिपल पर शक कैसे हुआ?’’

‘‘दरअसल, प्रिंसिपल ने पुलिस को बताया था कि वह शाम 5 बजे स्कूल से निकला था, लेकिन उस की फोन लोकेशन से पता चला कि वह शाम के 6 बज कर 10 मिनट तक स्कूल में था. पुलिस ने कहा कि स्कूल के किसी भी बच्चे ने लड़की को प्रिंसिपल की कार से उतरते नहीं देखा था. उस के साथ पढ़ने वाले बच्चों ने भी कहा कि वह उस दिन क्लास में नहीं आई थी.’’

‘‘मनोज, मैं तुम्हारा गुस्सा और बेबसी समझ सकता हूं, पर कोई इनसान कितना गिरा हुआ है या उस के मन में क्या चल रहा है, इस का पता लगाने की कोई मशीन नहीं बनी है.

‘‘उस लड़की की मां को क्या पता था कि वह जिस आदमी के साथ अपनी लाड़ली को अकेले कार से भेज रही है, वही राक्षस निकलेगा.’’

‘‘सर, गीता तो बच गई, पर हमारे देश में न जाने कितने दरिंदे घूम रहे हैं, जो हवस के पुजारी हैं, पर उन के चेहरे पर अच्छे आदमी होने का मुखौटा लगा होता है. आप ने कहा कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जो लोगों का मन

पढ़ सके, पर क्या यह हम लोगों की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है कि अगर देश और समाज को बेहतर करना है, तो हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सीखना होगा.

‘‘अगर बच्चा किसी वजह से चुपचुप रहता है, जराजरा सी बात पर चिढ़ जाता है, पढ़ने पर ध्यान नहीं दे पा रहा है, तो उस से बात करनी चाहिए, उस की समस्या को ध्यान से सुन कर सुल?ाना चाहिए. शायद यही एक तरीका है अपने बच्चों को महफूज रखने का.’’

‘‘तुम सही कह रहे हो मनोज, पर यह मत भूलो कि आज तुम्हारी वजह से गीता की इज्जत पर दाग लगने से बचा है. तुम ने एक अच्छे इनसान और अपनी वरदी के प्रति वफादार होने का सुबूत दिया है. वैलडन. आगे भी ऐसे ही काम करते रहना,’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने मनोज की पीठ थपथपाते हुए कहा.

दो भूत : उर्मिल ने अम्माजी को दी अनोखी राहत

मेरी निगाह कलैंडर की ओर गई तो मैं एकदम चौंक पड़ी…तो आज 10 तारीख है. उर्मिल से मिले पूरा एक महीना हो गया है. कहां तो हफ्ते में जब तक चार बार एकदूसरे से नहीं मिल लेती थीं, चैन ही नहीं पड़ता था, कहां इस बार पूरा एक महीना बीत गया. घड़ी पर निगाह दौड़ाई तो देखा कि अभी 11 ही बजे हैं और आज तो पति भी दफ्तर से देर से लौटेंगे. सोचा क्यों न आज उर्मिल के यहां ही हो आऊं. अगर वह तैयार हो तो बाजार जा कर कुछ खरीदारी भी कर ली जाए. बाजार उर्मिल के घर से पास ही है. बस, यह सोच कर मैं घर में ताला लगा कर चल पड़ी. उर्मिल के यहां पहुंच कर घंटी बजाई तो दरवाजा उसी ने खोला. मुझे देखते ही वह मेरे गले से लिपट गई और शिकायतभरे लहजे में बोली, ‘‘तुझे इतने दिनों बाद मेरी सुध आई?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तो आखिर चली भी आई पर तू तो जैसे मुझे भूल ही गई.’’

‘‘तुम तो मेरी मजबूरियां जानती ही हो.’’

‘‘अच्छा भई, छोड़ इस किस्से को. अब क्या बाहर ही खड़ा रखेगी?’’

‘‘खड़ा तो रखती, पर खैर, अब आ गई है तो आ बैठ.’’

‘‘अच्छा, क्या पिएगी, चाय या कौफी?’’ उस ने कमरे में पहुंच कर कहा.

‘‘कुछ भी पिला दे. तेरे हाथ की तो दोनों ही चीजें मुझे पसंद हैं.’’

‘‘बहूरानी, कौन आया है?’’ तभी अंदर से आवाज आई.

‘‘उर्मिल, कौन है अंदर? अम्माजी आई हुई हैं क्या? फिर मैं उन के ही पास चल कर बैठती हूं. तू अपनी चाय या कौफी वहीं ले आना.’’

अंदर पहुंच कर मैं ने अम्माजी को प्रणाम किया और पूछा, ‘‘तबीयत कैसी है अब आप की?’’

‘‘बस, तबीयत तो ऐसी ही चलती रहती है, चक्कर आते हैं. भूख नहीं लगती.’’

‘‘डाक्टर क्या कहते हैं?’’

‘‘डाक्टर क्या कहेंगे. कहते हैं आप दवाएं बहुत खाती हैं. आप को कोई बीमारी नहीं है. तुम्हीं देखो अब रमा, दवाओं के बल पर तो चल भी रही हूं, नहीं तो पलंग से ही लग जाती,’’ यह कह कर वे सेब काटने लगीं.

‘‘सेब काटते हुए आप का हाथ कांप रहा है. लाइए, मैं काट दूं.’’

‘‘नहीं, मैं ही काट लूंगी. रोज ही काटती हूं.’’

‘‘क्यों, क्या उर्मिल काट कर नहीं देती?’’

‘‘तभी उर्मिल ट्रे में चाय व कुछ नमकीन ले कर आ गई और बोली, ‘‘यह उर्मिल का नाम क्यों लिया जा रहा था?’’

‘‘उर्मिल, यह क्या बात है? अम्माजी का हाथ कांप रहा है और तुम इन्हें एक सेब भी काट कर नहीं दे सकतीं?’’

‘‘रमा, तू चाय पी चुपचाप. अम्माजी ने एक सेब काट लिया तो क्या हो गया.’’

‘‘हांहां, बहू, मैं ही काट लूंगी. तुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं है,’’ तनाव के कारण अम्माजी की सांस फूल गई थी.

मैं उर्मिल को दूसरे कमरे में ले गई और बोली, ‘‘उर्मिल, तुझे क्या हो गया है?’’

‘‘छोड़ भी इस किस्से को? जल्दी चाय खत्म कर, फिर बाजार चलें,’’ उर्मिल हंसती हुई बोली.

मैं ठगी सी उसे देखती रह गई. क्या यह वही उर्मिल है जो 2 वर्ष पूर्व रातदिन सास का खयाल रखती थी, उन का एकएक काम करती थी, एकएक चीज उन को पलंग पर हाथ में थमाती थी. अगर कभी अम्माजी कहतीं भी, ‘अरी बहू, थोड़ा काम मुझे भी करने दिया कर,’ तो हंस कर कहती, ‘नहीं, अम्माजी, मैं किस लिए हूं? आप के तो अब आराम करने के दिन हैं.’

तभी उर्मिल ने मुझे झिंझोड़ दिया, ‘‘अरे, कहां खो गई तू? चल, अब चलें.’’

‘‘हां.’’

‘‘और हां, तू खाना भी यहां खाना. अम्माजी बना लेंगी.’’

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, ‘‘उर्मिल, तुझे हो क्या गया है?’’

‘‘कुछ नहीं, अम्माजी बना लेंगी. इस में बुरा क्या है?’’

‘‘नहीं, उर्मिल, चल दोनों मिल कर सब्जीदाल बना लेते हैं और अम्माजी के लिए रोटियां भी बना कर रख देते हैं. जरा सी देर में खाना बन जाएगा.’’

‘‘सब्जी बन गई है, दालरोटी अम्माजी बना लेंगी, जब उन्हें खानी होगी.’’

‘‘हांहां, मैं बना लूंगी. तुम दोनों जाओ,’’ अम्माजी भी वहीं आ गई थीं.

‘‘पर अम्माजी, आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही है, हाथ भी कांप रहे हैं,’’ मैं किसी भी प्रकार अपने मन को नहीं समझा पा रही थी.

‘‘बेटी, अब पहले का समय तो रहा नहीं जब सासें राज करती थीं. बस, पलंग पर बैठना और हुक्म चलाना. बहुएं आगेपीछे चक्कर लगाती थीं. अब तो इस का काम न करूं तो दोवक्त का खाना भी न मिले,’’ अम्माजी एक लंबी सांस ले कर बोलीं.

‘‘अरे, अब चल भी, रमा. अम्माजी, मैं ने कुकर में दाल डाल दी है. आटा भी तैयार कर के रख दिया है.’’

बाजार जाते समय मेरे विचार फिर अतीत में दौड़ने लगे. बैंक उर्मिल के घर के पास ही था. एक सुबह अम्माजी ने कहा, ‘मैं बैंक जा कर रुपए जमा कर ले आती हूं.’

‘नहीं अम्माजी, आप कहां जाएंगी, मैं चली जाऊंगी,’ उर्मिल ने कहा था.

‘नहीं, तुम कहां जाओगी? अभी तो अस्पताल जा रही हो.’

‘कोई बात नहीं, अस्पताल का काम कर के चली जाऊंगी.’

और फिर उर्मिल ने अम्माजी को नहीं जाने दिया था. पहले वह अस्पताल गई जो दूसरी ओर था और फिर बैंक. भागतीदौड़ती सारा काम कर के लौटी तो उस की सांस फूल आई थी. पर उर्मिल न जाने किस मिट्टी की बनी हुई थी कि कभी खीझ या थकान के चिह्न उस के चेहरे पर आते ही न थे.

उर्मिल की भागदौड़ देख कर एक दिन जीजाजी ने भी कहा था,

‘भई, थोड़ा काम मां को भी कर लेने दिया करो. सारा दिन बैठे रहने से तो उन की तबीयत और खराब होगी और खाली रहने से तबीयत ऊबेगी भी.’

इस पर उर्मिल उन से झगड़ पड़ी थी, ‘आप भी क्या बात करते हैं? अब इन की कोई उम्र है काम करने की? अब तो इन से तभी काम लेना चाहिए जब हमारे लिए मजबूरी हो.’

बेचारे जीजाजी चुप हो गए थे और फिर कभी सासबहू के बीच में नहीं बोले.  मैं इन्हीं विचारों में खोई थी कि उर्मिल ने कहा, ‘‘लो, बाजार आ गया.’’ यह सुन कर मैं विचारों से बाहर आई.

बाजार में हम दोनों ने मिल कर खरीदारी की. सूरज सिर पर चढ़ आया था. पसीने की बूंदें माथे पर झलक आई थीं. दोनों आटो कर के घर पहुंचीं. अम्माजी ने सारा खाना तैयार कर के मेज पर लगा रखा था. 2 थालियां भी लगा रखी थीं. मेरा दिल भर आया.

अम्माजी बोलीं, ‘‘तुम लोग हाथ धो कर खाना खा लो. बहुत देर हो गई है.’’

‘‘अम्माजी, आप?’’  मैं ने कहा.

‘‘मैं ने खा लिया है. तुम लोग खाओ, मैं गरमगरम रोटियां सेंक कर लाती हूं.’’

मैं अम्माजी के स्नेहभरे चेहरे को देखती रही और खाना खाती रही. पता नहीं अम्माजी की गरम रोटियों के कारण या भूख बहुत लग आने के कारण खाना बहुत स्वादिष्ठ लगा. खाना खा कर अम्माजी को स्वादिष्ठ खाने के लिए धन्यवाद दे कर मैं अपने घर लौट आई.

कुछ दिनों बाद एक दिन जब मैं उर्मिल के घर पहुंची तो दरवाजा थोड़ा सा खुला था. मैं धीरे से अंदर घुसी और उर्मिल को आवाज लगाने ही वाली थी कि उस की व अम्माजी की मिलीजुली आवाज सुन कर चौंक पड़ी. मैं वहीं ओट में खड़ी हो कर सुनने लगी.

‘‘सुनो, बहू, तुम्हारी लेडीज क्लब की मीटिंग तो मंगलवार को ही हुआ करती है न? तू बहुत दिनों से उस में गई नहीं.’’

‘‘पर समय ही कहां मिलता है, अम्माजी?’’

‘‘तो ऐसा कर, तू आज हो आ. आज भी मंगलवार ही है न?’’

‘‘हां, अम्माजी, पर मैं न जा सकूंगी. अभी तो काम पड़ा है. खाना भी बनाना है.’’

‘‘उस की चिंता न कर. मुझे बता दे, क्याक्या बनेगा.’’

‘‘अम्माजी, आप सारा खाना कैसे बना पाएंगी? वैसे ही आप की तबीयत ठीक नहीं रहती है.’’

‘‘बहू, तू क्या मुझे हमेशा बुढि़या और बीमार ही बनाए रखेगी?’’

‘‘अम्माजी मैं…मैं…तो…’’

‘‘हां, तू. मुझे इधर कई दिनों से लग रहा है कि कुछ न करना ही मेरी सब से बड़ी बीमारी है, और सारे दिन पड़ेपड़े कुढ़ना मेरा बुढ़ापा. जब मैं कुछ काम में लग जाती हूं तो मुझे लगता है मेरी बीमारी ठीक हो गई है और बुढ़ापा कोसों दूर चला गया है.’’

‘‘अम्माजी, यह आप कह रही हैं?’’ उर्मिल को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ.

‘‘हां, मैं. इधर कुछ दिनों से तू ने देखा नहीं कि मेरी तबीयत कितनी सुधर गई है. तू चिंता न कर. मैं बिलकुल ठीक हूं. तुझे जहां जाना है जा. आज शाम को सुधीर के साथ किसी पार्टी में भी जाना है न? मेरी वजह से कार्यक्रम स्थगित मत करना. यहां का सब काम मैं देख लूंगी.’’

‘‘ओह अम्माजी,’’  उर्मिल अम्माजी से लिपट गई और रो पड़ी.

‘‘यह क्या, पगली, रोती क्यों है?’’ अम्माजी ने उसे थपथपाते हुए कहा.

‘‘अम्माजी, मेरे कान कब से यह सुनने को तरस रहे थे कि आप बूढ़ी नहीं हैं और काम कर सकती हैं. मैं ने इस बीच आप से जो कठोर व्यवहार किया, उस के लिए क्षमा चाहती हूं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. चल जा, जल्दी उठ. क्लब की मीटिंग का समय हो रहा है.’’

‘‘अम्माजी, अब तो नहीं जाऊंगी आज. हां, आज बाजार हो आती हूं. बच्चों की किताबें और सुधीर के लिए शर्ट लेनी है.’’

‘‘तो बाजार ही हो आ. रमा को भी फोन कर देती तो दोनों मिल कर चली जातीं.’’

‘‘अम्माजी, प्रणाम. आप ने याद किया और रमा हाजिर है.’’

‘‘अरी, तू कब से यहां खड़ी थी?’’

‘‘अभी, बस 2 मिनट पहले आई थी.’’

‘‘तो छिप कर हमारी बातें सुन रही थी, चोर कहीं की.’’

‘‘क्या करती? तुम सासबहू की बातचीत ही इतनी दिलचस्प थी कि अपने को रोकना जरूरी लगा.’’

‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ अम्माजी रसोई की ओर बढ़ गईं.

मैं अपने को रोक न पाई. उर्मिल से पूछ ही बैठी, ‘‘यह सब क्या हो रहा था? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया. यह माफी कैसी मांगी जा रही थी?’’

‘‘रमा, याद है, उस दिन, तू मुझ से बारबार मेरे बदले हुए व्यवहार का कारण पूछ रही थी. बात यह है रमा, अम्माजी के सिर पर दो भूत सवार थे. उन्हें उतारने के लिए मुझे नाटक करना पड़ा.’’

‘‘दो भूत? नाटक? यह सब क्या है? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा. पहेलियां न बुझा, साफसाफ बता.’’

‘‘बता तो रही हूं, तू उतावली क्यों है? अम्माजी के सिर पर चढ़ा पहला भूत था उन का यह समझ लेना कि बहू आ गई है, उस का कर्तव्य है कि वह प्राणपण से सास की सेवा और देखभाल करे, और सास होने के नाते उन का अधिकार है दिनभर बैठे रहना और हुक्म चलाना. अम्माजी अच्छीभली चलफिर रही होती थीं तो भी अपने इन विचारों के कारण चायदूध का समय होते ही बिस्तर पर जा लेटतीं ताकि मैं सारी चीजें उन्हें बिस्तर पर ही ले जा कर दूं. उन के जूठे बरतन मैं ही उठा कर रखती थी. मेरे द्वारा बरतन उठाते ही वे फिर उठ बैठती थीं और इधरउधर चहलकदमी करने लगती थीं.’’

‘‘अच्छा, दूसरा भूत कौन सा था?’’

‘‘दूसरा भूत था हरदम बीमार रहने का. उन के दिमाग में घुस गया था कि हर समय उन को कुछ न कुछ हुआ रहता है और कोई उन की परवा नहीं करता. डाक्टर भी जाने कैसे लापरवाह हो गए हैं. न जाने कैसी दवाइयां देते हैं, फायदा ही नहीं करतीं.’’

‘‘भई, इस उम्र में कुछ न कुछ तो लगा ही रहता है. अम्माजी दुबली भी तो हो गई हैं,’’ मैं कुछ शिकायती लहजे में बोली.

‘‘मैं इस से कब इनकार करती हूं, पर यह तो प्रकृति का नियम है. उम्र के साथसाथ शक्ति भी कम होती जाती है. मुझे ही देख, कालेज के दिनों में जितनी भागदौड़ कर लेती थी उतनी अब नहीं कर सकती, और जितनी अब कर लेती हूं उतनी कुछ समय बाद न कर सकूंगी. पर इस का यह अर्थ तो नहीं कि हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाऊं,’’ उर्मिल ने मुझे समझाते हुए कहा.

‘‘अम्माजी की सब से बड़ी बीमारी है निष्क्रियता. उन के मस्तिष्क में बैठ गया था कि वे हर समय बीमार रहती हैं, कुछ नहीं कर सकतीं. अगर मैं अम्माजी की इस भावना को बना रहने देती तो मैं उन की सब से बड़ी दुश्मन होती. आदमी कामकाज में लगा रहे तो अपने दुखदर्द भूल जाता है और शरीर में रक्त का संचार बढ़ता है, जिस से वह स्वस्थ अनुभव करता है, और फिर व्यस्त रहने से चिड़चिड़ाता भी नहीं रहता.’’

मुझे अचानक हंसी आ गई. ‘‘ले भई, तू ने तो डाक्टरी, फिलौसफी सब झाड़ डाली.’’

‘‘तू चाहे जो कह ले, असली बात तो यही है. अम्माजी को अपने दो भूतों के दायरे से निकालने का एक ही उपाय था कि…’’

‘‘तू उन की अवहेलना करे, उन्हें गुस्सा दिलाए जिस से चिढ़ कर वे काम करें और अपनी शक्ति को पहचानें. यही न?’’  मैं ने वाक्य पूरा कर दिया.

‘‘हां, तू ने ठीक समझा. यद्यपि गुस्सा और उत्तेजना शरीर और हृदय के लिए हानिकारक समझे जाते हैं पर कभीकभी इन का होना भी मनुष्य के रक्तसंचार को गति देने के लिए आवश्यक है. एकदम ठंडे मनुष्य का तो रक्त भी ठंडा हो जाता है. बस, यही सोच कर मैं अम्माजी को जानबूझ कर उत्तेजित करती थी.’’

‘‘कहती तो तू ठीक है.’’

‘‘तू मेरे नानाजी से तो मिली है न?’’

‘‘हां, शादी से पहले मिली थी एक बार.’’

‘‘जानती है, कुछ दिनों में वे 95 वर्ष के हो जाएंगे. आज भी वे कचहरी जाते हैं. जितना कर पाते हैं, काम करते हैं. कई बार रातरातभर अध्ययन भी करते हैं. अब भी दोनों समय घूमने जाते हैं.’’

‘‘इस उम्र में भी?’’  मुझे आश्चर्य हो रहा था.

‘‘हां, उन की व्यस्तता ही आज भी उन्हें चुस्त रखे हुए है. भले ही वे बीमार से रहते हैं, फिर भी उन्होंने उम्र से हार नहीं मानी है.’’

मैं ने आंख भर कर अपनी इस सहेली को देखा जिस की हर टेढ़ी बात में भी कोई न कोई अच्छी बात छिपी रहती है. ‘‘अच्छा एक बात तो बता, क्या जीजाजी को पता था? उन्हें अपनी मां के प्रति तेरा यह रूखा व्यवहार चुभा नहीं?’’

‘‘उन्होंने एकदो बार कहा, पर मैं ने उन्हें यह कह कर चुप करा दिया कि यह सासबहू का मामला है, आप बीच में न ही बोलें तो अच्छा है.’’

मैं चाय पीते समय कभी हर्ष और आत्मसंतोष से दमकते अम्माजी के चेहरे को देख रही थी, कभी उर्मिल को. आज फिर एक बार उस का बदला रूप देख कर पिछले माह की उर्मिल से तालमेल बैठाने का प्रयत्न कर रही थी.

इंग्लिश रोज: क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

Story in hinवह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,di

मैं ने आप के प्रस्ताव पर विचार किया. कोई भी नया रिश्ता जोड़ने से पहले एकदूसरे के बीते जीवन के बारे में जानना बहुत जरूरी है. ऐसी मेरी सोच है. 10 वर्ष पहले मेरा विवाह एक बहुत रईस घर में संपन्न हुआ. मेरी ससुराल का मेरे रहनसहन, सोचविचार और संस्कारों से कोई मेल नहीं था. वहां के तौरतरीकों के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी. वहां मुझे लगा कि मैं चूहेदानी में फंस गई हूं. मेरे पति शराब और ऐयाशी में डूबे रहते थे. शराब पी कर वे बेलगाम घुड़साल के घोड़े की तरह हो जाते थे, जिस का मकसद सवार को चोट पहुंचाना था. ऐसा हर रोज का सिलसिला था. हर रात अलगअलग औरतों से रंगरेलियां मनाते थे.

धीरेधीरे बात यहां तक पहुंच गई कि वे ग्रुपसैक्स की क्रियाओं में भाग लेने लगे. जबरदस्ती मुझ से भी औरों के साथ हमबिस्तर होने की अपेक्षा करने लगे. उन के अनुकूल उन की बात मानते जाओ तो ठीक था वरना कहते, ‘हम मर्द अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे औरतों को अपने हिसाब से रखा जाए.’ ‘‘एक साधारण सी लड़की के लिए कितना कठिन था यह. एक दिन जब मैं ने किसी और के साथ हमबिस्तर होने से इनकार किया तो मुझे घसीट कर सामने बिठा कर सबकुछ देखने को मजबूर कर दिया. उस दिन मैं ने बरदाश्त की सभी सीमाएं लांघ कर उन के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और सामान उठा कर भाई के घर चली आई. पैसे और मनगढ़ंत कहानियों के बल पर मेरा बेटा उन्होंने अपने पास रख लिया. उस दिन के बाद आज तक मैं अपने बेटे को देख नहीं पाई. अब सबकुछ जानते हुए भी आप तैयार हैं तो आप मेरे बड़े भाईसाहब अजय से बात करें.’’

‘‘आप की विधि’’

विधि का ईमेल पढ़ कर जौन नाचने लगा. तुरंत ही उस ने उत्तर दिया,

‘‘मेरी प्यारी विधि,

बस, इतनी सी बात से परेशान हो. जीवन में हादसे सभी के साथ होते हैं. मैं ने तो तुम से पूछा तक नहीं. तुम ने बता दिया तो मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत और बढ़ गई. मेरी जान, मैं ने तुम्हें चाहा है. मैं स्त्री और पुरुष की समानता में विश्वास रखता हूं. तुम मेरी जीवनसाथी ही नहीं, पगसाथी भी होगी. जिन खुशियों से तुम वंचित रही हो, मैं उन की भरपाई की पूरी कोशिश करूंगा. मैं अगली फ्लाइट से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

‘‘प्यार सहित

‘‘तुम्हारा जौन.’’

वह दिल्ली आ पहुंचा. होटल में विधि के बड़े भाईसाहब को बुला कर ईमेल दिखाते हुए उन से विधि का हाथ मांगा. भाईसाहब ने कहा, ‘‘शाम को तुम घर आ जाना.’’ पूरा परिवार बैठक में उस की प्रतीक्षा कर रहा था. जौन का प्रस्ताव सामने रखा गया. सभी हैरान थे. सन्नी तैश में आ कर बोला, ‘‘इतने बूढ़े से…? दिमाग खराब हो गया है क्या. जाहिर है विधि की उम्र के उस के बच्चे होंगे. अंगरेजों का कोई भरोसा नहीं.’’ बाकी बहनभाई भी सन्नी की बात से सहमत थे.

‘‘तुम ने क्या सोचा?’’ बड़े भाई अजय ने विधि से पूछा.

‘‘मुझे कोई एतराज नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘दीदी, होश में तो हो, क्या सचमुच सठियाए से शादी…?’’ विधि के हां करते ही अजय ने जौन को बुला कर कहा, ‘‘शादी तय करने से पहले हमारी कुछ शर्तें हैं. शादी हिंदू रीतिरिवाजों से होगी. उस के लिए तुम्हें हिंदू बनना होगा. हिंदू नाम रखना होगा. विवाह के बाद विधि को लंदन ले जाना होगा.’’ जौन को सब शर्तें मंजूर थीं. वह उत्तेजना से ‘आई विल, आई विल’ कहता नाचने लगा. पुरुष चहेती स्त्री को पाने का हर संभव प्रयास करता है. उस में साम, दाम, दंड, भेद सभी भाव जायज हैं. अच्छा सा मुहूर्त देख कर उन का विवाह संपन्न हआ. जौन लंदन से इमीग्रेशन के लिए जरूरी कागजात ले कर आया था. विधि का पासपोर्ट तैयार ही हो रहा था कि अचानक जौन के बेटे मार्क का ऐक्सिडैंट होने के कारण, जौन को विधि के बिना ही लंदन जाना पड़ा. जौन तो चला गया. विधि का मन बेईमान होने लगा. उसे घबराहट होने लगी. मन में अनेक प्रश्न उठने लगे. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती थी. 6 महीने से ऊपर हो गए. उधर जौन बहुत बेचैन था, चिंतित था. वह बारबार रेणु को ईमेल कर के पूछता. एक दिन हार कर रेणु विधि के घर आ ही पहुंची और उसे बहुत डांटा, ‘‘विधि, क्या मजाक बना रखा है, क्यों उस बेचारे को परेशान कर रही हो? तुम्हें पता भी है कितनी मेल डाल चुका है. कहतेकहते थक गया है कि आप विधि को समझाएं और कहें ‘डर की कोई बात नहीं है. मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’ ‘‘अब गुमसुम क्यों बैठी हो. कुछ तो बोलो. यह तुम्हारा ही फैसला था. अब तुम्हीं बताओ, क्या जवाब दूं उसे?’’

‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. परेशान हूं. खानापीना, उठनाबैठना बिलकुल अलग होगा. फिर उस के बच्चे…? क्या वे स्वीकार करेंगे मुझे…?’’

‘‘विधि, तुम बेकार में भावनाओं के द्वंद्व में डूबतीउतरती रहती हो. यह तो तुम्हें वहीं जा कर पता लगेगा. हम सब जानते हैं, तुम हर स्थिति को आसानी से हैंडल कर सकती हो. ऐसा भी होता है  कभीकभी सबकुछ सही होते हुए भी, लगता है कुछ गलत है. तू बिना कोशिश किए पीछे नहीं मुड़ सकती. चिंता मत कर. अभी जौन को मेल करती हूं कि तुझे आ कर ले जाए.’’ जौन को मेल करते ही एक हफ्ते में वह दिल्ली आ पहुंचा. 2 हफ्ते में विधि को लंदन भी ले गया. लंदन में घर पहुंचते ही जौन ने अंगरेजी रिवाजों के अनुसार विधि को गोद में उठा कर घर की दहलीज पार की. अंदर पहुंचते ही वह हतप्रभ रह गई. अकेले होते हुए भी जौन ने घर बहुत तरतीब और सलीके से रखा था. सुरुचिपूर्ण सजाया था. घर में सभी सुविधाएं थीं, जैसे कपड़े धोने की मशीन, ड्रायर, स्टोव, डिशवाशर और औवन…काटेज के पीछे एक छोटा सा गार्डन था जो जौन का प्राइड ऐंड जौय था. पहली ही रात को जौन ने विधि को एक अनमोल उपहार देते हुए कहा, ‘‘विधि, मैं तुम्हें क्रूर संसार की कोलाहल से दूर, दुनिया के कटाक्षों से हटा कर अपने हृदय में रखने के लिए लाया हूं. तुम से मिलने के बाद तुम्हारी मुसकान और चिरपरिचित अदा ही तो मुझे चुंबक की तरह बारबार खींचती रही है और मरते दम तक खींचती रहेगी. मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम अपने अतीत को भूल जाओगी. मैं तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत करता हूं.’’ इतना कह कर जौन ने उसे सीने से लगा लिया और यह सब सुन कर विधि की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे.

ऐसे प्रेम का एहसास उसे पहली बार हुआ था. धीरेधीरे वह जान पाई कि जौन केवल गोराचिट्टा, ऊंचे कद का ही नहीं, वह रोमांटिक, सलोना, जिंदादिल, शरारती और मस्त इंसान है जो बातबात में किसी को भी अपना बनाने का हुनर जानता है. उस का हृदय जीवन की आकांक्षाओं से धड़क उठा. जौन ने उसे इतना प्यार दिया कि जल्दी ही उस की सब शंकाएं दूर हो गईं. विधि उसे मन से चाहने लगी थी. दोनों बेहद खुश थे. वीकेंड में जौन के तीनों बच्चों ने खुली बांहों से विधि का स्वागत किया और अपने पिता के विवाह पर एक भव्य पार्टी दी. विधि अपने फैसले पर प्रसन्न थी. अब उस का अपना घर था. अलग परिवार था. असीम प्यार देने वाला पति. जौन ने घर की बागडोर उसी के हाथ में थमा दी थी. उसे प्यार करना सिखाया, उस का आत्मविश्वास जगाया यहां तक कि उसे पोस्टग्रेजुएशन भी करवा दिया. क्योंकि भीतर से वह जानता था कि उस के जाने के बाद विधि अपने समय का सदुपयोग कर सकेगी.

गरमी का मौसम था. चारों ओर सतरंगी फूल लहलहा रहे थे. दोपहर के खाने के बाद दोनों कुरसियां डाल कर गार्डन में धूप सेंकने लगे. बाहर बच्चे खेल रहे थे. बच्चों को देखते विधि की ममता उमड़ने लगी. जौन की पैनी नजरों से यह बात छिपी नहीं. जौन ने पूछ ही लिया, ‘‘विधि, हमारा बच्चा चाहिए…? हो सकता है. मैं ने पता कर लिया है. पूरे 9 महीने डाक्टर की निगरानी में रह कर. मैं तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, हमारे हैं तो सही, वो 3, और उन के बच्चे. मैं ने तो जीवन के सभी अनुभवों को भोगा है. मां बन कर भी, अब नानीदादी का सुख भोग रही हूं,’’ विधि ने हंसतेहंसते कहा. ‘‘मैं तो समझा था कि तुम्हें मेरी निशानी चाहिए?’’ जौन ने विधि को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगर बच्चा नहीं तो एक सुझाव देता हूं. बच्चों से कहेंगे मेरे नाम का एक (लाल गुलाब) इंग्लिश रोज और तुम्हारे नाम का (पीला गुलाब) इंडियन समर हमारे गार्डन में साथसाथ लगा दें. फिर हम दोनों सदा एकदूसरे को प्यार से देखते रहेंगे.’’ इतना कह कर जौन ने प्यार से उस के गाल पर चुंबन दे दिया.

विधि भी होंठों पर मुसकान, आंखों में मोती जैसे खुशी के आंसू, और प्यार की पूरी कशिश लिए जौन के आगोश में आ गई. जौन विधि की छोटी से छोटी जरूरतों का ध्यान रखता. धीरेधीरे विधि के पूरे जीवन को उस ने अपने प्यार के आंचल से ढक लिया. सामाजिक बैठकों में उसे अदब और शिष्टाचार से संबोधित करता. उसे जीजी करते उस की जबान न थकती. कुछ ही वर्षों में जौन ने उसे आधी दुनिया की सैर करा दी थी. अब विधि के जीवन में सुख ही सुख थे. हंसीखुशी 10 साल बीत गए. इधर, कई महीनों से जौन सुस्त था. विधि को भीतर ही भीतर चिंता होने लगी, सोचने लगी, ‘कहां गई इस की चंचलता, चपलता, यह कभी टिक कर न बैठने वाला, यहांवहां चुपचाप क्यों बैठा रहता है? डाक्टर के पास जाने को कहो तो टालते हुए कहता है, ‘‘मेरा शरीर है, मैं जानता हूं क्या करना है.’’ भीतर से वह खुद भी चिंतित था. एक दिन बिना बताए ही वह डाक्टर के पास गया. कई टैस्ट हुए. डाक्टर ने जो बताया, उसे उस का मन मानने को तैयार नहीं था. वह जीना चाहता था. उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘वह नहीं चाहता कि उस की यह बीमारी उस के और उस की पत्नी की खुशी में आड़े आए. समय कम है, मैं अब अपनी पत्नी के लिए वह सबकुछ करना चाहता हूं, जो अभी तक नहीं कर पाया. मैं नहीं चाहता मेरे परिवार को मेरी बीमारी का पता चले. समय आने पर मैं खुद ही उन्हें बता दूंगा.’’

अचानक एक दिन जौन वर्ल्ड क्रूज के टिकट विधि के हाथ में थमाते बोला, ‘‘यह लो तुम्हारा शादी की 10वीं वर्षगांठ का तोहफा.’’ उस की जीहुजूरी ही खत्म नहीं होती थी. विधि का जीवन उस ने उत्सव सा बना दिया था. वर्ल्ड क्रूज से लौटने के बाद दोनों ने शादी की 10वीं वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई. घर की रजिस्ट्री के कागज और एफडीज उस ने विधि के नाम करवा कर उसे तोहफे में दे दिए. उस रात वह बहुत बेचैन था. उसे बारबार उलटी हो रही थी और चक्कर आते रहे. जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे भरती कर लिया गया. जौन की दशा दिनबदिन बिगड़ती गई. डाक्टर ने बताया, ‘‘उस का कैंसर फैल चुका है. कुछ ही समय की बात है.’’

‘‘कैंसर…?’’ कैंसर शब्द सुन कर सभी निशब्द थे. ‘‘तुम्हारे डैड, जाने से पहले, तुम्हारी मां को उम्रभर की खुशियां देना चाहते थे. तुम्हें बताने के लिए मना किया था,’’ डाक्टर ने बताया. बच्चे तो घर चले गए. विधि नाराज सी बैठी रही. जौन ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से समझाया, ‘‘जो समय मेरे पास रह गया था, मैं उसे बरबाद नहीं करना चाहता था, भोगना चाहता था तुम्हारे साथ. तुम्हारे आने से पहले मैं जीवन बिता रहा था. तुम ने जीना सिखा दिया है. अब मैं जिंदगी से रिश्ता चैन से तोड़ सकता हूं. जाना तो एक दिन सभी को है.’’ एक वर्ष तक इलाज चलता रहा. कैंसर इतना फैल चुका था कि अब कोई कुछ नहीं कर सकता था. अपनी शादी की 11वीं वर्षगांठ से पहले ही जौन चल बसा. अंतिम संस्कार के बाद उस के बेटे ने जौन की इच्छानुसार उस की राख को गार्डन में बिखरा दिया. एक इंग्लिश रोज और एक इंडियन समर (पीला गुलाब) साथसाथ लगा दिए. उन्हें देखते ही विधि को जौन की बात याद आई, ‘कम से कम तुम्हें हर वक्त देखता तो रहूंगा?’ इस सदमे को सहना कठिन था. विधि को लगा मानो किसी ने उस के शरीर के 2 टुकड़े कर दिए हों. एक बार वह फिर अकेली हो गई. एक दिन उस के अंतकरण से आवाज आई, ‘उठ विधि, संभाल खुद को, तेरे पास जौन का प्यार है, स्मृतियां हैं. वह तुझे थोड़े समय में जहानभर की खुशियां दे गया है.’ धीरेधीरे वह संभलने लगी. जौन के बच्चों के सहयोग और प्यार ने उसे फिर खड़ा कर दिया. कालेज में उसे नौकरी भी मिल गई. बाकी समय में वह गार्डन की देखभाल करती. इंग्लिश रोज और इंडियन समर की कटाईछंटाई करने की उस की हिम्मत न पड़ती. उस के लिए माली को बुला लेती. गार्डन जौन की निशानी था. एक दिन भी ऐसा न जाता, विधि अपने गार्डन को न निहारती, पौधों को न सहलाती. अकसर उन से बातें करती. बर्फ पड़े, कोहरा पड़े या फिर कड़कती सर्दी, वह अपने फ्रंट डोर से जौन के लगाए पौधों को निहारती रहती. उदासी में इंग्लिश रोज से शिकवेशिकायतें भी करती, ‘खुद तो अपने लगाए परिवार में लहलहा रहे हो और मैं? नहीं, नहीं, मैं शिकायत नहीं कर रही. मुझे याद है आप ने ही कहा था, ‘यह मेरा परिवार है डार्लिंग. मुझे इन से अलग मत करना.’

उस दिन सोचतेसोचते अंधेरा सा होने लगा. उस ने घड़ी देखी, अभी शाम के 4 ही बजे थे. मरियल सी धूप भी चोरीचोरी दीवारों से खिसकती जा रही थी. वह जानती थी यह गरमी के जाने और पतझड़ के आने का संदेशा था. वह आंखें मूंद कर घास पर बिछे रंगबिरंगों पत्तों की कुरमुराहट का आनंद ले रही थी. अचानक तेज हवा के झरोखे से एक सूखा पत्ता उलटतापलटता उस के आंचल में आ अटका. पलभर को उसे लगा, कोई उसे छू कर कह रहा हो… ‘डार्लिंग, उदास क्यों होती हो, मैं यही हूं तुम्हारे चारों ओर, देखो वहीं हूं, जहां फूल खिलते हैं…क्यों खिलते हैं? यह मैं नहीं जानता. बस, इतना जरूर जानता हूं, फूल खिलता है, झड़ जाता है. क्यों? यह कोई नहीं जानता. बस, इतना जानता हूं इंग्लिश रोज जिस के लिए खिलता है उसी के लिए मर जाता है. खिले फूल की सार्थकता और मरे फूल की व्यथा एक को ही अर्पित है.’

उस दिन वह झड़ते फूलों को तब तक निहारती रही जब तक अंधेरे के कारण उसे दिखाई देना न बंद हो गया. हवा के झोंके से उसे लगा, मानो जौन पल्लू पकड़ कर कह रहा हो, ‘आई लव यू माई इंडियन समर.’ ‘‘मी टू, माई इंग्लिश रोज. तुम और तुम्हारा शरारतीपन अभी तक गया नहीं.’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

क्या इन 5 जगहों पर सैक्स करना है सेव

21वीं सदी में एक ओर तो लोग सेक्स को लेकर जागरुक हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ अलग-अलग प्रयोग करने से बाज नहीं आते. ज्यादातर हमारे युवा वर्ग इसे फैंटसी समझते हैं और इसलिए सेक्स को लेकर कई तरह के प्रयोग करते रहते हैं. पर आप ये नहीं जानते की इन प्रयोगों से आप ई. कोलाई जैसी बीमारी को न्यौता दे रहे हैं.

फेकल बेक्टीरिया, नोरोवॉयरस और एमआरएसए कुछ ऐसी गंदगी हैं जो भीड़भाड़ वाले इलाके में जमे रहते हैं और आपके शरीर के संपर्क में आते ही आपके लिए खतरनाक साबित होते हैं. इसी संदर्भ में एरीजोना विश्वविद्यालय के अणुजीव वैज्ञानिक चार्ल्स गर्बा (पीएच.डी) ने ऐसे 5 जगहों के बारे में बताया है जिनसे आज आपको हम अवगत कराएंगे.

हवाई जहाज के बाथरूम

चार्ल्स गर्बा के मुताबिक छोटे से हवाई जहाज के बाथरूम बीमारी फैलाने के बहुत बड़े दोषी हैं. करीब 100 से भी ज्यादा लोग बिना सफाई हुए एक बार में बाथरूम इस्तेमाल करते हैं और कई लोग तो अपने हाथ भी नहीं धोते हैं. इसलिए हवाई जहाज के बाथरूम में ई.कोलाई का पाया जाना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है.

जिम का लौकर रूम

एमआरएसए, स्ट्रेप, नोरोवॉयरस, रिंगवार्म ऐसे बेक्टीरिया हैं जो जिम के लॉकर रूम के गर्म और नम वातावरण में आसानी से पनपते हैं. इसलिए कभी भी जिम के लॉकर रूम में नंगे पांव नहीं घूमना चाहिए वर्ना आप किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं.

सिनेमा हौल

सिनेमा हौल के गंदे फ्लोर को अगर आप वार्निंग के तौर पर नहीं ले रहे हैं तो गर्बा आपको बताना चाहते हैं कि सिनेमा हॉल की सीट और हैंडरेल कभी-कभार ही साफ होते हैं इसलिए इनपर बेक्टीरिया का पाया जाना बहुत ही कॉमन बात है. इनके नमूने को टेस्ट करने पर स्टैफ डिटेक्ट किया गया है. जब भी लाइट डिम हो एक-दूसरे के करीब जाने से बचें.

प्लेग्राउंड और पार्क

क्या आपने कभी प्लेग्राउंड या पार्क में लगे झूलों को साफ होते देखा है. नहीं, शायद ही कभी हममें से किसी ने ये होते हुए देखा हो. गर्बा के मुताबिक कोल्ड और फ्लू के कीटाणु के साथ ही मनुष्य और जानवरों के मल भी पूरे पार्क के आसपास पाए जाते हैं. इसलिए अगली बार स्विंग से नीचे आने से पहले आप ये ज़रूर याद कर लें कि आपसे पहले वहां करीब 20 से भी ज्यादा बच्चों ने अपनी नाक पोछी होगी.

समुद्री बीच

बीच पर कचड़ा, नाला, चिड़ियों के मल औऱ फन संबंधी कई चीजें बिखरे हुए मिलेंगे जो कि बीच के बालू को गंदा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. अध्ययन से पता चला है कि ये सतह पानी से भी खतरनाक होता है जिससे डायरिया, इंफेक्शन या रैसेस हो सकता है. इनके साथ ही आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि बीच पर आपको टिक का भी खतरा हो सकता है जो आपके निचले हिस्से से आपके शरीर पर पहुंच सकता है और लाइम डिजीज से प्रभावित हो सकते हैं.

जब एक पत्नी को अपने सुहाग की करनी पड़ी हत्या

नीरज को घर से गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए और उस का कुछ पता नहीं चला तो उस की पत्नी रूबी ने थाना पंतनगर जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद उस के घर से गायब होने की जानकारी अपने सभी नातेरिश्तेदारों को देने के साथसाथ ससुराल वालों को भी दे दी थी.

नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने की सूचना से उस के घर में कोहराम मच गया. नीरज के गायब होने की जानकारी उस के मामा को हुई तो वह भी परेशान हो उठे. उस समय वह गांव में थे. उन्होंने अपने बहनोई यानी नीरज के पिता रघुनाथ ठाकुर एवं उस के बड़े भाई को साथ लिया और महानगर मुंबई आ गए.

नीरज की पत्नी रूबी ने उन लोगों को बताया कि उस दिन वह घर से 250 रुपए ले कर निकले तो लौट कर नहीं आए. जब उन्हें गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए तो उस का धैर्य जवाब देने लगा. उस ने थाना पंतनगर जा कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी और सभी को उन के घर न आने की जानकारी दे दी.

नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने से उस के पिता रघुनाथ ठाकुर, बड़ा भाई और मामा रमाशंकर चौधरी परेशान हो उठे. सभी लोग मिल कर अपने तरीके से नीरज की तलाश करने लगे.

वे मुंबई में रहने वाले अपने सभी नातेरिश्तेदारों के यहां तो गए ही, उन अस्पतालों में भी गए, जहां ऐक्सीडैंट के बाद लोगों को इलाज के लिए ले जाया जाता है. आसपास के पुलिस थानों में भी पता किया, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर नीरज बिना कुछ बताए क्यों और कहां चला गया.

बेटे के अचानक गायब होने की चिंता और भागदौड़ में पिता रघुनाथ ठाकुर बीमार पड़ गए. एक दिन सभी लोग नीरज के बारे में ही चर्चा कर रहे थे, तभी रूबी ने अपने मामा ससुर रमाशंकर चौधरी से कहा, ‘‘परसों आधी रात को जब मैं शौचालय गई थी तो मुझे लगा कि वह शौचालय के गड्ढे से कह रहे हैं कि ‘रूबी मैं यहां हूं…’ उन की आवाज सुन कर मैं चौंकी.’’

मैं शौचालय के गड्ढे के पास यह सोच कर गई कि शायद वह आवाज दोबारा आए. लेकिन आवाज दोबारा नहीं आई. थोड़ी देर मैं वहां खड़ी रही, उस के बाद मुझे लगा कि शायद मुझे वहम हुआ है. मैं कमरे में आ गई.’’

अंधविश्वासों पर विश्वास करने वाले नीरज के मामा रमाशंकर चौधरी ने अपनी मौत का सच बताने वाली तमाम प्रेत आत्माओं के किस्से सुन रखे थे, इसलिए उन्हें लगा कि अपनी मौत का सच बताने के लिए नीरज की आत्मा भटक रही है. कहीं वह शौचालय के गड्ढे में तो गिर कर नहीं मर गया.

सुबह उठ कर वह शौचालय के गड्ढे के ऊपर रखे ढक्कन को देख रहे थे, तभी शौचालय की साफ सफाई करने वाला प्रशांत उर्फ ननकी फिनायल की बोतल ले कर आया और उस के आसपास फिनायल डालने लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘भई यहां फिनायल क्यों डाल रहा है?’’

‘‘आज यहां से कुछ अजीब सी बदबू आ रही है. इसलिए सोचा कि फिनायल डाल दूंगा तो बदबू खत्म हो जाएगी.’’ प्रशांत ने कहा.

प्रशांत की इस बात से रमाशंकर को लगा कि कहीं सचमुच तो नहीं नीरज इस गड्ढे में गिर गया. शायद इसी वजह से बदबू आ रही है. वह तुरंत शौचालय के गड्ढे के ढक्कन के पास पहुंच गए. उसे हटाने के लिए उन्होंने उस पर जोर से लात मारी तो संयोग से वह टूट गया.

ढक्कन के टूटते ही उस में से इतनी तेज दुर्गंध आई कि रमाशंकर चौधरी को चक्कर सा आ गया. 5 मिनट के बाद उन्होंने अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उस गड्ढे के अंदर झांका तो उन्हें सफेद कपड़े में लिपटी कोई भारी चीज दिखाई दी. उसे देख कर उन्हें यही लगा, यह भारी चीज किसी की लाश है. उन्होंने यह बात रूबी को बताने के साथसाथ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी बता दी. यह 27 मार्च, 2014 की बात थी.

इस के बाद रमाशंकर चौधरी सीधे थाना पंतनगर जा पहुंचे. उन्होंने पूरी बात ड्यूटी पर तैनात सबइंसपेक्टर देवेंद्र ओव्हाल को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी.

इस के बाद वह अपने साथ हेडकांस्टेबल चंद्रकांत गोरे, किशनराव नावडकर, प्रशांत शिर्के, कांस्टेबल संतोष गुरुव और पंकज भोसले को साथ ले कर सहकारनगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पहुंच गए.

पुलिस टीम के घटनास्थल तक पहुंचने तक वहां काफी भीड़ लग चुकी थी. सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्हें भी लगा कि गड्ढे में पड़ी चीज लाश ही है तो उन्होंने उसे निकलवाले के लिए फायरब्रिगेड के कर्मचारियों को बुला लिया.

फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने जब सफेद चादर में लिपटी उस चीज को निकाला तो वह सचमुच लाश थी. लाश इस तरह सड़ चुकी थी कि उस की शिनाख्त नहीं हो सकती थी.

लेकिन लाश के हाथ में जो घड़ी बंधी थी, उसे देख कर रमाशंकर चौधरी और रूबी ने बताया कि यह घड़ी तो नीरज ठाकुर की है. नीरज कई दिनों से गायब था, इस से साफ हो गया कि वह लाश नीरज की ही थी.

सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि शौचालय के गड्ढे में लाश मिलने की सूचना पा कर परिमंडल-6 के एडिशनल पुलिस कमिश्नर महेश धुर्ये, असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर विलास पाटिल, सीनियर इंसपेक्टर निर्मल, इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर, असिस्टैंट इंसपेक्टर सकपाल और प्रदीप दुपट्टे भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने सरसरी नजर से घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर के घटना की जांच की जिम्मेदारी सीनियर इंसपेक्टर निर्मल को सौंप दी.

सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने सहकर्मियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर स्थित राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने लौट कर सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को सौंप दी. इस के बाद जितेंद्र आगरकर ने उन के निर्देशन में जांच की जो रूपरेखा तैयार की, उसी के अनुरूप जांच शुरू कर दी गई.

सब से पहले तो उन्होंने मृतक नीरज ठाकुर के घर वालों के साथसाथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

नीरज के घर वालों तथा न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी ने जो बताया, जांच अधिकारी इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को मृतक की पत्नी रूबी पर संदेह हुआ. उन्होंने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी. उन्होंने देखा कि पति की मौत के बाद किसी औरत के चेहरे पर जो दुख और परेशानी दिखाई देती है, रूबी के चेहरे पर वैसा कुछ भी नहीं था.

इसी से उन्हें आशंका हुई कि किसी न किसी रूप में रूबी अपने पति की हत्या के मामले में जरूर जुड़ी है. लेकिन इतने भर से उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था. इसलिए वह उस के खिलाफ ठोस सुबूत जुटाने लगे.

सुबूत जुटाने के लिए उन्होंने रूबी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के आसपास रहने वालों से गुपचुप तरीके से पूछताछ की तो उन्हें रूबी के खिलाफ ऐसे तमाम सुबूत मिल गए, जो उसे थाने तक ले जाने के लिए पर्याप्त थे.

लोगों ने बताया था कि रूबी और नीरज के बीच अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था. यह लड़ाई झगड़ा शौचालय पर ही काम करने वाले संतोष झा को ले कर होता था. क्योंकि रूबी के उस से अवैध संबंध थे.

इस के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत कुमार चौधरी और मृतक नीरज ठाकुर की पत्नी रूबी को एक बार फिर पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

इस बार दोनों काफी डरे हुए थे, इसलिए थाने आते ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. रूबी ने बताया कि उसी ने प्रेमी संतोष झा के साथ मिल कर नीरज की हत्या की थी. हत्या में प्रशांत ने भी उस की मदद की थी. इस के बाद रूबी और प्रशांत ने नीरज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

35 वर्षीय नीरज ठाकुर मूलरूप से बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के थाना सफरा का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता, एक बड़ा भाई और एक बहन थी. उम्र होने पर सभी बहनभाइयों की शादी हो गई. नीरज 3 बच्चों का पिता भी बन गया. इस परिवार का गुजरबसर खेती से होता था.

जमीन ज्यादा नहीं थी, इसलिए परिवार बढ़ा तो गुजरबसर में परेशानी होने लगी. बड़ा भाई पिता रघुनाथ ठाकुर के साथ खेती कराता था, इसलिए नीरज ने सोचा कि वह घर छोड़ कर किसी शहर चला जाए, जहां वह चार पैसे कमा सके.

घर वालों को भला इस बात पर क्या ऐतराज हो सकता था. उन्होंने हामी भर दी तो 5 साल पहले घर वालों का आशीर्वाद ले कर नीरज नौकरी की तलाश में महानगर मुंबई पहुंच गया. वहां सांताक्रुज ईस्ट गोलीवार में उस के मामा रमाशंकर चौधरी रहते थे. उन का अपना स्वयं का व्यवसाय था. वह मामा के साथ रह कर छोटेमोटे काम करने लगा.

कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी से हुई तो घाटकोपर, थाना पंतनगर के सहकार नगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय की उन्होंने जिम्मेदारी उसे सौंप दी. आधुनिक रूप से बना यह शौचालय काफी बड़ा था. उसी के टैरेस पर कर्मचारियों के रहने के लिए कई कमरे बने थे, उन्हीं में से एक कमरा नीरज ठाकुर को भी मिल गया.

न्यू सुविधा सुलभ शौचालय से नीरज को ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. जब उसे लगा कि वह शौचालय की आमदनी से परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता है तो गांव जा कर वह पत्नी रूबी और बच्चों को भी ले आया. क्योंकि वह बच्चों को पढ़ालिखा कर उन का भविष्य सुधारना चाहता था.

नीरज परिवार के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के टैरेस पर बने कमरे में आराम से रह रहा था. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. लेकिन जैसे ही उस की जिंदगी में उस का दोस्त संतोष झा दाखिल हुआ, उस की सारी खुशियों में ग्रहण लग गया.

संतोष झा उसी के गांव का रहने वाला उस का बचपन का दोस्त था. वह मुंबई आया तो उस ने उसे अपने पास ही रख लिया. गांव का और दोस्त होने की वजह से संतोष नीरज के कमरे पर भी आताजाता था. वह उस की पत्नी रूबी को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की वजह से दोनों में हंसीमजाक भी होता रहता था.

इसी हंसीमजाक में पत्नी बच्चों से दूर रह रहा संतोष धीरे धीरे रूबी की ओर आकर्षित होने लगा. मन की बात उस के हावभाव से जाहिर होने लगी तो रूबी को भांपते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. उसे अपनी ओर आकर्षित होते देख रूबी भी उस की ओर खिंचने लगी. इस से संतोष का साहस बढ़ा और वह कुछ ज्यादा ही रूबी के कमरे पर आनेजाने लगा.

घंटों बैठा संतोष रूबी से मीठीमीठी बातें करता रहता. रूबी को उस के मन की बात पता ही थी, इसलिए वह उस से बातें भी वैसी ही करती थी.

संतोष की ओर रूबी के आकर्षित होने की सब से बड़ी वजह यह थी कि नीरज जब से उसे मुंबई लाया था, उसी छोटे से कमरे में कैद कर दिया था. उस की दुनिया उसी छोटे से कमरे में कैद हो कर रह गई थी.

नीरज अपने काम में ही व्यस्त रहता था, ऐसे में उस का कोई मिलने जुलने वाला था तो सिर्फ संतोष. वही उस के सुखदुख का भी खयाल रखता था और जरूरतें भी पूरी करता था. क्योंकि नीरज के पास उस के लिए समय ही नहीं होता था. संतोष ही उस के बेचैन मन को थोड़ा सुकून पहुंचाता था.

संतोष शादीशुदा ही नहीं था, बल्कि उस के बच्चे भी थे. उसे नारी मन की अच्छी खासी जानकारी थी. अपनी इसी जानकारी का फायदा उठाते हुए वह जल्दी ही रूबी के बेचैन मन को सुकून पहुंचाते पहुंचाते तन को भी सुकून पहुंचाने लगा.

रूबी को उस ने जो प्यार दिया, वह उस की दीवानी हो गई. अब उसे नीरज के बजाय संतोष से ज्यादा सुख और आनंद मिलने लगा, इसलिए वह नीरज को भूलती चली गई.

मर्यादा की कडि़यां बिखर चुकी थीं. दोनों को जब भी मौका मिलता, अपने अपने अरमान पूरे कर लेते. इस तरह नीरज की पीठ पीछे दोनों मौजमस्ती करते रहे. लेकिन पाप का घड़ा भरता है तो छलक ही उठता है. उसी तरह जब संतोष और रूबी ने हदें पार कर दीं तो एक दिन नीरज की नजर उन पर पड़ गई. उस ने दोनों को रंगरलियां मनाते अपनी आंखों से देख लिया.

नीरज ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सात जन्मों तक रिश्ता निभाने का वादा करने वाली पत्नी एक जन्म भी रिश्ता नहीं निभा पाएगी. संतोष तो निकल भागा था, रूबी फंस गई. नीरज ने उस की जम कर पिटाई की. पत्नी की इस बेवफाई से वह अंदर तक टूट गया. बेवफा पत्नी से उसे नफरत हो गई.

इस के बाद घर में कलह रहने लगी. नीरज ने रूबी का जीना मुहाल कर दिया. रोजरोज की मारपीट और लड़ाई झगड़े से तो रूबी परेशान थी ही, आसपड़ोस में उस की बदनामी भी हो रही थी. वह इस सब से तंग आ गई तो इस से निजात पाने के बारे में सोचने लगी. उसे लगा, इस सब से उसे तभी निजात मिलेगी, जब नीरज न रहे. फिर क्या था, ठिकाने लगाने की उस ने साजिश रच डाली.

अपनी इस साजिश में रूबी ने अपने ही शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत चौधरी को यह कह कर शामिल कर लिया कि नीरज ठाकुर के न रहने पर वह न्यू सुविधा सुलभ शौचालय को चलाने की जिम्मेदारी उसे दिलवा देगी. इस के अलावा वह उसे 50 हजार रुपए नकद भी देगी.

न्यू सुविधा सुलभ शौचालय चलाने की जिम्मेदारी  और 50 हजार रुपए के लालच में प्रशांत नीरज की हत्या में साथ देने को तैयार हो गया. इस तरह रूबी ने अपने सुहाग का सौदा कर डाला.

10 मार्च, 2014 की शाम नीरज ठाकुर ढाई सौ रुपए ले कर किसी काम से 2 दिनों के लिए बाहर चला गया. 12 मार्च की रात में लौटा तो पहले से रची गई साजिश के अनुसार शौचालय के टैरेस पर गहरी नींद सो रहे नीरज के दोनों पैरों को प्रशांत ने कस कर पकड़ लिया तो संतोष उस की छाती पर बैठ गया.

नीरज अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही रूबी ने सब्जी काटने वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. कुछ देर छटपटा कर नीरज मर गया तो तीनों ने उस की लाश को सफेद चादर में पलेट कर टैरेस से नीचे फेंक दिया. इस के बाद तीनों नीचे आए और शौचालय के गड्ढे का ढक्कन खोल कर लाश उसी में डाल दी. इस के बाद ढक्कन को फिर से बंद कर दिया गया.

नीरज की हत्या कर के संतोष डोभीवली चला गया तो प्रशांत और रूबी अपने अपने कमरे पर चले गए. रूबी ने अपना अपराध छिपाने के लिए अगले दिन थाना पंतनगर जा कर पति की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी. लेकिन पुलिस की पैनी नजरों से वह बच नहीं सकी और पकड़ी गई.

रूबी से नीरज की हत्या की पूरी कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर संतोष झा को गिरफ्तार करने पहुंचे तो पता चला वह अपने गांव भाग गया है. एक पुलिस टीम तुरंत उस के गांव के लिए रवाना हो गई. संयोग से वह गांव में मिल गया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के मुंबई ले आई. मुंबई आने पर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने रूबी, संतोष झा और प्रशांत चौधरी से पूछताछ के बाद भादंवि की धारा 302, 202 के तहत मुकदमा दर्ज कर तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिशा वकानी ने ठुकराया 65 करोड़ का औफर, भारती-एल्विश पर 500 करोड की ठगी!

टीवी स्टार्स अपने स्टार्डम के लिए तो जाने जाते ही है साथ ही अपनी एक्टिंग के दम पर सबका दिल जीत लेते है. टीवी की दुनिया का सबसे चर्चित शो और रिएयलिटी सीरियल ‘बिग बौस 18’ (Bigg Boss18) जल्द ही ओनएयर होने वाला है. जिसमें आने के लिए कंटेस्टेंट भी चुन लिए गए है. ऐसे में खबर है कि ‘तारक महता का उल्टा चश्मा’ की पौपुलर किरदार में ‘दिशा वकानी'(Disha Vakani) को ‘बिग बौस 18’ की तरफ से 65 करोड़ का ओफर हुआ. जिसमें खबरों के मुताबिक बताया जा रहा है कि एक्ट्रेस ने ये औफर ठुकरा दिया.

बताया जा रहा है कि दिशा वकानी को मेकर्स ने 65 करोड़ रुपए का औफर दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. जबकि बौलीवुड की एक्ट्रैस दीपिक पादुकोण(Deepika Padukone) भी अपनी एक फिल्म के लिए 15-20 करोड़ रुपए चार्ज करती हैं. ऐसे में एक टीवी एक्ट्रैस को इतनी बड़ी रकम का औफर मिलना, सच में हैरान करने वाला है. ‘बिग बौस’ के इतिहास में यह सबसे बड़ी रकम है. कथित तौर पर, शो में भाग लेने के लिए उन्हें जितनी रकम का औफर दी गई है, वह ‘बिग बौस’ के इतिहास में किसी स्टार को दी गई सबसे बड़ी कीमत है. जिसे मीडिया खबरों के अनुसार झूठ भी बताया जा रहा है.

दिशा वकानी को लेकर पहले भी कई बार चर्चाएं रहीं कि वो बिग बौस में हिस्सा लेंगी. हर सीजन शुरू होने के साथ ही यह कयास लगाएं जाते थे कि ‘तारक महता’ की फेम एक्ट्रैस बिग बौस में आएंगी. एक बार तो उन्होंने साफ कहा था कि वह ‘बिग बौस’ में हिस्सा नहीं लेंगी.

दिशा वकानी ने साल 2017 में मैटरनिटी लीव ली थी और इसके बाद से वह लाइमलाइट से दूर हो गईं. उन्होंने ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ को छोड़ दिया.

इन सभी खबरों के बीच एक खबर ये भी आ रही है कि टीवी की लाफ्टर क्वीन भारती सिंह (Bharti Singh) और बिग बौस फेम एल्विश यादव(Elvish Yadav) पर 500 करोड़ की ठगी का आरोप लगा है. दिल्ली पुलिस ने ऐप के जरिए 500 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में यूट्यूबर(Youtuber) एल्विश यादव और कौमेडियन भारती सिंह समेत तीन अन्य को समन भेजा है. पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस को 500 से अधिक शिकायतें मिलीं, जिनमें आरोप लगाया गया कि कई सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर और यूट्यूबर ने अपने पेज पर हायबौक्स मोबाइल ऐप को बढ़ावा दिया और लोगों को ऐप के जरिए निवेश का लालच दिया.

आपको बता दें कि हायबौक्स एक मोबाइल ऐप है जो एक धोखाधड़ी का हिस्सा था.’पुलिस के मुताबिक कि इस ऐप के जरिए, आरोपियों ने रोजाना एक से पांच प्रतिशत के गारंटीड रिटर्न का वादा किया था, जो एक महीने में 30 से 90 प्रतिशत तक होता था. ऐप को फरवरी 2024 में शुरू किया गया था. ऐप के जरिए 30,000 से अधिक लोगों ने पैसा निवेश किया. इस ऐप में एल्विश यादव और भारती सिंह का नाम सबसे टौप पर आ रहे है इसके साथ ही सौरव जोशी, अभिषेक मल्हान, पूरव झा, एल्विश यादव, भारती सिंह, हर्ष लिंबाचिया, लक्ष्य चौधरी, आदर्श सिंह, अमित और दिलराज सिंह रावत सहित सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर और यूट्यूबर ने ऐप को बढ़ावा दिया.

कभी ड्रग्स तो कभी अफेयर्स की वजह से बदनाम रहे हैं ये टौप पंजाबी सिंगर्स

पंजाब (Punjab) ने बौलीवुड (Bollywood) को एक से बढ़ कर एक टौप पंजाबी सिंगर्स (Punjabi Singers) दिए हैं फिर बात फीमेल सिंगर की हो या मेल सिंगर की हो. ये प्लेबैक सिंगर्स की टौप लिस्ट में हैं. आज युवाओं के बीच सबसे ज्यादा पंजाबी गाने सुने जाते हैं. यही वजह है कि इनके सिंगर्स भी इनके बीच पौपुलर हैं  जैसे गुरु रंधावा (Gururandhawa), हनी सिंह (HoneySingh), बादशाह (Badshah), दिलजीत (Daljeet) ये चारों कौलेज जाने वालों की जान है. 

 

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इन सिंगर्स के गाने हर शादी के फंक्शन्स में बजाए जाते हैं और जिन पर जम कर डांस किया जाता है. जितनी  लंबी इनके फैन्स की लाइन है, उतने लंबी इनके कंट्रोवर्सीज की लिस्ट भी है. यही वजह है कि ये पौपुलर सिंगर्स हमेशा मीडिया की सुर्खियाें में बने रहते हैं. 

पटोला गाने से गुरु रंधावा को मिली पहचान 

सिंगर गुरु रंधावा के स्ट्रगल की बात करें तो उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि वे कभी शादी में गाने गाते थे इससे उनकी पौकेट मनी का इंतजात हो जाता था.  गुरु 9 साल की उम्र से ही शादी में गाना गाने लगे थे. बचपन में गांव की शादियों में अपने गानों से इन्होंने खूब धूम मचाई. उन्होंने स्कूल के दिनों में गाने लिखना शुरू कर दिया था. गुरु रंधावा ने दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई की है.

गुरु ने यूट्यूब पर अर्जुन के साथ ‘सेम गर्ल’ नाम से अपना पहला गाना गाया था. हालांकि, यह गाना ज्यादा पौपुलर नहीं हुआ. साल 2013 में गुरु रंधावा ने अपना एल्बम ‘पेग वन’ लौन्च किया था.  दो साल तक स्ट्रगल करने के बाद, पौपुलर रैपर बोहेमिया ने गुरु रंधावा के साथ मिलकर ‘पटोला’ गाना बनाया था. यह गाना रिलीज़ होते ही हिट हो गया और जिससे गुरु को नई पहचान मिली.

साल 2017 में गुरु रंधावा ने हिन्दी मीडियम से बौलीवुड गायन में कदम रखा था. उनके कुछ और भी गाने है जो कि बेहद पौपुलर है – ‘हाई रेटेड गबरू’, ‘दारू वरगी’, ‘रात कमाल है’, और ‘बन जा तू मेरी रानी’. जैसे गानों ने खूब धमाल मचाया. गुरु रंधावा का पहला इंटरनेशनल गाना पिटबुल के साथ 19 अप्रैल 2019 को रिलीज हुआ था जो कि ‘स्लोली स्लोली’ था.  आजकल वह अपनी मूवी शाहकोट की वजह से चर्चा में है, जो रिलीज होने के पहले ही कंट्रोवर्सी में आ गई हैं. गुरु के फैन्स इस मूवी में गुरु को एक्टिंग करते देखेंगे. 

बाइपोलर डिसऔर्डर के शिकार रहे हैं हनी सिंह

भारत के रैपर और पौपुलर सिंगर हनी सिंह के गानों का हर कोई फैन है. हनी सिंह की फैन फौलोइंग जबरदस्त है. उऩके चाहने वाले उनके सौंग सुनना पसंद करते हैं. लेकिन हनी सिंह के कई गानों पर बैन लगाए गए. उनके करियर से जुड़ी कंट्रोवर्सीज आज भी सुर्खियों में रहती है.  इतना ही नहीं कुछ साल पहले हनी सिंह शराब और ड्रग्स की लत की वजह से बीमारियों का घर बन गए थे. वो ‘बाइपोलर डिसऔर्डर’ के शिकार भी हो चुके है.पत्नी से तलाक की वजह से भी उन्हें काफी बदनामी सहनी पड़ी.

हनी सिंह ने अपना करियर एक रिकौर्डिंग आर्टिस्ट के तौर पर शुरु किया था. बाद में भांगड़ा प्रोड्यूसर बन गए. फिर उन्हें बौलीवुड से औफर आने लगे और बौलीवुड की कई फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया तथा मशहूर गानों को रैप किया और धीरेधोरे वे बौलीवुड के सबसे महंगे सिंगिग प्रोड्यूसर बन गए. हनी सिंह ने ‘शकल पे मत जा’ गाने से डेब्यू किया था. हनी सिंह ने ‘अंग्रेज़ी बीट’, ‘ब्राउन रंग’, और ‘लव डोज़’ जैसे कई हिट गाने दिए. 

रैपर बादशाह का असली नाम जानते हैं आप 

सिंगर-रैपर बादशाद का असली नाम आदित्य प्रतीक सिंह सिसोदिया है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ‘कूल इक्वल’ नाम से एक अंडरग्राउंड इंग्लिश रैपर के तौर पर की थी.  बादशाह ने कई फ़िल्मों में गाने गाए हैं जिनमें हिन्दी, पंजाबी, और हरियाणवी भाषा के गाने हैं. साल 2014 में आई फ़िल्में ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ और ‘खूबसूरत’ में भी बादशाह ने गाने गाए.

बादशाह के इस स्ट्रगल के बाद उन्हें  डिप्रेशन और एंग्जायटी से भी जूझना पड़ा. इस दौरान उनके मन में कई बार सुसाइड करने के भी विचार आए. लेकिन इन सबसे निकल बादशाह आज भी सभी के दिलों की जान है. वे एक बेस्ट सिंगर है. जिनकी फैनफोलोइंग काफी तगड़ी है. बादशाह ने ‘हर फतेह’ नाम के गाने से डेब्यू किया. बादशाह ने बौलीवुड में कई गाने दिए. बादशाह ने फिल्म भी कि उनकी पहली फिल्म ‘खनदानी सफाखाना’ है. जिसमे उनका नाम गबरू घातक था. बादशाह का नाम एक पाकिस्तानी एक्ट्रैस के साथ काफी चर्चा में रहा. हानिया आमिर नाम की यह एक्ट्रैस पाकिस्तान की टौप की स्टार है और बेहद ही खूबसूरत हैं 

दिलजीत को   उड़ता पंजाब से बौलीवुड में मिली 

दिलजीत दोसांझ, ये नाम सिंगिग की दुनिया में बेहद पौपुलर है. इन्होंने कैरियर की शुरुआत पंजाबी गानों से की. बाद में  हिंदी गाने भी गाने लगे और धीरेधीरे कामयाबी के शिखर पर पहुंचे. इतना ही नहीं उन्होंने हिंदी और पंजाबी फिल्मों में भी काम किया है. उनकी हिंदी मूवी गुड न्यूज काफी पसंद की गई. 

वे पंजाबी फ़िल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार माने जाते है. उन्होंने ‘उड़ता पंजाब’, ‘सूरमा’, ‘जट्ट एंड जूलिए’ट, ‘पंजाब 1984’, ‘सरदार जी’, ‘सुपर सिंह’, ‘अंबरसरीया’ जैसी फ़िल्मों में काम किया है. करियर की शुरुआत में फिल्म ‘जट्ट एंड जूलियट’ से की. दिलजीत के सुपरहिट गाने है जिसमें ‘किन्नी किन्नी’, ‘लेम्बडगिनी’, ‘सौदा खरा खरा’ शामिल है. साल 2020 में दिलजीत दोसांझ बिलबोर्ड के सोशल 50 चार्ट में शामिल हुए थे.

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