‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.
14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.
गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.
रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझदारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.
गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.
दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.
रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.
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