‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.

14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.

गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.

रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझदारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.

गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.

दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.

रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.

पिछले हफ्ते की ही बात है. गीता रमेश चाचा की दुकान से नमक लेने गई थी. उस ने तंग सूट पहना हुआ था, जो एक साइड से उधड़ा हुआ था. उस का एक उभार वहां से ?ांक रहा था.

‘‘चाचा, जल्दी से नमक देना. मां ने सब्जी गैस पर चढ़ा रखी है,’’ गीता ने रमेश को पैसे देते हुए कहा.

वैसे तो रमेश के मन में तब तक कोई घटियापन सवार नहीं था, पर गीता के झांकते उभार ने उस की मर्दानगी को जगा दिया.

अब रमेश को गीता में भरीपूरी औरत नजर आने लगी. वह उसे बिस्तर पर ले जाने को उतावला हो गया. उस का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा.

‘‘अरे चाचा, जल्दी से नमक दो न,’’ गीता ने दोबारा कहा, तो रमेश अपनी फैंटेसी से जागा. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जा, भीतर से नमक की थैली ले ले. वहां चौकलेट का एक डब्बा भी रखा है. उस में से एक चौकलेट ले लेना.’’

यह सुन कर गीता खुश हो गई और भाग कर भीतर चली गई. तब गली सुनसान थी. रमेश भी दबे पैर गीता के पीछे चला गया और बहाने से उसे छूने लगा.

पहले तो गीता को ज्यादा पता नहीं चला, पर जब उसे लगा कि चाचा उसे अब गलत तरीके से छू रहे हैं, तो वह सावधान हो गई और नमक की थैली उठा कर अपने घर भाग गई.

तब से गीता को रोज रात को सपने में रमेश चाचा की वह गंदी छुअन दिखाई देती थी और वह गुमसुम सी रहने लगी थी.

आज सुबह जब मां ने गीता को स्कूल जाने के लिए उठाया, तो उस का मन किया कि घर पर ही रहे, पर अपने भाई रवि के जोर देने पर वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.

गीता इतना ज्यादा घबराई हुई थी कि उस ने रमेश की किराने की दुकान की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘दीदी, आज आप ने मुझे टौफी नहीं दिलाई,’’ रवि ने शिकायत की.

‘‘आज के बाद तुझे कोई टौफी नहीं मिलेगी,’’ गीता ने आंखें दिखाते हुए बात बदलनी चाही.

‘‘क्या हुआ दीदी? आप टौफी के नाम पर बिदक क्यों गईं?’’ रवि ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, जल्दी चल, नहीं तो स्कूल में लेट हो जाएगा,’’ गीता ने कहा.

रवि समझ गया था कि दाल में कुछ काला है. लंच टाइम में जब वे दोनों खाना खा रहे थे, तब रवि ने पूछा, ‘‘दीदी, बात क्या है? देखो, अगर मन में कोई बात है, तो मुझे बता दो. मेरे पास हर समस्या का हल है.’’

‘‘अच्छा, मेरे छोटे बहादुर भाई.

क्या तू हर समस्या का हल निकाल सकता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. रवि के पास हर मर्ज की दवा है,’’ रवि बोला.

‘‘भाई, पता नहीं क्यों, मुझे रमेश चाचा अब अच्छे नहीं लगते हैं. जिस दिन मैं नमक लेने गई थी, वे मुझे गलत ढंग से छू रहे थे. मैं डर गई थी. मां से कहने की हिम्मत नहीं हुई.’’

रवि छोटा जरूर था, पर उसे गुड टच और बैड टच की समझ थी. वह जान गया था कि रमेश चाचा की गंदी नजर उस की बहन पर है, पर कोई उन की बात को समझ नहीं पाएगा या समाज का डर दिखा कर गीता को चुप करा दिया जाएगा.

पर रवि चुप रहने वालों में से नहीं था. वह समझ गया कि रमेश चाचा की नीयत सही नहीं है. तभी उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाली माया की याद आई. माया ने बताया था कि उस के चाचा मनोज पुलिस में सिपाही हैं.

रवि उसी शाम को माया के घर जा पहुंचा. मनोज चाचा भी उस समय घर पर ही थे. रवि ने अकेले में मनोज चाचा को सारी बात बताई.

मनोज को सम?ा आ गया कि गीता किस तनाव से गुजर रही है. वह रमेश किराने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न रहे.

अगले दिन शाम को मनोज और रवि ने गीता से अकेले में बात की. पहले तो गीता सब बताने से डर रही थी, पर मनोज के समझाने पर उस ने नमक वाली घटना बता दी.

इस के बाद मनोज सादा कपड़ों में रमेश पर निगरानी रखने लगा. रमेश की हरकतें सही नहीं थीं. वह हर आतीजाती औरत और लड़की को ताड़ता था. उन के उभारों को देख कर उस की नजरों में अलग सी चमक आ जाती थी.

एक दिन मनोज ने गीता से कहा, ‘‘गीता, कल दिन में तुम फिर से रमेश की दुकान पर जाना और अगर वह तुम्हें भीतर बुलाए, तो चली जाना. मैं थोड़ी ही देर में वहां आ जाऊंगा और उसे सबक सिखा दूंगा.’’

गीता ने पहले तो नानुकर की, पर उसे मनोज चाचा पर पूरा भरोसा था, तो बाद में मान गई.

अगले दिन जब गली सुनसान थी, तब गीता रमेश की दुकान पर गई.

‘‘बड़े दिनों के बाद आई हो. क्या हुआ?’’ रमेश ने गीता को गंदी नजरों से घूरते हुए पूछा.

‘‘अरे चाचा, उस दिन मैं चौकलेट लेना भूल गई थी. आज दे दो.’’

रमेश का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा. उस की हवस जाग गई थी. उस ने कहा, ‘‘जा, भीतर जा कर ले ले.’’

गीता ने बाहर की तरफ देखा. दूर मनोज चाचा खड़े थे. वह हिम्मत दिखा कर भीतर चली गई. उस के पीछेपीछे रमेश भी हो लिया.

गीता को पता था कि रमेश जरूर कुछ करेगा, तो वह सावधान थी. तभी रमेश ने बहाने से गीता के कूल्हे पर हाथ फिराया, तो गीता सहम गई.

पर रमेश तो अब सरकारी सांड़ बन गया था. उस ने गीता को तकरीबन दबोच लिया और उसे बोरी पर गिरा दिया और बोला, ‘‘बस, थोड़ा सा मजा करने दे, मैं तुझे 5 चौकलेट दूंगा.’’

गीता को लगा कि अगर मनोज चाचा नहीं आए, तो यह दरिंदा उसे रौंद देगा. पर तभी मनोज चाचा वहां आ गए और उन्होंने बिना देरी किए रमेश को धर दबोचा. रमेश को सपने में भी गुमान नहीं था कि उस की हवस का यह नतीजा निकलेगा.

थोड़ी देर में रमेश हवालात में था. वहां इंस्पैक्टर दीपक रावत ने जब यह पूरा किस्सा सुना, तो वे हैरान रह गए. उन्होंने रमेश से कहा कि अब उस की खैर नहीं, फिर मनोज की चतुराई पर उसे बधाई दी.

पर, मनोज का मन अभी भी गीता के साथ हुई इस हरकत से दुखी था. इंस्पैक्टर दीपक रावत ने इस की वजह पूछी.

सिपाही मनोज ने कहा, ‘‘अरे साहब, किसकिस पर नजर रखें, यहां तो हर घर की रखवाली चोर को दे रखी है.’’

‘‘मैं समझ नहीं. साफसाफ कहो कि माजरा क्या है? क्या कोई और भी कांड हुआ है?’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा.

‘‘साहब, एक मामला हाल ही का है. गुजरात का. वहां एक 6 साल की मासूम छात्रा ने यौन शोषण कर रहे प्रिंसिपल को रोकने की कोशिश की, तो उस की जान ले ली गई.

‘‘यह कांड दाहोद जिले का है. उस इलाके के पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने बताया कि जब छात्रा ने खुद को बचाने की कोशिश की, तो उस प्रिंसिपल गोविंद नट ने उस का गला घोंट दिया.

‘‘साहब सोचिए कि 50 साल का एक बूढ़ा महज 6 साल की लड़की में सैक्स ढूंढ़ रहा था और जब हवस

नहीं मिटी, तो उस की हत्या कर दी,’’ सिपाही मनोज ने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा.

‘‘मुझे पूरा मामला तफसील से बताओ मनोज.’’

‘‘साहब, पुलिस वालों ने रविवार,

22 सितंबर, 2024 को यह जानकारी दी थी. पुलिस के एक अफसर ने बताया कि बृहस्पतिवार, 19 सितंबर को सिंगवाड़ तालुका के एक गांव में स्कूल परिसर के अंदर बच्ची की लाश मिलने के बाद जांच शुरू की गई थी.

‘‘पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने मीडिया को बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10 बज कर

20 मिनट पर प्रिंसिपल अपनी कार से वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने बच्ची की मां के कहने पर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल ले जाने के लिए हां की, जबकि छात्राओं और टीचरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची उस दिन स्कूल नहीं पहुंची थी.

‘‘पूछताछ के दौरान प्रिंसिपल ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि उस ने अपनी कार में छात्रा को बिठाने के बाद उसे स्कूल में छोड़ा था. हालांकि, बाद में उस ने बच्ची की हत्या करने की बात कबूल कर ली.

‘‘स्कूल के रास्ते में प्रिंसिपल ने छात्रा का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की, लेकिन उस के चिल्लाने पर उस ने (प्रिंसिपल) बच्ची का मुंह और नाक दबा दी, जिस से वह बेहोश हो गई.

‘‘प्रिंसिपल स्कूल पहुंचा और अपनी कार पार्क की, जिस में बच्ची की लाश थी. शाम के 5 बजे उस ने लाश

को बाहर निकाला और स्कूल की इमारत के पीछे फेंक दिया. इस के बाद उस ने छात्रा का स्कूल बैग और चप्पलें उस की क्लास में रख दीं.

‘‘पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश मिलने के एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत

गला घोंटने से हुई है. बच्ची जब स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद घर

नहीं लौटी, तो उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने उस की तलाश शुरू की और उसे स्कूल की इमारत के पीछे के परिसर में बेहोशी की हालत में पड़ा पाया. उन्होंने बताया कि बच्ची को लिमखेड़ा सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.’’

इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा, ‘‘पुलिस को प्रिंसिपल पर शक कैसे हुआ?’’

‘‘दरअसल, प्रिंसिपल ने पुलिस को बताया था कि वह शाम 5 बजे स्कूल से निकला था, लेकिन उस की फोन लोकेशन से पता चला कि वह शाम के 6 बज कर 10 मिनट तक स्कूल में था. पुलिस ने कहा कि स्कूल के किसी भी बच्चे ने लड़की को प्रिंसिपल की कार से उतरते नहीं देखा था. उस के साथ पढ़ने वाले बच्चों ने भी कहा कि वह उस दिन क्लास में नहीं आई थी.’’

‘‘मनोज, मैं तुम्हारा गुस्सा और बेबसी समझ सकता हूं, पर कोई इनसान कितना गिरा हुआ है या उस के मन में क्या चल रहा है, इस का पता लगाने की कोई मशीन नहीं बनी है.

‘‘उस लड़की की मां को क्या पता था कि वह जिस आदमी के साथ अपनी लाड़ली को अकेले कार से भेज रही है, वही राक्षस निकलेगा.’’

‘‘सर, गीता तो बच गई, पर हमारे देश में न जाने कितने दरिंदे घूम रहे हैं, जो हवस के पुजारी हैं, पर उन के चेहरे पर अच्छे आदमी होने का मुखौटा लगा होता है. आप ने कहा कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जो लोगों का मन

पढ़ सके, पर क्या यह हम लोगों की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है कि अगर देश और समाज को बेहतर करना है, तो हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सीखना होगा.

‘‘अगर बच्चा किसी वजह से चुपचुप रहता है, जराजरा सी बात पर चिढ़ जाता है, पढ़ने पर ध्यान नहीं दे पा रहा है, तो उस से बात करनी चाहिए, उस की समस्या को ध्यान से सुन कर सुल?ाना चाहिए. शायद यही एक तरीका है अपने बच्चों को महफूज रखने का.’’

‘‘तुम सही कह रहे हो मनोज, पर यह मत भूलो कि आज तुम्हारी वजह से गीता की इज्जत पर दाग लगने से बचा है. तुम ने एक अच्छे इनसान और अपनी वरदी के प्रति वफादार होने का सुबूत दिया है. वैलडन. आगे भी ऐसे ही काम करते रहना,’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने मनोज की पीठ थपथपाते हुए कहा.‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.

14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.

गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले

के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.

रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझादारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.

गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.

दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.

रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.

पिछले हफ्ते की ही बात है. गीता रमेश चाचा की दुकान से नमक लेने गई थी. उस ने तंग सूट पहना हुआ था, जो एक साइड से उधड़ा हुआ था. उस का एक उभार वहां से झांक रहा था.

‘‘चाचा, जल्दी से नमक देना. मां ने सब्जी गैस पर चढ़ा रखी है,’’ गीता ने रमेश को पैसे देते हुए कहा.

वैसे तो रमेश के मन में तब तक कोई घटियापन सवार नहीं था, पर गीता के झांकते उभार ने उस की मर्दानगी को जगा दिया.

अब रमेश को गीता में भरीपूरी औरत नजर आने लगी. वह उसे बिस्तर पर ले जाने को उतावला हो गया. उस का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा.

‘‘अरे चाचा, जल्दी से नमक दो न,’’ गीता ने दोबारा कहा, तो रमेश अपनी फैंटेसी से जागा. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जा, भीतर से नमक की थैली ले ले. वहां चौकलेट का एक डब्बा भी रखा है. उस में से एक चौकलेट ले लेना.’’

यह सुन कर गीता खुश हो गई और भाग कर भीतर चली गई. तब गली सुनसान थी. रमेश भी दबे पैर गीता के पीछे चला गया और बहाने से उसे छूने लगा.

पहले तो गीता को ज्यादा पता नहीं चला, पर जब उसे लगा कि चाचा उसे अब गलत तरीके से छू रहे हैं, तो वह सावधान हो गई और नमक की थैली उठा कर अपने घर भाग गई.

तब से गीता को रोज रात को सपने में रमेश चाचा की वह गंदी छुअन

दिखाई देती थी और वह गुमसुम सी रहने लगी थी.

आज सुबह जब मां ने गीता को स्कूल जाने के लिए उठाया, तो उस का मन किया कि घर पर ही रहे, पर अपने भाई रवि के जोर देने पर वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.

गीता इतना ज्यादा घबराई हुई थी कि उस ने रमेश की किराने की दुकान की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘दीदी, आज आप ने मुझे टौफी नहीं दिलाई,’’ रवि ने शिकायत की.

‘‘आज के बाद तुझे कोई टौफी नहीं मिलेगी,’’ गीता ने आंखें दिखाते हुए बात बदलनी चाही.

‘‘क्या हुआ दीदी? आप टौफी के नाम पर बिदक क्यों गईं?’’ रवि ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, जल्दी चल, नहीं तो स्कूल में लेट हो जाएगा,’’ गीता ने कहा.

रवि समझ गया था कि दाल में कुछ काला है. लंच टाइम में जब वे दोनों खाना खा रहे थे, तब रवि ने पूछा, ‘‘दीदी, बात क्या है? देखो, अगर मन में कोई बात है, तो मुझे बता दो. मेरे पास हर समस्या का हल है.’’

‘‘अच्छा, मेरे छोटे बहादुर भाई.

क्या तू हर समस्या का हल निकाल सकता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. रवि के पास हर मर्ज की दवा है,’’ रवि बोला.

‘‘भाई, पता नहीं क्यों, मुझे रमेश चाचा अब अच्छे नहीं लगते हैं. जिस दिन मैं नमक लेने गई थी, वे मझे गलत ढंग से छू रहे थे. मैं डर गई थी. मां से कहने की हिम्मत नहीं हुई.’’

रवि छोटा जरूर था, पर उसे गुड टच और बैड टच की समझ थी. वह जान गया था कि रमेश चाचा की गंदी नजर उस की बहन पर है, पर कोई उन की बात को समझ नहीं पाएगा या समाज का डर दिखा कर गीता को चुप करा दिया जाएगा.

पर रवि चुप रहने वालों में से नहीं था. वह समझ गया कि रमेश चाचा की नीयत सही नहीं है. तभी उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाली माया की याद आई. माया ने बताया था कि उस के चाचा मनोज पुलिस में सिपाही हैं.

रवि उसी शाम को माया के घर जा पहुंचा. मनोज चाचा भी उस समय घर पर ही थे. रवि ने अकेले में मनोज चाचा को सारी बात बताई.

मनोज को समझ आ गया कि गीता किस तनाव से गुजर रही है. वह रमेश किराने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न रहे.

अगले दिन शाम को मनोज और रवि ने गीता से अकेले में बात की. पहले तो गीता सब बताने से डर रही थी, पर मनोज के सम?ाने पर उस ने नमक वाली घटना बता दी.

इस के बाद मनोज सादा कपड़ों में रमेश पर निगरानी रखने लगा. रमेश की हरकतें सही नहीं थीं. वह हर आतीजाती औरत और लड़की को ताड़ता था. उन के उभारों को देख कर उस की नजरों में अलग सी चमक आ जाती थी.

एक दिन मनोज ने गीता से कहा, ‘‘गीता, कल दिन में तुम फिर से रमेश की दुकान पर जाना और अगर वह तुम्हें भीतर बुलाए, तो चली जाना. मैं थोड़ी ही देर में वहां आ जाऊंगा और उसे सबक सिखा दूंगा.’’

गीता ने पहले तो नानुकर की, पर उसे मनोज चाचा पर पूरा भरोसा था, तो बाद में मान गई.

अगले दिन जब गली सुनसान थी, तब गीता रमेश की दुकान पर गई.

‘‘बड़े दिनों के बाद आई हो. क्या हुआ?’’ रमेश ने गीता को गंदी नजरों से घूरते हुए पूछा.

‘‘अरे चाचा, उस दिन मैं चौकलेट लेना भूल गई थी. आज दे दो.’’

रमेश का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा. उस की हवस जाग गई थी. उस ने कहा, ‘‘जा, भीतर जा कर ले ले.’’

गीता ने बाहर की तरफ देखा. दूर मनोज चाचा खड़े थे. वह हिम्मत दिखा कर भीतर चली गई. उस के पीछेपीछे रमेश भी हो लिया.

गीता को पता था कि रमेश जरूर कुछ करेगा, तो वह सावधान थी. तभी रमेश ने बहाने से गीता के कूल्हे पर हाथ फिराया, तो गीता सहम गई.

पर रमेश तो अब सरकारी सांड़ बन गया था. उस ने गीता को तकरीबन दबोच लिया और उसे बोरी पर गिरा दिया और बोला, ‘‘बस, थोड़ा सा मजा करने दे, मैं तुझे 5 चौकलेट दूंगा.’’

गीता को लगा कि अगर मनोज चाचा नहीं आए, तो यह दरिंदा उसे रौंद देगा. पर तभी मनोज चाचा वहां आ गए और उन्होंने बिना देरी किए रमेश को धर दबोचा.

रमेश को सपने में भी गुमान नहीं था कि उस की हवस का यह नतीजा निकलेगा.

थोड़ी देर में रमेश हवालात में था. वहां इंस्पैक्टर दीपक रावत ने जब यह पूरा किस्सा सुना, तो वे हैरान रह गए. उन्होंने रमेश से कहा कि अब उस की खैर नहीं, फिर मनोज की चतुराई पर उसे बधाई दी. पर, मनोज का मन अभी भी गीता के साथ हुई इस हरकत से दुखी था. इंस्पैक्टर दीपक रावत ने इस की वजह पूछी.

सिपाही मनोज ने कहा, ‘‘अरे साहब, किसकिस पर नजर रखें, यहां तो हर घर की रखवाली चोर को दे रखी है.’’

‘‘मैं समझ नहीं. साफसाफ कहो कि माजरा क्या है? क्या कोई और भी कांड हुआ है?’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा.

‘‘साहब, एक मामला हाल ही का है. गुजरात का. वहां एक 6 साल की मासूम छात्रा ने यौन शोषण कर रहे प्रिंसिपल को रोकने की कोशिश की, तो उस की जान ले ली गई.

‘‘यह कांड दाहोद जिले का है. उस इलाके के पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने बताया कि जब छात्रा ने खुद को बचाने की कोशिश की, तो उस प्रिंसिपल गोविंद नट ने उस का गला घोंट दिया.

‘‘साहब सोचिए कि 50 साल का एक बूढ़ा महज 6 साल की लड़की में सैक्स ढूंढ़ रहा था और जब हवस

नहीं मिटी, तो उस की हत्या कर दी,’’ सिपाही मनोज ने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा.

‘‘मुझे पूरा मामला तफसील से बताओ मनोज.’’

‘‘साहब, पुलिस वालों ने रविवार,

22 सितंबर, 2024 को यह जानकारी दी थी. पुलिस के एक अफसर ने बताया कि बृहस्पतिवार, 19 सितंबर को सिंगवाड़ तालुका के एक गांव में स्कूल परिसर के अंदर बच्ची की लाश मिलने के बाद जांच शुरू की गई थी.

‘‘पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने मीडिया को बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10 बज कर

20 मिनट पर प्रिंसिपल अपनी कार से वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने बच्ची की मां के कहने पर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल ले जाने के लिए हां की, जबकि छात्राओं और टीचरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची उस दिन स्कूल नहीं पहुंची थी.

‘‘पूछताछ के दौरान प्रिंसिपल ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि उस ने अपनी कार में छात्रा को बिठाने के बाद उसे स्कूल में छोड़ा था. हालांकि, बाद में उस ने बच्ची की हत्या करने की बात कबूल कर ली.

‘‘स्कूल के रास्ते में प्रिंसिपल ने छात्रा का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश

की, लेकिन उस के चिल्लाने पर उस ने (प्रिंसिपल) बच्ची का मुंह और नाक दबा दी, जिस से वह बेहोश हो गई.

‘‘प्रिंसिपल स्कूल पहुंचा और अपनी कार पार्क की, जिस में बच्ची की लाश थी. शाम के 5 बजे उस ने लाश

को बाहर निकाला और स्कूल की इमारत के पीछे फेंक दिया. इस के बाद उस ने छात्रा का स्कूल बैग और चप्पलें उस की क्लास में रख दीं.

‘‘पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश मिलने के एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत

गला घोंटने से हुई है. बच्ची जब स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद घर नहीं लौटी, तो उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने उस की तलाश शुरू की और उसे स्कूल की इमारत के पीछे के परिसर में बेहोशी की हालत में पड़ा पाया. उन्होंने बताया कि बच्ची को लिमखेड़ा सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.’’

इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा, ‘‘पुलिस को प्रिंसिपल पर शक कैसे हुआ?’’

‘‘दरअसल, प्रिंसिपल ने पुलिस को बताया था कि वह शाम 5 बजे स्कूल से निकला था, लेकिन उस की फोन लोकेशन से पता चला कि वह शाम के 6 बज कर 10 मिनट तक स्कूल में था. पुलिस ने कहा कि स्कूल के किसी भी बच्चे ने लड़की को प्रिंसिपल की कार से उतरते नहीं देखा था. उस के साथ पढ़ने वाले बच्चों ने भी कहा कि वह उस दिन क्लास में नहीं आई थी.’’

‘‘मनोज, मैं तुम्हारा गुस्सा और बेबसी समझ सकता हूं, पर कोई इनसान कितना गिरा हुआ है या उस के मन में क्या चल रहा है, इस का पता लगाने की कोई मशीन नहीं बनी है.

‘‘उस लड़की की मां को क्या पता था कि वह जिस आदमी के साथ अपनी लाड़ली को अकेले कार से भेज रही है, वही राक्षस निकलेगा.’’

‘‘सर, गीता तो बच गई, पर हमारे देश में न जाने कितने दरिंदे घूम रहे हैं, जो हवस के पुजारी हैं, पर उन के चेहरे पर अच्छे आदमी होने का मुखौटा लगा होता है. आप ने कहा कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जो लोगों का मन

पढ़ सके, पर क्या यह हम लोगों की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है कि अगर देश और समाज को बेहतर करना है, तो हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सीखना होगा.

‘‘अगर बच्चा किसी वजह से चुपचुप रहता है, जराजरा सी बात पर चिढ़ जाता है, पढ़ने पर ध्यान नहीं दे पा रहा है, तो उस से बात करनी चाहिए, उस की समस्या को ध्यान से सुन कर सुल?ाना चाहिए. शायद यही एक तरीका है अपने बच्चों को महफूज रखने का.’’

‘‘तुम सही कह रहे हो मनोज, पर यह मत भूलो कि आज तुम्हारी वजह से गीता की इज्जत पर दाग लगने से बचा है. तुम ने एक अच्छे इनसान और अपनी वरदी के प्रति वफादार होने का सुबूत दिया है. वैलडन. आगे भी ऐसे ही काम करते रहना,’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने मनोज की पीठ थपथपाते हुए कहा.

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