News Story : शराब और सांवरी

News Story : मनोहर दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती में रहता था. 2 साल पहले उस की शादी सांवरी से हुई थी. नाम की सांवरी देखने में बहुत खूबसूरत और गोरी थी. वह पतली देह की बड़ी कमेरी औरत थी और मनोहर से बहुत प्यार करती थी.

शादी के 2-3 महीने तो बड़े अच्छे बीते, पर जब मनोहर ने अपना असली रंग दिखाया, तो सांवरी की जिंदगी ही बदरंग हो गई.

मनोहर को शराब पीने की लत थी. कहने को वह ईरिकशा चलाता था, पर उस का ध्यान घरगृहस्थी से ज्यादा अपने पीने की लत पर रहता था. अंटी में थोड़े पैसे आए नहीं कि वह सीधा देशी शराब के ठेके पर जा कर अद्धा खरीद लेता था और दिन में ही शराब पीना शुरू कर देता था.

एक दिन सांवरी ने उसे टोका भी था, ‘‘आप रोजरोज शराब मत पिया करो. फिर आप जानवर बन जाते हो. आप की सारी कमाई यह शराब चूस जाती है.’’

‘‘अब तू मुझे दुनियादारी सिखाएगी. औरत जात है तो ज्यादा सिर पर मत चढ़. मेरी कमाई, मैं जो चाहे करूं, तू कौन होती है दखल देने वाली,’’ मनोहर सांवरी पर चिल्लाया था.

सांवरी समझ गई कि मनोहर नहीं सुनेगा. उस ने अपना टाइमपास करने के लिए पास की सोसाइटी में बरतन मांजने का काम शुरू कर दिया.

पर सांवरी की मेहनत तब बेकार हो जाती, जब मनोहर उस की कमाई भी हथिया लेता था. टोकने पर उस की जम कर पिटाई भी करता था.

जिस सोसाइटी में सांवरी बरतन मांजने जाती थी, वहां महेश नाम का एक सिक्योरिटी गार्ड था, जो सांवरी को बहुत पसंद करता था. महेश की अभी शादी नहीं हुई थी. वह उसी सोसाइटी के पीछे बने गार्डरूम में रहता था.

एक दिन जब सांवरी सोसाइटी में आई, तब महेश की ड्यूटी मेन गेट पर ही थी. जब सांवरी ऐंट्री कर रही थी, तब महेश ने उस का मुरझाया चेहरा देख कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ सांवरी? घर पर सब ठीक…?’’

सांवरी को महेश में अपना हमदर्द नजर आया. उस ने कहा, ‘‘अब क्या बताऊं महेश बाबू, मेरी तो जिंदगी ही नरक हो गई है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ महेश ने पूछा.

‘‘अभी जल्दी में हूं. बाद में बताती हूं,’’ सांवरी बोली.

‘‘जब तू दोपहर को बाहर जाएगी, तो उस से पहले मेरे कमरे पर आ जाना. करते हैं आराम से बात,’’ महेश बोला.

सांवरी मुसकरा कर चली गई.

दोपहर को सोसाइटी में लोग अपने घरों में ही रहते थे. सांवरी अपना काम खत्म कर के सीधा महेश के कमरे में चली गई.

महेश चाय बना रहा था. सांवरी को देखते ही वह बोला, ‘‘आओ, मैं हम दोनों के लिए चाय बना रहा था.’’

सांवरी एक स्टूल पर बैठ गई. महेश ने उसे पानी दिया और चाय के साथ खाने के लिए बिसकुट का एक छोटा पैकेट खोल दिया.

चाय पीते हुए महेश ने सांवरी की आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘अब बताओ कि क्या बात है?’’

सांवरी आह भरते हुए बोली, ‘‘इस शराब ने मेरी जिंदगी का बेड़ा गर्क कर दिया है. मनोहर रोज शराब पीता है और टोकने पर मुझे मारता है,’’ इतना कह कर सांवरी ने अपनी साड़ी का पल्लू हटा कर महेश को मनोहर के दिए जख्म दिखाए.

सांवरी की गोरी पीठ पर नील पड़ा हुआ था. देख कर महेश की रूह कांप गई. वह उठा और अपनी अटैची से एक मरहम निकाल कर सांवरी के नील पर मलने लगा.

पहले तो सांवरी डर के मारे पीछे को हट गई, पर महेश ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज मत रोकना. अपने जख्मों पर मुझे मरहम लगाने दो.’’

सांवरी की आंखों में आंसू आ गए. वह कुछ नहीं बोली. महेश बड़े इतमीनान से सांवरी की पीठ सहलाता हुआ मरहम लगा रहा था. सांवरी का बदन गरम होने लगा. उस ने महेश का एक हाथ कस कर पकड़ लिया.

महेश ने मरहम लगा कर सांवरी के चेहरे पर नजर डाली. सांवरी ने आंखें बंद कर लीं. महेश ने उस के होंठ चूम लिए. सांवरी की सांसें तेज हो गईं.

महेश सांवरी को अपने बिस्तर पर ले गया और उसे देह सुख दिया. आज कई महीनों के बाद सांवरी को मर्द का प्यार मिला था. उस ने महेश को कस कर जकड़ लिया.

इस के बाद जब भी मौका मिलता, महेश सांवरी के जिस्म और मन पर पड़े नील पर अपने प्यार की मरहम लगाने लगा.

इसी बीच मनोहर को शराब पीने के साथसाथ जुआ खेलने की भी आदत पड़ गई थी. एक रात वह नशे में चूर हो कर घर आया और आते ही सांवरी पर बरस गया, ‘‘तेरा पति एकएक पाई को मुहताज है और तुझे जरा सा भी फर्क नहीं पड़ता. कैसी जोरू है तू, जिसे अपने मर्द की जरा सी भी परवाह नहीं है.

‘‘मेरे ऊपर 15,000 रुपए का कर्ज चढ़ गया है. सोचा था, जुए में लंबा हाथ मारूंगा, पर मैं तो अपना ईरिकशा ही गिरवी रख आया. अगर पैसे नहीं चुकाए, तो सब बरबाद हो जाएगा.’’

इतना सुनते ही सांवरी ने अपना माथा पकड़ लिया. उसे लगा कि आज तो उस की जिंदगी ही तबाह हो गई है. फिर भी उस ने मनोहर को समझाया, ‘‘चिंता मत करो. मैं कुछ सोचती हूं.’’

मनोहर नशे में भूल गया था कि सांवरी उस की ब्याहता है. वह अपनी मर्दानगी पर चोट समझ कर बोला, ‘‘अब तू मेरा कर्ज उतारेगी… किस का बिस्तर गरम कर के पैसे लाएगी… बता?’’

सांवरी को उम्मीद नहीं थी कि मनोहर ऐसी बात करेगा. उसे महेश याद आ गया, जो उस की जरूरत पूरी करता था. उसे इनसान समझता था और उस के प्यार की कदर करता था.

अगले दिन सांवरी जब महेश से मिली, तो उस के सीने से लग कर रोने लगी और बोली, ‘‘मुझे 15,000 रुपए चाहिए. मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. बताओ, किस घर में चोरी करूं या डाका डालूं…’’

महेश ने सांवरी के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे बिस्तर पर ले गया. आज महेश ने सांवरी को जीभर कर प्यार किया. उस का अंगअंग चूम लिया. सांवरी ने भी महेश का खूब साथ दिया और अपने जिस्म की प्यास बुझाई.

जब वे दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर पड़े थे, तब सांवरी बोली, ‘‘तेरे पास बीड़ी है? बड़ा मन है पीने का.’’

महेश ने एक बीड़ी सुलगा कर सांवरी को दे दी और सारी बात जान कर बोला, ‘‘तुम इतने कम समय में रुपयों का इंतजाम कैसे करोगी? मेरे पास भी ज्यादा पैसे नहीं है.’’

सांवरी ने कहा, ‘‘क्यों न किसी का बच्चा चुरा कर बेच दें. ढेर सारे पैसे मिल जाएंगे. फिर मेरी नरक जैसी जिंदगी में सुख ही सुख होगा.’’

‘‘कैसे भला? तुम किसी मासूम की जिंदगी क्यों खराब करना चाहती हो?’’ महेश ने पूछा.

‘‘मैं ने ठान लिया है. जल्दी ही मैं किसी का बच्चा चुरा कर पैसे का जुगाड़ कर लूंगी.’’

‘‘तुझे जरा भी फर्क नहीं पड़ेगा?’’ महेश ने हैरान हो कर पूछा.

बीड़ी पीती सांवरी ने कहा, ‘‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरा पति शराबी है. रोज शराब के लिए पैसे मांगता है. न दूं, तो देह तोड़ देता है. हमारे देश में इतनी गरीबी और आबादी है कि हर किसी भिखारी का बच्चा चोरी हो जाए, तो पुलिस के पास टाइम नहीं है कि उसे ढूंढ़े.

‘‘मांबाप भी थोड़े दिन रो कर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि बच्चा जिंदा तो है. अगर किसी सही आदमी के पल्ले पड़ गया तो उस की जिंदगी बन जाएगी. हमारे साथ अगर वह रहता तो नशेड़ी या चोरउचक्का ही बनता.’’

महेश ने कहा, ‘‘सांवरी, किसी का बच्चा चुराना कोई हंसीखेल नहीं है. अभी हाल ही में पुलिस ने बच्चे उठाने वाले गिरोह को पकड़ा है. ये लोग तो पूरी रेकी कर के बच्चा उठाते हैं. तू तो पहली बार ऐसा करने की सोच रही है. अपने पति की शराब पीने की लत और मार से बचने के लिए कोई भी ऐसा कदम मत उठाना कि तुम्हें लेने के देने पड़ जाएं.’’

‘‘किस गिरोह की बात कर रहा है तू?’’ सांवरी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अरे, दिल्ली में पुलिस ने हाल ही में बाल तस्करी के एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है.’’

‘‘क्या है पूरी खबर?’’ सांवरी ने जानना चाहा.

‘‘मैं ने आज सुबह ही अखबार में पढ़ा था कि पुलिस ने 2 बच्चा तस्करों को गिरफ्तार करते हुए 2 बच्चों को बचा लिया. इस गिरोह का परदाफाश होने की वजह से बच्चा चोरी के 3 मामले सुलझा लिए गए, जिसे साल 2023 से साल 2025 के बीच दर्ज किया गया था.

‘‘इस गिरोह के लोग गोद लेने के बहाने बेऔलाद जोड़ों को तस्करी किए गए बच्चों की सप्लाई कर रहे थे. पुलिस उपायुक्त (रेलवे) केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि पिछले साल 17 अक्तूबर को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बच्चा चोरी का एक केस दर्ज होने के बाद जांच शुरू की गई थी.

‘‘एक औरत ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उस के ढाई साल के बेटे का उस समय अपहरण कर लिया गया, जब वह स्टेशन के मेन हाल में सो रही थी. जांच के दौरान सीसीटीवी में एक औरत बच्चे को आटोरिकशा में ले जाती हुई दिखाई दी.’’

‘‘आगे क्या हुआ?’’ सांवरी ने पूछा.

‘‘इस के बाद पुलिस महकमे की अलगअलग टीमों ने आटोरिकशा ड्राइवर का पता लगाया. उस ने पूछताछ के दौरान पक्का किया कि उस ने संदिग्ध को बदरपुरफरीदाबाद टोल गेट के पास छोड़ा था.

‘‘इस केस की जांच करते समय पुलिस को यह भी पता चला कि 31 जुलाई को रेलवे स्टेशन पर टिकट काउंटर के हाल से एक और औरत के 3 साल के बेटे का अपहरण कर लिया गया था. उस केस की जांच के दौरान भी चोरी का एकजैसा पैटर्न दिखा था.

‘‘पुलिस को पता चला कि उसी औरत ने बच्चे का अपहरण किया और उसी जगह पर आटोरिकशा में भाग गई. 21 जनवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक और अपहरण की सूचना मिली. एक औरत के 4 महीने के नवजात को फूड कोर्ट वेटिंग हाल से अपहरण कर लिया गया था.

‘‘जांच के तहत 3 एकजैसे मामलों के साथ पुलिस ने एक टीम बनाई और बड़े पैमाने पर बचाव अभियान शुरू कर दिया.’’

‘‘क्या किया था पुलिस ने?’’ सांवरी ने पूछा.

‘‘पुलिस ने 700 सीसीटीवी कैमरों के फुटेज की जांच की और फोन ट्रैकिंग डाटा के साथ संदिग्ध की गतिविधियों को मैप किया. इस मामले में कामयाबी तब मिली, जब संदिग्ध को रेलवे स्टेशन के मेन गेट से आटोरिकशा में चढ़ते देखा गया.

‘‘गाड़ी के रजिस्ट्रेशन नंबर को ट्रैक किया गया और बदरपुर में जांच की गई. पुलिस टीम ने छापेमारी के बाद संदिग्ध को फरीदाबाद में खोज निकाला और लोगों को हिरासत में लिया.

‘‘डीसीपी ने कहा कि पुलिस टीम ने रेलवे स्टेशन से बच्चों का अपहरण करने वाली एक औरत और उस के पति को पकड़ा. उस औरत का पति सूरज तस्करों और खरीदारों के बीच काम करता था. एक और औरत, जो एक वकील के लिए क्लर्क थी, तस्करी को कानूनी दिखाने के लिए जाली गोद लेने के दस्तावेज तैयार करती थी.

‘‘पुलिस ने बाद में एक फर्जी डाक्टर को भी गिरफ्तार किया, जो 10वीं पास है और गिरोह में काम करता है.’’

‘‘पर, ये लोग काम कैसे करते थे?’’ सांवरी ने पूछा.

‘‘इस गिरोह के हर सदस्य बहुत ही योजना वाले तरीके से काम कर रहे थे. पुलिस ने उन के काम करने के तरीके को साझा करते हुए कहा कि तस्कर बसअड्डे, रेलवे स्टेशनों जैसी भीड़भाड़ वाली सार्वजनिक जगहों से बच्चों को निशाना बनाते थे. मुख्य संदिग्ध ने चुपके से बच्चों का अपहरण किया और बचने के लिए पहले से ही योजना वाले तरीके से भागने के रास्ते का इस्तेमाल किया. इस के बाद में एक दूसरी औरत ने उन के फर्जी कागज बनाए.

‘‘वह औरत बच्चा गोद लेने वाले मांबाप को गुमराह करने का काम करती थी. सूरज पैसे का लेनदेन देखता था. वह अपहरण करने वालों और खरीदारों के बीच दलाल के रूप में काम करता था.

‘‘इस गिरोह ने गिरफ्तारी से बचने के लिए कोड भाषा का इस्तेमाल किया. वे लोग अकसर अपना फोन नंबर बदल लेते थे. खुद को डाक्टर बताने वाली एक औरत ने तस्करी किए गए बच्चों को गलत तरीके से छोड़े गए या नाजायज बताया.

‘‘उस औरत ने अस्पताल में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर के तस्करी किए गए बच्चों को गोद लेने की इच्छा रखने वाले लोगों से मिलवाया. इस के बाद बच्चों को उन बेऔलाद जोड़ों को बेच दिया गया, जिन्हें लगा कि वे कानूनी रूप से बच्चे गोद ले रहे हैं. लेनदेन को कानूनी दिखाने के लिए फर्जी गोद लेने के कागजात, मैडिकल रिकौर्ड और हलफनामे बनाए गए.’’

महेश ने जब यह पूरी खबर सांवरी को सुनाई, तो वह कांप कर रह गई और बोली, ‘‘मैं तो बच्चा चुराना बड़ा आसान काम समझ रही थी. सोचा था कि आराम से बच्चा चुरा कर किसी जरूरतमंद को बेच दूंगी और अपने पति के मुंह पर पैसे मार कर रोजरोज के झगड़े से पिंड छुड़ा लूंगी.’’

‘‘तू गलत सोच रही थी सांवरी. जुर्म की राह जेल तक जाती है. अभी तेरी उम्र ही क्या है. जेल में सड़ने से अच्छा है कि तू कोई और रास्ता देख,’’ महेश सांवरी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘तो मैं क्या करूं? मैं ऐसी नरक जैसी जिंदगी से तंग आ गई हूं. अब मुझ से सहा नहीं जाता,’’ सांवरी रोते हुए बोली.

‘‘तू अपने पति को छोड़ दे और चल मेरे साथ. मैं दिल्ली छोड़ कर हमेशा के लिए अपने गांव जा रहा हूं. यहां की भीड़भाड़ मुझे रास नहीं आ रही. हम दोनों गांव में नई जिंदगी शुरू करेंगे,’’ कहते हुए महेश ने सांवरी का हाथ कस कर पकड़ लिया.

सांवरी को लगा कि महेश ने उसे जुर्म का रास्ता अपनाने से रोक कर उस की जिंदगी को नरक होने से बचा लिया है. उस ने महेश के कंधे पर अपना सिर रख दिया और फैसला कर लिया कि अब वह और नहीं सहेगी और सारी उम्र महेश की बन कर रहेगी.

Family Story : मंगलसूत्र

Family Story : आधी रात गुजर चुकी थी. अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खोला, तो आवाज सुन कर शकुंतला सोते से जाग उठी. थोड़ी देर पहले ही तो उसे नींद आई थी. देखा तो लड़खड़ाता हुआ उमेश कमरे के अंदर दाखिल हो रहा था. उस के पैर जमीन पर सीधे नहीं पड़ रहे थे. उस ने काफी शराब पी रखी थी.

‘‘सौरी शकुंतला, दोस्तों ने जबरदस्ती दारू पिला दी. मैं ने उन्हें काफी मना किया, लेकिन उन सब ने मेरी…’’ अपनी बात पूरी करने से पहले ही नशे की हालत में उमेश बेसुध सा पलंग पर गिर पड़ा.

शकुंतला चुपचाप उमेश की ओर देखती रही. उसे कुछ भी सम झ में नहीं आ रहा था. उमेश को इस हालत में देख कर शकुंतला के भीतर कहीं पत्थर सी जड़ता उभर आई थी. कुछ देर तक शकुंतला जड़वत सी उमेश को बेसुध पड़ा हुआ देखती रही.

कमरे में रजनीगंधा और गुलाब के फूलों की खुशबू फैली हुई थी. विवाहित जोड़े के स्वागत के लिए कमरे की सजावट में कोई कोरकसर नहीं थी. लाल सुर्ख जोड़े में सजीसंवरी शकुंतला पिछले कई घंटों से उमेश का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर पहले ही तो उस की आंख लगी थी.

कितनी सारी बातें शकुंतला ने सोच रखी थीं कहनेसुनने को, पर… शकुंतला ने भरपूर नजर से सोते हुए उमेश की ओर देखा और मन ही मन सोचा, ‘बेचारा उमेश… सच में इस सब में इस की क्या गलती… जरूर इस के दोस्तों ने ही इसे जबरदस्ती दारू पिलाई होगी…’

बेहद सरल स्वभाव की शकुंतला शादी के बाद जब विदा हो कर अपनी ससुराल आई तो किसी भी नई ब्याहता की तरह ही उस की आंखों में भी शादीशुदा जिंदगी के प्रति कुछ सपने थे.

2 कमरे का एक छोटा सा फ्लैट, जिस में शकुंतला की ससुराल वालों के नाम पर, उस की विधवा ननद और शकुंतला का पति उमेश था. उस के सासससुर का देहांत काफी पहले हो चुका था. विधवा ननद प्रतिमा की ससुराल भी पटना में ही थी, लेकिन वह अपने मायके में अपने भाई के पास ही रहती थी.

शकुंतला का पति उमेश किसी प्राइवेट कंपनी में था. ग्रेजुएशन करने के बाद शकुंतला ने अपने कैरियर को ले कर ज्यादा कुछ कभी सोचा नहीं था. उस का सपना भी उस के गांव की सहेलियों की तरह ही एक छोटे से खुशहाल परिवार और एक बेहद प्यार करने वाले पति तक ही सीमित था.

सुबह जैसे ही शकुंतला कमरे से बाहर निकलने को हुई कि उस के कानों में बेहद हलका स्वर सुनाई पड़ा, ‘‘शकुंतला…’’ उस के पास आ कर किसी ने बेहद धीमे से उस के कानों में कहा, तो वह चौंक कर ठिठक गई.

शकुंतला की सहमी हुई सी आंखें उमेश पर ठहर गईं, ‘‘आप…’’

‘‘कल रात के लिए मु झे माफ कर दो,’’ उमेश ने शकुंतला को अपनी बांहों में समेटते हुए कहा.

धीरेधीरे उमेश की सांसों की गरमाहट शकुंतला के पूरे बदन पर फैलने लगी. वह शरमाते हुए वहां से चली गई.

शकुंतला को नाश्ता बनाने में देर हो गई. इस बात पर उमेश काफी नाराज हो गया.

‘‘इस से भूख बरदाश्त नहीं होती. अब जब तुम ने देरी की है, तो इस की नाराजगी भी तुम्हें ही झेलनी होगी,’’ प्रतिमा ने उमेश को कुछ कहने के बजाय शकुंतला को ही हिदायत दे दी.

‘‘कोई बात नहीं. अभी नईनई गृहस्थी है, धीरेधीरे सीख जाएगी,’’ प्रतिमा ने नाश्ते की प्लेट उमेश के आगे कर दी.

धीरेधीरे उमेश हर छोटीबड़ी बात पर शकुंतला को डांटने लगा और जब शकुंतला इन बातों से आहत होती, तो प्रतिमा उसे घरगृहस्थी के तौरतरीके सम झा कर शांत कर देती.

जब कभी हद से ज्यादा बात बिगड़ जाती, तब उमेश से नाराज हो कर शकुंतला उस से कुछ दिन बात नहीं करती थी. तब उमेश कोई न कोई गिफ्ट उसे पकड़ा देता था, अपने किए की उस से माफी भी मांग लेता था और फिर बात आईगई हो जाती थी.

‘‘दोपहर की ट्रेन से मुझे कोलकाता निकलना है. औफिस का कुछ काम है,’’ एक दिन अचानक ही उमेश ने शकुंतला से कहा.

‘‘आप ने पहले से कुछ बताया नहीं, अचानक कोलकाता जाने का प्रोग्राम कैसे बना?’’ शकुंतला ने पूछा.

‘‘तुम ज्यादा सवाल मत पूछो. मेरे साथ सतीश और हरीश भी जा रहे हैं. किसी की भी पत्नी इतने सवाल नहीं पूछती… तुम फटाफट मेरा सामान पैक करो,’’ उमेश ने तेवर दिखाए.

उमेश को कोलकाता गए 3 दिन हो गए थे और उस ने एक बार भी न तो शकुंतला को फोन किया और न ही शकुंतला की किसी भी फोन काल को रिसीव किया, तब हार मान कर शकुंतला ने सतीश को फोन कर दिया.

सतीश ने फोन तो उठाया, पर वह घबराया सा लगा और उस ने तुरंत फोन काट दिया.

शकुंतला को सतीश का यह बरताव कुछ अजीब सा लगा. सतीश के फोन कट करते ही कुछ ही सैकंड के भीतर शकुंतला को उमेश का फोन आया, ‘क्या है? क्यों बारबार फोन कर के परेशान कर रही हो?’

उमेश फोन पर ही शकुंतला पर चिल्ला पड़ा, लेकिन तभी शकुंतला को दूसरी तरफ से किसी लड़की के हंसने की आवाज सुनाई पड़ी.

शकुंतला उमेश से कुछ पूछ पाती, इस से पहले ही उमेश ने फोन कट कर दिया और इस के बाद शकुंतला ने जितने भी फोन किए, उमेश ने किसी का भी रिप्लाई नहीं दिया.

थकहार कर शकुंतला ने हरीश को फोन लगाया. जवाब में उस ने बताया, ‘उमेश मेरे साथ नहीं है. वह सतीश के साथ इस समय सोनागाछी गया हुआ है. सोनागाछी कोलकाता का रैडलाइट एरिया है. वे दोनों हर रात वहीं जाते हैं.’

हरीश से मिली इस जानकारी के बाद शकुंतला ने दोबारा उमेश को फोन किया, पर उमेश का फोन स्विचऔफ था.

अगली सुबह उमेश ने खुद ही शकुंतला को फोन किया. उस ने बताया कि वह तो यहां के एक मंदिर में देवी के दर्शन करने आया है.

लेकिन जब शकुंतला ने उमेश से पिछली रात की हकीकत के बारे में जानना चाहा और हरीश से मिली उस जानकारी पर सवाल किए, तब उमेश गुस्से में शकुंतला के ऊपर फोन पर ही चीखनेचिल्लाने लगा.

‘तुम्हें मु झ पर जरा भी भरोसा नहीं है, तुम उस हरीश की बातों में आ कर मु झ पर झूठा इलजाम लगा रही हो. यह हरीश मु झ से अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने की खातिर तुम्हें बरगला रहा है. वहां आने पर तुम्हें सारी हकीकत बताऊंगा,’ इतना कह कर उमेश ने फोन कट कर दिया.

शकुंतला बेसब्री से उमेश के लौटने का इंतजार करने लगी.

‘‘आज तुम्हारी पटना के लिए ट्रेन थी. तुम कोलकाता से अब तक नहीं लौटे,’’ फोन पर कहते हुए शकुंतला परेशान हो उठी.

‘मैं पटना पहुंच गया हूं, लेकिन रास्ते में हनुमान मंदिर पड़ता है न… तो बिना दर्शन किए कैसे आगे निकल जाता, पूजापाठ करने में ही वक्त निकल गया. तुम चिंता मत करो. मैं बस पहुंच ही रहा हूं.’

2 घंटे बाद वापस शकुंतला ने फोन किया, तो जवाब में उमेश ने कहा, ‘रास्ते में सुनार की दुकान दिख गई.

मु झे याद आया कि तुम्हारे लिए मैं ने झुमके बनाने का और्डर दिया था, वही झुमके जो तुम कितने दिनों से खरीदना चाह रही थी… वही लेने के लिए रुका था कि इतने में तुम्हारा मंगलसूत्र जो टूट गया था, जो बनाने के लिए दिया था, उस दुकानदार का भी फोन आ गया, तो उसे भी लेने आ गया. मैं बस पहुंच ही रहा हूं.’

उमेश जब घर पहुंचा, तो शकुंतला बाहर ड्राइंगरूम में बैठी उस के आने का इंतजार कर रही थी. शकुंतला को कुछ भी पूछने या कहने का मौका दिए बिना ही उस के हाथ में प्रसाद के साथसाथ मंगलसूत्र और झुमके पकड़ा कर उमेश फ्रैश होने चला गया और कुछ देर बाद वह खुद को बेहद थका हुआ बता कर अपने कमरे में आराम करने चला गया.

रात को कमरे में आने के बाद शकुंतला ने वापस उमेश के सामने अपने वही सवाल दोहराए, लेकिन शकुंतला के सवालों का कोई भी सही जवाब दिए बिना उमेश ने उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया.

‘‘तुम्हें तो इस बात का भी एहसास नहीं है कि मैं तुम्हारे लिए मंदिरमंदिर घूमघूम कर किस तरह पूजाअर्चना करता आया हूं. अपने घर की सुखशांति और खुशियों के लिए मन्नत मांगता फिर रहा हूं और तुम हो कि किसी बाहर वाले के बहकावे में आ कर अपनी ही बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ने पर तुली हो…’’

उमेश ने दुखी होने का नाटक किया, ‘‘तुम जानती नहीं हो कि हरीश कैसा आदमी है. वह जलता है मु झ से. उस की अपनी पत्नी तो हर वक्त मायके भागी रहती है, इसीलिए दूसरों की गृहस्थी में आग लगाने की कोशिश करता रहता है.’’

उमेश को इस तरह दुखी होता देख शकुंतला खुद को ही इन सारी बातों का कुसूरवार सम झने लगी.

‘‘शकुंतला, आज मैं तुम्हें ऐसी खबर सुनाने वाला हूं, जिसे सुनते ही तुम खुशी से झूम उठोगी,’’ एक दिन अचानक ही उमेश ने शकुंतला से कहा, ‘‘मु झे मुंबई की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिली है. मैं अगले हफ्ते ही मुंबई जा रहा हूं.’’

शकुंतला हैरानी से उमेश को देखती रह गई, क्योंकि उमेश ने कभी भी शकुंतला से इस बात का जिक्र भी नहीं किया था कि वह नौकरी बदलने की सोच रहा है या वह मुंबई की किसी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा है. अब आज अचानक उसे यह खबर सुनाई जा रही है.

शकुंतला को यह सम झ में नहीं आ रहा था कि वह खुशी जाहिर करे या नाराजगी, क्योंकि उमेश ने अभी तक उस से यह बात छिपा कर रखी थी. अगर उमेश यह बात उसे पहले बता देता, तो भी शकुंतला उस के इस फैसले में कौन सी अड़चन डालने वाली थी, बल्कि उसे तो खुशी होती.

मुंबई जाने से पहले नाटक करते हुए उमेश शकुंतला के गले से लिपट कर रोने लगा कि जैसे उसे शकुंतला को यहां अकेली छोड़ कर जाते हुए बहुत दुख हो रहा हो कि वह जा तो रहा है, पर उस का दिल तो यहां शकुंतला के पास ही रहेगा.

जातेजाते उस ने शकुंतला से कहा कि वह मुंबई में जैसे ही रहने की अच्छी जगह ढूंढ़ लेगा, उसे भी वहीं अपने पास बुला लेगा.

उमेश को विदा करते हुए शकुंतला की आंखें भी नम हो उठीं. उस का दिल भी यह सोच कर बैठा जा रहा था कि वहां मुंबई जैसे बड़े शहर में उमेश का खयाल कौन रखेगा.

खैर, देखतेदेखते समय भी अपनी रफ्तार से बीतता चला गया. पहले कुछ दिन, फिर हफ्ते, फिर महीने, फिर एकएक कर 3 साल का लंबा वक्त निकलता चला गया.

शकुंतला उमेश के आने का इंतजार करती रही और वह हर बार कोई न कोई बहाना बनाता रहा.

शुरू के कुछ महीने तो उमेश अकसर फोन कर के शकुंतला से उस का हालचाल पूछ लिया करता था. लेकिन, जैसेजैसे समय बीतता गया, उमेश का फोन भी आना बंद हो गया… धीरेधीरे घरखर्च के पैसे भी देने बंद कर दिए.

शकुंतला जब पूछती, तब वह अपनी ही मजबूरियों की गठरी उस के आगे खोल देता, अपनी बेचारगी का रोना शकुंतला के आगे वह कुछ इस तरह रोता कि शकुंतला की जबान पर ताले लग जाते.

शकुंतला ने भी धीरेधीरे हार मान कर उस से पैसे मांगने बंद कर दिए. अब वह शकुंतला के फोन का जवाब भी अपनी सुविधा के हिसाब से ही देता. धीरेधीरे उस ने फोन करने भी कम कर दिए. इधर शकुंतला ने भी हालात से सम झौता कर लिया था.

शकुंतला अब कैसे भी कर के उमेश की मदद करने की बात सोचने लगी. खुद के लिए नौकरी ढूंढ़नी शुरू कर दी, ताकि जिस से वह उमेश पर बो झ भी न बने और जरूरत पड़ने पर उस की पैसे से मदद भी कर सके.

शकुंतला ने जगहजगह नौकरी के लिए अर्जी भेजनी शुरू कर दी, लेकिन कुछ चीजों में उस की जानकारी की कमी के चलते उसे नौकरी मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था.

शकुंतला की सब से बड़ी कमी उस के अंदर आत्मविश्वास की थी. इंटरव्यू के दौरान वह बोलने में अटक जाती थी, इसलिए अब वह अपनी ऐसी बहुत सी छोटीछोटी कमियों पर जीत हासिल करने की कोशिश में जुट गई.

सिलाई तो शकुंतला को पहले से आती थी, उस ने पास के ही एक बुटीक में पार्टटाइम नौकरी भी पकड़ ली. उन्हीं पैसों से उस ने पर्सनैलिटी डवलपमैंट का कोर्स किया. साथ ही साथ उस ने प्रोडक्ट मैनेजमैंट का भी कोर्स कर लिया.

एक दिन शकुंतला की खुशी का ठिकाना न था, जब उसे मुंबई की ही एक कंपनी से नौकरी का औफर आया. उस ने सोचा कि नौकरी मिलने की बात फिलहाल वह उमेश को नहीं बताएगी. नौकरी जौइन करने के बाद जब उस के हाथ में पहली तनख्वाह के पैसे आ जाएंगे, फिर वह उमेश को बता कर एकदम से हैरान कर देगी.

मुंबई शहर शकुंतला के लिए बिलकुल नया था. उस ने एक पीजी होस्टल में किराए पर एक कमरा ले लिया और रहने लगी. उस की रूम पार्टनर नीता बहुत ही खूबसूरत और मिलनसार थी. बहुत ही कम समय में वह उस की बैस्ट फ्रैंड बन गई.

शकुंतला को अब इंतजार था तो बस पहले महीने की मिलने वाली उस की सैलरी का, जिसे पाने के बाद वह उमेश के साथ रहने चली जाएगी.

शकुंतला उमेश को परेशान नहीं करना चाहती थी और न ही अपने खर्चे का बो झ उस पर डालना चाहती थी, इसलिए वह अपने पहले महीने की सैलरी मिलने के बाद ही मुंबई पहुंचने की सूचना उमेश को दे कर उस के साथ रहना चाहती थी.

अब जबकि वह भी कमा रही है, तो घर के खर्चे का बो झ दोनों साथ मिल कर उठाएंगे. ऐसे में साथ रहने पर उमेश को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी. यही सोचते हुए वह उमेश से मिलने के दिन गिनती रहती.

‘‘तुम्हारा कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है. मेरा मतलब है कि कल तुम फ्री हो न?’’ शकुंतला के औफिस से आते ही नीता ने अचानक पूछा.

‘‘नहीं, कुछ खास काम नहीं है. वैसे, कल औफिस की छुट्टी है, तो सारा दिन आराम करने की सोची है. लेकिन, तुम बताओ कि ऐसा क्यों पूछ रही हो?’’ शकुंतला नीता के पास आ कर बोली.

‘‘मैं तुम्हें निमंत्रण देना चाह रही थी. कल मेरी रिंग सैरेमनी है. बहुत ज्यादा लोगों को न्योता नहीं दिया है, सिर्फ कुछ खास दोस्तों को ही बुलाया है.

‘‘मम्मीपापा मेरे फैसले के खिलाफ हैं, इसलिए उन्होंने आने से मना कर दिया है. मैं पिछले एक साल से मम्मीपापा को मनाने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन मालूम नहीं कि उन्हें उमेश में क्या खराबी नजर आती है.’’

उमेश का नाम सुन कर शकुंतला एक पल के लिए चौंक गई, फिर उस ने सोचा, ‘एक नाम के कई लोग हो सकते हैं.’

‘‘मैं उमेश से बहुत प्यार करती हूं. उस के बिना मैं जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकती. तुम नहीं जानती शकुंतला कि उमेश कितना अच्छा और नेक है. जब से वह मेरी जिंदगी में आया है, मेरी तो दुनिया ही बदल गई है. सच्चा प्यार क्या होता है, उसी ने मु झे सिखाया है,’’ उमेश के प्यार में दीवानी नीता शकुंतला के सामने उमेश चालीसा पढ़े जा रही थी और शकुंतला चुपचाप उस की बातों को सुन रही थी.

‘‘क्या तुम्हारे पास उमेश की कोई तसवीर है? जरा मैं भी तो देखूं, मेरी प्यारी दोस्त जिस के प्यार में इतनी दीवानी है, वह दिखता कैसा है?’’

‘‘क्यों नहीं, यह देखो,’’ नीता एकएक कर उमेश के साथ वाली बहुत सारी तसवीरें अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन पर शकुंतला को दिखाती चली गई.

शकुंतला अपलक उन तसवीरों को देखती रह गई. उस के लिए यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था. उस के दिल में टीस सी उठने लगी, चेहरा मुरझा गया, आंखों में आंसुओं का सैलाब उतरने लगा, जिसे उस ने बड़े ही जतन से काबू कर लिया.

‘‘नीता, तुम उमेश को कितने समय से जानती हो?’’ शकुंतला ने खुद को संभालते हुए नीता से सवाल पूछा.

‘‘पिछले 2 साल से.’’

‘‘क्या तुम ने उमेश के बारे में भी सबकुछ ठीक से जांचपड़ताल की है. मेरा मतलब है कि वह इनसान कैसा है और उस के परिवार में कौनकौन लोग हैं?’’

‘‘यार शकुंतला, तुम बिलकुल मेरे मम्मीपापा की तरह बातें कर रही हो. प्यार जांचपड़ताल कर के नहीं किया जाता, वह तो बस हो जाता है.

‘‘और रही बात उमेश के बारे में जानने की, तो उमेश ने मु झ से कभी भी कोई बात नहीं छिपाई. यहां तक कि उस ने अपनी पहली शादी के बारे में भी मु झे सबकुछ सचसच बता दिया है कि कैसे उस की पहली पत्नी की मौत शादी के कुछ दिन बाद हो गई.

‘‘बेचारे ने तो शादी का सुख भी नहीं भोगा. अब तुम बताओ, क्या अभी भी मु झे उस की ईमानदारी पर शक करना चाहिए?’’

‘‘नीता, क्या तुम ने उमेश की पहली पत्नी की तसवीर देखी है?’’

‘‘नहीं, इस की जरूरत ही नहीं है. जिस बात से उमेश को तकलीफ पहुंचती हो, वह बात मु झे करना भी पसंद नहीं. प्यार करने वाले जख्मों को भरा करते हैं, उसे कुरेदा नहीं करते.’’

‘‘पर, अगर कभी उमेश की पहली पत्नी अचानक तुम्हारे सामने आ कर खड़ी हो जाए, अगर वह जिंदा हो, उस की मौत ही न हुई हो, फिर तुम क्या करोगी?’’

‘‘यह बात तो मैं मान ही नहीं सकती. ऐसा कभी हो ही नहीं सकता. अगर ऐसा हुआ भी जैसा कि तुम कह रही हो, तब भी मैं उमेश का साथ नहीं छोड़ूंगी. मैं तब भी अपने कदम पीछे नहीं हटाऊंगी. उस की पहली पत्नी को ही पीछे हटना होगा. अगर वह जिंदा थी, तो इतने सालों तक उस ने उमेश की खोजखबर क्यों नहीं ली?

‘‘मैं यही सम झूंगी कि जरूर इस में उमेश की कोई न कोई मजबूरी रही होगी. मैं उमेश से जुदा हो कर जी नहीं सकूंगी.’’

शकुंतला का मन उमेश के प्रति नफरत से भर गया. कैसे उस ने जीतेजी उसे मरा हुआ बता दिया. उस का मन पीड़ा से भर उठा. क्या शादी का बंधन, उस की पवित्रता, उस की मर्यादा को निभाने की, अग्निकुंड के सामने मंत्र उच्चारण के साथ जो वचन लिए गए थे, उन्हें निभाने की जिम्मेदारी सिर्फ उसी की थी?

मंगलसूत्र टूट जाने पर शकुंतला को कितनाकुछ सुनाया था. वह हर वक्त डरती रही कि गलती से भी कहीं मंगलसूत्र उस के गले से निकल कर टूट न जाए, जबकि उमेश ने तो यहां उस के भरोसे, उस के आत्मसम्मान को ही चकनाचूर कर दिया.

क्या उस के आत्मसम्मान की कीमत उस के मंगलसूत्र से भी कम है? क्या इस समाज में मंगलसूत्र, सिंदूर और बिंदी की कीमत किसी औरत के आत्मसम्मान से ज्यादा है?

इस समाज में कितनी ही ऐसी औरतें हैं, जिन के पति उन्हें न तो पूरी तरह अपनाते हैं और न ही आजाद हो कर जीने का हक देते हैं. वे शादीशुदा होते हुए भी अकेले जिंदगी बिताने को मजबूर रहती हैं, जबकि उन के पति उन्हें अकेला छोड़ कर ऐशोआराम की जिंदगी बड़े शान से जी रहे होते हैं. तब यही समाज उन के पतियों से कुछ नहीं कहता. लेकिन, किसी औरत के गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर न पा कर सभी उस की बुराई करने लग जाते हैं.

अगर शकुंतला मुंबई नहीं आई होती, तो वह कभी भी अपने पति उमेश की हकीकत जान ही नहीं पाती. वह तो अकेली सुहागन होने का, शादीशुदा होने का तमगा लटकाए जिंदगी को ढोने के लिए मजबूर कर दी जाती.

शकुंतला कुरसी पर बैठे हुए बहुत देर तक मन ही मन काफीकुछ सोचती रही. उस के सामने ड्रैसिंग टेबल पर लगा हुआ आईना था, जिस पर उस ने पिछले दिन ही अपनी बिंदी उतार कर चिपकाई थी, जो उस की ओर झांक रही थी.

शकुंतला रूमाल से आईने को साफ करने लगी. वह रूमाल को आईने पर तब तक रगड़ती रही, जब तक कि वह बिंदी पूरी तरह निकल नहीं गई.

अगले दिन शकुंतला आत्मविश्वास के साथ रिंग सैरेमनी फंक्शन में नीता के बताए पते पर पहुंच गई. समारोह किसी होटल में था. नीता काफी खुश नजर आ रही थी.

शकुंतला को देखते ही नीता दौड़ कर उस के गले मिली. शकुंतला का हाथ पकड़ कर वह उसे उमेश के पास ले गई और उस का परिचय उमेश से कराते हुए बोली, ‘‘उमेश, यह है मेरी सहेली शकुंतला. यह मुंबई की एक बड़ी कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है.’’

शकुंतला उमेश से ऐसे मिली, जैसे उसे पहली बार देखा हो, जबकि शकुंतला को देख कर उमेश हक्काबक्का रह गया.

शकुंतला उन दोनों के लिए 2 अलगअलग गिफ्ट ले आई थी. वह गिफ्ट दे कर वहां से होस्टल के लिए निकल गई.

नीता के होस्टल पहुंचने से पहले ही शकुंतला होस्टल छोड़ कर कहीं दूसरी जगह शिफ्ट हो गई थी. दूसरी तरफ समारोह खत्म होने के बाद जब उमेश अपने कमरे में अकेला था, तब उस ने शकुंतला का दिया हुआ गिफ्ट खोला. एक बौक्स के अंदर मंगलसूत्र और झुमके के साथ ही उस की लिखी एक चिट्ठी भी थी.

चिट्ठी में शकुंतला ने लिखा था, ‘यह मंगलसूत्र मेरे लिए जंजीर से ज्यादा कुछ नहीं. मैं इस के बो झ से खुद को आजाद कर रही हूं… लेकिन हां, तुम ने अब तक मेरे साथ जोकुछ किया, वह सब नीता के साथ मत करना. वह तुम से बहुत प्यार करती है. कम से कम उस की इस बात की ही इज्जत रखना.

‘मैं ने उसे तुम्हारी कोई भी हकीकत अभी तक नहीं बताई है, नहीं तो प्यार से उस का भरोसा उठ जाता. जिस दिन इस दुनिया में लोगों का प्यार से भरोसा उठ गया, उस दिन यह दुनिया जीने लायक नहीं रहेगी और यह मैं बिलकुल नहीं चाहती…

‘जो धोखा तुम ने मु झे दिया है, वह नीता को कभी मत देना. एक शादीशुदा औरत के लिए उस के पति से मिलने वाली इज्जत और प्यार ही सब से बड़ा सिंगार होता है, उस का सब से कीमती जेवर होता है, जिस की कमी को दुनिया का महंगा से महंगा जेवर भी पूरा नहीं कर सकता.

‘मंगलसूत्र के साथ मैं झुमके भी तुम्हें लौटा रही हूं, जो तुम ने उस दिन अपने उस बड़े से झूठ पर परदा डालने और मेरा विश्वास जीतने के लिए दिए थे. तुम्हें तलाक का नोटिस मैं बहुत जल्दी ही भेज दूंगी.’

शकुंतला की लिखी चिट्ठी को उमेश बारबार पढ़ता रहा. अपने दिल के किसी कोने में आज पहली बार उसे दर्द का एहसास हुआ.

लेखिका – गायत्री ठाकुर

Hindi Story : हैसियत

Hindi Story : ‘‘सौरभ, हम कब तक इस तरह मिलतेजुलते रहेंगे…’’ चंपा से आखिरकार रहा न गया, ‘‘अब हमें जल्दी ही शादी कर लेनी चाहिए.’’

‘‘शादी भी कर लेंगे चंपा,’’ सौरभ बोला, ‘‘पहले हम बीए कर लें.’’

‘‘तुम नहीं जानते हो सौरभ, मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं…’’

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’ हैरानी से सौरभ बोला, ‘‘चलो, अस्पताल जा कर बच्चा गिरा देते हैं.’’

‘‘नहीं सौरभ, यह हमारे प्यार की निशानी है…’’ चंपा बोली, ‘‘मैं बच्चा नहीं गिराना चाहती हूं.’’

‘‘मगर, मैं तुम से शादी नहीं कर सकता,’’ सौरभ ने कहा.

‘‘क्यों नहीं कर सकते? क्या परेशानी हैं तुम्हें?’’ चंपा जरा तेज आवाज में सौरभ से बोली.

‘‘तुम हमारी हैसियत के बराबर नहीं हो,’’ सौरभ बोला.

‘‘जब मैं तुम्हारी हैसियत के बराबर नहीं थी, तब तुम ने क्यों प्यार किया मुझ से…’’ नाराज हो कर चंपा बोली, ‘‘अब तुम्हें शादी तो करनी ही पड़ेगी मुझ से.’’

‘‘शादी करूं और तुम से… किसी और का पाप मुझ पर क्यों डाल रही हो?’’ जब सौरभ ने यह कहा, तब चंपा का गुस्सा भीतर ही भीतर बढ़ गया. वह गुस्से से बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने कि शादी नहीं करोगे? मतलब, तुम्हारा प्यार केवल मेरे जिस्म तक ही था.’’

‘‘हां, यही समझ लो. अब कभी मिलने की कोशिश मत करना,’’ चंपा से इतना कह कर सौरभ गाड़ी में बैठ कर नौ दो ग्यारह हो गया.

चंपा ठगी सी रह गई. जिस सौरभ पर चंपा ने पूरा विश्वास किया, आगे रह कर उस ने प्रेम के अंकुर बोए, उस ने ही उसे धोखा दे दिया.

चंपा और सौरभ एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों एक ही गांव में रहते थे.

सौरभ गांव के एक अमीर किसान अमृतलाल का बेटा था. उस की गांव में ढेर सारी खेती थी. खेती के अलावा अमृतलाल के और भी धंधे थे, जिन्हें वह गुपचुप तरीके से करता था, इसलिए उस के पास काली दौलत भी बहुत थी.

अमृतलाल राजनीति में भी दखल देता था, इसलिए भोपाल तक अमृतलाल की पहचान थी. थाने को भी उस ने अपनी काली दौलत से खरीद लिया था. गांव में उस का दबदबा था. सब लोग उस से डरते भी थे, इसलिए कभी थाने में शिकायत भी नहीं करते थे. जिस थाने में शिकायत की गई, वह उसी थाने को खरीद लेता था.

अमृतलाल का सब से छोटा बेटा सौरभ कालेज में पढ़ रहा था और उस के लिए शहर में ही घर बना दिया था.

चंपा एक गरीब किसान चंपालाल की बेटी थी. उस के पिता के पास थोड़ी सी जमीन थी, उस से उतनी ही पैदावार होती थी, जिस से पेट भर सके, इसलिए कभीकभी वह अमृतलाल के यहां मजदूरी भी करता था.

जब चंपा ने हायर सैकेंडरी का इम्तिहान अच्छे नंबरों से पास किया, तब उस की इच्छी थी कि वह शहर जा कर कालेज में पढ़े. पर उस की मां दुर्गा देवी ने साफसाफ कह दिया था कि कालेज जा कर लड़की को बिगाड़ना नहीं है.

मां का विरोध देख कर पिता ने भी चंपा को कालेज जाने से मना कर दिया था. मगर, उस की जिद ने पिता को पिघला दिया.

जब चंपा का कालेज में एडमिशन हो गया, तब सुबह वह गांव से बस में बैठ कर शहर चली जाती, 2-4 पीरियड पढ़ कर गांव लौट आती.

एक बार चंपा कालेज के दालान में सौरभ से टकरा गई. दोनों की आंखें मिलीं. आंखों ही आंखों में इशारा
हो गया.

वे दोनों ही जानते थे कि एक ही गांव के रहने वाले हैं. दोनों में कब प्यार हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला.

सौरभ चंपा की हर मांग पूरी करने लगा. चंपा भी उस के प्यार में पागल सी हो गई. कभीकभी वह कालेज से सौरभ के बंगले में पहुंच जाती. उस की बांहों में समा जाती. तब सौरभ कहता, ‘‘चंपा, मैं तुझ से ही शादी करूंगा.’’

‘‘सच कह रहे हो न सौरभ?’’ चंपा पूछती, ‘‘तुम मुझे धोखा दे कर जाओगे तो नहीं?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं. यह मेरा वादा है, पक्का वादा है,’’ जब सौरभ बोला, तब जोश में आ कर चंपा ने शहर वाले बंगले में उसे अपना जिस्म सौंप दिया. इसी का नतीजा आज यह हुआ है कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है.

भावुकता भरा कदम चंपा को इतना महंगा पड़ जाएगा, उसे पता नहीं था. आज सौरभ ने शादी करने से मना कर दिया, तब उस को लगा कि वह न घर की रही, न घाट की.

जब इस बात का पता मां और पिता को चलेगा, तब उन के दिल पर क्या बीतेगी. अब वह अपनी मां को कैसे बताए कि उस के पेट में सौरभ का बच्चा पल रहा है. वह प्यार में धोखा खा चुकी है. गांव वाले और रिश्तेदारों को पता चलेगा कि वह कुंआरी मां बन रही है, तब उस के मांबाप की कितनी किरकिरी होगी. क्या वह अपने बच्चे को गिरा दे? गिरा देगी… तब भी सब को यह पता चल ही जाएगा.

इस वजह से आज चंपा दोराहे पर खड़ी थी. आखिर दाई से वह कब तक पेट छिपाए रखेगी… शादी करने का वादा करने के बाद भी सौरभ ने मना कर दिया. प्यार में उस ने धोखा खाया.

कालेज से वापस अपने घर आने के बाद चंपा का मन बेचैन रहा. क्या वह मां को सचसच बता दे? आज नहीं तो कल मां को तो मालूम पड़ ही जाएगा. इस मामले में मांएं तो उड़ती चिडि़या भांप लेती हैं.

‘‘कालेज से आ गई बेटी… खाना खाया?’’ जब मां दुर्गा देवी ने कहा, तब चंपा बोली, ‘‘खाने की इच्छा नहीं है.’’

‘‘तो क्या शहर से खा कर आई है?’’ मां ने जब यह सवाल पूछा, तब चंपा बोली, ‘‘नहीं मां, मुझे तुम से एक बात कहनी है.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘पहले मुझे यह वचन दो कि आप नाराज नहीं होंगी मुझ से,’’ अभी चंपा यह बात कह ही रही थी कि पिता चंपालाल भी आ गया.

तब दुर्गा देवी ने पूछा, ‘‘बोल, क्या कहना चाहती है?’’

‘‘मां, मेरी बात सुन कर तुम बहुत नाराज हो जाओगी, इसलिए कहने में डर रही हूं,’’ जब चंपा ने यह बात कही, तब चंपालाल बोला, ‘‘कह दे, बेझिझक कह दे. तेरी मां नाराज नहीं होगी. क्या कहना चाहती है?’’

‘‘बापू, मुझ से भारी भूल हो गई.’’

‘‘कुछ बताएगी भी, वरना हमें कैसे पता चलेगा… कह दे बेटी, हम नाराज न होंगे,’’ चंपालाल ने कहा.

‘‘बापू, मैं अमृतलाल के बेटे सौरभ से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत प्यार करता है. उस ने मुझ से शादी करने का वादा किया और मैं ने अपना जिस्म उसे सौंप दिया. अब उस का बच्चा मेरे पेट में पल रहा है,’’ अभी चंपा यह बात कह रही थी कि मां दुर्गा देवी बीच में ही गुस्से से उबल पड़ी, ‘‘क्या कहा कि तू पेट से है?… तू ने तो हमारी इज्जत को ही उछाल दिया. आग लगे तेरी जवानी को. मैं ने पहले ही कहा था कि इस करमजली को शहर में पढ़ने मत भेजो. उसी का नतीजा है कि इस के…’’

‘‘चुप रहो दुर्गा, कुछ भी बक देती हो,’’ नाराज हो कर चंपालाल बीच में ही बात काट कर बोला.

‘‘कैसे चुप रहूं…’’ दुर्गा देवी गुस्से से बोली, ‘‘इस ने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी और आप कह रहे हो कि चुप हो जाऊं? मैं तो शहर में कालेज भेजने के खिलाफ थी, मगर आप ने कहां चलने दी मेरी.

‘‘आप की लाड़ली बेटी है न और यह गुल खिला दिया. अब कौन करेगा इस से शादी. इसे सब बदचलन कह कर नकार देंगे.’’

‘‘थोड़ी देर के लिए चुप भी हो जाओ…’’ फिर समझाते हुए चंपालाल बोला, ‘‘अभी मैं अमृतलाल के पास जाता हूं और उस से चंपा के रिश्ते की बात करता हूं.’’

‘‘बापू, वहां जाने से कोई फायदा नहीं. सौरभ ने मुझ से शादी करने से यह कह कर मना कर दिया कि हम गरीबों की हैसियत उन के बराबर नहीं है,’’ जब चंपा ने यह बात कही, तब चंपालाल बोला, ‘‘अरे, हैसियत बता कर वह बच नहीं सकता है. थाने में रपट…’’

‘‘थाने में रपट लिखवाने से कुछ न होगा. वह थाने को भी खरीद लेगा. उस के पास बहुत पैसा है…’’ बीच में ही बात काट कर दुर्गा देवी बोली, ‘‘माना कि थानेदार रपट लिख भी लेगा, मुकदमा चलेगा, तब कहां से लाओगे पैसे? पैसे हैं तुम्हारे पास क्या…’’

‘‘तुम ठीक कहती हो दुर्गा,’’ नरम पड़ते हुए चंपालाल बोला, ‘‘भावुकता में मुझे भी गुस्सा आ गया था… मैं मालिक को जा कर समझा तो सकता हूं.’’

इतना कह कर चंपालाल अमृतलाल की हवेली की ओर बढ़ गया. दुर्गा देवी अब भी चंपा को गालियां दे कर अपनी भड़ास निकाल रही थी.

जब चंपालाल अमृतलाल की हवेली में गया, तब वे अपनी बैठक में ही मिल गए, जो अपने कारिंदों के बीच घिरे हुए थे.

चंपालाल भी उन कारिंदों के बीच जा कर बैठ गया. उसे देख कर कारिंदे उठ कर बाहर चले गए. अब बैठक में दोनों ही अकेले रह गए. तब अमृतलाल बोले, ‘‘आओ चंपालाल, यहां किसलिए आए हो?

‘‘मालिक, मैं बहुत बुरा फंस गया हूं…’’ हाथ जोड़ते हुए चंपालाल बोला, ‘‘आप ही इस समस्या का हल निकाल सकते हैं.’’

‘‘पहले अपनी समस्या बताओ, मेरे हल करने जैसी होगी, तो मैं जरूर करूंगा,’’ अमृतलाल बोले.

‘‘मालिक, आप का बेटा सौरभ और मेरी बेटी चंपा शहर के एक ही कालेज में पढ़ते हैं. उन दोनों में इश्क हो गया. और…’’ बीच के शब्द चंपालाल के गले में ही अटक गए.

‘‘बोलो, रुक क्यों गए चंपालाल?’’ उसे रुकते देख कर अमृतलाल बोले ‘‘मालिक, चंपा के पेट में जो बच्चा पल रहा है, वह छोटे मालिक सौरभ का है,’’ बहुत मुश्किल से चंपालाल यह कह पाया.

‘‘क्या कहा…?’’ आगबबूला हो कर अमृतलाल बोले.

‘‘हां मालिक, मैं यही कहने आया हूं कि चंपा को अपनी बहू बना लो,’’ हाथ जोड़ कर चंपालाल बोला.

‘‘बहू बना लूं. अरे, तू ने कैसे कह दिया कि बहू बना लूं. तेरी लड़की गांव में न जाने किनकिन लड़कों से पैसों के लिए संबंध बनाती है और मेरे बेटे को बदनाम करती है. अब तेरी बेटी पेट से हो गई, तब उस का पाप मेरे होनहार बेटे पर डाल रहा है.

‘‘बहू बना लूं तेरी बेटी को. अपनी हैसियत देखी है. पहले अपनी आवारा लड़की को संभाल… फिर तेरे पास क्या सुबूत है कि उस के पेट में सौरभ का ही बच्चा है?’’

‘‘यह तो डाक्टर की रिपोर्ट बताएगी मालिक?’’ चंपालाल ने जब तेज आवाज में यह बात कही, तब अमृतलाल गुस्से से बोले, ‘‘मतलब, तू मुझे अदालत ले जाएगा.’’

‘‘हां मालिक, जरूरत पड़ी तो ले जाऊंगा,’’ इस समय चंपालाल में न जाने कहां से ताकत आ गई. वह पलभर के लिए रुक कर फिर बोला, ‘‘उस औरत का नाम तो मालूम नहीं है मालिक, मगर अपने नाजायज बच्चे को पिता का नाम देने के लिए वह कोर्ट गई थी. कई साल तक कोर्ट में लड़ी और आखिर में जीत उस की हुई. जानते हो, उस के पिता कौन थे?’’

‘‘मैं नहीं जानता. कौन थे वे?’’ अमृतलाल गुस्से से बोले.

‘‘वे थे भूतपूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत तिवारी.’’

‘‘अच्छा तो, तू मुझे धमकी दे रहा है. नालायक कहीं का,’’ गाली देते हुए अमृतलाल बोले, फिर गुस्से से उठ कर उस की पीठ पर एक लात जमा दी, फिर उसी गुस्से से बोले, ‘‘चला जा यहां से इसी समय. अब अपना मुंह कभी मत दिखाना हरामखोर.’’

चंपालाल ने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा. वह अपनी कमर को सहलाते हुए हवेली से बाहर निकल गया.

चंपालाल ने अमृतलाल से पंगा जरूर ले लिया, मगर वह अब उस का बदला जरूर लेगा. तब उस ने मन ही मन सोचा कि मालिक ने उस से पंगा ले कर अच्छा नहीं किया. इस का नतीजा भुगतना पड़ेगा. जिसजिस ने भी अमृतलाल से पंगा लिया, उस को ठिकाने लगा दिया गया. देवीलाल, सुखराम, करण सिंह इस के उदाहरण हैं.

मगर अब वह कैसे साबित करे कि चंपा के पेट में जो बच्चा पल रहा है, वह सौरभ का है. मगर आज वैज्ञानिक ने इतनी तरक्की कर ली है कि सब पता चल जाता है. तब क्या वह सौरभ के खिलाफ रपट लिखा दे. पुलिस उस से सब पूछ लेगी. मगर कोर्ट में जाने के लिए पैसे चाहिए और पैसा कहां है उस के पास. इन्हीं विचारों ने चंपालाल को परेशान कर रखा था.

जब चंपालाल घर पहुंचा, तब दुर्गा देवी उसी का इंतजार कर रही थी. वह बोली, ‘‘क्या कहा मालिक ने?’’

‘‘वे तो यह मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं कि चंपा के पेट में उन के बेटे का बच्चा पल रहा है. उन्होंने अपनी हैसियत बता दी,’’ निराश भरी आवाज में जब चंपालाल ने जवाब दिया, तब दुर्गा देवी बोली, ‘‘अब क्या होगा? कौन करेगा इस से शादी?’’

‘‘देखो दुर्गा, हम कोर्ट में जा कर इंसाफ मांगेंगे.’’

‘‘मगर, कोर्ट में जाने के लिए पैसा चाहिए. कहां है हमारे पास इतना पैसा…’’ जब दुर्गा देवी ने यह सवाल पूछा, तब कुछ सोच कर चंपालाल बोला, ‘‘इस के सिवा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है. चाहे मकान या खेत भी बेचना पड़े…’’

यह बात आईगई हो गई. कुछ दिन तक वे दोनों सोचते रहे कि थाने में रपट लिखाएं या नहीं, मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए.

इसी बीच एक घटना हो गई. एक रात चंपा को किसी ने अगवा कर लिया. किस ने किया, यह पता नहीं चला.

सुबह होते ही जब चंपा बिस्तर पर नहीं मिली, तब घर में कुहराम मच गया. गांव वाले उसे आसपास टोली बना कर सब जगह ढूंढ़ने निकल गए. 3-4 घंटे ढूंढ़ने के बाद भी चंपा का कहीं पता नहीं चला. तब थाने में रपट लिखा दी गई. पुलिस भी हरकत में आई. उस ने छानबीन की, मगर चंपा का कहीं पता नहीं चला.
2 दिन बाद चंपा की लाश अमृतलाल के कुएं में तैरती पाई गई.

पुलिस ने चंपा की लाश कुएं से बाहर निकाली. उस का पोस्टमार्टम किया गया. डाक्टर ने पोस्टमार्टम की रपट में बताया कि चंपा ने खुदकुशी नहीं की, बल्कि उसे मार कर कुएं में फेंक दिया गया.

तब पुलिस को अमृतलाल पर शक हुआ, मगर वह सुबूत नहीं जुटा पाई. पोस्टमार्टम में यह रिपोर्ट भी थी कि चंपा 2 महीने के पेट से थी. तब गांव वाले खुल कर नहीं, दबी आवाज में यह चर्चा कर रहे थे कि हो न हो, चंपा का खून अमृतलाल के कारिंदों ने ही किया है. मगर, डर के मारे कोई खुल कर सामने नहीं आना चाहता था.

पुलिस जब चंपालाल के घर पर एक बार फिर तलाश करने आई, तब उन्हें वहां चंपा की दस्तखत की गई एक चिट्ठी पुलिस के हाथ लगी. उस का मजमून इस तरह था :

‘मैं जनता कालेज में पढ़ती हूं. बस से रोजाना अपने गांव से अपडाउन करती हूं. कालेज में इसी गांव के अमृतलाल का बेटा सौरभ पढ़ता है. उस ने लालच दे कर पहले मुझे अपने प्रेमजाल में फंसाया. मुझ से शादी करने का वादा किया. तब मैं ने अपना जिस्म उसे सौंप दिया. इस का नतीजा यह हुआ कि मेरे पेट में उस का बच्चा पलने लगा.

‘मैं ने सबकुछ सच बता कर उस से शादी करने की बात कही. तब उस ने मेरे गरीब पिता की हैसियत देख कर मुझ से शादी करने से मना कर दिया.

‘मैं खूब रोईगिड़गिड़ाई, मगर उस पर कोई असर नहीं पड़ा. तब मैं ने अपने पेट से होने की बात अपने गरीब मांबाप को बताई. मेरे गरीब पिता अमृतलाल के पास मुझे अपनी बहू बनाने की बात कहने गए. तब उन्हें लात मार कर भगा दिया गया. तब से मैं भीतर ही भीतर घबरा रही थी कि मेरे गरीब पिता ने अमृतलाल से पंगा लिया.

‘कहीं वह मेरा या मेरे पिता का खून न करवा दे, इस डर से मैं परेशान सी रही. अगर मेरा इन लोगों ने खून कर दिया, तब पिता और मां को कानून में मत घसीटना. मैं बहुत घबराई हुई हूं कि कहीं ये लोग मेरी हत्या न कर दें.’

वह चिट्ठी पढ़ कर पुलिस हरकत में आ गई. शहर जा कर सब से पहले सौरभ को गिरफ्तार किया. इस तरह चिट्ठी ने अपनी हैसियत बता दी.

Hindi Story : बदलाव के कदम

Hindi Story : लक्ष्मण अपनी अंधेरी कोठरी का बल्ब जला कर चारपाई पर लेट गया और कुछ सोचने लगा. कल ही तो लक्ष्मण की शादी है. अब तक कोई भी ठोस इंतजाम नहीं हो सका है. तिलक के दिन भी लक्ष्मण को ही अपने घर के सारे इंतजाम करने पड़े थे. बैंक में जमा रुपए निकाल कर वह अपनी शादी का इंतजाम कर रहा था. उस की इच्छा थी कि कोर्ट में ही शादी कर ले. आलतूफालतू खर्च तो बच जाएंगे, लेकिन लड़की के घर वालों की इच्छा की अनदेखी वह नहीं कर सका. लड़की वाले अपनी तरफ से उस की खातिरदारी में अपनी इच्छा से सबकुछ खर्च कर रहे हैं, तो क्या उस का अपना कोई फर्ज नहीं बनता?

लक्ष्मण के बाबूजी लालधारी इस शादी से खुश नहीं थे. उन का स्वभाव शुरू से ही खराब रहा है, ऐसा नहीं
था. हां, शादी के मुद्दे पर मनमुटाव हुआ है.

लालधारी को इस बात का दुख था कि उन का बेटा लक्ष्मण अपनी बिरादरी की इज्जत का खयाल न कर दूसरी जाति की, वह भी अछूत जाति की लड़की से ब्याह कर रहा है.

प्यारव्यार तो ठीक था, लेकिन शादीब्याह की बात से तो पूरी बिरादरी के लोग लालधारी पर थूथू कर रहे थे. इसे सही और गलत के तराजू पर तौल कर लालधारी लक्ष्मण का पक्ष लिए होते, तब लक्ष्मण इतना दुखी नहीं होता. उसे दुख तो इस बात पर हो रहा था कि वे अपने बेटे के बजाय बिरादरी का ही समर्थन कर रहे थे.

लालधारी को ज्यादा दुख इस बात का था कि इस शादी में दहेज की मोटी रकम नहीं मिल रही थी. उन्होंने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था कि जिस बेटे को एमए की डिगरी दिलाने में उन्होंने एड़ीचोटी एक कर दी, उस के ब्याह में उन्हें फूटी कौड़ी भी हाथ नहीं लगेगी. हताश हो कर वे अपने हाथ मलते रह गए थे. बेटा नासमझ तो था नहीं, जो उसे डांटनेफटकारने के बाद लड़की वाले से मोटी रकम की मांग कर बैठते. सच बात तो यह थी कि लक्ष्मण के आदर्शवादी खयालों से वे नाराज हुए बैठे थे.

एक बार लालधारी ने लक्ष्मण से कहा भी था, ‘‘बेटा, गैरजाति में शादी कर तू ने बिरादरी में मेरी नाक तो कटवा ही दी. अब एक पैसा भी दहेज न लेने की जिद कर के क्यों हाथ आ रहे पैसे को तू ठुकरा रहा है? कुछ नहीं, तो जमीनजायदाद ही लिखवा ले…’’

तब लक्ष्मण एकदम गंभीर हो गया था और फिर तैश में आ कर बोल उठा था, ‘‘बाबूजी, बिरादरी से हमें कोई लेनादेना नहीं है. मैं जाति नहीं, इनसान की इनसानियत की कद्र करता हूं. मेरे ऊपर आप का बहुत अहसान और कर्ज है, लेकिन वह अहसान और कर्ज इतना छोटा नहीं है कि उसे पैसे से चुका दूं.

‘‘आप अपने लक्ष्मण से इज्जत जरूर पा सकेंगे. लेकिन बेटे की शादी के एवज में दानदहेज नहीं. मैं पैसे को ठुकरा नहीं रहा हूं, अपने घर में इज्जत के साथ पैसे को ला रहा हूं. क्या अच्छी बहू किसी पैसे से कम होती है?’’

लक्ष्मण की बातों के चलते पूरी बिरादरी वाले यह सोचसोच कर डर रहे थे कि कहीं यह हवा उन के घर के भीतर भी न घुस जाए, उन का बेटा भी बगावत पर न उतर जाए, गैरजाति की लड़की से प्यार न कर बैठे और फिर लाखों रुपए के दानदहेज से अछूते न रह जाएं.

उसी समय लालधारी से मिलने सरपू और अवधेश आए थे. बातचीत के दौरान लालधारी ने उन से कहा था, ‘‘मैं ने भी तय कर लिया है कि जिस तरह लक्ष्मण की शादी में मुझे एक भी पैसा नहीं मिला है, उसी तरह मैं भी उस की शादी में एक भी पैसा खर्च नहीं करूंगा. देखता हूं, बच्चों को कौन उधार देता है और वह कैसे कर लेता है ब्याह… और हां, सरयू और अवधेश, तुम लोग भी एक पैसा मत देना लक्ष्मण को.’’

‘‘मैं क्यों पैसे दूंगा? कल लक्ष्मण 500 रुपए उधार मांगने के लिए मेरे पास आया था, लेकिन मैं ने साफसाफ कह दिया कि अपने बाबूजी से जा कर मांगने में लाज लगती है क्या?

‘‘बस, इतना सुनना था कि उल्लू जैसा मुंह बना कर वह चला गया. अरे भाई, अब तो उस का मुंह भी बंद हो गया है. उस की शादी न रुक गई, तो फिर देखना.’’

लक्ष्मण का लंगोटिया दोस्त सुरेश मन ही मन मना रहा था कि मेरे दोस्त की यह परेशानी दूर हो जाती, ताकि वह अपनी बात पर अटल रहते हुए अपनी मंजिल को पा सके.

सुरेश को यकीन नहीं हो पा रहा था कि इतने विरोधों और परेशानियों के बावजूद लक्ष्मण और किरण की शादी हो सकेगी. लक्ष्मण और किरण का आकर्षण अनजाने में हुआ था. लक्ष्मण ट्यूशन पढ़ाने हर शाम जाया करता था. पढ़ातेपढ़ाते वह खुद प्रेम का पाठ पढ़ने लगा. दोनों के विचार जब आपसी लगाव का कारण बन गए, तब वे एकदूसरे को पसंद करने लगे.

यह जोड़ी किरण की मां को भी बहुत भली लगी. किरण के बाबूजी तो 2 साल पहले ही इस दुनिया से जा चुके थे, इसलिए सारे फैसले मां को ही लेने थे. वे इस से बढि़या लड़का कहां से ढूंढ़तीं? पढ़ालिखा और समझदार लड़का बैठेबैठे मिला है. फिर जातपांत में क्या रखा है? जमाना बदल रहा है, तो विचारों में भी बदलाव लाना ही चाहिए.

किरण की मां को जब यह लगा कि किरण भी लक्ष्मण से सचमुच प्रेम करती है, तब उन्होंने बातबात में ही बात चला दी थी, ‘‘बेटा, मेरी बेटी तुम्हारी बहुत बड़ाई किया करती है. अगर तुम्हें मेरी बेटी पसंद हो, तो मैं उस की शादी तुम से करने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘मांजी, मैं खुद ऐसी ही बात आप के सामने कहने वाला था. जल्दी ही किरण से शादी कर के आप को भरोसा दिला दूंगा कि मेरा प्यार झूठा नहीं है.’’

‘‘लेकिन, अगर तुम्हारे बाबूजी इस शादी के खिलाफ हुए, तब तुम क्या करोगे बेटा?’’ अपना शक सामने रखते हुए किरण की मां बोलीं.

‘‘उन के खिलाफ भी कदम बढ़ाने की मेरी पूरी कोशिश रहेगी.’’

‘‘लेकिन, दहेज के रूप में मैं…’’

‘‘दहेज का नाम न लीजिए मांजी. मुझे दहेज से सख्त नफरत है. न जाने कितनी मासूम जानें ली हैं इस दहेज के नाग ने.’’

किरण की मां लक्ष्मण से बहुत खुश हो चुकी थीं. उन्होंने सोचा, ‘एमए पास है ही, 4-5 ट्यूशन कर लेता है. अभी नौकरी नहीं करता है तो क्या? मेहनती लड़का है, कुछ न कुछ तो करेगा ही. इसलिए जल्दी ही उस की नौकरी भी लग जाएगी.’

लक्ष्मण का दोस्त सुरेश भी किरण के घर पर आनेजाने लगा था. किरण से बातचीत भी किया करता था. उसे लगा कि सचमुच, लक्ष्मण के लिए यह खुशी की बात है कि इतनी विचारवान, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की के दिल पर उस ने अधिकार प्राप्त कर लिया है.

लक्ष्मण अब तक इसी सोच में था कि आखिर वह बिना दहेज लिए कहां से इतने पैसों का इंतजाम करे कि किरण के घर वालों की इज्जत कर सके और अपने दोस्तों का खयाल भी रख सके.

अचानक उसे उपाय सूझा. उस ने सोचा, आखिर इतने दोस्त कब साथ देंगे? अबू, रवींद्र, श्यामल, देवनाथ और सुरेश. सभी अपने ही तो हैं. क्यों न उन्हीं लोगों से कुछ रुपए उधार ले लूं?

उस ने उदास मन में भी आस का दीप जलाए रखा था. उसे पूरा यकीन था कि उस के दोस्त इस मौके पर उस का साथ जरूर देंगे.

आज सुरेश को लग रहा था कि लक्ष्मण जोकुछ कर रहा है, अपनी नैतिकता के कारण. इसी के आगे लक्ष्मण ने अपने बाप से भी मुंह मोड़ लिया है. उस की जाति के लोग उस पर थूथू कर रहे हैं, तिरछी नजर से देख रहे हैं. फिर भी लक्ष्मण के चेहरे पर खुशी के बादल ही मंडरा रहे हैं. उस के दिल को इस बात पर तसल्ली मिलती है कि दहेज न ले कर और अछूत कही जाने वाली जाति की लड़की से शादी करने का फैसला ले कर वह अपने सामाजिक फर्ज को निभा रहा है. आखिर गलत परंपरा को तोड़ कर नई परंपरा को अपनाने में बुराई ही क्या है?

आखिर इस नई परंपरा को अपनाने में मदद करने के लिए लक्ष्मण को मुंह खोलना ही पड़ा. मुंह खोलने भर की देर थी, उस के दोस्तों ने अपनीअपनी पहुंच के मुताबिक दिल खोल कर लक्ष्मण को मदद दी.

इसी का यह फल था कि लक्ष्मण की शादी धूमधाम से हो रही थी. बेकार खर्च नहीं किए जाने के बावजूद बरात में कोई खास कमी नजर नहीं आ रही थी. झाड़बत्ती के खर्च को बचाने के खयाल से शाम के उजाले में ही बरात दरवाजे पर लगा दी गई थी. बरात में अपने ही परिवार के लोग नजर नहीं आ रहे थे. हां, दोस्तों की भीड़ जरूर बरात की शोभा बढ़ा रही थी.

शादी के समय मंडवे में जब लक्ष्मण के पिताजी की उपस्थिति की जरूरत पड़ी, तब समस्या आ पड़ी. उस के बाबूजी तो गुस्से के चलते वहां पर आए ही नहीं थे.

इसी बीच लक्ष्मण के दोस्त देवनाथ ने मंडवे में सामने आ कर लक्ष्मण से कहा, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है लक्ष्मण? जिस लड़के का बाप या भाई जिंदा नहीं रहता, क्या उस की शादी रुक जाती है? मैं बन जाता हूं तुम्हारा बड़ा भाई.’’

यह सुन कर लक्ष्मण गदगद हो उठा. लड़की वालों का भी यही हाल था. सभी सोच रहे थे, ‘‘लड़की के पिता न होने के कारण उपस्थित नहीं हैं और लक्ष्मण के बाबूजी जिंदा हो कर भी अनुपस्थित हैं. क्या फर्क रह जाता है ऐसे मौके पर… जिंदगी और मौत में… अपने और बेगाने में?’’

शादी आखिर हो गई. दूसरे दिन किरण ब्याहता बन कर दुलहन के रूप में लक्ष्मण के घर में आई.

लक्ष्मण की मां के अनुरोध और जिद पर उस के बाप ने कोई विरोध तो नहीं किया, लेकिन मन ही मन अनबन बनी रही.

उस घर में किरण जिंदा दुलहन नहीं, बल्कि निर्जीव गुडि़या बन कर रह गई. किसी ने पूछा नहीं. किसी का भी प्यार उसे न मिला. उस घर में सारे लोगों के होते हुए भी उस के लिए सिर्फ लक्ष्मण ही रह गया था.

कुछ दिनों में ही लक्ष्मण को लगा कि यह घर अपना हो कर भी अपना नहीं है, यहां के लोग अपने हो कर भी बेगाने हैं. इस तरह अपने लोगों के बीच कटकट कर रहने से तो बेहतर है, खुले आकाश के नीचे रह कर जीना.

उस ने किसी से कोई शिकायत नहीं की. वह जानता था कि मांगने से दुश्मनी मिल सकती है, प्यार नहीं मिल सकता.

और फिर एक दिन अपने मन से उस ने उसी शहर में किराए पर 2 कमरे का एक मकान ले लिया. उस में वह किरण के साथ रहने लगा.

किराए के मकान में घुसते ही उसे असली घर जैसा सुख मिला. वहां के पड़ोसी लोगों के साथ भी धीरेधीरे मेलजोल बढ़ गया. तब वे आपस में घुलमिल गए.

लेकिन अभी भी उसे किनारा नजदीक नजर नहीं आ रहा था. इतना संतोष तो था ही कि दूर है किनारा तो क्या, जिस मंजिल की तलाश थी, उस के बहुत करीब वे बढ़ते जा रहे थे.

कुछ ही दिनों के बाद उन दोनों के दिन फिर गए. लक्ष्मण को अदालत में सहायक के पद पर नौकरी मिल गई. अब वह सोचने लगा, माली तंगी से छुटकारा पा सकेगा और खुशीखुशी जिंदगी का सफर तय कर सकेगा.

लेखक – सिद्धेश्वर

Hindi Story : और झंडा फहरा दिया

Hindi Story : आमंत्रण कार्ड पर छपे ‘समरसता भोज’ के आयोजन की खबर पढ़ कर ठाकुर रसराज सिंह का माथा ठनक गया. आखिर वे उस गांव के मुखिया थे और उन की तूती आज भी बोलती थी. गांव की नई सरपंच ने उन से सलाह लिए बिना यह क्या अनर्थ कर दिया.

गुस्से से लाल हुए जा रहे ठाकुर रसराज सिंह ने अपने सचिव गेंदालाल को बुला कर डांटते हुए कहा, ‘‘क्यों रे गेंदा, पंचायत की सरपंच पगला गई है क्या. हम ठाकुरों और ब्राह्मणों को निचली जाति के लोगों के साथ बिठा कर भोज कराना चाहती है. हमारा धर्म भ्रष्ट करना चाहती है.’’

‘‘ठाकुर साहब, इस में हम कुछ नहीं कर सकते. नई सरपंचन सरकारी फरमान की आड़ ले कर हमें नीचा दिखाना चाह रही है. सरकार छुआछूत मिटाने के लिए गांवगांव ऐसे प्रोग्राम करा रही है और सरकारी अफसर उस का साथ दे रहे हैं,’’ सचिव गेंदालाल ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘तो सुन ले गेंदा ध्यान से, हम ऐसे प्रोग्राम में हरगिज नहीं जाएंगे. इन की यह हिम्मत कि हमारी बराबरी में बैठ कर ये निचली जाति के टटपुंजिए लोग भोजन करेंगे. कोई पूछे तो कह देना कि जरूरी काम के सिलसिले में शहर गए हुए हैं,’’ ठाकुर रसराज सिंह बोले.

ये वही ठाकुर साहब हैं, जो दिन के उजाले में इन दलितों के साथ छुआछूत का बरताव करते हैं और रात के अंधेरे में इन्हीं दलितों की बहनबेटियों को अपने बिस्तर पर सुलाते हैं. पंचायत में सरपंच कोई रहा हो, मरजी इन जैसे दबंगों की ही चलती है.

यही वजह थी कि सरकारी योजनाओं का फायदा इन दबंगों ने जरूरतमंद लोगों को न दिला कर अपने परिवार के लोगों को दिला दिया था. गरीब मजदूर के पास रहने को घर नहीं था, पर प्रधानमंत्री आवास इन दबंगों ने अपने बेटाबहू को अलग परिवार दिखा कर हड़प लिए थे.

श्रद्धा गांव की सरपंच तो बन गई थी, मगर उस के पास हक कुछ नहीं थे. वह सरपंच होने के नाते कुछ करने की सोचती, मगर गांव के मुखियाजी और उन की जीहुजूरी करने वाले लोग श्रद्धा को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ते थे.

उस दिन को श्रद्धा आज तक नहीं भूली है, जिस दिन पंचायत की ग्राम सभा की बैठक थी. पंचायत का सचिव गेंदालाल ठाकुर, उपसरपंच मुन्ना महाराज और कुछ पंच वहां पहले से मौजूद थे. गांव की महिला सरपंच श्रद्धा जैसे ही पंचायत भवन में पहुंची, तो उस ने पाया कि उस के बैठने के लिए कुरसी तक नहीं रखी गई थी.

इधरउधर नजर दौड़ाने के बाद श्रद्धा ने सचिव की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सचिव महोदय, सरपंच के बैठने के लिए कुरसी का इंतजाम नहीं है क्या?’’

इस बात पर ग्राम पंचायत का दबंग सचिव गेंदालाल तुनकते हुए बोला, ‘‘तुम्हें बैठाने के लिए कुरसी नहीं है. बैठना है तो घर से कुरसी ले आओ, नहीं तो कायदे से जमीन पर ही बैठो.’’

तभी उपसरपंच मुन्ना महाराज भी गेंदालाल के साथ सुर मिलाते हुए बोला, ‘‘सरपंचन बाई, यह मत भूलो कि तुम किस जाति की हो, आखिर गांव की मानमर्यादा का ध्यान तो तुम्हें रखना होगा. गांव में आज तक कोई भी निचली जाति का पंडितों और ठाकुरों के सामने बराबरी से नहीं बैठता.’’

‘‘मगर पंडितजी, जनता ने हमें सरपंच बनाया है और संविधान ने हमें यह हक दिया है कि हम सरपंच की कुरसी पर बैठें,’’ श्रद्धा ने अपनी बात रखते हुए कहा.

‘‘जनता ने तुम्हें मजबूरी में सरपंच बनाया है. चुनाव में गांव की सरपंच की कुरसी आरक्षण में तुम्हारी जाति में चली गई,’’ उपसरपंच मुन्ना महाराज बोला.

‘‘तुम अभी नईनई सरपंच बनी हो, इसलिए तुम्हें पता नहीं है. पहले भी सरपंच कोई रहा हो, पंचायत में फैसला तो पंडितों और ठाकुरों का ही चलता रहा है,’’ सचिव गेंदालाल तंबाकू मलते हुए बोला.

आखिर उस दिन सचिव और उपसरपंच की बात सुन कर महिला सरपंच अपमान का घूंट पी कर तो रह गई, मगर पढ़ीलिखी श्रद्धा को यह बात घर कर गई.

श्रद्धा यह सोच कर हैरान थी कि आजादी के इतने साल बाद भी गांव में छुआछूत इस कदर हावी है कि गांव के दबंग दलित सरपंच से जातिगत भेदभाव रखते हैं. ऊंची जाति के ये लोग नहीं चाहते कि जनता द्वारा चुनी गई सरपंच उन की बराबरी में बैठे.

इस मामले को बीते 2 महीने हो गए थे और जब 15 अगस्त को श्रद्धा तिरंगा झंडा फहराने पहुंची, तो उपसरपंच मुन्ना महाराज ने उसे झंडा फहराने से मना कर दिया.

मुन्ना महाराज ने साफ कर दिया कि कई सालों से पंचायत भवन में गांव के मुखिया ठाकुर रसराज सिंह ही झंडा फहराते आए हैं.

रसूख वाले लोगों ने एक सुर में यह फैसला ले लिया और श्रद्धा को बिना झंडा फहराए ही घर वापस आना पड़ा.

श्रद्धा गांव की लड़की जरूर थी, मगर उस ने राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र सब्जैक्ट ले कर अपनी ग्रेजुएशन पूरी की थी और उस की शादी इसी गांव के एक सरकारी टीचर परमलाल से हुई थी.

गांव में जब चुनाव का समय आया, तो निचली जाति के लोगों ने पढ़ीलिखी श्रद्धा को सरपंच पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. ऊंची जाति के लोगों से पूछताछ किए बिना सरपंच की दावेदारी की बात जब गांव के दबंगों को पता चली, तो उन्होंने उन के घर में काम करने वाली नौकरानी का परचा दाखिल करवा दिया. जब सरपंच के लिए चुनाव हुए, तो श्रद्धा को खूब वोट मिले और वह सरपंच बन गई.

पढ़ीलिखी श्रद्धा अपने पति के साथ खुश थी. इस बार गांव में जब सरपंच के चुनाव हुए, तो कुछ लोगों ने परमलाल को ही यह सलाह दी कि वह सरपंच पद के लिए श्रद्धा का परचा दाखिल करा दे.

दरअसल, इस बार पंचायत में सरपंच पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित था और गांव में जो दूसरे घरों की औरतें थीं, वे उतनी पढ़ीलिखी नहीं थीं. ज्यादातर औरतें घूंघट में रहती थीं. गांव में दलित जाति के मर्दों की भी यही सोच थी कि पंचायत का कामकाज देखना दूसरी किसी औरत के बस की बात नहीं है.

परमलाल ने गांव के कुछ अमीर लोगों से भी इस बारे में मशवरा किया, तो उन्होंने यह सोच कर हां कह दी कि सरपंच कोई बने, मरजी चलेगी तो गांव के मुखिया की ही.

परमलाल को गांव के लोग मास्साब कहते थे. उस दिन मास्साब जब अपने स्कूल का झंडा फहराने के बाद घर आए, तो श्रद्धा उतनी खुश नहीं थी. उस के चेहरे पर मायूसी देख कर मास्साब ने अंदाजा लगाया कि शायद सासबहू के बीच कोई कहासुनी हुई होगी.

भोजन करने के बाद रात में बिस्तर पर मनुहार के साथ परमलाल ने पूछा, ‘‘आज तुम्हारा फूल सा चेहरा मुर झाया सा लग रहा है. क्या अम्मां ने कुछ भलाबुरा कह दिया?’’

‘‘जब से गांव की सरपंच बनी हूं, तब से अम्मां ने तो कुछ नहीं कहा, मगर आज पंचायत में मु झे झंडा फहराने का हक भी नहीं मिला. सचिव और उपसरपंच ने मेरी जानबू झ कर बेइज्जती की है,’’ श्रद्धा पूरी कहानी बताते हुए बोली.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आखिर गांव के इन ऊंची जाति वालों से देखा नहीं जा रहा है कि एक दलित जाति की औरत सरपंच बनी बैठी है,’’ परमलाल उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘इन्हें सबक कैसे सिखाएं और संविधान ने हमें जो हक दिया है, वह हमें कैसे मिलेगा?’’ श्रद्धा ने चिंता जताते हुए कहा.

‘‘देखो श्रद्धा, गांव के ये दबंग कानून से नहीं मानते. इन की पहुंच मंत्री तक है, कुछ करेंगे तो पुलिस इन का ही साथ देती है. तुम्हें याद नहीं कि छोटे भाई की शादी में घोड़े पर बैठ कर गांव में फेरी लगाने पर इन्होंने बापू के साथ कितना झगड़ा किया था.’’

‘‘हां, यह बात तो है, पर इन सब को सबक तो सिखाना होगा, तभी हम दलितों का हमारा असली हक मिलेगा,’’ श्रद्धा ने पक्का इरादा करते हुए कहा.

महात्मा गांधी की तमाम कोशिशों के बावजूद गांव में अभी भी छुआछूत है. गांव में ऊंची जाति के लोगों के महल्ले में लगे हैंडपंप का पानी भी दलित जाति के लोगों को पीने की आजादी नहीं है.

गांव के स्कूल में बनने वाले मिड डे मील में केवल दलित जाति के बच्चे ही खाना खाते हैं. घर वालों ने बच्चों को पट्टी पढ़ा दी थी कि निचली जाति के लोगों के साथ बैठ कर भोजन नहीं करना है.

गांव के इन दबंगों को सबक सिखाने के लिए परमलाल ने श्रद्धा से कहा, ‘‘क्यों न हम गांव में 26 जनवरी पर ‘समरसता भोज’ का आयोजन करें, जिस में स्कूल के बच्चे और गांव के सभी लोगों को आमंत्रित करें. तुम जनपद और जिले के अफसरों से मिल कर पंचायत के इस कार्यक्रम की जानकारी दे दो.

‘‘वैसे भी सरकार छुआछूत मिटाने पर जोर दे रही है. ऐसे आयोजन से पंचायत की वाहवाही होगी और हमें पता है कि गांव के दबंग भोज में शामिल होंगे नहीं और तुम्हें झंडा फहराने का मौका मिल जाएगा.’’

श्रद्धा को पति की यह सलाह अच्छी लगी. उस ने जिला और जनपद के अफसरों को इस प्रोग्राम की जानकारी दे कर उन्हें गांव आने का न्योता दिया.

अफसरों की सलाह से 26 जनवरी पर सामूहिक रूप से गांव की साफसफाई के साथ तिरंगा झंडा फहराना और समरसता भोज का आयोजन किया जाना पक्का हुआ था.

आयोजन के आमंत्रण कार्ड छपवा कर गांव के मुखिया और दूसरे लोगों को भी आमंत्रित किया गया.

श्रद्धा ने मुखियाजी के पास जा कर कहा था, ‘‘ठाकुर साहब, आप को ही इस प्रोग्राम में तिरंगा झंडा फहराना है.’’

मुखियाजी ने हामी भर दी, लेकिन सरपंच के जाने के बाद जब आमंत्रण पत्र को ठीक से पढ़ा तो समरसता भोज का प्रोग्राम देख कर उन की भौंहें तन गईं. प्रोग्राम में बड़े अफसर आ रहे थे. लिहाजा, उन्होंने इस का विरोध तो नहीं किया, पर गांव के ऊंची जाति के लोगों को इस प्रोग्राम में जाने से रोक दिया.

तय समय पर जब 26 जनवरी का प्रोग्राम पंचायत में शुरू हुआ, तो सरपंच और गांव के दूसरे लोगों के साथ सड़कों पर सफाई की गई. बड़े अफसर केवल हाथ में झाड़ू ले कर फोटो खिंचवाते नजर आ रहे थे.

प्रोग्राम में गांव के मुखिया ठाकुर साहब और उन के साथी मौजूद नहीं थे. सचिव गेंदालाल सरकारी मुलाजिम होने के चलते वहां पर मौजूद था, मगर उस के चेहरे के हावभाव से साफ जाहिर था कि उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था.

झंडा फहराने से पहले सरपंच श्रद्धा ने सचिव गेंदालाल से पूछा, ‘‘हमारे मुखियाजी दिखाई नहीं दे रहे, फिर झंडा कौन फहराएगा?’’

‘‘मुखियाजी किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं,’’ सचिव गेंदालाल बोला.

‘‘तो फिर देर किस बात की सरपंच महोदया, पंचायत की मुखिया आप हो. झंडा फहराने की जिम्मेदारी भी आप की है,’’ जनपद की एक महिला अफसर ने कहा.

श्रद्धा की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने जोश के साथ तिरंगे झंडे के स्तंभ और गांधीजी की फोटो पर तिलक लगाया और जैसे ही सभी सावधान की मुद्रा में खड़े हुए, तो श्रद्धा ने डोरी खींच कर तिरंगा झंडा फहरा दिया. तिरंगा फहराने से गिरे फूल जमीन पर बिखर गए. भारत माता की जयघोष के साथ राष्ट्रगान का गायन हुआ.

समरसता भोज में सभी लोगों ने एकसाथ कतार में बैठ कर भोजन किया. समरसता भोज में गांव के ऊंची जाति के दबंग शामिल नहीं थे, मगर उन्हें छोड़ कर गांव के सभी लोगों ने भरपेट भोजन किया.

आसमान में लहराते तिरंगे झंडे के साथ श्रद्धा का मन भी आज पूरी तरह उमंग से लहरा रहा था.

Family Story : लक्खू का गृहप्रवेश

Family Story : लक्खू मोची अपनी दुकान पर हर रोज सुबह 7 बजे आ कर बैठ जाता था. वह टूटी हुई चप्पलों और फटे हुए जूतों की मरम्मत करता था. उस की दुकान खूब चलती थी. वह चाहे जूते की पौलिश करता या टूटी चप्पलें बनाता, उस की मेहनत साफ झलकती थी. उस के सधे हुए काम से लोग खुश हो जाते थे.

लक्खू मोची की बीवी अंजू बहुत खूबसूरत थी. उस का रंगरूप मोहक था. वह लक्खू की घरगृहस्थी बखूबी संभाल रही थी. वह 10वीं जमात तक पढ़ी थी, जबकि लक्खू मोची ने तो स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था. वह सिरे से अनपढ़ था. लेकिन शादी के बाद अंजू ने उसे थोड़ाबहुत पढ़नालिखना सिखा दिया था. अब तो वह अखबार भी पढ़ लेता था.

एक दिन औफिस जाने के लिए एक मैडम घर से निकलीं, तो रास्ते में उन की चप्पल टूट गई. वे लक्खू की दुकान पर पहुंचीं और बोलीं, ‘‘लक्खू, जरा जल्दी से मेरी चप्पल की मरम्मत कर दो, नहीं तो दफ्तर के लिए लेट हो जाऊंगी.’’

लक्खू मोची ने उस मैडम की चप्पल की मरम्मत 5 मिनट में कर दी.

‘‘ये लो 10 रुपए लक्खू,’’ उन मैडम ने चप्पल मरम्मत के पैसे दे दिए.

तभी एक साहब आ कर बोले, ‘‘लक्खू, मेरे जूते पौलिश कर दो.’’

लक्खू ने फटाफट ब्रश चला कर जूते पौलिश कर दिए.

‘‘लक्खू, ये लो 25 रुपए,’’ इतना कह कर वे साहब चमकते चूते पहन कर चल दिए.

शाम हो गई थी. लक्खू अपने घर पहुंच गया था. वह चारपाई पर जा कर लेट गया. वह दिनभर की थकान इसी चारपाई पर मिटाता था.

थोड़ी देर में अंजू चाय बना कर ले आई और बोली, ‘‘ये लीजिए, चाय पी लीजिए.’’

लक्खू चारपाई से उठ कर बैठ गया. वह खुश हो कर चाय पीने लगा. अंजू भी उस के पास बैठ कर चाय पीने लगी.

‘‘मकान मालिक को हर महीने किराए की मोटी रकम देनी पड़ती है. क्यों न हम लोग अपना मकान बना लें. इस से किराए का पैसा भी बच जाएगा,’’ अंजू ने लक्खू से कहा.

‘‘हम लोगों के पास इतने रुपए हैं कि अपना मकान बना सकें. मैं रोजाना चप्पलजूते मरम्मत कर तकरीबन 500 रुपए ही कमा पाता हूं. वे सब भी दालरोटी में खर्च हो जाते हैं,’’ कहते हुए लक्खू के चेहरे पर मजबूरी उभर आई थी.

‘‘मैं आप को एक उपाय बताऊं…’’ अंजू ने कहा.

‘‘हांहां, बताओ,’’ लक्खू बोला.

‘‘आप दुकान में नई चप्पलें और नए जूते बेचिए. इस से हमारी आमदनी और बढ़ जाएगी,’’ अंजू ने कहा.

‘‘लेकिन मैं इतनी पूंजी कहां से लाऊंगा?’’ लक्खू ने पूछा.

‘‘आप होलसेल से माल ले आइए. जब बिक्री हो जाए, तो दुकानदार को पैसे दे दीजिएगा,’’ अंजू ने बताया.

‘‘हां, ऐसा हो तो सकता है. आज तो मैं ने मान लिया कि तुम्हारा दिमाग कंप्यूटर की तरह तेज काम करता है,’’ लक्खू ने कहा.

‘‘दिमाग तो लगाना पड़ता है, नहीं तो हम लोग का घर कैसे बनेगा,’’ अंजू ने मुसकरा कर कहा.

रात के 10 बज रहे थे. लक्खू और अंजू बिस्तर पर लेटे हुए थे. थकान से लक्खू को नींद आ रही थी, लेकिन अंजू के दिल में प्यार की उमंगें उठ रही थीं.

‘‘सो गए क्या?’’ अंजू ने लक्खू से पूछा.

‘‘नहीं, पर जल्दी ही सो जाऊंगा,’’ लक्खू ने अलसाई आवाज में कहा.

‘‘ज्यादा नहीं, आप 15 मिनट तो मेरे साथ जागिए,’’ कह कर अंजू ने लक्खू को चूम लिया.

लक्खू अंजू का इशारा समझ गया और बोला, ‘‘अब तो मुझे जागना ही पड़ेगा,’’ कह कर वह अंजू को अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा. उन दोनों पर प्यार का नशा छा गया.

वे एकदूसरे के जिस्म से खेलने लगे. कुछ देर तक प्यार का खेल चलता रहा, फिर थक कर वे दोनों गहरी नींद में सो गए.

अगले दिन लक्खू थोक विक्रेता से जूतेचप्पल ले कर अपनी दुकान में बेचने लगा. जल्दी ही उस की आमदनी बढ़ने लगी.

3 साल में ही लक्खू के पास इतने रुपए हो गए कि उस ने एक नया मकान बना लिया. अंजू और लक्खू का नए मकान का सपना पूरा हुआ था, लेकिन अभी गृहप्रवेश करना बाकी था.

एक सुबह लक्खू अपनी दुकान के लिए जा रहा था कि तभी अंजू ने कहा, ‘‘आप गृहप्रवेश की पूजा के
लिए पंडितजी से बात कीजिए. यह काम जल्द निबट जाए, तो घर का किराया बच जाएगा.’’

‘‘ठीक है, मैं आज ही पंडितजी से बात करता हूं,’’ कह कर लक्खू वहां से चला गया.

पंडितजी कालोनी में पूजा कराते थे. वे लक्खू को रास्ते में ही मिल गए.

‘‘प्रणाम पंडितजी,’’ कह कर लक्खू ने हाथ जोड़े.

‘‘कहो, कोई खास बात है क्या?’’ पंडितजी ने लक्खू से पूछा.

‘‘हां, मुझे गृहप्रवेश की पूजा करानी थी,’’ लक्खू ने कहा.

‘‘अरे लक्खू मोची, तुम ने भी घर बना लिया… चप्पलजूते मरम्मत कर के इतनी तरक्की कर ली,’’ पंडितजी ने हैरान हो कर लक्खू से कहा.

‘‘हां, मेहनतमशक्कत से एकएक पाई जोड़ कर घर बनाया है,’’ लक्खू ने थोड़ी नाराजगी जताई…

‘‘पंडितजी, आप की क्या दानदक्षिणा होगी, बता दीजिए. मुझे 1-2 दिन में पूजा करा लेनी है,’’ लक्खू ने कहा.

‘‘अभी एक यजमान के यहां पूजा कराने जा रहा हूं. कल बता दूंगा,’’ पंडितजी अकड़ कर चले गए.
लक्खू रात में जब घर लौटा, तब अंजू ने पूछा, ‘‘क्या पंडितजी से बात हुई थी? वे दक्षिणा क्या लेंगे?’’

‘‘हां, उन से बात हुई थी. वे दक्षिणा क्या लेंगे, कल बताने को बोले हैं,’’ लक्खू ने कहा.

शाम को पंडितजी घर पर बैठे थे. पंडिताइन भी पास ही बैठी थीं. पंडितजी ने पंडिताइन से लक्खू का जिक्र किया, ‘‘लक्खू मोची के घर का गृहप्रवेश है. मुझे पूजा कराने को बोल रहा था. मैं तो धर्मसंकट में पड़ गया हूं. तुम्हीं बताओ, उस के यहां मैं जाऊं या नहीं?’’

पंडिताइन कुछ सोच कर बोलीं, ‘‘लक्खू मोची है. आप ब्राह्मण हो कर उस के घर पूजा कराने जाएंगे. लोग क्या कहेंगे कि पंडितजी मोची के घर भी पूजा कराने जाते हैं.

‘‘उन के यहां के बरतन कितने गंदे होते हैं. मुझे तो देख कर ही घिन आती है. उन्हीं बरतनों में आप को दहीपूरी और मिठाई का भोग लगाना पड़ेगा.’’

‘‘कोई उपाय बताओ कि मुझे करना क्या होगा?’’ पंडितजी ने पूछा.

‘‘आप को यही करना है कि दूसरे यजमानों से जो दक्षिणा लेते हैं, लक्खू मोची से उस का दोगुना मांगिएगा. वह दक्षिणा का रेट सुन कर भाग जाएगा. इस तरह लक्खू मोची से आप का पिंड छूट जाएगा.’’

पंडितजी को यह उपाय भा गया. उन के होंठों पर कुटिल मुसकान खिल गई.

पंडितजी लक्खू की दुकान पर पहुंचे. उस समय लक्खू खाली बैठा था. पंडितजी को देख कर लक्खू ने हाथ जोड़े और बोला, ‘‘प्रणाम पंडितजी… गृहप्रवेश की पूजा के लिए आप को कितनी दक्षिणा देनी होगी?’’

‘‘दक्षिणा के 1,000 रुपए लगेंगे,’’ पंडितजी ने कहा.

‘‘मुझ से दक्षिणा के 1,000 रुपए क्यों, जबकि दूसरों से तो आप 500 रुपए ही लेते हैं?’’ लक्खू ने पूछा.

‘‘देखो लक्खू, तुम मोची हो. मैं ब्राह्मण हूं. तुम्हारे घर जा कर पूजा करानी है. अपना धर्म भी भ्रष्ट करूं और दोगुनी दक्षिणा भी न लूं,’’ पंडितजी ने कहा.

‘‘अच्छा, तो यह बात है. पंडितजी, आप जातीय जंजाल में जी रहे हैं. पूजापाठ कराना तो आप का ढकोसला है. आप की रगरग में छुआछूत की भावना भरी हुई है.

‘‘मुझे ऐसे पंडितजी से गृहप्रवेश नहीं कराना है. मेरी समझ से आप का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए,’’ लक्खू ने कहा.

‘‘लक्खू मोची, तुम मेरा सामाजिक बहिष्कार करोगे. अधर्मी, पापी. छोटी जाति का आदमी,’’ पंडितजी गुस्से से कांप रहे थे.

लक्खू को भी काफी गुस्सा आ गया. उस ने अपने पैर से जूता निकाल कर पंडितजी को धमकाया, ‘‘जाओ, नहीं तो इसी जूते से चेहरे का हुलिया बिगाड़ दूंगा.’’

लक्खू और पंडितजी लड़नेमरने को तैयार थे. आसपास के लोगों ने बीचबचाव कर के उन दोनों को अलग कर दिया.

लक्खू जब शाम को घर पहुंचा, तब अंजू ने पूछा, ‘‘पंडितजी कल गृहप्रवेश कराने आ रहे हैं न?’’

‘‘नहीं. वे तो कहने लगे कि मोची के घर नहीं जाऊंगा. उन का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा. वे हम लोगों को अछूत मानते हैं,’’ लक्खू ने कहा.

‘‘जाने भी दीजिए. हम लोग नए ढंग से गृहप्रवेश कर लेंगे. ऐसे नालायक पंडित पर निर्भर रहना सरासर बेवकूफी है,’’ अंजू ने कहा.

दूसरे दिन लक्खू और अंजू ने मिल कर नए घर को फूलों की माला से सजा दिया था. अंजू ने पूरी, मटरपनीर की सब्जी और सेंवइयां बनाई थीं.

अंजू ने लक्खू से कहा, ‘‘बगल की बस्ती से गरीब बच्चों को बुला कर ले आइए. उन बच्चों को हम लोग भरपेट भोजन कराएंगे.’’

बस्ती के 8-10 बच्चे पंगत लगा कर बैठ गए थे. पूरी, मटरपनीर की सब्जी व सेंवइयां बच्चों को परोस दी गईं. बच्चों ने छक कर खाया. कुछ बच्चे खापी कर खुशी से नाचनेगाने लगे थे. बच्चों को नाचतेगाते देख कर अंजू और लक्खू बेहद खुश थे.

अंजू और लक्खू का गृहप्रवेश दूसरे से अलग और अनूठा था. अंजू और लक्खू अपने नए घर में खुशीखुशी रहने लगे थे.

इस बात को 2 महीने बीत चुके थे. लक्खू अपनी दुकान पर बैठा था. इतने में पंडितजी अपनी टूटी हुई चप्पल की मरम्मत के लिए लक्खू की दुकान पर आए थे.

‘‘लक्खू, मेरी चप्पल टूट गई है. फटाफट मरम्मत कर दो. मुझे पूजा कराने जाना है,’’ पंडितजी ने कहा.

लक्खू ने पंडितजी को पहचानते हुए कहा, ‘‘आप की चप्पल यहां मरम्मत नहीं होगी. कहीं और जा कर देखिए.’’

‘‘लेकिन, मेरी चप्पल क्यों नहीं मरम्मत होगी?’’ पंडितजी ने पूछा.

लक्खू ने कहा, ‘‘मेरे घर पूजा कराने पर आप का धर्म भ्रष्ट होता है. मेरे हाथ से चप्पल मरम्मत कराने पर क्या आप का धर्म भ्रष्ट नहीं होगा.’’

‘‘बकवास मत करो. जल्दी से मेरी चप्पल मरम्मत कर दो. जो पैसा लेना है, ले लो.’’

‘‘मैं ने कह दिया न कि आप की चप्पल मरम्मत नहीं करूंगा,’’ लक्खू ने कहा.

‘‘लक्खू मोची, घर आई लक्ष्मी को ठुकराना नहीं चाहिए. ग्राहक से ही तुम्हारी रोजीरोटी चलती है,’’ पंडितजी ने थोड़ी खुशामद की.

‘‘मुझे उपदेश मत दीजिए. अपना रास्ता नापिए,’’ कह कर लक्खू एक ग्राहक के जूते में पौलिश करने लगा.

पंडितजी टूटी चप्पल ही पहन कर घिसटते हुए चल दिए. उन को नंदन साहब के यहां पूजा करानी थी. वहां दक्षिणा की मोटी रकम मिलने वाली थी.

चिलचिलाती धूप थी. सड़क पर कोई सवारी नहीं थी. अमूमन रिकशा वाले टैंपो वाले दिख जाते थे, लेकिन इस आफत में सभी गायब थे.

समय बीता जा रहा था. पंडितजी की चिंता बढ़ती जा रही थी. वे मन ही मन लक्खू को कोस रहे थे, ‘लक्खू मोची, तुम ने मुझ से खूब बदला लिया है.’

आखिरकार पंडितजी टूटी चप्पल से पैर घिसटते हुए नंदन साहब के घर पहुंच गए थे. वहां का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए. नंदन साहब कुरसी पर बैठे हुए थे. कोई दूसरे पंडितजी पूजा करा रहे थे.

नंदन साहब का ध्यान पंडितजी पर गया. वे बोले, ‘‘आप बहुत लेट आए हैं.’’

‘‘हां, एक घंटा लेट हो गया. थोड़ी परेशानी में पड़ गया था,’’ पंडितजी ने कहा.

‘‘खैर, कोई बात नहीं. पूजा कराने के लिए बगल के मंदिर से पंडितजी को बुला लिया है. अब तो पूजा भी खत्म होने वाली है. आप की जरूरत नहीं रही. आप जा सकते हैं,’’ नंदन साहब ने बेलौस आवाज में कहा.
ऐसा सुन कर पंडितजी का चेहरा उतर गया. दक्षिणा की मोटी रकम जो हाथ से निकल गई थी.

वे बुदबुदा रहे थे, ‘‘लक्खू मोची, तुझे जिंदगीभर नहीं भूलूंगा. तुम्हारे चलते मेरी इतनी फजीहत हुई है. लेकिन इस के लिए तो मैं खुद भी कम जिम्मेदार नहीं हूं.’’

Family Story : कंफर्म टिकट

Family Story : सुभि को इस बार होली का बेहद बेसब्री से इंतजार था. इस बार उसे कई सालों बाद अपने घर यह त्योहार मनाने जाना था.

सुभि कई महीने पहले से ही होली पर अपने गांव जाने की तैयारी में जुट गई थी. अपने पति राकेश को उस
ने टिकट कराने के लिए बोल दिया था, पर औफिस में ज्यादा काम होने के चलते वह टिकट लेने के लिए जा ही नहीं सका था.

राकेश ने अपने दोस्त रमेश को यह बात बताई. फिर क्या था. रमेश बोला, ‘‘यार, तुम भी कौन सी दुनिया में जी रहे हो…? अब टिकट खरीदने के लिए रेलवे स्टेशन जाना जरूरी नहीं है. यह काम तो यहां बैठेबैठे औनलाइन भी हो सकता है.’’

रमेश ने पलक झपकते ही अपने आईडी पासवर्ड के साथ आईआरसीटीसी की साइट पर पटना जाने की ट्रेन खोजना शुरू कर दिया. पर सूरत से पटना के लिए किसी भी ट्रेन में एक भी सीट खाली नही दिख रही थी. फिर भी कम वेटिंग वाली टिकट राकेश ने अपने और सुभि के लिए बुक करवा दी. उस के कंफर्म होने की उम्मीद ज्यादा थी, ऐसा रमेश ने कहा था.

दिन बीतते जा रहे थे. सुभि अपने गांव जाने की तैयारी में जुटी थी, पर राकेश हर दिन टिकट का वेटिंग चैक करता था, पर वेटिंग संख्या में कोई खास कमी नहीं आई थी और हर बीतते दिन के साथ राकेश की दुविधा बढ़ती जा रही थी. वह सुभि और अपने बच्चे के चेहरे पर छाए जोश को टिकट कंफर्म नहीं होने के चलते खत्म नहीं करना चाहता था. किंतु वह अंदर ही अंदर घुट रहा था. फ्लाइट की टिकट खरीदना उस के बस में नहीं था और रेल के तत्काल के टिकट का भी कोई ठिकाना नहीं था.

जनरल डब्बे का हाल सोच कर ही राकेश के पसीने छूट रहे थे. उसे याद आया, एक बार उस के पिताजी जब बीमार थे, तो वह जनरल डब्बे में ले गया था, तो भीड़ में एक औरत के साथ कितनी बदसुलूकी हुई थी. वह औरत रो रही थी. इस बार वह सुभि और अपने बच्चे के साथ कैसे जाएगा.

राकेश सोचता था कि जिस देश में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बनाई जा रही है, वहां कुछ नई ट्रेन चलाना क्या इतना मुश्किल है? गरीब कम से कम इनसान की तरह बैठ कर तो कहीं आजा सके.

खैर, सफर का दिन आ गया और टिकट को न कंफर्म होना था और न हुई. अब वह परिवार को ले कर स्टेशन पर आ गया. अभी तक उस ने सुभि को टिकट कंफर्म न होने की बात बताई नहीं थी.

अब राकेश स्टेशन आ गया. ट्रेन आने में कुछ मिनट बाकी थे. वह प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर रहा था. इतने में एक आदमी एक ब्रीफकेस ले कर तेज कदमों से भाग कर जा रहा था. उस के हावभाव से लग रहा था कि वह उस ब्रीफकेस को चुरा कर भाग रहा है.

राकेश ने उस आदमी को पकड़ लिया और उसे पकड़ कर उसी दिशा की तरफ जाने लगा, जिधर से वह भागता हुआ आ रहा था.

इतने में 50 साल के एक अमीर आदमी ने राकेश को हाथ दे कर रुकने का इशारा किया. वह रईस आदमी बदहवास सा दिख रहा था. ब्रीफकेस देख कर उस की जान में जान आई.

इतने में एक कांस्टेबल उस चोर को पकड़ कर ले गया, जिसे शायद इस वारदात की सूचना उस अमीर आदमी के असिस्टैंट ने दी थी.

उस सेठ ने राकेश को बहुत धन्यवाद दिया और कहा, ‘‘बेटा, तुम ने मु झे बहुत बड़े नुकसान से बचा लिया. बोलो, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

राकेश बोला, ‘‘बाबूजी, मु झे कुछ नहीं चाहिए.’’

सेठ ने राकेश से कहा, ‘‘तुम शायद मु झे नहीं जानते हो. आओ मेरे साथ.’’

सेठजी राकेश को अपने साथ एसी के वेटिंगरूम में ले गए और बोले, ‘‘मैं सूरत का मशहूर हीरा व्यापारी हूं. मैं पटना जा रहा हूं. प्लेन में स्कैन करने पर हीरों का पता चल जाता, जिस से उन की हिफाजत करना मुश्किल था, इसलिए मैं ट्रेन से पटना जा रहा हूं. वहां के एक बहुत बड़े आदमी को एक हीरे के हार की डिलीवरी देनी है.

‘‘मेरी आंखें एक जौहरी की आंखें हैं, जो कभी धोखा नहीं खा सकतीं. तुम बहुत ईमानदार भी हो और साथ ही परेशान भी हो, इसीलिए तुम्हें मैं ने अपना इतना बड़ा राज बताया. अब जल्दी से अपनी परेशानी बताओ?’’

राकेश सेठजी की बातों से भावुक हो गया और बोला, ‘‘सेठजी, मु झे अपने बीवीबच्चे को पटना ले जाना है.

टिकट कंफर्म नहीं हुआ है, इसीलिए परेशान हूं.’’

सेठ ने कहा, ‘‘भाई, तुम को मैं अपने साथ ऐसी फर्स्ट क्लास में ले कर चलूंगा. तुम चिंता मत करो.’’

सेठजी ने तुरंत ही अपने असिस्टैंट से कहा, ‘‘सुनो, तुम अपनी टिकट मु झे दो और तुम फ्लाइट ले कर सूरत से पटना आ जाना. मेरे साथ राकेश और उस का परिवार जाएगा. और हां, इन का टिकट जनरल क्लास का है, तो टीटी से बात कर के जो भी जुर्माना भरना हो वह सब देख लेना.’’

राकेश को तो मानो अपने कान पर यकीन ही नहीं हुआ. सेठजी की भी गरीबों के प्रति सोच बदल गई. वे सोचने लगे कि जैसे हीरा कोयले की खदान से निकलता है, वैसे ही कभीकभी जनरल डब्बे में सफर करने वाला इनसान इतना बहादुर, होशियार और ईमानदार भी हो सकता है…

इतने में ट्रेन के आने की अनाउंसमैंट हो गई. राकेश सुभि और मुन्ना को ले कर सेठजी के पास आ गया. सेठजी ने उन्हें अपने साथ एसी फर्स्ट क्लास में पटना तक का सफर करा दिया.

Hindi Story : दूसरी भूल – क्या थी अनीता की भूल

Hindi Story : अनीता बाजार से कुछ घरेलू चीजें खरीद कर टैंपू में बैठी हुई घर की ओर आ रही थी. एक जगह पर टैंपू रुका. उस टैंपू में से 4 सवारियां उतरीं और एक सवारी सामने वाली सीट पर आ कर बैठ गई. जैसे ही अनीता की नजर उस सवारी पर पड़ी, तो वह एकदम चौंक गई और उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

इस से पहले कि अनीता कुछ कहती, सामने बैठा हुआ नौजवान, जिस का नाम मनोज था, ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अरे अनीता, तुम?’’

‘‘हां मैं,’’ अनीता ने बड़े ही बेमन से जवाब दिया.

‘‘तुम कैसी हो? आज हम काफी दिन बाद मिल रहे हैं,’’ मनोज के चेहरे पर खुशी तैर रही थी.

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मुझे पता चला था कि यहां इस शहर में तुम्हारी शादी हुई है. जान सकता हूं कि परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे पति, 2 बेटियां और एक बेटा,’’ अनीता बोली.

‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘कार मेकैनिक हैं.’’

‘‘क्या नाम है?’’

‘‘नरेंद्र कुमार’’

‘‘मैं यहां अपनी कंपनी के काम से आया था. अब काम हो चुका है. रात की ट्रेन से वापस चला जाऊंगा,’’ मनोज ने अनीता की ओर देखते हुए कहा, ‘‘घर का पता नहीं बताओगी?’’

‘‘क्या करोगे पता ले कर?’’ अनीता कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘कभी तुम से मिलने आ जाऊंगा.’’

‘‘क्या करोगे मिल कर? देखो मनोज, अब मेरी शादी हो चुकी है और मुझे उम्मीद है कि तुम ने भी शादी कर ली होगी. तुम्हारे घर में भी पत्नी व बच्चे होंगे.’’

‘‘हां, पत्नी और 2 बेटे हैं. तुम मुझे पता बता दो. वैसे, तुम्हारे घर आने का मेरा कोई हक तो नहीं है, पर एक पुराने प्रेमी नहीं, बल्कि एक दोस्त के रूप में आ जाऊंगा किसी दिन.’’

‘‘शिव मंदिर के सामने, जवाहर नगर,’’ अनीता ने कहा.

कुछ देर बाद टैंपू रुका. अनीता टैंपू से उतरने लगी.

‘‘अनीता, अब तो रात को मैं वापस आगरा जा रहा हूं, फिर किसी दिन आऊंगा.’’

अनीता ने कोई जवाब नहीं दिया. घर पहुंच कर उस ने देखा कि उस की बड़ी बेटी कल्पना, छोटी बेटी अल्पना और बेटा कमल कमरे में बैठे हुए स्कूल का काम कर रहे थे.

अनीता ने कल्पना से कहा, ‘‘बेटी, मैं जरा आराम कर रही हूं. सिर में तेज दर्द?है.’’

‘‘मम्मी, आप को डिस्प्रिन की दवा या चाय दूं?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘नहीं बेटी, कुछ नहीं,’’ अनीता ने कहा और दूसरे कमरे में जा कर लेट गई.

अनीता को तकरीबन 11 साल पहले की बातें याद आने लगीं. जब वह 12वीं जमात में पढ़ रही थी. कालेज से छुट्टी होने पर वह एक नौजवान को अपने इंतजार में पाती थी. वह मनोज ही था. उन दोनों का प्यार बढ़ने लगा. अनीता जान चुकी थी कि मनोज किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा है.

मनोज के पिताजी का अपना कारोबार था और अनीता के पिताजी का भी. वे दोनों शादी करना चाहते?थे, पर अनीता के पापा को यह रिश्ता बिलकुल मंजूर नहीं था.

लिहाजा, अनीता और मनोज ने घर से भागने की ठान ली. घर से 50 हजार रुपए नकद व कुछ जेवर ले कर अनीता मनोज के साथ जयपुर जाने वाली ट्रेन में बैठ गई थी.

जयपुर पहुंच कर वे 8-10 दिन होटल में रहे. पता नहीं, पुलिस को कैसे पता चल गया और उन दोनों को पकड़ लिया गया. अनीता के पापा को आगरा से बुलाया गया. मनोज को पुलिस ने नहीं छोड़ा. नाबालिग लड़की को भगाने के अपराध में जेल भेज दिया गया.

पापा को अनीता से बहुत नफरत हो गई थी,क्योंकि उस ने कहना नहीं माना था.अनीता ने आगे पढ़ाई करने को कहा था, पर पापा ने मना कर दिया था और उस की शादी करने की ठान ली थी. उस के लिए रिश्ते ढूंढ़े जाने लगे.

सालभर इधरउधर धक्के खाने के बाद पापा को एक रिश्ता मिल ही गया था. विधुर नरेंद्र की उम्र 35 साल थी. उस की पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी. उस की2 बेटियां थीं. एक 5 साल की और दूसरी 3 साल की.

नरेंद्र एक कार मेकैनिक था. उस की अपनी वर्कशौपथी. पापा ने नरेंद्र से जब शादी की बात की, तो उसे सब सच बता दिया था. नरेंद्र ने सब जान कर भी मना नहीं किया था.अनीता शादी कर के नरेंद्र के घर आ गई थी. अब वह 2 बेटियों की मां बन गई थी.

एक दिन नरेंद्र ने कहा था, ‘देखो अनीता, मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई मतलब नहीं. तुम भी वह सब भुला दो. इस घर में आने का मतलब है कि अब तुम्हें एक नई जिंदगी शुरू करनी है. अब तुम अल्पना और कल्पना की मम्मी हो… तुम्हें इन दोनों को पालना है.’

‘जी हां, मैं ऐसा ही करूंगी. अब कल्पना और अल्पना आप की ही नहीं, मेरी भी बेटियांहैं,’ अनीता ने कहा था.एक साल बाद अनीता ने एक बेटे को जन्म दिया था. बेटा पा कर नरेंद्र बहुत खुश हुआ था. बेटे का नाम कमल रखा गया था.

अनीता नरेंद्र को पति के रूप में पा कर खुश थी और उस ने भी कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. पापामम्मी भी अपना गुस्सा भूल कर अब उस से मिलने आने लगे थे.

आज दोपहर अनीता की अचानक मनोज से मुलाकात हो गई. उसे मनोज को घर का पता नहीं देना चाहिए था. उस के दिल में एक अनजाना सा डर बैठने लगा. वह आंखें बंद किए चुपचाप लेटी रही.

अगले दिन सुबह के तकरीबन 11 बजे अनीता रसोई में खाना तैयार कर रही थी. कालबेल बज उठी. उस ने दरवाजा खोला, तो सामने मनोज खड़ा था.

‘‘तुम…’’ अनीता के मुंह से अचानक ही निकला,’’ तुम तो कह रहे थे कि मैं रात की गाड़ी से आगरा जा रहा हूं.’’

‘‘अनीता, मुझे रात की गाड़ी से ही आगरा जाना था, पर टैंपू में तुम से मिलने के बाद मेरा दिल दोबारा मिलने को बेचैन हो उठा. होटल में रातभर नींद नहीं आई. तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम नहीं जानती अनीता कि मैं आज भी तुम को कितना चाहता हूं,’’ मनोज ने कहा.

अनीता चुपचाप खड़ी रही. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘अनीता, अंदर आने के लिए नहीं कहोगी क्या? मैं तुम से केवल 10 मिनट बातें करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ,’’ न चाहते हुए भी अनीता के मुंह से निकल गया.

कमरे में सोफे पर बैठते हुए मनोज ने इधरउधर देखते हुए पूछा, ‘‘कोई दिखाई नहीं दे रहा है… सभी कहीं गए हैं क्या?’’

‘‘बच्चे स्कूल गए हैं और नरेंद्र वर्कशौप गए हैं,’’ अनीता बोली.

तभी रसोई से गैस पर रखे कुकर से सीटी की आवाज सुनाई दी.

‘‘जो कहना है, जल्दी कहो. मुझे खाना बनाना है.’’

‘‘अनीता, तुम अब पहले से भी ज्यादा खूबसूरत हो गई हो. दिल करताहै कि तुम्हें देखता ही रहूं. क्या तुम्हें जयपुर के होटल के उस कमरे की याद आती है, जहां हम ने रातें गुजारी थीं?’’

‘‘क्या यही कहने के लिए तुम यहां आए हो?’’

‘‘अनीता, मैं तुम्हारे पति को सब बताना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उन्हें क्या बताओगे?’’ अनीता ने घबरा कर पूछा.

‘‘मैं नरेंद्र से कहूंगा कि जयपुर में मैं अकेला ही नहीं था. मेरे 2 दोस्त और भी थे, जिन के साथ अनीता ने खूब मस्ती की थी.’’

‘‘झूठ, बिलकुल झूठ,’’ अनीता गुस्से से चीखी.

‘‘यह झूठ है, पर इसे मैं और तुम ही तो जानते हैं. तुम्हारा पति तो सुनते ही एकदम यकीन कर लेगा,’’ मनोज ने अनीता की ओर देखते हुए कहा.

अनीता ने हाथ जोड़ कर पूछा, ‘‘तुम आखिर चाहते क्या हो?’’

‘‘मैं चाहता हूं कि आज दोपहर बाद तुम मेरे होटल के कमरे में आ जाओ.’’

‘‘नहीं मनोज, मैं नहीं आऊंगी. अब मैं अपनी जिंदगी में जहर नहीं घोलूंगी. नरेंद्र मुझ पर बहुत विश्वास करते हैं.

मैं उन से विश्वासघात नहीं करूंगी,’’ अनीता ने मनोज से घूरते हुए कहा.

‘‘तो ठीक है अनीता, मैं नरेंद्र से मिलने जा रहा हूं वर्कशौप पर,’’ मनोज ने कहा.

‘‘वर्कशौप जाने की जरूरत नहीं है. मैं यहीं आ गया हूं,’’ नरेंद्र की आवाज सुनाई पड़ी.

यह देख अनीता और मनोज बुरी तरह चौंक उठे. अनीता के चेहरे का रंग एकदम पीला पड़ गया.

‘‘यहां क्यों आया है?’’ नरेंद्र ने मनोज को घूरते हुए पूछा, ‘‘तुझे इस घर का पता किस ने दिया?’’

‘‘अनीता ने. कल यह मुझे बाजार में मिली थी,’’ मनोज बोला.अनीता ने घबराते हुए नरेंद्र को पूरी बात बता दी.

‘‘अबे, तुझे अनीता ने पता क्या इसलिए दिया था कि तू घर आए और उसे ब्लैकमेल करे. मैं ने तुम दोनों की बातें सुन ली हैं. अब तू यहां से दफा हो जा. फिर कभी इस घर में आने की कोशिश की, तो पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ नरेंद्र ने मनोज की ओर नफरत से देखते हुए गुस्साई आवाज में कहा. मनोज चुपचाप घर से निकल गया.

अनीता को रुलाई आ गई. वह सुबकते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई, जो मैं ने मनोज को घर का पता दे दिया?था.’’

‘‘हां अनीता, यह तुम्हारी जिंदगी की दूसरी भूल है, जो तुम ने अपने दुश्मन को घर में आने दिया. मनोज तुम्हारा प्रेमी नहीं, बल्कि दुश्मन था. सच्चे प्रेमी कभी भी अपनी प्रेमिका को घर से रुपएगहने वगैरह ले कर भागने को नहीं कहते.’’

अनीता की आंखों से आंसू बहते रहे. नरेंद्र ने उस के चेहरे से आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अनीता, मुझे तुम पर बहुत विश्वास था, पर आज की बातें सुन कर यह विश्वास और बढ़ गया है. वैसे तो मनोज अब यहां नहीं आएगा और अगर आ भी गया, तो मुझे फोन कर देना. मैं उसे पुलिस के हवाले कर दूंगा.’’

नरेंद्र की यह बात सुन कर अनीता के मुंह से केवल इतना ही निकला, ‘‘आप कितने अच्छे हैं…’’

News Story : नामर्द

News Story : 22 साल का राजेश दिल्ली की एक पौश कालोनी साउथ ऐक्सटैंशन में अपने नाना के साथ रहता था. 5 साल पहले राजेश के पापा की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. राजेश की मम्मी देवयानी एकलौती बेटी थीं, तो वे अपने पति की मौत के बाद बेटे राजेश संग अपने मायके आ गई थीं.

देवयानी के पापा सुरेंद्रनाथ काफी अमीर आदमी थी. तकरीबन 100 करोड़ की प्रोपर्टी उन के नाम थी. चूंकि देवयानी और राजेश ही उन के आखिरी सहारे थे, तो उन्होंने अपनी जायदाद नाती के नाम कर दी थी. पर अभी राजेश खुद से पैसे नहीं इस्तेमाल कर सकता था.

राजेश को अपने ननिहाल में सारे सुख हासिल थे, पर उसे पौकेट मनी के नाम पर ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे. नाना का सोचना था कि राजेश पहले अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, फिर उन का कारोबार संभाल ले.

राजेश दिल्ली की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से एमबीए कर रहा था. वहां उस के बारे में सब जानते थे कि वह कितना बड़ा आसामी है. यही वजह थी कि यूनिवर्सिटी की बहुत सी लड़कियां उस पर फिदा थीं, पर उसे तो सारिका से सच्चा इश्क था.

सारिका बहुत खूबसूरत लड़की थी. लंबा कद, भरा बदन, भूरी आंखें, बड़े उभार उसे दिलकश बनाते थे. वह ईस्ट दिल्ली की एक साधारण सी कालोनी में रहती थी.

राजेश भी कम हैंडसम नहीं था. वह पढ़ाई में तेज था और अपने नाना की जायदाद संभालने के काबिल भी था, पर जब उसे मनमुताबिक पैसे नहीं मिलते थे, तब वह कुढ़ जाता था.

एक दिन तो हद ही हो गई थी. सुबह का समय था. राजेश कालेज जाने के लिए तैयार हो रहा था. उस ने अपने नाना से पैसे मांगे, तो उस की मम्मी ने टोक दिया, ‘‘तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. कुछ दिन पहले ही तो तुम्हें पौकेट मनी मिली है. अभी और पैसों की उम्मीद मत रखो.’’

‘‘पर मम्मी, ये सारे पैसे मेरे ही तो हैं. अगर मैं ही इन का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा हूं, तो फिर क्या फायदा…’’ राजेश ने नाराज हो कर कहा.

‘‘पर, वे पैसे तुम ने कमाए नहीं हैं. नाना ने तुम्हारा भविष्य संवारने के लिए अपनी जायदाद तुम्हारे नाम की है, पर इस का यह मतलब नहीं है कि तुम अनापशनाप खर्च करो. अब जल्दी से तैयार हो जाओ, कालेज भी जाना है,’’ मम्मी ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘देवयानी, बेटे से इतना रूखा हो कर बात मत किया करो. गरम खून है. अभी अपना अच्छाबुरा सम झने की सम झ नहीं है,’’ राजेश के कालेज जाने के बाद सुरेंद्रनाथ ने अपनी बेटी को समझाया.

‘‘पापा, आप नहीं जानते हैं. जब से राजेश को पता चला है कि आप ने अपनी सारी जायदाद उस के नाम कर दी है, तब से वह हवा में उड़ने लगा है,’’ देवयानी ने अपनी चिंता जाहिर की.

‘‘चिंता मत करो. राजेश लायक बच्चा है. देरसवेर वह सम झ जाएगा,’’ सुरेंद्रनाथ ने देवयानी को दिलासा देते हुए कहा.

उधर राजेश कालेज तो चला गया था, पर अपनी मम्मी की बातें उस के दिल में अभी भी चुभ रही थीं. लिहाजा, वह कैंटीन में सारिका के साथ कौफी पी रहा था.

‘‘यार, कभीकभी तो मु झे अपनी मम्मी पर इतना ज्यादा गुस्सा आता है कि दर्द से मेरा सिर फटने लगता है. नाना को कोई दिक्कत नहीं है, पर मेरी मम्मी हमेशा मु झे पौकेट मनी के लिए टोक देती हैं. इतनी जायदाद है, पर मु झे देने के नाम पर एक फूटी कौड़ी नहीं निकालतीं. पता नहीं, किस जन्म का बदला ले रही हैं,’’ राजेश ने सारिका से अपना दर्द शेयर किया.

‘‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा,’’ सारिका ने राजेश का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘अरे, कुछ नहीं बदलेगा. जी में तो आता है कि ऐसा कुछ कर दूं कि कल ही सारी जायदाद मुझे मिल जाए,’’ राजेश ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

सारिका बड़ी चालाक थी. उसे पता था कि राजेश अभी अपने आपे में नहीं है. वह तितली की तरह उस के आसपास मंडराती भी इसलिए थी कि राजेश कभी भी अरबपति बन सकता था.

सारिका ने राजेश का हाथ चूमते हुए कहा, ‘‘चलो, आज कालेज से जल्दी निकलते हैं. हम आज होटल में पूरा दिन बिताते हैं. वहां मैं तुम्हारी मसाज कर दूंगी और फिर हम ठंडे दिमाग से इस समस्या का हल निकाल लेंगे.’’

राजेश बोला, ‘‘ठीक है, हम 2 घंटे के बाद अपने पसंदीदा होटल में चलेंगे.’’

ठीक 2 घंटे के बाद राजेश और सारिका एक होटल के कमरे में थे. सारिका आज कहर ढा रही थी. छोटे कपड़ों में उस के उभार राजेश की हवस बढ़ा देते थे.

सारिका और राजेश दोनों बिस्तर पर थे. सारिका उस की हलके हाथों से मसाज कर रही थी. राजेश जोश में आने लगा था. उस ने सारिका को खींच लिया और उसे कपड़ों से आजाद कर दिया. अब मसाज के बजाय सैक्स का खेल शुरू हो गया.

सारिका जानती थी कि लोहा गरम है. उस ने राजेश का भरपूर साथ दिया और उसे तन और मन से शांत कर दिया.

अब वे दोनों बिस्तर पर लेटे हुए थे. सारिका बोली, ‘‘वैसे, तुम्हारे घर वाले इतने कठोर कैसे हो सकते हैं. तुम अपने नाना की जायदाद के एकलौते वारिस हो, फिर भी वे तुम्हें एकएक पैसे के लिए तरसाते हैं.’’

‘‘यार, मु झे गुस्सा तो बहुत आता है, पर मैं कर भी क्या सकता हूं. नाना ने सारी जायदाद मेरे नाम कर रखी है, फिर भी मेरे परिवार वालों की सख्ती की वजह से मु झे इतनी भी पौकेट मनी नहीं मिलती है कि मैं इस भरी जवानी में ऐश कर सकूं. जब 50 साल का हो जाऊंगा, तब क्या ऐसे पैसे का अचार डालूंगा?’’ राजेश ने सारिका के बालों में हाथ फेरते हुए कहा.

सारिका को लगा कि उस का तीर निशाने पर लगा है. वह राजेश के सीने पर अपना सिर रखते हुए बोली, ‘‘मेरे पास एक आइडिया है. पर तुम्हें अपना हक पाने के लिए थोड़ी मर्दानगी दिखानी होगी. एक बार हमारे रास्ते का कांटा निकल जाए, फिर हम दोनों की जिंदगी में बहार ही बहार होगी.’’

‘‘अच्छा, जरा हमें भी बताओ अपना आइडिया. हम भी तो देखें कि इस खूबसूरत जिस्म वाली लड़की के पास एक तेज दिमाग भी है,’’ राजेश ने सारिका की गरदन पर एक चुम्मा लेते हुए कहा.

‘‘तुम्हें अपने नाना को इस बुढ़ापे की जिंदगी से छुटकारा दिलाना होगा.’’

‘‘मतलब…?’’ राजेश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘मतलब यह कि उन्हें इस लोक से परलोक भेजना होगा. जैसे ही बूढ़ा इस तन से जुदा होगा, वैसे ही सारी जायदाद पर तुम्हारा कब्जा हो जाएगा,’’ सारिका ने अपने खुराफाती दिमाग से एक आइडिया फेंका.

यह सुन कर राजेश हैरान रह गया और बोला, ‘‘नशे में हो क्या… मतलब, मैं अपने नाना का खून कर दूं… किसी की जान लेना इतना आसान है क्या… अगर पकड़ा गया, तो सारी जिंदगी जेल में बितानी पड़ेगी. फिर तो हो ली ऐश,’’ राजेश ने बिदकते हुए कहा.

‘‘अगर तुम मेरे कहे मुताबिक चलोगे, तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. बस, तुम उस अमीरजादे नाती वाली गलती मत करना, जिस ने जोश में होश खो दिया और अब कानून के शिकंजे में बुरी तरह फंस चुका है,’’ सारिका ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा.

‘‘कौन सा नाती? तुम किस कांड की बात कर रही हो?’’ राकेश ने फटी आंखों से पूछा.

‘‘यार, तुम भी न… दीनदुनिया की कोई खबर रखते भी हो या नहीं… या फिर मोबाइल फोन में केवल रील्स देखते रहते हो…’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ. बताओ कि मामला क्या है,’’ राजेश ने कहा.

‘‘मामला आंध्र प्रदेश के हैदराबाद का है. वहां 29 साल के एक नौजवान ने अपने 86 साल के बिजनैसमैन नाना की 6 फरवरी, 2025 को हत्या कर दी.’’

‘‘ओह, तो तुम चाहती हो कि मैं भी अपने नाना को टपका दूं?’’ राजेश ने सवाल किया.

‘‘यार, तुम मुझे बीच में मत टोको. पहले पूरी खबर तो सुनो,’’ सारिका ने झुंझलाते हुए कहा.

‘‘अच्छा, सुनाओ अपनी खबर,’’ राजेश ने मुंह पर उंगली रखते हुए कहा.

‘‘उस लड़के के बिजनेसमैन नाना वेलामती चंद्रशेखर 500 करोड़ की जायदाद के मालिक थे. नाती का नाम कीर्ति तेजा था और उस ने अपने नाना पर चाकू से 73 से ज्यादा वार किए.

‘‘पर बाद में पुलिस ने आरोपी कीर्ति तेजा को गिरफ्तार कर लिया और बताया कि हत्या की वजह प्रोपर्टी का झगड़ा है.

‘‘पुलिस के मुताबिक, चाकू से वार करते हुए कीर्ति तेजा कहता रहा, ‘आप ने जायदाद का सही बंटवारा नहीं किया. कोई मु झे इज्जत नहीं दे रहा. मु झे मेरा पैसा दो.’

‘‘इतना ही नहीं, पुलिस ने बताया कि नाना वेलामती चंद्रशेखर सोमजीगुड़ा में अपनी बेटी सरोजिनी देवी के साथ रहते थे. सरोजिनी देवी कीर्ति तेजा की मां हैं. 6 फरवरी की शाम को कीर्ति तेजा अपने नाना से मिलने उन के घर पहुंचा था.

‘‘जब सरोजिनी देवी रसोईघर में कौफी लेने गईं, तो कीर्ति तेजा और वेलामती चंद्रशेखर के बीच प्रोपर्टी के बंटवारे को ले कर तीखी बहस शुरू हो गई. गुस्से में कीर्ति तेजा ने चाकू निकाला और अपने नाना पर ताबड़तोड़ वार कर दिए.

‘‘चीखपुकार सुन कर कीर्ति तेजा की मां सरोजिनी देवी ने बीचबचाव करने की कोशिश की, तो कीर्ति तेजा ने उन पर भी 5-6 बार हमला कर दिया, जिस से वे गंभीर रूप से घायल हो गईं.

‘‘सरोजिनी देवी ने 11 बजे अपने भाइयों को फोन कर के बुलाया. जब 12 बजे तक उन के भाई पहुंचे, तब
तक वेलामती चंद्रशेखर की मौत हो चुकी थी.’’

‘‘इस के बाद पुलिस ने कीर्ति तेजा के साथ क्या किया?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘पुलिस ने 7 फरवरी को मामला दर्ज कर जांच शुरू की. 8 फरवरी को आरोपी कीर्ति तेजा को गिरफ्तार किया गया. पीडि़त के घर के पास ही पंजगुट्टा फ्लाईओवर के पास से आरोपी की गिरफ्तारी हुई.’’

‘‘कीर्ति तेजा क्या जाहिल लड़का था, जो यह कांड कर दिया? कैसी परवरिश पाई थी उस ने?’’
राजेश ने गंभीर लहजे में पूछा.

‘‘कीर्ति तेजा हाल ही में अमेरिका से मास्टर डिगरी पूरी कर हैदराबाद लौटा था. उस ने पुलिस को बताया कि नाना बचपन से ही उस के प्रति भेदभाव वाला बरताव करते थे और अपनी जायदाद के बंटवारे में उसे हिस्सा नहीं दे रहे थे.’’

‘‘वैसे, वेलामती चंद्रशेखर का क्या इतिहास है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘वेलामती चंद्रशेखर वेलजन ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज के मालिक थे. इस की स्थापना साल 1965 में की गई थी. यह कंपनी शिप प्रोडक्शन और उस से जुड़े सभी काम करती है.

‘‘वेलामती चंद्रशेखर की गिनती हैदराबाद के प्रमुख दानदाताओं में होती थी. उन्होंने एलुरु सरकारी अस्पताल में कैंसर और कार्डियोलौजी केंद्र बनवाने के लिए 40 करोड़ रुपए दान किए थे.

‘‘इस के अलावा उन्होंने एलुरु में सर सीआर रेड्डी कालेज को 2 करोड़ रुपए दिए थे. साथ ही, उन्होंने तिरुमला तिरुपति देवस्थानम को 40 करोड़ रुपए दान किए थे.’’

‘‘तो तुम चाहती हो कि मैं भी अपने नाना का खून कर के पुलिस के हत्थे चढ़ जाऊं?’’ राजेश ने बिस्तर से उठते हुए सवाल किया.

‘‘हां, पर ऐसा तरीका अपनाना कि पुलिस को भनक तक न लगे. ऐसा लगे कि तुम्हारे नाना की मौत कुदरती हुई है,’’ सारिका बोली.

‘‘और ऐसा कैसे हो सकता है?’’ राजेश ने सवाल किया.

‘‘तुम अपने नाना को नींद की दवा दे देना और जब वे सो जाएं तो तकिए से उन का दम घोंट देना,’’ सारिका ने अपनी चाल समझाई.

‘‘हम्म, तो यह प्लान है मैडमजी का. इस सब में तुम्हारा क्या फायदा है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘जान, जब तुम्हें पूरी जायदाद मिल जाएगी, तो हम दोनों शादी कर लेंगे और अपने सारे सपने पूरे कर लेंगे,’’ सारिका ने राजेश के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा.

‘‘और अगर मेरा यह प्लान पूरा नहीं हो पाया, तो क्या तब भी तुम मुझ से शादी करोगी?’’ राजेश
ने पूछा.

यह सुन कर सारिका तुनक गई और बोली, ‘‘बिना पैसे के जिंदगी झंड हो जाती है. मु झे तो तुम जैसे अमीरजादे की रानी बन कर रहना है.’’

राजेश ने सारिका की बांहों को झटकते हुए कहा, ‘‘सौरी डार्लिंग, पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है. यह सच है कि मु झे अपने नाना की प्रोपर्टी चाहिए, पर उस के लिए मैं किसी के खून से अपने हाथ रंग लूं, इतना घटिया भी नहीं. मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं.’’

यह सुन कर सारिका अपने असली रंग में आ गई और गुस्सा होते हुए बोली, ‘‘मु झे पता था कि तुम डरपोक हो. डरपोक ही नहीं, नामर्द भी हो. जो लड़का अपनी प्रोपर्टी हासिल करने के लिए मर्दानगी नहीं दिखा सकता, वह क्या मेरे नखरे उठाएगा.’’

‘‘ओह, तो यह है तुम्हारा असली रूप… कालेज में सब मु झे कहते थे कि सारिका से दूर रहो, यह पैसे के लिए तुम्हारा बिस्तर गरम करती है, पर आज तो तुम ने साबित भी कर दिया.

‘‘मैं नामर्द ही सही, पर हत्यारा नहीं हूं. निकल जाओ यहां से. कहीं गुस्से में मैं तुम्हारा ही खून न कर दूं,’’ राजेश गुस्से में तमतमाया.

‘‘नामर्द कहीं का…’’ सारिका ने इतना कहा और पैर पटकते हुए कमरे से बाहर जाने लगी.

‘‘और हां, अपने कपड़े लेती जाना. बिना कपड़ों के बाहर जाओगी, तो तुम्हारी प्राइवेट प्रोपर्टी लोगों को दिख जाएगी,’’ राजेश ने कहा और अपने कपड़े पहनने लगा.

Hindi Story : ठेले वाला

Hindi Story : रमेश अपने परिवार के साथ तीर्थयात्रा पर गए थे. यात्रा के दूसरे दिन उन्हें परेशान देख कर बेटे तन्मय ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘पापा, आप इतना परेशान क्यों नजर आ रहे हैं? आप को पहली बार इतनी चिंता में देख कर मु झे घबराहट हो रही है.

‘‘चेहरे पर हमेशा मुसकान बिखेरने वाले मेरे पापा का यह तनाव भरा चेहरा कुछ अलग ही कहानी कह रहा है. कुछ तो बोलो पापा…’’

बेटे तन्मय के बारबार कहने पर रमेश बोले, ‘‘बेटा, जिंदगी में आज पहली बार मेरा पर्स गायब हुआ है. मु झे याद नहीं कि इस के पहले कभी इस 60 साल की जिंदगी में मेरा पर्स गायब हुआ हो. चिंता तो बनती है न…’’

रमेश के पर्स में तकरीबन 15,000 रुपए थे. यह जान कर परिवार के सभी सदस्य परेशान हो गए. पर्स कहां गायब हुआ होगा? जब इस पर बातचीत हुई, तो यह नतीजा निकला कि रास्ते में रमेश ने जहां अमरूद खरीदे थे, वहीं पर्स गायब हुआ होगा, पर अब तो 100 किलोमीटर आगे आ चुके थे.

बेटे तन्मय ने उस जगह पर जाने की जिद की, तो रमेश ने कहा, ‘‘बेटा, मेरे पर्स में रुपयों के अलावा आधारकार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस और विजिटिंग कार्ड भी थे. अगर पाने वाले की नीयत अच्छी होती, तो विजिटिंग कार्ड से मोबाइल नंबर देख कर अब तक फोन आ गया होता.

‘‘फोन न आने का यह मतलब है कि पाने वाले की मंशा ठीक नहीं है, इसलिए वहां जाने से कोई फायदा नहीं होगा.’’

इस बारे में सब एकमत हो कर आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े. सोमनाथ, पोरबंदर, द्वारका, बेट द्वारका, नागेश्वर जैसी जगहों पर घूम कर लौटते समय वे उसी रास्ते पर आगे बढ़े, जिस रास्ते से आए थे.

रास्ते में रमेश के मन में अनेक तरह के विचार आजा रहे थे. कभी उन के मन में आ रहा था कि इस जन्म में किसी का कुछ भी बिगाड़ा नहीं है, तो उन के पैसे रख कर कोई उन्हें कष्ट क्यों देगा? पर इस बात से वे शांत भी थे कि हो सकता है कि पिछले जन्म में किसी का कुछ कर्ज बाकी रहा हो और अब उस से मुक्ति मिली हो.

कभी वे यह सोचते कि अमरूद वाले की दिनभर की कमाई तकरीबन 1,000 रुपए होती होगी. पर्स मिलने के बाद हो सकता है कि उस ने अमरूद बेचने ही छोड़ दिए हों.

यह सब सोचने में रमेश इतने लीन थे कि उन्हें यह पता नहीं चला कि कब वे उस जगह पर पहुंच गए, जिस जगह उन्हें लग रहा था कि शायद पर्स खोया होगा.

तभी बेटा तन्मय चिल्लाया, ‘‘पापा देखो, वह अमरूद वाला कितनी शान से अमरूद बेच रहा है. पर्स चुराने की उस के चेहरे पर कोई शिकन तक दिखाई नहीं पड़ रही है.’’

कार से उतर कर रमेश जैसे ही अमरूद वाले के सामने पहुंचे, अमरूद वाला उन्हें एकटक देख रहा था.

रमेश ने उस अमरूद वाले से पूछा, ‘‘4 दिन पहले मैं ने आप से अमरूद खरीदे थे. आप के ध्यान में होगा ही…’’

अमरूद वाले ने जवाब दिया, ‘‘बिलकुल मेरे ध्यान में है.’’

‘‘तब तो यह भी ध्यान होगा कि मेरा पर्स आप के ठेले पर छूट गया था.’’

‘‘मेरे ठेले पर आप का पर्स… यहां तो कोई पर्स नहीं छूटा था. हां, जब आप अपनी कार में बैठ रहे थे, तब आप का पर्स नीचे गिरा था और मैं ने आवाज भी लगाई थी, पर आप लोग बिना सुने यहां से चले गए.

‘‘आप का पर्स मेरे पास रखा है. यह लीजिए आप अपना पर्स,’’ कहते हुए ठेले वाले ने रमेश को पर्स सौंप दिया.

खुशी के मारे रमेश यह नहीं सम झ पा रहे थे कि वे ठेले वाले का शुक्रिया कैसे अदा करें. उन्होंने ठेले वाले से पूछा, ‘‘भाई, इस पर्स में मेरा विजिटिंग कार्ड था, जिस में मेरा मोबाइल नंबर था. मु झे अगर फोन कर दिया होता, तो तुम्हारे बारे में मेरे मन में जो तरहतरह के बुरे विचार आ रहे थे, वे तो न आते.’’

रमेश की बात सुन कर वह ठेले वाला बोला, ‘‘साहब, पर्स मेरा नहीं था, तो किस हक से मैं इसे खोलता…’’

ठेले वाले की यह बात सुन कर रमेश और उस के परिवार के सभी सदस्य इतने हैरान हुए, जिस की कल्पना नहीं की जा सकती है. सभी को यही लग रहा था कि ईमानदारी अभी भी जिंदा है.

रमेश ने उस ठेले वाले को 500 रुपए देने चाहे, तो उस ने कहा, ‘‘मैं ने तो सिर्फ अपना फर्ज निभाया है.’’

जब उस ठेले वाले ने पैसे नहीं लिए, तो रमेश ने उस के ठेले पर रख दिए.

वह ठेले वाला बोला, ‘‘ठीक है साहब, ये पैसे मैं पास के सरकारी स्कूल में दे दूंगा और अगर आप एक महीने तक अपना पर्स लेने नहीं आते, तो यह पर्स भी मैं वहीं दे देता.’’

उस ठेले वाले की ईमानदारी से खुश हो कर रमेश ने वहां से कुछ ज्यादा ही अमरूद खरीदे और वहां से चल पड़े. रास्तेभर वे सोचते रहे, ‘काश, दुनिया के लोग इस ठेले वाले की तरह होते तो यह दुनिया कितनी अच्छी होती.’

लेखक – प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ‘रत्नेश’

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