कविता को लगा कि जैसे उस के दाएं हाथ पर कुछ रेंगने लगा है. इस के पहले भी उस के बगल में बैठे दर्शक का पैर 2 बार उस के बाएं घुटने से छू गया था. उस समय तो वह इस ओर कोई ध्यान दिए बिना बड़े ध्यान से परदे पर फिल्म देखती रही, लेकिन अब उसे समझाते देर नहीं लगी कि यह बारबार का छू जाना अचानक नहीं है.

सीट पर बैठा दर्शक शायद कविता की शह पाते ही जोश से भर उठा. उस ने अंधेरे में कविता की ओर देखा, फिर उस की ओर झाकते हुए अपना बायां हाथ उठा कर उस के कंधे पर टिका दिया.

कविता एक अजीब सी सिहरन से भर उठी, जैसे उस पर नशा चढ़ने लगा हो.

कविता शादीशुदा थी. अमीर बाप की बेटी होने के बावजूद उस की शादी के पहले की जिंदगी कीचड़ में खिले कमल की तरह साफसुथरी थी. मांबाप, भाईबहन, यहां तक कि उस की भाभियां भी बड़े मौडर्न खयालों की थीं और क्लब वगैरह में जाती थीं, लेकिन कविता को यह सब कभी अच्छा नहीं लगा.

कविता घर से बहुत कम निकलती थी. पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी होने की वजह से उस का स्कूलकालेज जाना एक मजबूरी थी.

यूनिवर्सिटी का माहौल उसे कभी रास नहीं आया, इसलिए और आगे पढ़ने की इच्छा होते हुए भी उस ने बीए करने के बाद कालेज छोड़ दिया और सारा दिन घर पर ही रहने लगी. कुछ दिन बाद मांबाप ने उस की शादी कर दी थी.

सालभर तक कविता की शादीशुदा जिंदगी बहुत ही अच्छी बीती, लेकिन उस के बाद उस में बदलाव आना शुरू होने लगा.

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