Hindi Short Story: कबीर कहते हैं, ‘कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं, सीस उतारे हाथि धरे, सो पैसे घर माहिं.’ उन सस्ते दिनों में भी आशिक और महबूबा के लिए प्रेम करना खांडे की धार पर चलने के समान था. आम लोग बेशक आशिकों को बेकार आदमी समझते होंगे, जो रातदिन महबूबा की याद में टाइम खोटा करते हैं. आशिकों को मालूम नहीं कि प्रेम करते ही सारा जमाना उन के खिलाफ हो जाता है.
गालिब कहते हैं, ‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.’ जिगर मुरादाबादी ने कहा है, ‘इश्क जब तक न कर चुके रुसवा, आदमी काम का नहीं होता.’ अब कौन सही है और कौन गलत, जवानी की दहलीज पर पांव रखने वाले नवयुवक क्या समझें? ये सब उन पुराने जमाने के शायरों की मिलीजुली साजिश का नतीजा था कि लोग प्रेम से दूर भागने लगे थे. मीरा बोली, ‘जो मैं जानती प्रीत करे दुख होय, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोई.’ फिर वही जमाना पलट आया है, जब बच्चों को इस नामुराद इश्क के कीड़े से दूर रहने की सलाह दी जाती है. तभी तो आज फिल्मों में गाने भी इस तरह के आ रहे हैं जैसे, ‘प्यार तू ने क्या किया’, ‘इस दिल ने किया है निकम्मा’, ‘कमबख्त इश्क है जो’.
एक कवि कहता है, ‘प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए.’ दो का अर्थ है 2 रकीब, जो एक ही महबूबा को एक ही समय में एकसाथ लाइन मारते हैं. कवि कहता है कि प्रेम नगर की गली बहुत तंग है. इसे एक समय में एक ही व्यक्ति पार कर सकता है. आशिक और महबूबा का गली में साथसाथ खड़े होना संभव नहीं बल्कि खतरे से खाली नहीं है, वर्जित भी है क्योंकि पड़ोसियों की सोच बहुत तंग है. लड़की के भाई जोरावर हैं और बाप पहलवान है.
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