आधी अधूरी प्रेम कहानी: भाग 2

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केस का खुलासा होने पर एसएसपी एटा स्वप्निल ममगाई ने प्रैसवार्ता आयोजित की. पुलिस पूछताछ और पत्रकारों के सामने निशा के मातापिता ने आमिर की हत्या और अपनी बेटी निशा की हत्या की कोशिश करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

25 वर्षीय आमिर 7 भाइयों में दूसरे नंबर का था. उस का बड़ा भाई सलमान पिता अकील के साथ बिजली के काम में हाथ बंटाता था. जबकि आमिर टाइल्स लगाने का काम करता था. इसी दौरान उस की मुलाकात निशा के पिता अफरोज से हुई.

अफरोज राजमिस्त्री का काम करता था. इसी के चलते आमिर का निशा के घर आनाजाना शुरू हो गया. सुंदर और चंचल निशा को देखते ही आमिर उस की ओर आकर्षित हो गया. निशा की नजरें जब आमिर से टकरातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख निशा नजरें झुका लेती थी.

आंखों ही आंखों में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. जब भी आमिर निशा के पिता को काम पर चलने के लिए बुलाने आता, उस दौरान उस की मुलाकात निशा से हो जाती. धीरेधीरे दोनों बातचीत करने लगे. दोनों ने एकदूसरे को मोबाइल नंबर भी दे दिए. दोनों की अकसर बातें होती रहतीं.

बेटी के प्रेम संबंधों की जानकारी होने के बाद अफरोज आमिर से नाराज और दूर रहने लगा था. इतना ही नहीं, वह निशा के साथ भी मारपीट कर चुका था. लेकिन प्रेमी युगल दुनिया से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे.

निशा उम्र के ऐसे मोड़ पर थी, जहां उस के कदम बहक सकते थे. इस के चलते अब घर वाले 24 घंटे उस पर नजर रखने लगे थे. बंदिशों के चलते प्रेमी युगल ने रात के समय घर पर ही मिलने की गुप्त योजना बनाई थी.

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6 जुलाई, 2019 की रात अलीगढ़ में अफरोज के परिवार के सभी लोग छत पर सो रहे थे. लेकिन 20 वर्षीय निशा की आंखों की नींद तो उस के 25 वर्षीय प्रेमी आमिर ने चुरा ली थी. परिजनों की सख्ती के चलते आमिर का अफरोज के घर आना बंद हो गया था. इसलिए निशा ने चोरीछिपे आमिर को फोन कर के रात में घर आने के लिए कहा.

आमिर भी अपनी प्रेमिका के दीदार को तरस रहा था. निशा का फोन सुनने के बाद वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच गया. निशा ने उस के लिए घर का दरवाजा पहले ही खुला छोड़ दिया था.

निशा और आमिर कमरे में बैठ कर बातें करने लगे. इसी दौरान निशा के मामा हफीज उर्फ इशहाक को टौयलेट लगी तो वह छत से उठ कर नीचे जाने लगा. मगर सीढि़यों का दरवाजा बंद था. दरवाजा खटखटाने पर निशा ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. पूछने पर निशा ने बताया कि वह भी पानी लेने छत से नीचे आई थी.

शक होने पर मामा ने आसपास की तलाशी ली तो कमरे में छिपा हुआ आमिर मिल गया. इस के बाद उस ने उसी समय अपने जीजा अफरोज, बहन नूरजहां और 14 वर्षीय नाबालिग भांजे को आवाज दे कर छत से बुला लिया. गुस्से में चारों ने लाठीडंडों से आमिर की पिटाई शुरू कर दी. फिर गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

प्रेमी के साथ मारपीट करने का निशा ने विरोध भी किया था. लेकिन हत्यारों के आगे उस की एक नहीं चली. निशा के सामने ही घर वालों ने उस के प्रेमी की हत्या कर दी थी, जिस का निशा को बहुत दुख हुआ.

अफरोज व हफीज ने शव को बोरी में बंद किया और उसे मोटरसाइकिल पर रख कर रात में ही ले गए. वे लोग भमोला रेलवे ट्रैक पर आमिर के शव को बोरी से निकाल कर फेंक आए.

पूरा घटनाक्रम निशा की आंखों के सामने घटित हुआ था. घर वालों ने सोचा कि कुछ दिन निशा यहां से बाहर रहेगी तो इस घटना को भूल जाएगी. मामला शांत होने पर उसे वापस ले आएंगे. यह सोच कर उसी रात मांबाप व मामा निशा को ले कर एटा के गांव बारथर के लिए मोटरसाइकिलों से रवाना हो गए.

बारथर में निशा गुमसुम सी रहती थी. उस की आंखों के सामने प्रेमी की पिटाई और हत्या का दृश्य घूमता रहता था. घर वाले उस से कुछ पूछते तो उस की आंखों से आंसू बहने लगते थे.

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समझाने से नहीं मानी निशा

सभी लोग उसे 2 दिनों तक समझाते रहे और किसी को कुछ न बताने का दबाव डालते रहे. लेकिन निशा के बगावती तेवर देख कर वे लोग घबरा गए. उन्होंने सोचा कि यदि निशा जिंदा रही तो आमिर की हत्या के मामले में फंसा देगी. घर वालों की बात न मानने पर मांबाप व मामा ने निशा को भी ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए फूलप्रूफ योजना बनाई गई. उस की हत्या करने से पहले 3 दिन तक वह लाश ठिकाने लगाने के लिए जगह ढूंढते रहे.

9 जुलाई, 2019 की रात 8 बजे हफीज उर्फ इशहाक व मांबाप 2 मोटरसाइकिलों पर यह कह कर निकले कि सभी लोग अलीगढ़ जा रहे हैं. निशा उन के साथ थी. एक मोटरसाइकिल पर निशा और उस की मां नूरजहां बैठी, जिसे पिता अफरोज चला रहा था. दूसरी पर निशा का 14 वर्षीय भाई बैठा, जिसे मामा हफीज चला रहा था.

गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर निकलने के बाद बहादुरपुर गांव में प्रवेश करते ही दोनों मोटरसाइकिलों ने रास्ता बदल दिया. मोटरसाइकिलों के नहर की पटरी की तरफ मुड़ने पर निशा ने कहा, ‘‘ये तो अलीगढ़ का रास्ता नहीं है अब्बू्. आप कहां जा रहे हैं?’’

लेकिन कोई कुछ नहीं बोला. निशा को शक हुआ लेकिन वह बेबस थी. अफरोज व मामा ने आगे जा कर एक जगह मोटरसाइकिलें रोक दीं. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

नहर की पटरी पर पहुंचते ही निशा को मोटरसाइकिल से उतार लिया गया और पकड़ कर एक ओर ले जाने लगे. निशा को समझते देर नहीं लगी कि आज उस के साथ कुछ गलत होने वाला है. वह चिल्लाई, लेकिन रात का समय था और दूरदूर तक वहां कोई नहीं था.

पिता और मां ने निशा के हाथ पकड़ लिए. मामा ने तमंचे की नाल उस की गरदन पर सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही तीखी चीख के साथ वह वहीं गिर गई. उस के गिरते ही उसे झाडि़यों में फेंक कर सभी लोग वहां से चले गए.

हत्यारोपियों ने सोचा था कि बेटी को मार कर अलीगढ़ से दूर फेंक दिया है. उस की शिनाख्त नहीं हो सकेगी और पुलिस लावारिस मान कर लाश का अंतिम संस्कार कर देगी. आमिर और निशा दोनों की हत्या राज ही बनी रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. गले में गोली लगने के बाद भी निशा बच गई और  पुलिस को सच्चाई बता दी. अन्यथा औनर किलिंग की यह घटना हादसा बन कर रह जाती.

आमिर का परिवार निशा के साथ उस के रिश्ते से बेखबर था. आमिर के पिता अकील के मुताबिक आमिर ने कभी निशा के साथ रिश्ते को ले कर घर में जिक्र नहीं किया था. आमिर का रिश्ता अगलास थाना क्षेत्र की एक युवती के साथ तय हो गया था. घर वाले उस की शादी की तैयारियों में मशगूल थे. आमिर की मौत से परिवार गम में डूब गया.

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निकाह तय होने के बाद आमिर घर वालों से खफा रहने लगा था. वह अलीगढ़ से दूर जा कर निशा के साथ अपनी अलग दुनिया बसाना चाहता था. आमिर और निशा ने इस की तैयारी भी कर ली थी. लेकिन इन का सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया.

उधर अलीगढ़ पुलिस ने आमिर की मौत को हादसा समझ कर मुकदमा दर्ज कर लिया था. हालांकि पुलिस इस की जांच कर रही थी, लेकिन निशा के जिंदा मिलने पर पूरी घटना साफ हो गई.

इस जानकारी के बाद अलीगढ़ पुलिस ने इस मामले को हत्या में दर्ज करने के साथ ही निशा के मामा हफीज व नाबालिग भाई को क्वासी के शहंशाहबाद इलाके वाले घर से गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में इंसपेक्टर अमित कुमार एसएसआई योगेश चंद्र गौतम, एसआई चमन सिंह, नितिन राठी, कांस्टेबल पंकज कुमार, जनक सिंह और ऋषिपाल सिंह यादव शामिल थे.

अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने प्रैसवार्ता में बताया कि आरोपी चालाकी कर के बचना चाहते थे. बेटी के प्रेमी की हत्या अलीगढ़ में और बेटी की हत्या एटा जिले में कर के उन्होंने पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया था. लेकिन उन की योजना निशा के बच जाने से धरी की धरी रह गई.

बहरहाल, हफीज, अफरोज व नूरजहां को आमिर के कत्ल व निशा की हत्या के प्रयास में जेल और नाबालिग को बालसुधार गृह भेज दिया गया. इस तरह एक प्रेमकहानी पूरी होने से पहले ही खत्म हो गई.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

डायन के नाम पर सर मुंड़ाकर कपड़े फाड़कर एवं पेशाब पिला कर गांव से बाहर निकाला

बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत डकरामा नाम के गाँव में डायन के नाम पर तीन महिलाओं को सिर मुड़वाकर, पेशाब पिलाई और पूरे गाँव मे घुमाया.तीन औरतें लाचार बैठी हैं. पास खड़ी भीड़ शोर कर रही है. उन औरतों का सिर का मुंडन किया जा रहा है और पेशाब पिलाया जा रहा है. और लोग हँस रहे हैं. इस तरह का वीडियो वायरल हो रहा है. एक आदमी जब मदद करने के लिए आया तो उसे भी यही सजा सुना दी गयी जो इन औरतों को सुनाई गयी थी.उसके बाद पंचायत ने तीनों औरतों को गाँव से निकाल दिया.वे लोग चली भी गयीं.एक औरत इस गाँव की थी बाकी दो उसके रिश्तेदार थे.

द  फ्रीडम के संस्थापक सुधीर कुमार ने दिल्ली प्रेस को बताया कि एक ओर सरकार, प्रशासन और बुद्धिजीवी तबका डायन प्रथा को खत्म करने के प्रयास में जुटा है, दूसरी ओर पुरोहित बिरादरी और पाखंड समर्थक पूरे जोर-शोर से डायन प्रथा को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं. पुरोहितों और उनकी ढकोसलेबाजी का प्रमुख समर्थक मीडिया भी इसमें अप्रत्यक्ष रूप से खूब समर्थन कर रहा है.

पहले हम जानते हैं कि डायन प्रथा का मूल आधार क्या है ? डायनों के बारे में कहा जाता है कि वह मंत्र पढ़कर (देहातों में बान मारना भी कहा जाता है) किसी की जान ले सकती है या फिर बीमार कर दे सकती है.मंत्र और टोटके के सहारे वह ऐसे कारनामें कर सकती है, जो और किसी भी तरह संभव ही नहीं है.यानी मंत्रों में शक्ति होती है, यह डायन प्रथा का मुख्य आधार है.

विज्ञान के विकास ने और मानवाधिकारों के प्रति बढ़ती जागरुकता ने इन ढकोसलों के खिलाफ काफी काम किया है. लोगों को लगातार लंबे अरसे तक समझाने के बाद काफी हद तक यह समझाने में सफलता मिली है कि डायन का असर केवल मन का वहम है.ऐसा कुछ नहीं होता. बीमारियों और मौतों के पीछे दूसरे कारण होते हैं.

परंतु, दूसरी ओर हर धर्म के पुरोहित लगातार मंत्रवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं.वे दिन-रात इस थ्योरी में लगे रहते हैं कि मंत्रों में शक्ति होती है.मंत्रों का असर होता है. हालांकि मंत्रों के असर का षड्यंत्रों का काफी हद तक पर्दाफाश हो चुका है, लेकिन पुरोहित वर्ग इसे फिर से लोगों के मन में बिठाने में लगा है. इसमें पूरा साथ दे रहा है मीडिया.

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लगभग सभी समाचार पत्रों और चैनलों में मंत्रों की महिमा बार-बार बताई जा रही है. फलाने मंत्र से यह लाभ होता है, फलाने मंत्र से शक्ति बढ़ती है, फलाने मंत्र से पुत्रों की रक्षा होती है.कई बार तो यह चुटकुला की हद तक हास्यास्पद हो जाता है.जैसे हाल ही में नागपंचमी के दिन एक समाचार पत्र में छपा कि फलाने मंत्र के जाप से सर्पदंश का असर कम हो जाता है.पाखंड फैलाने वाला यह आलेख आधे पेज पर छपा था.यह लिखने वाला पुरोहित और छापने वाला संपादक दोनों ही जानते हैं कि यह कोरा पाखंड फैलाने से अधिक कुछ नहीं है.

इसी तरह चैनलों और अखबारों में देवी-देवताओं को खुश करने वाले मंत्र लगातार बताये जा रहे हैं. कई दीर्घायु होने के मंत्र भी हैं. हालांकि हाल के वर्षों में देवताओं को खुश करने में लगे भक्त ही थोक में मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं.केदारनाथ, वैष्णो देवी, बोलबम यात्रा से लेकर हज आदि इसके ढेर सारे उदाहरण हैं.

पुरोहित वर्ग लगातार ढोंग ढकोसले फैलाने के उपाय तलाशते रहता है. कभी गणेश को दूध पिलाकर, कभी पेड़ में देवी-देवताओं के चेहरे दिखाकर.और फिर ढेर सारे पर्व-त्यौहार तो हैं ही.

लेकिन मंत्रों का प्रभाव बताना इन सबमें सबसे अधिक खतरनाक है. यह सीधे तौर पर डायन प्रथा और झाड़-फूंक को बढ़ावा देना है. अपनी दुकानदारी चलाने के लिए पुरोहित वर्ग यह लगातार कर रहा है.शर्मनाक है कि इसमें मीडिया घराने भी सहयोग कर रहे हैं. तिलक लगाने वाले ढोंगियों का बाजार गुलजार हो जाएगा, यह उतना खतरनाक नहीं है.लेकिन मंत्रों का असर अगर लोगों को दिमाग में बैठने लगा तो फिर डायन के नाम पर गरीब और लाचार औरतों की शामत आएगी ही.उन पर अमानवीय जुल्म तेजी से बढ़ने लगेंगे.

इसी तरह हवन आदि कर्मकांडों को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है.चंद दिन पहले कोरोना जब फैलना शुरू हुआ था तो पाखंड समर्थकों ने देश भर में हवन किया.दूसरे मजहब के पाखंडियों ने अल्लाह से रहम की अपील और गॉड की विशेष प्रार्थना शुरू कर दी.हवन और दुआ में इतनी ही शक्ति है तो फिर खुद पुजारी, मौलवी और पादरी अस्पताल में भर्ती होने की मूर्खता क्यों कर रहे हैं? जो भगवान अपना मंदिर और जो खुदा अपनी मस्जिद नहीं बचा सकता, वह दूसरों को क्या बचाएगा?

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ऐसा ही नजारा क्रिकेट विश्वकप के दौरान भी दिखता है. प्रशंसक टीम को जीतने के लिए हवन करते हैं.जब टीम हारती है तो क्रिकेटरों पर गुस्सा करते हैं. अरे मूर्खों, जब तुम्हारे देवताओं की जीत दिलाने की औकात नहीं थी तो बेचारे क्रिकेटर तो साधारण मनुष्य हैं.अखबार वाले भी देवी-देवताओं की बजाय खिलाड़ियों को कोसने लगते हैं.इससे यह तो साफ जाहिर हो जाता है कि सबको पता है कि हवन और प्रार्थना सिवाय ढोंग-ढकोसला के और कुछ नहीं है. लेकिन पुरोहित प्रपंच जारी रखने के लिए यह आवश्यक है.चाहे देश जितना बदहाल हो जाए. मंत्र की शक्ति साबित करने के पाखंड को बढ़ावा देते रहेंगे.

पुरोहितों को इससे क्या ? उन्हें तो सिर्फ अपनी दुकान की फिक्र है. वे अपनी दुकान चलाने के लिए साईं को लेकर तो धर्मसभा कर सकते हैं, लेकिन एक बार भी डायन प्रथा का विरोध नहीं कर सकते. लेकिन वे भी बेचारे क्या करें, डायन प्रथा को झूठा कहेंगे तो उनके मंत्रों के पाखंड का पर्दाफाश हो जाएगा. उनकी दुकान बंद होने लगेगी.और मीडिया भी आजकल दुकानदारी ही हो गया है. उसे चाहिए मसाला और विज्ञापन चाहे निर्मल जैसे चुटकुलेबाज बाबा को ही क्यों न दिन-रात चलाना पड़े. चाहे इसके लिए लोगों को जागरूक करने की बजाय अंधविश्वास ही क्यों न फैलाना पड़े.अंधविस्वास के विरोध में सच्चाई के पक्ष में दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएँ लगातार आर्टिकल प्रकाशित करते रहती है.चंद मीडिया घराना और कुछ सामाजिक संगठन लगातार संघर्षरत हैं.लेकिन उनलोगों के सामने इनका संघर्ष छोटा पड़ जा रहा है.

तो फिर हाल क्या है? पुरोहितों को तो कोई समझा नहीं सकता कि अब पाखंड फैलाना बंद करो. जो लोग डायन प्रथा को गलत मानते हैं, उन्हें मुखर होना पड़ेगा.डायन प्रथा की जड़ पर प्रहार करना होगा.वह यह है कि लोगों को बताया जाए कि मंत्रों में, दुआओं में, हवन-रोजा, नमाज में कोई शक्ति नहीं होती.ये सब पाखंड और शोषण के तरीके हैं.यह पुरोहितों की चाल है अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए.

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सीधी सी बात है कि अगर आप मानते हैं  कि मंत्र, दुआ और प्रार्थना में शक्ति होती है तो आप भी डायन प्रथा के समर्थक हैं, क्योंकि डायन प्रथा का मूलाधार ही यही है.डायन प्रथा के झूठे विरोध की नौटंकी मत कीजिए.

रातों का खेल: भाग 2

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जावेद और राहिल काफी शातिर दिमाग थे. दोनों जानते थे कि स्थानीय स्तर पर ठगी का कारोबार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा, इसलिए फरजी कालसेंटर के जनक माने जाने वाले सागर ठक्कर उर्फ शग्गी से प्रेरणा ले कर दोनों ने द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्युरिटी एडमिनिस्ट्रेशन के नाम पर अमेरिकी नागरिकों को ठगने की योजना बनाई. उन्होंने पहले अहमदाबाद, फिर पुणे में कुछ समय तक ठगी का कारोबार करने के बाद इंदौर का रुख किया.

इंदौर में दोनों 2018 से इस तरह के 2 कालसेंटर चला रहे थे. इस काम के लिए उन्होंने काफी हाइटेक उपकरण जमा कर रखे थे. अमेरिकी नागरिकों को झांसा देने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के युवकयुवतियों को नौकरी देने के नाम पर अपने साथ जोड़ लिया था.

इस के 2 कारण थे, पहला तो यह कि इन राज्यों के युवकों की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होती है. दूसरे उन का अंगरेजी बोलने का लहजा अमेरिकी लहजे से काफी मिलताजुलता होता है.

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इंदौर में जावेद और राहिल के 2 कालसेंटरों से जो 75 से ज्यादा युवकयुवती पकड़े गए, उन्हें जावेद रहनेखाने के खर्च के अलावा 22 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था. सभी के रहने के लिए इंदौर की महंगी कालोनियों में 30 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिए गए थे. युवकयुवतियों को एक साथ रहने की सुविधा दी गई थी.

शटर बंद कर के करते थे काम

चूंकि ठगी अमेरिकी नागरिकों से की जाती थी, इसलिए जावेद का कालसेंटर रात 10 बजे खुलता था. वजह यह कि जब भारत में रात के 10 बजे होते हैं, तब अमेरिका में सुबह के लगभग 11 बजे का समय होता है. रात के 10 बजे शटर उठा कर सभी कर्मचारियों को अंदर कर शटर बंद कर दिया जाता था. जिस के बाद असली खेल शुरू होता था.

लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौंटैक्ट करने को कहा जाता था.

वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उन के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.

इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.

इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.

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आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था.

जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस की काल तीसरे स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दी जाती थी.

यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.

इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.

अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.

गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है.

राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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रातों का खेल: भाग 1

घटना 10 जून, 2019 की है. इंदौर साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह ने साइबर सेल के अफसरों और कुछ सहकर्मियों को अपने केबिन में बुला कर इंदौर के किसी क्षेत्र में छापा डालने के बारे में बताया. छापेमारी में कोई चूक न हो इस के लिए हर पुलिसकर्मी की शंका और उस के समाधान के बारे में 4 घंटे तक मीटिंग चली. इस के बाद एसपी जितेंद्र सिंह के निर्देश पर रात लगभग साढ़े 12 बजे 2 टीमें बनाई गईं.

इन टीमों में एसआई राशिद खान, आमोद राठौर, संजय चौधरी, विनोद राठौर, रीना चौहान, पूजा मुबेल, अंबाराम प्रधान व सिपाही आनंद, दिनेश, रमेश, विजय विकास, राकेश और राहुल को शामिल किया गया. इन टीमों को सी-21 मौल के पीछे स्थित टारगेट पर धावा बोलना था. समय तय कर दिया गया था.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए टीमों के रवाना होने के बाद एसपी जितेंद्र सिंह बैकअप देने के लिए औफिस में ही बैठे रहे. उन्हें भेजी गई टीमों से मिलने वाली सूचनाओं का इंतजार करना था. साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह को 25 दिन पहले सी-21 मौल के पीछे स्थित प्लाजा प्लैटिनम के 2 तलों पर संदिग्ध गतिविधियां संचालित होने की जानकारी मिली थी.

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एसआई राशिद खान ने जो सूचना जुटाई थी, उस के अनुसार प्लैटिनम में 2 औफिस रात को 11 बजे खुलते थे और सुबह होते ही बंद हो जाते थे. लगभग सौ सवा सौ युवकयुवतियां रात 11 बजे औफिस में जाते थे. इस के बाद सुबह तक के लिए शटर बंद हो जाता था. वहां क्या होता है, इस का किसी को पता नहीं था. हां, इतना आभास जरूर था कि वहां जो भी होता है, वह कानून के दायरे के बाहर थी.

एसपी जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में जो जानकारी जुटाई, उस में पता चला कि संदिग्ध औफिस के मालिक पिनकेल डिम व श्रीराम एनक्लेव में रहने वाले जावेद मेनन और राहिल अब्बासी हैं, जो रईसी की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोग क्या काम करते हैं, इस की जानकारी किसी को नहीं थी.

एसपी जितेंद्र सिंह को सब से बड़ी बात यह पता चली कि इन औफिसों में काम करने वाले युवकयुवतियों में 80 प्रतिशत से अधिक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से हैं.

जावेद ने इन लोगों को आसपास के इलाकों में किराए पर फ्लैट ले क र दे रखे थे. पूर्वोत्तर के नागरिक आसानी से इंदौर के लोगों में घुलमिल नहीं सकते थे, इसलिए साफ था कि ऐसे कर्मचारियों का चुनाव आमतौर पर तभी किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति अपने कार्यकलाप को गुप्त रखने की मंशा रखता हो.

एसपी जितेंद्र सिंह इस बात को अच्छी तरह समझते थे, इसलिए दबिश देने पर आपराधिक गतिविधियों का खुलासा हो सकता था. एसपी साहब ने इस मामले की सूचना पुलिस महानिदेशक पुरुषोत्तम शर्मा, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेश गुप्ता व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक अवस्थी को पहले दे दी थी. अब उन्हें परिणाम का इंतजार था.

उस समय रात का 1 बजा था, जब एसआई राशिद खान की टीम ने सी-21 मौल के पीछे स्थित टारगेट के दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर के इंतजार के बाद शटर उठाया गया तो एसआई राशिद खान पूरी टीम के साथ धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गए. औफिस में अंदर रखी करीब 20-22 टेबलों पर 60-70 कंप्यूटरों की स्क्रीन चमक रही थीं.

110-112 के आसपास युवकयुवतियां एक ही स्थान पर मौजूद थे. उस दिन किसी महिला कर्मचारी का जन्मदिन था, इसलिए औफिस का मालिक जावेद मेनन भी वहां मौजूद था. उस ने युवती का जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए खुद ही केक मंगवाया था.

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पुलिस को आया देख वहां मौजूद सभी कर्मचारी घबरा गए. राशिद खान की टीम ने उन्हें केक काटने का समय दिया. इस के बाद वहां चल रहे कंप्यूटरों की जानकारी खंगाली गई तो टीम की आंखें फटी रह गईं. वास्तव में वहां की 2 मंजिलों पर 2 ऐसे कालसेंटर चल रहे थे, जो इंदौर में बैठ कर हाइटेक तरीके से अमेरिकी नागरिकों को ठगने का काम करते थे.

कालसेंटर के मालिक जावेद मेनन ने पहले तो पुलिस को अपने द्वारा किए जा रहे काम को लीगल ठहराने की कोशिश करते हुए वहां से खिसकने की सोची, लेकिन साइबर सेल की सतर्कता से उसे ऐसा मौका नहीं मिला.

इस दौरान हुए खुलासे की जानकारी मिलने पर एसपी जितेंद्र सिंह खुद भी मौके पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के बाद देर रात शुरू हुई काररवाई अगले दिन सुबह तक चली. इस काररवाई में जावेद मेनन और उस के राइट हैंड शाहरुख के साथ 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन में पूर्वोत्तर राज्यों की रहने वाली लड़कियां भी शामिल थीं.

पुलिस टीम ने कालसेंटर से 60 कंप्यूटर, 70 मोबाइल फोन, सर्वर और अन्य गैजेट्स तथा लगभग 10 लाख अमेरिकी नागरिकों का डाटा बरामद किया.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में स्थिति साफ होने पर उन के खिलाफ 468, 467, 471, 420, 120बी, आईपीसी और 66 डी आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया.

गिरफ्तार किए गए सभी 78 युवकयुवतियों को 2 चार्टर्ड बसों में भर कर अदालत ले जाया गया और उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया, जहां से पुलिस ने पूछताछ के लिए जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन को रिमांड पर ले लिया, जबकि नगालैंड, मेघालय, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सहित 10 राज्यों के रहने वाले 75 युवकयुवतियों को जेल भेज दिया गया.

जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन से पूछताछ के बाद उन के औफिस दिव्या त्रिस्टल, प्लैटिनम प्लाजा, घर पिनेकल डीम और श्रीराम एनक्लेव में छापा मारा गया. करीब 5 घंटे की तलाशी के बाद पुलिस ने वहां से फरजीवाड़े से संबंधित ढेरों सामग्री जब्त की.

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इस के बाद पूछताछ में तीनों आरोपियों ने जो बताया, उस के आधार पर पता चला कि जावेद मेनन और उस का दोस्त राहिल अब्बासी मूलरूप से अहमदाबाद के रहने वाले थे. दोनों 2018 में इंदौर आए थे. यहां उन्होंने बीपीओ कंपनी की आड़ में कालसेंटर शुरू किए.

इंदौर में दोनों ने जिस कंपनी के नाम से किराए पर इमारतें लीं, वे विपिन उपाध्याय के नाम से रजिस्टर्ड हैं. जबकि इस के वास्तविक मालिक जावेद और राहिल हैं. कंपनी विपिन के नाम थी, इसलिए इस कंपनी के नाम से ही किराए का एग्रीमेंट किया गया था.

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प्रेमी को भरी सभा में गर्म सरिया से दागा, पंचों का तालिबानी फैसला

बिहार राज्य के सिवान जिला अंतर्गत जानकीनगर गाँव में पंचायत ने एक युवती को तालिबानी सजा दी है. प्रेमी के साथ फरार रहने के आरोप में उसे भरी पंचायत में गर्म सरिया से दागा गया. पंचायत में युवती अपनी सफाई देती रही लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी.

इस तरह की घटनाएँ पूरे देश से आते रहती है. कहीं तो चुपके रूप से कभी बेटी की हत्या उसके परिवार वालों द्वारा  किया जाता है.कभी प्रेमी प्रेमिका दोनों की हत्या की जाती है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रेम करना महापाप घोर अन्याय के रूप में देखा जाता है.

जब गाँव में प्रेम का कोई मामला आता है तो पंचायत बुलायी जाती है. फैसला करने वाले अधिकांशतः गाँव के बुजुर्ग और प्रतिष्ठित लोग होते हैं. जिनका गाँव में मान सम्मान होता है.आज भी लोग गाँव में दकियानूसी विचारों से ग्रसित होकर तरह तरह के तालिबानी फैसला सुनाते रहते हैं.थूक गिराकर चटाना,बाल मुड़ाकर चुना का टीका लगाकर गधा पर बैठाकर पूरे गाँव में घुमाना, पाँच जाति के लोगों द्वारा दस दस जूते मारना से लेकर आर्थिक और शारीरिक दण्ड देने का रिवाज आज भी कमोवेश चालू है.आज भी डायन के नाम पर महिलाओं को पेशाब पिलाने,नँगा करके घुमाने जैसी कुकृत्य इन पंचों द्वारा सुनाये जाते हैं.

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बहुत सारी इस तरह की घटनाएँ प्रकाश में नहीं आती.गाँव स्तर तक ही सीमित रहकर दबा दी जाती है. अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों के पास एंड्रॉयड मोबाइल है और इस तरह की घटनाओं का वीडियो वायरल होने लगा है जिसकी वजह से बहुत सारे मामले प्रकाश में आ जाते हैं.

हम अपने लड़के लड़कियों को पढा लिखाकर नॉकरी कराना चाहते हैं.अपने आपको गाँव में भी रुतबा दिखाना चाहते हैं. लेकिन वही लड़के लड़कियाँ जब आपस में प्रेम करने लगते हैं. साथ जीने मरने का ख्वाब देखने लगते हैं तो नागवार गुजरने लगता है. इज्जत में बट्टा लगने लगता है. ऐसा महसूस होने लगता है कि अब हम समाज में रहने लायक नहीं हैं.

गाँव में अगर अपने जाति बिरादरी में कोई लड़का लड़की प्रेम करता है तो यह घोर अपराध है. एक ही गाँव में एक जाति के लड़के लड़कियों की शादी नहीं हो सकती.दूसरी तरफ अन्य जाति वाले लोगों से तो प्रेम करना भी पाप है और अगर कहीं कर लिया और लोगों को जानकारी हो गयी तो दोनों लोगों की खैरियत नहीं.

यहाँ प्यार करनेवाले लोगों के लिए सिर्फ एक ही उपाय है. वह है पलायन.यानी लड़का लड़की को सदा के लिए अपने माँ बाप को छोड़कर कहीं दूसरे जगह चले जाना.उसमें भी अगर पुलिस वाले ने पकड़ लिया तो तरह तरह की परेशानियाँ. मारपीट धमकी से लेकर जेल तक.

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हम एक सभ्य समाज मे जी रहें हैं.इस तरह के पंचायत में जो फैसले लिए जाते हैं.जिनके द्वारा यह फैसला सुनाया जाता है.वे गाँव के सबसे मानींदे और उँच्चे कद के ब्यक्ति होते हैं.उनका सम्मान और इज्जत पूरे गाँव वालों द्वारा किया जाता है.तभी तो उनकी किसी भी हद दर्जे तक निच्चे गिरी हुवी बातों को भी पूरा समाज मान लेता है.अगर आप गाँव के सम्मानित ब्यक्ति हैं तो आपका सोंच भी उँच्चे दर्जे का होना चाहिए लेकिन अफसोस इस बात का है कि भौतिक रूप से हम भले ही कुछ विकसित हो गए है.वैचारिक रूप से हम आज भी जात ,धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं.

हमारा समाज आज जितना भी आधुनिक और मॉडर्न होने का राग अलापते रहे.अलग धर्म जाति में प्रेम और विवाह करने के मामले में हमारा सोंच अभी भी दकियानूसी विचारों को ही ढो रहा है.पढ़े लिखे बुद्धिजीवि प्रगतिशील कहे जाने वाले लोग भी इस खोल से बाहर नहीं निकल पाए हैं.

आय दिन समाज और परिवार वालों द्वारा प्रेम करने वाले लड़के लड़कियों को जब इजाजत नहीं दी जाती तो प्रेम में मर मिटने की कसम खाने वाले युवा युवती आत्महत्या तक का रुख अपना रहे हैं.

युवा हो रहे लड़के लड़कियाँ आपस मे प्रेम करेंगे ही.यह जरूरी नहीं है कि प्रेम अपने जाति बिरादरी और अपने धर्म सम्प्रदाय वाले के बीच ही हो.प्रेम तो इन सबसे ऊपर ही होता है.

जरूरत है कि भौतिकता के साथ साथ आधुनिक सोंच को भी वैज्ञानिक और तर्क के दृष्टिकोण से वास्तविक बातों को धरातल पर सोंचने का प्रयास करें.

जब हमारे बच्चे इंजीनियरिंग डॉक्टरी और अन्य पढ़ाई पढ़ने के लिए कॉलेजों विश्वविद्यालयों

में जायेंगे तो वहाँ विपरीत लिंगों के साथ आकर्षण बढ़ना एक स्वभाविक प्रक्रिया है.हम अपने लड़के लड़कियों के हर बदलाव खान पान,रहन सहन,उनके बदलते संस्कार को जब स्वीकार कर रहें है तो प्रेम को भी स्वीकार करना पड़ेगा तभी हम विकसित और मॉडर्न समाज की कल्पना कर सकते हैं.

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सिर्फ हमें फिल्मों और कहानियों में तो प्यार की कहानियाँ अच्छी लगती है. लेकिन जब हमारे समाज परिवार में लड़के लड़कियाँ आपस में प्यार करते हैं. साथ मरने जीने की कसमें खाते हैं तो हमें नागवार गुजरता है. बदलते दौर में हमारी मानशिकता भी बदलनी होगी.सोंच को नया आयाम देगा होगा.

11 साल बाद: भाग 1

पंजाब में काले दौर के समय बहुत बड़ी तादाद में लोग अपनी जानमाल की सुरक्षा के लिए पंजाब से पलायन कर के देश के अन्य शहरों में जा कर बस गए थे, जिन में अधिकांश व्यापारी तबके के लोग शामिल थे.

सरदार मंजीत सिंह बग्गा, जिन का कपड़े का बहुत बड़ा कारोबार था, वह भी अपना कारोबार समेट कर पंजाब छोड़ बीवीबच्चों सहित उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली जा बसे थे. रायबरेली के गुरुनानक नगर में वह कोठी नंबर-13 ले कर रहने लगे और वहीं अपना कपड़े का काम शुरू कर दिया.

उन के अधिकांश ग्राहक यूपी, बिहार और महाराष्ट्र के थे, इसलिए उन के ग्राहकों को पंजाब की जगह रायबरेली आने से काफी सहूलियत हो गई थी. देखतेदेखते मंजीत सिंह बग्गा का व्यवसाय रायबरेली में पंजाब से भी अच्छा चल निकला था.

मंजीत सिंह के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे जगजीत सिंह बग्गा उर्फ सोनू और सुरजीत बग्गा थे. दोनों बेटे पढ़ाई पूरी करने के बाद पिता के कपड़े के कारोबार में शामिल हो गए थे. उन्होंने रेडीमेड गारमेंट के लिए फैक्ट्री भी लगा ली थी, जिस की देखभाल जगजीत सिंह किया करता था.

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कारोबार और परिवार जब दोनों पूरी तरह से सैटल हो गए तो मंजीत सिंह ने 14 अक्तूबर, 2001 को बड़े बेटे जगजीत सिंह की शादी साहिबगंज, फैजाबाद निवासी जसवंत सिंह की बेटी रविंदर कौर के साथ कर दी थी.

शादी के बाद कुछ सालों तक पतिपत्नी दोनों खूब खुश थे. जगजीत आम लोगों की तरह घर में बैठ कर 2-4 पैग शराब जरूर पीता था. पर शराब को ले कर उन का आपस में कभी झगड़ा नहीं हुआ था. उन के घर 2 बेटों ने जन्म लिया, जिन के नाम हरप्रीत सिंह और हरमीत सिंह रखे गए थे.

बेटों के जन्म के बाद अपने काम की व्यस्तता के कारण या किन्हीं अन्य वजह से पतिपत्नी एकदूसरे को समय नहीं दे पा रहे थे, जिस से दोनों के बीच झगड़ा रहने लगा.

शुरू में तो यह बात मामूली कहासुनी से शुरू हुई थी, जैसा कि हर घर में होता है पर कुछ ही महीनों में जगजीत सिंह और रविंदर कौर के बीच का तनाव इतना बढ़ गया कि दोनों ने एकदूसरे से बात तक करनी बंद कर दी थी.

जगजीत सिंह के पिता मंजीत सिंह ने और रविंदर कौर के पिता जसवंत सिंह ने भी दोनों को काफी समझाया पर उन के बीच का क्लेश कम होने के बजाए बढ़ता ही गया.

रोजरोज के क्लेश से दुखी हो कर अंत में मंजीत सिंह ने अपने बेटे जगजीत सिंह और बहू रविंदर कौर को घर से अलग कर दिया. इस के बाद जगजीत किराए का मकान ले कर बीवीबच्चों के साथ रहने लगा. वह पिता की फैक्ट्री में काम करता था.

जगजीत के घर का सारा खर्च उस का पिता मंजीत सिंह देता था. पतिपत्नी के बीच बातचीत अब भी बंद थी. बाद में दोनों के बीच झगड़ा इतना बढ़ा कि रविंदर कौर अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके फैजाबाद चली गई. यह सन 2009 की बात है. बाद में जगजीत भी फैजाबाद जा कर पत्नी के साथ किराए के मकान में रहने लगा.

रविंदर कौर के अलग हो जाने पर मंजीत सिंह ने बच्चों की परवरिश के लिए खर्चा देना बंद कर दिया. तब रविंदर कौर ने न्यायालय की शरण ली और साल 2009 में जिला अयोध्या की फैमिली कोर्ट में पति जगजीत सिंह बग्गा और उस के परिवार पर खर्चे का मुकदमा दायर कर दिया.

कोर्ट ने रविंदर कौर की याचिका मंजूर कर उस पर सुनवाई शुरू कर दी. रविंदर कौर ने अपनी याचिका में लिखा था कि मेरे परिवार को मेरे ससुर मंजीत सिंह ने खर्चा देना बंद कर दिया है. मेरे छोटेछोटे 2 बच्चे हैं और मैं किराए के घर में रहती हूं. इस हालत में मैं बच्चों को पालने में असमर्थ हूं.

यह मुकदमा अभी चल ही रहा था कि अचानक एक दिन रविंदर कौर की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, जिस ने उस के साथ मातापिता के परिवार को भी बिखेर कर रख दिया. सुबह अपनी फैक्ट्री गया जगजीत शाम को जब वापस घर नहीं लौटा तो सब का चिंतित होना स्वाभाविक था.

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देर रात तक इंतजार करने के बाद रविंदर कौर ने यह बात फोन द्वारा अपने ससुर मंजीत सिंह को बताई. रविंदर और उस के बच्चों को तो उस की चिंता थी ही, पर सब से अधिक चिंतित उस के मातापिता थे. मंजीत सिंह अपने बेटे जगजीत से बहुत प्यार करते थे. बहरहाल जगजीत के यारदोस्तों के अलावा उन सभी ठिकानों पर उस की तलाश की गई, जहां उस के होने की संभावना थी. रिश्तेदारियों में भी पता किया गया.

जब हर जगह से जगजीत के न होने की खबर मिली तो मंजीत सिंह बग्गा ने थाना कोतवाली रायबरेली में अपने बेटे जगजीत के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. मामला एक ऐसे धनाढ्य परिवार से जुड़ा हुआ था, जिन की शहर में काफी साख थी और ऊपर तक पहुंच भी. सो पुलिस ने जगजीत का फोटो ले कर प्रदेश के सभी थानों में भिजवा दिया. उस के बाद उस के मोबाइल फोन को चैक किया गया तो पता चला कि जगजीत का फोन घर पर ही बज रहा था.

पूछने पर रविंदर कौर ने बताया कि जगजीत उस दिन अपना फोन घर पर ही छोड़ कर गए थे. इस पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि एक सफल व्यापारी अपना फोन गलती से भी घर नहीं भूल सकता. पुलिस ने इस के 2 अर्थ लगाए कि या तो जगजीत अपनी मरजी से कहीं गायब हो गया है या फिर घर की चारदीवारी में कुछ और ही खिचड़ी पकी थी, जिस की सुगंध अभी तक बाहर नहीं आई थी.

पतिपत्नी में झगड़ा रहता था, पुलिस को इस बात का पता जांच के दौरान लग गया था. बहरहाल, पुलिस ने जगजीत का फोन नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया. उच्चाधिकारियों के दबाव के कारण थाना कोतवाली पुलिस ने जगजीत की तलाश में दिनरात एक कर दिया था.

लगने लगे आरोप

मुखबिरों की भी मदद ली गई और रविंदर कौर से भी कई बार बारीकी से पूछताछ की गई थी, लेकिन जगजीत का कहीं कोई सुराग नहीं लगा था.

जगजीत की तलाश करने में पुलिस ने अब तक कई जांच एजेंसियों का सहारा लिया था, पर नतीजा शून्य निकला. अब पुलिस को भी संदेह होने लगा था कि जगजीत के साथ घर के भीतर ही कोई हादसा हुआ था. शायद उस की हत्या कर दी गई थी.

रविंदर कौर पर पुलिस के साथसाथ उस के ससुर मंजीत सिंह बग्गा का भी दबाव बढ़ने लगा था. जबकि रविंदर कौर की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इन हालात का सामना कैसे करे.

उस का दिल यह बात मानने को तैयार नहीं था कि जगजीत के साथ कोई हादसा हो सकता है. आखिर अपने ससुर और पुलिस की परवाह न करते हुए रविंदर कौर ने थाना कोतवाली पुलिस से ले कर डीएसपी, एसपी, आईजी, डीजी, डीएम और राज्य के मुख्यमंत्री तक को शिकायती पत्र लिखलिख कर गुहार लगाई कि न तो उस ने या उस के परिवार ने जगजीत का अपहरण किया है और न ही उस की हत्या हुई है.

अगर वह लापता है तो अपनी मरजी से कहीं गायब हो गया है. रविंदर कौर ने यह भी आरोप लगाया कि मेरे पति जगजीत सिंह को गायब करने में मेरे ससुर मंजीत सिंह का हाथ हो सकता है.

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जगजीत को लापता हुए जब 2 साल हो गए और न तो उस का कोई सुराग मिला और न ही उस के बारे में कहीं से कोई फोन आया तो मंजीत सिंह बग्गा ने अपनी बहू रविंदर कौर पर सीधे आरोप लगाया, ‘‘तुम ने ही अपने पिता जसवंत सिंह, भाई तनप्रीत सिंह और फूफा प्रोफेसर हर्षत सिंह के साथ मिल कर मेरे बेटे जगजीत का अपहरण करवा कर उस की हत्या करवाई और लाश कहीं खुर्दबुर्द कर दी है.’’

इतना ही नहीं मंजीत सिंह बग्गा ने 6 जून, 2012 को रायबरेली की अदालत में रविंदर कौर, उस के पिता जसवंत सिंह, भाई तनप्रीत सिंह और शादी करवाने वाले बिचौलिए प्रोफेसर हर्षत सिंह के खिलाफ जगजीत सिंह बग्गा के अपहरण और मर्डर का कंप्लेंट केस दायर कर दिया.

अदालत में केस दर्ज हो जाने के बाद चारों आरोपियों को अदालत में पेश हो कर अपनी जमानतें करवानी पड़ीं. अदालत में जब इस केस का ट्रायल शुरू हुआ तो रविंदर कौर ने अपने साथ अन्य आरोपियों को निर्दोष बताते हुए अदालत को बताया कि उस का पति जगजीत सिंह जिंदा है और लापता है, जिसे पुलिस ढूंढने में नाकाम रही है.

इस मामले की सीबीआई से जांच करवाई जाए ताकि सच सब के सामने आ सके. अदालत ने रविंदर कौर की यह दरख्वास्त खारिज कर मुकदमे की सुनवाई जारी रखी.

रविंदर कौर बारबार अपने पति जगजीत सिंह के जिंदा होने का दावा ऐसे ही नहीं कर रही थी. दरअसल 2 साल से उसे अलगअलग नंबरों से गुमनाम फोन आ रहे थे. फोनकर्ता अपना नाम बताए बिना केवल परिवार के सदस्यों का हालचाल जानना चाहता था. उस ने कभी अपना नाम नहीं बताया था पर रविंदर कौर उस आवाज को अच्छी तरह पहचानती थी. वह आवाज उस के पति जगजीत सिंह की थी.

रविंदर ने यह बात कोतवाली पुलिस और उच्च अधिकारियों को भी बताई थी. इतना ही नहीं, उस ने वह फोन नंबर भी पुलिस को दिए थे, जिन से उसे फोन आते थे. पुलिस ने उन नंबरों की जांच की तो मालूम पड़ा कि वह नंबर ट्रक ड्राइवरों के थे, जो अलगअलग राज्यों बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र आदि के रहने वाले थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि जगजीत सिंह नामक किसी व्यक्ति से उन का दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है.

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11 साल बाद: भाग 2

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इस केस में अभियोजन पक्ष की ओर से कई गवाह भी पेश किए गए थे. पिछले महीने यानी सितंबर में सारी गवाहियां पूरी हो चुकी थीं और अदालत ने फैसले की तारीख 10 अक्तूबर, 2019 तय कर दी थी. इस मामले में रविंदर कौर को सजा होनी तय थी.

23 सितंबर, 2019 को जालंधर देहात के एसएसपी नवजोत सिंह माहल को फैजाबाद की फैमिली कोर्ट से एक फैक्स प्राप्त हुआ. उस फैक्स में लिखा था कि रविंदर कौर बनाम जगजीत सिंह उर्फ सोनू पुत्र मंजीत सिंह बग्गा निवासी 13, गुरुनानक नगर, रायबरेली, उत्तर प्रदेश.

केस नंबर 104/2009  धारा 125 में उस के खिलाफ 4 लाख 32 हजार रुपए का कंडीशनल वारंट जारी किया गया है. आरोपी जालंधर देहात क्षेत्र में कहीं छिपा बैठा है. तत्काल प्रभाव से उसे गिरफ्तार कर फैजाबाद की अदालत में पेश किया जाए.

दरअसल, फैजाबाद की अदालत में जज के सामने केस की बहस के दौरान रविंदर कौर के वकील विजय शंकर पांडेय ने कहा था कि जगजीत सिंह जिंदा है और वह जालंधर में किसी स्थान पर छिपा बैठा है. इस के बाद फैजाबाद, उत्तर प्रदेश की अदालत ने फैक्स द्वारा जालंधर देहात के एसएसपी नवजोत सिंह माहल को रविंदर कौर के पति जगजीत सिंह बग्गा को ढूंढने का आदेश दिया था.

अदालत के आदेश पर पंजाब पुलिस का एक्शन

उक्त फैक्स मिलने के बाद एसएसपी नवजोत सिंह माहल ने जालंधर देहात क्षेत्र के थाना लांबड़ा के थानाप्रभारी एसआई पुष्प बाली को उक्त फैक्स देते हुए आरोपी को शीघ्र तलाश कर अरेस्ट करने के आदेश दिए. एसआई पुष्प बाली को यह आदेश 24 सितंबर, 2019 को प्राप्त हुआ और उसी दिन से उन्होंने आरोपी की तलाश शुरू कर दी.

25 सितंबर को रविंदर कौर थाना लांबड़ा पहुंची और एसआई पुष्प बाली से मिल कर हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना की कि अगर उस के पति जगजीत को शीघ्र न ढूंढा गया तो निर्दोष होते हुए भी आने वाली 10 अक्तूबर को अपने पति की हत्या के आरोप में उसे और उस के परिवार को जेल जाना पड़ेगा. रविंदर कौर ने जांच अधिकारी को अपने पति जगजीत सिंह के लापता होने का शुरू से अंत तक का सारा मामला समझाया और वह फोन नंबर भी दिया, जिस से कुछ दिन पहले उसे जालंधर से पति का फोन आया था.

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एसआई पुष्प बाली ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा कर जांच की. वह फोन किसी आटो वाले का था. उन्होंने आटो वाले को बुला कर उस से लंबी पूछताछ की.

आटो वाले ने बताया, ‘‘साहब, गांव सिंघा में हरनेक ढाबे पर काम करने वाले एक आदमी ने उस से फोन मांग कर काल की थी.’’

समय न गंवाते हुए पुष्प बाली हरनेक ढाबे पर पहुंच गए. उन के साथ रविंदर कौर भी थी. जांच अधिकारी ने ढाबे पर काम करने वाले सभी लोगों को अपने सामने खड़ा किया तो रविंदर कौर एक आदमी को बड़े गौर से देखने लगी. वह उस के पति की तरह लग रहा था, लेकिन वह उसे एकाएक नहीं पहचान पा रही थी.

वजह यह कि जगजीत सिंह 11 साल पहले जब घर से लापता हुआ था, तब उस के सिर पर बाल और पगड़ी थी और वह पूरी तरह तंदुरुस्त था, जबकि सामने खड़ा कमजोर सा मोना व्यक्ति किसी भी रूप में उस का पति नहीं लग रहा था. काफी देर तक दोनों मौन खड़े एकदूसरे को देखते रहे. यह दृश्य किसी की भी आत्मा को झकझोर देने वाला था. कुछ देर बाद उस व्यक्ति ने रविंदर कौर को पुकारा, ‘‘सोनी…’’

सामने खड़े व्यक्ति के मुंह से यह शब्द सुनते ही रविंदर कौर के सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोते हुए जगजीत सिंह से लिपट गई. इस के बाद पुलिस ने जगजीत सिंह को हिरासत में ले लिया.

जब रविंदर और जगजीत की शादी हुई थी, तब वे हनीमून मनाने शिमला गए थे और जगजीत ने प्यार से रविंदर कौर का नाम सोनी रखा था. इतना ही नहीं, उस ने अपनी बाजू पर सोनू और सोनी गुदवाया भी था. पुरानी यादें एक बार फिर से ताजा हो गई थीं.

पति के मिल जाने के बाद रविंदर कौर ने थाने से ही फोन कर जगजीत की बात अपने बेटों हरप्रीत बग्गा और हरमीत बग्गा से करवाई. बेटों की आवाज सुन कर जगजीत काफी भावुक हो गया था. जिस समय उस ने घर छोड़ा था, तब हरप्रीत 5 साल का था जो अब 17 साल का गबरू जवान हो गया था.

थानाप्रभारी पुष्प बाली ने किया कमाल

इस मामले को हल करने में थानाप्रभारी पुष्प बाली को इतनी खुशी और आत्मसंतोष मिला, जितना उन्हें अपनी पूरी नौकरी के दौरान नहीं मिला था. दो बिछड़े हुओं को मिलाना और 4 निर्दोषों को सजा से बचाना बहुत बड़ी बात थी.

वैसे तो इस मामले में थानाप्रभारी पुष्प बाली का कोई वास्ता नहीं था. उन का काम सिर्फ इतना था कि वे अदालत के आदेश को मान कर जगजीत सिंह को फैजाबाद की अदालत तक पहुंचाएं. पर मामला इतना दिलचस्प था कि उन्होंने इस पूरे प्रकरण की जगजीत सिंह और रविंदर कौर से पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह कम चौंकाने वाली नहीं थी.

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गुरुनानक नगर, थाना कोतवाली, रायबरेली, उत्तर प्रदेश में करोड़ों की चलअचल संपत्ति का मालिक जगजीत सिंह बग्गा उर्फ सोनू सिर्फ अपनी पत्नी को फंसाने के लिए ढाबे पर बरतन साफ कर रहा था. सोनू के पिता का वहां पर कपड़े का बड़ा कारोबार था. खुद की फैक्ट्री लगी हुई थी. वहां पर वह ऐश की जिंदगी जीता था.

शादी के कुछ सालों बाद पत्नी के साथ विवाद शुरू हुआ तो उस ने पत्नी से तलाक मांगा. पत्नी ने तलाक देने से मना कर दिया तो वह वहां से भाग कर जालंधर आ गया और थाना लांबड़ा के अंतर्गत मुद्दा गांव में एक ढाबे पर बरतन मांजने की नौकरी करने लगा.

3 साल तक मुद्दा गांव में ढाबे पर काम करने के बाद वह नौकरी छोड़ कर गांव सिंघा में हरनेक ढाबे पर बरतन मांजने का काम करने लगा. ढाबे पर उसे 4 हजार रुपए पगार के साथसाथ खाना और कपड़े मिल रहे थे, जिन से वह अपना गुजारा कर रहा था.

जांच में सामने आया कि जगजीत के परिजनों को पता था कि वह जालंधर, लांबड़ा के सिंघा गांव में है. उस ने अपने परिवार वालों से अपनी बदहाली की बात इसलिए कभी नहीं बताई थी कि कहीं वे आर्थिक मदद न भेज दें और फंस जाए. यहां तक कि वह अपने पिता या परिवार के किसी सदस्य से जब भी बात करता था तो रिश्तेदारों के फोन पर करता था. उसे डर था कि कहीं परिवार के फोन के जरिए पुलिस उस तक न पहुंच जाए.

जगजीत कुछ महीने पहले से अपनी पत्नी रविंदर कौर को अलगअलग नंबरों से फोन करता रहता था. इस के लिए वह ढाबे पर आने वाले ट्रक ड्राइवरों से मोबाइल मांग लेता था. इसीलिए पुलिस उस का फोन ट्रेस नहीं कर पाई थी. आखिरी काल उस ने एक आटो वाले के फोन से की थी, उसी के जरिए वह पकड़ में आ गया था.

अपनी ही गलती से पकड़ा गया जगजीत

आखिरी काल में जगजीत ने रविंदर कौर से कहा था, ‘‘तुम मेरे घर वालों को बिना वजह क्यों तंग कर रही हो. मैं जिंदा हूं. इस समय कहां हूं, यह नहीं बताऊंगा. अगर किसी में दम है तो ढूंढ कर दिखाए.’’ इतनी बात कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी थी.

दरअसल रविंदर कौर ने जगजीत और उस के परिवार वालों पर खर्चे का जो केस डाल रखा था, वह जीत गई थी और उस के पिता को अदालत में साढ़े 4 लाख रुपए जमा करने थे.

इस से पहले जगजीत सिंह जब भी पत्नी को फोन करता था तो वह अपना नाम नहीं बताता था. रविंदर कौर केवल आवाज से ही पहचान पाती थी कि वह उस के पति की आवाज है. लेकिन इस बार उस ने रविंदर से बात करते समय साबित कर दिया था कि वह जगजीत ही है.

पति के जीवित होने की पुष्टि हो जाने के बाद रविंदर कौर बहुत खुश हुई क्योंकि 10 अक्तूबर को इस मामले में सजा जो सुनाई जाने वाली थी. रविंदर ने पति के जीवित होने की बात अपने वकील के माध्यम से फैजाबाद कोर्ट को बता दी. कोर्ट ने इस बाबत जालंधर देहात के एसएसपी को फैक्स भेज कर जगजीत सिंह का पता लगाने के आदेश दिए.

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जगजीत सिंह के मिल जाने के बाद जालंधर देहात के एसएसपी नवजोत सिंह माहल ने इस की जानकारी फैजाबाद की अदालत को दे दी. फैजाबाद अदालत की तरफ से एसएसपी माहल को ईमेल आया कि वह पुलिस कस्टडी में पूरी सुरक्षा के साथ जगजीत सिंह व रविंदर कौर को फैजाबाद अदालत में पेश करें, इस का पूरा खर्च अदालत वहन करेगी.

थानाप्रभारी ने कागजी काररवाई पूरी करने के बाद 28 सितंबर, 2019 को जगजीत सिंह को फैमिली कोर्ट, फैजाबाद में पेश किया. वहां से उसे रायबरेली की ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया.

हर अपराधी को यह गलतफहमी होती है कि उस ने जो अपराध किया है, उसे कोई पकड़ नहीं सकता. जैसेजैसे समय गुजरता है, वैसेवैसे अपराधी का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगता है. यही गलतफहमी जगजीत सिंह उर्फ सोनू को भी थी और वह गलती कर बैठा. लेकिन उस की इस गलती ने 4 निर्दोष लोगों को जेल जाने से बचा लिया था. – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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मौत की छाया: भाग 2

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छाया से की गई पूछताछ में पुलिस वालों को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी. सिवाय इस के कि पुष्पेंद्र पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत पुष्पेंद्र जैसे तगड़े मर्द का न तो अकेले गला घोंट सकती थी और न अकेले घर से 20 किलोमीटर दूर ले जा कर शिकोहाबाद की भूड़ा नहर में फेंक सकती थी. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

मृतक पुष्पेंद्र के दोनों बेटे आलोक व आकाश अपने पिता के साथ रहते थे. उन दोनों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि जब पापा घर नहीं लौटे तो उन्होंने समझा कि वह मम्मी के पास कबीरनगर गए होंगे. 12 जून की सुबह 7 बजे मम्मी का फोन आया, जिस में उस ने कहा कि त्यौहार का दिन है, मेरे पास आ जाओ.

हम लोग मम्मी के पास कबीरनगर पहुंच गए. वहां पापा को न देख हम ने मम्मी से पूछा कि पापा कहां हैं, इस पर उस ने बताया कि वे रात में आए थे और कुछ देर रुक कर वापस चले गए थे. इस के थोड़ी देर बाद ही उन्हें पता चला कि पापा की मौत हो गई है.

मृतक के भाई महेश ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि 11 जून को रात लगभग 11 बजे पुष्पेंद्र पत्नी के पास जा रहा था. रास्ते में पुष्पेंद्र का रिश्ते का साढ़ू मिल गया. उस ने पुष्पेंद्र को इतनी रात में छाया के पास जाने से मना भी किया, लेकिन पुष्पेंद्र नहीं माना. ससुराल में ही उस की हत्या कर लाश मोटरसाइकिल से ले जा कर नहर में फेंक दी गई.

पुलिस को मिला सुराग

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने इंसपेक्टर को बताया कि छाया चोरीछिपे अब भी अपने प्रेमी संतोष से मिलती है. दोनों के नाजायज संबंध का जो शक किया जा रहा था, वह सच निकला. जाहिर था, हत्या अगर छाया ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों की भनक लगते ही छाया और उस का प्रेमी संतोष फरार हो गए.

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दोनों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के 2 महीने बाद 12 अगस्त को सीओ अजय सिंह चौहान और थानाप्रभारी अजय किशोर ने छाया व उस के प्रेमी संतोष शास्त्री को शिकोहाबाद स्टेशन रोड से हिरासत में ले लिया. दोनों फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. छाया पुलिस को दिए अपने बयानों में गड़बड़ा रही थी. जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने कहा कि पति ने उस का जीना हराम कर दिया था. वह उस के चालचलन पर शक करता और मारतापीटता था.

इस के साथ ही दोनों बच्चों को भी उस से छीन लिया था. ऐसे में उस के सामने यह कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, इस तरह थी—

पुष्पेंद्र 3 भाइयों महेश और नरेश के बाद तीसरे नंबर का था. ये लोग गांव रैमजा, थाना नारखी, जिला फिरोजाबाद के मूल निवासी थे. लगभग 14 साल पहले पुष्पेंद्र की शादी फिरोजाबाद के थाना उत्तर के कबीरनगर खेड़ा निवासी इश्लोकी राठौर की पुत्री छाया से हुई थी. इश्लोकी की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. इन में छाया सब से बड़ी थी. उस के बाद वर्षा और 2 भाई सोनू व मोनू थे.

पुष्पेंद्र के पास अपनी मैक्स गाड़ी थी. वह वाहनों के टायर खरीदने व बेचने का व्यवसाय करता था. 3 साल पहले उस ने फिरोजाबाद के कृष्णानगर में एक मकान खरीद लिया था और परिवार सहित गांव से आ कर उसी मकान में रहने लगा था. शादी के बाद उस के 2 बेटे हुए, इन में 13 वर्षीय आलोक 8वीं में पढ़ रहा था, जबकि 11 वर्षीय आकाश 6ठीं में था.

पुष्पेंद्र की गृहस्थी हंसीखुशी चल रही थी. करीब डेढ़ साल पहले जैसे उस के परिवार को किसी की नजर लग गई. हुआ यह कि कृष्णानगर में भागवतकथा का आयोजन हुआ. भागवतकथा में भजन गायक संतोष शास्त्री का छोटा भाई राजकुमार कृष्ण बना और छाया रुक्मिणी. भजन गायक संतोष भी छाया का हमउम्र था.

भरेपूरे बदन की छाया को देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है. 35 की उम्र में भी वह खासी जवान दिखती थी. संतोष के गले से निकली उस की सुरीली आवाज पर छाया रीझ गई. वहीं संतोष भी उस की सुंदरता का दीवाना हो गया.

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भागवतकथा में एक सप्ताह तक रुक्मिणी का अभिनय करने के दौरान ही छाया का संतोष शास्त्री से परिचय हुआ. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे. संतोष हंसीठिठोली के दौरान छाया से कहता, ‘‘रुक्मिणी तो अब संतोष की है.’’

आसपास जहां भी भागवतकथा के आयोजन में संतोष आता, फोन कर के छाया को भी बुला लेता था. धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. इस बीच दोनों के अवैध संबंध भी बन गए थे. अब छाया फोन पर संतोष से लंबीलंबी बातें करने लगी. वह उस के खयालों में खोईखोई सी रहती थी.

घरेलू हिंसा का केस करा दिया

पुष्पेंद्र को जब इस की जानकारी मिली तो इसे ले कर पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. लेकिन छाया ने संतोष से बात करना या मिलना नहीं छोड़ा. इस से पुष्पेंद्र अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करने लगा. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में पुष्पेंद्र छाया की पिटाई भी कर देता था. गृह क्लेश के चलते पिछले डेढ़ साल से छाया पति पुष्पेंद्र से अलग रहने लगी थी.

छाया 3 महीने दिल्ली में अपने मामा के पास रही. वहां वह फोन पर प्रेमी संतोष से बात करती रहती थी. इस बीच उस ने कोर्ट में पुष्पेंद्र पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था. यह मुकदमा जिला फिरोजाबाद के न्यायालय में चल रहा था.

पिछले 6 महीने से छाया अपने मायके कबीरनगर में रह रही थी. इस बीच उस के पास संतोष का आनाजाना लगा रहा. जब भी छाया का प्रेमी से मिलने का मन होता, वह उसे फोन कर देती. दोनों एकदूसरे से मिल कर संतुष्ट हो जाते थे. संतोष छाया के पति की कमी पूरी कर देता था. एक दिन छाया ने संतोष से कहा कि हम लोग इस तरह कब तक तड़पते रहेंगे, रास्ते का कांटा हटा दो.

साजिश को ऐसे दिया अंजाम

इस के बाद छाया व उस के प्रेमी संतोष ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर पुष्पेंद्र और छाया की बातचीत हो जाती थी. जबतब दोनों मोबाइल पर भी बात कर लेते थे. छाया ने पुष्पेंद्र को मीठीमीठी बातों के झांसे में ले लिया था.

10 जून की रात को छाया ने फोन कर पुष्पेंद्र को अपने मायके बुलाया था. लेकिन उस दिन इन लोगों की योजना सफल नहीं हो सकी. इस पर छाया ने 11 जून की शाम को पुष्पेंद्र को फोन किया और कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर रात में आने को कहा. पुष्पेंद्र पत्नी की चाल समझ नहीं सका और 11 बजे जब दोनों बच्चे सो रहे थे, उस ने छोटे बेटे आकाश को जगा कर कहा कि तुम्हारी मम्मी ने बुलाया है, मैं कुछ देर में आ जाऊंगा.

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रात 11 बजे वह कोल्डड्रिंक ले कर छाया के पास पहुंच गया. छाया ने पुष्पेंद्र से बोतल ले ली. वह बोतल ले कर किचन में गई और 2 गिलासों में कोल्डड्रिंक ले कर आ गई. उस ने पुष्पेंद्र वाले कोल्डड्रिंक में नींद की गोलियां घोल दी थीं.

दोनों पलंग पर लेट कर प्यारमोहब्बत की बातें करने लगे. कोल्डड्रिंक पीने के बाद पुष्पेंद्र को नींद आ गई. जब वह गहरी नींद में सो गया तो छाया ने योजनानुसार अपने प्रेमी संतोष शास्त्री को फोन कर के घर बुला लिया.

संतोष छाया के फोन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. फोन आते ही वह छाया के घर पहुंच गया. दोनों ने मिल कर सो रहे पुष्पेंद्र को दबोच लिया और उस का गला दबा कर हत्या कर दी. गला घोंटने के दौरान छाया पुष्पेंद्र के दोनों हाथ पकड़े रही.

रात में ही शव को ठिकाने लगाना था, क्योंकि दूसरे दिन गंगा दशहरा था. संतोष ने पुष्पेंद्र की मोटरसाइकिल पर लाश इस तरह बैठी स्थिति में रखी, जिस से वह जिंदा लगे. छाया उस के पीछे बैठ गई.

रात में ही संतोष और छाया उसे बाइक से शिकोहाबाद भूड़ा नहर पर लाए और बालाजी मंदिर की ओर ले गए रात में वह जगह सुनसान रहती थी. दोनों ने पुष्पेंद्र के शरीर से कपड़े उतारने के बाद उस के कपड़े और मोबाइल बाइक पर रख दिए. फिर दोनों ने शव को नहर में फेंक दिया. जल्दबाजी में उन्होंने लाश नहर के किनारे पर ही डाल दी थी, जिस से वह पानी के तेज बहाव में नहीं बह सकी.

सुबह नहर पर मेला लगा और लोग नहर में नहाने के लिए पहुंचे. युवकों की एक टोली जब नहा रही थी, तभी एक युवक के पैर के नीचे पुष्पेंद्र का शव आ गया, जिसे नहर के बाहर निकाल कर पुलिस को सूचना दी गई.

पुलिस ने पुष्पेंद्र हत्याकांड में उस की पत्नी छाया, उस के प्रेमी संतोष शास्त्री को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुष्पेंद्र के दोनों बच्चे अपने ताऊ महेशचंद्र के पास रह रहे हैं.

छाया ने वासना में अंधी हो कर पति की हत्या कर अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं अपनी हंसतीखेलती गृहस्थी के साथ अबोध बच्चों से भी दूर हो गई. -कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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