छोटी छोटी खुशियां- भाग 2: शादी के बाद प्रताप की स्थिति क्यों बदल गई?

Writer- वीरेंद्र सिंह

आनंद मामा ने बिरादरी के न जाने कितने लड़केलड़कियों की शादियां कराई थीं. इसलिए किसी भी लड़की के लिए लड़के वालों को कैसे पटाया जाता है, यह उन्हें अच्छी तरह आता था. ‘लड़की में कोई कमी नहीं है,’ मामा ने बताया था, ‘बस, स्वभाव से थोड़ा गरम है और बोलती भी कुछ ज्यादा है. अपना प्रताप तो सीधासादा और चुप्पा है. इसलिए उस के साथ आराम से निभ जाएगी. जिंदगी गुजारने के लिए एक का थोड़ा गरम होना जरूरी है. दोनों ही एक तरह के हो जाएंगे तो सबकुछ बंटाधार हो जाएगा. जिस का मन होगा, वही बेवकूफ बना देगा.’

प्रताप के मांबाप ने हां में सिर हिलाया तो आनंद ने आगे कहा, ‘देखो न, अरविंद दिल्ली में कब से रह रहा है.’ प्रताप के बड़े भाई का उल्लेख करते हुए वे असली मुद्दे पर आ गए, ‘हाड़तोड़ मेहनत कर के 15 साल में भी वह इस तरह का एक घर नहीं बना सका, जिस में दोनों भाई साथसाथ रह लेते. यह तो 4 भाइयों की अकेली बहन है. उस से शादी होते ही प्रताप की स्थिति बदल जाएगी.

फिर सचमुच ही शादी के बाद उस की स्थिति बदल गई थी. ससुर ने सुधा को जो फ्लैट दिया था, सुधा प्रताप को उस में पालतू पिल्ले की तरह ले आई थी. ससुराल से मिले फ्लैट में पूरी तरह से व्यवस्थित हो जाने के बाद प्रताप ने मांबाप को गांव से बुला लिया था. उन के आने के 2 दिन बाद ही सुधा ने घर का माहौल भारी बना दिया था. बातबात में वह प्रताप के मांबाप का अपमान करते हुए अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास कर रही थी.

अगले दिन ही शाम को उस के मांबाप के सामने सुधा ने प्रताप को आड़े हाथों ले लिया था. बात कोई खास नहीं थी फिर भी वह प्रताप का अपमान करते हुए धमका रही थी. यह देख कर प्रताप की मां का खून खौल उठा था. उन्होंने सुधा को सलाह दी कि पति के साथ ऐसा व्यवहार शोभा नहीं देता.

सुधा तो जैसे इसी बात का इंतजार कर रही थी. प्रताप को छोड़ कर वह सास पर बरस पड़ी. सात पीढ़ी तक को तारतार कर दिया था. जब तक यह महाभारत चलता रहा, प्रताप की मां की आंखों से आंसू बहते रहे. पिताजी स्थितिप्रज्ञ बने माला फेरने का दिखावा करते रहे. प्रताप की धड़कन बढ़ गई थी. पूरा शरीर पसीनेपसीने हो गया था. मन कर रहा था कि वह सुधा की चोटी पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दे. परंतु वह ऐसा नहीं कर सका क्योंकि ऐसा उस के स्वभाव में नहीं था. दोनों हाथों से सिर थामे वह चुपचाप बैठा रहा.

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पिताजी थोड़ी देर बाद उठे और पत्नी की ओर देख कर बोले, ‘प्रताप, एक गिलास पानी ला.’

उन की आवाज में नाराजगी और लाचारी का मिश्रण था. उन की उपस्थिति में बेटे की तकलीफें और बढ़ेंगी, यह समझने की सूझबूझ उन में थी. यहां रह कर बेटे की लाचारी देख कर दुखी होने के बजाय गांव में परेशानी सह कर रह लेना उन्हें उचित लगा. पैसे वाली बहू लाने के लालच में उन्होंने बेटे का जीवन दुखभरा बना दिया था. यह पीड़ा उन के चेहरे पर साफ झलक रही थी.

प्रताप एक गिलास में पानी ले आया. सुधा मुंह खोले तीनों को ताक रही थी. प्रताप के पिता ने दाहिने हाथ की अंजुरी में पानी ले कर प्रताप की ओर ताकते हुए कहा, ‘मैं देवशंकर हाथ में जल ले कर संकल्प लेता हूं कि जब तक मेरी सांस चलेगी, इस घर में कभी कदम नहीं रखूंगा. और हां, तेरे लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे. जब तेरा मन यहां से ऊब जाए, आ जाना.’

रिकशे में बैठी मां भीगी आंखों से प्रताप को ताक रही थीं. प्रताप की इस कमजोरी को वह पहले से ही जानती थीं. घर के बाहर कोई लड़का उसे मार देता था तो घर में वह इस की शिकायत नहीं करता था. इस तरह की बहू के साथ प्रताप का जीवन कैसे बीतेगा? यह सोचसोच कर वे परेशान थीं. यही पीड़ा उन की आंखों से बह रही थी. रिकशा चला गया तो प्रताप घर आया और उस रात बिना कुछ खाए ही सो गया.

सुधा सुंदर थी, साथ ही पैसे वाले बाप की बेटी भी. इसी सुंदरता और बाप के पैसे के अभिमान ने उसे घमंडी बना दिया था. उस की जीभ में जो भयानक धार और कड़वाहट थी, उसे देख कर पहली नजर में कोई नहीं भांप सकता था. अड़ोसपड़ोस में रहने वालों से वह शालीनता से हंसहंस कर बातें करती थी. मगर प्रताप, उस के परिजनों व रिश्तदारों से वह ऐसा व्यवहार करती थी जैसे वे सभी उस के पुराने दुश्मन हों. उस का व्यवहार दिनोंदिन कू्रर होता जा रहा था.

शादी के सालभर बाद ही प्रताप सुधा के व्यवहार से पूरी तरह परिचित हो गया था. इसी दौरान सुधा ने प्रताप के लगभग सभी संबंधियों से उस के संबंध खत्म करा दिए थे. भैयाभाभी, मामामामी, चाचाचाची, मौसामौसी, सभी इसी शहर में रहते थे, फिर भी प्रताप से अब उन का कोई संबंध नहीं रह गया था. एक बार जो भी प्रताप के घर आया, सुधा ने उस के साथ ऐसा व्यवहार किया कि दोबारा उस की आने की हिम्मत नहीं हुई.

कालेज की पढ़ाई प्रताप ने होस्टल में रह कर की थी. सुबह ब्रश करते समय उस ने एक दृश्य कई बार देखा था. नाली से निकलने वाले काकरोच के लिए गौरैया घात लगाए बैठी रहती थी. काकरोच का शिकार करने की उस की गजब की युक्ति थी. काकरोच दौड़ता तो गौरैया उछल कर उस के एक पैर पर चोंच मारती. एक पैर टूट जाने पर जान बचाने के लिए काकरोच घिसटते हुए आगे बढ़ता तो गौरैया दूसरे पैर पर चोंच मारती. फिर तीसरे, चौथे, इस तरह एक के बाद एक पैर टूटने के बाद काकरोच दौड़ नहीं सकता था. उस के बाद गौरैया आराम से उसे चोंच मारमार कर चीथती थी.

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उसी तरह सुधा ने भी चालाकी से प्रताप को लगभग सभी संबंधियों से अलग कर के उस की सभी टांगें तोड़ दी थीं. भूलचूक से प्रताप का कोई सहकर्मी कभी उस के घर आ जाता तो सुधा के व्यवहार में एकदम से परिवर्तन आ जाता. जब तक वह घर में रहता, सुधा उस की बुराई करती रहती. सुधा के इस व्यवहार से परेशान प्रताप का मन होता कि वह किसी दिन उसे पीट दे. परंतु हृदय की तीव्र इच्छा के बावजूद हाथ लाचार थे क्योंकि बचपन से ही प्रताप का व्यक्तित्व कुछ इस तरह का रहा था कि कभी वह अपनी उग्रता व्यक्त नहीं कर पाया. सहीगलत सहने की उस को आदत सी पड़ गई थी, जो छूट नहीं रही थी. स्कूलकालेज के झगड़ों में भी वह कभी जनून के साथ आगे नहीं आया था.

सजा किसे मिली- भाग 4: आखिर अल्पना अपने माता-पिता से क्यों नफरत करती थी?

लेखिका- सुधा आदेश

पूरी सावधानी बरतने के बाबजूद एक दिन अल्पना को लगा जैसे उस के शरीर में कुछ ऐसा हो रहा है जो वह पहली बार महसूस कर रही है. वह राहुल को इस बारे में बताना चाहती ही थी कि उस ने कहा, ‘अल्पना, मांपिताजी विवाह के लिए जोर डाल रहे हैं, अब मुझे दूसरा घर ढूंढ़ना होगा.’

राहुल की बात सुन कर अल्पना चौंक गई और बोली, ‘तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. और मुझे ऐसी हालत में छोड़ कर तुम कैसे जा सकते हो?’

‘कैसी हालत?’ राहुल बोला.

‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘यह तुम्हारी प्रोब्लम है, इस में मैं क्या कर सकता हूं?’

‘सहयोगी तो तुम भी रहे हो.’

‘वह तो तुम्हारी वजह से…तुम्हीं ने कहा था कि जब मुझे एतराज नहीं है तो तुम्हें क्यों है…अब तुम भुगतो?’

‘ऐसा तुम कैसे कह सकते हो…तुम तो मेरे मित्र, हमदर्द रहे हो.’

‘देखो अल्पना, पिताजी मेरा विवाह तय कर चुके हैं और उन्हें मना करना मेरे लिए संभव नहीं है. फिर मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो और विवाह से पहले ही अपना शरीर किसी को दे देने में उसे कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता हो.’

‘परंपराओं की दुहाई मत दो, राहुल. तुम भी विवाह से पहले संबंध बना चुके हो. क्या तुम उस लड़की के साथ अन्याय नहीं करोगे जिस के साथ तुम विवाह कर रहे हो?’

‘मेरी बात और है, मैं पुरुष हूं… फिर तुम्हारे पास प्रमाण क्या है?’

प्रमाण की बात सुनते ही अल्पना गुस्से से थरथराती हुई राहुल को मारने के लिए झपटी. वह तेजी से हटा तो सामने रखी टेबल से अल्पना टकराई और जमीन पर गिर गई. असहनीय दर्द से पेट पकड़ कर वह वहीं बैठ गई.

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राहुल ने उसे उठाना चाहा तो उस ने चिल्ला कर कहा, ‘मुझे छूना मत…तुम ने मुझे धोखा दिया…तुम मेरी जिंदगी में न कभी थे, न हो और न ही रहोगे…चले जाओ मेरे घर से.’

राहुल अपना सामान समेट कर चला गया…पूरी रात वह रोती रही. पेट दर्द सहा नहीं गया तो उठ कर उस ने पेन किलर खा लिया. अल्पना को बारबार यही लगता रहा कि क्यों उसे किसी का प्यार और विश्वास नहीं मिलता. पहले मातापिता और अब राहुल…खैर सुबह तक पेटदर्द तो ठीक हो गया था पर मन अभी भी ठीक नहीं हुआ था.

क्या करे इस बच्चे का…माना कि यह बच्चा उस की जिंदगी में जबरदस्ती आ गया है पर है तो उस का अपना अंश ही न, वह अकेली कैसे इस बच्चे की परवरिश कर पाएगी…क्या अपने बच्चे को वह प्यारदुलार और अपनत्व दे पाएगी जिस के लिए वह अपने मातापिता को दोष देती रही थी.

मन में अजीब सी कशमकश चल रही थी. अपने कैरियर के लिए जहां वह बच्चे का बलिदान देना चाहती थी वहीं उस के प्रति स्नेह भी जागने लगा था. वह जानती थी कि बिना विवाह के मां बनना समाज सह नहीं पाएगा…उस के मातापिता सुनेंगे तो जीतेजी ही मर जाएंगे. आज न जाने क्यों मां के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे, जो उन्होंने उसे राहुल के साथ रहते देख कहे थे, ‘बेटा, माना कि मैं तुझे उतना प्यार, दुलार नहीं दे पाई जिस की तू आकांक्षी थी. मैं अपराधिनी हूं तेरी…पर मेरे किए की सजा तू खुद को तो न दे. आज भी हमारा समाज विवाहपूर्व संबंधों को मान्यता नहीं देता है, ऐसे संबंध अवैध ही कहलाएंगे.’

उस समय तो वह सिर्फ वही करना चाहती थी जिस से उस के मातापिता को चोट पहुंचे…राहुल, जिस पर उस ने विश्वास किया उस से ऐसी उम्मीद नहीं थी. बारबार राहुल के शब्द उस के दिलोदिमाग में गूंज कर उस के अस्तित्व को नकारने लगते कि मैं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ संबंध कैसे बना सकता हूं जो विवाह जैसी संस्था में विश्वास ही न करती हो.

कभी मन करता कि आत्महत्या कर ले पर तभी मन उसे धिक्कारने लगता…उसे अपनी वार्डन के शब्द याद आते कि जीवन से भागना बेहद आसान है बेटा, लेकिन कुछ सार्थक करना बेहद ही कठिन, पर तुम ने तो आसान राह ढूंढ़ ली है.

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वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आफिस में छुट्टी की अर्जी भिजवा दी थी. कशमकश इतनी ज्यादा थी कि उस का न बाहर निकलने का मन कर रहा था और न ही किसी से मिलने का. पेट में दर्द उठता पर वह डाक्टर को दिखाने के बजाय दर्दनाशक दवा खा कर दबाने की कोशिश करती रही.

एक दिन जब वह ऐसे ही दर्द से तड़प रही थी तभी बीना मिलने आ पहुंची, उस की ऐसी दशा देख कर वह अचंभित रह गई तथा उसे जबरन अपनी गाड़ी में बिठा कर डाक्टर के पास ले गई…

डाक्टर ने उसे चेकअप करवाने के लिए कहा.

सोनोग्राफी की रिपोर्ट देख कर डाक्टर उस पर बहुत गुस्सा हुई तथा बोली, ‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम गर्भवती हो.’

उस को कोई उत्तर न देते देख वह फिर बोली, ‘तुम लड़कियों की यही तो समस्या है…जरा भी सावधानी नहीं बरततीं…क्या पेट में तुम्हें कोई चोट लगी थी…अपने पति को बुलवा लो, क्योंकि तुम्हारा शीघ्र आपरेशन करना पड़ेगा. लगता है किसी चोट के कारण तुम्हारा बच्चा मर गया है और उसी के इन्फेक्शन से पेट में दर्द हो रहा है.’

डाक्टर की बात सुन कर वह दोनों चौंक गईं. बीना ने बात बनाते हुए कहा, ‘डाक्टर, आपरेशन कब करना पडे़गा. दरअसल इन के पति कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन का इतनी जल्दी आना संभव नहीं है.’

‘आपरेशन कल ही करना पड़ेगा. कोई तो रिश्तेदार होंगे…उन्हें जल्द बुलवा लो…हम इन्हें आज ही एडमिट कर लेते हैं.’

बीना ने अल्पना को देखा फिर डाक्टर की ओर मुखातिब होती हुई बोली, ‘डाक्टर, मैं ही इन की जिम्मेदारी लेती हूं क्योंकि इन का कोई भी रिश्तेदार इतनी जल्दी नहीं आ सकता.’

अल्पना के मना करने पर भी बीना ने उस के मातापिता को फोन कर दिया था. उन्होंने तुरंत आने की बात कही. उन के आने से पहले ही वह आपरेशन थिएटर में जा चुकी थी. बेहोशी की हालत में भी डाक्टर के शब्द उस के कानों में पड़ ही गए, ‘इस के यूट्रस में इन्फेक्शन इतना फैल गया है कि अगर निकाला नहीं तो जान जाने का खतरा है. बाहर जा कर इन के रिश्तेदारों से इजाजत ले लो.’

उस के बाद क्या हुआ पता नहीं. सुबह जब आंख खुली तो मम्मीपापा को अपने पास बैठा पाया. उन को देखते ही उस की नफरत फिर से भड़क उठी थी, अगर उसे उन का प्यार और अपनत्व मिलता तो उस के साथ ऐसे हादसे ही क्यों होते? अगर उस समय नर्स नहीं आती तो वह पता नहीं क्याक्या कह बैठती.

‘‘बेटा, कुछ खा ले वरना ताकत कैसे आएगी?’’ आवाज सुनते ही अल्पना अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई. नर्स पता नहीं कब चली गई थी. मां हाथ में फलों की प्लेट लिए खाने का इसरार कर रही थीं तथा उन के पास ही बैठे पापा आशा भरी नजरों से उसे देख रहे थे. उस ने बिना कुछ कहे ही मुंह फेर लिया क्योंकि वह जानती थी कि मां की आंखों से आंसू बह रहे होंगे पर वह अपने दिल के हाथों विवश थी.

बारबार एक ही विचार उस के मन में आ रहा था कि माना मातापिता उस की उचित परवरिश न कर पाने के लिए दोषी थे पर हर सुविधा मिलने के बावजूद उस ने भी कौन सा अच्छा काम किया. दूसरों को दोष देना तो बहुत आसान है पर जिंदगी बनानाबिगाड़ना तो इनसान के अपने हाथ में है.

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अल्पना समझ नहीं पा रही थी कि कुदरत ने औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है कि एक छोटा सा आंधी का झोंका उस के सारे वजूद को हिला कर रख देता है. सब से ज्यादा दुख तो उसे इस बात का था कि हादसे में उस के गर्भाशय को निकाल देना पड़ा…अपूर्ण औरत बन कर वह कैसे जीएगी?

मां ने तो अपने कैरियर के लिए उस की तरफ ध्यान नहीं दिया पर उस ने तो उन्हें दुख देने के लिए ही यह सब किया…उस का तो यही हश्र होना था. पर वह अभी भी नहीं समझ पा रही थी कि सजा किसे मिली? द्य

आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा- भाग 1

‘‘10 मिनट पहले शुरू हो चुकी होगी क्लास.’’ कालेज के गेट से अंदर आते हुए अपने मोबाइल में टाइम देख अमन बोला.

‘‘यह दिल्ली की धोखेबाज मैट्रो, आज ही रुकना था इसे रास्ते में. क्या यार,’’ सिर झटक कर निराश स्वर में साक्षी ने कहा.

दोनों लगभग भागते हुए क्लासरूम की ओर जा रहे थे.

‘‘प्रशांत सर के लैक्चर में लेट होने का मतलब है क्लास में प्रवेश करते ही खूब सारी डांट, टाइम की वैल्यू पर लंबा सा भाषण और आज तो…’’

‘‘क्या आज तो? डरा क्यों रहा है?’’ साक्षी ने शिकायती अंदाज में पूछा.

‘‘हम दोनों हैं एकसाथ, कोई और दोस्त नहीं है.’’

‘‘ओ माय गौड, मैं तो भूल ही गई थी. लड़कालड़की साथ, मतलब सर का पारा हाई.’’

‘‘वही तो. एक दिन नेहा और कार्तिक कैंटीन में साथसाथ बैठे थे. प्रशांत सर भी पहुंच गए वहां. वे पूछने लगे, उन का रिलेशन, दोनों की कास्ट वगैरहवगैरह.’’

‘‘लगता है सर की शादी नहीं हुई, तभी तो किसी का प्यार देखा नहीं जाता इन से. पिछले महीने कालेज के फाउंडेशन डे पर सभी टीचर्स अपने परिवार के साथ आए थे, लेकिन सर अकेले ही थे. फिफ्टी प्लस तो होंगे ही न, ये सर?’’ साक्षी प्रशांत सर की आयु का अनुमान लगाने लगी.

‘‘हां, फिफ्टी? फिफ्टी फाइव प्लस होंगे, यार.’’

‘‘बेचारे, कुंआरे बिना सहारे,’’ साक्षी ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘चुप, चुप, क्लासरूम आ गया.’’ अमन ने अपने होंठों पर उंगली रख साक्षी को चुप रहने का इशारा किया और दोनों क्लासरूम के भीतर चले गए.

अंदर दृश्य कुछ और ही था. सभी छात्र किसी चर्चा में लीन थे. सर नहीं थे वहां.

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‘‘क्या हो गया?’’ अमन ने हर्षित को संबोधित करते हुए कहा.

‘‘अरे, आज इमरान क्लास में बेहोश हो कर गिर पड़ा. दीपेश ने उस के मुंह पर पानी के छींटे मारे. 2 मिनट बाद ही होश तो आ गया था उसे, पर बहुत बेचैन सा लग रहा था वह. विनायक और दीपेश उसे ले कर उस के घर गए हैं,’’ हर्षित ने बताया.

‘‘तो अब क्यों चिंता कर रहे हो तुम सब, उस के पेरैंट्स ले जाएंगे न डाक्टर के पास, सब ठीक हो जाएगा. नो फिक्र, यार,’’ अमन ने हर्षित को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘क्या खाक ठीक हो जाएगा. पूरी बात तो सुन ले भाई,’’ हर्षित बोला.

‘‘अब तू और क्या सुनाएगा?’’ साक्षी के माथे पर चिंता की रेखाएं खिंच गईं.

‘‘हुआ यों कि जब इमरान के होश में आने पर हम उसे तसल्ली दे रहे थे कि स्वाति न सही कोई और सही, क्यों इतना मरा जा रहा है उस के लिए, तभी…’’

‘‘अरे, इमरान और स्वाति का ब्रेकअप हो गया क्या? इलैवंथ से साथसाथ थे वे दोनों. 6 साल पुराना रिश्ता अचानक कैसे टूट गया?’’ अमन ने हर्षित की बात बीच में ही काट कर प्रश्न किया.

‘‘ब्रेकअप हुआ नहीं, करवा दिया है स्वाति के घरवालों ने. उन को दोनों की रिलेशनशिप का पता लग गया और उन्होंने इमरान को धमकी दे दी कि अगर उस ने कभी स्वाति से बात भी की तो उस का नामोनिशान मिट जाएगा. देखा नहीं, 2 दिनों से वे दोनों दूरदूर बैठ रहे थे. आज तो आई ही नहीं स्वाति. सुना है उस ने अपने पेरैंट्स से कह दिया था कि वह इमरान से रिश्ता नहीं तोड़ सकती. शायद, इसलिए आने न दिया हो उस को,’’ हर्षित ने दोनों को वस्तुस्थिति से अवगत करवाया.

‘‘ओह, बड़ा बुरा हुआ यह तो,’’ साक्षी मुंह बना कर बोली.

‘‘अरे यार, अपनी वह बात तो पूरी कर कि जब सब लोग समझा रहे थे इमरान को, तब क्या हुआ?’’ अमन बेचैन हो कर बोला.

‘‘हां, हुआ यह कि हम सब इमरान को समझाने की कोशिश में लगे हुए थे तो पीछे से प्रशांत सर चुपचाप आ कर खड़े हो गए और उन्होंने सबकुछ सुन लिया.’’

‘‘गई भैंस पानी में,’’ अमन के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘और फिर सर भी दीपेश और विनायक के साथ इमरान के घर चले गए,’’ हर्षित की बात पूरी होते ही तीनों चिंतित हो उठे.

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दोपहर मे कक्षा के लगभग सभी छात्र कैंटीन में बैठे इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे.

‘‘सर ने जरूर इमरान के पेरैंट्स को सबकुछ बता दिया होगा,’’ साक्षी निराश स्वर में बोली.

‘‘पता नहीं क्या पट्टी पढ़ाई होगी आज सर ने उन को,’’ ग्रुप में से आवाज आई.

‘‘अगर इमरान अब कभी स्वाति के साथ बात करने की कोशिश भी करेगा तो सर की नजर रहेगी उस पर,’’ अमन इमरान के भविष्य में आने वाली परेशानियों का अनुमान लगा रहा था.

‘‘अरे, हम लोग बस इमरान के बारे में ही सोच रहे हैं. क्या स्वाति कम दुखी हो रही होगी?’’ अब तक चुप बैठी मारिया स्वाति के मन में उठ रहे तूफान के विषय में सोचते हुए बोली.

तभी दीपेश वहां हांफता हुआ आ पहुंचा. सब को संबोधित कर वह कुछ बोलने ही वाला था कि सब ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘‘क्या हुआ? सर ने क्या कहा वहां जा कर? इमरान के साथ कुछ बुरा तो नहीं हुआ न? सब ठीक तो है न?’’

‘‘गाएज, यू वुंट बिलीव इट. सुनो, प्रशांत सर आज इमरान के पेरैंट्स के साथ स्वाति के घर गए थे. दोस्ती करवा दी उन्होंने दोनों परिवारों की. और स्वाति अब इमरान की तबीयत का हालचाल पूछने उस के घर गई है.’’

‘‘चल झूठे, क्यों हमारे जले पर नमक छिड़क रहा है?’’ तानिया बोली.

‘‘यह ठीक कह रहा है,’’ वहां पहुंच विनायक ने दीपेश का समर्थन करते कहा.

कोई इस घटना पर यकीन ही नहीं कर रहा था.

‘‘दीपेश, तू पहले यह बता कि वहां क्याक्या हुआ.’’

‘‘बता न विनायक, ऐसा किया क्या सर ने कि यह सब हो गया?’’

सब ने उन्हें घेर कर प्रश्न करने शुरू कर दिए.

‘‘मुझे नहीं पता. मैं और विनायक तो इमरान को उस के घर छोड़ कर मौल चले गए थे. दोपहर में व्हाट्सऐप पर इमरान का स्टेटस देख हम चौंक गए. उस में स्वाति और इमरान की एकसाथ हंसते हुए आज खींची हुई एक तसवीर थी. उसे देख कर विनायक ने इमरान को फोन किया. तब उस ने बताया हमें कि यह सब हो गया. लेकिन सर और बाकी सब के बीच क्याक्या बातें हुईं, यह तो उसे भी नहीं पता.’’

‘‘क्यों न हम सर से ही पूछने की कोशिश करें?’’ हर्षित ने सुझाव दिया.

‘‘हां, हम उन को थैंक्स भी बोल देंगे,’’ साक्षी बोली.

‘‘ऐसा करते हैं, 4 बजे शिखा मैम के लैक्चर के बाद हम लोग उन के पास चलेंगे,’’ अमन ने कहा. अमन से सहमत हो सब कक्षा की ओर चल दिए.

शाम 4 बजे प्रशांत सर यूनिवर्सिटी में नहीं थे, इसलिए अमन, साक्षी, दीपेश और हर्षित ने उन के घर जाने का फैसला किया, जो कैंपस में ही था.

वहां पहुंच कर अमन ने डोरबैल बजाई. प्रशांत सर ही आए दरवाजा खोलने. ड्राइंगरूम में विशेष सजावट तो नहीं थी, पर कुछ था जो आकर्षित कर रहा था वहां. लाल रंग के कालीन पर साफसुथरा नीले रंग का सोफा और बीच में गोलाकार सैंटर टेबल पर समाचारपत्र रखा था. दीवार से सटी शैल्फ में रखी साहित्यिक पुस्तकें गृहस्वामी के साहित्य प्रेम की व्याख्या कर रही थीं, तो ऊपर टंगा नदी और सागर के मिलन का तैलचित्र उन के अनुरागी हृदयी होने का प्रमाण था.

‘‘सर, हम आप का शुक्रिया अदा करने आए हैं, आप ने इमरान और स्वाति को एक तरह से नई जिंदगी दे दी है,’’ दीपेश ने बात शुरू की.

‘‘हां सर, हमारे पास धन्यवाद करने के लिए भी शब्द नहीं हैं. पर यह हुआ कैसे?’’ साक्षी ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘प्लीज सर, हमें बताइए न, आप ने ऐसा क्या कहा उन के पेरैंट्स को कि दोनों को मिलने दिया आज उन्होंने?’’ अमन बोला.

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‘‘आप जानना चाहते हैं, ओके, अभी आता हूं मैं, तब तक आप कुछ ले लीजिए, कमला, चाय बना दो,’’ और रसोई में खड़ी स्त्री को चाय बनाने को कह वे दूसरे कमरे में चले गए.

जब वे लौटे तो उन के हाथ में लकड़ी का छोटा सा डब्बा और एक पुरानी डायरी थी.

‘‘आप सब को अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए कुछ समय देना होगा. लो हर्षित, इस पृष्ठ से पढ़ना शुरू करो,’’ डायरी खोल कर सर ने हर्षित के हाथों में देते हुए कहा.

‘‘लेकिन सर, यह तो आप की लिखाई है. मतलब आप की पर्सनल डायरी, जोरजोर से पढ़ूं क्या?’’ हर्षित झिझकते हुए बोला.

‘‘हां, पढ़ो, आज से लगभग 34 साल पहले की है यह,’’ प्रशांत सर बोले.

तब तक चाय और नमकीन लग गए टेबल पर. चाय की चुसकियों के बीच हर्षित ने डायरी खोल कर सर के बताए पृष्ठ से पढ़ना शुरू किया.

1 मई, 1984

अगले सप्ताह से परीक्षाएं शुरू. अविश्वसनीय ही लग रहा है कि मैं एमए फाइनल भी पास करने जा रहा हूं. आज से खुद को अध्ययन में ही केंद्रित करना होगा. कल से यह डायरी अलमारी में और पुस्तकें बाहर.

29 मई

कल अंतिम दिन था परीक्षा का, आज चैन की सांस ली है. लेकिन पूरा दिन खाली बैठना उबाऊ भी लग रहा है. कल सैंट्रल लाइब्रेरी जा कर कुछ पुस्तकें ले आऊंगा. कम से कम घर पर मन तो लगा रहेगा.

30 मई

पुस्तकें ले कर घर लौटा, तो मम्मी ने बताया कि आज सामान लेने चांदनी चौक गई थीं वे. वहां अचानक उन की भेंट अपनी एक पुरानी सहेली जसवंत कौर से हो गई. वे अपने पति के साथ विवाह की खरीदारी करने लुधियाना से दिल्ली आई हुई हैं. जुलाई में उन के परिवार में एक शादी है.

आंटीजी को यहां शौपिंग करने में थोड़ी परेशानी हो रही थी, क्योंकि अंकलजी जल्दबाजी करते हैं. मम्मी के कहने पर वे लोग होटल छोड़ कर कुछ दिनों के लिए हमारे घर आ जाएंगे, फिर आंटीजी मम्मी के साथ 2-3 दिनों में आराम से सब खरीदारी कर सकेंगी.

31 मई

आज दोपहर में वे दोनों आ गए थे. अच्छा लगा उन से मिलना. आंटीजी एक गृहिणी हैं और अंकलजी का पारिवारिक व्यवसाय है.

उन की एक बेटी है जसप्रीत, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए कर रही है. वह छात्रावास में रहती है. आज उस की परीक्षा का अंतिम दिन था. अब वह उन लोगों के साथ लुधियाना चली जाएगी. छुट्टियां भी हैं और वहां उस के ताऊजी के बेटे की शादी भी.

एग्जाम दे कर शाम को जसप्रीत भी आ गई थी हमारे घर. लेकिन उस से मिलना नहीं हो सका मेरा. मैं अपने मित्र सोहन के घर गया हुआ था. कुछ देर पहले ही लौटा हूं. रात के 11 बजे हैं, तेज नींद आ रही है.

1 जून

सुबह नाश्ते के बाद अपने कमरे में एक कहानीसंग्रह ले कर बैठा था. फिर से पढ़ी फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’. सचमुच, कितनी भोलीभाली है यह कहानी, मन मोह लेती है पढ़ने वाले का, तभी तो बनी उस पर ‘तीसरी कसम’ जैसी फिल्म.

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. ‘कौन होगा जो आधे खुले दरवाजे को खटखटा रहा है?’ सोच कर मैं ने दरवाजा खोला. वह जसप्रीत थी.

ओह, कितना गोरा रंग है उस का और बड़ीबड़ी मनमोहक आंखें. मेरा दिल तेजी से धड़क उठा जसप्रीत को देख कर.

‘मारे गए गुलफाम’ के हीरामन को शायद ऐसा ही लगा होगा जब चांदनी रात में उस ने हीराबाई का चेहरा पहली बार देखा था. उस के मुंह से निकल गया था, ‘अरे बाप रे, ई तो परी है.’

गुलाबी सलवारसूट और सितारे लगे दुपट्टे में किसी परी से कम कहां लग रही थी जसप्रीत.

वह अंदर आ कर बैठ गई. मैं डीयू से हिंदी में एमए कर रहा हूं, जान कर वह प्रसन्न हुई. वह हिस्ट्री (औनर्स)

के दूसरे वर्ष की परीक्षा दे चुकी है.

बातोंबातों में पता लगा कि उसे भी साहित्य में रुचि है. मेरी मेज पर रखे कहानीसंग्रह को वह खोल कर देखने लगी. उस में चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी ‘उस ने कहा था’ का उल्लेख करते हुए वह बोली कि यह कहानी उसे बेहद पसंद है.

जसप्रीत की आंखों, उस की बातों और विशेषकर लंबे बालों में न जाने क्या आकर्षण था कि उस की अनामिका उंगली में पहनी हुई अंगूठी मेरी आंखों में खटक रही थी. ‘क्या जसप्रीत का रिश्ता हो चुका है कहीं?’ जी चाहा मैं भी ‘उस ने कहा था’ कहानी के लहना सिंह की तरह ही पूछ लूं, ‘तेरी कुड़माई हो गई?’

पर उस के हाथ में अंगूठी का मतलब यह तो नहीं कि उस की सगाई हो गई हो, उम्र तो ज्यादा नहीं है उस की.

‘आप के हाथ में जो अंगूठी है क्या वह सोने की है?’ आखिर मुझ से रहा नहीं गया.

‘अरे, मैं तो इसे उतारना ही भूल गई. सोने की है पर यह अंगूठी नहीं ‘कलिचड़ी’ है. मेरे वीरजी की मैरिज है न लुधियाना में. यह अंगूठी भरजाईजी की बहन के लिए बनवाई है.’

‘हां, जानता हूं. दूल्हा शादी में अपनी साली को जो अंगूठी देता है, उसे पंजाब में ‘कलिचड़ी’ कहते हैं. पर तुम पहन कर क्यों बैठ गईं इसे?’ मैं जसप्रीत से दोस्ताना अंदाज में बोला.

‘मम्मी ने कहा था कि पहन कर देख लो. उस का और मेरा साइज एक है,’ अंगूठी उतारते हुए मेरी ओर देख मुसकरा कर जसप्रीत बोली.

‘अंगूठी उस की सगाई की नहीं है,’ सोच कर मैं मन ही मन राहत महसूस करने लगा. फिर अगले ही क्षण मुझे अपने पर ही हंसी आ गई. यदि जसप्रीत का रिश्ता तय हो चुका होता तो भी क्या फर्क पड़ता.

2 जून

नाश्ते के समय आज सुबह मैं और जसप्रीत बालकनी में कुरसियां डाल कर बैठे थे. उस ने मुझे अपनी सहेलियों और कालेज के विषय में बताया. मैं ने भी उस से अपने खास मित्रों की चर्चा की.

मम्मी और आंटीजी के चांदनी चौक चले जाने के बाद वह मेरे कमरे में आ कर बैठ गई. हम दोनों को बातचीत के लिए मनपसंद विषय मिल गया था-साहित्य.

उसे हिंदी कहानियों के साथसाथ कविताएं भी अच्छी लगती हैं. हिंदी साहित्य में उस की रुचि देख मुझे आश्चर्यमिश्रित हर्ष हो रहा था.

जब मैं ने उसे बताया कि मुझे रूसी भाषा का हिंदी में अनुवादित साहित्य भी पसंद है तो वह उस विषय में जानने को उत्सुक हो गई. यह सुन कर कि मैं ने मैक्सिम गोर्की का कालजयी उपन्यास ‘मां’ हिंदी में पढ़ा है, वह बेहद प्रभावित हुई. अपनी बड़ीबड़ी आंखें फाड़े मेरी ओर देख कर वह बोली, ‘अरे वाह, कुछ और भी बताओ न रूसी साहित्य के विषय में.’

जसप्रीत का चेहरा उस समय मुझे बेहद मासूम लग रहा था. मेरा नटखट मन चाह रहा था कि मैं उसे कोई प्रेमकहानी सुना दूं. तब मैं ने जानबूझ कर आंतोन चेखोव की कहानी ‘एक छोटा सा मजाक’ के बारे में बताना शुरू कर दिया. कहानी में एक लड़का नाद्या नाम की लड़की से बारबार तेजी से स्लेज पर फिसलते समय कहता है कि वह उस से प्यार करता है और भोलीभाली नाद्या हर बार यही सोचती है कि वह आवाज हवा की है.

कहानी सुन कर जसप्रीत कुछ देर तक मेरी ओर देखती रही. ऐसा लग रहा था जैसे उस की झील सी आंखों में कोई प्रश्न तैर रहा है.

3 जून

आज जसप्रीत भी गई थी चांदनी चौक, उसे अपने लिए खरीदारी करनी थी.

अंकलजी प्रतिदिन मम्मी और आंटीजी के चले जाने के बाद 2-3 घंटे तक सोते रहते हैं और शेष समय समाचारपत्र व पत्रिकाएं आदि पढ़ने में बिता देते हैं. पर आज वे मेरे साथ बैठ कर खूब बातें करते रहे. अंकलजी बहुत रोचक किस्से सुनाते हैं. उन्होंने बताया कि कालेज के दिनों में वे अपने दोस्तों के साथ मिल कर खूब शरारत करते थे. किसी भी बरात में वे सजधज कर चले जाते और दूल्हे के आगे खूब नाचते थे. बाद में खापी कर चुपचाप वापस आ जाते थे.

अंकलजी हिंदी बोलते हुए बीचबीच में पंजाबी के शब्दों का प्रयोग करते हैं. मुझे यह बहुत अच्छा लगता है.

वे मुझे प्रशांत पुत्तर कह कर पुकारते हैं. उन के साथ बातों में दिन हंसते हुए बीत गया.

शाम को सब लोग वापस आ गए. जसप्रीत पास ही खड़े ठेले से मेरे लिए कोला वाली बर्फ की चुस्की ले कर आई. आज सुबह बात कर रहे थे हम दोनों अपनी पसंदनापसंद के विषय में. याद रही जसप्रीत को मेरी पसंद. मेरा रोमरोम खिल उठा.

4 जून

ओह, आज का दिन…क्या लिखूं? इस समय रात में डेढ़ बज चुके हैं. प्रीत सो गई होगी या नहीं? पता नहीं. पर मुझे नींद कहां?

सुबह से ही मेरे दोस्त अविनाश

और संजीव आए हुए थे. शाम

को वापस गए. सारा दिन कोई बात नहीं हुई मेरी जसप्रीत से.

रात को खाना खाने के बाद हम दोनों छत पर चले गए. आसमान में बादल छाए हुए थे और हवा कुछ शीतलता लिए थी. शायद कहीं बारिश हुई होगी.

जसप्रीत मुझे अपनी अब तक की खरीदारी के विषय में बता रही थी. किनारी बाजार और परांठे वाली गली के अनुभव सुना रही थी. मैं टहलते हुए निरंतर उस की ओर देख रहा था. रात की चांदनी में चांदनी चौक की बातें सुनते हुए उस का मदमाता रूप मुझे बारबार किसी और ही लोक में ले जा रहा था. तब मुझे तेज झटका लगा जब जसप्रीत ने अचानक पूछ लिया, ‘क्या आप ने कभी प्यार किया है?’

‘शायद नहीं.’

‘शायद? मतलब?’

‘अभी तक तो नहीं किया था,’ मैं मुसकरा दिया.

‘अच्छा बताओ, मुझे ऐसा क्यों लगता है कि आप के साथ मैं महफूज हूं. आप मुझे जो कहते हो, मेरा वही करने को दिल करता है. आप ने कहा, मैं छत पर चलूं, मैं आ गई, जबकि मैं अंधेरे से बहुत डरती हूं.’

‘सच? पर तुम्हें अचानक यह प्यार वाली बात कैसे सूझी?’ मुझे जसप्रीत की बात से नशा सा होने लगा था.

‘क्योंकि मैं जानना चाहती थी कि तब कैसा लगता होगा जब किसी से प्यार हो जाता है?’

‘हूं, सुनो, तब ऐसा लगता है जैसे आप किसी के पास महफूज हैं,’ मैं अपनी आवाज को गंभीर बनाते हुए बोला.

‘हाय, तुसी ते बड़े शैतान हो,’ आंखें फाड़ कर जसप्रीत लगातार मुझे देख रही थी.

अंधेरे में मुझे उस की आंखों में वह सब दिखाई दे रहा था, जो तेज रोशनी में एक लाज का परदा छिपा लेता है.

‘पर तुम बिलकुल शैतान नहीं हो,’ मैं भावहीन सा चेहरा लिए बोला.

जसप्रीत तेजी से अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास लाई और पंजों के बल खड़े हो कर मेरे माथे को हौले से चूम लिया. मैं इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था. अचानक ही मेरे अंदर एक मादक सी ऊर्जा भरने लगी. हाथ उस को कस कर लपेट लेना चाहते थे, आंखें बस उस को ही देखना चाहती थीं और उस को मैं अपने बहुत करीब महसूस करना चाहता था. मैं ने उस का चेहरा अपने दोनों हाथों में थाम लिया और अपना मुंह उस के कान के पास ले जा कर धीरे से बोला, ‘मेरी सोहणी.’

सूना आसमान- भाग 5: अमिता ने क्यों कुंआरी रहने का फैसला लिया

अमिता की मां मेरे घर आईं और रोतेरोते बता रही थीं कि अमिता के पापा ने उस के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ा था. बहुत अच्छा लड़का था, सरकारी नौकरी में था और घरपरिवार भी अच्छा था. सभी को यह रिश्ता बहुत पसंद था, लेकिन अमिता ने शादी करने से इनकार कर दिया था. घर वाले बहुत परेशान और दुखी थे, अमिता किसी भी तरह शादी के लिए मान नहीं रही थी.

‘‘शादी से इनकार करने का कोई कारण बताया उस ने,’’ मेरी मां अमिता की मम्मी से पूछ रही थीं.

‘‘नहीं, बस इतना कहती है कि शादी नहीं करेगी और पहाड़ों पर जा कर किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेगी.’’

‘‘इतनी छोटी उम्र में उसे ऐसा क्या वैराग्य हो गया,’’ मेरी मां की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. पर मैं जानता था कि अमिता ने यह कदम क्यों उठाया था? उसे मेरा इंतजार था, लेकिन मैं ने हठ में आ कर निधि से शादी कर ली थी. मैं दोबारा अमिता के पास जा कर उस से माफी मांग लेता, तो संभवत: वह मान जाती और मेरा प्यार स्वीकार कर लेती. हम दोनों ही अपनी जिद्द और अहंकार के कारण एकदूसरे से दूर हो गए थे. मुझे लगा, अमिता ने किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ अपना रिश्ता तोड़ा है.

मेरी शादी हो गई थी और मुझे अब अमिता से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए था, पर मेरा दिल उस के लिए बेचैन था. मैं उस से मिलना चाहता था, अत: मैं ने अपना हठ तोड़ा और एक बार फिर अमिता से मिलने उस के घर पहुंच गया. मैं ने उस की मां से निसंकोच कहा कि मैं उस से एकांत में बात करना चाहता हूं और इस बीच वे कमरे में न आएं.

मैं बैठा था और वह मेरे सामने खड़ी थी. उस का सुंदर मुखड़ा मुरझा कर सूखी, सफेद जमीन सा हो गया था. उस की आंखें सिकुड़ गई थीं और चेहरे की कांति को ग्रहण लग गया था. उस की सुंदर केशराशि उलझी हुई ऊन की तरह हो गई थी. मैं ने सीधे उस से कहा, ‘‘क्यों अपने को दुख दे रही हो?’’

‘‘मैं खुश हूं,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘शादी के लिए क्यों मना कर दिया?’’

‘‘यही मेरा प्रारब्ध है,’’ उस ने बिना कुछ सोचे तुरंत जवाब दिया.

‘‘यह तुम्हारा प्रारब्ध नहीं था. मेरी बात को इतना गहरे अपने दिल में क्यों उतार लिया? मैं तो तुम्हारे पास आया था, फिर तुम मेरे पास क्यों नहीं आई? आ जाती तो आज तुम मेरी पत्नी होती.’’

‘‘शायद आ जाती,’’ उस ने निसंकोच भाव से कहा, ‘‘लेकिन रात को मैं ने इस बात पर विचार किया कि आप मेरे पास क्यों आए थे. कारण मेरी समझ में आ गया था. आप मुझ से प्यार नहीं करते थे, बस तरस खा कर मेरे पास आए थे और मेरे घावों पर मरहम लगाना चाहते थे.

‘‘मैं आप का सच्चा प्यार चाहती थी, तरस भरा प्यार नहीं. मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि किसी के सामने प्यार के लिए आंचल फैला कर भीख मांगती. उस प्यार की क्या कीमत, जिस की आग किसी के सीने में न जले.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा अहंकार नहीं है?’’ उस की बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

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‘‘हो सकता है, पर मुझे इसी अहंकार के साथ जीने दीजिए. मैं अब भी आप को प्यार करती हूं और जीवनभर करती रहूंगी. मैं अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए ही उस दिन आप के पास मिठाई देने के बहाने गई थी, लेकिन आप ने बिना कुछ सोचेसमझे मुझे ठुकरा दिया. मैं जानती थी कि आप दूसरी लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं, शायद उन में से किसी को प्यार भी करते हों. इस के बावजूद मैं आप को मन ही मन प्यार करने लगी थी. सोचती थी, एक दिन मैं आप को अपना बना ही लूंगी. मैं ने आप का प्यार चाहा था, लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई. फिर भी अगर आप का प्यार मेरा नहीं है तो क्या हुआ, मैं ने जिस को चाहा, उसे प्यार किया और करती रहूंगी. मेरे प्यार में कोई खोट नहीं है,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी थी.

‘‘अगर अपने हठ में आ कर मैं ने तुम्हारा प्यार कबूल नहीं किया, तो क्या दुनिया इतनी छोटी है कि तुम्हें कोई दूसरा प्यार करने वाला युवक न मिलता. मुझ से बदला लेने के लिए तुम किसी अन्य युवक से शादी कर सकती थी,’’ मैं ने उसे समझाने का प्रयास किया.

वह हंसी. बड़ी विचित्र हंसी थी उस की, जैसे किसी बावले की… जो दुनिया की नासमझी पर व्यंग्य से हंस रहा हो. वह बोली, ‘‘मैं इतनी गिरी हुई भी नहीं हूं कि अपने प्यार का बदला लेने के लिए किसी और का जीवन बरबाद करती. दुनिया में प्यार के अलावा और भी बहुत अच्छे कार्य हैं. मदर टेरेसा ने शादी नहीं की थी, फिर भी वह अनाथ बच्चों से प्यार कर के महान हो गईं. मैं भी कुंआरी रह कर किसी कौन्वैंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाऊंगी और उन के हंसतेखिलखिलाते चेहरों के बीच अपना जीवन गुजार दूंगी. मुझे कोई पछतावा नहीं है.

‘‘आप अपनी पत्नी के साथ खुश रहें, मेरी यही कामना है. मैं जहां रहूंगी, खुश रहूंगी… अकेली ही. इतना मैं जानती हूं कि बसंत में हर पेड़ पर बहार नहीं आती. अब आप के अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस की आंखों में अनोखी चमक थी और उस के शब्द तीर बन कर मेरे दिल में चुभ गए.

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मुझे लगा मैं अमिता को बिलकुल भी नहीं समझ पाया था. वह मेरे बचपन की साथी अवश्य थी, पर उस के मन और स्वभाव को मैं आज तक नहीं समझ पाया था. मैं ने उसे केवल बचपन में ही जाना था. अब जवानी में जब उसे जानने का मौका मिला, तब तक सबकुछ लुट चुका था.

वह हठी ही नहीं, स्वाभिमानी भी थी. उस को उस के निर्णय से डिगा पाना इतना आसान नहीं था. मैं ने अमिता को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी. काश, मैं उस के दिल को समझ पाता, तो उस की भावनाओं को इतनी चोट न पहुंचती.

अपनी नासमझी में मैं ने उस के दिल को ठेस पहुंचाई थी, लेकिन उस ने अपने स्वाभिमान से मेरे दिल पर इतना गहरा घाव कर दिया था, जो ताउम्र भरने वाला नहीं था.

सबकुछ मेरे हाथों से छिन गया था और मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह अमिता के घर से चला आया.

अपने हुए पराए- भाग 3: आखिर प्रोफेसर राजीव को उस तस्वीर से क्यों लगाव था

लेखक-योगेश दीक्षित

‘‘बेटा पानी ले आ, मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही.’’

‘‘क्या हो गया, आप कुछ बताते भी नहीं. अच्छा रुकिए, पहले पानी पीजिए.’’ पानी का गिलास थमाते हुए मैं बोला, ‘‘आप आज इतने उदास क्यों हैं?’’

‘‘बेटा, राहुल नए घर में चला गया.’’

‘‘क्या?’’ मेरे पैरों के नीचे जमीन खिसक गई. शादी तो उस ने अपनी मरजी से कर ली थी, बहू ले आया, न कोई न्योता न कार्ड और अब घर भी अलग कर लिया. प्रोफैसर राजीव की परेशानियों का दर्द अब मुझे समझ आया.

राहुल यह कैसे कर सकता है, मैं सोच उठा?

अंकल 75 वर्ष की उम्र क्रास कर चुके हैं. अम्मा जी रुग्ण हैं. और राहुल घर से अलग हो गया. चिंताओं के बादल मेरे सिर पर उमड़ गए. वृद्धावस्था में पुत्र की कितनी आवश्यकता होती है, इसे कौन नहीं समझता. राहुल को अवश्य अपर्णा ने बहकाया होगा.

प्रोफैसर राजीव ने राहुल के लिए क्या कुछ नहीं किया, स्नातकोत्तर कराया, कालेज में नौकरी लगवाई. दिनरात उस के पीछे दौड़े. और आज उस ने यह सिला दिया अंकल को. उन्हें अपने से ज्यादा करुणा की चिंता थी. वे उस के विवाह के लिए चिंतित थे. उन्हें मेरे और करुणा के संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी. करुणा की शादी के लिए उन्होंने कितने ही प्रयास किए थे. अच्छा घरबार चाहते थे. लड़का भी कमाऊ चाहते थे जैसे हर पिता की इच्छा रहती है. लेकिन उन्हें हर कदम पर निराशा ही मिली थी. असफलताओं ने उन्हें कमजोर कर दिया था और आज राहुल के अलग घर बसाने की बात ने उन्हें आहत कर दिया.

करुणा को मैं पसंद करता था, यह बात मैं प्रोफैसर राजीव से नहीं कह सका. मैं डर रहा था कि मेरी इस बात का अंकल कुछ गलत अभिप्राय न निकालें. मैं उन का विश्वासपात्र था. उन के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता था कि इस से उन्हें बहुत दर्द पहुंचेगा. प्रोफैसर राजीव कहीं लड़के को देखने जाते तो मुझे भी साथ ले जाते, मैं मना भी नहीं कर पाता.

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करुणा भी इसे जानती थी, लेकिन वह खामोश रही. उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. यह बात मुझे संतोष देती कि जितने भी रिश्ते आते करुणा के उपेक्षित उत्तर से उचट जाते, वह ऐसे तर्क रखती कि वर पक्ष निरुत्तर हो जाते और वापस लौट जाते. मन ही मन मेरी मुसकान खिल जाती.

प्रोफैसर राजीव की हालत दिनबदिन बिगड़ती गई. शरीर दुर्बल हो गया. उन का बाहर निकलना भी बंद हो गया. मैं उन की सेवा में लगा रहा.

एक दिन प्रोफैसर राजीव अपनी डायरी ढूढ़ते करुणा के कमरे में आए. वहां उन्हें करुणा के साथ मेरी तसवीर दिख गई. वे हतप्रभ रह गए. तसवीर को अपने कमरे में ले गए. मुझे बुलाया, बोले, “बेटा, इतनी बड़ी चीज तुम ने मुझ से छिपाई?”

‘‘क्या अंकल?’’

‘‘बेटा, मैं जिसे बाहर तलाश रहा था वह मेरे घर में ही था.’’

मेरे अश्रु छलक गए, ‘‘अंकल, ऐसा कुछ नहीं है. हम मित्र हैं. आप पिता समान हैं मेरे. आप करुणा की शादी जहां करना चाहें, कर दें, मैं विरोध नहीं करूंगा, पूरा सहयोग दूंगा. हमारा करुणा का पवित्र रिश्ता है.’’

‘‘बेटा, यह बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई. मैं तुझे अच्छी तरह से जानता हूं, करुणा तेरे साथ बहुत खुश रहेगी. तेरे जैसा दामाद मुझे कहां मिलेगा. दामाद बेटा ही होता है. बुलाओ, करुणा को.’’

करुणा यह सब अंदर से सुन रही थी, दौड़ी हुई आई. उन के पास बैठ गई. उन्होंने उस का हाथ मुझे देते हुए कहा, ‘‘आज मैं भारमुक्त हो गया, खुश रहो.’’ एकाएक उन्हें कम्पन हुआ, सीना जोर से धड़का, और गरदन एक तरफ मुड़ गई. वे चिरनिद्रा में लीन हो गए. मेरी आंखें छलछला आईं. करुणा चीख कर रो पड़ी. उन के जीवन का अंत ऐसा होगा, सोचा भी नहीं था.

इंट्रो

हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव बेटी करुणा के मामले में थकेहारे जैसे हो गए थे, लेकिन जिंदगी के आखिरी लमहों में घर में ही ऐसी तसवीर मिली जिस ने उन्हें हारने से बचा लिया.

जिंदगी में हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव आज सुबह बहुत ही थके हुए लग रहे थे. मैं उन को लौन में आरामकुरसी पर निढाल बैठे देख सन्न रह गया. उन के बंगले में सन्नाटा था. कहां संगीत की स्वरलहरियां थिरकती रहती थीं, आज ख़ामोशी पसरी थी. मुझे देखते ही वे बोले, ‘‘आओ, बैठो.’’

उन की दर्दमिश्रित आवाज से मुझे आभास हुआ कि कुछ घटित हुआ है. मैं पास पड़ी बैंच पर बैठ गया.

‘‘कैसे हो नरेंद्र?’’ आसमान की ओर निहारते उन्होंने पूछा.

‘‘ठीक हूं,” मैं ने दिया. मेरा दिल अभी भी धड़क रहा था. मैं उन की पुत्री करुणा की तबीयत को ले कर परेशान था. 5 दिनों पूर्व वह अस्पताल में भरती हुई थी. फोन पर मेरी बात नहीं हो सकी. जब भी फोन लगाया स्विचऔफ मिला. चिंताओं ने पैने नाखून गड़ा दिए थे.

मुझे खामोश देख प्रोफैसर राजीव रुंधे स्वर से बोले, “दिल्ली से कब आए?”

‘‘कल रात आया.’’

‘‘इंटरव्यू कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा.’’

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कुछ देर खामोशी छाई रही. उन की आंखें अभी भी आसमान के किसी शून्य पर टिकी थीं. चेहरे पर किसी भयानक अनिष्ट की परछाइयां उतरी थीं जो किसी अनहोनी का संकेत दे रही थीं. मैं चिंता से भर उठा. करुणा को कुछ हो तो नहीं गया. लेकिन जब करुणा को चाय लाते देखा तो सारी चिंताएं उड़ गईं. वह पूरी तरह स्वस्थ्य दिख रही थी.

‘‘पापा चाय लीजिए,’’ करुणा ने चाय की ट्रे गोलमेज पर रखते हुए कहा.

मेरी नजरें अभी भी करुणा के चेहरे पर जमी थीं, लेकिन उस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देख हैरान रह गया, लगा नाराज है. करुणा चाय दे कर मुड़ी ही थी कि पैर डगमगा गए. मैं ने तुरंत हाथों में संभाल लिया. वह संभलती हुई बोली, ‘‘थैंक्यू.’’ मैं तुरंत अलग हो गया. प्रोफैसर राजीव बोले, “जब चलते नहीं बनता तो हाईहील की सैंडिल क्यों पहनती हो?”

‘‘फैशन है पापा.”

‘‘हूं, सभी मौडर्न हुए जा रहे हैं.’’

मैं समझ गया, उन का इशारा राहुल की बहू अपर्णा पर था. अपर्णा अकसर जींस व टोप पहने ही दिखती है.

मेरे पिताजी और प्रोफैसर राजीव की दोस्ती जगजाहिर थी. एक साथ उन्होंने पढ़ाईलिखाई की, नौकरी की. पड़ोस में मकान बनाया. किसी भी समारोह में गए, साथ गए. यहां तक कि चुनाव भी साथ लड़ा.

मन का मीत- भाग 1: कैसे हर्ष के मोहपाश में बंधती गई तान्या

मैं अमेरिका के शहर ह्यूस्टन में एक वीकैंड में पैटिओ में बैठी कौफी पी रही थी. तभी मेरी एक फ्रैंड का फोन आया. उस ने मुझ से आज का प्रोग्राम पूछा, तो मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें ही याद कर रही थी. आज बिलकुल फ्री हूं. बोलो क्या बात है, निम्मो?’’

‘‘तान्या, आज थोड़ी अपसैट हूं, सारा दिन तेरे साथ बिताना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है जल्दी से आ जा और नरेश को भी लेती आना.’’

‘‘नहीं, मैं अकेली आऊंगी.’’

‘‘ओके, समीर भी यहां नहीं है, दोनों दिन भर खूब बातें करेंगी.’’

निम्मो को मैं, जब हम भारत में थे, रांची से ही जानती थी. मेरे पड़ोस में रहती थी. मुझ से 2 साल बड़ी होगी. उस ने अपनी पसंद के लड़के से मांबाप की मरजी के खिलाफ शादी कर ली थी. फिर पति नरेश के साथ मुझ से पहले ही अमेरिका आ गई थी.

निम्मो ने आते ही अपना बैग और

मोबाइल टेबल पर रखा और फिर बोली, ‘‘चल कौफी पिला.’’

मैं ने कौफी बनाई. टेबल पर कौफी का कप रखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम अपसैट क्यों लग रही हो और वीकैंड में तो अकसर नरेश के साथ आती थी, आज क्यों नहीं आया वह?’’

‘‘कल रात नरेश ने काफी डांटा है मुझे.’’

‘‘नरेश और तुम्हें डांटे… अभी तक तो मैं ने तुम्हें ही उसे डांटते हुए सुना है. जरूर तुम ने ही कोई गड़बड़ की होगी.’’

‘‘काहे की गड़बड़, नरेश चिंटू बेटे को ले कर दिन भर के लिए चैस टूरनामैंट में गया था. उस के दोस्त सचिन ने फोन कर उस के बारे में पूछा तो मैं ने नरेश का प्रोग्राम बता दिया. फिर

मैं ने पूछा कि क्या बात है, तो वह बोला कि कुछ खास नहीं, मूवी देखने जा रहा था सोचा तुम लोग भी चलते तो अच्छा होता.’’

‘‘फिर?’’

‘‘मैं भी दिन भर बोर होती. अत: मैं भी मूवी देखने चली गई. हालांकि मैं ने सचिन को इस बारे में कुछ नहीं बताया था. वह तो इत्तफाक से सिनेमाहौल में मिल गया और संयोग से मेरे साथ वाली उस की सीट थी. मूवी खत्म होने के बाद बाहर ही दोनों ने लंच किया. मैं ने नरेश और चिंटू के लिए भी पैक करा लिया.’’

‘‘तुम ने नरेश को मूवी के बारे में पहले बताया था?’’

‘‘नहीं बताया तो क्या हुआ. आने पर बता दिया न… इस पर बिगड़ बैठा और बोला कि तुम्हें बैचलर के साथ नहीं जाना चाहिए था. इसी को ले कर बात बढ़ती गई तो उस ने पूछा कि मुझे उस के साथ रहना है या नहीं. फिर मैं ने भी गुस्से में कह डाला कि नहीं रहना है. चलो, तलाक ले लेते हैं. अमेरिका में तलाक आसानी से मिल जाएगा.’’

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मैं उस का मुंह देखने लगी. एक मैं हूं कि मम्मी ने पराए मर्द से स्पर्श होना भी गुनाह कहा था. जब हाई स्कूल में गई तभी मम्मी ने दिमाग में यह बात बैठा दी थी कि लव मैरिज बहुत बुरी चीज है और बेटी के मायके से डोली में विदा होने के बाद उस की अरथी ही ससुराल से निकलती है.

मैं ने ये बातें गांठ बांध कर रख लीं. एक निम्मो है जिस ने अपनी मरजी से शादी की और अब वह परदेश में तलाक तक की बात सोच रही है, भले तलाक ले या नहीं. इतना सोचना ही बड़ी बात है मेरे लिए. मुझे अपने पुराने दिन याद आने लगे. मैं भी थोड़ा बोल्ड होती तो अपना फैसला खुद ले सकती थी और आज समीर के साथ नहीं होती…

मेरा जन्म भारत के बिहार राज्य के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. मेरा नाम तान्या है पर घर में मुझे प्यार से तनु कह कर बुलाते थे. प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई थी. उन दिनों मैं मम्मी के साथ गांव में थी. पापा की पोस्टिंग छोटे शहर में थी. जब पापा का प्रमोशन के साथ रांची ट्रांसफर हुआ तब हम लोग रांची चले आए.

मम्मी काफी पुराने विचारों वाली धर्मभीरु महिला थीं. उन्होंने शुरू से ही कुछ ऐसी बातें मेरे मन में भर दी थीं, जिन्हें मैं आज तक नहीं भूल पाई. लड़कों से दूर रहो, उन के स्पर्श से बचो आदिआदि. रांची आने पर मैं ने देखा कि यहां स्कूलकालेज में लड़केलड़कियां आपस में बातें करते घूमतेफिरते हैं.

मैं ने जब मम्मी से पूछा कि मुझे लड़कों के साथ बात करने की मनाही क्यों है, तो उन्होंने कहा था, ‘‘तनु बेटी, तुम नहीं समझती हो. तुम इतनी सुंदर हो कि मुझे हमेशा डर बना रहता है. शहर में तो और बच कर रहना है तुम्हें. किसी तरह बीए कर लो, इस के बाद एक अच्छा सा राजकुमार देख कर तेरी शादी कर दूं. बस मेरी जिम्मेदारी यहीं खत्म. वही तुम्हें आजीवन ढेर सारा प्यार देगा.’’

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मैं ने कहा, ‘‘मम्मी, मुझे बीए, एमए नहीं करना है. मैं इंजीनियर बन कर नौकरी करूंगी.’’

‘‘उस के लिए तुम्हें बहुत पढ़ाई करनी होगी, बहुत मेहनत करनी होगी, मेरी सुंदर बिटिया.’’

‘‘यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो. मैं पढ़ूंगी और नौकरी भी करूंगी.’’

मैं ने उस दिन जाना कि मैं भी सुंदर हूं. मैं ने आईने में जा कर अपनी सूरत देखी. मुझे वैसा कुछ नहीं लगा जैसा मां कहती थीं. हर मां को शायद अपनी संतान सुंदर लगती होगी. खैर, देखतेदेखते मेरा मेसरा के बिरला इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में ऐडमिशन हो गया और फिर 4 साल बाद मुझे कंप्यूटर साइंस की डिग्री भी मिल गई. फिर मैं ने मुंबई में एक कंपनी जौइन कर ली.

सत्य असत्य- भाग 5: क्या था कर्ण का असत्य

‘‘निशा हम से मिल कर तो जाती,’’ मां के होंठों से निकले इन शब्दों पर पिताजी चीख उठे, ‘‘वह मिल कर जाती, पर क्यों? क्या तुम्हारे बच्चों की कोई जिम्मेदारी नहीं थी. अरे, उस मासूम को रोक तो लेते. वह अकेली अपना सामान बांधे चली गई और कोई उसे घर तक छोड़ने नहीं गया. क्या वह लावारिस थी?’’

भैया बोले, ‘‘मुझे हमेशा डर सताता रहा कि कहीं सचाई जानने के बाद वह मुझ से नफरत न करने लगे.’’

‘‘अब क्या करोेगे? कहीं और शादी को तैयार हो, तो बात करूं?’’ पिताजी ने थकीहारी आवाज में कहा.

‘‘नहीं, शादी तो अब कभी नहीं होगी.’’

‘‘तो क्या तुम्हारी मां तुम्हें जीवनभर पकापका कर खिलाएगी? निशा के चाचा कहां रहते हैं. कुछ जानते हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अच्छी बात है, अब जो जी में आए, वही करो.’’

एक शाम भैया बोले, ‘‘गीता, क्या ऐसा नहीं लगता कि शरीर का कोई हिस्सा ही साथ नहीं दे रहा? मैं तो अपंग सा हो गया हूं.’’

मैं मुंहबाए उन्हें निहारती रह गई, क्या जवाब दूं, सोच ही न पाई.

एक दिन शाम को पिताजी ने चौंका दिया, ‘‘आज शाम कोई आ रहा है, नाश्ते का प्रबंध कर लेना.’’

‘‘कौन आ रहा है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कहा न कोई है,’’ पिताजी खीझ उठे.

शाम को हम सब निशा को देख कर हैरान रह गए. पिताजी ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया, ‘‘आओ बेटी, आओ,’’ पिताजी ने निशा को सोफे पर बैठाया.

‘‘बेटी, तुम्हारा पत्र मिल गया था. तुम्हारे पिताजी की बीमे की पौलिसी संभाल कर रखी है.’’

वह निशा को उस के पिता की भविष्य निधि और दूसरे सरकारी प्रमाणपत्रों के विषय में बताते रहे और वह चुपचाप बैठी सुनती रही.

‘‘बस, तुम्हारे हस्ताक्षर ही चाहिए थे, वरना मैं तुम्हें कभी आने को न कहता. सब हो जाएगा बेटी, कम से कम यहां दिल्ली के सब काम तो मैं निबटा ही दूंगा.’’

निशा ने कुछ न कहा.

मैं ने उस के सामने नाश्ता परोसा तो पिताजी ने टोक दिया, ‘‘पहले इसे हाथमुंह तो धो लेने दो. सुबह से गाड़ी में बैठी है. उठो बेटी, जाओ.’’

एक तरफ रखे बैग में से तौलिया निकाल निशा बाथरूम में चली गई. जब वह बाहर आई तो उसी पल भैया ने घर में प्रवेश किया. उन्होंने चौंकते हुए कहा, ‘‘निशा, तुम कैसी हो?’’

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निशा ने कुछ न कहा. हम सब खामोश थे. निशा सिर झुकाए चुपचाप खड़ी थी. पिताजी ने उसे बुलाया तो भैया की तंद्रा भंग हुई.

चाय सब ने इकट्ठे पी. मगर हम औपचारिक बातें भी नहीं कर पा रहे थे.

रात को खाने के बाद वह मेरी बगल में सो गई. मेरे लिए जैसे वक्त थम गया था. आधी रात होने को आई, पर नींद मेरी आंखों में नहीं थी. सहसा ऐसा लगा, जैसे हमारे कमरे में कोई है. मैंने भैया को पहचान लिया. वह सीधा निशा की ओर बढ़ रहे थे. मैं सहम गई. फिर देखा, भैया उस के पैरों की तरफ बैठे हैं.

फिर वे हौले से बोले, ‘‘निशा, निशा, उठो. तुम से कुछ बात करनी है.’’

भैया ने कई बार पुकारा, पर उस ने कोई जवाब न दिया. तब भैया ने उसे छुआ तो एहसास हुआ कि निशा को तेज ज्वर है. भैया फौरन डाक्टर को लेने चले गए.

डाक्टर की दवा ने अपना असर दिखाया. सुबह तक निशा की तबीयत में काफी सुधार हो गया था.

मैं चाय ले कर उस के पास गई, ‘‘थोड़ी सी चाय ले लो,’’ फिर भैया से कहा, ‘‘आप भी आ जाइए.’’

‘‘मन नहीं है,’’ निशा ने मना कर दिया.

‘‘क्यों निशा, मन क्यों नहीं है? थोड़ी सी तो पी लो,’’ मैं ने आग्रह किया.

लेकिन वह रो पड़ी. भैया उठ कर पास आ गए. उन्होंने धीरे से उस का हाथ पकड़ा और फिर झुक कर उस का मस्तक चूम लिया, ‘‘सजा ही देना चाहती हो तो मुझे दो, अपनेआप को क्यों जला रही हो? अपराध तो मैं ने किया था.’’

सहसा निशा फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘कर्ण, मैं किसकिस को सजा दूं, अपने पिता को. आप को या गीता को? किसी ने भी मेरे मन की नहीं पूछी, सब एकतरफा निर्णय लेते रहे. सच क्या है किसी ने भी तो नहीं जानना चाहा. मैं क्या करूं?’’

फिर थोड़ा रुक कर, खुद को संभाल कर वह आगे बोली, ‘‘मेरी वजह से सब को पीड़ा ही मिली, लेकिन यह सब मैं ने नहीं चाहा था.’’

‘‘जानता हूं निशा, सब जानता हूं. लेकिन अब वैसा कुछ नहीं होगा, मुझ पर यकीन करो.’’

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मां और पिताजी दरवाजे पर खड़े थे. मां ने उस का मस्तक चूमते हुए कहा, ‘‘बस बेटी, अब चुप हो जाओ.’’

सांवली, प्यारी सी निशा इस तरह लौट आएगी, यह तो मैं ने कभी सोचा भी न था. पूरी कथा में एक सत्य अवश्य सामने आया था कि सत्य वह नहीं जिसे आंखें देखें, सत्य वह भी नहीं जिसे कान सुनें, सत्य तो मात्र वह  है जिस में सोचसमझ, परख, प्रेम व विश्वास सब का योगदान हो. वास्तविक सत्य तो वही है, बाकी मिथ्या है.

सोच का विस्तार- भाग 4: जब रिया ने सुनाई अपनी आपबीती

Writer- वीना त्रेहन

अचानक दादी को ध्यान आया कि बच्ची कहां है. लाओ उसे, मिलूं मैं उस से. दरवाजे की आड़ से निकल बहू रेखा काइरा को लिए अंदर पहुंचीं. आज सुरेशजी मां से आज्ञा लिए बगैर उन के कमरे में आ बैठे. दादी ने बच्ची को गोद में ले माथा चूमा. इतने दिनों बाद मां को बातें करते देख सब खुश थे.

तभी दादी ने कहा कि सुरेश कल सुबह पंडितजी से रिया की शादी करवाने का कह आओ. इन के पास समय कम है. घर को भी सजा लो. हां, एक बात और पंडितजी से जो सामान चाहिए हो लाने को कह दोे. पैसे हम दे देंगे. तुम अकेले कहांकहां भागोगे… और बहू कल दोपहर बाजार जा कर दूल्हादुलहन के कपड़े खरीद लाना. छोटी बेटी को घाघराचोली अच्छा लगेगा. सब के कपड़ों के पैसे मैं दूंगी. जेवर मत खरीदना. मेरे पास हैं. बस अंगरेजी बाबू की अंगूठी खरीद लेना. दादी एक ही सांस में सब कह गईं.

बेटे ने जब पूछा कि मां बुलाना किसकिस को है, तो बोली कि अरे किसी को नहीं. हम ही बराती और हम ही घर वाले.

घर में हलचल थी. सब किसी न किसी काम में व्यस्त थे. पर सब से बड़ी खुशी इस बात की भी थी कि मां ने (दादी) कितने सालों बाद अपने कमरे की दहलीज लांघी. उन के लिए पहले जैसे ही दीवान पर गद्दा बिछा 2 बड़े तकिए लगा दिए गए. शादी का मुहूर्त 4 दिन बाद शुक्रवार का निकला. शनिवार शाम को उन की वापसी.

दुलहन के वेश में रिया और शेरवानी पहने दूल्हे विलियम को सब के बीच बैठा दादी ने अपने संदूक से निकाल अपनी शादी में मिला भारी भरकम सोने का जड़ाऊ रानी हार रिया को और बड़े मोतियों का 4 लड़ी वाला हार विलियम को पहनाया.

बहू ने कहा कि इतने सालों से समेटा ये सब उसे क्यों नहीं दिया गया? फिर अगर रिया को ही देना था तो पहली शादी में क्यों नहीं दिया?

उत्तर मिला कि तब दामाद पर मेरा दिल नहीं बैठा था पर अब ये हमारे बेटाबेटी सदा सुखी रहेंगे.

शादी का दिन. कुछ जानेपहचाने लोगों को बुलाया गया था. आवभगत चल रही थी पर अचानक एक गोरे सूटेडबूटेड को देखा तो जाना कि वह विलियम का कजन है. उन्हें देख रिया हैरानी से बोली कि हाय जीजू. जीजू ने कहा हाय रिया… सरप्राइज, रेखाजी हैरान… निधि का पति पर बहन ने तो कभी नहीं बताया कि उन का दामाद गोरा है. शादी रीतिरिवाज से हो रही थी. विदाई के समय नवदंपती ने दादी के पैर छुए तो आशीर्वाद देते दादी की आंखें भर आईं.

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विलियम ने दादी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले उन्हें आश्वासन दिया कि वह रिया का अच्छा पति बनेगा. भर आई आंखों से रिया ने दादी की आंखों में ममता का प्रतिबिंब देखा. उन के गले लग कहा कि धन्यवाद दादी. मगर दादी ने कहा कि वह क्यों बिटिया, अब रिया क्या बताए कि दादी ने जो अपनी सोच का विस्तार कर लिया था, अपनी सारी उम्र के धर्म, कर्म, पाबंदियां, रूढि़वादिता त्याग कर पोती की खुशी के लिए जो चुना वह इतना सहज नहीं था.

जारेद रात की फ्लाइट से यूएस लौटने वाले थे. रेखाजी ने निधि के लिए झुमके व नन्ही जूली के लिए सोने की छोटी सी चेन खरीद ली, पर अब जारेद को क्या दें. तभी सासूजी एक पुरानी डिबिया ले आईं और फिर बोलीं कि बहू दामाद पहली बार आया है. उसे दे दो. डिबिया खोली तो उस में सोने की गिन्नी थी. रेखाजी ने मुसकराते कहा कि मां आप तो सोने का खजाना हैं. उत्तर मिला कि वह तो हूं ही.

एक रात होटल में रह सुबह रिया व विलियम घर आए. नन्ही काइरा नानी के पास रही. दिन खुशी से बीता और शाम मम्मीपापा उन्हें एअरपोर्ट छोड़ने जाने लगे तो रिया ने दादी को भी चलने को कहा.

रिया दादी के चेहरे पर आए भावों को पहचानती थी. दादी का हाथ सहलाते रिया ने कहा कि दादी आप को अमेरिका में मेरे घर आना होगा.

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इस पर दादी ने कहा कि जरूर पर जब तू काइरा के भाई या बहन को जन्म देगी और मैं परदादी बनूंगी तब.

विली ने रिया की ओर देख मुसकराते हुए कहा कि वह तो आप अब हो गई हैं. काइरा की ग्रेट ग्रांड मां, अगली सीट पर बैठे सुरेशजी ने मुड़ रिया और विली को आशीर्वाद दिया.

नमस्ते जी- भाग 3: नीतिन की पत्नी क्यों परेशान थी?

Writer- डा. उर्मिला कौशिक ‘सखी’

मुझे जब असमंजस में और अधिक नहीं रहा गया तो मैं प्रीति के घर पहुंच गई थी. प्रीति एक कोने में अलग सी बैठी थी. मुझे दहलीज पर देख कर भी कुछ नहीं बोली, वैसे ही बैठी रही थी, वरना तो उठ कर मेरा स्वागत करती थी. मैं ने जब काम छोड़ने के बारे में जानना चाहा तो उस की मां ने इतना ही कहा था, ‘मेमसाहिब, अब प्रीति तुम्हारे घर काम नहीं करेगी. अब यह गांव जाएगी इस की वहां शादी तय हो गई है.’

‘ऐसे अचानक, कैसे?’

‘बस, मेमसाहिब, हम गरीब लोगों के साथ कब, कैसे, क्या गुजर जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. आप ठहरे बड़े आदमी, हम छोटे लोग भला क्या कह सकते हैं? बाकी अब प्रीति आप के घर नहीं जाएगी.’

मेरी लाख कोशिशों के बावजूद प्रीति ने काम छोड़ने का कारण नहीं बतलाया और मैं अपना सा मुंह ले कर वापस घर आ गई थी. घर आ कर मैं कुछ देर तक सोचती रही थी.

‘आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जो प्रीति यों काम छोड़ कर चली गई और अब उस की शादी करने की बातें हो रही हैं. जिस के लिए उसे गांव भेजा जा रहा है. अभी तो प्रीति की उम्र 13 वर्ष की ही होगी, फिर इतनी जल्दी वह भी एकाएक.’

जब समझ में कुछ नहीं आया तो मैं नितिन के पास आ गई और उन से किसी दूसरी काम वाली लड़की का इंतजाम करने को कहा.

अनमने मन से नितिन ने कहा, ‘हां, देखता हूं. इतनी जल्दी थोड़ी ही काम वाली लड़कियां मिलती हैं, वह भी तुम्हारी पसंद की.’

तब मैं ने कहा था, ‘कोई बात नहीं. कैसी भी ले आओ, चलेगी. बच्चों का ध्यान कैसे रखना है, वह सबकुछ मैं समझा दूंगी.’

अगले ही दिन नितिन ने अपनी जानकारी में कइयों को काम वाली के बारे में कह दिया था. उस के 4-5 दिन के बाद शर्माजी के यहां काम करने वाली बाई ने ‘डोर बेल’ बजाई तो सास ने उस के पास जा कर पूछा था, ‘हां रमा, क्या बात है. कैसे आई हो?’

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‘बीबीजी को एक लड़की चाहिए न बच्चों की देखभाल के लिए, सो उसी की खातिर आई थी.’

मैं ने घर के अंदर से ही कह दिया था. ‘हां रमा, चाहिए. लेकिन कौन है?’

‘मेमसाहिब, मेरी बड़ी लड़की 14-15 साल की है मगर…’

‘मगर क्या?’ सास ने पूछा था.

‘जी वह पैर से थोड़ी अपाहिज है. लेकिन घर का सारा काम कर लेती है. मेरी 4 लड़कियां उस से छोटी हैं. वही मेरे पीछे से घर का सारा काम करती है और अपनी छोटी बहनों की देखभाल भी. अब खर्चा बढ़ गया है न. शर्माजी की बीवी ने कहा था कि आप को तो सिर्फ काम वाली 2 घंटे सुबह और 2 घंटे शाम को चाहिए तो वह इतना वक्त निकाल लेगी.’

तब तक मैं भी अपनी सास के पास आ कर खड़ी हो गई थी. मैं ने उस से पूछा था कि महीने के हिसाब से कितने पैसे लोगी? हम उसे दोनों समय खाना तो देंगे ही साथ में कपड़े भी दे देंगे.

उस ने कहा था कि जो मरजी दे देना मांजी. वैसे मैं एक घर में बरतन करने का 300 रुपए लेती हूं.

मैं ने तपाक से कहा था, ‘अच्छा चल, कुल मिला कर महीने के 500 रुपए दे देंगे. अगर ठीक है तो आज शाम से ही भेज दो.’

500 रुपए सुन कर उस ने झट से हां की और हमारा अभिवादन कर के चली गई.

शाम को उस ने अपनी बड़ी लड़की को हमारे यहां काम के लिए भेज दिया था. लड़की का हुलिया दयनीय था. मोटेमोटे काले होंठ, उभरे हुए दांत जिन पर गंदगी साफ देखी जा सकती थी, मैलेकुचैले कपड़े. छाती पर इतना ही उभार था कि बस यह महसूस किया जा सके कि लड़की है. मेरे नाम पूछने पर उस ने अपना नाम आयशा बतलाया था. उसे देख कर मैं मन ही मन सोचने लगी कि ‘यह क्या काम करेगी? पहले तो मुझे ही इस के लिए कुछ करना पड़ेगा.’

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मैं ने तब नहाने का साबुन व बदलने के लिए दूसरे कपड़े देते हुए उसे ताकीद की थी कि पहले तुम अच्छे से नहा कर आओ और दांत साफ करना मत भूलना. उस ने मुझ से कपड़े और साबुन लिए और पूछा, ‘आंटीजी, बाथरूम किस तरफ है?’

मैं चौंक गई थी. ‘अरे, तुम अपने घर जा कर नहा कर आओ.’

तब उस ने कहा था कि आंटी, हमारे घर बाथरूम कहां. मैं तो अंधेरा होने पर ही घर के आंगन में नहा लेती हूं या फिर सूरज निकलने से पहले.

मैं सोच में पड़ गई थी कि क्या करूं, क्या न करूं? यह कैसी मुसीबत आ गई. मांजी को पता चल गया तो. खैर, उसे चुपचाप बाथरूम में भेज मैं आंगन में बिछी चारपाई पर अंकिता को ले कर बैठ गई थी. वह थोड़ी ही देर में नहा कर बाहर आ गई थी. मैं ने उसे उस का सारा काम समझाते हुए उस से पहले बाथरूम की जम कर सफाई करवाई थी.

आयशा मेरी सोच से अधिक समझदार निकली. जो भी कहती वह उसे आगे से आगे, बिना ज्यादा बुलवाए, पूरा कर देती थी. जब भी उस को समय मिलता तो वह अंकिता को ले मेरे पास आ बैठती और कहती थी, ‘आंटी आप कितनी सुंदर हैं. आप क्या लगाती हैं अपने मुंह पर? कौन सी क्रीम लगाती हैं? कौन सा तेल इस्तेमाल करती हैं? आप के बालों से बहुत अच्छी महक आती रहती है.’

लौटती बहारें- भाग 4: मीनू के मायके वालों में क्या बदलाव आया

मैं ने कहा, ‘‘ऐसे एकदम किसी से कोई चीज नहीं लेते. कम से कम मुझ से ही एक बार पूछ लेते. पापा को तो तुम ने कहा ही नहीं होगा. वरना क्या वे मना कर देते.’’

यह सुन कर राजू ने बहुत अवज्ञा से मुंह बनाया. यह देख मुझे गुस्सा आया. मैं ने कहा, ‘‘देख रही हूं तुम दोनों 2 महीनों में ही बहुत बदल चुके हो,’’ कह मैं ने रेनू की ओर मुखातिब हो कर पूछा, ‘‘रेनू यह लड़का कौन है जिस की बाइक पर तुम आई थीं?’’

यह सुन कर रेनू गुस्से से फट पड़ी, ‘‘क्या हो गया दीदी… वह रोमी है. कालेज में मेरे साथ पढ़ता है… क्या हो गया अगर मुझे छोड़ने घर तक आ गया?’’

मैं ने उसे शांत करते हुए कहा, ‘‘रेनू, इन बातों के लिए तुम अभी बहुत छोटी हो, भोली हो, अभी तुम दोनों को अपनी पढ़ाईलिखाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए… राजू, रात मैं पानी पीने उठी तो तुम्हारे कमरे की लाइट जल रही थी. मैं ने सोचा तुम अभी तक पढ़ रहे होगे. लेकिन खिड़की से देखा तो पाया कि तुम रात को 1 बजे तक टीवी देख रहे थे. तुम दोनों जानते हो कि पापा को तुम दोनों से बहुत उम्मीदे हैं. उन्हें यह सब जान कर बुरा लगेगा. अभी पढ़ाई पर पूरा ध्यान लगाओ.’’

यह सुन कर राजू बोला, ‘‘दीदी, हम लोगों ने ऐसा क्या दुनिया से अलग कर दिया है जो तुम हमें ताने मार रही हो?’’

रेनू बोली, ‘‘हमें यह बेकार की रोकटोक पसंद नहीं… आप अपना बहनजीपन हम पर

मत थोपो… अपनी ससुराल में जा कर यह रोब दिखाना.’’

मैं यह सब सुन कर सन्न रह गई कि क्या ये वही रेनू और राजू हैं, जो हर काम मेरे से पूछ कर करते थे? दोनों मैथ और अंगरेजी में कमजोर थे. मैं अपनी पढ़ाई खत्म कर दोनों को रात 1-2 बजे तक पढ़ाती थी. तब जा कर पास होने योग्य नंबर जुटा पाते थे. मैं इन का आदर्श थी.

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हम सब की तेज अवाजें सुन मम्मी भागती हुई चली आईं. हम सब को आपस में उलझते देख हैरान रह गईं. मुझ से पूछने लगीं, ‘‘क्या बात हो गई?’’

मैं कुछ कहती, उस से पहले ही रेनू चिल्लाने लगी, ‘‘होना क्या है मम्मी… मीनू दीदी जब से आईं हैं हमारी जासूसी में लगी हैं कि कहां जाते हैं क्या पहनते हैं, हमारे कौनकौन दोस्त हैं… हमारी छोटीछोटी खुशियां इन से बरदाश्त नहीं हो रही है.’’

राजू बोला, ‘‘मम्मी, जमाना बदल रहा है. हम भी बदल रहे हैं. इन्हें हम से क्या परेशानी है, समझ नहीं आता.’’

मेरा इतना अपमान होते देख मम्मी बौखला गईं. मेरा हाथ खींचते हुए बोलीं, ‘‘तू चल यहां से… काहे को चौधराइन बन रही है… अब तू इन की चिंता छोड़ अपनी ससुराल देख.’’

मुझे किसी ने कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया. मैं अपमानित सी खड़ी थी. शोर सुन कर पापा भी आ गए. बिना कुछ पूछे धीरगंभीर पापा मेरा हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गए. अपमान ने मेरे मुंह पर चुप्पी का ताला लगा दिया. पापा ने भी मुझे इस घटना से उबरने का मौका दिया. वे चुप रहे.

थोड़ी देर बाद मैं उठ कर लिविंग रूम के सोफे पर जा लेटी. कब आंख लग गई, पता ही न चला. रात को डिनर के लिए मम्मी और पापा बारीबारी से मुझे बुलाने आए पर मैं ने भूख नहीं है कह कर मना कर दिया. रेनू और राजू के अलावा किसी ने भी खाना नहीं खाया. मुझे रात भर नींद नहीं आई. यही सोचती रही कि यह मैं ने क्या किया? आई थी इन सब की खुशियों में शामिल होने पर सारे माहौल को तनावयुक्त कर दिया.

अगले दिन मैं जल्दी उठ कर नहा कर तैयार हो गई. मैं ने सब के लिए चाय बनाई. रेनू और राजू को आवाज दे कर उन के कमरे में चाय दे कर आई. मम्मी और पापा की चाय उन के कमरे में ले गई. होंठों पर नकली मुसकान लिए मैं ने बिलकुल नौर्मल दिखने का अभिनय किया. अपनी चाय पीतेपीते मैं अपनी ससुराल के बारे में बिना उन के पूछे बातें शेयर करने लगी. अपने देवर की शैतानियों के बारे में हंसहंस कर झूठी कहानियां सुनाने लगी.

मम्मीपापा भी मेरे द्वारा बनाए माहौल को बनाए रखने में मेरा साथ देने लगे. यह देख मैं सोचने लगी कि हम हिंदुस्तानी औरतों को घरगृहस्थी की गाड़ी सुचारु रूप से चलाने के लिए अभिनय घुट्टी में पिलाया जाता है. कभी मायके की इज्जत रखने को तो कभी ससुराल का मानसम्मान बनाए रखने के लिए अच्छा अभिनय कर जाती हैं?

तभी रेनू कालेज के लिए तैयार हो कर आ गई. उसे देख कर मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘अरे रेनू, आज इतनी जल्दी कालेज जा रही है… 5 मिनट रुक मैं मेरे लिए नाश्ता बना रही हूं… तुझे गोभी के परांठे पसंद हैं. वही बना देती हूं.’’ मगर रेनू मेरी बात अनसुनी कर मम्मी की ओर देखते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आज कालेज में देर हो जाएगी,’’ और फिर सीढि़यां उतर गई.

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मम्मी और मैं देखते रह गए. मैं ने बिना समय नष्ट किए जा कर किचन संभाली. सोचा रेनू तो बिना कुछ खाए निकल गई कहीं राजू भी भूखे पेट न निकल जाए. जल्दी सभी की पसंद ध्यान में रखते हुए नाश्ता बनाया और डाइनिंगटेबल पर लगा दिया.

नाश्ता तैयार है की आवाज लगा कर माहौल को तनावमुक्त करने की कोशिश की. मम्मीपापा तो तुरंत आ गए पर राजू अनमना सा थोड़ी देर बाद आया. उस ने किसी से बात नहीं की. जल्दीजल्दी खा कर खड़ा हो गया. बोला, ‘‘मम्मी, कालेज जा रहा हूं… आज दीदी को बस में बैठाने तो नहीं जाना?’’ और फिर जवाब का इंतजार किए बिना चला गया.

मैं रेनू और राजू के व्यवहार से मन ही मन क्षुब्ध हो रही थी. मैं दकियानूसी स्वभाव की बहन नहीं थी, परंतु इस कच्ची उम्र में हुई कुछ गलतियां सारी जिंदगी के लिए घातक हो जाती हैं. अपरिपक्व दिमाग, भोलेपन या नासमझी के चलते कुछ लोग गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं. फिर वहां से लौटना कठिन हो जाता है. बस इसी उलझन में पड़ गई थी. मेरे दिल में भाईबहन के लिए प्यार, ममता, सहानुभूति की भावनाएं प्रबलता से हिलोरें ले रही थीं, परंतु स्वाभिमान और फैला तनाव मुझे चुप रहने का संकेत दे रहा था.

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