Romantic Story In Hindi: एक कागज मैला सा – क्या था उस मैले कागज का सच?

Romantic Story In Hindi, लेखक- डा. विनय वाईकर

वासंती की तबीयत आज सुबह से ही कुछ नासाज थी. न बुखार था, न जुकाम, न सिरदर्द, न जिस्म टूट रहा था, फिर भी कुछ ठीक नहीं लग रहा था. लगभग 10 बजे पति दफ्तर गए और बिटिया मेघा कालेज चली गई.

वासंती ने थोड़ा विश्राम किया, लेकिन शारीरिक परिस्थिति में कुछ परिवर्तन होते न देख उन्होंने कालेज में फोन किया और प्रिंसिपल से 1 दिन की छुट्टी मांग ली. हलका सा भोजन कर वे लेटने ही वाली थीं कि घंटी बजी. उन्होंने दरवाजा खोला. बाहर डाकिया खड़ा था. उस ने वासंती को एक मोटा सा लिफाफा दिया और दूसरे फ्लैट की ओर मुड़ गया.

वासंती ने दरवाजा बंद किया और धीमे कदमों से शयनकक्ष में आईं. लिफाफे पर उन्हीं का पता लिखा था और पीछे की ओर खत भेजने वाले ने अपना पता लिखा था :

‘हिंदी

आई सी 3480

कैप्टन अक्षय कुमार

द्वारा, 56 एपीओ’

वासंती हस्ताक्षर से अच्छी तरह परिचित थीं. अक्षरों को हलके से चूमते हुए उन्होंने अधीर हाथों से लिफाफा खोला. अंदर 3-4 मैले से मुड़े हुए पन्ने थे. पत्र काफी लंबा था. वे आराम से लेट गईं और पत्र पढ़ने लगीं.

मेरी प्यारी मां,

प्रणाम.

काफी दिनों से मेरा पत्र न आने से आप मुझ से खफा अवश्य होंगी. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि आज मेरा पत्र देखते ही आप ने उसे कलेजे से लगा कर धीरे से चूम कर कहा होगा, ‘अक्षय, मेरे बेटे…’

मां, यह लिखते समय मैं यों महसूस कर रहा हूं जैसे आप यहां मेरे पास हैं और मेरे गालों को हलके से चूम रही हैं. दरअसल, जब मैं छोटा था तो आप रोज मुझे सुलाते समय मेरे गालों को चूम कर कहा करती थीं, ‘कैसा पगला राजा बेटा है, मेरा बेटा. सो जा मुन्ने, आराम से सो… कल स्कूल जाना है…अक्षू बेटे को जल्दी उठना है…स्कूल जाना है…अब सो भी जा बेटे…’ और फिर मैं शीघ्र ही सपनों के देश में पहुंच जाता था.

दिनभर स्कूल में मस्ती, शाम को क्रिकेट और उस के बाद माहीम के तरणताल में भरपूर तैरने के बाद रात को जब मैं खाने की मेज पर बैठता तब आप मुझे डांट कर, दुलार कर किसी तरह खाना खिलाती थीं.

अरे, हां, याद आया. मां, कल मुझे सचमुच ही बहुत जल्दी उठना है. जल्दी यानी ठीक 2 बजे. हां मां, सच कह रहा हूं. सचमुच सुबह 2 बजे. काम ही कुछ ऐसा है कि उठना ही पड़ेगा. वैसे इस वक्त रात के साढ़े 10 बज रहे हैं और मुझे सो जाना चाहिए.

लेकिन मां, मुझे नींद ही नहीं आ रही है. लगभग 8 बजे से मैं करवटें बदल रहा हूं, लेकिन नींद कोसों दूर है. इस वक्त मैं बहुत उत्तेजित हूं मां, किसी से बातें करने को मन कर रहा है और यहां मैं अकेला हूं. नींद की प्रतीक्षा करते हुए, हृदय में यादों का बवंडर, अकेला, बिलकुल तनहा.

यादों के बवंडर में बचपन याद आया. आप आईं और आंखें नम हुईं. मैं उठा और अपना झोला खोला. नीचे ठूंसे हुए कुछ मैले से मुड़े हुए कागज निकाले, सिलवटें ठीक कीं, धीरे से झोले की आड़ ले कर टौर्च जलाई और लिखा, ‘मेरी प्यारी मां.’

मां, यहां पर रात को रोशनी करना मना है. अगर सावधानी न बरती जाए तो गोली चल जाती है. मां, मुझे मालूम है कि तुम्हें मैले, मुडे़ हुए कागज नहीं भाते. लेकिन क्या करूं, मजबूरी है. मां, आज आप कृपया मेरी भाषा पर न हंसें. जो भी मैं ने लिखा है, पढ़ लें. मैं आप जैसा हिंदी का प्राध्यापक तो हूं नहीं. मैं तो एक फौजी हूं, एक फौजी कप्तान. बौंबे इंजीनियर्स ग्रुप का. अक्षय कुमार, एक युवा कप्तान.

अरे हां, इस कप्तान शब्द से कुछ याद आया. 8वीं में उत्तीर्ण हो कर मैं 9वीं में दाखिल हुआ था. शाम का समय था. मैं क्रिकेट खेलने के लिए निकलने ही वाला था कि हैडमास्टरजी आ धमके.

उन्होंने मुझे रोका और आप से कहा, ‘वासंतीजी, कृपया अपने पुत्र को संभालिए, दिनभर शरारतें करता है, पढ़ता नहीं है. बहनजी, यह आप का बेटा है, एक प्राध्यापिका का बेटा, इसलिए मैं ने इस वर्ष इसे किसी तरह उत्तीर्ण किया है अन्यथा आप का लाड़ला फेल हो जाता. लेकिन अगले वर्ष मैं सहायता नहीं कर सकूंगा. क्षमा करें. आप जानें और आप का बेटा.’

यह सब सुन कर आप आगबबूला हो उठीं और मुझे डांटते हुए बोलीं, ‘अक्षय, शर्म करो, आखिर तुम क्या करना चाहते हो? नहीं पढ़ना चाहते तो मत पढ़ो. यहीं रहो और चौपाटी पर पानीपूरी की दुकान खोल लो. बेशर्म कहीं के.’ और आपे से बाहर हो कर आप ने मुझे पहली बार मारा था.

गालों पर आप की उंगलियों के निशान ले कर मैं चीखते हुए बाहर निकला था कि मुझे नहीं पढ़ना है. मुझे बंदूक चलानी है. फौज में जाना है. कप्तान बनना है.

ओह मां, ठंड के मारे लिखतेलिखते उंगलियां जाम हो गई हैं. यहां इतनी ठंड पड़ती है कि क्या बताऊं. अब इस मार्च के महीने में तो कुछ कम है लेकिन ठंड के मौसम में मुंह से शब्द बाहर निकलते ही जम कर बर्फ हो जाते हैं. मां, एक बार यहां आइए. हजार फुट की ऊंचाई पर तब आप को पता चलेगा कि ठंड किसे कहते हैं और बर्फ क्या होती है?

वैसे अब बर्फ काफी हद तक पिघल गई है. पहाड़ों के पत्थरों, दरख्तों की शाखाएं और यहांवहां हरी घास भी दिख रही है. नजदीक बहने वाली हिम नदी से पानी बहने की आवाज बर्फ की ऊपरी सतह के नीचे से आ रही है. हिम नदी पर अभी भी बर्फ की मोटी सतह है लेकिन उस के नीचे तेज बहता हुआ बर्फीला पानी है. परंतु बर्फ की ऊपरी सतह में कहींकहीं दरारें पड़ गई हैं और बर्फ पिघलने से छोटेबड़े छेद भी प्रकृति ने बना दिए हैं. दृश्य बड़ा ही मनोहारी है मां, लेकिन… लेकिन…

हिम नदी के उस छोर पर दुश्मन बैठा है. नदी का पाट बड़ा नहीं है किंतु दूसरे किनारे पर एक ऊंचा पहाड़ है. उस पर्वत के बीच से एक चोटी बाहर निकली है, तोते की चोंच जैसी. और चोंच में दुश्मन बैठा है. बिलकुल हमारे सिर पर, हमें हर क्षण घूरता हुआ. हमारी जरा सी आहट होते ही हमारी तरफ गोलियों की बौछार करता हुआ.

हमें आगे बढ़ना है. उस चोंच को तहसनहस करना है और दुश्मन का सफाया कर सामने वाली घाटी को दुश्मन के चंगुल से छुड़ा कर अपना तिरंगा वहां लहराना है. काम आसान नहीं है. हम यहां से एक गज भी आगे नहीं बढ़ सकते, दुश्मन के पास मशीनगनें तो हैं ही, शक्तिशाली तोपें भी हैं, जिन से वे हवाई जहाज को भगा सकते हैं अथवा मार गिरा सकते हैं.

परिस्थिति गंभीर है दुश्मन का सफाया करने के लिए, इस चोटी को बारूद से उड़ाने के लिए ब्रिगेड ने हमारी इंजीनियर्स कंपनी को यहां भेजा है. हम यहां लगभग 20 दिनों से बैठे हैं, लेकिन अभी तक कामयाबी हासिल नहीं हुई है. अलबत्ता, यहां आते ही हम ने कोशिश जरूर की थी.

15 दिन पहले मेरा वरिष्ठ अफसर मेजर दयाल, अपने साथ 8 जवानों को ले कर आधी रात को हिम नदी पर चल पड़ा. सब जवानों ने सफेद वरदी पहन रखी थी. जूते भी सफेद थे.

हिम नदी पूरी तरह बर्फीली थी. मेजर दयाल आधे रास्ते तक पहुंचा ही था कि ऊपर से फायरिंग शुरू हुई. सब ने बर्फ में छिप कर अपनी जान बचाई और उसी समय मेजर दयाल के अरदली सिपाही रामसिंह को फायरिंग की वजह मालूम हुई. मेजर की सफेद जरसी के गले के नीचे एक काला पट्टा था. रामसिंह ने अपनी जरसी साहब को दी और उन की खुद पहन ली. फिर दुश्मन को चकमा देने के लिए खुद एक रास्ते से और बाकी जवानों को दूसरे रास्ते से पीछे हटने को कहा. 2 घंटे बाद सब लौट आए, लेकिन सिपाही रामसिंह…

खैर, इन 20 दिनों में परिस्थिति काफी बदल गई है. बर्फ काफी पिघल गई है और हिम नदी की ऊपरी बर्फीली सतह में गड्ढे पड़ गए हैं. बर्फ की ऊपरी सतह और नीचे बहने वाले पानी के मध्य कुदरत ने काफी जगह बना दी है. इसी जगह का फायदा उठाते हुए बर्फ की सतह से नीचे, दुश्मन की नजरों से बच कर तेज बहते हुए बर्फीले पानी को चीर कर हमें दूसरे तट पर पहुंचना है, मां. पानी इतना ठंडा है कि अगर आदमी असावधानी से गिर पडे़ तो कुछ क्षणों में ही जम कर वह आइसक्रीम बन जाएगा.

लेकिन 3 दिन पहले ही हमें दिल्ली से बर्फीले पानी में तैरने के लिए विशिष्ट पोशाक मिली है. साथ में पानी में रह कर भी गीला न होने वाला गोलाबारूद, बंदूकें, टौर्च, प्लास्टिक के झोले और खाने की डब्बाबंद वस्तुएं भी मिली हैं.

मां, जिस क्षण की प्रतीक्षा हर फौजी को होती है वह क्षण आज मेरे जीवन में आया है. जिस क्षण के लिए हम फौज में भरती होते हैं, प्रशिक्षण पाते हैं, वेतन पाते हैं, वह क्षण अब मुझ से थोड़ी ही दूरी पर है. मुझे उस क्षण का बेसब्री से इंतजार है. इसी लिए मैं बहुत उत्तेजित हूं और मुझे नींद नहीं आ रही है.

आज दोपहर को इस ‘मिशन’ के लिए, जिसे हम ने ‘औपरेशन पैरट्स बीक’ नाम दिया है, मेरा चयन हुआ है.

हां, तो मां, अब थोड़ी ही देर बाद रात के ठीक 2 बजे मैं वह विशिष्ट पोशाक पहन कर हिम नदी में बनी दरार के जरिए पानी में कूदूंगा. तेज बहते हुए पानी को किसी तरह चीर कर चट्टानों, पत्थरों और बर्फ का सहारा ले कर नदी का दूसरा किनारा पकड़ूंगा और सावधानी से किसी दूसरी दरार से बाहर निकलूंगा. मेरी कमर में बंधी लंबी रस्सी का सहारा ले कर मेरे 4 जवान हथियार, गोलाबारूद और बम ले कर मेरे पास आएंगे.

उस के बाद उस चोटी के नीचे बारूद भर कर हम उसे उड़ा देंगे. संयोग से दूसरे तट पर खड़े हुए मनुष्य को दुश्मन देख नहीं सकता क्योंकि वह बिलकुल उस की नाक के नीचे होता है. दूसरा यह कि दुश्मन यह ख्वाब में भी नहीं सोच सकता कि रात के अंधेरे में हिम नदी के नीचे से तैर कर इंसान दूसरे तट पर आ सकता है.

मां, यह समूची कार्यवाही साढ़े 3-4 बजे तक हो जानी चाहिए. उस के बाद हमारी ब्रिगेड आगे बढ़ेगी और समूची घाटी पर कब्जा कर लेगी. मैं जानता हूं कि काम खतरनाक है, लेकिन फिर भी मैं कामयाबी हासिल कर के रहूंगा और इतिहास में अपना नाम सुरक्षित कर दूंगा.

याद है मां, कुछ वर्ष पूर्व हम ने मैट्रो में एक फिल्म देखी थी, ‘दि गंस औफ नेव्हरौन’, यहां भी लगभग वही परिस्थिति है. फर्क इतना है कि वहां खौलता हुआ डरावना समुद्र था और यहां बर्फीली हिम नदी और बर्फीला पानी है.

मैं जानता हूं कि मुझे यह सब नहीं लिखना चाहिए. यह सब गोपनीयता और सुरक्षा के खिलाफ है. फिर भी आज शाम से ही मैं इतना रोमांचित हूं कि किसी से कुछ कहने के लिए मन व्याकुल हो रहा है. फिर दुनिया में मां के सिवा और कौन है जो बेटे की हकीकत सुन कर उसे दिल में छिपा सकती है. हो सकता है कि इस मिशन के बाद मुझे वीरचक्र मिले. मैं चाहता हूं कि उस वक्त आप अपनी सहेलियों से और रिश्तेदारों से बड़े फख्र से कहें कि मेरे अक्षू ने ऐसा किया…वैसा किया…

आज मैं एक और अपराध कर रहा हूं, मैं यह पत्र सेना के डाकघर के माध्यम से न भेजते हुए एक सिपाही के हाथ भेज रहा हूं. यह सिपाही कल दिल्ली जा रहा है. बर्फ के प्रभाव से उस की उंगलियां गल गई हैं. दिल्ली पहुंचते ही वह इस पर टिकट लगा कर किसी लाल डब्बे में डाल देगा. हो सकता है, यह लिफाफा आप को 3 दिनों में ही मिल जाए. सेना के डाकघर से यह आप को शायद 15 दिन बाद मिले.

अरे, बाप रे. आधी रात हो गई है. थोड़ा सोना चाहिए. अच्छा मां, बाकी बातें अगले खत में लिखूंगा. सच कहता हूं, आप से बातें क्या हुईं, मन शांत हो गया है. अरे हां, अच्छा हुआ कि कुछ याद आया. मैं ने बीमा की एक किस्त शायद नहीं भरी है, पिताजी से कह कर भुगतान करवा देना.

मेरे लिए खाने की कोई चीज न भेजें, रास्ते में, दिल्ली वाले चोर सब खा जाते हैं. कोई अच्छा उपन्यास अवश्य भेजें, यहां पढ़ने के लिए सिर्फ फिल्मी पत्रिकाएं ही हैं. मेघा से कहना कि मन लगा कर पढ़ाई करे, उसे डाक्टर जो बनना है. आप दोनों अपनी तबीयत का खयाल रखें. ज्यादा दौड़धूप करने की कोई आवश्यकता नहीं है. अब मैं बड़ा हो गया हूं. फौजी कप्तान हूं. आप सब की देखभाल कर सकता हूं.

अच्छा मां, अब मैं सोता हूं. आंखें अपनेआप बंद हो रही हैं. मां, बस एक बार, सिर्फ एक बार मेरे गालों को चूम कर कहो, ‘कैसा पगला राजा बेटा है, मेरा मुन्ना…सो जा बेटे, सो जा…कल जल्दी जो उठना है.’

आप का, प्यारा अक्षय

अक्षय के पत्र के आखिरी अक्षर तो वासंती के आंसुओं में ही धुल गए. उन्होंने आंखें पोंछीं, मन शांत किया. आखिरी पंक्तियां फिर से पढ़ीं और ‘अक्षय’ शब्द को चूम कर बोलीं, ‘‘बिलकुल पगला है, मेरा राजा बेटा…’’

उसी वक्त घंटी खनकी और वासंती के मुंह से अनायास शब्द फूट पड़े, ‘‘अक्षू बेटा, रुक, मैं आ रही हूं.’’

उन्होंने दौड़ कर दरवाजा खोला. दरवाजे पर अक्षय नहीं था, लेकिन उसी की रैजीमैंट का एक युवा अफसर खड़ा था. वह वरदी पहने था. सिर पर ‘पी कैप’ थी. उस ने वासंती को सैल्यूट करते हुए धीरे से पूछा, ‘‘कैप्टन अक्षय कुमार?’’

‘‘जी हां, यह अक्षय का ही घर है.’’

‘‘आप?’’

‘‘मैं उस की मां हूं, वैसे अभी घर में कोई नहीं है. साहब दफ्तर गए हैं. मेघा कालेज में है और अक्षय तो सीमा क्षेत्र में तैनात है. तबीयत नासाज थी, इसलिए मैं रुक गई अन्यथा मैं भी कालेज गई होती. आप अंदर आइए.’’

अफसर हौले से अंदर आया. उस ने धीरे से कुछ इशारा किया. खुले दरवाजे से 2 सिपाही लोहे का एक बड़ा संदूक ले कर अंदर आए. उन्होंने उसे नीचे रखा और दोनों सावधान मुद्रा में खड़े हो गए. संदूक के बीचोबीच एक ‘पी कैप’ रखी हुई थी और उस के सामने वाले भाग पर लिखा था, ‘कैप्टन अक्षय कुमार, बौंबे इंजीनियर्स ग्रुप, इंजीनियर्स रैजीमैंट’.

‘‘यह सब क्या है?’’ वासंती ने घबरा कर पूछा, उस का दिल तेजी से धड़क रहा था.

‘‘अक्षय का सामान है,’’ अफसर धीरे से बोला.

‘‘अक्षय कहां है?’’ वासंती ने संदूक की ओर एकटक देखते हुए पूछा.

अफसर कुछ नहीं बोला. उस ने अपनी टोपी उतारी और वह जमीन ताकने लगा.

‘‘आप बोलते क्यों नहीं? अक्षय कहां है? यह सब क्या हो रहा है? अक्षय को क्या हुआ है? बोलिए, कुछ तो बोलिए?’’ वासंती ने चीख कर कहा.

अफसर ने अपनी जेब से कागज का एक छोटा सा टुकड़ा निकाला, जो मैला था और बुरी तरह मुड़ा हुआ था.

‘‘अक्षय की वरदी की ऊपरी जेब से यह टुकड़ा बरामद हुआ है, टुकड़ा गीला था, अब सूख चुका है. कृपया, आप पढ़ लें,’’ अफसर धीमी आवाज में बोला.

थरथराते हाथों से वासंती ने कागज का टुकड़ा लिया. उस मैले से मुड़े हुए कागज के टुकड़े पर केवल 3 पंक्तियां लिखी थीं:

‘अगर मैं बढ़ूं, मेरे पीछे आएं,

अगर मैं मुड़ूं, मुझे शूट करें,

अगर मैं मरूं, मुझे भूल जाएं.’ Romantic Story In Hindi

Crime Story In Hindi: पतिहंत्री – क्या प्रेमी के लिए पति को मार सकी अनामिका?

Crime Story In Hindi: काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था. Crime Story In Hindi

Hindi Romantic Story: अधूरी प्रीत

Hindi Romantic Story: घर की दहलीज पर कदम रखते ही सामने दीवार पर मम्मी का मुसकराता फोटो देख कर उस के कदम वहीं रुक गए. न जाने कितनी देर अपलक वह मम्मी के फोटो को निहारती रही.

‘‘दीदी, अब अंदर भी चलो. कब तक दरवाजे के बाहर खड़ी रहोगी?’’ उन को बसस्टैंड से लिवाने गए अविनाश ने पीछे से आते हुए कहा.

‘‘हां, चलो,’’ कहते हुए वह घर के अंदर दाखिल हो गई.

मम्मी की फोटो के आगे हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद वह कमरे का मुआयना करने लगी. अविनाश उस का बैग ले कर अंदर के कमरे में चला गया. कमरे में करीने से सजा कर रखी गई एक भी वस्तु में उसे कहीं भी इस बार अपनेपन का एहसास नहीं हो रहा था. इस कमरे में दीवार पर लगी मम्मी की फोटो के अतिरिक्त उसे सबकुछ अपरिचित सा दिखाई दे रहा था. 10 महीनों में पूरे घर की साजसज्जा ही बदल चुकी थी. लकड़ी के नक्काशी वाले पुराने सोफे की जगह मखमली गद्दी वाले नए सोफे ने ले ली थी.

एक समय मम्मी की पसंद रही भारीभरकम सैंट्रल टेबल की जगह पर कांच वाली राउंड सैंट्रल टेबल आ चुकी थी. खिड़की के पास कमरे के कोने में मनीप्लांट का पौट रखा हुआ होता था. वह उसे कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. मम्मी ने कई वर्षों तक जतन कर उसे सहेज कर रखा हुआ था. उसे अब भी याद है कि सुबह हाथ में चाय का प्याला लेने के साथ ही मम्मी मनीप्लांट को पानी देना कभी नहीं भूलती थीं.

तभी अविनाश की पत्नी ज्योति पानी का गिलास ले कर बाहर के कमरे में आई.

‘‘आप खड़ी क्यों हैं? बैठिए न दीदी.’’

‘‘बस यों ही कमरे की सजावट देख रही थी,’’ पानी का गिलास हाथ में लेते हुए उस ने अनमने भाव से कहा.

‘‘पसंद आया न आप को? सारी चीजें मेरी पसंद की हैं. आप के भाई को तो इन सब बातों में कुछ सूझता ही नहीं,’’ ज्योति ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा है,’’ बुझे स्वर में उत्तर देते हुए वह अंदर की ओर जाने लगी. उस के कदम अपनेआप ही मम्मी जिस कमरे में सोती थीं उस ओर बढ़ गए. तभी पीछे से ज्योति की आवाज सुन कर वह रुक गई.

‘‘दीदी, उधर नहीं इधर. सासुमां के जाने के बाद अब वह कमरा रानी का है. आप का सामान इधर दूसरे कमरे में रखा है.’’

मम्मी और उस की कई कही और अनकही बातों का साक्षी था वह कमरा. 12वीं पास करने के बाद से ही वह इस कमरे में मम्मी के साथ अपनी शादी होने तक रह चुकी थी. उस के इस घर से विदा होने के बाद मम्मी अपनी अंतिम सांस तक इसी कमरे में रहीं. दो घड़ी एक नजर उस ने उस कमरे पर डाली और फिर मनमसोस कर दूसरे कमरे में चली गई.

यह कमरा उसे पहले की अपेक्षा कुछ छोटा महसूस हुआ. सहसा कमरे के फर्नीचर पर नजर पड़ते ही उसे इस के छोटे लगने का कारण समझ आ गया. दरवाजे के बाजू की सूनी पड़ी रहती दीवार पर वार्डरोब बन चुका था. खिड़की के पास एक बैड और उस के नजदीक एक कुरसी रखी हुई थी. 10×10 फुट के कमरे में इस से अधिक फर्नीचर आने की गुंजाइश नहीं थी. वह वहीं पलंग पर बैठ गई.

पलंग पर बैठ कर न जाने क्यों उसे एक अजीब तरह की अनुभूति होने लगी. यहां उसे कुछ अपना सा महसूस हो रहा था. उठ कर उस ने गौर से पलंग को देखा तो उस का मन खुशी से भर गया. इसी पलंग पर तो मम्मी ने अपनी अंतिम सांसें ली थीं. इसी पलंग पर लेटे हुए उन्होंने उस से और अविनाश से एकदूसरे के सुखदुख में हमेशा साथ निभाने का वचन लिया था. पुरानी डिजाइन का यह पलंग शायद रानी को पसंद नहीं आया होगा, इसीलिए इसे मम्मी के जाने के बाद शायद अलग कमरे में रख दिया. वह यह सोच कर कुछ अंदाजा लगा रही थी कि सहसा उसे याद आया इसी कमरे में तो मम्मी की अलमारी रखी होती थी. अलमारी की जगह पर तो वार्डरोब बन चुका था.

‘तो अलमारी कहां गई?’ वह मन ही मन बुदबुदाई.

मम्मी की अलमारी से तो उन की कितनी सारी यादें जुड़ी हुई थीं. वह तब 14 वर्ष की रही होगी जब पापा ने मम्मी को उन के जन्मदिन पर अलमारी गिफ्ट में दी थी. मम्मी ने बड़ी ही सूझबूझ के साथ अलमारी में पापा, अविनाश और उस के कपड़ों के लिए एक अलग जगह बना दी थी. उन्होंने अपने सामान के लिए एक लौकर वाला पार्टिशन बचा कर रखा था जिस में वे अपने गहने और अन्य कीमती सामान रखा करती थीं.

घर में किसी की भी मजाल नहीं थी कि कोई उन के उस लौकर को छू सके. पापा तो हर दफा अपने कपड़े अलमारी से निकालते वक्त सारी अलमारी अस्तव्यस्त कर देते थे और मम्मी उन पर गुस्सा होते हुए सारे कपड़े फिर से करीने से जमाने बैठ जाती थीं. उसे अब भी याद है जब एक बार अविनाश से अलमारी के दरवाजे पर लगा कांच टूट गया था और वह मम्मी के खौफ से बचने के लिए अलमारी के अंदर ही छिप गया था.

बड़बड़ाते हुए मम्मी ने अविनाश को खोजा, उस के न मिलने पर उसे कोसती हुई वे टूटे पड़े कांच बटोरने लगीं. तभी अलमारी के दरवाजे के कोने से खून की बूंदें निकलते देख वे घबरा उठीं और हड़बड़ा कर दरवाजा खोला तो अविनाश नीचे के खाने में बेहोश पड़ा हुआ था.

घबराए बिना उन्होंने उसे बाहर निकाला और पानी के छींटे दे कर उसे होश में लाने का प्रयत्न किया. उस ने जब आंखें खोलीं तो उसे सीने से लगाए वे घंटों तक रोती रहीं. इस घटना के बाद तो उन्होंने उस के समझदार होने तक अलमारी को लौक कर रखने की आदत बना ली.

तभी अविनाश अंदर आ कर उस के पास ही कुरसी ले कर बैठ गया.

‘‘दीदी, मम्मी के जाने के बाद से तो जैसे आप ने इस ओर आना ही बंद कर दिया. मम्मी थीं तो कम से कम महीनेदोमहीने में आप उन की खबर पूछने के बहाने आ जाती थीं.’’

‘‘तब की बात और थी, अविनाश. मम्मी की बीमारी का पता चलते ही हर बार मन में एक भय सा बना रहता था कि अगली बार मम्मी मिलेंगी या नहीं. इसलिए बारबार जब मन होता था तो आ जाती थी,’’ उस ने शांति से अविनाश की बात का उत्तर दिया.

‘‘आप का यह छोटा भाई अब भी इसी घर में रहता है. आप को इस घर की याद अब क्या केवल रक्षाबंधन के दिन ही आती है?’’ अविनाश के स्वर में शिकायत थी.

‘‘नहीं रे, ऐसा नहीं है. तू तेरी घरगृहस्थी में सुखी है, फिर अब मम्मी के जाने के बाद बारबार इस उम्र में मायके आना शोभा नहीं देता,’’ कहते हुए उस के चेहरे के भाव बदल गए.

‘‘क्या बात है, दीदी? आप कुछ उखड़ी हुई सी लग रही हैं,’’ अविनाश उस के चेहरे के बदलते भाव भांप गया.

‘‘अविनाश, यहां इस कमरे में मम्मी की अलमारी रखी होती थी. वह कहां है?’’ उस से रहा नहीं गया.

‘‘वो तो निकाल दी. इस कमरे में वार्डरोब बनवाने के बाद तिजोरी रखने की जगह नहीं बची थी. वैसे भी, वह बहुत पुरानी हो चुकी थी,’’ अविनाश ने जवाब दिया.

मम्मी की मौजूदगी में जब भी आई तब तक वह घर उस के लिए मम्मी का घर था पर अब एक रिश्ते के जाते ही जैसे समीकरण बदल चुके थे. मम्मी का घर कहलाने वाला घर अब भाई का घर हो चुका था. इसीलिए मम्मी के जाने के 10 महीनों के बाद एक बार फिर से इस घर में आने पर उसे बारबार पहली बार यहां आने का आभास हो रहा था. दुख उसे इस बात का हो रहा था कि मम्मी से जुड़ी यादों का सौदा करने से पहले अविनाश ने एक बार भी उस से पूछा नहीं. मम्मी के जाते ही उसे पराया कर दिया.

‘‘तू ने मम्मी की आखिरी निशानी नहीं रखी? उसे बेच दिया? मम्मी को कितनी प्यारी थी वह अलमारी, मुझ से एक बार कहा होता तो…’’ कहते हुए उस की आंखों से आंसू की 2 बूंदें उभर आईं.

‘‘क्या दीदी आप भी. इतनी भावुक हो कर कैसे जी लेती हैं?’’ अविनाश थोड़ा असहज हो गया.

‘‘सवाल भावुकता का नहीं है. मम्मी की वह कीमती निशानी तो रहने दी होती इस घर में?’’

‘‘पुरानी चीज जाएगी तभी तो नया सामान आएगा. फिर मम्मी ने दादी की बसाई हुई पुरानी चीजें समय बीतने पर नहीं निकाल दी थीं?’’ अविनाश ने अपना तर्क रखा.

‘‘पर कम से कम कुछ समय तो बीतने दिया होता. अभी सालभर भी नहीं हुआ है उन को गए,’’ कहते हुए उस का गला रुंध गया.

‘‘आप की भावना समझता हूं मैं. मम्मी की बसाई सारी चीजें ऐसी जगह गई हैं जहां उन की सब से ज्यादा जरूरत थी.’’

‘‘तू कहना क्या चाहता है? मैं समझी नहीं?’’ अविनाश की बात सुन कर उस ने उस की ओर देखा.

‘‘एक वृद्धाश्रम को उन सब चीजों की जरूरत थी तो मैं ने दान कर दीं. इस बहाने उन की याद बनी रहेगी. वैसे भी मम्मी को तो अलमारी इसलिए प्यारी थी क्योंकि उस में उन की एक और कीमती चीज उन्होंने रख छोड़ी थी,’’ अविनाश की बात सुन कर वह उसे सवालिया नजरों से देखने लगी.

किचन में काम करती ज्योति शायद भाईबहन के बीच हो रही बात सुन चुकी थी. तभी वह एक छोटा सा डब्बा ले कर उस कमरे में दाखिल हुईर्. अविनाश ने वह डब्बा उस के हाथ से ले लिया.

‘‘दीदी, आप को याद है मम्मी की अलमारी का लौकर हम सब के लिए कुतूहल का विषय बना रहता था? लौकर को वे किसी को भी छूने नहीं देती थीं?’’

‘‘हां, तो?’’ अविनाश के प्रश्न के उत्तर में उस ने हामी भरते हुए सिर हिला दिया.

‘‘यह उन के उस अलमारी के लौकर से निकला है,’’ यह कह कर अविनाश ने वह डब्बा उस की ओर बढ़ा दिया.

उस छोटे से डिब्बे को हाथ में ले कर उस की आंखें डबडबा आईं. उसे लगा जैसे उस ने मम्मी को स्पर्श कर लिया. धीमे से उस ने उस डब्बे का ढक्कन खोला. एक पुराना सा ब्लैक ऐंड व्हाइट फोटो और एक पुराना सा पत्र उस के हाथ में आ गया.

फोटो को बड़े ही गौर से देखने के बाद भी उस में कैद छवि को वह पहचान नहीं पाई.

‘‘कौन है यह अविनाश?’’

‘‘फोटो के साथ रखा पत्र पढ़ लो, दीदी, सब समझ जाओगी,’’ अविनाश ने उस की जिज्ञासा को और बढ़ाते हुए कहा.

‘मेरी प्रिय रंजना,

फूलों की खुशबू की तरह अब भी तुम मेरे मन पर छाई हुई हो. तुम्हारी तसवीर जब भी देखता हूं, बस, तुम से मिलने को जी बेताब होने लगता है. इस बार शायद गांव न आ पाऊं. यहां बौर्डर पर दुश्मनों की हलचल बढ़ चुकी है, इसलिए अगले महीने मिलने वाली छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. जब भी छुट्टी मंजूर होगी, दौड़ा चला आऊंगा तुम से मिलने और तुम्हें अपना बनाने. आते ही तुम्हारे बाबा से बात कर हमारी शादी के लिए उन्हें मना लूंगा. बस, तब तक मेरा इंतजार करना.

तुम्हारा, केवल तुम्हारा

रतन.’

वह 2-3 बार धूमिल हो चुके उस पत्र को पढ़ गई.

‘‘रतन? कहीं ये मामा के गांव वाले रतन चाचा तो नहीं?’’ उस ने एक बार फिर से उस तसवीर को गौर से देख कर कुछ अनुमान लगाते हुए कहा.

‘‘वही हैं, दीदी. मैं ने फोन पर उन से बात कर कन्फर्म किया है,’’ कहते हुए अविनाश की आंखें भीग आईं.

‘‘तू यह क्या कह रहा है? मम्मी और रतन चाचा…फिर पापा…? मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है?’’ उस के मन में एक अजीब सी हड़बड़ाहट होने लगी.

‘‘सबकुछ सच है, दीदी. मम्मी और रतन चाचा आपस में प्यार करते थे पर जब वे 2 साल तक बौर्डर पर से गांव नहीं आ पाए तो मम्मी की शादी पापा से हो गई. रतन चाचा उन्हें बेहद प्यार करते थे और यही वजह है कि फिर वे किसी दूसरी स्त्री को अपनी जिंदगी में स्थान नहीं दे पाए.’’ अविनाश अपनी जगह से खड़ा हो गया.

मम्मी की मृत्यु के बाद पहली बार इस घर में आ कर जिन चीजों में वह मम्मी के एहसास को खोज रही थी उन्हें न पा कर मन ही मन उसे अब अपनेआप को इस घर से पराए होने का एहसास हो रहा था. पर फिर अविनाश द्वारा सहेज कर रखी गई मम्मी की इस अमूल्य याद को पा कर उस के मन में उठता पराएपन का भाव अपनेआप ही तिरोहित हो गया. इस क्षण पहली बार उसे भाई के घर में मम्मी के अब भी होने का एहसास हो आया.

‘‘अब समझ आ रहा है कि क्यों मम्मी के प्यार में एक दुखमिश्रित दर्द समाया होता था. अपने अंतिम समय में क्यों वे बारबार अलमारी की रट लगाए हुए थीं. आज पहली बार जान पाई कि मम्मी किस पीड़ा को अपने अंदर समाए जी रही थीं,’’ कहते हुए उस की आंखों से अश्रुधारा निकल पड़ी. Hindi Romantic Story

Family Story In Hindi: खानाबदोश – माया और राजेश अपने घर से क्यों बेघर हो गए

Family Story In Hindi: मेरा तन और मन जलता है और जलता रहेगा. कब तक जलेगा, यह मैं नहीं बतला सकती हूं. जब भी मैं उस छोटे से, खूबसूरत बंगले के सामने से निकलती हूं, ऊपर से नीचे तक सुलग जाती हूं क्योंकि वह खूबसूरत छोटा सा बंगला मेरा है. जो बंगले के बाहर खड़ा है उस का वह बंगला है और जो लोग अंदर हैं व बिना अधिकार के रह रहे हैं, उन का नहीं. मेरी आंखों में खून उतर जाता है. बंगले के बाहर लौन के किनारे लगे फूलों के पौधे मुझे पहचानते हैं क्योंकि मैं ने ही उन्हें लगाया था बहुत प्यार से. बच्चों की तरह पाला और पोसा था. अगर इन फूलों की जबान होती तो ये पूछते कि वे गोरेगोरे हाथ अब कहां हैं, जिन्होंने हमें जिंदगी दी थी. बेचारे अब मेरे स्पर्श को तरस रहे होंगे. धीरेधीरे बोझिल कदमों से खून के आंसू बहाती मैं आगे बढ़ गई अपने किराए के मुरझाए से फ्लैट की ओर.

रास्ते में उमेशजी मिल गए, हमारे किराएदार, ‘‘कहिए, मायाजी, क्या हालचाल हैं?’’

‘‘आप हालचाल पूछ रहे हैं उमेशजी, अगर किराएनामे के अनुसार आप घर खाली कर देते तो मेरा हालचाल पूछ सकते थे. आप तो अब मकानमालिक बन बैठे हैं और हम लोग खानाबदोश हो कर रह गए हैं? क्या आप के लिए लिखापढ़ी, कानून वगैरा का कोई महत्त्व नहीं है? आप जैसे लोगों को मैं सिर्फ गद्दारों की श्रेणी में रख सकती हूं.’’

‘‘आप बहुत नाराज हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि जैसे ही दूसरा घर मिलेगा, हम चले जाएंगे.’’

‘‘एक बात पूछूं उमेशजी, तारीखें आप किस तरकीब से बढ़वाते रहते हैं, क्याक्या हथकंडे इस्तेमाल करते हैं, मैं यह जानना चाहती हूं?’’

‘‘छोडि़ए मायाजी, आप नाराज हैं इसीलिए इस तरह की बातें कर रही हैं. मैं आप की परेशानी समझता हूं, पर मेरी अपनी भी परेशानियां हैं. बिना दूसरे घर के  इंतजाम हुए मैं कहां चला जाऊं?’’

‘‘एक तरकीब मैं बतलाती हूं उमेशजी, जिस फ्लैट में हम रह रहे हैं उस में आप आ जाइए और हम अपने बंगले में आ जाएं. सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी.’’

‘‘मैं इस विषय पर सोचूंगा मायाजी. आप बिलकुल परेशान न हों,’’ कह कर उमेशजी आगे बढ़ गए. मन ही मन मैं ने उन को वे सब गालियां दे डालीं, जो बचपन से अब तक सीखी और सुनी थीं.

खाना खाने के बाद मैं ने पति से कहा, ‘‘कुछ तो करिए राजेश, वरना मैं पागल हो जाऊंगी.’’ और मैं रोने लगी.

‘‘मैं क्या करूं, तारीखों पर तारीखें पड़ती रहती हैं?’’

‘‘6 साल से तारीखें पड़ती चली आ रही हैं, पर मैं पूछती हूं क्यों? किरायानामा लिखा गया था जिस में 11 महीने के लिए बंगला किराए पर दिया गया था. नियम के मुताबिक, उन लोगों को समय पूरा हो जाने पर बंगला खाली कर देना चाहिए था.’’

‘‘पर उन लोगों ने खाली नहीं किया. मैं ने नोटिस दिया. रिमाइंडर दिया, कोर्ट में बेदखली की अपील की. अब मैं क्या करूं? वे लोग किसी तरह तारीखें आगे डलवाते रहते हैं और मुकदमा बिना फैसले के चालू रहता है और कब तक चालू रहेगा, यह भी मैं नहीं कह सकता.’’

‘‘राजेश, ऐसा मत कहिए. आप जानते हैं कि बंगले का नक्शा मैं ने बनाया था. क्या चीज मुझे कहां चाहिए, उसी हिसाब से वह बना था. उस बंगले को बनवाने में आप को फंड से कर्ज लेना पड़ा. 40 लाख रुपए मैं ने दिए, जो मरते समय मां मेरे नाम कर गई थी. आप सीमेंट का फर्श लगवा रहे थे. मैं ने अपने जेवर बेच कर रुपया दिया ताकि मारबल का फर्श बन सके. कोई रिश्वत का रुपया तो हमारे पास था नहीं, इसलिए जेवर भी बेच दिए. क्या इसलिए कि हमारे बंगले में कोई दूसरा आ कर बस जाए? राजेश, मुझे मेरा बंगला दिलवा दीजिए.’’

‘‘बंगला हमारा है और हमें जरूर मिलेगा.’’

‘‘पर कब? हां, एक तरकीब है, सुनना चाहेंगे?’’

‘‘जरूर माया, तुम्हारी हर तरकीब सुनूंगा. अब तक मैं हरेक की इस बाबत कितनी ही तरीकीबें सुनता आया हूं.’’

‘‘तो सुनिए, क्यों न हम लोग कुछ लोगों को साथ ले कर अपने बंगले में दाखिल हो जाएं, क्योंकि घर तो हमारा ही है न.’’

‘‘ऐसा कर तो सकते हैं लेकिन किराएदार के साथ मारपीट भी हो सकती है और इस तरह पुलिस का केस भी बन सकता है और फिर मेरे ऊपर एक नया केस चालू हो जाएगा. मैं इस झगड़े में पड़ने को बिलकुल तैयार नहीं हूं.’’

‘‘क्या इस तरह के केसों से निबटने की कोई तरकीब नहीं है? यह सिर्फ हमारा ही झगड़ा तो है नहीं, हजारों लोगों का है.’’

‘‘होता यह है कि किराएदार मुकदमे के लिए तारीखों पर तारीखें पड़वाता रहता है, जिस से अंतिम फैसले में जितनी देर हो सके उतना ही अच्छा है और अगर न्यायाधीश का निर्णय उस के विरुद्घ हुआ तो वह उच्च अदालत में अपील कर देता है जिस से इस प्रकार और समय निकलता जाता है और उच्च अदालतों में न्यायाधीशों की और भी कमी है. हजारों केस वर्षों पड़े रहते हैं. तुम ने टीवी पर देखा नहीं, इस के चलते भारत के मुख्य न्यायाधीश उस दिन एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी के सामने भावुक हो गए.

‘‘कुछ तो उपाय होना ही चाहिए, यह सरासर अन्याय है.’’

‘‘उपाय जरूर है. ऐसा फैसला सरसरी तौर पर होना चाहिए. ऐसे मुकदमों के लिए अलग अदालतें बनाई जाएं और अलग न्यायाधीश हों, जो यही काम करें और अगर अंतिम निर्णय किराएदार के विरुद्घ हो तो दंडनीय किराया देना अनिवार्य हो. इस से फायदा यह होगा कि निर्णय को टालने की कोशिश बंद हो जाएगी और दंडनीय किराए का डर बना रहेगा तो किराएदार मकान स्वयं ही खाली कर देगा और इस तरह से एक बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा.’’

‘‘आप समस्याओं का समाधान निकालने में बहुत तेज हैं, पर कुछ करते क्यों नहीं हो?’’

‘‘माया, क्या तुम समझती हो मुझे अपना घर नहीं चाहिए.’’

‘‘अब तो मदन भी पूछने लगा है कि हम अपने बंगले में कब जाएंगे, यहां तो खेलने की जगह भी नहीं है.’’

सारी रात नींद नहीं आई. सवेरे दूध उबाल कर रखा तो उस में मक्खी गिर गई. सारा दूध फेंकना पड़ा. दिमाग बिलकुल खराब हो गया. मैं ने राजेश से कहा, ‘‘आज दूध नहीं मिलेगा क्योंकि उस में मक्खी गिर गई थी.’’

‘‘हम ने अपने घर में जाली लगवाई थी.’’

‘‘यहां तो है नहीं, फिर मैं क्या करूं?’’

‘‘कोई बात नहीं, आज दूध नहीं पिएंगे,’’ उन्होंने हंस कर कहा.

‘‘मैं ने आप से कहा था कि मैं मुंबई नहीं जाऊंगी, फिर आप ने मुझे चलने को क्यों मजबूर किया? आप को 3 साल के लिए ही तो मुंबई भेजा गया था. क्या

3 साल अकेले नहीं रह सकते थे?’’

‘‘नहीं माया, नहीं रह सकता था. मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी रहने को तैयार नहीं हूं.’’

‘‘नतीजा देख लिया, हम बेघरबार हो गए. मैं 3 साल अपने घर में रहती, आप कभीकभी आते रहते, यही बहुत होता. ठीक है, अगर हम मुंबई चले भी गए तो आप ने बंगला किराए पर क्यों दे दिया?’’

‘‘सोचा था, 11 महीने का किराया मिल जाएगा और हम अपने कमरे में एयरकंडीशनर लगवा लेंगे. और आखिर में तुम भी तो तैयार हो गई थी.’’

‘‘आप की हर बात मानने का ही तो नतीजा भुगत रही हूं.’’

‘‘माया, अब बंद कर दो इन बातों को, थोड़ा धैर्य और रखो, बंगला तुम्हें अवश्य मिल जाएगा.’’

‘‘पर कब? अब तो 6 साल से भी ज्यादा समय हो चुका है.’’

सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मुंबई मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा. भीड़ इतनी कि सड़क पर चलने से ही चक्कर आने लगे. सड़क पार करते समय तो मेरी सांस ही रुक जाती थी कि अगर मैं सड़क के बीच में हुई और कारों की लाइन शुरू हो गई तब? बसों के लिए लंबीलंबी लाइनों में खड़े हुए थके शरीर और मुरझाए चेहरों वाले लोग. ऊंचीऊंची इमारतें और बड़ेबड़े होटल, जहां जा कर एक साधारण हैसियत का आदमी एक प्याला चाय का भी नहीं पी सकता. मुंबई सिर्फ बड़ेबड़े सेठों और धनिकों के लिए है. वहां की रंगीन रातें उन्हीं लोगों के लिए हैं. दूरदूर से रोजीरोटी के लिए आए लोग तो जिंदा रहते हैं कीड़ेमकोड़ों की तरह. एक दिन सड़क के किनारे एक

आदमी को पड़े हुए देखा, पांव वहीं रुक गए. इसे कुछ हो गया है, ‘इस के मुंह पर पानी का छींटा डालना चाहिए, शायद गरमी के कारण बेहोश हो गया है.’ मेरे पति और उन के दोस्त ने मुझे खींच लिया, ‘पड़ा रहने दीजिए, भाभीजी, अगर पुलिस आ गई और हम लोग खड़े मिले तो दुनियाभर के सवालों का जवाब देना होगा. यह मत भूलिए कि यह मुंबई है.’ ‘क्या मुंबई के लोगों की इंसानियत मर चुकी है? क्या यहां जज्बातों की कोई कीमत नहीं है? एक लड़की बस में चढ़ने जा रही थी. एक पांव बस के पायदान पर था और दूसरा हवा में, तभी बस चल दी और वह लड़की धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी. कोई भीड़ जमा नहीं हुई, लोग वैसे ही आगेपीछे बढ़ते रहे. रुक कर मैं ने तो सहारा दे कर उसे खड़ा कर दिया क्योंकि मैं मुंबई की रहने वाली नहीं हूं. 2 बसें भरी हुई निकल चुकी थीं. उस दिन सब्जियों और राशन के थैले लटकाए मैं बेहद थक चुकी थी.

मुझे अपना इलाहाबाद याद आ रहा था और वह अपना छोटा सा बंगला. यह मुंबई अच्छेखासे लोगों का सत्यानाश कर देता है. इसी बीच बारिश शुरू हो गई. भीग जाने से सब्जियों के थैले और भारी हो गए. मैं घर से छतरी ले कर भी नहीं चली थी. मैं पास के ही बंगले के मोटरगैरेज में जा कर खड़ी हो गई. सब्जियों और राशन का थैला एक ओर टिका दिया, फिर बालों का जूड़ा खोल कर बालों से पानी निचोड़ने लगी. तभी आवाज सुनी, ‘माया, तुम?’ कार के पास खड़ा पुरुष मेरी ओर बढ़ा, ‘इतने सालों के बाद देखा है, बिलकुल वैसी ही लगती हो, उतनी ही हसीन.’

‘सुधाकर तुम? बदल गए हो, पहले जैसे बिलकुल नहीं लगते हो.’

‘माया, बहुत सोचा था कि तुम्हारे पास आ कर सबकुछ बतला दूं, पर तुम और तुम्हारे डैडी का सामना करने का साहस नहीं जुटा पाया. तुम्हें किस तरह बतलाऊं कि वह सब कैसे हो गया. मैं इतना मजबूर कर दिया गया था कि कुछ भी मेरे वश में नहीं रहा.’

‘क्या मैं ने तुम से कुछ कहा है, जो सफाई दे रहे हो? याचक बन कर तुम्हीं ने मेरे डैडी के सामने हाथ फैलाया था. कहां है वह तुम्हारा बूढ़ा लालची बाप जिस ने मेरे डैडी से आ कर कहा था, पुरानी दोस्ती के नाते समझा रहा हूं, मित्र, नारेबाजी की बात जाने दो, गरीब और अमीर का फर्क हमेशा रहेगा. मैं अपने बेवकूफ लड़के को समझा लूंगा.’

‘उन की मृत्यु हो चुकी है. मरते समय वे करीबकरीब दिवालिया हो चुके थे और उन के ऊपर इतना कर्ज था कि मेरे पास उन की बात को मानने के सिवा दूसरा उपाय नहीं था. मैं ने सेठ करोड़ीमल की लड़की से शादी कर ली. मैं खून के आंसू रोया हूं, माया.’

‘शादी मत कहो. यह कहो कि तुम बिके  थे, सुधाकर,’ कह कर मैं हंसने लगी.

‘छोड़ो इन बातों को, तुम लोग मुंबई घूमने आए हो या काम से?’

‘मेरे पति को कुछ काम है, कुछ समय तक यहीं रहना होगा.’

‘फ्लैट वगैरा मिल गया है या नहीं? मेरा एक फ्लैट खाली है, जो मैं अपने मेहमानों के लिए खाली रखता हूं, वह मैं तुम्हें दे सकता हूं. घूमनेफिरने के लिए कार भी मिल जाएगी. मुझे कुछ मेहमानदारी करने का ही मौका दो, माया.’

‘फ्लैट के लिए कितनी पगड़ी लोगे, कितना किराया लोगे? आखिर हो तो व्यवसायी न? क्या तुम्हारी टैक्सियां भी चलती हैं?’

‘नहीं, माया, ऐसा मत कहो.’

‘फिर इतना सब मुफ्त में क्यों दोगे?’

‘मेरा एक ख्वाब था, जिसे मैं भूला नहीं हूं,’ अपना चेहरा मेरे करीब ला कर उस ने कहा, ‘तुम्हें बांहों में लेने का ख्वाब.’

‘ओह, बकवास बंद करो. अच्छा हुआ, तुम्हारे जैसे लालची और व्यभिचारी आदमी से मेरी शादी नहीं हुई.’ तभी एक बेहद काली और मोटी औरत हमारी ओर आती दिखाई दी. सुधाकर ने कहा, ‘वह मेरी पत्नी है.’

‘बहुत ठोस माल है. तुम्हारी कीमत कम नहीं लगी. जायदाद कर ठीक से देते हो या नहीं?’ कह कर हंसते हुए मैं ने अपने थैले उठा लिए.

‘देखो, माया, पानी बरस रहा है, मैं कार से तुम्हें छोड़ आता हूं.’

‘रहने दो, मैं चली जाऊंगी,’ कह कर मैं बाहर निकल आई.

अचानक मेरे पति की आवाज मुझे वर्तमान में घसीट लाई, ‘‘क्या नींद नहीं आ रही है? तुम अपने बंगले को ले कर बहुत परेशान रहने लगी हो?’’

‘‘परेशान होने की ही बात है. मेरे बंगले में कोई दूसरा रहता है और इस फ्लैट में मेरा दम घुटता है, पर इस समय मैं मुंबई की बाबत सोच रही थी.’’

‘‘सुधाकर के बारे में?’’

‘‘सुधाकर के बारे में सोचने को कुछ भी नहीं है. मेरी शादी के लिए डैडी के पास जितने भी रिश्ते आए थे, उन में सुधाकर ही सब से बेकार का था.’’

‘‘वैसे भी एक पतिव्रता स्त्री को दूसरे पुरुष की बाबत नहीं सोचना चाहिए. बुजुर्गों ने कहा है कि सपने में भी नहीं.’’

‘‘कल आप घर देर से सोए थे, लगता है पूरी रात टीवी पर फिल्म देखी है.’’

हम दोनों इस पर खूब हंसे. कुछ देर के लिए अपना घर भी भूल गए. पर मैं जानती हूं कि कल सवेरे ही बंगले को ले कर फिर रोना शुरू हो जाएगा. Family Story In Hindi

Story In Hindi: वे सूखे पत्ते

Story In Hindi: आज से 15 साल पहले की बात है. मैं 11वीं जमात में पढ़ता था. वह लड़की हमारी क्लास में नईनई आई थी. उस के पैर में कुछ लचक थी. शायद कुछ चोट लगी हो, इसलिए वह थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी. उस ने 10वीं क्लास में पूरे उदयपुर में टौप किया था और मैं ने अपने स्कूल में.

दिखने में तो वह बला की खूबसूरत थी. मगर कहते हैं न कि चांद में भी दाग होता है, बिलकुल ऐसे ही उस के पैर की वह चोट उस चांद से हुस्न का दाग बन गई थी.

उस ने पहले दिन से ही क्लास के मनचले लड़कों को अपनी खूबसूरती का दीवाना बना दिया था. उस की सादगी की चर्चा हर जबान पर थी.

शुरुआत के चंद महीनों में ही क्लास के आधे से ज्यादा लड़के उसे प्रपोज कर चुके थे. सब को उस के हुस्न से मतलब था, उस से नहीं. हम लड़कों की सोच गिरी हुई होती है. लड़की को इस्तेमाल करने की चीज समझते हैं. इस्तेमाल किया और फेंक दिया. मगर सबकुछ जानते हुए भी उस ने कभी किसी को जवाब नहीं दिया. न ही नाराजगी से और न ही खुशी से.

और एक मैं था, जो अभी तक उस का नाम भी नहीं जानता था. सच कहूं, तो मैं ने कभी कोशिश भी नहीं की थी. नाम जान कर करना भी क्या था, जब दोनों की दुनिया और रास्ते ही अलग थे. हर कोई उसे अलगअलग नाम से पुकारता था, इसलिए कभी सुनने में भी नहीं आया उस का असली नाम.

मैं ने उस की आंखें देखी थीं. कुछ बोलती थीं उस की आंखें, मगर क्या बोलती थीं, यह जानने के लिए कभी सोचा ही नहीं. मेरे लिए पढ़ाई ज्यादा जरूरी थी. अनाथ था न मैं. अपना सबकुछ खुद ही देखना था. अपना भविष्य खुद बनाना था. जिस उम्र में लड़के तरहतरह के शौक पूरे करने में लगे होते हैं, उस उम्र में मैं खुद को एक सांचे में ढालने चला था. भला हो उस गैरसरकारी संस्था का, जो मुझे इस स्कूल में पढ़ा रही थी.

कुछ दिनों के बाद इम्तिहान हो गए. उस लड़की ने क्लास में फिर से टौप कर दिया. मेरी सालों से चली आ रही क्लास में पहली पोजीशन की हुकूमत को उस ने खत्म कर दिया था. हमारे क्लास टीचर क्लास में आए और बोले, ‘‘सरोज, तुम ने 96 फीसदी नंबर ला कर क्लास में टौप किया है.’’ मुझे धक्का लगा कि मैं पीछे कैसे रह गया. मैं इतनी मेहनत से तो पढ़ा था.

टीचर दोबारा बोले, ‘‘राघव, तुम्हारे  95.8 फीसदी नंबर आए हैं. तुम दूसरे नंबर पर हो.’’

इस पर मुझे राहत सी मिली कि बस थोड़ा सा फर्क है. मगर फर्क क्यों है, इस का जवाब मुझे खुद को देना था. यह जवाब मैं कहां से लाता? मैं पूरी क्लास में यही सोचता रहा. सब लड़के खुश थे. जो फेल थे वे भी, क्योंकि उन्हें उस का असली नाम पता लग गया था. क्लास खत्म होने पर मैं उस से मिला और बधाई दी. वह इस की हकदार भी थी, इसलिए उस ने भी मुझे बधाई दी.

यह हमारी पहली मुलाकात थी. इस के बाद आगे के दिनों में धीरेधीरे बातें होने लगीं, मगर जबान से नहीं, बस इशारों से. दूर से देख कर हाथ हिला देना, मगर सामने होने पर चुपचाप निकल जाना, यह हमारे लिए बहुत आम हो गया था.

फाइनल इम्तिहान आने वाले थे. हमारी बातें अब शुरू होने लगी थीं.

मगर मैं ने कभी सरोज के बारे में जानने की कोशिश नहीं की, बस हालचाल पूछ लिया करता था.

फिर एक दिन वह बोली, ‘‘इम्तिहान के बाद मिलना.’’

मगर कहां मिलना, यह नहीं बताया. मैं कुछ देर सोचता ही रहा कि कहां और क्यों? क्यों का जवाब तो यह था कि हम दोस्त थे, मगर कहां का जवाब मुझे नहीं मिल रहा था. क्या मेरे घर में? मगर मैं तो अनाथ आश्रम में रहता हूं. तो क्या फिर उस के घर में? मगर उस का घर तो मुझे पता ही नहीं. तो कहां? फिर उसी ने बताया कि स्कूल के पास वाले बाग में मिलना. मेरे अंदर के सवालों का तूफान थाम दिया था उस के इस जवाब ने.

इम्तिहान खत्म हुए. हम मिले, हम फिर मिले, हम बारबार मिले. एक अजीब सी, मगर बहुत प्यारी सी धुन लग गई थी दोनों को एकदूसरे के साथ की.

फिर एक दिन मैं ने उसे बताया कि मैं अनाथ हूं, तो जवाब मिला कि वह भी अनाथ है. मेरी तो यह जान कर जैसे सांसें ही थम गई थीं कि इतनी प्यारी लड़की के मांबाप नहीं हैं.  बला की खूबसूरत लड़की इस नोच खाने वाले समाज में अपना वजूद बनाए हुए थी. समझ आ गया था मुझे कि उस की आंखें क्या बोलती थीं और क्यों वह इतनी नरम मिजाज थी. मुझे आज उन सवालों के जवाब भी मिल गए थे, जिन सवालों को मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.

फिर कुछ देर चुप रहने के बाद मैं ने बड़ी हसरत से उस से पूछा, ‘‘क्या अब तक तुम्हारा कभी कोई दोस्त रहा है?’’

वह हथेली भर के सूखे पत्ते ले आई और बोली, ‘‘ये हैं मेरे दोस्त.’’ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सरोज क्या बोल रही है. मैं हंस भी नहीं सकता था, क्योंकि उस के चेहरे पर हंसी  नहीं दिख रही थी.

‘‘सरोज, मैं कुछ समझा नहीं?’’ मैं ने बहुत जिज्ञासा से पूछा.

जब उस की आंखें सबकुछ बोलती ही थीं, तो क्यों आज मैं उस की जबान का बोला हुआ शब्द समझ नहीं पा रहा था. वह चाह रही थी कि उस का यह दोस्त उस की आंखें पढ़ कर जान जाए कि क्यों ये सूखे पत्ते उस के दोस्त थे. मगर उस ने नहीं बताया और मैं ने भी मान लिया कि शायद

दुनिया में कहीं उस का भरोसा टूटा होगा, इसलिए वह ऐसी बातें करती है. हमारी बातों के सिलसिले अब काफी बढ़ गए थे और हम धीरेधीरे बहुत करीब आ गए थे. एक लगाव था, एक अधूरापन था, जो साथ रह कर ही पूरा होता था. मैं जानना चाहता था उस का और उस के सूखे पत्तों का रिश्ता. मैं इतना करीब तो था उस के, मगर उस के दोस्त अब भी सूखे पत्ते ही थे.

फिर एक दिन मेरे मन में यह सवाल उठा कि स्कूल से पढ़ाई खत्म होने के बाद हम कैसे मिलेंगे? मगर यह सवाल मैं उस से सुनना चाहता था और यह भी जानता था कि वह नहीं पूछेगी, क्योंकि उसे मुझ से ज्यादा उन सूखे पत्तों से जो लगाव था. स्कूल की पढ़ाई खत्म हो गई. उस से मिले हुए काफी दिन गुजर गए. अकेलापन महसूस होने लगा था और यह अकेलापन मुझे काटने को दौड़ता था. सरोज लौट गई थी अपनी दुनिया में, अपने उन सूखे पत्तों के पास या फिर कहीं और.

फर एक दिन मैं ने स्कूल जा कर पता किया. कितना बेवकूफ था मैं. इतना वक्त साथ रहे, मगर कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह रहती कहां थी.

मैं अपने टीचर के पास गया और सरोज का पता पूछा. टीचर बोले, ‘‘राघव, पता तो मुझे भी नहीं मालूम, मगर सरोज तुम्हारे लिए एक चिट्ठी छोड़ गई है.’’ मैं बहुत खुश हुआ, मगर न जाने क्यों मेरे हाथ कांप रहे थे उस चिट्ठी को खोलने में. जिंदगी में पहली बार किसी ने मुझ अनाथ को चिट्ठी लिखी थी.

टीचर बोले, ‘‘अरे, यह क्या? जो राघव हमेशा पढ़ने में अव्वल रहा, आज उस के हाथ इस मामूली सी चिट्ठी को लेने में कांप क्यों रहे हैं?’’‘‘पता नहीं, सर. मगर यह मामूली नहीं है,’’ इतनकह कर मैं वहां से बहुत तेजी से भाग निकला. और क्या भागा यह मैं भी नहीं जानता. शायद मुझ में हिम्मत नहीं थी उस वक्त का सामना करने की.

मैं बहुत भागा और न जाने क्यों मेरे कदम उस बाग की ओर बढ़ते चले गए, जहां हम अकसर मिलते थे. मेरी सांसें बहुत तेज चल रही थीं. थकने की वजह से नहीं, डर की वजह से. और डर था उसे खो देने का. डर था मुझे कि यह चिट्ठी पढ़ते ही मैं उसे खो दूंगा. या उस का मेरे लिए पहला और आखिरी खत था. क्या करूं, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. अभी पढ़ूं कि नहीं.

मन में हजारों बुरे खयाल आ रहे थे. सांसें भी थमने का नाम नहीं ले रही थीं. फिर सोचा, ‘शायद उस ने इस में अपना नया पता लिखा हो.’ बहुत हिम्मत कर के मैं ने वह खत खोल ही दिया और वह कुछ यों था:

‘प्यारे दोस्त राघव,

‘मैं जानती हूं कि यह खत पढ़ने से पहले तुम ने हजार बार सोचा होगा. तुम्हारे हाथ कांपे होंगे, धड़कनों का शोर कुछ ज्यादा हो गया होगा. मन में हजारों तरह के खयाल आ रहे होंगे और उन में सब से बड़ा सवाल यह होगा कि मेरे दोस्त सूखे पत्ते ही क्यों?

‘राघव, मैं ने तुम्हें कभी नहीं बताया, पर अब बताती हूं. मैं अपने मातापिता की एकलौती लड़की थी. जिस घर में मैं पैदा हुई, वहां लड़की का पैदा होना जुर्म माना जाता था. जब मैं 4 साल की थी, तब मेरे पिता ने मुझे छत से नीचे फेंक दिया था. मैं आंगन में रखे उन सूखे पत्तों के ढेर पर गिरी थी, जिसे कुछ देर पहले मेरी मां ने जमा किया था. तब मैं तो बच गई, मगर मेरा पैर टूट गया था.

‘पिताजी की ऐसी गिरी हुई हरकत देख कर मां ने वहीं पर रखी कुल्हाड़ी से उन की जान ले ली. उन्होंने मुझे बहुत प्यार से गले लगाया, खूब रोईं. मैं भी रो रही थी. फिर मां ने मुझे छोड़ा और घर बंद कर के खुद को आग लगा ली. मां भी मर गईं और मैं छोटी सी लड़की 4 साल की उम्र में ही अनाथ हो गई.

‘किसी रिश्तेदार ने मेरी जिम्मेदारी नहीं ली. जिस उम्र में औलाद को उस की मां के सहारे की सब से ज्यादा जरूरत होती है, वह सहारा मुझ से छिन गया था. मां के आंचल में खेलने की उम्र में मुझे अनाथालय वाले ले गए.‘वहां जब मैं गई, तो हर बार बस अपना गिरना याद आता था उस वक्त मुझे बचाने वोल वे सूखे पत्ते ही थे, जिन से मैं ने कभी बात तक नहीं की थी. उन बेजबानों ने मुझे एक नई जिंदगी दे दी थी. मेरा पैर हमेशा के लिए खराब हो गया था.

‘मैं आज भी हर रोज जब सड़कों पर गिरे सूखे पत्ते देखती हूं, तो मुझे वही ढेर याद आता है. मैं उन का कुछ इसी तरह एहसान मानती हूं कि जब मेरा अपना पिता मेरा अपना नहीं हो सका, तब इन गैर और बेजबान पत्तों ने मुझे सहारा दिया. ‘मुझे जब भी इस बेहया दुनिया से डर लगता है, मैं अकसर इन्हें खत लिखती हूं. मैं इन का एक ढेर बनाती हूं, फिर एक हवा का झोंका आता है और उस ढेर के सब पत्तों को मेरे चारों ओर फैला कर कहता है कि भरोसा रखना सरोज… ये सूखे पत्ते हमेशा तेरे साथ हैं… हमेशा.

‘मैं जानती हूं राघव कि तुम यह खत अभी उसी बाग में बैठ कर पढ़ रहे हो, और तुम्हारी आंखें भीग गई हैं. मुझे माफ कर देना तुम्हें चुपचाप छोड़ कर जाने के लिए. मगर महसूस कर के देखना… मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, इन सूखे पत्तों की तरह.

‘तुम्हारी सरोज.’

मेरी आंखें सच में भर आई थीं. एक आह निकल गई थी मेरे दिल से. आज समझ आ गया था कि क्यों हैं ये सूखे पत्ते उस के दोस्त… कितना जानती थी वह मुझे… उसे पता था कि मैं यह खत उस बाग में ही पढ़ूंगा. अब समझ आया कि क्यों मेरे पैर भागतेभागते मुझे इस बाग में ले आए थे.

मैं सरोज के दोस्तों को ले कर बनाए हुए ढेर में सरोज की दुनिया को बड़े गौर से देख रहा था कि न जाने कहां से अचानक एक हवा का झोंका आया, जिस ने उन पत्तों को मेरे चारों ओर फैला दिया और मुझे सच में एहसास होने लगा कि सरोज मेरे बहुत करीब है… बहुत ही करीब… Story In Hindi

Story In Hindi: बचपना – पिया की चिट्ठी देख क्यों खुश नहीं थी सुधा

Story In Hindi: आज फिर वही चिट्ठी मनीआर्डर के साथ देखी, तो सुधा मन ही मन कसमसा कर रह गई. अपने पिया की चिट्ठी देख उसे जरा भी खुशी नहीं हुई.

सुधा ने दुखी मन से फार्म पर दस्तखत कर के डाकिए से रुपए ले लिए और अपनी सास के पास चली आई और बोली ‘‘यह लीजिए अम्मां पैसा.’’

‘‘मुझे क्या करना है. अंदर रख दे जा कर,’’ कहते हुए सासू मां दरवाजे की चौखट से टिक कर खड़ी हो गईं. देखते ही देखते उन के चेहरे की उदासी गहरी होती चली गई.

सुधा उन के दिल का हाल अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि उस से कहीं ज्यादा दुख अम्मां को है. उस का तो सिर्फ पति ही उस से दूर है, पर अम्मां का तो बेटा दूर होने के साथसाथ उन की प्यारी बहू का पति भी उस से दूर है.

यह पहला मौका है, जब सुधा का पति सालभर से घर नहीं आया. इस से पहले 4 नहीं, तो 6 महीने में एक बार तो वह जरूर चला आता था. इस बार आखिर क्या बात हो गई, जो उस ने इतने दिनों तक खबर नहीं ली?

अम्मां के मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. कभी वे सोचतीं कि किसी लड़की के चक्कर में तो नहीं फंस गया वह? पर उन्हें भरोसा नहीं होता था.

हो न हो, पिछली बार की बहू की हरकत पर वह नाराज हो गया होगा. है भी तो नासमझ. अपने सिवा किसी और का लाड़ उस से देखा ही नहीं जाता. नालायक यह नहीं समझता, बहू भी तो उस के ही सहारे इस घर में आई है. उस बेचारी का कौन है यहां?

सोचतेसोचते उन्हें वह सीन याद आ गया, जब बहू उन के प्यार पर अपना हक जता कर सूरज को चिढ़ा रही थी और वह मुंह फुलाए बैठा था.

अगली बार डाकिए की आवाज सुन कर सुधा कमरे में से ही कहने लगी, ‘‘अम्मां, डाकिया आया है. पैसे और फार्म ले कर अंदर आ जाइए, दस्तखत कर दूंगी.’’

सुधा की बात सुन कर अम्मां चौंक पड़ीं. पहली बार ऐसा हुआ था कि डाकिए की आवाज सुन कर सुधा दौड़ीदौड़ी दरवाजे तक नहीं गई… तो क्या इतनी दुखी हो गई उन की बहू?

अम्मां डाकिए के पास गईं. इस बार उस ने चिट्ठी भी नहीं लिखी थी. पैसा बहू की तरफ बढ़ा कर अम्मां रोंआसी आवाज में कहने लगीं, ‘‘ले बहू, पैसा अंदर रख दे जा कर.’’

अम्मां की आवाज कानों में पड़ते ही सुधा बेचैन निगाहों से उन के हाथों को देखने लगी. वह अम्मां से चिट्ठी मांगने को हुई कि अम्मां कहने लगीं, ‘‘क्या देख रही है? अब की बार चिट्ठी भी नहीं डाली है उस ने.’’

सुधा मन ही मन तिलमिला कर रह गई. अगले ही पल उस ने मर जाने के लिए हिम्मत जुटा ली, पर पिया से मिलने की एक ख्वाहिश ने आज फिर उस के अरमानों पर पानी फेर दिया.

अगले महीने भी सिर्फ मनीआर्डर आया, तो सुधा की रहीसही उम्मीद भी टूट गई. उसे अब न तो चिट्ठी आने का भरोसा रहा और न ही इंतजार.

एक दिन अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. पहली बार तो सुधा को लगा, जैसे वह सपना देख रही हो, पर जब दोबारा किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो वह दरवाजा खोलने चल दी.

दरवाजा खुलते ही जो खुशी मिली, उस ने सुधा को दीवाना बना दिया. वह चुपचाप खड़ी हो कर अपने साजन को ऐसे ताकती रह गई, मानो सपना समझ कर हमेशा के लिए उसे अपनी निगाहों में कैद कर लेना चाहती हो.

सूरज घर के अंदर चला आया और सुधा आने वाले दिनों के लिए ढेर सारी खुशियां सहेजने को संभल भी न पाई थी कि अम्मां की चीखों ने उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा दी.

अम्मां गुस्सा होते हुए अपने बेटे पर चिल्लाए जा रही थीं, ‘‘क्यों आया है? तेरे बिना हम मर नहीं जाते.’’

‘‘क्या बात है अम्मां?’’ सुधा को अपने पिया की आवाज सुनाई दी.

‘‘पैसा भेज कर एहसान कर रहा था हम पर? क्या हम पैसों के भूखे हैं?’’ अम्मां की आवाज में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था.

‘‘क्या बात हो गई?’’ आखिर सूरज गंभीर हो कर पूछ ही बैठा.

‘‘बहू, तेरा पति पूछ रहा है कि बात क्या हो गई. 2 महीने से बराबर खाली पैसा भेजता रहता है, अपनी खैरखबर की छोटी सी एक चिट्ठी भी लिखना इस के लिए सिर का बोझ बन गया और पूछता है कि क्या बात हो गई?’’

सूरज बिगड़ कर कहने लगा, ‘‘नहीं भेजी चिट्ठी तो कौन सी आफत आ गई? तुम्हारी लाड़ली तो तुम्हारे पास है, फिर मेरी फिक्र करने की क्या जरूरत पड़ी?’’

सुधा अपने पति के ये शब्द सुन कर चौंक गई. शब्द नए नहीं थे, नई थी उन के सहारे उस पर बरस पड़ी नफरत. वह नफरत, जिस के बारे में उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

सुधा अच्छी तरह समझ गई कि यह सब उन अठखेलियों का ही नतीजा है, जिन में वह इन्हें अम्मां के प्यार पर अपना ज्यादा हक जता कर चिढ़ाती रही है, अपने पिया को सताती रही है.

इस में कुसूर सिर्फ सुधा का ही नहीं है, अम्मां का भी तो है, जिन्होंने उसे इतना प्यार किया. जब वे जानती थीं अपने बेटे को, तो क्यों किया उस से इतना प्यार? क्यों उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह इस घर की बेटी नहीं बहू है?

अम्मां सुधा का पक्ष ले रही हैं, यह भी गनीमत ही है, वरना वे भी उस का साथ न दें, तो वह क्या कर लेगी. इस समय तो अम्मां का साथ देना ही बहुत जरूरी है.

अम्मां अभी भी अपने बेटे से लड़े जा रही थीं, ‘‘तेरा दिमाग बहुत ज्यादा खराब हो गया है.’’

अम्मां की बात का जवाब सूरज की जबान पर आया ही था कि सुधा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘यह सब अच्छा लगता है क्या आप को? अम्मां के मुंह लगे चले जा रहे हैं. बड़े अच्छे लग रहे हैं न?’’

‘‘चुप, यह सब तेरा ही कियाधरा है. तुझे तो चैन मिल गया होगा, यह सब देख कर. न जाने कितने कान भर दिए कि अम्मां आते ही मुझ पर बरस पड़ीं,’’ थोड़ी देर रुक कर सूरज ने खुद पर काबू करना चाहा, फिर कहने लगा, ‘‘यह किसी ने पूछा कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी? इस की फिक्र किसे है? अम्मां पर तो बस तेरा ही जादू चढ़ा है.’’

‘‘हां, मेरा जादू चढ़ा तो है, पर मैं क्या करूं? मुझे मार डालो, तब ठीक रहेगा. मुझ से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा और मुझे तुम्हारे बिना जीने से.’’

अब जा कर अम्मां का माथा ठनका. आज उन के बच्चों की लड़ाई बच्चों का खेल नहीं थी. आज तो उन के बच्चों के बीच नफरत की बुनियाद पड़ती नजर आ रही थी. बहू का इस तरह बीच में बोल पड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगा.

वे अपनी बहू की सोच पर चौंकी थीं. वे तो सोच रही थीं कि उन के बेटे की सूरत देख कर बहू सारे गिलेशिकवे भूल गई होगी.

अम्मां की आवाज से गुस्सा अचानक काफूर गया. वे सूरज को बच्चे की तरह समझाने लगीं, ‘‘इस को पागल कुत्ते ने काटा है, जो तेरी खुशियां छीनेगी? तेरी हर खुशी पर तो तुझ से पहले खुश होने का हक इस का है. फिर क्यों करेगी वह ऐसा, बता? रही बात मेरी, तो बता कौन सा ऐसा दिन गुजरा, जब मैं ने तुझे लाड़ नहीं किया?’’

‘‘आज ही देखो न, यह तो किसी ने पूछा नहीं कि हालचाल कैसा है? इतना कमजोर कैसे हो गया तू? तुम को इस की फिक्र ही कहां है. फिक्र तो इस बात की है कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं डाली?’’ सूरज बोला.

अम्मां पर मानो आसमान फट पड़ा. आज उन की सारी ममता अपराधी बन कर उन के सामने खड़ी हो गई. आज यह हुआ क्या? उन की समझ में कुछ न आया.

अम्मां चुपचाप सूरज का चेहरा निहारने लगीं, कुछ कह ही न सकीं, पर सुधा चुप न रही. उस ने दौड़ कर अपने सूरज का हाथ पकड़ लिया और पूछने लगी, ‘‘बोलो न, क्या हुआ? तुम बताते क्यों नहीं हो?’’

‘‘मैं 2 महीने से बीमार था. लोगों से कह कर जैसेतैसे मनीआर्डर तो करा दिया, पर चिट्ठी नहीं भेज सका. बस, यही एक गुनाह हो गया.’’

सुधा की आंखों से निकले आंसू होंठों तक आ गए और मन में पागलपन का फुतूर भर उठा, ‘‘देखो अम्मां, सुना कैसे रहे हैं? इन से तो अच्छा दुश्मन भी होगा, मैं बच्ची नहीं हूं, अच्छी तरह जानती हूं कि भेजना चाहते, तो एक नहीं 10 चिट्ठियां भेज सकते थे.

‘‘नहीं भेजते तो किसी से बीमारी की खबर ही करा देते, पर क्यों करते ऐसा? तुम कितना ही पीछा छुड़ाओ, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

अम्मां चौंक कर अपनी बहू की बौखलाहट देखती रह गईं, फिर बोलीं, ‘‘क्या पागल हो गई है बहू?’’

‘‘पागल ही हो जाऊं अम्मां, तब भी तो ठीक है,’’ कहते हुए बिलख कर रो पड़ी सुधा और फिर कहने लगी, ‘‘पागल हो कर तो इन्हें अपने प्यार का एहसास कराना आसान होगा. किसी तरह से रो कर, गा कर और नाचनाच कर इन्हें अपने जाल में फंसा ही लूंगी. कम से कम मेरा समझदार होना तो आड़े नहीं आएगा,’’ कहतेकहते सुधा का गला भर आया.

सूरज आज अपनी बीवी का नया रूप देख रहा था. अब गिलेशिकवे मिटाने की फुरसत किसे थी? सुधा पति के आने की खुशियां मनाने में जुट गई. अम्मां भी अपना सारा दर्द समेट कर फिर अपने बच्चों से प्यार करने के सपने संजोने लगी थीं. Story In Hindi

Story In Hindi: मन की थाह – शादी के बाद रामलाल का क्या हुआ

Story In Hindi: रामलाल बहुत हंसोड़ किस्म का शख्स था. वह अपने साथियों को चुटकुले वगैरह सुनाता रहता था.

वह अकसर कहा करता था, ‘‘एक बार मैं कुत्ते के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया. वहां आदमियों का वजन तोलने के लिए बड़ी मशीन रखी थी. मैं ने एक रुपया दे कर उस पर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया. मशीन में से एक कार्ड निकला जिस पर वजन लिखा था 35 किलो और साथ में एक वाक्य भी लिखा था कि आप महान कवि बनेंगे.’’ यह सुनते ही सारे दोस्त हंसने लगते थे.

रामलाल जितना मजाकिया था, उतना ही दिलफेंक भी था. उम्र निकले जा रही थी पर शादी की फिक्र नहीं थी. शादी न होने की एक वजह घर में बैठी बड़ी विधवा बहन भी थी. गणित में पीएचडी करने के बाद वह इलाहाबाद के डिगरी कालेज में प्रोफैसर हो गया और वहीं बस गया. उस के एक दोस्त राधेश्याम ने दिल्ली में नौकरी कर घर बसा लिया.

एक बार राधेश्याम को उस से मिलने का मन हुआ. काफी समय हो गया था मिले हुए, इसलिए उस ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘मैं 3-4 दिनों के लिए इलाहाबाद जा रहा हूं. रामलाल से भी मिलना हो जाएगा. काफी सालों से उस की कोई खबर भी नहीं ली है. आज ही फोन कर के उसे अपने आने की सूचना देता हूं.’’

राधेश्याम ने रामलाल को अपने आने की सूचना दे दी. इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही राधेश्याम ने रामलाल को खोजना शुरू कर दिया. पर जो आदमी एकदम उस के गले आ कर लिपट गया वह रामलाल ही होगा, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था क्योंकि रामलाल कपड़ों के मामले में जरा लापरवाह था. पर आज जिस आदमी ने उसे गले लगाया वह सूटबूट पहने एकदम जैंटलमैन लग रहा था.

राधेश्याम के गले लगते ही रामलाल बोला, ‘‘बड़े अच्छे मौके पर आए हो दोस्त. मैं एक मुसीबत में फंस गया हूं.’’

‘‘कैसी मुसीबत? मुझे तो तुम अच्छेखासे लग रहे हो,’’ राधेश्याम ने रामलाल से कहा. इस पर रामलाल बोला, ‘‘तुम्हें पता नहीं है… मैं ने शादी कर ली है.’’

इस बात को सुनते ही राधेश्याम चौंका और बोला, ‘‘अरे, तभी कहूं कि 58 साल का बुड्ढा आज चमक कैसे रहा है? यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह तो बता इतने सालों बाद तुझे शादी की क्या सूझी? अब पत्नी की जरूरत कैसे पड़ गई? हमें खबर भी नहीं की…’’

इस पर रामलाल फीकी सी मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘बस यार, उम्र के इस पड़ाव पर जा कर शादी की जरूरत महसूस होने लगी थी. पर बात तो सुन पहले. मैं ने जिस लड़की से शादी की है, वह मेरे कालेज में ही मनोविज्ञान में एमए कर रही है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है,’’ राधेश्याम ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छीवच्छी कुछ नहीं. उस ने आते ही मेरे ड्राइंगरूम का सामान निकाल कर फेंक दिया और उस में अपनी लैबोरेटरी बना डाली, ‘‘बुझी हुई आवाज में रामलाल ने कहा.

‘‘तब तो तुम्हें बड़ा मजा आया होगा,’’ राधेश्याम ने चुटकी ली.

‘‘हांहां, शुरूशुरू में तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा, पर आजकल तो बहुत बड़ी मुसीबत आई हुई है,’’ दुखी  आवाज में रामलाल बोला.

‘‘आखिर कुछ बताओगे भी कि हुआ क्या है या यों ही भूमिका बनाते रहोगे?’’ राधेश्याम ने खीजते हुए कहा.

‘‘सब से पहले उस ने मेरी बहन के मन की थाह ली और अब मेरी भी…’’

राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाई रामलाल, तुम ने बहुत बढि़या बात सुनाई. तुम्हारे मन की थाह भी ले डाली.’’

‘‘हां यार, और कल उस ने रिपोर्ट भी दे दी.’’

‘‘रिपोर्ट? हाहाहाहा, तुम भी खूब आदमी हो. जरा यह तो बताओ कि उस ने यह सब किया कैसे था?’’

‘‘उस ने मुझे एक पग पर लिटा दिया. मेरी बांहों में किसी दवा का एक इंजैक्शन लगाया और बोली कि मैं जो शब्द कहूं, उस से फौरन कोई न कोई वाक्य बना देना. जल्दी बनाना और उस में वह शब्द जरूर होना चाहिए.’’

‘‘सब से पहले उस ने क्या शब्द कहा?’’ राधेश्याम ने पूछा.

रामलाल ने कहा, ‘‘दही.’’

राधेश्याम ने पूछा, ‘‘तुम ने क्या वाक्य बनाया?’’

रामलाल बोला, ‘‘क्योंजी, मध्य प्रदेश में दही तो क्या मिलता होगा?’’

राधेश्याम ने पूछा, ‘‘फिर?’’

रामलाल बोला, ‘‘फिर वह बोली, ‘बरतन.’

‘‘मैं ने कहा कि मुरादाबाद में पीतल के बरतन बनते हैं.

‘‘बस ऐसे ही बहुत से शब्द कहे थे. देखो जरा रिपोर्ट तो देखो,’’ यह कह कर उस ने अपनी जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला.

यह एक लैटरपैड था, जो इस तरह लिखा हुआ था, सुमित्रा गोयनका, एमए साइकोलौजी.

मरीज का नाम, रामलाल गोयनका.

बाप का नाम, हरिलाल गोयनका.

पेशा, अध्यापन.

उम्र, 58 साल.

ब्योरा, हीन भावना से पीडि़त. आत्मविश्वास की कमी. अपने विचारों पर दृढ़ न रहने के चलते निराशावादी बूढ़ा.

‘‘अबे, किस ने कहा था बुढ़ापे में शादी करने के लिए और वह भी अपने से 10-15 साल छोटी उम्र की लड़की से? जवानी में तो तू वैसे ही मजे लेता रहा है. तेरा ब्याह क्या हुआ, तेरे घर में तो एक अच्छाखासा तमाशा आ गया. तुझे तो इस में मजा आना चाहिए, बेकार में ही शोर मचा रहा है.’’

‘‘तू नहीं समझेगा. वह मेरी बहन को घर से निकालने पर उतारू हो गई है. दोनों में रोज लड़ाई होती है. अब मेरी बड़ी विधवा बहन इस उम्र में कहां जाएंगी?

‘‘अगर मैं उन्हें घर से जाने को कहता हूं, तो समाज कह देगा कि पत्नी के आते ही, जिस ने पाला, उसे निकाल दिया. मेरी जिंदगी नरक हो गई है.’’

इतनी बातें स्टेशन पर खड़ेखड़े ही हो गईं. फिर सामान को कार में रख कर रामलाल राधेश्याम को एक होटल में ले गया. वहां एक कमरा बुक कराया. उस कमरे में दोनों ने बैठ कर चायनाश्ता किया.

तब रामलाल ने उसे बताया, ‘‘इस समय घर में रहने में तुम्हें बहुत दिक्कत होगी. कहीं ऐसा न हो, वह तुम्हारे भी मन की थाह ले ले, इसलिए तुम्हारा होटल में ठहरना ही सही है.’’

इस पर राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे तो कोई एतराज नहीं है. मुझे तो और मजा ही आएगा. यह तो बता कि वह दिखने में कैसी लगती है?’’

रामलाल ठंडी आह लेते हुए बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत हैं. बिलकुल कालेज की लड़कियों जैसी. तभी तो उस पर दिल आ गया.’’

राधेश्याम ने उस को छेड़ने की नीयत से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात तो बता, जब तुम ने उस का चुंबन लिया होगा तो उस के चेहरे पर कैसे भाव थे?’’

‘‘वह इस तरह मुसकराई थी, जैसे उस ने मेरे ऊपर दया की हो. उस ने कहा था कि आप में अभी बच्चों जैसी सस्ती भावुकता है,’’ रामलाल झेंपता हुआ बोला.

चाय पीने के बाद राधेश्याम ने जल्दी से कपड़े बदल कर होटल के कमरे का ताला लगाया और रामलाल के साथ उस के घर की ओर चल दिया.

राधेश्याम मन ही मन उस मनोवैज्ञानिक से मिलने के लिए बहुत बेचैन था. होटल से घर बहुत दूर नहीं था. जैसे ही घर पहुंचे, घर का दरवाजा खुला हुआ था, इसलिए घर के अंदर से जोर से बोलने की आवाजें बाहर साफ सुनाई दे रही थीं. वे दोनों वहीं ठिठक गए.

रामलाल की बहन चीखचीख कर कह रही थीं, ‘‘मैं आज तुझे घर से निकाल कर छोड़ूंगी. तू ने इस घर का क्या हाल बना रखा है? तू मुझे समझती क्या है?’’

रामलाल की नईनवेली बीवी कह रही थी, ‘‘तुम तो न्यूरोटिक हो, न्यूरोटिक.’’

इस पर रामलाल की बहन बोलीं, ‘‘मेरे मन की थाह लेगी. इस घर से चली जा, मेरे ठाकुरजी की बेइज्जती मत कर… समझी?’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम्हें तो रिलीजियस फोबिया हो गया है.’’

इस पर बहन बोलीं, ‘‘सारा महल्ला मुझ से घबराता है. तू कल की छोकरी… चल, निकल मेरे घर से.’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम में भी बहुत ज्यादा हीन भावना है.’’

रामलाल बेचारा चुपचाप सिर झुकाए खड़ा हुआ था. तब राधेश्याम ने उस के कान में कहा, ‘‘तुम फौरन जा कर अपनी पत्नी को मेरा परिचय एक महान मनोवैज्ञानिक के रूप में देना, फिर देखना सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’

रामलाल ने राधेश्याम को अपने ड्राइंगरूम में बिठाया और पत्नी को बुलाने चला गया. उस के जाते ही राधेश्याम ने खुद को आईने में देखा कि क्या वह मनोवैज्ञानिक सा लग भी रहा है या नहीं? उसे लगा कि वह रोब झाड़ सकता है.

थोड़ी देर बाद रामलाल अपनी पत्नी के साथ आया. वह गुलाबी रंग की साड़ी बांधे हुई थी. चेहरे पर गंभीर झलक थी. बाल जूड़े से बंधे हुए थे और पैरों में कम हील की चप्पल पहने हुए थी. उस ने बहुत ही आहिस्ता से राधेश्याम से नमस्ते की.

नमस्ते के जवाब में राधेश्याम ने केवल सिर हिला दिया और बैठने का संकेत किया.

तब रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आप मेरे गुरुपुत्र हैं. कल ही विदेश से लौटे हैं. मनोवैज्ञानिक जगत में आप बड़े मशहूर हैं. विदेशों में भी.

इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘रामलाल ने मुझे बताया कि आप साइकोलौजी में बड़ी अच्छी हैं, इसीलिए मैं आप से मिलने चला आया. कुछ सुझाव भी दूंगा. मैं आदमी को देख कर पढ़ लेता हूं, किताब के जैसे. मैं बता सकता हूं कि इस समय आप क्या सोच रही हैं?’’

रामलाल की पत्नी तपाक से बोली, ‘‘क्या…?’’

राधेश्याम ने कहा, ‘‘आप इस समय आप हीन भावना से पीडि़त हैं.’’

रामलाल की पत्नी घबरा गई और बोली, ‘‘आप मुझे अपनी शिष्या बना लीजिए.’’

इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘अभी नहीं. अभी मेरी स्टडी चल रही है. अब से कुछ साल बाद मैं अपनी लैबोरेटरी खोलूंगा.’’

‘‘मैं ने तो अपनी लैबोरेटरी अभी से खोल ली है,’’ रामलाल की पत्नी झट से बोली.

‘‘गलती की है. अब से 10 साल बाद खोलना. मैं तुम्हें कुछ किताबें भेजूंगा, उन्हें पढ़ना. अपनी लैबोरेटरी को अभी बंद करो. मुझे मालूम हुआ है कि आप अपनी ननद से भी लड़ती हैं. उन से माफी मांगिए.’’

रामलाल की पत्नी वहां से उठ कर चली गई. रामलाल राधेश्याम से लिपट गया और वे दोनों कुछ इस तरह खिलखिला कर हंसने लगे कि ज्यादा आवाज न हो. Story In Hindi

Hindi Romantic Story: वह धोखेबाज प्रेमिका – नीलेश का दीवानापन

Hindi Romantic Story: अनीता की खूबसूरती के किस्से कालेज में हरेक की जबान पर थे. वह जब कालेज आती तो हर ओर एक समा सा बंध जाता था. वह हरियाणा के एक छोटे से शहर सिरसा के नामी वकील की बेटी थी तथा बेहद खूबसूरत व प्रतिभाशाली थी. चालाक इतनी कि अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती थी. अभिजात्य व आत्मविश्वास से उस का नूरानी चेहरा हरदम चमकता रहता. वह मुसकराती भी तो ऐसे जैसे सामने वाले पर एहसान कर रही हो. कालेज में एक रसूख वाले नामी वकील की बेटी यदि होशियार और सुंदर हो, तो उस के आगेपीछे घूमने वालों की फेहरिस्त भी लंबी ही होगी.

लेकिन अनीता ने सब युवकों में से नीलेश को चुना जो गरीब और हर वक्त किताबों में खोया रहता था. वह अनीता का ही सहपाठी था, और गांव के एक गरीब किसान का बेटा था. उस के पिता का असमय निधन हो गया था, इसलिए बड़ी मुश्किल से विधवा मां नीलेश को पढ़ा रही थीं व नीलेश हर समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहता था. अनीता को तो नीलेश ही पसंद आया, क्योंकि वह लंबा, हैंडसम और मेहनती नौजवान था. अनीता जबतब कुछ पूछने के बहाने उसे अपने नजदीक लाती गई और देखतेदेखते उन की दोस्ती की चर्चा अब पूरे कालेज में होने लगी. नीलेश खोयाखोया रहने लगा. धीरेधीरे इस मेधावी छात्र की पढ़ाई जहां ठप सी हो गई, वहीं अनीता जो पढ़ाई में औसत दर्जे की थी अब वह उस के बनाए नोट्स पढ़ कर फर्स्ट आने लगी.

इस सब में नीलेश की मेहनत होती. वह रातभर उस के लिए नोट्स बनाता, उस की प्रैक्टिकल की फाइल्स तैयार करता, लैब में ऐक्सपैरिमैंट्स वह करता, लेकिन उस की मेहनत का सारा फल अनीता को मिलता. नीलेश तो बस, अपनी प्रेमिका के प्रेम में ही डूबा रहता. वह उस के अलावा कुछ सोच भी नहीं पाता. यहां तक कि छुट्टी में वह अपनी मां से मिलने गांव भी नहीं जाता. ये सब देख मां भी बीमार रहने लगीं.

नीलेश प्यार के छलावे में इस कदर खो गया कि उसे याद ही नहीं रहता कि गांव में उस की मां भी हैं, जो आठों पहर उस की राह देखती रहती हैं. मां ने अपने जेवर बेच कर उस के कालेज की फीस भरी. मां बड़े किसानों के यहां धान साफ कर के उस की पढ़ाई का खर्च पूरा कर रही थीं. उन के प्रति चाह कर भी नीलेश नहीं सोच पाता, क्योंकि अनीता के साथ उस के प्रश्नोत्तर बनाना, फिर उस के घर जाना, वह कहीं जा रही हो, तो उसे साथ ले जाना, उस के संग पिक्चर व पार्टी अटैंड करना, ये सब काम वह करता. वह इन सब में इतना थक जाता कि उसे अपना भी होश न रहता. कालेज की गैदरिंग में उस ने अनीता को देख कर ही यह गीत गाया था, ‘एक शेर सुनाता हूं मैं, जो तुझ को मुखातिब है, इक हुस्नपरी दिल में है, जो तुझ को मुखातिब है…’

इस गीत को गाने में वह इतना तन्मय हो गया था कि बड़ी देर तक तालियां बजती रही थीं, पर वह सामने कुरसी पर बैठी अनीता को ही ताकता रहा और उस के कान में तालियों की आवाज भी जैसे नहीं पड़ रही थी. अनीता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था. सारे कालेज में वह जूलियट के नाम से जानी जाने लगी थी. हालांकि उस ने इस प्यार में अपना कुछ नहीं खोया. नीलेश ने उसे कभी उंगली से भी नहीं छुआ था.

इधर ऐग्जाम होतेहोते अनीता का मुंबई में रिश्ता तय हो गया. अनीता को क्या फर्क पड़ना था. वह तो मस्त थी. कभी प्रेम में पड़ी ही नहीं थी. वह तो मात्र मनोरंजन और मतलब के लिए नीलेश को इस्तेमाल कर रही थी. आखिर रिजल्ट आया, अनीता अव्वल आई पर नीलेश 2 विषयों में लटक गया. उस का 1 वर्ष बरबाद हो गया. इधर अनीता विवाह कर मुंबई रहने चली गई, जबकि नीलेश को प्यार में नाकामी और अवसाद हाथ लगा.

उस का साल बरबाद हो गया इस का तो उसे गम नहीं हुआ लेकिन जिसे वह दिल ही दिल में चाहने लगा था, उस अनीता के एकाएक चले जाने से वह इतना निराश हो गया कि उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या का प्रयास किया. जब अनीता की बरात आ रही थी, तब नीलेश अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहा था. उस की गरीब मां का रोरो कर बुला हाल था. वह नहीं समझ पा रही थीं कि हर कक्षा में प्रथम आने वाला उस का बेटा आज कैसे फेल हो गया. वह इतना होशियार, सच्चा, ईमानदार, व मेहनती था कि मां ने उस के लिए असंख्य सपने संजोए थे, किंतु एक बेवफा के प्यार ने उसे इतना नाकाम बना दिया कि वह शराब पीने लगा. उस का भराभरा चेहरा व शरीर हड्डियों का ढांचा नजर आने लगा. Hindi Romantic Story

Short Story In Hindi: मेहंदी लगी मेरे हाथ – क्या दीपा और अविनाश की शादी हुई

Short Story In Hindi: शादी के बहुत दिनों बाद मैं पीहर आई थी. पटना के एक पुराने महल्ले में ही मेरा पीहर था और आज भी है. यहां 6-7 फुट की गलियों में मकान एकदूसरे से सटे हैं. छतों के बीच भी 3-4 फुट की दूरी थी. मेरे पति संकल्प मुझे छोड़ कर विदेश दौरे पर चले गए थे. साल में 2-3 टूअर तो इन के हो ही जाते थे.

मैं मम्मी के साथ छत पर बैठी थी. शाम का वक्त था. हमारी छत से सटी पड़ोसी की छत थी. उस घर में एक लड़का अविनाश रहता था. मुझ से 4-5 साल बड़ा होगा. मेरे ही स्कूल में पढ़ता था. मुझे अचानक उस की याद आ गई. मैं मम्मी से पूछ बैठी, ‘‘अविनाश आजकल कहां है?’’

‘‘मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती हूं. तुम्हारी शादी से कुछ दिन पहले वह यह घर छोड़ कर चला गया था. वैसे भी वह तो किराएदार था. पटना पढ़ने के लिए आया था.’’

मैं किचन में चाय बनाने चली गई पर मुझे अपने बीते दिन अनायास याद आने लगे थे. मन विचलित हो रहा था. किसी काम में मन नहीं लग रहा था. कप में चाय छान रही थी तो आधी कप में और आधी बाहर गिर रही थी. मन रहरह कर अतीत के गलियारों में भटकने लगा था. खैर, मैं चाय बना कर छत पर आ गई. ऊपर मम्मी पड़ोस वाली छत पर खड़ी आंटी से बातें कर रही थीं. दोनों के बीच बस 3 फुट की दूरी थी. मैं ने अपनी चाय आंटी को देते हुए कहा, ‘‘आप दोनों पी लें. मैं अपने लिए फिर बना लूंगी.’’

मैं उन दोनों से अलग छत के दूसरे कोने पर जा खड़ी हुई. अंधेरा घिरने लगा था. बिजली चली गई, तो बच्चे शोर मचाते बाहर निकल आए. कुछ अपनीअपनी छत पर आ गए. ऐसे ही अवसर पर मैं जब छत पर होती थी, अविनाश मुझे देख कर मुसकराता था, तो कभी हवा में हाथ उठाता था. मैं उस वक्त 8वीं कक्षा में थी. मैं अकसर कपड़े सुखाने छत पर आती थी. अविनाश भी उस समय छत पर ही होता था खासकर छुट्टी के दिन.

एक दिन जब मैं छत पर खड़ी थी तो बिजली चली गई. कुछ अंधेरा था. अविनाश ने पास आ कर एक परची मुझे पकड़ा दी और फिर जल्द ही वहां से मुसकराता हुआ भाग खड़ा हुआ. मैं बहुत डर गई थी. परची को कुरते के अंदर छिपा लिया. बचपन और जवानी के बीच के कुछ वर्ष लड़कियों के लिए बड़े कशमकश भरे होते हैं. कभी मन उछलनेकूदने को करता है तो कभी बाली उम्र से डर लगता है. कभी किसी को बांहों में लेने को जी चाहता है तो कभी खुद किसी की बांहों में कैद होने को जी करता है.

मैं ने बाद में उस परची को पढ़ा. लिखा था, ‘‘दीपा, तुम मुसकराती हो तो बहुत सुंदर लगती हो और मुझे यह देख कर खुशी होती है.’’

ऐसे ही समय बीत रहा था. मेरी दीदी की शादी थी. मेहंदी की रस्म थी. मैं ने भी

दोनों हाथों में मेहंदी लगवाई और शाम को छत पर आ गई. अविनाश भी अपनी छत पर था. उस ने मुसकरा कर हाथ लहराया. न जाने मुझे क्या सूझा कि मैं ने भी अपने मेहंदी लगे हाथ उठा दिए. उस ने इशारों से रेलिंग के पास बुलाया तो मैं किसी आकर्षणवश खिंची चली गई. उस ने तुरंत मेरे हाथों को चूम लिया. मैं छिटक कर अलग हो गई.

अविनाश को जब भी मौका मिलता मुझे चुपके से परची थमा जाता था. यों ही मुसकराती रहो, परची में अकसर लिखा होता. मुझे अच्छा तो लगता था, पर मैं ने न कभी जवाब दिया और न ही कोई इजहार किया.

मैं ने प्लस टू के बाद कालेज जौइन किया था. एक दिन अचानक दीदी ने अपनी ससुराल से कोई अच्छा रिश्ता मेरे लिए मम्मीपापा को सुझाया. मैं पढ़ना चाहती थी पर सब ने एक सुर में कहा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता चल कर अपने दरवाजे पर आया है. इस मौके को नहीं गंवाना है. तुम बाकी पढ़ाई ससुराल में कर लेना.’’

मेरी शादी की तैयारी चल रही थी. अविनाश ने एक परची मुझे किसी छोटे बच्चे के हाथ भिजवाई. लिखा था कि शादी मुबारक हो. ससुराल में भी मुसकराती रहना. शायद तुम्हारी शादी की मेहंदी लगे हाथ देखने का मौका न मिले, इस का अफसोस रहेगा.

मैं शादी के बाद ससुराल इंदौर आ गई. पति संकल्प अच्छे नेक इंसान हैं, पर अपने काम में काफी व्यस्त रहते थे. काम से फुरसत मिलती तो क्रिकेट के शौकीन होने के चलते टीवी पर मैच देखते रहेंगे या फिर खुद बल्ला उठा कर अपने क्रिकेट क्लब चले जाएंगे. वैसे इस के लिए मैं ने उन से कोई गिलाशिकवा नहीं किया था.

मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘दीपा, कल पड़ोसी प्रदीप अंकल की बेटी मोहिनी की मेहंदी की रस्म है और लेडीज संगीत भी है. तुम तो उसे जानती हो. तुम्हारे स्कूल में ही थी. तुम से 2 क्लास पीछे. तुम्हें खासकर बुलाया है. मोहिनी ने भी कहा था दीपा दी को जरूर साथ लाना. तुम्हें चलना होगा.’’

अगले दिन शाम को मैं मोहिनी के यहां गई. दोनों हाथों में कुहनियों तक मेहंदी लगवाई. कुछ देर तक लेडीज संगीत में भाग लिया, फिर बिजली चली गई तो मैं अपने घर लौट आई. हालांकि वहां जनरेटर चल रहा था. म्यूजिक सिस्टम काफी जोर से बज रहा था. मैं यह शोरगुल ज्यादा नहीं झेल पाई, इसलिए चली आई.

मैं अपनी छत पर गई. मुझे अविनाश की याद आ गई. मैं ने अचानक मेहंदी वाले दोनों हाथों को हवा में लहरा दिया. पड़ोस वाली आंटी ने अपनी छत से मुझे देखा. वे समझीं कि मैं ने उन्हें हाथ दिखाए हैं. रेलिंग के पास आ कर मुझे पास बुलाया और फिर मेरे हाथ देख कर बोलीं, ‘‘काफी अच्छे लग रहे हैं मेहंदी वाले हाथ. रंग भी पूरा चढ़ा है. दूल्हा जरूर बहुत प्यार करता होगा.’’

मैं ने शरमा कर अपने हाथ हटा लिए. रात में मैं लैपटौप पर औनलाइन थी. मैं ने अप्रत्याशित अविनाश की फ्रैंड रिक्वैस्ट देखी और तत्काल ऐक्सैप्ट भी कर लिया. थोड़ी ही देर में उस का मैसेज आया कि कैसी हो दीपा और तुम्हारी मुसकराहट बरकरार है न? संकल्प को भी तुम्हारी मुसकान अच्छी लगती होगी.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गई. इसे संकल्प के बारे में कैसे पता है. अत: मैं ने पूछा, ‘‘तुम उन्हें कैसे जानते हो?’’

‘‘मैं दुबई के सैंट्रल स्कूल में टीचर हूं. संकल्प यहां हमारे स्कूल में कंप्यूटर और वाईफाई सिस्टम लगाने आया था. बातोंबातों में पता चला कि वह तुम्हारा पति है. उस ने ही तुम्हारा व्हाट्सऐप नंबर दिया है.’’

‘‘खैर, तुम बताओ, कैसे हो? बीवीबच्चे कैसे हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पहले बीवी तो आए, फिर बच्चे भी आ जाएंगे.’’

‘‘तो अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, अब कर लूंगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हर क्यों का जवाब हो, जरूरी नहीं है. वैसे एक बार तुम्हारी मुसकराहट देखने की इच्छा थी. खैर, छोड़ो और क्या हाल है?’’

‘‘पड़ोस में मोहिनी की मेहंदी की रस्म में गई थी.’’

‘‘तब तो तुम ने भी अपने हाथों में मेहंदी जरूर लगवाई होगी.’’

‘‘हां.’’

‘‘जरा वीडियो औन करो, मुझे भी दिखाओ. तुम्हारी शादी की मेहंदी नहीं देख सका था.’’

‘‘लो देखो,’’ कह कर मैं ने वीडियो औन कर अपने हाथ उसे दिखाए.

‘‘ब्यूटीफुल, अब एक बार वही पुरानी मुसकान भी दिखा दो.’’

‘‘यह तुम्हारे रिकौर्ड की सूई बारबार मुसकराहट पर क्यों अटक जाती है.’’

‘‘तुम्हें कुछ पता भी है, एक भाषा ऐसी है जो सारी दुनिया जानती है.’’

‘‘कौन सी भाषा?’’

‘‘मुसकराहट. मैं चाहता हूं कि सारी दुनिया मुसकराती रहे और बेशक दीपा भी.’’ मैं हंस पड़ी.

वह बोला, ‘‘बस यह अरमान भी पूरा हो गया.’’

मुझे लगा मेरी भी सुसुप्त अभिलाषा पूरी हुई. अविनाश के बारे में जानना चाह रही थी. अत: बोली, ‘‘अपनी शादी में बुलाना नहीं भूलना.’’

‘‘अब पता मिल गया तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता. इसी बहाने एक बार फिर तुम्हारे मेहंदी वाले हाथ और वही मुसकराता चेहरा भी देख लूंगा.’’

‘‘अब ज्यादा मसका न लगाओ. जल्दी से शादी का कार्ड भेजो.’’

‘‘खुशी हुई शादी के बाद तुम्हें बोलना तो आ गया. आज से पहले तो कभी बात भी नहीं की थी.’’

‘‘हां, इस का अफसोस मुझे भी है.’’

एक बार फिर बिजली चली गई. इंटरनैट बंद हो गया. अविनाश कितना चाहता था मुझे शायद मैं नहीं जान पाती अगर उस से आज बात नहीं हुई होती. Short Story In Hindi

Family Story In Hindi: मेरा बच्चा मेरा प्यार – अपने बच्चे से प्यार का एहसास

Family Story In Hindi: ‘‘बच्चे का रक्त दूषित है,’’ वरिष्ठ बाल विशेषज्ञ डा. वंदना सरीन ने लैबोरेटरी से आई ब्लड सैंपल की रिपोर्ट पढ़ने के बाद कहा. एमबीबीएस कर रहे अनेक प्रशिक्षु छात्रछात्राएं उत्सुकता से मैडम की बात सुन रहे थे. जिस नवजात शिशु की ब्लड रिपोर्ट थी वह एक छोटे से पालने के समान इन्क्यूबेटर में लिटाया गया था. उस के मुंह में पतली नलकी डाली गई थी जो सीधे आमाशय में जाती थी. बच्चा कमजोरी के चलते खुराक लेने में अक्षम था. हर डेढ़ घंटे के बाद ग्लूकोस मिला घोल स्वचालित सिस्टम से थोड़ाथोड़ा उस के पेट में चला जाता था. इन्क्यूबेटर में औक्सीजन का नियंत्रित प्रवाह था. फेफड़े कमजोर होने से सांस न ले सकने वाला शिशु सहजता से सांस ले सकता था.

बड़े औद्योगिक घराने के ट्रस्ट द्वारा संचालित यह अस्पताल बहुत बड़ा था. इस में जच्चाबच्चा विभाग भी काफी बड़ा था. आयु अवस्था के आधार पर 3 बड़ेबड़े हौल में बच्चों के लिए 3 अलगअलग नर्सरियां बनी थीं. इन तीनों नर्सरियों में 2-4 दिन से कुछ महीनों के बच्चों को हौल में छोटेछोटे थड़ेनुमा सीमेंट के बने चबूतरों पर टिके अत्याधुनिक इन्क्यूबेटरों में फूलों के समान रखा जाता था. तीनों नर्सरियों में कई नर्सें तैनात थीं. उन की प्रमुख मिसेज मार्था थीं जो एंग्लोइंडियन थीं. बरसों पहले उस के पति की मृत्यु हो गई थी. वह निसंतान थी. अपनी मातृत्वहीनता का सदुपयोग वह बड़ेबड़े हौल में कतार में रखे इनक्यूबेटरों में लेटे दर्जनों बच्चों की देखभाल में करती थी. कई बार सारीसारी रात वह किसी बच्चे की सेवाटहल में उस के सिरहाने खड़ी रह कर गुजार देती थी. उस को अस्पताल में कई बार जनूनी नर्स भी कहा जाता था.

मिसेज मार्था के स्नेहभरे हाथों में कुछ खास था. अनेक बच्चे, जिन की जीने की आशा नहीं होती थी, उस के छूते ही सहजता से सांस लेने लगते या खुराक लेने लगते थे. अनेक लावारिस बच्चे, जिन को पुलिस विभाग या समाजसेवी संगठन अस्पताल में छोड़ जाते थे, मिसेज मार्था के हाथों नया जीवन पा जाते थे. मिसेज मार्था कई बार किसी लावारिस बच्चे को अपना वारिस बनाने के लिए गोद लेने का इरादा बना चुकी थी. मगर इस से पहले कोई निसंतान दंपती आ कर उस अनाथ या लावारिस को अपना लेता था. मिसेज मार्था स्नेहपूर्वक उस बच्चे को आशीष दे, सौंप देती. वरिष्ठ बाल विशेषज्ञ डा. वंदना सरीन दिन में 3 बार नर्सरी सैक्शन का राउंड लगाती थीं. उन को मिसेज मार्था के समान नवशिशु और आंगनवाटिका में खिले फूलों से बहुत प्यार था. दोनों की हर संभव कोशिश यही होती कि न तो वाटिका में कोई फूल मुरझाने पाए और न ही नर्सरी में कोई शिशु. डा. वंदना सरीन धीमी गति से चलती एकएक इन्क्यूबेटर के समीप रुकतीं, ऊपर के शीशे से झांकती. रुई के सफेद फाओं के समान सफेद कपड़े में लिपटे नवजात शिशु, नरमनरम गद्दे पर लेटे थे. कई सो रहे थे, कई जाग रहे थे. कई धीमेधीमे हाथपैर चला रहे थे.

‘‘यह बच्चा इतने संतुलित ढंग से पांव चला रहा है जैसे साइकिल चला रहा है,’’ एक प्रशिक्षु छात्रा ने हंसते हुए कहा. ‘‘हर बच्चा जन्म लेते ही शारीरिक क्रियाएं करने लगता है,’’ मैडम वंदना ने उसे बताया, ‘‘शिशु की प्रथम पाठशाला मां का गर्भ होती है.’’ राउंड लेती हुई मैडम वंदना उस बच्चे के इन्क्यूबेटर के पास पहुंचीं जिस की ब्लड सैंपल रिपोर्ट लैब से आज प्राप्त हुई थी.

‘‘बच्चे को पीलिया हो गया है,’’ वरिष्ठ नर्स मिसेज मार्था ने चिंतातुर स्वर में कहा.

‘‘बच्चे का रक्त बदलना पड़ेगा,’’ मैडम वंदना ने कहा.

‘‘मैडम, यह दूषित रक्त क्या होता है?’’ एक दूसरी प्रशिक्षु छात्रा ने सवाल किया. ‘‘रक्त या खून के 3 ग्रुप होते हैं. ए, बी और एच. 1940 में रक्त संबंधी बीमारियों में एक नया फैक्टर सामने आया. इस को आरएच फैक्टर कहा जाता है.’’ सभी इंटर्न्स और अन्य नर्सें मैडम डा. वंदना सरीन का कथन ध्यान से सुन रहे थे. ‘‘किसी का रक्त चाहे वह स्त्री का हो या पुरुष का या तो आरएच पौजिटिव होता है या आरएच नैगेटिव.’’

‘‘मगर मैडम, इस से दूषित रक्त कैसे बनता है?’’ ‘‘फर्ज करो. एक स्त्री है, उस का रक्त आरएच पौजिटिव है. उस का विवाह ऐसे पुरुष से होता है जिस का रक्त आरएच नैगेटिव है. ऐसी स्त्री को गर्भ ठहरता है तब संयोग से जो भ्रूण मां के गर्भ में है उस का रक्त आरएच नैगेटिव है यानी पिता के फैक्टर का है. ‘‘तब मां का रक्त गर्भ में पनप रहे भू्रण की रक्त नलिकाओं में आ कर उस के नए रक्त, जो उस के पिता के फैक्टर का है, से टकराता है. और तब भ्रूण का शरीर विपरीत फैक्टर के रक्त को वापस कर देता है. मगर अल्पमात्रा में कुछ विपरीत फैक्टर का रक्त शिशु के रक्त में मिल जाता है.’’ ‘‘मैडम, आप का मतलब है जब विपरीत फैक्टर का रक्त मिल जाता है तब उस को दूषित रक्त कहा जाता है?’’ सभी इंटर्न्स ने कहा.

‘‘बिलकुल, यही मतलब है.’’

‘‘इस का इलाज क्या है?’’

‘‘ट्रांसफ्यूजन सिस्टम द्वारा शरीर से सारा रक्त निकाल कर नया रक्त शरीर में डाला जाता है.’’

‘‘पूरी प्रक्रिया का रक्त कब बदला जाएगा?’’

‘‘सारे काम में मात्र 10 मिनट लगेंगे.’’ ब्लडबैंक से नया रक्त आ गया था. उस को आवश्यक तापमान पर गरम करने के लिए थर्मोस्टेट हीटर पर रखा गया. बच्चे की एक हथेली की नस को सुन्न कर धीमेधीमे बच्चे का रक्त रक्तनलिकाओं से बाहर निकाला गया. फिर उतनी ही मात्रा में नया रक्त प्रविष्ट कराया गया. मात्र 10 मिनट में सब संपन्न हो गया. सांस रोके हुए सब यह क्रिया देख रहे थे. रक्त बदलते ही नवशिशु का चेहरा दमकने लगा. वह टांगें चलाने लगा. सब इंटर्न्स खासकर वरिष्ठ नर्स मिसेज मार्था का उदास चेहरा खिल उठा. शिशु नर्सरी के बाहर उदास बैठे बच्चे के मातापिता मिस्टर ऐंड मिसेज कोहली के चेहरों पर चिंता की लकीरें थीं. ‘अभी मौजमेला करेंगे, बच्चा ठहर कर पैदा करेंगे,’ इस मानसिकता के चलते दोनों ने बच्चा पैदा करने की सही उम्र निकाल दी थी. मिस्टर कोहली की उम्र अब 40 साल थी. मिसेज कोहली 35 साल की थीं. पहला बच्चा लापरवाही के चलते जाता रहा था.

प्रौढ़ावस्था में उन को अपनी क्षणभंगुर मौजमस्ती की निरर्थकता का आभास हुआ था. बच्चा गोद भी लिया जा सकता था. परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया था क्योंकि उन्हें अपना रक्त चाहिए था. उन दोनों के मन में कई तरह के सवाल घूम रहे थे. एक पल उन्हें लगा कि पता नहीं उन का बच्चा बचेगा कि नहीं, उन का वंश चलेगा या नहीं? उन्हें आज अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि काश, उन्होंने अपनी मौजमस्ती पर काबू किया होता और सही उम्र में बच्चे की प्लानिंग की होती. हर काम की एक सही उम्र होती है. इसी बीच शिशु नर्सरी का दरवाजा खुला. वरिष्ठ नर्स मिसेज मार्था ने बाहर कदम रखा और कहा, ‘‘बधाई हो मिस्टर कोहली ऐंड मिसेज कोहली. आप का बच्चा बिलकुल ठीक है. कल अपना बच्चा घर ले जाना.’’

दोनों पतिपत्नी ने उठ कर उन का अभिवादन किया. वरिष्ठ नर्स ने उन को अंदर जाने का इशारा किया. पति ने पत्नी की आंखों में झांका, पत्नी ने पति की आंखों में. दोनों की आंखों में एकदूसरे के प्रति प्यार के आंसू थे. दोनों ने बच्चे के साथसाथ एकदूसरे को पा लिया था. Family Story In Hindi

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