कोर्ट के इस फैसले पर पति मुश्किल में, कोर्ट ने मानी महिला की बात…

7 मई, 2006 को एक महिला की शादी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में तैनात एक इंस्पेक्टर से हुई. किसी कारणवश यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और 15 अक्तूबर, 2006 को ही दोनों अलग हो गए.
गुजाराभत्ते को ले कर मामला अदालत पहुंचा तो कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी सैलरी का 30% हिस्सा पत्नी को दे. पति इस आदेश से संतुष्ट नहीं था. उस ने ट्रायल कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इसे घटा कर 15% कर दिया. महिला ने तब इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा,”पति की कुल तनख्वाह का 30% हिस्सा पत्नी को गुजाराभत्ते के रूप में दिया जाए. अदालत ने कहा कि कमाई के बंटवारे का फार्मूला निश्चित है. इस के तहत यह नियम है कि अगर एक आमदनी पर कोई और निर्भर न हो तो पति की कुल सैलरी का 30% हिस्सा पत्नी को मिलेगा.

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दरअसल, देश में बढते तलाक के मामले को ले कर अदालत सख्त रूप अपनाती है. अदालतें चाहती हैं कि पतिपत्नी में सुलह हो जाए और वे फिर से साथ रहने लगें.
पर जब इसमें कोई रास्ता नजर नहीं आता तो ही सख्त नियमकानून के तहत तलाक मंजूर करती हैं.

शादी को खिलौना समझने वाले पतियों को अब होशियार हो जाना चाहिए. आमतौर पर जब शादी टूटती है तो अधिकतर पति यही सोचते हैं कि तलाक ले कर वे अपनी अलग दुनिया बसा लेंगे.

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अदालती फैसले के बाद अब यह पति पूरी जिंदगी अपनी सैलरी से 30% हिस्सा तलाकशुदा पत्नी को देता रहेगा और शायद पछताता भी रहेगा.

Edited by Neelesh Singh Sisodia

डाक्टर नहीं जल्लाद

साल 1981 में राजतिलक द्वारा निर्देशत एक फिल्म आई थी ‘चेहरे पे चेहरा’. यह एक थ्रिलर और हौरर फिल्म थी. फिल्म के केंद्रीय पात्र संजीव कुमार थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक और डा. विल्सन का किरदार निभाया था. विल्सन एक ऐसा कैमिकल ईजाद कर लेता है, जो आदमी की बुराइयों को खत्म कर सकता है. इस कैमिकल का प्रयोग वह सब से पहले खुद पर करता है, लेकिन इस का असर उलटा हो जाता है. विल्सन के भीतर की बुराइयों का प्रतिनिधित्व करता एक और किरदार ब्लैक स्टोन उस की अच्छाइयों पर हावी होने लगता है.

सी ग्रेड की यह फिल्म हालांकि दर्शकों ने ज्यादा पसंद नहीं की थी, लेकिन फिल्म यह संदेश देने में सफल रही थी कि आदमी के अंदर अच्छाइयां और बुराइयां दोनों मौजूद रहती हैं. इन में से जिसे अनुकूलताएं मिल जाती हैं, वह बढ़ जाती हैं.

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के एक डाक्टर सुनील मंत्री की कहानी या किरदार काफी हद तक विल्सन के दूसरे चेहरे ब्लैक स्टोन से मिलताजुलता है, जिस के भीतर का हैवान या पिशाच बगैर कोई कैमिकल दिए ही जाग गया था.

होशंगाबाद के आनंदनगर में रहने वाले इस हड्डी रोग विशेषज्ञ की पोस्टिंग नजदीक के कस्बे इटारसी के सरकारी अस्पताल में थी. सुनील मंत्री पोस्टमार्टम भी करता था, लिहाजा लाशों को चीरफाड़ कर मौत की वजह निकालना उस का काम था. अकसर होशंगाबाद-इटारसी अपडाउन करने वाले इस डाक्टर की जिंदगी की कहानी भी हिंदी फिल्मों सरीखी ही है.

अब से कोई सवा साल पहले तक सुनील मंत्री की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी. उस के पास वह सब कुछ था, जिस की तमन्ना हर कोई करता है. इज्जतदार पेशा, खुद का मकान व कारें और सुंदर पत्नी सुषमा के अलावा बेटा श्रीकांत और बेटी जो नागपुर के एक नामी कालेज में पढ़ रही है. बेटा श्रीकांत भी मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है.

वक्त काटने और कुछ और पैसा कमाने की गरज से सुषमा ने साल 2010 में एक बुटीक खोला था. इसी दौरान उन के संपर्क में रानी पचौरी नाम की महिला आई, तो उन्होंने उसे भी अपने बुटीक में काम पर लगा लिया.  रानी मेहनती और ईमानदार थी, इसलिए देखते ही देखते सुषमा की विश्वासपात्र बन गई. सुषमा भी उसे घर के सदस्य की तरह मानने लगी थी.

सुनील मंत्री की दिलचस्पी बुटीक में कोई खास नहीं थी लेकिन जब से उस ने रानी को देखा था, तब से उस के होश उड़ गए थे. रानी का पति वीरेंद्र उर्फ वीरू पचौरी एक तरह से निकम्मा और बेरोजगार था, जो कभीकभार छोटेमोटे काम कर लिया करता था. नहीं तो वह पत्नी की कमाई पर ही आश्रित था. वीरू जैसे पतियों की समाज में कमी नहीं है. ऐसे लोगों के लिए एक कहावत है, ‘काम के न काज के, दुश्मन अनाज के.’

रानी जैसी पत्नियों की भी यह मजबूरी हो जाती है कि वे ऐसे पति को ढोती रहें, जो कहने भर का पति होता है. उस से उन्हें कुछ नहीं मिलता सिवाय एक सामाजिक सुरक्षा के, इसलिए वह वीरू को ढो ही रही थी.

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पत्नी की मौत के बाद डाक्टर ने रानी में ढूंढा मन का सुकून

यह कोई हैरानी या हर्ज की बात नहीं थी, पर ऐसे मामलों में जैसा कि अकसर होता है, इस में भी हुआ यानी कि डा. सुनील मंत्री और रानी के बीच भी सैक्स की खिचड़ी पकने लगी. चूंकि रानी के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए दोनों को साथ वक्त गुजारने में कोई दिक्कत नहीं आती थी.

उस दौरान डा. सुनील मंत्री का वक्त कैसे गुजरता था, यह तो कोई नहीं जानता लेकिन 7 अप्रैल, 2017 को डाक्टर की पत्नी सुषमा की भोपाल के बंसल हौस्पिटल में मौत हो गई. पत्नी के देहांत के बाद तनहा रह गए डा. सुनील मंत्री का अधिकांश वक्त रानी के साथ ही गुजरने लगा.

सुषमा के बाद दिखावे के लिए बुटीक का काम रानी ने संभाल लिया था, लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि रानी ने और कई चीजों की डोर अपने हाथ में ले ली थी. जब तक सुषमा थी तब तक रानी का पति वीरू रानी को उस के यहां आनेजाने पर कोई ऐतराज नहीं जताता था लेकिन बाद में रानी पहले से कहीं ज्यादा वक्त बुटीक में बिताने लगी तो उस का माथा ठनका, जो स्वाभाविक बात थी. क्योंकि सुनील मंत्री अब अकसर अकेला रहता था.

रानी जब अपने घर में होती थी तब भी डा. सुनील मंत्री से फोन पर लंबीलंबी और अंतरंग बातें करती रहती थी. वीरू को शक तो था कि डाक्टर साहब और रानी के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है लेकिन उस का शक तब यकीन में बदल गया जब उस ने खुद अपने कानों से डाक्टर और रानी के बीच हुई अंतरंग बातचीत को सुन लिया.

दरअसल हुआ यह था कि मोबाइल फोन खराब हो जाने के कारण रानी ने अपना सिम कार्ड कुछ दिनों के लिए वीरू के फोन में डाल लिया था. न जाने कैसे बातचीत की रिकौर्डिंग वीरू के फोन में रह गई. वही रिकौर्डिंग वीरू ने सुन ली तो उस का खून खौल उठा.

पहले तो उस के जी में आया कि बेवफा बीवी और उस के आशिक डाक्टर का टेंटुआ दबा दे, पर जब उस ने धैर्य से विचार किया तो बस इतना सोचा कि क्यों न डा. सुनील मंत्री को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना कर रोज एक अंडा हासिल किया जाए. क्योंकि वह अगर डा. सुनील मंत्री को मारता या हल्ला मचाता तो उस के हाथ कुछ नहीं लगना था, उलटे लोग यही कहते कि गलती डाक्टर के साथसाथ रानी की भी थी.

लिहाजा एक दिन वीरू ने सुनील मंत्री को बता दिया कि वह उस के और अपनी पत्नी रानी के अवैध संबंधों के बारे में जान गया है और इस की वाजिब कीमत चाहता है. इस पेशकश पर शुरू में सुनील मंत्री को कोई नुकसान नजर नहीं आया, उलटे फायदा यह दिखा कि वीरू का डर खत्म हो गया.

यानी वह अपनी मरजी से ब्लैकमेल होने को तैयार हो गया. शुरू में सुनील मंत्री जिसे मुनाफे का सौदा समझ रहा था, वह धीरेधीरे बहुत घाटे का साबित होने लगा. क्योंकि वीरू अब जब चाहे तब उसे ब्लैकमेल करने लगा था. उस का मुंह सुरसा की तरह खुलता और बढ़ता जा रहा था.

डाक्टर की इस दिक्कत या कमजोरी का वीरू पूरा फायदा उठा रहा था. डाक्टर अगर पुलिस में रिपोर्ट भी करता तो बदनामी उसी की ही होती. लिहाजा वह रानी को अपने पहलू में बनाए रखने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई वीरू को सौंपने को मजबूर था.

वक्त गुजरता रहा और वीरू डा. सुनील मंत्री को अपने हिसाब से निचोड़ता रहा. इस से डाक्टर को लगने लगा कि ऐसे तो वह एक दिन कंगाल हो जाएगा और रानी भी हाथ से निकल जाएगी.

यह डा. सुनील मंत्री की 56 साला जिंदगी का बेहद बुरा वक्त था. रानी से मिल रहे देह सुख की कीमत जब उस की हैसियत पर भारी पड़ने लगी तो उस ने एक बेहद खतरनाक फैसला ले लिया. चेहरे पे चेहरा फिल्म का हैवान ब्लैक स्टोन उस के भीतर जाग उठा और उस ने वीरू की इतनी नृशंस तरीके से हत्या कर डाली कि देखनेसुनने वालों की रूह कांप उठे. हर किसी ने यही कहा कि यह डाक्टर है या जल्लाद.

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डाक्टर बना जल्लाद

डा. सुनील मंत्री फंस इसलिए गया था कि उस के और रानी के नाजायज ताल्लुकातों के सबूत वीरू के पास थे, नहीं तो तय था कि वह रानी को छोड़ देता. ये सबूत जो कभी सार्वजनिक या उजागर नहीं हो सकते, अब पुलिस के पास हैं.

वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गए सुनील मंत्री ने उसे अपने यहां बतौर ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया. पगार तय की 16 हजार रुपए महीना.

इस जघन्य हत्याकांड का एक विरोधाभासी पहलू यह भी चर्चा में है कि डाक्टर ने वीरू को समझाया था कि तुम मेरे ड्राइवर बन जाओ तो चौबीसों घंटे मुझे देखते रहोगे. इस से तुम्हारा शक दूर हो जाएगा.

जबकि हकीकत में डा. सुनील मंत्री वीरू की हत्या का खाका काफी पहले से ही दिमाग में बना चुका था. उसे दरकार थी तो बस एक अदद मौके की, जिस से वीरू नाम की बला से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सके. 3 फरवरी, 2019 की सुबह वीरू डा. सुनील को कार से होशंगाबाद से इटारसी ले कर गया था.

दोनों शाम कोई 4 बजे वापस लौट आए. लेकिन वीरू अपने घर नहीं पहुंचा. दूसरे दिन रानी ने फोन पर यह खबर अपने ससुर लक्ष्मीकांत पचौरी को दी.

5 फरवरी की सुबह लक्ष्मीकांत होशंगाबाद आए और बेटे की ढुंढाई शुरू की. रानी ने उन्हें इतना ही बताया था कि वीरू ने 2 दिन पहले ही डा. सुनील मंत्री के यहां ड्राइवर की नौकरी शुरू की है.

यह बात सुन कर वह सीधे डा. सुनील मंत्री की कोठी पर जा पहुंचे और बेटे वीरू की बाबत पूछताछ की तो डाक्टर ने उन्हें गोलमोल जवाब दे कर टरकाने की कोशिश की. इस पर बुजुर्ग और अनुभवी लक्ष्मीकांत का माथा ठनकना स्वाभाविक था. उन्होंने डाक्टर से उस के घर के अंदर जाने की जिद की तो डाक्टर ने अचकचा कर मना कर दिया.

इस पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. बेटे की चिंता में हलकान हुए जा रहे लक्ष्मीकांत डाक्टर पर वीरू को गायब करने का आरोप लगा रहे थे और डाक्टर उन के इस आरोप को खारिज कर रहा था.

झगड़ा होते देख वहां भीड़ जमा हो गई. इन में कुछ डा. सुनील मंत्री के पड़ोसी भी थे, जिन की नजरों में सुनील मंत्री पिछले 2 दिन से संदिग्ध हरकतें कर रहा था.

इत्तफाक से इसी दौरान पुलिस की एक गश्ती गाड़ी वहां से गुजर रही थी, जिस के पहिए यह झगड़ा देख रुक गए.

आखिर माजरा क्या है, यह जानने के लिए पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे और बात को समझने की कोशिश करने लगे. लक्ष्मीकांत ने फिर आरोप दोहराते हुए कहा कि डाक्टर ने उन के बेटे को गायब कर दिया है और अब कोठी के अंदर भी नहीं देखने दे रहा.

इस पर पुलिस वालों को हैरानी हुई कि अगर डाक्टर ने कुछ नहीं किया है तो उसे किसी के अंदर जाने पर इतना सख्त ऐतराज या जिद नहीं करनी चाहिए. लिहाजा खुद पुलिस वालों ने अंदर जाने का फैसला ले लिया.

कीमे के रूप में मिली लाश

अंदर जाने के बाद सख्त दिल पुलिस वाले भी दहल उठे, क्योंकि ड्राइंगरूम में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. इतना ही नहीं, मांस के छोटेछोटे टुकड़े भी यहांवहां बिखरे पड़े थे मानो यह आलीशान कोठी कोई गलीकूचे की मटन शौप हो. पुलिस वालों के साथ अंदर गए लक्ष्मीकांत पहले से ही किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त थे. उन्होंने खोजबीन की तो एक ड्रम में उन्हें एक कटा हुआ सिर दिखा, जिसे देख वे दहाड़ मार कर रोने लगे. वह सिर उन के जवान बेटे वीरू का था.

जब पुलिस वालों ने घर का और मुआयना किया तो उन्हें टौयलेट में 4 आरियां मिलीं. इन में से 2 आरियों के बीच वीरू के एक पैर के दरजन भर टुकड़े फंसे हुए थे. जब ड्रम को गौर से देखा गया तो एसिड में वीरू के कटे सिर के साथसाथ हाथपैर भी पडे़ दिखे. डाक्टरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दस्ताने भी खून से सने हुए थे. इस हैवान डाक्टर ने वीरू के शरीर के 4-6 नहीं बल्कि करीब 500 टुकड़े कर डाले थे.

अब बारी सुनील मंत्री की थी, जिस ने शराफत से अपना जुर्म स्वीकारते हुए बताया कि वह वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गया था, इसलिए उस ने उस की हत्या कर डाली.

दरअसल, 3 फरवरी को वीरू के दांत में दर्द था. यह बात उस ने डा. सुनील मंत्री को बताई तो उस ने इटारसी जाते वक्त एक गोली दी. लेकिन होशंगाबाद वापस आने के बाद वीरू ने फिर दांत दर्द की बात कही तो डा. सुनील के अंदर बैठे ब्लैक स्टोन ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. इसी बेहोशी में उस ने वीरू का गला रेता और फिर उस की लाश के टुकड़े करने शुरू कर दिए.

एक दिन में लाश को काट कर टुकड़ेटुकड़े कर डालना मुश्किल काम था, इसलिए दूसरे दिन भी वह यही करता रहा और इटारसी अस्पताल भी गया था. लेकिन जल्द ही वापस आ गया था. जाते समय उस ने वीरू के खून से सने कपड़े बाबई के पास फेंक दिए थे. दोनों दिन उस ने घर की लाइटें नहीं जलाई थीं ताकि कोई मरीज न आ जाए. दूसरे दिन लाश के टुकड़े वह दूसरी मंजिल पर ले गया था.

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सुनील मंत्री अपनी योजना के मुताबिक काफी दिनों से एसिड इकट्ठा कर रहा था. चूंकि वह डाक्टर था, इसलिए दुकानदार उस पर शक नहीं कर रहे थे और वह भी पहले से ही बता देता था कि वह स्वच्छ भारत अभियान के तहत एसिड खरीद रहा है. डाक्टर होने के नाते सुनील बेहतर जानता था कि लाश के टुकड़े गल कर नष्ट हो जाएंगे और किसी को हवा भी नहीं लगेगी.

लेकिन जब हवा होशंगाबाद, इटारसी से भोपाल होते हुए देश भर में फैली तो सुनने वालों का कलेजा मुंह को आ गया कि डाक्टर ऐसा भी होता है.

ऐसा हो चुका था और डा. सुनील मंत्री खुद पुलिस वालों को बता भी रहा था कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ.

इस खुलासे पर सनसनी मची तो होशंगाबाद के तमाम आला पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के आते ही डाक्टर की हालत खस्ता हो गई और वह ऊटपटांग हरकतें करने लगा. कभी वह गुमसुम बैठ जाता था तो कभी रोने लगता था. कहीं वह कुछ उलटासीधा न कर बैठे, इस के लिए उस के इर्दगिर्द दरजन भर पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए और उस का पैर जंजीर से बांध दिया गया.

यह बात सच है कि डा. सुनील अपना दिमागी संतुलन अस्थाई रूप से खो बैठा था. उस की शुगर और ब्लडप्रेशर दोनों बढ़ गए थे और वह सोडियम पोटैशियम इम्बैलेंस का भी शिकार हो गया था, जिस में मरीज कुछ भी बकने लगता है और ऊटपटांग हरकतें करनी शुरू कर देता है.

इन बीमारियों पर काबू पाया गया तो एक के बाद एक वीरू की हत्या से ताल्लुकात रखते राज खुलते गए कि इस की आखिर वजह क्या थी.

फंस ही गया डाक्टर चक्रव्यूह में

छानबीन और जांच में पुलिस वालों की जानकारी में जब डाक्टर की पत्नी सुषमा मंत्री की मौत संदिग्ध होनी पाई गई तो एक टीम भोपाल के नामी बंसल हौस्पिटल भी पहुंची. दरअसल, सुषमा की मौत भी सुनील के लगाए गए इंजेक्शन के रिएक्शन से हुई थी. इंजेक्शन लगाने के बाद सुषमा के शरीर में संक्रमण फैलने लगा तो सुनील उसे भोपाल ले कर आया था. इस संदिग्ध मौत के बाद भी सुषमा का पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया था, इस बात की जांच पुलिस कथा लिखे जाने तक कर रही थी.

रानी के बयान और किरदार दोनों अहम हो चले थे, लेकिन पूछताछ में वह अनभिज्ञता जाहिर करती रही. पुलिस ने जब सुनील मंत्री से उस के संबंधों के बारे में पूछा तो वह खामोश रही. इस से पुलिस को रानी की भूमिका ज्यादा संदिग्ध नजर आई, जिस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी. सुनील मंत्री से उस की फोन पर हुई बात की रिकौर्डिंग भी पुलिस ने हासिल कर ली.

पुलिस ने मामला दर्ज कर के वीरू की टुकड़ेटुकड़े बनी लाश पोस्टमार्टम के बाद उस के परिजनों को सौंप दी, जिस का दाह संस्कार भी हो गया. कुछ सामान्य होने के बाद सुनील कहने लगा कि हां, उस ने वीरू की हत्या की थी लेकिन अब अदालत में उस का वकील बोलेगा.

रिमांड पर लिए जाने के बाद वह अदालत में असामान्य दिखा, जिस से उस की हिरासत की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है. हालांकि सच यह है कि किसी अंतिम निष्कर्ष पर पुलिस तभी पहुंचेगी, जब रानी मुंह खोलेगी. पुलिस सुषमा की मौत को भी संदिग्ध मान कर काररवाई कर रही है कि कहीं वह भी हत्या तो नहीं थी.

सब कुछ मुमकिन है लेकिन जिस तरह वीरू की हत्या डा. सुनील मंत्री ने की वह जरूर हैरत वाली बात है कि कोई डाक्टर जो जिंदगियां बचाता है, वह इतने वीभत्स, हिंसक और जघन्य तरीके से किसी की जिंदगी भी छीन सकता है.

आशिक हत्यारा

लेखक- अशोक शर्मा 

राजकुमार गौतम अपनी खूबसूरत पत्नी और ढाई वर्षीय बेटी नान्या के साथ 4 महीने पहले ही थाणे

जिले के भादवड़ गांव में किराए पर रहने के लिए आया था. इस के पहले वह भिवंडी के अवधा गांव में रहता था. उस समय उस की पत्नी सपना लगभग 7 महीने की गर्भवती थी. दोनों का व्यवहार सरल और मधुर था. यही कारण था कि आसपड़ोस के लोगों में पतिपत्नी जल्दी ही घुलमिल गए थे.

वैसे बड़े महानगरों में रहने वाले लोग अपनी दोहरी जिंदगी जीते हैं. वे जल्दी किसी से घुलतेमिलते नहीं हैं. सभी अपने काम से मतलब रखते हैं. कौन क्या करता है, कैसे रहता है, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं रहता. लेकिन राजकुमार और सपना अपने पड़ोसियों से घुलमिल कर रहते थे.

पतिपत्नी का दांपत्य जीवन अच्छी तरह से चल रहा था. करीब 2 महीने बाद सपना ने दूसरी बच्ची को जन्म दिया. बच्ची स्वस्थ और सुंदर थी, जिसे देख दोनों खुश थे.

2 बेटियों के जन्म के बाद दोनों कुछ दिनों तक कोई बच्चा नहीं चाहते थे. लिहाजा सपना ने डिलिवरी के बाद कौपर टी लगवा ली थी. लेकिन कौपर टी लगने के बाद सपना के पेट में अकसर दर्द रहने लगा था. यह दर्द कभीकभी असहनीय हो जाता था, जिस की वजह से वह बेहोश तक हो जाती थी. यह बात उस के पड़ोसियों को भी मालूम थी.

घटना 4 फरवरी, 2019 की है. उस समय दोपहर के लगभग 3 बजे का समय था, जब पड़ोसियों ने राजकुमार की ढाई वर्षीय बेटी नान्या के रोने की आवाज सुनी. रोने की आवाज पिछले 15-20 मिनट से लगातार आ रही थी. पड़ोसी राम गणेश से नहीं रहा गया तो वह राजकुमार के घर पहुंच गए.

उन्होंने घर का जो दृश्य देखा उसे देख कर उन के होश उड़ गए. वह चीखते हुए भाग कर बाहर आ गए और चीखचीख कर आसपड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर लिया. लोगों ने चीखने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि राजकुमार की पत्नी का किसी ने गला काट दिया है.

यह सुन कर जब लोग राजकुमार के घर में गए तो उस की पत्नी फर्श पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले के आसपास खून फैला हुआ था. उस की बेटी नान्या उस के पास बैठी अपने नन्हेनन्हे हाथों से मां को उठाने की कोशिश कर रही थी और दूसरी छोटी नवजात बच्ची बिस्तर पर पड़ी हाथपैर मार रही थी.

इस मार्मिक दृश्य को जिस ने भी देखा था, उस का कलेजा मुंह को आ गया. पड़ोसी दोनों बच्चियों को उठा कर घर से बाहर लाए. उन्होंने फोन कर के इस की जानकारी राजकुमार गौतम को दे दी और बेहोशी की हालत में पड़ी घायल सपना को उठा कर स्थानीय इंदिरा गांधी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने सपना को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल ने इस मामले की जानकारी पुलिस को दे दी.

वह इलाका शांतिनगर थाने के अंतर्गत आता था. यह सूचना पीआई किशोर जाधव को मिली तो वह एसआई संदीपन सोनवणे के साथ इंदिरा गांधी अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल जा कर उन्होंने डाक्टरों से बात की. इस के अलावा वह उन लोगों से मिले, जो सपना को उपचार के लिए अस्पताल लाए थे.

मृतका के पति राजकुमार ने बताया कि उस की पत्नी की जान कौपर टी के कारण गई है. कौपर टी की वजह से उस की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, जिस का इलाज चल रहा था. लेकिन कभीकभी दर्द जब असह्य हो जाता था, तब उस की सहनशक्ति जवाब दे देती थी. ऐसे में वह अपनी जान लेने पर आमादा हो जाती थी.

राजकुमार ने पत्नी की मौत की जो थ्यौरी बताई, वह टीआई के गले नहीं उतरी. उन्होंने यह तो माना कि तकलीफ में कभीकभी इंसान आपा खो बैठता है, लेकिन उस समय सपना की स्थिति ऐसी नहीं थी. डाक्टरों के बयानों से स्पष्ट हो चुका था कि आत्महत्या के लिए कोई अपना गला नहीं काट सकता.

मौत की सही वजह तो पोस्टमार्टम के बाद ही सामने आनी थी. लिहाजा टीआई किशोर जाधव ने सपना की संदिग्ध हालत में हुई मौत की जानकारी डीसीपी और एसीपी को देने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए उसी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दी.

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अस्पताल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई किशोर जाधव सीधे घटनास्थल पर पहुंचे और वहां का बारीकी से निरीक्षण किया. घटनास्थल पर खून लगा एक स्टील का चाकू मिला, जिसे जाब्ते की काररवाई में शामिल कर के उन्होंने जांच के लिए रख लिया.

पीआई ने राजकुमार गौतम के बयानों के आधार पर सपना गौतम की मौत को आत्महत्या के रूप में दर्ज तो कर लिया था, लेकिन मामले की जांच बंद नहीं की थी. उन्हें सपना गौतम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. किशोर जाधव को लग रहा था कि दाल में कुछ काला है.

पोस्टमार्टम और फोरैंसिक रिपोर्ट आई तो पीआई चौंके. चाकू पर फिंगरप्रिंट मृतका के बजाए किसी और के पाए गए. इस का मतलब था कि सपना की हत्या की गई थी.

मामले की आगे की जांच के लिए पीआई किशोर जाधव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सहायक इंसपेक्टर (क्राइम), कांस्टेबल रविंद्र चौधरी, गुरुनाथ विशे, अनिल बलबी, किरण पाटिल, विजय कुमार, श्रीकांत पाटिल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने जांच शुरू कर दी. अपराध घर के अंदर हुआ था, इस का मतलब था कि अपराधी सपना का नजदीकी ही रहा होगा. इसलिए इंसपेक्टर राजेंद्र मायने ने संदेह के आधार पर सपना के पति राजकुमार गौतम से गहराई से पूछताछ की.

उन्होंने उस की कुंडली भी खंगाली. उस की अंगुलियों के निशान ले कर जांच के लिए भेज दिए गए. लेकिन उस के हाथों के निशानों ने चाकू पर मिले निशानों से मेल नहीं खाया. इस से पुलिस को राजकुमार बेकसूर लगा.

तब पुलिस ने उस के दोस्तों की जांच की. जांच में पता चला कि राजकुमार का एक दोस्त विकास चौरसिया उस की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. विकास पान की एक दुकान पर काम करता था और राजकुमार के गांव का ही रहने वाला था. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी. पुलिस ने विकास का फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया और उस की तलाश शुरू कर दी.

वह अपने घर से गायब था. उस की तलाश के लिए पुलिस ने मुखबिर भी लगा दिए. एक मुखबिर की सूचना पर विकास को भिवंडी के सोनाले गांव से हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने विकास से सपना की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह खुद को बेकसूर बताता रहा. लेकिन सख्ती करने पर उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

25 वर्षीय राजकुमार गौतम उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गांव कारमियां शुक्ला का रहने वाला था. उस के पिता गौतमराम गांव के एक साधारण किसान थे. गांव में उन की थोड़ी सी काश्तकारी थी, जिस में उन की गृहस्थी की गाड़ी चलती थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण राजकुमार गौतम की कोई खास शिक्षादीक्षा नहीं हो पाई थी. जब वह थोड़ा समझदार हुआ तो उस ने रोजीरोटी के लिए मुंबई की राह पकड़ ली. उस के गांव के कई लोग रहते थे. मुंबई से करीब सौ किलोमीटर दूर तहसील भिवंडी के अवधा गांव में उन्हीं के साथ रह कर वह छोटामोटा काम करने लगा.

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भिवंडी का अवधा गांव पावरलूम कपड़ों और कारखानों का गढ़ माना जाता है. राजकुमार गौतम ने भी पावरलूम कारखाने में काम कर कपड़ों की बुनाई का काम सीखा और मेहनत से काम करने लगा. जब वह कमाने लगा तो परिवार वालों ने उस की शादी पड़ोस के ही गांव की लड़की सपना से कर दी. यह सन 2016 की बात है.

राजकुमार गौतम खूबसूरत सपना से शादी कर के बहुत खुश था. वह शादी के कुछ दिनों बाद ही सपना को अपने साथ मुंबई ले गया. किराए का कमरा ले कर वह पत्नी के साथ रहने लगा. शादी के करीब डेढ़ साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम नान्या रखा गया.

इसी दौरान राजकुमार की विकास चौरसिया से मुलाकात हो गई. विकास चौरसिया पान की एक दुकान पर काम करता था. दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई.

20 वर्षीय विकास एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह जो भी कमाता था, अपने खानपान और शौक पर खर्च करता था. राजकुमार गौतम ने जिगरी दोस्त होने की वजह से विकास की मुलाकात अपनी पत्नी से भी करवा दी थी. राजकुमार ने पत्नी के सामने विकास की काफी तारीफ की थी.

पहली मुलाकात में ही विकास सपना का दीवाना हो गया था. उस ने अपनी बेटी नान्या का जन्मदिन मनाया तो विकास चौरसिया को खासतौर पर अपने घर बुलाया. तब राजकुमार और सपना ने विकास की काफी आवभगत की थी. इस आवभगत में राजकुमार गौतम की सजीधजी बीवी सपना विकास के दिल में उतर गई.

वह जब तक राजकुमार के घर में रहा, उस की निगाहें सपना पर ही घूमती रहीं. जन्मदिन की पार्टी खत्म होने के बाद विकास चौरसिया सब से बाद में अपने घर गया था. उस समय उस ने नान्या को एक महंगा गिफ्ट दिया था. यह सब उस ने सपना को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया था.

सपना की छवि विकास की नसनस और आंखों में कुछ इस तरह से समा गई थी कि उस का सारा सुखचैन छिन गया. उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. सोतेजागते उसे बस सपना ही दिख रही थी. वह उस का स्पर्श पाने के लिए तड़पने लगा था.

राजकुमार को अपनी दोस्ती पर पूरा विश्वास था. लेकिन विकास दोस्ती में दगा करने की फिराक में था. वह तो बस उस की पत्नी सपना का दीवाना था. वह सपना का सामीप्य पाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा था.

इसीलिए मौका देख कर वह राजकुमार के साथ चाय पीने के बहाने अकसर उस के घर जाने लगा था. वह सपना के हाथों की बनी चाय की जम कर तारीफ करता था. औरत को और क्या चाहिए. विकास चौरसिया को यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि औरत अपनी तारीफ और प्यार की भूखी होती है. जो विकास ने सोचा था, वैसा ही कुछ हुआ भी. इस तरह दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. विकास बातचीत के बीच कभीकभी सपना से भद्दा मजाक भी कर लेता था, जिसे सुन कर सपना का चेहरा लाल हो जाता था और वह उस से नजरें चुरा लेती थी.

कुछ दिनों तक तो विकास राजकुमार के साथ ही उस के घर जाता था, लेकिन बाद में वह राजकुमार के घर पर अकेला भी आनेजाने लगा. वह चोरीछिपे सपना के लिए कीमती उपहार भी ले कर जाता था. उपहारों और अपनी लच्छेदार बातों में उस ने सपना को कुछ इस तरह उलझाया कि वह अपने आप को रोक नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह उस की गोदी में आ गिरी. सपना को अपनी बांहों में पा कर विकास चौरसिया के मन की मुराद पूरी हो गई.

एक बार जब मर्यादा की कडि़यां बिखरीं तो बिखरती ही चली गईं. अब स्थिति ऐसी हो गई थी कि बिना एकदूसरे को देखे दोनों को चैन नहीं मिलता था. उन्हें जब भी मौका मिलता, दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते. सपना और विकास चौरसिया का यह खेल बड़े आराम से लगभग एक साल तक चला. इस बीच सपना फिर से गर्भवती हो गई.

पहली बार सपना जब गर्भवती हुई थी तो वह अपनी डिलिवरी के लिए अपने गांव चली गई थी. इस बार सपना ने गांव न जा कर अपनी डिलिवरी शहर में ही करवाने का फैसला कर लिया था.

जब सपना की डिलिवरी के 3 महीने शेष रह गए तो राजकुमार अवधा गांव का कमरा खाली कर भादवड़ गांव पहुंच गया और भिवंडी के इंदिरा गांधी अस्पताल में सपना की डिलिवरी करवाई. डिलिवरी के बाद सपना ने पति की सहमति से कौपर टी लगवा ली. यह कौपर टी सपना को रास नहीं आई. इसे लगवाने के बाद सपना को दूसरे तरह की समस्याएं आने लगीं.

सपना की डिलिवरी के 25 दिनों बाद एक दिन दोपहर 2 बजे विकास चौरसिया मौका देख कर राजकुमार गौतम के घर पहुंच गया. उस समय सपना की बेटी नान्या घर के दरवाजे पर खेल रही थी. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा बंद कर लिया. उस समय सपना अपने बिस्तर पर लेटी अपनी छोटी बेटी को दूध पिला रही थी. विकास के अचानक आ जाने से सपना उठ कर बैठ गई.

इस से पहले कि सपना कुछ कह पाती विकास ने उस के बगल में बैठ कर बच्ची का माथा चूमा और सपना को बांहों में लेते हुए उस से शारीरिक संबंध बनाने के लिए जिद करने लगा, जिस के लिए सपना तैयार नहीं थी.

सपना ने विकास को काफी समझाने की कोशिश की और कहा, ‘‘देखो, अभी मैं उस स्थिति में नहीं हुई हूं कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी कर सकूं. आज तक मैं ने कभी तुम्हारी बातों से कभी इनकार नहीं किया है. आज मैं बीमार हूं, ऊपर से कौपर टीम लगवाई है. अभी तुम जाओ, जब मैं ठीक हो जाऊंगी तो आना.’’

लेकिन वासना के भूखे विकास पर सपना की बातों का कोई असर न हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने पर उतारू हो गया और उस पर भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. इस के पहले कि वह अपने मकसद में कामयाब होता, सपना नाराज हो गई और उस ने अपने ऊपर से विकास को नीचे फर्श पर धक्का दे दिया. फिर उठ कर वह उसे अपने घर से बाहर जाने के लिए कहने लगी.

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सपना के इस व्यवहार और वासना के उन्माद में वह अपना होश खो बैठा. वह सीधे सपना की किचन में गया और वहां से स्टील का चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने सपना का गला काट दिया. सपना के गले से खून निकलने लगा और वह फर्श पर गिर पड़ी.

सपना के गले से बहते खून को देख कर विकास चौरसिया की वासना का उन्माद काफूर हो गया. वह डर कर वहां से चुपचाप निकल गया. उस के जाने के बाद दरवाजे पर खेल रही नान्या घर के अंदर आई और मां को उठाने लगी थी. सपना के न उठने पर वह उस से लिपट कर रोने लगी.

विकास चौरसिया से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

राजकुमार गौतम को जब यह मालूम पड़ा कि उस की पत्नी का आशिक और हत्यारा और कोई नहीं, बल्कि उस का अपना जिगरी दोस्त था तो उसे इस बात का अफसोस हुआ कि विकास जैसे आस्तीन के सांप को घर बुला कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी.

कथा लिखे जाने तक अभियुक्त विकास चौरसिया थाणे की तलौजा जेल में था. मामले की जांच इंसपेक्टर राजेंद्र मायने कर रहे थे.

 

शर्मनाक: राजस्थान बन रहा रेपिस्थान

राजस्थान में जिस तरह से रेप के मामले सामने आ रहे हैं, उस से राज्य की नईनवेली सरकार की कलई खुल गई है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक महीने तक अपने बेटे को चुनाव जिताने में लगे रहे और प्रदेश की इज्जत लुट गई. इस दौरान सरकार तो सो ही रही थी, जिस राजस्थान पुलिस के जिम्मे प्रदेश की सुरक्षा है, वह भी पूरी तरह से नकारा निकली.

चुनाव का सहारा ले कर कोई केस दर्ज नहीं किया गया. थानागाजी में हुए गैंगरेप और वीडियो बना कर वायरल करने जैसी खौफनाक वारदातों को भी गंभीरता से नहीं लिया गया.

आंकड़ों की बात की जाए तो अप्रैलमई महीने में ही राज्य में गैंगरेप के 12 बड़े मामले सामने आए, जिन में अबलाओं के साथ कई दरिंदों ने एकसाथ दरिंदगी की. लेकिन राजस्थान सरकार और उस की पुलिस की नाकामी का आलम यह रहा कि केवल 3 मामलों में ही कार्यवाही हुई.

12 अप्रैल, 2019. बाड़मेर में एक महिला स्वास्थ्य कर्मचारी (एएनएम) के साथ रेप करने का मामला सामने आया, लेकिन चुनाव के चलते इस को दबा दिया गया और मुकदमा ही दर्ज नहीं किया गया.

12 अप्रैल, 2019. गुजरात से अजमेर घूमने आई एक औरत को रात में एक आटोरिकशा वाला रामगंज में अपने घर ले गया और उस के साथ गैंगरेप किया. इस मामले में शामिल 8 दरिंदों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.

18 अप्रैल, 2019. जैसलमेर के नोखा कसबे के पांचू थाना इलाके में 18 साल की एक लड़की को चाकू दिखा कर उठा लिया गया और उस का गैंगरेप कर डाला.

19 अप्रैल, 2019. नागौर की एक गौशाला के मालिक पर रेप का मामला दर्ज हुआ. बताया गया कि रेप के चलते पीडि़ता ने सुसाइड करने की कोशिश की. 26 अप्रैल, 2019. अलवर के थानागाजी में एक विवाहिता का उस के पति के सामने

5 दरिंदों ने गैंगरेप कर उस के 11 वीडियो वायरल किए गए. 6 दिन बाद मामला दर्ज हुआ और 6 मई, 2019 को वहां चुनाव निबटने के बाद राज्य सरकार को होश आया.

29 अप्रैल, 2019. जैसलमेर के ही नोखा कसबे में परिवार वाले वोट देने गए हुए थे कि एक 14 साल की नाबालिग से दरिंदों ने गैंगरेप कर डाला.

29 अप्रैल, 2019. दौसा जिले में महज 7 साल

की एक बच्ची को टौफी देने के नाम पर ले जा कर रेप

किया गया.

1 मई, 2019. चित्तौड़गढ़ में एक 5 साल की मासूम बच्ची को झाडि़यों में ले जा कर उस का रेप कर डाला.

1 मई, 2019. जोधपुर में बोरानाडा इलाके में

16 साल की एक किशोरी का सुनसान इलाके में रेप कर दिया.

2 मई, 2019. जोधपुर के बोरानाडा इलाके में एक विवाहिता से रेप किया गया. उस की बेटी से छेड़छाड़ की गई और बेटे का धर्म बदलने की कोशिश की गई.

7 मई, 2019. सीकर में रात को छत पर सो रही एक नवविवाहिता से उसी मकान में रंगरोगन करने वालों ने गैंगरेप कर डाला.

7 मई, 2019. जोधपुर में करवड़ इलाके में एक नाबालिग को घर से भगा कर ले गए और उस का देह शोषण किया गया.

7 मई, 2019. जयपुर के बगरू थाना क्षेत्र में छीतरोली में 14 साल की नाबालिग से रेप किया गया और उस का वीडियो बना कर ब्लैकमेल किया गया.

7 मई, 2019. जयपुर की एक लड़की, जो पुष्कर घूमने गई थी, के साथ गाइड ने ही होटल में ले जा कर रेप किया.

7 मई, 2019. नागौर जिले के मकराना क्षेत्र में कूकड़ोद में औरत के घर पहुंच कर 2 नौजवानों ने गैंगरेप किया. वीडियो भी बनाया गया. वायरल करने के बाद इस का खुलासा हुआ.

9 मई, 2019. जैसलमेर की नोखा तहसील में शौच करने के बाद लौट रही एक विवाहिता को कुछ दरिंदे उठा ले गए और उस के साथ सामूहिक बलात्कार कर डाला. उस के साथ कई शहरों में 4 दिनों तक गैंगरेप करने के बाद उस के पिता के घर पर पटक दिया गया.

10 मई, 2019. श्रीगंगानगर में स्कूल की गाड़ी चलाने वाले ने ही 6 साल की मासूम के साथ रेप करने की कोशिश की. बच्ची ने स्कूल जाने से मना किया, तब मामला सामने आया.

10 मई, 2019. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर में रातानाड़ा में एक औरत के साथ एक आदमी ने रेप कर डाला. पुलिस ने मामला दर्ज ही नहीं किया.

इतना ही नहीं, इसी दौरान प्रदेश में ऐसे 40 मामले सामने आए, जिन में औरतों की इज्जत तारतार हो गई. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब अपने बेटे के लिए प्रचार कर ‘वैभव’ बचाने में लगे थे, तब थानागाजी में एक औरत की जिंदगी का ‘वैभव’ ही सरेराह लुट रहा था.

गंभीर बात यह है कि प्रदेश में पहले चरण की वोटिंग 29 अप्रैल को होने वाली थी, इसलिए पुलिस ने गैंगरेप की घटना में एफआईआर भी दर्ज नहीं की.

नेता हनुमान बेनीवाल और पूर्व आईपीएस पंकज चौधरी का दावा है कि गैंगरेप के जो मामले एसपी तक पहुंचते हैं, वे डीजीपी के भी ध्यान में होते हैं. इन दोनों ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस्तीफा देने की मांग की.

सब से बड़ी बात यह है कि रेप, गैंगरेप और अपहरण की सब से ज्यादा वारदातें प्रदेश के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री अशोक गहलोत के गृह राज्य में हुई हैं. महज एक पखवारे में बलात्कार की 40 घटनाएं.

जिस तरह ऐसी चौतरफा घटनाएं हुई हैं, उस के हिसाब से लग रहा है कि प्रदेश पर वहशी दरिंदों का कब्जा हो गया है. सरकार बस नाम की है.

एक पखवारे में प्रदेश की 40 बेटियों की इज्जत लूटी गई तो क्या इस बारे में राजस्थान के मुख्यमंत्री की कोई नैतिकता नहीं बनती है? गृह मंत्रालय उन के पास है और नीचे से ऊपर तक पूरा तंत्र है जो हर घटना की रिपोर्टिंग करता है. साथ ही, सरकारी खुफिया तंत्र है जो गृह मंत्री व मुख्यमंत्री तक सूचनाएं पहुंचाता है. मामला गंभीर है और नीचे से ऊपर तक पूरी सरकार सवालों के घेरे में है.

दरअसल, अनुभव व ऊंची पढ़ाई के नाम पर इस देश के नौजवानों के साथ बहुत बड़ा खेल खेला गया है. सामाजिक तानेबाने के जानकार, जमीनी हकीकत की पहचान रखने वाले व रोजरोज

की समस्याओं से जूझ कर तपे हुए व व्यवस्था में बदलाव लाने का जोश रखने वाले नौजवानों को कभी सत्ता में नहीं आने दिया गया, इसलिए हजारों सालों से चली आ रही गुलामी की सोच में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ सका है.

हमारे धर्मग्रंथ भी बलात्कारों से भरे पड़े हैं, मगर वे बहुतों के आदर्श भी हैं, क्योंकि उन को श्राप, नियोग वगैरह अलग नाम दिए गए थे और संविधान में हम ने बलात्कार लिख कर बहुत बड़ी क्रांति कर दी. ऐसा हमें सत्ता पर कब्जा कर के बैठे एलीट क्लास वालों ने बताया है इसलिए हम भी इस भ्रांति को क्रांति समझ बैठे हैं और जब भी ऐसी घटनाएं घटती हैं तो हम इन के सामने गिड़गिड़ाते नजर आते हैं और हमारे बीच से ही कुछ लोग इंसाफ दिलवाने की दुकान खोल कर इसी ग्रुप में जा कर शामिल हो जाते हैं.

हर जज, सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल समेत तमाम बड़े पदों पर बैठे लोगों के चरित्र की अगर ईमानदारी के साथ जांच की जाए तो जिस तरह आजकल बाबा जेलों में जा रहे हैं, उसी तरह से ऐसे 90 फीसदी लोग यौन शोषण करने या संरक्षण देने की एवज में जेलों की तरफ जाते नजर आएंगे.

भांग लोटे में नहीं, बल्कि पूरे कुएं में घुली हुई है और चंद ईमानदार लोगों को देख कर जनता खुश हो रही है कि इस देश में बराबरी का समाज बनाने की जंग लड़ी जा रही है.

देश के चीफ जस्टिस पर यौन शोषण के आरोप लगे और उसी पीठ ने महिला को बिना निष्पक्ष जांच के झूठा करार दे दिया और आप उम्मीद कर रहे हैं कि इन घटनाओं में इंसाफ मिलेगा.

भारत का पूरा इतिहास खंगाल कर देख लीजिए, राजशाही, धर्मशाही, लोकशाही वगैरह में कुछ हट कर नजर नहीं आएगा. पहले मंदिरों में देवदासियों के नाम पर शोषण होता था और अब जिस तरह इन धर्मगुरुओं की करतूतें सामने आ रही हैं, उस के हिसाब से तो अब गुफाओं में आशीर्वाद के नाम से शोषण हो रहा है.

एक आसाराम के खिलाफ बोलने या गवाही देने वाले कितने लोगों की हत्या कर दी गई, आप जानते ही होंगे. हर डाल पर आसाराम बैठा है, हर गांव में अपराध का टापू बना हुआ है. एक टापू या एक अपराध को ले कर इतने क्रांतिकारी मत बनिए कि सारी ताकत एक पर ही खत्म हो जाए. हमें बीचबीच में ऐसी इंसाफ वाली क्रांतियां करते रहना है, इसलिए पुलिस कौंस्टेबल व एसआई को कोस कर आगे बढि़ए.

अपने जुल्मी व गुलाम इतिहास को हम गौरवशाली बताते हैं. अपने कलंकित वर्तमान पर हमें शर्म आती नहीं है. हम पुरानी व्यवस्था को रौंद कर नई व्यवस्था खड़ी करने का माद्दा नहीं रखते हैं. हम रोज जलालत भरी जिंदगी जी रहे हैं. इनसान कीड़ेमकोड़ों की तरह मर रहे हैं.

3 साल की, 5 साल की, 8 साल तक की बच्चियों के साथ दरिंदगी होती है, मगर हमारा खून नहीं खौलता है. हम आजादी के 72 साल तक व्यवस्था के बदलाव को रोक कर बैठे सत्ताधारियों के सामने गिड़गिड़ाते रहे हैं.

पूरे सिस्टम को ही जंग लगा हुआ है. चेहरे बदलने से कुछ नहीं होने वाला. जवाबदेही व पारदर्शिता के नारे के साथ सुशासन का पिटारा ले कर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठे हैं. आप खुद देख लीजिए इन की जवाबदेही व पारदर्शिता.

उस्तादों के उस्ताद…

इसी साल 7 मार्च की बात है. राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना शहर के पुलिस थाने में नागौर जिले के शेरानी आबाद के रहने वाले सुलतान खां ने

एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वह अपने भाई इरफान के साथ दिल्ली एयरपोर्ट से सऊदी अरब से आए अपने परिचित इरफान और वली मोहम्मद को ले कर अपनी स्कौर्पियो गाड़ी से नागौर जिले के डीडवाना शहर जा रहा था.

शाम करीब 4 बजे नीमकाथाना बाईपास पर बने रेलवे अंडरपास के नीचे उन की स्कौर्पियो गाड़ी के आगे एक कैंपर गाड़ी और पीछे स्विफ्ट कार आ कर रुकीं. दोनों कारों से उतरे लोगों ने हमारी कार रोक ली और हथियार दिखा कर हमें गाड़ी से उतार दिया.

दोनों गाडि़यों से आए बदमाशों ने हम से 30 हजार रुपए नकद, कपड़े, प्रैस, थर्मस, स्पीकर और काजूबादाम वगैरह लूट लिए. इस के बाद बदमाश अपनी कैंपर कार में मेरे भाई इरफान का अपहरण कर ले गए. साथ ही हमें सड़क पर छोड़ कर हमारी स्कौर्पियो भी ले भागे.

पुलिस ने सुलतान खां की रिपोर्ट दर्ज कर ली. हालांकि रिपोर्ट में ऐसी कोई बड़ी बात नहीं थी. कोई बड़ी लूटपाट भी नहीं हुई थी, लेकिन अपहरण का मामला गंभीर था. पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए इलाके में चारों तरफ नाकेबंदी करवा दी. पुलिस ने अपहृत इरफान की तलाश शुरू की, तो रात को सीकर जिले में ही हांसनाला मंदिर के पास इरफान और लूटी गई स्कौर्पियो गाड़ी मिल गई.स्कौर्पियो गाड़ी में इरफान और वली मोहम्मद से लूटी गई रकम, प्रैस, स्पीकर और थर्मस आदि सामान नहीं मिले. फिर भी लूटी गई गाड़ी और अपहृत युवक के मिल जाने से पुलिस ने राहत की सांस ली. बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. न तो उस से कोई मारपीट की गई थी और न कोई धमकी वगैरह दी गई थी.

हालांकि लूटी गई रकम और अन्य सामान बहुत ज्यादा नहीं था, फिर भी यह गंभीर बात थी कि दिनदहाड़े लूट हुई थी. अगर पुलिस साधारण मामला समझ कर कोई काररवाई नहीं करती, तो हो सकता था भविष्य में कोई बड़ी वारदात हो जाती. नीमकाथाना के थाना प्रभारी राजेंद्र यादव ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए लूटपाट की जांच शुरू की.

पुलिस ने जांच शुरू की, तो पता चला लूटपाट करने वाले बदमाशों की दोनों गाडि़यां सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो का पीछा करती हुई नीमकाथाना तक आई थीं. सवाल यह था कि सुलतान की स्कौर्पियो का पीछा कहां से किया गया था.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव के दिमाग में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि 2 गाडि़यों में सवार बदमाश केवल 30 हजार रुपए, कपड़े, प्रैस व स्पीकर जैसे छोटेमोटे सामान के लिए दिनदहाड़े लूट की वारदात को क्यों अंजाम देंगे? या तो बदमाशों को सुलतान और उस के साथियों के पास मोटी रकम होने की सूचना थी, जिस की वजह से उन्होंने लूटपाट की. दूसरी बात यह थी कि अगर बदमाशों का मकसद इरफान का अपहरण ही था, तो वे उसे छोड़ क्यों गए? बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया था. ये सवाल थानाप्रभारी को बारबार परेशान कर रहे थे.

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समझ से परे थी लूट की वारदात

इन सवालों का सही जवाब या तो बदमाशों के पकड़े जाने पर मिल सकता था या फिर इस बारे में पीडि़त ही कुछ बता सकते थे. इसलिए थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज कराने वाले सुलतान खां और उस के साथी इरफान खां से पूछताछ की. लेकिन उन से ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से बदमाशों और उन के असल मकसद का पता चल सकता.

सुलतान और इरफान ने लूटपाट करने वाले बदमाशों के बारे में कोई भी जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने सीधे तौर पर किसी पर शक भी जाहिर नहीं किया. ऐसी स्थिति में लूटपाट करने वाले बदमाशों को तलाशना पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं था.

नीमकाथाना के थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर के सामने हाजिर हो कर अपने दिमाग में उठ रहे सारे सवाल बताए. एसपी साहब भी थानाप्रभारी की बातों से सहमत थे. उन्होंने थानाप्रभारी से इस मामले की फाइल ले कर एफआईआर और इस के बाद की पुलिस की काररवाई पर सरसरी नजर दौड़ाई. उन्हें लगा कि राजेंद्र यादव की बातों में दम है.

एसपी ने थानाप्रभारी से पूछा, ‘‘राजेंद्र, तुम इस केस को कैसे सौल्व करना चाहते हो?’’

‘‘सर, यह केस सौल्व तो तभी होगा जब बदमाश पकड़े जाएंगे.’’ थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, सब से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो गाड़ी का पीछा कहां से शुरू किया गया था.’’

अपनी बात जारी रखते हुए थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, इस के लिए हमें दिल्ली एयरपोर्ट तक जाना पड़ेगा. इस के साथ हमें दिल्ली से नीमकाथाना तक रास्ते में जहांजहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, वहां पर 7 मार्च की दोपहर की फुटेज देखनी पड़ेगी. इसी से हमे बदमाशों का सुराग मिल सकता है.’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हारा आइडिया अच्छा है.’’ एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर ने थानाप्रभारी की हौसलाअफजाई करते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दी से जल्दी यह काम पूरा करो. उम्मीद है तुम्हें कामयाबी जरूर मिलेगी.’’

‘‘थैंक यू सर.’’ थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सैल्यूट किया और वहां से निकल गए.

थानाप्रभारी ने नीमकाथाना पहुंचते ही दिल्ली जाने की तैयारी शुरू कर दी. कुछ देर बाद वे अपने 2 मातहतों को ले कर गाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

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मिली एक बड़ी सफलता

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच कर उन्होंने एयरपोर्ट के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की 7 मार्च की फुटेज निकलवा कर देखी. इस में सुलतान खां और उस के साथियों की स्कौर्पियो के पीछे एक ब्रेजा गाड़ी नजर आई.

इस के बाद पुलिस ने दिल्ली से नीमकाथाना तक के रास्ते में टोलनाके और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी. इन में भी वह ब्रेजा गाड़ी इरफान व वली मोहम्मद की स्कौर्पियो के पीछेपीछे आती हुई नजर आई.

इस ब्रेजा गाड़ी के नंबर के आधार पर पुलिस ने नागौर जिले के लाडनूं थाना इलाके के तितरी गांव के रहने वाले चैन सिंह राजपूत को पकड़ा. चैन सिंह से पूछताछ की गई, तो सुलतान खान के साथियों से की गई लूट की वारदात की गुत्थी सुलझ गई. लेकिन उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सारी बातें बताई. एसपी साहब ने राजेंद्र को शाबासी देते हुए चैन सिंह के बताए बाकी अपराधियों को पकड़ने और माल बरामद करने के निर्देश दिए. साथ ही जिले के कुछ अन्य पुलिस अफसरों को सदर थानाप्रभारी के साथ सहयोग करने के लिए लगा दिया.

पुलिस टीमों ने भागदौड़ कर नागौर जिले के डीडवाना थाना इलाके के कोलिया गांव के रहने वाले इकबाल उर्फ भाणू खां, सीकर जिले के रानोली के रहने वाले विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट, नीमकाथाना सदर थाना इलाके के चला गांव निवासी बलराम मील और ढाणी खुड़ालिया तन डहरा जोहड़ी गुहाला के रहने वाले जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप जाट को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों की निशानदेही पर डेढ़ करोड़ रुपए की कीमत का 4 किलो 300 ग्राम सोना, वारदात में इस्तेमाल की गईं 3 गाडि़यां ब्रेजा, कैंपर और स्विफ्ट के अलावा 315 बोर का एक कट्टा बरामद किया.

सिर्फ  30 हजार रुपए की लूट का करोड़ों रुपए की लूट में खुलासा होने पर जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर और अन्य मातहत अधिकारियों को बधाई दी.

आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सोने के तस्करों की आपसी रंजिश की कहानी है. उस्तादों के उस्ताद बनने की यह कहानी सरकारी सिस्टम को भी अंगूठा दिखाती है कि किस तरह विदेशों से तस्करी कर सोना भारत में लाया जा रहा है. इस के अलावा विदेशों में बैठे तस्कर ही अपने सहयोगियों से सोने की लूट भी करवा रहे हैं.

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यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विदेशों से रोजाना चोरीछिपे बड़ी मात्रा में सोना भारत लाया जाता है. विदेशों से अधिकांश सोना हवाई मार्ग से ही आता है. तस्करी से जुड़े लोग सोना लाने और कस्टम से बचने के नएनए तरीके अपनाते हैं. कुछ तस्करों की एयरपोर्ट पर सुरक्षा अधिकारियों या एयरलाइंस के कर्मचारियों से मिलीभगत भी होती है. इस से वे सुरक्षित बाहर निकल आते हैं.

राजस्थान में भी सोने की तस्करी करने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं. इन गिरोहों के लोग दिल्ली या जयपुर एयरपोर्ट पर सोना ले कर आते हैं. इन में कभीकभी कुछ लोग पकड़े भी जाते हैं, जबकि अधिकांश तस्कर सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बता कर सोना लाने में सफल हो जाते हैं.

सोने की ऐसे होती है तस्करी

सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले के शेखावटी इलाके के करीब 5 लाख लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. इन में अधिकतर कामगार हैं, जो भवन निर्माण कार्यों से जुड़े हैं. कोई आरसीसी लेंटर डालने का काम करता है, तो कोई टाइल्स लगाने का काम. ये लोग सालछह महीने में एक बार अपने घर आते रहते हैं.

खाड़ी देशों में सक्रिय सोने के तस्कर शेखावटी के इन लोगों को लालच दे कर अपने कैरियर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. बदले में इन कैरियर को हवाई टिकट का पैसा और कुछ खर्चा दे दिया जाता है. एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर तस्कर गिरोह के लोग इन कैरियरों से सोना ले लेते हैं. एयरपोर्ट पर पकड़े जाने पर कैरियर अगर फंस जाता है, तो बाहर बैठे तस्कर गिरोह के सदस्य अपनी कोशिशें करते हैं. कोशिश कामयाब हो जाती है तो ठीक, वरना ये लोग उस कैरियर से पल्ला झाड़ लेते हैं.

नागौर जिले के खुनखुना थाना इलाके के शेरानी आबाद के रहने वाले शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद सऊदी अरब से कैरियर के माध्यम से तस्करी का सोना मंगवाते हैं. इन में लाल मोहम्मद अब सऊदी अरब में रहता है. जबकि शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद में आजकल रंजिश चल रही है.

रंजिश का कारण यह है कि करीब डेढ़ साल पहले लाल मोहम्मद की ओर से सऊदी अरब से मंगाए गए सोने की लूट हो गई थी. लाल मोहम्मद को इस लूट में शेर मोहम्मद का हाथ होने का शक था. इस के बाद लाल मोहम्मद के साथ एक बार फिर धोखा हो गया. लाल मोहम्मद के लिए सऊदी अरब से तस्करी का सोना ले कर आया एक कैरियर दिल्ली से निर्धारित गाड़ी में न आ कर दूसरी गाड़ी में बैठ कर चला गया था.

बाद में लाल मोहम्मद ने उस का अपहरण कर अपना सोना वसूल किया था. इस मामले में नागौर जिले के खुनखुना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था. इस में पुलिस ने लाल मोहम्मद, चैन सिंह, मोहम्मद अली, अली मोहम्मद, अब्दुल हकीम आदि के खिलाफ चालान पेश किया था.

आजकल सऊदी अरब में रह कर भी लाल मोहम्मद अपने विरोधी शेर मोहम्मद की गतिविधियों की सारी जानकारियां रखता था. चूरू जिले के बीदासर गांव का रहने वाला वली मोहम्मद 3 साल से सऊदी अरब में रह रहा था. वह वहां आरसीसी लेंटर डालने का काम करता था. बीदासर गांव का ही रहने वाला इरफान करीब 9 महीने से सऊदी अरब में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था.

तस्कर देते हैं लालच

वली मोहम्मद और इरफान भारत में अपने घर आना चाहते थे. सोने के तस्कर शेर मोहम्मद को यह बात पता चली, तो उस ने सऊदी अरब में सक्रिय अपने लोगों के माध्यम से इन दोनों को सोना लाने के लिए राजी कर लिया. उस ने दोनों को सऊदी अरब से दिल्ली तक का हवाई जहाज का फ्री टिकट और दिल्ली से गांव तक जाने के लिए टैक्सी कराने का वादा किया था.

दूसरी तरफ सऊदी अरब में रह रहे शेर मोहम्मद के विरोधी लाल मोहम्मद को यह बात पता चल गई कि बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद नाम के 2 युवक शेर मोहम्मद के लिए सोना ले जाएंगे. इस पर लाल मोहम्मद ने योजना बना कर इन दोनों से संपर्क कर उन्हें लालच दिया और अपनी योजना में शामिल कर लिया.

सऊदी अरब में तस्करी के लिए सोने को पिघला कर अलगअलग रूपों में ढाल दिया जाता है. फिर उस सोने को पारे की परत चढ़ा कर ऐसा रंग दे दिया जाता है कि वह एल्युमीनियम नजर आता है. इस एल्युमीनियम रूपी सोने को इलैक्ट्रौनिक सामान का पार्ट बना दिया जाता है. इस तरह इलैक्ट्रौनिक उपकरण के रूप में तस्करी का सोना भारत आता है.

निश्चित दिन सऊदी अरब में शेर मोहम्मद के लोगों ने बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद को भारत ले जाने के लिए 7 स्पीकर और एक प्रैस में छिपा कर 5 किलो सोना सौंप दिया. इस के बाद शेर मोहम्मद के लोग इन दोनों से मोबाइल के माध्यम से लगातार संपर्क में रहे. वहीं, लाल मोहम्मद भी इरफान और वली मोहम्मद से संपर्क बनाए हुआ था. इन से लाल मोहम्मद को पता चल गया था कि वे किस दिन कौन सी फ्लाइट से दिल्ली पहुंचेंगे.

स्पीकर में पारे से एल्युमीनियम के रंग में रंगी सोने की प्लेटों को चिपकाया गया था जबकि इलैक्ट्रिक प्रैस में सोने की प्लेट को सिल्वर रंग दे कर नट से कस दिया गया था. इरफान और वली मोहम्मद हवाई जहाज से दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर बाहर आ गए. कहा जाता है कि सोने के तस्कर शेर मोहम्मद की दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम व सुरक्षा अधिकारियों से मिलीभगत थी, इसलिए इरफान और वली मोहम्मद को न तो किसी ने रोका और ना ही उन के सामान की जांच की.

सऊदी अरब से सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद को दिल्ली से लाने के लिए शेर मोहम्मद ने सुलतान खां और उस के भाई इरफान को स्कौर्पियो गाड़ी ले कर भेजा.

लूटने की बना ली योजना

दूसरी तरफ लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब से ईमो कालिंग के जरिए अपने ड्राइवर नागौर जिले के लाडनूं के तितरी निवासी चैन सिंह राजपूत को सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद से माल लूटने को कहा.

उस ने चैन सिंह को इरफान और वली मोहम्मद की फोटो सहित फ्लाइट नंबर वगैरह की सारी जानकारी दे दी. इस पर चैन सिंह ने अपने परिचित बदमाशों इकबाल, विजय कुमार उर्फ बिज्जू, जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप, बलराम और 3 अन्य लोगों को साथ ले कर सोना लूटने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक चैन सिंह और उस का एक साथी नरेंद्र सिंह ब्रेजा गाड़ी ले कर 7 मार्च को फ्लाइट आने के समय से काफी पहले ही दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गए. उन्होंने फ्लाइट आने के बाद एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे यात्रियों में फोटो के आधार पर इरफान और वली मोहम्मद को पहचान लिया. चैन सिंह व उस का साथी नरेंद्र उन पर नजर रखते रहे.

इरफान और वली मोहम्मद जब सुलतान खां व उस के भाई इरफान के साथ उन की स्कौर्पियो में बैठ गए, तो चैन सिंह व उस का साथी अपनी ब्रेजा गाड़ी से उन के पीछेपीछे चलते रहे. बीचबीच में ये लोग अपने साथियों को सूचना भी देते रहे.

दिल्ली से जयपुर वाले नैशनल हाइवे नंबर 8 पर गुड़गांव, धारूहेड़ा, शाहजहांपुर, नीमराना, बहरोड़ हो कर ये लोग कोटपुतली पहुंच गए. कोटपुतली से नीमकाथाना जाने के लिए हाइवे से अलग रास्ता है. नीमकाथाना में बाइपास पर चैन सिंह के बाकी साथी एक कैंपर और एक स्विफ्ट कार में सोना ला रहे इरफान और वली मोहम्मद की स्कौर्पियो गाड़ी का इंतजार कर रहे थे.

दोनों कैरियरों के साथ सुलतान और उस के भाई की स्कौर्पियो गाड़ी जब नीमकाथाना में रेलवे अंडरपास पर पहुंची, तो चैन सिंह के साथियों ने अपनी दोनों गाडि़यां उन की स्कौर्पियो के आगेपीछे लगा कर सुलतान, उस  के भाई इरफान और दोनों कैरियर वली मोहम्मद व इरफान को गाड़ी से नीचे उतार लिया.

बदमाशों ने इन चारों को अपनी कैंपर गाड़ी में बैठा लिया. इन लोगों ने सुलतान की स्कौर्पियो अपने कब्जे में ले ली. रेलवे अंडरपास से ऊपर चढ़ाई पर सुलतान और उस का भाई इरफान बदमाशों से संघर्ष करने लगे, लेकिन दोनों कैरियर चुपचाप बैठे रहे. इस दौरान बदमाशों की गाड़ी की गति धीमी हो गई, तो दोनों कैरियर इरफान व वली मोहम्मद कूद कर भाग निकले. मौका मिलने पर सुलतान भी किसी तरह बच कर भाग निकला.

बदमाशों ने गाड़ी रोक कर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन शहर के बीच और दिन का समय होने के कारण उन्हें फंसने का डर हुआ. इस पर वे सुलतान के भाई इरफान और उन की स्कौर्पियो को ले कर भाग गए.

बाद में सुलतान ने पुलिस को 30 हजार रुपए नकद और इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने और इरफान का अपहरण होने की सूचना दी, तो पुलिस ने नाकेबंदी करा दी. नाकेबंदी के दौरान बदमाश हांसनाला मंदिर के पास इरफान और स्कौर्पियो को छोड़ कर भाग गए.

लेकिन स्कौर्पियो में से वह सारा इलैक्ट्रौनिक सामान ले गए, जो इरफान और वली मोहम्मद सऊदी अरब से लाए थे. इसी इलैक्ट्रौनिक सामान में 5 किलोग्राम सोना छिपा कर रखा हुआ था. सुलतान ने पुलिस में जो रिपोर्ट दर्ज कराई, उस में केवल इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने की बात कही थी, सोने का जिक्र नहीं किया था.

बाद में चैन सिंह सहित 5 बदमाशों की गिरफ्तारी से 5 किलोग्राम सोने की लूट का भंडाफोड़ हुआ. बाद में पुलिस ने सऊदी अरब से सोना लाने वाले चूरू के बीदासर निवासी इरफान और वली मोहम्मद को भी गिरफ्तार कर लिया. नागौर जिले के मकराना निवासी एक आरोपी नरेंद्र सिंह को भी पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किया.

वह दिल्ली एयरपोर्ट से चैन सिंह के साथ ब्रेजा गाड़ी से सुलतान और दोनों कैरियरों का पीछा कर रहा था. इस वारदात में चैन सिंह के साथ मिल कर लूट व अपहरण की वारदात करने वाले कुछ बदमाश कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

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सभी पुलिस वालों को मिली पदोन्नति

इस के साथ ही 700 ग्राम सोने के बारे में भी पता किया जा रहा है. पुलिस ने 6 स्पीकर और एक प्रैस में भरा 4 किलो 300 ग्राम सोना ही बरामद किया है. एक स्पीकर खाली मिला था. पुलिस को अंदेशा है कि आरोपियों ने एक स्पीकर में भरा सोना खुर्दबुर्द कर दिया होगा.

पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार आरोपी विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट राजस्थान के कुख्यात अपराधी आनंद पाल के गिरोह से जुड़ा हुआ था. आनंद पाल के एनकाउंटर के बाद वह राजू ठेहठ गैंग से जुड़ गया. वह अवैध हथियारों की सप्लाई भी करता है. बिज्जू के खिलाफ फायरिंग व लूट के 7 मामले दर्ज हैं. वह 5 हजार रुपए का इनामी बदमाश है.

इकबाल उर्फ भाणू खां नागौर जिले के कुचामन थाने का हिस्ट्रीशीटर है. कुचामन और डीडवाना में उस के खिलाफ  9 मुकदमे दर्ज हैं. चैन सिंह के खिलाफ  खुनखुना व लाडनूं थाने में अपहरण, मारपीट व शराब तस्करी के 8 मामले दर्ज हैं. जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप चर्चित भढाढर हत्याकांड का मुख्य आरोपी है. वह लूट व डकैती की कई वारदातों में भी शामिल रहा है.

एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर का दावा है कि शेर मोहम्मद हर साल 5 से 7 बार कैरियरों के माध्यम से सऊदी अरब से सोना मंगवाता है. सोने की तस्करी से जुड़े इस मामले की सीबीआई और फेरा को भी जानकारी दी जाएगी. सोना लूट की यह योजना लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब में बैठ कर ही बनाई थी, इसलिए उस के खिलाफ  भी काररवाई की जाएगी.

जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर ने शेखावटी की अब तक की सब से बड़ी सोने की तस्करी का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल नीमकाथाना के डीएसपी रामावतार सोनी, थानाप्रभारी राजेंद्र यादव, साइबर सेल के सबइंसपेक्टर मनीष शर्मा, हैड कांस्टेबल सुभाषचंद, कांस्टेबल कर्मवीर यादव व मुकेश कुमार की पदोन्नति की सिफारिश करने की बात कही है.

पढ़ालिखा अमानुष

लेखक- प्रफुल्लचंद्र सिंह 

जूनियर इंजीनियर सुशील कुमार पिछले 2 सालों से मेरठ की ट्यूबवेल कालोनी स्थित सरकारी कालोनी में अपने परिवार के साथ रह रहा था.

उस की नियुक्ति सिंचाई विभाग में थी. उस के परिवार में पत्नी मोनिका उर्फ डौली के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. सब से बड़ी बेटी सोनी (परिवर्तित नाम) 14 साल की थी.

बात 13 मार्च, 2019 की सुबह करीब 9 बजे की है. जेई सुशील कुमार की पत्नी मोनिका अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ अस्पताल गई थी. थोड़ी देर बाद जब वह घर लौटी तो वहां का खौफनाक मंजर देख कर उस की चीख निकल गई. उस के रोनेबिलखने की आवाजें सुन कर आसपास रहने वाले लोग उस के यहां चले आए. सभी के मन में जिज्ञासा हो गई कि पता नहीं अचानक जेई साहब के यहां क्या हो गया. लेकिन लोगों ने एक कमरे में जब जेई सुशील कुमार की खून से सनी लाश बैड पर पड़ी देखी तो सन्न रह गए. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया. कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था.

मोनिका ने उसी समय अपने देवर अजय कुमार को फोन कर के  इस घटना की जानकारी दी. बड़े भाई की हत्या होने की बात सुन कर अजय भी अवाक रह गया. अजय सहारनपुर के पास स्थित अपने पैतृक गांव सलोनी में रहता था. भाई का दुखद समाचार सुन कर वह परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरठ की तरफ रवाना हो गया. उसी दौरान मोनिका ने थाना सिविल लाइंस में फोन कर के पति की हत्या की सूचना दे दी.

मेरठ के सिविल लाइंस थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी को जैसे ही घटना की जानकारी मिली तो वह अपने स्टाफ के साथ नलकूप विभाग की कालोनी की ओर रवाना हो गए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी घटनास्थल पर बुला लिया. बैड पर मृतक जेई सुशील कुमार के हाथपैर तथा मुंह कपड़े से बंधे थे तथा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था.

बैड के अलावा बैडरूम में चारों तरफ खून के छींटे दिख रहे थे तथा कमरे का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. इस के अलावा जेई साहब के क्वार्टर के सामने वाले एक क्वार्टर के दरवाजे पर भी खून के छींटे दिखाई दिए.

घटनास्थल पर मिले तमाम फोरैंसिक नमूने एकत्र करने के बाद उन्होंने क्वार्टर के दूसरे कमरे का भी मुआयना किया. दरअसल, इस सरकारी क्वार्टर में 2 कमरे थे. दूसरे कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था और अलमारी खुली पड़ी थी.

यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे हत्या की यह वारदात लूटपाट के इरादे से की गई हो. शायद सुशील कुमार ने लुटेरों का विरोध किया होगा. जिस पर लुटेरों ने उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी.

मृतक की पत्नी मोनिका से जब इस घटना के बारे में थानाप्रभारी ने पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि वह सुबह 9 बजे के आसपास अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ डाक्टर के पास गई थी. उस समय उस के पति चाय पीने के बाद नहाने जाने की तैयारी कर रहे थे. जबकि दोनों छोटे बच्चे घर से बाहर खेलने गए थे.

डाक्टर के पास से जब वह घर लौटी तो देखा कि क्वार्टर के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. दरवाजा खोलने पर उसे बैड पर पति की लाश पड़ी मिली. यह सारी घटना महज आधे घंटे के अंतराल के दौरान घट गई थी.

मृतक की पत्नी और कालोनी के कुछ अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद सुशील कुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

काररवाई के बाद पुलिस ने सुशील कुमार के बैडरूम को अपने कब्जे में ले लिया. वहां पर कुछ पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी वापस थाने लौट आए. पुलिस ने मोनिका की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी इस केस की आगे की तहकीकात थाने के ही इंसपेक्टर मुकेश कुमार को सौंप दी.

इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या के इस सनसनीखेज मामले की तफ्तीश को आगे बढ़ाते हुए मृतक जेई के सामने रहने वाले दूसरे जेई भारत यादव को हिरासत में ले लिया. क्योंकि उन के दरवाजे पर खून के छींटे मिले थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जेई भारत यादव ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि सुबह वह अपने र्क्वाटर में मौजूद थे. लेकिन इस दौरान उन्होंने सुशील कुमार के क्वार्टर से चीखने जैसी कोई आवाज नहीं सुनी.

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अलबत्ता मोनिका ने भारत यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत यादव के उस के पति से अच्छे संबंध नहीं थे इसलिए इस घटना में उस का हाथ हो सकता है. लेकिन जब अगले 36 घंटे की पूछताछ में इंसपेक्टर मुकेश कुमार को इस घटना में भारत यादव के ऊपर संदेह नहीं हुआ तो उन्होंने उसे शहर में ही रहने की ताकीद कर घर जाने की इजाजत दे दी.

उधर पोस्टमार्टम के बाद सुशील कुमार की लाश अतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सुशील कुमार की मौत गला कटने के कारण अधिक खून निकल जाने की वजह से हुई थी.

 

काल डिटेल्स में मिला क्लू

पुलिस जांच में यह भी पता चला कि सुबह 9 और साढ़े 9 बजे के बीच कालोनी के लोगों ने किसी को भी मृतक के क्वार्टर की तरफ आतेजाते नहीं देखा था. जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने मृतक सुशील कुमार और उस की पत्नी मोनिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

मोनिका के मोबाइल की काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मुकेश कुमार चौंक उठे. पता चला कि पिछले कुछ महीने से लगातार एक मोबाइल नंबर पर उस की लगातार बातें होती आ रही हैं. बातचीत का यह सिलसिला उस के पति की हत्या के बाद भी जारी था.

पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की भी डिटेल निकलवाई तो पता चला यह सिमकार्ड पवन कुमार सैनी के नाम रजिस्टर्ड था, जो राजस्थान के गंगानगर का रहने वाला था.  जब इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने मोनिका को थाने में बुला कर इस मोबाइल नंबर के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने बड़ी ही आसानी से पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पति की हत्या को स्वीकार करते हुए उस ने जो कुछ बताया, सुन कर वहां उपस्थित सभी पुलिस अधिकारी हैरान रह गए.

उस से की गई पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस टीम श्रीगंगानगर पहुंची और वहां से पवन को हिरासत में ले आई. उस से जब इस घटना के बारे में पूछताछ की तो थोड़ी देर तक आनाकानी करने के बाद उस ने मोनिका के साथ मिल कर उस के पति सुशील कुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी और एसपी डा. अखिलेश नारायण सिंह ने 16 मार्च, 2019 को एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का एक गांव है सलोनी. यह गांव थाना सरसावाला के अंतर्गत आता है. जेई सुशील कुमार इसी गांव का रहने वाला था. वह अपनी पत्नी मोनिका व 3 बच्चों के साथ मेरठ के सिंचाई विभाग के सरकारी क्वार्टर में रहता था. उस के पास सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

मोनिका अपने पति और तीनों बच्चों के साथ बेहद खुश थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह पति के चालचलन में कुछ परिवर्तन महसूस कर रही थी.

दरअसल, सुशील ने उस में रुचि लेनी बहुत कम कर दी थी. इस का पता लगाने के लिए जब मोनिका ने एक दिन पति के मोबाइल फोन की जांचपड़ताल की तो एक दिन उसे पता चला कि पति के कुछ महिलाओं के साथ अवैध संबंध हैं, जिन के साथ वह बराबर संपर्क में रहता है.

यह जान कर मोनिका के दिल को बहुत चोट पहुंची. उस ने पति को आकर्षित करने के कई हथकंडे अपनाए, लेकिन सुशील के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. यह सब देख कर उस ने पति से बदला लेने की ठानी और अपने मोबाइल से एक सोशल साइट पर जा कर दूसरे लड़कों से रोमांटिक चैटिंग करनी शुरू कर दी. सोशल साइट पर उस की मुलाकात पवन कुमार सैनी नाम के युवक से हुई. पवन सैनी राजस्थान के श्रीगंगानगर के गांव नाहरावाली का रहने वाला था.

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मोनिका की पवन से गहरी दोस्ती हो गई. मोनिका को पवन बहुत अच्छा लगा, इसलिए उस ने उस से प्यार का इजहार कर दिया. अब मोनिका पवन से मिलने के लिए उतावली हो रही थी. लिहाजा मोनिका ने एक दिन उसे मेरठ के एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

मोनिका के कहने पर पवन श्रीगंगानगर से चल कर मेरठ के एक होटल में पहुंच गया. मोनिका भी उसी होटल में पहुंच गई. पहली बार मिलने पर दोनों ही बहुत खुश हुए. पवन उम्र में उस से छोटा था.

होटल के बंद कमरे में दोनों ने एकदूसरे पर प्यार लुटाते हुए काफी वक्त गुजारा. एकदूसरे को प्यार करते रहने की कसमें खाईं. इस हसीन और रोमांचक मुलाकात के बाद पवन ने मोनिका से फिर मिलने आने का वादा किया और वापस श्रीगंगानगर लौट गया.

इस घटना के बाद वे दोनों अपनी सुविधा और मौके के अनुसार एक दूसरे को फोन कर अपने दिल की बात कर लेते थे. जब मोनिका के मन में पवन से मिलने की इच्छा हिलोरें मारती तो वह उसे मेरठ बुला लेती थी. पवन अभी कुंवारा था, इसलिए वह खुद भी मोनिका से मिलने की ताक में रहता था.

 

करीब ढाई साल तक अवैध संबंधों का यह सिलसिला बड़ी खामोशी से चलता रहा. मोनिका और पवन दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे. तभी एक दिन अचानक मोनिका की 14 वर्षीय किशोर बेटी सोनी ने उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

सोनी ने बताया कि उस के पापा पिछले कुछ महीनों से उस के साथ जबरन गलत काम करते हैं और मना करने पर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

मोनिका ने हिम्मत कर के यह बात पति से पूछी तो उलटे वह आगबबूला हो उठा और चुप रहने को कहा. इतना ही नहीं, उस ने यह भी धमकी दी कि अगर यह बात किसी को बताई तो वह तीनों बच्चों को मौत के घाट उतार देगा.

पानी चढ़ गया सिर से ऊपर

मोनिका ने कई बार पति को समझाने की कोशिश की, लेकिन सुशील अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. पानी सिर से ऊपर जाता देख कर मोनिका ने सुशील की इस गंदी हरकत के बारे में अपनी सास परीक्षा देवी को बताया. अपने बेटे की करतूत सुन कर परीक्षा ने ऐसे पढ़ेलिखे बेटे को लानत दी. इतना ही नहीं, उन्होंने बेटे सुशील को समझाने की कोशिश की, मगर वह कुछ भी समझने की जगह उलटे मरनेमारने पर उतारू हो गया.

यह देख कर परीक्षा से बहू मोनिका से कहा कि ऐसे राक्षस का घर में रहना ठीक नहीं है. इसे तो समाज में जिंदा रहने का भी अधिकार नहीं है. सास की बात सुन कर मोनिका मन ही मन बहुत खुश हुई क्योंकि पति के मरने के बाद पूरी तरह से अपने प्रेमी पवन सैनी के साथ रहने की आजादी मिलती.

मोनिका एक तीर से दो शिकार कर रही थी. उसे अब सुशील से नफरत हो चुकी थी. वह सुशील की हत्या करने के बाद पवन के साथ अपनी जिंदगी शुरू करना चाहती थी. मोनिका ने पति को ठिकाने लगाने के बारे में सास से बात की तो उन्होंने मोनिका को कुछ रुपए भी दे दिए ताकि वह किसी और से सुशील की हत्या करा सके.

इस के बाद मोनिका ने पवन को मेरठ बुला कर उस से कहा कि अगर वह उसे हमेशा के लिए पाना चाहता है तो उसे पति को ठिकाने लगाना होगा. आखिर में पवन अपनी माशूका के साथ जिंदगी गुजारने की खातिर उस के पति की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. इस काम के लिए मोनिका ने अपनी बड़ी बेटी सोनी को भी शामिल कर लिया.

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बेटी भी हो गई बाप की हत्या में शामिल

दरअसल वह भी अपने बाप के अत्याचारों से इतनी तंग आ चुकी थी कि उसे मौत के घाट उतारने के लिए मम्मी का साथ देने में उस ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा.

योजना के अनुसार, 12 मार्च, 2019 को मोनिका का प्रेमी पवन श्रीगंगानगर से मेरठ पहुंचा और वहां एक होटल में ठहर गया. अगले दिन 13 मार्च की सुबह मोनिका ने पवन के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने क्वार्टर के बाहर बुला लिया. उस समय लोगों का अधिक आनाजाना नहीं था.

इसी बीच सोनी अपने पापा सुशील के पास पहुंची. सुशील कुमार उस समय अपने बैड पर बैठा हुआ था.  सोनी ने प्यार से मनुहार करते हुए उसे एक खेल खेलने के लिए कहा तो वह इस के लिए फौरन राजी हो गया. दरअसल, वह सोनी को कभी किसी बात के लिए मना नहीं करता था.

इस के बाद पहले तो उस ने पापा सुशील कुमार की दोनों आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथ और पैरों को भी मजबूती से बांध दिया. तब तक मोनिका भी कमरे में आ गई. उस ने पति को बंधे देखा तो पवन को कमरे में आने के लिए फोन किया.

पवन चाकू ले कर वहां पहुंच गया. पवन को देखकर मोनिका की आंखें चमक उठीं. उस ने पति के सिर को पकड़ कर पीछे की ओर खींचा और पवन को जल्दी से उस की गरदन काटने का इशारा किया. शायद तभी सुशील को अपने साथ कुछ गलत होने का आभास हो गया था, इसलिए वह बचने के लिए छटपटाने लगा. लेकिन उस की बेटी सोनी ने उस के हाथ और पैर पकड़ लिए ताकि पवन आसानी से अपने काम को अंजाम दे सके. तभी पवन ने चाकू से सुशील की गरदन रेत डाली.

जब सुशील की लाश तड़प कर ठंडी पड़ गई तो पवन ने दूसरे कमरे में जा कर अपने कपड़ों से खून साफ किया और वहां से अपने होटल लौट गया. उस के जाने के बाद मोनिका और सोनी ने सुशील के खून के छींटे सामने रहने वाले जेई भारत यादव के दरवाजे पर लगा दिए ताकि साजिश के तहत इस कत्ल का आरोप उस के सिर मढ़ा जा सके.

दरअसल भारत यादव और सुशील के बीच किसी बात को ले कर खटपट होती रहती थी. इस के बाद उस ने घर के कपड़े और अलमारियों का सामान इस प्रकार कमरे में फेंक दिया ताकि यह मामला लूटपाट का लगे. फिर दोनों मांबेटी कमरों का दरवाजा बंद कर अस्पताल जाने के बहाने घर से बाहर निकल गईं. आधे घंटे के बाद दोनों वापस लौट आईं और घर में लूटपाट होने तथा पति की हत्या की झूठी खबर लोगों में फैला दी.

विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सने पवन के कपड़े बरामद करने के बाद सुशील कुमार हत्याकांड के दोनों आरोपियों पवन और मोनिका को स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सोनी को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधारगृह भेजा गया. बाद में इस हत्याकांड में शामिल चौथी आरोपी जेई सुशील कुमार की मां परीक्षा देवी को भी सहारनपुर स्थित उन के पुश्तैनी घर से गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया.

 

पुलिस को नचाती रही फर्जी IFS Officer

 लेखक-  प्रगति अग्रवाल 

इसी दौरान अर्दली ने देखा कि पुलिस एस्कार्ट के साथ एक मर्सिडीज वहां आई. मर्सिडीज पर लालबत्ती लगी हुई थी. मर्सिडीज से आगे चालक के पास वाली सीट से एक खूबसूरत नौजवान फुरती से उतरा. उस नौजवान के हाथ में लैपटौप बैग था. उस नौजवान ने मर्सिडीज के पीछे का गेट खोला. कार से एक महिला तेजी से बाहर निकली. महिला की उम्र करीब 32-33 साल थी. उस ने जींस और पूरी आस्तीन की टीशर्ट पहन रखी थी.

  पुलिस की एस्कार्ट गाड़ी और मर्सिडीज पर लगी लालबत्ती देख कर अर्दली समझ गया कि आगंतुक महिला कोई बड़ी अफसर हैं. अर्दली अपने साहब को महिला के बारे में बताने जाता, उस से पहले ही वह महिला तेज कदमों से चलती हुई आई और उस से बोली कि एसएसपी बैठे हैं क्या. अर्दली ने कहा, ‘‘यस मैम, साहब चैंबर में मीटिंग कर रहे हैं.’’

  आगंतुक महिला अर्दली से बिना कुछ कहे सीधे चैंबर का गेट खोल कर अंदर जाने लगी, तो अर्दली ने आगे बढ़ कर गेट खोल दिया. महिला ने चैंबर में घुस कर सामने सीट पर बैठे एसएसपी की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हैलो वैभव, आई एम जोया खान, औफिसर औफ  इंडियन फौरेन सर्विस.’’

  ‘‘जोया मैम, आप से मिल कर खुशी हुई.’’ एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपनी सीट से खड़े हो कर जोया से हाथ मिलाते हुए कहा.

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एसएसपी ने जोया का किया स्वागत

एसएसपी ने जोया को कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मैम, अभी तक तो आप के ईमेल ही मिले थे या एकदो बार फोन पर बात हुई थी. मुलाकात आज पहली बार हो रही है.’’

  ‘‘वैभव, यार तुम को तो पता है कि इंडियन फौरेन सर्विस में कितनी मारामारी रहती है. हमें आधा समय तो विदेशों में और आधा समय भारत में रहना पड़ता है.’’

  जोया ने एसएसपी पर अपनी रुतबे वाली नौकरी के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं विदेश मंत्रालय में जौइंट सेक्रेटरी लेवल की औफिसर हूं. आजकल मेरी पोस्टिंग यूनाइटेड नेशंस में है.’’

  ‘‘मैडम, बाई द वे, आप कौन से बैच की आईएफएस औफिसर हैं?’’ पास ही दूसरी कुरसी पर बैठे एसपी (देहात) विनीत जायसवाल ने जोया से पूछा.

  जोया ने एसपी (देहात) की ओर नजर उठा कर देखा. फिर उन की वरदी पर लगा आईपीएस का बैज देख कर संक्षिप्त सा जवाब दिया, ‘‘2007 बैच.’’

  ‘‘विनीत, आप भी यार हर जगह पुलिस की अपनी इनक्वायरी शुरू कर देते हो.’’ एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपने साथी एसपी (देहात) से कहा. फिर जोया खान की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘मैडम, क्या लेंगी? चायकौफी या ठंडा?’

  ‘‘वैभव, ऐसी कोई औपचारिकता नहीं है. फिर भी पहली बार मुलाकात हुई है, इसलिए आप के साथ कौफी पीने में कोई हर्ज नहीं है.’’ जोया ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.

  एसएसपी ने घंटी बजा कर अर्दली से पहले पानी और इस के बाद कौफी लाने को कहा. अर्दली पानी के गिलास रख गया. इस बीच जोया और एसएसपी वैभव कृष्ण कई मुद्दों पर बातें करते रहे. बीचबीच में वहां बैठे एसपी (देहात) विनीत जायसवाल भी अपनी बात कह देते थे.

  कुछ ही देर में अर्दली कौफी ले आया. एसएसपी, एसपी (देहात) और जोया खान बातें करते हुए कौफी सिप करने लगे. कौफी पीते हुए जोया ने एसएसपी से कहा, ‘‘वैभव, मेरी गाड़ी में तोड़फोड़ हो गई थी. इस की रिपोर्ट भी मैं ने बिसरख थाने में दर्ज करा दी थी, लेकिन आप की पुलिस ने अब तक इस मामले में कोई काररवाई नहीं की. आप जरा एक बार अपने स्तर पर इस केस को दिखवाना.’’

  एसएसपी ने जोया को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैडम, मैं इस केस को दिखवा लूंगा.’’

  जोया ने कौफी की आखिरी सिप लेते हुए कप खाली किया और कुरसी से उठते हुए एसएसपी से कहा, ‘‘वैभव, आप से पहली मुलाकात अच्छी रही.’’

  एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपनी कुरसी से खड़े हो कर जोया से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘नाइस टू मीट यू.’’

  जोया एसएसपी से मिल कर तेजी से उन के चैंबर से बाहर निकली और फुरती से अपनी गाड़ी के पास पहुंची. वहां पहले से ही लैपटौप बैग लिए खड़े नौजवान ने तेजी से आगे बढ़ कर गाड़ी का पीछे का गेट खोल दिया. जोया बैठ गई, तो उस की गाड़ी सायरन बजाती चल रही पुलिस की एस्कार्ट गाड़ी के पीछेपीछे चली गई.

  जोया के जाने पर एसपी (देहात) विनीत जायसवाल ने एसएसपी साहब से कहा, ‘‘सर, आप बुरा नहीं मानें, तो एक बात कहना चाहता हूं.’’

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एसपी (देहात) को जोया लगी संदिग्ध

एसएसपी वैभव ने एसपी (देहात) विनीत की ओर सवालिया नजरों से देखकर कहा, ‘‘हां, बताओ क्या कहना चाहते हो.’’

  ‘‘सर, मुझे जोया मोहतरमा पर शक है.’’ एसपी (देहात) ने संदेह जताते हुए कहा, ‘‘जोया मैडम खुद को 2007 बैच की इंडियन फौरेन सर्विस की औफिसर बता रही हैं और उन की उम्र करीब 32-33 साल लगती है. इस का मतलब क्या वे 20-21 साल की उम्र में ही आईएफएस औफिसर बन गईं.’’

  ‘‘विनीत, मुझे भी जोया के हावभाव और बात करने का अंदाज देख कर संदेह हो रहा है. तुम्हारी बात में भी दम नजर आता है.’’ एसएसपी ने कहा, ‘‘मैं जोया खान की असलियत का पता लगवा लेता हूं. सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.’’

  एसएसपी वैभव कृष्ण ने उसी दिन अपने कुछ मातहतों को जोया खान की असलियत का पता लगाने का जिम्मा सौंप दिया. साथ ही उन्होंने साइबर एक्सपर्ट टीम को जोया खान के भेजे एक ईमेल की जांच करने को कहा.

  यह ईमेल जोया ने एसएसपी से मुलाकात से कुछ दिन पहले पुलिस एस्कार्ट उपलब्ध कराने के लिए भेजा था. यह ईमेल ह्यद्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4ष्द्धद्बद्गद्घञ्चह्वठ्ठद्बह्लद्गस्रठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठह्य ह्यद्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4ष्शह्वठ्ठष्द्बद्य.शह्म्द्द से भेजा गया था.

  साइबर एक्सपर्ट टीम ने जोया खान की ओर से भेजे ईमेल के संबंध में जांच की, तो पता चला कि यूनाइटेड नेशंस की असली वेबसाइट सिर्फ  222.ह्वठ्ठ.शह्म्द्द है. इसी से मिलतेजुलते नामों से भी कई ईमेल आईडी मिलीं.

  असलियत जानने के लिए डोमेन नेम की जांच कराई गई. इस में पता चला कि जोया ने खुद अपने लैपटौप से बैंक अकाउंट के माध्यम से ह्वठ्ठद्बह्लद्गस्रठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठह्यह्यद्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4ष्शह्वठ्ठष्द्बद्य. शह्म्द्द नामक वेबसाइट खरीद कर उस से ईमेल बनाया था.

  इस के अलावा दूसरी पुलिस टीम को जोया खान के बारे में कई ऐसी बातें पता चलीं, जिन से यह बात पुख्ता हो रही थी कि जोया खान फरजी आईएफएस अफसर बन कर घूमती है.

फरजी होने के मिले सबूत

सभी तरफ  से जोया खान के बारे में फरजी अफसर होने की पुष्टि होने पर नोएडा पुलिस ने जोया खान को हिरासत में ले कर पूछताछ की, तो उस की जालसाजी की सारी पोल खुल गई. पुलिस ने पूछताछ के बाद जोया खान और उस के पति हर्षप्रताप सिंह को 4 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया.

  पुलिस ने जोया के पास से यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट का फरजी डिप्लोमैटिक आईडी कार्ड, 2 लैपटौप, पिस्टलनुमा लाइटर गन, वाकीटाकी वायरलैस सेट, 4 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड, पैन कार्ड, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस सहित यूएन का लोगो लगी मर्सिडीज कार और नीली बत्ती लगी एसयूवी महिंद्रा कार सहित कई अन्य सामान भी बरामद किए.

  फरजी आईएफएस औफिसर जोया खान और उस के पति से पुलिस की पूछताछ के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

जोया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली है. मेरठ के कैंट इलाके में सदर बाजार स्थित तिवारी कंपाउंड में उस के पिता का आलीशान बंगला है. उस के पिता ए. खान एमबीबीएस डाक्टर हैं. उन का मेरठ के लालकुर्ती बड़ा बाजार में क्लीनिक है. जोया के पिता डा. ए. खान की इस इलाके में अच्छी शोहरत है. डाक्टरी के पेशे से उन्होंने अच्छीखासी कमाई भी की है.

  डा. ए. खान की 2 बेटियां हैं. बड़ी बेटी जोया ने मेरठ के प्रतिष्ठित स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई की थी. इस के बाद उस ने दिल्ली से ग्रैजुएशन किया. दिल्ली यूनिवर्सिटी से जोया ने पौलिटिकल साइंस में एमए किया. सन 2007 में वह दिल्ली में रह कर सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी करने लगी. इस के लिए उस ने कोचिंग वगैरह भी की. बाद में उस ने यूपीएससी की ओर से आयोजित सिविल सर्विसेज परीक्षा भी दी, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी.

  करीब 6-7 साल पहले जोया ने एक बार मेरठ जाने पर अपनी मां को बताया था कि वह हर्षप्रताप सिंह से शादी करेगी. इस पर पिता डा. खान व मां ने बेटी को हर्ष और उस के परिवार से मुलाकात कराने को कहा था, लेकिन जोया ने कभी उन से मुलाकात नहीं कराई.

जोया ने हर्ष से की थी कोर्टमैरिज

जोया ने नवंबर 2013 में हर्षप्रताप सिंह से कोर्टमैरिज की थी. हर्षप्रताप सिंह उस समय स्टेट बैंक औफ  इंडिया में प्रोबेशनरी अफसर की नौकरी छोड़ कर सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा था. शादी के बाद हर्ष प्रताप सिंह ने सिविल सर्विस परीक्षा भी दी, लेकिन वह सफल नहीं हो सका. हर्ष प्रताप के पिता उत्तर प्रदेश में एक सरकारी विभाग में जौइंट कमिश्नर हैं.

  जोया खान ने अच्छीखासी पढ़ाई की थी. उस की तमन्ना प्रशासनिक अफसर बनने की थी. लेकिन वह परीक्षा में सफल नहीं हो सकी, तो उसे अपने सपनों पर पानी फिरता नजर आया. पति हर्ष प्रताप भी सिविल सर्विस परीक्षा में पास नहीं हो सका था.

  करीब 2 साल पहले जोया ने अपने सपनों को पूरा करने और अफसरों जैसा रुतबा हासिल करने के लिए फरजीवाड़ा करने की योजना बनाई. उस ने इंटरनेट पर यूनाइटेड नेशंस सिक्युरिटी से संबंधित सारी जानकारियां जुटाईं. इस के बाद उस ने ‘गो डैडी’ डोमेन से फरजी ईमेल आईडी सिक्युरिटी चीफ  यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी काउंसिल डौट ओआरजी के नाम से बनवाई और इसे रजिस्टर्ड करवाया.

  इस के लिए जोया ने यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन के लोगो व अन्य सूचनाएं फरजीवाड़े से हासिल कर उपलब्ध करवाईं. इस के बाद जोया ने खुद का यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन सिक्युरिटी काउंसिल का आईडी कार्ड और विजिटिंग कार्ड बनवाए.

  जोया ने खुद का एक डिप्लोमेटिक आईडी कार्ड भी बनवाया. इस में खुद को न्यूक्लियर पौलिसी अफसर बताया गया. वाशिंगटन से जारी इस आईडी कार्ड में जोया की तैनाती अफगानिस्तान में बताई गई थी.

  इस के बाद जोया ने उत्तर प्रदेश के एक जिले के एसपी को यूनाइटेड नेशंस और्गनाइजेशन सिक्युरिटी काउंसिल के नाम से ईमेल भेज कर पुलिस एस्कार्ट मांगी.

  जोया को इस ईमेल पर पुलिस एस्कार्ट सुविधा मिल गई. पुलिस की सुरक्षा में इधरउधर आनाजाना, हर चौराहे पर पुलिसकर्मियों की ओर से सैल्यूट देने का रुतबा जोया खान को पसंद आ गया.

फरजी अधिकारी बन कर दिखाती थी रुतबा

जोया ने खुद को भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया. मेरठ में भी वह खुद को आईएफएस अफसर बताने लगी. वह किसी को भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव बताती, किसी को वह यूनाइटेड नेशंस की सिक्युरिटी काउंसिल की न्यूक्लियर पौलिसी अफसर बताती. जोया ने अपनी मर्सिडीज गाड़ी पर यूनाइटेड नेशंस का लोगो भी लगवा लिया था. एसयूवी कार पर नीली बत्ती लगवा ली थी.

  भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी के रूप में जोया खान मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव, अलीगढ़, मथुरा, मुरादाबाद आदि जिलों के एसपी या एसएसपी को यूनाइटेड नेशंस सिक्युरिटी काउंसिल के सिक्युरिटी चीफ की ओर से ईमेल भेज कर पुलिस सुरक्षा की मांग करती थी.

जोया खान ने अपने मोबाइल में वाइस कनवर्टर ऐप डाउनलोड कर रखा था. वह इस ऐप के जरिए अधिकारियों से कभी पुरुष और कभी महिला की आवाज में बात करती थी. किसी जिले के एसपी या एसएसपी को ईमेल भेजने के बाद जोया खान उस अधिकारी को फोन करती और ऐप के जरिए आवाज बदल कर पुरुष की आवाज में कहती कि मैं विदेश मंत्रालय की जौइंट सेक्रेटरी जोया खान का पीए बोल रहा हूं, मैडम आप से बात करना चाहती हैं.

  इस के तुरंत बाद जोया खान महिला की आवाज में उस अधिकारी से बात करती. वह धाराप्रवाह अंगरेजी बोलते हुए कई बार फोन पर अधिकारियों को फटकार भी देती थी.

  पत्नी जोया के रुतबे के इस खेल में पति हर्ष को भी मजा आने लगा था. जोया इस खेल में पति को साथ रखना चाहती थी. इसलिए दोनों ने मिल कर एक रास्ता निकाला. इस के मुताबिक जोया आईएफएस अधिकारी बन कर कार में पीछे की सीट पर बैठती थी और हर्ष उस क ा कमांडो बन कर कार चलाता था. हर्ष अपने पास लाइटर पिस्टल और वाकीटाकी रखता था.

  कार से उतर कर जोया जब किसी अधिकारी से मिलने जाती थी, तो हर्ष उस का लैपटौप और डायरी उठा कर चलता था. पुलिस की एस्कार्ट के सामने जोया और हर्ष किसी को यह जाहिर नहीं होने देते कि वे पतिपत्नी हैं. इस दौरान हर्ष जोया को मैडम कह कर कहता था.

अपनी पोल न खुल सके, इस के लिए जोया अपनी कार चलाने के लिए किसी ड्राइवर को नहीं रखती थी. ड्राइवर को रखने से जोया का फरजीवाड़ा उजागर हो सकता था. इसलिए जोया जब भी आईएफएस अफसर बन कर जाती, तो हर्ष ही कार चलाता था. जोया अपने घर में भी किसी पुलिसकर्मी को नहीं आने देती थी.

  इस बीच, जोया अपने पति हर्ष के साथ ग्रेटर नोएडा वेस्ट की प्रिस्टीन एवेन्यू सोसायटी में फ्लैट ले कर रहने लगे. यह फ्लैट जोया ने 6500 रुपए महीने किराए पर ले रखा था. इस सोसायटी में भी जोया ने खुद को आईएफएस अफसर ही बता रखा था.

  जोया हर महीने मेरठ भी आतीजाती रहती थी. मेरठ में भी जोया पुलिस एस्कार्ट लेती थी. इस के लिए वह पहले ही एसएसपी को यूनाइटेड नेशंस का ईमेल भेज देती थी. इसी 26 मार्च को भी जोया मेरठ गई थी और पुलिस सुरक्षा ली थी. इसी दिन वह मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी से भी मिली थी. वह विभिन्न जिलों के पुलिस अधिकारियों को फोन कर अपने निजी काम, किसी मुकदमे की पैरवी आदि के लिए कहती थी.

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सुरक्षा एजेंसियों ने की पूछताछ

इसी साल जनवरी में ग्रेटर नोएडा वेस्ट की प्रिस्टीन एवेन्यू सोसायटी में रात के समय जोया की कार के शीशे किसी ने तोड़ दिए थे. इस पर जोया ने नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण से शिकायत की थी. इस संबंध में जोया ने मुकदमा भी दर्ज कराया था. पुलिस की ओर से कोई काररवाई नहीं करने पर वह 30 मार्च को इसी सिलसिले में एसएसपी वैभव कृष्ण से मिलने उन के औफिस में गई थी.

  जोया का फरजीवाड़ा उजागर होने के बाद पुलिस अब दूसरी सुरक्षा एजेंसियां जांचपड़ताल में जुटी हुई हैं. जोया खान से बरामद लैपटौप और मोबाइल के डेटा की जांच नोएडा एटीएस टीम कर रही है.

  पुलिस यह भी जांच कर रही है कि जोया का संबंध अफगानिस्तान या अन्य किसी देश से तो नहीं है. यह बात भी सामने आई थी कि गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले जोया ने मेरठ में हुई प्रधानमंत्री की रैली के लिए पुलिस से एस्कार्ट मांगी थी. हालांकि पुलिस इस बात से इनकार कर रही है. नोएडा में गिरफ्तारी के बाद जोया के खिलाफ  मेरठ में भी मुकदमा दर्ज किया गया है. इस के अलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश के उन जिलों में भी जोया के खिलाफ  मुकदमा दर्ज करने की तैयारी चल रही है, जहां जोया ने फरजीवाड़े से पुलिस सुरक्षा हासिल की थी.

  कहा जाता है कि जोया के मातापिता और हर्षप्रताप के पिता को पता चल गया था कि जोया फरजी आईएफएस अफसर बन कर घूमती है. हर्ष के पिता ने बेटे को समझाया भी था, लेकिन सरकारी अफसर का रुतबा और पुलिस वालों के सैल्यूट के आगे उन की समझाइश का कोई मतलब नहीं निकला. कथा लिखे जाने तक दोनों पतिपत्नी जेल में थे.

जहरीली शराब का कहर, एक ही परिवार के 4 लोगों की मौत…

लेखक- सुनील शर्मा

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रानीगंज इलाके में जहरीली शराब पीने से 10 लोगों की मौत हो गई. इन में से 4 लोग तो एक ही परिवार से बताए गए हैं.

ये मौतें रामनगर थानाक्षेत्र के अलगअलग गांव में हुईं. गांव वालों का कहना है कि इन लोगों ने सोमवार 27 मई की रात रानीगंज कसबे में देशी शराब की दुकान से शराब खरीद कर पी थी. थोड़ी देर के बाद जब सभी को पेट दर्द व उलटी की शिकायत हुई तो उन्हें स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाया गया.

शराब पीने के बाद उन लोगों को दिखना भी बंद हो गया था. मामला बिगड़ता दिखा तो उन सब को वहां से जिला अस्पताल भेज दिया गया, जिन में से 4 की जिला अस्पताल में ही मौत हो गई.

इतना ही नहीं, इलाज के दौरान मंगलवार, 28 मई की सुबह तक कुल 12 लोगों की मौत हो गई थी. कइयों की हालत नाजुक बनी हुई थी.

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इस सिलसिले में राज्य के आबकारी मंत्री जयप्रताप सिंह ने बताया कि जिला प्रशासन के 4 अफसरों और 8 पुलिस वालों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि कुसुरवारों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए जाएंगे.

दूसरी तरफ गांव वालों का आरोप है कि दानवीर सिंह नाम के एक आदमी की नकली शराब बनाने की एक गैरकानूनी फैक्टरी है. यह नकली शराब उस की सरकारी ठेके वाली दुकान पर बेची जाती है.

 पहले भी लील चुकी है नकली शराब

यह कोई पहला मामला नहीं है जब इस तरह की जहरीली शराब ने लोगों को अपना शिकार बनाया है. इसी साल के फरवरी महीने में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 4 जिलों में जहरीली शराब पीने से 112 लोगों की मौत हुई थी. सूत्रों की मानें तो शराब माफिया ने उस शराब में स्प्रिट या चूहा मारने की दवा मिलाई थी.

फरवरी महीने में ही असम में भी जहरीली शराब के सेवन के चलते 143 लोगों की मौत हुई थी. तब गैरकानूनी शराब की बिक्री और उसे बनाने के मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

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सवाल उठता है कि अगर सरकार कुसूरवार लोगों पर कड़ी कार्यवाही करती है तो फिर मौत बेचने का यह धंधा बंद क्यों नहीं हो जाता है? दिक्कत यह है कि इस तरह की शारब बनाने और बेचने वालों का नेटवर्क इतना मजबूत होता है कि वे कोई हादसा होने के बाद कुछ दिन तो चुप रहते हैं, पर बाद में फिर इस नशीले धंधे की भट्ठियों को सुलगा देते हैं. पुलिस और आबकारी महकमे की मिलीभगत से यह धंधा दोबारा फलनेफूलने लगता है, जिस का बुरा अंत फिर किसी की मौत से होता है.

बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में, जहां शराबबंदी की जा चुकी है, से भी जहरीली शराब पी कर लोगों द्वारा अपनी जान गंवाने की खबरें आती रहती हैं तो आप समझ सकते हैं कि नशे का यह गैरकानूनी कारोबार देशभर में अपनी कितनी मजबूत जड़ें जमा चुका है.

ग्लैमरस लाइफ बनी मौत का कारण…

 लेखक-  प्रगति अग्रवाल 

बीते 28 मार्च की बात है. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में गुरुर थाने से करीब 5-7 किलोमीटर दूर स्थित धानापुरी गांव के कुछ लोग सुबह 8 बजे जब गंगरेल भिलाई नहर में नहाने गए तो वहां उन्होंने एक युवती की लाश तैरती देखी. ग्रामीणों ने इस की सूचना धानापुरी की सरपंच योगेश्वरी मानिक सिन्हा और गुरुर थाना पुलिस को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर नहर में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. लाश किसी युवती की थी, जिस की उम्र करीब 30 साल थी. लाश के हाथपैर और गला रस्सी से बंधा हुआ था. रस्सी को एक कांश्भाररी पत्थर से बांधा गया था. मृतका के पेट पर चाकू से वार करने के 2 निशान थे. पुलिस जब नहर से लाश निकालने की काररवाई कर रही थी, तब आसपास के काफी ग्रामीण एकत्र हो गए.

पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से युवती की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. लेकिन कोई भी उस युवती को नहीं पहचान सका. युवती चुस्त कुरता और सलवार पहने थी. मृतका की हथेली पर अंग्रेजी में ए. यादव लिखा था और बाएं हाथ पर पंखुड़ी का टैटू बना हुआ था.

इस बीच, बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी भी मौके पर पहुंच गए. निरीक्षण कर उन्होंने अनुमान लगाया कि युवती की हत्या रात को की गई होगी और उस के शव को करीब 10 किलोमीटर के दायरे से ला कर वहां फेंका गया है.

लाश को पत्थर से बांध कर संभवत: इसलिए फेंका गया होगा कि वह पानी के नीचे डूबी रहे. लेकिन गंगरेल नहर में बहाव तेज होने से लाश पत्थर सहित पानी के साथ बह कर धानापुरी की तरफ आ गई.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने युवती के शव को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. आगे की जांच के लिए सब से पहले लाश की शिनाख्त जरूरी थी, कपड़ों और टैटू से लग रहा था कि युवती किसी खातेपीते परिवार की और बड़े शहर की रहने वाली थी. समझदारी से काम लेते हुए पुलिस ने युवती के शव के फोटो वाट्सएप के जरिए सोशल मीडिया पर डाल दिए.

इस का परिणाम भी जल्दी ही सामने आ गया. कई लोगों ने उस शव की शिनाख्त आंचल यादव के रूप में की. पुलिस को केवल मृतका का नाम पता चला था, बाकी जानकारी नहीं मिली थी. इस पर पुलिस ने आंचल यादव नाम की युवतियों के फेसबुक अकाउंट खंगाले.

इस में आंचल यादव नाम के एक फेसबुक अकाउंट पर लगी फोटो से लाश का हुलिया मेल खा रहा था. आंचल के फेसबुक अकाउंट पर एक ऐसी फोटो भी मिल गई. जिस में उस के हाथ पर पंखुड़ी का टैटू साफ नजर आ रहा था. टैटू का मिलान होने पर यह तय हो गया कि लाश आंचल यादव की ही है.

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आंचल की लाश की हुई शिनाख्त

फेसबुक अकाउंट और अन्य सूत्रों से पुलिस को पता चला कि आंचल गुरुर से 5-7 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय धमतरी की विवेकानंद कालोनी की रहने वाली थी. वह धमतरी के अलावा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी रहती थी.

शव की विश्वसनीय शिनाख्त मृतका के घर वाले कर सकते थे. इस के लिए गुरुर थाना पुलिस ने धमतरी सिटी कोतवाली पुलिस से संपर्क किया. धमतरी पुलिस के सहयोग से गुरुर थाना पुलिस का संपर्क आंचल के परिवार से हो गया.

पुलिस की सूचना पर आंचल के भाई सिद्धार्थ ने अस्पताल जा कर शव की शिनाख्त की. शव आंचल यादव का ही था. पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने और आवश्यक काररवाई के बाद देर शाम आंचल का शव उस के भाई सिद्धार्थ को सौंप दिया. बालोद थाने में हत्या का मामला पहले ही दर्ज कर लिया गया था.

पुलिस ने आंचल के बारे में जानकारी लेने के लिए उस के परिवार वालों से पूछताछ की. उस की मां ममता यादव ने बताया कि आंचल एक दिन पहले यानी 25 मार्च को रायपुर से अदालत की किसी पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. उस रात वह करीब 9 बजे अपनी कार से धमतरी में विवेकानंद कालोनी स्थित घर पर पहुंची थी.

घर पहुंचते ही उस के मोबाइल पर एक काल आई. फोन पर बात करने के बाद आंचल घर से चली गई. मां ने उसे रात में जाने से रोका भी था, लेकिन वह नहीं मानी और थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से बाहर निकल गई.

पुलिस ने अपने स्तर पर आंचल यादव के बारे में पता करवाया. पता चला कि ग्लैमरस लाइफ जीने वाली आंचल का धमतरी, भिलाई और रायपुर के अलावा छत्तीसगढ़ व अन्य कई बड़े शहरों के हाई प्रोफाइल लोगों से संपर्क था. वह अकसर रायपुर की पेज थ्री पार्टियों और क्लबों में नजर आती थी. उसे लग्जरी कारों का भी शौक था.

तीखे नाकनक्श वाली आंचल जिस शानोशौकत और आधुनिकता से रहती थी, उस से लोगों का अनुमान था कि वह मौडलिंग करती है और छत्तीसगढ़ की छौलीवुड हीरोइन है. आंचल ने अपने फोटोशूट कराने के लिए पर्सनल फोटोग्राफर रखा हुआ था. हालांकि लोगों ने आंचल को कभी मौडलिंग करते या  किसी फिल्म अथवा एलबम वगैरह में नहीं देखा था, लेकिन उस का रहनसहन और जीवनशैली किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं थी. इसलिए सभी उसे मौडल या हीरोइन समझते थे.

आंचल रोजाना फेसबुक व सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती थी. वह फेसबुक पर रोजाना अपना एक ग्लैमरस फोटो अपलोड करती थी. अपने फेसबुक अकाउंट पर 25 मार्च को शाम 4 बज कर 7 मिनट पर अंतिम बार उस ने एक कुत्ते के साथ वाला फोटो अपलोड किया था. आंचल के फेसबुक पर 22 हजार से ज्यादा फौलोअर थे.

प्रारंभिक जांच पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि फरवरी 2014 में वन विभाग के एक रेंजर की अश्लील सीडी बना कर आंचल ने उसे ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगे थे. इस मामले में उसे पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था. कुछ दिन बाद जेल से छूटने पर आंचल ने अपना गृहनगर धमतरी छोड़ दिया था और रायपुर में अकेली रहने लगी थी. आंचल ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर खुद को रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की एक्जीक्यूटिव सेल्स मैनेजर बताया था.

शौर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आंचल की हत्या की पुष्टि हो गई. उस के पेट में चाकू से वार करने के निशान थे. यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि हत्या से पहले उस के साथ दुष्कर्म हुआ था या नहीं. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने रिपोर्ट में लाश के करीब 12 घंटे तक पानी में रहने की बात कही थी.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घर से निकलने के कुछ ही देर बाद आंचल की हत्या कर दी गई होगी. मां ने बताया था कि आंचल के पास मोबाइल था. लेकिन पुलिस को कोई मोबाइल फोन नहीं मिला था.

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रहस्य बन गई थी आंचल की हत्या

आंचल के घर वालों ने 27 मार्च को धमतरी में उस की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया. आंचल के शव की अंत्येष्टि के बाद पुलिस ने उस के घर वालों से पूछताछ की. इस में वही बात सामने आई कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल के मोबाइल पर किसी की काल आई थी.

उस के बाद वह अपनी कार घर पर छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह किस के साथ गई, इस के बारे में आंचल की मां और भाई ने अनभिज्ञता जताई. मां ने इतना जरूर बताया कि आंचल किसी के साथ बाइक पर बैठ कर गई थी.

आंचल के संबंध हाईप्रोफाइल लोगों से होेने और एक बार पहले ब्लैकमेलिंग के चक्कर में जेल जाने से पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हत्या योजनाबद्ध तरीके से की गई है. इसलिए पुलिस ने आंचल के संपर्क वाले लोगों को जांच के दायरे में लिया.

साथ ही धमतरी में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगालने का काम भी शुरू किया. पुलिस ने आंचल का मोबाइल तलाशने और उस की लोकेशन का पता लगाने की भी कोशिश की. लेकिन कुछ पता नहीं चला.

आंचल की हत्या का मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दुर्ग रेंज के आईजी हिमांशु गुप्ता 27 मार्च को थाना गुरुर पहुंचे. उन्होंने इस मामले में पुलिस अधिकारियों से आवश्यक जानकारी ली और उन्हें दिशानिर्देश दिए. आईजी ने धमतरी के एसपी बालाजी राव को भी इस मामले में बालोद पुलिस का सहयोग करने को कहा.

आंचल के धमतरी और रायपुर में रहने और कई शहरों के रईसजादों से संपर्क होने की वजह से जांच कई नजरिए से होनी जरूरी थी. इस के लिए पुलिस की 5 अलगअलग टीमें बनाई गईं. इन टीमों ने अलगअलग लोगों को ध्यान में रख कर जांच शुरू की. इन में एक कोण पैसे और ब्लैकमेलिंग का भी था.

आंचल ने रायपुर के वीआईपी रोड स्थित फ्लावर वैली में करीब 35 हजार रुपए महीना किराए पर बंगला ले रखा था. 28 मार्च को पुलिस ने आंचल के इस बंगले की तलाशी ली. तलाशी में पुलिस को सीडी, लैपटौप, पैनड्राइव, वन विभाग के अफसरों के नाम लिखे कुछ दस्तावेज आदि मिले. पुलिस ने इन की जांच पड़ताल की. लेकिन कहीं से भी आंचल की हत्या का कोई क्लू नहीं मिला. पुलिस ने आंचल की फ्रैंड्स से भी पूछताछ कर के हत्या का कारण जानने का प्रयास  किया, लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस से इस मामले में उम्मीद की कोई किरण नजर आती.

पुलिस की जांच का फोकस आंचल के दोस्तों, हाईप्रोफाइल लोगों और उस के घर वालों पर था. पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर जांच शुरू की. ऐसा कर के पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि आंचल कब और किस समय कहां जाती थी और किन लोगों के ज्यादा संपर्क में थी.

अपने महंगे शौक पूरे करने और ग्लैमरस जिंदगी जीने के लिए आंचल के पास आमदनी के क्या स्रोत थे, यह भी जानने की कोशिश की गई. यह भी पता लगाया गया कि 25 मार्च को दिन भर उस की किनकिन लोगों से मोबाइल पर बात हुई थी. उस दिन वह रायपुर से धमतरी आई तो किनकिन लोगों को इस बात की जानकारी थी और किन लोगों से उस की मुलाकात हुई.

साथ ही यह भी कि रात 9 बजे वह बाइक पर बैठ कर किस के साथ गई थी. इस के अलावा एक पुलिस टीम को सीसीटीवी कैमरे खंगालने और आंचल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई.

साइबर सेल की मदद से पुलिस ने आंचल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. पता चला कि 25 मार्च को आंचल के फोन पर 40 से ज्यादा लोगों के काल आए थे. इन में कई हाईप्रोफाइल लोगों के अलावा रायपुर व भिलाई के रहने वाले उस के दोस्त भी शामिल थे. पुलिस ने इन में से कई लोगों से पूछताछ की.

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जांच के लिए कई कोण मिले

पर सब बेकार साबित हुए

जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि जगदलपुर के एक व्यक्ति ने आंचल के पिता राकेश यादव से 50 लाख रुपए में उन का धमतरी का मकान और जमीन खरीदी थी.

बाद में आंचल ने पिता की मानसिक स्थिति खराब होने की बात कह कर इस सौदे से इनकार कर दिया था. इस पर मकान खरीदने वाले ने आंचल के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जमीन खरीदने वाले शख्स को जांच के दायरे में ले कर पूछताछ की.

जांच में पुलिस को कोलकाता के एक कथित तांत्रिक बाबा से भी आंचल के संपर्कों का पता चला. बाबा आंचल से मिलने रायपुर भी आता था. आंचल इस बाबा के जरिए कोई सिद्धि हासिल कर सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचना चाहती थी.

बाद में इस बाबा से आंचल का मोहभंग हो गया था. बाबा से पीछा छुड़ाने के बाद आंचल को अहसास हुआ कि वह ठगी गई है. आंचल ने अपने करीबी कुछ लोगों को बताया था कि बाबा ने पैसे हड़पने के साथ उस का शोषण भी किया था. हालांकि बाबा के खिलाफ आंचल ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी.

पुलिस ने आंचल के ब्लैकमेलिंग के पुराने मामले को ध्यान में रख कर वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से भी पूछताछ की. लेकिन ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से आंचल के हत्यारों का सुराग मिल पाता.

सभी एंगलों पर चल रही जांचपड़ताल के बीच 27 मार्च की शाम दुर्ग के आईजी हिमांशु गुप्ता और बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी ने धमतरी में आंचल के घर जा कर उस की मां ममता यादव और भाई सिद्धार्थ से पूछताछ की. इस पूछताछ में पुलिस को आंचल की हत्या के बारे में कुछ अहम सुराग मिले. इस के बाद पुलिस ने जांच की दिशा तय कर ली.

आवश्यक तथ्य  जुटाने के बाद पुलिस ने 30 मार्च की शाम आंचल के भाई सिद्धार्थ यादव को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई. बाद में उसे आंचल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. सिद्धार्थ से पूछताछ के आधार पर उस की मां ममता यादव को भी गिरफ्तार  किया गया. मांबेटे से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. उस का कारण था आंचल की वजह से होने वाली परिवार की बदनामी.

धमतरी के रहने वाले राकेश यादव आबकारी विभाग में निरीक्षक थे. उन का छोटा सा परिवार था. इस परिवार में पत्नी ममता यादव के अलावा बड़ी बेटी थी आंचल और छोटा बेटा था सिद्धार्थ. राकेश यादव ने दोनों बच्चों आंचल और सिद्धार्थ को बड़े लाड़प्यार से पाला. आंचल ने धमतरी के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद ग्रैजुएशन की. इस के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में काम करना शुरू कर दिया.

कहा जाता है कि तीखे नाकनक्श वाली आंचल जैसेतैसे जवान होती गई, वैसेवैसे उस की खूबसूरती गजब ढाने लगी. आंचल जब आइने में अपना चेहरा देखती थी तो उसे अपनी खूबसूरती पर रश्क होता. उस की सहेलियां भी उसे हीरोइन कह कर चिढ़ाती थीं. वे उस से कहती थीं कि तू इतनी खूबसूरत है कि फिल्मी हीरोइन भी तेरे आगे पानी भरेंगी.

खूबसूरती और महत्त्वाकांक्षा

बनी पतन का कारण

जवानी के साथ बढ़ती खूबसूरती ने आंचल के ख्वाबों की ऊंचाई भी बढ़ा दी. वह ग्लैमर की दुनिया में नाम कमाने के बारे में सोचने लगी. लेकिन इस के लिए न तो उस के पास अनुभव था और न ही ग्लैमर की दुनिया तक पहुंचने का रास्ता उसे पता था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वह आधुनिक परिवेश में ढलती गई और इसी चक्कर में उस के कदम बहक गए.

उन्हीं दिनों वह वन विभाग के एक रेंजर के प्यार में उलझ गई. बाद में आंचल ने उस रेंजर की अश्लील सीडी बना ली. इस सीडी के बहाने वह रेंजर को ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगने लगी. रेंजर ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस मामले में सन 2014 में पुलिस ने आंचल को गिरफ्तार किया था. आंचल को करीब ढाई महीने तक जेल में रहना पड़ा. बाद में वह जमानत पर छूट गई.

बेटी की ऐसी गुश्ताखियों से लगे सदमे के कारण पिता राकेश यादव की मौत हो गई. जेल से छूटने के बाद आंचल ज्यादा स्वच्छंद हो गई. उस ने धमतरी शहर छोड़ दिया और वह रायपुर जा कर रहने लगी.

रायपुर में उस की जानपहचान कई रईसजादों से हो गई. जल्दी ही उस की दोस्ती का दायरा रायपुर, भिलाई और दुर्ग के अलावा कई अन्य शहरों के हाईप्रोफाइल लोगों तक फैल गया. वह रायपुर में होने वाली हाईप्रोफाइल नाइट पार्टियों की शान बन गई.

रईसजादों से दोस्ती हुई तो आंचल ने रायपुर की फ्लावर वैली में किराए का एक बंगला ले लिया. साथ ही उस ने लग्जरी कार भी ले ली.

वह आधुनिक तौरतरीकों और शानोशौकत से ग्लैमरस लाइफ जीने लगी. कभीकभी वह धमतरी भी आ जाती थी. साथ ही कभी उस की मां या भाई भी रायपुर आ जाते थे. इस बीच भाई सिद्धार्थ ने धमतरी में किराए पर टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था.

आंचल भले ही रायपुर में रहती थी, लेकिन उस की स्वच्छंदता और चालचलन के किस्से धमतरी में रह रहे भाई सिद्धार्थ और मां ममता के कानों तक पहुंच जाते थे. उन्हें मौडर्न लाइफ स्टाइल के नाम पर आंचल का अश्लीलता बिखेरने वाले छोटेछोटे कपड़े पहन कर पार्टियों में शामिल होना और शराब पीना अच्छा नहीं लगता था. इस से उन के परिवार की बदनामी हो रही थी.

आंचल के कारण सिद्धार्थ और ममता को लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. बदनामी की वजह से सिद्धार्थ की शादी भी नहीं हो रही थी. इसे ले कर आंचल और सिद्धार्थ में अकसर विवाद होता रहता था. आंचल और सिद्धार्थ के बीच पिता की संपत्ति का भी विवाद था.

आंचल ने 3 डौगी पाल रखे थे. इन में से एक डौगी का नाम उस ने अपने छोटे भाई सिद्धार्थ उर्फ जिमी के नाम पर जिमी रखा हुआ था. कई बार आंचल अपने भाई को जलील करने के लिए उस के टुकड़ों पर पलने वाला कुत्ता तक कह देती थी. बेटी के रहने सहने के ढंग और भाई के साथ उस के व्यवहार से मां भी परेशान थी.

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गुस्से में उबला खून बना खतरनाक

25 मार्च को आंचल रायपुर से पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. वह अपनी कार से अपने 3 पालतू कुत्ते भी लाई थी. शाम करीब 7 बजे अपनी काले रंग की कार से वह घर पहुंची. थोड़ी देर बाद उस का भाई सिद्धार्थ से पुरानी बातों को ले कर विवाद हो गया.

इस पर आंचल ने भाई से कहा कि तुम मेरी कमाई पर पल रहे हो. तुम्हारी औकात घर के पालतू कुत्ते जिमी जैसी है. यह सुन कर सिद्धार्थ को गुस्सा आ गया. उस ने आंचल को 2 तमाचे जड़ दिए.

चांटे खाने से तिलमिलाई आंचल ने अपने बैग से चाकू निकाला और सिद्धार्थ पर हमला कर दिया. इस से सिद्धार्थ के हाथ पर जख्म हो गया और खून रिसने लगा. खून बहता देख कर सिद्धार्थ अपना आपा खो बैठा.

उस ने आंचल से चाकू छीन लिया और उसी से आंचल के पेट पर कई वार किए. फिर उस ने तब तक उस पर गला दबाए रखा जब तक कि उस के प्राण नहीं निकल गए.

इस घटना के वक्त आंचल की मां ममता घर में ही थी. वह बाथरूम में काम कर रही थी. ममता बाथरूम से कमरे में आई तो आंचल फर्श पर पड़ी थी उस के पेट से खून बह रहा था और सांसें थम चुकी थीं. सिद्धार्थ ने मां को सारी बात बता दी. मां भी आंचल की हरकतों और तानों से त्रस्त थी. इसलिए वह बेटे का साथ देने को तैयार हो गई. आखिर मांबेटे ने मिल कर आंचल का शव ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

आंचल का शव घर में पड़ा छोड़ कर सिद्धार्थ उस का मोबाइल ले कर बाइक से मकई चौक गया. वहां उस ने पान खाया, फिर म्युनिसिपल स्कूल के पास आ कर आंचल का मोबाइल स्विच औफ कर दिया. इस के बाद सिद्धार्थ घर लौट आया.

सिद्धार्थ ने मां की मदद से आंचल की कार की डिक्की में उस की लाश रखी. फिर वह पुलिस और सीसीटीवी कैमरों से बचने के लिए कार ले कर जिला अस्पताल के बगल से जाने वाली पतली गली में हो कर म्युनिसिपल स्कूल के पास पहुंचा.

वहां से वह बस्तर रोड पर निकल गया. गुरुर और कनेरी होते हुए वह गंगरेल नहर पर पहुंच गया. नहर पर पहुंच कर उस ने डिक्की से आंचल की लाश कार से निकाली. नहर के किनारे ले जा कर उस ने लाश को रस्सी के सहारे एक भारी पत्थर से बांधा और लाश नहर में लुढ़का दी.

नहर में आंचल का शव फेंकने के बाद सिद्धार्थ ने उस की घड़ी, मोबाइल फोन, सोने का ब्रेसलेट आदि चीजें वालेदगहन के पास फेंक दीं.

घर वापस लौट कर सिद्धार्थ ने आंचल की कार में लगे खून के धब्बों को साफ किया. इस से पहले मां ने कमरे में फर्श पर फैले खून को साफ कर दिया था. आंचल की लाश ठिकाने लगाने के बाद मांबेटे ने पुलिस को बताने के लिए झूठी कहानी रच ली.

दूसरे दिन नहर में आंचल का शव मिलने और शिनाख्त होने के बाद वे पुलिस को यही बताते रहे कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल जब घर आई तो उस के मोबाइल पर काल आ गई थी. इस के बाद वह काल करने वाले को अपशब्द कहते हुए बाहर चली गई और फिर वापस नहीं लौटी.

पूछताछ के दौरान पुलिस को सिद्धार्थ की कलाई पर कटे का निशान नजर आया. कलाई में कट का निशान लगने के बारे में सिद्घार्थ और उस की मां ने अलगअलग बातें बताईं. इलाज कराने की बात पर भी दोनों ने अलगअलग अस्पतालों के नाम बताए. इस से पुलिस का शक मांबेटे पर गहरा गया.

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छिप न सका अपराध

पुलिस ने आंचल की कार की तलाशी ली तो उस में खून के निशान मिले. इस के अलावा सीसीटीवी कैमरे खंगालने पर भगवती अस्पताल के पास से रात करीब 9 बजे आंचल की कार जाती हुई दिखाई दी. आंचल की कार में सिद्धार्थ के फिंगरप्रिंट भी मिल गए.

कई ठोस सबूत मिलने के बाद पुलिस ने जब सिद्धार्थ को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया. इस के बाद उस ने आंचल की हत्या की सारी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस ने सिद्धार्थ के बयानों के आधार पर उस की मां ममता यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. सिद्धार्थ की निशानदेही पर आंचल की घड़ी, मोबाइल फोन ब्रैसलेट आदि बरामद हो गए. वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से आंचल की हत्या की गई थी.

यह विडंबना रही कि ग्लैमरस जिंदगी जीने की तमन्ना में आधुनिकता का लबादा ओढ़ कर स्वच्छंद उड़ान भरने वाली आंचल न तो अपनी जिंदगी जी सकी और ना ही अपने परिवार को सुकून से रहने दिया. उस के जिंदगी जीने के तौरतरीकों से हंसताखेलता परिवार बिखर गया. आंचल के खून से हाथ रंग कर  भाई और मां जेल पहुंच गए.

बेटे ने मम्मी की बना ही ममी…

भोपाल के बागसेवनिया थाने के अंतर्गत आने वाले विद्यासागर के सेक्टर-सी स्थित फ्लैट रामवीर

सिंह ने 6 लाख रुपए में खरीदा था. रामवीर सिंह शहर के ही नेहरू नगर में निधि नाम का एक रेस्टोरेंट चलाते थे. उन के रेस्टोरेंट को इस इलाके में हर कोई जानता है. वजह यह भी है कि उन का रेस्टोरेंट अच्छाखासा चलता था. मूलत: ग्वालियर के रहने वाले रामवीर सिंह सालों पहले रोजगार की तलाश में भोपाल आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे.

रेस्टोरेंट चल निकला और कुछ पैसा भी इकट्ठा हो गया तो उन्होंने उस पैसे को कहीं लगा देने की बात सोची. रामवीर के रेस्टोरेंट पर कभीकभार आने वाला एक ग्राहक अमित श्रीवास्तव भी था. अमित पर उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह आमतौर पर शांत और गुमसुम सा रहता था.

उस की बोलचाल में रामवीर को ग्वालियर, चंबल का लहजा लगा तो उन के मन में उस के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई. दोनों में बातचीत होने लगी तो रामवीर को पता चला कि अमित ग्वालियर का ही रहने वाला है और विद्यानगर में अपनी बूढ़ी मां विमला देवी के साथ रहता है.

एक दिन यूं ही उन के बीच हुई बातों में रामवीर को पता चला कि अमित अपना फ्लैट बेचना चाहता है. यह बात रामवीर को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि अपने रेस्टोरेंट की वजह से वह उसी इलाके में रहने के लिए फ्लैट खरीदना चाहते थे.

दोनों के बीच बात चली तो सौदा भी पट गया. 6 लाख रुपए में एक बड़े रूम, किचन और बालकनी वाला फ्लैट रामवीर को घाटे का सौदा नहीं लगा. लिहाजा उन्होंने अमित से बात पक्की कर ली.

जून 2018 में रामवीर ने फ्लैट देख कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली. इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इस संभ्रांत कायस्थ परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. फ्लैट विमला के नाम पर था, जिसे बेचने की सहमति उन्होंने रामवीर को दे दी थी. अमित पहले कहीं नौकरी करता था जो छूट गई थी. उस के घर में उस की बूढ़ी लकवाग्रस्त मां विमला श्रीवास्तव ही थीं, जिन की देखरेख की जिम्मेदारी अमित पर थी.

रजिस्ट्री के वक्त रामवीर ने अमित को ढाई लाख रुपए दिए थे और बाकी रकम भोपाल विकास प्राधिकरण यानी बीडीए में जमा कर दी थी, क्योंकि फ्लैट बीडीए का था. इस तरह अमित का हिसाबकिताब बीडीए से चुकता हो गया तो कागजों में फ्लैट पर उन का मालिकाना हक हो गया.

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जैसा सोचा था, अमित वैसा नहीं निकला

 

रजिस्ट्री के पहले ही अमित ने उन से कहा था कि वे मकान खाली करवाने की बाबत जल्दबाजी न करें, कहीं और इंतजाम होते ही वह उस में शिफ्ट हो जाएगा और फ्लैट की चाबी उन्हें सौंप देगा.

चूंकि अमित देखने में उन्हें ठीकठाक और शरीफ लगा था, इसलिए उस की बूढ़ी मां का लिहाज कर के इंसानियत के नाते उन्होंने अमित को कुछ मोहलत दे दी. वैसे आजकल खरीदार रजिस्ट्री तभी करवाता है, जब उसे मकान, दुकान या फ्लैट खाली मिलता है.

उस वक्त रामवीर को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मानवता उन्हें कितनी महंगी पड़ने वाली है. या कहें उन्होंने फ्लैट नहीं बल्कि एक आफत मोल ले ली है.

दरअसल, अमित उतना सीधासादा या भोला नहीं था, जितना कि वह देखने में लगता था. चूंकि सौदा बिना किसी अड़चन और दलाल के हो गया था, इसलिए उन्होंने किसी बात पर गौर नहीं किया, सिवाय इस के कि अब रजिस्ट्री तो उन के नाम हो ही चुकी है. जब अमित अपना कोई इंतजाम कर चाबी उन्हें सौंप देगा तो मकान की साफसफाई और रंगाईपुताई करा कर वे उस में रहने लगेंगे.

रजिस्ट्री के बाद भी अकसर अमित उन के रेस्टोरेंट पर आता रहता था और उन्हें आश्वस्त करता रहा था कि वह मकान ढूंढ रहा है और ढंग का मकान मिलते ही फ्लैट छोड़ देगा. जब वह कुछ दिन नहीं आता तो रामवीर उस से मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे.

जून से ले कर अगस्त, 2018 तक तो अमित उन के संपर्क में रहा, लेकिन फिर उस का फोन एकाएक बंद जाने लगा. इस से रामवीर थोड़ा घबराए, क्योंकि अमित ने उन्हें फ्लैट खाली करने की सूचना नहीं दी थी. जब उस का फोन लगातार बंद जाने लगा तो वे फ्लैट पर पहुंचे, लेकिन वहां हर बार उन का स्वागत लटकते ताले से होता.

अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ. कोई भी यह नहीं बता पाया कि अमित और विमला कहां गए. अलबत्ता रामवीर को यह अंदाजा जरूर लग गया था कि अमित ने वादे के मुताबिक फ्लैट खाली नहीं किया है और उस का सामान भी वहीं रखा है.

कानूनन फ्लैट अब उन का हो चुका था, लेकिन ताला तोड़ कर उस में घुसना उन्हें ठीक नहीं लगा, इसलिए वे इंतजार करते रहे कि आज नहीं तो कल अमित उन से संपर्क करेगा. आखिर कोई इतना सामान तो छोड़ कर जाता नहीं. जब भी वह सामान लेने आएगा तब वे चाबी उस से ले लेंगे. यह सोचसोच कर वे खुद को तसल्ली देते रहे.

जब इंतजार और बेचैनी सब्र की हदें तोड़ने लगे और जनवरी तक अमित का कोई पता नहीं चला तो दिल कड़ा कर रामवीर ने फ्लैट का ताला तोड़ कर उस पर अपना हक लेने का फैसला कर लिया. आखिर उन की खूनपसीने की गाड़ी कमाई का 6 लाख रुपया उस में लगा था.

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दीवान में निकली लाश

रविवार 3 फरवरी को रामवीर ने डुप्लीकेट चाबी से फ्लैट का ताला खोला और साफसफाई की जिम्मेदारी अपने बेटे धर्मेंद्र और 2 मजदूरों को दे दी. इन लोगों ने जब फ्लैट में पांव रखा तो उस में चारों तरफ से बदबू आ रही थी. चूंकि 8-9 महीने से मकान बंद पड़ा था, इसलिए बदबू आना स्वाभाविक बात थी. बदबू से ध्यान हटा कर उन्होंने सफाई शुरू कर दी. चारों तरफ कचरा फैला था और सामान भी अस्तव्यस्त पड़ा था.

मजदूरों ने कमरे में रखे एक दीवान को बाहर निकालने की कोशिश की तो भारी होने की वजह से वह हिला तक नहीं. इस पर धर्मेंद्र ने मजदूरों से कहा कि पहले प्लाई हटा लो फिर दीवान बाहर रख देना. जब मजदूरों ने दीवान की प्लाई हटाई तो तेज बदबू का ऐसा झोंका आया कि वे लोग बेहोश होतेहोते बचे. उन्हें लगा कि शायद कोई चूहा दीवान के अंदर सड़ रहा है, इसलिए इतनी बदबू आ रही है.

चूहा ढूंढने के लिए मजदूरों ने दीवान में ठुंसे कपड़े हटाने शुरू किए तो कुछ साडि़यां कंबल और एकएक कर 11 रजाइयां निकलीं. आखिरी कपड़ा हटाते ही तीनों की चीख निकल गई. दीवान के अंदर चूहे की नहीं बल्कि किसी इंसान की लाश थी.

खुद को जैसेतैसे संभाल कर मजदूर आए और पुलिस को खबर दी. उस वक्त दोपहर के 2 बज चुके थे. बागसेवनिया थाने के पुलिसकर्मियों के अलावा मिसरोद थाने के एसडीपीओ दिशेष अग्रवाल भी सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की तो कई रहस्यमय और चौंका देने वाली बातें सामने आईं. फ्लैट विमला श्रीवास्तव के नाम था जो कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में नौकरी करती थीं. पति ब्रजमोहन श्रीवास्तव की मौत के बाद उन्हें उन के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. परिवहन निगम घाटे की वजह से बंद हो गया था. सभी कर्मचारियों की तरह विमला को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

विमला इस फ्लैट में साल 2003 से अपने 32 वर्षीय बेटे अमित के साथ रह रही थीं. 60 वर्षीय विमला धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. अपार्टमेंट में हर कोई उन्हें जानता था. वे अकसर शाम को 4 बजे के लगभग कैंपस में बने मंदिर में पूजापाठ करने जाती थीं और रास्ते में जो भी मिलता था, उसे राधेराधे कहना नहीं भूलती थीं. मंदिर में बैठ कर वह सुरीली आवाज में भजन गाती थीं तो अपार्टमेंट के लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे.

अमित हो गया मनोरोगी

कभीकभी भगवान की मूर्ति के सामने बैठेबैठे वे रोने भी लगती थीं. विमला भगवान से अकसर अपने बेटे अमित के लिए सद्बुद्धि मांगा करती थीं और कभीकभी उन के मन की बात होंठों तक इस तरह आ जाती थी कि आसपास के लोग भी उसे सुन लेते थे. लेकिन भगवान कहीं होता तो उन की सुनता और अमित को रास्ते पर लाता.

श्रीवास्तव परिवार का मिलनाजुलना किसी से इतना नहीं था कि उसे पारिवारिक संबंधों के दायरे में कहा जा सके. विमला तो फिर भी कभीकभार अड़ोसीपड़ोसी से बतिया लेती थीं, लेकिन अमित किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. कुछ दिन पहले तक वह कहीं नौकरी पर जाता था, लेकिन कुछ दिनों से नौकरी पर नहीं जा रहा था. घर पर भी वह कम ही रहता था.

पड़ोसियों की मानें तो अमित विक्षिप्त यानी साइको था. उस की हरकतें अजीबोगरीब और असामान्य थीं. वह एक खास तरह की पिनक और सनक में रहता और जीता था, जो पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. विमला को कुछ महीनों पहले लकवा मार गया था, जिस से वह चलनेफिरने से भी मोहताज हो गई थीं. उन्हें किडनी की शिकायत भी रहने लगी थी. अब वह पहले की तरह न मंदिर जाती थीं और न ही किसी को उन के भजन सुनने को मिलते थे. चूंकि अमित किसी से संबंध नहीं रखना चाहता था, इसलिए अपार्टमेंट के लोग भी फटे में टांग अड़ाने से हिचकिचाते थे.

पर यह बात हर किसी को अखरती थी कि कई बार वह अपनी मां को मारनेपीटने लगता था. ये आवाजें अब उन के फ्लैट से बाहर आती थीं तो लोग कलयुग है कह कर कान ढंकने की नाकाम कोशिश करने लगते थे. कान ढंकने पर एक मर्तबा आवाज न भी आए, लेकिन आंखें लोग बंद नहीं कर पाते थे. जब अमित विमला को मारतापीटता गैलरी में ला पटकता था तो यह देख कर लोगों का कलेजा फटने लगता था.

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राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया अमित

पूत कपूत बन चला था, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता था तो यह उन की किसी के मामले में दखल देने की आदत कम बल्कि बुजदिली ज्यादा थी. जवान हट्टाकट्टा बेटा उन के सामने ही बूढ़ी अपाहिज मां से मारपीट करता था और लोग तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं करते थे. निस्संदेह ये लोग सभ्य समाज का हिस्सा नहीं थे. हैवानियत और राक्षसी प्रवृत्ति वास्तव में क्या होती है, यह अमित की हरकतों से समझा जा सकता था.

पड़ोसी तो छोडि़ए, अमित ने नातेरिश्तेदारों से भी सबंध नहीं रखे थे. लाश मिलने के बाद यह बात तो एक कागज के जरिए पता चली कि विमला के ससुराल पक्ष के रिश्तेदार ग्वालियर में रहते हैं. बहरहाल, कई दिनों तक जब विमला नहीं दिखीं तो उन की कुछ सहेलियों ने उन की खोजखबर लेने की कोशिश की.

अपार्टमेंट की कुछ बुजुर्ग महिलाएं मई के महीने में उन से मिलने पहुंचीं तो अमित ने उन्हें बेइज्जत किया और दुत्कार कर भगा दिया था. उस दौरान वह अपनी सोती हुई मां का चेहरा कपड़े से ढक कर कह रहा था सो जा मां सो जा…

पुलिस ने जब फ्लैट की तलाशी ली तो उस के हाथ कई अहम सुराग लगे. लेकिन पहली चुनौती लाश की शिनाख्त की थी. लाश बिलकुल सड़ीगली नहीं थी, क्योंकि उसे रजाइयों, कंबल और साडि़यों से ढक कर रखा गया था, जिस से उस का संपर्क हवा से नहीं हो पाया था.

ममी के रूप में मिली लाश

ममी जैसी हालत वाली यह लाश विमला की ही है, इस के लिए पोस्टमार्टम जरूरी था जो एम्स भोपाल में ही कराया गया. पुलिस वालों का शुरुआती अंदाजा यही था कि लाश किसी महिला की ही होनी चाहिए, लेकिन वे दावे से यह बात नहीं कर पा रहे थे.

लाश निकालते वक्त नजारा बहुत वीभत्स था. लाश के पैर दीमक ने कुतर दिए थे और अस्थिपंजर पर मांस बिलकुल भी नहीं था. हड्डियों के ढांचे और ऊपरी परत को देख कर यह नहीं लग रहा था कि उस पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा. किसी तरह के चोट के निशान भी लाश पर नहीं थे.

पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो उसे विमला और अमित के आधार कार्ड के अलावा बैंक पासबुक, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन के कागजात और बिजली के बिल के अलावा अमित की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी भोपाल की एक मार्कशीट भी मिली जोकि कटीफटी थी.

सब से हैरान कर देने वाली चीज भांग की गोलियों के रैपर थे, जिन से लगता था कि अमित भांग के नशे का आदी था. अमित की शुरुआती पढ़ाई भोपाल के ही सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी.

विमला की एक सहेली जया एंटनी की मानें तो अमित निहायत ही वाहियात लड़का था, जो मैलेकुचैले कपड़े पहने रहता था और कई दिनों तक नहाता भी नहीं था. खुद जया ने जब कई दिनों तक विमला को नहीं देखा था तो उन्होंने घटना के कोई 3 महीने पहले पुलिस को खबर की थी. उन्हें शक था कि कहीं विमला किसी अनहोनी का शिकार न हो गई हो. लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. जया ने यह शिकायत कब और किस से की थी, इस का विवरण वे नहीं दे पाईं.

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जैसे ही ममी मिलने की खबर भोपाल से होती हुई देश भर में फैली तो सुनने वाले हैरान रह गए. हर किसी ने यही अंदाजा लगाया कि अमित ने ही अपनी मां विमला की हत्या की होगी. इस के पीछे लोगों की अपनी दलीलें भी थीं. कइयों को भोपाल का उदयन भी याद हो आया, जिस ने रायपुर में अपने मांबाप की हत्या कर उन की कब्र बना कर दफना दिया था. उदयन अब पश्चिम बंगाल की एक जेल में सजा काट रहा है.

विमला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ कि लाश महिला की ही है और उस की हत्या करीब 3 महीने पहले की गई  थी. एम्स के 3 डाक्टरों की टीम ने मृतका की उम्र 50 साल के लगभग आंकी. पोस्टमार्टम के बाद लाश को विमला की ही मान कर उसे मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस की एक टीम अब तक ग्वलियर भी रवाना हो चुकी थी, जिस से विमला के परिजन अगर कोई मिलें तो उन्हें खबर कर दें ताकि वे अंतिम संस्कार कर दें. साथ ही अमित का सुराग ढूंढना भी जरूरी था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लाश के किसी अंग की हड्डी टूटी नहीं पाई गई. चूंकि लाश काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए डाक्टर मौत की स्पष्ट वजह नहीं बता पाए.

अमित का नहीं लगा सुराग

पुलिस ने तेजी से अमित की खोजबीन शुरू कर दी, जिस से हत्या या मौत पर से परदा हट सके. लेकिन वह ऐसा गायब हुआ था जैसे गधे के सिर से सींग. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित का कोई अतापता नहीं चला था. पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई, पर उस से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा.

5 फरवरी को विमला के जेठ व भतीजा सुरेंद्र श्रीवास्तव ग्वालियर से भोपाल आए लेकिन वे भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. सुरेंद्र का कहना था कि पिछले 25 सालों से विमला या अमित ने उन से कोई संपर्क नहीं रखा है.

उन का मायका भिंड जिले के मडगांव में है लेकिन अमित अपने मामा पक्ष से भी संबंध या संपर्क नहीं रखता था. विमला की 2 बेटियां भी थीं, जिन की काफी पहले मौत हो चुकी थी. सुरेंद्र ने भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर विमला का अंतिम संस्कार किया.

मां की हत्या की हैरान कर देने वाली गुत्थी अब तभी सुलझेगी जब अमित का कुछ पता चलेगा. यह अंदाजा या शक हालांकि बेहद पुख्ता है कि उसी ने ही विमला की हत्या की होगी. लगता ऐसा है कि नशे का आदी हो गया अमित अपनी बीमार और अपाहिज मां के प्रति अवसाद के चलते क्रूर हो गया होगा और उन से छुटकारा पाने की गरज से उस ने इसी सनक में हत्या कर दी होगी.

चूंकि भरेपूरे घने इलाके से लाश ले जा कर कहीं ठिकाने लगाना आसान काम नहीं था, इसलिए अपना जुर्म छिपाने के लिए उस ने लाश को कपड़ों से ढक दिया और घर से भाग गया. लेकिन कहां गया और जिंदा है भी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम.

पुलिस की इस थ्योरी में दम है कि अमित ने जातेजाते एक मोमबत्ती टीवी के ऊपर जला कर रख दी थी, जिस से घर ही जल जाए और लोग इसे एक हादसा समझें. लेकिन मोमबत्ती से टीवी आधा ही जल पाया और वह आग भी नहीं पकड़ पाया.

बढ़ते शहरीकरण, एकल होते परिवार, बेरोजगारी के अलावा हत्या का यह मामला एक युवा के निकम्मेपन और अहसान फरामोशी का ही जीताजागता उदाहरण है, जो इस कहावत को सच साबित करता प्रतीत होता है कि एक मां कई बच्चों को पाल सकती है लेकिन कई संतानें मिल कर एक मां की देखभाल भी नहीं कर सकतीं.

 

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