लेखक- कुंतल सिंघवी

हमारे साढ़े 6 वर्षीय बेटे को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है. यद्यपि इस खेल के संबंध में उन का ज्ञान इतना तो नहीं कि किसी खेल संबंधी प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता में भाग ले सकें, पर फिर भी उन्हें खिलाडि़यों की पहचान हम से अधिक है और क्रिकेट की फील्ड की रचना कैसे की जाती है, इस बारे में भी वह हम से ज्यादा ही जानते हैं.

जब कभी टेस्ट मैच या एकदिवसीय मैच होता है तो वह बराबर टीवी के सामने बैठे रहते हैं. यदि कभी हमारा बाहर जाने का कार्यक्रम बनता है तो वह तड़ से कह देते हैं, ‘‘मां, मैं क्रिकेट मैच नहीं देख पाऊंगा, इसलिए मैं घर पर ही रहूंगा.’’ इस खेल के प्रति उन की रुचि व लगन पढ़ाई से अधिक है.

उन को इस खेल के प्रति रुचि अचानक ही नहीं हुई बल्कि जब वह मात्र 3 साल के थे तब से ही स्केल और पिंगपांग बाल को वह क्रिकेट की गेंद व बल्ला समझ कर खेला करते थे. अपनी तीसरी वर्षगांठ पर उन्होंने हम से बल्ला व गेंद उपहारस्वरूप झड़वा लिया. इस खेल में विकेट और पैड भी जरूरी होते हैं. इस की जानकारी उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच हुए मैच के दौरान हुई, जिस का सीधा प्रसारण वह टीवी पर देखा करते थे.

उन्होंने खाना छोड़ा होगा, पीना छोड़ा होगा, दोपहर में पढ़ना और सोना भी छोड़ा होगा, पर मैच देखना कभी छोड़ा हो, ऐसा हमें याद नहीं. हमारे देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कौन है वह इस बात को भले ही न जानें, पर कपिलदेव, सुनील गावसकर, लायड, जहीर अब्बास को वह केवल जानते ही नहीं, उन के हर अंदाज से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं.

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