चार बीवियों का पति : भाग 2

रजनी के पास अपने पति की हत्या कराने का आधार तो था, लेकिन बिना सबूत के उस पर हाथ डालना उचित नहीं था. इसलिए पुलिस ने रजनी का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की डिटेल्स निकलवा ली. पुलिस टीम ने जांच को आगे बढाया तो एक और आशंका हुई कि हो ना हो गांव के ही किसी शख्स ने हत्यारों को नीटू के गांव में होने की सूचना दी हो.

क्योंकि आमतौर पर नीटू गांव में कम ही आता था और अगर आता भी था तो केवल एक रात के लिए. एक आंशका ये भी थी कि संभवत: नीटू की हत्या के तार दिल्ली से जुड़े हों. दिल्ली में या तो उस की किसी से कोई दुश्मनी रही होगी या लेनदेन का विवाद.

इसलिए पुलिस की एक टीम ने परिवार वालों से जानकारी ले कर दिल्ली स्थित नीटू के 2 मकानों पर दबिश दी तो पता चला विकास उर्फ नीटू ने एक नहीं बल्कि 4 शादियां की थीं.

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दिल्ली में नीटू के घर में रहने वाले किराएदारों और उस की प्लेसमेंट एजेंसी में काम करने वाले कर्मचारियों से पता चला कि नीटू रंगीनमिजाज इंसान था और अपनी अय्याशियों के कारण महिलाओं से एक के बाद एक शादी करता रहा था.

लेकिन पुलिस को किसी से भी नीटू की अन्य पत्नियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी. इसी बीच अचानक मामले में एक नया मोड़ आया. 22 मई को 2 महिलाएं बड़ौत थाने पहुंच कर जांच अधिकारी अजय शर्मा से मिलीं. पता चला कि उन में से एक महिला विकास की दूसरे नंबर की पत्नी शिखा थी और दूसरी कविता जो उस की वर्तमान व चौथे नंबर की पत्नी थी.

उन दोनों ने बताया कि नीटू की पहली पत्नी रजनी ने 2018 में भी एक बार नीटू को मरवाने की साजिश रची थी. ये बात खुद नीटू ने उन से कही थी. शिखा और कविता से जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रजनी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की पड़ताल के बाद पता चला कि जिस रात नीटू की हत्या की गई उसी रात रजनी के मोबाइल पर 9 बजे से 10 बजे के बीच एक ही नंबर से 2 काल आई थीं. जब इन काल्स के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि जिस नंबर से काल आईं वह शाहपुर बडौली में रहने वाले नीटू के दोस्त और पुराने पार्टनर सुधीर उर्फ लीलू का था.

आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि इतनी रात में लीलू ने नीटू की पत्नी को 2 बार फोन किए. कहीं ऐसा तो नहीं कि लीलू ही वो शख्स हो, जिस ने कातिलों को नीटू के उस रात गांव में होने की जानकारी दी हो.

संदेह के घेरे में रजनी और लीलू

पुलिस को जैसे ही लीलू पर शक हुआ उस के मोबाइल की कुंडली खंगाली गई. पता चला उस रात कत्ल से पहले लीलू की 2 अंजान नंबरों पर भी बात हुई थी. वे दोनों नंबर गांव के किसी व्यक्ति के नहीं थे, लेकिन दोनों नंबरों की लोकेशन गांव में ही थी.

गुत्थियां काफी उलझी हुई थीं, जिन्हें सुलझाने के लिए पुलिस ने सुधीर व नीटू की पहली पत्नी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने जब उन के सामने मोबाइल फोन की डिटेल्स सामने रख कर पूछताछ शुरू की तो बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. नीटू हत्याकांड की गुत्थी खुद ब खुद सुलझती चली गई. जिस के बाद पुलिस ने मुखबिरों का जाल बिछा कर 25 जून को बावली गांव की पट्टी देशू निवासी रोहित उर्फ पुष्पेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. पता चला उसी ने बावली गांव के रहने वाले अपने 2 साथियों सचिन और रवि उर्फ दीवाना के साथ मिल कर नीटू की गोली मार कर हत्या की थी.

पुलिस ने जब रजनी, सुधीर उर्फ लीलू तथा रोहित से पूछताछ की तो नीटू की हत्या के पीछे उस के रिश्तों की उलझन की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

विकास ने जिन दिनों दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी खोली थी, वह उन दिनों दिल्ली के निहाल विहार में रजनी के घर में किराए का कमरा ले कर रहता था. 2009 में दोनों की यहीं पर जानपहचान हुई थी.

नीटू अय्याश रंगीनमिजाज जवान था, वह अकेला रहता था और उसे एक औरत के जिस्म की जरूरत थी. धीरेधीरे उस ने रजनी से दोस्ती कर ली. रजनी को भी नीटू अच्छा लगा. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों के बीच रिश्ते भी बन गए.

लेकिन कुछ समय बाद जब रजनी के परिवार वालों को दोनों के रिश्तों की भनक लगी तो उन्होंने रजनी से शादी करने का दबाव डाला. फलस्वरूप नीटू को रजनी से शादी करनी पड़ी. इस के बाद नीटू ने रजनी के परिवार वाला मकान छोड़ दिया.

चूंकि इस दौरान उस का कामधंधा काफी जम गया था और कमाई अच्छी हो रही थी, इसलिए उस ने नांगलोई में एक प्लौट ले कर उस पर मकान बनवा लिया था. रजनी को ले कर नीटू उसी मकान में रहने लगा.

दोनों की जिंदगी ठीक गुजर रही थी. रजनी और नीटू के 2 बेटे हुए . लेकिन रजनी नीटू की एक बुरी आदत से अंजान थी. प्लेसमेंट के धंधे से होने वाली अच्छीखासी कमाई थी. जब पैसा आया तो अय्याशी का शौक लग गया. इसी के चलते प्लेसमेंट औफिस में धंधा करने वाली लड़कियों को बुला कर अय्याशी करने लगा. जब इंसान के पास इफरात में दौलत आती है तो कई को शराब की लत लग जाती है. औफिस में पीना पिलाना नीटू की रोजमर्रा की आदत बन गई. रजनी को नीटू की अय्याशियों का पता तब चला, जब नीटू के गांव का ही रहने वाला सुधीर उर्फ लीलू नीटू के साथ धंधे में उस का पार्टनर बना. रजनी बच्चों के साथ अक्सर नीटू के गांव भी जाती थी. गांव के दोस्त रजनी को नीटू की पत्नी होने के कारण भाभी कह कर बुलाते थे.

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नीटू ने लीलू को अपने ही घर में रहने के लिए एक कमरा दे दिया था. इसीलिए घर में रहतेरहते लीलू को रजनी से काफी लगाव हो गया था. उसे यह देखकर बुरा लगता कि 2 बच्चों का पिता बन जाने और घर में अच्छीखासी पत्नी होने के बावजूद नीटू अपनी कमाई बाजारू औरतों पर लुटाता है.

रजनी से हमदर्दी के कारण एक दिन लीलू ने रजनी को नीटू की अय्याशियों के बारे में बता दिया. नीटू की बेवफाई और अय्याशियों के बारे में पता चलने के बाद रजनी ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी और एकदो बार उसे औफिस में अय्याशी करते पकड़ भी लिया. इस के बाद रजनी व नीटू में अक्सर झगड़ा होने लगा.

नीटू की अय्याशी अब घर में कलह का कारण बन गई. इस दौरान नीटू ने इफरात में होने वाली आमदनी से निहाल विहार में ही एक और प्लौट खरीद कर उस पर भी एक मकान बना लिया था. उस ने उसी मकान को अपनी अय्याशी का नया अड्डा बना लिया. 2 बच्चों को जन्म देने के बाद रजनी का शरीर ढलने लगा था. उस में नीटू को अब वो आकर्षण नहीं दिखता था जो उसे रजनी की तरफ खींचता था.

बात बढ़ती गई

नीटू की अय्याशी की लत के कारण रजनी से उस की खटपट व झगड़े इस कदर बढ़ गए कि एक दिन रजनी दोनों बच्चों को छोड़ कर अपने मायके चली गई. दरअसल उन के बीच हुए इस अलगाव की वजह थी शिखा नाम की नीटू की प्रेमिका जिस के बारे में उसे पता चला था कि नीटू उस से शादी करने वाला है.

जब रजनी उसे छोड़ कर अपने मायके चली गई तो नीटू का रास्ता साफ हो गया, लिहाजा उस ने शिखा से शादी कर ली. शिखा के परिवार वालों ने नीटू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. साथ ही उन्होंने अपनी तहरीर में आरोप लगाया कि उन की बेटी नाबालिग है. लेकिन शिखा ने अदालत में इस बात का प्रमाण दे दिया कि वह बालिग है.

इस पर अदालत ने उसे बालिग मान कर न सिर्फ नीटू के खिलाफ दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया बल्कि उस की शादी को भी वैध करार दिया.

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इस दौरान नीटू के दोनों बच्चे गांव में उस के मातापिता के पास रहने लगे थे. तब तक नीटू ने परिवार के अलावा गांव वालों को इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि उस ने रजनी को छोड़ कर दूसरी लड़की से शादी कर ली है. चूंकि रजनी उस के बच्चों की मां थी इसलिए नीटू कभीकभी उसे बच्चों से मिलाने के लिए अपने साथ गांव ले जाता था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

चार बीवियों का पति : भाग 1

दिल्ली से सटे बागपत जिले में एक गांव है शाहपुर बडौली. विकास तोमर उर्फ नीटू (32) यहीं का रहने वाला था. उस के पिता किसान थे. 5 भाइयों में नीटू चौथे नंबर का था. 3 भाई उस से बड़े थे. जबकि एक छोटा था. नीटू ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. इंटर तक पढ़ाई करने के बाद वह दिल्ली चला आया था. करीब 12 साल पहले वह जब दिल्ली आया था तो उस के पास 2 जोड़ी कपड़े और पांव में एक जोड़ी जूते थे.

नीटू ने एक प्लेसमेंट एजेंसी की मदद से एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. लेकिन जब उसे पहले महीने की सैलरी मिली तो वह आधी थी. पता चला आधी सैलरी कमीशन के रूप में प्लेसमेंट एजेंसी ने अपने पास रख ली.

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नीटू ने उस फैक्ट्री में 5 महीने तक नौकरी की. लेकिन हर महीने सैलरी में से एक फिक्स रकम प्लेसमेंट एजेंसी कमीशन के रूप में काट लेती थी. अगर नीटू विरोध करता तो प्लेसमेंट एजेंसी उसे नौकरी से निकालने की धमकी देती.

नीटू को लगा कि नौकरी से तो अच्छा है कि प्लेसमेंट एजेंसी खोल लो और दूसरों की कमाई पर खुद ऐश करो.

लेकिन प्लेसमेंट एजेंसी यानी कि लोगों को नौकरी दिलाने का कारोबार चलता कैसे है. इस सवाल का जवाब पाने के लिए नीटू ने नांगलोई की एक प्लेसमेंट एजेंसी में करीब 6 महीने तक पहले औफिस बौय फिर सुपरवाइजर की नौकरी की.

नौकरी करना तो एक बहाना था ताकि गुजरबसर और खानेखर्चे का इंतजाम होता रहे. असल बात तो यह थी कि नीटू प्लेसमेंट एजेंसी के धंधे के गुर सीखना चाहता था. आखिरकार 7-8 महीने की नौकरी के दौरान नीटू ने प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के गुर सीख लिए.

इस के बाद उस ने अपने परिवार से आर्थिक मदद ली और नांगलोई के निहाल विहार में ही एक दुकान ले कर प्लेसमेंट एजेंसी का दफ्तर खोल लिया. पास के ही एक मकान में उस ने रहने के लिए कमरा भी ले लिया.

प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के लिए जरूरी लाइसैंस तथा कानूनी औपचारिकता भी उस ने पूरी कर लीं. संयोग से उस का धंधा चल निकला. देखतेदेखते नीटू लाखों में खेलने लगा. लेकिन दिक्कत यह थी कि वह अकेला पड़ जाता था. उस के पास कोई भरोसे का आदमी नहीं था.

लेकिन जल्द ही उस की ये परेशानी भी दूर हो गई. उसी के गांव में रहने वाला सुधीर जिसे गांव में सब प्यार से लीलू कहते थे, उस के साथ काम करने के लिए तैयार हो गया.

नीटू ने लीलू को अपने साथ रख लिया और तय किया कि वह उसे सैलरी नहीं देगा बल्कि जो भी कमाई होगी, उस में से एक चौथाई का हिस्सा उसे मिलेगा. इस के बाद तो कुदरत ने नीटू का ऐसा हाथ पकड़ा कि देखते ही देखते उस का धंधा तेजी से चल निकला और उस के ऊपर पैसे की बारिश होने लगी.

अचानक हुई हत्या

नीटू के एक बड़े भाई की पिछले साल एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. 22 जून, 2020 को उस की बरसी थी. भाई की बरसी पर घर में होने वाले हवनपूजा और दूसरे रीतिरिवाजों को पूरा करने के लिए नीटू गांव में अपने परिवार के पास आया हुआ था. वैसे भी कोरोना वायरस की वजह से लगे लौकडाउन के बाद कामधंधे ठप पड़े थे. इसलिए नीटू ने सोचा कि जब पूजापाठ के लिए गांव आया हूं तो क्यों न घर में छोटेमोटे बिगड़े पड़े कामों को सुधार लिया जाए.

घर से थोड़ी दूरी पर बने घेर (पशुओं का बाड़ा और बैठक) में 19 जून को नीटू ने बोरिंग कराने का काम शुरू कराया था. सुबह से शाम हो गई थी. काम अभी भी बाकी था. रात के करीब साढ़े 8 बज चुके थे. नीटू का छोटा भाई बबलू और बड़ा भाई अजीत घेर में उस के पास बैठे गपशप कर रहे थे. तभी अचानक एक पल्सर बाइक तेजी से घेर के बाहर आकर रुकी.

बाइक पर 3 लोग सवार थे, जिन में से 2 गाड़ी से उतरे और घेर के अंदर आ गए. तीनों भाई दरवाजे से 8-10 कदम की दूरी पर पड़ी अलगअलग चारपाइयों पर बैठे थे. उन्होंने सोचा बाइक से उतरे लड़के शायद कुछ पूछना चाहते होंगे.

दोनों लड़कों ने कुर्ता और जींस पहन रखी थी. मुंह पर मास्क की तरह गमछे बांधे हुए थे. क्षण भर में दोनों लड़के नीटू की चारपाई के पास पहुंचे. इस से पहले कि नीटू या उस के भाई कुछ पूछते अचानक दोनों युवकों ने कुर्ते के नीचे हाथ डाल कर तमंचे निकाले और एक के बाद एक 2 गोलियां चलाईं, जिस में से एक गोली नीटू की छाती में लगी दूसरी उस की कनपटी पर. गोली चलते ही दोनों भाइयों के पांव तले की जमीन खिसक गई. जान बचाने के लिए वे चीखते हुए घेर के भीतर की तरफ भागे.

मुश्किल से 3 या 4 मिनट लगे होंगे. जब हमलावरों को इत्मीनान हो गया कि नीटू की मौत हो चुकी है तो वे जिस बाइक से आए थे, दौड़ते हुए उसी पर जा बैठे और आखों से ओझल हो गए.

गोली चलने और चीखपुकार सुन कर गांव के लोग एकत्र हो गए. सारा माजरा पता चला तो नीटू के परिवार के लोग भी घटनास्थल पर पहुंच गए. देखते देखते पूरा गांव नीटू के घेर के अहाते के बाहर एकत्र हो गया.

गांव के लोग इस बात पर हैरान थे कि हमलावरों ने 3 भाइयों में से केवल नीटू को ही गोलियों का निशाना क्यों बनाया. नीटू तो वैसे भी गांव में नहीं रहता था फिर उस की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि उस की हत्या कर दी गई.

इस दौरान गांव के प्रधान ने इस वारदात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी. वहां से यह सूचना बड़ौत थाने की पुलिस को दी गई.

लौकडाउन का दौर चल रहा था. लिहाजा पुलिस भी लौकडाउन का पालन कराने के लिए सड़कों पर ही थी. बड़ौत थानाप्रभारी अजय शर्मा को जैसे ही शाहपुर बडौली में एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या करने की सूचना मिली तो वह एसएसआई धीरेंद्र सिंह तथा अपनी पुलिस टीम के साथ बडौली गांव में पहुंच गए.

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सूचना मिलने के करीब एक घंटे के भीतर बड़ौत इलाके के सीओ आलोक सिंह, एडीशनल एसपी अनित कुमार तथा एसपी अजय कुमार सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. चश्मदीद के तौर पर 2 ही लोग थे नीटू के भाई अजीत व बबलू. दोनों न अक्षरश: पुलिस के सामने वह घटनाक्रम बयान कर दिया जो हुआ था. लेकिन वारदात को किस ने अंजाम दिया, नीटू की हत्या क्यों हुई, क्या उस की किसी से दुश्मनी थी. कातिल कौन हो सकता है, जैसे पुलिस के सवालों के जवाब परिवार का कोई भी शख्स नहीं दे पाया. वजह यह कि नीटू की हत्या खुद उन के लिए भी एक पहेली की तरह ही थी.

हत्या का कारण पता नहीं चला

बहरहाल पुलिस को तत्काल नीटू की हत्या के मामले में कोई अहम जानकारी नहीं मिल सकी. इसलिए रात में ही शव को पोस्टमार्टम के लिए बागपत के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया. नीटू की हत्या का मामला बड़ौत कोतवाली में भादंसं की धारा 302, 452, 506 और दफा 34 के तहत दर्ज कर लिया गया.

एसपी अजय कुमार ने एएसपी अनित कुमार सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित करने का आदेश दिया. सीओ आलोक सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में बड़ौत थानाप्रभारी अजय शर्मा के अलावा एसएसआई धीरेंद्र सिंह, कांस्टेबल विशाल कुमार, हरीश, देवेश कसाना, रोहित भाटी, अजीत के अलावा महिला उपनिरीक्षक साक्षी सिंह तथा महिला कांस्टेबल तनु को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने गांव में कुछ मुखबिर भी तैनात कर दिए ताकि लोगों के बीच चल रही चर्चाओं की जानकारी मिल सके.

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शुरुआती जांच के बाद यह बात सामने आई कि संभव है इस वारदात को नीटू की पहली पत्नी रजनी ने अंजाम दिया हो. पता चला नीटू ने अपनी पत्नी को कई सालों से छोड़ रखा था. वह दिल्ली में अपने मायके में रहती थी, लेकिन उसके दोनों बच्चे गांव में नीटू के घरवालों के पास रहते थे. साथ ही पुलिस को यह भी पता चला कि जिस रात नीटू की हत्या हुई उसी रात सूचना मिलने के बाद नीटू की पहली पत्नी रजनी रात को करीब 1 बजे गांव पहुंच गई थी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

चार बीवियों का पति

ये कैसी सजा

  • नाबालिगों को पेड़ से बांधकर दी सजा की पिटाई..
  • आपत्तिजनक स्थिति में मिले नाबालिक..
  • ग्रामीणों ने की लड़के की जमकर पिटाई..
  • दोनों नाबालिगों को पेड़ से बांधकर दी सजा..
  • घंटों बांधकर रकहा दोनों को की बेइज्जती और पिटाई..
  • जानकारी लगाने पर पुलिस मौके पर दोनों को छुड़ाया..
  • बांधकर बुलाई पंचायत परिवार में हुआ आपसी समझौता..
  • माडा थाना क्षेत्र सितुल गांव की घटना..
  • वीडियो सोशल मीडिया पर हुआ वॉयरल..

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के सितुल गांव में 2 नाबालिगों को पेड़ से बांधकर सज़ा देने का मामला सामने आया है. जहां नाबालिग लड़के और लड़की को कई घंटो तक पेड़ से बांधकर पीटा गया. उक्त घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वॉयरल हुआ है.

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जानकारी के अनुसार नाबालिक लड़के और लड़की को गांव वालों ने एक नदी के किनारे आपत्तिजनक स्थिति में देखा, जिसके बाद उन्हें उन दोनों को पकड़कर ग्रामीणों ने एक पेड़ में बांध कर कई घंटो तक रखा और पिटाई भी की. और फिर पंचायत बुलाई गई.

मामले की जानकारी पुलिस को लगी तो वह मौके पर पहुंची और पेड़ से बंधे नाबालिगों को छुड़ाया, जहां पुलिस दोनों नाबालिक लड़के-लड़की को थाने ले गये. बाद मे दोनों के परिवारजनों की आपसी सहमति से समझौता/सुलह हो गया और पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

नाबालिगों से पेड़ मे बांधकर इस तरह की क्रूरतम सजा देने की उक्त घटना का वीडियो सोशल मीडिया में वॉयरल हो गया है. जिसपर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

मामला चाहे जो भी हो पर इतना तो तय है कि आज़ाद भारत में तालिबानी सज़ा का प्रावधान नहीं है बाबजूद इसके लोगों ने कानून को हाथ में लेकर इस तरह के जघन्य अपराध को अंजाम दिया.

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मामले में पुलिस भी मौके पर पहुंच गई और दोनों को छुड़ाया भी बाबजूद इसके पुलिस ने तालिबानी सजा देने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की यह एक बड़ा सवाल है.

यहां मामला दो नाबालिगों का है जहां लोगों ने कानून अपने हाथ में लेकर दोनों को पेड़ से बांधकर पीटा जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है. हालांकि अब इस मामले में पुलिस प्रशासन को चाहिए कि सजा देने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही करे.

मनगढ़ंत अपराध का दंड

अपराध अपराध होता है. मगर उसके भी रंग अनोखे होते हैं कभी हम कल्पना भी नहीं कर सकते की अपराध कैसे कैसे रंग रूप में हमारे आसपास घटित होते हैं. अगर आप में थोड़ी भी समझदारी है तो अपराध के रंगों को देखकर आप जीवन में कुछ ऐसी गांठ बांध सकते हैं जो आपको आजीवन अपराध से मुक्त व्यापार सुरक्षित रखेगा.

है ना यह अजीब बात! आज हम आपको इस लेख में मनगढ़ंत अपराध के रंग दिखाने जा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यह खबर आग की तरह फैल गई कि खमतराई के पास एक शख्स से 10 लाख  रुपए की लूट हो गई है. कोरोना वायरस के इस समय काल में इस अपराध की तीखी प्रतिक्रिया हुई और लोग तरह तरह की बातें करने लगे. इधर पुलिस  परेशान थी और उसके ऊपर एक जिम्मेदारी थी कि किसी भी तरह इस केस को डिटेक्ट करके दिखाएं.

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और आपको आश्चर्य होगा 12 घंटे के भीतर पुलिस ने इस लूट के मामले का पर्दाफाश कर दिया. और यह सनसनीखेज तथ्य सामने आया कि यह पूरी लूट की घटना मनगढ़ंत थी यानी प्रार्थी ने पूरे प्लान के साथ लूट की घटना की कहानी बनाई और पुलिस के सामने मानो प्लेट में सज़ा कर रख दी.

क्या और कैसे हुआ इस लूट कांड में, यह सब आपको हम बताएं उसके पहले ऐसे ही कुछ  अपराध की बानगी आपके समक्ष प्रस्तुत है-

पहला  मामला- दुर्ग शहर में  20 वर्ष की एक युवती घर से गायब हो गई. परिजनों को फोन आया मिनी का अपहरण कर लिया गया है. घर परिवार और शहर में हंगामा खड़ा हो गया पुलिस जांच में जुट गई जब मामला पर से पर्दा उठा तो यह तथ्य सामने आया कि युवती ने अपने अपहरण की मनगढ़ंत कहानी बनाई थी उसकी मंशा अपने पिता से 10 लाख  रुपए वसूली का था.

दूसरा मामला- रायपुर जिला के तिल्दा में शख्स ने थाने में यह रिपोर्ट दर्ज कराई कि उसके यहां ताला तोड़कर सोना चांदी नकद सहित 15 लाख रुपए की चोरी हो गई है. पुलिस ने जब जांच पड़ताल की तो यह तथ्य सामने आ गया कि मामला पूरी तरह से मनगढ़ंत था.

तीसरा मामला- कोरबा नगर में एक युवती थाने पहुंची और नगर के एक व्यक्ति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई कि यह मुझे उठा ले गया और मेरे साथ बलात्कार किया. पुलिस जांच में यह तथ्य सामने आ गया की ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई है और मामला पूरी तरह मनगढ़ंत है.

लाखों की लूट का सच

आगे, राजधानी रायपुर के खमतराई थाना अंतर्गत लूट की सच्चाई की कहानी  नीचे प्रस्तुत है-

पुलिस ने पूरी जांच के बाद इस मामले में प्रार्थी कुलेश्वर साहू से जब कड़ाई से पूछताछ की तो उसने पूरी कहानी पुलिस के सामने उगल दी. खुलासे के बाद इस मामले में पुलिस ने कुलेश्वर के भांजे और उसके दोस्त को भी अब गिरफ्तार कर लिया है.

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खमतराई पुलिस के सनसनीखेज खुलासे के अनुसार  लकड़ी कारोबारी भरत पटेल के यहां मुंशी का काम करने वाले कुलेश्वर साहू  ने  8 अगस्त को टिम्बर मार्केट के व्यापारियों कें यहा से साढ़े दस लाख रुपये वसूली कर लौट रहा था. तभी डीआरएम ऑफिस के सामने ओवरब्रिज पर दो बाइक सवार युवक आकर उससे पैसा छीनकर फरार हो गए . पीड़ित ने पुलिस को पूछताछ में जो लूट की घटना की कहानी बताई  तो पुलिस को पहले ही नजर में मामला अविश्वसनीय प्रतीत हुआ. पुलिस के पास पहुंचे प्रार्थी कुलेश्वर साहू पर पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था. अगर मामले की पड़ताल करना उसकी जिम्मेदारी थी सो जांच के दौरान पुलिस जब प्रार्थी के घर पहुंची तो अचानक उसका पड़ोसी अपना मोबाइल मांगने आ गया . पुलिस को शक गहरा हो गया  जब उसने किसी भी  मोबाइल लेने की बात से इनकार कर दिया. उसके संदिग्ध व्यवहार को देखकर पुलिस को शक हुआ और जब जांच की तो मामला परत दर परत खुलता चला गया.

पुलिस की पूछताछ मे कुलेश्वर साहू ने अंततः स्वीकार कर लिया.

दरअसल, पड़ोसी के मोबाइल का इस्तेमाल कुलेश्वर साहू ने लूट में शामिल अपने भांजे को कॉल करने के लिए किया था. कुलेश्वर ने दुर्ग जिला के पाटन के रहने वाले अपने भांजे और उसके दोस्त के साथ मिलकर इस लूट की वारदात की योजना बनाई थी. पुलिस ने उसके भांजे के पास से लूटी गई रकम बरामद कर तीनो को गिरफ्तार कर लिया और अब मनगढ़ंत लूट का किस्सा गढ़ने वाले तीनों शख्स रायपुर के सेंट्रल जेल में हवा खा रहे हैं.

मनगढ़ंत अपराधों के संदर्भ में पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा बताते हैं दरअसल, ऐसे अपराधों के पीछे मानसिकता यह होती है कि कानून की आंखों में धूल झोंक कर रातों रात मालामाल हो जाएं. मगर वे नहीं जानते आज अनुसंधान में ऐसी ऐसी विधियां इजाद हो गई है की अपराधी का बचना नामुमकिन है और मनगढ़ंत अपराध के लिए भारतीय दंड विधान की धारा में सख्ती बरतते हुए दंडनीय है. अतः कभी भी ऐसा अपराध करने की हिमाकत नहीं करनी चाहिए. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के अनुसार ऐसे अपराधों में आरोपी को न्यायालय 3 से 7 वर्ष तक की सजा दिया करती है. क्योंकि यह माना जाता है ऐसे अपराध कारित करने वाले आरोपी कथित रूप से समाज के लिए खतरनाक है.

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दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी

दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी: भाग 3

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लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

वह करीब 3 साल तक जेल में रहा. जेल से छूटा तो मिक्की के लिए सारा नजारा बदल सा गया था. उस की पत्नी मधु ने यूथ फोर्स सिक्युरिटी एजेंसी का कारोबार न केवल संभाल लिया था बल्कि अधिकृत तौर पर उसे अपने नाम कर लिया था. मिक्की के साथ साए की तरह रहने वाले ऋषि खोसला के व्यवहार में भी बदलाव आ गया था. ऋषि उस के बजाए उस की पत्नी मधु से ज्यादा लगाव दिखाने लगा था.

जेल में रहते मिक्की की सेहत में भी काफी बदलाव आ गया था. वह सेहत सुधारने के लिए सुबहशाम सदर स्थित जिम में जाया करता था. मधु अकसर ऋषि के साथ घर से गायब रहती थी. कभी किसी पार्टी में तो कभी क्लबों में वह ऋषि के साथ दिखती.

पहले तो मिक्की को लग रहा था कि पारिवारिक संबंध होने के कारण मधु ऋषि से अधिक घुलीमिली है. वैसे भी दोनों की शादी से पहले की पहचान थी, लेकिन संदेह हुआ तो एक दिन मिक्की ने मधु पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया. मजाक में उस ने कह दिया कि ऋषि से ज्यादा चिपकना ठीक नहीं है. यहां कौन किस का सगा है, सब ने सब को ठगा है.

मिक्की की नसीहत का मधु पर कोई फर्क नहीं पड़ा. एक दिन जब मिक्की और मधु के बीच किसी बात को ले कर विवाद हुआ तो सब कुछ खुल कर सामने आ गया. मधु ने साफ कह दिया कि ऋषि से उस के प्रेम संबंध हैं. ऋषि से उसे वह सारी खुशी मिलती है, जिन की हर औरत को जरूरत होती है.

घूम गया मिक्की का दिमाग

यह सुनते ही मिक्की का दिमाग घूम गया. मधु ने यह भी बता दिया कि जब तुम जेल में थे, तब ऋषि कैसे काम आता था. कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने से ले कर कई मामलों में ऋषि ने अपने घरपरिवार की जिम्मेदारी की परवाह तक नहीं की. उस समय ऋषि ही उस का एकमात्र सहारा था. अब वह किसी भी हालत में ऋषि को खोना नहीं चाहती.

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मिक्की ने पत्नी को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. तब मिक्की ने मधु के भाई सुनील भाटिया को सारी बात बता दी.

सुनील की समाज में काफी इज्जत ही नहीं बल्कि रुतबा भी था, इसलिए उस ने भी बहन मधु को समझाने की कोशिश की पर मधु तो ऋषि खोसला की दीवानी हो चुकी थी, इसलिए उस ने अपने प्रेमी की खातिर पति और भाई की इज्जत को धूमिल करने में हिचक महसूस नहीं की. वह बराबर ऋषि से मिलती रही.

अपनी बहन मधु पर जब सुनील का कोई वश नहीं चला तो वह तैश में आ गया. उस ने न केवल ऋषि को धमकाया बल्कि उस की पत्नी को भी चेतावनी दी कि वह पति को समझा दे या फिर अपनी मांग का सिंदूर पोंछ ले. मधु और मिक्की के बीच विवाद बढ़ता गया तो मधु ने कश्मीरी गली वाला मिक्की का फ्लैट हड़प कर उस में रहना शुरू कर दिया. वह उसी फ्लैट में रह कर कारोबार संभालती रही.

समय का चक्र नया मोड़ ले आया. एक ऐसा मोड़ जहां शेर की तरह जीवन जीने वाले व्यक्ति को भी भीगी बिल्ली की तरह रहना पड़ रहा था. मिक्की बख्शी नाम के जिस शख्स का नाम सुन कर अच्छेअच्छे तुर्रम खां डर के मारे पानी मांगने लगते थे, वह खुद को एकदम लाचार, असहाय समझने लगा.

मिक्की ने बीवी को क्या कुछ नहीं दिया था. उस ने अपनी आधी से अधिक दौलत उस के नाम कर दी थी. अपने सैकड़ों समर्थकों व चेलों को उस के निर्देशों का गुलाम बना दिया था. वही बीवी अब निरंकुश हो गई थी.

मिक्की ने दोहरी पहचान के साथ इज्जत का महल खड़ा किया था. एक तरफ अपराध क्षेत्र के भाई लोग उस की चरण वंदना करते थे तो वहीं नामचीन व रुतबेदार लोगों के बीच भी उस का उठनाबैठना था.

बन गई योजना

जब मधु ने ऋषि खोसला का साथ नहीं छोड़ा तो अंत में मिक्की और सुनील ने फैसला कर लिया कि ऋषि को ठिकाने लगाना ठीक रहेगा. मिक्की जब जेल में बंद था तो उस की जानपहचान गिरीश दासरवार नाम के 32 वर्षीय बदमाश से हो गई थी. मिक्की ने ऋषि खोसला को निपटाने के लिए गिरीश से बात की. इस के बदले में मिक्की ने उसे अपने एक धंधे में पार्टनर बनाने का औफर दिया. गिरीश इस के लिए तैयार हो गया.

सौदा पक्का हो जाने के बाद गिरीश ने ऋषि खोसला की हत्या करने के संबंध में अपने शागिर्दों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, निवासी जीजामातानगर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, निवासी बीड़गांव, आरिफ इनायत खान निवासी खरबी नंदनवन और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद निवासी हसनबाग से बात की.

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ये सभी गिरीश का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद ये सभी ऋषि खोसला की रेकी करने लगे. 20 अगस्त, 2019 को उन्हें यह मौका मिल गया, तब उन्होंने गोंडवाना चौक पर उस की फरसे से प्रहार कर हत्या कर दी.

मिक्की बख्शी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरीश दासरवार को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. चूंकि इन दोनों से और पूछताछ करनी थी, इसलिए मिक्की व गिरीश को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी एस.डी. मेहता की अदालत में पेश कर 31 अगस्त तक पुलिस रिमांड मांगा. बचाव पक्ष के वकील प्रकाश नायडू ने पुलिस रिमांड का विरोध किया.

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत ने दोनों को 25 अगस्त तक का पुलिस रिमांड दे दिया. घटना के 3 दिन बाद अन्य आरोपियों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, आरिफ इनायत खान और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद को भी बाड़ी क्षेत्र के एक धार्मिक स्थल की इमारत की छत से गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों पर हत्या, डकैती, सेंधमारी, अपहरण व मारपीट सहित अन्य मामले दर्ज थे.

हत्याकांड को अंजाम देने वाले गिरीश दासरवार पर हत्या के 4 मामले दर्ज थे. सन 2011 में गिरीश दासरवार ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर दिनेश बुक्कावार नामक चर्चित प्रौपर्टी डीलर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद दिनेश के शव को उस ने अपने घर में ड्रम के अंदर छिपा कर रखा था.

आरोपियों में कुछ ओला कैब चलाते हैं. डीसीपी विनीता साहू के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में एसीपी, पीआई महेश बंसोडे, अमोल देशमुख के अलावा विनोद तिवारी, सुशांत सालुंखे, सुधीर मडावी, संदीप पांडे, बालवीर मानमोडे शामिल थे. पुलिस ने सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी: भाग 2

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लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

मिक्की कैसे बना दबंग

रूपिंदर सिंह उर्फ मिक्की बख्शी नागपुर शहर का काफी चर्चित व्यक्ति था. करीब 2 दशक पहले शहर में प्रौपर्टी के कारोबार में उस का सिक्का चलता था. विवादित जमीनों से कब्जा खाली कराने के लिए उस के पास अच्छेबुरे हर किस्म के लोग आतेजाते थे.

शुरुआत में मिक्की ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में कांस्टेबल की नौकरी की थी. उस की तैनाती नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली के भामरागढ़ में थी. उसी दौरान निर्माण ठेकेदारों और सरकार के लोगों की फिक्सिंग का विरोध करते हुए उस ने नौकरी छोड़ दी थी. बाद में नागपुर में उस ने बीयरिंग बेचने का व्यवसाय किया.

मिक्की दबंग स्वभाव का तो था ही, जल्द ही उस के पास दबंग युवाओं की टीम तैयार हो गई. शहर ही नहीं, शहर के आसपास भी उस का नाम चर्चाओं में आ गया. वह कारोबारियों का मददगार होने का दावा करता था, लेकिन उस की पहचान वसूलीबाज अपराधी की भी बनने लगी थी.

बाद में मिक्की ने यूथ फोर्स नाम का संगठन तैयार किया. यूथ फोर्स के माध्यम से उस ने युवाओं की टीम का विस्तार किया गया. उस के संगठन में बाउंसर युवाओं की संख्या बढ़ने लगी. यही नहीं यूथ फोर्स के नाम पर मिक्की ने युवाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू कर दिया. बाद में उस ने यूथ फोर्स नाम की सिक्युरिटी एजेंसी खोल ली.

शहर में सब से महंगी व अच्छी सिक्युरिटी एजेंसी के तौर पर यूथ फोर्स की अलग पहचान बन गई. इस एजेंसी में अब भी करीब 3000 सिक्युरिटी गार्ड हैं. 2 दशक पहले शहर में ट्रक व्यवसाय को ले कर बड़ा विवाद हुआ था. कई ट्रक कारोबारी बातबात पर पुलिस व आरटीओ से उलझ पड़ते थे.

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आरोप था कि ट्रक कारोबारियों को जानबूझ कर परेशान किया जा रहा है. उन से अंधाधुंध वसूली हो रही है. उस स्थिति में मिक्की ने उत्तर नागपुर के महेंद्रनगर में यूथ फोर्स संगठन का कार्यालय खोला. उस के कार्यालय में ट्रक कारोबारी फरियाद ले कर जाते थे. मिक्की ने अपने स्तर से कई मामले सुलझा दिए. दरअसल, पुलिस विभाग में मिक्की के कई दुश्मन थे तो कई दोस्त भी थे.

नाम चला तो पैसा भी आने लगा. मिक्की कारों के काफिले में घूमने लगा. 20-25 युवक उस की निजी सुरक्षा में रहते थे. सार्वजनिक जीवन में अपना नाम बढ़ाने का प्रयास करते हुए मिक्की ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया.

राजनीति के क्षेत्र में भी उस ने पैर जमाने की कोशिश की. लगभग सभी प्रमुख पार्टियों के बड़े नेताओं से उस के करीबी संबंध बन गए थे. उन पर वह खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. मिक्की ने भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के समर्थक के तौर पर पहचान बना रखी थी. वह गडकरी के जन्मदिन पर एक भंडारे का आयोजन करता था.

दोस्त ने ही जोड़ा था रिश्ता

सन 2002 की बात है. तब तक मिक्की की पहचान सेटलमेंट कराने के एवज में बड़ी वसूली करने वाले अपराधी के तौर पर हो गई थी. एक मामले में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एस.पी.एस. यादव ने मिक्की को गिरफ्तार करा कर सड़क पर घुमाया था. उस की आपराधिक छवि के कारण उस की शादी भी नहीं हो पा रही थी. शादी की उम्र निकलने लगी थी. उस के दोस्तों ने उस के लिए इधरउधर रिश्ते की बात छेड़ी. उस के दोस्तों में ऋषि खोसला व सुनील भाटिया प्रमुख थे.

तीनों ने शहर के हिस्लाप कालेज में साथसाथ पढ़ाई की थी. ऋषि खोसला मिक्की का दोस्त ही नहीं, बतौर कार्यकर्ता भी काम करता था. कई मामलों में वह मिक्की के लिए प्लानर की भूमिका निभाता था. हरदम साए की तरह उस के साथ लगा रहता था.

ऋषि को अभिनय का भी शौक था. उस ने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया. हिंदी फिल्म ‘आशा: द होप’ में उस ने मुख्य विलेन का किरदार निभाया था. उस फिल्म में अभिनेता शक्ति कपूर थे. शक्ति कपूर से ऋषि खोसला के पारिवारिक संबंध भी बन गए थे.

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सुनील भाटिया मिक्की व ऋषि के साथ ज्यादा नहीं रहता था, लेकिन कम समय में उस ने सट्टा कारोबार में बड़ी पहचान बना ली थी. यह वही सुनील भाटिया था जो आईपीएल मैच स्पौट फिक्सिंग के मामले में दिल्ली में पकड़ा गया था. तब सुनील के गिरफ्तार होने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ क्रिकेटर भी जांच की चपेट में आए थे.

बताते हैं कि सुनील भाटिया ने क्रिकेट सट्टा की बदौलत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करोड़ों की दौलत एकत्र की थी. वह आए दिन विदेश में रहता था. पिछले कुछ समय से वह स्वयं को साईंबाबा के भक्त के तौर पर स्थापित कर रहा था. उस ने नागपुर में कड़बी चौक परिसर में  साईं मंदिर भी बनवाया था. वहां हर गुरुवार को वह बड़ा भंडारा कराता था.

शिरडी साईंबाबा के दर्शन के लिए उस ने नागपुर से वातानुकूलित बस की नि:शुल्क सेवा उपलब्ध करा रखी थी. क्रिकेट और राजनीति के अलावा भाटिया के आपराधिक क्षेत्र में भी देशदुनिया के कई बड़े लोगों से सीधे संबंध थे.

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मिक्की के लिए रिश्ते की बात चल रही थी. लेकिन सामान्य संभ्रांत परिवार से कोई रिश्ता नहीं आ रहा था. अपराधी के हाथ में कोई अपनी बेटी का हाथ देने को तैयार नहीं था. ऐसे में ऋषि खोसला को न जाने क्या सूझी, एक दिन उस ने दोस्तों की पार्टी में कह दिया कि मिक्की भाई के लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है.

कहीं बात नहीं बन रही है तो हम कब काम आएंगे. शादी के लिए सुनील भाई की बहन मधु भी तो है. सुनील भाटिया की बहन मधु ने एमबीए कर रखा था. कहा गया कि वह मिक्की ही नहीं, उस के कारोबार को भी अच्छे से संभाल लेगी. बात व प्रस्ताव पर विचार हुआ.

उस समय सुनील भाटिया हत्या के एक मामले में जेल में था. मधु मिक्की से उम्र में 10 साल छोटी थी. इस के बावजूद वह मिक्की से शादी के लिए राजी हो गई. लिहाजा बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. कई जानीमानी हस्तियां शादी समारोह में शरीक हुई थीं. मधु का मिजाज भी दबंग किस्म का था. शादी के कुछ दिनों बाद ही उस ने मिक्की के संगठन यूथ फोर्स के कारोबार में दखल देना शुरू कर दिया. वह सुरक्षा प्रशिक्षण अकादमी की संचालक बन गई.

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मिक्की कारोबार की जिम्मेदारी से मुक्त हो कर अपनी नई दुनिया को संवारने लगा. राजनीति में भी उस का दबदबा कायम होने लगा. सन 2007 व 2012 के महानगर पालिका के चुनाव में मिक्की ने यूथ फोर्स का पैनल लड़ाया.

पैनल के उम्मीदवार तो नहीं जीते लेकिन मिक्की की पहचान उभरते नेता के तौर पर बनने लगी थी.

हत्याकांड ने बदल दी जिंदगी

इस बीच एक ऐसा कांड हुआ, जिस ने मिक्की की जिंदगी के सुनहरे रंगों को ही छीन लिया. सन 2012 की बात है. कोराड़ी रोड पर जमीन विवाद के एक मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता गणेश मते का अपहरण कर लिया गया. बाद में उन की हत्या कर लाश कलमना में रेलवे लाइन पर डाल दी गई. इस हत्या का सूत्रधार मिक्की ही था. मामला 2 करोड़ की वसूली का था. तब राज्य में कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार थी. गृहमंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस के ही थे.

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दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी: भाग 1

लेखक- रघुनाथ सिंह लोधी

दौलत व शोहरत की दौड़ में दबंगता के साथ आगे बढ़ते रहे मिक्की बख्शी को अपने अतीत पर ज्यादा रंज नहीं था. यह जरूर था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जिस से उसे फिर से जेल जाना पड़े. अपराध के क्षेत्र के जानेमाने चेहरे अब भी उस के नाम से खौफ खाते थे.

वह रसूखदार लोगों की महफिलों में शिरकत करने लगा था. उस ने साफसुथरी जिंदगी का नया सफर शुरू करने का संकल्प ले लिया था. अब वह पढ़ीलिखी बीवी व एकलौते बेटे को कामयाबी के शिखर पर देखना चाहता था.

उस ने बीवी के नाम न केवल घर कारोबार कर दिया था, बल्कि नई चमचमाती कार की चाबी भी सौंप दी थी. जिस बीवी के लिए उस ने इतना सब कुछ किया, वही उस के जिगरी दोस्त ऋषि खोसला के साथ मिल कर उस के सीने में छुरा घोंपेगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

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नागपुर ही नहीं मध्यभारत में कूलर कारोबार में खोसला कूलर्स एक बड़ा नाम है. जानेमाने कूलर ब्रांड के संचालक ऋषि खोसला का भी अपना अलग ठाठ रहा है. हैंडसम, स्टाइलिश पर्सनैलिटी के तौर पर वह यारदोस्तों की महफिलों की शान हुआ करता था. कई छोटीमोटी फिल्मों में भी वह दांव आजमा चुका था. इन दिनों जमीन कारोबार में मंदी का दौर सा चल रहा है, लेकिन ऋषि मंदी के दौर में भी जमीन कारोबार में अच्छा कमा रहा था. लोग उसे बातों का धनी भी कहते थे. वह अपना कारोबार बढ़ाने की कला अच्छी तरह जानता था.

47 वर्षीय ऋषि नागपुर के जिस बैरामजी टाऊन परिसर में रहता था, उसे करोड़पतियों की बस्ती भी कहा जाता है. उस बस्ती में लग्जीरियस लाइफ स्टाइल के शख्स रहते थे. ऋषि का छोटा सा परिवार था. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व एक बेटी थे. 18 वर्षीय बेटा विदेश में रह कर पढ़ाई कर रहा था, जो छुट्टी मनाने घर आया हुआ था.

20 अगस्त, 2019 की रात करीब 9 बजे की बात है. ऋषि का भाई मनीष और बेटा शिरडी में साईं बाबा के दर्शन कर घर लौट रहे थे. ऋषि अपने कारोबार के जरूरी काम निपटा कर समय से पहले ही घर पहुंच गया था. घर पर उस ने बेटे व भाई से मुलाकात की. भूख लगी थी सो पत्नी को खाना लगाने को कहा. इसी बीच ऋषि खोसला के पास मधु का फोन आया.

मधु उस की खास महिला मित्र थी. वह उस के अजीज दोस्त विक्की बख्शी की पत्नी थी. कारोबार में भी मधु ऋषि की मदद लिया करती थी. मधु ने उस से कहा कि कड़बी चौक के नजदीक उस की गाड़ी पंक्चर हो गई है. आप तुरंत आ जाइए.

‘‘तुम वहीं रहो, मैं 5 मिनट में पहुंचता हूं.’’ कह कर ऋषि बिना खाना खाए ही घर से निकल गया. मधु का घर कड़बी चौक के पास कश्मीरी गली में था. कश्मीरी गली को नागपुर की सब से प्रमुख पंजाबियों की बस्ती भी कहा जाता है. यहां बड़े कारोबारियों के बंगले हैं. कुछ देर में ऋषि मधु के पास पहुंच गया और मधु को घर पहुंचा आया. मधु को घर छोड़ने के बाद ऋषि अपनी कार नंबर पीबी08ए एक्स0909 से घर लौटने लगा.

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ऋषि खोसला ने चुकाई भारी कीमत

रात के करीब 11 बजे होंगे. ऋषि किसी काम से कड़बी चौक पर खड़ा था, तभी वहां खड़ी उस की कार में एक आटोरिक्शा चालक ने टक्कर मार दी. ऋषि ने आटो चालक को फटकार लगाई तो आटो से उतर कर आए 3 युवक ऋषि से झगड़ा करने लगे. चौक पर वाहनों का आनाजाना चल रहा था. झगड़ा होता देख वहां लोग जमा होने लगे.

ऋषि की नजर आटोरिक्शा में बैठे एक शख्स पर गई. उसे देख कर ऋषि को यह समझने में देर नहीं लगी कि आटो में आए लोग संदिग्ध हैं और वे उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं.

कई दिनों से उसे हमला होने का अंदेशा था. ऋषि ने चतुराई से काम लिया. वह उन लोगों से झगड़ने के बजाए कार ले कर सीधे घर की ओर चल पड़ा. वह काफी घबराया हुआ था. बैरामजी टाउन में ऋषि के घर से कुछ देरी पर गोंडवाना चौक है. ऋषि ने अचानक कार रोकी. उसे लग रहा था कि आटो वाले लोग उसे खोजते हुए उस के घर भी पहुंच सकते हैं.

वह अपने बचाव के लिए कहीं भाग जाना चाहता था. ऋषि कार से उतरा. भागने की फिराक में उस ने मोबाइल निकाल कर अपनी दोस्त मधु को जानकारी देने के लिए फोन किया. उस ने मधु को बताया कि उस के घर से लौटते समय कड़बी चौक में उस पर हमला होने वाला था.

वह इस के आगे कुछ कहता, इस से पहले ही आटो और बाइक पर आए लोगों ने ऋषि पर हमला कर दिया. फरसे के पहले ही वार में ऋषि की चीख निकल गई. मोबाइल उस के हाथ से छूट कर 10 फीट दूर जा कर गिरा.

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इस के बाद भी उन लोगों ने ऋषि पर कई वार किए. अपना काम कर के हमलावर आटोरिक्शा से फरार हो गए. एक हमलावर वहां से ऋषि की कार ले गया ताकि कोई कार से उसे इलाज के लिए अस्पताल न ले जा सके. उस ने ऋषि की कार सदर क्षेत्र के एलबी होटल के पास ले जा कर खड़ी कर दी. हथियार भी उन्होंने वहीं आसपास डाल दिए थे.

ऋषि की फोन पर मधु से बात चल रही थी लेकिन जब अचानक बातचीत बंद हो गई तो वह घबरा गई. वह उसी समय गोंडवाना चौक पहुंच गई. उस समय वहां काफी लोग जमा थे. वहां पड़ी ऋषि की लाश को देख कर वह चीख पड़ी. इसी बीच किसी ने फोन से पुलिस को सूचना दे दी थी.

सूचना पा कर सदर पुलिस थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू भी वहां पहुंच गईं. मधु ने पुलिस को बताया कि ऋषि उस का प्रेमी था और उस की हत्या उस के पति मिक्की बख्शी व भाई सुनील भाटिया ने की है.

ऋषि को मेयो अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इधर पुलिस लोगों से पूछताछ कर ही रही थी कि तभी मधु आत्महत्या के लिए निकल पड़ी.

वह फुटाला तालाब की ओर जा रही थी. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू समझ गईं कि वह कोई आत्मघाती कदम उठाने जा रही है, इसलिए उन्होंने उसे रोक कर समझाया. विनीता ने मधु को आश्वस्त किया कि मिक्की व सुनील को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

तब तक पुलिस आयुक्त डा. भूषण कुमार उपाध्याय भी वहां पहुंच गए थे. डीसीपी विनीता साहू ने उन्हें पूरी जानकारी से अवगत कराया. पुलिस कमिश्नर डा. उपाध्याय मिक्की की प्रवृत्ति से भलीभांति अवगत थे. क्योंकि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. उन्होंने उसी समय थाना सदर के प्रभारी को आदेश दिया कि मिक्की को इसी समय उठवा लो.

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मिक्की बख्शी राजनगर में रहता था. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम मिक्की के घर भेज दी. घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद थाना सदर पुलिस मधु को ले कर थाने लौट आई. मधु से कुछ जरूरी पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया.

उधर पुलिस टीम मिक्की बख्शी के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. पुलिस ने मिक्की से ऋषि खोसला की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह कहता रहा कि ऋषि तो उस का दोस्त था, भला वह अपने दोस्त को क्यों मारेगा. उस की बात पर पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था.

पुलिस जानती थी कि वह ढीठ किस्म का अपराधी है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. उस ने स्वीकार किया कि ऋषि खोसला की हत्या उस ने अपने जानकार लोगों से कराई थी. उस की हत्या कराने की उस ने जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प थी-

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