तृष्णा: भाग-1

पार्टी पूरे जोरशोर से चल रही थी. दीप्ति और दीपक की शादी की आज 16वीं सालगिरह थी. दोनों के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. दोनों ही नोएडा में रहते हैं. वहां दीप्ति एक कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर नियुक्त है तो दीपक बहुराष्ट्रीय कंपनी में वाइस चेयरमैन.

दीप्ति की आसमानी रंग की झिलमिल साड़ी सब पर कहर बरपा रही थी. दोनों ने अपने करीबी दोस्तों को बुला रखा था. जहां दीपक के दोस्त दीप्ति की खूबसूरती को देख कर ठंडी आहें भर रहे थे, वहीं दीपक का दीप्ति के प्रति दीवानापन देख कर उस की सहेलिया भले हंस रही हों पर मन ही मन जलभुन रही थीं.

केक काटने के बाद कुछ कपल गेम्स का आयोजन किया गया. उन में भी दीप्ति और दीपक ही छाए रहे. पार्टी खत्म हो गई. सब दोस्तों को बिदा करने के बाद दीप्ति और दीपक भी अपनेअपने कमरे रूपी उन ग्रहों में छिप गए

जहां पर बस वे ही थे. वे आज के उन युगलों के लिए उदाहरण हैं जो साथ हो कर भी साथ नहीं हैं. दोनों ही, जिंदगी की दौड़ में इतना तेज भाग रहे हैं कि उन के हाथ कब छूट गए, पता ही नहीं चला.

आज रात को बैंगलुरु से दीपक की दीदी आ रही थीं. दीप्ति ने पूरे दिन की छुट्टी ले ली. नौकरों की मदद से घर की सज्जा में थोड़ा परिवर्तन कर दिया. दीपक भी सीधे दफ्तर से दीदी को लेने एअरपोर्ट चला गया. शाम 7 बजे दरवाजे की घंटी बजी, तो दीप्ति ने दौड़ कर दरवाजा खोला. अपनी ससुराल में वह सब से करीब शिखा दीदी के ही थी. शिखा एक बिंदास 46 वर्षीय स्मार्ट महिला थी, जो दूध को दूध और पानी को पानी ही बोलती है. शिखा के साथ ही वह दीपक, अपने सासससुर की भी बिना हिचक के बुराई कर सकती है. शिखा के साथ उस का ननद का नहीं, बल्कि बड़ी दीदी का रिश्ता था.

शिखा मैरून सूट में बेहद दिलकश लग रही थी. दीप्ति भी सफेद गाउन में बहुत सुंदर लग रही थी. दीप्ति को बांहों में भरते हुए शिखा बोली, ‘‘दीप्ति तुम कब अधेड़ लगोगी, अभी भी बस 16 साल की लग रही हो.’’

‘‘जिस दिन तेरा मोटापा थोड़ा कम होगा मोटी,’’ पीछे से दीपक की हंसी सुनाई दी. रात के खाने में सबकुछ शिखा की पसंद का था. चिल्ली पनीर, फ्राइड राइस, मंचूरियन, रूमाली रोटी और गाजर का हलवा.

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‘‘ऐसा लगता ही नहीं कि भाभी के घर आई हूं. ऐसा लगता है कि मम्मीपापा के घर में हूं,’’ शिखा भर्राई आवाज में बोली. सुबह शिखा जब 9 बजे सो कर उठी तो दीप्ति नाश्ते की तैयारी में लगी हुई थी.

‘‘घर मेरी भतीजियों के बिना कितना सुनसान लग रहा है,’’ शिखा ने कहा तो दीप्ति और दीपक एकदूसरे की तरफ सूनी आंखों से देख रहे हैं,यह दीदी की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं रहा.

जैसे एक आम शादी में होता है, ऐसी ही कुछ कहानी उन की शादी की भी थी. कुछ सालों तक वे भी एकदूसरे में प्यार के गोते लगाते रहे और समय बीततेबीतते उन का प्यार भी खत्म हो गया. फिर शुरू हुई एकदूसरे को अपने जैसा बनाने की खींचातानी. उस खींचातानी में रिश्ता कहां चला गया, किसी को नहीं पता चला. दोनों में फिर भी इतनी समझदारी थी कि अपने रिश्ते की कड़वाहट उन्होंने कभी अपने परिवार और बच्चों के आगे जाहिर नहीं करी. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को बोर्डिंग में डाल दिया था ताकि वे उन के रिश्ते के बीच बढ़ती खाई को महसूस न कर पाएं.

‘‘दीदी, दीपक का कुछ ठीक नहीं है. वे अकसर रात का डिनर बाहर कर के आते हैं,’’ दीप्ति सपाट स्वर में बोली और फिर मोबाइल में व्यस्त हो गई. शिखा पूरे 4 वर्ष बाद भाईभाभी के पास आई थी पर उसे ऐसा लग रहा था जैसे 4 दशक बाद आई हो. शिखा मन ही मन मनन कर रही थी कि कहीं न कहीं ऐसा भी होता है जब जीवन में बहुत कुछ और बहुत जल्दी मिल जाता है तो पता ही नहीं चलता कब एक बोरियत भी रिश्ते में आ गई है. यह संघर्ष ही तो है जो हमें जिंदगी को जिंदादिली से जीने की राह दिखाता है.

दीपक अपने ही औफिस में एक तलाकशुदा महिला निधि के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना पसंद करने लगा था, क्योंकि उस के साथ उसे ताजगी महसूस होती थी.

‘‘सुनो, आज रात बाहर डिनर करेंगे,’’ दीपक के बालों में हाथ फेरते हुए निधि ने कहा.

‘‘यार दीदी आई हुई हैं… बताया तो था मैं ने,’’ दीपक ने कहा.

निधि ने थोड़े तेज स्वर में कहा, ‘‘भूल गए, मंगलवार और शुक्रवार की शाम मेरी है,’’ और फिर झुक कर दीपक को चूम लिया.

दीपक का रोमरोम रोमांचित हो उठा. यही तो वह रोमांच है जिसे वह अपने विवाह में मिस करता है. उस रात आतेआते 12 बज गए. शिखा सोई नहीं थी, वह बाहर ड्राइंगरूम में ही बैठ कर काम कर रही थी. दीपक शिखा को देख कर ठिठक गया.

‘‘भाई, यह क्या समय है घर आने का? अभी तो मैं हूं पर वैसे दीप्ति क्या करती होगी,’’ शिखा ने चिंतित स्वर में कहा. दीपक सीधे अंदर बैडरूम में चला गया और दीप्ति को बांहों में उठा कर ले आया.

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‘‘मोटी प्यार तो मैं अब भी उतना ही करता हूं दीप्ति से, बस जिम्मेदारियां सिर उठाने ही नहीं देती,’’ दीपक बोला.

दीप्ति हंसते हुए दीपक के लिए कौफी बनाने चली गई, पर शिखा को इस प्यार में स्वांग अधिक और गरमाहट कम लग रही थी. पर उस ने अधिक तहकीकात करने की जरूरत इसलिए नहीं समझी, क्योंकि उसे खुद पता था कि वैवाहिक जीवन में ऐसे उतारचढ़ाव आते रहते हैं… उसे दोनों की समझदारी पर पूरा भरोसा था.

जब शिखा अपना सामान पैक कर रही थी तो अचानक दीप्ति उस के गले लग कर रोने लगी. उस रोने में एक खालीपन है, यह बात शिखा से छिपी न रह सकी.

‘‘क्या बात है दीप्ति, कुछ समस्या है तो बताओ… मैं उसे सुलझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘नहीं, आप जा रही हैं तो मन भर आया,’’ दीप्ति ने खुद को काबू करते हुए कहा.

ऐसी ही एक ठंडी रात दीप्ति फेसबुक पर कुछ देख रही थी कि अचानक उस ने एक मैसेज देखा जो किसी संदीप ने भेजा था, ‘‘क्या आप शादीशुदा हैं?’’

भला ऐसी कौन सी महिला होगी जो इस बात से खुश न होगी? लिखा, ‘‘मैं पिछले 15 सालों से शादीशुदा हूं और 2 बेटियों की मां हूं.’’

संदीप ‘‘झूठ मत बोलो,’’ और कुछ दिल के इमोजी…

दीप्ति, ‘‘दिल हथेली पर रख कर चलते हो क्या?’’

संदीप, ‘‘सौरी पर आप खूबसूरत ही इतनी हैं.’’

ऐसे ही इधरउधर की बात करतेकरते 1 घंटा बीत गया और दीप्ति को पता भी नहीं चला. बहुत दिनों बाद उसे हलका महसूस हो रहा था.

अब दीप्ति भी संदीप के साथ चैटिंग में एक अनोखा आनंद का अनुभव करने लगी. अब उतना खालीपन नहीं लगता था.

संदीप दीप्ति से 8 वर्ष छोटा था और देखने में बेहद आकर्षक था. संदीप जैसा आकर्षक युवक दीप्ति के प्यार में पड़ गया है, यह बात दीप्ति को एक अनोखे नशे से भर देती थी. दीप्ति अपने रखरखाव को ले कर काफी सहज हो गई थी… कभीकभी तो युवा और आकर्षक दिखने के चक्कर में वह हास्यास्पद भी लगने लगती.

आज दीप्ति को संदीप से मिलने जाना था. वह जैसे ही औफिस में पहुंची, लोग उसे आश्चर्य से देखने लगे. काली स्कर्ट और सफेद शर्ट में वह थोड़ी अजीब लग रही थी. उस के शरीर का थुलथुलापन साफ नजर आ रहा था. जब वह संदीप के पास पहुंची तो संदीप भी कुछ देर तक तो चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप बहुत सैक्सी लग रही हो, एकदम कालेजगर्ल.’’

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दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. कार में बैठ कर संदीप अपना संयम खोने लगा तो दीप्ति ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं करी. कब दीप्ति संदीप के साथ उस के फ्लैट पहुंच गई, उसे भी पता न चला. भावनाओं के ज्वारभाटा में सब बह गया. पर दीप्ति को कोई पछतावा न था, क्योंकि इस खुशी और शांति के लिए वह तरस गई थी.

कपड़े पहनती हुई दीप्ति से संदीप बोला, ‘‘अब सेवा का मौका कब मिलेगा.’’

दीप्ति मुसकराते हुए बोली, ‘‘तुम बहुत खराब हो.’’

शुरूशुरू में दीपक और दीप्ति दोनों ही आसमान में उड़ रहे थे पर उन के नए रिश्ते की नीव ही भ्रम पर थी. कुछ पल की खुशी फिर लंबी तनहाई और खामोशी.

आज संदीप का जन्मदिन था. दीप्ति उसे सरप्राइज देना चाहती थी. सुबह ही वह संदीप के फ्लैट की तरफ चल पड़ी. उपहार उस ने रात में ही ले लिया था.

5 मिनट तक घंटी बजती रही, फिर किसी अनजान युवक ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है आंटी?’’

दीप्ति बहुत बार आई थी पर संदीप ने कभी नहीं बताया था कि वह फ्लैट और लोगों के साथ शेयर कर रहा है. बोली, ‘‘जी, संदीप से मिलना है,’’

तभी संदीप भी आंखें मलते हुए आ गया और कुछ रूखे स्वर में बोला, ‘‘जी मैडम बोलिए. क्या काम है… पहले भी बोला था बिना फोन किए मत आया कीजिए.’’

दीप्ति कुछ न बोल पाई. जन्मदिन की शुभकामना तक न दे पाई, गिफ्ट भी वहीं छोड़ कर बाहर निकल गई. जातेजाते उस के कानों में यह स्वर टकरा गया, ‘‘यार ये आंटी क्या पागल हैं, जो तुझ से मिलने सुबहसुबह आ गईं.’’

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कहानी के दूसरे और आखिरी भाग में पढ़िए क्या अपनी तृष्णा से बाहर निकल पाए दीपक और दीप्ति…

इज्जत : भाभी ने दिए दोनों लड़कों को मजे

बात उन दिनों की है, जब मेरे बीटैक के फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान होने वाला था और मैं इसी की तैयारी में मसरूफ था. अपनी सुविधा और आजादी के लिए होस्टल में रहने के बजाय मैं ने शहर में एक कमरा किराए पर ले कर रहने का फैसला किया था. शहर में अकेला रहना बोरिंग हो सकता है. यही सोच कर मैं ने अपने साथी रंजीत को अपना रूममेट बना लिया था.

फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान सिर पर था, इसलिए मैं इसी में बिजी रहता था, पर रंजीत को इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पिछले हफ्ते अपने घर से आया था और अब उसे फिर वहां जाने की धुन सवार हो गई थी.

जब रंजीत अपने घर जाने के लिए निकल गया, तो मैं भी अपनी पढ़ाई में मस्त हो गया.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता होगा कि रंजीत लौट कर मुझ से बोला, ‘‘भाई, यह बता कि अगर किसी को मदद की जरूरत हो, तो उस की मदद करनी चाहिए या नहीं?’’

रंजीत और मदद… मुझे हैरत हो रही थी, क्योंकि किसी की मदद करना उस के स्वभाव के बिलकुल उलट था, पर पहली बार उस के मुंह से मदद शब्द सुन कर अच्छा लगा.

मैं ने कहा, ‘‘बिलकुल. इनसान ही इनसान के काम आता है. जरूरतमंद की मदद करने से बेहतर और क्या हो सकता है. पर आज तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो? तुम्हारे घर जाने का क्या हुआ?’’

‘‘यार, बात यह है कि मैं घर जाने के लिए टिकट खरीद कर जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो देखा कि एक औरत अपने 2 बच्चों के साथ बैठी रो रही थी. मुझ से रहा न गया और पूछ बैठा, ‘आप क्यों रो रही हैं?’

‘‘उस औरत ने जवाब दिया, ‘मुझे जहानाबाद जाना है. इस समय वहां जाने वाली कोई गाड़ी नहीं है. अगली गाड़ी के लिए मुझे कल सुबह तक यहां इंतजार करना होगा.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘तो इस में रोने वाली क्या बात थी?’’’

रंजीत ने उस औरत की बात को और आगे बढ़ाया. वह बोली थी, ‘रात के 8 बज चुके हैं. मैं जानती हूं कि 9 बजे के बाद यह स्टेशन सुनसान हो जाता है. मेरे साथ 2 बच्चे भी हैं. कोई अनहोनी न हो जाए, यही सोचसोच कर मुझे रोना आ रहा है. मैं इस स्टेशन पर रात कैसे गुजारूंगी?’

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‘‘मैं सोच में पड़ गया कि मुझे उस औरत की मदद करनी चाहिए या नहीं. यही सोच कर तुम से पूछने आ गया,’’ रंजीत मेरी ओर देखते हुए बोला.

‘‘देखो भाई रंजीत, हम लोग यहां बैचलर हैं. किसी की मदद करना तो ठीक है, पर किसी अनजान औरत को अपने कमरे पर लाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. मकान मालकिन पता नहीं हम लोगों के बारे में क्या सोचेगी?’’

मुझे उस समय पता नहीं क्यों उस अनजान औरत को कमरे पर लाने का खयाल अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए अपने मन की बात उसे बता दी.

‘‘मकान मालकिन पूछेगी, तो बता देंगे कि रामध्यान की भाभी है, यहां डाक्टर के पास आई है. वैसे भी हम लोगों के गांव से अकसर कोई न कोई मिलने तो आता ही रहता है,’’ रंजीत ने एक उपाय सुझाया.

आप को बताते चलें कि जिस बिल्डिंग में हम लोग रहते थे, उस की दूसरी मंजिल पर रामध्यान भी किराए पर रह रहा था. वह वैसे तो हमारे ही कालेज का एक शरीफ छात्र था, पर हम लोगों से जूनियर था, इसलिए न केवल हमारी बातें मानता था, बल्कि हमें इज्जत भी देता था.

‘‘ठीक है. अब अगर तुम उस औरत की मदद करना ही चाहते हो, तो मुझे क्या दिक्कत है. रामध्यान को सारी बातें समझा दो.’’

रंजीत तेजी से सीढि़यां चढ़ता हुआ रामध्यान के पास गया और उसे सारी बातें बता दीं. उसे कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उस औरत के रातभर रहने के लिए वह अपना कमरा देने को भी तैयार था. वह उसी समय अपनी कुछ किताबें ले कर हमारे कमरे में रहने चला आया.

‘‘अब तुम जाओ रंजीत. उसे ले आओ. और हां, उसे यह भी समझा देना कि अगर कोई पूछे, तो खुद को रामध्यान की भाभी बताए.’’

‘‘नहीं, तुम भी मेरे साथ चलो,’’ वह मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहता था.

‘‘मुझे पढ़ने दो यार, इम्तिहान सिर पर हैं. मैं अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता,’’ मैं बहाना करते हुए बोला.

‘‘अच्छा, किसी की मदद करना समय बरबाद करना होता है. तुम्हारा अगर नहीं जाने का मन है, तो साफसाफ कहो. वैसे भी एक दिन में तुम्हारी कितनी तैयारी हो जाएगी? एक दिन किसी की मदद के लिए तो कुरबान किया ही जा सकता है,’’ रंजीत किसी तरह मुझे ले ही जाना चाहता था.

‘‘ठीक है भाई, जैसी तुम्हारी मरजी. आज की शाम किसी की मदद के नाम,’’ मैं मजबूर हो कर बोला. थोड़ी देर में मैं भी तैयार हो कर उस के साथ निकल पड़ा.

रंजीत आगेआगे और मैं पीछेपीछे. वह मुझे स्टेशन के सब से आखिरी प्लेटफार्म के एक छोर पर ले गया, जहां वह औरत अपने दोनों बच्चों के साथ बैठी थी. वह हमें देख कर मुसकराने लगी. न जाने क्यों, उस का इस तरह मुसकराना मुझे अच्छा नहीं लगा.

मैं सोचने लगा कि न जाने कैसी औरत है, पर उस समय मुझ से कुछ बोलते नहीं बना.

स्टेशन से बाहर आ कर मैं ने 2 रिकशे वाले बुलाए. मुझे टोकते हुए वह औरत बोली, ‘‘2 रिकशों की क्या जरूरत है. एक ही में एडजस्ट कर चलेंगे न. बेकार में ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं.’’

‘‘पर हम एक ही रिकशे में कैसे चलेंगे?’’ मैं ने सवाल किया.

वह बोली, ‘‘देखिए, ऐसे चलेंगे…’’ कह कर वह रिकशे की सीट पर ठीक बीच में बैठ गई और दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठा लिया, ‘‘आप दोनों मेरे दोनों ओर बैठ जाइए,’’ वह हम दोनों को देख कर मुसकराते हुए बोली.

मुझे इस तरह बैठना अच्छा नहीं लग रहा था, पर उस दौर में पैसों की बड़ी किल्लत थी. अगर उस समय इस तरह से कुछ पैसे बच रहे थे, तो क्या बुरा था. आखिरकार हम दोनों उस के दोनों ओर बैठ गए.

हमारे बैठते ही अपने एकएक बच्चे को उस ने हम दोनों को थमा दिया. मैं अब भीतर ही भीतर कुढ़ने लगा था. हमारी अजीब हालत थी. हम उस की मदद कर रहे थे या वह हम से जबरदस्ती मदद ले रही थी.

रिकशे की रफ्तार तेज होती जा रही थी और मेरे सोचने की रफ्तार भी तेज होने लगी थी. मैं कहां हूं, किस हालत में हूं, यह भूल कर मैं अपनी सोच में ही डूबने लगा था. न जाने क्यों मुझे बारबार यह खयाल आ रहा था कि कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं.

कमरे पर पहुंचतेपहुंचते रात के 8 बज चुके थे. रंजीत ने उसे सारी बात समझा कर रामध्यान के कमरे में ठहरा दिया.

मैं ने रंजीत से कहा, ‘‘भाई, जब यह हमारे यहां आ गई है, तो इस के खानेपीने का इंतजाम भी तो हमें ही करना पड़ेगा. जाओ, होटल से कुछ ले आओ.’’

रंजीत खुशीखुशी होटल की ओर चल पड़ा. मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि रंजीत को आज क्या हो गया है, पर मैं चुप था. वह जितनी तेजी से गया था, उतनी ही तेजी से और बहुत जल्दी खानेपीने का सामान ले कर लौटा था.

‘‘जाओ, उसे खाना दे आओ. हम दोनों रामध्यान के साथ यहीं खा लेंगे,’’ मैं ने रंजीत से कहा.

रंजीत खाना देने ऊपर के कमरे  गया और तकरीबन आधा घंटे बाद लौटा. मुझे भूख लगी थी, लेकिन मैं उस का इंतजार कर रहा था. सोच रहा था कि उस के आने के बाद साथ बैठ कर खाएंगे.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘भाई, उस के कहने पर मैं ने भी उसी के साथ खाना खा लिया,’’ रंजीत धीरे से बोला.

‘‘कोई बात नहीं… आओ रामध्यान, हम दोनों खाना खा लें. हम तो इसी का इंतजार कर रहे थे और यह तुम्हारी भाभी के साथ खाना खा आया,’’ मैं ने मजाक करते हुए कहा.

रामध्यान को भी हंसी आ गई. वह हंसते हुए खाने की थाली सजाने लगा.

रात को खाना खाने के बाद अकसर हम लोग बाहर टहलने के लिए निकला करते थे, इसलिए खाने के बाद मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो गया और रंजीत को भी तैयार होने के लिए कहा.

‘‘आज मेरा जाने का मन नहीं है,’’ रंजीत टालमटोल करने लगा.

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आखिरकार मैं और रामध्यान टहलने के लिए निकले. तकरीबन आधा घंटे के बाद लौटे. वापस आने पर देखा कि हमारे कमरे पर ताला लगा हुआ था.

रामध्यान ने हंसते हुए कहा, ‘‘भैया, हो सकता है रंजीत भैया भाभी के पास गए हों.’’

‘‘हो सकता है. जा कर दे,’’ मैं ने रामध्यान से कहा.

‘‘थोड़ी देर बाद रामध्यान और रंजीत हंसतेमुसकराते सीढि़यों से नीचे आ रहे थे.

‘‘भाभीजी तो बहुत मजाकिया हैं भाई. सच में मजा आ गया,’’ उतरते ही रंजीत ने कहा.

‘‘अब हंसना छोड़ो और जल्दी कमरा खोलो,’’ वे दोनों हंस रहे थे, पर मुझे गुस्सा आ रहा था.

मैं ने चुपचाप कमरे में जा कर अपने कपड़े बदले और बैड पर सोने चला गया. थोड़ी देर तक बैड पर लेटेलेटे मैं ने पढ़ाई की और उस के बाद मुझे नींद आ गई.

देर रात को रंजीत और रामध्यान की बातों से मेरी नींद टूटी. उन दोनों को देख कर लग रहा था कि वे दोनों अभीअभी कहीं से लौटे हैं.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘तुम दोनों कहां गए थे और अभी तक सोए क्यों नहीं?’’

‘कहीं… कहीं नहीं. बस अभी सोने ही वाले हैं,’ दोनों ने एकसुर में कहा.

थोड़ी देर बाद रंजीत ने मुझे जगाते हुए कहा, ‘‘भाई, तुम्हें एक बात कहनी है.’’

‘‘इतनी रात को… बोलो, क्या बात कहनी है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘अगर बुरा मानने वाली बात नहीं होगी, तो बुरा क्यों मानूंगा?’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम चाहो तो भाभीजी के मजे ले सकते हो,’’ रंजीत थोड़ा संकोच करते हुए बोला.

‘‘क्या बक रहे हो रंजीत? तुम्हें क्या हो गया है?’’ मैं ने हैरानी और गुस्से में उस से पूछा.

‘‘भाई, अच्छा मौका है. चाहो तो हाथ साफ कर लो,’’ रंजीत के चेहरे पर इस समय एक कुटिल मुसकान थी. वह अपनी इसी मुसकान से मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हम ने उसे सहारा दिया है. वह हमारी मेहमान है. तुम ऐसा कैसे

सोच सकते हो?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘इस तरह भी हम उस की मदद कर सकते हैं. मैं ने उस से बात कर ली है. एक बार के लिए 2 सौ रुपए में सौदा पक्का हुआ है,’’ वह मुझे ऐसे बता रहा था, जैसे कोई बड़ा उपहार भेंट करने जा रहा हो.

‘‘मुझे तुम्हारी सोच से घिन आती है रंजीत. आखिर तुम अपने असली रूप में आ ही गए. मुझे हैरत हो रही थी कि तुम भला किसी की मदद कैसे कर सकते हो. अब तुम्हारी असलियत सामने आई.

‘‘मुझे पहले से ही शक हो रहा था, पर मैं यह सोच कर चुप था कि चलो, एक अच्छा काम कर रहे हैं. अच्छा क्या खाक कर रहे हैं,’’ मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था, पर इस समय उसे समझाने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था.

रंजीत कुछ नहीं बोला. वह सिर झुकाए बैठा था.थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे. रामध्यान अब तक सो चुका था. थोड़ी देर बाद रंजीत बोला, ‘‘ठीक है भाई, सो जाओ. मैं भी सोता हूं.’’ सुबह जब मैं उठा, तब तक 7 बज चुके थे. रामध्यान की तथाकथित भाभी इस समय हमारे कमरे में बैठी थी. रामध्यान और रंजीत भी उस के पास ही बैठे थे.

‘‘मैं आप के ही उठने का इंतजार कर रही थी,’’ मुझे देखते हुए वह बोली.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हुआ कुछ नहीं. मैं जा रही हूं. कुछ बख्शीश तो दे दीजिए,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘बख्शीश किस बात की?’’ मुझे हैरानी हुई.

‘‘देखो मिस्टर, आप के इस दोस्त ने 2 सौ रुपए में एक बार की बात कर मेरी इज्जत का सौदा किया था. इन दोनों ने 2-2 बार मेरी इज्जत को तारतार किया. इस तरह पूरे 8 सौ रुपए बनते हैं. और ये हैं कि मुझे केवल 4 सौ रुपए दे कर टरकाना चाहते हैं. मैं भी अड़ चुकी हूं. बंद कमरे में मेरी इज्जत जाते हुए किसी ने नहीं देखा. अब अगर मैं यहां चिल्ला कर बताने लगी कि तुम लोग मुझे यहां क्यों लाए थे, तो तुम लोगों की इज्जत गई समझो,’’ वह बड़े ही तीखे अंदाज में बोले जा रही थी.

मैं ने रंजीत और रामध्यान की ओर देखा. वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप बैठे थे. मुझ से कोई भी नजरें नहीं मिला रहा था. मैं सारी बात समझ चुका था. यह भी जानता था कि रंजीत और रामध्यान के पास और पैसे नहीं होंगे. ऐसे में मुझे ही अपनी जेब ढीली करनी होगी. मैं ने अपना पर्स निकाला और उसे 4 सौ रुपए देते हुए बोला, ‘‘लीजिए अपने पैसे.’’

पैसे मिलते ही वह खुश हो गई और अपने रास्ते चल पड़ी. मैं सोच रहा था कि इज्जत आखिर है क्या? कल उस की इज्जत बचाने के लिए हम ने उसे सहारा दिया था और आज अपनी इज्जत बचाने के लिए हमें उसे पैसे देने पड़े.

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इस तरह कहने को तो दुनिया की नजरों में हम सभी की इज्जत जातेजाते बची है. वह औरत बाइज्जत अपने रास्ते गई और हम अपने घर में. आज भी जब मैं उस घटना को याद करता हूं, तो सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि क्या वाकई उस औरत के साथसाथ हम सभी ने अपनीअपनी इज्जत बचा ली थी? ‘इज्जत’ हमारे हैवानियत से भरे कामों के ऊपर पड़ा परदा है. इसी परदे को तारतार होने से बचाने के लिए हम ने उस औरत को पैसे दिए. यह परदा दुनिया से तो हमारी हिफाजत करता नजर आ रहा है, पर हम सभी ने एकदूसरे को बिना इस परदे के देख लिया है. दुनियाभर के लिए हम भले ही इज्जतदार हों, पर अपनी सचाई का हमें पता है.

तृष्णा: भाग 2

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संदीप ने पता नहीं क्या कहा पर एक सम्मिलित ठहाका उसे अवश्य सुनाई दे रहा था जो दूर तक उस का पीछा करता रहा. वह दफ्तर जाने के बजाय घर आ गई और बहुत देर तक अपने को आईने में देखती रही. हां, वह आंटी ही तो है पर सब से अधिक दुख उसे इस बात का था कि संदीप ने उसे अपने दोस्तों के आगे पूरी तरह नकार दिया था.

1 हफ्ते तक दीप्ति और संदीप के बीच मौन पसरा रहा पर फिर अचानक एक दिन एक मैसेज आया, ‘‘जान, आज मौसम बहुत बेईमान है. आ जाओ फ्लैट पर.’’

दीप्ति ने मैसेज अनदेखा कर दिया. चंद मुलाकातों के बाद ही अब संदीप उसे बस ऐसे ही याद करता था. औफिस पहुंची ही थी कि फिर से मैसेज आया, ‘‘जानू आई एम सौरी,

प्लीज एक बार आ जाओ. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’ दीप्ति जानती थी वह झूठ बोल रहा है पर फिर भी दफ्तर के बाद संदीप के फ्लैट पर चली गई. शायद सबकुछ हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पर फिर से वही कहानी दोहराई गई.

दीप्ति, ‘‘संदीप, तुम्हें मेरी याद बस इसीलिए आती है. उस रोज तो तुम मुझे मैडम बुला रहे थे.’’ ‘‘तुम क्या बुलाओगी दीपक के सामने मुझे और ये जो हम करते हैं उस में तुम्हें भी उतना ही मजा आता है दीप्ति. हम दोनों जरूरतों के लिए बंधे हुए हैं,’’ संदीप ने उसे आईना दिखाया.

दीप्ति को बुरा लगा पर यह वो कड़वी सचाई थी, जिसे वह सुनना नहीं चाहती थी. संदीप ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘ज्यादा सोचो मत. जो है उसे ऐसे ही रहने दो. भावनाओं को बीच में मत लाओ.’’ दीप्ति थके कदमों से अपने घररूपी सराय में चली गई. क्यों वह सबकुछ जान कर भी बारबार संदीप की तरफ खिंची जाती है, यह रहस्य उसे समझ नहीं आता.

काश, वह लौट पाए पुराने समय में, पर यह एक खालीपन था जिसे वह चाह कर भी नहीं भर पा रही थी. अपने को औरत महसूस करने के लिए उसे चाहेअनचाहे संदीप की जरूरत महसूस होती थी.

घर जा कर बैठी ही थी कि दीपक गुनगुनाता हुआ घर में घुसा. दीप्ति से बोला, ‘‘3 दिन की मीटिंग के लिए कोलकाता जा रहा हूं… पैकिंग कर देना.’’

‘‘तुम्हारी खुशी देख कर तो नहीं लग रहा तुम मीटिंग के लिए जा रहे हो.’’

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‘‘यार तो रोते हुए जाऊं क्या?’’

दीप्ति को खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसे ईर्ष्या क्यों हो रही है. वह खुद भी तो यही सब कर रही है.

दीपक के जाने के बाद एक बार मन करा कि संदीप को बुला ले पर फिर उस ने अपने को रोक लिया. संदीप को भावनाओं से ज्यादा शरीर की दरकार थी. आज उसे अपना मन बांटना था पर समझ नहीं आ रहा था क्या करे. मन किया दीपक को फोन कर ले और बोले लौट आओ उन्हीं राहों पर जहां सफर की शुरुआत करी थी पर अहम होता है न वह बड़ेबड़े रिश्तों को घुन की तरह खा जाता है.

न जाने क्या सोचते हुए उस ने शिखा को फोन लगा लिया और बिना रुके अपने मन की बात कह दी, पर संदीप की बात वह जानबूझ कर छिपा गई. शिखा ने शांति से सब सुना और बस कहा कि जो तुम्हें खुशी दे वह करो. मैं तुम्हारे साथ हूं.

उधर होटल में चैक इन करते हुए दीपक बहुत तरोताजा महसूस कर रहा था. निधि भी आई थी. दोनों ने अगलबगल के कमरे लिए थे. दीपक को काम और सुविधा का यह समागम बहुत अच्छा लगता था.

‘‘निधि, जल्दी से तैयार हो जाओ, थोड़ा कोलकाता को महसूस कर लें आज,’’ दीपक ने फोन पर कहा.

‘‘जी जनाब,’’ उधर से खनकती हंसी सुनाई दी निधि की.

केले के पत्ते के रंग की साड़ी, नारंगी प्रिंटेड ब्लाउज साथ में लाल बिंदी और चांदी के झुमके, दीपक उसे एकटक देखता रह गया. फिर बोला, ‘‘निधि यों ही नहीं तुम पर मरता हूं मैं… कुछ तो बात है जो तुम्हें औरों से जुदा कर देती है.’’

शौपिंग करते हुए दीपक ने दीप्ति के लिए 3 महंगी साडि़यां खरीदीं, यह बात निधि की आंखों से छिपी न रही. वह उदास हो गई.

‘‘निधि क्या बात है, तुम्हें भी तो मैं ने दिलाई हैं तुम्हारी पसंद की साडि़यां.’’

‘‘हां, दोयम दर्जे का स्थान है मेरा तुम्हारे जीवन में.’’

‘‘दिमाग खराब मत करो तुम पत्नियों की तरह,’’ दीपक चिढ़े स्वर में बोला.

‘‘हां, वह हक भी तो दीप्ति के पास ही है,’’ निधि ने संयत स्वर में हा.

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वह रात ऐसे ही बीत गई. जाने यह कैसा नशा है जो न चढ़ता है न ही उतरता है बस चंद लम्हों की खुशी के बदले तिलतिल तड़पना है.

सुबह की मीटिंग निबटाने के बाद जब दीपक निधि के रूम में गया तो उसे तैयार होते पाया.

‘‘क्या बात है, आज मेरे कहे बिना ही तैयार हो गई हो?’’ पीले कुरते और केसरी पाजामी में वह एकदम सुरमई शाम लग रही थी.

‘‘मैं आज की शाम संजय के साथ जा रही हूं. तुम्हें भी चलना है तो चलो. वह मेरा सहपाठी था, फिर पता नहीं कब मिले,’’ निधि बोली.

दीपक बोला, ‘‘जब बिना पूछे तय ही कर लिया तो अब यह नाटक क्यों कर रही हो?’’

निधि ने अपनी काजल भरी आंखों को और बड़ा करते हुए कहा, ‘‘क्यों पति की तरह बोर कर रहे हो,’’ और फिर मुसकराते हुए वह तीर की तरह निकल गई.

दीपक सारी शाम उदास बैठा रहा. मन करा दीप्ति को फोन लगाए और बोले कि दीप्ति मुझे वैसा ही ध्यान और प्यार चाहिए जैसा तुम पहले देती थी.

‘‘दीप्ति बहुत याद आ रही है तुम्हारी,’’ उस ने मैसेज किया.

‘‘क्यों क्या काम है, बिना किसी चापलूसी के भी कर दूंगी,’’ उधर से रूखा जवाब आया.

दीपक ने फोन ही बंद कर दिया.

जहां दीप्ति को संदीप के साथ जिस रिश्ते में पहले ताजगी महसूस होती थी वह भी अब बासी होने लगा था. उधर जब से निधि अपने सहपाठी संजय से मिली थी उस का मन उड़ा रहता था. संजय ने अब तक विवाह नहीं किया था और निधि को उस के साथ अपना भविष्य दिख रहा था जबकि दीपक के लिए वह बस एक समय काटने का जरीया थी. वह उस की प्राथमिकता कभी नहीं बन सकती थी.

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आज दीप्ति घर जल्दी आ गई थी. घर हमेशा की तरह सांयसांय कर रहा था. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और बालकनी में बैठ गई. 2 घंटे बीत गए, विचारों के जंगल में घूमते हुए. तभी उस ने देखा कि दीपक की कार आ रही है. उसे आश्चर्य हुआ कि दीपक आज इतनी जल्दी कैसे आ गया.

उस ने दीपक से पूछा, ‘‘आज इतनी जल्दी कैसे?’’

दीपक बोला, ‘‘कहो तो वापस चला जाऊं?’’

दीप्ति हंस कर बोली, ‘‘नहीं, ऐसे ही पूछ रही थी.’’

उस की बात का कोई जवाब दिए बिना दीपक सीधा अपने कमरे में चला गया और अपनी शादी की सीडी लगा कर बैठ गया. दीप्ति भी आ कर बैठ गई.

दोनों अकेले भावनाओं के बियाबान के जंगल में घूमने लगे. मन भीग रहे थे पर लौट कर आने का साहस कौन पहले करेगा.

बिस्तर पर करवट बदलते हुए दीप्ति पुराने दिनों की यादों में चली गई. जब वह और दीपक हंसों के जोड़े के रूप में मशहूर थे. दोनों हर टाइम एकदूसरे के साथ रहने का बहाना ढूंढ़ते थे. फिर एक के बाद एक जिम्मेदारियां बढ़ीं और न जाने कब और कैसे एक अजीब सी चिड़चिड़ाहट दोनों के स्वभाव में आ गई. फलस्वरूप दोनों की नजदीकियां शादी से बाहर बढ़ने लगीं. यही सोचते हुए कब सुबह हो गई दीप्ति को पता ही नहीं चला.

औफिस में जा कर दीप्ति अपने काम में डूब गई. उस ने अपनेआप को काम में पूरी तरह डुबो दिया. अब वह इस मृगतृष्णा से बाहर जाना चाहती थी और उस के लिए हौबी क्लासेज जौइन कर लीं ताकि उस का अकेलापन उसे संदीप की तरफ न ले जाए.

दीपक दफ्तर में मन ही मन कुढ़ रहा था. उस ने निधि को मैसेज भी किया था, पर निधि का मैसेज आया था कि वह बिजी है. दीपक भी अब निधि के नखरों और बेरुखी से परेशान आ चुका था.

उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह शिखा के कहे अनुसार अपनी बेटियों को वापस ले आएगा. पिछले 1 महीने से वह दफ्तर से घर समय पर आ रहा था. उधर दीप्ति भी धीरेधीरे आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी.

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वह सुबह भी आम सी ही थी जब दीपक ने जिम के जानेपहचाने चेहरों के बीच एक ताजा चेहरा देखा. प्रिया नाम था उस का. बेहद चंचल और खूबसूरत.

न जाने क्यों दीपक बारबार उस की ओर ही देखे जा रहा था. प्रिया भी कनखियों से उसे देख लेती थी. उधर दीप्ति के मोबाइल पर फिर से संदीप का मैसेज था जिसे दीप्ति पढ़ते हुए मुसकरा रही थी. फिर से दोनों के दिमाग और दिल पर एक बेलगाम नशा हावी हो रहा था. एक जाल, एक रहस्य ही तो हैं ये रिश्ते. ये तृष्णा अब उन्हें किस मोड़ पर ले कर जाएगी, यह शायद वे नहीं जानते थे.

लौकडाउन स्पेशल : मालती

लेखक- हीरा लाल मिश्र

तेजा के शराब पीने की लत से मालती परेशान थी. लाख कोशिशों के बाद भी तेजा शराब पी कर घर आता तो कलह मचा देता था. एक दिन मालती को कुछ नहीं सूझा तो उस ने एक कड़ा फैसला ले लिया. क्या करना चाहती थी मालती?

कदमों के लड़खड़ाने और कुंडी खटखटाने की आवाज सुन कर मालती चौकन्नी हो उठी और बड़बड़ाई, ‘‘आज फिर…?’’

आंखों में नींद तो थी ही नहीं. झटपट दरवाजा खोला. तेजा को दुख और नफरत से ताकते हुए वह बुदबुदाई, ‘‘क्या करूं? इन का इस शराब से पिंड छूटे तो कैसे?’’

‘‘ऐसे क्या ताक रही है? मैं… कोई तमाशा हूं क्या…? क्या… मैं… कोई भूत हूं?’’ तेजा बहकती आवाज में बड़बड़ाया.

‘‘नहीं, कुछ नहीं…’’ कुछ कदम पीछे हट कर मालती बोली.

‘‘तो फिर… एं… तमाशा ही हूं… न? बोलती… क्यों नहीं…? ’’ कहता हुआ तेजा धड़ाम से सामने रखी चौकी पर पसर गया.

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मालती झटपट रसोईघर से एक गिलास पानी ले आई.

तेजा की ओर पानी का गिलास बढ़ा कर मालती बोली, ‘‘लो, पानी पी लो.’’

‘‘पी… लो? पी कर तो आया हूं… कितना… पी लूं? अपने पैसे से पीया… अकबर ने भी पिला दी… अब तुम भी पिलाने… चली हो…’’

मालती कुछ बोलती कि तेजा ने उस के हाथ से गिलास झपट कर दीवार पर पटकते हुए चिल्लाया, ‘‘मजाक करती है…एं… मजाक करती है मुझ से… पति के साथ… मजाक करती है. …पानी… पानी… देती है,’’ तेजा उठ कर मालती की ओर बढ़ा.

मालती सहम कर पीछे हटी ही थी कि तेजा डगमगाता हुआ सामने की मेज से जा टकराया. मेज एक तरफ उलट गई. मेज पर रखा सारा सामान जोर की आवाज के साथ नीचे बिखर गया. खुद उस का सिर दीवार से जा टकराया और गुस्से में बड़बड़ाता हुआ वह मालती की ओर झपट पड़ा.

मालती को सामने न पा कर तेजा फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.

तेजा के सामने से हट कर मालती एक कोने में दुबकी खड़ी थी. उसे काटो तो खून नहीं. वह एकटक नशे में धुत्त अपने पति को देख रही थी. उस का कलेजा फटा जा रहा था.

तेजा के रोने की आवाज सुन कर बगल के कमरे में सोए दोनों बच्चों की नींद टूट गई. आंखें मलती 10 साल की मुन्नी और उस के पीछे 8 साल का बेटा रमेश पिता की ऐसी हालत देख कर हैरानपरेशान थे.

पिता के इस तरह के बरताव के वे दोनों आदी थे. आज पिता के रोने से उन्हें बड़ी तकलीफ हो रही थी, पर मां के गालों से लुढ़कते आंसुओं को देख कर वे और भी दुखी हो गए.

बेटी मुन्नी मां का हाथ पकड़

कर रोने लगी. रमेश डरासहमा कभी बाप को देखता, तो कभी मां के आंसुओं को.

तेजा को लड़खड़ा कर खड़ा होता देख तीनों का कलेजा पसीज गया.

तभी तेजा मालती पर झपट पड़ा, ‘‘मुझे भूख नहीं लगती क्या?… तुझे मार डालूंगा… तुम ने मुझे नीचे… गिरा दिया और… आंसू बहा रही है… झूठमूठ

के आंसू… तुम ने मुझे मारा… मैं ने

तेरा क्या बिगाड़ा?… एं… क्या बिगाड़ा… बता…?’’

मालती के बाल उस के हाथों

की गिरफ्त में आ गए. वह उन्हें छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी. बेटी मुन्नी जोरों से रोने लगी. रमेश अपने पिता का हाथ अपने नन्हे हाथों से पकड़ कर हटाने की नाकाम कोशिश करने लगा.

मालती ने चिल्ला कर रमेश को मना किया, पर वह नहीं माना. इस बीच तेजा ने रमेश को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया. उस का सिर फर्श से टकराया और देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा.

खून देख कर मालती बदहवास हो कर चिल्ला पड़ी, ‘‘खून… रमेश… मेरे बेटे के सिर से खून…’’

खून देख कर तेजा का हाथ ढीला पड़ा.

मालती और मुन्नी दहाड़ें मार कर रोने लगीं. पड़ोसियों ने आ कर सारा माजरा देखा और रमेश को अस्पताल ले जा कर मरहमपट्टी करवाई. खाना रसोईघर में यों ही पड़ा रहा. मालती रातभर रमेश को सीने से लगाए रोती रही. नींद आंखों से गायब थी.

अपनी औलाद के लिए घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर थी मालती. मन ही मन उस ने तेजा से हार मान ली थी. हालात से समझौता कर मालती ने मान लिया था कि यही उस की किस्मत में लिखा है.

पर, तेजा ने शराब से हार नहीं मानी. रात के अंधेरे में तेजा राक्षस बन कर घर में कुहराम मचाता, तो दिन की रोशनी में भले आदमी की तरह मुसकान बिखेरता मालती और बेटीबेटे को लाड़प्यार करता. ऐसा लगता कि जैसे रात में कुछ हुआ ही नहीं. पर अंदर ही अंदर मालती की घुटन एक चिनगारी का रूप लेने लगी थी.

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एक दिन तो मालती की खिलाफत ने अजीब रंग दिखाया. उस दिन मालती ने दोनों बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया.

तेजा ने पूछा, ‘‘क्या आज स्कूल बंद है? ये तैयार क्यों नहीं हो रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है. इसी वजह से इन्हें रोक लिया,’’ मालती गंभीर हो कर बोली.

‘‘तो मैं आज काम पर नहीं जाता. तुम्हारे पास रहूंगा. इन्हें जाने दो,’’ तेजा बोला.

‘‘नहीं, ये आज नहीं जाएंगे. मेरे पास ही रहेंगे,’’ मालती बोली.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. ज्यादा तबीयत खराब हो, तो मुझे बुलवा लेना. डाक्टर के  पास ले जाऊंगा,’’ तेजा बड़े प्यार से बोला.

मालती और बच्चों को छोड़ तेजा काम पर चला गया.

एक घंटे बाद मालती ने मुन्नी के हाथों शराब की भट्ठी से 4 बोतल शराब मंगवाई. दरवाजा बंद कर धीरेधीरे एक बोतल वह खुद पी गई. फिर मुन्नी व रमेश को पिलाने लगी. मुन्नी ज्यादा पीने की वजह से रोने लगी.

रमेश भी रोता हुआ बड़बड़ाने लगा, ‘‘मम्मी, अच्छी नहीं लग रही है. अब मत पिलाओ मम्मी.’’

‘‘पी लो, थोड़ी और पी लो… देखो, मैं भी तो पी रही हूं…’’ रुकरुक कर मालती बोली और दोनों के मुंह में पूरा गिलास उडे़ल दिया. दोनों ही फर्श पर निढाल हो कर गिर पड़े. मालती ने दूसरी बोतल भी पी डाली और वह भी फर्श पर लुढ़क गई.

थोड़ी देर बाद बच्चे उलटी करने लगे और चिल्लाने लगे.

बच्चों की दर्दभरी कराह और चिल्लाहट सुन कर पड़ोसी दरवाजा तोड़ कर घर में घुसे. वहां की हालत देख कर सभी हैरान रह गए. कमरे में शराब की बदबू पा कर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि तेजा की हरकतों से तंग आ कर ही मालती ने ऐसा किया है.

पड़ोसियों ने तीनों को अस्पताल पहुंचाया.

खबर पा कर तेजा अस्पताल की ओर भागा. मालती और बच्चों का हाल देख कर वह पछाड़ खा कर गिर पड़ा और फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘बचा लो भैया… इन्हें बचा लो… मेरी मालती को बचा लो… मेरे बच्चों को बचा लो…’’ कहता हुआ तेजा अपनी छाती पीट रहा था.

‘‘और शराब पियो तेजा… और पियो… और जुल्म करो अपने बीवीबच्चों पर… देख लिया…’’ एक पड़ोसी ने गुस्साते हुए कहा.

‘‘नहीं, नहीं… मैं कुसूरवार हूं… मेरी वजह से ही यह सब हुआ… उस ने कई बार मुझे समझाने की कोशिश की, पर मैं ही अपनी शराब की बुरी आदत की वजह से मामले को समझ नहीं पाया,’’ रोतेरोते तेजा बोला.

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करीब एक घंटे बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि दोनों बच्चे तो ठीक हैं, पर मालती ने दम तोड़ दिया है. उसे बचाया नहीं जा सका. उस पर शराब के  असर के अलावा दिमागी दबाव बहुत ज्यादा था.

तेजा फूटफूट कर रोने लगा. उसे अक्ल तो आ गई थी, पर इतनी अच्छी बीवी को खोने के बाद.

लिव इन की चोट: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…. लिव इन की चोट: राहुल ने कैसे चुकाई कीमत

‘‘क्या? ऐबौर्शन… कम से कम एक बार मुझ से पूछ तो लेतीं. वह बच्चा मेरा भी तो था?’’ राहुल भरेमन से बोला.

‘‘ओ मिस्टर, ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है,’’ शिल्पा कड़क स्वर में चीखते हुए बोली, ‘‘तुम मेरे हसबैंड नहीं हो, जो मैं तुम्हारी राय पूछती. अरे, मौजमस्ती के परिणाम को पैरों की बेडि़यां नहीं बनाया जाता बल्कि समय रहते काट कर फेंक दिया जाता है ताकि आगे चल कर कोई परेशानी न हो.’’

‘‘सौरी मैम, मैं तो भूल ही गया था कि आप उच्च प्रगतिशील सोच की मालकिन हैं…’’ इतना कहतेकहते राहुल की आंखें भर आईं, ‘‘वैसे हम शादी भी तो कर सकते थे.’’

‘‘ओह राहुल,’’ शिल्पा उस के नजदीक जाते हुए बोली, ‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ और आज नए तरीके से मुझे सैक्स के मजे दिलवाओ. पताहै, करुण मुझे ड्रिंक पर ले जाना चाहता था पर मैं ने मना कर दिया, क्योंकि अब मुझे सिर्फ तुम्हारा साथ भाता है.’’

‘‘पर मैडम, मैं इतने बड़े दिल वाला नहीं जो अपने बच्चे को खोने का जश्न मनाऊं,’’ राहुल खुद को शिल्पा की गिरफ्त से छुड़ाते हुआ बोला.

‘‘ये क्या, तुम ने मेरे बच्चे, मेरे बच्चे की रट लगा रखी है? अरे, वह बच्चा सिर्फ मेरा था, इसलिए उस का क्या करना था, इस का हक भी सिर्फ मुझे ही था.

‘‘और वैसे भी, यह शादी, यह बच्चे जैसी फुजूल की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है. आज सफलता की जिस सीढ़ी की तरफ मैं बढ़ रही हूं वहां मेरे लिए शादी और बच्चे का बोझ ले कर चढ़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है.’’

‘‘तो ठीक है, मैडम,’’ राहुल गुस्से से चीखते हुए बोला, ‘‘तो तुम अब अपनी सफलता के साथ रहो और मुझे अकेला छोड़ दो.’’

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वह गुस्से में पैर पटकता हुआ तेजी से बाहर निकल आया और शिल्पा बदहवास बुत सी बनी बैठी रह गई.

बहुत देर तक खाली विरान सड़कों की खाक छानने के बाद राहुल अचानक विनय के पास पहुंच गया. इस समय वह अपने घर जा कर अपने मातापिता को परेशान नहीं करना चाहता था.

‘‘अरे वाह, आज चांद कहां से निकल आया, भई,’’ विनय मुसकराते हुए उस से पूछने लगा. जवाब में वह फीकी सी हंसी हंस दिया था.

‘‘यार, इस समय तेरे घर आ कर मैं ने तुझे भी परेशान कर कर दिया,’’ राहुल कतर स्वर में विनय से बोला.

‘‘तू भी न, कमाल करता है यार. अगर तू बाहर से ही वापस चला जाता तो राशि भला मुझे बख्शती,’’ इतना कहते ही उस ने राशि को बाहर आने के लिए आवाज लगाई.

‘‘अरे भैया, इतने दिन बाद,’’ राशि मुसकराते हुए उस का स्वागत करने लगी. राशि का ऐसा खुशमिजाज व्यवहार देख कर राहुल उस की तुलना शिल्पा से करने लगा जो उस के दोस्तों को देखते ही बुरा सा मुंह बना लेती है और तब राहुल चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, क्योंकि वह और शिल्पा लिवइन में जो रह रहे थे.

‘‘अरे भैया, कहां खो गए आप…’’ राशि मुन्ने को विनय के हवाले करते हुए बोली, ‘‘आप जरा मुन्ने को संभालिए, मैं झटपट खाना तैयार कर देती हूं. सब्जी और रायता तो तैयार ही है, बस, फुलके सेंकने बाकी हैं.’’

वह फुरती से किचन की तरफ बढ़ गई. इस बीच, राहुल ने मुन्ने को विनय से ले लिया और खुद उस के साथ खेलने लगा.

जब मुन्ने की कोमलकोमल उंगलियों ने राहुल के हाथों का स्पर्श किया तो उस स्पर्शमात्र से ही राहुल का दिल भर आया और वह मन ही मन अपने उस अजन्मे शिशु को याद कर के रो पड़ा, जिसे शिल्पा की  प्रगतिवादी सोच ने असमय अपनी कोख में ही लील लिया था.

थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग टेबल पर थे. सच में राशि के हाथ का खाना खा कर उसे अपनी मां की याद आ गई जो बिलकुल ऐसा ही खाना बना कर उसे खिलाती थीं.

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पर जब से वह शिल्पा के साथ लिवइन में था, तब से उस ने घर के खाने का स्वाद चखा ही नहीं था. शुरुशुरु में जब एक बार राहुल ने शिल्पा से डिनर घर पर बनाने की बात कही, तब वह मानो गुस्से में उस पर फट पड़ी थी और लगभग चीखते हुए बोली, ‘मैं कोई दासी नहीं हूं जो किचन में खड़ी हो कर घंटों पसीना बहाऊं. जो खाना है, बाहर से और्डर कर लो और हां, मेरी चिंता मत करना, क्योंकि मैं डाइटिंग पर हूं.’

‘‘किस सोच में पड़ गए भैया? खाना अच्छा नहीं लगा क्या?’’ राशि के टोकने पर मानो राहुल की तंद्रा भंग हुई और वह अतीत से वर्तमान में आते हुए बोला, ‘‘नहीं भाभी, खाना तो वाकई बहुत बढि़या बना है बल्कि मैं ने तो इतने समय बाद…’’ बाकी बात राहुल ने अपने भीतर ही रोक ली ताकि उसे राशि व विनय के सामने शर्मिंदा न होना पड़े.

‘‘भैया, एक बात कहू,’’करिश्मा का औफर अभी ओपन है आप के लिए, क्योंकि वह आप को अपना क्रश जो मानती है. वैसे, अब उस पर शादी का दबाव बहुत बढ़ रहा है. पर अगर आप चाहें तो मैं सारा मामला तुरंत निबटा सकती हूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि अभी भी आप को ही प्राथमिकता दी जाएगी,’’ राशि झूठे बरतन समेटते हुए बोली.

‘‘तुम भी न राशि,’’ विनय उसी की बात काटते हुए बोला, ‘‘भई, राहुल को तो शादी के नाम से ही चिढ़ है और तुम…’’

‘‘मैं तैयार हूं.’’

राहुल विनय की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा. राहुल के मुंह से यह सुन कर विनय का दिल भर आया और तब भावातिरेक में उस ने राहुल को अपने गले से लगा लिया.

‘‘यह हुई न बात, अब भैया आप ने हां कर दी है, तो देखिएगा कि मैं और विनय मिल कर कैसे आप का मामला फिट करते हैं,’’ राशि भी उत्साहित हो उठी थी.

‘‘हांहां, बिलकुल, अब तो चटमंगनी पट ब्याह होगा,’’ विनय के मुंह से यह अचानक निकला और फिर तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

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