उस समय घर के सभी लोग ठीकठाक थे. जब वह पौने 4 बजे बैंक से घर लौटा तो उसे घर का दरवाजा भिड़ा हुआ मिला, घर में सभी लोगों की लहूलुहान लाशें पड़ी थीं. कहतेकहते आतिश रोने लगा.
मामला गंभीर जरूर था, लेकिन पुलिस अधिकारियों को इस बात की संभावना नजर आ रही थी कि इस केस में ऐसा कोई व्यक्ति शामिल था, जिस के इस परिवार से नजदीकी संबंध थे. प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने चारों शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए.
हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसएसपी सत्यार्थ पंकज ने सीओ बृजनारायण सिंह की अगुवाई में कई पुलिस टीमों को लगा दिया. सभी पुलिस टीमें अलगअलग ऐंगल से केस की तह में पहुंचने की कोशिश में जुट गई.
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एक पुलिस टीम क्षेत्र में स्थित मोबाइल फोन टावर के संपर्क में आने वाले फोन नंबरों (डंप डाटा) को खंगालने में लगी थी तो दूसरी टीम तुलसीदास केसरवानी के घर के बाहर और रास्ते में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने में लगी थी. मृतकों के घर के बाहर भी सीसीटीवी कैमरा लगा था, लेकिन जांच में पता चला कि वह कैमरा पहले से ही खराब था.
सीओ बृजनारायण सिंह अब यह पता लगाने में जुट गए कि केसरवानी परिवार के यहां किनकिन लोगों का आनाजाना था और उन के ऐसे कौनकौन नजदीकी रिश्तेदार या संबंधी हैं, जिन का उन के यहां आनाजाना था.
यह सब जानने के लिए उन्होंने आशीष उर्फ आतिश को कोतवाली बुलवाया. पुलिस की एक टीम को लोगों से बातचीत कर के जानकारी मिली थी कि शादीशुदा आतिश के एक महिला के साथ प्रेम संबंध हैं, जिस की वजह से उस के घर में अकसर झगड़ा होता था.
पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. पुलिस को इस बिंदु पर भी आतिश से बात करनी थी. सीओ बृजनारायण सिंह ने आतिश से सब से पहले पूछा कि उस की या उस के पिता की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी.
आतिश ने किसी से रंजिश होने की बात से इनकार कर दिया. इस के बाद उन्होंने आतिश से उन रिश्तेदारों, दोस्तों या संबंधियों के बारे में पूछा जो उस के घर आतेजाते थे. आतिश ने उन सभी के नाम लिखवा दिए.
यह जानकारी लेने के बाद सीओ साहब ने आतिश से उस महिला के बारे में पूछा, जिस के साथ उस के प्रेम संबंध थे. यह सुनते ही आतिश के चेहरे का रंग उड़ गया. वह संभलते हुए बोला, ‘‘सर, मेरी तो शादी हो चुकी थी, पत्नी प्रियंका के होते मैं यह सब कैसे कर सकता था?’’
‘‘क्या शादीशुदा पुरुषों के किसी दूसरी महिला के साथ संबंध नहीं होते?’’ सीओ साहब ने पूछा.
‘‘सर, होते होंगे, लेकिन मैं ऐसा नहीं हूं.’’ आतिश बोला.
‘‘जब ऐसी बात नहीं थी तो तुम्हारी पत्नी और मातापिता के साथ तुम्हारा किस बात को ले कर झगड़ा होता था?’’ सीओ बृजनारायण सिंह ने उस से पूछा.
‘‘सर, घरेलू बातों को ले कर कभीकभी कहासुनी हो जाती थी.’’ आतिश ने सफाई दी.
‘‘आतिश, तुम झूठ बोल रहे हो. बात घरेलू नहीं बल्कि उस औरत और तुम्हारे संबंधों की ही थी. जिस की वजह से तुम ने कई बार अपने मातापिता और पत्नी की पिटाई तक कर दी थी. तुम बात को छिपाने की कोशिश मत करो, हमें सच्चाई बता दोगे तो सही रहेगा वरना हमें दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ सीओ साहब ने तल्खी से कहा.
सख्ती की बात सुन कर आतिश को लगा कि अब उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं चलेगा. उस की आंखों में आंसू छलक आए. वह सीओ साहब के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘सर, मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मेरी मति मारी गई थी, जो अपने ही घर वालों का दुश्मन बन बैठा.’’
सीओ बृजनारायण सिंह ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘कभीकभी इंसान अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो जाता है कि अपनों का ही अहित कर बैठता है. तुम तो पढ़ेलिखे, अच्छे बिजनैसमैन हो तो फिर यह सब कैसे हो गया?’’
‘‘सर, मातापिता, बहन और पत्नी की हत्या का जिम्मेदार मैं खुद ही हूं. मैं ने 8 लाख रुपए की सुपारी दे कर उन की हत्या कराई थी.’’ आतिश ने बताया.
आतिश से पूछताछ के बाद रिश्तों का कत्ल करने की एक ऐसी कहानी सामने आई, जो दिल को झकझोर देने वाली थी—
तुलसीदास केसरवानी अपने परिवार के साथ प्रयागराज की पौश कालोनी प्रीतम नगर में रहते थे. तुलसीदास केसरवानी मूलरूप से कौशांबी जिले के मंझनपुर के रहने वाले थे. सालों पहले वह प्रयागराज आ कर बस गए थे.
उन के परिवार में पत्नी किरण के अलावा एक बेटा आशीष उर्फ आतिश और एक बेटी नीहारिका उर्फ गुडि़या थी. तुलसीदास केसरवानी ने अपने घर में ही अपनी बेटी के नाम पर गुडि़या इलैक्ट्रिकल्स की दुकान खोल ली थी. उन की बिजली के उपकरण बेचने की काफी बड़ी दुकान थी. उन की यह दुकान कालोनी में होने के बावजूद अच्छी चलती थी. दुकान की आमदनी से न केवल उन का घर ठीक से चल रहा था, बल्कि दोनों बच्चों को भी पढ़ायालिखाया.
बेटा आतिश ग्रैजुएशन करने के बाद पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था. तुलसीदास धीरेधीरे दुकान की जिम्मेदारी आतिश को ही सौंपने लगे थे. उन्होंने अपनी दुकान पर काम करने के लिए अनुज नाम के एक युवक को नौकरी पर रख लिया था.
करीब 4 साल पहले आतिश ने शहर की ही प्रियंका से लवमैरिज कर ली थी. पिता तुलसीदास केसरवानी पुराने विचारों के थे. वह मन में एकलौते बेटे की शादी के सपने संजोए थे, लेकिन जब बेटे ने प्रियंका को चुन लिया तो उन्होंने उसे ही बहू स्वीकार कर लिया.
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प्रियंका ने भी अपने व्यवहार से ससुराल के सभी लोगों के दिलों में जगह बना ली. नीहारिका वैसे तो प्रियंका की ननद थी लेकिन उन दोनों की आपस में फ्रैंड की तरह अच्छी पटती थी.
सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 6 महीने पहले मोनिका (परिवर्तित) नाम की एक महिला आतिश के जीवन में ऐसी आई कि केसरवानी परिवार में हलचल मच गई.
दरअसल, धूमनगंज की रहने वाली मोनिका आतिश के घर में घरेलू काम करने आती थी. उस का विकलांग पति सरकारी नौकरी करता था लेकिन एक फरजीवाड़े के आरोप में वह बरखास्त हो गया था. इस के बाद उस के घर में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई थी.
कुछ दिनों तक तो पतिपत्नी अपनी जमापूंजी से घर का खर्च चलाते रहे. इस के बाद उन्होंने लोगों से पैसे उधार ले कर काम चलाया. चूंकि मोनिका का पति विकलांग था, इसलिए वह कोई दूसरा मेहनत का काम नहीं कर सकता था. इसलिए जब भूखों मरने की नौबत आ गई तो मोनिका ने ही काम करने के लिए घर से बाहर कदम रखे.
वह घरों में काम करने लगी. इसी दौरान तुलसीदास केसरवानी की पत्नी किरण ने दया दिखाते हुए मोनिका को अपने यहां घर के काम करने के लिए रख लिया.
मोनिका खूबसूरत होने के साथसाथ घर के काम करने में होशियार थी. इसलिए केसरवानी परिवार में मोनिका को हमदर्दी भरा प्यार मिला, इस से वह केसरवानी परिवार के सभी सदस्यों से घुलमिल गई.
मोनिका जवान व हंसमुख थी. आतिश को उस का हंसमुख होना पसंद था. मोनिका की इसी आदत ने आतिश के दिल में जगह बना ली. यानी शादीशुदा होते हुए भी उस का झुकाव मोनिका की तरफ हो गया. वह समयसमय पर उसे आर्थिक सहयोग भी देने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों बहुत जल्दी ही एकदूसरे के करीब आ गए. फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों ने अपनेअपने जीवनसाथियों को धोखा दे कर हसरतें पूरी कर लीं.