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पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 1

इसी दौरान नेहा के पिता ने शांति सागर के श्री चरणों में निवेदन किया था कि वे उन्हें अपना शिष्य बना लें. हजारों भक्तों की भीड़ में रोज कई लोग शिष्य बनने की अनुनयविनय करते रहते हैं, पर मुनियों का जिस पर मन आ जाता है, वे उसे ही शिष्य बनाते हैं. नेहा के पिता के आग्रह को शांति सागर टाल गया.

दूसरे दिन जब शांति सागर ने नेहा को देखा तो जाने क्या हुआ कि उस के दिलोदिमाग में अशांति  छा गई. सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और संयम जैसे शब्द उड़नछू हो गए और इस शातिर का दिमाग नेहा को हासिल करने की जुगत में जुट गया.

कुछ सोचते हुए शांति सागर ने नेहा के पिता को बुलाया और सपरिवार दीक्षा देने यानी शिष्य बनाने को तैयार हो गया. खुद मुनि ने बुला कर गुरू बनने की बात कही, यह नेहा के पिता के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं थी.

उन की बांछें खिल उठीं और फिर देखते ही देखते उन का पूरा परिवार शांति सागर की सेवा में लग गया.

नेहा कैसे आई मुनि शांति सागर के प्रभाव में

मांडवी में नेहा कुछ दिन रुकी, फिर भाई के पास वापस बड़ौदा चली गई. पर उसे सपने में भी अहसास नहीं था कि वह किसी ऐसेवैसे या ऐरेगैरेनत्थूखैरे का नहीं बल्कि आचार्य तक कहे जाने वाले मुनि शांति सागर का दिल चुरा कर ले जा रही है, जो अब तक तप में रमा था.

बड़ौदा आ कर वह अपने कामों में लग गई पर शांति सागर के चमत्कारों ने उस के दिलोदिमाग पर गहरी छाप छोड़ दी थी. जैन धर्म में भी मंत्र जाप का काफी महत्व है. 4 फिरकों में बंटे जैन धर्म के 2 अहम संप्रदाय तेरापंथी और बीसपंथी हैं. तेरापंथी चमत्कारों में भरोसा नहीं करते, लेकिन बीसपंथी से जुड़ा शांति सागर कभीकभार ऐसा हैरतंगेज चमत्कार भक्तों, शिष्यों और श्रद्धालुओं को दिखा दिया करता था कि सभी हैरान रह जाते थे और उस में उन की आस्था और भी बढ़ जाती थी. कभीकभार गुस्से में आ कर वह अपने विरोधियों को कबूतर बनाने की धौंस देता था.

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कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए. लेकिन एक दिन नेहा उस वक्त हतप्रभ रह गई, जब उस के पास शांति सागर का फोन आया. चूंकि धर्म में उस की अगाध श्रद्धा थी, इस नाते वह जानती थी कि जैन मुनि मोबाइल फोन जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं करते हैं. सांसारिक वस्तुओं से परहेज करने वाले गुरुजी के फोन से उसे खुशी तो हुई पर हैरानी भी कम नहीं हुई.

चिडि़या की तरह फंसी नेहा मुनि शांति सागर के जाल में

उस ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दे ली कि यूं ही किसी भक्त के मोबाइल फोन से उन्होंने उसे काल कर दिया होगा. नेहा को इतनी जानकारी तो थी कि मुनि लोग अपने पास केवल पिच्छिका रखते हैं और आमतौर पर सूरज ढलने के बाद मौन धारण कर लेते हैं, लेकिन शांति सागर ने उसे रात को फोन कर के बात की थी.

बाद में यह जान कर तो उस की हैरानी और बढ़ गई कि शांति सागर के पास खुद के पांचपांच मोबाइल फोन हैं और वे वाट्सऐप का भी प्रयोग करते हैं. इस बाबत अपने मन में उमड़तीघुमड़ती शंकाओं को ले कर उस ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दे ली कि उसे मुनियों के मामले में मीनमेख नहीं निकालनी चाहिए, यह अधर्म है.

फिर अकसर मोबाइल के जरिए शांति सागर नेहा के संपर्क में रहने लगा. एक दिन उस ने नेहा से उस की सब से बड़ी इच्छा पूछी तो अल्हड़ नेहा ने तुरंत कह दिया कि बस मैं और मेरे मम्मीपापा हमेशा खुश रहें.

चिडि़या को जाल में फंसते देख शांति सागर ने फोन पर ही तथास्तु की मुद्रा में उस से कहा कि ऐसा ही होगा, पर इस के लिए मंत्र जाप करना होगा, इसलिए तुम अपना एक फोटो वाट्सऐप पर भेज दो.

अपनी इच्छा पूरी होने की गारंटी मिलते देख नेहा ने तुरंत अपना फोटो वाट्सऐप पर भेज दिया. इस पर शांति सागर का फोन आया कि अरे ऐसा फोटो नहीं, बल्कि वैसा दिगंबर भेजो, जैसा मैं रहता हूं.

ऐसी बात या प्रस्ताव पर भला कौन भारतीय युवती होगी जो शर्म से लाल न हो उठे, यही नेहा के साथ हुआ. उस ने हिचकिचाहट दिखाते इनकार कर दिया तो शांति सागर ने बड़े दार्शनिक अंदाज में उसे समझाया कि अरे पगली भगवान तो सब को इसी अवस्था में पैदा करता है, ये वस्त्र तो दुनिया वाले पहना देते हैं.

इस के बाद भी नेहा सहमत नहीं हुई तो मुनि ने समझाया कि अब जप शुरू हो चुका है और इसे बीच में छोड़ने से तुम्हारे मातापिता का अनिष्ट हो सकता है. यह चूंकि विशेष प्रकार का जप है जो नग्नावस्था में ही पूरा होता है, इसलिए अनिष्ट से बचने के लिए नग्न फोटो भेजो.

अनहोनी से डर गई नेहा ने अपने कपड़े उतारे और उसी अवस्था में अपना फोटो खींच कर शांति सागर को भेज दिया. इस वक्त वह बेहद दुविधा में थी और लजा भी रही थी, खुद अपने कपड़े उतारते बारबार उस के हाथ कांप रहे थे. बात थी ही कुछ ऐसी ही.

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फोटो भेज कर वह पूरी तरह बेफिक्र हो पाती कि 2 दिन बाद फिर इस कामुक मुनि का फोन आया, जिस का सार यह था कि चूंकि यह फोटो थोड़े अंधेरे में खींचा गया है, इसलिए मंत्र असर नहीं कर रहे हैं. उस ने इस बार नेहा को निर्देश दिया कि वह पूरी रोशनी में निर्वस्त्र हो कर फोटो खींच कर भेजे, तभी अनिष्ट से बचा जा सकता है.

अपने जाल को धीरेधीरे फैलाता रहा मुनि शांति सागर

2 दिन पहले अपना नग्न फोटो भेज चुकी नेहा की झिझक थोड़ी कम हो गई थी, इसलिए उस ने गुरु की इस आज्ञा का भी पालन किया और वे जैसा फोटो चाहते थे, वैसा भेज दिया. लेकिन इस बात की चर्चा उस ने घर वालों से नहीं की, जिन की सलामती के लिए उस ने नारीसुलभ लज्जा दांव पर लगा दी थी.

2 महीने गुजर गए तो नेहा के मन से डर जाता रहा और उस ने मन ही मान लिया कि मंत्र जाप के लिए निर्वस्त्र फोटो जरूरी होता होगा, इसलिए शंका और चिंता की कोई बात नहीं. इस चक्कर में उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उस का नग्न फोटो देख शांति सागर ने उस की खूबसूरती की भूरिभूरि प्रशंसा की थी, जैसे वह कोई मुनि न हो कर दिलफेंक आशिक हो. नेहा के मन में तो परिवार की सुरक्षा की चिंता थी. वह अज्ञात आशंकाओं से उबरना चाहती थी.

फिर एक दिन शांति सागर ने उसे बताया कि सब कुछ ठीकठाक है, लेकिन इस बार मेरे चातुर्मास में तुम परिवार सहित आना. उस वक्त एक और विशेष जाप करूंगा, जिस से फिर तुम्हें या तुम्हारे परिवार को कभी कोई खतरा नहीं रह होगा. शांति सागर ने किस धूर्तता से संभ्रांत घराने की एक सांस्कारिक युवती को अपने जाल में फंसा लिया था, यह बात कोई समझ नहीं पाया. क्योंकि नेहा सब कुछ छिपाने की गलती कर रही थी. उस ने चातुर्मास में आने सहमति दे दी.

दरअसल, नेहा के नग्न फोटो देख कर ही शांति सागर के तनमन का संयम दरक चुका था और अब वह इस कल्पना में डूबा रहता था कि जब नेहा साक्षात इस अवस्था में उस के सामने होगी तब…

इस बाबत यह बहेलिया एक और जाल बुन रहा था. लेकिन उस के प्रवचनों में जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की रोजाना व्याख्या होती थी, जिसे सुन लोग अभिभूत हो उठते थे. शांति सागर को णमोकार बाबा के नाम से भी बुलाया जाता था.

जैन धर्म में मुनियों के चातुर्मास का विशेष महत्त्व होता है. बारिश के 4 महीनों में जैन धर्म के भव्य धार्मिक आयोजन शबाब पर होते हैं, जिन में भक्त दिल खोल कर धन लुटाते हैं. कौन कहां किस मुनि के सान्निध्य में चातुर्मास व्यतीत करेगा, यह जैन धर्मावलंबी काफी पहले तय कर लेते हैं और बढ़चढ़ कर उन में हिस्सा लेते हैं.

मुनि शांति सागर ने सही वक्त पर बांधी नेहा को फंसाने की भूमिका

इस बार शांति सागर ने अपने संघ का चातुर्मास सूरत जिले के नानपुरा टाटलियावाड़ स्थित जैन मंदिर में व्यतीत करने का फैसला लिया तो वहां के भक्तों ने शांति सागर की आगवानी में पलकपांवड़े बिछा दिए. समारोहपूर्वक चातुर्मास की तैयारियां करने में टाटलियावाड़ के जैनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. मंदिर पहुंच कर शांति सागर ने प्रवचन शुरू किए तो रोज भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी.

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अपना कामुक मकसद पूरा करने के लिए शांति सागर ने ग्वालियर में नेहा के पिता को चातुर्मास में आने को कहा तो वे मानो धन्य हो उठे. ऐसा अपवाद स्वरूप ही होता है कि गुरु खुद शिष्य को आमंत्रित करे. शांति सागर का मुरीद हो चुका नेहा का परिवार सितंबर के महीने में टाटलियावाड़ पहुंच गया. इस के पहले शांति सागर ने नेहा को भी कह दिया था कि वह अपने घरवालों के साथ जरूर आए क्योंकि इन दिनों में विशेष जाप करना है.

धर्मज्ञानी और अनुभवी शांति सागर को इतना तो समझ आ गया था कि नेहा एकदम से उस के सामने समर्पण नहीं कर देने वाली, इसलिए नेहा को और गिरफ्त में लेने के लिए उस ने 29 सितंबर को सैकड़ों भक्तों के सामने एक पत्थर को पानी में तैराने का अविश्वसनीय कारनामा कर दिखाया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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