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19 वर्षीया नेहा जैन (बदला नाम) हद से ज्यादा धार्मिक और आस्तिक युवती थी. नेहा के पास वह सब कुछ था जिस पर वह चाहती तो घमंड कर सकती थी. एक धनाढ्य जैन परिवार में जन्मी नेहा की खूबसूरती में गजब की सादगी थी. गुरूर से कोसों दूर रहने वाली नेहा की कोई उम्रजनित इच्छा नहीं थी, सिवाय इस के कि उस के मम्मीपापा हमेशा खुश और स्वस्थ रहें.

नेहा के पिता का ग्वालियर में खासा रसूख और इज्जत दोनों है. वहां उन के कई लौज और धर्मशालाएं हैं, जिन से उन्हें खासी आमदनी होती है. धार्मिक माहौल नेहा को बचपन से ही मिला था, जहां घर में चाहे कुछ भी हो रहा हो, प्रतिदिन मंदिर जाना एक अनिवार्यता थी.

जैन मुनियों ओर गुरुओं में अपार आस्था रखने वाली नेहा चाहती थी कि ऐसी कोई गारंटी मिल जाए तो मजा आ जाए, जिस से कि उस के मम्मीपापा हमेशा खुश रहें, उन पर कभी कोई विपत्ति न आए. इस उम्र में मांबाप से इतना लगाव या चाहत कतई हैरानी की बात नहीं है. दूसरी तरफ उस के मम्मीपापा भी चाहते थे कि नेहा खूब पढ़लिख जाए और किसी अच्छे परिवार के लड़के से उस की शादी हो जाए तो उन की एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.

व्यावसायिक बुद्धि के लिए पहचाने जाने वाले जैन समुदाय के अधिकांश लोग धनाढ्य होते हैं. अपनी संपन्नता की वजह वे अपने धर्म और उन मुनियों को बहुत मानते हैं, जिन के कठोर त्याग, तपस्या की माला हर कोई जपता रहता है. नेहा को भी ऐसे किसी गुरू की तलाश थी, जो एक बार उसे यह आश्वासन दे दे कि उस के मम्मीपापा को कुछ नहीं होगा. इस आश्वासन के बदले वह कुछ भी करने तैयार थी.

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