मर्दों की विरासत को नया नजरिया देती गांव की बिटिया

लेखक- देवांशु तिवारी

हाथ में तलवार, आंखें तिरछी और तेज आवाज में क्या कोई आप के दिल को छू सकता है? कई लोग कहेंगे कि दिल को छूने का तो नहीं पता, पर दिल में छेद जरूर कर सकती है ऐसी शख्सीयत, लेकिन आप को इतना सोचने की जरूरत नहीं है, क्योंकि शीलू यह सबकुछ करती है और लोग उस को इस अंदाज में देख कर दंग रह जाते हैं.

उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में एक छोटे से इलाके गुरुबक्शगंज की रहने वाली शीलू सिंह राजपूत एक आल्हा गायिका हैं.

याद रहे कि आल्हा गीत पुराने समय में राजामहाराजाओं के लड़ाई पर जाने से पहले गाया जाता था. इस गीत को केवल मर्द ही गाते थे.

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पर, शीलू तो एक लड़की है, फिर भला वह क्यों गाने लगी वीर रस से भरा मर्दों का यह आल्हा? यही एक सवाल कभी समाज ने उस से पूछा था, जब छोटी सी उम्र में शीलू ने अपने हाथ में पहली बार तलवार थामी थी और आल्हा गाना शुरू किया था.

शीलू रायबरेली जिले के जिस हिस्से से आती है, वह बेहद पिछड़ा हुआ इलाका है. यहां ज्यादातर लड़कियों के हाथों में जिस उम्र में किताबें होनी चाहिए, वे चूल्हे में पड़ी लकडि़यों को जलाने वाली फुंकनी और गोलगोल रोटी बनाने वाला बेलन लिए हुए नजर आ जाएंगी. इन देहाती हालात के बीच शीलू ने अपनी अलग राह खुद चुनी है और इस में सब से बड़ी बात यह रही कि उस के पिता भगवानदीन ने उस का हर कदम पर साथ दिया.

आल्हा गायक लल्लू बाजपेयी का आल्हा सुन कर शीलू बड़ी हुई और आज एक जानीपहचानी आल्हा गायिका बन चुकी है. उस के इस हुनर को आज केवल उस के गांव वाले ही नहीं, बल्कि कई राष्ट्रीय व राजकीय मंच भी सराह चुके हैं. पहले गांव के जो लोग उस को ऐसा करते देख आंखें टेढ़ी कर लिया करते थे, आज वही अपनी लड़कियों को शीलू का आल्हा दिखाने लाते हैं.

शीलू ने आल्हा गायन के साथसाथ हाल ही में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. लेकिन जब भी वह आल्हा गाने मंच पर आती है, तो उस की मासूमियत कहीं ऐसे छिप जाती है मानो दोपहर का चमचमाता सूरज अचानक बदली में कहीं गुम हो जाता है.

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चेहरे पर वही तेज, हाथों में धारदार तलवार और तिरछी आंखें. चारों ओर बैठे लोग उसे इस अंदाज में देख कर दंग रह जाते हैं.

लोग कहते हैं कि शीलू जब अपने हाथों में तलवार नचाते हुए आल्हा गाती है, तो मंच पर एक अजीब सा कंपन महसूस होता है और शरीर में अपनेआप रोमांच हो जाता है. उस का आल्हा दिल को ऐसे छू लेता है कि अगले दिन तक वह आवाज कानों में गूंजती रहती है.

शीलू का यह हुनर उस के परिवार को अब हर लमहा गर्व का अहसास कराता है और सीना ठोंक के चुनौती देता है समाज की हर उस रूढि़वादी सोच को, जो औरतों को हमेशा चारदीवारी के अंदर रहने को मजबूर करती है.

कालगर्ल के चक्कर में गांव के नौजवान

एक किस्सा हमें यह सबक देने वाला है कि गांवदेहात के पिछड़े तबके के नौजवान कैसे अपने सीधेपन के चलते शहरी कालगर्ल के चक्कर में फंस कर लुटपिट कर खिसियाए से वापस गांव आ जाते हैं और फिर डर और शर्म के मारे किसी से कुछ कह भी नहीं पाते हैं.

इस मामले में भी यही होता, अगर घर वालों ने पैसों का हिसाब नहीं मांगा होता. जब कोई बहाना या जवाब नहीं सूझा तो इन तीनों ने सच उगल देने में ही भलाई समझी, जिस से न केवल इन्हें लूटने वाली कालगर्ल पकड़ी गई, बल्कि उस के साथी लुटेरे भी धर लिए गए.

बात नए साल की पहली तारीख की है, जब पूरी दुनिया ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के जश्न और मस्ती में डूबी थी. दोपहर के वक्त कुछ बूढ़ों ने भोपाल के अयोध्या नगर थाने आ कर अपने बेटों के लुट जाने की रिपोर्ट लिखाई.

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दरअसल हुआ यों था कि 3 दिन पहले ही भोपाल के नजदीक सीहोर जिले के गांव श्यामपुर का विष्णु मीणा भोपाल में अपनी कार का टायर बदलवाने आया था. वक्त काटने और कुछ मौजमस्ती की गरज से वह अपने साथ 2 दोस्तों हेम सिंह और उमेश दांगी को भी ले आया था.

साल के आखिर के दिनों में उन तीनों नौजवानों पर भी मौजमस्ती करने का बुखार चढ़ा था. कार के टायर बदलवाने के लिए उन्होंने शोरूम पर कार खड़ी कर दी. उस वक्त विष्णु मीणा की जेब में तकरीबन 80 हजार रुपए नकद रखे थे.

टायर बदलवाने में 2-4 घंटे लगते, इसलिए उन्होंने तय किया कि तब तक आशमा नाम की कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते हैं, जिस में तकरीबन 3-4 हजार रुपए का खर्च आएगा, जो उन लोगों के लिए कोई बड़ी रकम नहीं थी.

विष्णु मीणा और उस के दोनों दोस्तों की गिनती भले ही पिछड़े तबके में होती हो, लेकिन इस तबके के ज्यादातर  लोग पैसे वाले हैं. इन लोगों के पास खेतीकिसानी की खूब जमीनें हैं और ये मेहनत भी खूब करते हैं.

उन्होंने आशमा को फोन किया, तो वह झट से राजी हो गई और अपनी फीस के बाबत भी उस ने ज्यादा नखरे नहीं दिखाए. दिक्कत जगह की थी तो वह भी आशमा ने ही दूर कर दी. मोबाइल फोन पर ही उस ने उन्हें बताया कि वे देवलोक अस्पताल के नजदीक के एक फ्लैट में आ जाएं.

आशमा की हां सुनते ही कड़कड़ाती ठंड में उन नौजवानों के जिस्म गरमा उठे. गदराए बदन की खूबसूरत 22 साला आशमा उन के लिए नई नहीं थी, इसलिए वे बेफिक्र थे कि जब तक शोरूम पर कार के टायर बदलते हैं, तब तक वे आशमा को ड्राइव कर आते हैं.

आशमा का बताया फ्लैट ज्यादा दूर नहीं था. वहां पहुंचते ही उन तीनों ने सुकून की सांस ली, क्योंकि फ्लैट में आशमा अकेली थी और आसपास के लोगों को उन के वहां जाने का कुछ नहीं पता चला था.

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उन तीनों का यह सोचना सही निकला कि शहरों में गांवों की तरह कोई अड़ोसपड़ोस में ताकझांक नहीं करता कि कौन किस के यहां क्यों आ रहा है. जैसे ही वे फ्लैट के अंदर पहुंचे, तो आशमा ने जानलेवा मुसकराहट के साथ सैक्सी अदा से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

आशमा का बस इतना करना काफी था और वे तीनों अपनेअपने तीरके से आशमा को टटोलने लगे.

बात पूरी हो पाती, इस के पहले ही आशमा बोली, ‘‘पहले चाय पी कर तो गरम हो लो. शराब तो तुम लोग पीते नहीं, फिर इतमीनान से गरम और ठंडे होते रहना,’’ इतना कह कर वह चाय बनाने रसोईघर में चली गई. वे तीनों बेचैनी से उस के आने का इंतजार करने लगे.

आशमा रसोईघर से बाहर आती, उस के पहले ही फ्लैट में बिलकुल फिल्मी अंदाज में 3 लोग दाखिल हुए और खुद को सीआईडी पुलिस बताया तो उन तीनों के होश उड़ गए. पुलिस वाले काफी दबंग और रोबीले थे और उन के पास वायरलैस सैट भी था.

एक पुलिस वाले ने कट्टा निकाल कर उन तीनों को हैंड्सअप करवा दिया, तो वे थरथर कांपने लगे. आशमा भी बेबस खड़ी रही.

कुछ देर बाद बात या सौदेबाजी शुरू हुई कि साहब कुछ लेदे कर छोड़ दो तो पुलिस वालों के तेवर कुछ ढीले पड़े, लेकिन उन्होंने उन तीनों की जेबें ढीली करवा लीं. विष्णु मीणा की जेब में रखे नकद 80 हजार रुपए भी उन्हें कम लगे तो उन्होंने 3 हजार रुपए औनलाइन भी योगेंद्र विश्वकर्मा नाम के पुलिस वाले के खाते में ट्रांसफर कराए.

घर लौटे बुद्धू

एकाएक ही टपक पड़े पुलिस वालों के चले जाने के बाद उन तीनों ने राहत की सांस ली और जातेजाते आशमा के भरेपूरे बदन को आह भर कर देखा, जिसे वे सिर्फ टटोल पाए थे, पर लुत्फ नहीं उठा पाए थे.

रास्ते में उन तीनों ने तय किया कि अब गांव जा कर अगर वे सच बताएंगे, तो बदनामी तो होगी ही. साथ ही, ठुकाईपिटाई होगी सो अलग, इसलिए बेहतरी इसी में है कि बात दबा कर रखी जाए.

लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, क्योंकि जैसे ही विष्णु मीणा के पिता ने पैसों का हिसाब मांगा तो वह हड़बड़ा गया और सच उगल दिया.

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पिता बखूबी समझ गए कि वे तीनों कार्लगर्ल आशमा की साजिश का शिकार हो गए हैं. लिहाजा, उन्होंने भोपाल आ कर थाना इंचार्ज महेंद्र सिंह को सारी बात बता कर इंसाफ की गुहार लगाई.

पुलिस वाले भी समझ गए कि एक बार फिर देहाती लड़के योगेंद्र विश्वकर्मा और आशमा के गिरोह का शिकार हो गए, जो पहले भी एक बार इसी तरह ठगी के मामले में पकड़ा जा चुका है.

उन तीनों के पास सिर्फ आशमा का मोबाइल नंबर था, जिसे ट्रेस कर पुलिस वालों ने पहले आशमा और फिर उस के तीनों साथियों को गिरफ्तार कर सच उगलवा लिया.

एहतियात जरूरी है

भोपाल के नजदीक बैरसिया के एक गांव के 70 साला लल्लन सिंह कुशवाहा (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि अब से तकरीबन 30-40 साल पहले वे भी भोपाल के कोठों पर जाया करते थे, जो पुराने भोपाल और लक्ष्मी सिनेमाघर के आसपास हुआ करते थे. शाम ढलते ही इन कोठों पर मुजरा होता था, जिसे देखने के 20 रुपए लगते थे.

लेकिन जिन्हें रात काटनी होती थी उन्हें 300-400 रुपए देने पड़ते थे, वह भी इन के दलालों की मारफत तब ऐसी ठगी कभीकभार होती थी. दलाल पैसा ले कर छूमंतर हो जाते थे या फिर तवायफ ही जेब का सारा पैसा झटक लेती थी, क्योंकि इन बदनाम इलाकों की पुलिस वालों से मिलीभगत होती थी, इसलिए वह वहां दखल नहीं देती थी.

लल्लन सिंह एक दिलचस्प खुलासा यह भी करते हैं कि तब भी तवायफों के पास जाने वालों में हम पिछड़ों की तादाद ज्यादा हुआ करती थी. दबंग तो अपनी हवेलियों में ही मुजरा करवा लिया करते थे और रात भी रंगीन करते थे. मुसीबत हम पिछड़ों की थी, जिन्हें अपने घरों से महफिल सजाने की इजाजत नहीं थी. यह हक दबंगों को ही था. कोई और महफिल सजाता था, तो इन की शान और रसूख पर बट्टा लगता था, इसलिए ये लोग अकसर मारपीट और हिंसा पर उतर आते थे.

अब पिछड़े नौजवान नई गलती करते हैं, जो विष्णु मीणा, हेम सिंह और उमेश दांगी ने की कि कालगर्ल पर आंखें मूंद कर भरोसा किया. किसी भी अनहोनी से बचना जरूरी है. ऐसी अनहोनी से बचने के लिए जरूरी है कि इस तरह के एहतियात बरते जाएं:

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* कालगर्ल के पास जाते वक्त ज्यादा नकदी साथ न रखें.

* कालगर्ल पर आंख बंद कर के भरोसा न करें.

* अगर एक से ज्यादा लड़के हों, तो एक लड़का बाहर पहरा दे और कोई गड़बड़झाला दिखे, तो तुरंत साथी को मोबाइल पर खबर करे.

* कालगर्ल के साथ मौजमस्ती के दौरान पुलिस वाले या पुलिस वालों की वरदी में कोई धड़धड़ाता आ जाए तो डरें नहीं, बल्कि उस से सवालजवाब करें और गिरफ्तारी की धौंस से भी न डरें.

* जिस जगह जाना तय हुआ है, उस का एकाध चक्कर पहले से लगा कर मुआयना कर लें.

* मौजमस्ती के दौरान कालगर्ल का मोबाइल बंद करा लें, जिस से वह वीडियो रेकौर्डिंग कर बाद में ब्लैकमेल न कर पाए.

* कमरे की भी तलाशी लें कि कहीं छिपा हुआ कैमरा न लगा हो.

* कालगर्ल ज्यादा जोर दे कर खानेपीने को कहे तो मना कर दें.

* शराब का नशा कर कालगर्ल के पास न जाएं.

* कालगर्ल से मोलभाव करें और पैसा कम होने का रोना रोएं.

* कालगर्ल की बताई जगह के बजाय खुद की जगह पर उसे बुलाएं. जगह का इंतजाम पहले से करें.

* इस के बाद भी ऐसी कोई वारदात हो जाए, जो इन तीनों नौजवानों के साथ हुई तो थाने जाने से हिचकिचाएं नहीं. बदनामी तो हर हाल में होगी या फिर लंबा चूना लगेगा, इसलिए बदनामी से न डरें.

* अगर लुटपिट जाएं और थाने जाने की हिम्मत न पड़े तो दोस्तों और घर वालों की मदद लें. डांटफटकार तो पड़ेगी, लेकिन पैसे वापस मिलने की उम्मीद रहेगी.

वैसे, पहली कोशिश शहरी कालगर्ल से बचने की होनी चाहिए. शहरों में अब इन का कोई भरोसा नहीं रह गया है. ये गिरोह बना कर गांवदेहात के लड़कों का सीधापन देख कर तरहतरह से उन की जेबें ढीली कराने से गुरेज नहीं करतीं, इसलिए इन से परहेज ही करना चाहिए.

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