Yogi Government : यूपी सरकार का बुलडोजर न्याय और आम आदमी

 

Buldozer Sarkar : इन दोनों देश भर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की तर्ज पर बुलडोजर न्याय चल पड़ा है. देश के अनेक राज्यों में बुलडोजर चला करके आनन-फानन में विकास और न्याय करने का ढोंग किया जा रहा है.

यह बुलडोजर न्याय उत्तर प्रदेश से प्रारंभ हुआ है जहां एक वर्ग विशेष के लोग अगर किसी अपराध में पाए जाते हैं तो उनके घर मकान को जमीदोज कर दिया जाता है. ऐसा लगता है कि अब सरकार सत्ता के साथ न्यायाधीश भी बन गई है जैसे कभी राजा महाराजा हुआ करते थे इस शैली में न्याय करने का प्रयास किया जा रहा है जिसकी कम से कम लोकतंत्र में कहीं भी जगह नहीं है.

यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय ने 6 नवंबर 2024 दिन बुधवार को 2019 में अवैध तरीके से ढांचों को गिराने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार से नाखुशी जताई और कहा, आप ऐसा नहीं कर सकते कि बुलडोजर लेकर आएं और रातों रात भवनों को गिरा दें…! कोर्ट ने साथ ही सड़कें चौड़ी करने एवं अतिक्रमण हटाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए. देश के सबसे बड़े अदालत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया -” उस व्यक्ति को 25 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए जिसका घर 2019 में सड़क चौड़ी करने की एक परियोजना के लिए गिरा दिया गया था.”

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा, -” आप ऐसा नहीं कर सकते कि बुलडोजर लेकर आएं और रातों रात भवनों को गिरा दें. आप परिवार को घर खाली करने के लिए समय नहीं देते. घर में रखे घरेलू सामान का क्या ? शीर्ष अदालत की पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से कहा कि महाराजगंज जिले में मकान गिराने से संबंधित मामले में जांच कराई जाए और उचित कार्रवाई की जाए.

बिना सूचना ढहा दी हास्पिटल

देश में इन दिनों फोर लेन और सिक्स लेन का काम बड़े जोरों से चल रहा है, समयबद्ध तरीके से सड़के बनाने के निर्देश और दबाव के बीच कई तरह की घटनाएं सामने आ रही है. ऐसे में ही एक घटना छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में घटित हुई जहां कोरबा चांपा मार्ग के सरगबुंदिया गांव में प्रतिष्ठित डॉक्टर देवनाथ एम डी के अक्षय हॉस्पिटल को बिना किसी सूचना दिए रातोंरात ढहा दिया गया. जबकि डॉक्टर के पास जमीन के सभी दस्तावेज मौजूद है इसके बावजूद ना कोई मुआवजा दिया गया है और ना ही कुछ सुनवाई हो रही है. डॉक्टर देवनाथ मामले को लेकर के उच्च न्यायालय बिलासपुर पहुंचे हैं. ऐसी ही कुछ और घटनाएं भी देश में घटित हुई है. इस परिपेक्ष में कहा जा सकता है कि उच्चतम अदालत ने राज्यों से कहा – अभिलेखों या मानचित्रों के आधार पर सड़क की मौजूदा चौड़ाई का पता लगाएं तथा सर्वेक्षण करें, जिससे सड़क पर यदि कोई अतिक्रमण है तो उसका पता चल सके.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि सड़क पर अतिक्रमण का पता चलता है तो राज्य को इसे हटाने से पहले अतिक्रमण करने वाले को नोटिस जारी करना होगा और यदि नोटिस की सत्यता और वैधता पर आपत्ति जताई जाती है तो राज्य प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ (कारण सहित 1 आदेश) जारी करेगा।

पीठ ने कहा कि यदि आपत्ति को खारिज कर दिया जाता है तो संबंधित व्यक्ति को अतिक्रमण हटाने के लिए एक तर्कसंगत नोटिस दिया जाएगा.पीठ ने कहा कि यदि संबंधित व्यक्ति इसका अनुपालन – नहीं करता, तो सक्षम प्राधिकारी अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाएंगे, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी या अदालत के आदेश से रोक न लगाई जाए.

पीठ ने कहा – ऐसे मामले में जहां सड़क की मौजूदा चौड़ाई, जिसमें उससे सटी राज्य की भूमि भी शामिल है, सड़क चौड़ीकरण के लिए पर्याप्त नहीं है, तो राज्य इस कार्रवाई को शुरू करने से पहले कानून के अनुसार अपनी भूमि का अधिग्रहण करने के लिए कदम उठाएगा. इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर और अधिवक्ता शुभम कुलश्रेष्ठ पक्ष रख रहे थे।

अदालत ने उनका पक्ष सुनते हुए कहा, यह स्पष्ट है कि मकान गिराने की प्रक्रिया पूरी तरह मनमानी थी और कानून का पालन किए बिना इसे अंजाम दिया गया. सुनवाई के दौरान पीठ को संबंधित क्षेत्र में 123 ढांचों को गिराए जाने के बारे में सूचित किया गया. पीठ ने कहा अदालत के रेकार्ड के अनुसार मकान को गिराने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया.

आप कह रहे हैं कि आपने केवल मुनादी की थी. शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील से यह भी पूछा कि किस आधार पर निर्माण कार्य को अनधिकृत बताया गया है. जब राज्य के वकील ने पीठ को सड़क चौड़ी करने की परियोजना के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, सड़क चौड़ी करना बस एक बहाना है। यह पूरी कवायद के लिए उचित कारण नहीं लगता.

पीठ ने निर्देश दिया, उत्तर प्रदेश राज्य याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपए का मुआवजा देगा. पीठ ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वह उसके आदेश की एक प्रति सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजें ताकि सड़क चौड़ीकरण के उद्देश्य से प्रक्रिया पर जारी निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके. जिस तरह उच्चतम न्यायालय ने इस संदर्भ में संज्ञान लिया है और राज्य सरकार को 25 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया है वह एक सकारात्मक संदेश है कि देश में अन्याय नहीं हो सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने दलितों को जगाया

भारतीय जनता पार्टी बहुत कोशिश कर रही है कि देश में राजनीति पर बात हिंदूमुसलिम को ले कर हो पर उस के वार बेकार जा रहे हैं और बात बारबार जाति पर आ जाती है. जब से सुप्रीम कोर्ट ने शैड्यूल कास्ट और शैड्यूल ट्राइब्स में क्रीमी लेयर बनाने और उन को आपसी कोटे में कोटे का फैसला दिया है, बात जाति पर होने लगी है और वक्फ ऐक्ट हो या सैक्यूलर यूनिफौर्म सिविल कोड पर बात का दही जम ही नहीं रहा.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना सरकारों, खासतौर पर भाजपा सरकारों के लिए मुश्किल होगा. शैड्यूल कास्टों को डिवाइड करना एक टेढ़ी खीर है. हालांकि हरेक को अपनी जातिउपजाति पता है पर सिर्फ सरकारी नौकरी के लिए अपने को किसी और से कमतर मानने के लिए उस उपजाति के सभी लोग मान जाएंगे, यह नामुमकिन है. इस पर खूब जूते चलेंगे.

आजकल जाति का सर्टिफिकेट लेना आसान हो गया है. 75 सालों से चले आ रहे सिस्टम की खराबियां काफी दूर हो चुकी हैं. कुछ बातें ढकी हुई हैं. ऊंचनीच का भेद मालूम नहीं है और अगर मालूम है तो भी शादी तक ही रह जाता है. अब तहसीलदार को सर्टिफिकेट देना होगा कि कौन किस उपजाति का है. इस से पहले सरकार को तय करना होगा कि कौम की उपजाति दूसरी उपजाति से अलग है.

हमारे यहां कोई इतिहास तो है नहीं जिस में लिखा हो कि कौन ऊंचा, कौन नीचा. पौराणिक ग्रंथ तो एससीएसटी की बात करते तक नहीं हैं. वे शूद्रों की बात करते हैं और यही माना जाता है कि ये शूद्र अछूत नहीं थे और आज की अदर बैकवर्ड क्लासें हैं. कानूनों को सुबूत चाहिए होंगे, जिन की चर्चा न पुराणों में है. न बाद के लिए संस्कृत ग्रंथों में, न मुसलिम इतिहासकारों की किताबों में, उन्हें कैसे परखा जाए?

अंगरेजों ने जनगणना में जाति का नाम लिखा पर कौन ऊंचा, कौन नीचा और नीचों में कौन ज्यादा नीचा इस से उन्हें मतलब नहीं था क्योंकि उन्हें नौकरियां थोड़े ही देनी थीं. अब नौकरियों का सवाल है, ऐसी नौकरियां जो पक्की हैं और जिन में ऊपरी कमाई भरपूर हो. ऊंची जातियों की पहले ही इन नौकरियों पर नजर हैं चाहे वे चपरासी की क्यों न हों. शैड्यूल कास्टों को यह भी डर है कि बिल्ली बिल्ली की लड़ाई में बंदर ही सारा माल हड़प न ले.

कहने को ऊंची जातियां कहती रहें कि जाति है ही कहां जब केंद्रीय मंत्री राहुल गांधी को जाति जनगणना पर जवाब दें कि, ‘जिन्हें अपनी जाति का पता नहीं वे जाति जनगणना की बात कैसे कर सकते हैं.’ तो साफ है कि उन के दिमाग में जाति भरी है. शैड्यूल कास्ट वोटर उसे समझ नहीं पा रहे हों, यह भूल जाएं.

उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोकसभा चुनावों ने साफ कर दिया कि जाति का सवाल अभी भी अहम है. इन दोनों राज्यों के ऊंची जातियों के मुख्यमंत्रियों ने भाजपा के सपनों की नाव को डुबाया है क्योंकि वे जाति के नाम पर नाव में खुद चूहे छोड़ रहे थे जो नाव को कुतर रहे थे.

अब सुप्रीम कोर्ट ने सोए दलितों को जगा दिया है. वे अपनी जाति की पोटली संभालने लगेंगे तो ऊंची जातियों में यह बीमारी फैलेगी. ओबीसी भी कोटे में कोटा मांगेंगे. धर्म की देन जाति ने 2000 साल से ज्यादा धर्म को संभाला है. अब यह हाथी डायनासोर न बन जाए.

धर्म बना देता है लोगों को गुलाम

सुप्रीम कोर्ट चाहे लाख कह ले कि हर वयस्क को प्रेम व विवाह का मौलिक अधिकार है और किसी बजरंगी, किसी खाप, किसी सामाजिक या धार्मिक गुंडे को हक नहीं कि इस अधिकार को छीने, मगर असल में धार्मिक संस्थाएं विवाह के बीच बिचौलिए का हक कभी नहीं छोड़ेंगी. विवाह धर्म की लूट का वह नटबोल्ट है जिस पर धर्म का प्रपंच और पाखंड टिका है और इस में किसी तरह का कंप्रोमाइज कोई भी धर्म नहीं सहेगा, सुप्रीम कोर्ट चाहे जो कहे.

जो भी धर्म के आदेश के खिलाफ जा कर शादी करेगा, सजा सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और रिश्तेदारों को भी मिलेगी. सब को कह दिया जाएगा कि इस परिवार से कोई संबंध न रखो. कोई पंडित, मुल्ला, पादरी शादीब्याह न कराएगा. श्मशान में जगह नहीं मिलेगी, लोग किराए पर मकान नहीं देंगे, नौकरी नहीं मिलेगी.

धर्म का जगव्यापी असर है. जब लोग 7 समंदर पार रहते हुए भी कुंडली मिलान के बाद विवाह करते हों, गोरों व कालों की कुंडली भी बनवा लेते हों ताकि सिद्ध किया जा सके कि धर्म, रंग और नागरिकता अलग होने के बावजूद विवाह विधिविधान से हुआ है, तो क्या किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट की फुसफुसाहट हिंदुत्व के नगाड़ों के बीच खो जाएगी.

पारंपरिक शादियां चलती हैं, तो इसलिए कि शादी चलाना पतिपत्नी के लिए जरूरी होता है, उन का कुंडली, जाति, गोत्र, सपिंड, धर्म से कोई मतलब नहीं होता. शादी दिलों का व्यावहारिक समझौता है. एकदूसरे पर निर्भरता तो प्राकृतिक जरूरत है ही, सामाजिक सुरक्षा के लिए भी जरूरी है और इस के लिए किसी धर्मगुरु के आदेश की जरूरत नहीं. यदि प्यार हो, इसरार हो, इकरार हो, इज्जत हो तो कोई भी शादी सफल हो जाती है. बच्चे मातापिता पर अपनी निर्भरता जता कर किसी भी बंधन को, शादी को ऐसे गोंद से जोड़ देते हैं कि सुप्रीम कोर्ट, कानून या कुंडली की जरूरत नहीं.

कुंडली, जाति, गोत्र, सपिंड के प्रपंच पंडितों ने जोड़े हैं, ये धर्म की देन हैं, प्राकृतिक या वैज्ञानिक नहीं. शादी ऐसा व्यक्तिगत कृत्य है जो व्यक्ति के जीवन को बदल देता है और धर्म इस अवसर पर मास्टर औफ सेरिमनीज नहीं मास्टर परमिट गिवर बन कर पतिपत्नी को जीवन भर का गुलाम बना लेता है.

शादी में धर्म शामिल है, तो बच्चे होने पर उसे बुलाया जाएगा और तभी उसे धर्म में जोड़ लिया जाएगा ताकि वह मरने तक धर्म के दुकानदारों के सामने इजाजतों के लिए खड़ा रहे.

विधर्मी से विवाह पर धर्म का रोष यही होता है कि एक ग्राहक कम हो गया है. चूंकि दूसरे धर्म का ग्राहक भी कम होता है, दोनों धर्मों के लोग एकत्र हो कर इस तरह के विवाह का विरोध करते हैं. आमतौर पर शांति व सुरक्षा तभी मिलती है जब पति या पत्नी में से एक धर्म परिवर्तन को तैयार हो.

अगर उसी धर्म में गोत्र या सपिंड का अंतर भुला कर शादी हो रही हो तो धर्म के दुकानदारों के लिए दोनों को मार डालने के अलावा कोई चारा नहीं होता. शहरों में तो यह संभव नहीं होता पर गांवों में इसे चलाना आसान है, संभव है और लागू करा जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट चाहे जितना कह ले, जब तक देश में धर्म के दुकानदारों का राज है और आज तो राज ही वे कर रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल नरेंद्र मोदी के अच्छे दिन आ चुके हैं, जैसा है.

नारी दुर्दशा का कारण धर्मशास्त्र और पाखंड

नारी को आज भी दोयम दर्जे का ही नागरिक समझा जाता है.सदियों से इनके ऊपर कई माध्यमों से जुल्म ढाने की परंपरा निरन्तर जारी है. इसमें धर्मशास्त्रों और पण्डे पुजारियों का भी अहम योगदान रहा है.

नारी के ऊपर शोषण और जुल्म में स्वयं नारी लोग ही मददगार की भूमिका में हैं.समाज में रिवाज और धर्म का पाठ पढ़ाकर नारियों को जुल्म के रसातल में डुबो दिया है. धर्म का कानून बनाने वाले मनु ने लिखा है,  ”स्त्री शूद्रों न धीयताम” यानी स्त्री और शूद्र को शिक्षा नहीं देनी चाहिए. अंधभक्त महिलाएं इन्हें ही अपना भगवान का हुक्म मानती हैं.

प्राचीन संत शंकराचार्य ने लिखा है, ”नारी नरकस्य द्ववारम”, यानी नारी नरक का दरवाजा है. लेकिन शायद उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि इसी नरक के दरवाजे से तुम भी पैदा हुवे है. तुलसीदास ने जिसे उनकी पत्नी ने दुत्कार दिया था, लिखा है, ”अधम ते अधम, अधम अति नारी’, भ्राता पिता पुत्र उर गारी, पुरुष मनोहर निरखत नारी.”

“होहिं विकल सक मनहिं न रोकी,जिमि रवि मणि द्रव रविही विलोकि”

अथार्त चाहे भाई हो ,चाहे पिता हो,चाहे पुत्र हो नारी को अच्छा लगने पर वह अपने को रोक नहीं पाती जैसे रविमणि, रवि को देखकर द्रवित हो जाती है, वैसी ही स्थिति नारी की हो जाती है. वह संसर्ग हेतु ब्याकुल हो जाती है.

“राखिअ नारि जदप उर माही।जुबती शास्त्र नृपति बस नाही”

अथार्त स्त्री को चाहे ह्रदय में ही क्यों न रख लो तो भी स्त्री शास्त्र,और राजा किसी के वश में नहीं रहती है. नारी को पीड़ा दिलवाने में तुलसीदास की इस  चौपाई ने आग में घी का काम किया है, ”ढोल गंवार शुद्र पशु नारी,सकल ताड़ना के अधिकारी।”

धर्मग्रन्थों में नारियों और दलितों के ऊपर शोषण जुल्म के प्रपंचो से पूरा भरा हुआ है.इस साजिश और छल प्रपंच को आज तक दलित और महिलाएं समझ नही पाईं हैं. उनके ही समझाई में आज भी बहुत बड़ी आबादी चलने को विवश है. स्वर्ग नरक पुनर्जन्म भाग्य भगवान की पौराणिकवादी संस्कृति में फंसकर अगला जन्म सुधारने के चक्कर में नारियां स्वयं को पुरुष की दासी समझते हुवे अन्याय कष्ट सहकर भी झूठे गौरव का अनुभव करती है. माता पिता भी बेटियों को पराया धन समझकर कन्यादान करके उन्हें अन्यायपूर्ण जीवन जीने को विवश करते हैं. दहेज,कन्यादान,सतीप्रथा,देवदासी प्रथा, पर्दाप्रथा, योनिशुचिता प्रथा, वैधब्य जीवन आदि नारी विरोधी प्रथाएँ धर्म की देन हैं.

इन प्रथाओं को  ग्रन्थों ने खूब महिमामण्डित किया है.  बेवकूफ अंधविश्वासी पिताओं की सनक पर बेटियों की कुर्बानी को स्वयंबर का नाम दिया गया. जुए के दांव पर नारियां लगाई गईं. बच्चे   पाने के लिए जबरन ऋषियों को सौंपी गईं.

नारियों की सहने से ज्यादा दुर्दशा से द्रवित होकर सर्वप्रथम ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख ने औरतों की पढ़ाई और सामाजिक आजादी के लिए काम किया.

1955-56 में नए हिन्दू कानूनों से भारतीय नारियों का बहुत बड़ा उपकार किया. जिन लोगों ने नारियों की भलाई के लिए काम किया आज की औरतें उनका नाम तक नहीं जानतीं. जिन शास्त्रों और पौराणिकवादी व्यवस्था ने इन पर जुल्म ढाए उनकी ही पूजा अर्चना आज तक महिलायें करती हैं.

पढ़ी लिखी औरतें भी व्रत, उपवास और गोबर तक की पूजा करती आ रही हैं और आज भी बदस्तूर जारी है.

गीता प्रेस की पुस्तक है,  ”गृहस्थ में कैसे रहें”  जिसके लेखक रामसुखदास हैं. इस पुस्तक में प्रश्न उतर के माध्यम से बताया गया है कि हिन्दू महिलाओं को कैसे जीवन जीना चाहिए. उदाहरण के रूप में यहां प्रस्तुत कर रहें हैं.

प्रश्न: पति मार पीट करे, दुःख दे तो पत्नी को क्या करना चाहिए ?

उत्तर: पत्नी को तो यही समझना चाहिए कि मेरे पूर्व जन्म का कोई बदला है, ऋण है जो इस रूप में चुकाया जा रहा है, अतः मेरे पाप ही कट रहे हैं और मैं शुद्ध हो रही हूँ. पीहर वालों को पता लगने पर वे उसको अपने घर ले जा सकते हैं. क्योंकि उन्होंने मार पीट के लिए अपनी कन्या थोड़े ही दी थी.

प्रश्न: अगर पीहर वाले भी उसको अपने घर न लें जाएं तो वह क्या करें ?

उत्तर: फिर तो उसे पुराने कर्मों का फल भोग लेना चाहिए. इसके सिवाय बेचारी क्या कर सकती है? उसको पति की मार धैर्यपूर्वक सह लेनी चाहिए. सहने से पाप कट जाएंगे और आगे सम्भव है कि पति स्नेह भी करने लग जाए. यदि वह पति की मार पीट न सह सके तो पति से कहकर उसको अलग हो जाना चाहिए और अलग रह कर अपनी जीविका सम्बन्धी काम करते हुवे एवं भगवान का भजन स्मरण करते हुए निधड़क रहना चाहिए.

इस पुस्तक में सैकड़ों इसी तरह के प्रश्नों का उत्तर है जिसमें हिंदू परिवारों को दिशा निर्देश दिए गए हैं.

यह पुस्तक सती का समर्थन करती है और महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने की वकालत करती है. हिन्दू वादी संगठनों द्वारा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए निरंतर आवाज उठाई जाती है. अगर यह देश हिंदू राष्ट्र बनता है तो क्या नारियों के ऊपर इसी तरह के कानून लागू किये जायेंगे? पड़ोसी देश पाकिस्तान और बंगलादेश में कट्टरवादी मुस्लिम संगठन भी इसी तरह की सोच रखते हैं. मुस्लिम धर्म में भी तीन तलाक, हलाला और पर्दा प्रथा जैसी दकियानूसी बातें हैं और उसका समर्थन इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग करते हैं.इन कुप्रथाओं पर जब सवाल उठाये जाते हैं तो इस्लाम धर्म को मानने वाले धार्मिक कट्टरपंथी संगठन मौत का फतवा जारी करते हैं. क्या हिंदू राष्ट्र में ऐसा ही होगा?

आज औरतों पर शोषण और जुल्म ढाने का हथियार के रूप में इन धार्मिक पुस्तकों का उपयोग किया जाता है.इसे बढ़ावा देने और प्रचार प्रसार करने में साधू,  महात्मा, पंडे,  पुजारी, मुल्ला लोग लाखों की संख्या में एजेंटों के रूप में कार्य कर रहे हैं.

देश के कोने कोने से महिलाओं के साथ अपने पति द्वारा जुआ में हारने जैसी कुकृत्य, अत्याचार ,अनाचार और बलात्कार की घटनाएं प्रकाश में आते रहती है जिन पर सहज रूप से विश्वास भी नहीं होता.

इस तरह की एक घटना जौनपुर जिला के जफराबाद थाना क्षेत्र के शाहगंज की  है. एक जुआरी शराबी पति ने सारे रुपये हारने के बाद अपने पत्नी को ही जुए में दांव पर लगा दिया. वह जुए में अपनी पत्नी को हार गया. इसके बाद उसके जुआरी दोस्तों ने उसके पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार किया.

दूसरी घटना कानपुर की है. जुआ खेलने के एक शौकीन पति ने अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया. दांव हारने पर उसके चार दोस्तों ने उसके पत्नी पर हक जमाते हुए सामूहिक दुष्कर्म करना चाहा लेकिन बीबी किसी तरह किचन में घुस गई और उसने पुलिस को फोन कर दिया. तत्काल में पुलिस आ जाने की वजह से तारतार हो रही इज्जत बच गई.

महाभारत में द्रौपदी को जुए में हारने की घटना सर्वविदित है. आज भी दीवाली जैसे त्यौहार में संस्कृति और परम्परा के नाम पर जुआ खेलने का रिवाज सभ्य समाज तक में भी बरकरार है. सड़ी गली परम्परा को आज भी हम अपने कंधों पर ढो रहे है.

औरतों के ऊपर शोषण और जुल्म का समर्थन औरतों द्वारा ही किया जाता है. एजेंट के रूप में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

हर गाँव मे धार्मिक गुरुओं  द्वारा शिव चर्चा,  माता की चौकी, जागरण, हवन और प्रवचनों की बाढ़ सी आ गयी है जिसमें महिलाओं की हीउपस्थिति अधिक होती है. शुद्ध घी अपने परिवारवालों को नहीं खिला कर अंधभक्ति में जलाया जा रहा है.

अपने बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च नहीं करके धार्मिक कर्मकांडों पर अपनी मेहनत की कमाई महिलाएं खर्च कर रही हैं. पूजा पाठ, व्रत उपवास में महिलाएं रोबोटों की तरह इस्तेमाल की जा रही हैं. हवनों, यज्ञों में महिलाओं की संख्या अधिक देखी जा रही है. शहरों से लेकर गांवों तक धार्मिक प्रवचनों और कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है .

गांव गांव में मंदिर और मस्जिद बन रहे हैं. ज्ञान का केंद्र पुस्तकालय जो पहले ग्रामीण क्षेत्रों में थे मृतप्राय हो गए हैं. आपसी बातचीत भी खत्म होने की कागार पर है.

गांवो में सरकारी विद्यालयों महाविद्यालयों की हालत बहुत चिंतनीय है. इस ओर किसी का ध्यान नहीं है. ज्ञान का केंद्र जब नेस्तनाबूद होगा तो समाज मे अंधविसश्वास और धार्मिक पाखण्डों का मायाजाल बढ़ेगा ही. धार्मिक पाखण्डों को बढ़ावा देने में केंद्र की सरकार और चारण गाने वाले मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका में है.

पाखंड की गिरफ्त में समाज, वजह जानकर हो जाएंगे शर्मसार

अंधविश्वास

रामप्यारे महतो गया जिले के एक गांव अमौना के रहने वाले हैं. वे अपनी पतोहू कलावती देवी को मगध मैडिकल अस्पताल, गया में ले कर आए थे, जहां उसे बेटा पैदा हुआ. नर्स ने ज्यों ही बताया कि लड़का पैदा हुआ है, बगल में अपनी पत्नी की जचगी कराने आए एक पंडे ने बताया कि भूल कर भी अपने बेटे को नहीं देखना, क्योंकि इस का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है.

यह बात रामप्यारे महतो के परिवार में चिंता की वजह बन गई. इस के बाद रामप्यारे महतो ने अपने पुरोहित किशोर पंडित के घर जा कर जब सारी बातें बताईं तो उन्होंने बताया कि अगर लड़का मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है तो ग्रह को शांत करने के लिए कुछ विधिविधान करना पड़ेगा.

यह है मूल नक्षत्र

किशोर पंडित के मुताबिक, उग्र और तीक्ष्ण नक्षत्र वाले को मूल नक्षत्र, सतईसा या गंडात कहा जाता है. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो इस का असर बालक और उस के मातापिता पर पड़ता है. मूल नक्षत्र के भी कई चरण हैं. पहले चरण में अगर बालक पैदा होता है तो उस का बुरा असर पिता के ऊपर होता है. अगर दूसरे चरण में बेटा पैदा होता है तो माता के ऊपर. अगर तीसरे चरण में पैदा होता है तो इस का बुरा असर लड़के पर पड़ता है.

किशोर पंडित अपने शास्त्र, जो खासकर नक्षत्र से ही संबंधित स्पैशल किताब है, में देख कर बताते हैं कि बालक मूल नक्षत्र के पहले चरण में पैदा हुआ है, इसलिए इस का बुरा असर बालक के पिता के ऊपर पड़ेगा. पिता को बिना मूल नक्षत्र की शांति का उपाय किए बालक का मुंह 27 दिनों तक नहीं देखना है. इस के लिए पूजापाठ कराना पड़ेगा, ब्राह्मणों, गांव वालों और रिश्तेदारों को खाना खिलाना पड़ेगा और दानदक्षिणा देनी पड़ेगी.

पंडितजी ने कहा कि आप दिल खोल कर परिवार को खिलाएं और ब्राह्मणों को बढ़चढ़ कर दान दें. इस से मूल की शांति जरूर होगी और बालक के साथसाथ उस के मातापिता को भी कोई परेशानी नहीं होगी.

रामप्यारे महतो के परिवार वालों ने इस का पूरा इंतजाम किया और पूजापाठ, हवन के साथ 11 ब्राह्मणों को खाना खिलाया और दानदक्षिणा दी.

रामप्यारे महतो ने सूद पर 50,000 रुपए ले कर खर्च किए, पर समाज के किसी भी शख्स ने सम झाने की कोशिश नहीं की कि इस से कुछ नहीं होता. उन्होंने पंडे की बातों में ही हां में हां मिलाने का काम किया.

पापपुण्य और विज्ञान

पापपुण्य और विज्ञान में फर्क यह है कि विज्ञान सभी लोगों के लिए एकसमान काम करता है. जहर खाने से हर धर्म को मानने वाला मरेगा ही. आग का काम जलाना है. कोई भी धर्म मानने वाला उसे छुएगा तो उस का हाथ जलेगा. ऐसा कभी नहीं हो सकता कि हिंदू को आग गरम लगे और ईसाई व मुसलिम को ठंडी.

चाल को समझें

इन पंडों के मूल ढकोसले को समझने की कोशिश करें. इतना सभी को जान लेना चाहिए कि मूल नक्षत्र केवल हिंदुओं के यहां होते हैं.

अगर मूल नक्षत्र में जन्म लेने से इस तरह की अनहोनी होती है तो मुसलिम और ईसाई धर्म वालों के यहां भी बच्चा पैदा होने पर इस तरह की घटनाएं घट सकती हैं, लेकिन मुसलिम और ईसाई धर्म समेत दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग जानते भी नहीं हैं कि मूल नक्षत्र क्या होता है?

पाखंड का जाल

पंडों ने समाज में अपने फायदे के लिए इस तरह से शास्त्रों को बनाया है कि कमेरा तबका डर से उन की बातों को मानता रहे. ये परजीवी लोगों को बेवकूफ और अंधविश्वासी बना कर लूटते आ रहे हैं. कमेरे तबके में भी पढ़ेलिखे और नौकरी कर रहे लोग इन धार्मिक पाखंडों को हवापानी देने का काम कर रहे हैं.

सवर्णों के साथसाथ अन्य पिछड़ा वर्ग और कारोबारी तबके के लोग भी इन बातों का पालन करते हैं. इन दकियानूसी बातों को मानते हैं, लेकिन इस का चलन दलित समुदाय में नहीं के बराबर है. इस की अहम वजह यह भी हो सकती है कि दलित समुदाय को लोग अछूत मानते आ रहे हैं.

गौहत्या का मसला

इसी तरह पदार्थ यादव जहानाबाद जिले के गांव ओरा का रहने वाला है. उस की गाय रात में अचानक मर गई. सुबह जब परिवार और गांवभर के लोगों ने देखा तो वे आपस में बातें करने लगे कि पगहा यानी रस्सी बंधी हुई गाय की मौत हो जाती है तो गौहत्या का पाप लग जाता है.

बिहार के गांवों में रहने वाले लोग इस बात को जानते हैं, इसलिए जब भी किसी किसान या मजदूर के यहां जानवर गंभीर रूप से बीमार होता है तो लोग रस्सी को सब से पहले खोल देते हैं.

पदार्थ यादव के पुरोहित यानी उन के गांव के ही पंडित रामाशंकर ने बताया कि इस गौहत्या से बचने के लिए जिस ने गाय को बांधा था, उसे पंचगव्य (दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर से मिला कर बनाया जाता है) थोड़ा सा खा कर और पूरे शरीर पर लगा कर गंगा स्नान करना पड़ेगा और गंगाजल ला कर पूरे घर में छिड़क कर पहले घर को शुद्ध करना होगा.

इतना ही नहीं, उस के बाद सत्यनारायण की कथा के साथसाथ 5 ब्राह्मण परिवारों को खाना खिलाना पड़ेगा, पूजापाठ, हवन वगैरह तो होगा ही.

एक तो गाय मरने का दुख, ऊपर से इन कामों में 50,000 रुपए अलग से खर्च. पदार्थ यादव के मैट्रिक पास लड़के अजय ने कहा कि हमें यह सब नहीं करना है तो गांव वाले इस का विरोध करने लगे और बोलने लगे कि यह तो करना ही पड़ेगा. अगर नहीं करोगे तो तुम्हारे यहां कोई परिवार कभी नहीं खाएगा. अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो भीख भी मांग कर तुम्हें यह करना पड़ेगा.

पदार्थ यादव का परिवार मजबूर हो गया और अपनी भैंस 40,000 रुपए में बेच कर ब्राह्मण भोज खिलाया, पूजापाठ किया और दानदक्षिणा दी.

लूट है जारी

इस तरह हमारे समाज में जन्म से ले कर मरने तक पंडों द्वारा कमेरा तबके को बेवकूफ और अंधविश्वासी बना कर लूटने की परंपरा 21वीं सदी में भी जारी है. झूठ की संस्कृति को हवापानी देने का काम कमेरे तबके के लोगों में पढ़ेलिखे ही कर रहे हैं. अपनी मेहनत से जो लोग पढ़लिख गए हैं, नौकरी या कारोबर कर रहे हैं, उन्हें पंडों की इस साजिश को समझना चाहिए, लेकिन वे और ही ज्यादा धर्म से डरने वाले और अंधविश्वासी हैं.

एक आम आदमी, जिस की मासिक आय 10,000 रुपए है, वह भी इन धार्मिक संस्कारों, पूजापाठ पर औसतन साल में 10-20 हजार रुपए खर्च कर देता है. जन्म से ले कर मरने तक सभी संस्कारों में पूजापाठ और पंडों को दानदक्षिणा देने की परंपरा आज भी है. बच्चा के जन्म लेने पर जन्मोत्सव, जनेऊ संस्कार, बच्चे के नामकरण और जन्म होने पर उस की शादी में तरहतरह के कर्मकांड कराए जाते हैं, जिन में इन पंडों का ही अहम रोल होता है.

मरने पर ब्रह्मभोज किया जाता है जिंदा रहने पर अपने पुरखों को कभी अच्छा खाना दिया हो या नहीं, पर मरने पर उन के मुंह में पंचमेवा ठूंसा जाता है. मृत शरीर को घी लगाया जाता है. जिंदा रहते जिन्हें खाने के लिए कभी घी दिया नहीं, उन्हें जलाने के लिए घी, चंदन और धूपअगरबत्ती का इस्तेमाल किया जाता है.

आज भी लोगों के मरने पर बाल मुंड़ाए जाते हैं. जमीन बेच कर, गिरवी रख कर, सूद पर पैसा ले कर भी ब्रह्मभोज कराना पड़ता है. जो लोग अगर इसका बहिष्कार करने की हिम्मत जुटाते हैं, उन्हें समाज से ही बाहर होना पड़ता है.

पंडों ने एक साजिश के तहत ऐसे धर्मग्रंथों की रचना की, जिस से मेहनत करने वाला कमेरा तबका अपनी मेहनत का एक हिस्सा इन काहिलों के ऊपर खर्च करता रहे और इन का परिवार बिना मेहनत किए लोगों को बेवकूफ बना कर लूटता रहे.

यह पौलिथीन आपके लिए जहर है!

Society News in Hindi: संपूर्ण दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक बार इस्तेमाल किए जाने वाली सभी प्रकार की प्लास्टिक हमारे लिए  जहर के समान है. लगभग 10 वर्षों से प्लास्टिक को लेकर वैज्ञानिक तथ्य सामने आ चुके हैं कि इसे जल्द से जल्द प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए. इसमें रखा हुआ खाद्यान्न जहरीला हो जाता है. कई रोगों का कारण बनता है, यह सब मालूम होने के बावजूद हम प्लास्टिक का इस्तेमाल बेखौफ कर रहे हैं और अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. अनेक प्रकार के रोगों की सौगात हमारे जीवन को दुश्वार कर रही है. यही नहीं यह प्लास्टिक मानव समाज के साथ-साथ पर्यावरण को भी नष्ट कर रही है और मासूम जानवरों पर भी यह प्लास्टिक कहर बनकर टूट रही है.

गाय के पेट से निकला प्लास्टिक

पौलीथिन का उपयोग  पर्यावरण के लिए घातक है, वहीं मनुष्य समाज के लिए जहरीला और जानलेवा साबित हो रहा है. इसे अनजाने में खाकर मवेशियों की भी असामयिक मौत की खबरें निरंतर आ रही हैं. ऐसा ही एक वाक्या छत्तीसगढ़ के धमतरी शहर से लगे ग्राम अर्जुनी कांजी हाउस में देखने को मिला. अर्जुनी के कांजी हाउस में ढाई साल की बछिया की मृत्यु प्लास्टिक का सेवन करने से हो गई. सहायक पशु शल्यज्ञ डा. टी.आर. वर्मा एवं उनकी टीम के द्वारा शव परीक्षण के दौरान पाया गया कि बछिया के उदर में  बड़ी मात्रा में पौलीथिन साबुत स्थिति में है.

साथ ही प्लास्टिक, रस्सी के गट्ठे के अलावा भी कुछ  वस्तुएं  पाई गईं. उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डौ. एम.एस. बघेल के बताते हैं कि लोग अनुपयोगी अथवा सड़े-गले भोजन को पौलीथिन में रखकर सड़क किनारे फेंक देते हैं, जिसे अनजाने में भोजन के साथ-साथ पौलीथिन को भी घुमंतू किस्म के लावारिस जानवर अपनी भूख मिटाने खा जाते हैं. प्लास्टिक से निर्मित पौलीथिन को मवेशी पचाने में असमर्थ होते हैं, जो आगे चलकर ठोस अपचनीय अपशिष्ट पदार्थ का रूप ले लेती है, जिसके कारण बाद में भारी तकलीफ होती है और उनकी मौत हो जाती है. प्रसिद्ध पशु प्रेमी निर्मल जैन बताते हैं गायों के पेट की अधिकांश जगह में पौलीथिन स्थायी रूप से रह जाती है जिससे पशु चाहकर भी अन्य प्रकार के भोजन को ग्रहण करने में असमर्थ  होता  है.

जिलाधिकारी  (आई ए एस) रजत बंसल ने उक्त घटना की जानकारी  मिलने पर संवेदनशीलता व्यक्त  करते हुए दु:ख व्यक्त कर  कहा – दैनिक जीवन में प्रतिबंधित प्लास्टिक थैलियों एवं कैरी बैग को पूर्णतः परित्याज्य करने आमजनता को प्रशासन के साथ आगे आना होगा. एक बात प्रयोग किए जाने वाले प्लास्टिक से सिर्फ मानव जीवन, पर्यावरण को ही खतरा नहीं  है, बल्कि बेजुबान जानवर गाय, भैंस, बकरी की भी अकाल मृत्यु हो रही है.

प्लास्टिक की जगह जूट के बैग अपरिहार्य

पौलीथिन के स्थान पर जूट के बैग तथा गैर प्लास्टिक से निर्मित कैरी बैग का उपयोग करने एवं पैकेटों को ढके हुए डस्ट बिन में ही डालने की आवश्यकता है. देश परदेश के आवाम को चाहिए कि प्लास्टिक का जल्द से जल्द इस्तेमाल बंद कर दें. हम सरकार के आह्वान अथवा जागरूकता अभियान का इंतजार क्यों करें समझदारी इसी में है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.

इसके अलावा यह भी एक सच है कि पशु मालिक अपने मवेशियों को खुला छोड़ देते हैं परिणाम स्वरूप आवारा लावारिसों  की तरह घूमते हुए जानवर अनेक बीमारियों का शिकार हो रहा है. प्लास्टिक खाकर मौत का बुला रहा  है .अच्छा हो हम अपने जानवरों की रक्षा स्वयं करें और उसे कदापि खुला छोड़ने का स्वार्थ भरा कृत्य न करें, इससे पशुधन की हानि को रोका जा सकेगा, साथ ही सड़क दुर्घटनाएं घटित नहीं  होंगी.कहा जाता है कि भारतीय नागरिक परजब तलक कठोर दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाती, वह सही रास्ते पर नहीं आते हैं.

अभी हाल ही में मोटर यान अधिनियम लागू हुआ तो त्राहि-त्राहि मच गई, दस हजार से पचास हजार तक जुर्माने लगने लगे तो लोगों के दिमाग ठिकाने आ गए और घटनाक्रम सुर्खियों में आ गया. क्या सरकार को सड़कों पर घूमने वाले पशुओं के संदर्भ में भी ऐसे नियम कानून बनाने होंगे, क्या नियम बनने के बाद ही इस पर लगाम लग सकेगी, अच्छा हो, हम अपने पशुधन की रक्षा स्वयं करें और आदर्श नागरिक समाज बनाने में मदद करें.

समलैंगिकता : मौडर्न भारत है या नेपाल

उस की छोटी और घूरती आंखों का सामने वाले की आंखों में आंखें डाल कर देखने का अंदाज किसी को भी धोखे में डाल सकता है, क्योंकि स्कार्फ से ढके उस के चेहरे पर सिर्फ 2 आंखें ही साफ दिखाई देती हैं. गहरे नीले रंग का स्कार्फ, जो उस ने धूल से बचने के लिए चेहरे पर लपेट रखा है, लंबेसीधे बालों को चारों तरफ से ढकते हुए आंखों के नीचे आखिरी छोर तक आता है.

नेपाल के बलराम से अचानक मेरी मुलाकात होती है. उस ने बताया कि वह ‘पिंक त्रिकोण’ के लिए काम करता है और शनिवार को रत्ना पार्क में आने वाले लोगों में कंडोम बांटता है.

रत्ना पार्क, जो काठमांडू की प्रदूषित बिजी सड़क के किनारे बना है, समलैंगिकों के मिलने की जगह है. शाम के समय यहां पर उत्साहित जोडे़ पार्क में फैले हुए हैं. कुछ जोड़े आपस में बातचीत कर रहे हैं, तो कुछ अपने लिए सैक्स पार्टनर की तलाश में जुटे हैं.

मैं पार्क की चारदीवारी पर महेश के साथ बैठा हूं, जो समलैंगिक है और यूनिवर्सिटी का छात्र है… तभी एक नौजवान बहुत ही अदा के साथ हम से मुखातिब होता है, ‘‘हाय, क्या तुम भारत से हो?’’

मेरे ‘हां’ कहने पर वह अपना परिचय बलराम के रूप में देता है. उस ने आगे बताया, ‘‘मैं भारत के पुणे शहर में 3 साल रहा हूं, लेकिन भारत के बजाय यहां लड़कों का आपस में मिलना ज्यादा आसान है. ज्यादातर लड़के मुझ से मिलने की कोशिश करते हैं.’’

मैं ने उस से कहा कि हम भी यहां नए लोगों से मिलने आए हैं, क्योंकि यहां समलैंगिकों से मिलने के लिए न तो कोई सार्वजनिक जगह है और न ही कोई बार वगैरह है.

हम यह सब बातचीत कर ही रहे थे कि इतने में हमारे चारों तरफ काफी नौजवान जमा हो गए. महेश उन से बातचीत करने लगा. वह ब्लू डायमंड स्वयंसेवी संगठन के लिए काम करता है, जो नेपाल की अधिकार संरक्षण संस्था है, जिस ने इस छोटे से देश में समलैंगिकों को अधिकार दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई है और पूरी दुनिया में तकरीबन 27 लाख बहुत ही कामयाब आंदोलन किए हैं.

पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, भूटान, बंगलादेश और मालदीव अपने देश में कहीं भी समलैंगिक संबंधों को मंजूरी नहीं देते हैं, केवल नेपाल ही एशिया में ऐसा देश है, जिस ने न केवल समलैंगिकता को मंजूरी दी हुई है, बल्कि समलैंगिकता को गैरकानूनी मानने वाले नियम के खिलाफ वहां की सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही भी की है. यही नहीं, वहां की कोर्ट समलैंगिक विवाह संबंधों को भी कानूनन वैध बनाए जाने पर भी विचार कर रही है.

साल 2007 में नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सेम सैक्स संबंधों को अपराध मुक्त कर दिया था. साथ ही, यौन स्वच्छंदता और लिंग पहचान के आधार पर एक संस्थान का गठन किया, जो पूरी दुनिया में समलैंगिक विवाह और आपसी संबंधों का कानूनी व विधिपरक स्टडी करेगा और जिस ने सरकारी दस्तावेजों में तृतीय लिंग की पहचान के लिए अन्य विकल्प उपलब्ध करा कर खुद की पहचान का अधिकार दिलाया.

एक अमेरिकी जोड़े ने इस हिमालयन राष्ट्र में साल 2011 में समलैंगिक शादी की थी, जहां पर कुछ हिंदू समलैंगिक भी शादी में शामिल हुए थे. वहां पर सांकेतिक दूल्हा और दुलहन भारत समेत दुनिया के कोनेकोने से आए थे.

रिसर्च के दौरान आसपास के लोगों की बातों से पता चला कि समलैंगिकों का एक मजबूत संगठन बन गया है. तभी सन्नाटे को चीरती हुई मीठी और खनकती हंसी सुनाई पड़ती है. उस ओर देखने पर एक दुबलापतला, जींस और शौर्ट कमीज पहने एक लड़का दिखाई दिया. उस ने हमारे नजदीक आ कर कहा, ‘‘मैं मोहिनी हूं… आप मुझे मोहन भी कह सकते हैं. मैं यहां लड़कों से मिलने आई हूं.’’

मोहिनी या मोहन हम से कुछ फासले पर चारदीवारी पर बैठ जाता है और हाथ में आईना ले कर फेयर ऐंड हैंडसम क्रीम निकाल कर अपने चेहरे पर सावधानी के साथ लगाता है और चेहरे पर एक गहरी मुसकान के साथ कहता है, ‘‘थोड़ी ही देर में आप देखेंगे कि मैं मोहिनी जैसा सुंदर बन जाऊंगा.’’

मेरी पतली हालत देख कर उस समुदाय में से एक ने मुझ से, ‘‘हम इसे मोहिनी की मम्मी कहते हैं. यह बहुत बहादुर है. जरूरत पड़ने पर यह पुलिस और शरारती तत्त्वों से संघर्ष करती है, लेकिन अभी डरने, घबराने या बचने की कोई जरूरत नहीं है…’’

कुछ ही देर में वह अपने होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक लगा लेता है, फिर वह अपने चेहरे पर मसकारा लगाता है. मोहन अब मोहिनी बन चुका है और मोहिनी की तरह बरताव करता है.

महेश मुझे इशारा करता है, ‘‘घना अंधेरा होने से पहले हमें यहां से निकल जाना चाहिए.’’

काठमांडू की धूल भरी तंग और भीड़भाड़ वाली सड़कों पर चलते हुए महेश बताता है कि मोहिनी एक छोटे से होस्टल की मालकिन है. यह सैक्स करने के लिए पैसे नहीं लेती. हो सकता है कि इसे इस में मजा आता हो और कुछ भी गलत न लगता हो. कुछ भी हो, इस ने लोगों से मिलने और मजा लेने का अच्छा रास्ता अपनाया है.

चीते के छापे की पोशाक, घुटने तक की लंबाई के जूते, गहरी संतरी रंग की लिपस्टिक, चमकदार पलकें, बालों की पोनीटेल बनाए श्रेष्ठा नेपाल की प्रतीक महिला दिखाई पड़ती हैं. उन्हें देख कर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे साल 2007 में नेपाल की ‘मिस पिंक’ क्यों चुनी गई थीं.

‘मिस पिंक’ लिंग प्रवर्तक लोगों की नैशनल लैवल पर ब्यूटी प्रतियोगिता होती है, जो ब्लू डायमंड सोसाइटी द्वारा आयोजित की जाती है.

श्रेष्ठा का कहना था, ‘‘मैं अपनेआप को हमेशा एक लड़की मानती रही हूं. वैसे, मेरे पासपोर्ट में कुछ समय पहले तक मुझे कैलाशा नामक लड़के के रूप में बताया गया था. साथ ही, मैं कभी लिंग पहचान की वजहों को नहीं समझ पाई थी. मुझे हमेशा ‘हिजड़ा’ जैसे शब्दों से बुलाया जाता था, जिस से मुझे बहुत दुख होता था और मैं अपनेआप को अकेला महसूस करती थी.

‘‘आखिरकार मैं ने ब्लू डायमंड सोसाइटी की सदस्यता हासिल कर ली, जहां मैं ने अपने हकों को समझ और अपनी पहचान बनाई. मेरी मां पहले मेरी पहचान को ले कर भरम में थीं, लेकिन अब वे मेरी भावनाओं की इज्जत करती हैं और अपने आसपास के समाज को मेरे बारे में जागरूक करती हैं.’’

श्रेष्ठा ने अपना सिलिकौन ब्रैस्ट ट्रांसप्लांट थाईलैंड में कराया था. फिर फेशियल और मसाज के हफ्तेभर के कोर्स के बाद उन की खूबसूरती और भी निखर आई और वे वापस लौटने पर नेपाल के सैलेब्रिटी समाज में शामिल हो गईं. इस के बाद उन्होंने नेपाली फिल्म ‘राजमार्ग’ में बतौर हीरोइन काम किया, क्योंकि इस फिल्म का तानाबाना समलैंगिक संबंधों के इर्दगिर्द बुना गया था.

‘मिस पिंक’ एलजीबीटी संस्था का एकलौता समारोह नहीं है, बल्कि वह ‘मिस्टर हैंडसम’ (समलैंगिक पुरुषों के लिए एक सौंदर्य प्रतियोगिता), ‘एलजीबीटी ओलिंपिक’ और ‘समलैंगिक परेड’ जैसे समारोहों का भी आयोजन करती है. इस का मकसद एलजीबीटी समुदाय को सामाजिक लैवल पर पहचान दिलाना है.

24 साल के समलैंगिक विश्वराज अधिकारी ने साल 2013 की ‘मिस्टर हैंडसम’ प्रतियोगिता जीती थी. वे अपने पुरुष मित्र और मां के साथ काठमांडू में रहते हैं.

जब मैं ने उन के लिंग पहचान की जानकारी मांगी, तो उन्होंने बिना पलक झपकाए एक फोटो देते हुए कहा, ‘‘मैं एक लड़का हूं और एक लड़के के समान ही बरताव करता हूं. जब मैं इस सब को ले कर तनावग्रस्त था, तभी एक आदमी ने मेरे साथ रेप किया था, लेकिन मदद के लिए मैं पुलिस के पास नहीं जा सका. महल्ले के बहुत से लोगों को मेरे बारे में पता चल चुका था. मुझ अपनी मानसिक शांति के लिए अपना गृह नगर छोड़ना पड़ा.

‘‘मैं अपनेआप को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं कि मेरा जन्म नेपाल जैसे देश में हुआ, जहां आज समलैंगिकता अपराध नहीं है, लेकिन समाज में मंजूरी मिलने में अभी वक्त लगेगा.’’

25 साल के विष्णु अधिकारी ने अपने बारे में बताया, ‘‘मेरा परिवार लिंग परिवर्तन के सख्त खिलाफ था, लेकिन लड़की के रूप में जब मैं लड़कों के साथ खेलना चाहती थी और उन लड़कों में से एक को मैं पसंद भी करती थी, तो मेरे परिवार वालों ने लड़कों के साथ खेलने से मना कर दिया, जबकि मैं न तो किसी को आकर्षित कर सकती थी और न ही मां बन सकती थी.

‘‘कुछ साल पहले मैं एक लड़की से प्यार करने लगा था, लेकिन उस के परिवार वालों ने जबरन उस की शादी कहीं और करा दी. अभी हाल ही में उस ने मुझ से एक रेडियो प्रोग्राम के माध्यम से संपर्क किया (प्रोग्राम का नाम है गीतीकथा, जो ब्लू डायमंड सोसाइटी द्वारा चलाया जाता है. इस में एलजीबीटी ग्रुप के सदस्यों की कामयाबी की कहानियां बताई जाती हैं. इन के सूत्रधार विष्णु अधिकारी हैं).

‘‘उस लड़की ने मुझ से कहा कि वह मेरे लिए अच्छे भविष्य की शुभकामनाएं देती है और आखिरकार मुझे जिंदगी जीने का वह रास्ता मिला, जिसे मैं चाहता था.

‘‘मेरा परिवार अब मुझ से और मेरी लिंग पहचान से न केवल सहमत है, बल्कि अब तो वे मुझे ‘छोरा’ और ‘बाबू’ कह कर पुकारते हैं और मेरे कई दोस्त मुझे ‘हीरो’ कह कर बुलाते  हैं.’’

30 साल की दीपा (बदला हुआ नाम) ने बताया, ‘‘मैं ने20 साल की उम्र में एक लिंग परिवर्तित पुरुष के साथ संबंध बनाए और लैस्बियन बनने की कोशिश की. वे आदमी आर्मी में मेरे सीनियर अफसर थे. मेरा अपराध केवल मेरी यौन स्वछंदता थी. मुझे और मेरे सहयोगी को इस अपराध की सजा दी गई.

‘‘हमें 45 दिन तक बिना पानी, बिना धूप और भरपेट भोजन के जेल में रखा गया और मेरी समलैंगिकता की पुष्टि के लिए मुझे मानसिक रूप से सताया भी गया. मेरे परिवार वालों को मेरी यौन इच्छाओं के बारे में अखबारों के जरीए मालूम हुआ और तभी से वे मेरी सुरक्षा को ले कर चिंतित रहने लगे.

‘‘अपने संबंधों को आगे बढ़ाते हुए अब मैं अपने साथी के साथ रहती हूं, क्योंकि मेरे परिवार वालों ने हम दोनों के संबंधों को रजामंदी दे दी है. हम नियमित एकदूसरे के परिवार से डिनर वगैरह मौकों पर मिलते हैं और एक आम जिंदगी बिता रहे हैं.

‘‘मैं एक लड़का होने के बावजूद उन के परिवार वालों द्वारा एक लड़की के रूप में छेड़ी जाती हूं. लेकिन, अब मैं अपने साथी से शादी करना चाहती हूं और मुझे यकीन है कि नया कानून जल्द ही पास और लागू हो जाएगा.’’

पहले काठमांडू शहर में एलजीबीटी के सदस्यों को खुलेआम घूमते देखना काफी मुश्किल था, लेकिन अब उन की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो काफी अच्छी और बड़ी बात है.

नेपाल में 38 लाख से ज्यादा लोग एलजीबीटी ग्रुप से हैं. इन में से ज्यादातर लोग देह धंधे को ही अपनी आजीविका बनाए हुए हैं. कुछ लोग अभी भी हिंसा और हमलों के शिकार हैं.

मानव अधिकार समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन लोगों पर पुलिस की छापेमारी आज भी जारी है और उन पर भारी जुर्माना व लंबी हिरासत जैसे दंड दिए जाते हैं. एशिया के एक

छोटे से देश में समलैंगिकों को मान्यता मिलने पर सवाल यह भी उठता है कि मौडर्न कौन है, भारत या नेपाल?

छोटी जात की बहू

दिनेश जब से काम के लिए लखनऊ गया है, उस की पत्नी भूरी परेशान है. इस की वजह है भूरी का जेठ सुरेश, जो कई बार उस के साथ गलत हरकत कर चुका है. वह हर वक्त उसे ऐसे घूरता है, मानो आंखों से ही निगल जाएगा. जब देखो तब किसी न किसी बहाने उसे छूने की कोशिश करता है.

आज सुबह तो हद ही हो गई. भूरी नहाने के बाद छत पर धोए हुए कपड़े सुखाने गई तो सुरेश उस के पीछेपीछे छत पर पहुंच गया.

भूरी बालटी से कपड़े निकाल कर रस्सी पर डाल ही रही थी कि सुरेश ने चुपचाप पीछे से आ कर उसे कमर से पकड़ लिया.

भूरी मछली की तरह तड़प कर उस की जकड़ से निकली और उस को धक्का मारते हुए सीढि़यों से नीचे भागी.

रसोई के दरवाजे पर पहुंच कर वह सास के आगे फूटफूट कर रोने लगी.

उस को इस तरह रोते देख सास ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? क्यों रोती है?’’

भूरी बस छत की ओर उंगली उठा कर रह गई, कुछ बोल नहीं पाई.

‘‘अरे बोल न, कौन मर गया?’’

भूरी चुपचाप आंसू पोंछती हुई सास के सामने से हट कर अपनी कोठरी में आ गई. सास से जेठ की शिकायत करना फुजूल था. वह उलटा भूरी पर ही बदचलनी का आरोप लगा देती. फिर दरवाजे पर बैठ कर दहाड़ें मारमार कर सिर पटकती कि बेटे ने निचली जात की औरत से ब्याह कर के खानदान की नाक कटवा दी. देखो, खुद बदन उघाड़े घूमती है और फिर जेठ और ससुर पर इलजाम लगाती है.

इस महल्ले के ज्यादातर लोग इन्हीं लोगों की जात वाले हैं. वे इन्हीं की बातों पर भरोसा करेंगे, भूरी का दर्द कोई नहीं समझेगा. हद तो उस दिन हो गई थी, जब दिनेश पहली बार भूरी को ले कर मंदिर में गया और पुजारी ने भूरी को मंदिर की पहली सीढ़ी पर ही रोक दिया.

पुजारी ने दिनेश से साफ कह दिया कि वह चाहे तो मंदिर आए, मगर अपनी पत्नी को हरगिज न लाए.

पुजारी की बात का दिनेश विरोध भी नहीं कर पाया था, उलटे हाथ जोड़ कर पुजारी से माफी मांगने लगा था. फिर भूरी को सीढि़यों पर छोड़ कर वह मंदिर के भीतर चला गया था.

दिनेश सारे रास्ते भूरी को समझाता आया था कि अभी नईनई बात है, धीरेधीरे सब उसे स्वीकार कर लेंगे. उसे इन बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए.

दरअसल, भूरी का परिवार दिहाड़ी मजदूर था. लखनऊ में दिनेश एक छोटे से रैस्टोरैंट में वेटर का काम करता था. उसी रैस्टोरैंट के सामने वाली मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में काम चल रहा था, जहां भूरी अपने मांबाप और भाइयों के साथ ईंटगारा ढोने का काम कर रही थी. भूरी का पूरा परिवार बिल्डिंग के कंपाउंड में ही तंबू डाल कर रह रहा था. बिल्डिंग का काम अभी कई साल चलना था, इसलिए ठेकेदार ने गांव के कई परिवारों को यहां दिहाड़ी मजदूरी पर रखा हुआ था. इसी में से एक परिवार भूरी का भी था.

काफी समय से रात में रैस्टोरैंट का काम खत्म होने के बाद दिनेश भी इन लोगों के साथ आ कर बैठने लगा था. भूरी के भाई से उस की दोस्ती हो गई थी. दिनेश ने जब भूरी को देखा तो उस का दिल भूरी पर आ गया. भूरी को भी दिनेश अच्छा लगता था. दोनों के बीच प्यार हो गया. 2-4 बार संबंध भी बन गए, जबकि जगह भी सही नहीं थी.

दिनेश भी पूरी तरह से भूरी के लिए कुरबानी करने को तैयार हो गया. दिनेश ने भूरी के बाप से उस का हाथ मांग लिया. भूरी के बाप ने दिनेश को जातपांत समझाई, मगर दिनेश ने यह कह कर उन को चुप करा दिया कि वह ये सब बातें नहीं मानता है. उसे उन लोगों से कोई दानदहेज भी नहीं चाहिए. वे बस भूरी को उस के साथ दो कपड़ों में ब्याह दें.

भूरी के पिता को और क्या चाहिए था. अच्छाखासा लड़का मिल रहा था. पढ़ालिखा था. रैस्टोरैंट में वेटर था और उन से ऊंची जाति का था.

भूरी के परिवार वालों ने दिनेश के परिवार की ज्यादा खोजबीन नहीं की. अपने परिवार के बारे में दिनेश ने जितना बताया, उसी पर यकीन कर लिया.

दिनेश लखनऊ में 4 दोस्तों के साथ एक कमरा शेयर कर के रह रहा था. उस ने भूरी के बाप से कहा कि शादी के बाद वह जल्दी ही लखनऊ में कोई छोटा सा घर ले लेगा, तब तक भूरी को अपने साथ नहीं रख पाएगा. भूरी उन्नाव में उस के घर पर परिवार के साथ रहेगी.

भूरी के पिता राजी हो गए तो दिनेश ने लखनऊ में ही एक मंदिर में भूरी से शादी कर ली. शादी में उस के परिवार से तो कोई नहीं आया, लेकिन उस के रैस्टोरैंट के दोस्त और मालिक जरूर शामिल हुए.

शादी के बाद जब दिनेश भूरी को ले कर अपने घर उन्नाव आया, तो वहां का हाल देख कर भूरी सहम गई. सब ने मिल कर दोनों को खूब खरीखोटी सुनाई. भूरी से उस की जातपांत पूछी. दानदहेज में क्या मिला, यह पूछा. और जब पता चला कि भूरी निचली जाति की है और उस पर खाली हाथ आई है तो सब उस के दुश्मन हो गए.

शादी के बाद बस हफ्तेभर की छुट्टी दिनेश को मिली थी. हफ्ता खत्म हुआ तो वह लखनऊ जाने को तैयार हो गया. भूरी ने लाख मिन्नत की कि वह उसे अपने साथ ले चले, मगर उस ने कहा कि वह यहीं रहे और घर वालों की सेवा करे. मगर इस घर में भूरी किसी की क्या सेवा करती? वह तो यहां किसी चीज को हाथ भी नहीं लगा सकती थी. भूरी को स्वीकार करना तो दूर, यहां तो लोग उस की बेइज्जती पर ही उतर आए.

भूरी का ससुर और जेठ, जो दिन में उस पर ‘नीच जात की औरत’ बोल कर उस के हाथ का पानी भी नहीं पीते हैं, रात के अंधेरे में उस के जिस्म का सुख उठाने के लिए तैयार रहते हैं. उन की लाललाल आंखों से हर वक्त हवस टपकती है.

भूरी को पता है कि उन की इस मंशा में उस की सास की पूरी सहमति है. वे तो चाहती हैं कि भूरी के साथ कोई अनहोनी हो जाए और फिर वे उस पर आरोप लगा कर, उसे बदचलन साबित कर के घर से बाहर का रास्ता दिखा दें.

दिनेश के लखनऊ जाने के बाद तो उन का मुंह खूब खुलता है. खूब ताने मारती हैं, गालीगलौज करती हैं.

भूरी ब्याह कर आई तो सास ने बड़ी हायतोबा मचाई थी. रसोई में कदम नहीं धरने दिया था. तब दिनेश ने भूरी के लिए आंगन के कोने में एक चूल्हा और कुछ राशनबरतन का इंतजाम कर दिया था. तब से भूरी अपना और दिनेश का खाना वहीं बनाती है.

पानी के लिए जहां घर के बाकी लोग नल का इस्तेमाल करते थे, वहीं भूरी गोशाला में लगे हैंडपंप से पानी भरती थी. पिछवाड़े में बने टूटेफूटे शौचालय का भूरी इस्तेमाल करती थी. उस ने कई बार अपने जेठ को इस शौचालय के इर्दगिर्द मंडराते देखा था. वह कोशिश करती थी कि जब जेठ घर पर न हो, तभी उधर जाए.

अपने ससुर और जेठ से भूरी जैसेतैसे अपनी इज्जत बचाए हुए है. रात को वह अपनी कोठरी का दरवाजा कस के बंद करती है, फिर कमरे में पड़ी लकड़ी की अलमारी खिसका कर दरवाजे से अड़ा देती है. भूरी की जेठानी 2 बच्चों के साथ अपने मायके में ही रहती है.

दरअसल, उस की भी सास से बनती नहीं है. हालांकि वह इन्हीं लोगों की जात की है और सुना है कि बड़ी तेजतर्रार औरत है. जेठ उस से दबता है. महीने के महीने खर्चे के पैसे उसे उस के घर दे कर आता है. जब सुरेश 2-3 दिनों के लिए अपनी ससुराल जाता है, तब भूरी को बड़ा सुकून मिलता है. उस के जिस्म से लिपटी गंदी नजरों की जंजीरें थोड़ी कम हो जाती हैं. ससुर की अभी इतनी हिम्मत नहीं पड़ी है कि उसे छू ले, मगर घूरता जरूर रहता है.

दिनेश ने जाते वक्त भूरी से कहा था कि वह अपने अच्छे बरताव से घर वालों का दिल जीत ले, लेकिन यहां तो हाल ही अलग है. सब नीच कह कर उसे दुत्कारते रहते हैं और उस का उपभोग भी करना चाहते हैं. ऐसे लोगों का वह क्या दिल जीते? ऐसे लोगों को वह क्या अपना समझे? इन से तो वह हर समय डरीसहमी रहती है. पता नहीं, कब क्या कांड कर बैठें.

ऊंची जातियों के लड़के चाहे पिछड़ों की लड़कियों से शादी करें या दलितों की, मुश्किल से ही निभा पाते हैं, क्योंकि कम परिवार ही उन्हें घर में जगह देते हैं. पंडेपुजारियों का जाल चारों ओर इस तरह फैल गया है कि बारबार कुंडली, रीतिरिवाजों की दुहाई दी जाती है. इस में पिछड़ों के लड़केलड़कियां बुरी तरह पिसे हैं. वे मनचाहे से प्रेम नहीं कर सकते, दोस्ती तक करने में जाति आड़े आती है.

जब तक दिल मजबूत न हो और ऊंची या नीची जाति का पति अपने पैरों पर खड़ा न हो, ऐसी शादियों को आज की पंडा सरकार भी कोई बचाव न करेगी, यह तो खुद करना होगा. पिछड़ों का इस्तेमाल तो किया जाएगा, पर उन्हें बराबर की जगह न मिलेगी चाहे पत्नी ही क्यों न बन जाए.

शराबी बाप और जवान बेटियां

निहाल सिंह की उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में अच्छीखासी दुकान चल रही थी, जिस से उस के परिवार का खर्चा आसानी से निकल रहा था. लेकिन 2 साल पहले दोस्तों के चलते उसे शराब की ऐसी लत लगी कि कारोबार चौपट हो गया. निहाल सिंह के शराब पीने की लत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी, जिस की वजह से उस के घर में खाने के भी लाले पड़ गए. उस की पत्नी जब भी शराब छोड़ने की बात कहती, तो वह उसे मारनेपीटने लगता था. ऐसे में उस की बेटियां सहमी सी अपनी मां को पिटते हुए देखती थीं.

आखिरकार निहाल सिंह की बेटियां पिता की शराब की लत के चलते काम की तलाश में रहने लगीं. लेकिन वे जहां भी जातीं, तो उन्हें हवस की नजरों से ही देखा जाता. लड़कियों ने घर पर ही कागज के लिफाफे बना कर बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन निहाल सिंह बेटियों की इस कमाई को भी छीन कर शराब पीने में उड़ा देता था.

एक दिन निहाल सिंह अपने कुछ शराबी दोस्तों के साथ महफिल जमाए बैठा था कि उस के शराबी दोस्तों की नजर उस की जवान होती बेटियों पर पड़ गई. अपनी शराब की लत के चलते निहाल सिंह अपने दोस्तों से काफी रुपए उधार ले चुका था. जब उन्होंने अपने रुपए मांगने शुरू किए, तो वह बोला कि उस के पास पैसे तो नहीं हैं. इस पर दोस्तों ने सख्ती से रुपए मांगे और यह भी कहा कि वे आगे से उस की शराब की जरूरत पूरी नहीं कर पाएंगे.

निहाल सिंह शराब के नशे का इतना आदी हो चुका था कि उस ने अपने दोस्तों से गिड़गिड़ाते हुए कहा कि वह उस की शराब की जरूरत पूरी करते रहें. उस के दोस्तों ने निहाल सिंह की मजबूरी का फायदा उठाते हुए बेटियों से पहले छेड़छाड़ की और फिर निहाल सिंह की नजर बचा कर उन को छेड़ना शुरू कर दिया.

बेटियों ने बाप से शिकायत की, तो उस ने उन्हें चुप करा दिया कि वे उस के दोस्त ही तो हैं.

इस के बाद तो निहाल सिंह की कम उम्र की बेटियां उस के शराबी दोस्तों की शिकार होती रहीं. यह बात तब खुली, जब निहाल सिंह की बड़ी बेटी ने बाप के शराबी दोस्तों से तंग आ कर फांसीं लगा कर अपनी जान दे दी.

इस मामले में पुलिसिया पूछताछ के दौरान यह पता चला कि निहाल सिंह की शराब की लत का फायदा उठा कर उस के शराबी दोस्त महीनों से उस की बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाते आ रहे थे.

पुलिस ने निहाल सिंह और उस के दोस्तों को इस मामले में गुनाहगार मानते हुए सलाखों के पीछे डाल दिया, जबकि निहाल सिंह को अपनी इस करनी पर कोई पछतावा नहीं था.

ज्यादातर मामलों में शराबी बाप के चलते उस की जवान होती बेटियों को किसी न किसी तरह से ज्यादती का शिकार होना पड़ता है.

बाप की शराब की लत के चलते उन की पढ़ाईलिखाई और सामाजिक सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है. ऐसी हालत में ज्यादातर लड़कियां चुपचाप सबकुछ सहती रहती हैं और जो नहीं सह पाती हैं, वे या तो घर छोड़ कर गलत धंधे में उतर जाती हैं या खुदकुशी का रास्ता अख्तियार कर लेती हैं.

शराब है दुश्मन

शराब दिलोदिमाग के सोचने की ताकत को खत्म कर देती है. जैसेजैसे कोई शख्स शराब का आदी होता जाता है, वह अपनी नौकरीकारोबार से हाथ धोने लगता है. एक समय ऐसा भी आता है, जब शराब की लत के चलते उस का सबकुछ चौपट हो चुका होता है.

पढ़ाईलिखाई का सपना संजोने वाली लड़कियों के ख्वाब पिता की इस बुरी लत के चलते धरे के धरे रह जाते हैं और उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इस की वजह से वे न केवल कुंठा का शिकार हो जाती हैं, बल्कि तमाम मजबूरियों के चलते कई तरह के अपराधों में भी शामिल हो जाती हैं.

शराबी बाप के चलते जवान होती बेटियों के सामने जो सब से बड़ी समस्या उभर कर आती है, वह है उन की शादी.

ऐसी हालत में या तो उन्हें भाग कर शादी करनी पड़ती है या फिर शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए पिता बेटी को पैसों के लालच के चलते उस से उम्र में काफी बड़े शख्स के साथ शादी कर देता है.

देह धंधे को मजबूर

बाप की शराब की लत के चलते अगर सब से ज्यादा खतरा किसी को होता है, वह है उस की जवान होती बेटियां, क्योंकि बाप की शराब की लत परिवार की माली हालत को खस्ताहाल बना देती है. इस वजह से परिवार में भूखों मरने की नौबत तक आ जाती है, जिस से उबरने व पेट की भूख मिटाने के लिए जवान बेटियां खुद की इज्जत बेचने को मजबूर हो जाती हैं.

इस तरह के जितने भी मामले अभी तक सामने आए हैं, उन में यह पाया गया है कि जो लड़कियां देह धंधे में आईं, उन में से ज्यादातर की वजह पिता के शराब पीने की लत रही है. इस हालत में छोटे भाईबहनों की अच्छी पढ़ाईलिखाई और पेट की भूख मिटाने के लिए उन के पास यह गलत काम करने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं था.

दिल्ली के रहने वाले सुशील खन्ना पिछले कई सालों से नशे व शराब के खिलाफ मुहिम चला कर जागरूकता फैला रहे हैं. उन का कहना है कि शराब हर तरीके से पतन की तरफ ले जाती है. इस का जो सब से ज्यादा बुरा असर देखा गया है, वह है शराबी बाप की जवान होती बेटियों पर, क्योंकि बाप की शराब की लत के चलते इन की पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह में रुकावट तो आती ही है, साथ ही इन की इज्जत पर हर समय खतरा मंडराता रहता है.

ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, जिस में किसी जवान लड़की ने अपने शराबी बाप की ज्यादतियों के चलते खुदकुशी कर ली फिर या ऐसे कदम उठा लिए, जिसे समाज अच्छी नजर से नहीं देखता है.

अगर आप भी किसी बेटी के बाप हैं और नशे के आदी हैं, तो आज ही इस से दूरी बना लें. शराब पीने की लत आप की बेटी के भविष्य को चौपट कर सकती है. आप इस से छुटकारा पाने के लिए अपने नजदीकी नशामुक्ति केंद्र जा सकते हैं. आप का यह फैसला आप की बेटी के भविष्य के सुनहरे पल लाने के लिए काफी होगा.

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