प्यार अपने से: जब प्यार ने तोड़ी मर्यादा- भाग 3

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझ लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरातुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

प्यार अपने से: जब प्यार ने तोड़ी मर्यादा- भाग 2

हजारीबाग से जाने के पहले लक्ष्मी ने सोमेन से अकेले में कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहना चाहती हूं.’’

‘‘हां, कहो,’’ सोमेन ने कहा.

‘‘गोपाल आप का ही खून है.’’

सोमेन बोले, ‘‘यह तो मैं यकीनी तौर पर नहीं मान सकता हूं. जो भी हो, पर तुम मुझ से चाहती क्या हो?’’

‘‘बाबूजी, मैं बेटे की कसम खा कर कहती हूं, गोपाल आप का ही खून है.’’

‘‘ठीक है. बोलो, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘ज्यादा कुछ नहीं. बस, यह भी पढ़लिख कर अच्छा इनसान बने. मैं किसी से कुछ नहीं बोलूंगी. आप इतना भरोसा तो मुझ पर कर सकते हैं,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘ठीक है. तुम लोगों के बच्चों का तो हर जगह आसानी से रिजर्वेशन कोटे में दाखिला हो ही जाता है. फिर भी मुझ से कोई मदद चाहिए तो बोलना.’’

इस के बाद सोमेन रांची चले गए. समय बीतता गया. सोमेन की बेटी रिया 10वीं पास कर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई थी.

बीचबीच में इंस्पैक्शन के लिए सोमेन को हजारीबाग जाना पड़ता था. वे वहीं आ कर बंगले में ठहरते थे. लक्ष्मी भी उन से मिला करती थी. उस ने सोमेन से कहा था कि गोपाल भी 10वीं क्लास के बाद दिल्ली के अच्छे स्कूल और कालेज में पढ़ना चाहता है. उसे कुछ माली मदद की जरूरत पड़ सकती है.

सोमेन ने उसे मदद करने का भरोसा दिलाया था. गोपाल अब बड़ा हो गया था. वे उसे देख कर खुश हुए. शक्ल तो मां की थी, पर रंग गोरा था. छरहरे बदन का साधारण, पर आकर्षक लड़का था. उस के नंबर भी अच्छे आते थे.

रिया के दिल्ली जाने के एक साल बाद गोपाल ने भी दिल्ली के उसी स्कूल में दाखिला ले लिया. सोमेन ने गोपाल की 12वीं जमात तक की पढ़ाई के लिए रुपए उस के बैंक में जमा करवा दिए थे.

रिया गोपाल से एक साल सीनियर थी. पर एक राज्य का होने के चलते दोनों में परिचय हो गया. छुट्टियों में ट्रेन में अकसर आनाजाना साथ ही होता था. गोपाल और रिया दोनों का इरादा डाक्टर बनने का था.

रिया ने 12वीं के बाद कुछ मैडिकल कालेज के लिए अलगअलग टैस्ट दिए, पर वह कहीं भी पास नहीं कर सकी थी. तब उस ने एक साल कोचिंग ले कर अगले साल मैडिकल टैस्ट देने की सोची. वहीं दिल्ली के अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में कोचिंग शुरू की.

अगले साल गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल कालेज में दाखिले के लिए टैस्ट दिए. इस बार दोनों को कामयाबी मिली थी. गोपाल के नंबर कुछ कम थे, पर रिजर्वेशन कोटे में तो उस का दाखिला होना तय था.

गोपाल और रिया दोनों ने बीएचयू मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. सोमेन गोपाल की पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे थे. अब दोनों की क्लास भी साथ होती थी. आपस में मिलनाजुलना भी ज्यादा हो गया था. छुट्टियों में भी साथ ही घर आते थे.

वहां से शेयर टैक्सी से हजारीबाग जाना आसान था. हजारीबाग के लिए कोई अलग ट्रेन नहीं थी. जब कभी सोमेन रिया को लेने रांची स्टेशन जाते थे, तो वे गोपाल को भी बिठा लेते थे और अगर सोमेन को औफिशियल टूर में हजारीबाग जाना पड़ता था, तो गोपाल को वे साथ ले जाते थे. इस तरह समय बीतता गया और गोपाल व रिया अब काफी नजदीक आ गए थे. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

गोपाल और रिया दोनों असलियत से अनजान थे. दोनों के मातापिता भी उन की प्रेम कहानी से वाकिफ नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना घर बसाने का सपना देख रखा था. साढ़े 4 साल बाद दोनों ने अपनी एमबीबीएस पूरी कर ली. आगे उसी कालेज में दोनों ने एक साल की इंटर्नशिप भी पूरी की.

रिया काफी समझदार थी. उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे, पर उस ने मना कर दिया और कहा कि अभी वह डाक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी.

लक्ष्मी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. इसी बीच सोमेन भी हजारीबाग में थे. उस ने सोमेन से कहा, ‘‘बाबूजी, मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है. आप गोपाल का खयाल रखेंगे?’’

सोमेन ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब गोपाल समझदार डाक्टर बन चुका है. वह अपने पैरों पर खड़ा है. फिर भी उसे मेरी जरूरत हुई, तो मैं जरूर मदद करूंगा.’’

कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी की मौत हो गई.

गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल में पोस्ट ग्रैजुएशन का इम्तिहान दिया था. वे तो बीएचयू में पीजी करना चाहते थे, पर वहां उन्हें सीट नहीं मिली. दोनों को रांची मैडिकल कालेज आना पड़ा.

उन में प्रेम तो जरूर था, पर दोनों में से किसी ने भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था. दोनों ने तय किया कि जब तक उन की शादी नहीं होती, इस प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए.

रिया की मां संध्या ने एक दिन उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. तुम पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए भी शादी कर सकती हो. बहुत से लड़केलड़कियां ऐसा करते हैं.’’

रिया बोली, ‘‘करते होंगे, पर मैं नहीं करूंगी. मुझ से बिना पूछे शादी की बात भी मत चलाना.’’

‘‘क्यों? तुझे कोई लड़का पसंद है, तो बोल न?’’

‘‘हां, ऐसा ही समझो. पर अभी हम दोनों पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. शादी की जल्दी किसी को भी नहीं है. पापा को भी बता देना.’’

प्यार अपने से: जब प्यार ने तोड़ी मर्यादा- भाग 1

झारखंड राज्य का एक शहर है हजारीबाग. यह कुदरत की गोद में बसा छोटा सा, पर बहुत खूबसूरत शहर है. पहाड़ियों से घिरा, हरेभरे घने जंगल, झील, कोयले की खानें इस की खासीयत हैं. हजारीबाग के पास ही में डैम और नैशनल पार्क भी हैं. यह शहर अभी हाल में ही रेल मार्ग से जुड़ा है, पर अभी भी नाम के लिए 1-2 ट्रेनें ही इस लाइन पर चलती हैं. शायद इसी वजह से इस शहर ने अपने कुदरती खूबसूरती बरकरार रखी है.

सोमेन हजारीबाग में फौरैस्ट अफसर थे. उन दिनों हजारीबाग में उतनी सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन की बीवी संध्या अपने मायके कोलकाता में ही रहती थी.

दरअसल, शादी के बाद कुछ महीनों तक वे दोनों फौरैस्ट अफसर के शानदार बंगले में रहते थे. जब संध्या मां बनने वाली थी, सोमेन ने उसे कोलकाता भेज दिया था. उन्हें एक बेटी हुई थी. वह बहुत खूबसूरत थी, रिया नाम था उस का. सोमेन हजारीबाग में अकेले रहते थे. बीचबीच में वे कोलकाता जाते रहते थे.

हजारीबाग के बंगले के आउट हाउस में एक आदिवासी जोड़ा रहता था. लक्ष्मी सोमेन के घर का सारा काम करती थी. उन का खाना भी वही बनाती थी. उस का मर्द फूलन निकम्मा था. वह बंगले की बागबानी करता था और सारा दिन हंडि़या पी कर नशे में पड़ा रहता था.

एक दिन दोपहर बाद लक्ष्मी काम करने आई थी. वह रोज शाम तक सारा काम खत्म कर के रात को खाना टेबल पर सजा कर चली जाती थी.

उस दिन मौसम बहुत खराब था. घने बादल छाए हुए थे. मूसलाधार बारिश हो रही थी. दिन में ही रात जैसा अंधेरा हो गया था.

अपने आउट हाउस में बंगले तक दौड़ कर आने में ही लक्ष्मी भीग गई थी. सोमेन ने दरवाजा खोला. उस की गीली साड़ी और ब्लाउज के अंदर से उस के सुडौल उभार साफ दिख रहे थे.

सोमेन ने लक्ष्मी को एक पुराना तौलिया दे कर बदन सुखाने को कहा, फिर उसे बैडरूम में ही चाय लाने को कहा. बिजली तो गुल थी. उन्होंने लैंप जला रखा था.

थोड़ी देर में लक्ष्मी चाय ले कर आई. चाय टेबल पर रखने के लिए जब वह झुकी, तो उस का पल्लू सरक कर नीचे जा गिरा और उस के उभार और उजागर हो गए.

सोमेन की सांसें तेज हो गईं और उन्हें लगा कि कनपटी गरम हो रही है. लक्ष्मी अपना पल्लू संभाल चुकी थी. फिर भी सोमेन उसे लगातार देखे जा रहे थे.

यों देखे जाने से लक्ष्मी को लगा कि जैसे उस के कपड़े उतारे जा रहे हैं. इतने में सोमेन की ताकतवर बाजुओं ने उस की कमर को अपनी गिरफ्त में लेते हुए अपनी ओर खींचा.

लक्ष्मी भी रोमांचित हो उठी. उसे मरियल पियक्कड़ पति से ऐसा मजा नहीं मिला था. उस ने कोई विरोध नहीं किया और दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस घटना के कुछ महीने बाद सोमेन ने अपनी पत्नी और बेटी रिया को रांची बुला लिया. हजारीबाग से रांची अपनी गाड़ी से 2 ढाई घंटे में पहुंच जाते हैं.

सोमेन ने उन के लिए रांची में एक फ्लैट ले रखा था. उन के प्रमोशन की बात चल रही थी. प्रमोशन के बाद उन का ट्रांसफर रांची भी हो सकता है, ऐसा संकेत उन्हें डिपार्टमैंट से मिल चुका था.

इधर लक्ष्मी भी पेट से हो गई थी. इस के पहले उसे कोई औलाद न थी. लक्ष्मी के एक बेटा हुआ. नाकनक्श से तो साधारण ही था, पर रंग उस का गोरा था. आमतौर पर आदिवासियों के बच्चे ऐसे नहीं होते हैं.

अभी तक सोमेन हजारीबाग में ही थे. वे मन ही मन यह सोचते थे कि कहीं यह बेटा उन्हीं का तो नहीं है. उन्हें पता था कि लक्ष्मी की शादी हुए 6 साल हो चुके थे, पर वह पहली बार मां बनी थी.

सोमेन को तकरीबन डेढ़ साल बाद प्रमोशन और ट्रांसफर और्डर मिला. तब तक लक्ष्मी का बेटा गोपाल भी डेढ़ साल का हो चुका था.

प्रमोद शास्त्री को मिला बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड

भोजपुरी फ़िल्म जगत में प्रयोगधर्मिता के साथ सिनेमा निर्माण की पहचान रखने वाले निर्देशक प्रमोद शास्त्री को बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड मिला है। उन्हें यह अवार्ड प्रसिद्ध  दिल्ली प्रेस की महत्वपूर्ण पत्रिका सरस सलिल के द्वारा आयोजित भोजपुरी सिने अवार्ड में इस सम्मान से नवाजा गया है।  यह अवार्ड उन्हें उनकी फिल्म ‘प्यार तो होना ही था’ में बेतरीन डायरेक्शन के लिए दिया गया। वहीं इस फ़िल्म के हिस्से और भी कई अवार्ड आए। बता दें कि प्रमोद शास्त्री के लिए सरस सलिल भोजपुरी सिने अवॉर्ड यह दूसरी बार हुआ है कि उनके कार्यों को इस सम्मान से सराहा गया है। उन्हें इससे पहले भोजपुरी फ़िल्म छलिया के लिए बेस्ट डायरेक्टर (क्रिटिक) का अवार्ड मिल चुका है।

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प्रमोद शास्त्री ने अपने क्रिएशन क्षमता को कभी बांध कर नहीं रखा और एक के बाद एक बेहतरीन व सराहनीय फिल्मों के निर्माण में वे आज भी लगे हैं। प्रमोद शास्त्री इन दिनों अपनी डेब्यू हिंदी फिल्म की शूटिंग में बिजी हैं, जिसका नाम है “तुम तक”। उन्होंने हाल ही में इस फ़िल्म के 35 दिनों का शूटिंग शेड्यूल पूरा किया। इस शेड्यूल की शूटिंग नैनीताल उत्तराखंड हुई है, जबकि मई प्रथम सप्ताह में गानों की शूटिंग के लिए वे कश्मीर जाने वाले हैं, जहां की मनोरम वादियों को वे अपने सिनेमाई स्कोप से दर्शकों को सामने लाने वाले हैं।

प्रमोद शास्त्री का कल्चरल एक्टिविटी में रुचि स्कूल के दिनों से ही रही है। उसके बाद कॉलेज के दिनों में वे नाटक लिखते और निर्देशित करते थे, जिसे यूनिवर्सिटी स्तर के साथ – साथ राज्य स्तर पर भी सराहा गया। इसके बाद डॉ राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी कॉलेज से उन्होंने स्नातक की और फिर प्रमोद शास्त्री सपनों के शहर बॉम्बे चले गए, जहां उन्होंने नवोदित फिल्म और टेलीविजन उद्योग में शामिल हो गए। यहां एक सहायक के रूप में शुरुआत की और निर्देशक बनने के लिए अपने तरीके से काम किया। इसके बाद निर्देशक प्रमोद शास्त्री ने “किसे रोके रुका है सवेरा” टीवी धारावाहिक लिखा और निर्देशित किया जो डीडी किसान चैनल पर बहुत लोकप्रिय हुआ।

उन्होंने मेगास्टार रवि किशन अभिनीत फिल्म आपन माटी आपन देस का निर्माण किया, जिसे ‘भोजपुरी फिल्म अवार्ड्स’ के लिए सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में प्रमुख पुरस्कार जीते। इसके बाद प्रमोद शास्त्री ने फिल्मों का निर्देशन करने का रुख कर लिया। फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और उन्होंने रब्बा इश्क ना होवे, छलिया, प्यार तो होना ही था जैसी फिल्मों का सफल निर्देशन किया। इन फिल्मों में भोजपुरी सिनेमा के बड़े नाम थे। उनकी फिल्मे सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों के इर्द-गिर्द केंद्रितरहती है, जो कमर्सियल के साथ सार्थक भी होती है। उनकी फिल्मों ने जनता के दिलों को छुआ और बॉक्सऑफिस पर उनका जलवा बरकरार है प्रमोद शास्त्री द्वारा लिखित और निर्देशित मल्टी स्टारर मेगा बजट फिल्म “आन बान शान” जल्द ही सिनेमा हॉल में दस्तक देने वाली है…

Serial Story: प्यार अपने से

हिजाब : भाग 3 – क्या बंदिशों को तोड़ पाई चिलमन?

दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें… हिजाब भाग-2

मुझे एक दोस्त की बेहद जरूरत थी. नयनिका से मिलतेमिलाते सालभर होने को था. बचपन का सूत्र कहूं या हम दोनों की सोच की समानता दोनों ही एकदूसरे की दोस्ती में गहरे उतर रहे थे.

मैं जिस वक्त उस के घर गई वह अपनी पढ़ाई की तैयारी में व्यस्त थी. नयनिका कमर्शियल पायलट के लाइसैंस के लिए तैयारी कर रही थी. हम दोनों उस के बगीचे में आ गए थे. रंगबिरंगे फूलों के बीच जब हम जा बैठे तो कुछ और करीबियां हमारे पास सिमट आईं. उस की आंखों में छिपा दर्द शायद मुझे अपना हाल सुनाने को बेताब था. शायद मैं भी. बरदाश्त की वह लकीर जब तक अंगारा नहीं बन जाती, हम उसे पार करना नहीं चाहतीं, हम अपने प्रियजनों के खिलाफ जल्दी कुछ बुरा कहना-सुनना भी नहीं चाहते.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘उदास क्यों रहती हो हमेशा? तैयारी तो अच्छी चल रही न?’’

उस ने कहा, ‘‘कारण है, तभी तो उदास हूं… कमर्शियल पायलट बनने की कामयाबी मिल भी जाए तो हजारों रुपए लगेंगे इस की ट्रेनिंग में जाने को. बड़े भैया ने तो आदेश जारी कर दिया है कि बहुत हो गया, हवा में उड़ना… अब घरगृहस्थी में मन रमाओ.’’

‘‘हूं, दिक्कत तो है… फिर कर लो शादी.’’

‘‘क्यों, तुम मान रही हो वाकर से शादी और बुटीक की बात? वह तुम्हारे

हिसाब से, तुम्हारी मरजी से अलग है… अमेरिका में हर महीने लाखों कमाने वाले खूबसूरत इंजीनियर से शादी वैसे ही मेरी मंजिल नहीं. जो मैं बनना चाहती हूं, वह बनने न देना और सब की मरजी पर कुरबान हो जाना… यह इसलिए कि एक स्त्री की स्वतंत्रता मात्र उस के सिंदूर, कंगन और घूमनेफिरने के लिए दी गई छूट या रहने को मिली छत पर ही आ कर खत्म हो जाती है.’’

‘‘वाकई तुम प्लेन उड़ा लोगी,’’

मैं मुसकराई.

वह अब भी गंभीर थी. पूछा, ‘‘क्यों? अच्छेअच्छे उड़ जाएंगे, प्लेन क्या चीज है,’’ वह उदासी में भी मुसकरा पड़ी.

‘‘क्या करना चाहती हो आगे?’’

‘‘कमर्शियल पायलट का लाइसैंस मिल जाए तो मल्टीइंजिन ट्रैनिंग के लिए न्यूजीलैंड जाना चाहती हूं. पापा किसी तरह मान भी जाएं तो भैया यह नहीं होने देंगे.’’

‘‘क्यों, उन्हें इतनी भी क्या दिक्कत?’’

‘‘वे एक सामान्य इंजीनियर मैं कमर्शियल पायलट… एक स्त्री हो कर उन से ज्यादा डेयरिंग काम करूं… रिश्तेदारों और समाज में चर्चा का विषय बनूं? बड़ा भाई क्यों पायलट नहीं बन सका? आदि सवाल न उठ खड़े हों… दूसरी बात यह है कि अमेरिका में उन का दोस्त इंजीनियर है. अगर मैं उस दोस्त से शादी कर लूं तो वह अपनी पहचान से भैया को अमेरिका में अच्छी कंपनी में जौब दिलवाने में मदद करेगा. तीसरी बात यह है कि इन की बहन को मेरे भैया पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं, जो अभी अमेरिका में ही जौब कर रही है.’’

‘‘उफ, बड़ी टेढ़ी खीर है,’’ मैं बोल पड़ी.

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‘‘सब सधे लोग हैं… पक्के व्यवसायी… मैं तो उस दोस्त को पसंद भी नहीं करती और न ही वह मुझे.’’

‘‘हम ही नहीं सीख पा रहे दुनियादारी.’’

‘‘सीखना पड़ेगा चिलमन… लोग हम जैसों के सिर पर पैर रख सीढि़यां चढ़ते रहेंगे… हम आंसुओं पर लंबीलंबी शायरियां लिख उन पन्नों को रूह की आग में जलाते जाएंगे.’’

‘‘तुम्हें मिलाऊंगी अर्क से… आने ही वाला है… शाम को उस के साथ मुझे डिनर पर जाना पड़ेगा… भैया का आदेश है,’’ नयनिका उदास सी बोली जा रही थी.

मैं अब यहां से निकलने की जल्दी में थी. मेरी मोहलत भी खत्म होने को आई थी.

‘ये सख्श कौन? अर्क साहब तो नहीं? फुरसत से बनाया है बनाने वाले ने,’ मैं मन ही मन अनायास सोचती चली गई.

अर्क ही थे महाशय. 5 फुट 10 इंच लंबे, गेहुंए रंग में निखरे… वाकई खूबसूरत नौजवान. उन्हें देखते मैं पहली बार छुईमुई सी हया बन गई… न जाने क्यों उन से नजरें मिलीं नहीं कि चिलमन खुद आंखों में शरमा कर पलकों के अंदर सिमट गई.

अर्क साहब मेरे चेहरे पर नजर रख खड़े हो गए. फिर नयनिका की ओर मुखाबित हुए, ‘‘ये नई मुहतरमा कौन?’’

‘‘चिलमन, मेरी बचपन की सहेली.’’

अर्क साहब ने हाथ मिलाने को मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मैं ने हाथ तो मिलाया, पर फिर घर वालों की याद आते ही मैं असहज हो गई. मैं ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं चलूंगी.’’

नयनिका समझ रही थी, बोली, ‘‘हां, तुम निकलो.’’

अर्क मुझ पर छा गए थे. मैं नयनिका से मन ही मन माफी मांग रही थी, लेकिन इस अनजाने से एहसास को जाने क्यों अब रोक पाना संभव नहीं था मेरे लिए.

कुछ दिनों बाद नयनिका ने खुशखबरी सुनाई. उस की लड़ाई कामयाब हुई थी… उसे मल्टी इंजिन ट्रेनिंग के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर न्यूजीलैंड भेजा जाना था.

इस खुशी में उस ने मुझे रात होटल में डिनर पर बुलाया.

उस की इस खबर ने मुझ में न सिर्फ उम्मीद की किरण जगाई, बल्कि काफी हिम्मत भी दे गई. मैं ने भी आरपार की लड़ाई में उतर जाने को मन बना लिया.

होटल में अर्क को देख मैं अवाक थी और नहीं भी.

हलकेफुलके खुशीभरी माहौल में नयनिका ने मुझ से कहा, ‘‘तुम दोनों को यहां साथ बुलाने का मेरा एक मकसद है. अर्क और तुम्हारी बातों से मैं समझने लगी हूं कि यकीनन तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो वरना अर्क माफी मांगते हुए तुम्हारे मोबाइल नंबर मुझ से न मांगते… चिलमन, अर्क जानते हैं मैं किस मिट्टी की बनी हूं… यह घरगृहस्थी का तामझाम मेरे बस का नहीं है… सब लोग एक ही सांचे में नहीं ढल सकते… मैं अभी न्यूजीलैंड चली जाऊंगी, फिर आते ही पायलट के काम में समर्पण. चिलमन तुम अर्क से आज ही अपने मन की बात कह दो.’’

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अर्क खुशी से सुर्ख हो रहे थे. बोले, ‘‘अरे, ऐसा है क्या? मैं तो सोच रहा था कि मैं अकेला ही जी जला रहा हूं.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अर्क फिर बोले, ‘‘नयनिका के पास बड़े मकसद हैं.’’

मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘मेरे पास भी थे.’’

‘‘तो बताइए न मुझे.’’

नयनिका ने कहा, ‘‘जाओ उस कोने वाली टेबल पर और औपचारिकता छोड़ कर बातें कर लो.’’

अर्क ने पूरी सचाई के साथ मेरा हाथ थाम लिया था… विदेश जा कर मेरे कैरियर को नई ऊंचाई देने का मुझ से वादा किया.

इधर शादी के मामले में अर्क ने नयनिका के घर वालों का भी मोरचा संभाला.

अब थी मेरी बारी. अर्क का साथ मिल गया तो मुझे राह दिख गई.

घर से निकलते वक्त मन भारी जरूर था, लेकिन अब डर, बेचारगी की जंजीरों से अपने पैर छुड़ाने जरूरी हो गए थे.

कानपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी हम ने. फिर वक्त से अमेरिकन एयरवेज में दाखिल हो गए.

साहिबा आपा को फोन से सूचना दे दी कि अर्क के साथ मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करने अमेरिका जा रही हूं. वहां माइक्रोबायोलौजी ले कर काम करूंगी और अर्क को खुश रखूंगी.’’

साहिबा आपा जैसे आसमान से गिरी हों. हकला कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

हमारी आजादी हिजाब हटनेभर से नहीं है आपा… हमारी आजादी में एक उड़ान होनी चाहिए.

आपा के फोन रख देने भर से हमारी आजादी की नई दास्तां शुरू हो गई थी.

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सौतेली: भाग 3

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रवानगी से पहली रात को शेफाली के कमरे में वंदना आई तो वह बहुत गंभीर थी. उस की तरफ देख कर वंदना बोली, ‘‘जाने से पहले मैं तुम को कुछ समझाना चाहती हूं. मेरी बात पर अमल करना, न करना तुम्हारी मर्जी होगी. जीवन के सच से मुंह मोड़ना और हालात का सामना करने के बजाय उस से दूर भागना समझदारी नहीं. जिस को तुम ने देखा नहीं, जाना नहीं, उस के लिए नफरत क्यों? नफरत इसलिए क्योंकि उस के साथ ‘सौतेली’ शब्द जुड़ा है. प्यार और नफरत करने का तुम को हक है. किंतु तब तक नहीं जब तक तुम किसी को देख या जान न लो. अगर तुम्हारे पापा ने किसी दूसरी औरत से शादी कर के तुम्हारा दिल दुखाया है तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम अपने घर पर अपना हक छोड़ दो. तुम को परीक्षाएं देने के बाद अपने घर वापस जाना ही है. यह पक्का इरादा कर लो. अपनों पर नाराज हुआ जाता है, उन को छोड़ा नहीं जाता. रही बात तुम्हारे पापा के साथ शादी करने वाली दूसरी औरत, मेरा मतलब तुम्हारी सौतेली मां से है. एक बार उस को भी देख लेना. अगर वह सचमुच तुम्हारी सोच के मुताबिक बुरी हो तो उस को घर से बाहर का रास्ता दिखलाने का इंतजाम कर देना. इस के लिए तुम को अपने पापा से भी झगड़ना पडे़ तो कोई हर्ज नहीं.’’

जब वंदना अपनी बात कह रही थी तो शेफाली हैरानी से उस के चेहरे को देख रही थी. वंदना की बातों से उस को एक बल मिल रहा था.

शेफाली को लग रहा था वंदना ठीक कह रही है. वह अपना घर क्यों छोडे़. उस को हालात का सामना करना चाहिए था. फिर उस औरत से नफरत कैसी जिसे अभी उस ने देखा भी नहीं था.

अगले दिन सुबह वंदना चली गई.

कुछ भी नहीं होते हुए वंदना कुछ दिनों में ही अपनेपन का जो कोमल स्पर्श शेफाली को करवा गई थी उस को भूलना मुश्किल था. यही नहीं वह शेफाली की दिशाहीन जिंदगी को एक दिशा भी दे गई थी.

परीक्षाओं के शुरू होते ही शेफाली ने जानकी बूआ से घर जाने की बात कह दी और थोड़ाथोड़ा कर के अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

परीक्षाएं खत्म होते ही शेफाली अपने घर को रवाना हुई तो जानकी बूआ खुद उस को अमृतसर जाने वाली बस में बैठाने के लिए बस अड्डे पर आई थीं.

बस जब चल पड़ी तो शेफाली के मन में कई सवाल बुलबुले बन कर उभरने लगे कि पापा उस का सामना कैसे करेंगे, उस का सौतेली मां से सामना कैसे होगा? वह कैसा व्यवहार करेंगी?

शेफाली जानती थी कि उस को बस में बैठाने के बाद बूआ ने फोन पर इस की सूचना पापा को दे दी होगी. शायद घर में उस के आने के इंतजार में होंगे सभी…

सामान का बैग हाथ में लिए घर के दरवाजे के अंदर दाखिल होते एक बार तो शेफाली को ऐसा लगा था कि किसी बेगानी जगह पर आ गई है.

पापा उस के इंतजार में ड्राइंगरूम में ही बैठे थे. उन के साथ मानसी और अंकुर भी थे जोकि दौड़ कर उस से लिपट गए.

उन को प्यार करते हुए शेफाली की नजरें पापा से मिलीं. चाह कर भी शेफाली मुसकरा नहीं सकी. उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘हैलो पापा, कैसे हैं आप?’’

‘‘अच्छा हूं. अपनी सुनाओ. सफर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’

‘‘नहीं…और होती भी तो अब कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझ को कुछ समय से तकलीफें बरदाश्त करने की आदत पड़ चुकी है,’’ कोशिश करने पर भी अपने गुस्से और आक्रोश को छिपा नहीं सकी शेफाली.

इस पर पापा ने मानसी और अंकुर से कहा, ‘‘तुम दोनों जा कर जरा अपनी दीदी का कमरा ठीक करो, मैं तब तक इस से बातें करता हूं.’’

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पापा का इशारा समझ कर दोनों तुरंत वहां से चले गए.

‘‘मैं जानता हूं तुम मुझ से नाराज हो,’’ उन के जाने के बाद पापा ने कहा.

‘‘मुझ को बहाने के साथ घर से बाहर भेज कर मेरी ममी की जगह एक दूसरी ‘औरत’ को दे दी पापा और इस के बाद भी आप उम्मीद करते हैं कि मुझ को नाराज होने का भी हक नहीं?’’

‘‘यह मत भूलो कि वह ‘औरत’ अब तुम्हारी नई मां है,’’ पापा ने शेफाली को चेताया.

इस से शेफाली जैसे बिफर गई और बोली, ‘‘मैं इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करूंगी, पापा,’’

‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.

‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.

शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.

मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.

कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.

‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.

‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’

‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.

मानसी से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.

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सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.

मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.

भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.

मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.

शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.

फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.

चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.

आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.

थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’

दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.

‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.

‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.

‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.

‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.

‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.

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‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.

प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.

सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड : मनोज सिंह टाइगर को मिला बेस्ट पौपुलर कामेडियन अवार्ड

सरस सलिल की ज्यूरी द्वारा वर्ष 2019 में भोजपुरी भाषा में प्रदर्शित फिल्मों के स्क्रीनिंग के आधार पर जिन एक्टर्स को अवार्ड दिया गया उसमें अलग अलग कैटेगरी में कई मशहूर एक्टर्स शामिल रहें. इसी कड़ी में कामेडी के लिए भी अभिनेताओं को अवार्ड से नवाजा गया. जिसमें मशहूर कामेडियन मनोज सिंह टाइगर ‘बतासा चाचा’ को बेस्ट पापुलर कामेडियन का अवार्ड दिया गया मनोज सिंह टाइगर को बतासा चाचा का उप नाम निरहुआ रिक्शावाला के किरदार से मिला जो आज उनकी पहचान बन चुका है मनोज सिंह टाइगर लखनऊ में हो रहे बीआईपीएल के चलते अवार्ड शो में नहीं पहुँच पाए थे ऐसे में उन्हें यह अवार्ड एक फिल्म की शूटिंग के दौरान फिल्म शेट पर जाकर दिया गया .

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अगर अभिनेता मनोज सिंह टाइगर की बात करें तो उनकी अब तक ढाई सौ से भी अधिक फ़िल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं. उन्होंने भोजपुरी में कामेडी को एक अलग ही पहचान दी है. पहले भोजपुरी में कामेडी का पैमाना नहीं हुआ करता था इसी लिए भोजपुरी में कामेडियन को मजाक बनाया जाता रहा. भोजपुरी कामेडियन को को नाडा पहना कर मजाक का पार्ट बनाया जाता था. लेकिन मनोज सिंह टाइगर के भोजपुरी कामेडी में आने के बाद अब भोजपुरी में भी कामेडियन का लेवल वालीवुड के परेश रावल, राजपाल यादव और संजय मिश्रा सरीखे कलाकारों की तरह बढ़ा है.

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मनोज सिंह टाइगर जिस तरह फिल्मों में वयस्त है उसी तरह वह थियेटर में भी सक्रिय रहतें है. उनका कहना ही की थियेटर मेरी आत्मा में बसा है,या कह लिया जाए की थियेटर मेरी कमजोरी और मजबूरी है. थियेटर के बिना मुझे जिदंगी अधूरी लगती है. जब भी मुझे कहीं से थियेटर में मंच पर प्रस्तुति के लिए ऑफर मिलता है तो मै सारे काम छोड़ कर थियेटर पर अपने नाटकों के मंचन के लिए पहुँच जाता हूँ. जहाँ तक थियेटर का फिल्मी कैरियर में लाभ मिलने की बात है तो थियेटर ही तो है जिसने मुझे फिल्मों में अपनी अलग पहचान दी.उनका कहना है की  थियेटर के चलते फिल्म में शूट के दौरान गलतियाँ कम होती है. मै अगर सच कहूँ तो मुझे फिल्मों में लाने का श्रेय मेरे रंगकर्म को ही जाता है. मेरा नाटक मांस का रुदन खासा सफल रहा है और इसे मैंने लगभग देश के सभी हिस्सों में प्ले किया है. वह कहते हैं की मै जीवन भर थियेटर करते रहना चाहता हूं.

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उन्होंने भोजपुरी की पूरी तरह से कामेडी फिल्म लागल रहा बतासा में लीड रोल किया था जिसे दर्शकों ने खूब सराहा था और फिल्म हिट रही थी. सरस सलिल अवार्ड ज्यूरी द्वारा उन्हें इसी फिल्म के लिए अवार्ड के लिए चुना गया.

Saras Salil Bhojpuri Cine Award: इस फिल्म के लिए मिला रितु सिंह को ‘बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड’

भोजपुरी सिने जगत की सनसनी और फेयर लवली गर्ल के नाम से चर्चित अभिनेत्री रितु सिंह को सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड के पहले सीजन में बेस्ट ऐक्ट्रेस का अवार्ड मिला. यह अवार्ड ज्यूरी ने उनकी फिल्म स्पेशल इनकाउन्टर  में उनके दमदार अभिनय के लिए दिया गया. इस फिल्म में रितु ने पुलिस अधिकारी की भूमिका में दर्शकों का मन मोह लिया था. रितु ने लगभग सभी बड़े भोजपुरी अभिनेताओं के साथ काम किया है. फिल्मों में उनके नेचुरल अभिनय और खूबसूरती के लोग दीवाने है. इस वजह से रितु सिंह फिल्मकारों के सबसे पसंदीदा हिरोईनों में शुमार हैं.

इस फिल्म का निर्देशन अरुण राज नें किया है जो उनके निर्देशन में पहली फिल्म है. फिल्म के निर्माता गणेश गुप्ता हैं. इस फिल्म में कई भोजपुरी सितारे हैं, फिल्म में रितु सिंह के अलावा, सीमा सिंह, राकेश मिश्रा, नें का भी दमदार अभिनय देखने को मिला था.

Saras Salil Bhojpuri Cine Award: धामा वर्मा बने बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर औफ द ईयर

इस फिल्म में सभी कलाकारों ने दमदार अभिनय किया था. फिल्म में जहाँ मशहूर अभिनेता अनूप अरोड़ा पूरे फिल्म में छाये रहे वहीँ राकेश मिश्र और रितु सिंह की जोड़ी नें भी खूब धमाल मचाया था. फिल्म में आइटम गर्ल सीमा सिंह का आइटम सॉंग भी धूम मचाने में कामयाब रहा.

फिल्म में रितु सिंह जहाँ पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में अपराधियों से पंगा लेती दिखीं वहीँ वह राकेश मिश्रा के साथ रोमांस के सीन में भी दर्शकों को लुभाने में कामयाब रहीं. इस फिल्म में रितु की एक्टिंग के चलते फिल्म सुपरहिट रही थी.

आने वाले महीनों में रितु सिंह की कई फ़िल्में प्रदर्शन के लिए तैयार है. अभी हाल में ही रितु सिंह ने नेपाल से सटे जिले सिद्धार्थनगर में बाप जी की शूटिंग पूरी की है. जिसमें उनके अपोजिट खेसारीलाल हैं वहीँ फिल्म में मनोज सिंह टाइगर, बृजेश त्रिपाठी, सीपी भट्ट, संजय वर्मा का जोरदार अभिनय देखने को मिलेगा.

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अवार्ड के साथ इंस्टाग्राम पर पोस्ट फोटो-

 

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Thanku so much #sarassalilmagazine #sarassalilteam for #bestactressaward thanku #brihaspati jee…🙏

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आम्रपाली दुबे और अक्षरा सिंह पुराना वीडियो फिर वायरल…

वैसे तो भोजपुरी के सभी गानों में कुछ ना कुछ अलग होता है जिसके चलते वो लोगों के दिमाग में बस जाता हैं. भोजपुरी के ऐसे कई गाने है जो हर डिजे और डांस लवर की पहली पसंद हुआ करता हैं. ऐसा ही एक गाना है भौजपुरी फिल्मों की सबसे पौपुलर एकट्रेसेस आम्रपाली दुबे और अक्षरा सिंह का. इस गाने में भोजपुरी फिल्मों की दो बड़ी अभिनेत्रियों के बीच शानदार जुगलबंदी देखने को मिली है. हाल ही में दोनों का एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियों को लोग खासा पसंद कर रहे हैं.

वीडियो ने मचाई धूम

इस वीडियो में ये दोनों एक्ट्रेसेस डांस में एक-दूसरे को टक्कर दे रही हैं. साड़ी पहनकर अक्षरा और आम्रपाली एक ही जैसे डांस स्टेप्स करती दिखाई दे रही हैं. वहीं इन दोनों का ये अंदाज फैंस को बहुत पसंद आ रहा है. ये भोजपुरी गाना अब तक लाखों लोग देख चुके हैं. अक्षरा ने इस वीडियो में ब्लू साड़ी तो वही आम्रपाली ने ग्रीन साड़ी पहनी है जिसमें दोनों बला की खूबसूरत लग रही है.

सहेली के होली’

अक्षरा और आम्रपाली दोनों को भोजपुरी फिल्मों का बेहतरीन सिंगर और डांसर माना जाता  है. वायरल हो रहे इस गाने का टाइटल ‘सहेली के होली’ है. इस गाने पर दोनों एक्ट्रेसेस के बीच डांस का जबरदस्त मुकाबला देखने को मिल रहा है. दोनों ने ही अपने डांस और अदाओं से जमकर धमाल मचाया. यहां तक कि ये तय करना मुश्किल हो रहा है कि कौन बेहतरीन डांसर है. अक्षरा और आम्रपाली दोनों ने इस वीडियों में अपने डांसिंग टैलेंट को साबित किया है.

 

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Aap sabhi logon ko Hanuman Jayanti ki dher saari shubhkamnayein 🙏 #sankatmochan #naamtihaaro #jaihanuman 🙏😍

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💝 #thankful #onelife #positivevibes #spreadthelove💞💫💞

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छोटे पर्दे से की शुरुआत

बेहद ही कम समय में अक्षरा और आम्रपाली सभी की चहेती बन गई है. दोनों से अपने कैरियर की शुरुआत छोटे पर्दे से की थी. आज इन दोनों को भोजपुरी जान कहां जा सकता है क्योंकि जिस भी फिल्में अक्षरा और आम्रपाली फिल्म हिट होना लाजमी हैं.

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