Manohar Kahaniya: धोखाधड़ी की वजह से जेल पहुंची महात्मा गांधी की परपोती

सौजन्य- मनोहर कहानियां

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से निकलने वाले अपने अखबार की जिम्मेदारी अपने एक बेटे मणिलाल को सौंपी थी. बाद में मणिलाल वहीं जा कर बस गए थे. इन्हीं

दक्षिण अफ्रीका के डरबन की एक अदालत में 7 जून को एक अहम सुनवाई होनी थी. ज्यूरी के लोग पूरी तैयारी से अपनीअपनी जगहों पर आ

चुके थे. कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों, कोर्ट के कर्मचारियों और न्यायाधीश के अतिरिक्त मुकदमे के वादी, प्रतिवादी पक्षों के दरजनों लोग मौजूद थे. पूरी दुनिया में कोविड-19 की महामारी, वैक्सीनेशन, औक्सीजन और भारत में कहर बन कर टूटी कोरोना वायरस संक्रमण की हो रही चर्चा के बीच मीडिया में इस सुनवाई को ले कर भी जिज्ञासा बनी हुई थी. गहमागहमी का माहौल था.

अंतिम फैसले पर सब की नजरें टिकी थीं. इस की वजह यह थी कि मामले की जो आरोपी महिला थी, उस का संबंध महात्मा गांधी के परिवार और दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़े नाम के साथ जुड़ा था. पूरा मामला हाईप्रोफाइल होने के साथसाथ 6 साल पुराना कारोबारी धोखाधड़ी का था.

यह आरोप एस.आर. महाराज नाम के एक बिजनैसमैन की शिकायत पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के द्वारा लगाया गया था.

करीब 6 साल से जमानत पर चल रही 56 वर्षीया आरोपी महिला कठघरे में हाजिर हो चुकी थीं. अदालत की काररवाई शुरू होते ही अभियोजन पक्ष की तरफ से आरोपी के परिचय के साथसाथ न्यायाधीश के सामने उस पर लगे फरजीवाड़े के तमाम आरोप प्रस्तुत कर दिए गए थे.

प्रोसिक्यूटर द्वारा कहा गया कि धोखाधड़ी की आरोपी आशीष लता रामगोबिन ने अपनी पूर्व सांसद मां इला गांधी की इमेज और अपने परदादा महात्मा गांधी की वैश्विक कीर्ति का सहारा ले कर इस काम को अंजाम दिया था. इला गांधी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पोती हैं.

वह दक्षिण अफ्रीका में 9 साल तक सांसद रह चुकी हैं और भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी नवाजी जा चुकी हैं. वह राजनीतिक रसूख वाली जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.

अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के जवाब में आरोपी आशीष लता की तरफ से वैसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका, जिन से अगस्त 2015 में उद्योगपति एस.आर. महाराज के साथ धोखाधड़ी का लगा आरोप गलत साबित हो सकता था.

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नतीजा कुछ समय में ही दक्षिण अफ्रीकी कानून के मुताबिक आशीष लता को अफ्रीकी मुद्रा में 62 लाख रैंड ( करीब 3 करोड़ 22 लाख रुपए) की धोखाधड़ी, जालसाजी का दोषी ठहराते हुए 7 साल जेल की सजा सुना दी गई.

महाराज ने उन्हें कथित तौर पर भारत से ऐसी खेप के आयात और सीमा शुल्क कर के समाशोधन के लिए 62 लाख रैंड दिए थे, जिस का कोई अस्तित्व ही नहीं था. इस में आशीष लता की तरफ से लाभ का एक हिस्सा देने का वादा भी किया गया था.

समाजसेविका के रूप में पहचान थी आशीष लता की

वर्ष 2015 में जब इस संबंध में उन के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई थी, तब एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा था कि उन्होंने संभावित निवेशक को यकीन दिलाने के लिए कथित रूप से फरजी चालान और दस्तावेज दिए थे. उस में भारत से लिनेन के 3 कंटेनर आने की जानकारी दी गई थी.

आशीष लता इंटरनैशनल सेंटर फौर नौन वायलेंस नामक एक गैरसरकारी संगठन के एक प्रोग्राम की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक रह चुकी थीं.

हालांकि उन के खिलाफ लगे आरोपों में फरजीवाड़े की रकम भारतीय बैंकों को करीब 23 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी की तुलना में बहुत ही कम है. फिर भी हर भारतीय को आशीष लता का कारनामा क्षुब्ध कर गया है. कारण वह उस बापू की परपोती हैं, जिन्होंने जीवन भर सत्य को अपनाया, सत्य का प्रयोग किया, सत्य की रक्षा के लिए संघर्ष किया और सत्य के लिए जिया.

आज जब भी किसी को अपनी सत्यता का हवाला देना होता है तो वह बापू के अपनाए गए तरीके से प्रदर्शन करता है. लोग अंतर्द्वंद्व और आत्मग्लानि के मौकों पर बापू की प्रतिमा के आगे मौन धारण कर आत्मशुद्धि के लिए बैठ जाते हैं.

इस अनुसार यह कहा जा सकता है कि आशीष लता ने न केवल इस सत्यनिष्ठा को आंच पहुंचाई, बल्कि बापू की वैश्विक कीर्ति पर ही कालिख पोतने का काम किया. यह बात हैरानी के साथसाथ अफसोस करने जैसी है.

बात करीब 6 साल पहले उस समय की है, जब एक दिन उद्योगपति एस.आर. महाराज अपनी लग्जरी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे औफिस जा रहे थे. उसी दौरान लैपटौप में अपने बैंक के बैलेंसशीट पर एक नजर डालने के बाद वह मेल चैक करने लगे थे. पहले उन्होंने अपने एग्जीक्यूटिव्स के रोजमर्रा के मेल चैक किए. उन्हें जरूरी जवाब दिए, फिर वैसे मेल चैक करने लगे, जो पहली बार आए थे.

एक मेल को देख कर चौंकते हुए उन की नजर ठहर गई. कारण वह सामान्य हो कर भी खास मेल था. उस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट थी, जिस से थोड़े समय में ही अच्छी आमदनी का वादा किया गया था.

हालांकि उन के पास आए दिन इस तरह के मेल आते रहते थे, जिसे वे खुद विस्तार से पढ़ने के बजाय उस की डिटेल से जानकारी के लिए अपने सेक्रेटरी को फारवर्ड कर दिया करते थे.

महाराज की बढ़ी रुचि

लेकिन उस मेल में महाराज को जिज्ञासा भेजने वाले को ले कर भी हुई थी. उन्होंने तुरंत जवाब टाइप कर दिया, ‘‘आई नोटिस्ड योर रिक्वेस्ट, विल रिप्लाई सून!’’ यह बात साल 2015 के मई महीने की थी.

थोड़ी देर में महाराज दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अपनी कंपनी के औफिस ‘न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवेयर डिस्ट्रीब्यूटर्स’ के चैंबर में पहुंच गए. वह इस कंपनी के निदेशक हैं. कंपनी जूतेचप्पल, कपड़े और लिनेन के आयात, बिक्री एवं निर्माण का काम करती है. कंपनी का एक और काम प्रौफिट और मार्जिन के तहत दूसरी कंपनियों की आर्थिक मदद भी करना है.

एस.आर. महाराज ने अपने सेक्रेटरी को बुला कर कहा, ‘‘मिस्टर सुथार, आज ही मुझे उस मेल की तुरंत डिटेल्स दो, जिस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट की गई है.’’

‘‘कौन सा मेल… जिसे समाजसेवी महिला आशीष लता रामगोबिन ने भेजा है?’’

‘‘हांहां वही. वह कोई आम महिला नहीं हैं. उन्होंने अपने परिचय में जो लिखा है, शायद तुम ने उस पर गौर नहीं किया.’’ उन्होंने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ ज्यादा नहीं समझ पाया.’’ सेक्रेटरी बोला.

‘‘उस ने जिस के लिए काम की बात कही है वह एक विश्वसनीय परिवार से ताल्लुक रखता है. वह भरोसे के लायक है. उस परिवार ने भारत में सामाजिक उत्थान के लिए कई बेमिसाल काम किए हैं. उन के साथ भारत के राष्ट्रपिता का दरजा हासिल कर चुके महात्मा गांधी का नाम जुड़ा है. उन के साथ जल्द ही मीटिंग की डेट फिक्स कर दो.’’

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ऐसे हुआ आशीष लता पर विश्वास

उद्योगपति महाराज का यह मजबूत आत्मविश्वास बनने की वजहें भी कम नहीं थीं. उस बारे में वे कई बातें पहले से जानते थे और कुछ जानकारी बाद में मालूम कर ली थीं. फाइनैंस की रिक्वेस्ट महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने भेजी थी.

उन्होंने अपने परिचय में दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में सक्रिय महिला इला गांधी की बेटी लिखा था, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ काम किया था. तत्कालीन सरकार से सीधी टक्कर ली थी.

उन्होंने निर्वासन की यातना झेली थी. उस के खात्मे के बाद सन 1994 से 2003 तक अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस की सदस्य के रूप में सांसद रह कर लोकहित में कई कार्य किए थे. उन के पति का नाम स्व. मेवा रामगोबिन है. वह महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के 4 बेटों हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास में दूसरे बेटे मणिलाल मोहनदास गांधी की बेटी हैं.

मणिलाल पहली बार 1897 में दक्षिण अफ्रीका गए थे. महात्मा गांधी ने 1904 में डरबन के पास ‘द फीनिक्स सेटलमेंट’ नामक एक जगह की स्थापना की थी. वहीं उन्होंने एक ग्रामसंस्था भी स्थापित की थी और सत्याग्रह के साथ अपने अनूठे क्रांतिकारी प्रयोग किए थे. इस दौरान मणिलाल 1906 से 1914 के बीच क्वाजुलु नटाल और ग्वाटेंग में रहे. फिर वापस भारत आ गए.

जबकि महात्मा गांधी ने डरबन से अपना साप्ताहिक अखबार अंगरेजी और गुजराती में ‘इंडियन ओपिनियन’ भी छापना शुरू कर दिया था. इस की शुरुआत 1903 में ही हुई थी.

बाद में महात्मा गांधी ने उस अखबार के विशेष रूप से गुजराती खंड प्रकाशन में सहायता के लिए मणिलाल को दक्षिण अफ्रीका भेज दिया था. वहां मणिलाल सन 1920 में उस के संपादक बन गए और लंबे समय तक इस की जिम्मेदारी संभाली.

उन्होंने सन 1927 में सुशीला मशरूवाला से शादी की थी, जो बाद में उन की प्रिंटिंग प्रैस की पार्टनर बन गईं. उन से 3 संतानें सीता, अरुण और इला हुए. ये सभी दक्षिण अफ्रीका के ही नागरिक बन गए. आशीष लता की मां इला का नाम दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में बड़ा नाम है. उन का जन्म वहां के क्वाजुलु नटाल में सन 1940 में हुआ था. उन्होंने हर तरह की हिंसा के खिलाफ संघर्ष किया.

इस के लिए उन्होंने गांधी डेवलपमेंट ट्रस्ट बनाया, जो अहिंसा के लिए काम करता है. साथ ही महात्मा गांधी के नाम एक मार्च कमेटी भी बनाई गई है.

विभिन्न सामाजिक कार्यों को देखते हुए सन 2002 में वह ‘कम्युनिटी आफ क्राइस्ट इंटरनैशनल पीस अवार्ड’ से सम्मानित की जा चुकी हैं. भारत सरकार ने भी वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. दक्षिण अफ्रीका में रह रहे महात्मा गांधी परिवार के कई सदस्यों में कीर्ति मेनन, स्वर्गीय सतीश धुपेलिया, उमा धुपेलिया मेस्त्री, इला गांधी और आशीष लता रामगोबिन शामिल हैं.

3 दिसंबर, 1965 को जन्म लेने वाली आशीष लता रामगोबिन का रहनसहन हिंदू रीतिरिवाज पर आधारित है एवं प्रोफेशनल पहचान सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमिता के रूप में है. वैसे उन की नागरिकता दक्षिण अफ्रीका की है.

उन के 4 छोटे भाईबहनों में आशा और आरती बहनें हैं, जबकि किदार और खुश भाई हैं. उन की फेसबुक अकाउंट के अनुसार उन्होंने सन 1988 में उरबन के ग्लेनहैवेन सकेंडरी स्कूल से सेकेंडरी तक पढ़ाई पूरी कर क्वाजुलु नटाल यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया है.

फिर दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रैशन से पोस्ट ग्रैजुएट तक की पढ़ाई की. बाद में प्रोफ्रेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग इंडस्ट्री के गुर सीखे. स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सरकारी प्रोजेक्ट, गवर्नेंस की बारीक जानकारियां, पं्रोजेक्ट एवं प्रोग्राम का मूल्यांकन, प्रोजेक्ट ड्राफ्ंिटग और एंटरप्रेन्योरशिप में महारत हासिल कर ली.

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आशीष लता की शादी एक कारोबारी मार्क चूनू से हुई थी. उन से तलाक हो चुका है, लेकिन अपनी 2 संतानों बेटा और बेटी के साथ रहती हैं. वे अभी किशोर उम्र के हैं. उन का करियर स्वयंसेवी संस्था इंटरनैशनल सेंटर नान वायलेंस से जुड़ा है, जिस की वह संस्थापक और ओनर हैं.

वह उस की कार्यकारी निदेशक भी हैं. उन की पहचान राजनीतिज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता की भी है. न्यूजएंडजिप वेब पोर्टल के अनुसार, उन्होंने 29 जनवरी, 2000 को महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए एक नान वायलेंस संस्था स्थापित की थी. साथ ही उन्होंने 2016 से 5 साल तक यूनाइटेड ट्रेड सोल्यूशन के मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाई. इस तरह उन्होंने स्वयंसेवी संस्था के लिए डोनेशन जुटाने का काम करने के साथसाथ बिजनैस करते हुए अच्छी पूंजी अर्जित कर ली है.

लग गई धोखाधड़ी की कालिख

आशीष लता के बारे में कई वैसी बातें भी हैं, जो उन्हें खास बनाने के लिए काफी हैं. जैसे उन्होंने अपने परदादा महात्मा गांधी और मां इला गांधी के कदमों पर चलने की निर्णय लिया है. उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से घरेलू हिंसा की शिकार औरतों और बच्चों की मदद की है. वह दक्षिण अफ्रीका के समारोहों में अपने परिवार के साथ शामिल होती रही हैं.

आशीष लता रामगोबिन की उद्योगपति एस.आर. महाराज से मुलाकात सन 2015 में ही हो गई थी. दोनों की पहली मीटिंग के दौरान महाराज ने फाइनैंस की जरूरत के बारे में पूछा, ‘‘आप को पैसा क्यों चाहिए?’’

‘‘दरसअल, हम ने भारत से लिनेन के 3 कंटेनर मंगवाए हैं, जो बंदरगाह पर पड़े हैं. आयात लागत और सीमा शुल्क पेमेंट करने में दिक्कत आ गई है. माल को साउथ अफ्रीकन हौस्पिटल ग्रुप नेट केयर को डिलीवर करना है.’’ लता ने सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया.

‘‘पैसे की वापसी का भरोसा क्या है?’’ महाराज के फाइनैंस एडवाइजर ने पूछा.

‘‘ये रहे नेट केयर कंपनी और हमारे साथ एग्रीमेंट बनाने के डाक्युमेंट्स. इस में सारी बातें लिखी हैं.’’ आशीष लता ने कहा.

‘‘कितना फाइनैंस करना होगा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘6.2 मिलियन रैंड की जरूरत है. उस की डिटेल्स की मूल कौपी दे रही हूं. आयात किए गए माल के खरीद की रसीद यह रही.’’ लता ने आश्वासन दिया.

‘‘इस में मेरा प्रौफिट क्या होगा?’’ महाराज ने पूछा.

‘‘उस बारे में भी फाइनैंस की रिक्वेस्ट डिटेल्स के साथ दी गई है.’’ लता ने साथ लाए डाक्युमेंट्स के पन्ने पलट कर दिखाए. उन के द्वारा सौंपे गए डाक्युमेंट्स पर महाराज ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई और अपने फाइनैंस एडवाइजर को सौंपते हुए उस का बारीकी से अध्ययन करने का निर्देश दिया.

‘‘थोड़ा वक्त दीजिए. वैसे मुझे आप पर और आप की पहचान के साथसाथ पारिवारिक इमेज पर पूरा भरोसा है. डाक्युमेंट्स की जांचपरख तो महज औपचारिकता भर है. जल्द ही फाइनैंस संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी करवा दूंगा.’’ एस.आर. महाराज बोले.

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद, जितना जल्द हो सके फाइनैंस करवा दें तो अच्छा रहेगा.’’ लता ने आभार जताते हुए आग्रह किया.

‘‘…लेकिन हां, मेरे प्रौफिट की हिस्सेदारी में देरी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में हमारी कंपनी काफी सख्त है.’’ महाराज ने साफसाफ कहा.

इसी बीच कंपनी के फाइनैंस एडवाइजर ने आशंका जताई, ‘‘सर, इस में कुछ डाक्युमेंट्स कम हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बता दो. जितनी जल्द हो सके, लताजी उसे जमा करवा देंगी. बैंक अकाउंट स्टेटमेंट और रिटर्न की डिटेल्स भी मंगवा लेना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, बाकी के सारे डाक्युमेंट्स एक हफ्ते में आप को मिल जाएंगे.’’ लता ने कहते हुए एक बार फिर महाराज को धन्यवाद दिया.

इस तरह दोनों की पहली मीटिंग संभावनाओं से भरी रही. बहुत जल्द ही एक महीने के भीतर ही 3 मीटिंग्स और हुईं और आशीष लता को जरूरत के मुताबिक फाइनैंस मिल गया. उस के बाद मुनाफे के साथ रकम वापसी की एक महीने बाद की एक डेडलाइन तय हो गई.

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कहते हैं कि बिजनैसमैन एस.आर. महाराज की कंपनी ने जिस तरह से फाइनैंस करने में जितनी तत्परता दिखाई, उतनी ही सुस्ती आशीष लता की तरफ से बरती गई.

समय पर नहीं लौटाई रकम

महाराज की कंपनी को समय पर भुगतान नहीं मिलने पर उन्होंने कंपनी के नियम और शर्तों के मुताबिक आशीष लता को नोटिस भेज दिया. नोटिस का सही जवाब नहीं मिलने पर कंपनी ने लता द्वारा जमा करवाए गए डाक्यूमेंट्स की जांच करवाई.

जांच में लता द्वारा किए गए कई दावे गलत साबित हुए. जिस में माल की खरीद के हस्ताक्षरित खरीद का आदेश और नेटकेयर बैंक खाते में भुगतान से संबंधित था. कंपनी ने पाया कि उन के द्वारा जमा किए गए डाक्युमेंट्स जाली थे और उन के साथ नेटकेयर ने कभी कोई व्यवस्था ही नहीं की थी. यहां तक कि लिनेन के कंटेनर बंदरगाह पर पहुंचे ही नहीं थे.

इस फरजीवाड़े का पता चलते ही कंपनी के डायरेक्टर एस.आर. महाराज ने आशीष लता के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. 2015 में लता के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई.

सुनवाई के दौरान एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा कि लता ने इनवैस्टर को यकीन दिलाने के लिए फरजी दस्तावेज और चालान दिखाए थे. भारत से लिनेन का कोई कंटेनर दक्षिण अफ्रीका आया ही नहीं था.

हालांकि सुनवाई के दौरान लता ने सबूत पेश करने के लिए समय मांगा और जमानत की अरजी दाखिल की. लता की पारिवारिक इमेज को ध्यान में रखते हुए अक्तूबर 2015 में 50 हजार रैंड (करीब 2.68 लाख रुपए) की जमानत राशि पर पर उन्हें छोड़ दिया गया.

जमानत पर रिहा हुई आशीष लता ने कुल 6 साल तक राहत की सांस ली, किंतु उन के कारनामे दिनप्रतिदिन और मजबूत होते चले गए और 7 जून, 2021 को डरबन की अदालत ने आशीष लता रामगोबिन को धोखाधड़ी और जालसाजी का दोष सिद्ध करते हुए 7 साल की सजा सुनाई. कथा लिखे जाने तक वह दक्षिण अफ्रीका की जेल में थीं.

मौत के मुंह में पहुंचे लोग- भाग 2: सूरत में हुआ बड़ा भंडाफोड़

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अब गुजरात की कहानी पढि़ए. देश भर में साडि़यों के लिए मशहूर शहर सूरत में ग्लूकोज, नमक और पानी से लाखों की तादाद में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बना कर देश भर में महंगे दामों पर बेचे गए. मई की पहली तारीख को अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सूरत के ओलपाड़ इलाके में एक फार्महाउस पर छापा मार कर नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया था.

इस फैक्ट्री से 60 हजार नकली इंजेक्शन की शीशियां, 30 हजार स्टिकर और शीशी सील करने वाली मशीन बरामद कर 7 लोगों कौशल वोरा और पुनीत शाह तथा इन के साथियों को गिरफ्तार किया था.

इस गिरोह का नेटवर्क पूरे देश में था. गिरोह के लोग कोरोना काल में जरूरतमंदों को ये नकली इंजेक्शन ढाई हजार रुपए से ले कर 20 हजार रुपए तक में बेचते थे.

इस से पहले गुजरात की मोरबी पुलिस ने मोरबी कृष्णा चैंबर में ओम एंटिक जोन नामक औफिस में छापा मार कर 2 लोगों राहुल कोटेचा और रविराज लुवाणा को गिरफ्तार किया था. इन से 41 नकली इंजेक्शन और 2 लाख रुपए से ज्यादा नकद रकम बरामद हुई. इन्होंने बताया कि ये नकली इंजेक्शन अहमदाबाद के रहने वाले आसिफ से लाए थे. इस के बाद अहमदाबाद के जुहापुरा से मोहम्मद आसिफ और रमीज कादरी को पकड़ा गया.

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इन से 1170 नकली इंजेक्शन और 17 लाख रुपए से ज्यादा नकदी बरामद हुई. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि वे सूरत के रहने वाले कौशल वोरा से ये इंजेक्शन लाए थे. इसी सूचना के आधार पर सूरत के ओलपाड़ में फार्महाउस पर छापा मारा गया, जहां नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री चल रही थी.

नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री का मास्टरमाइंड कौशल वोरा था. पुनीत वोरा उस का पार्टनर था. कौशल से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने अडाजण के उस के एजेंट जयदेव सिंह झाला को गिरफ्तार किया. झाला के पास से भी नकली इंजेक्शन बरामद हुए. गोल्ड लोन का काम करने वाला झाला करीब साल भर पहले कौशल के संपर्क में आया था. बाद में दोनों में दोस्ती हो गई.

सूरत का डाक्टर ही निकला जालसाज

सूरत पुलिस ने 3 मई, 2021 को भेस्तान के साईंदीप अस्पताल के एडमिन डा. सैयद अर्सलन, विशाल उगले और सुभाष यादव को गिरफ्तार किया. ये लोग 18 से 20 हजार रुपए में एक रेमडेसिविर इंजेक्शन बेच रहे थे जबकि इंजेक्शन की प्रिंटेड कीमत केवल 1250 रुपए थी.

डा. सैयद कोरोना मरीज की जान बचाने के लिए जरूरी होने की बात कह कर रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदने को मजबूर करता था. इंजेक्शन मंगवा कर भी वह चालाकी करता और मरीज को आधी डोज ही लगाता. यानी एक इंजेक्शन 2 मरीजों को लगाता था. किसीकिसी मरीज को तो वह इंजेक्शन लगाने का दिखावा ही करता था.

डा. सैयद अपने अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके मरीजों के नाम पर सिविल अस्पताल से ये इंजेक्शन मंगवाता था और बाद में विशाल तथा सुभाष की मदद से इन की कालाबाजारी करता था.

कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिए जरूरी टौसिलिजुमैब इंजेक्शन के नाम पर भी लोगों ने खूब पैसे कमाए. सूरत पुलिस ने मई के दूसरे सप्ताह में इस इंजेक्शन की कालाबाजारी करने के आरोप में अठवागेट के ट्राईस्टार अस्पताल में काम करने वाली नर्स हेतल रसिक कथीरिया, उस के पिता रसिक कथीरिया और डाटा एंट्री औपरेटर बृजेश मेहता को गिरफ्तार किया. ये लोग 40 हजार रुपए का इंजेक्शन करीब पौने 3 लाख रुपए में बेचते थे.

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इसी तरह अहमदाबाद पुलिस ने अप्रैल महीने के आखिर में एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो रेमडेसिविर के नाम पर सौ रुपए की कीमत का ट्रेटासाइकल इंजेक्शन नकली स्टिकर लगा कर बेचता था. पुलिस ने इस गिरोह के 7 लोगों हितेश, दिशांत विवेक, नितेश जोशी, शक्ति सिंह, सनप्रीत और राज वोरा को गिरफ्तार किया. ये लोग अहमदाबाद के एक फाइवस्टार होटल हयात में बैठ कर ठगी का यह धंधा कर रहे थे.

इन के पास से ट्रेटासाइकल इंजेक्शन के डब्बे और रायपुर की एक कंपनी के नाम से रेमडेसिविर इंजेक्शन के नकली स्टिकर बरामद हुए. इस गिरोह ने अपने परिचितों और दोस्तों के संपर्क से गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, जामनगर और वापी जैसे बड़े शहरों में हजारों की तादाद में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन 4 से 10 हजार रुपए में बेचे थे.

जयपुर का अस्पताल निकला 2 कदम आगे

अब जयपुर की कहानी. राजस्थान की राजधानी जयपुर में पुलिस ने अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में 6 लोगों को गिरफ्तार किया. इन से पूछताछ के बाद एक निजी अस्पताल के फार्मासिस्ट और एक दवा डिस्ट्रीब्यूटर सहित तीन लोगों को और पकड़ा गया. पता चला कि इन में फार्मासिस्ट शाहरुख कोरोना पौजिटिव होने के बावजूद अस्पताल में काम कर रहा था. जयपुर के 2 निजी अस्पतालों पर भी पुलिस ने काररवाई की.

राजस्थान के सब से बड़े सरकारी कोविड अस्पताल आरयूएचएस जयपुर में हाउसफुल का बोर्ड लगा कर पीछे के रास्ते से मरीजों को बैड बेचे जाने का खुलासा मई की 8 तारीख को हुआ. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस काले सच को उजागर कर 23 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए दलाल नर्सिंग कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया.

नर्सिंग कर्मचारी ने 2 डाक्टरों के जरिए आईसीयू बैड दिलाने के लिए एक महिला मरीज से 2 लाख रुपए मांगे थे. सौदा एक लाख 30 हजार रुपए में तय कर 93 हजार रुपए पहले लिए जा चुके थे. इस बीच, महिला मरीज की मौत हो गई. इस के बाद भी नर्सिंग कर्मचारी यह कह कर पैसे मांग रहा था कि पैसा ऊपर तक जाएगा.

मई के पहले पखवाड़े में ही जयपुर में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में, निजी अस्पतालों के 3 नर्सिंग कर्मचारियों को गिरफ्तार किया. प्रशासन ने इस अस्पताल को सील कर दिया.

जयपुर पुलिस ने 11 मार्च को कोरोना मरीजों से धोखाधड़ी करने वाले शातिर लपका लालचंद जैन उर्फ कान्हा को गिरफ्तार किया. वह महंगे होटलों में रुकता ओर मरीजों के परिजनों को बड़े अस्पताल में भरती करवाने, औक्सीजन बैड दिलवाने और अच्छा इलाज करवाने के नाम पर हजारों रुपए ठगता था. वह इतना शातिर था कि मरीजों के परिजनों से ही गाड़ी मंगवा कर उस में घूमता और उन्हीं के पैसों से महंगी शराब मंगा कर पीता था.

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एक मोटे अनुमान के अनुसार, पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों से धोखाधड़ी के मामलों में अप्रैल और मई के महीने में 5 हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए. सांसों के इन सौदागरों में कोई नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बना कर बेच रहा था तो कोई इन की कालाबाजारी कर रहा था. कोई औक्सीजन सिलेंडर सहित जीवन रक्षक मैडिकल उपकरणों की कालाबाजारी कर रहा था. एंबुलेंस वाले मरीज को लाने ले जाने के अलावा शव ले जाने के नाम पर बीस गुना तक ज्यादा पैसा वसूल रहे थे.

दिल्ली पुलिस ने मई के पहले पखवाड़े तक ऐसे जालसाजों के 214 बैंक अकाउंट सीज करा दिए थे.

इस के अलावा करीब 900 मोबाइल नंबरों को ब्लौक करवाया गया था. जालसाजों ने मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करने के साथ कम गुणवत्ता वाली पीपीई किट, सैनेटाइजर, मास्क और ग्लव्स भी बना कर बाजार में खपा दिए.

पत्नी के हाथ, पति की हत्या

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक सनसनीखेज घटनाक्रम में पुलिस ने 6 माह बाद एक महिला को अपने ही पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करके जेल के सीखचों में डाल दिया. ऐसी अनेक घटनाएं अक्सर हमारे आसपास घटित होती है, जिन्हें हम देख कर भी अनदेखा कर देते हैं.उसके पीछे के सत्य को कभी समझने का प्रयास नहीं करते. आज इस रिपोर्ट में हम ऐसे कुछ घटनाक्रमों पर विशेष दृष्टिपात करते हुए आपको बताने का प्रयास करेंगे, जिससे यह संदेश देश दुनिया में पहुंच आखिरकार इसे किस तरह रोका  जा सकता है.

प्रथम प्रकरण-

छत्तीसगढ़ के जिला चांपा जांजगीर के ग्राम सिवनी में एक शख्स की मृत्यु हो गई. बाद में खुलासा हुआ कि मृत्यु के पीछे शख्स की पत्नी का हाथ है, उसने जहर दिया था.

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दूसरा प्रकरण-

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार में एक व्यक्ति की लाश कुएं में मिली. जांच में यह तथ्य सामने आया कि उसकी पत्नी ने ही अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को मौत के घाट उतार दिया.

तीसरा प्रकरण-

सरगुजा संभाग के सूरजपुर में एक 20 वर्ष की महिला ने अपने बुजुर्ग पति की हत्या अपने प्रेमी के साथ मिल करवा दी. क्योंकि उसे प्रेमी मिल जाता और साथ ही पति की नौकरी भी.

यह कहा जा सकता है कि ऐसे अनेक मामले हमारे आसपास आए दिन घटित होते रहते हैं जिसकी तह मे सीधा सीधा किसी महिला का हाथ होता है. मगर समाज में यह माना जाता है कि  पुरुष क्रूर होते हैं और महिला  पर अत्याचार करते हैं. मगर यह भी सच है कि ऐसा बेहद बेहद कम होता है .मगर यह एक सिक्के के दोनों पहलू कहे जा सकते हैं.

मामला एक सिपाही कमल  का

पत्नी द्वारा पति को मौत के घाट उतारने की यह घटना छत्तीसगढ़ के रायपुर के खमतराई थाना क्षेत्र की है. पुलिस का सिपाही, कमल बघेल अपनी पत्नी कीर्ति बंजारे और 2 बच्चों के साथ उरकुरा में रहता था. पता चला अचानक जनवरी महीने में छत से गिर गया था, तत्पश्चात उपचार के दौरान उसकी निजी अस्पताल में मौत हो गई . खमतराई थाना प्रभारी रमाकांत साहू ने हमारे संवाददाता को जो जानकारी दी उसके मुताबिक, सिपाही के पिता ने उसकी पत्नी पर हत्या का आरोप लगाया था, उच्च अधिकारियों को शिकायत के बाद इस मामले में गंभीरता से विवेचना की गई. मामले में नया खुलासा तब हुआ जब मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दम घुटने से मौत बताया गया.

इस मामले के जांच अधिकारी ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के पश्चात संबंधित चिकित्सक से क्यूरी कराने के साथ विधिक सलाह ली गई . परिस्थिति के अनुसार और पीएम रिपोर्ट के आधार पर सब कुछ धीरे-धीरे सामने आता चला गया और अंततःहत्या का अपराध दर्ज किया गया.

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वाद विवाद बना कारण

मृतक छत्तीसगढ़ की पुलिस में सिपाही था और उसका  पत्नी के साथ अक्सर वाद-विवाद होते रहता था, स्थिति इतनी विषम थी कि पत्नी की शिकायत पर पूर्व में मृतक के खिलाफ  अपराध दर्ज किया गया था. सिपाही की मौत पर हुई जांच में पत्नी द्वारा छत से धकेलना पाया गया, जिसके बाद मृतक की पत्नी कीर्ति बंजारे को गिरफ्तार कर रिमांड पर भेजा गया . इस हत्याकांड में महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि सिपाही कमल ने प्रेम विवाह किया था मगर आगे चलकर दोनों की पटी नहीं.

दरअसल,छोटी-छोटी बातों में  बात अक्सर इतनी बढ़ जाती है कि पति-पत्नी में से कोई एक अपराध का रास्ता चुन लेता है और घटना के पश्चात सारा परिवार सफर करता है.

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