मेरा बेस्ट फ्रेंड बदल गया है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 19 साल का यंग बौय हूं. स्कूल टाइम से मेरा एक फ्रैंड रहा है. कालेज की पढ़ाई के लिए हमें अलगअलग कालेज में एडमिशन लेना पड़ा. मैं अभी भी उसे अपना बैस्ट फ्रैंड मानता हूं. अपनी हर बात उस से शेयर करता हूं. लेकिन कुछ महीनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि हमारी वन साइडेड फ्रैंडशिप चल रही है. उस के मन में मेरे लिए वह पहली वाली दोस्ती की फीलिंग्स नहीं रही हैं. कुछ समझ नहीं पा रहा. कुछ राय दें.

जवाब

आप को अपने दोस्त के व्यवहार में फर्क नजर आ रहा है तो हो सकता है, आप सही सोच रहे हैं क्योंकि उस का आप से दूर हो कर दूसरे कालेज में जाना, नए फ्रैंड्स बनना, आचारविचार में परिवर्तन आना आदि ऐसे कई कारण हो सकते हैं जिन से अब वह आप को इतनी इंपोर्टैंस न दे रहा हो. इस बात पर गौर करें कि आप के दोस्त को इस बात की कितनी परवा है कि आप को किस बात का बुरा लग सकता है. दोस्त से बात करते हुए जांचिए कि वह आप की बातों को अनदेखा करता है, आप को तवज्जुह नहीं देता या बातबात पर आप के इमोशंस का मजाक बनाता है तो आप को सम झ जाना चाहिए कि उस की लाइफ में आप की वैल्यू कम हो रही है. ऐसी फ्रैंडशिप का कोई फायदा नहीं. आप हमारी सब बातों पर गौर करें और सही फैसला लें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दोस्त कौन अच्छे कौन सच्चे

सही कहा है अच्छा दोस्त वह नहीं होता जो मुसीबत के समय उपदेश देने लगे वरन अच्छा दोस्त वह होता है, जो अपने दोस्त के दर्द को खुद महसूस करे और बड़े हलके तरीके से दोस्त के गम को कम करने का प्रयास करे. यह एहसास दिलाए जैसे यह गम तो कुछ है ही नहीं. लोग तो इस से ज्यादा गम हंसतेहंसते सह लेते हैं.

वैसे भी सही रास्ता दिखाने के लिए किताबें हैं, उपदेश देने के लिए घर के बड़े लोग हैं और उलाहने दे कर दर्द बढ़ाने के लिए नातेरिश्तेदार हैं. ये सब आप को आप की गलतियां बताएंगे, उपदेश देंगे पर जो दोस्त होता है वह गलतियां नहीं बताता, बल्कि जो गलती हुई है उसे कुछ समय को भुला कर दिमाग शांत करने का रास्ता बताता है. आप के सारे तनाव को बड़ी सहजता से दूर करता है.

तभी तो कहा जाता है कि पुराना दोस्त वह नहीं होता जिस से आप तमीज से बात करते हैं वरन पुराना दोस्त तो वह होता है, जिस के साथ आप बदतमीज हो सकें. दोस्ती का यही उसूल होता है कि अपने दोस्त के गमों को आधा कर दे और खुशियों को दोगुना. केवल पुराने दोस्त ही ऐसे होते हैं, जो हमें और हमारे एहसासों को गहराई से सम झने और महसूस करने में सक्षम होते हैं.

सच है कि दोस्ती का रिश्ता बहुत ही प्यारा और खूबसूरत होता है. सच्चे दोस्त आप को भीड़ में अकेला नहीं छोड़ते, बल्कि आप की दुनिया बन जाते हैं. वे हमेशा आप के साथ होते हैं भले ही परिस्थितियां आप को दूर कर दें. वे आप से जुड़े रहने का कोई न कोई तरीका खोज निकालते हैं. वे आप का हौसला बनते हैं. एक समय आ सकता है जब आप के घर वाले आप को छोड़ दें, एक समय वह भी आ सकता है जब आप का बौयफ्रैंड/गर्लफ्रैंड या आप का जीवनसाथी भी आप की सोच को गलत ठहराने लगे, आप से दूरी बढ़ा ले? पर आप के सच्चे दोस्त ऐसा कभी नहीं करते. अगर दोस्तों को आप अपने मन की उल झन बताते हैं तो वे उन्हें सम झते हैं क्योंकि वे आप को गहराई से सम झते हैं, वे आप के अंदर  झांक सकते हैं.

किसी ने कितने पते की बात कही है: बैठ के जिन के साथ हम अपना दर्द भूल जाते हैं, ऐसे दोस्त सिर्फ खुश नसीबों को ही मिल पाते हैं…

आज वयस्कों को दोस्तों की और ज्यादा जरूरत है, क्योंकि रिश्तेदार तो कई शहरों में बिखरे रहते हैं. मौके पर वे कभी चाह कर भी काम नहीं आ पाते तो कभी मदद करने की उन की मंशा ही नहीं होती. वे बहाने बनाने में देर नहीं लगाते. मगर सच्चे दोस्त किसी भी तरह आप की मदद करने पहुंच ही जाते हैं. इसीलिए तो कहा जाता है कि दोस्ती का धन अमूल्य होता है. यही नहीं बातचीत करने और दिल का हाल बता कर मन हलका करने के लिए भी एक साथी यानी दोस्त की जरूरत सब को होती है.

क्यों जरूरी हैं दोस्त

दोस्त कुछ नया सीखने का अवसर देते हैं. नई भाषा, नई सोच, नई कला और नई सम झ ले कर आते हैं. हमें कुछ नया करने और सीखने का मौका और हौसला देते हैं. हमारे डर को भगाते हैं और सोच का दायरा बढ़ाते हैं. मान लीजिए आप का दोस्त एक कलाकार या लेखक है तो उस के साथसाथ आप भी अपनी कला निखारने का प्रयास कर सकते हैं. कुछ आप उसे सिखाएंगे तो कुछ उस से सीखेंगे भी. दोस्त आप को कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं, सही सलाह देते हैं, आप की भावनाओं को सम झते हैं, अवसाद से बचाते हैं. दोस्तों के साथ आप घरपरिवार के साथसाथ कार्यालय की समस्याओं पर भी चर्चा कर सकते हैं.

दोस्त कहां और कैसे खोजें

आप उन स्थानों पर दोस्तों की तलाश करें जहां आप की रुचियां आप को ले जाती हैं. मसलन, प्रदर्शनी, फिटनैस क्लब, संग्रहालय, क्लब, साहित्यिक मंच या फिर कला से जुड़ी दूसरी संस्थाएं. आप डांस अकादमी या स्विमिंग सेंटर भी जा सकते हैं और वहां अच्छे दोस्त पा सकते हैं. ऐसी जगहों पर आप को अपने जैसी सोच वाले लोग मिलेंगे. आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लौग्स पर भी अपनी अभिरुचि से जुड़े दोस्तों की तलाश कर सकते हैं.

पड़ोसी हो सकते हैं अच्छे दोस्त

अकसर हम अपनी सोसाइटी या अपार्टमैंट के लोगों को भी नहीं पहचानते. आसपास रहने वाले लोगों के साथ भी हैलोहाय से ज्यादा संबंध नहीं रखेते. कभी गौर करें कि आप अपने पास रहने वाले लोगों के साथ कितनी बार संवाद करते हैं? क्या त्योहारों के मौकों पर उन्हें तोहफे देने, खुशियां बांटने या कुशलमंगल जानने जाते हैं? सच तो यह है कि हम उन्हें इग्नोर करते हैं पर वास्तव में एक पड़ोसी अच्छा दोस्त बन सकता है और आप इस दोस्त से रोजना मिल सकते हैं, साथ घूमने जा सकते हैं, बातें कर सकते हैं, कठिन समय में ये तुरंत आप की मदद को हाजिर हो सकते हैं.

औफिस में ढूंढें दोस्त

औफिस में हम अपनी जिंदगी का सब से लंबा वक्त बिताते हैं. यहां आप को समान सामाजिकमानसिक स्तर के लोगों की कमी नहीं होगी. बहुत से औप्शंस मिलेंगे. कई बार हम औफिस के लोगों से केवल काम से जुड़ी बातें ही करते हैं और औपचारिक रिश्ता ही रखते हैं पर जरा इस से आगे बढ़ कर देखें. कुछ ऐसे दोस्त ढूंढें जिन के साथ काम के सिलसिले में आप की प्रतिस्पर्धा नहीं या फिर जो आप के साथ चलना जानते हैं. ऐसे दोस्त न केवल आप के मनोबल को बढ़ाएंगे, बल्कि दिनभर के काम के बीच आप को थोड़ा रिलैक्स होने का मौका भी देंगे. यदि आप अपने औफिस के दोस्तों के प्रति ईमानदार रहते हैं और उन के सुखदुख में काम आते हैं, तो यकीन मानिए वे भी हमेशा आप का साथ देंगे.

इंटरनैट

इंटरनैट के माध्यम से आप अच्छे दोस्त ढूंढ़ सकते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन के साथ सालों की घनिष्ठ मित्रता के बंधन में बंधे रहना चाहते हैं या सिर्फ चैट कर मजे करना चाहते हैं खासकर विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ अकसर दोस्ती आकर्षणवश हो जाती है. लोग जिंदगी का मजा लेना चाहते हैं, पर इस सोच से अलग दोस्ती में घनिष्ठता और ईमानदारी रखना आप की जिम्मेदारी है.

अब सवाल उठता है कि औनलाइन दोस्त कैसे ढूंढें़? आज के समय में आप के पास इंटरनैट पर बहुत से औप्शंस हैं. आप स्काइप, फेसबुक, ट्विटर, डेटिंग साइट््स आदि पर दोस्त खोज सकते हैं. इस के लिए सोशल नैटवर्क पर अपने पेज को ठीक से डिजाइन करने की आवश्यकता है. इस के अलावा आप अपने कुछ विचार या मैसेज भी पोस्ट कर सकते हैं. सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों पर अपनी बात रख सकते हैं. दूसरों के पोस्ट पर अपने कमैंट्स दे कर समान सोच वाले लोगों से संपर्क बढ़ा सकते हैं.

पुराने दोस्त हैं कीमती

यदि आप बचपन में कुछ ऐसे दोस्त बनाने में कामयाब रहे जो अब भी आप के साथ हैं तो इस से अच्छा आप के लिए और कुछ नहीं हो सकता. यदि आप के अपने पूर्व सहपाठियों के साथ संबंध नहीं हैं तो उन्हें खोजने का प्रयास करें. आज सोशल नैटवर्क का उपयोग कर यह काम बड़ी आसानी से किया जा सकता है. कौन जानता है शायद आप भी आपसी विश्वास और स्नेह पर बने अपने पिछले दोस्ती के रिश्तों को पुनर्जीवित करने में सक्षम हो जाएं.

सब से विश्वसनीय दोस्त बचपन के दोस्त ही होते हैं. इन के साथ आप बिना किसी हिचकिचाहट अपने दुखदर्द, अपनी तकलीफें और सीक्रेट शेयर कर सकते हैं. लंगोटिया यार साधारणतया कभी धोखा नहीं देते, क्योंकि वे आप को सम झते हैं. वे परिस्थितियों को देख कर नहीं, बल्कि आप के दिल की सुन कर सलाह देते हैं.

दोस्त बनाने के लिए क्या है जरूरी

आप को अजनबियों के साथ भी एक आम भाषा में अपनी भावनाएं व्यक्त करना और दूसरों का ध्यान आकर्षित करना आना चाहिए. कुछ लोग जन्म से ही इस कला में निपुण होते हैं. सब से जरूरी है कि दूसरों में रुचि लीजिए. दूसरों के हक के लिए आवाज उठाएं. अपनी भावनाएं शेयर कीजिए तभी सामने वाला आप के आगे खुलेगा और आप को दोस्त बनाने के लिए उत्सुक होगा.

सलीकेदार कपड़े पहनें

अपने कपड़ों के प्रति सतर्क रहें. कपड़े ऐसे हों जो आप के आकर्षण को बढ़ाएं और व्यक्तित्व को उभारें. कपड़ों के साथ ही अपने अंदर से आ रही गंध के प्रति भी सचेत रहें. मुंह से बदबू या कपड़ों से पसीने की गंध न आ रही हो. हलकी खुशबू का इस्तेमाल करें. बालों को सही से संवारें. इंसान दोस्त उसे ही बनाना चाहता है जो साफसुथरा और सलीकेदार हो.

जानबूझ कर शेखी न बघारें

अकसर लोग शेखी बघारने के क्रम में  झूठ का ऐसा जाल बुनते हैं कि फिर खुद ही उस में उल झ कर रह जाते हैं. इसी तरह दूसरों की नजरों में आने के लिए कुछ ऐसा न बोल जाएं जो मूर्खतापूर्ण लगे.

 झगड़ा जल्दी सुल झाएं

दोस्त के साथ आप का  झगड़ा हो गया है तो यह जानने की कोशिश में न उल झें कि आप में से कौन सही है और कौन दोषी है, बल्कि सुलह करने वाले पहले व्यक्ति बनें. दोस्ती को खत्म करना बहुत सरल है पर इसे बनाए रखना बहुत कठिन. लंबे और विश्वसनीय रिश्ते के लिए एक मजबूत नींव बनाना कठिन काम है, पर वह नींव आप को ही तैयार करनी है.

याद रखिए 2 लोग जिन के शौक और दृष्टिकोण विपरीत हैं कभी दोस्त नहीं बन सकते. इसलिए समान हित और सोच वालों को अपना दोस्त बनाएं और जीवन के एकाकीपन को दूर करें.

गहरी दोस्ती के राज

अपने दोस्त के लिए हमेशा खड़े रहें. यदि धन से उस की मदद नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, मन से उस का साथ दें. उस को मानसिक सपोर्ट दें. उस की परेशानियों को बांटें और समस्याओं को सुल झाने का प्रयास करें. जब भी उसे आप की सहायता की जरूरत पड़े तो तुरंत आगे आएं. हमेशा कोशिश करें कि सामने वाले ने आप के लिए जितना किया जरूरत पड़ने पर आप उस से बढ़ कर उस के लिए करें. इस से आप को भी संतुष्टि मिलेगी और उस के दिल में भी आप के लिए सम्मान और प्यार बढ़ेगा. तभी तो आप की दोस्ती ज्यादा गहरी और लंबी चल सकेगी.

पैसे के मामलों में थोड़ी तटस्थता रखें

पैसों के मामले में थोड़े तटस्थ रहें. जब भी आप साथ कहीं घूमने जाते हैं, कोई चीज खरीदते हैं या दोस्त आप के लिए कुछ ले कर आता है तो पैसों का हिसाबकिताब बराबर रखने का प्रयास करें. जब भी आप दोनों मिल कर कुछ खर्च कर रहे हों तो किसी एक पर अधिक भार न पड़ने दें. भले ही छोटेमोटे खर्च ही क्यों न हुए हों, कोशिश करें कि खर्च आधाआधा बांट लें. अगर आप 4-5 दोस्त हैं तो सब मिल कर रुपए खर्च करने की कोशिश करें.

जहां तक बात कुछ बड़ी परेशानियों के समय खर्च करने की आती है जैसे घर में बीमारीहारी हो जाए या आप का दोस्त किसी क्रिमिनल केस में फंस जाए और उसे आप की मदद की जरूरत हो जैसे बेल देनी हो या उस के लिए कोई काबिल वकील तलाश करना हो अथवा मैडिकल ट्रीटमैंट के लिए तुरंत पैसों की जरूरत हो तो इस तरह के मामलों में कभी भी रुपए खर्च करने में आनाकानी न करें. यानी जब बात जान पर आ जाए तो बिना कुछ सोचे दिल खोल कर खर्च करें, क्योंकि यह बात आप का दोस्त जिंदगीभर नहीं भूल सकेगा और समय आने पर आप के लिए वह भी जान की बाजी लगा देगा. इसलिए अपने दोस्त होने की जिम्मेदारी को ऐसे समय जरूर निभाएं.

घबराएं नहीं भरोसेमंद बनें

यदि आप दोनों की जीवनस्तर में काफी असमानताएं हैं यानी कोई अमीर है और दूसरा गरीब तो ऐसी स्थिति में भी आप की दोस्ती पर कोई फर्क न पड़े. दोस्ती के लिए सिर्फ एक भरोसा, एक विश्वास और एक अपनापन ही सब से अहम होता है. यदि आप सामने वाले के लिए भरोसेमंद साबित होते हैं, जरूरत के वक्त उस के साथ खड़े रहते हैं, उस के सीक्रेट्स किसी से शेयर नहीं करते और उसे भरपूर मानसिक सपोर्ट देते हैं तो यकीन मानिए आप दोनों की दोस्ती की नींव बहुत मजबूत और गहरी रहने वाली है. आर्थिक स्तर का कोई असर आप की दोस्ती पर नहीं पड़ेगा.

विवाहितों में दोस्ती

दोस्ती का एक खूबसूरत पहलू यह भी हो सकता है कि आप दोनों पतिपत्नी की दोस्ती किसी ऐसे कपल से हो जो बिलकुल आप के जैसे हों. ऐसी दोस्ती का अलग ही आनंद होता है. इस में ध्यान देने की बात यह है कि आप दोनों समान रूप से उस कपल के साथ जुड़े हों यानी आप की जीवनसाथी भी उस कपल के साथ दोस्ती ऐंजौय कर रही हो और किसी तरह की मिसअंडरस्टैंडिंग क्रिएट न हो रही हो. इस तरह 2 कपल्स की दोस्ती 2 परिवारों की दोस्ती जैसी हो जाती है. आप चारों मिल कर एक खूबसूरत परिवार जैसा रिश्ता बना लेते हैं. आप चारों मिलबैठ कर बातें करें. ऐसी दोस्ती महानगरों में बहुत उपयोगी है. इस से अकेलापन तो दूर होगा ही विश्वसनीय रिश्ते भी मिल जाते हैं.

इसी तरह पतिपत्नी आपस में भी एकदूसरे के दोस्त बने रहने चाहिए. जब तक जीवनसाथी को आप दोस्त नहीं मानते तब तक सही अर्थों में आप जीवन के सुखदुख में एकदूसरे का साथ नहीं दे पाएंगे. इसलिए हमेशा एकदूसरे को अपना दोस्त मानें. इस से रिश्ते में गहराई आती है.

रहस्य छिपा कर रखने की आदत डालें

दोस्ती का एक बहुत बड़ा उसूल होता है कि अपने दोस्त के राज कभी न खोलें. उन्हें किसी से शेयर न करें, क्योंकि सामने वाला आप को बहुत विश्वास के साथ अपना मान कर अपने सीक्रेट्स, फीलिंग्स या वीकनैस शेयर करता है. उन बातों को यदि आप किसी से कह देंगे तो फिर दोस्ती टूटने में एक पल का समय नहीं लगेगा. इसलिए सामने वाले को यह भरोसा दिलाएं कि आप किसी भी परिस्थिति में उस के राज किसी से नहीं कहेंगे. ऐसी दोस्ती में ही व्यक्ति दोस्त को अपना सबकुछ बता सकता है और अपना मन हलका कर सकता है.

मुझे एक लड़की पसंद है मैं उससे दोस्ती करना चाहता हूं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 19 साल का एक कुंआरा लड़का हूं. मैं कालेज के दूसरे साल में पढ़ रहा हूं. मैं अपने कालेज सरकारी बस से जाता हूं. इसी बस में एक लड़की भी चढ़ती है, जो मुझे पसंद है. वह भरेपूरे बदन की है और हर किसी की निगाह उस के उभारों पर ही टिकी रहती है. पर वह किसी की परवाह नहीं करती है और शायद किसी लड़के से फोन पर बात भी करती है. लेकिन साथ ही मुझे देख कर मुसकराती भी है.

मुझे उस लड़की से दोस्ती करनी है, पर डर लगता है कि कहीं वह मना न कर दे. उस का बदन मुझे सपनों में भी सताता है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

एक पुरानी कहावत है, हंसी सो फंसी. अब बस जरूरत आप की तरफ से पहल की है, जिस की आप हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. रोजरोज उस अनजान लड़की के उभारों और भरेपूरे बदन को देख कर आहें भरते रहने से तो बेहतर है कि आप हिम्मत कर के दोस्ती के लिए प्रपोज कर ही दें. लेकिन जरा ड्रामेटिक स्टाइल में करें. वह मना कर भी देगी तो आप का कोई नुकसान नहीं है. वैसे पढ़ाईलिखाई की तरफ ज्यादा ध्यान देंगे तो फायदे में रहेंगे. इस उम्र में लड़कियों के प्रति आकर्षण होना कुदरती बात है, लेकिन इस से पढ़ाई और कैरियर पर फर्क न पड़े, इस का भी ध्यान रखें.

रूममेट के साथ फ्रेंडशिप

26 साल का अभिषेक कुमार बिहार के समस्तीपुर जिले में एक किसान परिवार से है. साल 2013 में 12वीं जमात के इम्तिहान अच्छे नंबरों से पास करने के बाद पत्रकार बनने का सपना लिए वह देश की राजधानी दिल्ली आ गया.

पत्रकारिता में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के लिए उस ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामलाल आनंद कालेज में दाखिला लिया. दाखिला लेने के साथ ही अभिषेक ने कालेज से 16 किलोमीटर दूर लक्ष्मी नगर मैट्रो स्टेशन में एक पीजी किराए पर लिया. लेकिन पीजी लेने में सब से बड़ी दिक्कत उस के किराए की थी.

लक्ष्मी नगर आमतौर पर छोटे शहरों से आए नौजवानों से भरा रहता है. वहां के मकानों की दीवारें कोचिंग सैंटर के बोर्ड से पटी पड़ी हैं. यही वजह है कि ज्यादातर कोचिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों का हब लक्ष्मी नगर बना हुआ है, जिस के चलते किराए पर कमाई का कारोबार वहां खूब फलफूल रहा है.

रूममेट की खोज

लक्ष्मी नगर में उस दौरान अभिषेक अकेला रह कर 6,000 रुपए महीना कमरे का किराया देने की हालत में नहीं था, इसलिए वह चाह रहा था कि जल्द ही उस का कोई रूममेट बने, जिस के साथ वह कमरे के खर्चों को शेयर कर सके.

इस मसले पर अभिषेक का कहना है, ‘‘ज्यादातर लोग जानपहचान वाले को ही रूम पार्टनर रखना पसंद करते हैं और यह ठीक भी रहता है, क्योंकि इस से रूममेट को समझनेसमझाने में ज्यादा समय नहीं खपता और एकदूसरे से कोई बात बेझिझक कही जा सकती है.

‘‘बहुत बार जब 2 अनजान लोग एकसाथ रहते हैं, तो काम और पैसों को ले कर झिकझिक बनी रहती है. छोटेछोटे खर्चों या काम में बड़ेबड़े झगड़े या शक की गुंजाइश बन जाती है.’’

गलत रूममेट

उत्तर प्रदेश के आगरा की रहने वाली 29 साल की श्रुति गौतम दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं. वे मुखर्जी नगर में फ्लैट ले कर रह रही हैं. साथ ही, वे बतौर गैस्ट टीचर कालेज में पढ़ाती भी हैं.
श्रुति गौतम कहती हैं, ‘‘मैं साल 2016 में दिल्ली आई थी. साल 2016-17 में मैं जिस फ्लैट में रही, वहां सब ठीक चल रहा था. वहां मैं सब से छोटी थी, बाकी मेरे से कुछ सीनियर थे. फिर मैं ने जब रूम बदला, तो मुझे अपने साथ रूममेट की जरूरत थी.

‘‘उस दौरान मुझे 2 लड़कियां मिलीं. वे दोनों उम्र में मुझ से छोटी थीं. हम ने मिल कर फ्लैट लिया. शुरू में लगा कि सब ठीक है, लेकिन धीरेधीरे समस्या आती है कि आप की ट्यूनिंग नहीं मिलती. जैसे आप सोते हैं 10 बजे और रूममेट को 2 बजे सोने की आदत है. आप को खाने में कुछ पसंद है, तो उसे कुछ दूसरा. ऐसे में झगड़े होने लगते हैं.’’

काम का हिसाब

श्रुति गौतम कहती हैं, ‘‘साल 2018 की बात है, तब मैं आईपी मैं कालेज गैस्ट टीचर के तौर पर पढ़ा रही थी. मेरी एक रूममेट ने मेन डोर की चाबी लौक पर ही छोड़ दी, जिस के बाद कमरे से लैपटौप और मोबाइल फोन चोरी हो गया था.

‘‘उस समय मैं ने उसे खूब डांट दिया था. उसे बुरा लग गया और उस के मन में मेरे लिए कड़वाहट बैठ गई. तब से हमारी बात ठीक से हुई नहीं और आखिर में उसी ने कमरा छोड़ दिया.’’

श्रुति गौतम आगे कहती हैं, ‘‘रूम में काम बंटा हुआ होता है, लेकिन उस के बावजूद कोई काम करने को राजी नहीं होता. गंदे बरतन पड़े हैं तो पड़े ही रहेंगे. टायलैट सब से साफ रहने वाली जगह होनी चाहिए और सभी को इसे साफ करना चाहिए, लेकिन बोलबोल कर भी काम पूरा नहीं किया जाता.

‘‘खाना बनाते समय कई झगड़े होते हैं. जो खाना बनाने वाला है, वह कह दे कि प्याज काट दो या आटा गूंद दो तो काम से कन्नी काटने के लिए बहाने बनते हैं कि मुझे भूख नहीं है. कपड़े जहांतहां फैले होते हैं. इस के साथ हिसाबकिताब में भी दिक्कत आ जाती है. इस का आखिर में एक ही हल निकलता है कि आप एक कामवाली रख लो.’’

धर्मजाति के फंडे

अभिषेक बताता है, ‘‘लक्ष्मी नगर या मुखर्जी नगर में ही देखो, तो ज्यादातर अपनी जातबिरादरी के लोगों के साथ ही रहते हैं और शायद रहना पसंद भी करते हों. इसे समझना कोई बड़ी बात नहीं. कालेज में पढ़नेलिखने आए नौजवान जब कालेज में जाते हैं, तो अपने जातिधर्म के चुनाव उम्मीदवार को ही जिताते हैं, उसी के लिए नारे लगाते हैं.

‘‘मैं यह नहीं कह रहा कि सिर्फ जातिवादी या सांप्रदायिक सोच के चलते ऐसा है, मसला आराम का भी होता है. अपनी बिरादरी में वे ज्यादा आरामदायक महसूस करते हैं, कल्चर को ले कर जल्दी एकदूसरे की बातें समझ लेते हैं.

‘‘बहुतों पर पारिवारिक दबाव भी होता है कि किस के साथ रहना है या नहीं रहना है. सब से बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर बाहरी नौजवान जानपहचान वालों के साथ ही यहां रहते हैं. हमारा सामाजिक ढांचा ऐसा है कि हम अपनी बिरादरी और धर्म से अलग किसी दूसरे से ज्यादा नजदीकियां बना नहीं पाते हैं.’’

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के बिसनपुर गांव के सनी कुमार एसटी समाज से आते हैं. वे गांव से मीलों दूर इलाहाबाद शहर के कटरा इलाके में किराए का कमरा ले कर कानून की पढ़ाई कर रहे हैं.

सनी कुमार कहते हैं, ‘‘रूममेट ढूंढ़ते हुए जाति से ज्यादा धर्म को देखा जा रहा है, खासकर यह मामला हिंदू और मुसलमान में ज्यादा देखने को मिलता है. जिस इलाके में मैं रहता हूं, वहां अलगअलग धर्म के लोगों का एकसाथ रूम शेयर करने का उदाहरण मैं अभी तक देख नहीं पाया हूं, लेकिन जाति से अलग उदाहरण दिख जाते हैं. यह मैं ने गौरखपुर में भी महसूस किया था.’’

इस मसले पर श्रुति गौतम के विचार अलग हैं. वे कहती हैं, ‘‘मेरे खयाल से रूममेट ढूंढ़ते समय आज का नौजवान तबका धर्मजाति नहीं देखता है. वजह यह है कि ज्यादातर बाहर से आने वाले युवा एक टारगेट ले कर आते हैं, उस के आड़े ये चीजें इतनी माने नहीं रखतीं.

‘‘हां, यहां पेंच पड़ता है परिवार का. अगर किसी का बेटा या बेटी बाहर पढ़ने गए हैं या नौकरी के लिए आए हैं, तो परिवार नजर रखता है कि वह किस के साथ है. उस की पार्टनर किस धर्मजाति से है. ऐसे में इन चीजों को ध्यान में रख कर रूममेट की जातिधर्म पर सोचते होंगे. लेकिन जिन्हें इन बातों से कुछ फर्क नहीं पड़ता, वे परिवार में इन बातों को बताते ही नहीं हैं या झूठ कह देते हैं.’’

ऐसे बनाएं रूममेट से अच्छा रिश्ता

कमरे की साफसफाई–  रूममेट का आपस में झगड़ा इसी को ले कर ज्यादा होता है, इसलिए जरूरी है कि इस पर ध्यान दिया जाए. इस के लिए कुछ नियम बनाए जा सकते हैं. जैसे, बारीबारी से कमरा साफ करें, भीतर आने से पहले जूते साफ कर लें, अपने कपड़े समय पर धो लें, टायलैट इस्तेमाल करने के बाद साफ जरूर करें, कमरे के मैनेजमेंट के लिए अलमारी, बुक रैक, डस्टबिन, पैन बौक्स वगैरह का इस्तेमाल करें, ताकि चीजें यहांवहां गुम न हों.

हिसाब रखें सही

कई बार लेनदेन में रूममेट के साथ अनबन हो जाती है. अगर एक बार पैसों को ले कर अनबन होती है, तब वह शंका आजीवन मिटाए नहीं मिटती है, इसलिए हिसाब बेहतर और क्लियर रखें.

रूममेट की सहूलियत का खयाल

कई बार हमारी केवल अपनी सहूलियत दूसरे के लिए सिरदर्द भी बन जाती है. हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि आप के साथ उस रूम में कोई और भी है, जिसे कुछ तरह की चीजों से दिक्कत हो सकती है. जैसे देर रात फोन पर बात करना, देर रात तक टैलीविजन देखना या मोबाइल फोन पर बात करना वगैरह.

प्राइवेसी का ध्यान रखना

ऐसा नहीं है कि रूममेट के साथ हर बात शेयर की जाए या उसे हर बात बताने पर जोर दिया जाए. हर किसी की अपनी प्राइवेसी होती है. उस की इज्जत करना जरूरी है. अगर रूममेट आरामदायक महसूस नहीं कर रहा, तो उस की पर्सनल लाइफ में दखल न दें.

बिना पूछे सामान न इस्तेमाल करें

कई बार लोग रूममेट के सामान को अपना समझ कर इस्तेमाल करने लगते हैं, जो गलत है खासकर बगैर पूछे. ध्यान रहे कि खुद के लिए जरूरत का सामान जोड़ लें. अगर मुमकिन नहीं है, तो रूममेट से सामान इस्तेमाल करने से पहले इजाजत लें.

रूममेट की सही पहचान

भले ही रूममेट के साथ थोड़े समय के लिए ही जिंदगी बितानी होती है, पर फिर भी एक बेहतर रूममेट की पहचान करना जरूरी होता है. इस के लिए कुछ बातों के बारे में जान लेना बहुत जरूरी है :

सोशल मीडिया अकाउंट देखें

अगर किसी एप की मदद से रूममेट की खोज की है, तो उस के सोशल मीडिया अकाउंट्स को चैक कर लें. वहां उस की जानकारी मिल जाएगी, उस का तौरतरीका और रवैए की पहचान होने में मदद मिलेगी.

पहचान के लिए पब्लिक स्पेस

रूममेट की पहचान जैसे भी या जहां से भी हो, पहली मुलाकात में एकांत जगह या रूम में बुलाने से बचना चाहिए. एकदूसरे को जानने के बाद ही मेलजोल आगे बढ़ाएं.

पसंदनापसंद पर खुल कर बात

रूममेट के साथ रोज 10-12 घंटे गुजारने होते हैं, इसलिए जरूरी है कि एकदूसरे की पसंदनापसंद जानें. खुल कर पूछें और बताएं शराब, सिगरेट, मांसाहार और पार्टी के मामले में.

रूममेट के डौक्यूमैंट देखें

अगर इन सब के बाद वह रूममेट बनने को तैयार है, तो उस के डौक्यूमैंट्स वैरिफाई करें. इस में आधारकार्ड, वोटर आईडी, औफिस या कालेज कार्ड हो सकता है.

परखिए अपने हमसफर का अपनापन

एक शख्स, जिस की खातिर मन जमाने से बगावत करने पर उतर आता है. हर आहट में उसी का खयाल आने लगता है. उसे पाने की हसरत जिंदगी का मकसद बन जाती है, बस, यही है मुहब्बत. आप का किसी को पूरी शिद्दत से चाहना ही काफी नहीं होता, जरूरी है कि वह भी आप के खयालों में गुम हो.

वैसे तो प्यार को परखने का कोई पैरामीटर नहीं होता, लेकिन निम्न बातों पर ध्यान दे कर आप कुछ हद तक अपने बौयफ्रैंड की हकीकत से रूबरू हो सकती हैं :

आप के प्रति उस का नजरिया

आप जब उस के साथ होती हैं तो आप के प्रति उस का नजरिया क्या होता है? यदि वह आप को समानता के स्तर पर रखता है तो यह सब से प्रमुख बात है. इस से यह जाहिर होता है कि मुसीबत के पलों में वह पल्ला नहीं झाड़ेगा. हमेशा आप का साथ देगा.

आप की कही बात पर उस की सोच

जब वह आप से बात करता है तो क्या वह जिंदगी के बारे में भी बातें करता है? अगर हां तो वह सही माने में गंभीर है, क्योंकि फ्लर्ट करने वाले अकसर मौजमस्ती की बातों को ही प्रमुखता देते हैं.

अपेक्षाएं जायज रखता है

क्या वह आप से आत्मीय सहयोग तथा अपनापन रखता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि घूमनेफिरने या अकसर अकेले में घूमने की जिद करता है. न मानने पर डांट भी देता है. इस से न तो आप खुश रह सकती हैं और न ही वह.

आप की सहेलियों से उस का व्यवहार

एक अच्छे इंसान की तरह पेश आता है या आशिक मिजाज के रूप में. इस से उस का चरित्र पता चलता है. स्त्रीपुरुष के परस्पर रिश्तों में ईमानदारी बरतना जरूरी है, क्योंकि यदि आप समाज और परिवार में रहते हैं तो उन के उत्तरदायित्वों का पालन करना आप का नैतिक कर्तव्य भी है. यदि आप के चोरीछिपे कहीं और रिश्ते हैं तो एक दिन आप की पोल खुलनी तय है.

आप का मूड खराब होने पर क्या करता है

कभीकभी सामान्य बातचीत में आप का मूड खराब हो जाता है तब क्या वह आप को खुश करने का प्रयास करता है या उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता या  उस की ईगो आड़े आती है कि मैं क्यों मनाऊं. समस्याएं तो जीवन का हिस्सा हैं, अत: उन का दोनों को ही डट कर मुकाबला करना चाहिए. मैं और तुम का चक्कर छोड़ हम पर महत्त्व देना चाहिए.

तारीफ भी जरूरी है

क्या वह आप का बर्थडे याद रखता है? अगर नहीं तो समझ लीजिए कि उस का प्रेम बनावटी है और ये ही छोटीछोटी बातें बाद में कई बार तनाव की वजह बन जाती हैं. वैसे भी सफल रिश्ते का मूलमंत्र है अपने जीवन साथी की तारीफ करना.

सब से जरूरी बात

क्या वह आप पर भरोसा करता है या सुनीसुनाई बातों पर यकीन कर के झगड़ा मोल लेता है.

तो अब देखें क्या आप का भावी जीवन साथी आप की बातों पर खरा उतरता है. ये बातें दिखनेसुनने में भले ही सामान्य लगें, पर पूरे जीवन का सफल मूलमंत्र हैं.

क्या आपकी दोस्ती खतरे में है?

एक रिश्ता है जो हम अपने व्यवहार से बनाते हैं, वह है दोस्ती. दोस्ती एकमात्र ऐसा रिश्ता है जो हम खुद जोड़ते हैं. दोस्त हम स्वयं चुनते हैं. लेकिन दोस्त की इस दोस्ती से कब व कैसे कट कर लिया जाए. आप भी जानिए.

संभव है कि किन्हीं कारणों से आप की दोस्ती अब पहले जैसी नहीं रह गई हो. आप के दोस्त के बरताव में आप कुछ बदलाव महसूस कर सकते हैं या आप में उस की दिलचस्पी अब न रही हो या कम हो गई हो. कुछ संकेतों से आप पता लगा सकते हैं कि अब यह दोस्ती ज्यादा दिन निभने वाली नहीं है और बेहतर है कि इस दोस्ती को भूल जाएं.

दोस्ती एकतरफा रह गई है : दोस्ती नौर्मल हो, प्लुटोनिक या रोमांटिक, किसी तरह की भी दोस्ती एकतरफा नहीं निभ सकती है. अगर आप का पार्टनर आप की दोस्ती का उत्तर नहीं दे रहा है तो इस का मतलब है कि उस की दिलचस्पी आप में नहीं रही. इस दोस्त को गुड बाय कहें.

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आप के राज को राज न रखता हो : आप अपने फ्रैंड पर पूरा भरोसा कर उस से सभी बातें शेयर करते हों और उस से यह अपेक्षा करते हों कि वह आप के राज को किसी और को नहीं बताए पर यदि वह आप के राज को राज न रहने दे तो ऐसी दोस्ती से तोबा करें.

विश्वासघात : विश्वास मित्रता का स्तंभ है. कभी दोस्त की छोटीमोटी विश्वासघात की घटनाओं से आप आहत हो सकते हैं पर उसे विश्वास प्राप्त करने का एक और मौका दे सकते हैं. पर यदि वह जानबूझ कर चोरी करे, आप के निकटतम संबंधी या प्रेमी या प्रेमिका के मन में आप के विरुद्ध झूठी बातों से घृणा पैदा करे तो समझ लें अब और नहीं, बस, बहुत हुआ.

लंबी जुदाई : कभी आप घनिष्ठ मित्र रहे होंगे. ट्रांसफर या किसी अन्य कारण से आप का दोस्त बहुत दूर चला गया है और संभव है कि आप दोनों में पहले वाली समानता न रही हो. आप के प्रयास के बावजूद आप को समुचित उत्तर न मिले तो समझ लें अब वह आप में दिलचस्पी नहीं रखता है. उसे अलविदा कहने का समय आ गया है.

अगर वह आप के न कहने से आक्रामक हो : कभी ऐसा भी मौका आ सकता है जब आप उस की किसी बात या मांग से सहमत न हों और उसे ठुकरा दें. जैसे किसी झूठे मुकदमे में आप को अपने पक्ष से सहमत होने को कहे या झूठी गवाही देने को कहे और आप न कह दें. ऐसे में अगर वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामक रुख अपनाता है तो समझ लें कि इस दोस्ती से ब्रेक का समय आ गया है.

आपसी भावनाओं का सम्मान : मित्रता बनी रहे. इस के लिए जरूरी है कि दोनों भावनाओं का सम्मान करें. अगर आप की भावनाओं का सम्मान दूसरा मित्र न करे या आप की भावनाओं का निरादर कर लोगों के बीच उस का मजाक बनाए या अवांछित सीन पैदा करे तो समझ लें कि अब यह दोस्ती निभने वाली नहीं है.

जब आप की चिंता की अनदेखी करे : दोस्ती में जरूरी है कि दोनों एकदूसरे की चिंताओं या समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों और उन के समाधान में अपने पार्टनर की सहायता करें. अगर आप की मित्रता में ऐसी बात नहीं है तो फिर यह अच्छा संकेत नहीं है.

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आप को नीचा दिखाने की कोशिश न हो : कभी अन्य लोगों के बीच अगर आप का दोस्त आप को नीचा दिखा कर आप में हीनभावना पैदा करे या करने की कोशिश करे तो यह दोस्त दोस्ती के लायक नहीं रहा.

दोस्त से मिल कर कहीं आप नाखुश तो नहीं हैं : अकसर आप दोस्तों से मिल कर खुश होते हैं. अगर किसी दोस्त से मिलने के बाद आप प्रसन्न न हों और बारबार दुखी हो कर लौटते हैं, तो कट इट आउट.

परमानेंट दोस्त हैं जरूरी

‘आई लव यू माय लब्बू’ लिखा टैटू जब बौलीवुड अभिनेत्री जाहनवी कपूर ने सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस को दिखाया तो यह टैटू चर्चा का विषय बन गया. जिस समय जाहनवी ने यह टैटू अपने फ्रैंड्स को शेयर किया, उस समय वह छुटिट्यां मनाने गई थी. छुटिट्यों में भी जाहनवी अपनी मां को ही याद करती रही. ‘आई लव यू माय लब्बू’ लिखे टैटू का संबंध जाहनवी की मां श्रीदेवी से है.

जब श्रीदेवी जिंदा थीं, उस समय उन्होंने जाहनवी को लिखा था, ‘आई लव यू माय लब्बू’. श्रीदेवी के न रहने के बाद जाहनवी ने इस लाइन को ही अपना टैटू बनवा लिया. श्रीदेवी अपनी बेटी जाहनवी को प्यार से उस के निकनेम ‘लब्बू’ से ही बुलाती थीं. इस टैटू के जरिए जाहनवी कपूर अपनी मां को याद करती हैं. श्रीदेवी ने अपने जीवित रहते जाहनवी कपूर के लिए यह लिखा था, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं प्यारी लब्बू, तुम दुनिया की सब से अच्छी बच्ची हो.’’

जाहनवी कपूर का जन्म 7 मार्च, 1997 को हुआ था. उस की मां का नाम श्रीदेवी और पिता का नाम बोनी कपूर है. जाहनवी कपूर आज हिंदी फिल्मों की प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं. जाहनवी ने 2018 में पहली फिल्म ‘धड़क’ से अपने अभिनय की शुरुआत की थी. इस फिल्म के लिए जाहनवी को ‘बेस्ट डैब्यू अवार्ड’ दिया गया था.

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जाहनवी के परिवार में भाई अर्जुन कपूर फिल्मों में अभिनय करते हैं. इस के अलावा उस के चाचा अनिल कपूर और संजय कपूर भी फिल्मों में हैं. जाहनवी की पढ़ाई मुंबई के धीरूभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल से हुई. जाहनवी ने कैलिफोर्निया के ‘ली स्ट्रैसबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टिट्यूट’ में ऐक्ंिटग की पढ़ाई पूरी की थी.

जाहनवी कपूर हिंदी फिल्म ‘धड़क’, कौमेडी हौरर फिल्म में रूही अफजा, बायोपिक ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ में गुंजन सक्सेना की भूमिका में काम कर चुकी हैं. नैटफ्लिक्स एंथोलौजी फिल्म ‘घोस्ट स्टोरीज’ में जोया अख्तर के सेगमैंट में भी अभिनय किया है. इस के अलावा अब वे करण जौहर की फिल्म ‘तख्त’ में एक गुलाम लड़की का किरदार निभा रही हैं.

रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘दोस्ताना’ के सीक्वैंस में कार्तिक आर्यन और लक्ष्य लालवानी के साथ काम कर रही हैं. 24 साल की उम्र में जाहनवी कपूर ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. फिल्मी दुनिया में उन के बहुत सारे मित्र हैं. घरपरिवार भी है. इस के बाद भी उन्हें अपनी मां से अच्छा कोई और दोस्त मिला नहीं.

श्रीदेवी मां नहीं दोस्त

श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त, 1963 को हुआ था. श्रीदेवी ने 1975 में फिल्म ‘जूली’ से बाल अभिनेत्री के रूप में प्रवेश किया था. उन्होंने बाद में तमिल, मलयालम, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया. अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने 63 हिंदी, 62 तेलुगू, 58 तमिल, 21 मलयालम तथा कुछ कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया.

श्रीदेवी को फिल्मों की ‘लेडी सुपरस्टार’ कहा जाता है. उन्होंने 5 फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किए. उन्हें लोकप्रिय अभिनेत्री माना जाता है. 2013 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया. उन की प्रमुख फिल्मों में ‘हिम्मतवाला’, ‘सदमा’, ‘नागिन’, ‘निगाहें’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘चालबाज’, ‘लम्हे’, ‘खुदागवाह’ और ‘जुदाई’ हैं. 24 फरवरी, 2018 को दुबई में श्रीदेवी का निधन हो गया.

श्रीदेवी अपने कैरियर की ही तरह से अपने परिवार का भी ध्यान रखती थीं. वे काफी समय परिवार और अपनी बेटियों को देती थीं. दुबई भी वे पति बोनी कपूर, बेटी खुशी और भतीजे मोहित के साथ शादी के एक समारोह में हिस्सा लेने गई थीं. उन की बड़ी बेटी जाहनवी उस समय उन के साथ नहीं थी. मां के न रहने के बाद जाहनवी अकेली पड़ गई. मां के साथ अंतिम समय न रहने का दर्द उसे था.

अब उस ने अपनी मां की याद में अपने हाथों से लिखा टैटू बनवा कर याद किया. युवाओं में अपने पेरैंट्स के साथ लगाव बढ़ता जा रहा है. इस की वजह यह है कि अब उन के पास परमानैंट दोस्तों की कमी होने लगी है. जाहनवी जैसे कई युवा अपने पेरैंट्स को खोने के बाद उन की याद में डूबे रहते हैं.

परमानैंट दोस्त की कमी

युवाओं के अकेले परमानैंट दोस्त अब पेरैंट्स ही रह गए हैं. पति, पत्नी और पेरैंट्स के अलावा जो दोस्त होते हैं, वे कुछ घंटों के लिए होते हैं. यही नहीं, ये सभी दोस्त अपने मतलब के लिए दोस्ती करते हैं. बच्चे भी उदार और सपोर्टिव पेरैंट्स के साथ चिपके रहना पंसद करते हैं.

श्रीदेवी ने कम उम्र में ही काम शुरू किया था. परिवार का कोई बहुत सहयोग नहीं था. इस के बाद भी श्रीदेवी ने न केवल फिल्मों में नाम कमाया, बल्कि अच्छी मां के रूप में भी पहचान बनाई. आज के युवा इस तरह की जिम्मेदारी उठाने से बचते हैं. उन के पास जो दोस्त होते हैं, वे उन के वर्किंगप्लेस के होते हैं. ये कोई परमानैंट दोस्त नहीं होते. परमानैंट दोस्तों की संख्या अब कम होती जा रही है. काम खत्म होते ही दोस्त बदल जाते हैं. इस वजह से जब किसी तरह का दुख हो, इमोशनल सहयोग की जरूरत हो तो दोस्त की कमी खलने लगती है.

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युवाओं के सब से पहले परमानैंट दोस्त उन के पेरैंट्स होते हैं. इस के बाद शादी होने के बाद पतिपत्नी के रूप में परमानैंट दोस्त मिलते हैं. यही वजह है कि पेरैंट्स एक तय समय पर बच्चों की शादी कर देना चाहते हैं. आज के दौर में बच्चे पहले कैरियर बनाना पसंद करते हैं. इस के बाद वे शादी की सोचते हैं. कैरियर में भी कंपीटिशन बढ़ गया है. ऐसे में उन को कैरियर बनाने में भी समय लगने लगा है.

इस बीच अगर पेरैंट्स के साथ कोई हादसा हो जाए, बच्चे अकेले पड़ जाते हैं. जिन को पतिपत्नी के रूप में परमानैंट दोस्त मिल जाते हैं उन को कम दिक्कत का सामना करना पड़ता है. अगर पतिपत्नी और पेरैंट्स में से कोई भी साथ न हो तो जीवन से परमानैंट दोस्त एकदम से खत्म हो जाते हैं, जिस की वजह से युवा दिक्कत में आ जाते हैं.

इसलिए, यह जरूरी हो गया है कि जीवन में परमानैंट दोस्त हों. ये कभी गलत सलाह नहीं देंगे. मुसीबत में साथ, हिम्मत और सहयोग देंगे. पेरैंट्स हमेशा नहीं रह सकते. युवाओं को शादी से दूर नहीं भागना चाहिए. पेरैंट्स के बाद पतिपत्नी आपस में एकदूसरे के परमानैंट दोस्त होते हैं, जो हर सुखदुख में साथ देते हैं.

वर्किंगप्लेस के दोस्त भी महज दोस्त ही होते हैं. इन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता. युवाओं को परमानैंट दोस्तों के साथ रहने की कोशिश करनी चाहिए. वही मुसीबतों से बाहर निकाल सकते हैं. अकेलापन दूर कर सकते हैं. परमानैंट दोस्तों की कमी कई तरह की मानसिक बीमारियां ले कर आती है. इन से बचने के लिए भी परमानैंट दोस्तों का जीवन में होना जरूरी होता है.       – शैलेंद्र सिंह द्य

Friendship: कंडीशन नॉट अप्लाई

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आम और खास लोग औक्सीजन की कमी के चलते यों मर रहे थे जैसे पानी के बिना मछलियां तड़पतड़प कर दम तोड़ देती हैं. दिल दहला देने वाले नजारे देशभर के लोग शायद ही कभी भूल पाएं कि जेब में पैसा तो था लेकिन सांसें यानी औक्सीजन नहीं मिल रही थी, किसी भी कीमत पर नहीं मिल रही थी. इस से हृदयविदारक दृश्य कोई और हो भी नहीं सकता कि आगरा के एक अस्पताल के बाहर एक पत्नी औक्सीजन की कमी से मरते पति को अपनी सांस के जरिए औक्सीजन देने की कोशिश करती रही लेकिन उसे बचा न पाई.

वहीं, इस वाकए ने भी लोगों की आंखों में आंसू ला दिए कि अपने दोस्त को बचाने के लिए एक युवक 1,300 किलोमीटर दूर तक औक्सीजन सिलैंडर ले गया और अपने बचपन के दोस्त की जान बचा ली. देवेंद्र शर्मा और राजन सक्सेना दोनों झारखंड के बोकारो के रहने वाले हैं, पक्के दोस्त हैं और शहर के सैंट्रल स्कूल में 12वीं तक साथ पढ़े हैं. आगे की पढ़ाई और फिर नौकरी के लिए राजन को गाजियाबाद जाना पड़ा. देवेंद्र भी वहीं उन के साथ एक साल रहे लेकिन पेरैंट्स के निधन के बाद उन्हें वापस बोकारो जाना पड़ा जहां वे एक बीमा कंपनी में नौकरी करने लगे.

कोरोना ने राजन को बख्शा नहीं, एक वक्त ऐसा भी आया कि उन्हें भी औक्सीजन लगाना पड़ा. अस्पतालों की बदहाली और बैड की मारामारी के चलते घबराए राजन के घरवालों ने घर पर ही उन्हें औक्सीजन दी. जैसेतैसे जो एक सिलैंडर मिला था वह खत्म हो चला तो दूसरे सिलैंडर की कोशिश शुरू की लेकिन जल्द ही उन्हें सम झ आ गया कि एक बार भूसे के ढेर में गुमी सूई तो मिल सकती है लेकिन औक्सीजन सिलैंडर नहीं. सो, उन्होंने देवेंद्र को फोन किया.

देवेंद्र तब रांची में थे. औक्सीजन सिलैंडर, आसानी तो क्या मुश्किल से भी, वहां भी नहीं मिल रहे थे. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इधरउधर हाथपांव मारते रहे. आखिरकार बोकारो में उन के एक दोस्त, झारखंड औक्सीजन प्लांट के मैनेजर राकेश गुप्ता, ने एक सिलैंडर का इंतजाम कर दिया तो देवेंद्र की बांछें खिल उठीं कि अब राजन बच जाएगा. लेकिन दूसरी चुनौती बोकारो से 1,300 किलोमीटर दूर गाजियाबाद पहुंचने की मुंहबाए खड़ी थी. देवेंद्र ने ज्यादा सोचविचार करने या हिसाबकिताब में वक्त जाया नहीं किया और बोकारो में रह रहे राजन के छोटे भाई प्रशांत को कार मैं बैठा, ऐक्सीलरेटर दबा दिया.

25 अप्रैल की दोपहर से दूसरे दिन सुबह गाजियाबाद पहुंचने तक देवेंद्र ने गाड़ी कहीं नहीं रोकी क्योंकि उन्हें एहसास था कि अगर वक्त रहते नहीं पहुंचे तो यह सिलैंडर किसी काम का नहीं रहेगा. अकसर फिल्मों में ऐसे सीन दिखाए जाते हैं कि डाक्टर ने कह दिया है कि अगर यह दवा वक्त पर नहीं मिली तो मरीज नहीं बचेगा. मरीज का कोई परिजन दवा ले कर दौड़ लगा रहा है, जगहजगह गिरपड़ रहा है, किसी गाने या भजन के साथ घड़ी की सुइयां भी दिखाई जाती हैं. इधर दर्शकों का ब्लडप्रैशर बढ़ जाता है कि दवा वक्त पर पहुंचेगी या नहीं.

देवेंद्र जिस वक्त गाजियाबाद पहुंचे तब राजन के सिलैंडर में थोड़ी ही औक्सीजन बची थी. जिस हाहाकारी और फिल्मी स्टाइल में सिलैंडर आया था उसे देख हर कोई हैरान था कि आजकल भी ऐसे दोस्त होते हैं जो अपने दोस्त की जिंदगी बचाने के लिए जनून की तमाम हदें पार कर जाते हैं और खुद की जिंदगी की परवा नहीं करते. ऐसा रूबरू हुआ तो सहज ही हर किसी को लगा कि जब तक दोस्ती और उस का जज्बा जिंदा है तब तक राजन जैसे युवाओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. काश, सभी के पास देवेंद्र जैसा दोस्त हो.

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तो फिर पैसा आड़े क्यों

जाने क्यों किसी के मुंह से यह नहीं निकला कि हम भी देवेंद्र जैसे दोस्त साबित होंगे. इस की वजह यह है कि हर कोई अच्छा दोस्त चाहता तो है लेकिन खुद वैसा बनना नहीं चाहता. कोरोना संकट के दौरान जिस रिश्ते का सब से कड़ा इम्तिहान हुआ उस का नाम दोस्ती है, जिसे ले कर कई किस्सेकहानियां व दास्तां और फिल्में वगैरह बनी हैं जिन में दोस्ती की तुलना भगवान तक से की गई है. इसे इबादत और एक खूबसूरत एहसास बताया गया है. इस रिश्ते में कोई स्वार्थ नहीं होता. दोस्त से किसी चीज की चाहत या लालच नहीं होता. दुनिया का पहला और आखिरी रिश्ता जिस में धर्म और जातपांत नहीं देखी जाती वह दोस्ती ही है.

यह सब कहनेभर की बातें नहीं हैं बल्कि हकीकत में ऐसा सबकुछ होता है. यह तो देवेंद्र जैसे दोस्त अकसर साबित कर देते हैं. लेकिन तकलीफ और हैरानी तब होती है जब यह सम झ आता है कि यह पूरा सच नहीं है.

भोपाल के अभिषेक पुणे की सौफ्टवेयर कंपनी में नौकरी करते हैं. उन के सहकर्मी प्रणय भी भोपाल के हैं. दोनों में 5-6 सालों में इतनी गहरी दोस्ती हो गई कि एकदूसरे के बिना रहना उन्हें दूभर लगने लगा. हंसीमजाक में लोग यहां तक कहने लगे थे कि ये दोनों देखना कहीं शादी भी एक ही लड़की से न कर लें.

साथ रहना, साथ उठनाबैठना, साथ खानापीना और दोनों का एक ही वर्कप्लेस होना, ये सब दोस्ती गहरी करने के पर्याप्त कारण थे. लेकिन एक दिन हुआ कुछ ऐसा कि दोनों की दोस्ती में दरार पड़ गई. वजह थी अभिषेक की गर्लफ्रैंड, जिस पर प्रणय भी मर उठा. यह बात दर्जनों फिल्मों में तरहतरह से दिखाई गई है कि एक लड़की 2 दोस्तों के बीच आती है और दोस्ती में दरार पड़ जाती है. यही इन दोनों के साथ हुआ. दोनों अलगअलग रहने लगे. अभिषेक ने जौब स्विच करते कंपनी और शहर ही बदल लिया लेकिन प्रणय का दिया धोखा आज 2 वर्षों बाद भी उसे चैन से सोने नहीं देता. यही हाल प्रणय का भी है.

इन्हीं दोनों ने कई बार कसमें खाई थीं कि एकदो तो क्या, हजारों लड़कियां अपनी दोस्ती पर कुर्बान कर देंगे लेकिन दोस्ती नहीं तोड़ेंगे. दोस्ती का सच सामने है कि कभी एक ही सिगरेट से बारीबारी से कश लेने वाले प्रणय और अभिषेक एकदूसरे की शक्ल भी नहीं देखते. असल में इस की वजह लड़की कम थी. वह तो शायद बहाना बन गई थी. वजह, बकौल अभिषेक, यह भी थी कि प्रणय ने उस के डेढ़ लाख रुपए हजम कर लिए यानी विश्वासघात किया. इस का उस के पास कोई सुबूत नहीं है कि यह घपला या धोखा कैसे हुआ. वह कहता है कि दोस्ती में कोई लिखापढ़ी नहीं होती.

खैर सच जो भी हो, अब दोनों ही दोस्ती के नाम से डरने लगे हैं और नए दोस्त नहीं बनाते. दोनों की ही नजर में दोस्ती एक खूबसूरत धोखा है. प्यार की तरह दोस्ती में भी धोखा खाए लोगों की भरमार है और अधिकतर में पहली वजह पैसा है. गलत भी नहीं कहा जाता कि पैसे में बहुत दम होता है. अगर आप के पास पैसा है तो दुनिया आप की दोस्त है और अगर आप फोकटिए हैं तो आप का साया भी आप के साथ नहीं.

पिछले दिनों वियतनाम की वियतनाम यूनिवर्सिटी के एक अर्थशास्त्री गुयेन वियत कुओंग ने एक दिलचस्प सर्वे रिपोर्ट में यह बताया कि जिन के पास पैसा ज्यादा होता है उन के दोस्त भी ज्यादा होते हैं.

बकौल गुयेन, पैसे वालों का सामाजिक दायरा बढ़ जाता है क्योंकि वे इन पर ज्यादा खर्च कर सकते हैं. मुमकिन है ऐसा हो लेकिन देवेंद्र और राजन जैसी दोस्ती पर यह बात या शर्त लागू होती नहीं दिखती. अब एक नजर एक भारतीय सर्वे पर डालें जो कोरोनाकाल में आया. इस सर्वे के मुताबिक, लौकडाउन के दौरान कामधंधे ठप हो जाने से हर चौथे व्यक्ति को कर्ज या उधार लेना पड़ा. लेकिन सब से ज्यादा 57 फीसदी लोगों की मदद दोस्तों ने ही की. केवल 5 फीसदी को ही बैंक लोन मिला. बाकियों ने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से पैसे ले कर या जमीन, जायदाद, गहने या फिर कुछ और बेच कर काम चलाया.

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ये 57 फीसदी कोई धन्ना सेठ नहीं थे जो आज दोस्तों से पैसा उधार लेते और कल लौटा देते. ये सभी मामूली खातेपीते और मध्यवर्गीय लोग थे जिन से पैसे की वापसी की गारंटी केवल, एक शब्द या जज्बा कुछ भी कह लें, विश्वास था. भोपाल एनआईटी के एक छात्र देवांग की मानें तो उन्होंने अपना लैपटौप बेच कर अपने दोस्त को कोरोना के इलाज के लिए 20 हजार रुपए दिए और इस उम्मीद से कतई नहीं दिए कि वे वापस मिल जाएंगे. वे चाहते थे उन का दोस्त बेमौत न मरे.

यानी दोस्ती मध्यवर्गीयों की तगड़ी और सच्ची होती है क्योंकि अमीर युवाओं के इर्दगिर्द भीड़ दोस्तों की नहीं, बल्कि खुशामदियों की ज्यादा होती है जिन के अपने लालच या तात्कालिक स्वार्थ होते हैं. इस लिहाज से गुयेन का सर्वे भारत जैसे देश में फिट नहीं बैठता, फिर भी ऐसा होता है भले ही वह अपवादस्वरूप हो. यह बात कई तरह से साबित भी होती रहती है जिस का सार यह होता है कि आजकल दोस्ती में भी नियम व शर्तें लागू होने लगी हैं.

कैसे दोस्त हैं आप

अब वक्त है कि इस बात पर गौर करें कि आप कैसे दोस्त हैं बजाय इस के कि आप के दोस्त कैसे हैं. दोस्ती के तराजू में हालांकि पैसों की कोई अहमियत नहीं होती लेकिन सोचें कि आप इस पर कितने खरे उतरते हैं. अगर आप का कोई दोस्त जरूरत के वक्त पैसे मांगे तो आप क्या करेंगे.

1- तुरंत पैसा दे देंगे या
2 – पहले उस की जरूरत पर गौर करेंगे कि वह कितनी और कैसी है या –
3 – पैसा न देना पड़े, इसलिए बहाने बना कर उसे टरकाने की कोशिश करेंगे.

अगर आप का जवाब 2 या 3 है तो यकीन मानें आप एक अच्छे और सच्चे दोस्त नहीं हैं क्योंकि दोस्ती जरूरत पर गौर नहीं करती और बहाने भी नहीं बनाती. दोस्ती तो बिना सोचेसम झे ‘ले यार…’ कहना जानती है अंजाम चाहे कुछ भी हो.

फ्रेंडशिप डे: दोस्ती के नाम पर ब्लैकमेलिंग से बचें

वैसा ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है पर कुछ मनचले आशिक ऐसे मौके का फायदा उठाते हैं और अपनी गर्लफ्रेंड के जिस्म से खेलने के लिए पहले तो उन्हें किसी तरह मनाते हैं और फिर मतलब निकल जाने के बाद उन्हें ब्लैकमेल करते हैं.

सोशल मीडिया पर तो ऐसे मतलबी दोस्तों की बाढ़ सी आ गई है जो ब्लाइंड डेट के नाम पर अपना उल्लू सीधा करते हैं. दीक्षा के साथ ऐसा ही हुआ था. मनोज ने उसे फ्रेंडशिप डे मनाने के लिए राजी कर लिया और घर वालों से झूठ बोल कर उसे एक रात के लिए दोस्त के खाली फ्लैट पर ले गया. वहां उन दोनों ने जिस्मानी रिश्ता बनाया और शादी करने के सपने देखे.

दीक्षा खुश थी कि मनोज इस रिश्ते को शादी तक ले जाना चाहता है पर उस का ऐसा सोचना गलत था क्योंकि मनोज के तो कुछ और ही इरादे थे. दरअसल, उस ने एक छुपे कैमरे से उन नाजुक पलों का वीडियो बना लिया था जो उन्होंने फ्लैट में बिताए थे.

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कुछ दिनों के बाद मनोज ने अपना असली रंग दिखा दिया और वह उस वीडियो को वायरल करने के धमकी दे कर दीक्षा को ब्लैकमेल करने लगा. पहले तो डरी सहमी दीक्षा ने उसे पैसे दिए पर बाद में समझदारी दिखाते हुए सारी बात अपने घर वालों को बता दी. उन्होंने दीक्षा का पूरा साथ दिया और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने मनोज को धर दबोचा.

पुलिस की पूछताछ में पता चला कि मनोज पहले भी कई लड़कियों को अपने प्रेमजाल में उलझा कर उन से पैसे ऐंठ चुका था.

पर वंदना ऐसी हिम्मत नहीं दिखा पाई थी. राहुल ने उस का जो वीडियो बनाया था वह उस ने अपने दोस्तों में वायरल कर दिया था. वंदना की सहेली रुचिका ने उसे खूब समझाया था कि इतनी जल्दी राहुल पर भरोसा मत कर और उस की जिद पर फ्रेंडशिप डे पर उस के साथ डेट पर मत जा. लेकिन वह नहीं मानी थी. उस डेट पर राहुल ने अपने एक रईस दोस्त के फार्महाऊस पर वंदना के साथ जबरदस्ती की थी. उस जबरदस्ती का वीडियो उस के दोस्तों ने बना लिया था जो पहले से वहीं छुपे बैठे थे. बाद में उन लड़कों ने भी वंदना का शरीर भोगा था.

वीडियो वायरल होने के बाद वंदना इतना ज्यादा डर गई कि उस ने घर पर फांसी लगा कर अपनी जान दे दी.

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आप का भी हाल वंदना जैसा न हो इसलिए सोच समझ कर अपने बॉयफ्रेंड के साथ डेट पर जाएं, नहीं तो फ्रेंडशिप डे आप के लिए डार्क डे बनने में देर नहीं लगाएगा.

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