कालेज जाने के लिए निकल ही रही थी कि अमन ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘क्यों बहना, इतना सजधज कर कोई कालेज थोड़ा ही जाता है...’’ सीमा इठलाते हुए मुंह बना कर, टेढ़ी सी चाल चलते हुए बाहर निकल गई और अपनी साइकिल ले कर कालेज की ओर चल पड़ी. सीमा रास्तेभर वही जवानी वाली रवायतें, हर तरफ उड़ानों की ख्वाहिशें ले कर आगे बढ़ती गई...

कब कालेज आया, उसे पता ही नहीं चला. जैसे ही उस ने कालेज के बाहर लड़केलड़कियों की बातें करने और ठहाके लगाने की आवाजें सुनीं, तब वह अपने खयालों से बाहर आई और साइकिल स्टैंड पर अपनी साइकिल रख कर वह भी अपनी सहेलियों के साथ क्लास में दाखिल हो गई. घर में छोटे भाई अमन से मस्ती वाली लड़ाइयां और कालेज में दोस्तों की मस्ती... सीमा की जिंदगी कुछ ऐसे ही बीत रही थी. अमन के साथ की चुहलबाजी में कभी सीमा गुस्से में मां से शिकायत कर देती थी, तो मां का एक ही जवाब होता था कि जब वह ससुराल जाएगी, तो इन्हीं बातों को याद कर के रोएगी.

शायद सीमा भी यह बात जानती थी. एक ही तो भाई था उस का, लाड़ला भी तो बहुत था. फिर सीमा की जिंदगी में एक मोड़ ऐसा आया, जब उस के कालेज में रोहन आया, जो स्मार्ट और होशियार भी था. वह किसी पैसे वाले का बेटा नहीं था, लेकिन शान से जीता था, ऊपर से पढ़ाई में अव्वल भी था. वह सीमा से एक साल सीनियर था. सीमा जब भी रोहन को देखती, उस के दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं. उसे बारबार देखने को जी चाहता था. ये सब प्यार हो जाने की निशानियां थीं और अब वह भी समझने लगी थी कि उस की चाहत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. और एक दिन वह हो गया, जिस की सीमा को भी चाह थी. उसे कालेज के दफ्तर में कोई फार्म भरने के लिए बुलाया गया था.

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