लेखक- दिनेश पालीवाल
बहुत तेज रफ्तार से दौड़ती उस मोटरसाइकिल पर बीच में बैठी होने के बाद भी लतिका भय से कांप रही थी. भय कम हो जाए इस के लिए उस ने अभय की कमर कस कर पकड़ ली. अभय के साथ उस की मोटरसाइकिल पर वह पहली बार बैठी थी पर अब मन ही मन सोच रही थी कि आज किसी तरह बच जाए तो फिर कभी इस के साथ मोटरसाइकिल पर नहीं बैठेगी.
‘‘तुम गाड़ी धीरे नहीं चला सकते, अभय?’’ उस से सटी पीछे बैठी लतिका एक प्रकार से चिल्लाते स्वर में बोली.
हर हिचकोले के साथ लतिका से और अधिक सटने का प्रयत्न करता परमजीत हंसा और बोला, ‘‘डरो नहीं, डार्ल्ंिग, इस का अभय नाम यों ही नहीं है. इसे तो मौत का सामना करते हुए भी डर नहीं लगता.’’
‘‘लेकिन मैं लड़की हूं. इतनी तेज रफ्तार से डरती हूं. प्लीज, रोको न इसे वरना मैं चिल्लाने लगूंगी कि ये लोग मुझे जबरन कहीं भगाए लिए जा रहे हैं,’’ लतिका ने धमकी दी.
अपनी पीढ़ी की तरह रफ्तार और तेज रफ्तार जिंदगी तो लतिका को भी पसंद थी पर यह रफ्तार तो एकदम हवाई रफ्तार थी. इस में होने वाली दुर्घटना का मतलब था, शरीर का एकएक कीलकांटा बिखर जाना.
मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे उसे याद आया कि फैसला करने में उस से गलती हो गई थी. कनक ठीक कहती थी कि ये लोग भरोसे के लायक नहीं हैं. तुम्हें अभय के प्रेम में पड़ने से पहले उस के बारे में ठीक से जान लेना चाहिए.
उस समय लतिका ने कनक की बातों पर इसलिए ध्यान नहीं दिया था क्योंकि कनक कभी खुद अभय की तरफ आकर्षित थी पर अभय ने उसे भाव नहीं दिया था क्योंकि वह एक साधारण नाकनक्श की लड़की थी.
लतिका उस के मुकाबले अपने को हर तरह से बेहतर पाती थी. शक्लसूरत में ही नहीं पढ़ाई में भी अंगरेजी से एम.ए. कर रही लतिका ने प्रथम वर्ष की परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक पाए थे और कालिज के प्राध्यापकों ने उस की पीठ ठोंकी थी. प्रो. चोपड़ा तो उस से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उसे एम.ए. फाइनल में एक पेपर के रूप में लघु शोध लिखने का महत्त्वपूर्ण काम भी सौंप दिया था और स्वयं ही उस के लिए एक उपयुक्त विषय का चुनाव किया था. विषय था फ्रांस की सुप्रसिद्ध उपन्यासकार ‘साइमन बोऊवा की स्त्री स्वतंत्रता की अवधारणा और उन के उपन्यास.’ चोपड़ा साहब ने बोऊवा की एक खास पुस्तक ‘द सेकंड सेक्स’ अपने निजी पुस्तकालय से निकाल कर लतिका को पढ़ने को दी थी. यही नहीं उन्होंने खुद पत्र लिख कर लतिका को विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय का सदस्य बना दिया था और इसी के बाद लतिका अपने इस महती कार्य में जुट गई थी.
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केंद्रीय पुस्तकालय एक विशाल बगीचे के बीचोंबीच बना हुआ था. मुख्य गेट से उस तक आने के लिए जो पक्की सड़क बनी थी वह उस बगीचे के घने वृक्षों और ऊंची झाडि़यों से हो कर गुजरती थी. चूंकि वहां आम लोग नहीं आतेजाते थे और वाहनों को भी बाहर ही रोक दिया जाता था इसलिए वहां भीड़भाड़ नहीं रहती थी. ज्यादातर सन्नाटा पसरा रहता था, जिसे देख कर दिन में भी भय लगता था.
लतिका 1-2 बार अपने भय को कम करने के लिए कनक को साथ लाई थी, ‘यार, बगीचे में रास्ता बेहद सुनसान हो जाता है. डर लगता है कि कहीं कोई गुंडाबदमाश दबोच ले तो क्या होगा?’
‘शहर में अभय ही एक ऐसा गुंडा है जो हमेशा अपने कालिज की लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करता रहता है,’ कनक बोली.
‘कौन अभय? वही जो फेडेड जींस और चमड़े की काली जैकेट पहने मोटरसाइकिल पर फर्राटे भरता घूमता रहता है?
‘हां, वही. और वह कभी मोटरसाइकिल पर अकेला नहीं चलता. हमेशा 3 लड़के उस के साथ होते हैं.’
‘कुछ भी हो, मुझ से तो वह बहुत तमीज से पेश आता है,’ लतिका ने उस का पक्ष लेते हुए कहा, ‘विभाग में आतेजाते जब भी वह सामने पड़ा उस ने मेरा रास्ता छोड़ दिया.’
‘तेरा भ्रम जल्दी भंग हो जाएगा लाड़ो,’ कनक भी हंस दी थी, ‘जब किसी से इश्क हो जाता है तो बुद्धि काम नहीं करती, तर्क के तीर तरकस में पड़े जंग खाते रहते हैं और वह अंधा बना प्रेम की तरफ दौड़ता चला जाता है.’
कनक की कही हुई सब बातें अचानक मोटरसाइकिल पर बैठी लतिका को याद आ गईं. कनक के समझाने के बाद भी वह अभय व उस के दोस्तों पर विश्वास कर के इस सुनसान इलाके में उन के साथ चली आई. अगर वे इस सुनसान इलाके में उस के साथ मनमानी करने लगें तो वह इन 2 राक्षसों का क्या कर लेगी?
यह सोचते ही भय और आतंक से किसी तरह साहस कर के पूछा ही लिया, ‘‘हम लोग आखिर जा कहां रहे हैं?’’
‘‘डरो नहीं, लतिका,’’ बहुत देर की खामोशी के बाद अभय बोला, ‘‘हम लोग तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिस से तुम्हें किसी तरह का नुकसान पहुंचे. असल में तुम इस मोटरसाइकिल को जिस प्यार भरी नजरों से देखती
थीं, उसे देख कर ही मैं ने तय किया था कि एक दिन तुम्हें इस पर बैठा कर
सैर कराई जाए. आज तुम साथ आने को तैयार हो गईं तो हम इधर सैर को
आ गए.’’
‘‘लेकिन इस सुनसान इलाके में क्यों?’’ किसी तरह थूक निगल कर लतिका ने कहा. उसे अब अपने पर ही गुस्सा आ रहा था कि उस ने जरा भी बुद्धि से काम नहीं लिया जबकि रोज ही अखबारों में बलात्कार की घटनाएं वह पढ़ती है. यहां तक कि केंद्रीय पुस्तकालय तक आतेजाते भी कई बार लड़कियों के साथ छेड़छाड़ हुई है फिर यह तो एकदम सुनसान और एकांत स्थान है. यहां तो ये लोग कुछ भी कर सकते हैं उस के साथ.
इसी तरह के डरावने विचारों में डूबतीउतराती लतिका को अनायास ही अपने भाई नकुल के मनोविज्ञान में चल रहे शोध की याद आ गई. वह टीनएजर्स और बाल अपराधों के मनोविज्ञान पर शोध कर रहा है. उस के शोध को टाइप करते समय उन्हें पढ़ कर वह अकसर आश्चर्यचकित हो जाती है कि इतनी कम उम्र के लड़के बलात्कार का अपराध कर गुजरते हैं.
अचानक लतिका को लगा वह गलत फंस गई. उसे इन लोगों की बातों में नहीं आना चाहिए था. पुस्तकालय गई थी. भाई अब घर पर इंतजार कर रहा होगा पर अब वह क्या करे, कैसे बचे. कैसे सुरक्षित घर पहुंचे.
लतिका की जान में तब जान आई जब अभय की मोटरसाइकिल आ कर एक छोटी बस्ती में रुक गई. उस बस्ती के बाहर ही एक पुराना सा मकान था. उस के फाटक और टूटीफूटी चारदीवारी को अभय और परमजीत गौर से देखते रहे. फिर उस मकान के चारों तरफ एक चक्कर भी लगाया.
‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’ लतिका ने पूछा.
‘‘एक दोस्त को देखने आए हैं,’’ अभय बोला.
‘‘दोस्त को देखना है तो अंदर जा कर देखो. तुम तो इस मकान का बारबार चक्कर लगा रहे हो.’’
परमजीत बोला, ‘‘चलो, लतिका को योगी के घर ले कर चलते हैं.’’
‘‘यह योगी कौन है?’’ लतिका ने मुसकराने का प्रयास किया.
‘‘योगी, हमारा जिगरी दोस्त है और वह यहीं रहता है,’’ अभय ने कहा और मोटरसाइकिल एक सड़क पर दौड़ा दी.
लतिका को कुछ तसल्ली हुई कि चलो, यह जगह इन के लिए अनजान जगह नहीं है. यहां भी इन का एक दोस्त रहता है जिसे वह शक्ल से पहचानती है. नाम आज जान गई….अजीब नाम है…योगी.
बहुत आवभगत की योगी ने लतिका की. काफी अच्छा मकान था उस का. मां बहुत सरल स्वभाव की. एक छोटी बहन थी जो 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस से देर तक लतिका बातें करती रही. चायनाश्ते के बाद वह अभय और परमजीत के साथ वापस लौटी.
अब उसे उतना डर नहीं लग रहा था. पर एक सवाल उस के दिमाग में बारबार उठ रहा था कि आखिर अभय और परमजीत उस पुराने मकान को क्यों चारों तरफ से घूमघूम कर गौर से देख रहे थे? अगर उन्हें योगी से ही मिलना था तो सीधे उसी के घर क्यों नहीं चले गए?
अभय लतिका को ले कर सीधे उस के घर आया. नकुल बाहर ही बेचैनी से लतिका का इंतजार कर रहा था. उन लोगों के साथ लतिका को देख कर वह गुस्से को किसी तरह जज्ब किए रहा.
अभय और परमजीत को घर में बुला कर लतिका ने पानी पिलाया. नमकीन और मिठाई खाने को दी और अपने भाई से उस का परिचय कराया. जब अभय को विदा करने लगी तो वह बोला, ‘‘मैं नकुलजी को अच्छी तरह जानता हूं. ये कम उम्र के लड़कों और बच्चों के अपराधों पर शोध कर रहे हैं और उस के लिए अकसर बालसुधार गृह और जेल व पुलिस वालों के पास आतेजाते रहते हैं. आप के पिताजी एक इंजीनियरिंग कंपनी के उत्पाद बेचने के सिलसिले में दूसरे शहरों की यात्रा करते रहते हैं. घर की देखरेख और तुम्हारी रक्षा नकुलजी ही करते हैं. मां हैं नहीं इसलिए घरगृहस्थी का सारा काम तुम करती हो. तुम प्रोफेसर चोपड़ा की खास छात्रा हो. केंद्रीय पुस्तकालय में अपने लघु शोध के सिलसिले में कनक के साथ आतीजाती हो और कनक मुझे कोसती रहती है,’’ एक सांस में सब कह गया अभय.
‘‘अरे, तुम तो मेरा पूरा इतिहास जानते हो और यह भी कि तुम्हारे बारे में कनक मुझसे क्या कहती है.’’
रात को खाना खाते समय लतिका ने हमेशा की तरह भाई नकुल को सब बता दिया. हालांकि नकुल 2-3 साल ही लतिका से बड़ा था पर ज्यादातर बाहर रहने वाले पिता ने बेटी की सारी जिम्मेदारी बेटे को ही सौंप रखी थी. वह लतिका का भाई कम पिता अधिक था और उस के रहते लतिका भी अपने को बहुत सुरक्षित अनुभव करती थी.
नकुल को लतिका की चिंता भी बहुत रहती थी. अगर कालिज या पुस्तकालय से लौटने में उसे जरा भी देर हो जाती तो फौरन साइकिल से लतिका को खोजने निकल पड़ता था. कई बार लतिका उसे पुस्तकालय से आती हुई उन सुनसान रास्तों पर मिली है फिर दोनों भाईबहन पैदल ही साथसाथ आए हैं.
खाने के बाद जब लतिका अपने कमरे में पढ़ने चली गई तो कुछ देर बाद एक फाइल में कुछ कागज लिए नकुल उस के पास आया और उस के बिस्तर पर ही बैठ गया.
‘‘पहचानो इन चित्रों को. पुलिस के रिकार्ड से इन की फोटोकापी कराई है.’’
एकदम चौंक पड़ी लतिका, ‘‘अरे, यह तो अभय, परमजीत और योगी हैं. इन का रिकार्ड पुलिस में?’’ अचरज से उस की आंखें फैल गईं.
‘‘अच्छे लोग नहीं हैं ये पुलिस की नजरों में,’’ नकुल बोला, ‘‘अब तक कई अपराधों को अंजाम दे चुके हैं. अनेक लड़कियां इन की हवस का शिकार हुई हैं. ये पहुंच वाले बड़े लोगों के बिगड़ैल बेटे हैं. अभय तो शहर के प्रसिद्ध नेता का लड़का है. मेरी सलाह है कि तुम इन लोगों से दूर ही रहो. हम लोग इतने साधन संपन्न नहीं हैं कि इन का कुछ बिगाड़ पाएंगे.’’
‘‘जानते हो नकुल,’’ लतिका गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं तुम्हें पापा के बराबर ही मान देती हूं. सवाल सिर्फ उम्र का नहीं है जिस तरह तुम मेरी रक्षा करते हो, मेरा खयाल रखते हो, मेरी चिंता करते हो, उस सब का महत्त्व मैं समझती हूं. कोई भी लड़की तुम्हारे जैसे भाई को पा कर धन्य हो सकती है. मैं ने आज तक कभी तुम्हारी सलाह की अनदेखी नहीं की. पर भैया, मैं अभय को पसंद करती हूं.’’
‘‘अभय के जाते समय जो चमक तुम्हारी आंखों में मैं ने देखी थी उसे देख कर ही मैं समझ गया था,’’ नकुल बोला, ‘‘इसलिए यह सच भी तुम्हारे सामने रखा है वरना यह रिकार्ड मेरे पास काफी दिनों से है और मैं ने तुम्हारे सामने नहीं रखा था.’’
‘‘ठीक है भाई, मैं सावधान रहूंगी,’’ लतिका ने कुछ सोच कर कहा.
इश्क एक अजीब तरह का बुखार है. आंखों से चढ़ता है और शरीर के सारे अंगप्रत्यंग को कंपकंपा देता है. इतना सब जानने, सुनने के बावजूद लतिका अभय की सूरत को दिलोदिमाग से निकाल नहीं पाती थी. शरीर इस कदर उत्तेजित हो जाता था कि वह अपने तनाव और उत्तेजना को शांत करने के लिए अनेक उपाय करती थी. फिर उस मुक्ति के बाद वह देर तक हांफती हुई बिस्तर पर निढाल पड़ी रहती थी.
दूसरे दिन सुबह लतिका कालिज जाने लगी तो नकुल ने नाश्ते की मेज पर उस से कहा, ‘‘देखो, गलत रास्ते पर तुम बहुत आगे निकल जाओ उस से पहले ही मैं ने तुम्हें आगाह कर दिया है. आशा है तुम मेरी बात मानोगी.’’
रात को जो कुछ अभय को ले कर सोते समय लतिका ने अपने शरीर के स्तर पर महसूस किया था, उस के बाद वह नकुल की बात को बहुत मन से नहीं मान पाई थी. अभय को ले कर उस के मन में अभी भी कहीं कमजोर भावना थी.
कालिज जाते समय लतिका ने जल्दीजल्दी अखबार की खास खबरों पर नजरें दौड़ाईं तो अचानक एक खबर पढ़ कर वह हड़बड़ा गई, ‘‘नकुल भाई, यह खबर पढ़ो.’’
शहर के पास वाले कसबे में एक एकांत मकान के बूढ़े पतिपत्नी की हत्या कर सारी जमापूंजी लूट ली गई.
‘‘बेचारे ये बूढ़े दंपती तो अब अकसर ही मारे जाते हैं. कभी उन के अपने ही बच्चे उन्हें जमीनजायदाद पर कब्जा पाने के लिए मार देते हैं तो कभी बदमाश, लुटेरे यह काम कर देते हैं,’’ नकुल बोला, ‘‘कोई खास बात नहीं है. अब तो यह रोज की बात हो गई है.’’
‘‘खास बात है, नकुल,’’ लतिका कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं कल इसी कसबे में अभय और परमजीत के साथ गई थी और जिस मकान का विवरण यहां छपा है उस मकान के सामने अभय और परमजीत बहुत देर तक न केवल रुके बल्कि उन्होंने मोटरसाइकिल से उस मकान के कई चक्कर भी लगाए थे.’’
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‘‘लेकिन हमारे पास पुलिस को देने के लिए सुबूत क्या है?’’ नकुल बोला, ‘‘फिर तुम खुद उन के साथ थीं. खामखा पुलिस तुम्हें भी लपेटेगी. इसलिए इस मामले में चुप रहना बेहतर होगा.’’
उस घटना के बाद काफी दिनों तक अभय, परमजीत और योगी कालिज में दिखाई नहीं दिए. अखबार में छपी वह घटना कुछ दिन चर्चा का विषय भी बनी रही पर जल्दी ही दूसरी घटनाओं की तरह वह भी भुला दी गई.
लतिका केंद्रीय पुस्तकालय आतीजाती रही. नोट्स लेती रही. प्रो. चोपड़ा के दिशा- निर्देशन में फ्रांस की महान उपन्यासकार बोऊवा के उपन्यासों और उन के समाजदर्शन, स्त्री की स्वतंत्रता संबंधी विचारों का मंथन करती रही. इस बीच वह चोपड़ा साहब से बोऊवा की पुस्तकों पर लंबी बहस भी करती रहती थी.
लतिका के प्रयास और मेहनत को देख कर प्रो. चोपड़ा बहुत खुश हो कर बोले, ‘‘पहले इस लघु शोध को पूरा कर लो. एम.ए. के बाद मैं तुम्हें इसी विषय पर दीर्घ शोध ग्रंथ लिखने का काम दूंगा.’’
‘‘धन्यवाद सर, आप ने मुझे इस योग्य समझा,’’ कह कर जब वह चोपड़ा साहब के बंगले से बाहर निकली तो कनक मुसकराई, ‘‘बूढ़े पर तो दिल नहीं आ गया मेरी गुल की बन्नो का?’’
‘‘कनक, मैं धर्मवीर भारती की कहानी की कुबड़ी नहीं हूं,’’ बेसाख्ता, ठहाका लगा कर लतिका हंसी, ‘‘तू जानती है कि मैं अपने मन में अभी भी अभय को पसंद करती हूं.’’
‘‘इस के बावजूद कि पास के कसबे में हुई बूढ़े दंपती की हत्या और लूट में पुलिस को उन लोगों पर ही संदेह है.’’
‘‘मेरा विश्वास है कि अंत में सब ठीक हो जाता है,’’ लतिका बोली.
‘‘क्यों जीते जी जलती आग में कूद कर जान देने पर उतारू है, लतिका.’’
बूढ़े दंपती की हत्या का मामला जब रफादफा हो गया तो अभय, परमजीत और योगी फिर कालिज में दिखाई देने लगे.
एक दिन लतिका को रास्ते में रोक कर अभय हंसहंस कर उस से बातें कर रहा था और वह भी उस की बातों में रुचि ले रही थी कि परमजीत निकट आया और बड़े आदर से उस ने लतिका को नमस्कार किया तो उसे अच्छा लगा. कोई कुछ भी कहे, ये लड़के उस से तो हमेशा ही तमीज से पेश आते हैं.
जब परमजीत जाने लगा तो अभय ने जेब से एक परची निकाल कर परमजीत को देते हुए कहा, ‘‘योगी को दे देना.’’
लतिका ने यह सोच कर ध्यान नहीं दिया कि लड़कों की आपस की बातों में वह क्यों पड़े.
कालिज के बाद जब वह चाय वगैरह पीने कैंटीन पहुंची तो एक सीट पर किसी लड़की से बात करते योगी को देखा. लेकिन वह जल्दी ही उठ गया और काउंटर पर जा कर चायनाश्ते के पैसे देने लगा. वह लड़की भी उस के साथ थी. दोनों कुछ जल्दी में थे.
लतिका ने देखा, पर्स निकालते समय योगी की जेब से एक कागज का टुकड़ा निकल कर गिरा है. वह लपक कर गई और झुक कर उसे उठा लिया. वेटर ने उस के लिए चाय, पानी और डोसा मेज पर लगा दिया था. वह उस परची को ले कर अपनी मेज पर आ गई. उसे यह पहचानते देर न लगी कि यह वही परची है जो अभय ने योगी को देने के लिए परमजीत को दी थी. परची में लिखा था:
‘‘रात 8 बजे के करीब सी.एल. से एक मुरगी निकलेगी. बाएं रास्ते से जाते समय आज उसे हलाल करना है.’’
डोसा खाती लतिका कई बार उस परची को पढ़ गई पर ‘मुरगी के हलाल’ करने का मतलब वह ठीक से समझ नहीं पाई. सी.एल. का मतलब भी उस की समझ में बहुत देर के बाद आया कि हो न हो यह सेंट्रल लाइब्रेरी की बात है. इतना समझ में आते ही वह एकदम हड़बड़ा गई. इस का मतलब मुरगी कोई और नहीं या तो खुद लतिका है या उस जैसी कोई अन्य लड़की, क्योंकि रात के 8 बजे तक लगभग सभी लड़कियां वहां से निकल आती हैं.
लतिका की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपने को बचाने के लिए आज पुस्तकालय न जाए पर जो हलाल होने वाली लड़की है उसे कैसे बचाए. फिर मन में एक फैसला ले कर वह वहां से चल दी.
कैंटीन से बाहर निकली तो शाम के 6 बज रहे थे. तेजतेज कदमों से वह केंद्रीय पुस्तकालय की तरफ चल दी. वहां तक पहुंचने में उसे आधा घंटा लगा. उस ने पहुंचते ही पुस्तकालय के सभी कमरों में एक बार घूम कर पढ़ रहे लड़केलड़कियों को देखा. उन में वह लड़की भी दिखाई दी जो योगी के साथ कैंटीन में थी. बेहद सुंदर चेहरेमोहरे की उस लड़की को देख कर वह सकुचाई कि कहीं यही तो वह मुरगी नहीं जिसे आज हलाल करने का इन लोगों ने इरादा बनाया है.
‘‘मैं यहां बैठ सकती हूं?’’
लतिका के इस सवाल को सुन कर लड़की ने एक बार को ऊपर निगाह उठा कर देखा और फिर पढ़ने में डूब गई.
‘‘आप का नाम पूछ सकती हूं?’’ लतिका ने पूछा.
‘‘क्यों?’’ मुसकरा दी वह.
‘‘इसलिए कि मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’
‘‘पर मैं तो आप को जानती नहीं.’’
‘‘मुझे जानना जरूरी भी नहीं है,’’ लतिका बोली, ‘‘लेकिन आप का यहां से उठ कर अभी घर चले जाना ज्यादा जरूरी है.’’
इस से पहले कि वह लड़की और कोई सवाल पूछे लतिका ने धीरे से पर्स से कागज की वह परची निकाल कर उसे पढ़वा दी.
‘‘आप जिस लड़के के साथ कैंटीन में थीं उस की जेब से निकल कर यह परची गिरी है. उस के 2-3 साथी हैं, यह आप भी जानती होंगी.’’
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लड़की के काटो तो खून नहीं. चेहरा एकदम सफेद पड़ गया. डरीसहमी हिरनी की तरह वह लतिका को देखती रही फिर किसी तरह बोली, ‘‘तभी योगी का बच्चा मुझ से चिकनीचुपड़ी बातें करता रहा था. मुझे खूब नाश्ता कराया और कहा कि पुस्तकालय में देर तक पढ़ती हो तो भूख लग आती होगी, अच्छी तरह खापी कर जाओ.’’
वह एकदम उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘किताबें रख कर आती हूं. मुझे डर लग रहा है. आप साथ चल सकती हैं?’’
‘‘बशर्ते इस परची का जिक्र कभी मुंह पर मत लाना और मेरे बारे में उन लोगों को न बताना कि मैं ने तुम्हें आज यहां से निकाल दिया.’’
घर आ कर लतिका ने सारी बात नकुल को बताई तो वह गंभीर हो कर बोला, ‘‘उस लड़की को बचाया तो अच्छा किया लेकिन अगर उस ने उन लोगों से कभी यह बात कह दी तो वे लोग तुम्हारी जान के दुश्मन हो जाएंगे.’’
एक दिन कालिज में लतिका को अभय ने एक परची थमाई और बोला, ‘‘मुझे एक काम से अभी जाना है. प्लीज, लतिका, इस परची को तुम परमजीत को दे देना. पता नहीं वह कालिज में कितनी देर बाद आए.’’
‘‘अभय, तुम्हारा कोई काम करने में मुझे खुशी होती है.’’
‘‘जानता हूं, इसलिए तुम पर विश्वास भी करता हूं और कभीकभी छोटा सा काम भी सौंप देता हूं,’’ कहता हुआ अभय मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चला गया.
बहुत देर तक उस परची को लतिका पढ़ती रही पर वह कुछ समझ नहीं पाई. सिर्फ एक पता लिखा हुआ था और पते के अंत में 9 की संख्या लिखी हुई थी. उस ने उस पते को वैसा का वैसा ही अपने पास लिख लिया और कालिज के बाहर ही एक बैंच पर बैठी पढ़ती रही ताकि परमजीत को देख सके.
लगभग डेढ़ घंटे बाद परमजीत आया तो लतिका ने उसे वह परची दे दी. परमजीत ने परची पढ़ी और फाड़ कर फेंक दी. फिर देर तक हंसता हुआ उस से बातें करता रहा. जब वह उठ कर कक्षा में चली गई तो वह भी कहीं चला गया. उस के जाते ही लतिका लपकी हुई आई और उस ने परची के फटे सारे टुकडे सावधानी से बटोर लिए और एक कागज में पुडि़या बना कर अपने पास रख लिए.
घर आ कर उस ने वे सारे कागज के टुकड़े नकुल को दिए और उस में क्या लिखा था यह नकुल को पढ़ा दिया. नकुल सावधान हुआ. तुरंत लतिका को ले कर थाने गया और अपने उस नौजवान पुलिस अफसर से मिला जो शोध मेें उस की बहुत मदद कर रहा था.
लतिका से मिल कर उसे भी प्रसन्नता हुई और वह बोला, ‘‘आप च्ंिता न करें. आज मैं इन लड़कों को रंगेहाथ पकड़ूंगा. फिर भले ही मेरी नौकरी क्यों न चली जाए.’’
पुलिस अफसर ने सिपाहियों को सावधान किया. कुछ हथियार लिए. फिर सब को जीप में साथ ले कर वह उस पते पर पहुंच गया जो लतिका ने लिख रखा था. इस सब में 8 बज गए. दरवाजे में लगी घंटी बजाई तो देर तक दरवाजा नहीं खुला. आखिर कोई काफी कठिनाई से चलता हुआ गैलरी में आया और उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’
‘‘पुलिस. दरवाजा खोलिए. आप से मिलना जरूरी है,’’ उस अफसर ने कहा.
बहुत समझाने पर उस बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला. पुलिस के साथ एक लड़की को देख कर वह महिला कुछ संतुष्ट हुई. लतिका ने तुरंत उस वृद्धा का हाथ पकड़ा और उसे भीतर ले जा कर सारी बात समझाई. फिर भी वह बूढ़ी महिला पुलिस की कोई मदद करने को तैयार नहीं हुई. उस का बारबार एक ही कहना था कि मैं ऐसा नहीं करूंगी. वे हत्यारे मुझे मार डालेंगे. पड़ोस के कसबे में भी एक बूढ़े दंपती को हत्यारों ने ऐसे ही मार डाला था. आप लोग यहां रहें जरूर पर मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी, उन्हें अंदर नहीं आने दूंगी, वे मुझे मार डालेंगे.’’
बहुत देर तक समझानेबुझाने पर वह तैयार हुई कि दरवाजा खोल देगी पर वे लोग पिछले कमरे में जहां छिपें वहां से आने में कतई देर न करें वरना वे बदमाश उस की जान ले लेंगे.
रात लगभग 9 बजे घंटी बजी. सब सावधान हो गए.
बूढ़ी महिला फिर भय से कांपने लगी पर किसी तरह टसकती हुई दरवाजे तक पहुंची, ‘‘कौन है?’’
‘‘हम हैं, नानी, तुम्हारे पोते.’’ एक आवाज बाहर से आई. लतिका ने आवाज पहचान ली. यह अभय की आवाज थी. लतिका की भी आंखें भय से फैल गईं. अभी तक वह भ्रम में रही थी. अभय का जादू उस के सिर पर सवार था पर आज उस का भ्रम भंग हो गया.
दरवाजा खुलते ही अभय ने एकदम चाकू उस बूढ़ी औरत की गरदन पर रख दिया और बोला, ‘‘बुढि़या, जल्दी से हमें बता कि माल कहांकहां रखा है. अगर न बताया तो हम तुझे अभी मार देंगे. फिर सारे घर को खंगाल कर सब ले जाएंगे. पास के कसबे की घटना सुनी है कि नहीं तू ने? उन लोगों ने बताने में आनाकानी की तो हम ने उन्हें नरक में भेज दिया और सब ले लिया. तू भी अगर नरक में जाना चाहती है तो मत बता वरना चुपचाप साथ चल और सब माल हमारे हवाले कर दे.’’
बुढि़या को ले कर वे लोग आगे बढ़े ही थे कि झपट कर सारे सिपाही और पुलिस अफसर हथियार ताने पिछले कमरे से निकल कर वहां आ गए. उन के साथ लतिका व नकुल को देख कर अभय सकपका गया. परमजीत और योगी भागने की कोशिश करने लगे पर हथियारबंद सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया और अभय को तुरंत हथकडि़यां पहना दीं.
अभय गरजा, ‘‘तुम ने अपनी मौत मोल ले ली, लतिका. हम देख लेंगे तुम्हें.’’
‘‘देख लेना बच्चू, पर पहले तो अपने दिए गए अभी हाल के बयान का यह टेप सुन लो जिस में तुम ने पास के कसबे के बूढ़े दंपती की हत्या की और लूट को स्वीकारा है,’’ पुलिस अफसर ने हंस कर कहा, ‘‘दूसरे, इस जगह वारदात करने के इरादे से अपने ही हाथ के लिखे इस परचे को पढ़ो जिसे परमजीत ने फाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर वहीं फेंक दिया था.’’
सबकुछ देख कर परमजीत और योगी तो लगभग गिड़गिड़ाने लगे पर अभय के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी, ‘‘तुम चाहे जो कर लो इंस्पेक्टर, हमारा बाप नेता है. वह घुड़क देगा तो तुम्हारे सारे होश ठिकाने लग जाएंगे.’’
‘‘वह सब तो अब अदालत में देखेंगे. फिलहाल तो तुम पुलिस के साथ थाने की हवालात में चलो,’’ पुलिस अफसर उन्हें साथ ले गया.
जाते समय लतिका और नकुल से बोला, ‘‘तुम लोग फ्रिक मत करना. डरने की जरूरत नहीं है. ऐसे जाने कितने अपराधियों को मैं ने सीधा किया है.’’
फिर अनायास ही लतिका का हाथ पकड़ कर धीरे से दबाया और कहा, ‘‘धन्यवाद देना चाहता हूं आप को. आप मदद न करतीं तो ये लोग कभी रंगेहाथों न पकड़े जाते.’’
कुछ दिनों बाद पुलिस अफसर लतिका और नकुल से मिलने उन के घर आया तो लतिका के पिता भी घर पर ही थे. खूब सत्कार किया उन का. फिर किसी तरह अपने संकोच को भूल कर पुलिस अफसर ने लतिका के पिता से कुछ कहने का साहस बटोरा, ‘‘मेरे मांबाप नहीं हैं. इसलिए यह बात मुझे ही आप से करनी पड़ रही है. अगर आप लोगों को एतराज न हो तो मैं लतिका जैसी बहादुर युवती से शादी करना चाहूंगा.’’
‘‘आप ने तो हम लोगों के मन की बात कह दी, इंस्पेक्टर,’’ बहुत खुश हुए लतिका के पिता, ‘‘अब विश्वास हो गया कि मेरी बेटी इस कांड के बाद सुरक्षित रह सकेगी वरना हम लोग भयभीत थे कि बदमाशों को सजा दिलवा कर कहीं हम लोग जान न गंवा बैठें.’’
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‘‘जिम्मेदार नागरिकों के प्रति कुछ हमारी भी जिम्मेदारियां हैं, सर,’’ अफसर ने कहा तो सब मुसकराने लगे और लतिका लजा कर भीतर चली गई. द्य