लेखक- युगेश शर्मा

नंदिता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस छोटे भाई को पढ़ा- लिखा कर उस ने अफसर की कुरसी तक पहुंचाया है, एक अच्छे परिवार में शादी करवा कर जिस की गृहस्थी बसाई है वही भाई उस के साथ ऐसा बरताव करेगा. उस ने नया फ्लैट खरीदने के लिए डेढ़ लाख रुपए देने से इनकार ही तो किया था. उस ने तब उस को समझाया भी था कि हमारा यह पुश्तैनी मकान है. अच्छे इलाके में है. 2 परिवार आराम से रह सकें, इतनी जगह इस में है.

तब नवीन ने बड़ी बहन के प्रति आदरभाव को तारतार करते हुए कह डाला, ‘दीदी, मां और बाबूजी के साथ ही इस पुराने मकान की रौनक भी चली गई है. अब यह पलस्तर उखड़ा मकान हमें काटने को दौड़ता है. मोनिका तो यहां एक दिन भी रहना नहीं चाहती. मायके में वह शानदार मकान में रहती थी. कहती है कि इस खंडहर में रहना पड़ेगा, उस को यह शादी के पहले मालूम होता तो वह मुझ से शादी भी नहीं करती. वह सोतेजागते नया फ्लैट खरीदने की रट लगाए रहती है. आखिर, मैं उस के तकाजे को कब तक अनसुना करूं.’

नंदिता ने बहुतेरा समझाया था कि छोटी बहन नमिता की शादी महीने दो महीने में करनी है. अगर जमापूंजी फ्लैट खरीदने में निकल गई तो उस की शादी के लिए पैसे कहां से आएंगे. उस का तो जी.पी.एफ. अकाउंट भी खाली हो चुका है.

नवीन उस दिन बहुत उखड़ा हुआ था. आव देखा न ताव, बोल पड़ा, ‘यह आप की चिंता है, दीदी. मैं इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता. नमिता की शादी करना आप की जिम्मेदारी है. उस को आप कैसे निभाएंगी, आप जानें.’

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