'सेल्फी' की मकबुलियत बढ़ती जा रही है. और सच कहा जाए तो यह अपने चरमोत्कर्ष पर है. आज मोबाइल कैमरे के माध्यम से नन्हे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सेल्फी ले रहे  हैं. यह जीवन की खुशियों को बढ़ा रही है. याद कीजिए जब दस वर्ष पूर्व मोबाइल आ चुके थे मगर  उसमें सिर्फ एक ही कैमरा हुआ करता था. सेल्फी की सुविधा नहीं थी. जब नए सेल्फी मोड कैमरे आने लगे, मोबाइल कंपनियों ने सेल्फी की सुविधा देनी शुरू की तो मानो आम आदमी की दुनिया ही बदल गई.

एक वह वक्त भी था, जब अपना फोटो लेने के लिए हम दूसरे के मोहताज हुआ करते थे. मगर सेल्फी ने आकर हमारी दुनिया ही रंगों से भर  दी है.मगर यह भी सच है कि सेल्फी के कारण आज ऐसा कोई दिन नहीं होता जब कोई बंदा हलाक न हो जाता हो. सेल्फी लेने की धुन में अभी तक जाने कितनी जाने चली गई है इसका कोई सही आंकड़ा नहीं है आवश्यकता है जरूरत है संभलकर चलने की, सेल्फी के इस्तेमाल को समझदारी से करने की.

युवा वर्ग चपेट में....

सेल्फी लेने की धुन में युवा वर्ग ऐसा मद मस्त हो जाता है कि सब कुछ भूल जाता है और ऐसे में दबे पांव मौत आती है. सेल्फी के कारण जाने कितनी मौतें हो चुकी हैं जिसकी कोई गणना सरकार के पास नहीं है. मगर अक्सर अखबारों में सेल्फी के कारण हुई मौत पर खबरें बनती है यह खबर सुर्खियों में आती है और लोग भूल जाते हैं.

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