इन पांचों के पास पहनने को लेटेस्ट डिजायन के रंग-बिरंगे कपड़े नहीं हैं, इनके घर बेहद छोटे और संकरे हैं जिनमें बुनियादी सहूलियतों का टोटा है, इनके पास शौपिंग करने अनाप शनाप तो क्या खुद की जरूरतें पूरी करने भी पैसा नहीं है.  बंगला , कार , बाईक , एसी,  फ्रिज और  गीजर जैसे लग्जरी आइटम इनके लिए सपना हैं और तो और इनके पास घर में पढ़ने के लिए टेबल कुर्सी तक नहीं हैं फिर दूसरी बातों अभावों और चीजों का तो जिक्र करना ही फिजूल की बात है.

लेकिन एक चीज जो इनके पास है वो उनकी उम्र के लाखों बच्चों के पास नहीं है. वह है मेहनत, लगन और जज्बा जो किसी बाजार में नहीं बिकता, उसे तो खुद पैदा करना पड़ता है या फिर जरूरतों और हालातों से लड़ने खुद ब खुद पैदा हो जाता है. गरीबी के दर्द को बेहद नजदीक से भुगतने बाले इन पांच बच्चों ने कामयाबी की जो इबारत लिखी है वह अपने आप में एक ऐसी मिसाल है जिसे लाखों सेल्यूट ठोके जाएं तो भी कम पड़ेंगे.

मध्यप्रदेश के बोर्ड इम्तिहान के 15 मई को आए नतीजों में टौप 10 में से कम से कम 5 ऐसे परिवारों में से हैं जिनके यहां हफ्ते भर का भी राशन नहीं होता. इसके बाद भी ये मेरिट लिस्ट में हैं तो यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि इनकी मेहनत का ही नतीजा है. अभावों और गरीबी से छुटकारा पाने की ललक ने इन पांचों होनहारों को यूं ही रातोंरात ऊंचाई पर नहीं पहुंचा दिया है. उसके लिए इन्होने हाड़ तोड़ मेहनत की है. इनके पास कोई ट्यूटर नहीं था और न ही ये आलीशान कोचिंग में गए थे. अपने कोच, मेंटर ,काउन्सलर और ट्यूटर खुद बनते-2 इन्होने एक ऐसा इतिहास गढ़ दिया है जो मेरिट लिस्ट में आने के ख्वाहिशमंद छात्रों के लिए एक सबक है. आइये देखें कौन हैं ये गुदड़ी के लाल और कैसे कामयाबी की छत तक पहुंचे .

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