27 मार्च, 1981 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में जनमे बौक्सर अखिल कुमार ने हरियाणा राज्य में स्कूली लैवल पर पहला बौक्सिंग मुकाबला लड़ा था. साल 2005 में ‘अर्जुन अवार्ड’ पाने वाले अखिल कुमार को उन के ‘ओपन गार्डेड’ बौक्सिंग स्टाइल के लिए जाना जाता है.
बौक्सिंग के लिए अपने जुनून पर अखिल कुमार ने इस खेल को ले कर एक बार कहा था, ‘‘जीत के लिए हो सकता है कि आप को अपने विरोधी को ज्यादा और जोर से मारना पड़ता हो, लेकिन चोट आप को भी लगती है... यानी जीत हो या हार, दोनों ही दर्द के साथ मिलती हैं.’’
बौक्सर अखिल कुमार ने हाल ही में प्रोफैशनल बौक्सिंग में धमाकेदार डैब्यू किया और आस्ट्रेलिया के मुक्केबाज टाई गिलक्रिस्ट को करारी शिकस्त दी.
पेश हैं, अखिल कुमार के साथ हुई बातचीत के खास अंश:
चोट की वजह से आप काफी समय से बौक्सिंग रिंग से बाहर रहे थे. इस जीत से आप का कितना मनोबल बढ़ा है?
चोटों से तो मेरा पुराना नाता रहा है, लेकिन चोटें मुझे रोक नहीं सकतीं. हर जीत से खिलाड़ी का मनोबल बढ़ता है. इस जीत से मैं ने देश को खुश होने का मौका दिया है और आगे भी देता रहूंगा.
प्रोफैशनल बौक्सिंग और एमेच्योर बौक्सिंग में आप कितना फर्क पाते हैं?
रिंग तो रिंग होता है. हां, इस में बौक्सिंग ग्लव्स का साइज थोड़ा छोटा होता है. ज्यादा तेज हिट लगती है. चोट मारने और खाने में मजा आता है. इस में रैफरी की भूमिका कम होती है, फाउल पंच ज्यादा लगते हैं.
पहले राउंड में मुझे कट लग गया था. थोड़ी सी झिझक हुई थी कि कहीं बाउट रुक न जाए. लेकिन बाद में मुकाबला मैं ने ही जीता.