प्रदेश में ताड़ी पर रोक लगाने का मामला तुगलकी फरमान साबित हो कर रह गया है. पिछले साल अप्रैल महीने में सरकार ने बड़े ही तामझाम के साथ शराब के साथ ही ताड़ीबंदी का भी ऐलान किया था.
सरकार ने दावा किया था कि नशीली ताड़ी पर रोक लगेगी और उस की जगह नीरा को बढ़ावा दिया जाएगा. नीरा को बेचने के लिए कई पौइंट भी बनाए गए और लाइसैंस भी बांटे गए.
18 मार्च, 2017 को नीरा नियमावली लागू की गई. नियमावली बनने के इतने महीने गुजरने के बाद भी हालत यह है कि ताड़ और खजूर से पैदा होने वाले कुल रस का एक फीसदी हिस्सा भी इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. राज्य के 12 जिलों में ही कुल 74 फीसदी ताड़ और 70 फीसदी खजूर के पेड़ हैं. उन से रोजाना ताड़ और खजूर का 7 करोड़ लिटर रस जमा होना चाहिए था, पर महज 30 हजार लिटर रस ही जमा हो पा रहा है और उसी रस का नीरा बन रहा है.
शाही मौसम यानी अप्रैल से अगस्त महीने के बीच ताड़ या खजूर के एक पेड़ से रोजाना 10 लिटर रस मिलता है. इस से साफ हो जाता है कि ताड़ और खजूर का 99 फीसदी रस या तो ताड़ी के रूप में बाजार में बिक रहा है या बरबाद हो रहा है.
उद्योग विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, अभी नीरा बनाने और बेचने का काम टैस्टिंग के दौर से गुजर रहा है. फिलहाल तो नालंदा में नीरा की बौटलिंग हो रही है और एक सौ स्टालों पर इसे बेचा जा रहा है. सब से ज्यादा 55 स्टौल नालंदा में ही हैं. वैशाली में भी एक प्लांट लगाया जा रहा है. गया और भागलपुर में भी प्लांट लगाने की योजना को मंजूरी दे दी गई है, पर वहां अभी काम शुरू नहीं हो सका है.